Incest जिन्दगी एक अनाथ की ~written by Goldybull~

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Update 50. मन्दिर के चमत्कारी पत्थर का रहस्य
प्रथम भाग


नरेश मन्दिर के पूजा में आज बहुत ही बैचैन हो रहा था ,हर साल जिस तरह से वो मन्दिर में मन लगाकर सेवा करता था इस बार वो बात नही थी ,नरेश के मन में कल की उसकी जब कल शाम को शक्ति के दादा से मुलाकात हूवी थी तब की बाते याद आ रही थी ,
नरेश अपने तीनो भाइयो या बेटो के साथ बैठा था ,भवानीगढ़ में देसाई खानदान से सब आ गये थे बस निता और सुनीता नही आये थे ,निता की तबियत कुछ खराब थी 10 दिनोसे और उसकी का खयाल रखने सुनीता भी उसके साथ मुम्बई में ही रुक गयी थी ,लेकिन आज शाम वो दोनो हवाईजहाज से भवानीगढ़ पहुँच गयी थी ,उनको आकर कुछ देर ही हुवी थी तब शक्ति उसके दादा और दादी को लेकर उनके घर आ गया था ,शक्ति के दादा दादी को देखकर सब हैरान थे ,वो दोनों तो उसके दादा दादी नही बल्कि भैया भाभी लग रहे थे ,शक्ति ने उनका परिचय कराया पृथ्वी सिंग और ज्वाला सिंग , ज्वाला को नरेश ने अंदर महिलाओं में भेज दिया ,कुछ देर तक सब बातें करते रहे पृथ्वी ने नरेश के साथ कुछ देर अकेले में बात करनी चाही ,नरेश ने भी वो बात मान ली थी,
दोनो एक कमरे में आकर बैठ गये ,दोनो एक दूसरे के सामने खुर्सी पर बैठ गए, नरेश और बाकी सब पृथ्वी को देखकर ही बहुत प्रभावित हो गये थे 7 फिट 2इंच की लंबाई के साथ उसके ही मुकाबले की शरीर के बाकी अंगों की मजबूती देखकर ही पता चल जाता था कि यह बहुत ही ताक़दवर और बहादुर इंसान है ,
नरेश ,बोलिये पृथ्विजी आप को क्या कहना है
पृथ्वी ,जी मे आपसे नरेश कहके बात करूं या विजय यह आप पहले बता दीजिये ,
नरेश के चेहरे पे एक मुस्कान आ गयी थी यह सुनकर ,उसको पृथ्वी को देखकर ही यह समझ आ गया था इसमे कुछ तो खास बात जरूर होगी ,
नरेश ,आप को जो कहना है कह सकते है ,मुझे किसी भी नाम से आप पुकार सकते है ,दोनो तो मेरे ही नाम है , फिर क्या नरेश और क्या विजय ,
पृथ्वी को पता था नरेश एक खुले दिल का इंसान है , पृथ्वी ने भी जो सोच कर आया था वो बात कहनी शुरू की,
नरेश पहली मेरी सब बात सुन लो ,फिर तुमको जो पूछना हो में बता दूँगा ,जिस चमकारी पानी को तुमने और तुम्हारी बीबी ने पिया है ,वैसा ही मेने अपनी पत्नी के साथ 400 साल पहले पीया था ,वो चमत्कारी पानी उसी पत्थर से निकलता है जिसको हम दोनों ने पिया है ,हमारी दोनो के कितने ही पीढयों से हम इस चमत्कारी पत्थर की रक्षा करते आ रहे है ,
हर 350 साल में एक बार उस पत्थर से वो चमत्कारी पानी निकलता है जो हम दोनों के परिवार में बराबर बाट दिया जाता है ,और यह काम विशाखा ही करती है ,तुमने जो पानी पिया था वो 400 साल पहले मेरे साथ ही निकला था ,जस पानी मे बहुत सी चमत्कारी ताकद हम को मिलती है ,हमें सिर्फ सदा जवान और शारिरिक बल,कामशक्ति में बढ़ोतरी ही नही ,असीमित बाहुबल ,मन की बाते सुनने, हवा से तेज दौड़ना ,कभी न थकना,कोई भी जख्म हो तो पल में ठीक होना ,पानी मे सास लेकर उसमे जमीन की तरह रहना, प्राणियों की बाते समझना उनसे बात कर सकना ,जैसी ताकद हमे मिलती है ,बस हमको ज्यादा से ज्यादा अभ्यास करके हमारी ताकत को जानना होता है ,
हम दोनों के परिवार कभी आपस मे अच्छे दोस्त हुवा करते थे, पर मेरे पिता की पीढ़ी से आपस मे हम दोनों में दुश्मनी हो गई ,जाने कितनी ही सदियों की दोस्ती, हमारे पिताजी और उस वक्त की तुम्हारी पीढ़ी के झगड़े से टूट गई थी ,जो जिम्मेदारी हम दोनों के परिवारों पर मिलकर दी गई थी उसको हम भूलकर एक दूसरे से दूर हो गये, मेरे पिताजी के मरने के बाद मेने कभी कोई दुश्मनी नही रखी ,पर कभी दोस्ती भी नही की ,तुम्हारे पिता भी सब जानते थे पर तुमको वो कुछ बताने से पहले ही नही रहे, ऊनको मेरे और मेरे परिवार के बारे में सब पता था ,मन्दिर को वो सब राज भी जानते थे ,जो में तुम्हे आज बता देता हूं ,
जब स्वर्ग में धन खत्म हो गया तब समुद्र मंथन किया गया था जिससे 14 रत्न मीले जिन्हें हर किसीने बांट दिया पर उसमे से निकले अमृत पर देवता और राक्षसों में लड़ाई हो गयी जो भगवान के सूझबूझ से किसी पापी को अमृत पीकर अमर नही बन सका ,जो चोरी से अमृत पी गया उसके सर को सुदर्शन चक्र से काट दिया गया जिसे हम राहु केतु के नाम से जानते है , लेकिन इस समुद्र मंथन में एक और बात हुवीं थी मेरु पर्वत का जो भाग समुद्र में मंथन के समय घूम रहा था उसमें हर रत्न के समुद्र से बाहर आने के बाद थोड़ी उस रत्न की ताकद रह जाती ,इसी तरह 14 रत्नों के निकलते वक्त उनसे निकली उनकी ताकद,या ऊर्जा वहा जमा होतीं रही ,मेरु पर्वत के उस भाग में एक जगह वो सब 14 रत्नों की ऊर्जा एक होकर एक पत्थर में समा गई ,यह बात किसी को पता नही थी सिवाय त्रिशक्तियो के ,उन्होंने मेरु पर्वत के उस पूरे भाग को ही जो समुद्र में मंथन के समय उसके अंदर था उसे अलग जंगल मे एक मन्दिर में स्थापित कर दिया , जो चमत्कारी पत्थर था वो इसी मंदिर के अंदर कहि पे है ,जिसका पता सिर्फ त्रिशक्तियो को था ,उनको पता था अमृत के वजह से देवता और राक्षसों के साथ अब सदा के लिए दुश्मनी हो गयी है ,अगर किसी और को इस ताकद का पता चलता तो फिर घोर युद्ध होता इसे पाने के लिये ,इसकी ताकद का अंदाजा सिर्फ त्रिशक्तियों को ही था ,अगर किसी गलत हाथो में यह ताकद गयी तो अनर्थ होगा यह ऊन्हे पता था ,इसलियें यह बात उन्होंने किसी को नही पता चलने दी , जहा पर यह मंदिर बना था वहाँ के दो पुण्यवान राजो ओ को इस मंदिर की रक्षा का भार दिया गया उन्हें सिर्फ मन्दिर के रक्षा के बारे में ही बताया ,मन्दिर के अंदर दो बहुत ही विशाल और चमत्कारी शक्तियो के मालिक ,पति और पत्नी सर्पो को रखा गया ,और साथ मे मन्दिर के आसपास के इलाकों की पहाड़ी में महाबली भेड़िये मानवों को इस मन्दिर के राज को बताकर इसकी रक्षा का जिम्मेदारी दी गई ,उस चमत्कारी पत्थर से 350 साल में जो पानी निकलता था वो त्रिशक्तियों ने ही उन दो राजाओ को देने को बोला था ,ताकि उनमे भी कुछ चमत्कारी ताकते हो ,क्योकि इस मंदिर के ताकत को पाने कोई मामूली लोग नही बल्कि जिनके पास अनोखी ताकते हो वही आ सकते है ,तब ये पानी की मिली शक्तिया उनके काम मे ही आएगी, उस मंदिर की रक्षा के लिए जैसे उन दो सर्पो की जोड़ी के साथ नर भेड़िये रखे थे ,वैसेही कितने ही योद्धा और थे जो समय आने पर सामने आने वाले थे ,
अभी जो मन्दिर में विशाखा नाम की सर्पिणी है वो उसी पति पत्नी की बेटी है जिनको त्रिदेवो ने रखा था ,मुझे यह सब बातें उसने ही बताई थी ,मेरे हातो से एक बार एक नरभेड़िये को बचाते हुवे उसने मुझे यह राज 200 साल पहले बताया ,मुझे उसके बातो पर शंका थी ,मेने उस नरभेडिये को छोड़ दिया ,पर विशाखा पर नजर रखने लगा ,एक दिन मेने विशाखा का पीछा किया तब देखा कि मन्दिर में एक बहुत बड़ी गुफा है जो मन्दिर के नीचे से शुरू होती है ,वहां विशाखा उससे भी आकार में विशाल 100फिट से भी बड़ी एक और सर्प का कुछ इलाज कर रही थी ,वो सर्प भी एक विशाखा की तरह एक नागकन्या थी,लेकिन विशाखा ने मुझे देख लिया ,उसको मेरी इस हरकत से बहुत गुस्सा आया ,अगर में मन्दिर का रक्षक नही होता ,तो उसने मुझे एक पल में मार दिया होता , उसने मुझे बताया कि वह दूसरी नागकन्या उसकी बड़ी बहन है जो मन्दिर के पास एक बार किसी दृष्ट विषारी राक्षस को मारते हुवे जख्मी हो गई थी ,इस बात को 250 साल हो गए थे ,उसकी बहन को होश नही आया था ,ना उसके जख्म भरे थे ,उसकी बहन का नाम सर्पिणी था ,मैंने अपने किये की उससे माफी मांगी पर उसने कह दिया कि आज के बाद यहां आना नही ,और उसने तब से मुझसे बात नही की है ,
