Update - 47
भाभी को साथ लिए पुष्पा बैठक में पहुंच गई। मां और चाची की पूरी बाते तो नहीं सुनी पर चाची के अंत में बोली बाते सुन लिया था। इसलिए पूछा था। बेटी और बहू को देखकर सुकन्या पुष्पा की बातों का जवाब देते हुए बोली... हैं कुछ बाते तुम बताओं ननद भाभी की बाते हों गई।
पुष्पा भाभी को साथ लिए जा'कर खाली सोफे पर बैठ गई फ़िर बोलीं...हां हों गई।
सुरभि... बड़ी जल्दी बाते खत्म हों गई। चलो अच्छा हुआ अब ये बताओं बहू चीखा क्यों था और किन बातों को सोचकर वावलो जैसी मुस्कुरा रहीं थीं।
पुष्पा... मां वो बाते बाद में बता दूंगी पहले आप ये बताओं मैं आप'की क्या लगती हूं?
बेटी का ऐसा सवाल पूछना सुरभि को खटका सिर्फ सुरभि ही नहीं सुकन्या को भी खटका इसलिए अचंभित भाव से पुष्पा की ओर देखते हुऐ बोली...पुष्पा ये कैसा सवाल है? तुम नहीं जानती तुम मेरी क्या लगती हों?
पुष्पा... मां मैं जानती हूं। फ़िर भी आप'के मुंह से सुनना चाहती हूं।
इतना सुनते ही सुरभि आगे कुछ बोलती उससे पहले कमला बोलीं... ननद रानी….।
भाभी को इससे आगे कुछ बोलने ही नहीं दिया। बीच में रोककर पुष्पा बोलीं... भाभी अभी आप'के बोलने का वक्त नहीं आया जब आप'से पूछा जाए तब बोलना। फिर सुरभि कि ओर देखकर बोली... मां बोलों न चुप क्यों हों?
सुकन्या... हुआ क्या पहले ये तो बताओं?
सुरभि... हां पुष्पा ऐसा क्या हुआ? जो आते ही ऐसा सवाल पूछने लग गईं।
पुष्पा... कुछ खास नहीं आप बस इतना बताओं! मैं आप'की क्या लगती हूं , फिर बताती हूं क्या हुआ?
सुरभि को लगा शायद कोई बात हों गई होगी इसलिए पुष्पा ऐसा सवाल पूछ रही हैं। इसलिए सुरभि बोलीं…सभी जानते हैं। मैंने तुम्हे जन्म दिया हैं। इस नाते तुम मेरी बेटी हों। ये बात सभी जानते हैं।
पुष्पा...hunuuu ठीक कहा अपने! अब आप ये बताओं, अगर मैं अपने मन की कुछ करू तो क्या आप मुझे टोकने वाले हों?
सुरभि... तुम ऐसा क्या करने वाली हों? जिसके लिए पहले से ही पूछ रहीं हों।
पुष्पा...Oooo hooo मां बताओ ना।
सुरभि... ये तो इस बात पर निर्भर करता हैं। तुम करने क्या वाली हों? अगर तुम्हारे कुछ करने से हमारे मन सम्मान में कोई आंच न आए तो मैं तुम्हें टोकने वाली नहीं हूं।
पुष्पा... मां ये समझलो मैं कही घूमने जाना चाहती हूं तो क्या आप मुझे जानें से माना करने वाले हों।
सुरभि...humuuu अकेले जाना चाहा तो माना कर सकती हूं अगर किसी के साथ जा रहीं हों तो किसके साथ जा रही हों वो शख्स कौन हैं? भरोसे मंद हुआ तो जानें से नहीं रोकूंगी ।
पुष्पा... मां अब ये बताओं भाभी से आप'का क्या संबंध हैं।
सुरभि... पुष्पा आज तुझे क्या हों गया? जो अनाप शनाप सवाल पूछ रहीं हैं।
सुकन्या...दीदी लगता है आज महारानी जी का दिमाग फीर गया हैं जो बिना सिर पैर के सवाल पूछ पूछ कर हमें परेशान कर रहीं हैं।
पुष्पा... मां मैं अनाप शनाप सवाल नहीं बिल्कुल जायज़ सवाल पूछ रहीं हूं। सुकन्या की ओर देखकर बोला... चाची मेरा दिमाग सही ठिकाने पर हैं और मेरा सवाल सिर पैर वाला है बस आप समझ नहीं पा रहीं हों।
सुकन्या…pushpaaaa...।
सुकन्या को आगे बोलने से रोककर सुरभि बोलीं…छोटी रूक जा पहले मुझे पुष्पा के सवाल का जवाब दे लेने दे इसके बाद जो तू बोलना चाहें बोल लेना। पुष्पा की ओर देखकर बोला… हां तो, पुष्पा तुम जानना चाहती हों न बहू के साथ मेरा क्या संबंध हैं। तो सुन कमला मेरे बेटे की पत्नी हैं इस नाते मेरी बहू हुई पर ये रिश्ता सिर्फ़ दुनिया वालों के नजर में हैं। जैसे तू मेरी बेटी हैं वैसे ही बहू, मेरी बहू, बहू नहीं बल्कि बेटी हैं।
पुष्पा के बोलने से माना करने के बाद कमला सिर्फ चुप चाप बैठे तीनों की बाते सुन रहीं थीं। सास की अंत में कहीं बाते सुनकर एक पल को कमला की आंखें डबडबा गईं पर कमला ने खुद को संभाल लिया और रूहानी शांति देने वाली एक मुस्कान बिखेर दिया। मां की बाते सुनने के बाद पुष्पा भाभी की ओर देखकर बोली... सुना भाभी मां ने क्या कहा। इसके बाद आप क्या कहना चाहोगी?
