Adultery मम्मी का शौहर

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अगली शाम राघव कार से घर वापस आ रहे थे और साथ में फैमली ड्राइवर अब्दुल भी था राघव के साथ।

अब्दुल - साहब बहुत टेंशन में हो क्या बात है आप बहुत परेशान लग रहे हो।

राघव- हां अब्दुल तुमसे क्या छुपाना तुम तो घर के क्या हालत है जानते ही हो,
परिवार की जान पर आ गई है अब तो मुझे समझ नहीं रहा क्या करु

अब्दुल- साहब आप तो इतने बड़े बिजनेसमैन हो आप सब ठीक कर देंगे
राघव- अरे अब्दुल सब खत्म हो चुका है एक रास्ता है तो वो नामुमकिन ही है


अब्दुल- कौन सा रास्ता साहब
राघव- तुमसे क्या छुपाना अब्दुल, मेरे ससुर को तो तुम जानते ही हो मेरे से नफ़रत करते थें।


अब्दुल- जी साहब
राघव- हम्म तो उसकी वजह से उन्होंने वसीयत में ऐसी शर्त रखी, जिसे मैं और तुम्हारी मालकिन सुनीता भी पूरी नहीं कर सकती, लेकिन अगर शर्त पूरी हो गई तो शर्त की प्रॉपर्टी मिल जाती है, और सब सॉल्व हो जाता है।

अब्दुल- कैसी शर्त


(
सुनीता के पिता की वसीयत )

अगर सुनीता को उनकी प्रोपर्टी में तभी कुछ मिलेगा जब सुनीता इन शर्तों को पूरा करें।

१. सुनीता को राघव से तलाक लेना होगा।
२. सुनीता को अपनी उम्र से आधे उम्र के लड़के से शादी करनी होगी.
३. सुनीता जिस लड़के से शादी करेंगी वह गरीब होना चाहिए।
४. यह शादी कम से कम ३ साल के लिए होगी।
५. अभि को भी सुनिता के साथ ही रहना होगा।
६. सुनीता जिस ग़रीब लड़के से शादी करेंगी शादी के साथ उसको १०० करोड़ रुपए दहैज में मिलेगा और ३ साल बाद १०० करोड़।

अगर सुनीता ये शादी करेंगी तो शादी के बाद आधी प्रॉपर्टी 1000 करोड़ सुनीता और अभि के नाम शिफ्ट होगी।


बाकी के १००० करोड़ 3 साल बाद राघव के नाम।


अब्दुल; तो साहब आप ये शर्त पुरी कर दो।

राघव; क्या बोल रहे हो अब्दुल सुनीता की शादी किसी ऐसे से जो अभि की उम्र का हो और साथ में गरीब भी हो।

सुनीता भी कभी नहीं मानेगी,

अब्दुल- अरे साहब तो कोई भरोसेमंद व्यक्ति को ढूंढ़ो जो सिर्फ नाम के शादी करे और 3 साल बाद तलाक ,

उसे अच्छा पैसा भी मिल रहें हैं कुछ आप उसे अपनी तरफ से भी दे देना।

इसके सब हल होगा।
 
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राघव; हम्म अब्दुल बात तो सही कह रहे हो इससे सब हल भी हो जाएगा,
कुछ गलत भी नहीं पर ऐसा भरोसेमंद व्यक्ति मिलेगा कहा कोई भला अपने बच्चों की लाइफ क्यों खराब करेगा।

अब्दुल- हम्म ये बात तो है मगर वो मिल भी गया तो मालकिन थोड़ी तैयार होंगी

राघव; हम्म ये बात भी है मगर बच्चों के लिए शायद मान जाए 3 साल की बात है और नाम की शादी।


अब्दुल- हम्म ये बात भी पर मिलेगी कहां ऐसा भरोसेमंद व्यक्ति।


राघव; अब्दुल मेरे दिमाग में एक लड़का है भरोसेमंद भी है और मेरे सबसे भरोसे का आदमी का बेटा भी,

