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सुधा आज लगातार तीसरे दिन लेट से उठी ।
माघ महीने की आखिरी सर्द सुबहो मे 8 बजे तक सूरज काफी उपर चढ जाता है ।
वो करवट लेके पैर चारपाई से नीचे लटका कर खड़ी हुई ही थी कि उसकी पेडू से जांघो तक की नशो मे अकडन सी आ गयी ।
अह्ह्ह्ह मम्म्यीईईई , वो दबी हुई सी चीखी ।
पैरो ने उसके जवाब दे दिया और उसने लडखडा कर एक दिवाल के पावे के सहारे खुद को सम्भाला । उसकी भिची हुई आंखे और सिकुड़े हुए नथुने उसके असहनीय दर्द को बया कर देते अगर सामने कोई देखने वाला होता तो ।
घर के बाहर बरामदे कुछ चहल-पहल की आवाजे आ रही थी । मगर दर्द से व्यथित सुधा ने उसे नजरअंदाज किया ।
पुरे 12 कदम आगे चल कर वो उस घर मे बने एक छोटे से पाखाने का बरसाती हटा कर अन्दर देखती है और हिम्मत बान्ध कर अपने अकड़े हुए कन्धो पर जोर देकर लपकते हुए अन्दर रखी गैलन को उठाती है जिसका ढककन काट कर होल को बड़ा किया हुआ था ।
वापस दाई ओर चल वो नल पर रखी एक पुरानी टब मे भरे पानी को मग से निकाल कर गैलन मे भर कर लडखते हुए उसी पाखाने में चली गई ।
वापस आकर उसने नल चलाया और नल चलाने की चू चू बाहर बरामदे मे पहुची और तेज कदमो से कोई अन्दर आया ।
अरे अन्न जल कुछ मिलेगा कि भूखा ही मारेगी कलमुही - उस औरत ने सुधा को सुनाते हुए बोला ।
सुधा पेट के दर्द से कसमसा कर - हा मम्मी , चना भिगोये थे रात मे , नासता बना दे रहे हैं ।
ये सुधा की मा कमला थी ।
कमला खीझकर- तेरे भरोसे नही बैठे हैं, चना-चाय का नासता हो गया है , दाल चढा दे और सब्जी काट के रख
सुधा बेजुबान सी बनी रही और किसी तरह कहराते हुए कुकर मे दाल चढा दी और ब्रश लेकर पीछे के खेतो मे चली गयी ।
सुबह की खिलखिलाती धूप की सुनहरी किरण जैसे ही सुधा के चेहरे को छूती है उसमे एक नयी ऊर्जा सी आती है, जैसे किसी गरम लिबाज ने उसे ओढ़ लिया हो ।
इधर कुकर ने दो सिटी बजाई और सुधा फटाफट कुल्ला करके गैस पर पहुच गयी ।
इतने मे उसकी मा वापस रसोई मे आ जाती है ।
कमला कटाक्ष भरे लहजे मे - अरे कुल्क्षिनी अभी तक तू बैठी ही है ,,, सब्जी कोन काटेगा
सुधा थोडा बुदबुदा कर - मम्मी ब्रश कर रहे थे , दाल चढा के
कमला - हा 12 बजे उठी होती तब हो जाता सारा काम,,, ना जाने कबतक तेरा बोझ हम सबको झेलना पडेगा ,, मरती भी नही की दफन कर दू इसे ।
ये बोलकर कमला बड़बडा कर बाहर चली जाती और सुधा अपनी मा के दिल कचोट देने वाले ताने सुन कर सुबकने लग जाती है ।
आज जो देख रहे है अब से करीब एक महीने पहले सुधा का जीवन बहुत ही अच्छा और खुशहाल था । वो ग्रेजुएशन कर रही थी साथ ही पास के स्कूल मे बच्चो को पढा भी लेती थी ।
