Update - 51
इस दृश्य को देखकर कमला पहले से ही हद से ज्यादा खुश थीं। बस बोला कुछ नहीं पर पति के पूछते ही कमला बोल पड़ीं... मेरे जीवन में पहली बार ऐसा नजारा देख रहीं हूं मैंने कभी सोचा भी नहीं था की ऐसी जगह बैठकर खुले आसमान के नीचे भोजन करूंगी, मैं बता नहीं सकती मैं कितना खुश हूं, बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मेरे लिए ये सब किया।
रघु... कमला ये मेरा फर्ज था आखिर मैं तुम्हरा पति हूं तुम्हारे खुशियों का ख्याल रखना मेरा परम कर्तव्य हैं। मैंने जो भी किया तुम्हारे खुशी के लिए किया तुम्हारे खुशी से बढ़कर मुझे कुछ और नहीं चाहिए जो तुम्हारे चेहरे से झलक रहा हैं।
"युवराज मैंने कहा था न की आप को बहुत पसन्द आयेगा साथ ही आपके पत्नि को भी अब आप बताइए मेरा दावा सही निकला की नहीं।"
रघु…हां आपने मेरे कहे मुताबिक से ज्यादा कर दिया इसके लिया आपको बक्शिस भी दूंगा।
बक्शीस देने की बात सुनकर भोजनालय का बंदा खुश होते हुए बोला... युवराज ये तो कुछ भी नहीं आप एक बार बीच में रखी मेज तक तो पहुचिए आप और आपकी पत्नी और ज्यादा खुश हों जायेगे।
रघु... ऐसा हैं तो चलो फिर देखते हैं मेज पर कैसा कारीगरी कर रखा हैं पसन्द आया तो तुम्हारी बक्शीश दुगुना कर दूंगा।
बक्शीश दुगुना करने की बात सुनकर भोजनालय का बंदा मन ही मन खुश हों गया और रघु कमला का हाथ थामे मेज की और चल दिया। जैसे जैसे दोनों आगे बढ़ते जा रहें थे। मेज पर शीशे की पिटारी में बंद जगनूओ को टिमटिमाते देखकर दोनों और ज्यादा अचंभित होते जा रहें थे। कमला अचंभित होते हुए बोली... मेज पर क्या रखा हैं जो तारों की तरह टिमटिमा रहा हैं।
"मोहतरमा आप मेज तक तो पहुंचो आप खुद ही जान जाओगे वहा क्या रखा हैं।"
सभी बातों बातों में मेज तक पहुंच गए फ़िर कमला और रघु मेज पर रखे शीशे की पिटारी को ध्यान से देखने लग गए। उन्हे अंदर चलती फिरती जीव दिखाई दिया जिसे देखकर कमला बोली...इसके अंदर तो जिंदा जीव भरा हैं। देखने से ऐसा लग रहा हैं जैसे जुगनू हों।
रघु भी देखकर समझ गया कि शीशे में क्या बंद हैं? बस फिर किया रघु का पारा चढ़ गया और गुर्राते हुए बोला...ये क्या तुमने बेजुबान प्राणी को सिर्फ कुछ पैसे ऐठने के लिए इतनी सजा दे रहें हों। आप ने सब सही किया पर इन बेजुबान प्राणियों को प्रताड़ित करके सब बेकार कर दिया।
रघु को गुस्से में गरजते हुए देखकर भोजनालय का बंदा समझ गया मामला बिगड़ चुका हैं आगर अभी संभाला नहीं गया तो मामला और बिगड़ेगा साथ ही बक्शीश भी हाथ से निकल जायेगा। इसलिए बोला... युवराज यहां आने वाले सभी गणमान्य लोग इसकी मांग रखते हैं हमने सोचा आपको भी पसन्द आयेगा इसलिए बिना आपसे पूछे हमने रख दिया इसके लिए हम आपसे माफी मांगते हैं।
रघु... मिस्टर सभी एक जैसे नहीं होते और मुझे ये कतई पसन्द नहीं कि कोई बेजुबान जीव को इस तरह प्रताड़ित करे इसलिए आप जितनी जल्दी हो सकें इन जीवों को यहां से हटाओ और इन्हें आजाद कर दो।
