Erotica Lagi Lund Ki Lagan Mai Chudi Sabhi Ke Sang(Completed)

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S Meena

टोनी की जिद पर हार कर हमने अपने कपड़े पहन लिए।
ब्रा पैन्टी तो पहननी ही थी उसके ऊपर एक शार्ट स्कर्ट और टॉप पहनना था। खैर हम दोनों कपड़े पहन कर तैयार हुई।

नंगा नाच
फिर उसने एक इंग्लिश म्यूजिकल सांग लगा दिया और हम दोनों से बोला कि यह म्यूजिकल गाना पन्द्रह मिनट का है और इस गाने पर हम दोनों को डांस करना है, डांस करते-करते अपने एक-एक कपड़े उतारने हैं और उसे (टोनी) और रितेश को उत्तेजित करना है।

मीना तुरन्त तैयार हो गई पर मुझे पता नहीं था कि कैसे करना है। मैंने इशारो ही इशारों में मीना से पूछा तो मीना बोली कि जैसे वो करे उस देख कर वो करती रहे।

रितेश और टोनी सोफे पर बैठ गये।

मीना मुझसे चिपक कर अपने एक हाथ को मेरे कमर पर रख कर अपनी कमर को मटकाने लगी।
अब उसके हाथ धीरे-धीरे मेरे पिछवाड़े चलने लगे और मैं भी समझने के बाद मीना के पिछवाड़े को सहलाने लगी।
कभी मेरा पिछवाड़ा उन दो मर्दों के सामने होता तो कभी मीना का।

मीना के अगले स्टेप में वो मेरी स्कर्ट को ऊपर करती और मेरी पैन्टी को हल्का सा नीचे करके मेरे चूतड़ को सहलाती और फिर पैन्टी ऊपर कर देती।
जिस तरह से वो करती, उसी तरह मैं भी करती।

दोस्तो, मैं केवल मीना के स्टेप को बता रही हूँ और आप सभी मेरे चाहने वाले यह समझ लेना कि जो स्टेप मीना ने मेरे साथ किया था उसी स्टेप को मैंने दोहराया है।

फिर मीना ने मेरे टॉप को ऊपर करके ब्रा का हुक खोल दी और फिर मेरी टॉप भी उतार दी।

अब हम दोनों कमर के ऊपरी हिस्से में नंगे हो चुके थे।
मेरी और मीना की चूची आपस में चिपकी हुई थी और मीना मेरे होंठों का रसास्वादन कर रही थी कि अचानक मीना ने मुझे घुमा दिया। अभी तक मेरा पिछवाड़ा दोनों के सामने था, लेकिन अब मेरी उछलती हुई चूचियाँ उन दोनों के सामने थी।

मीना ने मेरे दोनों हाथ को ऊपर हवा में उठा कर अपने कंधे में रख लिए और मेरी चूचियों से खेलने लगी।
वो बीच-बीच में मेरे कानों को काटती तो कभी मेरे कंधे को चूमती, मेरी घुमटियों को मसलती।

फिर झटके से मीना ने मेरी स्कर्ट को भी उतार दिया।
अब हम दोनों ही केवल पैन्टी में थी और एक दूसरी से चिपकी हुई थी और एक दूसरे के चूतड़ को सहला रहे थे।
ऐसा करते करते कब हम दोनों के जिस्म से पैन्टी भी उतर गई पता नहीं चला।

फिर हम दोनों इस तरह से झुक गई कि उन दोनों को हमारे गांड और चूत एक साथ दिखाई पड़े।
हम बैले डांस की तरह अपने चूतड़ हिला ही रही थी कि अचानक टोनी ने म्यूजिक को पॉज कर दिया और दो दुपट्टे को हम दोनों की तरफ उछालते हुए सलमान स्टाईल में डांस करने के लिये बोला।

हमने दुपट्टा उठाया और अपनी टांगों के बीच फंसा कर अपनी चूत को उस दुपट्टे से रगड़ने लगी।

इधर हम लोग दुपट्टे से अपनी चूत रगड़ रहे थे उधर रितेश और टोनी अपने-अपने लंडों को मसल रहे थे।

हम चारों लोग अगले दो दिनों तक टोनी के घर पर इसी मस्ती के साथ लंड चूत का खेल खेलते रहे और चुदाई के नये-नये तरीके सीखते रहे।

कुल मिला कर यह ट्रिप बहुत ही अच्छा था।
हम लोग भी इस खेल में माहिर हो चुके थे।
 
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S Meena

जब हम लोग दिल्ली से लौट रहे थे तो रास्ते में लोगों की नजर बचा कर कभी मैं रितेश के लंड को दबा देती और कभी रितेश मेरी चूची को दबा देता या फिर मेरी चूत के साथ छेड़खानी कर देता।

