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अपडेट.......《 56 》
अब आगे,,,,,,,,
उधर मंत्री दिवाकर चौधरी के आवास पर।
अशोक मेहरा व अवधेश श्रीवास्तव ड्राइंग रूम में बैठे थे। सामने के सोफे पर एक ब्यक्ति और बैठा हुआ था जो कि अवधेश के साथ ही आया हुआ था। उसका नाम हरीश राणे था। हरीश राणे पेशे से एक प्राइवेट डिटेक्टिव था। उसने बाकायदा अपनी एक अलग डिटेक्टिव एजेंसी खोली हुई थी तथा उसके अंडर में काफी सारे लोग काम करते थे। अवधेश श्रीवास्तव और हरीश राणे की मुलाक़ात कई साल पहले किसी केस के सिलसिले पर ही हुई थी। तब से इन दोनो के बीच यारी दोस्ती का गहरा नाता था।
हरीश राणे बहुत ही क़ाबिल और तेज़ दिमाग़ का डिटेक्टिव था। उसके बारे में कहा जाता है कि उसने अब तक जिस केस को भी अपने हाॅथ में लिया उसे बहुत ही कम समय में साल्व किया था। कदाचित यही वजह है कि आज के समय में हरीश राणे एक केस के लिए अच्छी खासी फीस चार्ज़ करता था। फीस तो उसकी होती ही थी किन्तु उसके आने जाने का खर्चा पानी भी उसे अलग से देना पड़ता था। ख़ैर, इस वक्त ये तीनों ही ड्राइंग रूम में बैठे चौधरी के आने का पिछले एक घंटे से इन्तज़ार कर रहे थे।
चौधरी के पीए ने बताया था कि चौधरी साहब अपनी रखैल सुनीता के साथ कमरे में हैं। अवधेश व अशोक ये जान कर हैरान रह गए थे कि चौधरी आज सुबह सुबह ही सुनीता को भोगने में लग गया था। आम तौर पर ऐसा होता नहीं था, और ना ही चौधरी इस क़दर सुनीता का दीवाना था। मगर जाने क्या बात थी कि आज सुबह सुबह ही चौधरी सुनीता के साथ कमरे में बंद था। उसे ये तक होश नहीं था कि हालात कितने गंभीर थे आजकल।
अवधेश श्रीवास्तव अपने डिटेक्टिव दोस्त हरीश राणे को चौधरी से मिलवाने लाया था। वो चाहता था कि चौधरी राणे से मिल कर अपने तरीके से उसे केस के सिलसिले में बताएॅ और आगे का काम शुरू करने की परमीशन दे। ख़ैर एक घंटे दस मिनट बाद चौधरी और सुनीता एकदम से फ्रेश होकर ड्राइंग रूम में आए। उन दोनो के हाव भाव से बिलकुल भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वो दोनो बाॅकी सबकी जानकारी के अंदर क्या गुल खिला कर आए थे। बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही न हो।
"माफ़ करना यारो।" दिवाकर चौधरी ने सोफे पर बैठते हुए तथा सबकी तरफ नज़रें दौड़ाते हुए कहा___"तुम सबको इन्तज़ार करना पड़ा।"
"कोई बात नहीं चौधरी साहब।" अवधेश ने मजबूरी में ही सही किन्तु मुस्कुराते हुए कहा___"इतना तो चलता है। ख़ैर जैसा कि मैने आपसे ज़िक्र किया था तो मैं अपने साथ अपने डिटेक्टिव दोस्त हरीश राणे को लेकर आया हूॅ। आप इनसे मिल लीजिए और केस से संबंधित बात कर लीजिए।"
"ओह हैलो राणे।" चौधरी ने हरीश की तरफ देखते हुए किन्तु तनिक मुस्कुराते हुए कहा___"भई तुम अवधेश के दोस्त हो तो हमारे भी दोस्त ही हुए। इस लिए हमसे किसी भी बात के लिए संकोच या झिझक करने की ज़हमत मत उठाना।"
"जी बिलकुल चौधरी साहब।" हरीश राणे ने भावहीन स्वर में कहा___"वैसे भी हमारे पेशे में संकोच या झिझक के लिए कोई जगह नहीं होती है। ख़ैर आप बताएॅ मेरे लिए क्या आदेश है? आपके लिए कुछ कर सकूॅ ये मेरा सौभाग्य ही होगा।"
"सारी बातें तो तुम्हें अवधेश ने बता ही दी होंगी।" चौधरी ने कहा___"और शायद ये भी समझा दिया होगा कि तुम्हें करना क्या है?"