उसके घर वाले उसका बड़ा सम्मान भी करते थे क्योकि सुधा एक गरीब परिवार से थी और उसकी मा ने बडे परिश्रम और उधार बाडी लेके उपर की दो लड़कियो की शादी की थी । ऐसे मे सुधा की 4000 रुपये महीने की आमदनी भी उस घर मे 40000 से कम नहीं थी । उसके पिता एक छोटी विचारधारा वाले इन्सान थे। पैतृक संपत्ति के एक्लौते वारिश होने के कारण एक झूठे स्वाभिमान मे अंधे होकर सुधा के पिता ने कभी काम करने मे रुचि नही दिखाई। नतिजन दो बडी बेटियो की शादी करने मे जमा पूंजी के साथ दोनो खेत भी गिरवी रखने पड़ गये ।
सुधा के पढ़ाने की वजह से जो पैसे मिले उनसे कुछ महीने पहले उसकी मा ने एक खेत को छुडवा लिया था और उनसे अपने छोटे भाई का दाखिला भी सरकारी से हटवा कर अपने उसी स्कूल मे करवा दिया जहा सुधा पढा रही थी ।
सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था । उसके लिए काफी अच्छे रिश्ते आने लगे थे मगर सुधा की अपनी पसंद थी , प्रकाश । जिसे वो दिलो जान से चाहती थी । उसके बहनो की शादी के बाद एक प्रकाश ही तो था जिससे वो अपने दिल की बाते कहती थी ।
आज से ठीक 27 दिन पहले सुधा ने परिवार मे अपनी प्रतिस्था और मान सम्मान को देखते हुए अपनी मा से अपने दिल की बात कह दी । इस उम्मीद मे कि शायद उसकी मा उसका साथ देदे ।
लड़का सरकारी नौकरी करता था लेकिन गैरबिरादरी का था ।
सुधा की मा कमला के स्वाभिमान को ठेस पहुंची और उसने चाटो की बरसात करदी ।
मामला घर के सभी सदस्यो तक गया और वही सुधा के निठल्ले पिता जिनको सुधा की मान प्रतिस्था से पहले से ही चिढ़ थी उन्होने मौके का फाय्दा लेके जूतो से पीटा ।
मगर ना जाने सुधा मे कौन सी दृढ़ता थी वो जरा भी टूटी नही ।
सुधा की जिद के कारण खबर आगे उसके जिजाओ के घर तक गयी ।
अगले एक हफते तक उसके दीदी जीजा सबने उसे बातो से दुत्कारा और भावनात्म्क रूप से दबाव बनाया कि वो उस लडके के त्याग दे । आखिरकार बात ना बनती देख उसके बडे जीजा मे फैसला सुनाया कि सुधा की दैनिक सुविधाये छीन ली जाये ।
अगले दिन से सुधा का स्कूल मे पढ़ाने और कालेज मे पढने जाना बन्द था , उसकी बीए 3rd ईयर की परीक्षा आने वाली थी तो उसकी दीदी की गुजारिस पर उसका मोबाइल नही छिना गया लेकिन नम्बर बदल दिया गया और उसे कसम दी गयी कि वो उस लडके से संपर्क नही करेगी ।
बस वो दिन था कि रोज सुधा को ये सब जिल्लत झेलना पड़ रहा था । यहा तक की आज उसका पीरियड का तीसरा दिन था फिर भी उसकी मा मे कोई नरमी नही बरती ।
थोडी देर बाद सुधा सारे काम खतम करके सबको खाना देने के बाद सारे दरवाजे बंद करके नहाने बैठ गयी ।
ठंड थी लेकिन नहाने से उसके तन मे एक नयी उर्जा का संचार हुआ ।
वो बालटी मे कपडे लेके पीछे खेत मे बने अरगन पर कपडे डाल रही थी कि उसकी नजर एक नयी चमचमाती सफेद कार पर गयी जो दुर से धुल उडाते हुए आ रही थी ।
उसे देख कर वो थोडा जबरन मुस्कुराहत चेहरे पर लाई और कुछ बीते पलो को सोचने
प्रकाश - और फिर हम लोग अपनी गाडी से लॉन्ग ड्राइव पर जायेंगे
सुधा - हिहिही बाबू पहले शादी तो कर लो , फिर साइकिल पर भी घुमाओगे तो मै खुश रहूँगी ।
प्रकाश - अरे मै सच कह रहा हू जानू ,,तुमको भरोसा नही !!!
