Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट.......《 56 》


अब आगे,,,,,,,,

उधर मंत्री दिवाकर चौधरी के आवास पर।
अशोक मेहरा व अवधेश श्रीवास्तव ड्राइंग रूम में बैठे थे। सामने के सोफे पर एक ब्यक्ति और बैठा हुआ था जो कि अवधेश के साथ ही आया हुआ था। उसका नाम हरीश राणे था। हरीश राणे पेशे से एक प्राइवेट डिटेक्टिव था। उसने बाकायदा अपनी एक अलग डिटेक्टिव एजेंसी खोली हुई थी तथा उसके अंडर में काफी सारे लोग काम करते थे। अवधेश श्रीवास्तव और हरीश राणे की मुलाक़ात कई साल पहले किसी केस के सिलसिले पर ही हुई थी। तब से इन दोनो के बीच यारी दोस्ती का गहरा नाता था।

हरीश राणे बहुत ही क़ाबिल और तेज़ दिमाग़ का डिटेक्टिव था। उसके बारे में कहा जाता है कि उसने अब तक जिस केस को भी अपने हाॅथ में लिया उसे बहुत ही कम समय में साल्व किया था। कदाचित यही वजह है कि आज के समय में हरीश राणे एक केस के लिए अच्छी खासी फीस चार्ज़ करता था। फीस तो उसकी होती ही थी किन्तु उसके आने जाने का खर्चा पानी भी उसे अलग से देना पड़ता था। ख़ैर, इस वक्त ये तीनों ही ड्राइंग रूम में बैठे चौधरी के आने का पिछले एक घंटे से इन्तज़ार कर रहे थे।

चौधरी के पीए ने बताया था कि चौधरी साहब अपनी रखैल सुनीता के साथ कमरे में हैं। अवधेश व अशोक ये जान कर हैरान रह गए थे कि चौधरी आज सुबह सुबह ही सुनीता को भोगने में लग गया था। आम तौर पर ऐसा होता नहीं था, और ना ही चौधरी इस क़दर सुनीता का दीवाना था। मगर जाने क्या बात थी कि आज सुबह सुबह ही चौधरी सुनीता के साथ कमरे में बंद था। उसे ये तक होश नहीं था कि हालात कितने गंभीर थे आजकल।

अवधेश श्रीवास्तव अपने डिटेक्टिव दोस्त हरीश राणे को चौधरी से मिलवाने लाया था। वो चाहता था कि चौधरी राणे से मिल कर अपने तरीके से उसे केस के सिलसिले में बताएॅ और आगे का काम शुरू करने की परमीशन दे। ख़ैर एक घंटे दस मिनट बाद चौधरी और सुनीता एकदम से फ्रेश होकर ड्राइंग रूम में आए। उन दोनो के हाव भाव से बिलकुल भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वो दोनो बाॅकी सबकी जानकारी के अंदर क्या गुल खिला कर आए थे। बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही न हो।

"माफ़ करना यारो।" दिवाकर चौधरी ने सोफे पर बैठते हुए तथा सबकी तरफ नज़रें दौड़ाते हुए कहा___"तुम सबको इन्तज़ार करना पड़ा।"
"कोई बात नहीं चौधरी साहब।" अवधेश ने मजबूरी में ही सही किन्तु मुस्कुराते हुए कहा___"इतना तो चलता है। ख़ैर जैसा कि मैने आपसे ज़िक्र किया था तो मैं अपने साथ अपने डिटेक्टिव दोस्त हरीश राणे को लेकर आया हूॅ। आप इनसे मिल लीजिए और केस से संबंधित बात कर लीजिए।"

"ओह हैलो राणे।" चौधरी ने हरीश की तरफ देखते हुए किन्तु तनिक मुस्कुराते हुए कहा___"भई तुम अवधेश के दोस्त हो तो हमारे भी दोस्त ही हुए। इस लिए हमसे किसी भी बात के लिए संकोच या झिझक करने की ज़हमत मत उठाना।"

"जी बिलकुल चौधरी साहब।" हरीश राणे ने भावहीन स्वर में कहा___"वैसे भी हमारे पेशे में संकोच या झिझक के लिए कोई जगह नहीं होती है। ख़ैर आप बताएॅ मेरे लिए क्या आदेश है? आपके लिए कुछ कर सकूॅ ये मेरा सौभाग्य ही होगा।"

"सारी बातें तो तुम्हें अवधेश ने बता ही दी होंगी।" चौधरी ने कहा___"और शायद ये भी समझा दिया होगा कि तुम्हें करना क्या है?"
"जी बिलकुल।" हरीश राणे ने कहा___"अवधेश ने मुझे इस केस से संबंधित सारी बातें बताई हैं। इसके बावजूद आप अगर अपने मुख से एक बार फिर से इस बारें में मुझे बता देंगे तो ज्यादा बेहतर होगा।"

"दरअसल हालात ऐसे हैं।" दिवाकर चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"कि हम सब कुछ कर गुज़रने की क्षमता रखते हुए भी कुछ कर नहीं सकते। अवधेश ने ही सुझाव दिया था कि इस काम में हमारे अलावा एक डिटेक्टिव ही बेहतर तरीके से कोई कार्यवाही कर सकता है। हमें भी लगा कि आइडिया अच्छा है। ख़ैर, हम सिर्फ ये चाहते हैं कि जिस शख्स की वजह से हम कुछ कर नहीं पा रहे हैं उसे तुम हमारे सामने लाकर खड़ा कर दो। किन्तु इस बात का बखूबी और सबसे पहले ख़याल रहे कि उसे इस बात की भनक भी न लगे कि हमने तुम्हारे रूप में कोई जासूस उसके पीछे लगा रखा है। क्योंकि अगर उसे तुम्हारे बारे में पता चल गया तो तुम सोच भी नहीं सकते हो कि तुम्हें हायर करने के लिए तथा उसके पीछे लगाने के लिए हमें इसका कितना संगीन अंजाम भुगतना पड़ सकता है। ख़ैर, हम ये चाहते हैं कि उस शख्स के पास से वो सारे वीडियोज तुम हमें वापस लाकर दो और उसकी कैद से हमारे बच्चों को भी सही सलामत यहाॅ लेकर आओ। उसके बाद हम खुद देख लेंगे उस बास्टर्ड को कि वो खाली हाॅथ हमारा क्या उखाड़ लेता है?"

"ठीक है चौधरी साहब।" हरीश राणे ने कहा___"मैं आज और अभी से इस काम में लग जाता हूॅ। हलाॅकि इस काम में कोई बहुत बड़ी बात नहीं है जिसके लिए आपको किसी डिटेक्टिव की ज़रूरत पड़ती, मगर चूॅकि आप उस शख्स के द्वारा पंगू बने हुए हैं इस लिए खुद कुछ कर नहीं सकते हैं। अतः आपको कोई ऐसा ब्यक्ति चाहिए जो आपके लिए ये सब इस तरीके से करे कि खुद डिटेक्टिव को भी पता न चल पाए कि वो क्या कर गया है?"

"बिलकुल, तुम सही समझे राणे।" चौधरी ने प्रभावित नज़रों से हरीश को देखते हुए कहा___"तुम खुद समझ सकते हो कि जब तक उसके पास हम लोगों के वो वीडियोज हैं तब तक हम में से कोई भी कोई ठोस ऐक्शन नहीं ले सकता उसके खिलाफ।"

"आप बेफिक्र रहिए चौधरी साहब।" हरीश राणे ने कहा___"बहुत जल्द आप इस बेबसी के आलम से उबर जाएॅगे और फिर आप स्वतंत्र रूप से कुछ भी करने की हालत में भी आ जाएॅगे।"

"आई होप कि ऐसा ही हो।" चौधरी ने कहा___"हम चाहते हैं कि ये काम जितना जल्दी हो सके तुम कर डालो। क्योंकि हमसे अब और ज्यादा ये सब झेला नहीं जा रहा है। अपनी फीस के रूप में जितना चाहो रुपया ले सकते हो हमसे। हमें जल्द से जल्द बस अच्छा रिजल्ट चाहिए।"

"डोन्ट वरी चौधरी साहब।" हरीश राणे ने कहा___"आपको इस सबसे बहुत जल्द ही मुक्ति मिल जाएगी। अच्छा अब मुझे यहाॅ से जाने की इजाज़त दीजिए।"
"ठीक है तुम जाओ राणे।" चौधरी ने कहा___"हमें बड़ी शिद्दत से उस दिन की प्रतीक्षा रहेगी जबकि हमारे बच्चे और वो वीडियोज हमारे पास होंगे।"

मंत्री दिवाकर चौधरी से इजाज़त लेकर हरीश राणे नाम का वो डिटेक्टिव वहाॅ से चला गया। उसके जाने के बाद कुछ देर तक ड्राइंगरूम में सन्नाटा छाया रहा। सबके चेहरों पर सोचो के भाव गर्दिश करते नज़र आ रहे थे।

"ये काम तो बहुत अच्छा हुआ चौधरी साहब।" सहसा पहली बार इस बीच अशोक मेहरा ने अपना मुख खोलते हुए कहा___"मगर आपने तो उस ठाकुर से भी इसके लिए मदद करने की बात की थी तो फिर उसका क्या? मेरा मतलब है कि क्या सचमुच इस मामले में वो हमारी मदद करेगा अथवा उसका वो मदद के लिए हाॅमी भरना महज उस वक्त की बस एक औपचारिकता थी?"

"बेशक, उसकी औपचारिकाता भी समझ सकते हो।" मंत्री ने कहा___"क्योंकि हमें भी ऐसा लगता है कि वो इस मामले में कुछ खास हमारी मदद नहीं कर सकता। उसकी खुद की थानेदारनी बेटी उसके खिलाफ़ है। बेटी के खिलाफ़ होने की जो वजह उसने हमें बताई थी उस वजह में कोई खास बात नहीं थी। क्योंकि महज इतनी सी बात पर कि उसके और उसकी पत्नी को बेटी का पुलिस की नौकरी करना पसंद नहीं था और वो इस बारे में बेटी से बोलते भी थे तो ऐसा नहीं हो सकता कि बेटी इतनी सी बात पर वो अपने पैरेंट्स के खिलाफ़ हो जाए। खिलाफ़ होने के पीछे ज़रूर कोई ऐसी ठोस वजह होगी जिसके बारे में ठाकुर ने हमें बताना शायद ज़रूरी नहीं समझा या फिर ऐसा हो सकता है कि वो उस वजह को हमसे बताना ही न चाहता रहा हो।"

"बात तो आपकी एकदम सही है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने सोचने वाले भाव से कहा___"किन्तु सोचने वाली बात तो है ही कि ऐसी क्या वजह हो सकती है जिसके तहत उसकी खुद की बेटी उसके खिलाफ़ हो गई है?"

"हमें लगता है कि ठाकुर खुद भी दूध का धुला हुआ नहीं है।" चौधरी ने कहा___"उसने अपने भतीजे और छोटे भाई की बीवी के संबंध में जो कुछ भी हमें बताया था संभव है कि उसकी उस बात में कोई सच्चाई हो ही न। कहने का मतलब ये कि जिन आरोपों के तहत उसने अपने छोटे भाई की बीवी और उसके बच्चों को हर चीज़ से बेदखल किया था वो सभी आरोप महज उसी की चाल का एक हिस्सा रहे हों। हम ऐसा उसकी बेटी के खिलाफ़ हो जाने की बात के आधार पर कह रहे हैं। ये तो एक यथार्थ सच्चाई है कि झूॅठ या बुराई एक न एक दिन अपना चेहरा सबको दिखा ही देती है। इस लिए अगर ठाकुर ने वो आरोप किसी साजिश के तहत झूॅठ की बुनियाद पर लगाए रहे होंगे तो संभव है कि उसकी वो सच्चाई किसी तरह सामने आ गई हो और उसकी बेटी को भी पता चल गई हो। इतना तो वो भी समझ सकती है कि बुरा करने वाला कभी पलट कर अपने हक़ के लिए इस तरह लड़ाई नहीं किया करता। अगर विराज की माॅ का चरित्र सचमुच में गिरा हुआ रहा होगा तो ये बात कहीं न कहीं से विराज को भी पता चलती और वो उस सूरत में शर्म से पानी पानी होता तथा साथ ही फिर वो कभी पलट कर गाॅव में किसी को अपनी शक्ल न दिखाता। मगर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया उल्टा इसके विपरीत वो ठाकुर से अपने हक़ के लिए तथा अपने साथ हुए अन्याय के लिए लड़ाई कर रहा है। इस बात से कहीं न कहीं सोचने वाली बात हो ही जाती है कि कहीं ठाकुर ने वो सब आरोप झूठ मूॅठ में ही तो नहीं लगाए थे विराज की माॅ पर? वरना वो इस तरह सीना तान कर तथा इतनी दिलेरी से उससे जंग क्यों करता? यही बात ठाकुर की बेटी भी सोची होगी और फिर उसने सच्चाई का पता भी लगाया होगा। संभव है कि उसे वास्तविक सच्चाई का पता चल गया हो, उस सूरत में वो अपने माॅ बाप के खिलाफ़ हो गई। हलाॅकि सोचने वाली बात तो ये भी है कि अगर माॅ बाप बुरे हैं तो संतान इतनी पाक़ साफ कैसे हो गई कि वो अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ हो जाए?"

"आपकी बातों में यकीनन वजन है।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"मगर ऐसा होता है चौधरी साहब कि कीचड़ में ही कमल खिलते हैं। कहने का मतलब ये कि भले ही ठाकुर और ठाकुर की बीवी बुरे चरित्र वाले रहे हों किन्तु ज़रूरी नहीं कि उसके सभी बच्चे भी उनकी तरह ही बुरे निकलें। हर इंसान की सोच व स्वभाव अलग होता है। अतः संभव है कि ठाकुर की बेटी अच्छी सोच व अच्छे नेचर की लड़की हो और वो अन्याय का साथ देने की सोच न रखती हो।"

"बिलकुल।" चौधरी ने कहा___"अगर तुम्हारी बातों को मान कर चलें तो ये सवाल भी पैदा हो जाता है कि अगर ठाकुर की बेटी अपने पैरेंट्स के रूप में अन्याय के खिलाफ़ हो गई है तो ये भी ज़ाहिर सी बात है कि फिर उसने न्याय और सच्चाई का साथ देने का भी सोचा हो।"

"यकीनन ऐसा हो सकता है चौधरी साहब।" अशोक मेहरा कह उठा___"न्याय और सच्चाई का साथ देने का मतलब है कि वो विराज का साथ दे रही होगी। उसे सच्चाई का पता चल गया होगा कि विराज और उसकी माॅ पर उसके बाप द्वारा लगाए गए वो सभी आरोप फर्ज़ी थे इस लिए उसे विराज और उसकी माॅ से सहानुभूति हुई होगी और उसने विराज का हक़ दिलाने के लिए उसका साथ देने लगी होगी।"

"अगर सच्चाई यही है।" अवधेश ने कहा___"तो इसका मतलब ये हुआ कि हमारा दुश्मन विराज ही नहीं बल्कि ठाकुर की बेटी भी हुई। इससे एक बात और भी समझ में आती है जो कि अपनी जगह सटीक ही बैठती है।"

"कौन सी बात??" चौधरी के माॅथे पर शिकन उभर आई।
"यही कि।" अवधेश ने कहा___"विधी रेप केस के समय रितू ने ही विराज को मुम्बई से यहाॅ बुलाया होगा।"
"ये तुम क्या कह रहे हो अवधेश?" चौधरी के साथ साथ बाॅकी सबकी भी ऑखें फैली।

"हाॅ चौधरी साहब।" अवधेश ने कहा___"रितू का नाम आने से कुछ बातें मुझे समझ आ रही हैं। जैसा कि ठाकुर की बेटी अपने पैरेंट्स के खिलाफ है तो यकीनन वो विराज का ही साथ दे रही होगी। इस मामले में बहुत गहरी बात भी छुपी है चौधरी साहब जिसकी हमने कल्पना भी नहीं कर सकते थे।"

"ये तुम क्या ऊल जलूल बकने लगे अवधेश?" चौधरी ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"साफ साफ बोलो कि क्या कहना चाहते हो तुम?"
"इन सारी बातों का केन्द्र बिंदू।" अवधेश ने कहा___"विधी का रेप केस ही है। हम सब यही समझ रहे थे कि उस रेप केस पर पुलिस का कोई हाथ नहीं है और ये सच भी था। मगर गौर कीजिए रितू के ही थाना क्षेत्र में विधी गंभीर हालत में पाई गई थी। रितू क्योंकि थानेदारनी थी इस लिए उसे जब गंभीर हालत में पड़ी किसी लड़की की सूचना मिली होगी तो वो फौरन वहाॅ पहुॅची होगी। गंभीर हालत में पड़ी उस लड़की को सर्वप्रथम उसने किसी हास्पिटल में भर्ती कराया होगा। लड़की के होश में आने पर उसने उससे रेप के बारे में सब कुछ पूछा होगा। रितू ने लड़की के घर वालों को भी बुलाया होगा जैसा कि आम तौर होता है। विधी के माॅ बाप आए होंगे और अपनी बेटी की उस हालत को देख कर वो यकीनन दुखी भी हुए होंगे। यहाॅ पर पुलिस केस करने की भी बात आई होगी। किन्तु जब विधी ने बताया होगा कि उसके साथ रेप करने वाले लड़के कौन थे तो विधी के माॅ बाप के हाथ पाॅव फूल गए होंगे और उन्होंने केस करने से मना कर दिया होगा। इधर रितू ने अपने आला अफरान को भी विधी रेप केस के बारे में बताया होगा। बात कमिश्नर तक पहुॅची होगी और कमिश्नर ने भी रितू को यही कहा होगा कि मामले को किसी तरह दबा दो। ख़ैर, रितू को विधी के द्वारा ही तहकीक़ात में पता चला होगा कि विधी असल में उसके भाई विराज से प्रेम भी करती थी। ये जान कर निश्चय ही रितू ने विराज से संबंध स्थापित कर उसे सब बताया होगा और यहाॅ बुलाया होगा। विराज यहाॅ आया और उसने अपनी प्रेमिका की वो हालत देखी तो उसे सहन नहीं हुआ। उसने अपनी मासूक़ा का बदला लेने के लिए ऐलान किया होगा। इसमे उसका साथ देने के लिए रितू भी सहमत हुई होगी। उसके बाद क्या हुआ आप सबको पता ही है।"

"तुम्हारे कहने का मतलब है कि ठाकुर की थानेदारनी बेटी के द्वारा ही विराज यहाॅ आया और फिर उसने बदला लेने के रूप में ये सब किया?" चौधरी ने कहा___"और इतना ही नहीं वो खुद अपने भाई का साथ भी दे रही है?"

"मैं यही कहना चाहता हूॅ चौधरी साहब।" अवधेश ने पुरज़ोर लहजे में कहा___"और मुझे तो ये भी लगता है कि ये सारा बखेड़ा ही उस थानेदारनी के द्वारा हुआ है।"
"पता नहीं तुम क्या फालतू की बकवास किए जा रहे हो अवधेश।" चौधरी ने खीझते हुए कहा___"तुम अपनी कोई बात पर कामय ही नहीं हो। पहले कह रहे थे कि विराज ने ये सब किया है और अब कह रहे हो कि ठाकुर की उस बेटी ने किया है। आख़िर तुम्हारे दिमाग़ में ये बेसिर पैर की बातें कहाॅ से आती हैं?"

"ये मामला ही ऐसा था चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"कि हम में से कोई भी इसके बारे में ठीक से समझ नहीं पाया था। मगर जैसे जैसे हालात सामने आए उस हिसाब से संभावनाओं की बातें की हमने। ख़ैर, मैं ऐसा इस लिए कह रहा हूॅ कि इसके पीछे भी एक वजह है। जैसे कि जिस समय विधी के रेप का मामला सामने आया उस समय तो विराज यहाॅ था ही नहीं बल्कि रितू ही थी। जिसने पुलिस के रूप में ही सही मगर विधी के केस को हाॅथ में लिया था। ये अलग बात है कि हमारे दबदबे और पुलिस कमिश्नर के मना कर देने पर उसने कोई केस फाइल नहीं किया था। मगर जब उसे पता लगा कि विधी वो लड़की है जो खुद उसके ही चचेरे भाई से प्रेम करती थी तो उसके प्रति रितू की हमदर्दी या सहानुभूति यकीनन अलग ही तरह की हो गई होगी। उसके मन में ये तो आया ही होगा कि विधी के साथ हुए इस कुकर्म पर इंसाफ हो यानी रेप करने वाले लड़कों को कानूनन शख्त से शख्त सज़ा मिले। मगर मामला क्योंकि आपसे ताल्लुक रखता था अतः उस केस पर कानूनी तौर पर कोई ऐक्शन वो चाहते हुए भी न ले पाई थी। इस लिए संभव है कि उसने हमारे बच्चों को सज़ा देने के लिए कानून को अपने हाॅथ में ले लिया हो। जिसके तहत सबसे पहले वो हमारे बच्चों के बारे में अपने मुखबिरों से पता लगवाया होगा और जब उसे पता चल गया होगा कि रेप करने वाले हमारे बच्चे हमारे फार्महाउस पर हैं तो वो उन्हें पकड़ने के लिए वहाॅ जा धमकी होगी। वहाॅ पर उसने हमारे बच्चों को जबरन ग़ैर कानूनी तरीके से गिरफ्तार किया होगा तथा फार्महाउस की तलाशी भी ली होगी। जहाॅ से उसे हमारे खिलाफ़ वो सारे वीडियोज मिले। इसके बाद वो हमारे बच्चों को लेकर ऐसी जगह गई जहाॅ पर कोई भी जा ही नहीं सकता था।"

"अगर तुम्हारी बातों को सच मानें तो।" चौधरी का दिमाग़ साॅय साॅय करने लगा था, बोला___"फिर वो वीडियोज और वो फोन भी उसी ने किया था हमें। मगर उसकी आवाज़ से ऐसा तो लगता ही नहीं था कि वो किसी लड़की की आवाज़ है बल्कि वो आवाज़ किसी भरभूर मर्द की ही लगती थी।"

"आज के समय में किसी किसी मोबाइल फोन पर ऐसे ऑप्शन भी होते हैं चौधरी साहब।" अवधेश श्रीवास्तव ने कहा___"जिसमें एक ब्यक्ति किसी की भी आवाज़ बदल कर बात कर सकता है। संभव है कि उसने ऐसे ही किसी फोन से मर्दाना आवाज़ में आपसे बात की थी। ऐसा इस लिए ताकि आप यही समझें कि सामने वाला कोई मेल पर्शन ही है ना कि फीमेल। इससे होगा ये कि आप इस बारे में सोच ही न सकेंगे कि कोई लड़की ऐसा कर सकती है। आप अपना हर क़दम ये सोचते हुए ही उठाएॅगे कि आपका दुश्मन कोई मेल पर्शन है।"

दिवाकर चौधरी तुरंत कुछ बोल न सका। उसे कहीं न कहीं अवधेश की बातों में सच्चाई की बू आ रही थी। कदाचित यही वजह थी कि वह सोचने पर मजबूर हो गया था।

"उस दिन जब आपने उससे फोन पर ये कहा कि आप ये जान चुके हैं कि वो कौन है।" उधर अवधेश मानो फुल फार्म में कहे जा रहा था___"तो वो चौंक पड़ी होगी। उसे लगा होगा कि आपका सोचना भी अपनी जगह सही है। आख़िर ऐसा करने की वजह विधी के बाप के पास ही तो हो सकती थी। ख़ैर जब उसने जाना कि आप उसको विधी का बाप समझ रहे हैं तो उसे ये भी लगा होगा कि अब विधी के पैरेंट्स को आपसे खतरा हो गया है। इस लिए इससे पहले कि आप विधी के पैरेंट्स तक पहुॅच पाते उससे पहले ही उसने बुद्धिमानी का परिचय देते हुए विधी के पैरेंट्स को आपसे सुरक्षित कर दिया। वरना सोचने वाली बात है कि इससे पहले तो उसे विधी के पैरेंट्स को सुरक्षा प्रदान करने का ख़याल तक न आया था और अगर उस दिन आप वैसा उसे न कहते तो आगे भी ये ख़याल उसके मन में आने वाला नहीं था। कहने का मतलब ये कि आपने खुद ही उसे बता दिया और फिर उसने बड़ी खूबसूरती से आपकी चतुराई को बेवकूफी में बदल दिया।"

"यकीनन तुम्हारी बातों में वजन है अवधेश।" चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"जितने कम समय में उसने ये सब किया था उसे विराज तो हर्गिज़ भी नहीं कर पाता। क्योंकि मामला प्रेम का था। वो विधी के साथ हुए उस हादसे के सदमें में ही रह जाता और फिर अगर किसी के समझाने बुझाने पर वो सदमे से बाहर आता भी तो ये सब करने में उसे कुछ तो समय लगता ही।"

"जी बिलकुल।" अवधेश ने कहा___"यही सारी बातें हैं जिसकी वजह से मुझे ऐसा लग रहा है कि ये सब ठाकुर की बेटी का ही किया धरा हो सकता है। दूसरी बात विराज जब यहाॅ आया तो उसे विधी के साथ हुए उस सदमें से भी रितू ने ही निकाला होगा और फिर उसने उसे बताया होगा उसकी प्रेमिका के साथ जिन लोगों ने ये सब किया है उन लोगों को उसने अपने कब्जे में लिया हुआ है। बस उसके बाद आप खुद सोच लीजिए कि विराज ने क्या किया होगा अथवा ये सब करना उसके लिए कितना आसान हो गया होगा।"

"अगर ठाकुर की उस थानेदारनी बेटी ने ये सब विधी के लिए हमदर्दी के चलते तथा कानून को अपने हाॅथ में लेकर किया है।" चौधरी ने सोचते हुए कहा___"तो ये भी हो सकता है कि उसने इस सबके बारे में अपने पुलिस विभाग के किसी आला अफसर को भी नहीं बताया होगा।"

"ज़ाहिर सी बात है।" अवधेश ने कहा___"अगर वो बताती तो उसे ये सब करने का कोई भी उसका आला अफसर इजाज़त न देता और अगर उसके इस कृत्य की जानकारी किसी आला अफसर को होती तो ज़रूर वो उसके खिलाफ़ कानून को अपने हाॅथ में लेने के लिए ऐक्शन लेता।"

"यहाॅ पर मैं भी अपनी बात रखना चाहता हूॅ।" सहसा अशोक मेहरा ने कहा___"और वो ये कि ऐसा भी तो हो सकता है कि रितू के इस कृत्य के बारे में उसके किसी आला अधिकारी को सब कुछ पता ही हो और वो उसकी सहमति में ही ये सब कर रही हो।"

"ये तुम कैसी बेवकूफी की बातें कर रहे हो अशोक?" चौधरी की ऑखें फैलीं___"ये बात तुम भी अच्छी तरह जानते हो कि यहाॅ के पुलिस महकमें के किसी भी आला ऑफिसर की ऐसी ज़ुर्रत नहीं हो सकती कि वो हमारे खिलाफ़ ऐसा कोई क़दम उठाने के लिए अपने किसी जूनियर शिपाही को कह सके। उन्हें भी पता है कि ऐसा करने का अंजाम कितना भयंकर हो सकता है उनके लिए।"
"भयंकर अंजाम तो तब होगा न चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने कहा___"जब आपको सबूत के साथ ये नज़र आए कि पुलिस ने ऐसा कुछ किया है। जब आपको कुछ ऐसा नज़र ही नहीं आएगा तो आप भला क्या कर लेंगे उनका? ख़ैर ये बात तो पुलिस के आला अफसरान को पता ही है कि वो आपके खिलाफ़ ज़ाहिर रूप से कोई ठोस कार्यवाही नहीं कर सकते हैं, इस लिए संभव है कि उन लोगों ने ये सब गुप्त रूप से शुरू किया हो ताकि हमें उनकी किसी कार्यवाही का भान तक न हो सके। वरना आप खुद सोचिए चौधरी साहब कि पुलिस की एक मामूली सी इंस्पेक्टरनी में इतना साहस और जज़्बा कैसे हो जाएगा कि वो आपके खिलाफ़ खुद कोई ऐक्शन ले सके? ये तो उसे भी पता होगा न कि पोल खुल जाने पर आप उसका क्या हस्र कर सकते हैं? इस लिए ये स्पष्ट हैं चौधरी साहब कि बग़ैर किसी आला ऑफीसर की सह के वो थानेदारनी ऐसा करने का सोच भी नहीं सकती है।"

"तुम्हारी बात भी सही है।" चौधरी के दिमाग़ की बत्तियाॅ जैसे एकाएक ही रौशन हो उठी थीं, बोला___"दूसरी बात ये कि सारा प्रदेश और पुलिस महकमा इस बात को जानता है कि हम जनता के साथ कितना बड़ा अत्याचार करते हैं। यही नहीं बल्कि ऐसा वो हर काम भी करते हैं जिसे ग़ैर कानूनी क़रार दिया जाता है। पुलिस महकमा इसके लिए हमारे खिलाफ़ कोई कार्यवाही इस लिए नहीं कर पाता क्योंकि एक तो उसके पास हमारे खिलाफ़ कोई सबूत नहीं होता दूसरे हमारा दबदबा और पहुॅच के असर से भी वो ख़ामोश रह जाते हैं।"

"निःसंदेह।" अवधेश कह उठा___"आपकी बात बिलकुल सच है चौधरी साहब। इस लिए अब पुलिस प्रशासन के पास यही एक चारा है कि वो गुप्त रूप से हमारे खिलाफ़ किसी कार्यवाही को अंजाम दें।"

"इसका मतलब ये हुआ।" अशोक ने कहा___"कि रितू और विराज के साथ साथ अब हमें पुलिस का भी ख़तरा है। इन दोनो भाई बहन से तो हम निपट भी लेंगे मगर पुलिस प्रशासन से कैसे निपटेंगे? मामला अगर केन्द्र तक गया होगा तो हमारे लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी चौधरी साहब।"

"नहीं अशोक।" चौधरी ने ठोस लहजे में कहा___"ये मामला इतना भी संगीन नहीं है कि इसकी गूॅज केन्द्र तक पहुॅच जाए। तुम कुछ ज्यादा ही ऊपर की सोच रहे हो।"
"फिर भी चौधरी साहब।" सहसा इस बीच अवधेश बोल पड़ा___"हमें इस बारें में भी सोचना तो चाहिए ही। क्या पता हमारा कोई ऐसा दुश्मन हो जिसने इसके लिए केन्द्र सरकार के काॅन खड़े कर दिये हों।"

"अगर ऐसा होता भी।" चौधरी ने कहा___"तो केन्द्र सरकार अपनी तरफ से हमारे खिलाफ़ जाॅच पड़ताल के लिए किसी सीबीआई जैसे लोगों को नियुक्त करती। वो यहाॅ आते और हमसे पूॅछताछ करते। मगर ऐसा तो कहीं दूर दूर तक समझ में ही नहीं आ रहा कि ऐसा कुछ है। ज़ाहिर है कि ये मामला यहीं तक सीमित है। अतः हम यहाॅ के पुलिस महकमें के आला ऑफिसर्स की क्लास अब ज़रूर लेंगे।"

"वैसे डिटेक्टिव के रूप में हमने हरीश राणे को इस मामले में लगा तो दिया ही है।" अवधेश ने कहा___"सारी सच्चाई का पता अब वही लगाएगा। देखते हैं वो इस सबकी क्या रिपोर्ट देता है हमें?"

अवधेश की बात पर चौधरी सिर्फ सिर हिलाकर रह गया। कुछ देर ऐसी ही कुछ और बातें हुईं उसके बाद सब अपने अपने काम के सिलसिले में वहाॅ से निकल लिए।
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उधर हवेली में।
सबने एक साथ ही बैठ कर ब्रेकफास्ट किया था। उसके बाद प्रतिमा के पिता जगमोहन सिंह सबसे विदा लेकर हवेली से निकल लिए थे। उनको गुनगुन तक छोंड़ने के लिए खुद अजय सिंह अपनी कार से गया था। प्रतिमा को अपने पिता के चले जाने से काफी दुख हुआ था। वर्षों बाद उसे अपने पिता इस रूप में मिले थे। उसका दिल कर रहा था कि वो भी अपने पिता के साथ ही चली जाए। जगमोहन सिंह ने चलने के लिए कहा भी था मगर ज़रूरी कामों का हवाला देकर अजय सिंह ने यही कहा कि हम सब फिर कभी ज़रूर आएॅगे। अजय सिंह जानता था कि हालात अभी ऐसे नहीं हैं कि उसके बीवी बच्चे कहीं आ जा सकें।

इस वक्त ड्राइंग रूम में प्रतिमा और शिवा ही थे। जो आमने सामने सोफों पर बैठे हुए थे। प्रतिमा जहाॅ अपने पिता के बारे में सोच सोच कर दुखी हो रही थी वहीं शिवा नीलम व सोनम के बारे में सोच सोच कर ख़याली पुलाव बना रहा था। उसके चेहरे पर गर्दिश कर रहे भावों में प्रतिपल बदलाव आता नज़र रहा था। सोनम उसे पहली नज़र में ही बेहद पसंद आ गई थी और उसने इस बात का ज़िक्र अपनी माॅ प्रतिमा से भी किया था। उसने प्रतिमा से कहा था कि उसे सोनम बहुत अच्छी लगती है। काश उससे उसकी शादी हो जाए। मगर प्रतिमा ने इस बात के लिए शिवा को शख्ती से समझा दिया था कि ऐसा कभी नहीं हो सकता। वो उसकी बड़ी बहन है और बहन से भाई की शादी कभी नहीं हो सकती है। प्रतिमा की ये बात सुन कर शिवा का दिल बुरी तरह से टूट गया था।

गाॅव की हर लड़की या औरत को सिर्फ भोगने की चीज़ समझने वाला शिवा आजकल सोनम के प्यार में देवदास सा नज़र आने लगा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि ये अचानक उसे क्या हो गया है? सोनम के प्रति उसके दिल में मीठा मीठा सा दर्द क्यों होने लगा है? हर लड़की की भाॅति वो उसे भी हाॅसिल करके भोगने की बात क्यों नहीं सोच रहा? पिछली सारी रात वो इन्हीं सब बातों की वजह से सो नहीं पाया था। उसे सोनम से खुल कर बात करने में अब झिझक होने लगी थी। हलाॅकि वो उसकी मौसी की लड़की थी और उसकी बड़ी बहन लगती थी। मगर पहली नज़र में उसे देखने के बाद ही उसके प्रति उसकी सोच और उसके अंदर का हाल बड़ा अजीब सा गया था। ब्रेकफास्ट करते वक्त भी वह सबकी नज़रें बचा कर सोनम को चोरी से देख ही लेता था। यद्दपि सोनम उससे खुल कर बातें कर रही थी, किन्तु एक भाई बहन के रिश्ते से। सोनम की बातों का वो हाॅ या नहीं में थोड़ा बहुत जवाब दे देता था। उसके इस बिहैवियर से अजय सिंह भी अंदर ही अंदर चौंक पड़ा था। अनुभवी अजय सिंह को समझते देर न लगी कि उसका अय्याश बेटा सोनम के हुश्नो शबाब को देख कर चारो खाने चित्त हो चुका है। हलाॅकि सोनम और नीलम को देख कर उसका खुद का हाल भी शिवा से जुदा न था मगर उसके अंदर उनके प्रति प्रेमी वाला प्यार का अंकुर न फूटा था।

नाना और अजय सिंह के जाने के कुछ देर बाद ही नीलम व सोनम ऊपर अपने कमरे में चली गई थी। जबकि प्रतिमा व शिवा ड्राइंगरूम में ही बैठे रहे थे। इस ड्राइंग रूम में छाई गहन ख़ामोशी से सहसा प्रतिमा की तंद्रा टूटी। उसने अपने बेटे शिवा की तरफ देखा तो उसे गहन सोचों में गुम हुआ पाया। ये देख कर वह हौले से चौंकी।

"कहाॅ गुम है मेरा बेटा?" फिर प्रतिमा ने ज़रा खुद को सम्हालते हुए कहा___"क्या अभी तक भूत नहीं उतरा?"
"अ..आपने कुछ कहा क्या?" शिवा ने सहसा चौंकते हुए कहा।
"हाॅ पूछ रही हूॅ कि क्या अभी भी भूत नहीं उतरा है दिलो दिमाग़ से?" प्रतिमा कहने के साथ ही मुस्कुराई थी।

"भ..भूत???" शिवा चकरा सा गया___"कौन सा भूत माॅम?"
"प्यार वाला भूत।" प्रतिमा ने कहा___"बेटा ये प्यार वाला भूत बहुत ही खतरनाॅक होता है। जिसके सिर चढ़ता है न फिर कभी उतरता ही नहीं है।"

"ये आप क्या कह रही हैं माॅम?" शिवा ने झेंपते हुए कहा।
"हाय रे।" प्रतिमा मुस्कुराई___"देखो तो कैसे शरमा रहा है आज मेरा बेटा। बेटा ये इश्क़ न बहुत बुरी बला है। ये इश्क़ कम्बख्त उसी से होता है जो हमें कभी नसीब ही नहीं हो सकता।"

"ये तो ग़लत बात है माॅम।" शिवा ने कहा___"आपने भी तो डैड से इश्क़ ही किया था और फिर वो आपको नसीब भी तो हो गए।"
"हाॅ मगर तेरे डैड और मैं आपस में भाई बहन तो नहीं थे न।" प्रतिमा ने कहा___"उन रिश्तों में अगर इश्क़ हो तो कुछ भी करके हम एक हो सकते हैं मगर इस रिश्ते में ऐसा नहीं होता। क्योंकि इस रिश्ते वाले इश्क़ को ये समाज ये दुनियाॅ कभी स्वीकार नहीं करती बल्कि इन रिश्तों के बीच हो गए इश्क़ को पाप का नाम देती है ये दुनिया। इससे परिवार की मान मर्यादा और इज्ज़त का हनन हो जाता है।"

"मैं ये सब समझता हूॅ माॅम।" शिवा ने कहा___"मुझे पता है कि भाई बहन के बीच ये रिश्ता ग़लत है। मगर ये उनके लिए ग़लत होता है न माॅम जो पाक़ साफ होते हैं। हम तो ऐसे हैं जो इन्हीं रिश्तों को भोगने की खूबसूरत इच्छा रखते ही नहीं हैं बल्कि भोगते भी हैं।"

"हाॅ लेकिन ये बात देश समाज को पता तो नहीं है न।" प्रतिमा ने कहा___"ये सब तो घर के अंदर होता है और बिना किसी की जानकारी के होता है। इस लिए जब तक इन रिश्तों के बीच की सच्चाई दुनिया से छुपी है तब तक हम भी पाक़ साफ ही हैं बेटा।"

"कुछ भी कहिये माॅम।" शिवा ने जैसे दृढ़ता से कहा___"मैं सोनम को हद से ज्यादा पसंद करने लगा हूॅ। मेरे दिल में उसके प्रति प्रेम का अंकुर फूट चुका है। कल सारी रात मैं इस बारे में सोचता रहा और फिर इस नतीजे पर पहुॅचा हूॅ कि मैं अगर किसी लड़की से शादी करूॅगा तो वो सोनम से ही करूॅगा। हाॅ माॅम, पता नहीं क्यों पर मुझे अब ऐसा लगने लगा है कि अगर सोनम मेरी जाने हयात न बनी तो मैं एक भी पल जी न सकूॅगा।"

प्रतिमा अपने बेटे की इस बात से आश्चर्यचकित रह गई। अभी तक तो उसे यही लग रहा था कि शिवा ये सब उससे सोनम को भोगने के उद्देश्य से ही कह रहा था मगर इस वक्त उसके चेहरे के भाव चीख चीख कर उसे बता रहे थे कि वो सोनम के लिए कितना सीरियस हो चुका है। प्रतिमा का दिलो दिमाग़ सुन्न सा पड़ गया। उसे समझ न आया कि इस विषम परिस्थिति में वो अपने बेटे को आख़िर कैसे समझाए? वो समझ सकती थी कि प्यार मोहब्बत कैसी चीज़ होती है और फिर इंसान की क्या हालत हो जाती है।

"देखो बेटा।" फिर प्रतिमा ने बहुत ही सीरियस भाव से किन्तु समझाते हुए कहा___"ये सब ठीक नहीं है। सोनम के प्रति ऐसी फीलिंग्स रखना अच्छी बात नहीं है। हो सकता है कि तुम्हारा सोनम के प्रति ये सिर्फ एक आकर्षण हो, जिसे तुम प्यार समझ रहे हो। ख़ैर, मैं ये कह रही हूॅ कि ये अभी पहली स्टेज है। अभी तुम इस सबके लिए खुद को समझा भी सकते हो और खुद को इसके प्रभाव से बचा भी सकते हो। इस लिए बेहतर होगा कि तुम इस पर विचार करके अमल करो। दूसरी बात, सोनम तुम्हारी बड़ी बहन है। उसके मन में तुम्हारे प्रति ऐसा कुछ भी नहीं होगा मुझे अच्छी तरह पता है। किन्तु अगर उसे पता चल गया कि तुम उसके बारे में ऐसा सोचते हो तो वो तुम्हारे दिल का हाल नहीं समझेगी बल्कि तुम्हें ग़लत नेचर का मानते हुए तुमसे नफ़रत करने लगेगी।"

"ऐसा नहीं होगा माॅम।" शिवा की आवाज़ सहसा भर्रा सी गई, बोला___"मैं उसे खुद समझाऊॅगा कि मैं उससे कितना प्यार करने लगा हूॅ। उसे बताऊॅगा कि मेरे दिल में उसके लिए सिर्फ और सिर्फ प्यार है और हाॅ ये भी कहूॅगा माॅम कि अगर उसे लगता है कि मेरे प्यार में कोई खोट या गंदगी है तो उसे मुझे ठुकरा देने का और मुझसे नफ़रत करने का पूरा हक़ है। मैं सारी ज़िंदगी उसके खूबसूरत चेहरे को अपनी ऑखों में बसा कर तथा उसकी यादों के सहारे जी लूॅगा। उसके अलावा मेरी ज़िंदगी में दूसरी कोई लड़की कभी नहीं आएगी।"

प्रतिमा को ज़बरदस्त झटका लगा। ऐसा लगा जैसे सारा आसमान एकाएक ही भरभरा कर उसके सिर पर गिर पड़ा हो। उसे अपने काॅनों पर यकीन नहीं हो रहा था कि उसने शिवा के मुख से जो सुना वो सच है या ग़लत। कितनी ही देर तक वो किंकर्तब्यविमूढ़ सी स्थिति में बैठी उसे अपलक देखती रही।

"मैं जानता हूॅ माॅम कि आपको आज मेरी इन सब बातों पर बेहद आश्चर्य हो रहा होगा।" शिवा गंभीरता से कह रहा था___"बात भी सच है। किसी कौए से ये उम्मीद नहीं की जा सकती कि वो कोयल की तरह मीठा भी बोल सकता है। मगर सुना है कि जहाॅ किसी चीज़ की उम्मीद नहीं होती वहीं पर एक नया चमत्कार हुआ करता है। कदाचित मेरे साथ भी ऐसा ही हो गया है। कल सारी रात सोचता रहा मैं कि मैं क्यों सोनम की तरफ इस हद तक अट्रैक्ट होता जा रहा हूॅ? मेरे दिल में क्यों उसके लिए प्यार जाग रहा है? सवाल तो मुझे नहीं मिला मगर इतना एहसास ज़रूर हुआ कि सोनम के बिना मेरी ज़िंदगी का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। आज आपकी बातों ने मुझे अंदर से हिला तो दिया है माॅम मगर मेरे दृढ़ निश्चय में और भी ज्यादा इज़ाफा भी हो गया है।"

प्रतिमा को झटके पर झटके लग रहे थे। उसका दिलो दिमाग़ जाम सा हो चुका था। सुना तो था उसने भी कि प्रेम का रोग जब लगता है तो पत्थर से पत्थर दिल इंसान को भी पिघला देता है और उसका असर ये होता है कि इश्क़ के नशे में डूबा हुआ इंसान फिर बहुत ही खूबसूरत ख़यालों का बन जाता है। उसके मुख से कड़वी बातें नहीं निकला करती। इश्क़ हो जाने के बाद इंसान की सोच और उसके ख़यालात बदल जाते हैं। वो अपने प्रियतम की ही खुशियों के बारें में सोचता रहता है। हर पल यही सोचता है कि कभी ऐसा कोई पल न आने पाए जिसके तहत उसके प्रियतम को ज़रा सी भी तक़लीफ हो जाए। किसी के खूबसूरत चेहरे को अपनी पलकों तले बसा कर तथा उसकी याद के सहारे सारी ऊम्र काट लेने वाले डायलाॅग आज शिवा के मुख से खारिज़ हो रहे थे। जिसने किसी से इश्क़ किया होगा उसे ये बात ज़रूर समझ में आई होगी कि शिवा के ये डायलाॅग किस हद तक सच थे।

अभी प्रतिमा शिवा की इन सब बातों से बुत बनी बैठी ही थी कि सहसा तभी ड्राइंगरूम में नीलम व सोनम एक साथ आकर खड़ी हो गईं। प्रतिमा की नज़र जैसे ही उन दोनो पर पड़ी तो उसने जल्दी से अपने चेहरे के भावों को छुपा लिया और फिर एकाएक ही उसकी नज़र शिवा पर पड़ी तो मन ही मन चौंक पड़ी। शिवा की नज़र सोनम पर स्थिर थी। एकाएक ही उसकी ऑखों में सोनम के प्रति बेपनाह मोहब्बत का सागर भीषण हिलोरें लेता हुआ नज़र आया उसे। कहते हैं कि ऑखें सब कुछ बयां कर देती हैं। प्रतिमा को शिवा की ऑखों ने बता दिया कि वो सोनम के प्रति अपने वजूद के हर ज़र्रे पर सिर्फ और सिर्फ मोहब्बत छलकाए बैठी हैं।

"माॅम मैं और सोनम दीदी।" उधर ड्राइंगरूम में आते ही नीलम ने खुशी वाले लहजे में कहा___"घूमने जा रहे हैं। दीदी कह रही हैं कि उन्हें हमारा ये गाॅव देखना है औ हमारे खेत भी देखना है।"

"ओह चल ठीक है।" प्रतिमा ने सहसा नीलम की तरह ध्यान से देखते हुए कहा___"पर तुम दोनो अकेले कैसे जाओगी?"
"इनके साथ मैं चला जाता हूॅ माॅम।" शिवा भला ये सुनहरा अवसर अपने हाॅथ से कैसे जाने देता, अतः तपाक से बोल पड़ा था____"मैं इन्हें बहुत अच्छे से अपना ये गाॅव और अपने सारे खेत दिखा दूॅगा।"

"कोई ज़रूरत नहीं तुझे हमारे साथ जाने की।" नीलम ने सहसा तुनक मिजाज़ी से कहा___"हम दोनो खुद ही देख लेंगे। क्यों दीदी?"
"बात तो तेरी सही है।" सोनम ने कहा___"लेकिन शिवा को भी साथ ले लेंगे तो कोई दिक्कत थोड़ी न है। आख़िर भाई है वो हमारा। हमारे साथ रहेगा तो हमें भी कंफर्टेबल फील होगा। है न मौसी?"

