Incest Paap ne Bachayaa written By S_Kumar

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Update-19

सुलोचना- पुत्र जिस तरह तुम्हारा हरा भरा गांव विक्रमपुर है ठीक वैसे ही हमारा गांव था, हमारा भी एक घर था, हंसी खुशी जिंदगी बीत रही थी पर मेरे पति को साधना, मंत्र जागृत करना, झाड़ फूक में माहिर बनना, इन सबमें बहुत रुचि थी, और इसी की खोज में वो हमेशा लगे रहते थे, घर गृहस्थी चलाने पर, धन अर्जित करने पर उनका कोई ध्यान नही था, एक बार बड़ा तांत्रिक बनने के चक्कर में अज्ञानी, पाखंडी, झूठे गुरुओं के चक्कर में आकर वो घर छोड़ कर चले गए, और गलत साधना कर बैठे बुरी आत्माएं उनपर हावी हो गयी और वो पागल हो गए, जंगल में भटकते भटकते उनकी मौत हो गयी।

मैं अपने पति से बहुत प्यार करती थी इसलिए मैंने ये प्रण किया कि मैं उनके अधूरे सपने को पूरा करूँगी और स्वयं घर छोड़कर अपनी बेटी पूर्वा को लेकर एक सच्चे, दिव्य पुरुष की तलाश में निकल पड़ी, जो मुझे सही साधना की विधि बताकर उसमे सफल बनायें।

उदयराज- तो आपके पति का सपना क्या था?

सुलोचना- मेरे पति का सपना था कि वो एक सही सच्चे तांत्रिक बनकर जन मानस की सेवा करें।

उदयराज- ये तो बहुत नेक और अच्छा विचार था उनका।

सुलोचना- हाँ, पर शुरू में उन्होंने कभी किसी से इसका जिक्र नही किया, क्योंकि उन्हें लगता था कि लोग उनपर हसेंगे, लोग ताने देंगे अगर वो सफल नही हुए तो, इसलिए उन्होंने सोचा था कि जब सफल हो जाऊंगा तब ही सबको बताऊंगा और गुपचुप तरीके से करने के लिए घर छोड़ दिया था पर गलत लोगों के हांथों में पड़कर वो गलत दिशा में चले गए और आज इस दुनिया में नही हैं।

उदयराज- तो आपको वो सच्चा सही गुरु कौन मिला जिसने आपको सही दिशा देकर आपके प्रण को सफल बनाया।

सुलोचना- वही, जिसके पास तुम जाना चाहते हो।

उदयराज- क्या?

सुलोचना- हां, तुमने सही सुना, तुम सही जगह जा रहे हो, तुम्हारी समस्या जो भी हो उसका समाधान वही कर सकते हैं, तुम्हारे मन में अगर अब भी कोई दुविधा है तो मैं कहती हूँ उसे निकाल दो। क्योंकि मैं भी उनकी शिष्य हूँ।

उदयराज आश्चर्य से देखता रह जाता है।

उदयराज- जब आप उनकी शिष्या है और आपको सिद्धि भी प्राप्त है तो मेरी समस्या तो आप भी हल कर सकती हैं

सुलोचना- नही पुत्र, मैंने केवल एक साधना की है, उनके पास सैकड़ों शक्तियां हैं, वो दिव्य हैं, वो गुरु है, मैं इतनी शक्तिशाली नही, मैं तो बस छोटी मोटी तांत्रिक ही हूँ।

उदयराज- लेकिन अभी तक तो आपने मेरी समस्या सुनी भी नही, न ही मैंने आपको बताई, तो आप ये कैसे कह सकती हैं की आप इसका हल नही बता सकती।

सुलोचला- मैं तुम्हे देखकर अपने मंत्रों की शक्ति से ये तो जान सकती हूं कि तुम्हारी समस्या कठिन है या सरल पर मैं उसका हल नही बता सकती, और तुम्हारी समस्या बहुत जटिल है (थोड़ा रुककर) और अगर सरल भी होती तो भी मैं उसका हल नही बताती।

उदयराज चकित होकर- भला क्यों?