पब्लिकली ऐसा करने में भी एक आनन्द सा मिल रहा था।
मेरे साथ कहानी की शुरूआत हो चुकी थी और रितेश के अलावा पहला गैर मर्द टोनी था जिसने मेरी चूत की धज्जियाँ उड़ा दी।
और उस दिन से एक बात समझ में आई कि हम औरतों के पास ऊपर वाले की दी वो नियामत है जिसके बल पर वो जिन्दगी के मजे भी लूट सकती हैं और चाहे मर्द कैसा भी हो, उसे अपना गुलाम बना सकती हैं।

मेरी इसी उधेड़बुन में मेरा अपना शहर कब आ गया मुझे पता ही नहीं चला।
हम लोग वापस अपने घर आ गये।

अब मैं और रितेश एक-दूसरे की जरूरत बन गये थे, मुझे जब खुजली होती तो मैं अपनी खुजली मिटाने उसके घर पहुँच जाती और जब उसको मेरी चूत चाहिये होती तो वो मेरे घर आ जाता।

हम दोनों के माँ-बाप भी हम दोनों की शादी के लिये तैयार हो गये थे और हमारे सेमेस्टर कम्पलीट होने की राह देख रहे थे।

अब तक हम दोनों एक दूसरे के घर के सभी सदस्य से अच्छी तरह से परिचित हो चुके थे।
रितेश के घर में उसके माँ ही एक महिला के रूप में थी, बाकी सभी मर्द थे।

मेरे होने वाले ससुर जो एक रिटायर आर्मी मैन थे और काफी लम्बे चौड़े थे।
बाकी रितेश से छोटे उसके दो भाई, एक बहन जिसकी शादी हो चुकी थी और उसका आदमी भी एक पुलिस वाला था और वो भी एक बलिष्ठ जिस्म का मालिक था और शादी से पहले ही मुझसे वो खुल कर हँसी मजाक करता था।
मतलब कि वलगर… और उसकी इस वलगर हँसी मजाक का जवाब भी मैं उसी तरह दिया करती थी।

खैर इसी तरह हमने अपने सेमेस्टर को कम्पलीट कर लिये और एक अच्छी कम्पनी ने कैंपस इन्टरव्यू में हम दोनों को सेलेक्ट भी कर लिया था और इत्तेफाक से हमारी जॉब भी हमारे शहर में हो गई थी, इस कारण हम लोगों को शहर भी नहीं छोड़ना पड़ा।

शादी और सुहागरात
करीब छः महीने की जॉब के बाद हमारे परिवार वालों ने हमारी शादी कर दी।
जिसमें टोनी और मीना भी शामिल होकर हम लोगों को हमारे नये जीवन शुरू करने की बधाई दी।

शादी में एक बात जो मैंने नोटिस की कि रितेश के जीजा जिनका नाम अमित था वो मेरे आगे-पीछे घूम रहे थे, रितेश को रह रह कर चिढ़ा रहे थे और मुझे किसी न किसी बहाने टच करने की कोशिश कर रहे थे।

खैर शादी के झंझटों से निपटने के बाद वो रात भी आई जिसका मैं अपने कुँवारेपन से इन्तजार कर रही थी।

मैं सज संवर कर अपने कमरे मैं बैठी हुई थी और अपने पिया का इंतजार कर रही थी कि अमित कमरे में आ गया और रितेश को लगभग मेरे उपर धकेलते हुए बोला- लो सँभालो अपने मियाँ को… अगर मेरी जरूरत हो तो बताना।

जाने से पहले रितेश को आँख मार कर बोले- साले साहब दूध पीने में कोताही मत करना नहीं तो मजा खराब हो जायेगा!
और फिर मुझे बोले- तुम भी मेरे साले को दूध अच्छी तरह से पिलाना… अगर बच गया तो मैं आकर पी जाऊँगा।
 
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शायद अमित की यह बात सुनकर रितेश थोड़ा झिझक गया और अमित को थोड़ा सा धकियाते हुए बोला- जीजा, अब जाओ ना!
अमित ने एक बार फिर रितेश को आँख मारी और कमरे से बाहर चला गया।

रितेश ने कमरे को बन्द कर लिया।

रितेश के पास बैठते ही मैं हल्के गुस्से के साथ बोली- यार, तुम्हारा जीजा मुझे सही आदमी नहीं लगा। पूरी शादी में वो मुझे टच करने की लगातार कोशिश करता रहा और अब ये द्विअर्थी बाते कि दूध अच्छी तरह से पिलाना नहीं तो मैं पी जाऊँगा।

रितेश हंसा और मेरी चूची को कस कर दबाते हुए बोला- ठीक ही तो कह रहा था… देखो अपनी चूची को, कितनी बड़ी और मस्त हो गई है, कोई भी इसको पीने के लिये मचलेगा ही ना!