ननद के पूछे गए सवाल का कमला कुछ जवाब दे पाती उससे पहले सुरभि बोलीं... पुष्पा क्या हुआ तुम दोनों में किसी बात को लेकर कोई अनबन हुआ है?
पुष्पा... नहीं मां वो क्या हैं की भाभी को आज भईया घूमने ले जाना चाहते थे। कहीं आप बुरा न मान जाओ इसलिए भाभी ने माना कर दिया और भईया को ऑफिस भेज दिया।
बहू की मनसा जानकर सुरभि मन ही मन गदगद हों उठी और गौरांबित अनुभव करने लग गई कि एक ऐसी लड़की को बहू बनकर घर लाई जो बिना उसकी अनुमति के कहीं जाना नहीं चाहती हैं। ये ख्याल मन में आते ही सुरभि मन ही मन मुस्कुरा दिया और सुरभि अब तक पुष्पा द्वारा पूछे गए सवाल का आशय समझ गईं कि पुष्पा अपने सवालों के जरिए क्या जानना चाहती थी। इसलिए सुरभि बोली...पुष्पा इसके लिए तुम्हें मुझसे इतने सारे सवाल पूछने की जरूरत ही नहीं था। तुम सीधे सीधे पूछ लेती कि रघु के साथ बहू कहीं जाना चाहती हैं तो क्या मैं बहु को जानें देता या फिर माना कर देता।
मां के बातों का जबाव पुष्पा दे पाती उससे पहले कमला बोलीं... मम्मी जी मैने कहा कहीं जानें की बात कहीं थीं। वो तो आप'का बेटा खुद से ही मुझे घूमने लेकर जा रहें थे।
पुष्पा…भईया के साथ घूमने जानें का मन आप'का भी किया होगा। अगर ऐसा न हुआ होता तो आप यूं ख्यालों में खोए वावलों की तरह मुस्कुरा ना रहें होते।
ननद द्वारा मन की बाते बोल देने पर कमला सिर झुका कर मंद मंद मुस्कुराने लग गईं। बहू के सिर झुका लेने से सुरभि भी बहू की मन की बाते जान गई इसलिए बोलीं...बहू मन था तो रघु के साथ घूमने चली जाती मै थोडी न तुम्हें रोकती ओर रोकती भी क्यों तुम तो अपने पति के साथ घूमने जा रहीं थीं।
पुष्पा... मां कैसे चली जाती भाभी को इस बात का भी तो ख्याल रखना हैं कि उन्होंने अपने मन का कुछ किया तो लोग क्या सोचेंगे, भाभी बिल्कुल भईया की तरह कुछ भी करने से पहले कुछ सोचे या न सोचो पर इतना जरूर सोचते हैं कि उन्होंने अपने मन का क्या तो लोग क्या सोचेंगे, हैं न भाभी।
कमला हल्का सा मुस्कुराया फिर बोला... ननद रानी शादी से पहले इतना नहीं सोचती थी कि मेरे कुछ करने से लोग क्या सोचेंगे लेकिन अब वक्त बदल गया हैं मेरे कंधे पर दो परिवार की जिम्मेदारी हैं एक मायके का दूसरा ससुराल का इसलिए मुझे कुछ भी करने पहले दोनों और से सोचना पड़ता हैं।
एक बार फिर सुरभि का मन हर्ष से भर गया ओर मन ही मन बोली... बहू आज एक बार फ़िर तुमने मुझे गौरांवित होने का मौका दिया मैंने तुम्हारे बारे में जीतना सोचकर मेरी बहू चुना था। तुम मेरे सोच को सोलह आना सच सिद्ध कर रहीं हों।