जहां रघु भोजनालय के बंदे को डटने में लगा हुआ था वहीं कमला एक एक पिटारी को उठकर उनमें मौजूद सभी जगनुओं को आजाद करने में लगीं हुई थी। पिटारी खोलते ही सभी जुगनू एक साथ बाहर को निकलकर आसमान में उड़ जाते एक आद जो रह जाता उन्हें पिटारी उल्टी करके निकल देता। अंतिम पिटारी को जब हाथ में लिया तब भोजनालय के बंदे को डाट लगाकर रघु कमला की और मुड़ा तो कमला को जगनूओं को आजाद करते देखकर रघु मन ही मन खुश हों गया।
अंतिम पिटारी से जगनुओ को आजाद करते समय सभी जुगनू पिटारी से निकल गया बस एक जुगनू पिटारी में रह गया था। उसे निकलने के लिए कमला ने पिटारी को उल्टा किया तो जुगनू पिटारी से निकल कर ऊपर को उड़ा फिर अचानक आकार कमला के गाल पर बैठ गया जिसे कमला को सुरसुरी होने लगीं और कमला खिलखिला कर हंस दिया हंसते हुए कमला बोलीं…अरे मैंने तुम्हें आजाद कर दिया अब तुम जाओ मेरे गाल पर क्यों बैठ रहें हों।
कमला की हरकते देखकर रघु के साथ साथ भोजनालय का बंदा भी मुस्कुरा दिया। दो तीन सेकेंड कमला के गाल पर बैठें रहने के बाद जुगनू उड़ान भरा और दूर आसमान में उड़ता चला गया और कमला देखते हुए बोली... कितना अच्छा लग रहा हैं जैसे टिमटिमाती हुई कोई तारा उड़ता हुआ जा रहा हों।
रघु… ये जुगनू खुले आसमान में उड़ते हुए अच्छा लगाता हैं फिर भी कुछ लोग चांद पैसे कमाने के लिए इन्हें पिटारी में बंद कर देते हैं।
रघु ने अंत की बाते भोजनालय के बंदे की और देखकर तंज कसते हुए बोला तो वो बंदा सिर झुकाकर बोला…युवराज हम शक से ऐसा नहीं करते हैं हमसे मांग किया जाता हैं इसलिए मजबूरन हमे ऐसा करना पड़ता हैं।
पहले से ही रघु गुस्से में था कमला को खिलखिलाते देखकर जीतना कम हुआ था बंदे की बात सुनकर उसका पारा फ़िर से चढ़ गया और पूरे जोर से दहाड़ते हुए रघु बोला…मजबूरी को कारण बताकर अपनी गलातीयो को छुपाने की कोशिश न करें तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ चांद पैसे कमाने के लिए ऐसा करते हों आगर तुम्हे पैसे कमाना न होता तो ऐसे वाहियात मांग रखने वाले ग्राहकों को साफ शब्दों में माना कर देते पर तुम ऐसा नहीं करते हो।
रघु की आवाज़ इतनी तेज़ और गर्जना युक्त था की उस बंदे के साथ कमला भी डर गई और कमला ने तुरंत रघु का हाथ कसके थाम लिया। हाथ पर स्पर्श होते ही रघु कमला की ओर मुड़ा कमला का भय से परिपूर्ण चेहरा देखकर रघु समझ गया की उसके तेज आवाज में बोलने से कमला डर गईं हैं इसलिए एक गहरी स्वास लेकर खुद को शांत किया फ़िर नम्र आवाज में बोला... जाओ जल्दी से इस मेज पर रोशनी की व्यवस्था कारो और हमारे भोजन की व्यवस्था भी करो।
रघु का इतना बोलना था की वो बंदा सरपट वहां से दौड़ लगा दिया। बंदे के जाते ही रघु कमला के हाथ पर दूसरा हाथ रख कर बोला... कमला मुझे माफ करना मेरे कारण तुम डर गई पर मैं क्या करूं मैं इन बेजुबान प्राणियों को ऐसे पडताडित होते हुए नहीं देख सकता जब कभी ऐसा कुछ देखता हू तो मुझे इतना गुस्सा आता है की मैं ख़ुद पर से काबू खो देता हूं।
रघु के इतना बोलते ही कमला मंद मंद मुस्कुरा दिया फिर बोला... ऐसी वाहियात कृत्य को देखकर मुझे भी बहुत गुस्सा आता हैं और मैं भी आपा खो देती हू पर आज न जानें कैसे मैंने खुद पर काबू रख लिया। वैसे अच्छा ही हुआ वरना मुझे कैसे पाता चलता की सिर्फ गुस्से वाली मैं नहीं आप भी हों। हमे मिलने वाले ने हमारे एक एक गुणों का मिलान करके ही हमें एक दूसरे से मिलवाया हैं ही ही ही।
