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Ha hai n dosti ka jise anurag ache se. Nibha raha hai aor aage bhi nibhayegaI think anuraag aur apsyu ke bich koi to nata hai... I mean to say.. koi rishtedaaei ho dono ke bich par shayad apsyu ko ye baat pata nahi...
Ha hai n dosti ka jise anurag ache se. Nibha raha hai aor aage bhi nibhayegaI think anuraag aur apsyu ke bich koi to nata hai... I mean to say.. koi rishtedaaei ho dono ke bich par shayad apsyu ko ye baat pata nahi...
Ek pal ke liye lage ki wo painting nahin Koi kahani ki kirdaar ho, jo kadi dhup mein khet mein kaam kar rahi thi...Update - 10
एक खेत जिसमे फसलों की बुवाई का काम चल रहा था। कईं मजदूर काम कर रहें थे। चिल चिलाती धूप की असहनीय तपिश जो देह को झुलसा दे, धूप की तपीश इतनी ज्यादा थी कि भूमि में मौजूद पानी ऊष्मा में परिवर्तीत हो'कर हल्की हल्की धुंए का बादल बना रहा था। इतनी चिलचिलाती धूप में खेत के मेढ़ पर लगा एक पेड़ जिसकी टहनियों में नाम के पत्ते लगे हुए थे। जो धूप को रोकने में असमर्थ थे। उसके नीचे एक महिला जिसके तन पे लिपटा साड़ी काई जगह से फटी हुईं, गोद में एक शिशु को लिऐ बैठी हुईं थीं। महिला शिशु को स्तन पान करा कर शिशु की भूख को शांत कर रहीं थीं। महिला अपनें फटे हुए अचल से शिशु को ढक रखा था ओर नजरे ऊपर की ओर कर, सूर्य देवता को आंख दिखाकर कह रहीं थीं "अपनी तपिश को कुछ वक्त के लिए काम कर ले मैं अपने शिशु को दूध पिला रहीं हूं। तेरी तपिश मेरे अबोध शिशु को विरक्त कर रहीं हैं। मेरी फटी अंचल तेरी तपिश को रोक पाने में असमर्थ हैं। "
कमला का बनाया यह चित्र जो एक मां को अपनें शिशु के भूख को मिटाने की प्राथमिकता को दर्शा रही थीं। कैसे एक मां धूप की तपिश को भी सहते हुए अपने अबोध शिशु के भूख को शांत करने के लिए काम छोड़कर शिशु को स्तन पान करा रहीं थीं। इस चित्र को देखकर समझकर सुरभि ख़ुद के अंदर की मातृत्व को रोक नहीं पाई जो उसके आंखो से नीर बनकर बाह निकला, सुरभि अंचल से बहते नीर को पोंछकर कमला के पास गई ओर सिर पर हाथ फिराते हुईं बोली… बहुत ही खुबसूरत और मां के ममता स्नेह को अपने इस चित्र मैं अच्छे से दृश्या हैं। इससे पता चलता हैं आप एक मां की मामता और स्नेह को कितने अच्छे से समझती हों।
कमला…धन्यवाद मेम मैंने तो सिर्फ़ मेरी कल्पना को आकृति का रूप दिया हैं जो देखने वालो के हृदय को छू गई हैं।
राजेंद्र…आप'की कल्पना शक्ति लाजवाब हैं ओर आप'की बनाई चित्र अतुलनीय हैं। मैं आप'का नाम जान सकता हूं।
कमला…जी मेरा नाम कमला बनर्जी हैं।
राजेंद्र…आप'के जन्म दात्री माता पिता बहुत धन्य हैं। क्या मैं उनका नाम जान सकता हूं?