"बिलकुल ठीक कहा तुमने बेटा।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"लेकिन अगर ये जाएगा तो नीलम और ये दोनो आपस में झगड़ा ही करेंगे। इस लिए एक काम करो बाहर खड़े हमारे सुरक्षा करने वाले आदमियों में से एक दो को साथ ले जाओ। वो क्या है न ज़माना बहुत ख़राब है। कोई ऊॅच नीच हो गई तो समस्या हो जाएगी। इस लिए तुम दोनो के साथ में दो सुरक्षा करने वाले आदमी रहेंगे तो मैं भी बेफिक्र रहूॅगी।"

"हाॅ ये ठीक रहेगा माॅम।" नीलम ने शिवा को चिढ़ाने के लिए अपनी जीभ दिखाते हुए कहा___"इस लंगूर से तो वो ही अच्छे रहेंगे। हमें भी लगेगा कि उनके रहते हम पर कोई ऑच नहीं आएगी। इसके रहते तो कोई भी हमें छेंड़ सकता है और ये बेचारा मार के डर से कुछ बोल भी नहीं पाएगा।"

"ओये क्यों मेरे भाई को ऐसा बोल रही है तू?" सोनम ने ऑखें दिखाते हुए कहा___"अच्छा भला स्मार्ट तो है हमारा भाई। तेरी ऑखें ख़राब हैं जो तुझे वो लंगूर नज़र आता है।"

"आपने सही कहा दीदी।" शिवा ने आवेश में सोनम को दीदी कह तो दिया मगर अगले ही पल उसकी आवाज़ काॅप गई। मन ही मन उसे अपनी बेबसी पर बेहद क्रोध आया मगर फिर खुद को सम्हाल कर बोला___"जो खुद ही बंदरिया जैसी हों उन्हें सामने वाला लंगूर ही दिखेगा न।"

"ओये तमीज़ से बात कर समझा।" नीलम ने घुड़की सी दी उसे___"भूल मत कि मुझसे छोटा है तू और फिर अगर मैने तुझे लंगूर कह भी दिया तो क्या हो गया? मैने तो तुझे प्यार से लंगूर कहा है।"

"वाह दीदी वाह।" शिवा कह उठा___"प्यार से कहने के लिए लंगूर शब्द ही मिला था आपको? देख लीजिए माॅम, मैं छोटा हूॅ तो सब मुझसे अपने बड़े होने का रौब झाड़ते हैं।"

शिवा ने इतनी मासूमियत से ये कहा था कि सोनम के होठों पर मुस्कान उभर आई। वो तुरंत ही शिवा के बगल पर जाकर बैठी और फिर उसे अपने साइड से छुपका कर बोली____"जाने दे न भाई। ये छिपकली तो है ही दिमाग़ से पैदल लेकिन मैने तो तुझे ऐसा वैसा कुछ नहीं कहा न? मुझे पता है तू हमारा सबसे स्वीटेस्ट भाई है। चल अब नाराज़गी छोंड़ और मुस्कुरा कर दिखा। उसके बाद हमें घूमने भी जाना है।"

सोनम की बातों का असर पलक झपकते ही शिवा पर न हो ऐसा तो अब हो ही नहीं सकता था। वैसे भी अब तो अगर वो उसे ज़हर खाने को भी बोलती तो वो खुशी से खा लेता। ख़ैर सोनम के कहने पर उसके इस तरह उसे छुपका लेने पर शिवा का चेहरा ताज़े खिले गुलाब की मानिंद खिल उठा था। इस वक्त वो इतना खुश हो गया था कि अब अगर उसे मौत भी आ जाती तो वो उसके लिए भगवान से शिकवा न करता।

उधर प्रतिमा चुप बैठी इन तीनो की बातें सुन रही थी और नीलम व सोनम दोनो के ही चेहरों को बड़े ध्यान से देखे जा रही थी। जैसे समझना चाहती हो कि दोनो के मन में घूमने जाने के सिवा कुछ और तो नहीं है। शिवा को वो इन दोनो के साथ जान बूझ कर नहीं भेज रही थी। क्योंकि उसे पता था कि शिवा इस वक्त सोनम के प्यार में पागल है। सोनम ने अगर उसे किसी बात के लिए कहीं भेज दिया तो वो बिना कुछ सोचे समझे चला जाएगा और ये दोनो उसके चले जाने पर कुछ भी करने के लिए आज़ाद हो जाएॅगी। प्रतिमा इस बात के लिए मना भी नहीं कर सकती थी कि वो दोनो घूमने न जाएॅ। इसी लिए शिवा की जगह वो उन्हें सुरक्षा गार्ड्स को साथ में जाने का कह रही थी।

"तो कब जाना है तुम दोनो को?" फिर प्रतिमा ने पूछा।
"कब जाना है क्या मतलब है माॅम?" नीलम ने कहा___"हम दोनो तो तैयार होकर आ ही गए हैं और जा ही रहे थे।"
"चलो ठीक है।" प्रतिमा ने कहने के साथ ही शिवा की तरफ देखा___"बेटा जाओ तुम गेस्ट हाउस से दो आदमियों को बोल दो। वो इन दोनो के साथ चले जाएॅगे।"

प्रतिमा के मन में अचानक ही गेस्ट हाउस में ठहरे उन आदमियों का ख़याल आया था। जिन्हें अजय सिंह के बिजनेस संबंधी दोस्त मदद के लिए भेज गए थे। नीलम व सोनम के साथ उनमे से ही किन्हीं दो आदमियों को भेजना उचित लगा था उसे। वो हर तरह से इन दोनो की सुरक्षा कर सकते थे। उसे अपने आदमियों की काबीलियत पर अब कोई भरोसा नहीं रह गया था। ख़ैर प्रतिमा के कहने पर शिवा सोफे से उठा और बाहर की तरफ चला गया।

"तो तुम दोनो कैसे जाओगी यहाॅ से?" प्रतिमा ने शिवा के जाते ही पूछा___"मेरा मतलब है कि घूमने के लिए किसी कार या जीप से जाओगी या ऐसे ही पैदल जाना है?"
"इतना ज्यादा पैदल कौन चल पाएगा माॅम?" नीलम ने कहा___"पहले सारा गाॅव घूमना फिर खेतों की तरफ जाना। नहीं माॅम, इतना ज्यादा पैदल चलना मेरे बस का तो हर्गिज़ भी नहीं है।"

"हाॅ मुझे पता था यही कहोगी तुम।" प्रतिमा ने मन ही मन खुश होते हुए कहा___"ख़ैर, बाहर जीप खड़ी है। उसमे ही बैठ कर चले जाना और हाॅ उन आदमियों के साथ ही रहना।"
"ओके माॅम।" नीलम ने कहा___"वैसे आज लंच में क्या बनेगा? वो क्या है न मुझे आज आपके हाॅथ का बना बैगन का हलवा खाना है।"

"क..क्या कहा????" सोनम उसकी बात सुन कर बुरी तरह चौंकी थी। जबकि प्रतिमा कहने के साथ ही इधर उधर देखने लगी थी।
"भागो दीदी भागो।" नीलम सोनम का हाॅथ पकड़ कर खींचते हुए बोली___"वरना माॅम मेरे साथ साथ आपकी भी पिटाई करने लगेंगी डंडे से।"

सोनम को कुछ भी समझ में न आया कि ये अचानक हुआ है क्या है? बैगन का हलवा और फिर नीलम का ये कहना कि भागो वरना माॅम डंडे से पिटाई करने लगेंगी। सोनम को कुछ समझ न आया। ये अलग बात है कि नीलम के खींचने पर वह सोफे से उठ कर बाहर की तरफ ही लड़खड़ाते हुए भाग ली थी। जबकि इधर प्रतिमा उन दोनो के जाते ही मुस्कुरा कर रह गई थी।

नीलम व सोनम जैसे ही बाहर आईं तो देखा कि शिवा के साथ दो हट्टे कट्टे आदमी जीप के पास ही खड़े थे। शिवा उन्हें कुछ बता रहा था। ये देख कर नीलम व सोनम उस तरफ बढ़ चलीं। जीप के पास पहुॅचते ही वो दोनो शिवा के पास ही खड़ी हो गईं।

"दीदी ये दोनो आप लोगों के साथ जाएॅगे।" शिवा ने नीलम की तरफ देखते हुए कहा___"बाॅकी माॅम ने तो आपको सब कुछ समझा ही दिया होगा।"
"हाॅ समझा दिया है।" नीलम ने कहा___"और हाॅ इनको बोल दे कि हमारा हर कहना भी मानेंगे।"

"अरे दीदी ये सब कहने की ज़रूरत नहीं है।" शिवा ने कहा___"ये दोनो बहुत अच्छे और समझदार ब्यक्ति हैं। आपको पता नहीं है ये दोनो ही तगड़े फाइटर हैं। इनके रहते आप दोनो को कोई छू भी नहीं सकता।"
"ओह आई सी।" नीलम ने कहा___"फिर तो अच्छी बात है। चलिये दीदी जीप में बैठते हैं।"

थोड़ी ही देर में नीलम व सोनम जीप में बैठ गईं। एक आदमी जीप की ड्राइविंग शीट पर बैठ गया जबकि दूसरा उसके बगल में। जीप की पिछली शीट पर नीलम व सोनम बैठ गई थी। जीप जैसे ही चलने लगी तो शिवा ने सोनम की तरफ प्यार भरी नज़रों से देखते हुए बस इतना ही कहा घूम फिर कर जल्दी आइयेगा। उसकी इस बात पर नीलम व सोनम दोनो ही मुस्कुरा उठीं। किन्तु इस बार उनकी इस मुस्कान में ऐसा भेद छिपा था जिसे शिवा जैसा कूढ़मगज लड़का किसी भी तरह से नहीं समझ सकता था।
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उधर मुम्बई में।
सबके आ जाने से पूरे बॅगले में एक अलग ही रौनक तथा चहल पहल सी हो गई थी। किन्तु खिले खिले चेहरों पर भी एक उदासी थी जो इस बात का सबूत थी कि विराज के यहाॅ न होने से सब कितने उदास थे। सबको पता था कि विराज किस काम के लिए इस बार गाॅव गया हुआ था। सबके साथ तो गौरी घुली मिली रहती किन्तु अकेले में अपने बेटे के लिए बहुत दुखी हो जाती थी। उसे इस बात की तक़लीफ भी थी कि विराज जब से गया था तब से एक दिन भी फोन नहीं लगाया था और ना ही जगदीश ओबराय की वजह से उसने अपने बेटे को फोन लगाया था।

जगदीश ओबराय ने गौरी से कहा था कि वो फोन करके विराज को कमज़ोर न बनाए। माॅ बेटे के बीच का रिश्ता भावनाओं के बहुत ही नाज़ुक बंधन से जुड़ा होता है जिससे दोनो ही ऐसे हालातों में कमज़ोर पड़ जाते हैं। किन्तु जगदीश ओबराय ने ये भी कहा था वो ईश्वर से अपने बेटे की सलामती की दुवा करे। ये उसकी जंग है उसे स्वतंत्रता पूर्वक इस जंग को इसके अंजाम तक पहुॅचाने दो। सब अपनी अपनी जगह विराज के लिए चिंतित थे तथा परेशान थे मगर सबके दिलों में उसके लिए प्यार था। सबके होठों पर उसकी सलामती के लिए दुवाएॅ थी।

गौरी, करुणा तथा पवन की माॅ। पवन की माॅ का नाम रुक्मणी था। ये तीनो ही आपस में खूब सारी बातें करती रहती थी। किन्तु अकेले में तीनों ही विराज के लिए चिंतित हो जाती थी। एक दूसरे को अपनी चिंता व परेशानी नहीं दिखाती थी। क्योंकि कोई नहीं चाहता था कि सबके बीच एक तनाव या दुख भरा माहौल क्रियेट हो जाए। जगदीश ओबराय व अभय सिंह खुद भी अपनी जगह विराज के लिए चिंतित थे मगर सबको तसल्ली देते रहते थे और यही कहते कि सच्चाई की हमेशा विजय होती है। इस लिए इसके लिए इतना चिंतित व परेशान न हों कोई।

पवन को जगदीश ओबराय ने अपनी कंपनी में ही एक अच्छी पोस्ट पर काम में लगा दिया था। अतः पवन अब ज्यादातर कंपनी में ही रहता था। किन्तु हर वक्त उसका मन अपने दोस्त के लिए अशान्त रहता था। उसे विराज से शिकायत भी थी कि वो उसे यहाॅ सुरक्षित छोंड़ कर खुद मौत के मुह में चला गया था।

पवन की बहन आशा ज्यादातर निधी के साथ ही रहती थी। निधी सुबह स्कूल जाती और फिर शाम को वापस आ जाती थी। हर समय अपनी शरारतों से सबको परेशान करने वाली ये गुड़िया अचानक से इस तरह ख़ामोश हो गई थी जैसे ये शदियों से ऐसी ही रही थी। उसकी इस ख़ामोशी को सब यही समझते कि वो अपने प्यारे से बड़े भइया के लिए सबकी तरह ही दुखी है। कोई ये नहीं जानता था कि उसने अपनी छोटी सी इस ऊम्र अपने ही भइया से प्रेम का कितना बड़ा रोग लगा लिया था। जिसके चलते उसका हर समय शरारतें करना जाने कहाॅ गुम होकर रह गया था।

आशा को पता था कि निधी शुरू से ही ऐसी नहीं थी। शुरू शुरू में उसकी इस ख़ामोशी को वो खुद भी यही समझती थी कि वो सबकी तरह विराज के लिए दुखी है। इस लिए अब वो शरारतें नहीं करती है। मगर जल्द ही उसे इस कारण के अलावा भी दूसरा कारण समझ में आ गया था। दरअसल निधी भी अब अपने भाई की तरह डायरी लिखने लगी थी। जिसमें वो अपने और अपने प्रियतम भाई के बीच जन्में इस प्रेम के हर पहलुओं के बारें में लिखती थी। अपने दिल के जज़्बातों को वो डायरी के कागज़ों पर लिखती थी। उसे पता था कि डायरी में उसके द्वारा लिखा गया हर लफ़्फ किसी डायनामाइट से कम नहीं है। कहने का मतलब ये कि अगर किसी को ये पता चल जाए कि सबके दिलों में राज करने वाली उनकी ये नटखट गुड़िया अपने ही सगे भाई से प्रेम करती है तो यकीनन इस बात से डायनामाइट की तरह विस्फोट हो जाना था।

डायरी में अपने दिल का हाल बयां करने के बाद निधी उस डायरी को अपने कमरे में ही रखी आलमारी के अंदर वाले लाॅकर में रख कर लाॅक लगा देती थी। मगर एक दिन कदाचित उसका भेद खुल जाना था इस लिए उससे ग़लती हो गई। दरअसल पिछले दिन सुहब सुबह की ही बात है। आशा चाय लेकर निधी के कमरे में पहुॅच गई। उसने देखा कि बेड पर चित्त अवस्था में लेटी निधी के सीने पर एक मोटी सी डायरी थी जिसे वो दोनो हाॅथों से पकड़े सोई हुई थी। आशा जो कि निधी के साथ ही रहती थी। पिछली रात उसे आधी रात के क़रीब शूशू लगी तो उसकी नींद खुल गई। उसने देखा कि रात के उस वक्त टेबल लैम्प जला कर निधी कुछ लिख रही थी। उस वक्त उसने सोचा था कि वो अपनी पढ़ाई ही कर रही है। बाथरूम से आने के बाद उसने कहा भी था उससे कि अब उसे सो जाना चाहिए।

आशा ने प्लेट सहित चाय के कप को बेड के पास ही दीवार से सटे एक छोटे से टेबल पर रखा और फिर वो निधी के पास गई। उसकी नज़र डायरी पर पड़ी। आशा ने ग्रेजुएशन तो नहीं किया था किन्तु दस बारह तक पढ़ी लिखी थी वो। हल्दीपुर गाॅव में बारवीं तक स्कूल था। आगे काॅलेज की पढ़ाई पढ़ने के लिए चिमनी जाना पड़ता था, जो कि पास के ही गाॅव में था। ख़ैर, डायरी देख कर उसे ये तो समझ आ गया कि ऐसी डायरी निधी की पढ़ाई में तो उपयोग होती नहीं होगी तो फिर ऐसा क्या है इसमें जिसे वो सोते समय भी लिए हुए है।

आशा ने बहुत ही आहिस्ता से निधी के हाॅथों से उस डायरी को निकाला और फिर बेड से दो कदम पीछे हट कर उसने डायरी को खोला। डायरी के शुरू के काफी पेज अलग अलग चीज़ों से भरे थे। जैसे कि हर देश के कोड्स वगैरा। अपने देश भारत के अलग अलग राज्यों के मानचित्र। उसके बाद मुख्य पेज शुरू होते थे।
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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मुख्य पेज पर ही मोटे मोटे अच्छरों में आशा को लिखा नज़र आया____"जियें तो जियें कैसे....बिन आपके??" इस टाइटल के नीचे ही एक मध्यम साइज़ के दो दिल बने हुए थे, जो कि साथ में ही मिले हुए थे। जिसमे एक तरफ वाले में राज और दूसरे वाले में निधी लिखा था। उसके नीचे मोटे अच्छरों में ही लिखा था____"MY LOVE"

आशा को ये सब देख कर ज़बरदस्त झटका लगा। इतना कुछ देख कर कोई भी समझ सकता था कि माज़रा क्या है? आशा ये जान कर हैरान रह गई कि निधी अपने ही बड़े भाई से प्यार करती है। आशा ने झटके से बेड पर सो रही निधी के चेहरे की तरफ देखा। निधी के चेहरे पर इस वक्त सारे संसार की मासूमियत विद्यमान थी। उस चेहरे को देख कर उसे यकीन ही नहीं हुआ कि ये ऐसा कर सकती है। मगर उसके ही द्वारा लिखा गया ये हर लफ्ज़ क्या झूॅठा हो सकता था?

आशा के पूरे जिस्म में एक अजीब सी झुरझुरी तेज़ रफ्तार से दौड़ गई। अंदर ही अंदर जैसे एकाएक ही कोई तेज़ जज़्बातों का भयंकर तूफान उठा जिसने उसके समूचे अस्तित्व को हिला कर रख दिया। उसी जज़्बातों के तूफान का असर था कि उसकी ऑखों में एकाएक ही ऑसू भर आए थे। फिर जैसे उसने खुद के जज़्बातों को सम्हाला और डायरी के उस पेज को पलटा। दूसरे पेज पर कोई ग़ज़ल लिखी हुई थी जिसे आशा ने पढ़ना शुरू किया।
अजब हाल है दिल का बताना भी नहीं मुमकिन।
लब ख़ामोश हैं ऑखों से जताना भी नहीं मुमकिन।।

सबके सामने मुस्कुराने का हुनर भी सीख लेंगे,
मगर तन्हाई में वो हुनर आजमाना भी नहीं मुमकिन।।

तौबा तो की है हमने के तुमसे रूबरू न होंगे मगर,
एक पल फाॅसलों में रह पाना भी नहीं मुमकिन।।

बहुत दिल को समझाया मगर ये एहसास हुआ,
किसी तरह दिल को बहलाना भी नहीं मुमकिन।।

ज़हर दे दो हमको और ये किस्सा तमाम कर दो,
यूॅ तड़प तड़प कर जी पाना भी नहीं मुमकिन।।

माफ़ करना के हमने बेरुख़ी अख़्तियार कर ली,
क्या करें के कोई और बहाना भी नहीं मुमकिन।।
पूरी ग़ज़ल पढ़ने के बाद आशा का दिलो दिमाग़ सुन्न सा पड़ता चला गया। अभी वो ये सब सोच ही रही थी कि सहसा वो बुरी तरह चौंकी। बेड पर पड़ी निधी के जिस्म में हलचल सी हुई प्रतीत हुई उसे। ये देख कर आशा ने जल्दी से डायरी को आगे बढ़ कर निधी के बगल से ही ऐसी पोजीशन में रख दिया कि अगर निधी की नज़र उस पर पड़े भी तो उसे यही लगे कि वो डायरी उसके हाॅथों से सोते वक्त ही छूट कर एक तरफ गिर गई थी। डायरी रखने के बाद आशा जल्दी से टेबल पर से चाय का कब प्लेट सहित उठाया और फिर अपने चेहरे पर खुशी तथा प्यार के भाव लाते हुए निधी के चेहरे के क़रीब झुकते हुए कहा____"गुड मार्निंग गुड़िया। चलो चलो सुबह हो गई है। देखो तो गरमा गरम चाय तुम्हारे पेट में जाने के लिए कैसे उतावली हो रही है।"

आशा के इस प्रकार कहने पर निधी ने कुछ ही पलों में अपनी ऑखें खोल दी और फिर आशा की तरफ देख कर वो बस ज़रा सा ही मुस्कुराई। आशा के हाॅथ में चाय का कप देख कर वो बेड से उठी और बेड की पिछली पुश्त की तरफ खिसक कर उसने अपनी पीठ उस पर टिकाई और फिर उसने आशा के हाथ से चाय का कप ले लिया। जबकि चाय का कप पकड़ाते ही आशा सीधी खड़ी हो गई। वो देखना चाहती थी कि निधी की नज़र जब अपनी डायरी पर पड़ेगी तो उसका कैसा रिएक्शन होता है?

आशा को इसके लिए ज्यादा देर तक इन्तज़ार नहीं करना पड़ा। निधी ने कप से चाय का पहला ही शिप लिया था कि उसकी नज़र बाएॅ साइड उल्टी पड़ी अपनी डायरी पर पड़ी और फिर उसके चेहरे पर एकदम से डर और घबराहट के मिले जुले भाव उभर आए। उसके पीछे खिसकने से डायरी उलट कर थोड़ी और दूर हो गई थी तथा उलट सी गई थी। निधी ने फौरन ही अपना एक हाॅथ बढ़ा कर डायरी को अपने कब्जे में ले लिया और वहीं अपने हिप्स के पास ही लगभग छुपा सा लिया उसे। उसकी इस नादानी पूर्ण हरकत से आशा के होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई। उसके मन में पहले तो आया कि वह उससे उस डायरी तथा डायरी में लिखे मजमून के संबंध में कोई बात करे मगर उसने ये सोच कर अपने मन से इस ख़याल को झटक दिया कि उसके पूछने पर कहीं निधी बुरी तरह डर न जाए।

"अच्छा मैं जा रही हूॅ गुड़िया।" फिर आशा ने सामान्य भाव से कहा___"पवन को भी उठा दूॅ। उसे भी ड्यूटी जाना होगा न और हाॅ तू भी जल्दी से फ्रेश होकर नीचे आ जाना। ब्रेकफास्ट रेडी होने ही वाला है।"
"ठीक है दीदी।" निधी ने भी खुद को सामान्य दर्शाते हुए कहा___"आप जाइये मैं आती हूॅ थोड़ी देर में।"

निधी की बात सुन कर आशा कमरे से बाहर चली गई। जबकि उसके जाने के बाद निधी एकाएक ही गहन विचारों में कहीं खो सी गई। अभी वो विचारों में खोई ही थी कि तभी उसका मोबाइल फोन बज उठा। उसने सिरहाने पर ही एक तरफ रखे मोबाइल को उठाया और स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे अनजान नंबर को देखा। उसके चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे। उसे समझ न आया कि उसके मोबाइल पर ये अनजान नंबर से आने वाली काल किसकी हो सकती है?

"हैलो।" फिर जाने क्या सोच कर उसने काल रिसीव किया और उसे कानों से लगाते ही कहा था।
"हैलो गुड़िया।" उधर से रितू की जानी पहचानी आवाज़ सुन कर निधी बुरी तरह चौंक पड़ी थी। उसे आशा, रुक्मणी, पवन और करुणा आदि के द्वारा पता चल गया था कि रितू विराज का पूरी तरह से साथ दे रही है। रितू के इस तरह अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ हो जाने से हर कोई हैरान था। मगर सब ये भी जानते थे कि रितू एक अच्छी लड़की है। वो ग़लत का साथ कभी नहीं दे सकती। उसके माॅ बाप ने अब तक उससे सच छुपाया हुआ था इसी लिए उसका बर्ताव इन लोगों के प्रति ऐसा था।

"गुड़िया तू सुन रही है न?" निधी के चुप रह जाने पर उधर से रितू की पुनः आवाज़ उभरी___"देख, तुझे पूरा हक़ है मुझसे नाराज़ होने का और तुझे नाराज़ होना भी चाहिए। मैं चाहती हूॅ कि तेरा जो मन करे तू मुझे वो सज़ा दे मेरी गुड़िया। तेरी हर सज़ा मैं हॅसते हॅसते कुबूल कर लूॅगी। बस एक बार अपने मुख से मुझे दीदी कह दे। कसम से उसके बाद अगर मुझे मौत भी आ जाएगी तो उसका मुझे कोई दुख नहीं होगा।"

"न..नहींऽऽऽ।" रितू की बातों से निधी की ऑखों से पलक झपकते ही ऑसू बह चले, बुरी तरह तड़प कर बोली___"ये आप कैसी बातें कर रही हैं दीदी? मुझे आपसे कोई शिकायत कोई नाराज़गी नहीं है। मुझे पता है कि इस सबमें आपका कभी कोई दोष था ही नहीं। इस लिए प्लीज आप ये सब मत कहिए। मुझे तो बहुत खुशी हो रही है कि मेरी सबसे अच्छी वाली दीदी ने मुझे फोन किया।"

"हाॅ पर मुझे खुशी नहीं हुई।" उधर से रितू ने अजीब भाव से कहा___"और वो इस लिए कि मेरी सबसे प्यारी गुड़िया ने अपनी इस गंदी दीदी को कोई सज़ा नहीं सुनाई।"
"प्लीज दीदी।" निधी ने आहत भाव से कहा___"ऐसा मत कहिए न खुद को और अगर आपने दुबारा फिर से अपने लिए ऐसा कहा तो मैं आपसे बात नहीं करूॅगी, हाॅ नहीं तो।"

इस बार निधी के ऐसा कहने पर उधर से रितू की रुलाई फूट गई। यही यो सुनना चाहती थी वो निधी के मुख से। निधी के मुख से उसका ये तकिया कलाम कितना मीठा लगता था इसका एहसास वहीं कर सकती थी। मोबाइल पर रितू के सिसकने की आवाज़ सुन कर निधी भी दुखी हो गई। वह फोन पर ही रितू को अपने तरीके से मनाने लगी कि वो न रोएॅ। आख़िर कुछ देर बाद सब ठीक हो ही गया।

"और बताइये दीदी।" फिर निधी ने सामान्य भाव से कहा___"आज आपको मेरी याद कैसे आ गई?"
"तेरी याद तो रोज़ ही आती है गुड़िया।" उधर से रितू ने सहसा गंभीरता से कहा___"किन्तु अपराध बोझ के चलते तुझसे बात करने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी।"

"आप फिर से ऐसी बातें करने लगीं।" निधी ने कहा___"इन बातों को अब जाने दीजिए न दीदी। ख़ैर ये बताइये कि कैसी हैं आप?"
"मैं तो अच्छी ही हूॅ गुड़िया।" रितू ने कहा___"पर मेरा दिल करता है कि तुझे कितना जल्दी अपनी ऑखों के सामने देखूॅ और तुझसे ढेर सारी अच्छी अच्छी बातें करूॅ भी और तुझसे सीखूॅ भी।"

"मेरा भी ऐसा ही दिल करता है दीदी।" निधी ने कहा___"मगर शायद अभी ये मुमकिन नहीं है।"
"हाॅ ये तो है गुड़िया।" रितू ने कहा___"अच्छा एक बात पूछूॅ तुझसे?"
"हाॅ जी दीदी।" निधी के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे___"पूॅछिए न।"

"क्या राज ने तुझे कुछ कहा है?" उधर से रितू ने कहा___"या फिर किसी बात पर उसने तुझे डाॅटा है। तू मुझसे बता गुड़िया मैं यहाॅ इसके काॅन खींचूॅगी। इसकी हिम्मत कैसी हुई मेरी गुड़िया को कुछ कहने की।"
"नहीं नहीं दीदी।" निधी बुरी तरह हड़बड़ा गई थी, बोली___"ऐसा कुछ भी नहीं है। मुझे किसी ने कुछ नहीं कहा। आपको ऐसा क्यों लगा दीदी?"

"राज बता रहा था।" रितू ने निधी की धड़कनों को बढ़ाते हुए कहा___"कि तू कुछ समय से उससे बात ही नहीं कर रही है और ना ही तू उसके सामने आती है। उसका कहना है कि उसने तो ऐसा तुझे कुछ भी नहीं कहा जिससे तू उससे बात ही करना बंद कर दे। मुझे पता है कि वो तुझे अपनी जान से भी ज्यादा चाहता है। अगर तुझे ज़रा सी भी किसी चीज़ से तक़लीफ हो जाए तो उसकी जैसे जान पर बन आती है। फिर क्या बात है गुड़िया, आख़िर ऐसी कौन सी बात हो गई है जिससे तू उससे बात नहीं करती है। यहाॅ तक कि उसके सामने भी नहीं आना चाहती?"

निधी को समझ न आया कि वो रितू को इसका क्या जवाब दे? सच्चाई वो बता नहीं सकती थी और झूॅठ तो ऐसा होता है जो ज्यादा दिनों तक छुपा नहीं रह सकता था। हलाॅकि उसे ये उम्मीद नहीं थी कि विराज ये सब समझता न होगा। उसे तो ये भी उम्मीद नहीं थी कि वो ये बात सीधे तौर पर रितू दीदी से बोल देगा।

"क्या हुआ गुड़िया?" निधी को ख़ामोश जान कर उधर से रितू ने फिर कहा___"तू चुप क्यों हो गई? बता न क्या बात हो गई है ऐसी?"
"ऐसी कोई बात नहीं है दीदी।" निधी अब बोले भी तो क्या___"मैं तो बस ऐसे ही नाराज़ हूॅ उनसे। आप तो जानती ही हैं कि मैं कैसी हूॅ।"

"एक बात हमेशा याद रखना गुड़िया।" उधर से रितू ने कहा___"तू हम सबकी जान है, खास कर राज की। तुझे नहीं पता कि तेरे बात न करने से वो यहाॅ कितना दुखी रहता है। मुझे तो पता ही न चलता अगर मैं कल रात उसके कमरे में अचानक पहुॅच न गई होती तो। मेरे पूछने पर ही उसने ये सब बताया। ख़ैर, एक बात और कहना चाहती हूॅ गुड़िया और वो ये कि मैने तो अपने माॅ बाप और भाई से हर रिश्ता तोड़ लिया है। क्योंकि वो सब बुरे ही नहीं बल्कि पापी लोग हैं। इस दुनिया में अब अगर मेरा कोई सच्चा भाई है तो वो है राज। मुझे पता है कि हमारा भाई राज कोहिनूर हीरा है। उसके दिल में सबके लिए बेपनाह प्यार और सम्मान है। इस लिए ये हम सबका भी फर्ज़ बनता है कि हम उसे वैसा ही प्यार व सम्मान दें।"

"मुझे पता है दीदी।" निधी ने कहा___"और यकीन मानिए कि उनके लिए मेरे दिल में बेपनाह प्यार व सम्मान है और ये मरते दम तक कम न होगा बल्कि बढ़ता ही जाएगा।"

"मुझे तुमसे यही उम्मीद है गुड़िया।" रितू ने निधी की बातों को सामान्य ही समझते हुए कहा___"और देखना जिस दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा न उस दिन से हम सब एक साथ ही रहेंगे और हम सभी बहनें अपने भाई को जी भर के प्यार करेंगे।"

"जी बिलकुल दीदी।" निधी के होठों पर सहसा फीकी सी मुस्कान उभर आई___"अच्छा दीदी अब हम बाद में बात करेंगे। वो क्या है न कि मुझे बाथरूम जाना है। फिर स्कूल भी जाना है।"
"ओह हाॅ।" रितू ने कहा___"चल ठीक है गुड़िया। अच्छे से पढ़ाई करना और हाॅ अपना ख़याल भी रखना।"

इसके साथ ही फोन काल कट गई। निधी ने गहरी साॅस ली और फिर कुछ देर तक इन सारी बातों के बारे में सोचती रही। फिर वो उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गई।
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इधर मैं नीलम को मैसेज के द्वारा सब कुछ समझाने के बाद विधी के मम्मी पापा या यूॅ कहूॅ कि अपने सास ससुर से मिला। ये पहला अवसर था जब मैं उनके पास हर काम से फारिग़ होकर मिला था। मैने इसके पहले उनसे न मिल पाने के लिए माफ़ी भी माॅगी। ये अलग बात है कि उन दोनो ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और ढेर सारा प्यार और दुवाएॅ दी। मुझे अपने सीने से जाने कितनी ही देर तक लगाए रहे थे वो। मैं समझ सकता था कि वो इस वक्त भावनाओं के भॅवर में गोते लगा रहे होंगे। नैना बुआ ने मेरे बारे में सब कुछ उन्हें बता दिया था। सब कुछ जान कर उन्हें दुख भी हुआ और खुशी भी हुई।

काफी देर तक मैं उनके पास ही बैठा रहा उसके बाद मैं उनसे इजाज़त लेकर हरिया काका के पास आ गया। हरिया काका से मैने मंत्री के पिल्लों का हालचाल लिया और उन्हें ये कहा कि मंत्री की बेटी को गंदे तरीके से टार्चर न करें। उन्हें ये भी कहा कि वो उन लड़कों के साथ भी वो सब न करें जो इसके पहले वो कर रहे थे। मैने ऐसा इस लिए कहा कि अब उन लड़कों के साथ ही उनकी बहन भी थी। उसका इस सबमें कोई कुसूर तो था नहीं इस लिए उसके सामने उन लड़कों के साथ वो सब करना उचित नहीं था।

मेरी बातें हरिया काका को समझ में आ गई थी। मंत्री की बेटी रचना पहले की अपेक्षा अब बिलकुल चुप ही रहती थी। अपने भाई के साथ साथ तथा भाई के तीनों दोस्तों की तरफ उसका देखने का भी मन नहीं करता था। ज़ाहिर है कि उसकी ऑखों के सामने हरिया काका ने उसके भाई के साथ वो सब किया था जिसके चलते उसे अपने आप में जिल्लत महसूस हुई थी और वो सब उसके भाई की करतूतों की वजह हे ही हुआ था।

सुबह का नास्ता हम सबने एक साथ ही किया और फिर मैं और आदित्य घर से बाहर की तरफ चल दिये। अभी दो क़दम ही हम दोनो आगे बढ़े थे कि पीछे से रितू दीदी की आवाज़ आई। उनकी आवाज़ से हम दोनो ही ठिठक गए। थोड़ी देर में रितू दीदी हमारे पास आ गईं। इस वक्त वो कत्थई कलर के जीन्स और उसी से मैच करते टाप में थी। टाप के ऊपर लेदर की छोटी सी जाॅकेट डाला हुआ था उन्होंने। ऑखों में सन ग्लासेज था। मैं उन्हें इस लुक में देखता ही रह गया। मेरे इस तरह देखने पर उन्होंने मुस्कुरा कर मेरे दाहिने गाल पर हल्की सी चपत लगाई और फिर हमारे साथ ही बाहर की तरफ चलने लगीं।

"एक बात तुम दोनो ही कान खोल कर सुन लो।" बाहर आते ही रितू दीदी ने हिटलरी अंदाज़ में हम दोनो की तरफ एक एक नज़र देखते हुए कहा___"मुझसे बग़ैर पूॅछे अथवा मेरी जानकारी के बिना तुम दोनो कोई भी काम नहीं करोगे। हम हर काम एक साथ ही करेंगे। कुछ समझ में आया तुम दोनो को? या फिर मैं दूसरे तरीके से समझाऊॅ?"

"दूसरे तरीके से कैसे दीदी?" मैने मुस्कुराते हुए शरारत से पूछा था।
"मेरे पास दूसरा एक ही तरीका है माई डियर ब्रदर।" रितू ने लेदर की जाॅकेट के एक छोर को पकड़ कर हल्का सा एक तरफ किया तो जींस के पैन्ट में खोंसा हुआ उनका सर्विस रिवाल्वर नज़र आ गया हमें। जबकि उसे दिखाते ही उन्होंने कहा____"जब काम बातों से न बने तो फौरन इस रिवाल्वर की नाल सामने वाले की खोपड़ी में लगा कर सारा काम उसे समझा देना चाहिए। दैट्स आल। आई होप कि तुम दोनो अब अच्छी तरह समझ गए होगे।"

"चलिए आपने इतना कान्फिडेंस के साथ कहा है तो समझ ही लेते हैं।" मैने पुनः शरारत से कहा___"वरना हम दोनो तो ऐसे कूढ़मगज इंसान हैं जो किसी भी तरह से नहीं समझ पाते। क्यों आदी??"

"तू मुझे ज़रूर मरवाएगा अब।" आदित्य दूर हटते हुए बोल पड़ा था।
"क्या यार।" मैने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"सारे इमेज का बेड़ा गर्क़ कर दिया तुमने। मेरा दोस्त होकर डर गया? हद है यार, तुम्हें तो मेरी तरह थर थर काॅपने लग जाना चाहिए था।"

"बहुत हो गया।" रितू दीदी ने ऑखें दिखाईं___"अब बोल राज क्या प्लान बनाया है तूने नीलम व सोनम को सुरक्षित यहाॅ लाने का?"
"भाई कार कहाॅ गई?" मैने दीदी के सवाल के जवाब में आदित्य की तरफ देखते हुए कहा___"तुम तो कह रहे थे कि सुबह जब हम यहाॅ से चलेंगे तो कार हमारे दरवाजे पर खड़ी मिलेगी। जबकि यहाॅ तो कार कहीं दिख ही नहीं रही। भाई इतना खूबसूरत मज़ाक मत किया करो न, वरना तुम नहीं जानते मुझे दिल का दौरा सा पड़ने लगता है।"

"अबे मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूॅ यार।" आदित्य ने अपना हाॅथ नचाते हुए कहा___"वो क्या है कि अभी कुछ ही देर पहले शेखर के मौसा जी आए थे। उन्होंने जब घर के बाहर कार खड़ी देखी तो पूछने लगे कि ये कहाॅ से आई? उनके पूछने पर मैने बताया कि हमने खरीदा है इसे। बस फिर क्या था, बोले चला कर बताएॅगे कि उन्हें कार कैसी लगी।"

"ओह तो इसका मतलब।" मैने कहा___"मौसा जी लेके गए हैं। मगर अभी तक आए क्यों नहीं वो?"
"आ जाएॅगे यार।" आदित्य ने कहा___"अभी थोड़ी देर पहले ही तो वो गए हैं जब मैं अंदर तुम्हें बताने गया था।"

"ओये तूने मुझे बताया क्यों नहीं कि तूने कोई कार खरीदी है?" सहसा रितू दीदी शिकायती लहजे में बोल पड़ीं___"और मैं अभी क्या बोल रही थी कि तुम दोनो बिना मुझसे पूछे कोई काम नहीं करोगे फिर क्यों किया?"

"ये बात तो आपने अभी कही है न दीदी।" मैने उन्हें मनाने वाले लहजे से कहा___"जबकि कार लेने की बात तो हमने चार दिन पहले आपस में की थी। बट प्राॅमिस दीदी, इसके बाद का हर काम आपसे पूछ कर ही करेंगे।"

"चल कोई बात नहीं।" रितू दीदी ने कहा___"लो कार भी आ गई। क्या बात है राज, कार तो बहुत अच्छी ली है तूने।"
"इतनी भी अच्छी नहीं है दीदी।" मैने कहा___"सेकण्ड हैण्ड है। ज़रूरत थी इस लिए थोड़ा ज्यादा पैसे देकर लेना पड़ा। नई कार लेने का अभी कोई मतलब नहीं है।"

अभी हम बात ही कर रहे थे कि शेखर के मौसा जी ने हमारे पास ही कार को रोंका और फिर ड्राइविंग डोर खोल कर बाहर आए।

"यार आदित्य कार तो अच्छी है ये।" केशव जी ने कहा___"कितने में पड़ी ये?"
"ज्यादा नहीं मौसा जी।" आदित्य ने कहा___"दो लाख अस्सी हज़ार। हलाॅकि गरज़ हमारी थी वरना अस्सी हज़ार का चूना नहीं लगता हमें।"

"फिर भी यार।" केशव जी ने कहा___"घाटा इतने में भी नहीं है। ख़ैर, छोंड़ो मैं भी किसी ज़रूरी काम से इधर से गुज़र रहा था। इस लिए अब मैं चलता हूॅ।"
"जी ठीक है मौसा जी।" हम सबने अदब से हाॅथ जोड़ लिए थे।

मौसा जी के जाने के बाद हम तीनो ही उस कार में जाकर बैठ गए। मैने ड्राइविंग शीट सम्हाली। मेरे बगल से रितू दीदी बैठ गई जबकि आदित्य पिछली शीट पर बैठ गया। सबके बैठ जाने के बाद मैने कार को स्टार्ट कर आगे बढ़ा दिया।

"तो क्या प्लान बनाया है तूने?" रास्ते में रितू दीदी ने फिर मुझसे पूछा___"हम उन दोनो को वहाॅ से कैसे यहाॅ लाएॅगे? प्रकाश नाम का मेरा एक आदमी हवेली में ही सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता है। उसी के द्वारा मुझे पता चला था कि जिस दिन तुम्हारे वो नकली सीबीआई वाले डैड को ले कर गए थे उसी दिन हवेली पर डैड के कुछ बिजनेस संबंधी दोस्त भी आए थे। उन सबके साथ काफी सारे ऐसे आदमी थे जो दिखने में फाइटर लगते थे। प्रकाश ने बताया कि उनमे से एक का नाम पाटिल था जो माॅम से कह रहा था कि ठाकुर साहब आएॅ तो बता दीजिएगा कि हमारे ये सभी आदमी आज से उनके ही आदेशों का पालन करेंगे।"

"हाॅ इस बात का ज़िक्र नीलम ने भी मुझसे किया था कल।" मैने दीदी की तरफ एक नज़र डालने के बाद कहा___"उसने बताया था कि गेस्ट रूम में कुछ ऐसे लोग ठहरे हुए हैं जो दिखने में काफी हट्टे कट्टे लगते हैं।"

"मतलब साफ है कि हवेली जाकर वहाॅ से उन दोनो को लाना असंभव काम है।" रितू दीदी ने कहा___"वैसे भी उन सभी आदमियों के रहते हवेली जाने का मतलब है कि मौत के मुह में जाना। सीबीआई वाले हादसे के बाद तो वैसे भी डैड का गुस्सा तुम पर या यूॅ कहो कि हम पर अपने चरम पर होगा। अतः उन्होंने सिक्योरिटी का भी तगड़ा प्रबंध कर लिया होगा। ऐसे में हम हवेली नहीं जा सकते और अगर जाने का सोचें भी तो हमें रात के समय में ही जाना चाहिए क्योंकि रात के अॅधेरे में खतरा कम ही रहता है।"

"हमें हवेली जाने की ज़रूरत ही नहीं है दीदी।" मैने दीदी से कहा___"नीलम और सोनम दीदी खुद ही हवेली से बाहर आएॅगी।"
"ऐसा कैसे संभव हो सकता है?" रितू दीदी के चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे थे, बोली___"मौजूदा हालात में माॅम या डैड उन दोनो को बाहर आने ही नहीं देंगे। क्योंकि अगर उन्होंने ये जान लिया होगा कि नीलम भी सच्चाई जान गई है तो वो भी मेरी तरह उनके खिलाफ हो जाएगी और हवेली से बाहर जाने की कोशिश करेगी। ये सोच कर माॅम या डैड उन दोनो को किसी भी वजह से हवेली के बाहर नहीं जाने देंगे।"

"और अगर मैं ये कहूॅ।" मैने दीदी के ऊपर जैसे धमाका सा किया___"कि इस सबके बावजूद नीलम और सोनम दीदी हवेली से बाहर आएॅगी तो?"
"ये तो फिर चमत्कार ही होगा।" रितू दीदी ने चकित भाव से कहा___"जिस चमत्कार की मौजूदा हालात में ज़रा भी उम्मीद नहीं है।"

"जहाॅ उम्मीद नहीं होती असल में वहीं पर उम्मीद की संभावना होती है दीदी।" मैने दार्शनिकों वाले अंदाज़ से कहा____"खैर, ये चमत्कार तो होने ही वाला है। मैने नीलम को हवेली से बाहर निकलने का शानदार तरीका समझाया दिया था।"

"त तरीका???" रितू दीदी बुरी तरह चौंक पड़ी____"कैसा तरीका?"
"दरअसल मैने सोनम दीदी के बारे में सोच कर ही प्लान बनाया है दीदी।" मैने कहा____"ये तो मुझे भी पता है कि सोनम दीदी पहली बार ही यहाॅ आई हैं। इस लिए ये तो एक स्वाभाविक बात होती है कि जो इंसान पहली बार कहीं जाता है तो वो उस जगह के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने या देख लेने की ख्वाहिश रखता है। मैने भी इसी सोच के तहत प्लान बनाया। दूसरी महत्वपूर्ण बात नीलम ने ये भी बताया कि आज आपके नाना जी जा रहे हैं तथा उन्हें गुनगुन तक छोंड़ने के लिए खुद बड़े पापा कार से जाने वाले हैं। मैने इन सब बातों को भी अपने प्लान के लिए सोचा था। कहने का मतलब ये कि जब बड़े पापा नाना जी को लेकर गुनगुन जा चुके होंगे तब नीलम व सोनम दीदी तैयार होकर तथा अपने मिनी बैग में अपनी सबसे ज्यादा ज़रूरी चीज़ ही लेकर बड़ी माॅ के पास आएॅगी। बड़ी माॅ से नीलम ये कहेगी कि सोनम दीदी हमारा गाॅव तथा हमारे खेत देखना चाहती हैं, इस लिए हम दोनो जा रहे हैं। नीलम के मुख से सोनम सहित जाने की बात सुन कर यकीनन बड़ी माॅ के मन में ये बात आएगी कि कहीं ये लोग यहाॅ से भागने का तो नहीं सोच रही हैं। किन्तु वो इसके लिए उन्हें मना भी नहीं कर पाएॅगी। क्योंकि बात तो सिर्फ गाॅव तथा खेत देखने की होगी। इसके लिए मना करने की उनके पास कोई ठोस वजह नहीं होगी। इस लिए वो उन दोनो को जाने से रोंक न सकेंगी, मगर हाॅ ऐसा प्रबंध ज़रूर कर सकती हैं कि वो हवेली से भागने वाले अपने काम में सफल न हो सकें। इसके लिए संभव है कि वो उन दोनो के साथ एक दो उन दो आदमियों को भेजेंगी जो फाइटर जैसे दिखते हैं। उनके साथ अपने आदमियों को ये सोच कर नहीं भेजेंगी कि उन्हें अपने आदमियों पर अब भरोसा हीं नहीं होगा। बात भी सही है, भला उनके आदमियों ने भरोसा करने लायक अब तक कोई काम ही क्या किया है? ख़ैर, इस सारे मामले के लिए मैने नीलम को भली भाॅति समझाया हुआ है कि वो तथा सोनम दीदी एक पल के लिए भी अपने चेहरों पर ऐसे भाव न लाएॅगी जिससे बड़ी माॅ को उन पर शक हो जाए। क्योंकि फिर उस सूरत में उनका वहाॅ से निकलना मुश्किल हो जाना है। यानी आप ये भी कह सकती हैं कि वो दोनो वहाॅ से अपने सफलता पूर्वक किये गए अभिनय के द्वारा ही निकल पाएॅगी। अब सवाल ये था कि गाॅव या खेत घूमने पैदल या जीप से जाएॅगी तो इसमें ज्यादा कोई समस्या नहीं थी। क्योंकि मुख्य काम ये है कि उन दोनो का हवेली से बाहर आकर गाॅव की सीमाओं की तरफ बढ़ना था। हवेली के बाहर या यूॅ कहें कि गाॅव की सीमा में ही किसी खास जगह पर हम उन्हें घेर लेंगे। दैट्स आल।"

"उन दोनों को हवेली से बाहर निकालने का तरीका तो बहुत ही अच्छा सोचा है तुमने।" रितू दीदी ने कहा___"मगर उन आदमियों के रहते उन दोनो को अपने पास सुरक्षित लाना इतना आसान काम नहीं है। दूसरी बात ये भी है कि संभव है कि यही बात मेरी माॅम के मन में भी आई हो। यानी कि उन्होने ये अंदाज़ा लगा लिया हो कि नीलम ने तुम्हें मैसेज भेज दिया होगा कि उसे सच्चाई पता चल गई है अतः अब वो तुमसे मिलना चाहती है। उस सूरत में तुम सोचोगे कि अगर नीलम का राज़ बड़ी माॅ के सामने फाश हो गया तो वो यकीनन बड़े पापा से बताएॅगी और फिर बहुत मुमकिन है कि नीलम व सोनम दोनो ही भयानक खतरे में पड़ जाएॅ। ऐसे हाल में तुम्हारी सबसे पहली प्राथमिकता यही होगी कि तुम उन दोनो को हवेली से सुरक्षित बाहर निकलना चाहोगे। आज जब नीलम ने उनसे ये कहा होगा कि सोनम दीदी ये गाॅव तथा हमारे खेत देखना चाहती हैं और वो उन्हें लेकर जा रही है तो यकीनन उनके मन में सबसे पहले यही बात आई होगी कि कहीं ऐसा तो नहीं ये दोनो यहाॅ से बहाना बना कर निकल जाना चाहती हों। किन्तु उनके मन में ये भी होगा कि ऐसे हालात में वो क्या करेंगी इसका अंदाज़ा भी तुम लगा लोगे। अतः वो कुछ ऐसा इंतजाम करेंगी जो तुम्हारी सोच से परे हो अथवा जिसके बारे में तुम सोच ही न सको। यानी कि संभव है कि उन्होंने तुम्हारे अंदाज़े को ध्यान में रखते हुए अपने दो आदमियों को उन दोनो के साथ भेज तो दिया ही हो साथ ही उनके जाने के बाद उन्होंने कुछ आदमी और भी उनके पीछे ये सोच कर लगा दिये हों कि अगर उनकी शंका सच हुई तो बैकअप के लिए कुछ आदमी एक्स्ट्रा रहेंगे। ताकि अगर ऐसी सिचुएशन बन जाए कि तुम उनके पहले वाले आदमियों का तिया पाॅचा करने में कामयाब हो जाओ तो पीछे से आ रहे उनके दूसरे आदमी तुम्हें तुम्हारे इरादों में कामयाब न होने दें।"

"मैं रितू की इन बातों से पूरी तरह सहमत हूॅ राज।" सहसा आदित्य पीछे से बोल पड़ा था____"यकीनन ऐसा हो सकता है। रितू की माॅम के दिमाग़ के बारे में जैसा तुमने बताया था उस हिसाब से मुझे भी लगता है कि वो ऐसा कुछ अंदाज़ा लगा कर सकती हैं। अतः हमें भी उनके अनुसार ही सोच कर क़दम बढ़ाना होगा। वरना हम पर तो जो मुसीबत आएगी वो तो आएगी ही किन्तु इस सबके लिए नीलम व सोनम का कितना बुरा हाल हो सकता है इसका हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते।"

"तुम्हें क्या लगता है आदी?" मैने कहा___"कि ये सब बातें मेरे दिमाग़ में नहीं आई होंगी? बेशक आई हैं मेरे यार। मुझे भी इस बात का ख़याल है कि हर बार एक ही दाॅव अथवा तरीका कारगर सिद्ध नहीं हो सकता। इससे सामने वाला हमारी सोच का दायरा ताड़ लेता है। हलाॅकि मेरा उसूल ही यही है कि मैं सामने वाले को वही सोचने पर मजबूर कर देता हूॅ जो मैं चाहता हूॅ। मैं चाहता हूॅ कि सामने वाला ये सोच बैठे या ये समझ जाए कि मेरे पास बस एक ही तरह का दाॅव है। क्योंकि जब ऐसा होगा तो सामने वाला फिर उसी के हिसाब से अपनी चालें चलता है। जबकि मैं उसकी उस चाल के बाद अपना दूसरा पैंतरा शुरू करूॅगा। ऐसा पैंतरा जिसके बारे में वो सोच भी न सकेगा।"

"इसका मतलब।" रितू दीदी ने कहा___"तुमने इस बारे में पहले से ही कुछ सोचा हुआ है या फिर ये कहूॅ कि ऐसा कुछ इंतजाम कर रखा है तुमने।"
"बिलकुल सही कहा दीदी आपने।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"आख़िर मुझे भी तो इस बात का ख़याल रखना ही पड़ेगा न कि उस तरफ शातिर दिमाग़ वाली मेरी बड़ी माॅ भी मौजूद हैं। बात अगर सिर्फ बड़े पापा की होती तो इतना घुमा फिरा कर काम करने की ज़रूरत ही न पड़ती। किन्तु बड़ी माॅ तो फिर बड़ी माॅ हैं न। ख़ैर, मैं ये कह रहा हूॅ कि जिस तरह बैकअप के लिए बड़ी माॅ ने दिमाग़ लगाया हो सकता है उसी तरह मैने भी बैकअप का इंतजाम किया हुआ है। और वैसे भी जंग में बैकअप का होना तो निहायत ही ज़रूरी होता है। जिस योद्धा के पास बैकअप नहीं होता वो जंग के शुरू होते ही मात खा जाता है।"

"वो सब तो ठीक है।" आदित्य रितू दीदी से पहले ही पूछ बैठा____"लेकिन तुमने बैकअप का आख़िर इंतजाम क्या किया है?"
"क्या यार आदी।" मैने पलट कर एक नज़र उसे देखने के बाद कहा____"तुम न ज़रा भी दिमाग़ नहीं लगाते हो।"

"ज्यादा बनो मत।" आदित्य ने तीखे भाव से कहा___"साफ साफ बताओ कि क्या तीर मारा है तुमने?"
"लगता है शेखर के मौसा को भूल गए हो तुम।" मैने पुनः पलट कर आदित्य को देख कर कहा___"कल देखा नहीं था क्या तुमने कि कैसे वो फार्महाउस पर अपने लट्ठधारी आदमियों को लेकर हम लोगों को लेने आए थे? बाद में उन्होंने कहा भी था कि अगर किसी बात की ज़रूरत पड़े तो तुरंत उन्हें याद करें हम। बस फिर क्या था समझदार आदमी को ऐसे मददगार आदमी का सहारा लेने में ज़रा भी देर नहीं करना चाहिए। कहने का मतलब ये कि मैने उन्हें सारी सिचुएशन के बारे में समझा दिया था और ये कहा था कि बैकअप के रूप में वो हमारे पीछे ही रहें। वो मैदान में तभी आएॅ जब उन्हें यकीन हो जाए कि हमारा पलड़ा अब डगमगाने लगा है और हम हारने वाले हैं। तब उन्हें अचानक ही मैदान में एन्ट्री मारनी है। बस उसके बाद तो फिर हम सब कुछ सम्हाल ही लेंगे।"

"ओह अब समझ आया।" आदित्य ने सहसा गहरी साॅस लेकर कहा___"इसी लिए वो उस वक्त बोल रहे थे कि वो किसी ज़रूरी काम से यहाॅ से गुज़र रहे थे।"
"अब समझे तो क्या समझे डियर?" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"बात तो तब थी जब तुम इसके पहले ही समझ जाते।"

"हाॅ हाॅ ठीक है न।" आदित्य ने खिसियाते हुए कहा___"पर मुझे ये बात समझ नहीं आई कि अगर यही बात थी तो उस वक्त उन्होंने हम में से किसी को बताया क्यों नहीं कि वो किस ज़रूरी काम से गुज़र रहे थे?"

"लो कर लो बात।" मैने हॅसते हुए कहा___"उन्हें भला बताने की ज़रूरत ही क्या थी? मुझे तो सब पता ही था क्योंकि मैने ही उनसे बात की थी। उन्होंने तुमसे या दीदी से इस लिए नहीं बताया कि उन्होंने सोचा होगा कि मैने आप दोनो को बता दिया होगा। दूसरी बात आप में से कोई उनसे पूछा भी तो नहीं कि वो किस ज़रूरी काम के लिए वहाॅ से गुज़र रहे थे?"

"हाॅ ये तो सही कहा तुमने।" सहसा दीदी ने मेरी तरफ प्रसंसा भरी नज़रों से देखते हुए कहा___"हमने तो उनसे पूछा ही नहीं था। लेकिन सवाल तो है ही कि वो किस ज़रूरी काम से गुज़र रहे थे?"
"ओफ्फो दीदी।" मैने कहा___"आपसे ऐसे सवाल की उम्मीद नहीं थी मुझे। बड़ी सीधी सी बात है वो अपने आदमियों को इकट्ठा करने के लिए जा रहे थे।"
"ओह आई सी।" रितू दीदी ने कहा___"चल ये तो बहुत अच्छा किया तुमने जो खुद के लिए भी बैकअप इंतजाम कर लिया है। वरना मैं तो सोच रही थी कि कहीं हम फॅस ही न जाएॅ किसी जाल में।"

"ऐसे कैसे फॅस जाएॅगे दीदी?" मैने कहा___"और फिर रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। ये तो कुछ भी नहीं है, आने वाले समय में इससे कई गुना ज्यादा खतरा भी होगा जिसका हमें सामना करना पड़ेगा।"

"हाॅ ये तो है।" दीदी ने कहा____"ख़ैर अभी तो सबसे ज़रूरी यही है कि किसी तरह नीलम व सोनम सुरक्षित हमें हाॅसिल हो जाएॅ। उसके बाद की इतनी चिंता नहीं है क्योंकि तब इस बात का भय नहीं रहेगा कि हमारा कोई अपना उनके चंगुल में है।"

मैं रितू दीदी की इस बात पर बस मुस्कुरा कर रह गया। ऐसे ही बातें करते हुए हम बढ़े चले जा रहे थे हल्दीपुर की तरफ। हम तीनों ही पूरी तरह सतर्क थे। हम इस बात को भी बखूबी समझते थे कि खतरा सिर्फ अजय सिंह की तरफ बस का ही नहीं था बल्कि मंत्री दिवाकर चौधरी की तरफ से भी था। दूसरी बात अब हम पहचाने जा चुके थे दोनो तरफ इस लिए ख़तरा और भी बढ़ गया था हमारे लिए। मगर सच्चाई की राह पर चलने के लिए हम अपने अपने हौंसलों को आसमां की बुलंदियों में परवाज़ करवा रहे थे। आने वाला समय बताएगा कि इस खेल में किसकी जीत मिलती है और किसे हार का कड़वा स्वाद चखना होगा??
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दोस्तो, आप सबके सामने मेगा अपडेट हाज़िर है।
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट........《 57 》

अब आगे,,,,,,,

नीलम व सोनम के जाने के बाद शिवा वापस पलटा और हवेली के अंदर की तरफ बढ़ चला। उसके होठों पर बड़ी ही दिलकस मुस्कान थी। ज़ाहिर था कि उसकी ये मुस्कान सोनम की वजह से थी। जिसके बारे में वो जाने क्या क्या सोचने लगा था। ख़ैर सोनम के बारे में सोचते हुए ही वह चलते हुए अंदर ड्राइंग रूम में पहुॅचा।

उधर ड्राइंग रूम में प्रतिमा अभी भी बैठी हुई थी। उसके चेहरे पर सोचों के भाव गर्दिश कर रहे थे। शिवा के अंदर आते ही वह सोचो से बाहर आई और उसने शिवा को मुस्कुराते हुए देखा तो सहसा वह चौंकी। फिर अगले ही पल सामान्य भी हो गई, कदाचित उसे शिवा की मुस्कान का राज़ पता चल गया था।

"क्या बात है बेटा।" फिर उसने बेटे की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा___"लगता है मन में बहुत ही मीठी मीठी गुदगुदी हो रही है, है ना?"
"ग..गुदगुदी???" प्रतिमा की इस बात से शिवा एकदम से चकरा सा गया___"कैसी गुदगुदी माॅम?"

"वैसी ही बेटा।" प्रतिमा ने कहा___"जैसी तब हुआ करती है जब किसी से नया नया इश्क़ होता है। तुम्हारे होठों पर थिरक रही ये मुस्कान इस बात का सबूत दे रही है कि तुम सोनम के बारे में सोच सोच अंदर ही अंदर बेहद रोमांच सा महसूस कर रहे हो।"

"हाॅ माॅम।" शिवा की मुस्कान गहरी हो गई___"ये तो आपने बिलकुल सही कहा। मैं सचमुच सोनम के बारे में ही सोच सोच कर आनंद महसूस कर रहा हूॅ। उफ्फ माॅम मैं बता नहीं सकता कि मैं सोनम के बारे में सोच सोच कर कितना खुश हो रहा हूॅ। क्या ऐसा नहीं हो सकता माॅम कि मेरे इस दिल का ये हाल मेरे बिना बताए सोनम समझ जाए और फिर वो मेरे इस दिल की चाहत को कुबूल कर ले?"

"तुम दीवाने से होते जा रहे हो बेटे।" प्रतिमा एकाएक ही गंभीर हो गई, बोली___"जो कि बिलकुल भी ठीक नहीं है। तुम खुद ये बात अच्छी तरह जानते हो कि जो तुम चाहते हो वो इस जन्म में तो हर्गिज़ भी नहीं हो सकता। फिर इस तरह बेकार की बातें करने का तथा ऐसा सोचने का क्या मतलब है बेटा? अभी भी वक्त है तुम अपने अंदर के इस एहसास को जितना जल्दी हो सके निकाल दो। वरना देख लेना इस सबके लिए बाद में तुम बहुत दुखी होगे।"

"जिन्हें इश्क़ हो जाता है न माॅम।" शिवा ने अजीब भाव से कहा___"फिर उन्हें कोई समझा नहीं सकता और ना ही इश्क़ में पागल हो चुका ब्यक्ति किसी की बातों को समझना चाहता है। उसे तो बस हर घड़ी हर पल अपने प्यार की आरज़ू रहती है। ऐसा नहीं है माॅम कि इसमें दिमाग़ काम नहीं करता है बल्कि वो तो वैसे ही काम करता रहता है जैसे आम इंसानों का करता है मगर दिल के जज़्बातों की जब ऑधी चलती है न तो उस दिमाग़ का सारा दिमाग़ उसके ही पिछवाड़े में घुस जाता है।"

प्रतिमा के चेहरे पर एक बार पुनः हैरत के भाव उभर आए। उसे इस वक्त लग ही नहीं रहा था कि ये वही शिवा है जो इसके पहले हर लड़की या औरत को सिर्फ और सिर्फ हवश की नज़र से देखता था। बल्कि इस वक्त तो वह दुनिया का सबसे शरीफ व संस्कारी दिखाई दे रहा था।

"कहते हैं कि दुनियाॅ में कुछ भी असंभव नहीं है।" उधर शिवा कह रहा था___"अगर किसी चीज़ को पाने की शिद्दत से चाहत करो तो वो यकीनन हाॅसिल हो जाती है। आप जिस चीज़ को असंभव कह रही हैं वो चीज़ भी संभव हो सकती है माॅम, अगर आप चाहो तो।"

"क्...क्या मतलब???" प्रतिमा के माथे पर सलवटें उभरीं।
"मतलब साफ है माॅम।" शिवा ने कहा___"अगर आप और डैड चाहें तो सोनम मेरी जाने हयात ज़रूर बन सकती है और मैं उसे पा कर खुश हो सकता हूॅ।"

"तुम पागल हो गए हो बेटा।" प्रतिमा के चेहरे पर गहन बेचैनी के भाव उभरे, बोली___"सब कुछ जानते व समझते हुए भी तुम बेमतलब की बातें किये जा रहे हो। तुम इस बात को समझ ही नहीं रहे कि ये कितना ग़लत है और कितना मुश्किल है। सोनम तुम्हारी बड़ी बहन है। वो तुम्हें अपना छोटा भाई ही मानती है। उसे नहीं पता है कि उसका छोटा भाई उसके प्रति कैसी सोच रखता है और क्या चाहता है?"

"आप सोनम के माॅम डैड से बात कीजिए माॅम।" शिवा ने कहा___"मैं सोनम को मना लूॅगा और अगर वो नहीं मानेगी तो उससे कहूॅगा कि वो मुझे अपने प्यार की भीख दे दे। मैं उसे बताऊॅगा कि मैं उसके बिना अब नहीं रह सकता। दूसरी बात जब उसके माॅम डैड इस रिश्ते के लिए मान जाएॅगे तो फिर उसे भी भला क्या परेशानी होगी?"

"हे भगवान।" प्रतिमा ने जैसे अपना माथा पकड़ लिया, फिर बोली___"कैसे समझाऊॅ इस लड़के को? तुमने ये सोच भी कैसे लिया कि सोनम के माॅ बाप इस रिश्ते के लिए मान जाएॅगे? बल्कि सच्चाई तो ये है कि वो ये सब पता चलते ही तुम्हारे साथ साथ हम सब पर भी लानत भेजेंगे और फिर कभी हमारी शक्ल तक देखना न चाहेंगे।"

प्रतिमा की इस बात पर शिवा मन मसोस कर रह गया। एकाएक ही उसके चेहरे पर ऐसे भाव आए जैसे उसे इन सब बातों से बेहद तक़लीफ हुई हो। जबकि उसके चेहरे पर उभर आए इन भावों को बड़े ध्यान से देखते हुए तथा समझाते हुए प्रतिमा ने नम्र भाव से कहा____"देख बेटा इसमें इतना दुखी होने की ज़रूरत नहीं है। मैं अच्छी तरह तेरे अंदर का हाल समझ सकती हूॅ। मुझे इस बात का एहसास है कि सोनम के प्रति तू किस हद तक गंभीर हो चुका है। मगर बेटा सब कुछ वैसा ही नहीं हो जाया करता जैसा हम चाह लिया करते हैं। यथार्थ सच्चाई नाम की भी कोई चीज़ होती है जिसका हमें बेबस होकर ही सही मगर सामना करना पड़ता है और उसे मानना भी पड़ता है। ये तो तू भी अच्छी तरह जानता है कि सोनम तेरी बड़ी मौसी की लड़की है और रिश्ते में वो तेरी बड़ी बहन लगती है। सोनम की माॅ मेरी सगी बहन है इस हिसाब से ये रिश्ता सगा ही हो जाता है। अतः सगे रिश्ते के बीच तुम्हारी और सोनम की शादी हर्गिज़ भी नहीं हो सकती। अगर ऐसा होता कि सोनम की माॅ मेरी सगी बहन न होकर दूर के किसी रिश्ते से बहन लगती तो ऐसा हो भी सकता था। इस लिए तुम्हें इन सब बातों को सोच समझ कर अपने आपको समझाना होगा। मुझे पता है कि अभी ये सब तेरे लिए बहुत मुश्किल होगा मगर ये करना ही होगा बेटा। वरना अभी जिस बात से तुम्हें इतनी तक़लीफ हो रही है उसी बात से आगे चल कर और भी ज्यादा तक़लीफ होगी। दुनियाॅ में एक से बढ़ कर एक खूबसूरत लड़कियाॅ हैं, तू जिस लड़की से कहेगा हम उस लड़की से तेरी शादी करेंगे। मगर प्लीज सोनम का ख़याल अपने दिलो दिमाग़ से निकाल दे। इसी में सबकी भलाई है।"

"ठीक है माॅम।" शिवा ने गहरी साॅस ली और फिर एकाएक ही उसके चेहरे पर दृढ़ता के भाव आए, बोला____"अगर ऐसी बात है तो ठीक है। अब मैं कभी आपसे नहीं कहूॅगा कि आप सोनम से मेरी शादी करवा दीजिए। ख़ैर एक बात कहूॅ माॅम, पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि जैसे ईश्वर ने मुझे मेरे पापों की सज़ा देना शुरू कर दिया है। हाॅ माॅम, ये सज़ा ही तो है कि मुझे एक ऐसी लड़की से बेपनाह मोहब्बत हो गई जो मेरी बहन लगती है और जो मुझे नसीब ही नहीं हो सकती कभी। वरना ईश्वर अगर चाहता तो मुझे दूसरी किसी ऐसी लड़की से प्यार करवाता जो मुझे सहजता से मिल जाती। मगर नहीं उसे तो मेरे पापों की सज़ा देना था न मुझे। इस लिए ऐसा कर दिया उसने। कोई दूसरा इन सब बातों को समझे या न समझे माॅम मगर मैं अच्छी तरह समझ गया हूॅ और अगर अपने दिल की सच्चाई बयां करूॅ तो वो ये है कि मुझे ईश्वर के इस फैंसले पर कोई शिकायत नहीं है। अगर ये सब करके वो मुझे मेरे पापों की सज़ा ही देना चाहता है तो ठीक है माॅम मुझे स्वीकार है ये। हर ब्यक्ति को अपने कर्मों का फल मिलता है, फिर चाहे उसके अच्छे कर्मों का हो या बुरे कर्मों का। कितनी अजीब बात है न माॅम कि कुछ लोग सारी ज़िंदगी पाप करते हैं मगर उनको उनके पाप कर्म की सज़ा अंत में मिलती है मगर मुझे तो अभी से मिलना शुरू हो गई।"

शिवा की बातें सुन कर प्रतिमा हैरत से ऑखें फाड़े देखती रह गई उसे। उससे कुछ कहते तो न बन पड़ा था किन्तु ये समझने में उसे ज़रा भी देरी न हुई कि उसके बेटे का मानसिक संतुलन आज इस हद तक बिगड़ गया है अथवा उसकी सोच इस हद तक बदल गई है कि वो इस सबको अपने पाप कर्मों की सज़ा समझने लगा है। कहते हैं कि किसी ब्यक्ति को आप सारी ज़िदगी अच्छी चीज़ों का बोध कराते रहो मगर उसे अगर नहीं समझना होता है तो वो सारी ज़िंदगी नहीं समझता मगर वक्त और हालात के पास ऐसी खूबियाॅ होती हैं जिनके आधार पर वह पलक झपकते ही इंसान को आईना दिखा कर सब कुछ समझा देता है और मज़े की बात ये कि इंसान को समझ में भी आ जाता है। यही हाल शिवा का था। उसे सब कुछ समझ आ चुका था, मगर कहते हैं न कि "का बरसा जब कृषि सुखाने"। बस वही दसा थी उसकी।

"ख़ैर छोंड़िये इन सब बातों को माॅम।" उधर शिवा ने जैसे प्रतिमा को होशो हवाश में लाते हुए कहा___"अब से मैं कभी आपसे ऐसी बातें नहीं करूॅगा। आप ये सब डैड से भी मत बताना। वरना उन्हें लगेगा कि मैं भरपूर जवां मर्द होते हुए भी इस सबके चलते बेहद कमज़ोर हो गया हूॅ। वो इस बात को नहीं समझेंगे कि इस सबसे तो मैं और भी मजबूत हो गया हूॅ। मोहब्बत की चोंट को जो इंसान सह जाए उससे मजबूत इंसान भला दूसरा कौन हो सकता है?"

प्रतिमा को समझ न आया कि वह अपने बेटे की इन सब बातों का क्या जवाब दे। किन्तु उसकी बातें उसे आश्चर्यचकित ज़रूर किये हुए थीं। काफी देर तक वह गंभीर मुद्रा में ठगी सी बैठी रही। होश तब आया जब एकाएक ही ड्राइंग रूम में एक तरफ टेबल पर रखे लैण्ड लाइन फोन की घंटी घनघना उठी थी।

"हैलो।" शिवा अपनी जगह से उठ कर तथा फोन के रिसीवर को कान से लगाते ही कहा।
"ओह शिव बेटा।" उधर से अजय सिंह की जानी पहचानी सी आवाज़ उभरी____"मैंने तुम्हारे नाना जी को ट्रेन में बैठा दिया है और अब मैं यहीं से फैक्ट्री के लिए निकल रहा हूॅ। अतः अब शाम को ही आऊॅगा।"

"ठीक है डैड।" शिवा ने सामान्य भाव से कहा।
"ज़रा अपनी माॅम से बात करवाओ।" उधर से अजय सिंह ने कहा।
"एक मिनट डैड।" शिवा ने कहने के साथ ही पलट कर प्रतिमा की तरफ देखा और उसे बताया कि डैड उससे बात करना चाहते हैं।

"हाॅ बोलो अजय।" प्रतिमा ने शिवा से रिसीवर लेकर उसे अपने बाएं कान से लगाते हुए कहा___"क्या बता है? पापा को ट्रेन में सकुशल बैठा दिया है न तुमने?"
"हाॅ उन्हें ट्रेन में बैठा कर अभी अभी स्टेशन से बाहर आया हूॅ।" उधर से अजय सिंह ने कहा____"और अब मैं यहीं से फैक्ट्री जा रहा हूॅ। काफी दिन से नहीं गया हूॅ तो वहाॅ जाना भी ज़रूरी है। बाॅकी सब ठीक है न?"

"हाॅ बाॅकी सब तो ठीक ही है।" प्रतिमा ने कहा___"नीलम, सोनम को अपना ये गाॅव तथा अपने खेत दिखाने ले गई है। सोनम ने उससे कहा होगा कि उसे ये गाॅव और उसके खेत देखना है। अतः नीलम के साथ गई है वो।"

"ये क्या कह रही हो तुम?" उधर से अजय सिंह ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा___"उन दोनो को तुमने जाने कैसे दिया प्रतिमा? क्या तुम्हें पता नहीं है कि वो वहाॅ से भागने के उद्देश्य से भी ये कहा होगा कि उन्हे गाॅव तथा खेत देखना है? उफ्फ प्रतिमा तुमने ये क्या बेवकूफी की?"

"फिक्र मत करो अजय।" प्रतिमा ने कहा___"उन दोनो के साथ मैने दो ऐसे आदमियों को भी भेजा है जिन आदमियों को तुम्हारे दोस्त तुम्हारी मदद के लिए यहाॅ भेज कर गए थे। उन आदमियों के रहते वो कहीं भी नहीं जा सकती।"

"अरे वो आदमी साले क्या कर लेंगे?" उधर से अजय सिंह ने खीझते हुए कहा___"तुम्हें तो पता है कि उस साले विराज ने एक साथ हमारे उतने सारे आदमियों का काम तमाम कर दिया था तो फिर ये क्या कर लेंगे उसका? ओफ्फो प्रतिमा तुम्हें उन दोनों को जाने ही नहीं देना चाहिए था। मुझे तुमसे ऐसी बेवकूफी की उम्मीद हर्गिज़ भी नहीं थी।"

"तुम बेवजह ही इतना परेशान हो रहे हो डियर।" प्रतिमा ने कहा___"मुझे भी पता है कि हालात कैसे हैं और इन हालातों में क्या हो सकता है? मैं उन दोनो को गाॅव तथा खेत देखने जाने से भला कैसे रोंक सकती थी? इसी लिए मैंने उनके साथ उन दो आदमियों को भेजा है। बात इतनी सी ही बस नहीं है बल्कि दूर का सोचते हुए मैने उनके जाने के बाद उनके पीछे लगे रहने के लिए और भी आदमियों को एक टीम बना कर भेजा है। ऐसा इस लिए कि अगर वो दोनो सचमुच यहाॅ से भागने का ही ये गाॅव तथा खेत देखने का बहाना बनाया होगा तो वो किसी भी तरह से भागने में कामयाब न हो सकेंगी। दिखावे के लिए तथा सिचुएशन को सामान्य दिखाने के लिए मैने उन दोनो के साथ सिर्फ दो ही आदमी उनकी सुरक्षा के तहत भेजे किन्तु उनकी जानकारी के बिना कुछ और आदमियों की टीम को ये सोच कर उनके पीछे भेजा कि अगर ये उनका यहाॅ से भागने का ही प्लान था तो ये भी ज़ाहिर है कि ये प्लान उन्होंने खुद नहीं बनाया होगा बल्कि यहाॅ से इस तरह निकलने का प्लान विराज ने ही उन्हें बताया होगा और कहा होगा कि वो दोनो हवेली से बाहर निकल कर किसी ऐसे स्थान पर पहुॅचेंगी जहाॅ से उन दोनो को वो बड़ी आसानी से किन्तु बड़ी सावधानी से हमारे उन दोनो आदमियों के साथ रहने के बावजूद अपने साथ ले जा सकें।
विराज की इसी चाल को मद्दे नज़र रखते हुए मैने उन दोनो के पीछे कुछ और आदमियों को एक मजबूत टीम बना कर भेजा है तथा साथ ही ये भी उन्हें कह दिया है कि अगर सचमुच वहाॅ ऐसा कुछ होता दिखे तो वो बेझिझक दूसरी पार्टी यानी विराज व रितू पर गोलियाॅ चला सकते हैं। किन्तु इतना ज़रूर ध्यान देंगे कि उनकी गोलियों से उन दोनो में से किसी की भी मौत न हो जाए। बल्कि उन्हें इस स्थित में लाना है कि वो कुछ करने के लायक न रह जाएॅ। उसके बाद वो उन्हें पकड़ कर हमारे फार्महाउस पर ले आएॅगे।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" उधर अजय सिंह ने मानो राहत की साॅस ली थी, बोला___"मगर मुझे इस सबसे भी संतुष्टि नहीं हो रही प्रतिमा। पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगता है कि हमारे इतने आदमियों के रहते हुए भी वो कमीना उन दोनो को अपने साथ ले जाने में कामयाब हो जाएगा।"

"ऐसा तुम इस लिए कह रहे हो डियर।" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"क्योंकि तुमने अभी तक इस मामले में कोई सफलता हाॅसिल नहीं की है। हर बार तुमने अपने आदमियों की वजह से नाकामी का स्वाद चखा है। इस लिए तुम्हें इस सबके बावजूद विश्वास या संतुष्टि नहीं हो रही कि हमारे आदमी विराज के मंसूबों को नाकाम कर पाएॅगे।"

"ये तो सच कहा तुमने प्रतिमा।" अजय सिंह बोला___"पर क्या करूॅ यार हालात हर दिन पहले से कहीं ज्यादा गंभीर व बदतर होते जा रहे हैं। मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता हूॅ कि एक और नाकामी की मुहर मेरे माथे की शोभा बढ़ाने लगे। इस लिए मैं खुद ही आ रहा हूॅ वहाॅ। फैक्ट्री जाना इतना भी ज़रूरी नहीं है। मैं आ रहा हूॅ डियर। इस बार मैं उस हरामज़ादे को कामयाब नहीं होने दूॅगा।"

"ठीक है माई डियर।" प्रतिमा ने कहा___"तुम्हें जैसा अच्छा लगे करो। वैसे कब तक पहुॅच जाओगे यहाॅ?"
"जितना जल्दी पहुॅच सकूॅ।" अजय सिंह ने कहा___"ख़ैर चलो रखता हूॅ फोन।"

इसके साथ ही काल कट हो गई। अजय सिंह से बात करने के बाद प्रतिमा पलट कर वापस सोफे की तरफ आई और बैठ गई। चेहरे पर अनायास ही गंभीरता छा गई थी उसके। फिर उसने शिवा की तरफ देखते हुए कहा___"बेटा सविता से कहो कि अच्छी सी चाय बना कर लाए मेरे लिए।"
"ओके माॅम।" शिवा ने कहा और सोफे से उठ कर अंदर की तरफ चला गया।
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उधर मुम्बई में।
ब्रेक फास्ट करने के लिए सब एक साथ ही बैठे हुए थे। जिनमें जगदीश ओबराय, अभय सिंह, पवन, दिव्या, आशा तथा निधी बैठे हुए थे। गौरी, रुक्मिणी तथा करुणा सबके लिए नास्ता परोस रही थीं। ब्रेकफास्ट करते हुए सबके बीच थोड़ी बहुत बातचीत भी हो रही थी। किन्तु इस बीच आशा की निगाहें थोड़े थोड़े समय के अंतराल से निधी पर पड़ ही जाती थी।