जब रितेश ने ऐसी बात बोली तो मैं भी उसे चिढ़ाने की गरज से बोली- फिर दूध पूरा ही पी लेना, नहीं तो तुम्हारे जीजा को पिला दूँगी। ‘मुझे कोई ऐतराज नहीं… पर कोई मुझे अपना दूध पिलायेगी तो फिर तुम क्या करोगी?’
उसकी इस बात को सुनकर मैंने बड़े प्यार से रितेश को चूमा और बोली- जब कोई मेरा दूध पी सकता है और तुम्हें ऐतराज नहीं तो फिर कोई तुम्हें अपना दूध पिलाये तो मुझे भी ऐतराज नहीं।

हम लोगों ने एक दूसरे को वचन दिया कि हम दोनों कभी भी किसी से कोई बात नहीं छिपायेंगे।
बात करते-करते कब हम दोनों के कपड़े हमारे जिस्म से गायब हो गये पता ही नहीं चला, हम बिल्कुल नंगे हो चुके थे।
रितेश का हाथ मेरी चूत को सहला रहा था और मेरे हाथ में रितेश का लंड था।

मेरी चूत हल्की सी गीली हो चुकी थी। रितेश ने मुझे बाँहों में जकड़ रखा था और मेरी पीठ को और चूतड़ को सहला रहा था।

सुहागरात से पहले मैं रितेश से कई बार चुद चुकी थी, लेकिन आज रितेश के बाँहों में मुझे एक अलग सा आनन्द मिल रहा था और मैं अपनी आँखें मूंदे हुए केवल रितेश के बालों को सहला रही थी।
रितेश मुझसे क्या कह रहा था, मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था, मुझे आज अपनी चुदी हुई चूत एक बार फिर से कुंवारी नजर आ रही थी।

तभी रितेश मेरे कान में बोला- आकांक्षा… मेरी जान, आज तुम्हें तुम्हारा वादा पूरा करना है। आज तुम्हारी गांड चुदने वाली है।
मैंने भी बहुत ही नशीली आवाज में कहा- जानू, ये गांड ही क्या, मैं तो तब भी पूरी तुम्हारी थी और आज भी तुम्हारी हूँ। तुम एक हजार बार मेरी गांड मार लो, मैं उफ भी नहीं करूँगी। बस उदघाटन मेरी चूत से ही करना।

मेरी बात सुनते ही उसने मुझे धीरे से बिस्तर पर सीधा लेटा दिया और मेरी चूची चूसते हुए उसने मेरी नाभि में अपनी जीभ घुसेड़ दी और धीरे धीरे मेरी चूत की तरफ बढ़ने लगा, मेरी चूत को सूँघने लगा और अपनी जीभ मेरी चूत पर लगा दी।

आज पहली बार पता नहीं मुझे क्या हुआ कि मैंने रितेश को अपनी चूत से अलग कर दिया।
मैं नहीं चाहती थी कि मेरी पनियाई हुई चूत को वो चाटे।
मुझे बड़ा अजीब लग रहा था।

लेकिन रितेश को पता नहीं क्या हुआ, उसने मेरे दोनों हाथों को कस कर पकड़ा और अपनी जीभ को मेरी चूत से सटा दिया।
मैं छटपटा रही थी पर अपने आपको रितेश से छुड़ा नहीं पा रही थी।

वो मेरी चूत को चाटता ही जा रहा था।
मैं अपना होश खो रही थी और रितेश के आगे अपने आपको समर्पण करने लगी।
अब मेरी टांगें खुद-ब-खुद खुल गई, मेरे हाथ अब रितेश के सिर को पकड़ कर अपनी चूत पर और दबाव दे रहे थे।
थोड़ी देर तक वो मेरी चूत चाटता रहा और फिर उठा और एक झटके में उसने बड़ी तेजी के साथ अपने लंड को मेरी चूत की गुफा में प्रवेश करा दिया।
 
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अचानक हुए इस हमले से मेरी चीख निकल गई।

तभी रितेश के बहन-बहनोई की आवाज आई सील टूट गई।

रितेश मुझे देखकर मुस्कुराने लगा।
मैं भी समझ गई थी कि रितेश ने ऐसा क्यों किया।
वो जानता था कि उसके जीजा और बहन बाहर खड़े होकर मेरी चीख का बेसबरी से इन्तजार कर रहे होंगे।

एक तेज झटका मारने के बाद रितेश मेरे ऊपर लेट गया और मुझसे बोला- यह तरीका टोनी ने मुझे बताया था।

उसके बाद हम दोनों फिर गुत्थम-गुत्था हो गये और रितेश मुझे तेज धक्के लगाता रहा।
धक्के लगाने के बीच में कभी मेरी चूत को चाटता तो कभी मेरे मुँह में लंड डाल देता।