कमला…जी मां श्रीमती मनोरमा बनर्जी और पापा श्री महेश बनर्जी, मां गृहणी हैं और पापा एक कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत हैं।
सुरभि…आप से मिलकर और बात करके बहुत अच्छा लगा अब हम चलते हैं बाद में फिर आप'से मुलाकात करेंगे।
सुरभि और राजेंद्र आर्ट गैलरी में लगे दूसरे चित्र को, आपस में बातें करते हुए देखते रहे फिर जा'कर अपने जगह बैठ गए । गैलरी से मुख्य अतिथियों के जानें के बाद सभी स्टुडेंट अपने अपने पैरेंट्स के पास जा'कर बैठ गए। मंच में रंगारंग कार्यक्रम शुरू हों गया था। जिसमे भाग लेने वाले स्टुडेंट अपने अपने प्रस्तुति से देखने वालों का मन मोह लिया। रंगा रंग कार्यक्रम कुछ वक्त तक चला। जैसे सभी शुरुवात का अंत होता हैं वैसे ही रंगा रंग कार्यक्रम का अंत हुआ और पुरुस्कार वितरण आरंभ किया गया। मुख्य अतिथियों के हाथों सभी स्टुडेंट को उनके प्रस्तुति अनुसार पुरुस्कृत किया गया। अंत में आर्ट प्रतियोगित में भाग लेने वाले सभी स्टुडेंट में से विजेताओं को पुरुस्कृत किया गया। पहले तृतीय स्थान पाने वाले प्रतिभागी को पुरस्कार दिया गया फिर द्वितीय स्थान को ओर अंत में प्रथम स्थान पाने वाले को पुरुस्कृत करने के लिए राजेंद्र और सुरभि को मंच पर बुलाया गया। राजेंद्र, सुरभि के साथ मंच पर गए जहां उनका परिचय मंच संचालक ने दिया फिर बोला...प्रथम स्थान पाने वाले प्रतिभागी को चुनना निरीक्षण कर्ताओ के लिए संभव नहीं था फिर भी उन्होंने एक नाम को चुना हैं। जो मात्र 0.50 अंक के अंतर से प्रथम स्थान को प्राप्त किया हैं। उस प्रतिभागी का नाम कमला बनर्जी हैं कमला मंच पर आए और हमारे मुख्य अथिति राजेंद्र प्रताप राना जी के हाथों पुरस्कार प्राप्त करें।
प्रथम पुरस्कार पाने वालो में खुद का नाम सुन कमला खुशी से उछल पड़ीं खुशी के आंसु कमला के आंखो से छलक आई। महेश और मनोरमा का आशीर्वाद ले'कर कमला मंच की ओर चल दिया। मंच पर पहुंचकर राजेंद्र और सुरभि के हाथों पुरस्कार लिया फिर अभिनंदन स्वरुप राजेंद्र और सुरभि का पैर छू आशीर्वाद लिया ओर अपने जगह पर लौट गई। कुछ वक्त बाद वार्षिक उत्सव को खत्म करने का ऐलान किया गया पहले मुख्य अथिति एक एक कर गए। उनको छोड़ने प्रिंसिपल कार तक साथ गए। राजेंद्र प्रिंसिपल से कमला के बारे में कुछ जानकारी लिया फिर चल दिया। इधर कमला भी मां बाप के साथ घर को चल दिया जाते हुए महेश ने कहा
महेश…प्रथम पुरस्कार पा'कर कैसा लग रहा हैं।
कमला…पापा आज मैं कितनी खुश हूं, बता नहीं सकती, जीवन में पहली बार मुझे पुरस्कार मिला हैं। पापा आप खुश हों न!
महेश…आज मैं बहुत खुश हूं मेरी तोड़ू फोड़ू बेटी आज वो कर दिखाया जिसकी उम्मीद सभी मां बाप करते हैं लेकिन नसीब किसी किसी को होता हैं। उन नसीब वालो में आज मैं भी सामिल हों गया।
मनोरमा...हां कमला आज तो हमारी खुशी की कोई सीमा नहीं हैं। हमारी खुशियों ने सारी सीमाएं तोड़ दिया हैं।
ऐसे ही बाते करते हुए कमला मां बाप के साथ घर पहुंच गए। उधर राजेंद्र और सुरभि की कार एक आलीशान बंगलों के सामने रुका दरवान उनको देख सलाम किया फिर गेट खोल दिया। ड्राइवर कार को अदंर ले गया कार के रुकते ही, राजेंद्र और सुरभि कार से उतरकर दरवाज़े तक गए दरवाज़े पर लगे घंटी को हिलाया, दो तीन बार हिलाने के बाद दरवजा एक नौकर ने खोला, राजेंद्र और सुरभि को देख सलाम किया फिर अंदर चले गए। अंदर आकार राजेंद्र बोला...पुष्पा कहा हैं दिख नहीं रहीं?