सुलोचला- क्योंकि यह नियति तय करती है कि किस चीज़ का समाधान कहाँ होना है, किस्से होना है, कब होना है, इंसान के हाथ में कुछ भी नही।

उदयराज के मन में कई सवाल उठ रहे थे

उदयराज- तो जब आप यहां नई नई आयी तो आपके पास तो कोई ताबीज़ नही होगी फिर आप उन तक कैसे पहुँची।

सुलोचला- उस वक्त वो सिंघारो जंगल में इतनी अंदर तक नही बसे थे, वो यहीं रहते थे।

हालांकि उदयराज के मन में काफी सवाल थे पर इस वक्त अब और सवाल करना उसने उचित नही समझा। उसने सोचा कि वो बाद में पूछेगा।

सुलोचना ने उदयराज को आराम करने को बोलकर जंगल में कुछ विशेष जड़ी बूटियां लेने पूर्वा को ये बोलकर चली गयी कि जल्दी खाना बना ले।

अंदर रजनी और पूर्वा मिलजुलकर खाना बनाने लगी वो अब तक एक पक्की सहेली बन चुकी थी।

काकी गुड़िया को लेकर बाहर आ गयी और उदयराज से बातें करने लगी।

खाना बनने के बाद सबने खाना खाया, सुलोचना ने केवल शहद का सेवन किया और फिर कुटिया में हवन करने बैठ गयी।

कुटिया के बाहर दायीं तरह एक छोटी छप्पर की कुटिया और थी जिसमे सब लेटे थे।

सबसे कोने में उदयराज लेटा था, उससे पहले रजनी, उससे पहले काकी और सबसे बाहर की तरफ पूर्वा की लेटी थी।

उन चारों में केवल काकी ही ऐसी थी जो बिस्तर पे पड़ते ही सो गई, बाकी न तो पूर्वा सोई थी, न ही रजनी और न उदय।

पूर्वा इसलिए जग रही थी क्योंकि सुलोचना को बीच में किसी भी चीज़ की जरूरत पड़ सकती थी।

अचानक उदयराज को अपने सीधे पैर के तलवों पर रजनी के अंगूठे का स्पर्श महसूस हुआ, जो उदयराज के तलवों पर अंगूठे को धीरे धीरे बड़े ही हौले हौले रगड़ रही थी।

उदयराज अपनी बेटी के इस आमंत्रण और तरीके पर कायल हो गया उसने रजनी की तरफ मुह घुमाया तो वो उसी की तरफ करवट करके लेटी थी।

बाहर जलती हुई मशाल की अंदर आती हुई हल्की हल्की रोशनी में दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए, फिर काफी देर तक एक दूसरे की आंखों में देखते रहे।

रजनी अपने अंगूठे से अपने बाबू के पैर के तलवों में गुदगुदी सी करती रही फिर उसने एक बार पीछे पलट के देखा और चुपके से हल्का सा उदयराज के और नज़दीक आ गयी।

उसके पीछे उसकी बेटी सो रही थी फिर उसके बाद काकी और फिर पूर्वा लेटी थी।

रजनी और उदयराज कुछ बोल नही रहे थे क्योंकि वो जानते थे कि पूर्वा जग रही है हालांकि उसकी पीठ उन लोगों की तरफ थी इस बात का उन्हें सुकून था।

अपनी सगी बेटी की तरफ से आमंत्रण पाकर उदयराज फूला नही समाया, और अब वह अपने पैर का अंगूठा रजनी के तलवों पे रगड़ने लगा, कभी रजनी उसे छेड़ती तो कभी वो रजनी को।

एकाएक उदयराज ने अपने पैर के अंगूठे को रजनी के पैर पर धीरे धीरे थोड़ा ऊपर करना चालू किया, रजनी को जैसे जैसे उसके बाबू का अंगूठा ऊपर आता महसूस हुआ उसने अपनी सलवार को पकड़कर ऊपर सरकाया ताकि उसके बाबू उसकी नग्नता को महसूस कर सकें पर सलवार एक लिमिट तक ऊपर आ सकती थी अब उसकी मोहरी टाइट हो गयी पैर में, तो रजनी ने हल्का सा जीभ निकालकर ठेंगा दिखाते हुए उदयराज को चिढ़ाया।

उदयराज मुस्कुरा दिया और फिर उसने बायां हाँथ रजनी के घुटनो पर रखा और धीरे धीरे सहलाता हुआ ऊपर की तरफ बढ़ने लगा, रजनी सिरह उठी, रजनी और उदय एक दूसरे की तरफ मुँह करके लेटे थे। रजनी ज्यादा सिसक नही सकती थी, ज्यादा क्या इस वक्त तो वो बिल्कुल आवाज नही कर रही थी।