और आज तुमसे इतने सालों में मिलने इस लिये आया हु के मंदिर के इस चमत्कारी पत्थर का राज सबको पता चल गया है ,कैसे यह ना मुझे पता है ना विशाखा को ,वह मन्दिर का चमत्कारी पत्थर भी मन्दिर से गायब हो गया है ,उसके होने का अहसास विशाखा को हमेशा होता है लेकिन पिछले 6 महीने से उसको वह अहसास नही हों रहा था ,उसने पूरी दुनिया में उसे ढूंढने की कोशिश की लेकिन वह नही मिला,
मन्दिर का एक रक्षक मानव भेड़िया है, जिसकी सूंघने की शक्ति इतनी तेज है की वो किसी छोटे से सूक्ष्मजीव को भी हजारो मील दूर से सूंघ सकता है ,उसने ही विशाखा को बताया कि वह शक्ति मन्दिर में ही है और छुप गई है ,विशाखा उसकी के कहने मन्दिर में वापस आ गई है ,उस भेड़िये ने ही मन्दिर के पास बहुत दृष्ट शक्तिशाली जीवो को सूंघ के हम सबको तैयार रहने को कहा है ,
उस पत्थर से जो पानी निकलता है वो विजयदशमी के ही दिन निकलता है ,इस पत्थर से 350 साल में एक बार चमत्कारी पानी निकलता है ,पिछला पानी निकले कर 400 साल हो गए ,इससे पत्थर का वो पानी 50 साल पहले ही निकलना चाहिए था ,पर निकला नही ,ये पानी एक बार पीने का ही फायदा है किसीने इसे दुबारा पिया तो उसकी मौत हो जायेगी ,अगर पानी उस पत्थर से निकलता तो विशाखा हम दोनों परिवारों को जरूर उसके दो भाग लाकर देती ,विशाखा कभी हमे धोका नही देगी , वो वचनबद्ध है अपने कर्म से ,
नरेश सब सुनकर एक अलग ही अवस्था मे था ,पृथ्वी ने उसके मन मे उठने वाले हर सवाल का जवाब भी दे दिये थे ,
नरेश बोला ,आप मुझसे बड़े है, में आप को आज से दादा ही बोलूंगा ,आप मेरे दादाजी से भी बड़े हो ,आपने आज मुझे सब कुछ बता दिया इसका में आभारी हूं ,सबसे पहली बात हम दोनों के परिवार में दुश्मनी क्यो थी मुझे पता नही ,और ना यह पता है गलती किसकी थी ,लेकिन आप से में माफी माँगता हु अगर मेरे किसी पुरखो ने आपका कुछ नुकसान किया हो ,या कुछ अहित किया हो , आज से आप जो भी कहंगे या बोलेंगे वो कोई भी बात में नही टालूँगा ,मेरा बस एक सवाल है ,मेरे पिता कहा करते थे उस चमत्कारी पत्थर का कोई वारिस आने वाला है ,इसका क्या मतलब था
पृथ्वी ,तुम एक नेकदिल और सच्चे इसान हो ,इसलिये में तुमको बेहद पसन्द करता हु ,आज से तुम भी मेरे बेटे जैसे हो नरेश ,तुम्हारे पिता की बात भी सही थी इसका वारिस जरूर कोई ना कोई होगा जो आएगा, हमारी दोनो पीढियों ने इसकी रक्षा की है ,जिसकी वजह से यह चमत्कारी पथर किसी एक को चुन लें हमारी दोनो पीढयों में ,या किसी और को चुन लें जो इसे पसन्द हो ,तुम को पता होगा जो समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले उन्हें अपनी मर्जी से स्थान मिला था या ये किसी उचित हाथो में गये थे ,शायद ये भी किसको चुने,या कोई इसे अपने पास रख ले ,
उस दिन पृथ्वी को नरेश ने अपने घर ही रोक दिया ,दोनो को एक दूसरे का साथ बहुत पसंद आ गया था ,पृथ्वी ने नरेश को मन्दिर का राज जगत को बताने को कह दिया था , ,क्योकि उसके पिता को भी यह राज पता था ,उसकी कितनी पीढयों ने मन्दिर की सेवा की थी ,उसका तो हक था यह राज जानना ,जगत को बुलाकर नरेश ने उसे सब बातें बता दी ,जगत भी पृथ्वि से मिलके खुश हो गया ,उसने एक दो बार पृथ्वी को मंदिर में देखा भी था ,
रात को खाने के बाद पृथ्वी ने सबको बुलाया था नरेश के घर ,सबके आने के बाद जिनमे नरेश ,नरेश के 3 भाई (बेटे),शक्ति, जगत ,सुल्तान ,भीमा ,रोही कबीले का सरदार सोमा और उसके खास आदमी, पृथ्वी ने उन सबको बता दिया कि कुछ भी हों जाए मन्दिर में कल विजयदशमी के पूजा के बाद अंदर नही जाना चाहिए, जगत को भी पूजा करके सबको बाहर निकालकर मन्दिर के दरवाजे अंदर से बन्द करने को कह दिया था ,पृथ्वि ने कहा,आप सब बहादुर है ,किसी भी चीज से टकराने से आप डरेंगे नही,लेकिन आप सबको मेरी एक बात माननी होगी ,कल मुकाबले में कोई भी लड़ने के लिये ललकार सकता है ,आप मे से ,या हमारा कोई भी आदमी, या आसपास का कोई भी गाव वाला ,किसी अजनबी हो या पहचाना वाला चुनौती नही लेगा ,कोई कितनी गाली दे ,बुरा कहे ,पर कोई भी कल नही लड़ेगा ,
सिर्फ कल चुनोती में दूँगा ललकारने वालो को ,अगर उसने मुझे हरा दिया तो आप मे से कोई भी उसे ललकारेंगे नही ,
सबको यह बात पसन्द नहीं थी ,खुद नरेश भी यह बात नही मान रहा था ,पर पृथ्वि के जोर देने पर वह माना ,फिर सबको यह बात माननी पड़ी ,
पृथ्वी की यही सोच थी अगर मुकाबले में कोई आसुरी ताकद रूप बदलकर आ गयी तो उनसे लड़कर अपने आदमी क्या गवाने ,गाव के यह पहलवान किसी आसुरी ,मायावी ताकद के सामने क्या करेगा ,इसलिये वह खुद लडने वाला था ,
इस मुकाबले में जो अंतिम विजेता होता है उसको मन्दिर में विजयादशमी के दिन पहला मान दिया जाता है पूजा करने का ,यही वजह थी उसके लडने की ,उसको हराने वाला कोई मामूली इंसान होगा ही नही ,उसको सब मिलकर मारने को कह दिया था पृथ्वी ,कल किसी भी हाल में कोई भी मन्दिर में ना घुसे ,इसके लिये कितनी भी लाशें गिरानी पड़े या खुद की लाश गिरे सिर्फ लड़ना था सबको ,
नरेश को होश में उसकी पत्नी ने ही लाया जो उसको प्रसाद देने आयी थी ,मन्दिर के अंदर पूजा खत्म हो गई थी सब मन्दिर के बाहर निकल गए ,जगतजी ने मन्दिर के मजबूत दरवाजे अंदर से लगा दिये ,
नरेश और पृथ्वी के साथ सब लोग अब मुकाबले की जगह पर आ गये ,मनोज औऱ निता के हाथ से नारियल फोड़ कर ,पूजा करके शुरुआत की गई ,वहा पर ज्यादा नही बस 80 या 90 पहलवान आये थे मुकाबले के लिए ,
मुकाबला शुरू करने से पहले नरेश जी ने अपनी जगह से उठकर लाउड स्पीकर में लगे माइक पर कहा, मुकाबला शुरू करने से पहले में आप सबको कुछ कहना चाहता हु , इस साल अंतिम विजेता कोई भी हो ,उसे मन्दिर में प्रवेश नही मिलेगा ,बाकी इनाम वही मिलेगा जो हर साल मिलता है ,
काल अपनी जगह से बैठा सब देख रहा था ,नरेश को अपने सामने देखकर उसे बहुत खुशी हो गई थी ,नरेश की वजह से ही वो आज इस मुकाम पर था ,अपने जीवन मे नरेश को वह भगवान से ज्यादा मान देता था ,नरेश नही आता उसके जिंदगी में तो हमेशा डरकर जीनेवाला एक कमजोर ही रहता,उसके जीवन मे जो यह ताकद उसको मिली थी उसकी नीव नरेश की सीख और सोच ही थी ,
मुकाबले शुरू ही होने थे कि एक आवाज ने सबका ध्यान अपनी और खींच लिया, इस जगह पर यह फैसला लेने का हक तुझे किसने दिया है कौन अंदर जायेगा और कौन नही ,तू होता कौन है यहा के फैसले लेने वाला ,
इस आवाज का मालिक 7 फिट ऊंचा एक तगड़ा नौजवान था , उसकी आवाज भी उसके जैसी ही थी ,उसके साथ 8 से 10 लोग थे जो उसके जैसे ही उंचे तगडे थे ,