"जी बिलकुल।" हरीश राणे ने कहा___"अवधेश ने मुझे इस केस से संबंधित सारी बातें बताई हैं। इसके बावजूद आप अगर अपने मुख से एक बार फिर से इस बारें में मुझे बता देंगे तो ज्यादा बेहतर होगा।"
"दरअसल हालात ऐसे हैं।" दिवाकर चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"कि हम सब कुछ कर गुज़रने की क्षमता रखते हुए भी कुछ कर नहीं सकते। अवधेश ने ही सुझाव दिया था कि इस काम में हमारे अलावा एक डिटेक्टिव ही बेहतर तरीके से कोई कार्यवाही कर सकता है। हमें भी लगा कि आइडिया अच्छा है। ख़ैर, हम सिर्फ ये चाहते हैं कि जिस शख्स की वजह से हम कुछ कर नहीं पा रहे हैं उसे तुम हमारे सामने लाकर खड़ा कर दो। किन्तु इस बात का बखूबी और सबसे पहले ख़याल रहे कि उसे इस बात की भनक भी न लगे कि हमने तुम्हारे रूप में कोई जासूस उसके पीछे लगा रखा है। क्योंकि अगर उसे तुम्हारे बारे में पता चल गया तो तुम सोच भी नहीं सकते हो कि तुम्हें हायर करने के लिए तथा उसके पीछे लगाने के लिए हमें इसका कितना संगीन अंजाम भुगतना पड़ सकता है। ख़ैर, हम ये चाहते हैं कि उस शख्स के पास से वो सारे वीडियोज तुम हमें वापस लाकर दो और उसकी कैद से हमारे बच्चों को भी सही सलामत यहाॅ लेकर आओ। उसके बाद हम खुद देख लेंगे उस बास्टर्ड को कि वो खाली हाॅथ हमारा क्या उखाड़ लेता है?"
"ठीक है चौधरी साहब।" हरीश राणे ने कहा___"मैं आज और अभी से इस काम में लग जाता हूॅ। हलाॅकि इस काम में कोई बहुत बड़ी बात नहीं है जिसके लिए आपको किसी डिटेक्टिव की ज़रूरत पड़ती, मगर चूॅकि आप उस शख्स के द्वारा पंगू बने हुए हैं इस लिए खुद कुछ कर नहीं सकते हैं। अतः आपको कोई ऐसा ब्यक्ति चाहिए जो आपके लिए ये सब इस तरीके से करे कि खुद डिटेक्टिव को भी पता न चल पाए कि वो क्या कर गया है?"