उदयराज अपना हाथ जांघों तक लाया फिर कमर पे लाया और जब कमर से ऊपर बढ़ने लगा तो रजनी ने उसका हाथ पकड़कर चुपचाप सूट के अंदर डाल कर चुचियों को कपड़े के अंदर से छूने का इशारा किया न कि बाहर से।

अपनी बेटी की इस पहल और बेसब्री पर उदयराज झूम उठा।

उदयराज ने अपना हाथ चूचीयों की तरफ बढ़ाया, लेटने से पहले रजनी चुपके से ब्रा निकाल चुकी थी, जैसे ही उदयराज की उंगलियां अपनी सगी बेटी की मदमस्त मोटी सॉफ्ट सपंज जैसी चुचियों से टकराई वो दूसरी दुनिया में खो सा गया, निवस्त्र चुचियों को छुए उसे बरसों बीत गए थे, इतनी मस्त चूचीयाँ तो उसकी पत्नी की भी नही थी जितनी बेटी की थी
इस बात ने उसे रोमांचित कर दिया कि आज उसकी सगी बेटी ब्रा खोलकर उससे अपनी नग्न चूची दबवाना चाहती है।

अपने हथेली में एक चूची को पूरा भरकर उसकी नग्नता को उदयराज ने अच्छे से महसूस किया फिर हल्के हल्के दबाने लगा, रजनी के सॉफ्ट निप्पल कड़क होकर खड़े हो गए, दूध की हल्की हल्की बुँदे उदयराज की हथेली को गीला करने लगी, उदयराज अपनी तर्जनी उंगली निप्पल के किनारे किनारे गोल गोल घूमने लगा जिससे रजनी की हल्की सी सिसकी निकल ही गयी उसने तुरंत पलट के पीछे देखा पर सब ठीक था, इतने में उदयराज ने दो उंगलियों से निप्पल को पकड़कर हल्का हल्का दबा दिया, वह चाहता तो मसलना था पर वह ये भी जनता था कि रजनी के मुह से आवाज निकल सकती है जो कि अभी ठीक नही।

हल्का हल्का निप्पल को दबाने से उसमे से थोड़ा और दूध निकलने लगा तो उदयराज ने अपनी उंगलियों में लगा के उसे चाट लिया, ये देखकर रजनी अपनी बाबू की आंखों में देखने लगी, फिर धीरे से फुसफुसाके पूछा- बाबू भूख लगी है?

उदयराज धीरे से- बहुत, बरसों से।

रजनी (नशीली आंखों से देखते हुए) - अभी तो खाना खाया था न

उदयराज- मुझे इसकी भूख है।

रजनी- किसकी बाबू

उदयराज- दूध पीने की

रजनी- किसका दूध पियोगे बाबू

उदयराज- अपनी बेटी का

रजनी- oooohhhhh मेरे बाबू, सिर्फ पियोगे?

उदयराज- पहले देखूंगा, फिर पियूँगा..... दिखाओगी?

रजनी- क्या?

उदयराज- यही

रजनी- यही क्या बाबू?

उदयराज रजनी की आंखों में देखते हुए- "चूची, तुम्हारी चूची देखने का दिल कर रहा है" (उदयराज की आवाज ये बोलते हुए वासना में भारी सी हो गयी)

रजनी- uuuuuuffffffff, किसकी चूची बाबू।

उदयराज- अपनी सुंदर सलोनी बिटिया की।

रजनी- dhaaatttt गन्दू गंदे बाबू। कोई अपनी सगी बेटी की चूची देखता है।

उदयराज- कोई देखे न देखे मैं तो देखूंगा। किसी की बेटी इतना प्यार करने वाली भी तो नही है न।

रजनी- सच

उदयराज- हां, क्या मुझे दिखाओगी नही?