"मालिक छोटी मालकिन अपने कमरे में हैं आप लोग बैठिए, मैं मालकिन को बुलाकर लाती हूं।"
सुरभि…चंपा तुम रहने दो हम खुद जा'कर अपनी लाडली से मिल लेते हैं।
इतना कह दोनों पुष्पा के रूम की ओर चल दिया। दरवाजा बन्द देख सुरभि मुंह पर उंगली रख राजेंद्र को चुप रहने का इशारा किया फिर दरवाजा पीटने लग गईं। दरवाजे पर हों रही ठाक ठाक को सुन पुष्पा बोली...चंपा दीदी मुझे परेशान न करों मैं अभी पढ़ रहीं हूं। बाद में आना।
ये सुन दोनों एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिया ओर सुरभि फिर से दरवाजा पीटने लग गई। अबकी बार पुष्पा परेशान हों गई ओर "क्या मुसीबत है एक बार में सुनते ही नहीं" बोल किताबे रख उठकर दरवाजे की ओर चल दिया ओर दरवाजा खट से खोल दिया। मां बाप को सामने देख पुष्पा सिर को झटका दिया फिर आंखो को मला, इतना करने के बाद भी उसे बही सकल दिखाई दिया तो मुसकुराते हुए सुरभि के गले लग गई फिर बोली...मां आप कैसे हैं और कब आएं?
सुरभि…मैं ठीक हू मेरी बच्ची कैसी हैं कितनी दुबली हों गई हों कुछ खाती पीती नहीं थीं।
पुष्पा…कहा दुबली हों गई हूं। मैं तो पहले से ओर मोटी हों गई हूं वो आप मुझे बहुत दिनों बाद देख रही हों इसलिए मोटी लग रहीं हूं।
बेटी की बाते सून सुरभि मुस्कुरा दिया ओर पुष्प पापा के पास जा पापा के पाव छू आर्शीवाद लिया फिर बोला...पापा आप कैसे हों?
राजेंद्र...मैं जैसी भी हूं तुम्हारे सामने हूं देख लो!
इतना कह राजेंद्र कमर पर हाथ रखकर खड़ा हों गया। ये देख सुरभि और पुष्प मुस्करा दिया फ़िर पुष्पा दोनों का हाथ पकड़ कमरे के अन्दर ले'कर गई। कमरे में जहां तहां किताबे बिखरे पड़े थे। पुष्पा किताबो को समेट कर रखने लग गई। बिखरे किताबों को देख सुरभि बोली...तूने तो कमरे को पुस्तकालय (लाइब्रेरी ) बना रखा हैं। जहां तहां किताबे बिखेर रखी हैं।
इतना बोला सुरभि भी किताबे समेटने लग गई। मां को किताबे समेटते देख पुष्पा बोली...मां आप छोड़ो न मैं अभी रख देती हूं आप बैठो।
पुष्पा की बात माने बिना सुरभि किताबे समेटती रहीं। किताबों को समेट सही जगह रखने के बाद सुरभि और राजेंद्र बैठ गई फिर पुष्पा को दोनों के बीच बिठा लिया ओर तीनों मां बाप बेटी बातों में मग्न हों गए। पुष्पा घर के बचे सदस्यों का हल चाल पूछा फिर मां बाप को रेस्ट करने को कह पुष्पा दुबारा पढ़ने बैठ गई। सुरभि ओर राजेंद्र दूसरे रूम में जा फ्रेश हुआ फिर बैठे बैठे बाते करने लग गए बाते करते करते सुरभि बोली...बच्चो ने कितना अच्छा प्रोग्राम किया मुझे तो बहुत अच्छा लगा अपको कैसा लगा।
राजेंद्र….मुझे भी बहुत अच्छा लगा। आर्ट गैलरी में लगे चित्र मुझे सबसे अच्छा लगा। जिसे बच्चों ने कितनी परिश्रम से बनाया था।
सुरभि…मुझे भी बहुत अच्छा लगा। मुझे उन चित्रों में सबसे अच्छा चित्र वो लगा जिसे प्रथम पुरस्कार विजेता लडक़ी का kyaaa naammm हां याद आया कमला ने बनाई थीं।
राजेन्द्र…मूझे भी वो चित्र बहुत अच्छा लगा। जितनी खुबसूरत लडक़ी हैं उतनी ही खुबसूरत और मन मोह लेने वाली उसकी कल्पना हैं।
सुरभि…मुझे भी उस लडक़ी की सोच बहुत अच्छी लगी ओर बात चीत करने का तरीका भी बहुत सभ्य था। क्यों न हम उसके मां बाप से रिश्ते की बात करें?