वो फिर बोला ,मेने तो सुना था यहाँ वीर लोगों का मान रखा जाता है ,लेकिन जितने वाले को मन्दिर में पूजा का मान न देना यह कौनसी वीर लोगो को मान देनी की बात हुवीं ,सिर्फ पैसे के लिये लड़ना गलत बात होगी ,तुम एक काम करो विजेता को अपनी पत्नी के साथ एक दिन गुजारने दो ,या अभी नारियल फोड़ कर गयी है उसे एक दिन हमारी सेवा में भेज दो , हम तुमको चुनोती देते है या अपनी मन्दिर में दर्शन की बात से पीछे हटो या अपनी बीबी या उस औरत को दांव पर लगा दो , हमको हराना या लड़ना तुम सबके औकात के बाहर की बात है ,तुम मेरे एक आदमी को नही हर सकोगे,जाओ शिबू दिखा दो इन नामर्दो को अंगारा के आदमियों में कितना दम है ,
उसकी बात सुनकर एक उसके जैसा ही तगड़ा आदमी उस आखाड़े में अपने कपड़े उतारकर कर उतर गया ,शिबू नाम का वो पहलवान उतरकर नरेश और निता को गन्दे इशारे करने लगा ,यहा पर उस लड़के की बाते सुनकर सबके दिमाग पहले से ही घूम गये थे ,सबको ऐसा लग रहा था अभी आखडे में उतरकर उसके बात का जवाब दे पर पृथ्वी के वजह से सब चुप थे ,पृथ्वी लगातार उन सबके मन की बाते पढ़ने की कोशिश कर रहा था ,पर वो ऐसा कर नही पा रहा था ,जब उसने उस अंगारा नाम के आदमी की तरफ वापिस देखकर उसके मन मे झाँकना चाहा तो उसके मन मे उस अंगारा की आवाज आयीं ,तुम अभी बच्चे हो पृथ्वी ,ये जो शिबू है ना यह तुम जैसे 100 को अकेला मार सकता है ,और इस शिबू के जैसे 1000 को में अकेला मार सकता हु,मेरे सामने सिर्फ तुम एक कीड़े हो जो आज पैर के नीचे कुचले जायेगा,
पृथ्वी के माथे से पसीना बह रहा था ,वो लडने से डरता नही था ,पर इंसानों के भेष में ये राक्षस आज यहाँ कितनो को मारँगे ,यह बताना मुश्किल था ,पृथ्वी चुनौती के लिये उठकर आखाड़े में जा ही रहा था कि उसके कानों में एक भयानक चीख सुनाई दी ,इतनी जोरदार चीख के साथ सबका ध्यान उस और गया जहाँ से चीख आयी थी
शिबू आखाड़े में गिरकर नीचे पड़ा था और उसे गिरने वाले ने उसके हाथ को पीठ में लगाकर उसके नीचे मुह के बल गिरा दिया था ,और उसके चेहरे को मिट्टी में दबाकर रखे थे,शिबू अपनी जान लगाकर अपने सर को मिट्टी मै से निकालने की नाकाम कोशिश कर रहा था ,वो एक 20 से 21 साल का लड़का शिबू को मिट्टी में दबाता अंगारा की आंखों में एकटक देख रहा था ,जहा 1 सेकंड पहले अंगारा पृथ्वी को उसकी औकात दिखा रहा था ,और यह लड़के ने शिबू को उसके सामने किसी कागज के तरह आसानी जमीन में पटक कर उसे माटी खिला रहा था ,पृथ्वी के साथ सभी लोग यह देख कर हैरान थे कि यह कौन आ गया बीच मे ,बाकी सब को तो नही ,पर पृथ्वी को पता था, जिस तरह से इस लड़के ने एक झटके में शिबू को पटक है ,यह कुछ खास है ,उसकी आंखों में उस लड़के के लिये एक इज्जत और अपनापन था ,और यही सबकी नजरों में था इस अनजान लड़के के लिए ,
शिबू उस आखडे मे अपनी जान बचाने के लिये हाथ पैर मार रहा था ,उसके मुह में पूरी मिट्टी चली गयी थी ,उसकी साँसे अब उखड़ रही थी उस लड़के ने शिबू छोड़ दिया ,शिबू अपनी साँसे दुरुस्त कर रहा था पीठ के बल लेटकर की उस लड़के न वापिस शिबू की गर्दन पकड़कर उसे उठाया और उसकी आँखों मे देखते हुवे बोला ,कुत्ते,कभी अपनी औकात नही भूलनी चाहिए, जा अपने मालिक के पास ,
शिबू उस लड़के के फेके जाने से 20 फिट दूर अंगारा के पाव के पास आकर गिरा ,उस लड़के ने उसकी गर्दन तोड़कर उसको अंगारा के कदमो में फेंका था
अंगारा तेरे जैसे को में थूक कर बुझा सकता हु , मेरा नाम आज के बाद तू कभी नही भूलेगा ,मेरा नाम है काल ,
अंगारा अपनी आँखें बड़ी करके उस काल के चेहरे को देख रहा था ,जिसकी वजह थी उस लड़के की बात,,अंगारा तुझे में मारूंगा नही, बल्कि तेरे दोनो हाथ पांव उखाड़ के तेरे बाप कोहिम के पास भेजूंगा ,,,,
अंगारा यही सोच रहा था उसके मन मे यह बात करने वाला कौन है जो उसकी सच्चाई को और उसके बाप को जानता है
 
Maurya ji
1,059
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Update 50. मन्दिर के चमत्कारी पत्थर का रहस्य
प्रथम भाग


नरेश मन्दिर के पूजा में आज बहुत ही बैचैन हो रहा था ,हर साल जिस तरह से वो मन्दिर में मन लगाकर सेवा करता था इस बार वो बात नही थी ,नरेश के मन में कल की उसकी जब कल शाम को शक्ति के दादा से मुलाकात हूवी थी तब की बाते याद आ रही थी ,
नरेश अपने तीनो भाइयो या बेटो के साथ बैठा था ,भवानीगढ़ में देसाई खानदान से सब आ गये थे बस निता और सुनीता नही आये थे ,निता की तबियत कुछ खराब थी 10 दिनोसे और उसकी का खयाल रखने सुनीता भी उसके साथ मुम्बई में ही रुक गयी थी ,लेकिन आज शाम वो दोनो हवाईजहाज से भवानीगढ़ पहुँच गयी थी ,उनको आकर कुछ देर ही हुवी थी तब शक्ति उसके दादा और दादी को लेकर उनके घर आ गया था ,शक्ति के दादा दादी को देखकर सब हैरान थे ,वो दोनों तो उसके दादा दादी नही बल्कि भैया भाभी लग रहे थे ,शक्ति ने उनका परिचय कराया पृथ्वी सिंग और ज्वाला सिंग , ज्वाला को नरेश ने अंदर महिलाओं में भेज दिया ,कुछ देर तक सब बातें करते रहे पृथ्वी ने नरेश के साथ कुछ देर अकेले में बात करनी चाही ,नरेश ने भी वो बात मान ली थी,
दोनो एक कमरे में आकर बैठ गये ,दोनो एक दूसरे के सामने खुर्सी पर बैठ गए, नरेश और बाकी सब पृथ्वी को देखकर ही बहुत प्रभावित हो गये थे 7 फिट 2इंच की लंबाई के साथ उसके ही मुकाबले की शरीर के बाकी अंगों की मजबूती देखकर ही पता चल जाता था कि यह बहुत ही ताक़दवर और बहादुर इंसान है ,
नरेश ,बोलिये पृथ्विजी आप को क्या कहना है
पृथ्वी ,जी मे आपसे नरेश कहके बात करूं या विजय यह आप पहले बता दीजिये ,
नरेश के चेहरे पे एक मुस्कान आ गयी थी यह सुनकर ,उसको पृथ्वी को देखकर ही यह समझ आ गया था इसमे कुछ तो खास बात जरूर होगी ,
नरेश ,आप को जो कहना है कह सकते है ,मुझे किसी भी नाम से आप पुकार सकते है ,दोनो तो मेरे ही नाम है , फिर क्या नरेश और क्या विजय ,
पृथ्वी को पता था नरेश एक खुले दिल का इंसान है , पृथ्वी ने भी जो सोच कर आया था वो बात कहनी शुरू की,
नरेश पहली मेरी सब बात सुन लो ,फिर तुमको जो पूछना हो में बता दूँगा ,जिस चमकारी पानी को तुमने और तुम्हारी बीबी ने पिया है ,वैसा ही मेने अपनी पत्नी के साथ 400 साल पहले पीया था ,वो चमत्कारी पानी उसी पत्थर से निकलता है जिसको हम दोनों ने पिया है ,हमारी दोनो के कितने ही पीढयों से हम इस चमत्कारी पत्थर की रक्षा करते आ रहे है ,
हर 350 साल में एक बार उस पत्थर से वो चमत्कारी पानी निकलता है जो हम दोनों के परिवार में बराबर बाट दिया जाता है ,और यह काम विशाखा ही करती है ,तुमने जो पानी पिया था वो 400 साल पहले मेरे साथ ही निकला था ,जस पानी मे बहुत सी चमत्कारी ताकद हम को मिलती है ,हमें सिर्फ सदा जवान और शारिरिक बल,कामशक्ति में बढ़ोतरी ही नही ,असीमित बाहुबल ,मन की बाते सुनने, हवा से तेज दौड़ना ,कभी न थकना,कोई भी जख्म हो तो पल में ठीक होना ,पानी मे सास लेकर उसमे जमीन की तरह रहना, प्राणियों की बाते समझना उनसे बात कर सकना ,जैसी ताकद हमे मिलती है ,बस हमको ज्यादा से ज्यादा अभ्यास करके हमारी ताकत को जानना होता है ,
हम दोनों के परिवार कभी आपस मे अच्छे दोस्त हुवा करते थे, पर मेरे पिता की पीढ़ी से आपस मे हम दोनों में दुश्मनी हो गई ,जाने कितनी ही सदियों की दोस्ती, हमारे पिताजी और उस वक्त की तुम्हारी पीढ़ी के झगड़े से टूट गई थी ,जो जिम्मेदारी हम दोनों के परिवारों पर मिलकर दी गई थी उसको हम भूलकर एक दूसरे से दूर हो गये, मेरे पिताजी के मरने के बाद मेने कभी कोई दुश्मनी नही रखी ,पर कभी दोस्ती भी नही की ,तुम्हारे पिता भी सब जानते थे पर तुमको वो कुछ बताने से पहले ही नही रहे, ऊनको मेरे और मेरे परिवार के बारे में सब पता था ,मन्दिर को वो सब राज भी जानते थे ,जो में तुम्हे आज बता देता हूं ,