इतना बोलकर कमला ही ही ही करके हंसने लग गई तो रघु भी हंसते हुए बोला... हां वो कहते है न जोड़ियां ऊपर से बनकर आता हैं। मेरा तुम्हारा पहले से ही मिलना तय था पर तुम बैठी थीं कोलकात्ता मैं यहां ओर मेरे मां बाप यहां लड़की ढूंढ रहे थे।
कमला... आप मेरी बातों की खिली उड़ा रहें हों ऐसा करके आप बिलकुल ठीक नहीं कर रहें हों।
इतना बोलकर कमला बनावटी गुस्सा दिखाने लग गई तो रघु बोला…. अरे अरे नाराज क्यों होती हों तुम्हारे नाक पर गुस्सा बिल्कुल भी ठीक नहीं लगाता और जो मैंने कहा वो सच ही कहा तुम जानती हो शादी से पहले क्या हुआ था फिर भी हमारी शादी हुआ न अब तुम ही कहो हमारी जोड़ी पहले से न बना होता तो क्या हमारी शादी हों पाता जबकि तुमसे पहले कई लड़की के मां बाप ने उन्हीं कारणों को सच मानकर रिश्ता करने से माना कर दिया।
रघु को कहें पर विचार करने पर कमला को भी रघु का कहा सच लगा। इसलिए कमला चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुरा दिया तभी पीछे से एक शक्श आकर बोला... आप का भोजन लगा दिया है आकर भोजन कर लीजिए।
दरअसल रघु और कमला बात करते हुए मेज से थोड़ा दूर निकाल आए थे तो शक्श के कहते ही दोनों मेज की और चल दिया। कुछ कदम चलने से दोनों मेज के पास पहुंच गए। पहल करते हुए रघु ने एक कुर्सी खिसका कर कमला को बैठने के लिए कहा। कमला के बैठते ही रघु सामने के कुर्सी पर बैठ गया। तो कमला बोलीं... आप इतने दूर क्यों बैठ रहें हो मेरे पास आकर बैठो।
इतना सुनते ही रघु कमला के बगल से सटकर बैठ गया और वेटर ने मेज पर रखी खानों पर से ढक्कन हटा दिया। तरह तरह के व्यंजन बहुत अधिक मात्रा में था जिसे देखकर कमला बोलीं... ये तो बहुत ज्यादा हैं इतना सारा भोजन हम नहीं खा पाएंगे।
रघु... हां कमला तुमने सही कहा फिर वेटर से बोला... सुनो भाई हमें जितनी जरूरत हैं उतना खाना यहां रखकर बाकी का भोजन वापस ले जाओ और सुनो इन भोजनों को वापस लेजाकर दूसरे ग्रहाकों को मत दे देना। इन भोजनों को बांधकर जरूरत मंदों को दे देना क्योंकि इन सभी भोजनों का बिल मैं पहले ही भर चुका हूं।
"जी बिलकुल अपने जैसा कहा वैसा ही होगा" इतना बोलकर वेटर दो लोग जीतना खा सकते हैं उतना भोजन रखकर बाकी का भोजन वापस भिजवा दिया फिर रघु को कुछ याद आया तो बगल में खड़े एक और वेटर से बोला... भाई बहार मेरे साथ आए कुछ लोग खड़े हैं जाकर उन्हें भी भोजन करने को कह दो उनसे कहना उनको जो पसन्द आए खां ले उनका बिल मैं जाते वक्त भर दूंगा।
इतना सुनकर वो वेटर चला गया। रघु और कमला बातों में मशगूल होकर भोजन करने लग गए। वेटर बहार जाकर बहार खड़े अंगरक्षकों को रघु का संदेश दिया तो वो भी अंदर आकर एक जगह बैठ गए और मन पसंद भोजन मंगवा कर खाने लग गए।
अब हम महल में वापस चलते हैं। रघु और कमला के महल से आने के कुछ देर बाद ही राजेंद्र और रावण महल लौट आए। दोनों के आते ही सुरभि ने रतन को भोजन लगाने को कहकर कमरे में गई। राजेंद्र इस वक्त बाथरूम में हाथ मुंह धो रहा था। कुछ ही पल में राजेंद्र बाथरूम से बहार आया तब सुरभि बोलीं... आज का दिन आपका कैसा रहा।