मैं बिस्तर पर सीधी लेटी रही और वो मुझे चोदता रहा, मेरी चूचियों को मसलता रहा।

अब उसके धक्कों की स्पीड बढ़ती जा रही थी कि अचानक उसका शरीर अकड़ने लगा और फिर निढाल होकर मेरे ऊपर गिर पड़ा।

ठीक उसी समय मुझे भी ऐसा महसूस हुआ कि मेरे अन्दर से कुछ बाहर आ रहा है।
हालाँकि रितेश के गर्म गर्म माल को भी मैं महसूस कर सकती थी।

थोड़ी देर तक मेरे ऊपर लेटे रहने के बाद वो मुझसे अलग होकर मेरे बगल में सीधा लेट गया।
उसके मेरे ऊपर से हटते ही मेरा हाथ चूत पर चला गया और मेरी उंगलियों पर चिपचिपा सा लग गया।

मैंने चादर से ही अपनी चूत साफ की और रितेश के लंड को शादी वाली साड़ी जो मेरे बगल में पड़ी थी, उससे साफ किया।
उसके बाद मैंने अपनी टांग रितेश के ऊपर चढ़ा दी और उसके सीने पर अपना सर रख दिया।

वो मेरे बालों को सहलाता रहा, मेरी उंगलियाँ उसकी छाती के बालों को सहला रही थी।
हम दोनों के बीच एक खामोशी सी थी।

इस समय रितेश में बिल्कुल भी हरकत नहीं थी, वो निढाल सा पड़ा हुआ था।
मैं ही उसके सीने के बालों से खेल रही थी और बीच में उसके निप्पल को काट लेती थी।
वो चिहुँक उठता और मुझे हल्की सी चपत लगा देता।

थोड़ी देर ऐसा करते रहने के बाद रितेश अब मेरी तरफ मुड़ा और मेरी टांग़ को अपने कमर के उपर रख दिया और अपने होंठों को मेरे होंठो से सटा दिया।
अपने हाथों का इस्तेमाल वो बड़ी अच्छी तरीके से कर रहा था, मेरे चूतड़ सहलाता, मेरी गांड के छेद को कुरेदता, चूत में उंगली करता और पुतिया को मसल देता, जिसके कारण हल्की सी चीख निकल जाती थी।

थोड़ी देर तक तो ऐसे ही चलता रहा।
फिर हम दोनों 69 की पोज में आ गये, वो मेरी चूत और गांड चाटता रहा और मैं उसके लंड को लॉलीपॉप समझ कर चूसती रही और उसके अंडों से खेलती रही।

मेरी गांड चुदाई
उसने मेरी गांड चाट-चाट कर काफी गीली कर दी और उसमे उंगली कर दी।
उंगली करते करते रितेश बोला- अब असली सुहागरात होने वाली है, अब तुम्हारी गांड का उदघाटन करूंगा।

मैं भी उसके हौंसले को बढ़ाते हुई बोली- मेरी जान, मैं भी कब से चाह रही हूँ… मेरी गांड में अपना लंड डालो।
तभी उसने मुझे अपने से अलग किया।
मैं भी पलंग से उतर कर अपने हाथों को पलंग पर इस तरह से सेट करके झुक कर खड़ी हो गई कि मेरी गांड हल्की सी खुल जाये।
इसी बीच रितेश ने ढेर सारी क्रीम मेरे गांड में मल दी और लंड को एक झटके से डाल दिया।

पहली बार की तरह इस बार उसका लंड अपने जगह से नहीं भटका।
मुझे अहसास हुआ की उसके लंड का कुछ हिस्सा मेरी गांड में धंस चुका है।
मेरे मुँह से चीख निकलने वाली थी लेकिन अपने आपको संयम में रखते हुए अपने होंठो को मैंने भींच लिया ताकि आवाज बाहर न जा सके।
 
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मुझे अहसास भी था कि जिस तरह जब पहली बार मेरी चूत चुदी तो मुझे कितना दर्द हुआ था, लेकिन बाद मैं चुदाई का बहुत मजा आने लगा, इसलिये इस दर्द को भी मैं बर्दाश्त कर रही थी।

इधर रितेश को भी मालूम था कि कैसे गांड में लंड डालना है।
इसलिये वो जब भी मेरे मुंह से हल्की भी आवाज सुनता तो रूक जाता और फिर मेरी पीठ को चाटता और मेरी चूची को मसलता।

इस तरह करीब तीन बार करने से उसका लंड पूरी तरह से मेरी गांड में चला गया था।
अब धीरे-धीरे उसके लंड की स्पीड बढ़ती जा रही थी और मेरे गांड का छेद भी खुलता जा रहा था।

कोई चार से पांच मिनट तक रितेश धक्के लगाता रहा और फिर उसका गर्म गर्म माल मेरी गांड के अन्दर गिरने लगा।
मुझे दर्द तो बहुत हो रहा था पर मजा भी बहुत आया।

आज की चुदाई की खास बात यह थी कि न तो रितेश और न ही मैंने एक दूसरे के माल को चखा।

लेकिन एक ऐसी घटना घटी की न चाहते हुये वो करना पड़ा, जिसकी पक्षधर न तो मैं थी और न ही रितेश!