जब स्वर्ग में धन खत्म हो गया तब समुद्र मंथन किया गया था जिससे 14 रत्न मीले जिन्हें हर किसीने बांट दिया पर उसमे से निकले अमृत पर देवता और राक्षसों में लड़ाई हो गयी जो भगवान के सूझबूझ से किसी पापी को अमृत पीकर अमर नही बन सका ,जो चोरी से अमृत पी गया उसके सर को सुदर्शन चक्र से काट दिया गया जिसे हम राहु केतु के नाम से जानते है , लेकिन इस समुद्र मंथन में एक और बात हुवीं थी मेरु पर्वत का जो भाग समुद्र में मंथन के समय घूम रहा था उसमें हर रत्न के समुद्र से बाहर आने के बाद थोड़ी उस रत्न की ताकद रह जाती ,इसी तरह 14 रत्नों के निकलते वक्त उनसे निकली उनकी ताकद,या ऊर्जा वहा जमा होतीं रही ,मेरु पर्वत के उस भाग में एक जगह वो सब 14 रत्नों की ऊर्जा एक होकर एक पत्थर में समा गई ,यह बात किसी को पता नही थी सिवाय त्रिशक्तियो के ,उन्होंने मेरु पर्वत के उस पूरे भाग को ही जो समुद्र में मंथन के समय उसके अंदर था उसे अलग जंगल मे एक मन्दिर में स्थापित कर दिया , जो चमत्कारी पत्थर था वो इसी मंदिर के अंदर कहि पे है ,जिसका पता सिर्फ त्रिशक्तियो को था ,उनको पता था अमृत के वजह से देवता और राक्षसों के साथ अब सदा के लिए दुश्मनी हो गयी है ,अगर किसी और को इस ताकद का पता चलता तो फिर घोर युद्ध होता इसे पाने के लिये ,इसकी ताकद का अंदाजा सिर्फ त्रिशक्तियों को ही था ,अगर किसी गलत हाथो में यह ताकद गयी तो अनर्थ होगा यह ऊन्हे पता था ,इसलियें यह बात उन्होंने किसी को नही पता चलने दी , जहा पर यह मंदिर बना था वहाँ के दो पुण्यवान राजो ओ को इस मंदिर की रक्षा का भार दिया गया उन्हें सिर्फ मन्दिर के रक्षा के बारे में ही बताया ,मन्दिर के अंदर दो बहुत ही विशाल और चमत्कारी शक्तियो के मालिक ,पति और पत्नी सर्पो को रखा गया ,और साथ मे मन्दिर के आसपास के इलाकों की पहाड़ी में महाबली भेड़िये मानवों को इस मन्दिर के राज को बताकर इसकी रक्षा का जिम्मेदारी दी गई ,उस चमत्कारी पत्थर से 350 साल में जो पानी निकलता था वो त्रिशक्तियों ने ही उन दो राजाओ को देने को बोला था ,ताकि उनमे भी कुछ चमत्कारी ताकते हो ,क्योकि इस मंदिर के ताकत को पाने कोई मामूली लोग नही बल्कि जिनके पास अनोखी ताकते हो वही आ सकते है ,तब ये पानी की मिली शक्तिया उनके काम मे ही आएगी, उस मंदिर की रक्षा के लिए जैसे उन दो सर्पो की जोड़ी के साथ नर भेड़िये रखे थे ,वैसेही कितने ही योद्धा और थे जो समय आने पर सामने आने वाले थे ,
अभी जो मन्दिर में विशाखा नाम की सर्पिणी है वो उसी पति पत्नी की बेटी है जिनको त्रिदेवो ने रखा था ,मुझे यह सब बातें उसने ही बताई थी ,मेरे हातो से एक बार एक नरभेड़िये को बचाते हुवे उसने मुझे यह राज 200 साल पहले बताया ,मुझे उसके बातो पर शंका थी ,मेने उस नरभेडिये को छोड़ दिया ,पर विशाखा पर नजर रखने लगा ,एक दिन मेने विशाखा का पीछा किया तब देखा कि मन्दिर में एक बहुत बड़ी गुफा है जो मन्दिर के नीचे से शुरू होती है ,वहां विशाखा उससे भी आकार में विशाल 100फिट से भी बड़ी एक और सर्प का कुछ इलाज कर रही थी ,वो सर्प भी एक विशाखा की तरह एक नागकन्या थी,लेकिन विशाखा ने मुझे देख लिया ,उसको मेरी इस हरकत से बहुत गुस्सा आया ,अगर में मन्दिर का रक्षक नही होता ,तो उसने मुझे एक पल में मार दिया होता , उसने मुझे बताया कि वह दूसरी नागकन्या उसकी बड़ी बहन है जो मन्दिर के पास एक बार किसी दृष्ट विषारी राक्षस को मारते हुवे जख्मी हो गई थी ,इस बात को 250 साल हो गए थे ,उसकी बहन को होश नही आया था ,ना उसके जख्म भरे थे ,उसकी बहन का नाम सर्पिणी था ,मैंने अपने किये की उससे माफी मांगी पर उसने कह दिया कि आज के बाद यहां आना नही ,और उसने तब से मुझसे बात नही की है ,
और आज तुमसे इतने सालों में मिलने इस लिये आया हु के मंदिर के इस चमत्कारी पत्थर का राज सबको पता चल गया है ,कैसे यह ना मुझे पता है ना विशाखा को ,वह मन्दिर का चमत्कारी पत्थर भी मन्दिर से गायब हो गया है ,उसके होने का अहसास विशाखा को हमेशा होता है लेकिन पिछले 6 महीने से उसको वह अहसास नही हों रहा था ,उसने पूरी दुनिया में उसे ढूंढने की कोशिश की लेकिन वह नही मिला,
मन्दिर का एक रक्षक मानव भेड़िया है, जिसकी सूंघने की शक्ति इतनी तेज है की वो किसी छोटे से सूक्ष्मजीव को भी हजारो मील दूर से सूंघ सकता है ,उसने ही विशाखा को बताया कि वह शक्ति मन्दिर में ही है और छुप गई है ,विशाखा उसकी के कहने मन्दिर में वापस आ गई है ,उस भेड़िये ने ही मन्दिर के पास बहुत दृष्ट शक्तिशाली जीवो को सूंघ के हम सबको तैयार रहने को कहा है ,
उस पत्थर से जो पानी निकलता है वो विजयदशमी के ही दिन निकलता है ,इस पत्थर से 350 साल में एक बार चमत्कारी पानी निकलता है ,पिछला पानी निकले कर 400 साल हो गए ,इससे पत्थर का वो पानी 50 साल पहले ही निकलना चाहिए था ,पर निकला नही ,ये पानी एक बार पीने का ही फायदा है किसीने इसे दुबारा पिया तो उसकी मौत हो जायेगी ,अगर पानी उस पत्थर से निकलता तो विशाखा हम दोनों परिवारों को जरूर उसके दो भाग लाकर देती ,विशाखा कभी हमे धोका नही देगी , वो वचनबद्ध है अपने कर्म से ,
नरेश सब सुनकर एक अलग ही अवस्था मे था ,पृथ्वी ने उसके मन मे उठने वाले हर सवाल का जवाब भी दे दिये थे ,
नरेश बोला ,आप मुझसे बड़े है, में आप को आज से दादा ही बोलूंगा ,आप मेरे दादाजी से भी बड़े हो ,आपने आज मुझे सब कुछ बता दिया इसका में आभारी हूं ,सबसे पहली बात हम दोनों के परिवार में दुश्मनी क्यो थी मुझे पता नही ,और ना यह पता है गलती किसकी थी ,लेकिन आप से में माफी माँगता हु अगर मेरे किसी पुरखो ने आपका कुछ नुकसान किया हो ,या कुछ अहित किया हो , आज से आप जो भी कहंगे या बोलेंगे वो कोई भी बात में नही टालूँगा ,मेरा बस एक सवाल है ,मेरे पिता कहा करते थे उस चमत्कारी पत्थर का कोई वारिस आने वाला है ,इसका क्या मतलब था
पृथ्वी ,तुम एक नेकदिल और सच्चे इसान हो ,इसलिये में तुमको बेहद पसन्द करता हु ,आज से तुम भी मेरे बेटे जैसे हो नरेश ,तुम्हारे पिता की बात भी सही थी इसका वारिस जरूर कोई ना कोई होगा जो आएगा, हमारी दोनो पीढियों ने इसकी रक्षा की है ,जिसकी वजह से यह चमत्कारी पथर किसी एक को चुन लें हमारी दोनो पीढयों में ,या किसी और को चुन लें जो इसे पसन्द हो ,तुम को पता होगा जो समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले उन्हें अपनी मर्जी से स्थान मिला था या ये किसी उचित हाथो में गये थे ,शायद ये भी किसको चुने,या कोई इसे अपने पास रख ले ,
उस दिन पृथ्वी को नरेश ने अपने घर ही रोक दिया ,दोनो को एक दूसरे का साथ बहुत पसंद आ गया था ,पृथ्वी ने नरेश को मन्दिर का राज जगत को बताने को कह दिया था , ,क्योकि उसके पिता को भी यह राज पता था ,उसकी कितनी पीढयों ने मन्दिर की सेवा की थी ,उसका तो हक था यह राज जानना ,जगत को बुलाकर नरेश ने उसे सब बातें बता दी ,जगत भी पृथ्वि से मिलके खुश हो गया ,उसने एक दो बार पृथ्वी को मंदिर में देखा भी था ,