रजनी मुस्कुराकर अपने बाबू की आंखों में वासनामय होकर देखने लगी फिर पलटकर उसने एक बार पीछे देखा तो पूर्वा अपनी जगह पर नही थी शायद वो उठकर अपनी माँ की मदद के लिए गयी थी और उन्हें पता नही चला, रजनी को मौका मिल गया।

रजनी ने तुरंत अपना सूट ऊपर कर दाहिनी चूची को बाहर निकाल दिया, मोटी सी चूची सपंज की तरह उछलकर बाहर आ गयी, अपनी ही सगी बेटी की इतनी मदमस्त उन्नत तनी हुई सख्त चूची उदयराज की आंखों के सामने नग्न हो गयी थी, हल्की रोशनी में वो गोरी गोरी चूची की पूर्ण आभा तो नही देख सकता था पर जितना भी दिख रहा था उतने ने ही उदयराज के लंड को लोहा बना दिया।

इतनी मोटी चूची देख वो कुछ पल देखता ही रहा, उसकी खुद की बेटी ही कितनी मदमस्त यौवन की मलिका है, रजनी कभी अपने बाबू के चेहरे को देखती कभी मुस्कुरा देती और कभी पलटकर पीछे देखती की कहीं पूर्वा न आ जाये।

उदयराज ने वासना में थोड़ी कंपन करती हथेली को चूची पर दुबारा रखा और दबा दिया
रजनी सिसक उठी।

उदयराज अब पागलों की तरह चूची दबाने लगा तो रजनी सिसकते हुए बोली- बाबू अभी पी लो इसको जल्दी से, ज्यादा वक्त नही है, आ जायेगी वो।

उदयराज ने फट से मोठे तने हुए गुलाबी निप्पल जिसमे से दूध रिस रहा था मुह में भर लिया।

रजनी की तो नशे में आंखें ही बंद हो गयी, अपने बाबू के होंठ अपने निप्पल पर महसूस करके रजनी के मुह से aaahhh निकल गयी, पर उसने जल्दी से अपने को संभाला, उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि उसके बाबू उसकी चूची पी रहे हैं, उदयराज बच्चे की तरह चूची भर भर के दूध पीने लगा, दूध की धार उसके बरसों से प्यासे गले को तर करती हुई पेट में जाने लगी। दूध के स्वाद में अलग ही लज़्ज़त और महक थी, जो उदय को दीवाना बना गयी।

अपनी सी सगी बेटी का दूध पीके वो जन्नत में था, लंड इतना सख्त हो गया था कि धोती फाड़ के अभी बाहर आ जायेगा। पर अभी उसने नीचे का हिस्सा दूर ही रखा था, शायद उसका अभी सही समय नही था या यूं समझ लीजिए लाज की एक डोर अभी भी जुड़ी हुई थी।

रजनी आंखें बंद किये बेसुध सी हो गयी थी, अपने बाबू को इस तरह अपनी चूची पीते हुए देख वो वासना से पगला सी गयी थी, उसकी चूची जितना हो सके उसके बाबू भर भर के पी रहे थे, इतना मजा उसे कभी अपने जीवन में नही आया, जितना आज उसे अपने बाबू के साथ आ रहा था, वासना और कामोन्माद में वो फिर अपने पैर अपने बाबू के पैरों से रगड़ने लगी और उससे रहा नही गया, खुद ही कस के अपने बाबू के बदन से लिपट गयी, उदयराज का सर किसी बच्चे की तरह रजनी की चुचियों के बीच था जिसमे से एक खुली थी एक सूट के अंदर थी।

उदयराज ने हथेली में चूची को भरा हुआ था और पिये जा रहा था उसका एक हाथ दूसरी चूची पर गया मानो वो कह रहा हो इसको भी खोलो।

रजनी ने बड़ी मुश्किल से पीछे मुड़कर देखा तो उसको पूर्वा के आने की आहट हुई, वो बोली- बाबू अब बस करो, बर्दाश्त नही होता, बाद में पी लेना, वो आ रही है।

उदयराज ने चूची पीना छोड़ अपनी बेटी की आंखों में देखा फिर एक बार चूची को देखा और फिर सूट को खुद ही नीचे सरका दिया इतने में पुर्वा आ गयी। दोनों कुछ देर ऐसे ही लेटे रहे एक दूसरे की आंखों में देखते हुए मुस्कुरा दिए, रजनी ने पीछे मुड़कर देखा और फिर धीरे से सीधी होकर लेट गयी, साँसे उसकी अभी तक तेज चल रही थी, उदयराज थोड़ा पीछे होकर लेट गया।
 
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Update-20

पुर्वा आकर अपनी जगह पर लेट गयी।

पुर्वा- रजनी बहन! सो गई क्या?