हुआ यूँ कि चुदने के बाद मुझे पेशाब बहुत तेज लगी थी।
मैंने रितेश को यह बात बताई तो उसने भी बताया कि उसे भी पेशाब लगी है।
लेकिन समस्या यह थी कि कमरे में अटैच बाथरूम नहीं था और मूतने के लिये बाहर जाना था।
और अगर मैं कपड़े पहनने से समय गवांती तो मेरी मूत वहीं निकल जाती।

मेरे जिस्म की हरकत बता रही थी कि मैं एक सेकेण्ड भी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी।

रितेश ने मेरी दशा को समझते हुए तुरन्त ही मुझे चादर इस प्रकार औढ़ा दी कि कहीं से मेरा जिस्म खुला न दिखे और खुद उसने जल्दी से लोअर पहन लिया।
फिर रितेश ने दरवाजे की कुंडी खोल दी।

पर यह क्या… दरवाजा बाहर से भी बंद था।
किसी ने दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया।

अब मेरे बर्दाश्त से बाहर था और हल्के सा मूत चूत के बाहर निकल चुका था और देर होने की स्थिति में मेरे अन्दर का तूफान पूरे वेग से बाहर निकल सकता था।

रितेश ने बहुत कोशिश की पर दरवाजा नहीं खुला।

हारकर रितेश ने मुझे सुझाव दिया कि मैं कमरे में ही मूत लूँ, लेकिन कमरे में मूतने पर बाद जो उससे बदबू आती तो वो भी सुबह हमारा मजाक बनता।

कोई रास्ता न देख रितेश घुटने के बल नीचे बैठ गया और मेरी चूत के सामने अपना मुंह खोल दिया और मेरी गांड को सहलाते हुए मुझे मूतने का इशारा किया।

मैं क्या करूँ, इससे पहले मैं समझती कि मेरी चूत ने धार छोड़ दी जो सीधा रितेश के मुँह के अन्दर जाने लगी।

रितेश बड़े ही प्यार के साथ मेरे पेशाब को पी गया।

मुझे गुस्सा भी बहुत आ रहा था, पता नहीं मेरे दिमाग में यह बात कहाँ से आई कि हो न हो रितेश के जीजा अमित ने ही बाहर से कमरा बंद किया है।
मैंने रितेश को यह बात बताई तो उसने भी हामी भरी।

मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था, उसी गुस्से में मैंने रितेश को बोला- जब भी मुझे मौका लगा तो इसी तरह तेरे जीजा के मुँह में भी मूतूंगी।

रितेश मुस्कुराया और मुझे चिपकाते हुए बोला- मूत लेना यार… अभी क्यों गुस्सा कर रही हो, अपनी सुहागरात का मजा लो।
 
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तभी मुझे ध्यान आया कि रितेश को भी पेशाब लगी थी।
अगर रितेश मेरी मूत पी सकता है तो मैं भी उसकी मूत पी सकती हूँ।

ऐसा सोचते ही मैं तुरन्त अपने घुटने के बल पर आ गई और उससे मूतने के लिये बोला।
तो रितेश ने मना कर दिया और बोला- मैं बर्दाश्त कर लूंगा और सुबह मूत लूँगा।

लेकिन मैं नहीं मानी और रितेश को मूतने के लिये जिद करने लगी।
मेरी जिद के आगे रितेश हार गया और मेरे मुँह में धीरे-धीरे मूतने लगा।

फिर हम दोनों बिस्तर पर आ गये।

रितेश मुझे अपने से चिपकाते हुए बोला- जानू, आज के बाद जब भी मैं घर पर रहूँ, तुम पैन्टी ब्रा नहीं पहनोगी।
मैंने भी हामी भर दी।

फिर मैंने अपनी ब्रा और पैन्टी को एक किनारे कर दिया और बाकी के कपड़े पहन कर सोने की कोशिश करने लगी।

न तो मुझे और न ही रितेश को नींद आ रही थी, हम एक-दूसरे की बाहों में पड़े हुए यही सोच रहे थे कि ऐसी हरकत की किसने होगी। करवट बदलते बदलते पूरी रात बीती और जैसे ही सुबह हुई, रितेश ने दरवाजा खुलवाया।