निधी जो कि अब ज्यादातर ख़ामोश ही रहती थी। वो किसी से भी खुद से कोई बात नहीं करती थी। हलाॅकि सब यही चाहते थे कि वो सबसे बातें करे तथा अपनी शरारत भरी बातों से माहौल को सामान्य बनाए रखे मगर ऐसा हो नहीं रहा था। सबने उससे पूछा भी था कि वो अचानक इस तरह चुप चुप तथा गुमसुम सी क्यों रहने लगी है मगर उसने बस यही कहा था कि वो बस अपने भइया के चले जाने से ऐसी हो गई है। उसकी बातों को सब यही समझ रहे थे विराज जिस काम से गया है वो यकीनन बहुत ख़तरे वाला है जिसके बारे में सोच कर निधी इस तरह चुप हो गई है। आख़िर ये बात तो सब जानते ही थे कि निधी विराज की जान है तथा निधी भी अपने भाई पर जान छिड़कती है। मगर असलियत से आशा के अलावा हर कोई अंजान था।

चुपचाप नास्ता कर रही निधी की नज़र सहसा सामने ही कुर्सी पर बैठी तथा नास्ता कर रही आशा पर पड़ी तो वो ये देख कर एकाएक ही सकपका गई कि आशा उसे ही एकटक देखे जा रही है। उसके ज़हन में पलक झपकते ही सुबह का डायरी वाला सीन याद आ गया। उसके दिमाग़ ने काम किया और उसे ये सोचने पर मजबूर किया कि आशा दीदी उसे इस तरह एकटक क्यों देखे जा रही हैं। उनकी ऑखों में कुछ ऐसा था जिसने निधी को अंदर तक हिला सा दिया था और फिर एकाएक ही जैसे उसके दिमाग़ की बत्ती रौशन हुई। उसके मन में ख़याल उभरा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आशा दीदी ने उसके सोते समय डायरी को हाॅथ ही नहीं लगाया हो बल्कि उसे पढ़ भी लिया हो। इस ख़याल के आते ही निधी की हालत पल भर में ख़राब हो गई। मन के अंदर बैठा चोर इतना घबरा गया कि फिर उसमें नज़र उठा कर दुबारा आशा की तरफ देखने की हिम्मत न हुई।

निधी ने नोटिस किया कि जिस अंदाज़ से आशा उसे देख रही थी उससे तो यही लगता है कि उसने डायरी में लिखी बातें पढ़ ली हैं और जान गई है कि उसमें लिखे गए हर लफ्ज़ का मतलब क्या है? निधी की हालत ऐसी हो गई कि अब उससे वहाॅ पर बैठे न रहा गया। उसने जो खाना था खा लिया और फिर वह एक झटके से उठी और ऊपर अपने कमरे की तरफ तेज़ तेज़ क़दम बढ़ाते हुए चली गई। कमरे में जाकर उसने स्कूल की यूनीफार्म पहनी तथा अपना स्कूली बैग उठाया और फिर फौरन ही कमरे से बाहर आ गई।

उसे इतना जल्दी बाहर आते देख हर कोई चौंका मगर चूॅकि उसके स्कूल जाने का समय होने ही वाला था अतः इस पर ज्यादा किसी ने ग़ौर न किया। उसने दूर से ही हाॅथ हिला कर सबको बाय किया और बॅगले से बाहर की तरफ बढ़ गई। बाहर आते ही उसने एक ऐसे आदमी को आवाज़ दी जो हर दिन कार से उसे स्कूल छोंड़ने और स्कूल से लाने का काम करता था। ख़ैर, कुछ ही देर में निधी कार में बैठ कर स्कूल की तरफ रवाना हो गई। किन्तु अब उसका मन बेहद अशान्त हो चुका था। उसे ये डर सताने लगा था कि अगर सचमुच आशा ने उसकी डायरी पढ़ ली होगी तो उसे यकीनन पता चल गया होगा कि वो अपने ही सगे भाई से प्यार करती है और आज कल उसी के ग़म में गुमसुम रहने लगी है।

निधी को प्रतिपल ये सब बातें और भी ज्यादा चिंतित व परेशान किये जा रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे? कैसे अब वो अपनी आशा दीदी के सामने जाएगी तथा उन्हें अपना चेहरा दिखाएगी? अगर आशा ने उससे इस बारे में कुछ पूछा तो वो क्या जवाब देगी? उसे पहली बार एहसास हुआ कि डायरी लिख कर उसने कितनी बड़ी ग़लती की है। वरना किसी को इस बात का पता ही न चलता कि उसके दिल में क्या है। मगर अब क्या हो सकता था? तीर तो कमान से निकल चुका था। अतः अब तो बस इंतज़ार ही किया जा सकता था इस सबके परिणाम का। निधी के मन ही मन ये निर्णय लिया कि अब वो आशा दीदी के सामने नहीं जाएगी और ना ही उनसे कोई बात करेगी। मगर उसे खुद लगा कि ऐसा संभव नहीं हो सकता। उसे उनका सामना तो करना ही पड़ेगा क्योंकि वो ज्यादातर उसके पास ही रहती हैं तथा रात में उसके ही कमरे में उसके साथ एक ही बेड पर सोती भी हैं।

ये मामला ही ऐसा था कि इसने निधी की हालत को इस तरह कर दिया था जैसे अब उसके अंदर प्राण ही न बचे हों। वह एकदम से जैसे ज़िदा लाश में तब्दील हो गई हो। उसके मन में ये भी ख़याल उभरा कि अगर आशा दीदी ने वो सब किसी से बता दिया तो क्या होगा? उसकी माॅ गौरी तो उसे जीते जी जान से मार देगी। कोई उसके अंदर की भावनाओं को नहीं समझेगा बल्कि सब उसे ग़लत ही समझेंगे। अगर ये भी कहें तो ग़लत न होगा कि उसने ये सब अपनी नई नई जवानी को बर्दाश्त न कर पाने की गरज़ से अपने ही भाई को फॅसाने का सोच कर किया होगा। इस ख़याल के आते ही निधी को आत्मग्लानि के चलते बेहद दुख हुआ। उसकी झील सी नीली ऑखों से पलक झपकते ही ऑसूॅ छलक कर गिर पड़े। किन्तु उसने जल्दी से उन्हें ये सोच कर पोंछ भी लिया कि कहीं ड्राइवर उसे बैकमिरर के माध्यम से ऑसू बहाते देख न ले।

सारे रास्ते इन सब बातों को सोचते हुए निधी को पता ही नहीं चला कि वो कब स्कूल पहुॅच गई? होश तब आया जब ड्राइवर ने उससे कहा कि उसका स्कूल आ गया है। ड्राइवर पचास की उमर का ब्यक्ति था। उसका ये रोज़ का ही काम था। उसे निधी से काफी लगाव भी हो गया था। उसे वो अपनी बेटी की तरह मानता था। पिछले कुछ समय से वो खुद भी देख रहा था कि निधी एकाएक ही गुमसुम सी हो गई है। उसने भी कई बार इस बारे में उससे पूछा था मगर निधी ने उससे भी यही कहा था कि वो अपने भइया के लिए दुखी रहती है। भला वो किसी से अपने गुमसुम रहने की वजह कैसे बता सकती थी?

कार से उतर कर निधी बहुत ही बोझिल मन से अपने स्कूल के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ती चली गई। स्कूल में उसकी अच्छी अच्छी कई सहेलियाॅ बन गई थी। वो सब भी निधी की इस ख़ामोशी से परेशान व चिंतित थी। मगर वो कर भी क्या सकती थी?

इधर निधी के जाने के थोड़ी देर बाद ही आशा निधी के कमरे में पहुॅची। कमरे को उसने अंदर से कुंडी लगा कर बंद किया और फिर पलट कर निधी की डायरी की तलाश करने लगी। मगर बहुत ढूॅढ़ने पर भी उसे निधी की वो डायरी कहीं न मिली। उसने हर जगह बड़ी बारीकी से चेक किया मगर डायरी तो जैसे गधे के सिर का सींग हो गई थी। सहसा आशा को ख़याल आया कि निधी अपनी डायरी को ऐसी वैसी जगह नहीं रख सकती जिससे वो किसी के हाॅथ लग जाए। ज़ाहिर सी बात है कि ऐसी डायरी वो किसी के हाॅथ लगने भी कैसे दे सकती थी जिसे किसी के द्वारा पढ़ लिए जाने के बाद उस पर क़यामत टूट पड़ती। मतलब साफ है कि उसने उस डायरी को ऐसी जगह छुपा कर रखा होगा जहाॅ से मिलना किसी दीगर ब्यक्ति के लिए लगभग असंभव ही हो।

इस ख़याल के तहत आशा ने सोचा कि ऐसी जगह तो इस कमरे में कदाचित आलमारी और आलमारी के अंदर वाला लाॅकर ही हो सकता है जहाॅ पर निधी ने अपनी डायरी छुपाई हो सकती है। अतः आशा ने आगे बढ़ कर आलमारी खोला और आलमारी के अंदर मौजूद लाॅकर को चेक किया तो उसे लाॅक पाया। अंदर के उस लाॅकर की चाभी को उसने ढूॅढ़ना शुरू कर किया मगर चाभी कहीं नहीं मिली उसे। आलमारी में रखी एक एक चीज़ तथा एक एक कपड़े को उलट पलट कर देखा उसने मगर चाभी कहीं न मिली। थक हार कर फिर उसने हर चीज़ को उसी तरह जमा कर रखना शुरू किया जैसे वो पहले रखी हुई थीं उसके बाद वह बेड पर आकर धम्म से बैठ गई और गहरी गहरी साॅसें लेने लगी।

काफी देर तक बेड पर बैठी वो चाभी के बारे में सोचती रही फिर उसे लगा कि संभव है कि लाॅकर की चाभी निधी अपने पास ही रखती हो। यानी इस वक्त वो चाभी उसके पास उसके स्कूली बैग में ही होगी। बात भी सच थी आख़िर वो चाभी अपने पास ही तो रखेगी वरना ऐसे में तो कोई भी उसकी चाभी ढूॅढ़ कर लाॅकर खोल सकता था तथा उसकी डायरी निकाल सकता था और फिर उसे पढ़ भी सकता था। आशा को ये बात सौ परसेन्ट जॅची।

आशा की ऑखों के सामने सुबह ब्रेकफास्ट करते वक्त का सीन फ्लैश करने लगा। जब वो बार बार निधी की तरफ देख रही थी और फिर निधी ने भी उसको अपनी तरफ एकटक देखते हुए देखा था। उस वक्त उसकी हालत बहुत ही दयनीय सी हो गई थी। आशा को समझते देर न लगी कि निधी को उसके इस तरह देखने से ये समझ में आ गया होगा कि उसने सुबह उसकी डायरी को शायद पढ़ लिया होगा और उसका राज़ जान चुकी होगी। ये सोच ही उसकी हालत ख़राब हो गई थी। आशा जानती थी कि प्यार करना कोई जुर्म नहीं है, किन्तु यही प्यार अगर बहन अपने ही भाई से कर बैठे तो यकीनन ये अनुचित तथा ग़लत हो जाता है। कदाचित यही वजह थी कि निधी की वैसी हालत हो गई थी। उसे डर सताने लगा था कि आशा दीदी उसके बारे में क्या क्या सोचेंगी और अगर ये बात किसी को बता दिया तो इसका क्या अंजाम हो सकता है।

आशा को ये भी एहसास था कि विराज है ही ऐसा कि उससे कोई भी लड़की प्यार कर बैठेगी। फिर चाहे वो बाहरी लड़की हो या फिर खुद उसकी ही बहन। वो खुद भी तो विराज को शुरू से ही अपना सब कुछ मानती आ रही थी। उसे खुद नहीं पता था कि वो कब विराज को अपना दिल दे बैठी थी और फिर जब उसे एहसास हुआ कि वो विराज को बेपनाह प्यार करने लगी है तो एकाएक ही हॅसती खेलती आशा का समूचा अस्तित्व ही बदल गया था। आज जिस ख़ामोशी को निधी ने अख़्तियार कर लिया था उसी ख़ामोशी को एक दिन उसने भी तो ऐसे ही अख़्तियार कर लिया था। अपने प्रेम को उसने विराज के सामने कभी उजागर नहीं किया क्योंकि उसे पता था कि विराज उसे अपनी बहन ही मानता है। दूसरी बात अगर वो उससे अपने प्रेम का इज़हार करती भी तो बहुत हद तक संभव था कि विराज उसे ग़लत समझ बैठता या उसके इस प्रेम को ये कह कर ठुकरा देता वो ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं? दूसरी बात, एक तो उमर में वो विराज से बड़ी थी दूसरे आर्थिक तंगी के चलते उसकी शादी भी नहीं हो रही थी। इस सबसे विराज को ही नहीं बल्कि सबको भी यही लगता कि आशा से अपनी जवानी की गर्मी बर्दास्त नहीं हुई इस लिए उसने विराज के साथ संबंध बनाने के लिए प्यार का नाटक शुरू कर दिया है। तीसरी महत्वपूर्ण बात वो भले ही चुलबुल व नटखट स्वभाव की थी किन्तु सिर्फ अपने भाइयों के लिए बाॅकी बाहरी लोगों के सामने उसने कभी अपना सिर तक न उठाया था। लोक लाज तथा घर की मान मर्यादा का ख़याल ही था जिसने उसके लब हमेशा के लिए सिल दिये थे।
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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जब उसे डायरी के द्वारा ये पता चला कि निधी अपने ही भाई से प्यार करती है तो सहसा उसे झटका सा लगा था और उसके दिल में भावनाओं और जज़्बातों का ये सोच कर भयंकर तूफान उठा था कि जिस विराज को वो अपना सब कुछ मानती आ रही है उस पर तो उसका कोई हक़ ही नहीं है। बल्कि सबसे पहला हक़ तो उसकी खुद की बहन का ही हो गया है। उसने भी सोच लिया कि चलो यही सही। प्यार मोहब्बत तो कम्बख़्त नाम ही उस बला का है जो सिर्फ दर्द देना जानती है इश्क़ करने वालों को। उसे निधी पर बेहद तरस भी आया कि इस मासूम ने उस शख्स से दिल का रोग लगा लिया जो इसका हो ही नहीं सकता। ये समाज ये दुनिया कभी भाई बहन के इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगी। दुनियाॅ की छोंड़ो खुद उसके ही माॅ बाप या संबंधी इसके खिलाफ हो जाएॅगे। कहने का मतलब ये कि मोहब्बत ने एक और शिकार फाॅस लिया बेइंतहां दर्द और तक़लीफ देने के लिए।

आशा जानना चाहती थी कि निधी को अपने ही भाई से इस हद तक प्यार कैसे हो गया है? आख़िर ऐसे क्या हालात बन गए थे जिसके तहत निधी ने ये रोग लगा लिया था? दूसरी बात क्या ये बात विराज को भी पता है कि उसकी लाडली बहन उससे इस हद तक प्यार करती है? उसे पता था कि डायरी एक ऐसी चीज़ होती है जिसमें हर इंसान अपने अंदर की हर सच्चाई को पूर्णरूप से सच ही लिखता है। अतः संभव है कि निधी ने भी उस डायरी में वो सब लिखा हो जिसके तहत उसे पता चलता कि किन हालातों में ऐसा हुआ था? हलाॅकि उसे ये भी पता था कि किसी भी इंसान की पर्शनल डायरी उसकी इजाज़त के बिना पढ़ना निहायत ही ग़लत होता है मगर फिर भी वो पढ़ना चाहती थी।

आशा सोच रही थी कि ब्रेकफास्ट करते वक्त निधी की जो हालत हुई थी उससे कहीं वो कुछ उल्टा सीधा करने का न सोच बैठे। ये मामला ही ऐसा है कि वो इस सबसे बहुत डर जाएगी और किसी के पता चल जाने के डर से वो कुछ उल्टा सीधा करने का सोच बैठे। बेड पर बैठी आशा को एकाएक ही हालात की गंभीरता का एहसास हुआ। उसका दिल बुरी तरह धड़कने लगा। उसे निधी की चिंता सताने लगी। उसने फौरन ही निधी से बात करने का सोचा। किन्तु उसके पास खुद का कोई मोबाइल नहीं था।

आशा अतिसीघ्र बेड से नीचे उतरी और भागते हुए कमरे से बाहर आई और फिर नीचे की तरफ दौड़ पड़ी। थोड़ी ही देर में वो गौरी आदि लोगों के पास पहुॅच गई। उसने खुद के चेहरे पर उभर आए घबराहट के भावों को जल्दी से छुपाया और लगभग सामान्य लहजे में ही गौरी से मोबाइल फोन माॅगा। किन्तु गौरी ने बताया कि मोबाइल तो उसके पास है ही नहीं, उसे तो मोबाइल चलाना ही नहीं आता। दूसरी बात ये कि उसे मोबाइल की कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी। गौरी की ये बात सुनकर आशा बुरी तरह परेशान हो गई। लाख कोशिशों के बावजूद उसके चेहरे पर से परेशानी के वो भाव न मिट सके जो उसके चेहरे पर ढेर सारे पसीने में भींगे दिखने लगे थे। जिसका नतीजा ये हुआ कि गौरी पूछ ही बैठी उससे कि क्या बात है वो इतना परेशान क्यों हो गई है। गौरी की बात का उसने आनन फानन में ही जवाब दिया। तभी वहाॅ पर करुणा भी आ गई। गौरी ने कुछ सोचते हुए करुणा से कहा कि वो अपना मोबाइल फोन आशा को दे दे।

करुणा ने अपना मोबाइल फोन आशा को ये पूछते हुए दे दिया कि क्या बात है तुम इतना परेशान क्यों नज़र आ रही हो। कुछ बात है क्या? आशा ने कहा नहीं चाची ऐसी कोई बात नहीं है वो क्या है कि उसे गुड़िया को फोन करना है तथा उससे पूछना है कि आज वो इतना जल्दी स्कूल क्यों चली गई थी? आपने देखा नहीं था क्या उसने ठीक से नास्ता भी नहीं किया है आज? आशा की इन बातों से गौरी, करुणा तथा रुक्मिणी सहज हो गईं। उन्हें भी बात सही लगी। क्योंकि उन्होंने भी देखा था कि निधी ने बस थोड़ा बहुत ही खाया था और फिर स्कूल चली गई थी। ख़ैर आशा का निधी के लिए इस तरह चिंता करना उन सबको बहुत अच्छा लगा।

करुणा से मोबाइल लेकर आशा फौरन ही वापस कमरे में आई और उसने फिर से दरवाजा उसी तरह अंदर से कुंडी लगा कर बंद कर दिया। उसके बाद वो बेड पर आ कर बैठ गई। फिर जाने उसे क्या सूझा कि वह बेड से उठी और कमरे से ही अटैच बाथरूम की तरफ बढ़ गई। बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद कर उसने मोबाइल पर निधी का नंबर निकाला और फिर उसे काल लगा कर मोबाइल अपने कान से लगा लिया। इस वक्त उसके चेहरे पर गहन चिंता व परेशानी स्पष्ट रूप से उभर आई थी। रिंग की आवाज़ जाती सुनाई दी उसे और इसके साथ ही उसकी धड़कनें भी बढ़ गईं। मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना भी करने लगी कि सब कुछ ठीक ही हो।

"ह..हैलो।" तभी उधर से निधी का लगभग घबराया हुआ सा स्वर उभरा___"च..चाची वो मैं.....।"
"गुड़िया।" निधी की बात को काटते हुए आशा ने फौरन ही कहा___"मैं तेरी आशा दीदी बोल रही हूॅ और हाॅ फोन मत काटना तुझे राज की क़सम है।"

"द..दीदी आप??" उधर से निधी का बुरी तरह उछला हुआ किन्तु घबराया हुआ स्वर फूटा था।
"गुड़िया।" आशा ने असहज भाव से किन्तु समझाते हुए कहा___"देख तू कोई भी उल्टा सीधा करने का ख़याल अपने मन में मत लाना। अगर तू ये सोच कर डर गई है कि मुझे डायरी के माध्यम से तेरा राज़ पता चल गया है और मैं उसकी वजह से तुझे कुछ कहूॅगी या फिर वो सब किसी से कह दूॅगी तो तू उस सबकी वजह से डर मत और ना ही उससे घबरा कर कुछ ग़लत क़दम उठाने का सोचना। मैं तुझे उसके लिए कुछ नहीं कहूॅगी गुड़िया और ना ही किसी को बताऊॅगी। मुझे पता है कि ये प्यार व्यार ऐसे ही होता है जो रिश्ते नाते नहीं देखता। अतः तू इस सबके लिए बिलकुल भी मत घबराना और ना ही फालतू का टेंशन लेना। तू सुन रही है न गुड़िया???"

"हम्म।" उधर से निधी का बहुत ही धीमा स्वर उभरा।
"मुझे इस बात के लिए माफ़ कर दे गुड़िया।" आशा ने सहसा दुखी भाव से कहा___"कि मैने तेरी डायरी को छुआ और उसे खोल कर पढ़ा भी। किन्तु ये सब मैने जान बूझ कर नहीं किया था। बल्कि वो सब अंजाने में हो गया था। दरअसल जब मैं तेरे पास सुबह तेरे लिए चाय लेकर आई तो देखा कि तू उस डायरी को अपने दोनो हाॅथों से पकड़े सो रही थी। मुझे लगा ऐसी डायरी तेरी पढ़ाई में तो उपयोग होती नहीं होगी तो फिर ये कैसी डायरी है तथा क्या है इसमें जिसे इस तरह लिये तू सो रही है? बस यही जानने के लिए मैने उस डायरी को तेरे हाॅथों से लेकर उसे खोला। किन्तु मुझे उसमें वो सब पढ़ने को मिल गया। लेकिन गुड़िया मैने और कुछ नहीं पढ़ा उसमें। शुरू का ही पेज पढ़ा था और वो ग़ज़ल पढ़ी थी जिसमें तूने लिखा था___"बताना भी नहीं मुमकिन, हाॅ ऐसे ही कुछ लिखा था उसमे।"

"क..क्या आप सचमुच इस सबके लिए मुझसे नाराज़ या गुस्सा नहीं हैं दीदी?" उधर से निधी का अभी भी धीमा ही स्वर उभरा था।
"हाॅ गुड़िया।" आशा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"मैं तुझसे बिलकुल भी नाराज़ नहीं हूॅ। भला मैं तुझसे नाराज़ हो भी कैसे सकती हूॅ पागल? किन्तु हाॅ इस बात से दुखी ज़रूर हूॅ कि सबको अपनी शरारतों से परेशान करने वाली मेरी ये लाडली बहन ने एकाएक ही खुद को उदासी की चादर में ढाॅफ लिया है।"

"वक्त और हालात हमेशा एक जैसे तो नहीं हो सकते न दीदी।" उधर से निधी ने अजीब भाव से कहा___"इंसान के जीवन में कभी खुशी तो कभी ग़म वाला समय तो आता जाता ही रहता है। मेरे पास इसके पहले वैसे ही वक्त और हालात थे जबकि मैं खुश रहा करती थी और शरारतें करने के सिवा कुछ नहीं आता था मुझे। मगर अब हालात बदल गए हैं। ईश्वर को मेरा खुश रहना और मेरा वो शरारतें करना शायद अच्छा नहीं लगा तभी तो उसने मुझे दिल का रोगी बना दिया। एक ऐसे इंसान के लिए उसने मेरे दिल में प्रेम का बीज बो दिया जो इंसान मेरा हो ही नहीं सकता। ख़ैर जाने दीजिए दीदी, मैने बहुत हद तक खुद को समझा लिया है। हलाॅकि ये मुश्किल तो था मगर कोई बात नहीं। इतना तो अब सहना ही पड़ेगा न मुझे। मैने भी सोचा कि ऐसे इंसान को पाने की ज़िद भी क्या करना जो मुझे मिल ही न सके और जिसकी वजह से सब कुछ नेस्तनाबूत भी हो जाए।"

निधी की इन बातों ने आशा को जैसे एकदम से ख़ामोश सा कर दिया। उसे समझ न आया कि वो उसकी बातों का क्या जवाब दे? किन्तु इतना एहसास ज़रूर हो गया उसे कि जिस लड़की को सब लोग बच्ची समझते हैं तथा जिसके बारे में ये सोचते हैं कि उसे दुनियादारी की अभी कोई समझ नहीं है वो लड़की दरअसल अब बहुत बड़ी हो गई है। कदाचित इतनी बड़ी कि अपनी इस छोटी सी ऊम्र में भी वो बड़े बड़े बुजुर्गों तथा बड़े बड़े ज्ञानियों को नसीहतें दे सकती है। क्या प्रेम ऐसा भी होता है जो अचानक ही इंसान को इतना बड़ा और इतना बड़ा ज्ञानी बना देता है जिसके चलते वो यथार्थ और ज्ञान की बातें करने लगे?

"आपने ऐसा कह कर यकीनन मेरे दिल को राहत पहुॅचाई है दीदी।" उधर से निधी कह रही थी___"वरना ये सच है कि मैं इस सबसे बहुत ही ज्यादा घबरा गई थी और चिंतित भी हो गई थी। मैं नहीं चाहती दीदी कि मेरी वजह से सब कुछ खत्म हो जाए और अगर सच में आपने किसी से वो सब कुछ बता दिया होता तो ये भी सच है कि फिर मेरे पास आत्म हत्या कर लेने के सिवा कोई दूसरा चारा न रह जाता। मैं किसी को अपना मुह न दिखा पाती और ना ही एक पल के लिए भी वैसी जलालत भरी ज़िंदगी जी पाती।"

"चुप कर तू।" आशा की ऑखों से ऑसुओं का जैसे बाॅध सा फूट पड़ा, बुरी तरह तड़प कर बोली___"ख़बरदार जो दुबारा फिर कभी आत्महत्या वाली बात की। तू सोच भी कैसे सकती है पागल कि मैं किसी से उस बारे में कुछ कह देती? इतनी पत्थर दिल नहीं हूॅ गुड़िया। मेरे सीने में भी तेरी तरह एक ऐसा दिल धड़कता है जिसमें किसी के लिए बेपनाह मोहब्बत जाने कब से अपना आशियां बना कर रहती है।"

"य..ये आप क्या कह रही हैं दीदी??" उधर से निधी का बुरी तरह चौंका हुआ स्वर उभरा___"आप भी किसी से मोहब्बत करती हैं?"
"क्यों गुड़िया?" आशा ने सहसा फीकी मुस्कान के साथ कहा___"क्या मुझे किसी से मोहब्बत नहीं हो सकती? क्या मेरे अंदर एहसास नहीं हैं? अरे मेरे सीने में भी तो ऐसा दिल है जो धड़कना जानता है रे।"

"मेरा वो मतलब नहीं था दीदी।" उधर से निधी ने मानो सकपकाते हुए कहा___"मैं तो बस आपकी इस बात से हैरान हुई थी कि आप भी किसी से मोहब्बत करती हैं। वैसे कौन है वो शख्स जिसे मेरी प्यारी सी दीदी मोहब्बत करती है? मुझे भी तो बताइये न दीदी।"

"बहुत मुश्किल है गुड़िया।" आशा के चेहरे पर एकाएक ही कई सारे भाव आ कर ठहर गए, बोली___"बस यूॅ समझ ले कि एकतरफा मोहब्बत है ये।"
"मोहब्बत तो है न दीदी।" उधर से निधी ने कहा__"इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि वो एकतरफ से है या फिर दोनो तरफ से। मोहब्बत तो मोहब्बत ही होती है चाहे वो किसी की भी तरफ से हो। आप बताइये न किससे मोहब्बत करती हैं आप? मुझे ये जानने की बड़ी तीब्र उत्सुकता हो रही है प्लीज़ बताइये न।"

"मुझे मजबूर मत कर गुड़िया।" आशा की आवाज़ जैसे काॅप सी गई, बोली___"वर्षों से दबे उस मोहब्बत के एहसास को दबा ही रहने दे। क्योंकि मुझे इतने की ही आदत पड़ चुकी है और इतने से दर्द को ही सहने की हिम्मत है मुझमे। वो अगर बाहर आ गई तो फिर मैं उसे और उसके असहनीय दर्द को सम्हाल नहीं पाऊॅगी। इस लिए मुझसे मत पूछ मेरी गुड़िया। मैं तुझे ही क्या उस शख्स को भी नहीं बता सकती जिसे टूट टूट कर वर्षों से चाहा है मैने।"

"हाय दीदी।" उधर से निधी की मानो सिसकी सी निकल गई। कदाचित ऐसा इस लिए क्योंकि दोनो एक ही रोग के रोगी थे। ख़ैर निधी ने कहा___"ये कैसा रोग है दीदी? ये कैसा दर्द है, ये कैसा एहसास है? न जी पाते हैं और ना ही मर पाते हैं। ना चाहते हुए भी उससे फाॅसला कर लेते हैं जिसके बिना पल भी रह नहीं पाते हैं।"

"जाने दे गुड़िया।" आशा के अंदर से एक हूक सी उठी थी जिसने उसे हिला कर रख दिया था, बोली___"ऐसी बातें मत कर वरना इनका असर ऐसा होता है कि फिर एक पल भी सुकून नहीं मिलता। इस लिए ज़रूरी है कि हम अपने मन को अथवा दिल को बहला लें किसी तरह।"

"हाॅ ये तो सच कहा आपने।" निधी ने कहा___"हमें तो हर हाल में खुद को तथा अपने दिल को बहलाना ही होता है। किन्तु अगर आप बताना नहीं चाहती हैं तो कोई बात नहीं। अगर कभी दिल करे कि आपको अपने दिल के बोझ को हल्का करना है तो मुझसे वो सब बता कर ज़रूर खुद को हल्का कर लीजिएगा।"
"चल बाय।" आशा ने गहरी साॅस ली___"अपना ख़याल रखना और हाॅ अपने चेहरे की ये उदासी को कम करने की कोशिश भी करना।"

आशा की इस बात पर उधर से निधी ने हाॅ कहा और फिर काल कट गई। बाथरूम के अंदर एक तरफ की दीवार पर लगे आईने के सामने खड़ी आशा काल कट होने के बाद कुछ देर तक आईने में खुद को देखती रही और फिर सहसा उसके लब थरथराते हुए हिले___"तुझे कैसे बता दूॅ गुड़िया कि मेरे दिल में किस शख्स के प्रति बेपनाह मोहब्बत है? अगर तुझे पता चल जाए कि मुझे भी उसी से मोहब्बत है जिससे तुझे है तो बहुत हद तक संभव है कि तेरा दिल टूट जाएगा और फिर तू सब कुछ जानते समझते हुए भी खुद को बिखर जाने से रोंक नहीं पाएगी।"

आईने में दिख रहे अपने अक्श को एकटक देखती हुई आशा की ऑखों से एकाएक ही ऑसुओं के दो मोती छलकते हुए नीचे बाथरूम के फर्स पर गिर कर मानो फना हो गए। फिर उसने जैसे खुद को सम्हाला और मोबाइल को एक तरफ रख कर उसने वाश बेसिन पर लगे नलके को चला कर उसके पानी से अपने चेहरे को धोना शुरू कर दिया। उसके बाद उसने एक तरफ हैंगर पर टॅगे टाॅवेल से अपने धुले हुए चेहरे को पोंछा और फिर मोबाइल लेकर बाथरूम से बाहर आ गई।
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उधर नीलम व सोनम की तरफ।
नीलम व सोनम जीप की पिछली सीट पर बैठी हुई थी। जीप का ऊपरी हिस्सा यानी कि छत नहीं थी। इस लिए चलते हुए खुली हवा लग रही थी दोनो को तथा इधर उधर का नज़ारा भी स्पष्ट दिख रहा था। जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है कि हल्दीपुर गाॅव आस पास के सभी गाॅव से बड़ा था तथा आस पास के कई गाॅवों की पंचायत भी हल्दीपुर ही थी। अजय सिंह का परिवार हल्दीपुर गाॅव का सबसे ज्यादा संपन्न परिवार था।

नीलम की विराज से पहले ही सारी बातें मैसेज के द्वारा हो चुकी थी। विराज ने उसे प्लान भी समझा दिया था तथा ये भी कहा था कि गाॅव तथा खेत घूमने का बहाना करके निकलना हवेली से किन्तु गाॅव में घूमना ही बस नहीं है बल्कि ऐसी जगह आना है जिस तरफ गाॅव की सीमा का आख़िरी छोर हो तथा जिस तरफ से दूसरे गाॅव यानी कि चिमनी के पहले वाले गाॅव माधोपुर की तरफ जाने वाले रास्ते की तरफ आना है। ऐसा इस लिए कि नीलम व सोनम को गाॅव तथा खेत देखने जाने की जानकारी अगर प्रतिमा द्वारा अजय सिंह को होती है तो वो ज़रूर अपने ससुर जगमोहन सिंह को गुनगुन छोंड़ कर वापस सीघ्रता से मुख्य रास्ते से आएगा। ये भी संभव है कि वो अपने साथ मंत्री के आदमियों को अथवा कुछ ऐसे किराए के टट्टुओं को ले आए जो उन्हें रास्ते में ही मिल जाएॅ तो मुसीबत हो जाए।

इन्हीं सब बातों को सोच कर ही विराज ने नीलम से माधोपुर की तरफ ही आने को कहा था। हल्दीपुर के बगल से ही माधोपुर था उसके बाद चिमनी गाॅव। उधर विराज खुद भी गुनगुन के दस किलो मीटर पहले ही बसे गाॅव रेवती से मुख्य मार्ग से न आ कर घूमते हुए इस तरफ आने वाला था।

नीलम व सोनम दोनो ही ऐसा ज़ाहिर कर रही थीं जैसे सचमुच ही वो दोनो गाॅव देखने निकली हैं हवेली से। विराज ने ये भी कहा था कि संभव है उनके पीछे उसकी माॅम ने और भी ऐसे आदमी लगा दिये हों जो उसकी गतिविधी को नोट करते हुए छुप कर उनका पीछा कर रहे हों। अतः इस बात का ख़याल रखें और अगर वो दिखें तो उनकी वस्तुस्थित से उसे ज़रूर अवगत कराए किन्तु सावधानी से।

नीलम सोनम को बताती जा रही थी कि जब वो छोटी थी तो वो इन जगहों पर कभी कभी घूमने आया करती थी। दोनो ही बातें कर रहीं थी। अब तक दोनो ही गाॅव की सीमा के बाहर की तरफ आ गईं थी। तभी एक जगह ड्राइवर ने जीप को रोंक दिया। ये देख कर दोनो ही चौंकी।

"मैडम अब किधर जाना है?" ड्राइवर ने पीछे पलट कर उन दोनो से पूछा था___"आप तो जानती हैं कि हम दोनो खुद ही यहाॅ पर नये हैं इस लिए हमें रास्तों का कुछ पता नहीं है। अतः आपको जहाॅ जहाॅ घूमना हो हमें बता दीजिए। वैसे आपके भाई शिवा जी ने कहा था कि आपको ये सारा गाॅव देखना है और फिर खेतों की तरफ भी जाना है। इस लिए अब आप बताइये कि यहाॅ से किधर चलना है?"

ड्राइवर की बात सुन कर नीलम के दिमाग़ की बत्ती एकाएक ही रौशन हो उठी और वह मन ही मन ये सोच कर खुशी से झूम उठी कि ड्राइवर को तो यहाॅ के बारे में कुछ पता ही नहीं है। यानी वो अगर चाहे तो कहीं भी चलने को कह सकती है उसे। मगर एकाएक ही उसका मन मयूर ये सोच कर मुरझा भी गया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इन दोनो को शिवा ने ऐसा ही कुछ पूछने के लिए कहा हो। ताकि मैं अपने तरीके से उसे उस तरफ चलने को कहूॅ जिस तरफ जाने से उसे किसी प्रकार की कोई शंका हो और फिर ये शिवा को मैसेज द्वारा इस सबके बारे में सूचित भी कर दे।

नीलम को अपना ये ख़याल जॅचा। इस लिए उसने ऐसा वैसा कुछ भी करने का ख़याल दिमाग़ से निकाल दिया। किन्तु ये भी उसे पता था कि माधोपुर की तरफ ही उसे जाना है। अतः वो उस तरफ जाने के लिए कोई बहाना मन ही मन में सोचने लगी।

"अरे नीलम।" सहसा सोनम एक तरफ हाॅथ का इशारा करते हुए बोल पड़ी___"वो उस तरफ क्या है?"
"क..कहाॅ दीदी?" नीलम ने भी जल्दी से उस तरफ देखते हुए पूछा जिस तरफ सोनम हाथ से इशारा कर रही थी।

"अरे वहाॅ पर।" सोनम ने अपने उठे हुए हाॅथ को हल्का सा मूवमेंट देते हुए कहा___"उस तरफ देख न। ऐसा लगता है जैसे वहाॅ पर कोई बड़ा सा मंदिर है।"
"अच्छा वो।" नीलम को जैसे दिख गया___"हाॅ वो मंदिर ही है। यहाॅ पर वही एक मंदिर है जो कि काफी प्राचीन मंदिर है। हर साल वहाॅ पर मेला भी लगता है।"

"मुझे उस मंदिर को देखना है नीलम।" सोनम ने सहसा जैसे रिक्वेस्ट की___"मुझे मंदिर में देवी देवताओं के दर्शन करना बहुत अच्छा लगता है। प्लीज इनसे कहो न कि ये मंदिर की तरफ चलें।"

"ठीक है दीदी।" नीलम का मन मयूर एकाएक ही खुशी से फिर झूम उठा था। दरअसल वो मंदिर बगल के ही गाॅव माधोपुर में ही स्थित था। मंदिर को देख कर सोनम ने उसे देखने की इच्छा ज़ाहिर की तो नीलम ये सोच कर खुश हो गई कि अब उस तरफ जाने का शानदार बहाना भी मिल गया है। अतः उसने तुरंत ही ड्राइवर से कहा कि जीप को मंदिर की तरफ मोड़ ले।

ड्राइवर ने ऐसा ही किया। उसे इस सबमें कुछ भी अटपटा नहीं लगा इस लिए वो भी बिना कोई भाव चेहरे पर लाए जीप को मोड़ दिया उस तरफ। इधर जैसे ही जीप माधोपुर में स्थित उस मंदिर की तरफ मुड़ कर चली तो सहसा सोनम ने बड़े ही रहस्यमय ढंग से नीलम की तरफ देखा।

नीलम उसके इस तरह देखने से अभी बुरी तरह चौंकने ही वाली थी कि सहसा उसे ख़याल आया कि ड्राइवर के पास ही लगे बैकमिरर से ड्राइवर उसे चौंकते हुए देख भी सकता है। अतः उसने जल्दी से अपने चेहरे के भावों को छुपाया और फिर सोनम को सामान्य लहजे में ही बताने लगी कि एक बार वो भी उस मंदिर में मेले के समय गई थी।

नीलम आस पास का नज़ारा देखते हुए ही थोड़ी थोड़ी देर के अंतराल में पीछे भी देख रही थी। विराज ने उससे कहा था कि संभव है कि उसके पीछे और भी कुछ आदमी छुप कर आएॅ। अतः उन्हीं को देख रही थी नीलम, मगर अभी तक उसे ऐसा कुछ नज़र न आया था। ये देख कर उसे लगने लगता कि विराज बेवजह ही इतनी दूर की सोच रहा है। जबकि यहाॅ तो ऐसा कुछ भी नहीं है और अगर होता तो क्या ऐसा कुछ नज़र न आता?

नीलम के एक हाॅथ में पहले से ही मोबाइल था। अतः उसने सामान्य तरीके से ही किन्तु सामने की सीट पर बैठे दोनो ही आदमियों की नज़रों को बचा कर मोबाइल की तरफ देखा। (यहाॅ पर मेरे पाठक पूछ सकते हैं कि सामने की सीट पर बैठे वो दोनो आदमियों की पीठ नीलम व सोनम की तरफ थी तो भला नीलम का उनकी नज़रों से बचाने की बात कहाॅ से आ गई तो दोस्तो इसका जवाब ये है कि ड्राइवर के पास ही बैकमिरर लगा होता है जिसमें वो पीछे की चीज़ें देखता है। यहाॅ पर मैं उसी की बात कर रहा हूॅ)। ख़ैर, नीलम ने बड़ी सावधानी से मोबाइल में व्हाट्सएप खोला और फिर विराज को मैसेज करके बताया कि वो अब कहाॅ पहुॅचने वाली है।
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विराज का ख़याल एकदम सही था। अजय सिंह को जब प्रतिमा के द्वारा ये पता चला कि नीलम व सोनम गाॅव तथा खेत देखने गईं हैं तो वो सचमुच गुनगुन से चल दिया था। किन्तु चलने से पहले उसने अपने एक ऐसे आदमी को भी फोन किया जो गुनगुन में ही रहता था तथा कई तरह के ग़ैर कानूनी धंधे करता था। उस आदमी का नाम फिरोज़ खान था। अजय सिंह ने फिरोज़ को फोन करके उसे सारी सिचुएशन से अवगत कराया और फिर तुरंत ही अपने गुर्गों को लेकर चलने को कहा था।

इस वक्त अजय सिंह और फिरोज़ खान दोनो एक ही कार में थे जबकि फिरोज़ खान के बाॅकी सभी गुर्गे पीछे अलग अलग तीन जीपों में थे। सभी के हाॅथों में हथियार के रूप में मौत का सामान था। अजय सिंह के पास भी एक रिवाल्वर था जो कि उसने फिरोज़ खान से लिया था।

"तो ये वही लड़का है ठाकुर साहब।" अजय सिंह की कार में पैसेंजर सीट पर बैठा फिरोज़ खान बोला___"जो आपका भतीजा है तथा जिसने आपका जीना हराम कर रखा है। आपने बताया था कि कैसे इसने आपकी फैक्ट्री में आग लगा दी थी जिसमें आपका बहुत तगड़ा नुकसान हुआ था?"

"हाॅ खान।" अजय सिंह सहसा दाॅत पीसते हुए कह उठा___"ये वही हरामज़ादा है और अब तो उसकी इतनी हिम्मत बढ़ गई है कि इसने पिछले दिन हमें अपने नकली सीबीआई के आदमियों के जाल में फाॅस कर कैद भी कर लिया था। मेरी बड़ी बेटी जो पुलिस में इंस्पेक्टर है उसे भी इस कम्बख्त ने अपनी तरफ मिला लिया है। ख़ैर, मुझे अपनी औलाद से ये उम्मीद नहीं थी खान कि वो अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ हो जाएगी। जैसे औलाद अगर बिगड़ी हुई हो और वो हज़ार पाप कर डाले तब भी माॅ बाप के लिए वो प्रिय ही होती है और वो उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं उसी तरह क्या औलाद नहीं कर सकती? मैंने जो कुछ भी किया था सिर्फ अपने बीवी बच्चों के उज्वल भविष्य के लिए ही किया था। साला अब तक तो उसी पाप के पैसों को खुश होकर उड़ाती रही थी वो। मगर आज उसे हमसे तथा हमारे उसी पैसों से नफ़रत हो गई? खान, ये मैं जानता हूॅ कि बेटी की इस बगावत से मुझे कितनी तक़लीफ हुई है। उसे इस बात का ज़रा भी ख़याल नहीं आया कि उसके द्वारा ये सब करने से उसके माॅ बाप पर क्या गुज़रेगी?"