अब्दुल- कौन साहब

राघव; तुम्हारा बेटे असलम

अब्दुल- क्या बोल रहे हैं साहब

असलम अभि बेटा की उम्र का है, और अभि बेटा और वो सबसे अच्छा दोस्त है।


दोनों में भाई की तरह प्यार है, और असलम भी मालकिन को बचपन से माँ ही मानता है ।

मालकिन भी असलम से कैसे


राघव; तभी तो सैफ है कोई प्रॉब्लम नहीं है और भरोसेमंद भी है

ये एक ही रास्ता है तुम बोलो तैयार हो तुम,आज मुझे तुम्हारी जरूरत है अब्दुल,

अब्दुल- साहब पर कैसे बात करूं,

आप हिंदू हो, हम मुस्लिम कैसे आपके रिश्तेदार ,परिवार सब और मेरी बीवी सलमा भी असलम की शादी कैसे,


राघव; अरे अब्दुल जब मुश्किल नहीं होगी तो कोई आएगा थोड़ी, बस 3 साल की बात है,और ये शादी कोई असली शादी भी तो नहीं है।

अब बोलो मान जाओ अब्दुल

अब्दुल- ठीक है साहब मैं तैयार हूं मगर असलम की अम्मी और असलम को मुझे पूछना होगा।

राघव; ठीक है मैं भी घर पर जा कर सब से बात करके मैं तुम्हे कॉल करूंगा।

तुम भी बात कर लो अपनी बीवी से


राघव आ जाते हैं, अब्दुल अपने घर चला जाता है।
 
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राघव घर आते ही पहले अपनी मां सुमित्रा देवी से बात करता हैं


राघव - मां सब रास्ते खत्म हो गए हैं बस एक ही रास्ता बचा है वो है सुनीता के पापा की वसीयत।


सुमित्रा देवी- क्या बोल रहा है तू राघव जानता है वो नामुमकिन है सुनीता की शादी किसी और से हम सब ये कैसे सोच सकते है।

बहू एक संस्कारी औरत है २ जवान बच्चे हैं।

राघव - मां कोई ओर रास्ता नहीं है।

6.जेपीजी


सुमित्रा देवी - ठीक पर सुनीता मानेंगी क्या और तेरे बच्चे ।

ऐसे भरोसेमंद व्यक्ति और परिवार मिलेगा इतना कम समय में,

राघव - मिल गया है मां
सुमित्रा देवी; कौन

राघव; अपने ड्राइवर अब्दुल का बेटा असलम

दादी- क्या असलम क्या बोल रहा है तू वो सुनीता को मां जैसा मानता है,
सुनीता भी असलम को अपने बेटे जैसा।

अभि और वो अच्छी दोस्त है और एक बात की वो मुस्लिम है।
ये नहीं हो सकता है सब मान भी लू तो वो मुस्लिम कैसे,


राघव - मां तभी तो सुरक्षित है क्योंकि वो सुनीता की इज्जत करता है अभि का दोस्त भी है तो उसका घर अभि रह भी सकता है और मां मुस्लिम है तो क्या हुआ है तो इंसान ही ओर भरोसेमंद भी है।

3 साल की ही तो बात है

सुमित्रा देवी - वो मुस्लिम है सुनीता कैसे वहां 3 साल रह पायेगी, और क्या सुनीता इसके लिए तैयार होगी।

राघव; मां यही रास्ता है मान जाओ देखो 3 साल की बात है फिर सब नॉर्मल हो जायेगा।
सुमित्रा देवी - ठीक है पहले सुनीता से बात कर लेते हैं
राघव; जी मां

फिर राघव कमरे में चला गया गए और अपनी धर्म पत्नी सुनीता से बात करने लगा।

राघव - सुनीता देखो मैं जो कह रहा हूं शांति से सुनना गुस्सा मत करना और सोचना।


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सुनीता- जी क्या बोलिए

राघव- सुनीता सब रास्ते खत्म हो गए हैं अब एक ही रास्ता बचा है तुम्हारे पापा की वसीयतनामा।