राजेंद्र... ओर दिनों की तरह भाग दौड़ वाला रहा इतवार की पार्टी की तैयारी करते करते दिन कब बीत गया पाता ही नहीं चला।
सुरभि... हां ये तो होना ही था इतवार आने में दिन ही कितने बचे है चार दिन बाद महल में पार्टी होना हैं तो तैयारी भी समय से पूरा होना चाहिए। अच्छा सुनो न मुझे आपसे कुछ कहना हैं।
राजेंद्र... हां तो कहो न मैंने तुम्हें बोलने से कब रोका हैं।
सुरभि... मुझे लगाता हैं हम बहू के मां बाप के आने की बात उससे छुपाकर सही नहीं कर रहें हैं क्योंकि आज बहु अपने मां को याद करके रो दिया था।
राजेंद्र... मां बाप से हमेशा के लिए दूर होना कोई आसान बात नहीं हैं। जब बहू रो रहीं थीं तब तुम लोग क्या कर रहें थे मैंने तुमसे कहा था बहु को एक पल भी अकेला मत छोड़ना फिर भी….।
राजेंद्र की बातो को बीच में कटकर सुरभि बोलीं... हम बहू को एक पल भी अकेला नहीं छोड़ते वो तो बातों बातों में मां का जिक्र आया तो बहु रो दिया था।
राजेंद्र... हां ये तो होगा ही इतनी जल्दी मां बाप के साथ बिताए पलों को कैसे भुल सकती हैं। सुरभि मैं सोच रहा था जब समधी समधन जी आएंगे तो उनके साथ बहू को कुछ दिनों के लिए भेज दूं तो कैसा रहेगा।
सुरभि... हां मैं भी ऐसा ही सोच रहीं थीं इसलिए जब बहु रो रहीं थी तब मैंने बोल दिया कि पार्टी के बाद कुछ दिनों के लिए बहू को मायके भेज दूंगी।
राजेंद्र... बातों बातों में कहीं तुमने बता तो नही दिया कि बहू के मां बाप आ रहें हैं।
सुरभि... जी नहीं?
उसी वक्त रतन द्वार पर आकर बोला "रानी मां राजा जी भोजन लगा दिया हैं ठंडा होने से पहले आकर भोजन कर लीजिए"
सुरभि... दादाभाई आप चलिए हम आते हैं। फिर राजेंद्र से बोला... चलिए पहले भोजन कर लीजिए बाकी बाते बाद में करेंगे।
राजेंद्र... जैसा रानी साहिबा हुकम करें ही ही ही।
सुरभि... आप भी न अब चलिए
इतना बोलकर दोनों साथ साथ हाथ में हाथ डाले चल दिया और डायनिंग मेज पर आकर बैठ गया। कोई नहीं आया था तो राजेंद्र तेज आवाज में बोला...अरे भाई सब कहा रह गए। रावण, पुष्प,अपश्यु, सुकन्या, रघु, बहू जल्दी आओ बहुत जोरों की भूख लगा हैं।
राजेंद्र के बुलाने पर भी कोई नहीं आया तो राजेंद्र मन में बोला... अरे ये किया कोई नहीं आया लगाता है शेर वाली दहाड़ लगाना पड़ेगा।
मन में इतना बोलकर राजेंद्र दहाड़ते हुए बोला... रावण, सुकन्या, पुष्पा अपश्यु, रघु और बहू जल्दी आओ देर हुआ तो किसी को भोजन नहीं मिलेगा।
आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत शुक्रिया 
Shandar update hai bhai...
Raghu or kamla ka in jeevo ke prati prem bahut acha laga....aksar log sirf khubsurati ke liye ye bhul hi jaate hai ki prakriti me rehne wale in bejuban jeevo ko bhi azad rehne ka haq hai.....
Ye rajendra or surbhi to kamla ko surprise dene wale hai.... dekhte hai reactions kya kya milte hai...
Agle bhag ki pratiksha rahegi bhai.