"बिलकुल, तुम सही समझे राणे।" चौधरी ने प्रभावित नज़रों से हरीश को देखते हुए कहा___"तुम खुद समझ सकते हो कि जब तक उसके पास हम लोगों के वो वीडियोज हैं तब तक हम में से कोई भी कोई ठोस ऐक्शन नहीं ले सकता उसके खिलाफ।"
"आप बेफिक्र रहिए चौधरी साहब।" हरीश राणे ने कहा___"बहुत जल्द आप इस बेबसी के आलम से उबर जाएॅगे और फिर आप स्वतंत्र रूप से कुछ भी करने की हालत में भी आ जाएॅगे।"
"आई होप कि ऐसा ही हो।" चौधरी ने कहा___"हम चाहते हैं कि ये काम जितना जल्दी हो सके तुम कर डालो। क्योंकि हमसे अब और ज्यादा ये सब झेला नहीं जा रहा है। अपनी फीस के रूप में जितना चाहो रुपया ले सकते हो हमसे। हमें जल्द से जल्द बस अच्छा रिजल्ट चाहिए।"
"डोन्ट वरी चौधरी साहब।" हरीश राणे ने कहा___"आपको इस सबसे बहुत जल्द ही मुक्ति मिल जाएगी। अच्छा अब मुझे यहाॅ से जाने की इजाज़त दीजिए।"
"ठीक है तुम जाओ राणे।" चौधरी ने कहा___"हमें बड़ी शिद्दत से उस दिन की प्रतीक्षा रहेगी जबकि हमारे बच्चे और वो वीडियोज हमारे पास होंगे।"
मंत्री दिवाकर चौधरी से इजाज़त लेकर हरीश राणे नाम का वो डिटेक्टिव वहाॅ से चला गया। उसके जाने के बाद कुछ देर तक ड्राइंगरूम में सन्नाटा छाया रहा। सबके चेहरों पर सोचो के भाव गर्दिश करते नज़र आ रहे थे।
"ये काम तो बहुत अच्छा हुआ चौधरी साहब।" सहसा पहली बार इस बीच अशोक मेहरा ने अपना मुख खोलते हुए कहा___"मगर आपने तो उस ठाकुर से भी इसके लिए मदद करने की बात की थी तो फिर उसका क्या? मेरा मतलब है कि क्या सचमुच इस मामले में वो हमारी मदद करेगा अथवा उसका वो मदद के लिए हाॅमी भरना महज उस वक्त की बस एक औपचारिकता थी?"
"बेशक, उसकी औपचारिकाता भी समझ सकते हो।" मंत्री ने कहा___"क्योंकि हमें भी ऐसा लगता है कि वो इस मामले में कुछ खास हमारी मदद नहीं कर सकता। उसकी खुद की थानेदारनी बेटी उसके खिलाफ़ है। बेटी के खिलाफ़ होने की जो वजह उसने हमें बताई थी उस वजह में कोई खास बात नहीं थी। क्योंकि महज इतनी सी बात पर कि उसके और उसकी पत्नी को बेटी का पुलिस की नौकरी करना पसंद नहीं था और वो इस बारे में बेटी से बोलते भी थे तो ऐसा नहीं हो सकता कि बेटी इतनी सी बात पर वो अपने पैरेंट्स के खिलाफ़ हो जाए। खिलाफ़ होने के पीछे ज़रूर कोई ऐसी ठोस वजह होगी जिसके बारे में ठाकुर ने हमें बताना शायद ज़रूरी नहीं समझा या फिर ऐसा हो सकता है कि वो उस वजह को हमसे बताना ही न चाहता रहा हो।"
"बात तो आपकी एकदम सही है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने सोचने वाले भाव से कहा___"किन्तु सोचने वाली बात तो है ही कि ऐसी क्या वजह हो सकती है जिसके तहत उसकी खुद की बेटी उसके खिलाफ़ हो गई है?"
"हमें लगता है कि ठाकुर खुद भी दूध का धुला हुआ नहीं है।" चौधरी ने कहा___"उसने अपने भतीजे और छोटे भाई की बीवी के संबंध में जो कुछ भी हमें बताया था संभव है कि उसकी उस बात में कोई सच्चाई हो ही न। कहने का मतलब ये कि जिन आरोपों के तहत उसने अपने छोटे भाई की बीवी और उसके बच्चों को हर चीज़ से बेदखल किया था वो सभी आरोप महज उसी की चाल का एक हिस्सा रहे हों। हम ऐसा उसकी बेटी के खिलाफ़ हो जाने की बात के आधार पर कह रहे हैं। ये तो एक यथार्थ सच्चाई है कि झूॅठ या बुराई एक न एक दिन अपना चेहरा सबको दिखा ही देती है। इस लिए अगर ठाकुर ने वो आरोप किसी साजिश के तहत झूॅठ की बुनियाद पर लगाए रहे होंगे तो संभव है कि उसकी वो सच्चाई किसी तरह सामने आ गई हो और उसकी बेटी को भी पता चल गई हो। इतना तो वो भी समझ सकती है कि बुरा करने वाला कभी पलट कर अपने हक़ के लिए इस तरह लड़ाई नहीं किया करता। अगर विराज की माॅ का चरित्र सचमुच में गिरा हुआ रहा होगा तो ये बात कहीं न कहीं से विराज को भी पता चलती और वो उस सूरत में शर्म से पानी पानी होता तथा साथ ही फिर वो कभी पलट कर गाॅव में किसी को अपनी शक्ल न दिखाता। मगर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया उल्टा इसके विपरीत वो ठाकुर से अपने हक़ के लिए तथा अपने साथ हुए अन्याय के लिए लड़ाई कर रहा है। इस बात से कहीं न कहीं सोचने वाली बात हो ही जाती है कि कहीं ठाकुर ने वो सब आरोप झूठ मूॅठ में ही तो नहीं लगाए थे विराज की माॅ पर? वरना वो इस तरह सीना तान कर तथा इतनी दिलेरी से उससे जंग क्यों करता? यही बात ठाकुर की बेटी भी सोची होगी और फिर उसने सच्चाई का पता भी लगाया होगा। संभव है कि उसे वास्तविक सच्चाई का पता चल गया हो, उस सूरत में वो अपने माॅ बाप के खिलाफ़ हो गई। हलाॅकि सोचने वाली बात तो ये भी है कि अगर माॅ बाप बुरे हैं तो संतान इतनी पाक़ साफ कैसे हो गई कि वो अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ हो जाए?"
"आपकी बातों में यकीनन वजन है।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"मगर ऐसा होता है चौधरी साहब कि कीचड़ में ही कमल खिलते हैं। कहने का मतलब ये कि भले ही ठाकुर और ठाकुर की बीवी बुरे चरित्र वाले रहे हों किन्तु ज़रूरी नहीं कि उसके सभी बच्चे भी उनकी तरह ही बुरे निकलें। हर इंसान की सोच व स्वभाव अलग होता है। अतः संभव है कि ठाकुर की बेटी अच्छी सोच व अच्छे नेचर की लड़की हो और वो अन्याय का साथ देने की सोच न रखती हो।"
"बिलकुल।" चौधरी ने कहा___"अगर तुम्हारी बातों को मान कर चलें तो ये सवाल भी पैदा हो जाता है कि अगर ठाकुर की बेटी अपने पैरेंट्स के रूप में अन्याय के खिलाफ़ हो गई है तो ये भी ज़ाहिर सी बात है कि फिर उसने न्याय और सच्चाई का साथ देने का भी सोचा हो।"
"यकीनन ऐसा हो सकता है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा कह उठा___"न्याय और सच्चाई का साथ देने का मतलब है कि वो विराज का साथ दे रही होगी। उसे सच्चाई का पता चल गया होगा कि विराज और उसकी माॅ पर उसके बाप द्वारा लगाए गए वो सभी आरोप फर्ज़ी थे इस लिए उसे विराज और उसकी माॅ से सहानुभूति हुई होगी और उसने विराज का हक़ दिलाने के लिए उसका साथ देने लगी होगी।"
"अगर सच्चाई यही है।" अवधेश ने कहा___"तो इसका मतलब ये हुआ कि हमारा दुश्मन विराज ही नहीं बल्कि ठाकुर की बेटी भी हुई। इससे एक बात और भी समझ में आती है जो कि अपनी जगह सटीक ही बैठती है।"
"कौन सी बात??" चौधरी के माॅथे पर शिकन उभर आई।
"यही कि।" अवधेश ने कहा___"विधी रेप केस के समय रितू ने ही विराज को मुम्बई से यहाॅ बुलाया होगा।"
"ये तुम क्या कह रहे हो अवधेश?" चौधरी के साथ साथ बाॅकी सबकी भी ऑखें फैली।
"हाॅ चौधरी साहब।" अवधेश ने कहा___"रितू का नाम आने से कुछ बातें मुझे समझ आ रही हैं। जैसा कि ठाकुर की बेटी अपने पैरेंट्स के खिलाफ है तो यकीनन वो विराज का ही साथ दे रही होगी। इस मामले में बहुत गहरी बात भी छुपी है चौधरी साहब जिसकी हमने कल्पना भी नहीं कर सकते थे।"
"ये तुम क्या ऊल जलूल बकने लगे अवधेश?" चौधरी ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"साफ साफ बोलो कि क्या कहना चाहते हो तुम?"