रात को खाने के बाद पृथ्वी ने सबको बुलाया था नरेश के घर ,सबके आने के बाद जिनमे नरेश ,नरेश के 3 भाई (बेटे),शक्ति, जगत ,सुल्तान ,भीमा ,रोही कबीले का सरदार सोमा और उसके खास आदमी, पृथ्वी ने उन सबको बता दिया कि कुछ भी हों जाए मन्दिर में कल विजयदशमी के पूजा के बाद अंदर नही जाना चाहिए, जगत को भी पूजा करके सबको बाहर निकालकर मन्दिर के दरवाजे अंदर से बन्द करने को कह दिया था ,पृथ्वि ने कहा,आप सब बहादुर है ,किसी भी चीज से टकराने से आप डरेंगे नही,लेकिन आप सबको मेरी एक बात माननी होगी ,कल मुकाबले में कोई भी लड़ने के लिये ललकार सकता है ,आप मे से ,या हमारा कोई भी आदमी, या आसपास का कोई भी गाव वाला ,किसी अजनबी हो या पहचाना वाला चुनौती नही लेगा ,कोई कितनी गाली दे ,बुरा कहे ,पर कोई भी कल नही लड़ेगा ,
सिर्फ कल चुनोती में दूँगा ललकारने वालो को ,अगर उसने मुझे हरा दिया तो आप मे से कोई भी उसे ललकारेंगे नही ,
सबको यह बात पसन्द नहीं थी ,खुद नरेश भी यह बात नही मान रहा था ,पर पृथ्वि के जोर देने पर वह माना ,फिर सबको यह बात माननी पड़ी ,
पृथ्वी की यही सोच थी अगर मुकाबले में कोई आसुरी ताकद रूप बदलकर आ गयी तो उनसे लड़कर अपने आदमी क्या गवाने ,गाव के यह पहलवान किसी आसुरी ,मायावी ताकद के सामने क्या करेगा ,इसलिये वह खुद लडने वाला था ,
इस मुकाबले में जो अंतिम विजेता होता है उसको मन्दिर में विजयादशमी के दिन पहला मान दिया जाता है पूजा करने का ,यही वजह थी उसके लडने की ,उसको हराने वाला कोई मामूली इंसान होगा ही नही ,उसको सब मिलकर मारने को कह दिया था पृथ्वी ,कल किसी भी हाल में कोई भी मन्दिर में ना घुसे ,इसके लिये कितनी भी लाशें गिरानी पड़े या खुद की लाश गिरे सिर्फ लड़ना था सबको ,
नरेश को होश में उसकी पत्नी ने ही लाया जो उसको प्रसाद देने आयी थी ,मन्दिर के अंदर पूजा खत्म हो गई थी सब मन्दिर के बाहर निकल गए ,जगतजी ने मन्दिर के मजबूत दरवाजे अंदर से लगा दिये ,
नरेश और पृथ्वी के साथ सब लोग अब मुकाबले की जगह पर आ गये ,मनोज औऱ निता के हाथ से नारियल फोड़ कर ,पूजा करके शुरुआत की गई ,वहा पर ज्यादा नही बस 80 या 90 पहलवान आये थे मुकाबले के लिए ,
मुकाबला शुरू करने से पहले नरेश जी ने अपनी जगह से उठकर लाउड स्पीकर में लगे माइक पर कहा, मुकाबला शुरू करने से पहले में आप सबको कुछ कहना चाहता हु , इस साल अंतिम विजेता कोई भी हो ,उसे मन्दिर में प्रवेश नही मिलेगा ,बाकी इनाम वही मिलेगा जो हर साल मिलता है ,
काल अपनी जगह से बैठा सब देख रहा था ,नरेश को अपने सामने देखकर उसे बहुत खुशी हो गई थी ,नरेश की वजह से ही वो आज इस मुकाम पर था ,अपने जीवन मे नरेश को वह भगवान से ज्यादा मान देता था ,नरेश नही आता उसके जिंदगी में तो हमेशा डरकर जीनेवाला एक कमजोर ही रहता,उसके जीवन मे जो यह ताकद उसको मिली थी उसकी नीव नरेश की सीख और सोच ही थी ,
मुकाबले शुरू ही होने थे कि एक आवाज ने सबका ध्यान अपनी और खींच लिया, इस जगह पर यह फैसला लेने का हक तुझे किसने दिया है कौन अंदर जायेगा और कौन नही ,तू होता कौन है यहा के फैसले लेने वाला ,
इस आवाज का मालिक 7 फिट ऊंचा एक तगड़ा नौजवान था , उसकी आवाज भी उसके जैसी ही थी ,उसके साथ 8 से 10 लोग थे जो उसके जैसे ही उंचे तगडे थे ,
वो फिर बोला ,मेने तो सुना था यहाँ वीर लोगों का मान रखा जाता है ,लेकिन जितने वाले को मन्दिर में पूजा का मान न देना यह कौनसी वीर लोगो को मान देनी की बात हुवीं ,सिर्फ पैसे के लिये लड़ना गलत बात होगी ,तुम एक काम करो विजेता को अपनी पत्नी के साथ एक दिन गुजारने दो ,या अभी नारियल फोड़ कर गयी है उसे एक दिन हमारी सेवा में भेज दो , हम तुमको चुनोती देते है या अपनी मन्दिर में दर्शन की बात से पीछे हटो या अपनी बीबी या उस औरत को दांव पर लगा दो , हमको हराना या लड़ना तुम सबके औकात के बाहर की बात है ,तुम मेरे एक आदमी को नही हर सकोगे,जाओ शिबू दिखा दो इन नामर्दो को अंगारा के आदमियों में कितना दम है ,
उसकी बात सुनकर एक उसके जैसा ही तगड़ा आदमी उस आखाड़े में अपने कपड़े उतारकर कर उतर गया ,शिबू नाम का वो पहलवान उतरकर नरेश और निता को गन्दे इशारे करने लगा ,यहा पर उस लड़के की बाते सुनकर सबके दिमाग पहले से ही घूम गये थे ,सबको ऐसा लग रहा था अभी आखडे में उतरकर उसके बात का जवाब दे पर पृथ्वी के वजह से सब चुप थे ,पृथ्वी लगातार उन सबके मन की बाते पढ़ने की कोशिश कर रहा था ,पर वो ऐसा कर नही पा रहा था ,जब उसने उस अंगारा नाम के आदमी की तरफ वापिस देखकर उसके मन मे झाँकना चाहा तो उसके मन मे उस अंगारा की आवाज आयीं ,तुम अभी बच्चे हो पृथ्वी ,ये जो शिबू है ना यह तुम जैसे 100 को अकेला मार सकता है ,और इस शिबू के जैसे 1000 को में अकेला मार सकता हु,मेरे सामने सिर्फ तुम एक कीड़े हो जो आज पैर के नीचे कुचले जायेगा,
पृथ्वी के माथे से पसीना बह रहा था ,वो लडने से डरता नही था ,पर इंसानों के भेष में ये राक्षस आज यहाँ कितनो को मारँगे ,यह बताना मुश्किल था ,पृथ्वी चुनौती के लिये उठकर आखाड़े में जा ही रहा था कि उसके कानों में एक भयानक चीख सुनाई दी ,इतनी जोरदार चीख के साथ सबका ध्यान उस और गया जहाँ से चीख आयी थी
शिबू आखाड़े में गिरकर नीचे पड़ा था और उसे गिरने वाले ने उसके हाथ को पीठ में लगाकर उसके नीचे मुह के बल गिरा दिया था ,और उसके चेहरे को मिट्टी में दबाकर रखे थे,शिबू अपनी जान लगाकर अपने सर को मिट्टी मै से निकालने की नाकाम कोशिश कर रहा था ,वो एक 20 से 21 साल का लड़का शिबू को मिट्टी में दबाता अंगारा की आंखों में एकटक देख रहा था ,जहा 1 सेकंड पहले अंगारा पृथ्वी को उसकी औकात दिखा रहा था ,और यह लड़के ने शिबू को उसके सामने किसी कागज के तरह आसानी जमीन में पटक कर उसे माटी खिला रहा था ,पृथ्वी के साथ सभी लोग यह देख कर हैरान थे कि यह कौन आ गया बीच मे ,बाकी सब को तो नही ,पर पृथ्वी को पता था, जिस तरह से इस लड़के ने एक झटके में शिबू को पटक है ,यह कुछ खास है ,उसकी आंखों में उस लड़के के लिये एक इज्जत और अपनापन था ,और यही सबकी नजरों में था इस अनजान लड़के के लिए ,
शिबू उस आखडे मे अपनी जान बचाने के लिये हाथ पैर मार रहा था ,उसके मुह में पूरी मिट्टी चली गयी थी ,उसकी साँसे अब उखड़ रही थी उस लड़के ने शिबू छोड़ दिया ,शिबू अपनी साँसे दुरुस्त कर रहा था पीठ के बल लेटकर की उस लड़के न वापिस शिबू की गर्दन पकड़कर उसे उठाया और उसकी आँखों मे देखते हुवे बोला ,कुत्ते,कभी अपनी औकात नही भूलनी चाहिए, जा अपने मालिक के पास ,
शिबू उस लड़के के फेके जाने से 20 फिट दूर अंगारा के पाव के पास आकर गिरा ,उस लड़के ने उसकी गर्दन तोड़कर उसको अंगारा के कदमो में फेंका था
अंगारा तेरे जैसे को में थूक कर बुझा सकता हु , मेरा नाम आज के बाद तू कभी नही भूलेगा ,मेरा नाम है काल ,
अंगारा अपनी आँखें बड़ी करके उस काल के चेहरे को देख रहा था ,जिसकी वजह थी उस लड़के की बात,,अंगारा तुझे में मारूंगा नही, बल्कि तेरे दोनो हाथ पांव उखाड़ के तेरे बाप कोहिम के पास भेजूंगा ,,,,
अंगारा यही सोच रहा था उसके मन मे यह बात करने वाला कौन है जो उसकी सच्चाई को और उसके बाप को जानता है
Bhai maza aa gya Bhut zabardast update Hai...