सुकन्या मन में बोलीं... सही कहा बहू शादी के बाद जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं। तुम सभी जिम्मेदारियों का वहन सही तरीके से करना मैं प्रभु से प्रार्थना करूंगी की तुम बेटी, बहू, पत्नी और एक मां का कर्तव्य निर्वहन करने में समर्थ प्राप्त कर सको। मेरी तरह एक जिम्मेदारी निभाने के लिए दूसरे जिम्मेदारियों से मुंह न मोड़ना।
सुरभि और सुकन्या ख़ुद से बाते करने में लगीं रहीं किंतु भाभी की बाते सुनकर पुष्पा बोलीं...भाभी आप इतनी जिम्मेदारियों का बोझ कैसे उठा पाओगी मुझे तो डर हैं कहीं आप इन जिम्मेदारियों के बोझ तले दबकर खुद का जीवन जीना न भूल जाओ।
कमला...ummmm ऐसा हों भी सकता हैं अगर ऐसा हुआ तो मुझे खुशी होगी कि मैंने अपने जिम्मेदारियों का निर्वहन ठीक ढंग से कर पाया।
बहू की बाते सुनकर सुरभि खुश हुईं पर मन के एक कोने में यहां भी चल रहा था कि ये फूल सी बच्ची अपने जिम्मेदारी को बखूबी समझता हैं और उसे निभाने के लिए वचनवध हैं। कहीं इसकी यहीं वचनवधता उसके जीवन में आने वाली खुशियों को छीन बिन्न न कर दे। इसलिए सुरभि बोलीं... बहू तुम्हारी बातें सुनकर अच्छा लगा कि तुम अपने जिम्मेदारियों को लेकर सजग हों। हमारे जीवन में जिम्मेदारियां कभी कम नहीं होगी बल्कि समय के साथ ओर बढ़ता जायेगा। लेकिन हमें इस बात का भी ध्यान रखना हैं कि जिम्मेदारियों के बोझ तले हमारे जीवन में आने वाली हसीन पल दबकर न रह जाएं। इस बात का हमेशा ध्यान रखना।
कमला मुस्कुराते हुऐ हां में सिर हिला दिया। ये देखकर सुकन्या बोलीं... सिर्फ हां थोडा खुलकर बोलों या फ़िर हमारे सामने बोलने से तुम्हें भय लगता हैं।
कमला... नहीं छोटी मां, मां ने सिखाया था बड़ो के सामने सिर्फ़ उतना ही बोलों जीतना जरूरी हों।
सुरभि…समधन जी ने तुम्हें अच्छी बातें सिखाया हैं। अब जरा इतना बता दो क्या तुम समधन जी से भी हां हूं में बात करती थीं।
कमला... नहीं मम्मी जी मैं तो मां से इतनी बाते करती थी, इतनी बाते करती थीं कि वो परेशान होकर मेरा मुंह दवाके पकड़ लेती थी।
मां की बात बोलते ही कमला के जहन में मां के साथ बिताए यादें ताजा हों गई। इसलिए सिर झुका लिया। सिर झुकाते ही आंखे बह निकली, आंखो को मिचकर आसूं बहने ने रोकना चाही पर बहते पानी को जीतना भी रोकना चाहो वो रुकती नहीं, कमला की कोशिशें भी निराधार रहा वो जीतना आंसू बहनें से रोक रहीं थीं उतना ही बहता जा रहा था। अंतः साड़ी का अंचल उठाकर कमला ने बहते आंसू को पोंछ लिए। कमला के इस हरकत पर सुरभि, पुष्पा और सुकन्या की नजर पड़ गया तो पुष्पा बोलीं... भाभी क्या हुआ?