"इन सारी बातों का केन्द्र बिंदू।" अवधेश ने कहा___"विधी का रेप केस ही है। हम सब यही समझ रहे थे कि उस रेप केस पर पुलिस का कोई हाथ नहीं है और ये सच भी था। मगर गौर कीजिए रितू के ही थाना क्षेत्र में विधी गंभीर हालत में पाई गई थी। रितू क्योंकि थानेदारनी थी इस लिए उसे जब गंभीर हालत में पड़ी किसी लड़की की सूचना मिली होगी तो वो फौरन वहाॅ पहुॅची होगी। गंभीर हालत में पड़ी उस लड़की को सर्वप्रथम उसने किसी हास्पिटल में भर्ती कराया होगा। लड़की के होश में आने पर उसने उससे रेप के बारे में सब कुछ पूछा होगा। रितू ने लड़की के घर वालों को भी बुलाया होगा जैसा कि आम तौर होता है। विधी के माॅ बाप आए होंगे और अपनी बेटी की उस हालत को देख कर वो यकीनन दुखी भी हुए होंगे। यहाॅ पर पुलिस केस करने की भी बात आई होगी। किन्तु जब विधी ने बताया होगा कि उसके साथ रेप करने वाले लड़के कौन थे तो विधी के माॅ बाप के हाथ पाॅव फूल गए होंगे और उन्होंने केस करने से मना कर दिया होगा। इधर रितू ने अपने आला अफरान को भी विधी रेप केस के बारे में बताया होगा। बात कमिश्नर तक पहुॅची होगी और कमिश्नर ने भी रितू को यही कहा होगा कि मामले को किसी तरह दबा दो। ख़ैर, रितू को विधी के द्वारा ही तहकीक़ात में पता चला होगा कि विधी असल में उसके भाई विराज से प्रेम भी करती थी। ये जान कर निश्चय ही रितू ने विराज से संबंध स्थापित कर उसे सब बताया होगा और यहाॅ बुलाया होगा। विराज यहाॅ आया और उसने अपनी प्रेमिका की वो हालत देखी तो उसे सहन नहीं हुआ। उसने अपनी मासूक़ा का बदला लेने के लिए ऐलान किया होगा। इसमे उसका साथ देने के लिए रितू भी सहमत हुई होगी। उसके बाद क्या हुआ आप सबको पता ही है।"
"तुम्हारे कहने का मतलब है कि ठाकुर की थानेदारनी बेटी के द्वारा ही विराज यहाॅ आया और फिर उसने बदला लेने के रूप में ये सब किया?" चौधरी ने कहा___"और इतना ही नहीं वो खुद अपने भाई का साथ भी दे रही है?"
"मैं यही कहना चाहता हूॅ चौधरी साहब।" अवधेश ने पुरज़ोर लहजे में कहा___"और मुझे तो ये भी लगता है कि ये सारा बखेड़ा ही उस थानेदारनी के द्वारा हुआ है।"
"पता नहीं तुम क्या फालतू की बकवास किए जा रहे हो अवधेश।" चौधरी ने खीझते हुए कहा___"तुम अपनी कोई बात पर कामय ही नहीं हो। पहले कह रहे थे कि विराज ने ये सब किया है और अब कह रहे हो कि ठाकुर की उस बेटी ने किया है। आख़िर तुम्हारे दिमाग़ में ये बेसिर पैर की बातें कहाॅ से आती हैं?"