 
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update 51. मंदिर के चमत्कारी पत्थर का रहस्य
द्वितीय भाग ( आखरी कड़ी )


नरेश ने पृथ्वी से कहा ,दादा लड़के में दम है
पृथ्वी ,दम तो है ,वो इसने दिखा भी दिया है ,अब देखना पड़ेगा सामने से क्या जवाब मिलता है इस काल को
काल , सुन बे बुझे हुवे अंगारा ,अपनी औकात के मुताबिक सबके साथ ही लड़ेगा ने मुझसे ,मुझे मालूम है तू कितना वीर है ,आज तुझे सब के सामने मूतने को मजबूर नही किया तो मेरा नाम बदल देना ,चल कुते की तरह देखना बन्द कर आजा आखडे में ,
विशाखा और नील मन्दिर के बाहर खड़े होकर अदृष्य रूप से ये भिड़ंत देख रहे थे ,नील क्या लगता है काल शत्रु है या मित्र ,नील कुछ देर चुप रहा और बोला ,अभी तो यह शुरुवात है , इतनी जल्दी अनुमान लगाना गलत होता है ,
विशाखा ,लेकिन काल का में दिमाग नही पढ़ पा रही हु ,त्रिशक्तियों और स्वर्ग के देवताओ को छोडकर थोड़े ही ऐसे लोग है जिनका में दिमाग नही पढ़ सकती ,ये काल है कौन यह भी पता नही चल पा रहा है मुझे ,
नील ,जल्दी ही पता चल जाएगा कोहिम के बेटे को नुकसान करने वाला हमारा मित्र ही होगा
काल से लड़ने के लिए अंगारा ने अपने 2 सबसे तगडे योद्धा भेज दिये ,नरेश और पृथ्वी ने आपत्ति जताई मुकाबला 1 से 1 होता है यहाँ 1 से 2 का नही ,तो काल के बात ने उन्हें हसा दिया पर मन मे चिन्ता तो उनके वैसी ही रही ,आप किसके साथ बात कर रहे हो ,कुत्ते हमेशा झुंड से ही आते है ,आने दीजिये इनको ,
काल के सामने दो उससे भी तगडे योद्धा थे ,अंगारा को उम्मीद थी ये दोनों इसको मार सकते है ,ये दोनों मिलकर अंगारा पर भी भारी पड़ जाते थे ,वो दोनो ने मिलकर एक साथ काल पर हमला कर दिया, पर काल की नजर दोनो पर थी ,अंगारा को लगा कि यह दोनो एक ही वार में काल को अधमरा कर देंगे ,एक ने काल के गर्दन पर दोनो पंजो को एक करके वार किया था तो दुसरे ने अपनी कंधों की एक टक्कर उसके घुटने के ऊपर मारके उसके पैर जमीन से उखाड़ने चाहे ,पर काल ने उसके घुटने के ऊपर वार करने वाले के मुह पर अपनी एक लात नीचे से ऊपर घुमाई तो ,दुसरे वाले के दोनो हाथ को अपने हाथों में पकड़ कर एक पल मे ही जो लात ऊपर घुमाई थी उसे जमीन पर रखकर जिसके दोनो हाथ पकड़े थे उसे घुमाकर नीचे पटका ,ये पटकी इतनी जबरस्त थी के उसके दोनो हाथ उखड़के काल के हाथ मे रह गए और जो दूसरे को लात मारी थी उसकी गर्दन धड़ से अलग होकर आखाड़े से बाहर जाकर गिरी थी ,पूरे आखाड़े की मिट्टी खून से लाल हो गई थी और जिसके हाथ टुटके काल के हाथ में रह गए थे उनको काल ने आखाडे के बाहर फेंक दिये ,जो बिना हाथों से मिट्टी में तड़प कर चिल्ला रहा था उसके मुह पर हाथ घुमाकर उसकी गर्दन तोड़ दी ,
अंगारा ,मुझे पता है अब तेरा कोई भी आदमी अंदर नही आएगा ,इसलिये में खुद बाहर आ रहा हु , ये कहकर काल ने आखाडे के बाहर दौड़ लगा दी ,अंगारा के साथ मे 6 लोग खड़े थे उन्होंने जब उनके 2 सबसे तगडे आदमियों को आखाड़े में एक मिनिट के भीतर मरते देखा तो वो दहशत में आ गये थे ,और जब काल ने उनके तरफ दौड़ लगाई तो वो 6 और सामने वाला 1 होकर भी इनकी फट गईं थी ,1 मिनीट नही लगा काल को उन 6 लोगो को धूल चटाने में दो लोगो के एक एक हाथ उखाड़ के फेक कर उसने चार लोगों की गर्दन भी उखाड़ दी ,उसने जब आख़री वाले की गर्दन उखाड़ी ,उस गर्दन को अंगारा के हाथों में दे दिया ,अंगारा तो यह सब देखकर ही थरथर कांप रहा था ,अपने हाथो में अपने ही आदमी गर्दन देखकर उसकी पेशाब ही छूट गई ,वो कुछ बोलता उसके पहले हि काल ने उसे एक लात मारकर नीचे गिरा दिया ,अंगारा के नीचे गिरते ही काल ने उसके दोनो घुटनो के ऊपर खड़ा होकर ,अंगारा को अपने दोनो हाथो से उठा लिया ,अंगारा के मुह से जोरदार चीख निकल गई थी क्यो की उसके दोनो घुटनो के नीचे के पैर टूटकर काल के पैरों के नीचे दबे थे , काल ने उसको यही नही छोड़ा बल्कि उसके दोनो हाथ भी उखाड़ लिए उसको नीचे गिराकर उसके पेट पर पैर रखते हुवे, अंगारा दर्द से चीख कर बेहोश हो गया था ,काल ने जिन दो लोगो के एक एक हाथ को उखाड़ था उनके पास जाकर बोला ,इस कुते को इसके बाप कोहिम के पास लेकर जाओ ,उसे एक बात बताना की वापस कभी भवानीगढ़ का रख भी किया तो इसको तो भी जिंदा छोड़ा है ,उसको ,उसीकी काली घाटी के में आकर मारूंगा ,चलो जल्दी निकलो अगर मेरे इरादे बदले में तुमको भी मार दूँगा ,
काल की बातों से वो इतना डर गए कि अपने दर्द को भुलाकर अंगारा को वहां से उठाकर भागने लगे ,
वहां पर जितने भी लोग थे सब बहुत खुश हो गए ,नरेश और पृथ्वी ने तो काल को गोद मे उठाकर घुमाया था ,काल को वहां पर किसी और ने चुनोती नही दी लडने की ,जो पहलवान आये थे सब पीछे हट गए थे ,अरे 10 बंदों को 2 मिनीट में मारने वाले से कौन लड़ेगा भाई ,
काल ने जाकर पहले अपने खून से सने हाथ पांव धोये ,उसके कपड़ो के ऊपर खून के बहुत दाग थे ,नरेश ने अपने घर से एक ड्रेस मंगवाकर काल को दिया ,जो उसने नरेश के एक बार कहने से ही पहन लिए ,ये कपड़े उसको एकदम सही आ रहें थे मानो उसके ही कपड़े हो ,कपड़े बदलकर जब वो सबसे मिलने लगा तो पृथ्वी ने उससे पूछा ,बेटा ,तुम मुकाबले के विजेता हो तुमको मंदिर में नही जाना क्या ,पूजा का मान लेने
जी नही ,आज रावण को मारके प्रभु श्रीराम ने सीता माता के शील की रक्षा की थी ,आज उसी दिन एक और नीच दो स्री यो का अपमान कर रहा था ,उसको दंड देने का सौभाग्य मुझे मिला यही बहुत है ,में माता को यही से नमन कर लूंगा ,मुझे नही जाना है मन्दिर के अंदर ,
नरेश ,बहुत खुशि हुवीं बेटा तुम्हारे विचार सुनकर ,तुम्हारा पराक्रम तो पहले ही देख चुके है ,अब विचार जानके ऐसा लगता है, कि तुम्हारे अंदर जरूर किसी महान इंसान का खून होगा ,धन्य है तुम्हारे माता पिता और तुम्हे इतनी अच्छी शिक्षा देने वाले ,
काल कुछ नही बोला बस नरेश को ही देख रहा था ,जिसने उसको ज्ञान दिया ,राह दिखाई ,अच्छी सोच दी ,वही उसकी तारीफ कर रहा था ,
पृथ्वी काल के दिमाग पहले भी पढ़ नही पाया था ,जब उसने किसी किड़े की तरह अंगारा को मसला था वो जान गया था ,की वो खुद भी उसके सामने कुछ नही है ,
पृथ्वी और नरेश के साथ काल सभी से मिला ,सबको वो अच्छा लगा ,लेकिन उसके चाहनेवालों मतलब शिवा के दिवानियो ने उसको ज्यादा भाव दिया नही ,उनके लिए काल एक अच्छा इंसान था बस ,
विशाखा बोली, नील अब क्या कहते हो तुम काल के बारे में
नील ,अब हमें कुछ फिक्र करने की जरूरत नही रहेगी ,अब भवानीगढ़ में आने के लिये कोई भी 10 बार सोचेगा ,
विशाखा ,नील कही ये शिवा तो नही मनोज का बेटा ,जो काल बनकर हमारे सामने आया हो ,
नील ,नही दोनो के शरीर के गन्ध अलग है, मुझे भी पहले यही लगा था ,पर दोनो अलग है
विशाखा ,नील जो बच्चा अपनी इतनी छोटी उम्र में वो चमत्कारी पानी पीकर अबतक जिंदा हो ,उसमे कोई भी ताकद क्यों नही आई