राजेंद्र…मैं भी यही सोच रहा हूं कल सुबह चलते हैं कॉलेज से उसके घर का एड्रेस लेकर उसके मां बाप से मिलकर बात करते हैं।
सुरभि…ठीक हैं अब चलो खाना खा'कर पुष्पा से कुछ वक्त ओर बात कर लेते हैं।
दोनों पुष्पा के कमरे में गये उसे साथ ले'कर खाना खाने चल दिया। खाना खाते हुऐ तीनों बाते करते रहे। अचानक बिना सूचना दिए मां बाप के आने का कारण पूछा तो राजेंद्र ने आने का करण बता दिया फिर कल वापस जानें की बात कहा तो पुष्पा रूठते हुए बोली...आप दोनों को मेरी बिलकुल भी परवाह नहीं हैं मैं यह अकेले रहकर पढ़ाई कर रही हूं। मुझे आप सभी की कितनी याद आती हैं ओर आप हों की आते ही नहीं जब आते हों एक दिन से ज्यादा नहीं रुकते पर इस बार ऐसा नहीं होना चाहिए। आप दोनों को साफ साफ कह देती हू दो तीन दिन नहीं रुके तो अच्छा नहीं होगा hannnn।
सुरभि…अरे नाराज क्यों होती हैं। हमारा भी मन करता हैं कि हम तेरे पास रहे लेकिन बेटी दार्जलिंग का काम भी तो देखना होता है। वैसे भी कुछ दिनों में पेपर हैं उसके बाद तो तू हमारे साथ ही रहेगी।
पुष्पा…तब की तब देखेंगे लेकीन आप दोनों दो तीन दिन नहीं रुके तो अच्छा नहीं होगा। आप दोनों महारानी की बाते नहीं माने तो आप जानते ही हो महारानी की आज्ञा न मानने पर क्या होता है?
राजेंद्र…अच्छा अच्छा महारानी जी हम आप'की आदेश मान कर दो तीन दिन अपने लाडली के पास रूक जाएंगे। अब खुश हों न महारानी जी!
पुष्पा...महारानी बहुत खुश हुआ ओर आप दोनों को सजा न देखकर बक्श दिया।
पुष्पा की नाटकीय अंदाज में कहीं बाते सून राजेंद्र और सुरभि खिल खिला दिए फिर खाना खाने लग गए। इधर रावण देर से ऑफिस गया था इसलिए देर तक काम किया फिर चल दिया। एक आलिशान घर के सामने कार को रोका घर को बाहर से देखने पर ही जाना जा सकता हैं। यहां रहने वाले रसूकदार और शानो शौकत से लवरेज हैं। रावण को आया देख दरवान ने गेट खोला फ़िर रावण अदंर आ'कर दरवाजे पर लटकी घंटी को बजाया थोड़ी देर में दरवाजा खुला रावण को देख नौकर बोला...मालिक आप'के दोस्त रावण जी आए हैं। फिर रावण से बोला "अंदर आइए मालिक!
इतना बोल दरवाज़े से किनारे हट गया रावण अदंर गया अदंर का माहौल देख रावण बोल….दलाल कैसा हैं मेरे दोस्त। आज बडी जल्दी शुरू कर दिया क्या बात ?
दलाल…मैं ठीक हूं मेरे दोस्त बैठ?
रावण बैठ गया फिर दलाल एक ओर गिलास में रंग बिरंगा पानी डाला ओर रावण की ओर बडा दिया फिर बोला…तुझे देखकर लग रहा हैं तू बहुत प्यासा हैं ले इसे पीकर प्यास मिटा ले।
रावण मुस्कुराते हुए बोला…साले घर आए मेहमान की प्यास पानी से मिटाया जाता हैं न की शराब और कबाब से !