सुरभि समझ गई क्या हुआ होगा इसलिए उठकर कमला के पास जाकर बैठ गई ओर उसके कंधे पर हाथ रख दिया। कांधे पर स्पर्श का आभास होते ही कमला उस ओर देखा जिस कंधे पर सुरभि ने हाथ रखा था। बस फ़िर क्या "मां" शब्द मुंह से निकला ओर सास से लिपटकर फुट फुट कर रोने लगीं। सिर सहलाते हुए "नहीं रोते, नहीं रोते" बोलती रहीं पर कमला का रोना रुक नहीं रहीं थीं। तो सुरभि बोलीं... ये क्या बहू? तुम समधन जी को बातों से परेशान करती थीं और मुझे रो रोकर परेशान कर रहीं हों। मैंने तो सोचा था पार्टी के बाद तुम्हें मायके भेजूं दूंगी। लेकिन कह देती हूं तुम ऐसे रोती रहीं तो मायके कभी नहीं भेजने वाली।
सास के इतना बोलते ही कमला नजर उठकर सास की ओर ऐसे देखा जैसे जानना चाहती हों "क्या आप सही बोल रहीं हों" बहू के आंखो की भाषा समझकर सुरभि भी पलके झुकाकर हां का इशारा किया। सास की सहमति पाकर कमला के रूवासा चहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। ये देखकर सुरभि बोलीं... बहू या तो रो लो या फ़िर मुस्कुरा लो, दोनों कम एक साथ करोगे तो कैसे चलेगा।
सास की बाते सुनकर कमला समझ नहीं पाई कि अब क्या करें पर उसी वक्त दरवाजे से आवाज आया... ये किया भाभी आप रो रहीं हों। मैंने तो सोचा था आज भाभी के हाथ का बना हुआ खाना खाऊंगा लेकिन आप ऐसे रोते हुए खाना बनाया तो खाने का स्वाद खराब हों जायेगा।
बोलने वाला अपश्यु था। वो जब बैठाक के द्वार तक आया। तब उसने देखा कमला सुरभि से लिपट कर रो रहीं हैं और सुरभि उसे समझा रहीं हैं। बड़ी मां की बाते सुनकर आपश्यु मन ही मन बोला... भाभी तो मायके को याद करके रो रहीं हैं। मुझे कुछ करना चाहिए जिसे भाभी मुस्कुरा दे, रोते हुऐ भाभी बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती हैं।
अपश्यु की बाते सुनकर कमला रोना भूलकर एक टक देवर को देखने लगीं और समझने की कोशिश करने लगीं देवर ने ऐसा कह तो कहा क्यों ओर पुष्पा बोलीं... ओ मेरे भुक्कड़ भईया आप'को खाने के अलावा कुछ और सूझता हैं। देखो खुद को खां खांकर मोटा हों गए हों।
अपश्यु जाकर बैठते हुए बोला… अरे कहा मोटा हुआ। देख कितना दुबला पतला हूं। लेकिन हां भाभी ने स्वादिष्ट पकवान बनाकर खिलाया तो तेरी ये इच्छा भी पूरा हों जायेगा।
ननद और देवर की बाते सुनकर कमला मुस्कुरा दिया फिर मुस्कुराते हुऐ बोलीं... अरे ननद रानी क्यों मेरे अच्छे खासे तंदरुस्त दिखने वाले देवर को मोटा कह रहें हों।
भाभी को मुस्कुराते देखकर अपश्यु बोला... ये हुई न बात! अब बोलो भाभी अपने देवर को खाना बनाकर खिलाओगी?
कमला... हां बिलकुल बनाऊंगी और अपने हाथ से परोसकर खिलाऊंगी।
अपश्यु... ध्यान रखना नमक ज्यादा न हों जाएं नहीं तो खाने का स्वाद बिगड़ जायेगा।
कमला... मैं तो खाने में नमक स्वादानुसार डालती हूं फिर नमक के कारण खाने का स्वाद क्यों खराब होगा।
अपश्यु... माना की आप खाने में नमक नाप तोलकर डालती हों। लेकिन आप रोते हुए खाना बनाया तो आपके आंसुओ का नमक खाने में मिलकर खाने में नमक की मात्रा को बड़ा देगा।
देवर की बाते सुनकर पहले तो कमला समझ नहीं पाई पर बाद में जब समझ आया तो खिलखिला कर हंस दिया। सिर्फ कमला ही नहीं वहां मौजूद सभी हंस दिया। कुछ वक्त तक हंसने के बाद कमला बोलीं... देवर जी आपको अगर लगता हैं खाने में नमक ज्यादा हों जायेगा तो मैं आज खाने में नमक ही नहीं डालूंगी।
आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले भाग से, यहां तक साथ बने रहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

Shandar update hai bhai
Ek saas ka apni bahu ko yu beti ke saman aadar or adhikar dena dil ko chu gaya.... sukanya or surbhi dono ka hi apni bahu ke prati beti jaisa swabhav ek naye or behtar samaj banane ki or ek acha prayas hai....
Kamla, pushpa, or apshyu ke beech itna manmohak drishya pariwar ke swasth or khushhal vatavaran ko darshata hai....
Bhagwan kare in sab ka ek dusre ke prati ye pyar nirantar bana rahe....
Agle bhag ki pratiksha rahegi bhai