रजनी- नही पुर्वा बहन, नींद कहाँ आ रही है।

पुर्वा- परेशान मत हो बहन, सब ठीक हो जाएगा, जो होता है अच्छे के लिए ही होता है, सो जाओ।

रजनी- हां बहन सो तो है।

पुर्वा- आपके बाबू सो गए।

रजनी- हां वो तो कबके सो गए।

पुर्वा- तो तुम भी सो जाओ।

रजनी- हूं, ठीक है, और तुम जगती रहोगी क्या?

पुर्वा- नही, कुछ देर में सो जाउंगी।

फिर रजनी और उदयराज सो जाते हैं।

कहते है कि किसी भी चीज़ को अगर दिल से चाहो और उसके लिए सच्ची तड़प हो तो नियति या कायनात उसे तुमसे मिलाती जरूर है, या यूं कहें कि उसे तुमसे मिलाने के लिए परिस्तिथियाँ तैयार करने लगती हैं, यही हुआ आज नीलम के साथ।

आज सुबह उसने जो देखा उससे वो बहुत बेचैन हो गयी, गेहूं फैला कर वो किसी तरह नीचे आयी, तो उसकी माँ ने उसे खाना बनाने का लिए बोल दिया। बिरजू घास लेके आया और उसने घास अपने जानवरों को दी और उदयराज के घर जाके उनके जानवरों को भी दिया, नीलम अभी घर में खाना ही बना रही थी और बिरजू नहाने चला गया, खाना बनने के बाद नीलम ने उनको खाना परोसा, हमेशा वो चुन्नी डाले रहती थी पर आज उसने जानबूझ के नही डाली। बिरजू को देखते ही नीलम की आंखों के सामने वो दृश्य घूम गया, कितना बड़ा और मोटा लंड है मेरे बाबू का, शर्म की लालिमा चहरे पे आ गयी और वो थाली रखने नीचे झुकी, मदमस्त मोटी चुचियाँ का भार नीचे की ओर हुआ जैसे वो मानो सूट से निकलकर बाहर ही आ जाएंगी।

नीलम- बाबू हरी मिर्च भी लाऊं, प्याज़ के साथ।

बिरजू ने जैसे ही सर उठाया सीधी नज़र गोरी गोरी भरपूर फूली हुई चूचीयों पर चली गई, नीलम मुस्कुरा दी, ये देखकर की बिरजू की नज़र कहाँ है।

बिरजू झेंप गया और सकपका के बोला- नही बेटी, प्याज़ ही बहुत है, मिर्च रहने दे।

नीलम मुस्कुराते हुए चली आयी, बिरजू खाना खाने लगा, मन में उसने सोचा कि नीलम को क्या हुआ आज मैंने इस तरह उसे कभी नही देखा, भूलकर भी वो मेरे सामने ऐसे कभी नही आई, खैर भूल गयी होगी चुन्नी लेना, लेकिन भूलेगी क्यों, पहले तो कभी नही भूली, एक बार और बुला कर देखता हूँ अगर भूल गयी होगी तो इस बार चुन्नी डालकर आएगी

बिरजू- नीलम, नीलम बेटी

नीलम- हां बाबू

बिरजू- सिरका है

नीलम रसोई में से- हां बाबू है, लायी

इस बार फिर नीलम ने चुन्नी नही डाली और कटोरी में सिरका डालकर थाली के पास रख दिया और जब बिरजू की ओर देखा तो वो उसकी हिलती चूचीयाँ देख रहा था, जैसे ही बिरजू की नजरें मिली नीलम मुस्कुरा दी, बिरजू भी हल्का सा मुस्कुरा कर झेप सा गया।

बिरजू थाली में देखने लगा, नीलम पलट कर जाने लगी, पता नही क्यों बिरजू ने दुबारा नीलम को देखने के लिए नज़रें उठायी और आज वो पहली बार अपनी सगी बेटी को जाते वक्त पीछे से निहार रहा था कि तभी नीलम पलटी और अपने बाबू की तरफ देखा तो वो उसे ही देख रहा था, इस बार वो नीलम को देखता रहा, नीलम भी रसोई के दरवाजे पर रुककर कुछ देर देखती रही फिर हंस दी और बिरजू भी मुस्कुरा दिया, नीलम की नज़रों में आमंत्रण था ये तो बिरजू को समझ आ चुका था अब।
तभी नीलम बोली- बाबू कुछ चाहिए हो तो बता देना।
(न जाने इस बात में भी बिरजू को आमंत्रण सा लगा)
बिरजू - हां बेटी, जरूर, और खाना खाने लगा।