दलाल पहले मुस्कुराया फिर आवाज देते हुए बोला…सम्भू एक गिलास पानी लाना लगाता हैं आज मेरा दोस्त मेहमान बनकर आया हैं दोस्त नहीं!
ये सुन रावण मुस्कुरा दिया फ़िर गिलास उठाकर एक घुट में पी गया ओर चखना खाते हुए बोला…अरे तू मेरा जिगरी यार हैं तेरे साथ मजाक भी नहीं कर सकता। यार भाभी जी नहीं दिख रही हैं कहीं गईं हैं और बिटिया रानी कहा हैं वो भी नहीं दिख रहीं हैं। ही ही ही
दलाल गिलास हाथ में लेकर एक घुट पिया फिर बोला…तेरी भाभी गई है मायके ओर बेटी की बात पूछकर जले पर नमक क्यों छिड़क रहा हैं।
रावण आपने गिलास में शराब लोटते हुए बोला…जला तो तू खुद ही हैं किसने कहा था दामिनी भाभी ओर बच्ची को घर से निकाल दे।
दलाल... मैंने कब निकाला बो खुद ही घर छोड़कर गई हैं ओर तू मुझे ही दोष दे रहा हैं। वैसे जाकर अच्छा ही किया उससे अच्छा दूसरी लेकर आया हूं हां हां हां...।
रावण…आरे छोड़ उन बातों को क्या हुआ था कुछ कुछ मैं भी जनता हूं। मैं उस पर बात करने नहीं आया हूं बल्कि कुछ जरूरी बात करने आया हूं। तू सांभू को बाहर भेज दे फिर बताता हू।
दलाल…अरे यार संभू से किया डरना संभू मेरा विश्वास पात्र बांदा हैं। इसके मुंह पर लगा ताला इतना मजबूत है कि एक बार लग जाएं तो दुनिया में ऐसी चाबी ही नहीं बनी जो उसके मूंह के ताले को खोल सके
रावण…मैं जानता हूं संभू किसी के आगे मुंह नहीं खोलेगा फिर भी तू उसे बहार भेज दे मैं नहीं चाहता की इस बारे में किसी को भी पाता चले।
रावण संभू को आवाज दिया। सुंभू कीचन से आया फिर दलाल बोला…संभू अभी तू जा मुझे कुछ चाहिएं होगा तो मैं ख़ुद ही ले लूंगा।
संभू जी मालिक कहकर चला गया ओर बाहर जा'कर रुक गया फिर खुद से बोला... ये दोनों आज भी किसी षड्यंत्र पर बात तो नहीं करने वाले आगर ऐसा हुआ तो मैं कैसे जान पाऊंगा कैसे भी करके मुझे इनकी बाते सुनना होगा लेकिन सुनूं कैसे किसी रूम में बैठे होते तो सुन लेता पर दोनों तो बैठक में बैठे हैं। बैठक में होने वाले बातों को सुनने का कोई न कोई रस्ता ढूंढना होगा।
सुंभु रावण और दलाल के बीच होने वाले बातों को सुनने का जरिया ढूंढने लग गया लेकिन उसे कहीं से कहीं तक कोई रस्ता नहीं मिला तो पीछे बने सर्वेंट रूम में चला गया। इधर संभू के जानें के कुछ देर बाद रावण बोला…कल सुकन्या ने दादाभाई और भाभी को बात करते हुए सुन लिया जो बाद में मुझे बता दिया ओर जो सुकन्या ने सूना वो बाते…...।
रावण की बाते सून दलाल पहले तो चौका फिर खुद को संभाल लिया ओर बोला….तू ने तो उस गुप्तचर बृजेश को और उसके परिवार को मार दिया तो अब न साबुत मिलेगा न ही हमारा राज राना जी जान पायेंगे इसलिए डरने की जरूरत नहीं है। रहीं बात रघु की शादी की तो उसके बारे में मैं पहले से ही सोच रखा था। कभी ऐसा हुआ तो हमें क्या करना होगा?