सुनीता- क्या बोल रहे हो आप जानते हो ना वो नामुमकिन है

राघव- पहले सुनो तो देखो मैंने सोचा है किसी भरोसे से शादी करेंगे बस 3 साल की बात है फिर सब नॉर्मल हो जाएगा।
और ये शादी भी बस नाम की होगी,
ये बस शादी होगी जिसमें कुछ भी नहीं होगा।


सुनीता- मैं ये नहीं कर सकती रिश्ते-नाते निभाना होता है शादी मजाक नहीं है।

मैं आप से प्यार करती हूं
मेरे 2 बच्चे है समझें।

राघव- अरे सुनीता मैं भी बहुत प्यार करती हूं पर मजबूर हूं ।

तुम रिश्ते-नाते निभाना है बस,
वो सब तो नहीं करना होगा जो एक पति-पत्नी करते हैं,
शारीरिक संबंध।

हम भरोसेमंद से करेंगे और अभि भी तो होगा वहां मैं बच्चों की जान के लिए ही तो कर रहा हूं,

सुनीता- (रोते हुए) हे भगवान ये मैं कैसे कर सकती हो आप सोचिये,

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राघव- मैं जानता हूं सुनीता पर कोई रास्ता नहीं है,

इसलिए मैं मर रहा था और फिर मेरे बच्चे क्या सोचेंगे।
इसलिए करना पड़ रहा है,

सुनीता (रोते हुए अपने बच्चों की जान के लिए) ठीक है पर ऐसा भरोसेमंद कौन व्यक्ति होगा जो अपने बच्चों की लाइफ खराब करेगा,

राघव- वो भरोसेमंद व्यक्ति मुझे मिल गया है,
हमारे ड्राइवर अब्दुल का बेटा असलम

सुनीता- चोंकते हुए,

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क्या हमारे ड्राइवर अब्दुल का बेटा असलम, आपको पता है आप क्या कह रहे हैं

असलम मेरे बेटे जैसा अभि का बेस्ट फ्रेंड है,
हर बात शेयर करते हैं, दूसरी बात वो मुस्लिम है मैं और अभि कैसे 3 साल मुस्लिम घर में रहेंगे,व


राघव- अरे असलम हमारा है तो सेफ है, कोई दिक्कत नहीं होगी समझी, क्योंकि असलम भी अपना ही बच्चा है,

मुस्लिम है तो क्या हुआ असलम तुम्हारा मां जैसा सम्मान करता है, तुम खुद उससे बेटा जैसा समझी कभी मुस्लिम सोची हो

सुनीता- हां पर कैसे मुस्लिम घर में और अभि और असलम भी नहीं मानेंगे।

राघव- समझने पर मान जाएंगे जब सिचुएशन पता चलेगी।
बस 3 साल की बात है मैंने मां से बात कर ली।

सुनीता- ठीक है (धीमी आवाज में) पर आपके बिना उस घर के बिना कैसे रहूंगी।
 
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राघव- मैं भी सुनीता पर ये हमारी तपस्या है 3 साल की जुदाई तुम फिक्र मत करो सब ठीक होगा ।

हमें ये सब झलेना है बच्चों के लिए


फिर सुनीता मान जाती हैं दोनों बाहर आ जाते हैं राघव सीधे अपनी मां सुमित्रा देवी के पास जाता है,

सुमित्रा देवी, राघव सुनीता, रतन और राधा सुमित्रा देवी और राघव इस पर सब से बात करते हैं,

रतन- पर मां भाभी की शादी अब्दुल के बेटे से क्यों हम हिंदू हैं वो मुस्लिम

सुमित्रा देवी- हम्म, इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है,

रतन; लेकिन मां भाई बोला है बस 3 साल की बात है मानी पड़ रहा है मजबूरी है।

राधा - (मन ही मन अच्छा हुआ अब इस घर में मेरा राज होगा भाभी बहुत बोलती थी मुझे अब मुस्लिम की बहू बनेगी)