नीलम मुस्कुराई और मटकती हुए रसोई में चली गयी।

बिरजू ने खाना खाया और काम से बाहर चला गया।

नीलम मन ही मन बहुत खुश थी कि शायद तीर निशाने पर लगा है, नही तो उसके बाबू उसको डांटते, कुछ तो है बाबू के मन में भी।

नीलम ने घर का काम किया, अपनी माँ को भी
खाना खिलाया और खुद भी खाया, फिर उसकी माँ सोने चली गयी दोपहर में और वो भी सो गई।

शाम को नीलाम सो के उठी तो देखा उसकी माँ सुबुक सुबुक के रो रही थी

नीलम- अम्मा क्या हुआ, रो क्यों रही हो। क्या हुआ बताओ न। क्या कोई बुरा सपना देखा क्या?

माँ- हां

नीलम- क्या सपना देखा? ऐसा क्या देखा, क्या कोई डरावना सपना देखा क्या? भूत प्रेत का।

माँ- नही रे! मैं डरती हूँ क्या भूत से।

नीलम- अरे तो फिर ऐसा क्या देखा जो रोने लगी।

माँ- कुछ नही

नीलम- अम्मा बता न, कुछ बता नही रही और रोये जा रही है। बता न

माँ- बोला न कुछ नही, तू क्या करेगी सुनके।

नीलम- अम्मा तू रो रही है, मुझे दुख हो रहा है, नही बताएगी न, इसका मतलब मैं तेरी बेटी नही न

माँ- ये क्या बोल रही है

नीलम- तो बता फिर, बता तुझे मेरी कसम है।

माँ- तू कसम क्यों दे रही है। (रोते हुए)

नीलम- नही बताएगी तो दूंगी न कसम।

माँ- बहुत गंदा सपना था

नीलम- गंदा, कैसा गंदा?, क्या गंदा?

थोड़ी देर सोचने के बाद

माँ- मुझसे नही बोला जाएगा।

नीलम- अरे माँ, बता न, तेरी बेटी ही तो हूँ, अब कसम दे दी फिर भी नही बताओगी, कसम की भी लाज नही न। ठीक है

एकाएक नीलम की माँ बोल पड़ी

माँ- सपने में तेरे बाबू चाट चाट के तेरा पेशाब पी रहे थे वो भी सीधा बू.......

सुनते ही नीलम आश्चर्य से उसे देखने लगी

नीलम- क्या? छि छि, हे भगवान, इतना गंदा सपना, और क्या बोली अम्मा तू वो भी सीधा किससे? कहाँ से?

माँ- कहाँ से क्या, जहां से पिशाब निकलता है उसी से, सीधा बू........बूर से, हे भगवान मैं मर क्यों नही गयी ये सब देखते ही, क्या होने वाला है, तेरे बाबू बहुत बीमार थे सपने में, उनकी आंखें तक नही खुल रही थी, आंगन में यहीं लेटे थे खाट पे, दिन का समय था, तू आयी, सिर्फ साया ब्लॉउज पहना था तूने।

नीलम- फिर, फिर... अम्मा (उत्सुकता से)

माँ- फिर क्या, तू खाट के बगल में खड़ी हो गयी, और बोली बाबू, बाबू उठो न, वो नही उठ रहे थे, फिर एकाएक तूने अपना सीधा पैर उठाकर उनके दाहिने कंधे के ऊपर खाट के सिरहाने पर रखा और अपनी बूर खोलते हुए उनके मुँह पर हल्का हल्का मूतने लगी, पेशाब मुँह पर पड़ते ही तेरे बाबू की आंखें खुल गई और बूर देखकर जैसे उनके मुँह में पानी आ गया फिर पेशाब पीते हुए उन्होंने लपककर बूर को मुँह में भर लिया और चाटने लगे, बूर से निकल रही पेशाब की धार से उनका पूरा चेहरा भीग गया, तेरी और उनकी आँखों में वासना थी फिर न जाने कहाँ से एक आवाज गूंजी जैसे आकाशवाणी हुई हो कि पी ले बिरजू, पी ले यही तुझे जीवनदान देगी। एक झटके से मेरी आँख खुल गयी और मैं रोने लगी, न जाने क्या होने वाला है, इतना गंदा सपना मैंने आज तक नही देखा, क्या अनर्थ होने वाला है। बताओ एक बेटी अपने बाप को....हे ईश्वर!