रावण…बृजेश को मार दिया लेकिन बड़ी मुस्कील से उस दिन मैं थोडा सा भी लेट पहुंचा होता तो बृजेश सारा राज रघु को बता दिया होता। लेकिन मैंने बृजेश के परिवार को नहीं मारा उनको डरा धमका कर यहां से भागा दिया।
दलाल...कर दिया न मूर्खो वाला काम तुझे उसके परिवार को भी मार देना चाहिए था लेकिन अब जो हों गया सो हों गया अब मुझे मेरी बनाई हुई दूसरी योजना शक्रिय करना होगा।
रावण दोनों के गिलास में शराब लोटते हुऐ बोला…दूसरी कौन सी योजना बना रखी थीं जो तूने मुझे नहीं बताया।
दलाल…क्यों न रघु की शादी मेरी बेटी से करवा दे इससे हमारा ही फायदा होगा। हमारा राज, राज ही रहेगा और वसियत के मुताबिक इन दोनों के पहली संतान जब बालिग होगा तब मेरी बेटी वसियत को अपने नाम करवा लेगी मेरी बेटी के जरिए गुप्त संपत्ति पर हम कब्जा कर लेंगे।
रावण…देख तू मेरे साथ कोई भी चल बाजी करने की सोचना भी मत नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।
दलाल...मैं तेरे साथ छल क्यों करूंगा तेरे साथ छल करना होता तो मैं तुझे वसीयत का राज क्यों बताता।
रावण…मुझे तो यही लग रहा हैं तू मेरे साथ छल करने की सोच रहा हैं क्योंकि तेरी बनाई योजना से सब तेरे और तेरी बेटी के हाथ में आ जाएगा। मुझे क्या मिलेगा घंटा।
दलाल…घंटा नहीं माल मिलेगा माल ओर इतना माल मिलेगा की तू गिनते गिनते थक जाएगा। एक बात कान खोल कर सुन ले तू मेरा लंगोटिया यार हैं मैं तेरे साथ धोखे बाजी क्यो करूंगा तू ये बात अपने दिमाग से निकाल दे।
रावण…कुछ कहा नहीं जा सकता जब मैं भाई होकर भाई से दागा कर सकता हूं। तू तो मेरा दोस्त हैं तू क्यों नहीं कर सकता। मैं तेरा लंगोटिया यार कैसे हुआ बचपन में तेरा मेरा बनता ही कहा था हम तो जवानी में आ'कर दोस्त बने।
दलाल…तुझे लगाता हैं मैं तेरे साथ दगा करूंगा तो तू ही कोई रास्ता बता जिससे हमारा भेद भी न खुले और हमारा काम भी बन जाएं।
रावण…अभी तो मुझे न कुछ सूझ रहा हैं न कोई रास्ता नजर आ रहा हैं ।
दलाल…होगा तभी न नज़र आएगा अभी तो यहीं एक रास्ता हैं। मेरी बेटी की शादी रघु से करवा दिया जाएं जिससे हमारा भेद छुपा रहेगा ओर माल हमारे पास ही आयेगा।
रावण…मन लिया तेरी बेटी की शादी रघु से करवा दिया लेकिन फिर भी एक न एक दिन हमारा भेद खुल ही जाएगा क्योंकि तू दादाभाई को जानता हैं वो जीतना शांत दिखते हैं उससे कही ज्यादा चतुर हैं दादाभाई आज नहीं तो कल कुछ भी करके हम तक पहुंच जायेंगे फिर हमारे धड़ से सिर को अलग कर देंगे।
दलाल…तू सिर्फ नाम का रावण हैं दिमाग तो तुझमें दो कोड़ी की भी नहीं हैं। मेरी बेटी की शादी इसलिए करवाना चाहता हु कि कभी अगर हमारा भेद खुल भी जाए तो मैं मेरी बेटी के जरिए उन पर दवाब बनाकर खुद को और तुझे बचा सकू।
रावण…ओ तो ये बात हैं तेरा भी जवाब नहीं हैं कल किया होगा उसके बारे में आज ही सोच कर योजना बना लिया मस्त हैं यार।
दलाल…मस्त कैसे हैं तुझे तो लगता हैं मैं तेरे साथ धोका करके सब अकेले ही गटक जाऊंगा और डकार भी नहीं लूंगा।
रावण…गटक भी गया तो मैं तेरे हलक में हाथ डाल निकाल लुंगा। ही ही ही तुझे जो ठीक लगें कर ओर मुझे बता देना। चल एक दो पैग ओर पिला फिर घर भी जाना हैं। बहुत देर हों गया हैं।
हंसते मुसकुराते ओर मस्कारी करते हुए दो तीन पैग ओर पिया फिर रावण घर को चल दिया रावण के जानें के बाद दलाल बोला...मेरे दिमाग में क्या चल रहा हैं। रावण तू भी नहीं जनता जिस दिन तुझे पाता चलेगा तू सदमे से ही मार जायेगा। चलो अब चल कर सोया जाए दामिनी से कल बात करता हू नहीं मानी तो कुछ भी करके मानना पड़ेगा।
इतना बोला दलाल लड़खड़ाते हुए जाकर सो गया इधर रावण भी नशे में धुत घर पहुंचा थोड़ा बहुत खाना खाया ओर सो गया। कलकत्ता में राजेंद्र और सुरभि देर रात तक पुष्पा के साथ बाते करते रहे फिर जाकर सो गए।