"ये मामला ही ऐसा था चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"कि हम में से कोई भी इसके बारे में ठीक से समझ नहीं पाया था। मगर जैसे जैसे हालात सामने आए उस हिसाब से संभावनाओं की बातें की हमने। ख़ैर, मैं ऐसा इस लिए कह रहा हूॅ कि इसके पीछे भी एक वजह है। जैसे कि जिस समय विधी के रेप का मामला सामने आया उस समय तो विराज यहाॅ था ही नहीं बल्कि रितू ही थी। जिसने पुलिस के रूप में ही सही मगर विधी के केस को हाॅथ में लिया था। ये अलग बात है कि हमारे दबदबे और पुलिस कमिश्नर के मना कर देने पर उसने कोई केस फाइल नहीं किया था। मगर जब उसे पता लगा कि विधी वो लड़की है जो खुद उसके ही चचेरे भाई से प्रेम करती थी तो उसके प्रति रितू की हमदर्दी या सहानुभूति यकीनन अलग ही तरह की हो गई होगी। उसके मन में ये तो आया ही होगा कि विधी के साथ हुए इस कुकर्म पर इंसाफ हो यानी रेप करने वाले लड़कों को कानूनन शख्त से शख्त सज़ा मिले। मगर मामला क्योंकि आपसे ताल्लुक रखता था अतः उस केस पर कानूनी तौर पर कोई ऐक्शन वो चाहते हुए भी न ले पाई थी। इस लिए संभव है कि उसने हमारे बच्चों को सज़ा देने के लिए कानून को अपने हाॅथ में ले लिया हो। जिसके तहत सबसे पहले वो हमारे बच्चों के बारे में अपने मुखबिरों से पता लगवाया होगा और जब उसे पता चल गया होगा कि रेप करने वाले हमारे बच्चे हमारे फार्महाउस पर हैं तो वो उन्हें पकड़ने के लिए वहाॅ जा धमकी होगी। वहाॅ पर उसने हमारे बच्चों को जबरन ग़ैर कानूनी तरीके से गिरफ्तार किया होगा तथा फार्महाउस की तलाशी भी ली होगी। जहाॅ से उसे हमारे खिलाफ़ वो सारे वीडियोज मिले। इसके बाद वो हमारे बच्चों को लेकर ऐसी जगह गई जहाॅ पर कोई भी जा ही नहीं सकता था।"
"अगर तुम्हारी बातों को सच मानें तो।" चौधरी का दिमाग़ साॅय साॅय करने लगा था, बोला___"फिर वो वीडियोज और वो फोन भी उसी ने किया था हमें। मगर उसकी आवाज़ से ऐसा तो लगता ही नहीं था कि वो किसी लड़की की आवाज़ है बल्कि वो आवाज़ किसी भरभूर मर्द की ही लगती थी।"
"आज के समय में किसी किसी मोबाइल फोन पर ऐसे ऑप्शन भी होते हैं चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"जिसमें एक ब्यक्ति किसी की भी आवाज़ बदल कर बात कर सकता है। संभव है कि उसने ऐसे ही किसी फोन से मर्दाना आवाज़ में आपसे बात की थी। ऐसा इस लिए ताकि आप यही समझें कि सामने वाला कोई मेल पर्शन ही है ना कि फीमेल। इससे होगा ये कि आप इस बारे में सोच ही न सकेंगे कि कोई लड़की ऐसा कर सकती है। आप अपना हर क़दम ये सोचते हुए ही उठाएॅगे कि आपका दुश्मन कोई मेल पर्शन है।"
दिवाकर चौधरी तुरंत कुछ बोल न सका। उसे कहीं न कहीं अवधेश की बातों में सच्चाई की बू आ रही थी। कदाचित यही वजह थी कि वह सोचने पर मजबूर हो गया था।