नील ,वो तीन दिन बेहोश रहा तब मुझे लगा वो नही बचेगा पर बच गया ,विशाखा मेने तुम्हे तुम्हारी बहन के जख्मी होने पर रोते नही देखा था ,पर उस बच्चे के मंदिर में बेहोश होने के बाद तुम्हे रोते देखा है ,तुम क्यो रो रही थी इतना
विशाखा ,नील तुम्हे पता है उस चमत्कारी पत्थर का पानी 350 साल में एक बार निकलता है ,लेकिन इस बार पानी 35 साल बाद निकला ,वो भी विजयादशमी को नही किसी और दिन निकला था ,मेंने वो पानी लेकर माता के मूर्ति के सामने एक पात्र में रखा था ,तभी वो छोटा शिवा मन्दिर में कब आया और प्यास के चलते वो पानी पी गया पता ही नही चला ,उस बच्चे की अगर मौत होती तो में कभी खुदको माफ नही करती , मेरी गलती थी कि में उसे वो पानी पीते वक्त देख नही पायी ,मेरी लापरवाही से एक अबोध की जान जाना यह बहुत बड़ा अपराध था मेरे लिये ,वह जिंदा बच गया ,वही बहुत है ,पर उसमे शक्तियां न आने की वजह समझ नही आयीं ,उसपर मेरी ,तुम्हारी ,पृथ्वी तीनो की नजर थी पर कभी कोई ऐसी बात दिखि ही नही उसमे ,वो एक आम लड़का ही रहा है अभीतक ,
नील ,इस काल का पता में आज लगा लूंगा ,लेकिन तुम भी अपनी नजर रखना इसपर
विशाखा ,ठीक है नील
काल ने सबके साथ वक्त बिताया ,पृथ्वि और नरेश ने उसके बारे में जानना चाहा तो उसने कहा वक्त आने पर बता देगा ,दोपहर के खाना खाने के बाद काल वहां से चला गया ,
निता और मनोज बाते करते बैठे थे ,तभी एक लड़की उनके पास आयी
मुझे आप दोनो से कुछ बात करनी है
बोलो बेटी क्या बात है ,निता
क्या में आपसे कुछ मांग सकती हूं पहली बार,
निता और मनोज दोनो एक साथ बोले ,तुम जो भी मांगो हम तुम्हे जरूर देंगे ,
जी मुझे काल बहुत पसंद है ,और में उसके साथ ही शादी करना चाहती हु ,
निता और मनोज ,जैसी तुम्हारी मर्जी ,काल एक भले घर का लड़का लगता है ,उसने आज हमारे घर की इज्जत बचाई है ,हम कल उसके यहां आने पर बात करेंगे ,
में कल ही उसके साथ शादी करना चाहती हु ,आप दोनो कुछ भी करो ,वरना में हमेशा के लिये अमरीका चली जाऊंगी ,
निता बोली ,मनोज तुम कल तुम क्या करोगे ,कैसे करोगे मुझे पता नही ,कल मेरी बेटी की शादी काल से होनी चाहिए ,विजय के मरने के 1 साल बाद आपने और नरेश भैया ने मुझको मेरी बेटी से मिलाया ,जो विजय के साथ मुझे जुड़वा बच्चों में हुवीं थी, में विजय को मेरी बेटी नेत्रा में देखती हूं, कल कुछ भी हो काल और नेत्रा की शादी होनी ही चाहिए ।
 
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Update 52
नील और विशाखा की अनबन चालू थी और वजह था काल
विशाखा,अरे मेरे नजरो से ओझल हो गया ,में उसे देख नही पाई ,में उसे नही ढूंढ पा रही हु ,यह बात में खुले दिल से मानती हु ,पर तुम उसे सूंघकर नही ढूंढ पा रहे हो ,ये बात मान लेंने में शर्म नही आणि चाहिए,
नील ,विशाखा तुम जैसी सैकड़ो वर्ष पुरानी और ताक़दवर नागकन्या हार गई ,तो मेंरी बात ही कहा आती है ,पर एक बात है इतना ताक़दवर इंसान पहली बार देखने को मिल रहा है इस समय मे ,
विशाखा ,हार कबूल करने के बजाय बाकी बाते बना लो ,
नील ,ठीक है ,में हार मानता हूं ,लेकिन 1 सेकंड के कम वक्त में काल जिस तरह से भवानीगढ़ से अदृश्य हुवा पीछे अपना कोई सुराग छोड़े बिना मानना उसे ,इतनी कम उम्र में वो बहुत ही ज्यादा ताक़दवर बन गया है ,चलो अब कल वो मंदिर आने वाला है तब देख लेंगे क्या होता है आगे ,
शिवा जब शाम को सिनोब और कोकी के पास पहुँच गया ,दोनो उस वक्त चाय पी रहे थे ,शिवा भी उनके साथ चाय का लुत्फ उठाता उनसे बाते करने लगा ,उसने भवानी गढ़ में जो हुवा उनको सब बता दिया ,फिर सिनोब और कोकी को उसने रात के खाना भी अपने लंड पर ही बिठाकर खिलाया ,और सुबह की पहली किरण उगने तक दोनो को गांण्ड में अपने माल की बाढ़ बहा दी ,अपने आप को नहा धोकर तरो ताजा करता, वो सिनाब और कोकी के माथे को चूमकर उन्हें आराम करने को कहकर भवानीगढ़ चला गया ,
काल जब भवानीगढ़ पहुचा तो वो सीधा मन्दिर के सामने ही प्रकट हुवा ,जहा पर वो सीधा प्रकट हुवा वहां कोई नही था ,उसे आज मन्दिर में 9 बजे आरती होने के बाद बुलाया था लेकिन वो 8 बजे ही पहुच गया ,जब वो मन्दिर में दाखिल हुवा तो आरती शुरू हो चुकी थी ,काल भी पीछे खड़ा होकर उसमे शामिल हो गया ,30 मिनीट के आरती में खड़ा होकर वो जगत जी के हाथों प्रसाद लेता मन्दिर में बैठ गया,आज मंदिर में ज्यादा भीड़ नही थी ,बस जगतजी को छोड़कर 4 लोग ही थे ,काल जब से मंदिर में आया था तबसे उसके पूरे बदन में एक अलग ही हलचल मच गई थी ,उसके खून में उबाल आने लगा था ,पूरा शरीर गरम हो रहा था ,ऐसा लग रहा था मानो उसके अंदर आग लग गई हो और उसको अंदर से जला रही हो ,अपनी इस पीड़ा को सहता वो वो अपनी सांसो को दुरुस्त करने में लगा था ,की उसके कानों में एक दर्दभरी आहे सुनाई देने लगी ,वो ध्यान से वो कहा आ रही है वो सुनने लगा ,उसे वो आवाज मन्दिर के नीचे बनी गुफा से आ रही थी ,अपनी तेज नजरो की मदद से उसने देखा कि एक नाग कन्या बेहोशी में अपने शरीर पर बने जख्मो से दर्द में ही कराह रही है ,काल तुरंत उसके पास पहुंचा 100 फिट से लम्बी ये नागकन्या का शरीर आधा नाग कमर के ऊपर तक कन्या का तो उसके नीचे साँप का था ,इतनी विशाल नागकन्या को वो देख कर हैरान था ,चेहरा इतना सुंदर और आकर्षक था कि उसे देखकर किसी का भी मन मोह ले ,उसको इतनी बुरी तरह जख्मी देखकर और अपने दर्द से बेहोशी में भी उसके मुह से निकलती धीमी आवाजे सुनके ,काल के मन मे एक टिस उभर गई , वो उसे एकटक देख रहा था कि उसे पीछे से किसीने पुकारा ,काल क्या कर रहे हो तुम यहाँ पर ,यहाँ तुमको आना नही चाहिये
काल ने पीछे मुड़कर देखा तो उसने पाया जो नागकन्या बेहोश थी उससे भी सुंदर लेकिन थोड़ी छोटी एक और नागकन्या उसके सामने खड़ी थी ,उसके मन मे चल रही बातो को जानकर काल बोला, जी मे आपकी बहन को कोई नुकसान पहुचाने नही आया हु,इनकी बेहोशी में मुह से निकलने वाली दर्द भरी आवाज मुझे यहा खीच लाई थी,
वो दूसरी नागकन्या विशाखा थी ,उसको काल को अपनी बहन के पास देखकर डर लगने लगा कि काल उसको कोई नुकसान न पहुँचा दे
काल विशाखा के हरी आंखों में झांकता उसके मन की बाते टटोल रहा था ,उसे पता चला की इसका नाम विशाखा है ,और सामने वाली बेहोश पड़ी इसकी बहन सर्पिणी है ,विशाखा 450 सालो से उसके बहन की इस बेहोशी के वजह से बहुत ही परेशान थी ,औऱ काल के कल के कारनामो से उसे ऐसा लग रहा था कि वह कहि उसकी बहन को दुश्मन समझ कर मार न दे ,
काल ने उसके मन की बातों से जान लिया कि वो उसे आसानी से कुछ नही बोलने वाली के इसकी बहन को क्या हुवा है और यह ठीक क्यो नही हो रही ,इसे में सवाल करूंगा तब इसके मन मे मेरे सवाल के सब जवाब आयेंगे ,यह मुझे कुछ खुद बोलेगी नही ,में इसके मन से सब जानने की कोशिश करूंगा ,
विशाखा ,तुम यहाँ से चले जाओ काल ,फिर कभी इस जगह पर तुम नही आओगे,
काल ,ठीक है जैसा तुम बोलो ,लेकिन तुम्हारी बहन को क्या हुवा है और वो कब ठीक होगी ,
काल का अंदाजा बिल्कुल सही था उसके सवाल के बाद विशाखा के मन मे उसके सवाल से जुड़ी बातें चलने लगी थी पर उसने काल को कहा, तुम्हे इन सब बातों से क्या मतलब, तुम यह सब छोड़ा ,निकल जाओ यहाँ से ,