कहानी जारी रहेगी।
 
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हमारे कमरे का दरवाजा बाहर से बन्द देख सभी आश्चर्य में थे केवल एक अमित जीजा को छोड़कर… उसकी कुटिल मुस्कान भी बता रही थी कि ऐसी हरकत उसी ने की है।

उसकी कुटिल मुस्कान देखकर मेरा गुस्सा और बढ़ता ही जा रहा था, लेकिन रितेश की वजह से मैं कुछ भी न बोल सकी।

मैं इधर वाशरूम में फ्रेश होने के लिये जा ही रही थी कि अमित जल्दी से बेड रूम में घुस गया, वही दूध का गिलास ले आया जिसको हम दोनों ही नहीं पी सके थे।

दूध के गिलास को लिये हुए अमित उसी कुटिल मुस्कान के साथ बोला- अरे तुम दोनों ने एक दूसरे को दूध नहीं पिलाया।

रितेश लपक कर गिलास को पकड़ने की कोशिश करने लगा पर सफल न हो सका।
बल्कि रितेश बोला भी- जीजा जी, दूसरे से बिना पूछे उसके सामान को हाथ नहीं लगाना चाहिए।

पर अमित ने बेशर्मी से जवाब दिया- रात में ही मैंने कह दिया था कि तुम दोनों ने नहीं पिया तो मैं पी लूँगा।

मेरे सब्र का बांध टूट रहा था कि मेरे ससुर जी बोल उठे- बेटा, किसी का दूध इस तरह से नहीं पिया करते।

पर तब तक अमित गिलास को मुंह से लगा कर दूध पीने लगा।

अब मेरे सब्र का बांध टूट गया तो मैंने भी उसी अंदाज में जवाब दिया- जीजा जी, बच कर भी रहा करो, कहीं ऐसा न हो गलती से कोई आप को दूध की जगह कुछ और पिला दे।

लेकिन अमित बेशर्म तो बेशर्म, तुरन्त ही बोल उठा- तुम्हारी जैसी खूबसूरत हो तो वो कुछ भी पिला दे, मैं हँसते-हँसते पी जाऊँगा।
गिलास से मलाई को उँगलियों में लेते हुए बोला और ऐसी मलाई मिले तो उसे भी चट कर जाऊँगा।

सभी उसकी बातों पर हँस रहे थे लेकिन मैं मन ही मन गुस्से में बड़बड़ाने लगी ‘मौका लगा मादरचोद तो तुझे अपनी अपनी पेशाब न पिलाई तो मेरा नाम भी आकांक्षा नहीं। तब पता लगेगा कि मैं क्या चीज हूँ।’

लेकिन ऊपर से मैं उस मादरचोद से बहस करना नहीं चाहती थी, मैं बाथरूम में जाकर नहाने धोने लगी।

नहाने के बाद मैंने रितेश के कहने पर सलवार सूट पहन लिया और रसोई में आकर रितेश की मम्मी के साथ काम में हाथ बंटाने लगी।
फिर धीरे-धीरे रितेश सहित सभी नहा धोकर तैयार हो गये, सभी ने नाश्ता किया।
नाश्ता करने के बाद एक बार फिर मैं रसोई में मम्मी के साथ काम में हाथ बंटाने लगी।

पर रितेश का मन नहीं लग रहा था वो कई बार इशारा करके बुला चुका था, पर मैं लिहाज के मारे रसोई से न निकल सकी और रितेश झुंझलाकर रसोई में आया और मम्मी की नजर बचा कर मेरी गांड को कस कर दबा दिया।

मम्मी रितेश की हरकत को तो न देख सकी पर समझ तो गई थी कि रितेश क्यों आया है।

मम्मी ने मेरी ननद को बुलाया और उसे डाँटते हुए बोली- अभी अभी इसकी शादी हुई है और तुम आराम कर रही हो और उससे पूरा काम कराये जा रही हो? चल मेरे काम में हाथ बँटा!
और मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोली- जा तू थोड़ा आराम कर ले।

लेकिन मैं शर्म के मारे नहीं जा रही थी।
बार बार कहने पर मैं अपने कमरे मैं आ गई और अन्दर से दरवाजा बन्द कर दिया।

रितेश बिस्तर पर चादर ओढ़े लेटा हुआ था, मुझे देखते ही उसने अपने ऊपर से चादर हटाई तो उसका लंड राड की तरह एकदम सीधा तना हुआ था।
मैंने भी जल्दी से अपने कपड़े उतारे और सीधा जाकर उसके लंड पर बैठ गई और जब तक उछलती रही जब तक कि हम दोनों खलास नहीं हो गये।
 
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खलास होने के बाद मैं रितेश के ऊपर लेट गई।
दो मिनट बाद रितेश का लंड मुरझा कर मेरी चूत से बाहर आ चुका था।
लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था कि मानो मेरी चूत की खुजली मिटी नहीं थी।