राघव; रतन अब असलम से सुनीता की शादी के अलावा और कोई रास्ता नहीं है, इस शादी से सुनीता के पापा के वसीयतनामा की शर्त पूरी हो जाएगी,

रतन; (कुछ सोचते हुए) हम्म भाई साहब सही कहते हैं कोई रास्ता नहीं है तभी तो कर रहे हैं धर्म क्या है बस शादी है 3 साल की बात है।


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राधा - ठीक है अगर यही है तो

(यहां अब्दुल अपने घर में अपनी बीवी सलमा से बात करता है)

अब्दुल - सलमा साहब को हमारी ज़रूरत है (वो सलमा को वसीयत के बारे में बताता है)
इसीलिए सहाब मेम साहब की शादी हमारे असलम से कराना चहाते है।

सलमा - अरे ये कैसे हो सकता है असलम छोटा है अभि बेटे का दोस्त है,
हम मुसलमान हैं वो हिंदू कैसे होगा ये समझ कर भी तो देखो ना,

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अब्दुल- सलमा साहब के कितने अहसान हैं हम पर असलम इतना बड़ा स्कूल का छात्रा है,
अभि बेटे के साथ साहब फ्री देते हैं हमें समान देते हैं मुस्लिम होने पर भी घर में अपने समझते हैं तो हम नहीं कर सकते बस 3 साल की बात


सलमा - मैं समझी हूं उनके अहसान है, पर असलम बेटा है हमारा मजहब भी है अगर अगर कुछ हो गया तो तो बाद में कौन असलम को लड़की देगा ।

अब्दुल; सलाम में समझता हूं ३ साल की ही तो बात है हम कोई ना कोई रास्ता निकलेगा,

सलमा; हम्म मैं समझती हूं , मैं तैयार हूं पर कुछ मेरी भी शर्त होंगी

अब्दुल- क्या बोलो

सलमा- शादी मुस्लिम तरीके से होगी,
3 साल तक सब के सामने मालकिन को घर के नियम कानून मानें होंगे,

अब्दुल- ठीक है मैं बात करुंगा
सलमा भी मान जाती है,
तभी अब्दुल के फोन पर राघव का फ़ोन आता है


राघव- हौलो अब्दुल तुमने सलमा से बात कर ली

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अब्दुल- जी साहब वो तैयार है बस कुछ बातें है जो आपको बतानी है, और साहब आपने अपने घर में बात कर ली,


राघव; हम्म, हां कर ली सब मान गए हैं कल तुम सलमा बीबी और असलम को लेकर आ जाओ मां ने शादी की बात करने बुलाया है।

अब्दुल जी साहब हम आ जाएंगे


फिर दोनो फोन रख देते है।
 
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अगले दिन सुबह ग्यारह बजे अब्दुल सलमा, असलम के साथ राघव के घर आ गए,

अभि और असलम को नहीं पता था।


( अभि की जबानी )
असलम पापा दादी को प्रणाम करके मेरे कमरे में आ गया

अभि - अबे तू आया इतनी सुबह क्या बात है


असलम- अरे मैं अकेला नहीं अम्मी अब्बू भी आए

अभि - अच्छा क्यों क्या बात है तूने कुछ किया क्या

असलम -नही, पर तूम क्या कर रहे थे।

अभि - अरे कुछ नहीं बैठा हूं लैपटॉप में कुछ वीडियो देख रहा हूं

असलम - अच्छा कौन सी वो वाली

अभि - तू भी ना हर वक्त वही लगा रहता है

असलम - हां तू क्यों देखेगा ।

तुझे तो वो अर्बन पसंद है ना क्लास की, बोलता क्यों नहीं उस से

अभि - अरे क्या बोलू एक तो मुस्लिम ऊपर से उसका भाई को पता चला तो लफड़ा
असलम- किसी को कुछ पता नहीं होगा बस तुम मज़े लो, और मैं हूं ना तेरे लिए कोई उस मोहल्ले का बोल सकता है क्या

अभि- वो बात नहीं है लेकिन फ्री का इश्यू हो जाएगा पता, ना पिछली बार में रुबीना के चक्कर में तेरे मोहल्ले के शहज़ाद को पीट दिया था,