"ये सब उस लड़के की वजह से ही हुआ है ठाकुर साहब।" फिरोज़ खान ने कठोरता से कहा___"उसी ने रितू बिटिया को बरगलाया होगा। वरना वो ऐसा कभी न करती।"

"नहीं खान।" अजय सिंह ने मजबूती से अपने सिर को इंकार में हिलाते हुए कहा___"ये सब उस लड़के के बरगलाने से नहीं हुआ है। क्योंकि इसके पहले मेरे साथ साथ मेरे बच्चे भी उस विराज से नफ़रत करते थे और उसकी तथा उसके परिवार में किसी की शक्ल तक देखना पसंद नहीं करते थे। ये सब तो किसी और ही वजह से हुआ है खान। दरअसल मेरी दोनों ही बेटियों को सच्चाई की राह पर चलना शुरू से ही पसंद था। उन्हें ये पता नहीं था कि उनका बाप वास्तव में कैसा है? ख़ैर, इस मामले में मेरा बेटा मुझ पर गया है। मुझे खुशी है कि वो मेरे जैसा है और सच कहूॅ तो मुझे उस पर नाज़ भी है। मगर अब मैने भी फैंसला कर लिया है कि मेरे इस दिल की आग तभी शान्त होगी जब उस विराज के साथ साथ मैं अपनी उन दोनो बेटियों को भी अपने हाथों से बद से बदतर मौत दूॅगा।"

फिरोज़ खान देखता रह गया अजय सिंह को। वो देख रहा था कि इस वक्त अजय सिंह के चेहरे पर ज़लज़ले के से भाव थे। यकीनन उसके अंदर गुस्सा, क्रोध व अपमान ये तीनो ही अपने पूरे जलाल पर थे।

"ख़ैर छोंड़िये इस बात को।" फिरोज़ खान ने जैसे पहलू बदला___"ये बताइये कि उन सबको पकड़ने के लिए क्या प्लानिंग की है आपने?"

"प्लानिंग में कोई कमी नहीं है खान।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"मेरी बीवी के पास भेजा फ्राई कर देने वाला दिमाग़ है। उसने मुझे बताया था कि उसने उन दोनो के साथ पहले तो सामान्य सिचुएशन बनाए रखने के लिए दो ऐसे आदमियों को जीप में भेजा है जो तगड़े फाइटर कहे जाते हैं। उनके जाने के बाद उसने अलग से उन जैसे ही आदमियों की एक टीम बना कर उनके पीछे इस तरह लगा दिया है कि नीलम व सोनम को वो टीम नज़र ही न आए। उस टीम का काम ये है कि अगर सच में विराज नीलम व सोनम को लेने आ रहा है तो वो यकीनन पहले नीलम व सोनम के साथ गए उन दो आदमियों से भिड़ेगा। अतः हमारी टीम के वो लोग बैकअप के रूप में अपने आदमियों की मदद करेंगे। यानी इस सिचुएशन को देखते हुए ही हमारी दूसरी टीम के आदमी जल्द ही वहाॅ पहुॅच जाएॅगे। मेरी बीवी प्रतिमा के अनुसार अगर बैकअप के रूप में विराज ने भी कोई ऐसा इंतजाम किया होगा तो यकीनन वो भी विराज का पलड़ा कमज़ोर पड़ते देख कर उन सबके बीच टूट पड़ेंगे। उस सूरत में यहाॅ से हम सब भी पहुॅच जाएॅगे और विराज तथा उसके आदमियों का काम तमाम करेंगे। हम लोग एक तरह से डबल बैकअप के रूप में होंगे अपने आदमियों के पीछे। मुझे यकीन है कि इतना कुछ होने के बाद विराज एण्ड पार्टी ज्यादा देर तक हमारा सामना नहीं कर पाएगी और अंततः उन्हें हमारे सामने खुद को सरेण्डर करना ही पड़ेगा।"

"ओह।" फिरोज़ खान प्रभावित लहजे में बोला___"प्लान तो यकीनन आपका शानदार है। सचमुच इस सूरत में आपका वो भतीजा और उसके सभी आदमी घुटने टेक देंगे।"

"बिलकुल।" अजय सिंह ने कहा___"इस सबके बाद विराज और उसके साथ साथ मेरी दोनो बेटियाॅ मेरे कब्जे में होंगी। तब मैं उस हरामी के पिल्ले से अपने साथ हुए इतने भारी नुकसान का गिन गिन के बदला लूॅगा। मुम्बई में सुरक्षित बैठी उसकी माॅ बहन को यहाॅ मेरे पास मेरे पैरों तले आना ही पड़ेगा। उसके बाद तो दुनियाॅ देखेगी कि ठाकुर अजय सिंह के साथ ऐसा दुस्साहस करने वालों का क्या अंजाम होता है?"
"ऐसा ही होगा ठाकुर साहब।" फिरोज़ खान ने दृढ़ता से कहा___"आपने जिस तरह से प्लान बनाया है उस हिसाब से यकीनन आपका वो भतीजा तथा आपकी दोनो बेटियाॅ आपके चंगुल में आ जाएॅगी। मैं अपने साथ अपने लगभग बीस के आस पास आदमी लाया हूॅ। सबके सब आधुनिक हथियारों से लैश हैं। अगर ये सच है कि आपका वो भतीजा उन दोनो को लेने आ रहा है तो यकीनन तगड़ी मुठभेड़ होगी और उस मुठभेड़ में वो लोग बुरी तरह आपसे मात खाएॅगे।"

"इस बार वो हरामी की औलाद नहीं बचेगा खान।" अजय सिंह ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा___"इस बार वो मेरी मुट्ठी में ज़रूर कैद होगा और पिंजरे में कैद परिंदे की तरह फड़फड़ाएगा भी। साले की ऐसी दुर्गति करूॅगा कि मौत और रहम दोनो की ही भीख मागेगा मुझसे।"

अजय सिंह की इस बात पर फिरोज़ खान बोला तो कुछ नहीं किन्तु उसके जबड़े भिंच गए थे, जैसे जंग के लिए पूरी तरह से तैयार हो गया हो। इसके साथ ही कार के अंदर ख़ामोशी छा गई। कार हल्दीपुर की तरफ तेज़ी से बढ़ी जा रही थी। उनके पीछे पीछे तीन तीन जीपों में सवार फिरोज़ खान के गुर्गे भी चले आ रहे थे।
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कहानी अभी जारी है दोस्तो,,,,,,,,,,
 
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अब आगे___________

इधर हम तीनों भी कार में बैठे पूरी रफ्तार से माधोपुर की तरफ बढ़े चले जा रहे थे। हम तीनो के बीच काफी देर से ख़ामोशी छाई हुई थी। कदाचित आने वाले समय के बारे में सब कोई सोचे जा रहा था। कुछ देर पहले रितू दीदी ने फोन पर किसी से बात की थी। उनकी बातें ऐसी थी जो उस वक्त मुझे बिलकुल भी समझ में नहीं आई थी। मैने फोन करके शेखर के मौसा जी से उनकी करेंट लोकेशन के बारे में पूछा था। उन्होंने बताया कि वो हमारे पीछे ही आ रहे हैं किन्तु फाॅसला बना कर।

अभी हमारे बीच ख़ामोशी ही थी कि तभी रितू दीदी का मोबाइल फोन बज उठा। रितू दीदी ने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नंबर को देखा और फिर काल रिसीव कर मोबाइल कान से लगा लिया।

"हाॅ प्रकाश बोलो।" फिर रितू दीदी ने कहा___"क्या ख़बर है वहाॅ की?"
"..............।" उधर से कुछ कहा गया।
"ओह आई सी।" रितू दीदी के होठों पर मुस्कान फैल गई___"कितने लोग हैं वो?"
"...............।" उधर से फिर कुछ कहा गया।
"चलो अच्छी बात है प्रकाश।" रितू दीदी ने कहा__"और हाॅ बहुत बहुत धन्यवाद इस ख़बर के लिए। चलो रखती हूॅ, तुम ज़रा होशियार रहना।"

"क्या बात है दीदी?" काल कट होते ही मैने उनकी तरफ देखते हुए पूछा___"किसका फोन था?"
"तुझे बताया था न मैने।" रितू दीदी ने कहा___"कि हवेली में प्रकाश नाम का एक आदमी सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता है। ये उसी का फोन था। उसने बताया कि माॅम ने नीलम व सोनम के हवेली से निकलने के कुछ देर बाद ही दो जीपों में लगभग दस आदमी उन दोनो के पीछे लगाया है। इसका मतलब मेरा अंदाज़ा सही था। माॅम ने तुम्हारी सोच को ताड़ते हुए बैकअप के रूप में नीलम व सोनम के पीछे कुछ और आदमियों को लगा दिया है।"

"हाॅ इस बात का अंदेशा तो मुझे भी था दीदी।" मैने सामने रास्ते की तरफ देखते हुए कहा___"मुझे अंदेशा था कि बड़ी माॅ ऐसा कर सकती हैं। लेकिन फिक्र की कोई बात नहीं है दीदी। हमारे पास भी बैकअप के रूप में आदमियों की कोई कमी नहीं है।"

"तुम मेरे डैड को भूल गए राज।" रितू दीदी ने कहा___"माॅम ने इस बारे में ज़रूर बताया होगा और अब वो भी आ ही रहे होंगे गुनगुन से। संभव है कि उनके साथ भी कुछ आदमी हों।"

"बिलकुल हो सकते हैं दीदी।" मैने कहा___"इसी लिए तो मैं सीधे रास्ते से नहीं बल्कि माधोपुर वाले रास्ते की तरफ जा रहा हूॅ ताकि इस रास्ते में उनसे हमारा सामना ही न हो।"

"इसके पहले मैने जिससे फोन पर बात की थी।" रितू दीदी ने कहा___"वो एक मुखबिर था। जिसे मैने शुरू से ही डैड के पीछे लगाया हुआ था। ताकि वो डैड की हर गतिविधी के बारे में मुझे सूचित करता रहे। ख़ैर उसने बताया कि डैड मुख्य रास्ते से ही आ रहे हैं किन्तु उनके साथ काफी सारे लोग भी हैं जो आधुनिक हथियारों से लैश हैं। मतलब साफ है कि वो खुद भी पूरी तैयारी के साथ आ रहे हैं। अब तुम समझ सकते हो कि इस सबसे उनकी स्थित हमारी स्थित से ज्यादा मजबूत व भारी है।"

"अगर ऐसा है।" सहसा पिछली की शीट पर बैठा आदित्य बोल पड़ा___"तो यकीनन हम उनके बीच फॅस जाएॅगे। इस लिए हमें कुछ ऐसा इंतजाम करना पड़ेगा जिससे हमारी स्थित उनकी स्थित से बेहतर हो जाए तथा हम उन्हें हरा कर नीलम व सोनम को सुरक्षित वहाॅ से ला सकें।"

"फिक्र मत करो आदित्य।" रितू दीदी ने कहा___"उसका भी इंतजाम मैने कर दिया है और वो इंतजाम ऐसा होगा कि डैड ही क्या कोई भी कुछ नहीं कर पाएॅगा और हम नीलम व सोनम को सहज ही उनके चंगुल से छुड़ा लाएॅगे।"

"ये तो कमाल ही हो गया दीदी।" मैने मुस्कुराते कहा___"अगर ऐसा है तो फिर यकीनन फिक्र की कोई बात नहीं है। मगर सवाल ये है कि आपने ऐसा क्या हैरतअंगेज इंतजाम किया है जिसके तहत हम बड़ी सहजता से नीलम व सोनम दीदी को ले आएॅगे?"

"सब्र कर मेरे प्यारे भाई।" रितू दीदी ने मुस्कुरा कर कहा__"और बस देखता जा कि क्या होता है।"
"इसका मतलब कि आप।" मैने हॅस कर कहा___"इस बारे में हमें न बता कर हम दोनो के लिए सस्पेन्स क्रियेट कर रही हैं?"

"तू अपने आपको बड़ा तीसमारखां समझता है न।" रितू दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"तो फिर खुद ही सोच ले कि मैने ऐसा क्या इंतजाम किया हो सकता है कि उसकी वजह से सब कुछ सहज ही हो जाएगा। इतना ही नहीं बल्कि उस वजह से कोई कुछ कर भी नहीं पाएगा।"

"ओहो ये तो चैलेन्ज देने वाली बात हो गई दीदी।" मैंने ऑखें फैलाते हुए उन्हें देखा।
"हाॅ तो क्या हुआ?" रितू दीदी भी मुस्कुराई___"अगर तू इसे चैलेन्ज समझता है तो यही सही। अब सोच कर बता कि ऐसा क्या हो सकता है इंतजाम?"

"जाने दीजिए दीदी।" मैने नाटकीय अंदाज़ से कहा___"खामखां आपके दिमाग़ का कचरा हो जाएगा। इस लिए बेहतर है कि आप मुझसे ना ही पूछो।"
"ओये चल चल हवा आने दे।" रितू दीदी ने मानो घुड़की सी दी मुझे___"बड़ा आया मेरे दिमाग़ का कचरा करने वाला। भूल मत कि मैं उसकी बेटी हूॅ जिसके दिमाग़ को तू खुद भी सलाम करता है।"

रितू दीदी की इस बात से मैं एकदम से चुप हो गया। सच ही तो कहा था उन्होंने। बड़ी माॅ के दिमाग़ को यकीनन सलाम करने का दिल करता था मेरा। मैं हमेशा सोचता था कि अगर उनका यही शातिर दिमाग़ अच्छाई के लिए उपयोग होता तो कितनी ऊॅची शख्सियत बन सकती थीं वो। ये उनका दुर्भाग्य था या फिर वो ऐसी ही थी। किन्तु एक बात सच थी कि अपने पति से बेहद प्यार करती थीं वो। कदाचित यही वजह है कि उन्होंने पति के कहने पर हर वो काम किया था जो कि हर तरह से अनैतिक व ग़लत था।

"क्या हुआ बच्चे?" मुझे सोचों में गुम देख सहसा रितू दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"मेरी माॅम का सुनकर हवा निकल गई क्या तेरी? होता है बेटा, ऐसा होता है कि ऐसी हस्तियों का ज़िक्र होते ही अच्छे अच्छों की हवा निकल जाती है। तू तो फिर भी अभी बच्चा है।"

"ये कुछ ज्यादा ही नहीं हो गया दीदी?" मैने मासूम सी शक्ल बना कर कहा।
"अब हो गया तो हो गया न।" रितू दीदी मेरे द्वारा अपनी मासूम सी शक्ल बना लेने पर मुस्कुराईं____"कम से कम तू मेरे माॅम का सुन कर अब ज्यादा उड़ेगा तो नहीं।"

"ये सच है दीदी।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"कि वो भले ही बुराई का साथ दे रही हैं मगर जाने क्यों उनके लिए मेरे दिल में इज्ज़त आज भी है। हलाॅकि उन्होंने मेरी माॅ के साथ बुरा करने में कोई कसर नहीं छोंड़ी थी। फिर भी ये मेरी माॅ के दिये हुए अच्छे संस्कार ही हैं कि मैं आज भी अपने से बड़ों को सम्मान देता हूॅ, भले ही उन लोगों ने हमारे साथ कितना ही बुरा किया है।"

"मैं जानती हूॅ राज।" रितू दीदी भी गंभीर हो गई___"और मुझे इस बात की बेहद खुशी भी है कि तेरे और तेरी माॅ बहन के साथ भले ही बद से बदतर सुलूक किया था मेरे माॅम डैड ने मगर इसके बाद भी तू उनकी इज्ज़त करता है। तेरी यही खूबी तुझे सबसे अच्छा और सबसे महान बनाती है। मुझे ईश्वर से इस बात की शिकायत ज़रूर है कि क्यों उसने मुझे ऐसे इंसान की बेटी बनाया जो सिर्फ और सिर्फ पाप करना जानते हैं, मगर इस बात का उसी ईश्वर से धन्यवाद भी करती हूॅ कि उसने मुझे तेरे जैसा नेक दिल भाई दिया। आज तुझे पा कर मैं बेहद खुश हूॅ राज। मुझे पता है कि इस जंग का अंत में अंजाम क्या होगा? यानी कि अधर्म व पाप करने वाले मेरे माॅम डैड तथा मेरा वो कमीना भाई अंत में अपने अधर्म व पाप कर्म करने के चलते या तो मारे जाएॅगे या फिर हमेशा के लिए जेल की सलाखों के पीछे कैद होकर रह जाएॅगे। मुझे इस सबका दुख तो यकीनन होगा भाई क्योंकि आख़िर वो सब हैं तो मेरे अपने ही मगर ये सोच कर खुद को तसल्ली भी दूॅगी कि बुरा करने वालों की नियति तो यही होती है न। उनके बदले मुझे तू मिला है और तेरे साथ साथ गौरी चाची, करुणा चाची तथा गुड़िया जैसी बहन मिल जाएॅगी। ये सब भी तो मेरे अपने ही हैं।"

"छोंड़िये इन सब बातों को दीदी।" मैने माहौल को सामान्य बनाने की गरज़ से कहा____"मुझे भी तो इस सबका दुख होगा मगर आप भी जानती हैं कि इस सबके अलावा दूसरा कोई चारा नहीं है। इस लिए इन सब बातों पर ज्यादा सोच विचार मत कीजिए।"

अभी मैंने ये कहा ही था कि सहसा मेरे मोबाइल फोन पर मैसेज टोन बजी। जिससे मेरा ध्यान सामने ही डैसबोर्ड के पास रखे अपने मोबाइल पर गया। मैने रितू दीदी को मोबाइल उठा कर देखने को कहा। उन्होंने मेरा फोन उठाया और उसमे आए हुए मैसेज को देखने लगीं।

"नीलम का मैसेज है राज।" फिर रितू दीदी ने मुझसे कहा___"उसने मैसेज में बताया है कि वो सोनम के साथ ही माधोपुर वाले मंदिर की तरफ जा रही है।"
"ओह ये तो अच्छी बात है।" मैने कहा___"इसका मतलब उस तरफ जाने का उसने कोई न कोई बहाना बनाया होगा। किन्तु ये भी सच है कि उसके पीछे पीछे ही कोई उनके पीछे भी लगा होगा। ख़ैर ये तो होगा ही, हमें अब उन सबसे निपटने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। हम बस पहुॅचने ही वाले हैं उस जगह।"

"क्या हम उसी तरफ जा रहे हैं राज?" पीछे से आदित्य ने सामने की तरफ इशारा करते हुए कहा___"जहाॅ पर वो ऊॅचा सा मंदिर का गुंबद दिखाई दे रहा है?"
"हाॅ दोस्त।" मैने कहा___"हम माधोपुर के उसी मंदिर के पास जा रहे हैं। लेकिन वहाॅ पर एक समस्या भी हो सकती है।"

"समस्या???" आदित्य के साथ साथ रितू दीदी भी बोल पड़ी थीं___"कैसी समस्या हो सकती है?"
"समस्या यही होगी कि हम सब मंदिर के पास ही इकट्ठा होंगे।" मैने कहा___"और मंदिर के पास ही हम सबका आमना सामना होगा। ये भी सच है कि हम सबके बीच इस लड़ाई में खून ख़राबा भी होगा जो कि मंदिर के पास नहीं होना चाहिए।"

"अरे ये तो अच्छी बात है राज।" रितू दीदी ने कहा___"देवी माॅ के सामने ही हर चीज़ का फैंसला होगा और यकीनन हमारी ही जीत होगी। यानी कि अंततः हम नीलम व सोनम को लेकर ही आएॅगे। भला देवी माॅ के सामने अधर्म व पाप की जीत कैसे हो सकेगी?"

"मैं रितू की इस बात से सहमत हूॅ भाई।" पीछे से आदित्य ने कहा___"दूसरी बात ये संयोग भी देवी माॅ ने बनाया है कि हम सब उनके सामने ही एकत्रित होंगे और हर चीज़ का फैंसला वो खुद करेंगी।"

"हाॅ यार।" मैने सहसा खुशी से कहा___"इस तरफ तो मेरा ध्यान ही नहीं था। सच कहा है बड़े बड़े संतों ने कि इस संसार में सब कुछ ईश्वर की ही मर्ज़ी से होता है। वो हमें वहीं ले जाता है जहाॅ के बारे में हमने सोचा भी नहीं होता है। सोचने वाली बात है न दीदी, मैने तो नीलम से सिर्फ यही सोच कर वहाॅ पर आने को कहा था कि सबसे निपटने के बाद हम उसी रास्ते से वापस भी हो जाएॅगे ताकि बड़े पापा से हमारा सामना ही न होने पाए। इस बारे में तो हमने सोचा ही नहीं था हर चीज़ का फैंसला करने के लिए वहाॅ पर देवी माॅ भी मौजूद होंगी। भला उनकी इच्छा के बग़ैर कोई काम कैसे हो सकता था?"

"अब हमारी जीत यकीनन होगी राज।" आदित्य ने कहा___"देवी माॅ को भी पता है कि हम धर्म की राह पर हैं। अतः उनके आशीर्वाद से सब कुछ हमारे ही हक़ में होगा और इसका मुझे पूरा विश्वास है।"

"हम सबको विश्वास है आदित्य।" रितू दीदी ने कहा__"इस लिए अब हम सब देवी माॅ को मन ही मन प्रणाम करके काम का श्रीगणेश करेंगे। बोलो जय माता दी।"
"जय माता दी।" दीदी के कहने पर हम सबने एक साथ जय माता दी कहा और फिर मैं एक्सीलेटर पर अपने पैर को और ज़ोर से दबा दिया। परिणामस्वरूप कार की रफ्तार और भी तेज़ हो गई।

कुछ ही देर में हमारी कार माधोपुर गाॅव के बाहर बने उस देवी माॅ के मंदिर के पास पहुॅच गई। उसके पहले ही मैने रितू दीदी तथा आदित्य को कार से उतार दिया था। ऐसा इस लिए कि हम तीनों का एक साथ रहना ठीक नहीं था। उससे हम एक साथ एक ही जगह पर फॅस सकते थे। इस लिए मैने रितू दीदी व आदित्य को मंदिर से लगभग पचास मीटर पहले ही उतार दिया था और खुद कार लेकर मंदिर की तरफ बढ़ चला था। मुम्बई से जब मैं चला था तो जगदीश अंकल ने मुझे तीन कवच दिये थे जो कि बुलेट प्रूफ थे। इस वक्त हम तीनो ने ही अपने कपड़ों के अंदर उस बुलेटप्रूफ कवच को पहना हुआ था। ये जगदीश अंकल की दूरदर्शिता का ही कमाल था कि उन्होंने हम लोगों की सुरक्षा का ऐसा इंतजाम किया था।

माधोपुर गाॅव में लगभग पचास या साठ के आस पास मकान बने हुए थे। देवी माॅ का ये प्राचीन मंदिर गाॅव के बाहर बना हुआ था। मंदिर से लगभग पचास या साठ मीटर के फासले से ही गाॅव की आबादी शुरू होती थी। कहने का मतलब ये कि हमारी इस मुठभेड़ में गाॅव के लोगों पर कोई आॅच नहीं आ सकती थी। ये हमारे लिए सबसे अच्छी बात थी। आस पास का इलाका दूर दूर हरे भरे तथा ऊॅचे ऊॅचे पेड़ पौधों से सुशोभित था। ये सभी गाॅव चारो तरफ के पहाड़ों से घिरे हुए थे। एक नहर थी जो कि माधोपुर और हल्दीपुर के बीच से निकलती थी। चिमनी की तरफ जाते जाते ये नहर दो भागों में बॅट जाती थी। जिसका एक भाग चिमनी की तरफ तथा दूसरा भाग एक अन्य गाॅव गुमटी की तरफ जाती थी किन्तु गुमटी के बाहरी इलाके की तरफ से। नहर के होने का सबसे बड़ा फायदा ये था कि यहाॅ के सभी गाॅवों में पानी का अभाव नहीं था। सभी गाॅवों में खेतों की सिंचाई के लिए इसी नहर के पानी का उपयोग होता था। जिसका नतीजा ये होता था कि आस पास के सभी गाॅवों में फसल की पैदावार अच्छी खासी होती थी।

मंदिर के नज़दीक ही मंदिर के पिछले हिस्से की तरफ मैने कार को रोंक दिया था। मैने देख लिया था कि मंदिर के सामने की तरफ एक ऐसी जीप खड़ी थी जिसके ऊपर छत नहीं थी। वो जीप यकीनन वही थी जिसमें नीलम व सोनम आई हुई थीं। चारो तरफ इस समय ख़ामोशी तो थी किन्तु मैं जानता था कि ये ख़ामोशी कुछ ही समय की मेहमान थी यहाॅ पर। ख़ैर, मैने देवी माॅ को प्रणाम किया और फिर धड़कते हुए दिल के साथ मंदिर के सामने की तरफ आहिस्ता आहिस्ता बढ़ने लगा।हलाॅकि मैं पूरी तरह सतर्क था तथा किसी भी खतरे से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार था।

आस पास का बहुत ही बारीकी से जायजा लेते हुए मैं मंदिर की दीवार से सट कर चलते हुए मंदिर के सामने वाले भाग की तरफ बढ़ रहा था। ये मेरे जीवन का पहला अवसर था जबकि मैं इस तरह की सिचुएशन को फेस करने वाला था और आने वाले समय की सिचुएशन को भी। थोड़ी ही देर बाद मुझे अपनी जगह पर रुक जाना पड़ा। क्योंकि मैने देखा कि मंदिर के सामने किन्तु कुछ ही दूरी पर वो जीप खड़ी थी तथा उस जीप के पास ही वो दो हट्टे कट्टे आदमी भी खड़े थे जिन्हें बड़ी माॅ ने नीलम व सोनम की सुरक्षा के रूप में भेजा था। वो दोनो आपस में बातें तो कर रहे थे किन्तु उनके हाव भाव से नज़र आ रहा था कि वो किसी भी खतरे से निपटने के लिए भी तैयार थे। यानी कि उन्हें बताया गया था कि ऐसा कुछ होगा।

मैं जानता था कि मेरे पास ज्यादा समय नहीं है क्योंकि अभी कुछ ही समय में यहाॅ पर आदमियों की फौज भी नज़र आने लगेगी। ये भी संभव था कि आ ही गई हो। हलाॅकि मैने आस पास बहुत बारीकी से देख चुका था किन्तु मुझे ऐसा कुछ नज़र नहीं आया था जिससे पता चले कि यहाॅ पर कोई और भी है।

मैने अपने पैन्ट के पीछे बेल्ट पर फॅसे रिवाल्वर को निकाला। उसके बाद मैने अपनी जैकेट से एक ऐसी चीज़ निकाली जिसे साइलेंसर कहा जाता है। मैने उस साइलेंसर को रिवाल्वर की नाल पर फिट किया। मैं चाहता था कि जो काम छुप कर हो जाए उसे अंजाम दे देना चाहिए। हलाॅकि ये तो तय था कि खुल कर मुकाबला करना ही पड़ेगा। मगर मेरी सोच थी कि दुश्मन को मौका ही क्यों दिया जाए?

रिवाल्वर की नाल पर साइलेंसर फिट करने के बाद मैने उन दोनो की तरफ देखते हुए अपने रिवाल्वर वाले हाॅथ को हवा में उठाया और फिर एक आदमी की गर्दन पर निशाना साध कर ट्रिगर दबा दिया। परिणाम स्वरूप हल्की सी पिट् की आवाज़ हुई और एक अजीब सी चीज़ पलक झपकते ही उनमें से एक आदमी की गर्दन पर जा लगी। मैने इतने पर ही बस नहीं किया बल्कि उसी पल रिवाल्वर का रुख मोड़ कर फिर से ट्रिगर दबा दिया था। दो पल के अंदर ही वो दोनो आदमी लहराते हुए जीप के पास ही कच्ची ज़मीन पर भरभरा कर गिरे और शान्त पड़ गए। उन दोनो की गर्दन से कोई खून नहीं बह रहा था बल्कि एक एक सुई चुभी हुई थी। आप समझ सकते हैं कि वो सुई क्या हो सकती थी। मेरा इरादा उन्हें जान से मारने का हर्गिज़ भी नहीं था बल्कि सिर्फ बेहोश करना था। इस लिए वो दोनो अब सुई के प्रभाव से कम से कम दो से तीन घंटे के लिए बेहोश हो चुके थे।

मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि आते ही मुझे इस तरह सहजता से पहले पड़ाव पर ही कामयाबी मिल जाएगी। मगर सबूत चूॅकि सामने ही ज़मीन पर बेहोश पड़े थे इस लिए यकीन करना ही था। उन दोनो के बेहोश ओ जाने के बाद मैने एक बार पुनः आस पास का बारीकी से जायजा लिया और फिर मंदिर के सामने की तरफ बढ़ चला किन्तौ सावधानी से ही। अभी मैं बढ़ ही रहा था कि तभी मंदिर के अंदर से घंटे के बजने की दो बार आवाज़ आई। मैं समझ गया कि नीलम व सोनम दीदी मंदिर के अंदर हैं।

मैं आस पास देखते हुए तेज़ी से आगे बढ़ा और मंदिर के जस्ट बगल पर ही सीढ़ियों के पास आ गया। एक बार पुनः आस पास का जायजा लिया और फिर मैने पैन्ट की जेब में हाॅथ डाला तो चौंक पड़ा। मैं मोबाइल कार में ही भूल आया था। इस वक्त मैं नीलम को मैसेज कर बोलना चाहता था कि वो दोनो मंदिर के बाहर आ जाएॅ और जल्दी से मेरे साथ चलें यहाॅ से। मगर मेरा मोबाइल कार में ही रह गया था। ख़ैर, मैने सोचा चलो कोई बात नहीं मंदिर के अंदर जाकर देवी माॅ के दर्शन भी तो करना चाहिए।

मैं तेज़ी से सीढ़ियाॅ चढ़ते हुए मंदिर के मुख्य दरवाजे पर पहुॅचा तो देखा कि मंदिर के अंदर नीलम व सोनम दोनो ही देवी माॅ की प्रतिमा के सामने अपने दोनो हाॅथ जोड़े खड़ी थी। ये देख कर मैं मुस्कुराया और फिर तुरंत ही मंदिर के दरवाजे की चौखट को छूकर पहले प्रणाम किया और फिर चौखट को पार गया।

अंदर आते ही मैने नीलम व सोनम दीदी के पीछे ही खड़े होकर तथा अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए देवी माॅ को असीम श्रद्धा से प्रणाम किया। मगर अगले ही पल मेरे मुख से घुटी घुटी सी चीख़ निकल गई साथ ही मैं पीछे की तरफ लहराते हुए चौखट के बाहर आकर पीठ के बल ज़मीन पर गिरा। मेरी ऑखों के सामने कुछ पल के लिए अॅधेरा सा छा गया। मेरी नाॅक से खून बहने लगा था तथा मेरे मुख के बाएॅ साइड की तरफ होंठों से भी खून बहने लगा था। किसी ने बड़ी ज़ोर से मुझ पर वार किया था।

अभी मैं अपने होशो हवाश में आते हुए ज़मीन से उठ ही रहा था कि तभी मेरे पेट में फिर से बड़े ज़ोर का प्रहार हुआ। जिसके प्रभाव से मैं किसी फुटबाल की तरह हवा में उड़ता हुआ सीधा सीढ़ियों के नीचे आ कर गिरा। इन कुछ ही पलों ये सब इतना तेज़ी से हुआ था कि मुझे कुछ समझने का मौका ही नहीं मिल पाया था। सीढ़ियों के ऊपरी भाग से सीधा नीचे कच्ची ज़मीन पर गिरने से एक बार फिर से मैं बुरी तरह दर्द से बिलबिला उठा था। किन्तु अब तक मैं समझ गया था कि ये एक जाल था जिसमें मैं फॅसाया गया था।

कच्ची ज़मीन से मैं उछल कर खड़ा हो गया और सीढ़ियों के ऊपर की तरफ देखा ही था कि पीछे से किसी ने मेरी पीठ पर ज़बरदस्त वार किया। मैं इसके लिए बिलकुल भी तैयार नहीं था और ना ही मुझे इसकी उम्मीद थी। अतः इस बार मुह के बल उसी कच्ची ज़मीन पर गिरा। मुझे एकाएक ही भारी खतरे का आभास हुआ और मैने अपनी संपूर्ण ताकत लगाते हुए फिर से उछल कर खड़ा हुआ। अभी मैं खड़ा ही हुआ था कि पलक झपकते ही मुझे नीचे भी झुक जाना पड़ा वरना पीछे की तरफ से जिसने वार किया था उसकी फ्लाइंग किक सीधा मेरी गर्दन पर पड़ती और यकीनन मेरी गर्दन की हड्डी टूट जाती।

मैने झुकने के साथ ही अपनी एक टाॅग को बिजली की सी तेज़ी से चलाया था, नतीजा ये हुआ कि फ्लाइंग किक मारने वाले का जो अकेला पैर ज़मीन पर टिका था वो ज़मीन से उखड़ गया और वो भरभरा कर ज़मीन पर गिरा। मैं ये देख कर आश्चर्य चकित रह गया कि ये तो वही आदमी था जिसे अभी थोड़ी ही देर पहले मैंने सुई के द्वारा बेहोश किया था। मुझे समझ न आया कि ये बेहोशी से होशो हवाश में कैसे आ गया। मैने पलट कर दूसरे आदमी की तरफ देखा तो वो भी एक तरफ पोजीशन लिए खड़ा मुस्कुरा रहा था। ये देख कर मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही। साला ये दोनो चीज़ क्या थे कि इन पर उस बेहोश करने वाली सुई का भी असर नहीं हुआ?

सच तो ये था कि मैं कुछ भी नहीं समझ पा रहा था। एक तो इन दोनो पर सुई का असर न हुआ दूसरे मंदिर के अंदर से मुझे इस तरह बाहर लगभग फैंक दिया गया। सबसकुछ इतनी तेज़ी से हुआ कि मुझे कुछ समझ ही नहीं आया था। किन्तु अब मैं समझ चुका था कि ये सब क्या था। मतलब साफ था कि बड़ी माॅ के द्वारा भेजा गया बैकअप यहाॅ पहुॅच चुका था और उसके कुछ आदमी मंदिर के अंदर छुपे मेरे आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। मैं जैसे ही मंदिर के अंदर गया और देवी माॅ को प्रणाम करने लगा वैसे ही उन लोगों ने मुझ पर वार कर दिया था। इधर जिन्हें मैं बेहोश समझ रहा था वो होश में होते हुए मेरे इस तरह नीचे आ जाने का इंतज़ार कर रहे थे। उसके बाद जैसे ही मैं नीचे गिरा वैसे ही इन दोनो ने भी मुझ पर हमला कर दिया। कहने का मतलब ये कि कहीं से भी मुझे सम्हलने का या सोचने का मौका ही नहीं मिल पाया था।

अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि सहसा मुझे रितू दीदी व आदित्य का ख़याल आया। मुझे उन दोनो की बेहद चिंता होने लगी। कहीं वो दोनो भी न फॅस गए हों। मैने मन ही मन देवी माॅ से कहा____"ये सब क्या है माॅ? इन लोगों ने मुझे आपको ठीक से प्रणाम भी नहीं करने दिया और आपने भी इन्हें रोंका नहीं? ऐसी तो उम्मींद नहीं मुझे? ख़ैर कोई बात नहीं, मुझे अपना आशीर्वाद दीजिए कि मैं इन सबका मुकाबला कर सकूॅ और अपने सभी चाहने वालों को यहाॅ से सुरक्षित ले जा सकूॅ।"

"कैसी लगी बच्चे?" तभी मेरे कानों में ऊपर सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए एक हट्टे कट्टे आदमी की आवाज़ पड़ी, वो मुस्कुराते हुए कह रहा था___"ज्यादा चोंट तो नहीं आई न तुम्हें? वैसे मैं हैरान हूॅ कि तुम जैसे मामूली से लड़के के लिए हमारे बाॅस इतना ज्यादा परेशान थे। सचमुच यकीन नहीं होता कि तुम जैसा पिद्दी सा लड़का हमारे बाॅस की नींदें हराम किये हुए था। जबकि तुम्हें तो जब चाहे चीटियों की तरह मसला जा सकता था। बट डोन्ट वरी, जो पहले नहीं हुआ वो अब हो जाएगा।"

"कहते हैं ऊॅट जब तक पहाड़ के नीचे नहीं आता।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"तब तक उसे यही लगता है कि वो इस संसार में सबसे ऊॅचा है और उसकी बराबरी कोई कर ही नहीं सकता। वही हाल तुम्हारा है भाड़े के कुत्ते। अपने बाॅस लोगों के सामने कुत्तों की तरह दुम हिलाने वाले कुत्तो इस भरम में न रहो कि तुम लोगों ने मुझे इस तरह फॅसा कर कोई तीर मार लिया है। बल्कि खेल तो अब शुरू होगा।"

"काफी कड़वी ज़बान है तेरी लड़के।" सीढ़ियों से नीचे उतर आए उस आदमी ने सहसा दाॅत पीसते हुए गुस्से से कहा____"अगर बाॅस ने मना न किया होता तो यहीं पर तुझे चीटी की तरह मसल कर तेरी जीवन लीला समाप्त कर देता।"

"अगर एक ही मर्द की औलाद है।" मैने भी तैश में आकर कहा___"तो अकेले मुझसे मुकाबला कर, फिर देखना कि चींटी की तरह कौन मसला जाता है?"
"ओहो ऐसा क्या?" वो आदमी ब्यंगात्मक भाव से ऑखों को फैलाते हुए बोला___"चल ठीक है, तेरी ये इच्छा तो पूरी करनी ही चाहिए।" ये कहने के साथ ही उसने अपने बाॅकी साथियों की तरफ देखते हुए कहा___"तुम में से कोई भी इस लड़के को हाॅथ नहीं लगाएगा। ये मुझे दिखाना चाहता है कि चींटी की तरह हम दोनो में से कौन मसला जाता है। अतः अब मुकाबला सिर्फ हम दोनों के बीच ही होगा।"

उसके सभी साथियों सहमति में सिर हिला दिया। सबके होठों पर जानदार मुस्कान थी। जैसे उन्हें मेरी मूर्खता पर हॅसी आ रही हो। हलाॅकि मुझे भी पता था ये समय इस तरह के मुकाबले का बिलकुल भी नहीं है, मगर तैश में आकर मेरी ज़बान से निकल ही गया था। अतः अब बात ज़बान की थी तथा अपने स्वाभिमान की। समय ऐसा था कि अपनी जगह रुकने वाला नहीं था। हर पल के बीतने के साथ इस बात की भी संभावना बढ़ती जा रही थी कि जो यहाॅ नहीं पहुॅचे हैं वो किसी भी वक्त पहुॅच सकते हैं और फिर हालात और भी विकट हो जाएॅगे।

इधर बाॅकी सब आदमियों की सहमति मिलते ही मैने पोजीशन ले ली। जबकि छिसके साथ मेरा मुकाबला होने जा रहा था उसने झटके से अपने जिस्म के ऊपरी हिस्से के कपड़े निकाल कर अपने एक आदमी की तरफ उछाल दिया। सहसा मेरी नज़र ऊपर मंदिर के दरवाजे के बाहर खड़ी नीलम व सोनम पर पड़ी। वो दोनो ही दोनो तरफ से एक एक आदमी से घिरी हुई खड़ी थीं। उनके चेहरों पर इस वक्त डरे सहमे से भाव कायम थे। मैं उन दोनो की तरफ देख कर अजीब तरह से मुस्कुराया और फिर अपने प्रितद्वंदी की तरफ देखने लगा।

मैने देखा कि उसके जिस्म से कपड़ा हटते ही उसका हट्टा कट्टा जिस्म नुमायाॅ हो उठा। कोई आम इंसान उसकी इतनी खतरनाक बाॅडी देख कर ही डर जाए। उससे लड़ने का ख़याल तो वो आने वाले सात जन्मों में भी न करे। ख़ैर उसने अपने दोनो हाॅथो को अगल बगल उसे ऊपर उठा कर मुझे अपने डोले दिखाए। जैसे कह रहा हो कि देख बच्चे जितने मेरे ये डोले हैं उतने में तो तेरे जिस्म का कोई हिस्सा भी फिट नहीं बैठता। ये देख कर मैं मुस्कुराया और फिर अपने दोनो हाॅथों के इशारे से उसे अपनी तरफ मुकाबले के लिए बुलाया।

मेरे ऐसा करने पर उसके चेहरे के भाव एकदम से बदले और वो पलक झपकते ही गुस्से में डूबा दिखाई देने लगा। कदाचित अपने डोले दिखा कर वो मुझे डराना चाहता था मगर जब मैं उसे डरा हुआ नज़र नहीं आया तो उसे गुस्सा आ गया था।

"अपने भगवान को याद कर ले बच्चे।" फिर उसने मेरी तरफ खतरनाक भाव से बढ़ते हुए कहा___"उनसे दुवा कर कि तेरे जिस्म की हड्डियाॅ सलामत रहें।"
"ये डाॅयालग मैं भी बोल सकता हूॅ तुम्हारे लिए।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"पर ये सोच कर नहीं बोला कि फालतू की डींगें मारना मेरी फितरत नहीं है।"

मेरी ये बात सुन कर वो जैसे बुरी तरह तिलमिला गया था। मुझे पता था कि उसके सामने मैं कुछ भी नहीं हूॅ। अगर मैं एक बार भी उसके फौलादी शिकंजे में फॅस गया तो फिर शायद भगवान ही मालिक होगा मेरा। मगर मुझे खुद पर और अपने गुरू की सिखाई हुई कला पर पूर्ण विश्वास था।

वो पूरे वेग से मेरी तरफ बढ़ा और अपने दाहिने हाॅथ को भी उसी वेग से मुझ पर चलाया था। मैं फुर्ती से नीचे झुका मगर झुकते ही मेरे हलक से चीख निकल गई। कारण उसने हाॅथ चलाने के बाद ही अपने दाहिने पैर को उठाकर उसका घुटना भी चला दिया था जो सीधा मेरे झुके हुए चेहरे से टकराया था। मैं उछलते हुए सीधा हुआ ही था कि उसने बिजली की सी फुर्ती से घूम कर मेरे सीने पर फ्लाइंग किक जमा दी। नतीजा ये हुआ कि मेरे हलक से ज़ोर की हिचकी निकली और मैं पीछे की तरफ हवा में लहराते हुए ही नीचे कच्ची ज़मीन पर चारो खाने चित्त जा गिरा। गिरते ही मेरी ऑखों के सामने अनगिनत तारे नाॅच गए। कुछ पल के लिए तो ऑखों के सामने अॅधेरा भी छा गया। प्रहार इतना ज़बरदस्त था कि मुझसे तुरंत उठा न गया। सीने में बड़ी असहनीय पीड़ा महसूस हुई मुझे। मेरे कानो में नीलम व सोनम की चीखें भी टकराई। कदाचित मुझे इस तरह गिरते देख वो बेहर डर गई थी और मुझे कुछ हो जाने की आशंका से वो बुरी तरह चीखी थीं।

सहसा मेरी नज़र मेरे नज़दीक ही पहुॅच चुके उस आदमी पर पड़ी। मेरे क़रीब पहुॅचते ही उसने अपने पैर को उठाया और ज़मीन पर चित्त गिरे मेरे पेट की तरफ तीब्र वेग से चलाया। मैं बिजली की सी फुर्ती से कई पलटा खाते हुए दूसरी तरफ हो गया तथा साथ ही उछल कर खड़ा भी हो गया। ये अलग बात है इस तरह उछल कर खड़े होने से अचानक ही मुझे अपने सीने पर पीड़ा का एहसास हुआ। मैं समझ चुका था कि अगर ये आदमी इसी तरह मुझ पर और दो चार प्रहार करने में सफल हो गया तो यकीनन मेरा काम तमाम हो जाना है। अतः अब मैं उससे पूरी तरह सतर्कता से मुकाबला करने के लिए तैयार हो गया।
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दोस्तो, आप सबके सामने अपडेट हाज़िर है।
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट........《 58 》


अब आगे,,,,,,,

मंत्री दिवाकर चौधरी इस वक्त गुनगुन में ही एक ऐसी जगह पर था जहाॅ पर उसके ही किसी खास जान पहचान वाले के माल का उद्घाटन समारोह था। माल का मालिक या यूॅ कहिए कि मंत्री के उस जान पहचान वाले खास आदमी का नाम शैलेन्द्र बंसल था। जो मुख्य रूप से आगरा का रहने वाला था। बहुत पहले ही उसकी मुलाक़ात मंत्री से हुई थी। कहते हैं कि जो जैसा होता है उसे वैसा मिल ही जाता है फिर चाहे वो दुनियाॅ के किसी भी कोने में चला जाए।

शैलेन्द्र बंसल और मंत्री के बीच क्या मंत्रणा हुई थी इस बारे में तो ख़ैर वो दोनो ही बता सकते थे किन्तु मंत्री के कैरेक्टर के हिसाब से सोचने पर पता चलता था कि शैलेन्द्र बंसल भी मंत्री के ही जैसे कैरेक्टर का आदमी था। इसका खुलासा तब हुआ जब मंत्री ने शैलेन्द्र को अपने यहाॅ कारोबार के रूप में एक बड़ा सा माॅल स्थापित करने का प्रस्ताव दिया था। मंत्री के ही सहयोग से तथा उसके ही निर्देशन पर गुनगुन में अच्छी खासी ज़मीन पर ग़ैर कानूनी रूप से कब्जा कर उस स्थान पर बहुत ही कम समय में एक बड़ा सा माॅल बन कर तैयार हो गया था जिसका उद्घाटन आज खुद मंत्री के द्वारा हुआ था।

मंत्री के निर्देशन में बना ये माॅल सबकी नज़र में माॅल ही था जहाॅ पर हर तरह का उपयोगी सामान लोगों को ख़रीदने पर मिल जाता मगर कोई नहीं जानता था इसी माॅल के बेसमेन्ट में दरअसल मंत्री व शैलेन्द्र बंसल ग़ैर कानूनी धंधे को अंजाम देने की बुनियाद भी रख चुके थे।

माॅल का उद्घाटन तथा वहाॅ पर कुछ ज़रूरी मीटिंग करने के बाद मंत्री माॅल से बाहर आकर अपने सुरक्षा कर्मियों से घिरा अपनी कार के पास पहुॅचा ही था कि सहसा उसकी कोट की जेब में मौजूद मोबाइल बज उठा। एक हाॅथ से मोबाइल को निकालने के साथ ही मंत्री अपनी कार की पिछली सीट पर बैठ गया। उसके बाद उसने बज रहे मोबाइल की स्क्रीन की तरफ देखा। उसके बैठते ही उसके साथ आगे पीछे उसके सुरक्षा गार्ड भी बैठ गए। इसके बाद कार आगे बढ़ चली।

"हाॅ कहो राणे।" मोबाइल की स्क्रीन पर डिटेक्टिव राणे का नाम देख कर मंत्री ने फौरन ही काल को रिसीव कर मोबाइल को कान से लगाने के साथ ही कहा___"क्या बात है? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुमने उस सारे काम को कर लिया है जिस काम को करने के लिए हमने तुम्हें लगाया था? अगर ऐसा है तो भाई मान गए तुम्हें। इतने कम समय में तो दुनियाॅ का कोई भी जासूस काम को अंजाम नहीं दे सकता। अभी कल ही तो लगे थे तुम काम में।"

"आप ग़लत समझ रहे हैं चौधरी साहब।" उधर से राणे का स्वर उभरा___"जिस काम के लिए आपने मुझे लगाया है वो काम भला इतना जल्दी कैसे हो जाएगा?"
"ओह ऐसा क्या।" मंत्री ने बुरा सा मुह बनाया___"हम तो मियाॅ खांमखां ही तुम्हें जेम्स बाण्ड का बाप नहीं बल्कि दादा समझ बैठे थे। ख़ैर, ये बताओ कि अगर काम नहीं हुआ है तो तुमने हमें फोन किस बात के लिए किया है?"