आज के लिए इतना ही आगे की कहानी जानेंगे अगले अपडेट से साथ बाने रहने के लिए आप सभी रीडर्स को बहुत बहुत धन्यवाद।
Update 6
To ye wajah thi jiske chalte rajendra itna pareshan tha.... raghu ki shaadi kisi bhi tarah se naa ho paaye iska pura kaaryakram kiya gaya tha... Us bichare raghu ke character ko kharab karne tula hai taaki uski shaadi hi na ho.....Rajendra aur surbhi mamle tah tak nahi pahunch pa rahe the aur naa hi ye decide kar pa rahe the ki aakhir ye sajish rach koun raha hai... mukhbiro ke mutabik to ghar mein rehnewalo mein se hi koi hai lekin rajendra aur ab surbhi dono hi is pareshaani mein fanse the ki ghar mein rehne wale bhala kyun sajish karenge...
Lekin abhi ek kadwi sachhayi se ye dono hi anjaan hai... Wo ye ki ghar ki bhedi hi lanka dhaye...ye sajish karne wala koi aur nahi balki ravan, sukanya aur apsyu hi hai...
waise surbhi ko yun halke mein nahi leni chahiye sukanya ko... Sukanya actually mein aayi thi chori chup ke un dono ki baatein sunne..
Khair.... to us gupt sampatti pe bhi nazar hai ravan ki...
Well shaandar update, shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan aur sath hi dilkash kirdaaro ki bhumika bhi... Khas Kar kamla..
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills![]()
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Ye apasyu tu ek number ka harami lag raha hai saala in garibo ki bebasi ka fayda utha kar unko loot raha hai yaha dekha jaye to galti gaon walo ki bhi hai agar wo log bhi ek jut hokar sab planning karkar inka samna kar sakte hai but baat jab kabhi ghar ki bahu betiyo ki izzat ki atey hai to daar bhi lagta hai but kya humesha wo in apasyu jaise logon se apni bahu betiyo ko bacha ke rakh sakte hai.
Rajendra ji lag to bhale admi rahe hai aur unka beta raghu to aone Baap se darta ya ye kahe ki unki izzat karta hai jo unki ek unchi awaz se hi kapne laga wo to bhala ho Maa ka jisne uski side lekar rajendra ji ko phatkar lagayi.
Overall Awesome update.
Itna shandaar aur motivated revo diya iske liye bahut bahut shukriyaUpdate 7
Kya baat hai.... Sukanya to chupi rustam nikli ek tarah se... kirdaar to kirdaar yaha tak ki readers ko bhi bhanak tak lagne nahi diya ki actually mein uski soch kya hai.... main to ise kamini lalachi samajh rahi thi, lekin ye to bahot hi suljhi huyi ..nek dil aurat nikli.... wo kehte hai na ki har baar aankhon dekha sach nahi hota...Sukanya kabhi buri na thi aur na hi uski soch buri thi...Sukanya to sach me bilkul apne naam ki tarah hai...par ye sukanya ravan ke saamne uski hi tarah chaalbaaz ,dhokhebaaz aur lalchi hone ki acting kyun kar rahi thi... aisi kya majboori thi jiske chalte apne pati ke paksh le rahi hai...
Btw ek baat aur khatak rahi hai...mana ki pati ke saamne itni achhi banke rehna uski majboori hai... lekin chori chupe surbhi aur Rajendra ki baatein kahe sunne gayi thi wo... Naa to us waqt ravan ghar pe tha aur naa hi usne sukanya ko kahke gaya tha ki jaake unki baatein suno, to kyun taak jhank karne gayi thi wo....