तो साला पूरा समाज ले आया था वो तो पापा की पहचान थी पुलिस में तो सब सॉल्व हो गया

असलम- पर टेंशन ना ले जो भी है देख लेंगे बात तो कर उससे

अभि- हम्म देखता हूं तू किसी को पसंद करता है।

असलम- तू तो जनता है मुझे बड़ी उम्र की औरतें पसंद है तभी मिल्फ वीडियो देखता हूं।

यार सच में तबियत से देती है, खुदा कसम अगर ऐसी औरत मिल जाए तो मजा जाए।


क्या बदन होता ही एकदम भरा एक बार चढ़ जाओ तो गद्दे की जरूरत नहीं होती

अभि - हम्म जनता हूं पर फिर भी यार कोई लड़की पसंद कर समझा

असलम- देखा है पर मिल्फ़ की बात अलग है तू जनता है

अभि - हम्म ठीक है पर रिस्पेक्ट करना चाहिए ना उनकी

असलम- अरे रिस्पेक्ट अपनी जगह सबकी करता हूं पर दिल को भी अच्छी लगती है।


रिस्पेक्ट करने के लिए मेरी अम्मी, आंटी अपने घर के लोगों की पूरी करता हूं

अभि- हम्म चल कोई गेम खेलते हैं

फिर दोनो गेम खेलने लगते हैं


(बाहर सब )


पापा- आओ अब्दुल आओ बैठो ।

दादी-हां अब्दुल बैठो सलमा तुम भी बैठो

अब्दुल- साहब आपके बराबर कैसे

दादी- अरे अब्दुल अब हमारे बराबर ही हो, बैठो


अब्दुल- ठीक है मांजी

दादी- राधा बहू जाओ नाश्ता, लाओ

चाची- जी मांजी (चाची अब इन नोकर के लिए भी नाश्ता लाओ)


दादी- अब्दुल तुम्हें तो सब पता है कि क्या बात है तो शादी तो अब होना ही है।

ये शादी वसीयत के लिए है और शर्त तो पता ही है सिर्फ 3 साल के लिए

अब्दुल- हां मांजी साहब ने सब बता दिया।

दादी- तो शादी की तारीख 3 दिन बाद निकली है।

तो तुम्हें कोई ऐतराज तो नहीं है।


कोई बात तो बता दो, शादी अच्छे से होगी,
क्योंकि सुनीता के घरवाले बहुत बड़े लोग हैं इसी तरह से तो शादी की फ़िक्र मत करो, बस शादी अच्छे से अमीर तरीके से ठीक ही है।

अब्दुल- जी मांजी जैसा आप कहे।

सलमा- मांजी हम आपके बोले बिना ही सब कुछ समझ गये, हम सब बात समझ रहे हैं आप हमारे मालिक आपसे ही हमारा घर चलता है
पर बात ये है कि ये शादी जो मुस्लिम तरीके से होगी, मतलब निकाह होगा।

दादी- क्या बोल रहे हो तुम अब्दुल
अब्दुल- सलमा क्या बोल रही हो।

सलमा- मांजी माफ करना हम मजबूर ही अगर हमने उस तरीके से नहीं किया तो हमें समाज से निकाल देंगे, हमारे बेटे की दोबारा शादी नहीं होगी इसलिए आप भी समझिए बाकी सब आपके हिसाब से होगा।

दादी- राघव क्या बोलता है

पापा- ठीक है कोई बात नहीं वसीयत में शर्त के लिए तो शादी हो या निकाह

दादी- ठीक है तो अभी सगाई कर देते हैं, अंगूठी बदल लेते हैं

अब्दुल- जैसा आप सही समझते दादी

दादी- तुम दोनो ने अपने बेटे से बात कर ली है ना
पापा- अभी कर लेता हूं

अब्दुल- मैं भी कर लेता हूं

पापा- अब्दुल तुम दोनो अभि के कमरे में जाकर असलम से बात कर लो।
अभि को बोलना कि मैंने अपने कमरे में बुलाया है
 