सुधा - हा हा जानती हू बाबा , कितनी बार तो बोल चुके हो कि जिस दिन मेरे घर रिश्ता मागने आओगे उसी गाडी से आओगे हिहिही
वो बीती बाते याद करके सुधा की आंखे छलक आई और वो कार उसके घर के सामने से होकर अंदर गाव मे चली गयी ।
सुधा वापस अपने कामो मे व्यस्त हो गयी थी और कुछ समय बाद उसे बारामदे मे चहल पहल सुनाई दी ।
एक दुप्प्ता लेके फौरान उनसे सर पर डाला और खिडकी से बाहर झाका तो वही चमच्माती सफेद कार बाहर खड़ी थी और बरामदे मे प्रकाश अपने चाचा के साथ तख्त पर बैठा हुआ इधर उधर नजर घुमा रहा था मानो सुधा को ही खोज रहा हो ।
सुधा के चेहरे खिल गये उसकी आंखे अनायास बहने लगी ।
उसे वापस से 27 दिन पहले की वो शाम याद आने लगी जब फोन पर प्रकाश ने उसे आखिरी बार मोटीवेट किया था ।
प्रकाश - देखो जानू ,,ये बहुत ही गम्भिर मसला है इसके लिए तुमको दिल और भावनतम्क रूप से बहुत ही मजबूत बनना पडेगा । हो सकता है जब तुम ये बात घर मे बताओ तो वो लोग पहले तुम्हे एमोशनली बहलाए और फिर मारे पीटे भी ।
प्रकाश - तुम वादा करो कि किसी भी दशा मे हमारे प्यार को झुकने नही दोगी । मै मानता हू ये आसान नही है मगर बिना इसके अलावा हमारा कोई भविष्य नही है । हो सकता है इसके बाद हमारी कोई बात नही हो ,वो तुमको कसम देके या जबरदस्ती मुझसे बाते करने के लिए रोके । मगर मेरा वादा है अब से एक महीने मे मै तुम्हारे यहा जरुर आऊंगा ।
सुधा सुबकते हुए - तुम चिंता ना करो बाबू , मै मैनेज कर लूंगी । तुम अपना ख्याल रखना बस । तुम्हारा प्यार मुझे हारने नही देगा ।
प्रकाश रोते हुए - आई लव यू मेरा बच्चा
सुधा - आई लव यू सो मच जान, उम्म्म्माआआह्ह्ह
सुधा आसू बहाये खिडकी से देखे जा रही थी और बाहर कुछ गंभीर वार्ता चल रही थी । वहा उसके गाव के प्रधान जी भी बैठे हुए थे ।
सुधा की मा दो बार अंदर आई मगर सुधा को नजर अंदाज कर वापस पानी और मीठा लेके चली गयी ।
बरामदे में हो रही बात चित से सुधा के दिल की धडकनें तेज हुई जा रही थी ,,,,
उसके पिता का रिश्ते के लिए विरोध उसकी बेचैनी को बढा रहा था । उसके सास की नाली मनो सकरि हो रही थी , वो गहरी सासे लेना शुरु कर दी , फिर भी उसका दिल अन्दर ही अन्दर बैठा जा रहा था ।
वो मन मे लाखो दुआए मन्नतें बड़ब्डाये जा रही थी , आसू आंखो से झरे ही जा रहे थे ।
उसे सुकून था बस प्रकाश को अपनी आंखो के सामने देखकर , दिल मे एक आखिरी उम्मीद उसी से ही तो थी उसको ।
चाय का प्याला भी समाप्त हो चुका था , वही प्रकाश की बेचैनी भी पल पल बढ रही थी , वो एक झलक सुधा की पाने को बेकरार था ,,,मगर सुधा क्या रूप लेके जाती उसके सामने ,,उसने ना रोने का वादा किया था प्रकाश से मगर आसू तो रोके नही रुक रहे थे उसके ।
उधर प्रधान जी सुधा के पिता को भरसक समझाने का प्रयास कर रहे थे लेकिन अड़ियल बुढ्ढ़ा अपनी जिद पर अड़ा रहा ।