Kahi sukanya ne jaan buj kar undono ki baatein sunne to nahi gayi thi.... aur jo baatein suni thi kahi na kahi sukanya ko laga ho ki wo baatein kaafi hai abhi ke liye apne pati pe lagam lagane ke liye... isliye raat ko jaanbujhkar pati saamne wo sari baatein bata di taaki ye jo sajish rach raha tha ravan, uspe kaam karna bandh kar de...
Shayad sukanya aisa isliye kiya taaki temporarily hi sahi lekin aapne pati ki sajishon pe pani fer di...
Well shaandar update, shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan aur sath hi dilkash kirdaaro ki bhumika bhi... Khas Kar kamla..
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Update 8
dinning table pe nasta karte waqt to wohi pe sukanya bhi thi lekin apsyu ko daat padte dekh sirf surbhi hi apsyu ke paksh leke baaki sabko daatne se mana kar rahi thi, even badi maa nahi balki sagi maa ki tarah ushe samjha rahi thi, itne pyar se khana khila rahi thi...
Mana ki apsyu had se zyada bigda hua hai, lalchi hai lekin kam se kam surbhi ki mamta anadar nahi karna chahiye kabhi bhi... baakiyon ke liye uski soch kuch bhi ho, lekin kam se kam surbhi ko dil se respect dena chahiye ushe...
Waise apsyu se bhi kya hi ummeed lagaye koi. ..
Gyan ka paath dene wale ,sahi disha dikhane wale shikshak ya guru pe jo insaan haath uthaye usse aur koi ummeed bhi nahi laga satke koi bhi... ek college ke principal ki reputation aur ahmiyat kya hai ye sabhi jaante hai... unpe hi hath utha diya apsyu ne... Khair ye jo mahapaap kiya hai isne apne dosto ke sath milkar, ek na ek din saza jarur milegi in logo ko,wo bhi sut samet ...
wohi apsyu se ulat raghu ...jisse ek baar uske pita Rajendra ne keh diya wo baat jaise uske patthar ki lakirr ho..
hmmm.. so un bachho ko padhane ke udasya ke sath sath ek aur udasya ye bhi tha ki raghu khud pe sayam rakhe, jawaab dene ka tarika sikhe...Rajendra raghu ko duniydari ki sikh bahot hi saadhaaran bar unique tarkike de rahe hai ..
Udhar dusri taraf surbhi Rajendra ke paas calcutta jaane wali hai college function attend karne, sath hi waha rahkar study kar rahi apni beti se bhi milne wali hai itne dino baad..
Well shaandar update, shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan aur sath hi dilkash kirdaaro ki bhumika bhi... Khas Kar kamla..
Let's see what happens next
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Update 9
gaur ki jaaye to ek tarah se ye update ke 60% to us harami apsyu ki beijjati par hi adhaarit hai
Pehle bhari class mein dimple ne ek nahi do nahi, teen bhi nahi balki chaar chaar thappad chipka di uske gaal pe aur baaki rahi sahi kasar us teacher ne puri kar di uski ijjat utar ke
oh to ye dimple bhi ghat ghar ki pani pine walo mein se hai.. Apsyu kya ushe jaal mein Fansayega ulta dimple hi usko apne pyar k jaal mein fanshake faida uthane wali hai
dusri taraf calcutta mein....
College event mein super angry girl kamla bhi participate kar rahi thi.. btw sach mein bahot hi bhavnatmak aur badi hi khubsurat tasveer banayi hai usne jishe dekh har koi emotional ke sath sath mantrmugdh ho gaye ...
in fact surbhi ki aankhon se to aansu nikal aaye us tasveer ko dekh...
Well shaandar update, shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan aur sath hi dilkash kirdaaro ki bhumika bhi... Khas Kar kamla..
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills![]()
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Bata dunga aaj kal nain guruji vapas aa chuke hai too yang too old story par update de rahe haiNaina ka naam le lijiyega... bolna ki naina ki kehne par apsyu villain bana![]()
Mod ho to jitna bhi revo do chup chap kaam chlana padegaRevoapne ko itna hi ata h