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अब्दुल- हां साहब


अब्दुल और सलमा अभि के कमरे में आते हैं तो अभि ओर असलम दोनों जल्दी से लैपटॉप बंद करते हैं।

अभि - अरे अंकल आंटी आप यहां क्या बात हैं।

अब्दुल- बेटा वो हमें असलम से कुछ बात करनी है तुम्हे भी साहब ने अपने कमरे में बुलाया है

अभि - ठीक है अंकल आप लोग कर लो।

अभि अपने मम्मी पापा के कमरे में चला गया।

अभि - पापा आपने बुलाया मुझे

पापा- हां अभी एक जरूरी बात करनी है (फिर पापा सब शुरू से समझते हैं बताते हैं क्या होना चाहिए)

अभि - क्या पापा ये क्या बोल रहे हैं आप ये नहीं हो सकते मम्मी की शादी कैसे हो सकतीं हैं वो भी मेरे दोस्त से,

पापा- बेटा सब समझ लिया है मज़बूरी है हमारी यही आखिरी रास्ता है ।

सिर्फ वसीयत के लिए बस ३ साल की बात हैं तू भी रहेगा ना।


अभि पर पापा वो मेरा सबसे अच्छा दोस्त है वो बहुत गरीब है।

मम्मी वहां कैसे रहेंगी।

मेरे सब दोस्त लोग मज़ाक बनाएंगे,
मम्मी की भी उनके समाज में पहचान है।

पापा- बेटा क्या करें मज़बूरी है अब ३ साल तो निभाना होगा, और सच्चाई तो हम लोग जानते है ना कि बस वसीयत के लिए यह सब।

अभि पर मुझे सही नहीं लग रहा है मम्मी आप ही कुछ कहो।

मम्मी- बेटा मैं भी मज़बूरी हूं मानतीं हूं कि बस वसीयत के लिए है, हम मजबूर हैं,

असलम तो मेरे बच्चे जैसे है।

अभि; (मन ही मन )मैं अब कैसे समझाऊं मम्मी जिसे आप बच्चा कह रही हैं,
वो कैसा है,
देखना वो बच्चा आपको अपने बच्चे की मां बना देगा,

अभि - ठीक है पर मुझे पता है देखना असलम नहीं मानेगा।

पापा- अब्दुल माना लेगा चलो बाहर सगाई करनी है सुनीता तूम भी चलों।

सब दुखी होकर बाहर आ जाते हैं,

मम्मी भी दुखी थी वो जानती थी चाहे शादी वसीयत के लिए हों, मगर शादी तो हो रही है तो रिश्ते निभाने होंगे घर से पापा से 3 साल के लिए रिश्ता टूट रहा है

(असलम को अब्दुल अंकल मेरे कमरे में सब बताते हैं)

असलम- क्या अब्बू आप क्या बोल रहे हैं सुनीता आंटी से निकाह कैसे वो अम्मी की तरह है मेरे लिए, और अभी की मम्मी है।

अब्दुल- बेटा मजबूर है साहब पर मुश्किल यही रास्ता निकला है 3 साल की बात है,

असलम- हम्म ये तो है अभी मेरा सबसे अच्छा दोस्त है, आंटी को मैं अम्मी की तरह ही माना हूं,

असलम ( मन ही मन) ये बात भी है कि आंटी बहुत खूबसूरत है भरी हुई बिलकुल जैसा सोचा था।
3 साल रिश्ते में बेगम होगी, मेरी क्या हालत होगी जब मेरे सपनों की हूर मिल रही है, क्या पता कुछ हो जाए, अभि मेरा दोस्त है ये भी गलत है दोस्ती अपनी जगह क्या हम हमेशा दोस्त रहेगा)

असलम- अबू क्या आंटी मान गई है।

अब्दुल- हम्म बेटा

असलम- ठीक ही जैसा आप बोले।
फिर असलम अब्दुल और सलमा साथ बाहर आ जाता है।
 
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