एक तो यह था कि आज मैं और रितेश मियाँ-बीवी थे और दूसरा कल रात जो हमारे और रितेश के बीच हुआ विशेषकर वो पेशाब वाली बात उसकी वजह से मुझे रितेश पर बहुत प्यार आ रहा था और मैंने मन ही मन ये प्रण कर लिया था कि जिस समय रितेश मेरे जिस छेद की डिमांड करेगा मैं खुशी-खुशी अपने उस छेद को उसके हवाले कर दूँगी।

मैं मन ही मन ये सोच रही थी और खुश हो रही थी जिसकी वजह से मेरी मुस्कुराहट बढ़ती जा रही थी।
तभी रितेश ने मुझे झकझोरा और मैं ख्याली दुनिया से बाहर आई तो रितेश पूछने लगा- कहाँ खो गई थी?

मैंने उसके कान को हल्के से काटते हुए कहा- जानू, मेरी चूत की खुजली अभी शान्त नहीं हुई है।
तो वो मेरे बालों में हाथों को फेरते हुए बोला- जानू मेरा लंड तुम्हारी चूत के लिये ही बना है, जब चाहो तुम इसको अपनी चूत में ले सकती हो। पर इस समय ये भी थक कर मुरझा गया है।

मेरी चूत का रस उसके लंड पर और उसके लंड का रस मेरे चूत के अन्दर था।
पर मैं इस सब को भुलाकर 69 की पोजिशन में आ गई और अपनी चूत को रितेश के मुँह में रख दिया और रितेश के लंड को चूसने लगी।
मैं अपने ही माल को चाट रही थी और रितेश अपने माल को चाट रहा था।

थोड़ी देर ऐसे करते ही रहने से रितेश का लंड खड़ा हो गया और फिर मैं उतर कर घोड़ी बन गई और रितेश को पीछे से चूत चोदने के लिये बोली।

हम दोनों बिना आवाज किये चुदाई का खेल खेल रहे थे और हम लोग काफी मस्ती में आ गये थे।

रितेश अपनी पूरी ताकत से मेरी ड्रिलिंग कर रहा था और मेरी चूची को कस कर दबा रहा था।
मैं सिसिया रही थी लेकिन मेरी कोशिश भी यही थी कि आवाज बाहर न जाये।

काफी देर तक धक्के मारने के बाद अन्त में रितेश ने अपना माल मेरे अन्दर छोड़ दिया।

चुदाई खत्म होते ही रितेश ने मेरी सलवार से मेरी चूत और अपने लंड को साफ किया और फिर मेरी सलवार को सूंघने लगा और उसके बाद सलवार को मेरी तरफ हवा में उड़ा दिया।

तब तक मैं कुर्ती पहन चुकी थी, मैंने अपनी उड़ती हुई सलवार को हवा में ही लपक लिया और सूंघने लगी।
क्या मस्त खुशबू मेरी और रितेश के प्यार की थी।

तभी बाहर से कुन्डी पीटने की आवाज आने लगी, मैंने जल्दी से सलवार पहनी, तब तक रितेश ने भी अपने कपड़े पहन लिये और हम दोनों ही बाहर आ गये।

सामने अमित ही खड़ा था।
एक बार उसने फिर द्विअर्थी अंदाज में बोला- अगर तुम दोनों ने कबड्डी का खेल खेल लिया हो तो चलो खाना खा लो।
मैं शर्मा के रसोई में आ गई, जबकि रितेश सफाई दे रहा था और बाकी लोग उसकी खींच रहे थे।

अमित की इस हरकत से मुझे काफी गुस्सा आ रहा था पर बोल मैं कुछ सकती नहीं थी।
एक तो मैं नई शादीशुदा थी तो मर्यादा भंग नहीं कर सकती थी दूसरा अमित इस घर का दमाद था और इधर तीन चार दिन से जो मैं देख रही थी, उसके रौब के आगे किसी की कुछ नहीं चलती थी।
 
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लेकिन मुझे अपने ऊपर विश्वास था कि एक दिन अमित को मैं सबक सिखा दूंगी।
पर सवाल ये उठता था कि अमित को सबक सिखाऊँगी कब… क्योंकि मेरा घर संयुक्त है और हर समय घर में कोई न कोई बना ही रहता है।

इसी सोच विचार में 10-12 दिन बीत गये।

ननदोई से अपनी चूत चुदाने का मन हो गया
चूंकि अमित पुलिस में है तो उसने हमारी शादी के समय से ही अपना ट्रांसफर लखनऊ में करवा लिया था और तभी से अमित और उसकी बीवी नमिता यानि की मेरी ननद जिसका भी जिस्म काफी तराशा हुआ था और वो मेरी कद काठी की ही थी, हमारे घर में ही रह रहे थे और अमित और नमिता का कमरा भी ऊपर ही था।