ये सुनकर नीलम का तन बदन एकदम रोमांचित हो गया, शर्म से चेहरा एकदम लाल हो गया, पर फिर भी अपने को संभालते हुए बोली- इतना गंदा सपना आपको कैसे आया अम्मा, महापाप है ये तो, मुझे तो सोचकर भी शर्म आ रही है, कैसे..छि, क्या अर्थ है इस सपने का, और बीमार क्यों पड़े अम्मा, आपको पता है न बीमार पड़ने का मतलब क्या है इस गांव में, इस कुल में।

माँ- वही तो चिंता अब मुझे खाये जा रही है बेटी, तूने उनके साथ जो किया और उन्होंने तेरे साथ जो किया, पाप पुण्य तो बाद कि बात है, वो बीमार ही क्यों पड़े, क्यों ईश्वर ने उन्हें बीमार किया।

नीलम- अम्मा छोड़ो न, ये बस एक सपना था, गंदा सपना।

माँ- नही बेटी, मेरा दिल नही मानता, सपने का कुछ अर्थ जरूर होता है, आजतक तो कभी मुझे ऐसा सपना नही आया पर अब ही क्यों? कुछ तो गड़बड़ है मेरी बिटिया, तेरे बाबू को कुछ हो गया तो?

नीलम- क्या बोले जा रही है अम्मा तू (और नीलम ने अपनी माँ को गले से लगा लिया) मत बोल ऐसा, ऐसा कुछ नही होगा।

माँ- क्यों वो कोई लोहे के बने है? अरे वो भी तो मेरी तेरी तरह इंसान ही है न।

नीलम- हां तो, ऐसे तो मैं और तू भी इंसान है, हम भी बीमार पड़ सकते है।

माँ- हां पड़ सकते हैं, पर सपने में तो वही बीमार थे न, क्या पता इस सपने का अर्थ ये तो नही की आने वाले वक्त में वो बीमार पड़ जाए, अगर उन्हें कुछ हो गया तो क्या करूँगी मैं, कहाँ जाउंगी मैं, मैं तो ऐसे ही मर जाउंगी।

सपने से उसकी माँ काफी डर गई थी।

नीलम- क्यों ऐसा बोल रही है अम्मा तू, क्यों ऐसा सोच रही है, ये सिर्फ सपना है अम्मा, ईश्वर अगर मुसीबत देता है तो कहीं न कहीं उसका हल भी होता है

नीलम की यह हल वाली बात पर उसकी माँ के दिमाग में एक बात ठनकी

माँ- अरे हां देखो इस बात पे तो मेरा ध्यान ही नही गया।

नीलम- किस बात पे अम्मा?

माँ- देख ईश्वर की माया, अगर उन्होंने तेरे बाबू को बीमार किया तो ठीक होने का हल भी बताया, वो आकाशवाणी क्या कह रही थी, यही न कि "यही तुझे जीवनदान देगी।"

इतना कहते हुए नीलम की माँ ने नीलम का चेहरा अपने हांथों में ले लिया और जैसे भीख मांग रही हो, बोली- हे बिटिया, मुझे तो लगता है तू ही उनकी जीवनदायिनी है, चाहे पाप हो चाहे पुण्य हो, तू मुझे वचन दे कि जीवन में अगर उन्हें ऐसा कुछ हुआ, तो तू लोक लाज छोड़कर, पाप पुण्य को न देखते हुए, वही करेगी जो मैंने सपने में देखा, देख बेटी ना मत कहना, एक पत्नी अपने पति के लिए तेरे से भीख मांग रही है, अपनी ही बेटी से उसके पिता की जीवन की भीख मांग रही है, जीवन से बड़ा कुछ नही, आखिर तेरे बाबू को कुछ हो गया तो तू भी बिना बाप की हो ही जाएगी न और मैं तो विधवा हो ही जाएंगी, हमारे कुल हमारे गांव में न जाने कौन सी समस्या है जिसके चलते न जाने कितने लोग चले गए, पर देख तेरे बाबू कितने भाग्यशाली है कि ईश्वर ने सपने के द्वारा इसका हल बताया।