"दरअसल मैने।" उधर से राणे ने कहा___"बहुत ही ज़रूरी बात बताने के लिए आपको फोन किया है।"
"अरे तो मियाॅ।" मंत्री तपाक से बोला___"बात क्यों बढ़ा रहे हो? ज़रूरी बात तो तुमें अतिसीघ्र बताना चाहिए न। ख़ैर जल्दी बताओ कौन सी ज़रूरी बात है?"

"कल आपके यहाॅ से जाने के बाद।" उधर से राणे कह रहा था___"मैने अजय सिंह का पता किया और उसके पीछे लग गया। मैं देखना चाहता था कि उसने जो कुछ आपसे कहा था उसमें कितनी सच्चाई थी तथा वो आपके प्रति कितना वफ़ादार है?"

"ओह।" मंत्री के कान खड़े हो गए___"तो क्या देखा और क्या जाना तुमने?"
"कल तो उसने कुछ खास नहीं किया था।" हरीश राणे ने कहा___"किन्तु आज सुबह नौ या दस बजे के क़रीब वह अपनी कार में किसी आदमी को लिए गुनगुन के रेलवे स्टेशन आया था। स्टेशन से बाहर वो अकेला निकला था। मतलब कि उसके साथ जो दूसरा आदमी था उसे वो शायद रेलवे स्टेशन छोंड़ने आया था। स्टेशन के बाहर जब वह आया तो उसी समय उसके मोबाइल पर किसी का काल आया तथा उसने किसी से कुछ देर तक बातें की। बात करने के बाद ही एकदम से उसके हाव भाव बदले से नज़र आए जिसके तहत वो अपनी कार में बैठ कर फौरन स्टेशन से बंदूख से छूटी गोली की तरह हवा हो गया। मैं उसके पीछे ही था कि अचानक कुछ देर बाद उसके पास तीन अलग अलग जीपों में ढेर सारे आदमी हथियारों से लैश आए। उनमें से एक आदमी अजय सिंह की कार में बैठ गया। उसके बाद अजय सिंह की कार के चलते ही बाॅकी तीनों जीपों में सवार आदमी भी अजय सिंह के पीछे पीछे चल पड़े।"

"अब बस भी करो मियाॅ।" सहसा मंत्री राणे की बात बीच में ही काटते हुए किन्तु परेशान भाव से कह उठा___"तुम तो इस तरह शुरू हो गए जैसे कोई टेप रिकार्डर शुरू हो जाता है। मुख्य बात बताओ कि मामला क्या हुआ है बस।"

"मुख्य बात ये है कि।" उधर से राणे ने कहा___"इस वक्त जहाॅ पर मैं हूॅ वहाॅ पर एक से बढ़ कर एक धुरंधर लोगों की पूरी फौज आई हुई है। इतना ही नहीं यहाॅ पर एक मंदिर है जिसके सामने कई सारे हट्टे कट्टे लोग खड़े हैं। एक हट्टा कट्टा आदमी एक मामूली से लड़के से ज़बरदस्त लड़ाई कर रहा है। अजय सिंह तथा उसके साथ आए सब लोग लड़ाई देख रहे हैं। मैने तो अजय सिंह को ये भी कहते सुना है कि इस हराम के पिल्ले को इतना मारो कि हगने मूतने के भी काबिल न बचे। मंदिर के पास ही दो लड़कियाॅ दो आदमियों से घिरी खड़ी हैं तथा बुरी तरह रोये जा रही हैं। उनके मुख से बार बार एक ही बात निकल रही है कि प्लीज उसे कुछ मत करो। इसका मतलब ये हुआ चौधरी साहब कि ये वही लड़का है जिसका नाम विराज है। अजय सिंह ने कदाचित उसे घेर लिया है और अब वह उसके आदमियों के रहमो करम पर है।"

"ओह तो ये बात है।" मंत्री के जिस्म में जाने क्या सोच कर झुरझुरी सी हुई, बोला___"चलो अच्छा ही हुआ कि वो साला ठाकुर की पकड़ में आ गया है। अब सब कुछ सही हो जाएगा राणे।"

"यकीनन।" उधर से राणे ने कहा___"आपका दुश्मन अजय सिंह की पकड़ में आ चुका है। अब आप अगर चाहें तो इस मौके का फायदा उठा सकते हैं। यानी आप भी यहाॅ आ जाइये और बहती गंगा में डुबकी लगा कर अपना काम भी कर लीजिए।"

"अब हमें वहाॅ आने की ज़रूरत नहीं है राणे।" मंत्री ने कहा___"वो लड़का तो अब अजय सिंह की पकड़ में आ ही गया है। अतः अजय सिंह अपने वादे के अनुसार उसे हमारे हवाले भी कर देगा। उसके बाद तो उसे हमारी हर चीज़ लौटानी ही पड़ेगी। फिर हम उसका क्या हस्र करेंगे इसके बारे में उसने सोचा भी न होगा।"

"तो फिर मेरे लिए क्या आदेश है चौधरी साहब?" उधर से हरीश राणे ने कहा___"मुझे नहीं लगता कि अब इसके बाद भी मेरा कोई काम है यहाॅ। यानी आपका दुश्मन ठाकुर अजय सिंह से देर सवेर आपको मिल ही जाएगा और फिर आप उससे जैसे चाहेंगे वैसे अपने वो वीडियोज तथा अपने बच्चे वापस ले सकेंगे।"

"ठीक कह रहे हो तुम राणे।" मंत्री ने कहा___"अगर यही आलम है वहाॅ का तो फिर अब रह ही क्या गया है तुम्हारे कुछ करने के लिए? इस लिए अगर तुम चाहो तो वापस आ सकते हो या फिर ऐसा करो कि अभी फिलहाल तुम वहीं पर रहो और देखते रहो कि नतीजा क्या निकलता है? जैसा कि इस सबके बारे में ठाकुर ने हमें सूचना तक नहीं दी है इस लिए संभव है कि उसके मन में हमारे प्रति कोई खोट हो। इस लिए तुम ठाकुर की कार्यवाही के बारे में अंत तक देखते रहो। अगर ठाकुर इसके बाद भी हमें उस सबके बारे में नहीं बताता है तो हम उसे भी देख लेंगे। तुम ये ज़रूर देखना कि ठाकुर उस लड़के को तथा अपनी बेटी को कहाॅ कैद करके रखता है?"

"ठीक है चौधरी साहब।" उधर से हरीश राणे के ऐसा कहने के साथ ही मंत्री ने काल कट कर दी। हरीश राणे से बात करने के बाद मंत्री इस सबके बारे में सोचने लगा। उसे उम्मीद तो थी कि ठाकुर उससे गद्दारी नहीं करेगा किन्तु उसे इस बात का भी एहसास था कि ठाकुर साला जब अपनों का ही नहीं हुआ तो भला उसका क्या होगा?

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रितू और आदित्य इस वक्त दो अलग अलग पेड़ों पर चढ़े हुए थे। जहाॅ से उन दोनों को मंदिर के सामने का नज़ारा स्पष्ट दिख रहा था। विराज के साथ क्या क्या हुआ था ये उन दोनो ने अपनी ऑखों से देखा था। दोनो ही विराज के लिए बेहद चिंतित व परेशान थे। उन दोनो को उम्मीद नहीं थी कि अचानक ही ऐसा कुछ हो सकता है।

विराज को इस तरह मार खाते देख आदित्य तुरंत पेड़ की शाखा से नीचे कूदने ही वाला था कि रितू ने उसे रुकने का इशारा किया था। उसे उसने समझाया था कि उसके जाने से भी इस वक्त कुछ नहीं हो सकता था। उल्टा वो खुद भी विराज की तरह पकड़ में आ सकता है। आदित्य को रितू से ये उम्मीद नहीं थी किन्तु फिर उसे भी लगा कि रितू सही कह रही है। इस वक्त वहाॅ पर जाना खतरे से खाली नहीं था। संभव था विराज उसकी वजह से कमज़ोर ही पड़ जाता।

दोनो के पास अब कोई दूसरा चारा नहीं था। हलाॅकि रितू के मन में कुछ और ही चल रहा था। उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो इस सिचुएशन पर ज्यादा गंभीर नहीं हुई है। कदाचित उसे बस समय का इंतज़ार था।

आदित्य की नज़र सहसा शेखर के मौसा यानी केशव की तरफ पड़ी। केशव जी के साथ तीन जीपों में आदमी थे जिनके हाॅथों में बंदूख, लट्ठ तथा हाॅकी जैसे हथियार नज़र आ रहे थे। जिन पेड़ों पर ये दोनो चढ़े हुए थे उन्हीं पेड़ों के बीच से होते हुए केशव और उसके आदमियों की जीपें गुज़री थीं। ये देख कर आदित्य ने रितू की तरफ देखा। रितू ने भी आदित्य की तरफ देखा मगर उसने कोई रिएक्शन नहीं दिया। पता नहीं क्या चल रहा था उसके मन में??
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इधर मेरी तरफ।
मैं समझ गया था कि मेरा प्रतिद्वंदी ताकत के मामले में मुझसे कहीं ज्यादा है। अतः अब ताकत के साथ साथ दिमाग़ से भी काम लेना ज़रूरी था। उधर वो आदमी मेरी तरफ इस तरह देख देख कर मुस्कुरा रहा था जैसे वो मुझे सचमुच में चींटी ही समझ रहा हो और जब चाहे मुझे मसल कर रख दे किन्तु अभी वो मुझे जैसे खिला रहा था।

"क्यों बच्चे दर्द तो नहीं हो रहा न?" उस आदमी ने ब्यंगात्मक लहजे में मुस्कुरा कर कहा___"वैसे अभी तो मैने तुम पर ताकत से कोई वार ही नहीं किया है। वरना तुम इस तरह सही सलामत खड़े न रहते बल्कि अपने हाॅथ पैर की हड्डियाॅ तुड़वाए ज़मीन पर पड़े रहते।"

"मैं भी अभी तक सिर्फ देख ही रहा था कि।" मैने कहा___"भाड़े के कुत्तों में कितना दम होता है?"
"अच्छा।" वह तिलमिलाया तो ज़रूर मगर फिर भी मुस्कुरा कर ही बोला___"तो क्या देखा और क्या समझ आया तुझे?"

"यही कि।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"कुत्ते तो कुत्ते ही होते हैं वो कभी शेर का शिकार नहीं कर सकते।"
"यू बास्टर्ड।" वो बुरी तरह क्रोध में आते हुए मेरी तरफ बढ़ा और गुस्से में आग बबूला होते हुए मुझ पर हमला कर दिया।

मैं तो अब पूरी तरह से सतर्क हो चुका था और उसके किसी भी हमले के लिए पूरी तरह से तैयार था। जैसे ही उसने मेरी नाॅक में अपने दाहिने हाॅथ का पंच मारा मैं फुर्ती से एक तरफ हुआ और बिजली की सी स्पीड से पलट कर उसकी तरफ पीठ करते हुए उसके उस हाॅथ को दोनो हाॅथों से पकड़ कर अपने दाहिने कंधे पर रखा और फिर पूरी ताकत से नीचे की तरफ ज़ोर का झटका दिया। परिणामस्वरूप कड़कड़ की आवाज़ के साथ ही उसका हाॅथ बीच से टूट गया। हाॅथ के टूटते ही वह हलाल होते बकरे की तरह चिल्लाया। जबकि मैंने इतने पर ही बस नहीं किया बल्कि फुर्ती से घूम कर उसके पीछे आया और इससे पहले कि वो कुछ समझ पाता मैने फुर्ती से उसके सिर को दोनो हाथों से पकड़ा और ज़ोर से बाॅई तरफ को झटक दिया। नतीजा ये हुआ कि एक बार पुनः फिज़ा में कड़कड़ की आवाज़ हुई और उसकी गर्दन एक तरफ को झूल गई, साथ ही वह लहराते हुए ज़मीन पर गिरा और शान्त पड़ गया। उसे देख कर अब कोई भी कह सकता था कि वो मर चुका है।

आस पास खड़े उसके सभी हट्टे कट्टे आदमी ये नज़ारा देख कर आश्चर्यचकित रह गए। किसी को भी इस सब पर यकीन न आया कि ये दो पल में अचानक क्या हो गया है? अपनी अपनी जगह पर खड़े सबके सब बुत से बन गए थे। ऊपर मंदिर के दरवाजे के जस्ट सामने ही दोनो तरफ से एक एक आदमी से घिरी नीलम व सोनम दीदी भी ये सब देख कर हक्का बक्का रह गई थी।

"ओये मारो रे इस हरामज़ादे को।" सहसा फिज़ा में छा चुके सन्नाटे को एक आदमी ने ज़ोर से चिल्लाते हुए भंग किया, बोला___"इसने अब्दुल को जान से मार दिया। इस साले की हड्डी पसली तोड़ डालो सब।"

उस आदमी की इस बात से सब जैसे होशो हवाश में आए और फिर चारो तरफ से मेरी तरफ दौड़ पड़े। मैं जानता था कि सबके सब साले साॅड हैं। इस वक्त गुस्से में ये सब सचमुच मेरी हड्डियाॅ तोड़ सकते थे। अभी वो सब मेरे नज़दीक पहुॅचे भी नहीं थे कि तभी बहुत सारे आदमी हाॅथों में बंदूख, लट्ठ व हाॅकी जैसे हथियार लिए चारो तरफ से उन सब आदमियों पर टूट पड़े। मैं समझ गया कि ये सब केशव जी के आदमी हैं। ये देख कर मैने राहत की साॅस ली।

केशव जी के वो आदमी बिना कुछ सोचे समझे तथा बिना कुछ बोले एकदम से टूट पड़े थे उन हट्टे कट्टे आदमियों पर। नतीजा ये हुआ कि वो सब जिन जिन के निशाने पर आए वो सब देखते ही देखते लहू लुहान नज़र आने लगे। मंदिर के बाहर इतने सारे आदमी और उनके शोर से वातावरण गूॅज उठा। अभी ये सब हंगामा मचा ही हुआ था कि तभी अलग अलग दिशाओं से एक बार पुनः वैसे ही हट्टे कट्टे आदमी निकल कर आए और केशव जी के उन आदमियों पर पिल पड़े। हलाॅकि उन सबके हाॅथ खाली थे किन्तु जल्द ही उनके हाॅथों में भी हथियार नज़र आने लगे। उन लोगों ने केशव जी के आदमियों से उनके ही हथियार छीन कर उन पर प्रहार करना शुरू कर दिया था।

केशव जी के जिन आदमियों के पास बंदूखें थी वो गोलियाॅ बरसाए जा रहे थे। जिसका नतीजा ये हो रहा था कि जिन पर भी गोली लगती वो सीधा यमलोक ही पहुॅच रहा था। इधर मैं आस पास देख रहा था कि आदित्य व रितू दीदी कहाॅ हैं? मैं हैरान था कि वो दोनो अभी तक आए क्यों नहीं? मैं खुद भी इस मुठभेड़ में किसी न किसी से लड़े जा रहा था।

"सबके सब अपनी अपनी जगह रुक जाओ।" सहसा इस आवाज़ की गर्जना को सुन कर मैं चौंक गया। पलट कर देखा तो ऊपर जहाॅ पर नीलम व सोनम दीदी खड़ी थी उनके पास ही बड़े पापा यानी अजय सिंह खड़े थे। उनके हाॅथ में रिवाल्वर थी जिसे वो सोनम की कनपटी पर लगाए खड़े थे। उन आदमियों का पता ही नहीं था जो इसके पहले नीलम व सोनम दीदी को कवर किये खड़े थे। शायद सबके आते ही वो भी लड़ाई में शामिल हो गए थे।

अजय सिंह की ज़ोरदार आवाज़ को सुन कर सबके सब जहाॅ के तहाॅ रुक गए। उन सब के रुकते ही अजय सिंह के साथ आए फिरोज़ खान के सभी आदमियों ने केशव तथा उनके आदमियों को गन प्वाइंट पर ले लिया। सब कुछ एकदम से बदल गया। अभी कुछ ही देर पहले तो हालात हमारे हक़ नज़र आए थे किन्तु अब बाज़ी फिर से पलट गई थी।

"तुम लोगों ने बहुत तमाशा कर लिया है।" शान्त पड़ गए माहौल में अजय सिंह की आवाज़ गूॅजी___"अब ज़रा मेरी बात कान खोल कर सुनो सबके सब। अगर मेरे आदमियों के अलावा कोई दूसरा आदमी अपनी जगह से हिला तो समझ लो वो अपनी मौत का जिम्मेदार खुद होगा।"

अजय सिंह की इस बात से कोई कुछ न बोला। कुछ देर की ख़ामोशी के बाद सहसा अजय सिंह ने मेरी तरफ देखा और फिर मुस्कुरा कर कहा___"तो आख़िर तुम मेरी पकड़ में आ ही गए भतीजे? बहुत सताया तुमने और बहुत ज्यादा तड़पाया भी मुझे। मगर कोई बात नहीं, मैं उस सबका ब्याज सहित हिसाब ले ही लूॅगा। मगर उससे पहले मैं ज़रा अपनी बेटियों से तो मिल लूॅ।"

कहने के साथ ही अजय सिंह ने एक हाॅथ बढ़ा कर नीलम को उसके सिर के बालों से पकड़ कर ज़ोर से अपनी तरफ खींचा। नीलम के हलक से दर्द में डूबी चीख़ निकल गई। हलाॅकि उसकी व सोनम दीदी दोनो की ही हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी। उनके चेहरों पर मौत जैसा ख़ौफ़ मानो ताण्डव सा कर रहा था।

"क्यों बिटिया रानी।" अजय सिंह ने दाॅत पीसते हुए नीलम के चेहरे के पास अपना चेहरा लाते हुए कहा___"तुम्हारे इस बाप के लौड़े में ऐसी क्या कमी नज़र आ गई थी जो तुम दोनो बहनों ने अपने इस भाई के लौड़े को थाम लिया?"

"अजय सिंह।" मैं पूरी शक्ति से चिल्लाया___"ज़ुबान सम्हाल कर बात कर। ये मत भूल कि जिससे तू इस घिनौने तरीके से बात कर रहा है वो खुद तेरी ही बेटी है। मेरे दिलो दिमाग़ में तेरे लिए जो इज्ज़त बाॅकी थी उसे भी आज तूने ये घिनौनी बात बोल कर खत्म कर ली है। यकीनन तू इस संसार का सबसे गंदा और सबसे पापी इंसान है, बल्कि इंसान ही नहीं है तू, राक्षस है राक्षस।"

"मैं चाहूॅ तो इसी वक्त तेरी इस कड़वी ज़ुबान को तेरे हलक से निकाल कर चील कौवों को खिला दूॅ।" मेरी बातों से तिलमिलाया हुआ अजय सिंह गुर्राया___"मगर जैसा कि मैने कहा न कि पहले मैं अपनी बिटियों से मिल लूॅ, उसके बाद तुझसे भी अच्छे से मिलूॅगा।"

"आप सच में बहुत गंदे हैं डैड।" नीलम ने बुरी तरह रोते हुए कहा___"काश ये सब सच न होता। अच्छा होता कि इस सबके बारे में मुझे पता ही न चलता। रितू दीदी ने बहुत अच्छा किया था जो उन्होंने आप जैसे गंदे व पापी माॅ बाप को ठुकरा दिया है और अभी जिस तरीके से आपने मुझे वो शब्द कहे हैं उससे आपने बता दिया कि आपके मन में अपनी ही बहू बेटियों के प्रति क्या है?"

"इन सब बातों का अब कोई मतलब नहीं रह गया है बिटिया रानी।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"ये सच है कि मैंने हमेशा अपने ही घर की औरतों व बेटियों को अपने नीचे सुलाने की ख्वाहिश की है। मगर इसमें बुरा क्या किया है मैने ? हर इंसान को अपनी इच्छा पूरी करने का हक़ होता है। मैने भी अपनी इच्छाओं को पूरा ही तो करना चाहा है। ख़ैर छोंड़, ये बता कि तुझे यहीं पर नंगा करूॅ या हवेली ले जाकर आराम से तुझे लड़की से औरत बनाऊॅ?"

"तू कुत्ते की मौत मरेगा अजय सिंह।" मैं पूरी शक्ति से दहाड़ते हुए बोला___"तेरे जिस्म में कीड़े पड़ेंगे। तू सड़ सड़ कर मरेगा। तू वासना और हवश में इतना अंधा हो चुका है कि तुझे रिश्ते नाते भी नज़र नहीं आ रहे हैं।"

"कुत्ते की मौत तो मैं तुझे मारूॅगा भतीजे।" अजय सिंह ने कहा___"लेकिन उससे पहले मैं तेरी माॅ गौरी, तेरी बहन निधी, व तेरी चाची करुणा इन तीनो को जी भर के तेरे ही सामने पेलूॅगा, वो भी आगे पीछे दोनो तरफ से। उसके बाद उन सबको रंडी बज़ार में बेंचूॅगा भी, तब तुझे मारूॅगा।"

"अपने जैसे ही हिजड़ों की फौज ले कर आया है।" मैने कहा___"और इन्हीं हिजड़ों की फौज के बलबूते पर तू इतना कुछ बोल पा रहा है। तुझमें अगर दम है तो मुझसे खुद मुकाबला कर।"

"इसे मारो रे।" अजय सिंह ज़ोर से चिल्लाया___"इस हराम के पिल्ले को इतना मारो कि हगने मूतने के भी काबिल न बचे। बहुत देर से ये हरामज़ादा बड़ बड़ किये जा रहा है। पहले इसकी ही हड्डियाॅ तोड़ो।"

अजय सिंह के कहने की देर थी। चारो तरफ से वही हट्टे कट्टे आदमी मेरी तरफ बढ़ते हुए आ गए। वो चार थे और मैं अकेला। मैं अजय सिंह की उन अश्लीलतापूर्ण बातों से बुरी तरह क्रोध व गुस्से से भन्ना उठा था। जैसे ही एक मेरी तरफ झपटा मैने बिजली की तरह फुर्ती दिखाई और उछल कर एक ज़बरदस्त फ्लाइंग किक उसकी गर्दन पर जड़ दी। उसके मुख से घुटी घुटी सी चीख निकली साथ ही कड़कड़ की आवाज़ भी हुई। ज़मीन पर औंधे मुह जब वह गिरा तो फिर उठ न सका।

ये देख कर नीलम को उसके बालों से पकड़े अजय सिंह हक्का बक्का रह गया। कदाचित उसे मुझसे ऐसे किसी चमत्कार की स्वप्न में भी उम्मीद नहीं थी। वो ऑखें फाड़े मुझे देखने लगा था। इधर उस आदमी के गिर कर शान्त पड़ते ही बाॅकी तीन थोड़ी देर के लिए ठिठके और फिर एक साथ मेरी तरफ झपटे। मैंने अपनी जगह से ऊॅची छलांग लगाई तथा हवा में ही कलाबाज़ी खाते हुए उन तीनों के बीच से बाहर उनके पीछे आ खड़ा हुआ। जबकि वो तीनों ही झोंक में आकर आपस में ही टकरा गए।

"रुक जा सुअर की औलाद।" तभी अजय सिंह चिल्लाया___"वरना मेरे एक ही इशारे पर मेरे साथ आए मेरे ये सब हथियारों से लैश आदमी तुझे पल भर में गोलियों से भून कर छलनी कर देंगे।"

"तू मुझे गोलियों से छलनी नहीं कर सकता कुत्ते।" मैने कहने के साथ ही अपनी टाॅग चला दी एक की पीठ पर। जिसकी पीठ पर लात का प्रहार पड़ा था वो अपने साथ दूसरे को साथ लिए ही ज़मीन पर गिर गया, जबकि तीसरा अभी पलटा ही था कि मैने पैर के घुटने का वार उसके पेट में किया तो वो बिलबिला उठा। साथ ही बोलता भी जा रहा था ज़ोर से____"तेरे लिए तो मैं एक तुरुप के इक्के की तरह हूॅ न। मुझे बंधक बना कर ही तो तू बाॅकी सबको मुम्बई से यहाॅ बुलाएगा। अगर मैं ही मर गया तो तू कैसे बुला सकेगा उन सबको?"

"ज्यादा बकवास न कर समझा।" अजय सिंह पहले तो सकपकाया, फिर चिल्लाया___"मैं कहता हूॅ ये उछलना कूदना बंद कर वरना मैं नीलम को यहीं पर नंगा कर दूॅगा।"
"नहींऽऽऽ।" अपने बाप की ये बात सुन कर नीलम तो बुरी तरह रोते हुए चीखी ही उसके साथ में सोनम भी चीख पड़ी थी। इधर अजय सिंह का वाक्य जैसे ही मेरे कानों से टकराया मैं एकदम से रुक गया। मैं जानता था कि अजय सिंह ये ज़रूर कर सकता था। उसे इस वक्त अपनी व अपनी बेटी की इज्ज़त की कोई परवाह नहीं थी।

"तुम मेरी इज्ज़त की परवाह मत करो राज।" सहसा नीलम रोते हुए चिल्लाई___"वैसे भी मुझे इस नीच आदमी की ऐसी बेहूदा बातें अपने लिए सुन कर जीने की इच्छा मर गई है। इस लिए तुम मेरी चिन्ता मत करो और इन सारे राक्षसों का वध कर दो।"

"ओहो क्या बात है।" अजय सिंह चमका___"देखो तो क्या इज्ज़त दी है मेरी बिटिया रानी ने मुझे। ख़ैर कोई बात नहीं, पर हाॅ मरना तो है ही तुझे और तुझे ही बस क्यों बल्कि तेरी बड़ी बहन को भी मरना होगा। मुझे ऐसी औलाद के जीने मरने से अब कोई फर्क़ नहीं पड़ेगा जो अपने ही माॅ बाप के मौत का सामान करती फिरे। बचपन से अब तक मैंने तुम दोनो को हर चीज़ दी है। जिस चीज़ पर तुम दोनो ने हाॅथ रखा उस चीज़ को मैने तुम दोनो के नाम कर दी। मगर बदले में दिया क्या तुम दोनो ने?? अरे देने की तो बात दूर बल्कि मेरे दुश्मन का साथ देकर मेरी मौत चाही तुम दोनो ने। अरे माॅ बाप जैसे भी हों माॅ बाप ही होते हैं। ख़ैर जाने दो, मुझे इस बात का दुख नहीं है कि इस लड़के ने मेरा इतना ज्यादा नुकसान करके मेरा जीना हराम किया है बल्कि इस बात का दुख है कि मेरी अपनी बेटियाॅ मुझे और अपनी माॅ तथा भाई को त्याग कर इसका साथ दिया। इस लिए इसकी सज़ा तो मिलेगी तुम दोनो को। मगर उससे पहले तुम दोनो के साथ मैं वो करूॅगा जो दुनियाॅ में किसी भी बाप ने न किया होगा।"

"तुझ जैसे इंसान से और किसी बात की उम्मीद भी क्या की जा सकती है।" नीलम ने सहसा ज़हरीले भाव से कहा___"जो अपनी ही औलाद को अपने नीचे सुलाना चाहता हो उसके जैसा नीच व पापी दूसरा कौन होगा? उस दिन सोचते सोचते मेरा बुरा हाल हो गया था कि आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से दीदी ने अपने ही माॅ बाप को त्याग दिया है, मगर उस रात जब मैने अपने कानों से सब कुछ सुना तो मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। इतना बड़ा धोखा, इतना बड़ा कुकर्म किया तूने जिसके बारे में अगर किसी को पता चल जाए तो तुझ पर थूॅकना तक पसंद न करे।"

"हरामज़ादी कुतिया।" अजय सिंह बुरी तरह तमतमा गया, और फिर दो तीन थप्पड़ जल्दी जल्दी नीलम के गालों पर जड़ दिया उसने। ये देख कर सोनम उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ी तो सहसा वहीं पर आ गए फिरोज़ खान ने उसे गन प्वाइंट पर रख लिया। इधर नीलम के गालों पर थप्पड़ पड़ते ही मेरा खून भी खौल गया।

"लड़की पर क्या हाॅथ उठाता है नीच इंसान?" मैने दहाड़ते हुए कहा___"असली मर्द है तो इधर आ और मुझसे दो दो हाॅथ कर। कसम पैदा करने वाले की तेरे जिस्म की एक एक हड्डियों को न तोड़ा तो अपने बाप ठाकुर विजय सिंह की औलाद नहीं।"

"तेरी गर्मी का इलाज अब करना ही पड़ेगा।" अजय सिंह पलट कर गुर्राया, फिर उन्हीं हट्टे कट्टे आदमियों की तरफ देखते हुए कहा___"खड़े क्या हो तुम लोग? इस साले को इतना मारो कि इसकी सारी हेकड़ी निकल जाए।"

बस फिर क्या था? उन तीनों ने मुझे धोना शुरू कर दिया। मैं कुछ करने की हालत में नहीं था। अगर कुछ करता तो अजय सिंह फिर से नीलम के साथ कुछ उल्टा सीधा करने लगता। अभी मैं मार खा ही रहा था कि सहसा मेरे अलावा किसी और की भी चीख गूॅजी वहाॅ। मैने सिर उठा कर देखा तो चौंक गया। आदित्य एक आदमी को बुरी तरह मारे जा रहा था। आदित्य के अचानक ही इस तरह आ जाने से बाॅकी खड़े सब भौचक्के से रह गए।

"तुम यहाॅ क्यों आ गए आदी?" मैंने सहसा हतास भाव से कहा___"तुम्हें यहाॅ नहीं आना चाहिए था।"
"ज्यादा बकवास मत करो समझे।" आदित्य ने तीखे भाव से कहा___"मैं कायर नहीं हूॅ जो इतनी देर से चुपचाप तुम्हें इस तरह मार खाते देखता रहता। बहुत देर से रितू के कहने पर रुका हुआ था मगर अब और नहीं रुक सकता था मेरे यार। तेरा साथ भी न दिया तो साला धिक्कार है मुझ पर।"
 
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मैं अब क्या कहता उसे। उधर आदित्य के आ जाने से अजय सिंह भी चौंका था। उसे नहीं पता था कि आदित्य कौन है, किन्तु इतना तो वो समझ ही गया था कि आदित्य कदाचित मेरा ही साथी है। अतः उसने सीघ्र ही ऊॅची आवाज़ में मुझसे कहा___"अपने साथी को बोल भतीजे कि ज्यादा उछल कूद न करे। अगर यहाॅ पर ये तेरी तरह मार खाने ही आया है तो चुपचाप अब ये भी मार खाए।"

"तुझे तो मैं कुत्ते की तरह मारूॅगा हरामज़ादे।" आदित्य चीखा___"इतनी देर से देख रहा हूॅ कि तू भाड़े के इन टट्टुओं की वजह से ही शेर बना हुआ है, जबकि खुद तुझमें कितनी मर्दानगी है वो तो तू भी जानता ही होगा साले। कितनी बार मेरे दोस्त ने तुझे लड़ने के लिए ललकारा मगर तू इससे लड़ने नहीं आया। मतलब साफ है कि तू इससे डरता है और खुद भी जानता है कि तू अपने भतीजे से टक्कर नहीं ले सकता। हाहाहाहा राज यार, तेरा ये ताऊ तो कायर और डरपोंक निकला।"

"ठाकुर साहब।" सहसा फिरोज़ खान बोल पड़ा___"आप कहें तो एक ही झटके में इस आदमी का काम तमाम कर दूॅ। इसकी हिम्मत कैसे हुई आपसे ऐसे बात करने की?"