बार बार प्रकाश के संस्कारो पर ऊँगली उठाता रहा ताकि किसी भी तरह खुद को अपमानित समझ कर वो उठ कर चला जाये । मगर प्रकाश विचलित ना हुआ वो अडिग अपनी माग पर विनम्रता से बना रहा और जब बात बनति नही दिखि तो प्रकाश सुधा के बापू के कदमो के हाथ जोड कर बैठ गया ।
प्रकाश की सुधा के लिए इतनी सहनशीलता और विनम्रता देख सुधा की मा का दिल भर आया , उसे समझ आ गया था कि उसकी बेटी की जिन्द्गी प्रकाश के साथ ही सवरेगी ।
मगर चार मर्दो मे वो खुद को कैसे आगे करे , आखिर उसके पति का मान सम्मान भी तो था ।
वही सुधा की हालत खराब हो गयी थी , उसे अपने प्यार का अपमान सहा नहीं जा रहा था ,,वो चाह कर भी चार लोगो मे अपने पिता के विरुद्ध कुछ नही कर सकती थी, नही तो संस्कारो की डिंगे मार रहे उसके बापू की इज्जत मिट्टी पलित हो जाती ।
सुधा के उम्मीद का दिया अब बुझने लगा था , वो समझ चुकी थी कि उसका बाप कभी भी इस रिश्ते के लिए हामी नही भरेगा , उसकी सासे अब थमने सी लगी थी ,मगर दिल दुगनी तेजी से धडक रहा था ।तभी एक भडभडाहट की आवाज आई ।
सुधा की मा चौकी और भागकर अंदर आई ,, अंदर सुधा अचेत होकत गिर पडी थी । सुधा की मा चिल्ल्लाई तो सारे लोग भाग कर अन्दर आये ।
प्रकाश की आंखे अपनी सुधा की इस हालत को देख कर डबडबा गईं और वो मुह खोलकर भी कुछ बोल नही पा रहा था । उसे समझ ही नही आ रहा था कि क्या करे ।
सुधा की मा सुधा को छाती से लगाये उसे पुचकारते हुए रो जा रही थी और सुधा के बाप को खड़ी खोटी सुनाए जा रही थी ।
सुधा का बापू जिसे उम्मीद नही थी कि उसकी पत्नी उसके साथ कभी ऐसा व्यव्यवहार भी कर सकती है । उसे अब बहुत अकेलापन सा लगने लगा था वो निराश हताश होकर वापस तख्त पर आ गया ।
इधर प्रधान जी ने पहल की और पानी के छीटे सुधा के चेहरे पर मारे ।
सुधा की मा से उसे गोद मे उठाए हुए उसके गालो को थपथपाया तो कुनमूनाते हुए सुधा ने आंखे खोली ।
सुधा ने धुध्ली आंखो से बहुत दबी हुई जुबान मे बोला - म म म मम्मीईई
सुधा के मुह से अपने के लिए पुकार सुन कर उसकी मा की आंखे बहने लगी , उसने फौरन सुधा को सीने से लगा लिया -हा मेरी बच्ची मै यही हू
प्रकाश भी अपने बहते आसुओ को मा बेटी के इस प्रेम के आगे नही रोक पाया ।
मम्मी - उठ बेटी देख तेरा प्रकाश आया है ,, देख ना
सुधा को यकीन ही नही हुआ कि उसकी मा मे ये शब्द बोले वो फफ्क पडी और अपने मा के सीने से लग गयी ।
प्रकाश के चाचा और प्रधान जी दोनो ने अपनी नम आंखो को पोछा ।
इधर सुधा ने अपनी मा के आंचल से पहली बार प्रकाश को सामने देखा जो खड़ा हुआ आसू बहाते मुस्कुरा रहा था ।
तभी प्रकाश के जहन मे सुधा के पिता जी आये और वो नजर उठा कर बाहर देखा तो वो गुमसुम तख्त पर बैठे थे और मिट्टी को घुरे जा रहे थे ।