"उस दिन जब आपने उससे फोन पर ये कहा कि आप ये जान चुके हैं कि वो कौन है।" उधर अवधेश मानो फुल फार्म में कहे जा रहा था___"तो वो चौंक पड़ी होगी। उसे लगा होगा कि आपका सोचना भी अपनी जगह सही है। आख़िर ऐसा करने की वजह विधी के बाप के पास ही तो हो सकती थी। ख़ैर जब उसने जाना कि आप उसको विधी का बाप समझ रहे हैं तो उसे ये भी लगा होगा कि अब विधी के पैरेंट्स को आपसे खतरा हो गया है। इस लिए इससे पहले कि आप विधी के पैरेंट्स तक पहुॅच पाते उससे पहले ही उसने बुद्धिमानी का परिचय देते हुए विधी के पैरेंट्स को आपसे सुरक्षित कर दिया। वरना सोचने वाली बात है कि इससे पहले तो उसे विधी के पैरेंट्स को सुरक्षा प्रदान करने का ख़याल तक न आया था और अगर उस दिन आप वैसा उसे न कहते तो आगे भी ये ख़याल उसके मन में आने वाला नहीं था। कहने का मतलब ये कि आपने खुद ही उसे बता दिया और फिर उसने बड़ी खूबसूरती से आपकी चतुराई को बेवकूफी में बदल दिया।"
"यकीनन तुम्हारी बातों में वजन है अवधेश।" चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"जितने कम समय में उसने ये सब किया था उसे विराज तो हर्गिज़ भी नहीं कर पाता। क्योंकि मामला प्रेम का था। वो विधी के साथ हुए उस हादसे के सदमें में ही रह जाता और फिर अगर किसी के समझाने बुझाने पर वो सदमे से बाहर आता भी तो ये सब करने में उसे कुछ तो समय लगता ही।"
"जी बिलकुल।" अवधेश ने कहा___"यही सारी बातें हैं जिसकी वजह से मुझे ऐसा लग रहा है कि ये सब ठाकुर की बेटी का ही किया धरा हो सकता है। दूसरी बात विराज जब यहाॅ आया तो उसे विधी के साथ हुए उस सदमें से भी रितू ने ही निकाला होगा और फिर उसने उसे बताया होगा उसकी प्रेमिका के साथ जिन लोगों ने ये सब किया है उन लोगों को उसने अपने कब्जे में लिया हुआ है। बस उसके बाद आप खुद सोच लीजिए कि विराज ने क्या किया होगा अथवा ये सब करना उसके लिए कितना आसान हो गया होगा।"
"अगर ठाकुर की उस थानेदारनी बेटी ने ये सब विधी के लिए हमदर्दी के चलते तथा कानून को अपने हाॅथ में लेकर किया है।" चौधरी ने सोचते हुए कहा___"तो ये भी हो सकता है कि उसने इस सबके बारे में अपने पुलिस विभाग के किसी आला अफसर को भी नहीं बताया होगा।"
"ज़ाहिर सी बात है।" अवधेश ने कहा___"अगर वो बताती तो उसे ये सब करने का कोई भी उसका आला अफसर इजाज़त न देता और अगर उसके इस कृत्य की जानकारी किसी आला अफसर को होती तो ज़रूर वो उसके खिलाफ़ कानून को अपने हाॅथ में लेने के लिए ऐक्शन लेता।"
"यहाॅ पर मैं भी अपनी बात रखना चाहता हूॅ।" सहसा अशोक मेहरा ने कहा___"और वो ये कि ऐसा भी तो हो सकता है कि रितू के इस कृत्य के बारे में उसके किसी आला अधिकारी को सब कुछ पता ही हो और वो उसकी सहमति में ही ये सब कर रही हो।"
"ये तुम कैसी बेवकूफी की बातें कर रहे हो अशोक?" चौधरी की ऑखें फैलीं___"ये बात तुम भी अच्छी तरह जानते हो कि यहाॅ के पुलिस महकमें के किसी भी आला ऑफिसर की ऐसी ज़ुर्रत नहीं हो सकती कि वो हमारे खिलाफ़ ऐसा कोई क़दम उठाने के लिए अपने किसी जूनियर शिपाही को कह सके। उन्हें भी पता है कि ऐसा करने का अंजाम कितना भयंकर हो सकता है उनके लिए।"