"कोई बात नहीं खान।" अजय सिंह बोला___"इसे भी खुजली हो रखी है। इस लिए इसकी भी धुनाई शुरू करवा दो। कुछ देर में ही हमसे रहम की भीख माॅगने लगेगा।"
"ठीक है ठाकुर साहब।" फिरोज़ खान ने कहा और फिर अपने आदमियों को हुक्म दिया।

कुछ ही देर में हम दोनो की धुनाई शुरू हो गई। ये देख कर नीलम व सोनम दीदी बुरी तरह रोये जा रही थी और साथ ही अजय सिंह से हमें ना मारने के लिए कहे भी जा रही थी। मगर उनके कहने का अजय सिंह पर कोई असर न हुआ।

अभी ये सब हो ही रहा था कि एकाएक ही संपूर्ण वातावरण में पुलिस सायरन की आवाज़ें आने लगी। इन आवाज़ों को सुन कर अजय सिंह व फिरोज़ खान बुरी तरह चौंक पड़े। उन्हें समझ न आया कि यहाॅ पुलिस कैसे आ गई? देखते ही देखते मंदिर के चारो तरफ से ढेर सारे पुलिस वालों का हुजूम उमड़ पड़ा।

"तुम सबको पुलिस ने चारो तरफ से घेर लिया है।" सहसा तभी माइक पर किसी की आवाज़ गूॅजी___"इस लिए सब अपने अपने हथियार नीचे रख कर अपने आपको पुलिस के हवाले कर दो। वरना हमें तुम सब पर गोलियाॅ चलाने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं होगी।"

"ठाकुर साहब।" सहसा बुरी तरह घबराया हुआ फिरोज खान कह उठा___"ये पुलिस वाले यहाॅ कैसे आ गए? अब हम सब पुलिस के द्वारा पकड़ लिए जाएॅगे। कुछ कीजिए ठाकुर साहब। आप तो जानते हैं कि पुलिस को मेरी और मेरे आदमियों को बड़ी शिद्दत से तलाश है। मैं और मेरे साथी पुलिस के हाॅथ नहीं लगना चाहते। खुदा के लिए कुछ कीजिए।"

"मुझे पता है कि।" अजय सिंह ने सोचने वाले भाव से कहा___"इन पुलिस वालों को यहाॅ किसने बुलाया है? हाॅ खान, ये सब रितू का किया धरा है। उसी कुतिया ने इन पुलिस वालों को बुलाया है। इतनी देर से देख रहा हूॅ वो हरामज़ादी कहीं दिखाई नहीं दे रही है। ज़रूर पुलिस वालों के साथ ही होगी।"

"किसी का भी किया धरा हो ठाकुर साहब।" फिरोज़ खान ने कहा___"मामला तो बिगड़ ही गया है अब। मगर समझदार आदमी वही है जो ऐसे समय पर भी खुद को बचा ले और अपने दुश्मन को मात दे दे।"

"सही कहा तुमने खान।" अजय सिंह ने कहा____"मुझे ऐसा ही कुछ करना होगा। अरे हाॅ एक काम करता हूॅ। इन दोनो को यहाॅ से अपने साथ ले चलते हैं। वो साला इन्हीं दोनो को लेने आया था न। अब जब इन्हें नहीं ले जा पाएगा तो यकीनन ये उसकी ज़बरदस्त हार होगी। अब वो इन दोनो के लिए मेरे पास सिर के बल आएगा।"

"बिलकुल सही कहा आपने।" फिरोज़ खान ने कहा__"किन्तु अब हमें देर नहीं करनी चाहिए। यहाॅ से इन दोनो को लेकर बड़ी होशियारी से खिसक लेना चाहिए।"
"ठीक है।" अजय सिंह ने कहा___"चलो इन दोनो को एक एक करके उठा कर ले चलते हैं। इससे पहले कि पुलिस हम तक पहुॅचे हम पीछे के इस वाले हिस्से से निकल लेते हैं। मुख्य रास्ते की तरफ जाना यकीनन खतरे से खाली नहीं होगा। मेरी कार इसी वाले हिस्से की तरफ है। अच्छा हुआ कि कार ज्यादा पीछे की तरफ उस मुख्य रास्ते की तरफ नहीं खड़ी की थी मैने।"

अजय सिंह की बातें सुन कर नीलम व सोनम दीदी बुरी तरह घबरा गई और उनके चंगुल से छूटने के लिए छटपटाने लगी थी। मगर कदाचित अजय सिंह को उनसे इसी बात की उम्मीद थी। यही वजह थी कि उसने मजबूती से उन्हें पकड़ा हुआ था। किन्तु अब उसकी बात से फिरोज़ ने भी सोनम दीदी को पकड़ लिया। यानी एक एक को ले कर मंदिर के बगल से सीढ़ियाॅ उतरने लगे वो दोनो।

नीलम व सोनम जब खुद को उनके चंगुल से न छुड़ा पाई तो पूरी शक्ति से चिल्लाने लगीं। इधर पुलिस के आ जाने से मैं और आदित्य पहले तो हैरान हुए उसके बाद तुरंत ही बात समझ में आ गई कि ये सब रितू दीदी का लास्ट बैकअप प्लान था जिसके बारे में उन्होंने सस्पेंस बनाया हुआ था उस समय। ख़ैर पुलिस वालों ने सबको घेर लिया। इधर नीलम व सोनम दीदी के चिल्लाने से मेरा और आदित्य का ध्यान उस तरफ गया तो देखा अजय सिंह व फिरोज़ खान ज़बरदस्ती उन दोनो को अपने साथ लिए सीढ़ियाॅ उतरते चले जा रहे थे।

मैंने आदित्य की तरफ देखा और फिर हम दोनो ही उनकी तरफ तेज़ी से दौड़ पड़े। अभी हम सीढ़ियों के पास भी न पहुॅचे थे कि सहसा वातावरण में गोली चलने की आवाज़ आई और साथ ही चीख़ की भी। हम दोनो ये देख कर चौंके कि सोनम दीदी को साथ लिए उतर रहा फिरोज़ खान का अचानक ही बैलेंस बिगड़ा और उसके हाॅथ से सोनम का हाॅथ छूट गया, साथ ही वह सीढ़ियों पर लुढ़कता हुआ नीचे चला गया। उसके हाॅथ से उसका रिवाल्वर छूट कर जाने कहाॅ गिर कर गुम सा हो गया था। उसके बाएॅ पैर की टाॅग से खून बहता हुआ नज़र आया।

गोली की आवाज़ और फिरोज़ खान को यूॅ लुढ़कते देख अजय सिंह बुरी तरह उछल पड़ा। भौचक्का सा पहले तो उसने फिरोज़ खान को लुढ़कते हुए देखता रहा उसके बाद जैसे उसे होश आया तो फौरन ही इधर उधर नज़र घुमाई उसने। किन्तु तब तक देर हो चुकी थी। उसी वक्त सीढ़ियों के बगल से ही रितू दीदी मानो प्रगट सी हुई और तेज़ी से अपने बाप के पैर को पकड़ कर झटक दिया। जिसका नतीजा ये हुआ कि बुरी तरह घबरा कर चीखते हुए अजय सिंह भरभरा कर सीढ़ियों पर पिछवाड़े के बल गिर पड़ा। किन्तु उसके साथ ही नीलम भी गिर पड़ी थी। क्योंकि अजय सिंह ने उसका हाॅथ उस वक्त तक छोंड़ा ही नहीं था। छोंड़ा भी तो तब जब उसके साथ ही साथ नीलम भी अनबैलेंस होकर गिर पड़ी थी। नीलम के मुख से दर्द में डूबी कराह निकल गई।

ये सब हो ही रहा था कि हम दोनो भी उनके पास पहुॅच गए। आदित्य ने तो आते ही फिरोज़ खान को धर लिया। जबकि मैने सीढ़ियों पर गिरने के बाद उठ रहे अजय सिंह को उसके कालर से पकड़ कर उठाया और बिना कुछ बोले पैर के घुटने का वार उसके पेट पर जड़ दिया। अजय सिंह दर्द से चीख पड़ा।

"रुक जाओ राज।" सहसा मेरे क़रीब पहुॅचते ही रितू दीदी ने कहा____"ये इंसान यकीनन सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा ही शिकार है मगर, उससे पहले मुझे इस नीच व पापी इंसान से दो चार बातें तो कर लेने दो।"

दीदी की बात सुन कर मैने अजय सिंह को छोंड़ दिया। अजय सिंह इस वक्त अजीब सी हालत में था। ऐसी हालत में कि उसका वर्णन करना भी कठिन था। इधर मेरे एक तरफ हटते ही रितू दीदी अपने बाप के सामने आ कर खड़ी हो गई।

"सुना है कि माॅ बाप से बढ़ कर।" फिर रितू दीदी ने बड़े ही गंभीर भाव से कहा___"संपूर्ण सृष्टि में कोई नहीं होता। यहाॅ तक कि भगवान भी नहीं। इसी लिए माॅ बाप को श्रेस्ठ व महान कहा जाता है। मगर माॅ बाप भी ऐसे ही महान नहीं बन जाते हैं बल्कि अच्छे कर्मों से महान बनते हैं। तुम नीलम से कह रहे थे कि तुमने हमें सब कुछ दिया है बदले में हमने क्या दिया? इसका जवाब ये है कि हर माॅ बाप अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ करते हैं, यहाॅ तक कि ज़रूरत पड़ने पर अपना बलिदान भी दे देते हैं। मगर बच्चे सच में उनके लिए कुछ नहीं कर पाते ऐसा। मगर हम ऐसे नहीं थे, हमने बचपन से लेकर अब तक आप दोनो को दुनिया का सबसे अच्छा माता पिता माना मगर जब सच का पता चला तो रूह काॅप गई हमारी। दुनियाॅ में ऐसे कौन माता पिता हैं जो अपनी ही बेटियों को अपने नीचे सुलाने के बारे में सोचते हैं? मुझे अपनी सिर्फ एक अच्छाई के बारे में बता दो अजय सिंह जो कि तुमने अपने आज तक के जीवन में की हो। अगर तुमने अपनी एक भी अच्छाई के बारे में बता दिया तो इसी वक्त तुम्हारी ये बेटी अपने माॅ बाप के पास वापस लौट आएगी।"

रितू दीदी की इस बात पर अजय सिंह कुछ बोल न सका। किन्तु हाॅ कठोर भाव से देख ज़रूर रहा था। जबकि उसकी इस कठोरता से देखने की ज़रा भी परवाह न करते हुए कहा दीदी ने कहा___"तुम वो इंसान हो अजय सिंह जिसने एक हॅसते खेलते, भरे पूरे व खुशहाल परिवार का बेड़ा गर्क कर दिया। इतना तो मैने भी अपनी ऑखों से देखा था कि विजय चाचा कभी भी तुमसे ऑखें मिला कर बात नहीं करते थे। हम इतने भी अबोध व अज्ञानी नहीं थे कि हमें कुछ समझ न आए। सच्चाई का पता चलने के बाद ही सही मगर मुझे पिछली वो सब बातें याद आईं जो मेरे सामने होती थीं। तब उनके बारे में नहीं सोचती थी क्योंकि तब तुम्हारी सिखाई हुई बातें मुझे उनके बारे में सोचने की भी ज़रूरत महसूस नहीं कराती थी। मगर अब सब कुछ खुली किताब की तरह हो गया है। तुमने धन दौलत के लालच में तथा गौरी चाची को हाॅसिल करने के जुनून में अपने देवता जैसे भाई को ज़हरीले सर्प से डसवा कर मौत के घाट उतार दिया। उसके बाद झूठ मूठ कर आरोप लगा कर मेरी देवी समान चाची को चरित्रहीन बना दिया। इतना ही नहीं एक रात तुम दोनों की बातों को जब दादा जी ने सुन लिया और वो जब गुस्से से तुम्हारे कमरे में आ धमके और तुम्हें खरी खोटी सुनाने लगे तो तुमने उन्हें भी जान से मार देने की धमकी दी। ये भी कहा कि अगर उन्होंने किसी के सामने ज्यादा गला फाड़ने की कोशिश की तो तुम उनकी छोटी बेटी यानी कि नैना बुआ को उठवा लोगे। दादा जी उस वक्त ये सोच कर डर गए कि तुम वाकई में ऐसा कर सकते हो। जो अपने भाई का न हुआ वो भला किसका हो जाएगा? दादी जी रोते हुए अपने कमरे में चले गए। उन्होंने दादी से तुम्हारा सारा काला चिट्ठा बताया जिसे सुन कर बेचारी दादी का भी बुरा हाल हो गया। दूसरे दिन अभय चाचा स्कूल पढ़ाने गए हुए थे, उस समय दादा दादी तैयार होकर विजय चाचा की दी हुई कार से जब कहीं जाने लगे तो तुमने पूछा कि वो कहाॅ जा रहे हैं तब उन्होंने एक बार फिर से गुस्सा होते हुए साफ साफ तुमसे कहा कि वो पुलिस स्टेशन जा रहे हैं। ताकि तुम्हारी रिपोर्ट कर सकें। दादा जी की बात सुन कर तुम्हारी हवा निकल गई। तुम फौरन ही माॅम के पास गए और माॅम को सारी बात बताई तब माॅम ने कहा कि इससे बचने का एक ही तरीका है कि दादा दादी को खत्म कर दिया जाए। तुम्हारे पास इसके अलावा कोई दूसरा चारा भी नहीं था। इस लिए फौरन ही अपनी कार लेकर निकल लिये। रास्ते में ही तुमने अपने इसी फिरोज़ खान नाम के साथी को फोन लगाया और इसे दादा दादी को जान से मार देने की सुपारी दी। इसने फौरन ही तुम्हारी बात मान कर रास्ते में ही ट्रक द्वारा दादा जी की कार को टक्कर मार दी। ट्रक की ज़ोरदार टक्कर से दादा जी की कार सड़क पर ही दो तीन पलटियाॅ खाईं। ये देख कर ये खान फौरन ही वहाॅ से ट्रक लेकर फरार हो गया। सुनसान सड़क पर उलटी पड़ी कार के अंदर दादा दादी खून से लथपथ बेहोश पड़े थे। तभी कोई वाहन वाला उसी रास्ते से आया और उसने जब वो सब देखा तो उसने इसकी सूचना पुलिस को दी। पुलिस वहाॅ पहुॅची और कार के अंदर खून से लथपथ पड़े दादा दादी को चेक किया तो वो दोनो ही ज़िंदा थे उस वक्त। अतः फौरन ही उन्हें बेहतर इलाज़ के लिए गुनगुन ले गए। तहकीक़ात में ही पता चला कि जिनका एक्सीडेंट हुआ था वो दरअसल हल्दीपुर के ठाकुर गजेन्द्र सिंह बघेल तथा उनकी धर्मपत्नी इन्द्राणी सिंह बघेल हैं। इस बात का पता चलते ही तुम्हें सूचित किया पुलिस ने। तुम ये जान कर बुरी तरह घबरा गए कि दादा दादी तो ज़िंदा हैं अभी और वो पुलिस को सब कुछ बता भी देंगे। अतः तुम फौरन ही गुनगुन के लिए हवेली से रवाना हो गए। ख़ैर दादा दादी के सिर पर बड़ी गंभीर चोंटें आई थी जिसकी वजह से वो दोनो ही कोमा में चले गए। डाक्टर अब भला क्या कर सकता था। उसने साफ कह दिया था कि अब तो बस समय का ही इन्तज़ार करें कि कब वो दोनो कोमा से बाहर आते हैं। डाक्टर की बात सुन कर तुमने फिलहाल के लिए तो राहत महसूस की मगर तुम भी जानते थे कि कोमा एक ऐसी चीज़ होती है जिसमें गया इंसान कभी भी होश में आ सकता है। यानी तुम्हें डर था कि दादा दादी अगर कोमा से बाहर आ गए तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा। अतः तुमने फिर से माॅम के परामर्श किया और फिर दादा दादी को बेहतर इलाज़ का कह कर एक ऐसी जगह ले गए जहाॅ के बारे में ज्यादा किसी को पता ही नहीं था। ख़ैर छोंड़ो ये सब, तुम्हारे जुर्म की दास्तान तो बहुत लम्बी है मगर मैंने तुमसे ये सब इस लिए कहा है कि तुम जान सको कि मुझे सब कुछ पता है। तुमने इतने अपराध व पाप किये हैं कि इसके लिए शायद भगवान भी माफ़ नहीं करेगा और करना भी नहीं चाहिए।"

रितू दीदी की बात सुन कर अजय सिंह का मुह लटक गया इस बार। उसके चेहरे पर शर्म व अपमान के भाव एकाएक ही उभर आए थे। तभी इस बीच नीलम आई और रितू के गले लग कर सिसक सिसक कर रोने लगी। सोनम दीदी भी सिसक रही थी। उधर आदित्य ने फिरोज़ खान को मार मार कर अधमरा कर दिया था। उसमें अब हिलने तक की शक्ति नहीं बची थी। तभी दो पुलिस वाले आए और फिरोज़ खान को उठा कर ले गए।

फिरोज़ खान के जितने भी आदमी थे तथा प्रतिमा ने जो आदमी भेजे थे उन सबको पुलिस ने पकड़ लिया था। ये सारी पुलिस फोर्स गुनगुन में नये नये आए एसीपी रमाकान्त शुक्ला के द्वारा लाई गई थी। सबको पकड़ने के बाद एसीपी रमाकान्त शुक्ला चल कर अजय सिंह के पास आया।

"अब आपके भी ससुराल चलने का वक्त हो चुका है ठाकुर साहब।" एसीपी ने मुस्कुराते हुए कहा___"उम्मीद करता हूॅ कि ससुराल में आप खुद को बेहतर महसूस करेंगे।"
"नये नये आए लगते हो ऑफिसर।" अजय सिंह ने उसकी तरफ तिरछी नज़र से देखते हुए कहा___"इस लिए इतना अकड़ रहे हो। मगर ज्यादा खुशफहमी में मत रहना कि तुम मुझे सुसराल में ज्यादा देर तक रख पाओगे।"

"जानता हूॅ।" एसीपी पुनः मुस्कुराया___"मगर फिलहाल तो मेरे साथ चलना ही पड़ेगा आपको। बाद का बाद में देखा जाएगा। वैसे भी हम तो यहाॅ फिरोज़ खान जैसे वान्टेड मुजरिम को ही पकड़ने आए थे। हमें सूचना मिली थी कि यहाॅ पर वो मुज़रिम अपने पूरे दलबल के साथ मौजूद है। इस लिए आ धमके यहाॅ। मगर हमें क्या पता था कि उसके साथ साथ मुझे आप जैसी कमीनी शख्सियत को भी धर लेना पड़ेगा।"

"तमीज़ से बात करो ऑफिसर।" अजय सिंह बुरी तरह तिलमिलाते हुए तीखे भाव से बोला___"वरना ऐसा न हो कि इस बददमीजी के लिए तुम्हें बाद में पछताना पड़े।"

"रस्सी जल गई मगर कसबल बाॅकी हैं अभी।" एसीपी ने कठोर भाव से कहा___"वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूॅ कि मैं किसी के बाप से भी नहीं डरता। इस लिए मुझ पर धौंस जमाने की सोचना भी मत। वरना मेरे हाॅथ में आया हुआ मुजरिम मुख से कम बल्कि पिछवाड़े से ज्यादा चिल्लाता है। अब इज्ज़त से चलो मेरे साथ वरना ले जाने के तरीके तो हम पुलिस वालों को बड़े शानदार भी आते हैं।"

एसीपी के गरम होते मिजाज़ को देख कर अजय सिंह अंदर ही अंदर अपमान का कड़वा घूॅट पी कर रह गया। फिर उसने आग उगलती ऑखों से पहले मुझे देखा फिर रितू दीदी को उसके बाद एसीपी रमाकान्त शुक्ला के साथ चल दिया। कुछ दूर जाने के बाद सहसा अजय सिंह रुका और फिर पलट कर बोला___"अभी तो मैं जा रहा हूॅ मगर जल्द ही लौटूॅगा और इस बार जब लौटूॅगा न तो तुम में से किसी को भी ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा।"

अजय सिंह की ये बात सुन कर मैं, आदित्य, रितू दीदी व सोनम दीदी ने तो कुछ न कहा किन्तु नीलम को जाने क्या हुआ कि वो तेज़ी से अपने बाप के पास गई और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता "चटाऽऽक"। अजय सिंह का दाहिना गाल झन्ना गया।

"ये तमाचा मामूली भले ही है।" फिर नीलम ने गुर्राते हुए कहा___"मगर ये तुम्हें इस बात की याद ज़रूर दिलाएगा कि तूने क्या पाप किया है जिसके तहत ये इनाम के रूप में मिला है तुझे तेरी ही बेटी से। अब जा यहाॅ से, मुझे तेरी शक्ल भी देखना अब गवाॅरा नहीं है।"

अजय सिंह से इतना कहने के बाद रोती हुई नीलम हमारे पास आ गई जबकि अपनी ही बेटी से ऐसा इनाम पा कर अजय सिंह मानो गर्त में डूबता चला गया। वह फिर रुका नहीं बल्कि एसीपी के साथ दूर होता चला गया। उसके जाते ही हम सब भी एक तरफ चल पड़े। मगर तभी गज़ब हो गया।

वातारण में धांय से गोली चलने की आवाज़ हुई और फिर फिज़ा में नीलम की चीख भी गूॅज गई। दरअसल नीलम के थप्पड़ मारने पर अजय सिंह अपमान में जल उठा था। वो एसीपी के साथ ही बगल से चल रहा था। तभी उसकी नज़र एसीपी के होलेस्टर में फॅसी उसकी रिवाल्वर पर पड़ी थी। अजय सिंह ने पलक झपकते ही जैसे निर्णय ले लिया था और फिर बेहद फुर्ती से उसने एसीपी के होलेस्टर से रिवाल्वर निकाला और पलट कर उसने नीलम पर गोली चला दी थी। हम में से किसी को भी इसकी उम्मीद नहीं थी। उधर गोली चलने की आवाज़ से एसीपी भी बौखला गया था। उसने जैसे ही पलट कर अजय सिंह की तरफ देखा तो चौंक पड़ा। कारण अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए खुद ही उसका रिवाल्वर उसे दे दिया। एसीपी उसके इस बिहैवियर से दंग रह गया था।

गोली नीलम की पीठ के दाहिने भाग के थोड़ा सा नीचे लगी थी। नीलम की पीठ से खून की तेज़ धार बहने लगी थी। वो लहरा कर गिर ही जाती अगर मैने फुर्ती से उसे पकड़ न लिया होता। सिचुएशन एकदम से ही बदल गई थी। नीलम को गोली लगने से हम सब बुरी तरह घबरा गए थे। उसकी प्रतिपल बिगड़ती हालत से हम सब रो पड़े। मैने उसे अपनी गोंद में उठा लिया और तेज़ी से मंदिर के पीछे खड़ी अपनी कार की तरफ भाग चला। मेरे पीछे ही बाॅकी सब दौड़ने लगे थे।

पुलिस और एसीपी ने सबको पकड़ा था किन्तु केशव जी तथा उनके साथ आए लोगों को नहीं पकड़ा था। ये मेरे लिए हैरानी की बात थी। किन्तु इस वक्त उनसे इसके बारे में पूछने का किसी को होश न था। रितू व सोनम दीदी बुरी तरह रोये जा रही थी। सीघ्र ही मैं नीलम को लिए कार के पास पहुॅचा। आदित्य ने जल्दी से कार का पिछला गेट खोला तो मैने नीलम को पिछली सीट पर किसी तरह लेटाया और जगह बनाते हुए खुद भी सीट पर बैठ गया। सीट पर बैठने के बाद मैने नीलम को खुद से छुपका लिया तथा उसकी ठीठ पर हाॅथ रख कर दबा दिया ताकि खून ज्यादा बहने न पाए। मेरे बैठते ही आदित्य ने कार की ड्राइंविंग सीट सम्हाली।

केशव जी ने रितू दीदी से कहा कि वो सोनम दीदी को अपनी कार में बैठा लेंगे। क्योंकि मेरी कार में आगे की सीट पर रितू दीदी बैठ गई थी और पीछे अब जगह ही नहीं थी। किन्तु सोनम दीदी न मानी। वो बुरी तरह रोये जा रही थी और कह रही थी कि वो नीलम के पास ही रहेंगी। मैने भी ज्यादा समय बरबाद न करते हुए गेट की तरफ खिसक लिया। सोनम दीदी दूसरी तरफ से आकर नीलम के पैरों की तरफ सीट पर ही बैठ गईं। ख़ैर सबके बैठते ही आदित्य ने कार को तेज़ी से दौड़ा दिया। हमारे पीछे पीछे ही केशव जी तथा उनके आदमी जीपों में आ रहे थे।
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"ये तुम क्या कह रहे हो राणे?" अपने आवास के ड्राइंग रूम में लैण्डलाइन फोन के रिसीवर को कान से लगाए मंत्री ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा था____"ठाकुर और उसके आदमियों को पुलिस पकड़ कर ले गई?"

"..............।" उधर से हरीश राणे ने कुछ कहा।
"क्या कह रहे हो तुम।" चौधरी हैरान___"वहाॅ पर भारी मात्रा में पुलिस आई हुई थी?? मगर पुलिस वहाॅ आई कैसे? हमारा मतलब है कि पुलिस को वहाॅ पर किसने बुलाया होगा? एक मिनट राणे....एक मिनट, हम सब समझ गए। ये ज़रूर उस थानेदारनी का काम होगा। उसी ने पुलिस को बुलवाया होगा। ठाकुर के इतने सारे आदमियों को पंगु बना देने का यही तो सबसे ज़बरदस्त तरीका था राणे। साली तगड़ा गेम खेल गई। एक ही झटके में सारा खेल ही खत्म कर दिया उसने।"

"............।" उधर से राणे ने फिर कुछ कहा।
"ओह तो ठाकुर ने जाते जाते अपनी ही बेटी को गोली मार कर लहूलुहान कर दिया।" चौधरी के चेहरे पर मौजूद भावों में परिवर्तन हुआ___"और अब विराज एण्ड पार्टी ठाकुर की उस लड़की को मरने से बचाने के लिए फौरन ही हास्पिटल लेकर आ रहे हैं। उन्हें आने दो राणे, वो ज़रूर यहीं आएॅगे। ताकि गुनगुन के ही किसी अच्छे से हास्पिटल में उसे भर्ती करा सकें और उसका बेहतर से बेहतर इलाज़ करा सकें। उन्हें आने दो यहाॅ हम उन सबका बहुत अच्छे से स्वागत करेंगे। तुम बस उनके पीछे ही रहना और हमें हालातों की ख़बर देते रहना।"

"..............।" राणे ने उधर से फिर कुछ कहा।
"वो सब हम देख लेंगे राणे।" चौधरी ने कहा___"हम कमिश्नर से इस बारे में पता करेंगे तथा ठाकुर से भी मिलेंगे। अगर उसने हमसे ये कहा कि वो ये सब करने के बाद ही इस सबके बारे में बताने वाला था तो ज़रूर उसकी ज़मानत करवाएॅगे हम। वरना भला हमें क्या पड़ी है उसे जेल से छुड़ाने की? जिस काम के लिए हमने उससे संपर्क बनाया था वो काम तो तुमने बखूबी कर ही दिया है और अब हमें पल पल की ख़बर भी दे रहे हो कि हमारे दुश्मन कहाॅ आ रहे हैं। इस लिए अब ज्यादा फिक्र की बात ही नहीं है।"

"..............।" उधर से हरीश राणे ने कुछ कहा।
"हाॅ ये भी सही कहा तुमने।" चौधरी ने कहा___"यानी हमें इस वक्त अभी उन पर हाॅथ नहीं डालना चाहिए। बल्कि उनके असल ठिकानों के बारे में पता करना चाहिए। उसके बाद ही हमें उन पर कार्यवाही करनी चाहिए। ये तुमने सही सलाह दी है राणे। बात भी सही है, अभी अगर हमने उन पर हाॅथ डाला तो संभव है कि इससे हम पर या हमारे बच्चों पर ही कोई संकट आ जाए। क्या पता उसका कोई आदमी हमारी गतिविधियों पर नज़र रखे हुए हो, उस सूरत में वो हमें ही नुकसान पहुॅचा सकता है। अतः ये ज़रूरी है कि हम अभी चुप ही रहें और उसके असल ठिकाने का तुम्हारे द्वारा पता करने की कोशिश करें।"
 
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"..................।" उधर से राणे ने फिर कुछ कहा।
"ठीक है राणे।" फिर चौधरी ने कहा___"अब ऐसा ही करेंगे। तुम बस उनके पीछे ही लगे रहना और हाॅ ये बताने की आवश्यकता नहीं है कि उनसे ज़रा सावधान रहना।"

इसके साथ ही चौधरी ने रिसीवर वापस केड्रिल पर रख दिया। इस वक्त उसके चेहरे पर राहत के भाव थे। खुशी की एक अलग ही चमक उसके चेहरे पर दिखाई देने लगी थी। रिसीवर रखने के बाद वह आया और फिर से सोफे पर बैठ गया। उसके सामने ही अगल बगल के सोफों पर अवधेश, अशोक व सुनीता आदि बैठे हुए थे।

"हमारे इस काम में उस जासूस के लिए ये सब करना कोई मुश्किल काम नहीं था।" फिर मंत्री ने शिगार सुलगाने के बाद कहा___"और ना ही ये ऐसा केस था जिसमें उसे अपना माथा पच्ची करना पड़ता। ये सब तो हम भी कर सकते थे किन्तु तब जब करने की स्थित में होते। ख़ैर, जो भी हो, अच्छी बात ये है कि हालात अब हमारे हक़ में बहुत हद तक आ चुके हैं।"

"क्या कहा राणे ने?" अशोक के पूछने पर चौधरी ने सबको सब कुछ बता दिया। सारी बातें जानने के बाद उन तीनों के भी चेहरों पर राहत व खुशी के भाव उभर आए।

"हालात तो वाकई हमारे पक्ष में हैं चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"और ये हमारे लिए खुशी की बात भी है। किन्तु ठाकुर के साथ आज जो कुछ भी हुआ वो अगर न होता तो यकीनन आज उसकी गिरफ्त में उसका भतीजा तथा उसकी बेटी होती। उसके बाद वो हमें इस बात की जानकारी देता। कहने का मतलब ये कि इतना कुछ हो जाने के बाद हम अतिसीघ्र ही अपने दुश्मन से मिलते और उसके कब्जे से अपनी हर चीज़ ले भी लेते। लेकिन ऐसा हो नहीं सका, पुलिस ने ऐन मौके पर आकर सारा खेल ही ख़राब कर दिया।"

"इस मामले में पहली बार पुलिस का हाॅथ भी दिखाई दिया है चौधरी साहब।" अवधेश ने कहा____"और जिस तरह से इतनी सारी पुलिस फोर्स को लेकर वो एसीपी वहाॅ पहुॅचा था इससे ज़ाहिर होता है कि कहीं न कहीं पुलिस का भी इस मामले में दखल है। बल्कि ये कहना चाहिए कि शुरू से ही दखल था। ये अलग बात है कि इसके पहले पुलिस ने खुले तौर पर इस बात को ज़ाहिर नहीं किया था।"

"ये बात तो मैने उसी दिन कही थी।" सहसा अशोक ने तपाक से कहा___"कि संभव है कि पुलिस इस सारे मामले में गुप्त रूप से शामिल हो और आज इस बात का सबूत के रूप में पता भी चल गया हमें।"

"हम कमिश्नर से इस बारे में अभी बात करेंगे।" मंत्री ने कहने के साथ ही अपना मोबाइल निकाला____"उसे अब साफ साफ बताना ही पड़ेगा कि माज़रा क्या है तथा उसने हमें धोखे में रखने की हिम्मत कैसे की?"

कहने के साथ ही मंत्री ने पुलिस कमिश्नर को काल लगा कर मोबाइल अपने कान से लगा लिया। दूसरी तरफ काफी देर तक रिंग जाने के बाद काल रिसीव की गई।

"जी कहिए मंत्री जी।" उधर से कमिश्नर की आवाज़ उभरी___"आज इस नाचीज़ को कैसे याद किया आपने?"
"ये ड्रामेबाज़ी छोंड़ो कमिश्नर।" चौधरी ने सपाट लहजे में कहा___"और ये बताओ कि ये सब क्या चक्कर चला रहे हो तुम?"

"च..चक्कर???" उधर से कमिश्नर का चौंका हुआ स्वर उभरा____"ये आप क्या कह रहे हैं मंत्री जी?"
"देखो कमिश्नर।" चौधरी ने तीखे भाव से कहा___"हमें फालतू की बकवास बिलकुल भी पसंद नहीं है। तुम अच्छी तरह जानते हो और समझते भी हो कि हम किस बारे में बात कर रहे हैं?"

"बड़ी अजीब बात कर रहे हैं आप मंत्री जी।" उधर से कमिश्नर ने कहा___"भला जिस बात को आप बताएॅगे ही नहीं उस बात के बारे में मैं कैसे कुछ जान पाऊॅगा? आप तो जानते हैं कि इंसान अंतर्यामी तो होता ही नहीं है।"

"हम हल्दीपुर में आधा घंटा पहले घटी घटना के बारे में बात कर रहे हैं।" चौधरी ने मन ही मन दाॅत पीसते हुए कहा___"अब ये मत कहना कि तुम इस घटना के बारे में भी नहीं जानते।"

"ओह तो आप उस घटना की बात कर रहे हैं?" उधर जैसे कमिश्नर की अब बात समझ में आई थी, बोला___"उस घटना के बारे में तो मुझे अच्छी तरह पता है मंत्री जी। लेकिन आपका उस घटना से क्या लेना देना है? जबकि हमारे डिपार्टमेंट के एसीपी ने तो वहाॅ पर एक मोस्ट वान्टेड अपराधी को पकड़ने के लिए घेराबंदी की थी और फिर अपराधी को पकड़ कर अपने साथ ले भी आए।"

"किस अपराधी को पकड़ने गई थी तुम्हारी पुलिस?" मंत्री ने पूछा।
"यूॅ तो शहर कई तरह के मुजरिमों से भरा पड़ा है मंत्री जी मगर।" उधर से कमिश्नर ने कहा___"हमारी पुलिस फोर्स ने जिस मोस्ट वान्टेड अपराधी को पकड़ने के लिए हल्दीपुर के पास वाले गाॅव माधोपुर में घेराबंदी की थी उसका नाम फिरोज़ खान है। इस नाम के अपराधी के बारे में तो आपने भी काफी सुना होगा। आप तो जानते हैं कि ये अपराधी कब से पुलिस व कानून के लिए सिर का दर्द बना हुआ था। आज हमारे ही एक विश्वासपात्र मुखबिर ने हमें बताया कि फिरोज़ खान अपनी गैंग के साथ इस समय माधोपुर में मौजूद है। बस फिर क्या था, हमने उसे पकड़ने के लिए अभी हाल ही में नये नये आए एसीपी रमाकान्त शुक्ला को भेज दिया। मगर मेरी समझ में ये नहीं आता कि आपको इस मामले से क्या लेना देना हो गया? अगर मुनासिब समझें तो मुझे भी बताइये मंत्री जी।"

"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।" चौधरी ने बात को टालने की गरज़ से कहा___"वैसे पता चला है कि तुम्हारी पुलिस ने हल्दीपुर के ठाकुर अजय सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया है। भला ये क्या चक्कर है कमिश्नर? क्या वो ठाकुर भी फिरोज़ खान की तरह मोस्ट वान्टेड अपराधी है?"

"ठाकुर अजय सिंह को तो ज़रूरी पूॅछताॅछ के लिए गिरफ्तार किया गया है मंत्री जी।" उधर से कमिश्नर ने कहा___"दरअसल हमारे मुखबिर ने बताया था कि फिरोज़ खान हल्दीपुर के ठाकुर अजय सिंह की कार में ही बैठा हुआ था। इस लिए उन्हें गिरफ्तार करना पड़ा। तहकीक़ात में उनसे पूछा जाएगा कि फिरोज़ खान नाम का खतरनाक अपराधी उनकी कार में उनके साथ क्यों बैठा हुआ था? आख़िर उनका फिरोज़ खान से क्या संबंध है?"

"ओह तो ये बात है।" चौधरी को मानो बात समझ में आ गई, बोला____"वैसे सुना है कि ठाकुर और उसके भतीजे के बीच किसी मामले में तगड़ी रंजिश है। सुना तो ये भी है कि ठाकुर की बेटी खुद तुम्हारे पुलिस डिपार्टमेंट की इंस्पेक्टर है और वो अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ होकर ठाकुर के दुश्मन भतीजे का साथ दे रही है।"

"बाॅकी सारी बातों के बारे में तो मुझे कुछ नहीं पता है मंत्री जी।" उधर से कमिश्नर ने कहा___"लेकिन ये सच है कि ठाकुर अजय सिंह की बेटी हमारे पुलिस डिपार्टमेंट में इंस्पेक्टर के रूप में कार्यरत है। बहुत ही इमानदार तथा बहादुर ऑफीसर है वो।"

"अब इस बारे में तो तुम्हें ही पता होगा कमिश्नर।" चौधरी ने कहा___"आफ्टरआल वो तुम्हारे पुलिस महकमे से है। चलो कोई बात नहीं, अच्छा अब हम फोन रखते हैं।"

इतना कह कर चौधरी ने काल कट कर दी। फिर बुझ चुके शिगार को सामने टेबल पर रखे ऐशट्रे में रखा और दूसरा शिगार निकाल कर सुलगा लिया। शिगार के दो तीन गहरे गहरे कश लेने के बाद उसने ढेर सारा धुआॅ ऊपर की तरफ उछाला।

"क्या कहा कमिश्नर ने चौधरी साहब?" अवधेश श्रीवास्तव पूछे बग़ैर न रह सका था।
"बेवकूफ़ बनाने की कोशिश कर रहा था हमें।" चौधरी ने कहा___"उस साले को ये पता ही नहीं है कि वो किसे बेवकूफ बनाने चला था? साला राजनीति का खेल हम खेलते हैं और वो हमसे राजनीति कर रहा था।"
"ऐसा क्या कह रहा था वो आपसे?" अशोक ने पूछा।

मंत्री ने उसे सारी बातें बता दी, उसके बाद उसने फिर से शिगार का एक कश लिया फिर बोला___"जबकि साफ पता चलता है कि सच्चाई क्या है? डिटेक्टिव राणे के अनुसार विराज एण्ड पार्टी ठाकुर की दूसरी बेटी को लेने गए थे। किसी तरह से इस बात की जानकारी ठाकुर को हुई और वह फिरोज़ खान को उसके गुर्गों के साथ माधोपुर जा धमका, जहाॅ पर उसका आमना सामना विराज एण्ड पार्टी से हुआ। विराज को अंदेशा रहा होगा कि उसका ताऊ उसे पकड़ने का ऐसा ही कुछ इंतजाम करके आएगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए उन लोगों ने भी ठाकुर से बचने का उपाय सोचा होगा। ठाकुर की बेटी क्योंकि अब विराज के साथ ही है इस लिए ठाकुर से बचने के लिए उसने अपने पुलिस महकमें का सहारा लिया। उसे पता था कि पुलिस के आ जाने से अजय सिंह कुछ कर नहीं पाएगा। बात भी सही है कि पुलिस से पंगा करने का कोई मतलब ही नहीं था। यानी वो सब पुलिस की मदद से बड़े आराम से ठाकुर की दूसरी बेटी को ले आएॅगे और ठाकुर कुछ भी नहीं कर पाएगा।"

"यकीनन चौधरी साहब।" अवधेश ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"ठाकुर ने विराज एण्ड पार्टी को घेर कर पकड़ने का ज़बरदस्त प्लान बनाया था। ये अलग बात है कि बदकिस्मती से उसके उस ज़बरदस्त प्लान की खुद उसकी ही बेटी ने धज्जियाॅ उड़ा दी। इतना ही नहीं पुलिस को बुलवा कर वो अपनी छोटी को बहन को तो अपने साथ ले ही गई ऊपर से अपने बाप को भी गिरफ्तार करवा दिया।"

"लेकिन ठाकुर भी कम कमीना नहीं था।" अशोक ने झट से कहा___"पुलिस के साथ जाते जाते भी उसने एसीपी का रिवाल्वर निकाल कर अपनी छोटी बेटी को गोली मार दी। ये इस बात का सबूत है चौधरी साहब कि उस वक्त वह अपनी औलाद से किस क़दर ख़फा था और फिर गुस्से में आकर उसने बेटी को जान से मारने की कोशिश की। अगर समय रहते उसकी बेटी का विराज एण्ड पार्टी ने इलाज़ करवा लिया तब तो ठीक है वरना ठाकुर ने तो अपनी बेटी का काम तमाम कर ही दिया है समझिये।"

"जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है।" मंत्री दिवाकर चौधरी ने कहा___"इस सबकी वजह से हमारा फायदा ये हुआ है कि हमारा दुश्मन हमारे जासूस राणे की नज़र में आ गया है। राणे विराज एण्ड पार्टी के पीछे साये की तरह लगा रहेगा। अभी तो वो सब किसी हाॅस्पिटल में ही गए होंगे क्योंकि ठाकुर की बेटी को मौत से बचाना उन सबकी पहली प्राथमिकता होगी। उसके बाद वो यकीनन उस जगह जाएॅगे जहाॅ पर उन लोगों ने अपना ठिकाना बनाया होगा। राणे को जैसे ही उनके ठिकाने का पता चल जाएगा वैसे ही वो हमें सूचित कर देगा। बस, उसके बाद क्या होगा ये बताने की ज़रूरत नहीं है शायद।"

"ये तो वाकई हमारे ही हक़ में है।" सहसा इस बीच सुनीता बोल पड़ी___"ठाकुर की घटना ने उसे भले ही करारी शिकस्त दी हो मगर इस सबमें हमारा यकीनन फायदा हो गया है। दूसरी बात जासूस राणे को इस काम के लिए बुलाने का भी बहुत अच्छा निर्णय साबित हुआ हमारा।"

"बिलकुल सही कहा तुमने।" चौधरी ने कहा___"अगर राणे को हमने बुलाया न होता तो हमें इतनी बड़ी सफलता हर्गिज़ भी नहीं मिल सकती थी। क्योंकि इस बात का हमें पता ही न चलता कि विराज एण्ड पार्टी और ठाकुर के बीच क्या हुआ है? ठाकुर का भी कोई भरोसा नहीं था कि वो हमें इस बारे में कुछ बताता भी या नहीं।"

"ख़ैर, जो भी हो।" अवधेश ने कहा___"इस सबसे हमें फायदा तो यकीनन ही हुआ है मगर इस बीच हमारे लिए ये सोचना भी महत्वपूर्ण है कि इस मामले में पुलिस का दखल किस उद्देश्य से हुआ है? क्या सचमुच ही वो मोस्ट वान्टेट अपराधी फिरोज़ खान को ही पकड़ने के उद्देश्य से वहाॅ पर पहुॅची थी या फिर इसके पीछे भी पुलिस की कोई ऐसी चाल थी कि वो एक तीर से दो शिकार कर सके। कहने का मतलब ये कि ज़ाहिर तौर पर उसने हमें यही दिखाया हो कि उसका दखल महज फिरोज़ खान को ही पकड़ना था जबकि असल में उसका मकसद कुछ और ही रहा हो, जिसका संबंध हमसे हो।"

"हो सकता है।" चौधरी के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए____"किन्तु कमिश्नर की बातों से भी कुछ ज़ाहिर नहीं हो सका। या तो उसने जान बूझ कर हमें घुमा दिया है या फिर ऐसा कुछ हो ही न। यानी हो सकता है कि हम जिस चीज़ की शंका कर रहे हैं वो बेवजह ही हो।"

"शंका तो शंका ही होती है चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"भले ही वो बेवजह ही हो मगर हमारे मन में शंका तो है न। इस लिए जब तक हमें इस मामले में सच्चाई का पता नहीं चलता तब तक हमारी ये शंका हमारे अंदर से जाएगी भी नहीं।"

"चलो अगर ऐसा है भी।" चौधरी ने कहा___"तो वो आने वाले समय में ज़ाहिर तो हो ही जाएगा। तब हम देख लेंगे कि हमें उस बारे में क्या करना है। अभी के हालात में जो ज़रूरी है, हमे उस पर ज्यादा ध्यान देना है। हमें किसी भी कीमत पर अपने बच्चे तथा हमारे लिए डायनामाइट बने उन वीडियोज को हाॅसिल करना है। मौजूदा हालातों पर ग़ौर करें तो ये स्पष्ट हो चुका है कि बहुत जल्द राणे के द्वारा हमें इस सबमें सफलता मिलेगी।"

चौधरी की बात सुन कर सबके सिर सहमति में हिले। उसके बाद कुछ और इधर उधर की बातें हुई उन लोगों के बीच। फिर सब अपने अपने काम पर चले गए।
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इधर आदित्य ऑधी तूफान की तरह दौड़ाते हुए कार को हास्पिटल की तरफ लिए जा रहा था। नीलम की हालत की वजह से हम सब बेहद दुखी हो गए थे। मैं बार बार नीलम को पुकार रहा था। उसकी पलकें बार बार बंद हो जाती थी। मैने अपने एक हाॅथ की हॅथेली को नीलम की पीठ पर कस के लगाया हुआ था ताकि उसका खून न बहने पाए। नीलम पहले तो दर्द और पीड़ा से कराह रही थी किन्तु अब वो प्रतिपल शान्त पड़ती जा रही थी। उसकी ये हालत देख कर मैं बदहवाश सा था और बार बार उसे पुकार रहा था। मेरे बाएॅ साइड ही नीलम के पैरों के पास बैठी सोनम दीदी अभी भी सिसक रही थीं। वो खुद भी पागलों की तरह नीलम को पुकारे जा रही थी।

रितू दीदी आगे बैठी हुई थी। उनके चेहरे पर भी पीड़ा के भाव उभर आते थे किन्तु उन्होंने खुद को सम्हाला हुआ था। उनके चेहरे पर मौजूद भाव प्रतिपल बदल रहे थे। कभी कभी तो ऐसे भाव उभर आते थे जैसे उन्होंने किसी बात के लिए कठोर फैसला किया हो। आदित्य फुल स्पीड से कार को भगा रहा था। तभी डैश बोर्ड के पास ही रखा मेरा मोबाइल फोन बज उठा। फोन के बजने से जैसे रितू दीदी की तंद्रा टूटी। उन्होंने हाॅथ बढ़ा कर मोबाइल उठाया और स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे मौसा जी नाम को देख कर काल रिसीव की उन्होंने।

उधर से मौसा जी ने जाने ऐसा क्या कहा कि रितू दीदी एकदम से चौंक पड़ी, साथ ही कार की खिड़की से इधर उधर देखने भी लगी थी। फिर उन्होंने ये कह कर फोन रख दिया कि___"आपने यकीनन ये बहुत बड़ी ख़बर दी है मौसा जी। किन्तु उसे बोलिए कि अगर संभव हो सके तो उसे पकड़ ले। आप भी जल्दी से उसके पास जाइये और जाकर उसे अपने कब्जे में ले लीजिए।"

"क्या हुआ रितू??" कार चलाते हुए आदित्य ने सहसा एक नज़र रितू दीदी की तरफ डालते हुए पूछा।
"मंत्री मेरी चेतावनी के बावजूद अपनी हरकतों से बाज नहीं आया।" रितू दीदी ने कहा___"उसने जब देखा कि वो खुद कुछ नहीं कर सकता है तो उसने अपने काम के लिए एक जासूस को बुलवाया और उस जासूस को हमारे पीछे लगा दिया।"