काल ने फिर एक सवाल किया जो अब उसको जानना था ,उसे यह तो पता चल गया था ,की विशाखा की बहन को क्या और कैसे हुवा ,
लेकिन वो कैसे ठीक होगी ,मुझे उनका दर्द नही देखा जाता ,आपको तो पता होगा उनके ठीक होने के बारे में ,
काल का सवाल सुनकर फिर वही हुवा ,उसके मन मे उसकी बहन को ठीक करने के बारे में बाते चली ,जो काल जान गया विशाखा ,काल यह मेरा निजी मामला है तुम निकलो यहाँ से,
काल को उसके सब जवाब मिल गए थे ,विशाखा के मन से, वो वहां से गायब होकर मन्दिर के पास बने बगीचे में जा बैठा ,जहा पर आज वो नरेश और पृथ्वी से मिलने वाला था ,
थोड़ी ही देर में नरेश और पृथ्वी वहाँ पर पहुँच गये ,उनके साथ निता और मनोज भी थे ,
चारो आकर काल से मिले ,आज काल उनको इसलिए मिलने आया था ,क्योकि कल सब लोग होने की वजह से नरेश और पृथ्वी को उससे बहुत सी बातें पुछनी थी, और वह बाते अकेले में ही हो सकती है ,इसलिये आज काल उनसे मिलने आया था ,उसने जब उनको यह बोला था कि वक्त आने पर बता दूँगा तो उनकी शक्कल और मन की नाराजगी जानकर ही आज उन्हें अपने बारे में थोड़ा बहुत बता देगा यही वो सोच कर आया था ,अपने असली पहचान और नाम तो वो अब किसी को बताने वाला नही था ,
काल उन चारो से बात करने लगा ,नरेश ने काल से कहा ,बेटा में तुमसे कुछ कहना चाहता हु ,तुम अपने बारे में कुछ कहो ,में यह पूछना चाहूंगा, क्या तुम शादीशुदा हो ,
काल ,जी नही में अभी शादी नही की है ,
नरेश ,बेटा में तुमसे एक विनती करना चाहता हु की तुम मेरे भाई के बेटी से शादी कर लो तो हम पर बहुत बड़ा अहसान होगा ,में तुम पर कोई जबरदस्ती नही करना चाहता हु ,पर अगर तुम को कोई आपत्ति ना हो शादी करने के लिए तो तुम मेरी बात का मान जरूर रखना ,अगर तुमने यह रिश्ता मंजूर किया तो मेरे जैसे भाग्यशाली कोई नही होगा ,
काल तो नरेश की बातों से हैरान था ,उसने सोचा उसने नरेश के मन मे क्या चल रहा है ,यह जानकर ही यहां आज आना था ,नरेश के उसके ऊपर बहुत ज्यादा अहसान थे और आज वही वही उसके सामने हाथ जोड़कर कुछ मांग रहा है ,आज नरेश उसके पीछे नहीं खड़ा रहता तो उसकी जिंदगी में वो इतना कुछ कभी हासिल नही कर सकता था ,अपनी जिंदगी में वो जिसे देवता मानता था ,वो आज पहली बार कुछ मांग रहा था ,काल अब बड़ी दुविधा में फस गया था ,वो अब क्या करे यह उसको समझ नहीं आ रहा था ,कुछ देर सोचकर वो बोला ,आप मुझसे बड़े है आप मेरे सामने हाथ मत जोडिये ,में आपको टाल रहा हु यह आप मत समझना में अभी कुछ साल शादी नही करना चाहता हु , आप दोनो से कल की बात छुपी नही है ,पता नही मेरे साथ कल क्या हो जाये ,मेरी वजह से आपकी लड़की की जिंदगी भी खतरे में पड़ जाएगी ,आप कुछ दिन रुक जाइये फिर देखते है आगे क्या होगा ,
तभी उसके सामने कार के अंदर से एक लड़की आकर खड़ी हो गई ,उसको देखकर काल कुछ बोलना भी भूल गया ,
जी मेरा नाम नेत्रा है, मेरे उम्र 19 साल है ,में दिल्ली में इंजीनियरिंग के 1st ईयर में हु,मैने अपनी 12 th की पढ़ाई अमरीका में रहकर की है ,आप मुझे पहली ही नजर में पसन्द आ गए थे ,आप मुझसे शादी क्यो नही करना चाहते ,
काल ,,जी वो में ,में में आपसे शादी करने को मना नही कर रहा हु
नेत्रा ,तो आप मुझसे शादी करने को तैयार है
काल ,जी आप समझी नही ,वो बात ऐसी है कि में ,आपसे बाद में शादी करने को कह रहा था ,
नेत्रा,बाद में करने को तैयार है ना तो अभी क्या समस्या है ,हम आज ही इसी मंदिर में शादी करेंगे ,बड़े पापा आप जगत दादा से बोल दीजिये हम यही शादी करने वाले है मंदिर में ,
नेत्रा ने काल का हाथ पकड़ कर मन्दिर में ले गई ,काल तो उसका अपना हाथ पकड़ते ही मानो उसका गुलाम हो गया हो ,जो नेत्रा ने कहा वो उसने मान लिया ,आज पहली बार इस मंदिर में शादी हो रही थी ,जगत जी ने उन दोनों की मन्दिर में पूरे विधिवत तरीको से 2 घंटो की पूजा करके शादी कर दी ,पूरा परिवार मन्दिर में जमा हो गया था ,उनकी मंगल फेरे खत्म करने के बाद जगत जी ने उन दोनों को माता और सब बड़ो के आशीर्वाद लेने को कहा ,काल और नेत्रा ने सबका आशिर्वाद लिया ,काल के सामने उसका पूरा परिवार था मुम्बई वाला नरगिस के साथ,शादी होने के बाद नेत्रा ने काल का हाथ छोड़ दिया था जो उसने बगीचे में पकड़ा था ,काल को जब भान आया सब चीजो को , तो वह अपने गले मे हार और नेत्रा को सुहागन की तरह उसके साथ देखकर ,उसे सब याद आने लगा कि किस तरह उसकी शादी हुवीं ,काल को हैरानी हो रही थी वो कैसे नेत्रा की हर बात मानता गया था ,वो कुछ कहता उससे पहले नेत्रा ने उसका हाथ फिर पकड़ लिया था ,काल को जब होश आया तो वो नेत्रा के कमरे में था और वो अकेला बैठा था ,काल को फिर याद आया मन्दिर से उसका घर तक का सफर ,फिर सबके साथ हसी मजाक,खाना खाते वक्त की बाते ,वो सब करते वक्त नेत्रा की हर बात को मान रहा था और वैसा ही कर रहा था ,काल नेत्रा के रूम से गायब होकर सीधा सिनोब और कोकी के पास पहुच गया जो इस वक्त रात का खाना खाकर बेड पर लेटे शिवा की राह देख रहे थे ,शिवा की गांड़ फट गई थी आज ,जिस तरह नेत्रा के सामने उसकी हालत हो जाती ,वैसी आज तक नही हुवीं थी ,शिवा ने सिनोब और कोकी को कुछ नही कहा और उनके पास जाकर लेट गया ,कुछ देर बाद शिवा के दिल मे तेज दर्द होने लगा ,उसे समझ नही आ रहा था ऐसा क्या हो गया उसके साथ ,अचानक शिवा को नेत्रा बेड पर बैठकर रो रही थी यह दिखने लगा,शिवा काल बनकर उसके सामने कब पहुचा उसे भी पता नही चला ,नेत्रा को का चेहरा पकड़ कर उसने ऊपर किया ,नेत्रा की आंखों में अपने सामने काल को देखकर और तेजी से आंसू बहने लगे ,
काल ने उसके आँसू पोछकर कहा,नेत्रा मत रो ,तुम्हारे ये आंसू देखकर मेरे सीने में बहुत तकलीफ हो रही है,में तुम्हारी आँखों मे आंसू नही देख सकता ,मेरी ख़ातिर रोना बन्द करो,तुमको मेरी कसम ,
नेत्रा शिवा की बाते सुनकर एकदम चुप हो गई ,उसने रोना भी बन्द कर दिया ,आप मुझसे नाराज होकर चले गये थे ना,शायद आपको में पसन्द नही थी ,आप मुझसे शादी नही करना चाहते थे,
काल ,नही नेत्रा तुम भी मुझे पसन्द हो ,में तुम्हे देखते ही तुम्हारी इन नीली आंखों का दीवाना हो गया था ,तुम में एक अजीब सा खिंचाव होता है मुझे ,ऐसा लगता है तुम मेरा ही हिस्सा हो ,
नेत्रा ,मुझे भी आपको पहली बार देखकर ऐसा लगा था ,इसिलए मेने आपसे शादी की ताकि में हमेशा आपके पास रह सकू,मेने अपनी एक वशीकरण शक्ति के मदद से आपको मेरी हर बात मानने को तैयार किया ,मैंने यह करके गलत किया है पर में मजबूर हो गई थी अपने दिल के सामने ,
काल ने नेत्रा की बाते सुनकर उसकी मन की बाते पढ़नी चाही तो वो कुछ जान नही पाया ,नेत्रा को जब उसने पहली बार देखा था तब वो उसके मन को पढ़ सकता था ,पर इन 10 घन्टो में ऐसा क्या हो गया कि वो उसके मन को नही पढ़ पा रहा है , ।
 

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