दोस्तो, दिल से कहूँ… मैं अमित की डील-डौल देखकर खुद ही चाहती थी कि मैं उसके नीचे लेट जाऊँ और अमित जैसा चाहे मुझे रौंदे और मैं उफ भी नहीं करती!
पर उस रात वाली हरकत जिसके कारण मुझे और रितेश को एक-दूसरे का मूत पीना पड़ा, रह रह कर मैं वही सोचती और फिर मेरा गुस्सा अमित पर और बढ़ता जाता।

पता ही नहीं चला कि कैसे सब छुट्टियाँ हँसी मजाक और छींटाकशी में बीत गई।

मैं और रितेश अपने कमरे में नंगे ही रहते थे और अगर किसी काम से हममे से किसी को अगर बाहर जाना भी होता तो रितेश लोअर और टी-शर्ट डाल लेता था और मैं जल्दी से साड़ी,पेटीकोट और ब्लाउज पहन लेती थी।

सोमवार का दिन आया जब हम दोनों को ऑफिस जाना हुआ तो घर के सभी सदस्यों ने मुझे और रितेश को तैयार होने का पहला अवसर दिया ताकि हम दोनों समय से ऑफिस पहुँच सकें।

पहले रितेश नहाने के लिये गया जबकि मैं, मेरी सास और ननद तीनों लोग जल्दी-जल्दी नाश्ते की तैयारी करने लगे।

रितेश नहाने के बाद नीचे तौलिया लपेट कर अपने कमरे में चला गया, जैसे ही वो निकला, मैं भी नहाने चली गई और नहा धोकर मैं भी जल्दी से अपने कमरे में आ गई।

रितेश तौलिये में ही बैठा हुआ था।
जैसे ही मैं अपने कमरे का दरवाजा बंद करके मुड़ी रितेश ने मुझे पीछे से कसकर पकड़ लिया और गाल को चूमते हुए बोला- आज शादी के बाद पहला दिन है ऑफिस जाने का… कुछ हो जाये?

मैं उससे झिड़कते हुई बोली- यार, आज काफी दिनों के बाद ऑफिस जा रहे हैं, कुछ तो शर्म करो।
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रितेश मेरी बात काटते हुए बोला- जान, पहली बात तो यह कि मैं तो बहुत बेशर्म हो चुका हूँ और दूसरी तुम्हारी खुमारी अभी तक मेरे दिमाग से उतरी नहीं है और ऑफिस में मैं सारा दिन तुम्हें और तुम्हारी चूत गांड के बारे में सोचता रहूँगा। मेरा लंड खड़ा रहेगा और फिर मेरा काम में मन भी नहीं लगेगा और शायद तुम्हें भी ऐसा ही कुछ लग रहा होगा तो मेरा लंड तुम्हारी चूत की गर्मी को शांत करने को तैयार है और तुम मेरे लंड की अकड़ निकाल दो।

इतना कहने के साथ ही रितेश ने अपनी तौलिया को उतार कर फेंक दिया और कुर्सी के ऊपर बैठ गया।
उसका लंड पहले से ही तना हुआ था, तने लंड को देखकर मैंने भी झटपट अपने घर वाले कपड़े उतारे और रितेश के लंड की सवारी करने लगी।

करीब चार-पाँच मिनट तक उछल कूद मचाने के बाद दोनों फ्री हुए, रितेश जल्दी जल्दी तैयार होकर नीचे चला गया और मैं आराम से तैयार होने लगी।
फिर नाश्ता वगैरह करने के बाद जिसको जिसको ऑफिस जाना था, वे सभी ऑफिस के लिये रवाना हो गये।
 
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इसी तरह तीन चार दिन बीत गये थे।
दिन में ऑफिस निकलने से पहले चुदाई का एक राउन्ड चलता था और फिर रात को।

चूँकि नई-नई शादी का माहौल था तो खूब मजा भी आ रहा था।

लेकिन ऑफिस के चौथे दिन ही रितेश को ऑफिस से फरमान आ गया कि उसे देहरादून के ऑफिस में जाना है और एक नये प्रोजेक्ट पर काम करना है और इस कारण उसे हफ्ते भर वहां रहना पड़ सकता है।

घर के सभी लोग मुझे भी रितेश के साथ जाने के लिये कहने लगे लेकिन मेरी सभी छुट्टियाँ खत्म हो चुकी थी और छुट्टी नहीं मिल रही थी तो रितेश को अकेले ही देहरादून जाना था।

मैं उसके जाने के तैयारी करने लगी।

तभी रितेश मेरे पास आकर बैठ गया और बोला- सॉरी यार… मुझे तुम्हें अकेले छोड़कर जाना पड़ेगा।

कहानी जारी रहेगी।
 
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