नीलम की मां पागलों की तरह बोले जा रही थी और नीलम अवाक सी सुने जा रही थी।

माँ- बेटी, अब तेरे बाबू की जीवनरेखा तेरे हाथ में है, तू मुझे वचन दे बेटी, की ऐसा करके उनकी रक्षा करेगी, वचन दे बेटी।

नीलम को तो मानो मुँह मांगी मुराद मिल गयी थी, बस वो सिर्फ दिखावा कर रही थी

नीलम- माँ ये तू क्या कह रही है, पहली बात तो यह सिर्फ एक सपना है, और क्या मैं चाहूंगी कि मेरे बाबू को कुछ हो, कभी नही, मैं अपनी जान भी दे दूंगी पर अपने बाबू को आंच नही आने दूंगी, ये तन बदन क्या चीज़ है अम्मा, तू चिंता मत कर मैं वचन देती हूं, मैं वही करूँगी जो तू कहेगी, वही करूँगी जो तूने देखा है सपने में, पर अम्मा बाबू मानेंगे क्या?, वो तो खुद ही मर जायेंगे पर ऐसा महापाप कभी सपने में भी नही करेंगे।

माँ- वो तू मुझपे छोड़ देना बेटी, मैं उन्हें मना लूंगी, देख बेटी तेरी माँ हूँ आज तुझे खुलकर बोलती हूँ ये जो मर्द होता है न, ये बूर का भूखा होता है, खुली बूर इसके सामने हो तो वो कुछ नही देखता, न बेटी, न माँ, न बहन, और यही हाल स्त्री का भी होता है, ये कुदरत का बनाया खेल है, लन्ड और बूर का कोई रिश्ता नहीं होता बिटिया, ये बस बने हैं तो एक दूजे के लिए, मैं उन्हें समझा दूंगी, अगर कभी ऐसा होता है तो। बस तू मेरे सुहाग की रक्षा करना।

नीलम- माँ मैंने आपको वचन दिया न, जो आप कहोगी वो मैं करूँगी, अब आप रोओ मत, और चिंता छोड़ दो।

नीलम के मन में खुशियों की बहार आ गयी, जैसे एकदम से काले काले बादल छा गए हो और रिमझिम बरसात शुरू हो गयी हो, आज नियति पर वो इतना खुश थी कि क्या बताये, अभी सुबह ही वो सोच रही थी कि रजनी आ जायेगी तो वह उसको अपने मन की व्यथा बताएगी उससे रास्ता पूछेगी, डर था उसे की छुप छुप के ये सब कैसे हो पायेगा, उसके बाबू उसके मन को पढ़ पाएंगे भी या नही, पर नियति ने देखो कैसे एक पल में सारा रास्ता बना दिया, दूसरे की तो बात ही छोड़ो खुद उसकी सगी माँ इस व्यभिचार में उसके लिए रास्ता बनाएगी, माँ का संरक्षण मिल गया था अब तो, और जब माँ का ही संरक्षण मिल जाये, उसकी ही रजामंदी मिल जाये तो तब डर कैसा, रास्ता तो उसकी माँ खुद बनाएगी उसके लिए, एक बार को बाबू पीछे भी हटे तो माँ खुद उन्हें मेरा यौन रस चखने के लिए मनाएगी, पर ऐसा है नही आज बाबू को देखा था मैंने कैसे मेरी चूची को घूर रहे थे। वक्त ने अचानक ऐसी पलटी मारी की सारा खेल आसान हो गया।

लेकिन नीलम ये समझ गयी कि मां ये सब उस सपने की वजह से कह रही है, अगर बाबू बीमार पड़े तो मुझे ऐसा करना होगा, लेकिन अगर मान लो वो बीमार नही पड़े तो?

इसके लिए मुझे माँ से बातों बातों में बाबू के रूखे यौनजीवन की चर्चा करनी होगी, उनकी तड़प की चर्चा करनी होगी, जीवन में उन्हें जो यौनसुख नही मिल रहा उसपर बात करनी होगी, मुझे लग रहा है कि अम्मा मेरा यौनमिलन बाबू से जरूर करवा देंगी, बाबू को तो मैं अपने बलबूते पर भी तैयार कर लुंगी रिझा रिझा के, पर अगर इस काम को अम्मा करे, ये सब उनकी सहमति से हो तो मजा और भी दोगुना हो जाएगा।
 

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