"ये क्या कह रही हो तुम?" आदित्य रितू की बात सुन बुरी तरह चौंका था, फिर बोला___"मगर तुम्हें ये सब कैसे पता चला?"
"मुझे नहीं।" रितू दीदी ने कहा___"बल्कि मौसा जी के एक आदमी को पता चला है। उसी ने बताया है मौसा जी को। दरअसल हम सब लोग तो वहाॅ से चले आए मगर मौसा जी का एक आदमी ग़लती से वहीं रह गया। मौसा जी बता रहे थे कि उनका वो आदमी उस वक्त अपना पेट साफ करने चला गया था। इसी बीच हम सब वहाॅ से जल्दबाज़ी में निकल आए। कुछ देर में जब वो अपना पेट साफ करके आया तो हम लोगों को दूर जाते हुए देखा उसने। वो वहाॅ से चलते हुए कुछ दूर आया। फिर उसने अपना मोबाइल निकाल कर मौसा जी को फोन करने ही वाला था कि तभी उसे किसी के बात करने की आवाज़ सुनाई दी। वो आवाज़ की दिशा में गया तो उसने देखा कि मंदिर से लगभग पचास मीटर की दूरी पर एक आदमी पेड़ की ओट में खड़ा किसी से फोन पर बातें कर रहा था। मौसा जी का आदमी उससे कुछ ही दूरी पर था। उसने उस आदमी के कुछ पास जाकर उसकी बातें सुन ली। उसकी बातों में डैड के अलावा हमारा भी ज़िक्र था, साथ ही वह जिससे बात कर रहा था उसे वह चौधरी साहब कह कर संबोधित कर रहा था। मौसा जी के आदमी को उसकी बातों से समझ आ गया कि वो हम सबके पीछे ही लगा हुआ है। अतः उसने तुरंत ही इस बात की सूचना मौसा जी को फोन लगा कर दे दी।"

"ओह तो ये बात है।" आदित्य ने कहा।
"हाॅ, मैने अपने मुखबिरों को मंत्री तथा उसके सभी साथियों के पीछे लगाया हुआ था।" रितू दीदी ने कहा___"उन सबकी रिपोर्ट यही थी कि मंत्री या उसके साथियों ने ऐसा वैसा कुछ नहीं किया है। बल्कि उन सबकी दिन चर्या तथा कार्य सामान्य ही था। मुझे भी उम्मीद नहीं थी कि वो कमीना अपने इस काम के लिए किसी जासूस को हायर कर लेगा। मगर कोई बात नहीं, ये बहुत अच्छा हुआ कि मंत्री के उस जासूस का पता चल गया। कहते हैं कि ईश्वर जो भी करता है उसके पीछे कोई ठोस वजह ज़रूर होती है। वरना सोचने वाली बात है कि मौसा जी जिन आदमियों को अपने साथ लेकर आए थे उन आदमियों में से किसी एक को उस वक्त टायलेट क्यों आता? ये ईश्वर की ही मर्ज़ी थी कि उसे उस वक्त टायलेट आया और वो टायलेट के लिए हमसे दूर चला गया। उसके बाद जब वह आया तो हम सब उस जगह से निकल चुके थे जबकि वो वहीं छूट गया। ईश्वर हमारे साथ है आदित्य, वो नहीं चाहता कि किसी वजह से हम फॅस जाएॅ। हमें नहीं पता था कि मंत्री ने कोई जासूस हमारे पीछे लगाया हुआ है अतः ईश्वर इस सबके द्वारा हमें उस जासूस के बारे में भी बता दिया।"

"सचमुच।" आदित्य कह उठा___"कुदरत का हर काम हैरतअंगेज़ होता है। ख़ैर, अब उस जासूस का क्या करना है?"
"अभी तो फिलहाल उसे किसी भी तरह से पकड़ लेने के लिए मैंने मौसा जी से कहा है।" रितू दीदी ने कहा___"उसका पकड़ में आना भी बेहद ज़रूरी है वरना वो हमारा पीछा करता रहता और अंततः हमारे ठिकाने तक पहुॅच जाता। उसके बाद वो हमारे ठिकाने के बारे में मंत्री को बता देता। बस फिर तो खेल ही खत्म हो जाना था।"

"सचमुच।" आदित्य ने कहा___"बहुत बड़ी मुसीबत में फॅसने वाले थे हम सब।"
"हाॅ आदित्य।" रितू दीदी ने कहा___"मंत्री अपने दलबल के साथ अगर हमारे ठिकाने पर आ धमकता तो हम उस हालात में उस वक्त कुछ कर नहीं पाते और फिर हम सबके साथ मंत्री क्या सुलूक करता इसका अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता।"

"शुकर है।" आदित्य ने कहा___"ईश्वर ने हमें बचा लिया। अब तो यही दुवा करो कि वो जासूस मौसा जी की पकड़ में आ ही जाए। वरना अगर वो हाॅथ से निकल गया तो मुसीबत एक बार फिर से हम पर आ जाएगी। ईश्वर बार बार ऐसा संयोग नहीं बनाएगा।"

"सही कहा तुमने।" रितू दीदी ने कहा___"देखते हैं मौसा जी तथा उनके आदमी क्या करते हैं? इस वक्त तो हमें नीलम को बचाना है।"
"वैसे एक बात कहूॅ रितू।" आदित्य ने कहा___"तुम्हारे जैसा कमीना बाप मैने आज तक न कहीं देखा है और ना ही कहीं सुना है। खुद पापों की गठरी लिए फिरता है और अपनी ही बेटी के साथ......छिः..मुझे तो सोच कर ही ऐसे आदमी से घृणा हो रही है।"

"अगर मेरी बहन को कुछ हुआ न आदित्य।" सहसा रितू दीदी के मुख से ज़हर में डूबे शब्द निकले___"तो उस इंसान का मैं वो हाल करूॅगी कि बड़े से बड़ा जल्लाद भी उसका हाल देख कर थर्रा जाएगा।"

"अब तो उसकी नियति ही ऐसी बन चुकी है।" आदित्य ने कहा___"कि उसकी जब भी मौत होगी तो यकीनन बहुत भयानक तरीके से होगी।"

आदित्य की बात पर रितू दीदी कुछ न बोली। किन्तु उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि अपने अंदर के तूफान को उन्होंने कितनी मुश्किल से रोंका हुआ है। मैं उन दोनों की सारी बातें सुन रहा था। तभी रितू दीदी ने किसी को फोन लगाया और उससे कुछ बातें की। आदित्य ने बहुत ही कम समय में कार को हाॅस्पिटल पहुॅचा दिया।

हाॅस्पिटल के सामने कार के रुकते ही मैने जल्दी से गेट खोला और नीलम को सावधानी से निकाल कर अपनी गोंद में लिया और बिना किसी की तरफ देखे हाॅस्पिटल की तरफ लगभग दौड़ते हुए जाने लगा। मेरे पीछे ही बाॅकी सब भी आ रहे थे। कुछ ही देर में मैं नीलम को लिए हाॅस्पिटल के अंदर आ गया। वहाॅ का माहौल देख कर ऐसा लगा जैसे वहाॅ के डाक्टर तथा कर्मचारी हमारा ही इन्तज़ार कर रहे थे। जल्द ही दो आदमी स्ट्रेचल लिये मेरे पास आए। मैने आहिस्ता से नीलम को स्ट्रेचर पर लिटा दिया। मेरे लेटाते ही वो दोनो आदमी स्ट्रेचर को तेज़ी से ठेलते हुए ले जाने लगे। मैं, आदित्य, रितू व सोनम दीदी भी साथ ही साथ चलने लगे थे। थोड़ी ही देर में वो दोनो आदमी नीलम को स्ट्रेचर सहित ओटी में ले गए। डाक्टर ने हम सबको ओटी के बाहर ही रोंक दिया और खुद अंदर चला गया।

हम चारो वहीं पर खड़े रह गए थे। हम चारों के मन में बस एक ही बात थी कि नीलम को कुछ न हो। अभी हम सब वहाॅ पर खड़े ही थे कि तभी वहाॅ पर एसीपी रमाकान्त शुक्ला भी आ गया। उसने आते ही रितू दीदी से नीलम के बारे में पूछा तो दीदी ने बता दिया कि अभी अभी उसे ओटी में ले जाया गया है। एसीपी ने रितू दीदी से कहा कि उसने समूचे हास्पिटल में अंदर बाहर पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में तैनात कर दिये हैं। इस लिए अब किसी का ख़तरा नहीं है। एसीपी की बात सुन कर रितू दीदी ने उसे इसके लिए धन्यवाद किया। कुछ देर बाद एसीपी ये कह कर चला गया कि वो नीलम का हाल चाल लेने फिर आएगा।

एसीपी के जाने के कुछ देर बाद हम चारों वहीं गैलरी पर दीवार से सटी हुई रखी लम्बी चेयर्स पर बैठ गए। कुछ देर बाद मैं उठा और हाॅस्पिटल से बाहर पानी लाने के लिए चला गया। पानी लाकर मैने रितू दीदी व सोनम दीदी को दिया। उसके बाद उसी कुर्सी पर बैठ कर हम सब डाक्टर के बाहर आने का इन्तज़ार करने लगे। हम सबके लबों से बस एक ही दुवा निकल रही कि नीलम को कुछ न हो।
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दोस्तो, आप सबके सामने अपडेट हाज़िर कर दिया है।
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट........《 59 》


अब आगे,,,,,,,,

उधर हवेली में।
ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठी प्रतिमा अपने मोबाइल से बार बार अपने पति अजय सिंह के मोबाइल पर फोन लगा रही थी किन्तु अजय सिंह का फोन बंद बता रहा था। अजय सिंह का फोन बंद बताने से प्रतिमा को किसी अनहोनी आशंका होने लगी थी। उसके चेहरे पर एकाएक ही गहन चिंता, परेशानी तथा बेचैनी के भाव उभर आए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अजय ने अपना फोन क्यों बंद कर रखा है? वो अजय सिंह से फोन पर बात करके ये जानना चाहती थी कि वो इस वक्त कहाॅ है तथा बाॅकियों के हालात कैसे हैं? मगर अजय सिंह का फोन बंद बताने से प्रतिमा को अब प्रतिपल बेचैनी सी होने लगी थी। उसके मन में तरह तरह के ख़यालों का आवागमन शुरू हो गया था।

उसके सामने ही दूसरे सोफे पर शिवा किसी और ही दुनियाॅ में खोया हुआ नज़र आ रहा था। उसे जैसे अपने माॅ बाप की कोई ख़बर ही नहीं थी। वो तो बस सोनम के ख़यालों में खोया हुआ था। नीलम व सोनम को अब तक तीन से चार घंटे हो गए थे। मगर वो दोनो अब तक वापस नहीं लौटी थी। किन्तु शिवा को जैसे समय का ख़याल ही नहीं था। वो तो बस अपनी ऑखों के सामने नज़र आ रहे सोनम के खूबसूरत चेहरे को ही अपलक देखे जा रहा था। हलाॅकि जब प्रतिमा ने उसे इस बात से अवगत कराया कि वो दोनो यहाॅ से भागने का सोच कर ही गई हो सकती हैं तो शिवा का दिल एकदम से बैठ सा गया था। बाद में प्रतिमा के ही निर्देश पर उसने कुछ नये आदमियों की मजबूत टीम बना कर उनके पीछे लगा दिया था।

"उफ्फ क्या करूॅ इस इंसान का।" सहसा तभी प्रतिमा की खीझी हुई इस आवाज़ से शिवा हकीक़त की दुनियाॅ में आया, जबकि प्रतिमा कह रही थी____"कभी कोई काम ठीक से नहीं कर सकते हैं। ये तो हद हो गई, इतना लापरवाह इंसान मैने आज तक नहीं देखा।"

"क्या हुआ माॅम?" शिवा ने प्रतिमा के एकाएक ही तमतमा गए चेहरे को देखते हुए कहा____"किस लापरवाह इंसान की बात कर रही हैं आप?"
"तुम्हारे बाप की।" प्रतिमा ने आवेश में कहा___"जो कि हद दर्ज़े का लापरवाह और बेवकूफ इंसान है।"

"अरे ये आप क्या कह रही हैं माॅम?" शिवा अपनी माॅ की बातों से बुरी तरह हैरान रह गया।
"सच ही तो कह रही हूॅ मैं।" प्रतिमा ने कहा___"वरना कौन ऐसा करता है कि इतनी ख़राब सिचुएशन में होकर अपना फोन ही बंद कर दे?"

"क्या मतलब???" शिवा जैसे चकरा सा गया।
"तुम्हारे बाप से फोन द्वारा पूछना चाहती थी कि वहाॅ के हालात कैसे हैं?" प्रतिमा ने कहा___"मगर महाशय का मोबाइल फोन ही ऑफ बता रहा है। अब तुम ही बताओ कि ऐसे हालात में कौन अपना फोन कर बंद करके रखता है?"

"बात तो आपने सही कही माॅम।" शिवा के चेहरे पर एकाएक सोचने वाले भाव उभरे____"ऐसे हालात में कोई भी अपना फोन ऑफ नहीं रख सकता। हाॅ अगर मोबाइल ही डिस्चार्ज़ हो गया हो तो अलग बात है। लेकिन माॅम मुझे यकीन है डैड अपना फोन ऑफ नहीं करेंगे ऐसे वक्त में। ज़रूर कोई बात हो गई होगी।"

"चुप कर तू।" प्रतिमा अंदर ही अंदर जाने क्यों बुरी तरह हिल गई, बोली___"जो मुह में आता है बिना सोचे समझे बोल देता है।"
"ऐसा नहीं है माॅम।" शिवा ने नर्म भाव से कहा___"लेकिन आप खुद सोचिए कि क्या डैड ऐसे वक्त में अपना फोन ऑफ कर सकते हैं, नहीं ना? उन्हें भी पता है कि हालात कितने गंभीर हैं। लेकिन ये भी सच है कि अगर डैड का फोन ऑफ बता रहा है तो ज़रूर कोई ऐसी बात होगी जिसके बारे में फिलहाल हमें कुछ भी पता नहीं है।"

शिवा की इस बात पर प्रतिमा तुरंत कुछ बोल न सकी। उसके चेहरे पर गहन सोचों के भाव ज़रूर उभर आए थे। जैसा सोच रही हो कि क्या सच में ऐसा कुछ हुआ होगा? उधर अपनी माॅम को सोचों में गुम देख कर शिवा पुनः कह उठा____"इस तरह बैठने से कुछ नहीं होगा माॅम। मुझे लगता है कि हमें डैड का पता करना चाहिए। जैसा कि आपने मुझे बताया था कि आज विराज रितू दीदी के साथ नीलम व सोनम को लेने आने वाला है शायद, इसी लिए आपने उनके पीछे अलग से एक मजबूत टीम बना कर मेरे द्वारा भेजवाया था। वहीं दूसरी तरफ से डैड भी अपने साथ कुछ आदमियों को लिए आ रहे हैं। इस बात से यही ज़ाहिर होता है कि अगर विराज सचमुच आ रहा है तो डैड तथा हमारे आदमियों के साथ उसकी भिड़ंत अनिवार्य है। इस भिड़ंत में यकीनन हमारी जीत होगी। यानी कि अंततः विराज रितू दीदी के साथ पकड़ा ही जाएगा। उसके बाद डैड उन सबको फार्महाउस ले जाएॅगे। फार्महाउस पहुॅचने के बाद ही वो हमें फोन करने वाले थे। किन्तु उनके फोन बंद बताने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमने जो उम्मीद की थी वो हुआ ही नहीं है।"

"नहीं नहीं।" प्रतिमा ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिलाया, बोली___"ऐसा नहीं हो सकता बेटा। इस बार मैने और तेरे डैड ने उस विराज की सोच से बहुत आगे बढ़ कर प्लान बनाया था। मुझे उसकी सोच का अब अंदाज़ा हो चुका था, इसी लिए तो डबल बैकअप रखा था हमने। एक हमारे आदमियों का दूसरा तेरे डैड के साथ आए आदमियों का। डबल बैकअप के बाद तो जीत हमारी ही होनी निश्चित थी बेटा।"

"काश! ऐसा ही हुआ हो माॅम।" शिवा ने कहा___"उन सबके साथ साथ नीलम व सोनम भी तो पकड़ ली गई होंगी। उफ्फ! कितना भरोसा था मुझे कि सोनम ये गाॅव तथा हमारे खेते घूम कर वापस यहीं आएगी। मगर कदाचित नीलम ने उसे भी सब कुछ बता दिया था तभी तो दोनो एक साथ चली गईं। मगर अब मैं अपने दिल का क्या करूॅ माॅम? ये तो उसी का होकर रह गया है।"

शिवा की इस बात का प्रतिमा अभी कुछ जवाब देने ही वाली थी सहसा तभी ड्राइंग रूम में बड़े वेग से एक आदमी दाखिल हुआ। उसके चेहरे से ही लग रहा था कि वो कहीं से मैराथन दौड़ लगा कर आया है। बुरी तरह हाॅफ रहा था वह। प्रतिमा व शिवा उसे देख कर बुरी तरह चौंक पड़े।

"क्या बात है हैदर?" शिवा ने उसकी तरफ हैरानी से देखते हुए कहा___"तुम इतना हाॅफ क्यों रहे हो? और...और तुम यहाॅ कैसे, तुम तो टीम के साथ ही गए थे न?"
"हाॅ छोटे ठाकुर।" हैदर नाम के उस आदमी ने हाॅ में सिर हिलाते हुए कहा___"गया तो मैं टीम के साथ ही था। मगर,

"मगर क्या???" शिवा उतावलेपन में पूछ बैठा।
"सब कुछ गड़बड़ हो गया छोटे ठाकुर।" हैदर ने दीनहीन दशा में बोला____"ठाकुर साहब ने तो सबको पकड़ ही लिया था और बाज़ी भी हमारे ही हाॅथ में थी। मगर ऐन वक्त पर वहाॅ पुलिस की पूरी फौज आ गई और फिर एसीपी के निर्देश पर सबको हिरासत में ले लिया गया। यहाॅ तक कि ठाकुर साहब को भी वो एसीपी गिरफ्तार करके ले गया है। मैं किसी तरह छुपता छुपाता वहाॅ से निकल कर ये सब बताने के लिए आपके पास आया हूॅ।"

हैदर की बात सुन कर शिवा तथा प्रतिमा दोनो को ही जैसे साॅप सूॅघ गया। दोनो के ही चेहरों की हालत ऐसे हो गई जैसे कपड़े से पानी निचोड़ लेने पर कपड़े की हो जाती है। प्रतिमा को तो ऐसा लगा जैसे दिल का दौरा पड़ जाएगा। उसकी ऑखों के सामने अॅधेरा सा छा गया। शिवा की नज़र जब प्रतिमा पर पड़ी तो वह अपने सोफे से उठ कर बड़ी तेज़ी से उसके पास आकर उसे सम्हाला। हालत तो उसकी भी ख़राब हो चुकी थी। किन्तु जवान खून था अभी इस लिए हैदर की इस डायनामाइट जैसी बात को हजम कर गया था।

"सब कुछ खत्म हो गया बेटा।" प्रतिमा अपने बेटे की बाहों में सिमटी एकदम से असहाय भाव से बोली___"अब कुछ भी शेष नहीं रहा। तेरी बहन रितू ने अपने महकमे का सहारा ले कर अपने बाप को एक और क्षति पहुॅचा दी। उसने अपने बाप के माथे पर एक और नाकामी की मुहर लगा दी। इस बात से ज़ाहिर होता है कि उसके दिल में अपने माॅ बाप के प्रति ज़रा सी भी जगह नहीं रह गई है।"

"मैं उस कुतिया को ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा माॅम।" शिवा के मुख से सहसा गुर्राहट निकली___"डैड को जेल भिजवा कर उसने ये अच्छा नहीं किया है। भला उसकी हमसे क्या दुश्मनी है माॅम, दुश्मनी तो विराज से है।"

"मैडम, ठाकुर साहब ने गुस्से में आकर अपनी छोटी बेटी नीलम को गोली भी मार दी है।" सहसा हैदर ने ये कह कर मानो धमाका सा किया____"नीलम की हालत बहुत ही गंभीर है। उसे वो लोग यकीनन हास्पिटल ले गए होंगे।"

"ये क्या कह रहे हो तुम??" प्रतिमा हैदर की ये बात सुन कर सकते में आ गई। चेहरा सफेद फक्क पड़ गया।
"हाॅ मैडम।" हैदर ने कहा___"गुस्से में पागल हुए ठाकुर साहब ने एसीपी का रिवील्वर निकाल कर नीलम पर फायर कर दिया था। गोली नीलम की पीठ पर लगी थी। जहाॅ से खूॅन बहे जा रहा था।"

"हे भगवान!।" प्रतिमा की ऑखें छलक पड़ीं___"ये कैसा दिन दिखा रहे हो हमे? एक बाप अपनी ही बेटियों के खून का प्यासा हो चुका है।"
"लेकिन हैदर।" प्रतिमा के रुदन पर ज़रा भी ध्यान दिये बग़ैर शिवा ने पूछा___"डैड ने नीलम पर गोली क्यों चलाई थी?"

हैदर ना शुरू से लेकर अंत तक की सारी राम कहानी संक्षेप में कह सुनाई। उसकी इस राम कहानी में वो सीन भी था जिसमें अजय सिंह ने अपनी ही बेटी नीलम से अश्लील बातें की थी। ये भी कि अंत में कैसे नीलम ने ठाकुर साहब को थप्पड़ मारा था जिसकी वजह से गुस्से में आकर अजय सिंह ने एसीपी का रिवाल्वर छीन कर नीलम पर गोली चलाई थी। सारी बातें सुनने के बाद शिवा तो बस हैरान ही था किन्तु प्रतिमा एकदम से मानो बुत बन गई थी। उसका चेहरा एकदम से तेज़हीन सा हो गया था।

"अब मेरे लिए क्या आदेश है छोटे ठाकर?" हैदर ने कहा।
"तुम जाओ हैदर।" शिवा ने गंभीरता से कहा___"गेस्ट हाउस में आराम करो। हम सोचते हैं कि अब इसके आगे हमें क्या करना है?"

शिवा के कहने पर हैदर वहाॅ से चला गया। उसके जाने के बाद ड्राइंगरूम में मरघट जैसा सन्नाटा छा गया। काफी देर तक माॅ बेटे के बीच यही आलम रहा। जैसे उनमें से किसी को कुछ सूझ ही न रहा हो कि अब क्या बात करें?

"आख़िर जिस चीज़ की नियति बन चुकी थी।" सहसा प्रतिमा ने कहीं खोये हुए से कहा___"उसका आग़ाज हो ही गया। इस लड़ाई में किसी न किसी को तो शहीद होना ही है। फिर चाहे वो नीलम ही क्यों न हो?"

"आपने बिलकुल सही कहा माॅम।" शिवा ने भी गंभीर भाव से कहा___"किसी न किसी के साथ तो ये होना ही है। मगर एक बात तो मैं भी कहूॅगा, और वो ये कि डैड ने नीलम पर गोली चला कर अच्छा नहीं किया। मैं जानता हूॅ कि आपको मेरी ये बात नागवार लग सकती है। मगर इसके बावजूद कहूॅगा मैं कि डैड को नीलम पर गोली नहीं चलाना चाहिए था। मैं मानता हूॅ कि मेरी दोनो बहनों ने हमसे बगावत करके ग़लत किया है। उन्हें सोचना चाहिए था कि माॅ बाप कैसे भी हों हैं तो अपने ही। वैसे ही डैड को भी सोचना चाहिए था माॅम। हम उन्हें उनके किये की सज़ा ज़रूर देते मगर इस तरह नहीं कि उनको जान से ही मार दें। ये सब उस विराज की वजह हे हुआ है, उसी ने मेरी दोनो बहनों को बहकाया है। उसी ने उन दोनो का ब्रेनवाश किया है, वरना उनके दिलो दिमाग़ में कम से कम ये सोच तो रहती ही कि माॅ बाप जैसे भी हों, वो अपने ही होते हैं।"

प्रतिमा शिवा की ये बातें सुन कर मन ही मन हैरान थी। शिवा का बदला हुआ ये रवैया उसे हजम नहीं हो रहा था। किन्तु उसे ये भी पता था कि शिवा अपने बाप की टूकाॅपी है। यानी सूरज कभी पश्चिम से उदय नहीं हो सकता।

"क्या बात है।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा___"आज अपनी बहनों से इतनी हमदर्दी? क्या ये सोनम से हुए इश्क़ का असर है बेटा? जिसने तेरी सोच को इस हद तक बदल दिया है?"
"मुझे खुद पता नहीं है माॅम।" शिवा ने नज़रें चुराते हुए कहा___"मैं सिर्फ इतना समझ रहा हूॅ कि डैड ने नीलम पर गोली चला कर अच्छा नहीं किया। अगर वही गोली वो विराज पर चला देते तो शायद मुझे उनसे कोई शिकायत न रहती।"

"ख़ैर छोंड़।" प्रतिमा ने इस मैटर को ज्यादा न बढ़ाने की गरज़ से कहा___"अब हमें ये सोचना है कि तेरे डैड को पुलिस से कैसे छुड़ाया जाए? उन पर नीलम को जान से मारने की कोशिश का भी केस लग सकता है, और संभव है कि उस एसीपी ने ये केस लगा भी दिया हो उन पर। अतः हमें अब किसी क़ाबिल वकील से मिलना पड़ेगा। ताकि वो उनको जेल से किसी तरह छुड़ा सके।"

"हाॅ ये सच कहा आपने।" शिवा ने कहा___"डैड को जेल से तो छुड़ाना ही पड़ेगा।"
"रुको मैं पता करती हूॅ।" प्रतिमा ने कहा___"मेरी जानकारी में एक क़ाबिल वकील है जो अजय को जेल से छुड़ा सकती है। मेरी एक काॅलेज फ्रैण्ड है। मैने और अनीता ब्यास ने एक साथ ही एलएलबी किया था। उसके बाद उसने वकालत को ही अपना पेशा बना लिया जबकि मैं अजय के साथ घर बसा कर सिर्फ एक हाउसवाइफ बन कर रह गई। हलाॅकि अजय ने मुझे इस बात के लिए कभी भी मना नहीं किया कि मैं वकालत न करूॅ। बल्कि हमने तो साथ में ही इसकी पढ़ाई की थी। अजय तो चाहते थे कि हम दोनो वकील बन जाएॅ। मगर मैने ही इंकार कर दिया था। किन्तु आज सोचती हूॅ कि काश मैं बन ही जाती तो आज अपने अजय को चुटकियों में जेल से छुड़ा लाती।"

"वकालत तो आप आज भी कर सकती हैं माॅम।" शिवा ने कहा___"आपके पास इस सबके राइट्स तो होंगे ही।"
"सब कुछ है बेटा।" प्रतिमा ने कहा___"मगर ये सब अब इतना आसान भी नहीं है। उसके लिए पहले इस सबकी बारीकियों को समझना पड़ता है। कई तरह के केसों का अध्ययन करना पड़ता है। मैं कभी कोर्ट के अंदर वकील का चोंगा पहन कर नहीं गई, इस लिए मुझे इसका तज़ुर्बा भी नहीं है। दूसरी बात अनुभव भी कोई चीज़ होती है। जो कि मुझे नहीं है। हर चीज़ का एक क्रम होता है। अगर आप समय के साथ ही साथ लाइन पर चल रहे हैं तब तो आप सीधी लाइन पर ही बिना किसी रुकावट के चलते रहेंगे पर अगर आपने लाइन को बहुत पहले ही छोंड़ दिया है तो फिर लम्बे समय बाद उसी लाइन पर चलना ज़रा मुश्किल सा हो जाता है। वो फिर तभी अपनी लय पर आएगा जब उसकी नियमित प्रैक्टिस हो। ख़ैर, छोंड़ इस बात को। मैं अनीता को फोन लगा कर उससे बात करती हूॅ। मेरे फ्रैण्ड सर्कल में एक वही है जो अब तक मेरे टच में में है। बाॅकियों का तो कहीं पता ही नहीं है।"

कहने के साथ ही प्रतिमा ने अपने मोबाइल को अनलाॅक करके उस पर अनीता ब्यास का नंबर ढूॅढ़ने लगी। जबकि शिवा ये कह कर सोफे से उठा कि वो कुछ देर में आता है अभी।
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केशव जी के जिस आदमी ने फोन पर उस जासूस के बारे में सूचित किया था उसका नाम निरंजन वर्मा था। रितू ने जब केशव जी से कहा कि वो अपने उस आदमी से कहे कि उसे पकड़ने की कोशिश करे और खुद भी वापस जाएॅ वहाॅ तो केशव ने वैसा ही किया था। उन्होंने निरंजन को फोन करके उससे पूछा था कि क्या वो अकेले उस जासूस को पकड़ सकता है तो निरंजन ने कहा कि वो इस बारे में कुछ कह नहीं सकता है। क्योंकि उसने सुना था कि कोई कोई जासूस लड़ने के मामले में भी काफी निपुण होते हैं। इस लिए बेहतर यही होगा कि वो उस पर सिर्फ नज़र रखे और फिर जब वो सब आ जाएॅगे तो उसे जल्द ही घेर लिया जाएगा। केशव जी को भी निरंजन की बात सही लगी। इस लिए वो फुल स्पीड में अपने आदमियों को लिए आ रहे थे।

इधर निरंजन बड़ी सफाई से हरीश राणे पर नज़र रखे हुए था। किन्तु उसे भी पता था कि ये जासूस यहाॅ पर ज्यादा देर तक रुकने वाला नहीं है। उसके पास काले रंग की एक पल्सर बाइक थी। इस वक्त वह बाइक के ही पास नीचे बैठा बाइक में कुछ कर रहा था। निरंजन को समझ नहीं आ रहा था कि वो बाइक के पास इस तरह बैठ कर क्या कर रहा है? निरंजन उससे बस कुछ ही दूरी पर एक पेड़ की ओट में छुप कर खड़ा था और उस पर नज़र रखे हुए था। उसके पास हथियार के रूप में कुछ भी नहीं था। जबकि उसे पूर्ण विश्वास था कि उस जासूस के पास रिवाल्वर ज़रूर होगा। यही वजह थी कि वो खुल कर उसके सामने नहीं जा रहा था।

निरंजन के चेहरे पर प्रतिपल बेचैनी बढ़ती जा रही थी। क्योंकि उसे पता था कि जासूस अगर यहाॅ से चला गया तो फिर उसे ढूॅढ़ पाना मुश्किल होगा। अतः वह बार बार देवी माॅ से प्रार्थना कर रहा था कि केशव जी सारे आदमियों को लेकर जल्दी आ जाएॅ। उसकी नज़र सामने ही थी। जहाॅ पल्सर बाइक के पास नीचे बैठा वो जासूस कुछ कर रहा था। जासूस का चेहरा उसके बगल से दिख रहा था। निरंजन के मन में कई बार ये ख़याल आया था कि वो चुपके से जाए और उस जासूस को दबोच ले मगर अगले ही पल वो उसके पास जाने का अपना ये ख़याल त्याग देता था। क्योंकि बार बार उसे उसके पास रिवाल्वर होने का बोध करा देता था। उसने आस पास देख भी लिया था। पास में कहीं भी उसे कोई डंडे जैसी वस्तु भी न नज़र आई थी जिसे लेकर वो उस जासूस के पास चला जाता।

अभी निरंजन उस जासूस को देख ही रहा था कि तभी वो जासूस उठ कर खड़ा हुआ और अपने दाहिने पैर को बाइक के आगे वाले पहिये पर रिम में रख कर उस पर ज़ोर से दबाव बनाया। ये देख कर निरंजन के मस्तिष्क में झनाका सा हुआ। एकाएक ही उसके दिमाग़ की बत्ती जल उठी। साला इतनी देर से वो समझ नहीं पा रहा था कि ये जासूस बाइक के पास बैठा कर क्या रहा था? अब उसे समझ आया था। दरअसल बाइक का अगला पहिया पंचर था अथवा उसमें हवा कम थी। पहिये पर निरंजन का ध्यान पहली बार गया था। उसने ग़ौर से देखा पहिये पर जहाॅ पर से हवा भरी जाती है वहाॅ पर कोई पतली सी तार या फिर यू कहें कि पतला सा पाइप लगा हुआ था। जिसका दूसरा सिरा इस वक्त उस जासूस के दाहिने हाॅथ में था।

निरंजन को समझ न आया कि अगर बाइक का अगला पहिया पंचर है या उसमे हवा कम है तो वो जासूस यहाॅ पर उसे ठीक कैसे कर लेगा और ये पतला सा पाइप क्यों लगा रखा है उसने पहिये की निब पर? तभी वो जासूस पुनः बैठ गया। इस बार निरंजन ने भी अपनी जगह बदली और फिर ध्यान से देखा उसने। पाइप का दूसरा सिरा उस जासूस ने अपने होठों पर दबाया और फिर निरंजन ने देखा कि जासूस के दोनो गाल फूल गए। ये देख कर निरंजन की हॅसी छूट ही गई होती अगर उसने जल्दी से अपने मुह को अपने हाथों से भींच न लिया होता तो। दरअसल वो जासूस पाइप लगा कर मुह से हवा भर रहा था पहिये पर। बस यही देख कर निरंजन को बड़ी ज़ोर की हॅसी आ गई थी। उसने सोचा कि इसे जासूस किसने बना दिया? भला मुह से भी कोई बाइक के पहिये पर हवा भरता है? ये तो दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य ही है।

निरंजन ने भी सोचा कि बेचारा यहाॅ पर बाइक में हवा भरवाए भी तो कैसे? किन्तु मुख से हवा तो भरने से रही। कहने का मतलब ये कि जासूस की इस क्रिया पर निरंजन उसे बेवकूफ ही समझ रहा था। मगर वो उस वक्त हैरान रह गया जब वो जासूस पुनः उठा और पहले की भाॅति अपना दाहिना पैर रिम में रख दबाव बनाया। उसके चेहरे से ज़ाहिर हुआ कि अब वो संतुष्ट है। उसने झुक कर तुरंत ही पाइप को पहिये के निब से निकाला। निरंजन ने देखा कि निब के पास लगे पाइप के उस छोर पर कोई चीज़ लगी हुई थी। ये देख कर निरंजन का दिमाग़ घूम गया। चकित होकर वह उस जासूस को देखे जा रहा था। अब उसे समझ आया कि वो जासूस यूॅ ही तो नहीं बन गया होगा। ज़रूर उसमें काबीलियत थी।

अभी निरंजन ये सब सोच ही रहा था कि तभी उसने देखा कि वो जासूस उस पाइप को लिए बाइक के बाएॅ साइड आया और फिर अपनी दाहिनी टाॅग उठा कर बाइक की सीट पर बैठ गया। ये देख कर निरंजन एकदम से हड़बड़ा गया। वो समझ गया कि अब ये जासूस यहाॅ से चला जाएगा। निरंजन को समझ न आया कि वो उसे कैसे यहाॅ से जाने से रोंके? वो खुद निहत्था था वरना वो कोई जोखिम उठाने का सोचता भी। उसे पूरा यकीन था कि उस जासूस के पास पिस्तौल होगी। यही वजह थी कि वो उसके पास खुल कर जा नहीं रहा था। किन्तु अब हालात बदल गए थे। क्योंकि निरंजन की ऑखों के सामने ही वो जासूस बाइक पर बैठ चुका था और अब ये भी तय था कि वो बाइक को स्टार्ट कर यहाॅ से चला ही जाएगा।

निरंजन ने देखा कि बाइक पर बैठा जासूस उस पतले से पाइप को गोल गोल छल्ली की शक्ल देकर समेट रहा था। उसकी पीठ निरंजन की तरफ ही थी। पाइप का दूसरा सिरा जासूस की दाहिनी जाॅघ से थोड़ा ही नीचे झूल रहा था और प्रतिपल ऊपर की तरफ उठता भी जा रहा था। ये देख कर निरंजन के दिमाग़ की बत्ती जली। उसके चेहरे पर एकाएक ही कुछ सोच कर चमक आ गई। वो फुर्ती से अपनी जगह से हिला और फिर बड़ी सावधानी व सतर्कता से लम्बे लम्बे क़दम बढ़ाते हुए जासूस के पीछे पहुॅच गया।

हरीश राणे को सहसा अपने पीछे किसी की मौजूदगी का एहसास हुआ। उसने इस एहसास के तहत ही जल्दी से पीछे मुड़ कर देखना चाहा मगर अगले ही पल जैसे बिजली सी कौंधी। निरंजन ने डर व भय की वजह से बड़ी ही फुर्ती का प्रदर्शन किया था। उसने जासूस के मुड़ने से पहले ही झुक कर जासूस के नीचे जाॅघ के पास झूलते उस पाइप को पकड़ा और फिर तेज़ी से खड़े होकर उसी छोर से दूसरा हाॅथ सरका कर उसने जासूस के सिर से अपनी एक कलाई घुमा कर बड़ी फुर्ती से उस पाइप को जासूस की गर्दन पर कस दिया।

हरीश राणे को ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि उसके साथ पलक झपकते ही ऐसा कुछ हो सकता है। वह एकदम से हकबका कर रह गया था। हलाॅकि उसने खुद को बड़ी तेज़ी से सम्हाला था मगर तब तक उसके गले में निरंजन ने उस पाइप को किसी फाॅसी के फंदे की तरह कस दिया था। निरंजन ये सोच कर जी जान लगाए हुए था कि अगर उसने ज़रा सी भी ढील दी तो ये जासूस उसे जान से मार देगा। निरंजन के दिमाग़ में बस एक यही बात थी, बाॅकी उसे किसी बात का कोई होश ही नहीं था। उसे इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं रह गया था कि उसके द्वारा इतनी ताकत से गले में पाइप को कसने से वो जासूस कुछ ही पलों में मर भी सकता है।

उधर राणे जल बिन मछली की तरह छटपटाए जा रहा था। वो अपने दोनो हाथों से अपने गले में फॅसे पाइप को पकड़ने की कोशिश कर रहा था मगर पाइप में निरंजन की पूरी ताकत लगी हुई थी। जिसकी वजह से राणे उसे हिला भी नहीं पा रहा था। देखते ही देखते राणे का बुरा हाल हो गया। उसका गोरा चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया। चेहरे पर पसीना और तड़प साफ पता चल रही थी। किसी किसी पल वह खाॅसने भी लगता था। उसकी ऑखों की पुतलियाॅ जैसे बाहर कूद पड़ने को आतुर हो उठी थीं।

राणे की हालत प्रतिपल बिगड़ती जा रही थी। बाइक पर बैठा वह बुरी तरह खुद को झटके भी दे रहा था मगर मजाल है कि निरंजन की पकड़ में ज़रा सा भी ढीलापन आया हो। कहते हैं कि मौत से बचने के लिए इंसान अंत तक हर तरह से प्रयास करता है फिर भले ही उसके प्रयास विफल ही होते रहें। निरंजन के सिर पर जुनून सवार था और वो किसी यमराज की तरह राणे के सिर पर आ खड़ा हुआ था। राणे को एहसास हो गया कि अब वो मरने ही वाला है। उसे अब साॅस लेना भी मुश्किल पड़ रहा था। बुरी तरह छटपटाते हुए राणे ने एकाएक अपने एक हाॅथ को गले में फॅसे पाइप से हटा कर उसी हाॅथ की कुहनी का वार बड़ी तेज़ी से पीछे निरंजन के पेट के हल्का ऊपरी भाग पर किया। उसके इस वार से निरंजन के हलक से पीड़ा भरी कराह निकल गई और उसकी पकड़ तथा उसकी ताकत कमज़ोर पड़ गई। हलाॅकि उसने जल्दी से उस दर्द को बर्दास्त करके पुनः पाइप को कसना चाहा मगर तक मानो देर हो गई। क्योंकि जैसे ही निरंजन ने पुनः ताकत लगाई वैसे ही राणे ने कुहनी का वार जल्दी जल्दी कई बार निरंजन के पेट में कर दिया था। नतीजा ये हुआ कि निरंजन की पकड़ काफी ज्यादा ढीली व कमज़ोर पड़ गई। वह बुरी तरह दर्द व पीड़ा से बिलबिला उठा था।

निरंजन के कमज़ोर पड़ते ही हरीश राणे ने बड़ी तेज़ी से अपने गले से उस पाइप को पकड़ कर खींचा और फिर उसे ऊपर करते हुए सिर से निकाल दिया। हालत तो उसकी अब भी बहुत ख़राब थी। बुरी तरह खाॅस रहा था तथा बुरी तरह गहरी गहरी साॅसें भी ले रहा था। गोरा चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया था। चेहरे पर ढेर सारा पसीना उभर आया था। गले से पाइप को निकालते ही वह बाइक से खुद को बाएॅ साइड गिरा लिया था तथा साथ ही कई पलटियाॅ भी खा लिया था। मगर तब तक उसकी पसली में निरंजन के बूट की ज़बरदस्त ठोकर लग चुकी थी। निरंजन जानता था कि अगर वह अब भी उसे सम्हलने का मौका दिया तो वो उसके लिए काल बन सकता है। अतः वह मौत के डर से उस पर वार पे वार किये जा रहा था।

हरीश राणे अभी अभी मौत से बच कर निकला था। इस लिए उसे खुद पर नियंत्रण पाने के लिए कुछ समय चाहिए था मगर निरंजन था कि उस पर प्रहार किये जा रहा था। अचानक ही निरंजन ने देखा कि जासूस ने अपने हाॅथ को पीछे ले जाकर रिवाल्वर निकाल रहा है। ये देख कर निरंजन के समूचे जिस्म में मौत की सिहरन दौड़ गई। जैसे ही राणे ने रिवाल्वर निकाल कर अपने हाॅथ को निरंजन की तरफ उठाना चाहा वैसे ही मौत के डर से निरंजन ने उसकी उस कलाई पर अपनी टाॅग चला दी। नतीजा ये हुआ कि राणे के हाॅथ से रिवाल्वर छूट कर दूर जा गिरा तथा कलाई पर तेज़ ठोकर लगने से वो दर्द से कराह उठा।

निरंजन ने देखा कि रिवाल्वर उसकी पहुॅच में ही है इस लिए वो जल्दी से रिवाल्वर की तरफ लपका मगर तभी वह मुह के बल ज़मीन पर गिरा। गिरते ही उसके मुख से चीख़ निकल गई। राणे ने पलट कर उसका पैर पकड़ कर खींच लिया था जिससे वो अनबैलेंस होकर मुह के बल गिरा था। रिवाल्वर उसकी पहुॅच से लगभग डेढ़ दो हाॅथ ही दूर था। इधर निरंजन का पैर पकड़ कर खींचते ही राणे उसके ऊपर एकदम से आने की कोशिश की तो निरंजन घबरा कर पलट गया। नतीजतन इस बार राणे मुह के बल गिरा। किन्तु उसके एक हाॅथ में निरंजन का पैर अभी भी था।
 

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