"भयंकर अंजाम तो तब होगा न चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"जब आपको सबूत के साथ ये नज़र आए कि पुलिस ने ऐसा कुछ किया है। जब आपको कुछ ऐसा नज़र ही नहीं आएगा तो आप भला क्या कर लेंगे उनका? ख़ैर ये बात तो पुलिस के आला अफसरान को पता ही है कि वो आपके खिलाफ़ ज़ाहिर रूप से कोई ठोस कार्यवाही नहीं कर सकते हैं, इस लिए संभव है कि उन लोगों ने ये सब गुप्त रूप से शुरू किया हो ताकि हमें उनकी किसी कार्यवाही का भान तक न हो सके। वरना आप खुद सोचिए चौधरी साहब कि पुलिस की एक मामूली सी इंस्पेक्टरनी में इतना साहस और जज़्बा कैसे हो जाएगा कि वो आपके खिलाफ़ खुद कोई ऐक्शन ले सके? ये तो उसे भी पता होगा न कि पोल खुल जाने पर आप उसका क्या हस्र कर सकते हैं? इस लिए ये स्पष्ट हैं चौधरी साहब कि बग़ैर किसी आला ऑफीसर की सह के वो थानेदारनी ऐसा करने का सोच भी नहीं सकती है।"
"तुम्हारी बात भी सही है।" चौधरी के दिमाग़ की बत्तियाॅ जैसे एकाएक ही रौशन हो उठी थीं, बोला___"दूसरी बात ये कि सारा प्रदेश और पुलिस महकमा इस बात को जानता है कि हम जनता के साथ कितना बड़ा अत्याचार करते हैं। यही नहीं बल्कि ऐसा वो हर काम भी करते हैं जिसे ग़ैर कानूनी क़रार दिया जाता है। पुलिस महकमा इसके लिए हमारे खिलाफ़ कोई कार्यवाही इस लिए नहीं कर पाता क्योंकि एक तो उसके पास हमारे खिलाफ़ कोई सबूत नहीं होता दूसरे हमारा दबदबा और पहुॅच के असर से भी वो ख़ामोश रह जाते हैं।"
"निःसंदेह।" अवधेश कह उठा___"आपकी बात बिलकुल सच है चौधरी साहब। इस लिए अब पुलिस प्रशासन के पास यही एक चारा है कि वो गुप्त रूप से हमारे खिलाफ़ किसी कार्यवाही को अंजाम दें।"
"इसका मतलब ये हुआ।" अशोक ने कहा___"कि रितू और विराज के साथ साथ अब हमें पुलिस का भी ख़तरा है। इन दोनो भाई बहन से तो हम निपट भी लेंगे मगर पुलिस प्रशासन से कैसे निपटेंगे? मामला अगर केन्द्र तक गया होगा तो हमारे लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी चौधरी साहब।"
"नहीं अशोक।" चौधरी ने ठोस लहजे में कहा___"ये मामला इतना भी संगीन नहीं है कि इसकी गूॅज केन्द्र तक पहुॅच जाए। तुम कुछ ज्यादा ही ऊपर की सोच रहे हो।"
"फिर भी चौधरी साहब।" सहसा इस बीच अवधेश बोल पड़ा___"हमें इस बारें में भी सोचना तो चाहिए ही। क्या पता हमारा कोई ऐसा दुश्मन हो जिसने इसके लिए केन्द्र सरकार के काॅन खड़े कर दिये हों।"
"अगर ऐसा होता भी।" चौधरी ने कहा___"तो केन्द्र सरकार अपनी तरफ से हमारे खिलाफ़ जाॅच पड़ताल के लिए किसी सीबीआई जैसे लोगों को नियुक्त करती। वो यहाॅ आते और हमसे पूॅछताछ करते। मगर ऐसा तो कहीं दूर दूर तक समझ में ही नहीं आ रहा कि ऐसा कुछ है। ज़ाहिर है कि ये मामला यहीं तक सीमित है। अतः हम यहाॅ के पुलिस महकमें के आला ऑफिसर्स की क्लास अब ज़रूर लेंगे।"
"वैसे डिटेक्टिव के रूप में हमने हरीश राणे को इस मामले में लगा तो दिया ही है।" अवधेश ने कहा___"सारी सच्चाई का पता अब वही लगाएगा। देखते हैं वो इस सबकी क्या रिपोर्ट देता है हमें?"
अवधेश की बात पर चौधरी सिर्फ सिर हिलाकर रह गया। कुछ देर ऐसी ही कुछ और बातें हुईं उसके बाद सब अपने अपने काम के सिलसिले में वहाॅ से निकल लिए।
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