प्रकाश सुधा को छोड कर उसके पिता के पैरो मे बैठ गया - बाऊजी , मै जानता हूँ एक पिता का प्रेम दिखाने का अपना तरीका होता है , मै ये भी जान्ता हू कि आपको डर है कि गैर बिरादरी मे शादी से आपकी बेटी पर कोई आंच ना आये । मगर मेरा विश्वास किजीए , मै कभी भी आपको शिकायत का मौका नही दूँगा ।
सुधा के बापू एक टक जमीन को निहारते हुए - मेरे मा बाप ने मुझे बडे लाड़ से पाल के बड़ा किया ,, पैसो की कमी नही थी बेटा तब हमारे पास और उसी घमंड मे मेरे बापू ने मुझे कभी काम करने के लिए प्रेरित नही किया ना ही कभी जिम्मेदारीयो का अहसास दिलाया ,,, पैतृक संपत्ति, इकठ्ठा धन सब कुछ पानी की तरह बहाया मगर उस बहाव मे मेरा घमंड मेरे साथ ही रह गया । आज तुझे देख कर समझ आया कि जिस बेटी को लेकर मै कितना गलत समझ रहा था , वो सच मे कितनी बड़ी लक्ष्मी है जिसके लिए तू इत्नी जिल्ल्ते सह गया ।
सारे लोग बरामदे प्रकाश और सुधा के बापू को घेरे खडे थे ।
सुधा को उसकी मा सहारा दिये थी ।
सुधा का बापू सुबकते हुए प्रकाश का हाथ पकड़ कर - मुझे माफ कर दे बेटा
प्रकाश - अरे नही नही बाऊजी आप ये क्या कर रहे थे ,,आप पिता समान हैं मेरे , आप अगर आज दो थप्पड़ मार भी देते तो भी मै आपसे नाराज नही होता ।
सुधा के बापू के झुक कर प्रकाश के माथे को चूम कर - सच मे सोना है तू बेटा, अब समझ में आया कि आखिर क्यू मेरी बेटी इतनी हठी हो गयी थी तेरे लिये
सुधा को यकीन ही नही हो रहा था कि ये सब उसका बाप उसके लिए बोल रहा है ।
वो आगे बढकर अपने बापू के पास गयी और उसने लिपट कर रोने लगी ।
सुधा के बापू - धत्त पगली सारा आसू अभी बहा देगी तो बिदाई पर क्या करेगी
सुधा के बापू की बात पर सब भरी हुई आंखो से हस पड़ें ।
सुधा मे मा चल कर प्रकाश के पास आई और उसके खड़ा किया ।
सुधा की मा - बेटा हम गरीब लोग हैं हमारे लिए हमारी इज्जत ही सब कुछ है,,,अगर हमसे कोई गलती हुई हो तो माफ कर देना
प्रकाश - अरे मा जी ये क्या कह रही है,,, मै ये रिश्ता अमीरी गरीबी ना उच नीच देख कर नही करने आया था,,मुझे तो सुधा पसंद थी बस
सुधा के बापू खडे होकर - बेटा लेकिन हम कुछ देने योग्य नही है । जो कुछ है ये बेटी ही है हमारे पास , यही हमारा धन है ।
प्रकाश मे चाचा - ओहो भाईसाहब हमने आपसे सुधा बेटी के अलावा और कोई बात की क्या हाहहहा आप भी ना
प्रकाश - मुझे बस आप दोनो का आशीर्वाद चाहिये बस
कमला सुधा और प्रकाश के चेहरे पर बड़े दुलार से हाथ फेरते हुए - हमेशा खुश रहो मेरे बच्चो ।
थोडी देर बाद प्रकाश चला गया
मगर बीते 27 दिनो की वो तकलिफ शायद ही सुधा अपने जहन से कभी भुला पाये ।
जैसा भी थी उसको वो सम्मान अब वापस मिल चुका था उसके प्यार की बदौलत । वो अपनी मा के साथ लिपटी हुई प्रकाश को मन ही मन प्यार ही दिये जा रही थी ।
*****समाप्त*****