Fantasy प्यासी अदाएं

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सुबह के आठ बज रहे थे। परवेज़ ने जल्दी से अपना पायजामा पहना और बाहर निकल गया। शबाना अभी बिस्तर पर ही लेटी हुई थी, बिल्कुल नंगी। उसकी चूत पर अब भी पठान का पानी नज़र आ रहा था, और टाँगें और जाँघें फैली हुई थी। आज फिर पठान उसे प्यासा छोड़ कर चला गया था।

"हरामज़ादा छक्का!" पठान को गाली देते हुए शबाना ने अपनी चूत में उंगली डाली और जोर-जोर से अंदर बाहर करने लगी। फिर एक भारी सिसकरी के साथ वो शिथिल पड़ने लगी। उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। लेकिन चूत में अब भी आग लगी हुई थी। लण्ड की प्यासी चूत को उंगली से शाँत करना मुश्किल था।

नहाने के बाद अपना जिस्म पोंछ कर वो बाथरूम से बाहर निकाली और नंगी ही आईने के सामने खड़ी हो गयी। आईने में अपने जिस्म को देखकर वो मुस्कुराने लगी। उसे खुद अपनी जवानी से जलन हो रही थी। शानदार गुलाबी निप्पल, भरे हुए मम्मे, पतली कमर, क्लीन शेव चूत के गुलाबी होंठ… जैसे रास्ता बता रहे हों - जन्नत का।

उसने एक ठंडी आह भरी, अपनी चूत को थपथपाया और थाँग पैंटी पहन ली। फिर अपने गदराये हुए एक दम गोल और कसे हुए मम्मों को ब्रा में ठूँस कर उसने हुक बंद कर ली और अपने उरोज़ों को ठीक से सेट किया। वो तो जैसे उछल कर ब्रा से बाहर आ रहे थे। ब्रा का हुक बंद करने के बाद उसने अलमारी खोली और सलवार कमीज़ निकाली, लेकिन फिर कुछ सोचकर उसने कपड़े वापस अलमारी में रख दिये और बुरक़ा निकाल लिया।

फिर उसने ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठ कर थोड़ा मेक-अप किया और इंपोर्टेड परफ्यूम लगाया। उसके बाद उसने ऊँची पेन्सिल ऐड़ी के सैंडल पहने। अब वो बिल्कुल तैयार थी। सिर्फ़ एक ही फ़र्क था, आज उसने बुऱके में सिर्फ़ पैंटी और ब्रा पहनी थी। फिर अपना छोटा सा 'क्लच पर्स' जो कि मुठ्ठी में आ सके और जिसमें कुछ रुपये और घर की चाबी वगैरह रख सके, लेकर निकल गयी। अब वो बस स्टॉप पर आकर बस का इंतज़ार करने लगी। उसे पता था इस वक्त बस में भीड़ होगी और उसे बैठने की तो क्या, खड़े होने की भी जगह नहीं मिलेगी। यही तो मक्सद था उसका। शबाना सर से पैर तक बुरक़े में ढकी हुई थी। सिर्फ़ उसकी आँखें और ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल में उसके गोरे-गोरे पैर नज़र आ रहे थे। किसी के भी उसे पहचान पाने कि कोई गुंजाइश नहीं थी।

जैसे ही बस आयी, वो धक्का मुक्की करके चढ़ गयी। किसी तरह टिकट ली और बीच में पहुँच गयी और इंतज़ार करने लगी - किसी मर्द का जो उसे छुए, उसके प्यासे जिस्म के साथ छेड़छाड़ करे और उसे राहत पहुँचाये। उसे ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा। उसकी जाँघ पर कुछ गरम-गरम महसूस हुआ। वो समझ गयी कि ये लण्ड है। सोचते ही उसकी धड़कनें तेज़ हो गयी और उसने खुद को थोड़ा एडजस्ट किया। अब वो लण्ड बिल्कुल उसकी गाँड में सेट हो चुका था। उसने धीरे से अपनी गाँड को पीछे की तरफ़ दबाया। उसके पीछे खड़ा था 'प्रताप सिंघ', जो बस में ऐसे ही मौकों की तालाश में रहता था। प्रताप समझ गया कि लाइन साफ है। उसने अपना हाथ नीचे ले जाकर अपने लण्ड को सीधा करके शबाना की गाँड पर फ़िट कर दिया। शबाना ने ऊँची ऐड़ी की सैंडल पहनी थी जिससे उसकी गाँड ठीक प्रताप के लण्ड के लेवल पर थी। अब प्रताप ने अपना हाथ शबाना की गाँड पर रखा और दबाने लगा।

हाथ लगते ही प्रताप चौंक गया। वो समझ गया कि बुरक़े के नीचे सिर्फ़ पैंटी है। उसने धीरे-धीरे शबाना की मुलायम लेकिन ठोस और गोल-गोल उठी हुई गाँड की मालिश करना शुरू कर दिया। अब शबाना एक दम गरम होने लगी थी। प्रताप ने अपना हाथ अब ऊपर किया और शबाना की कमर पर से होता हुआ उसका हाथ उसकी बगल में पहुँच गया। वो शबाना की हल्की हल्की मालिश कर रहा था। उसका हाथ शबाना की कमर और गाँड को लगातार दबा रहा था और नीचे प्रताप का लण्ड शबाना की गाँड की दरार में धंसा हुआ धक्के लगा रहा था। फिर प्रताप ने हाथ नीचे लिया और उसके बुरक़े को पीछे से उठाने लगा। शबाना ने कोई ऐतराज़ नहीं किया और अब प्रताप का हाथ शबाना की पैंटी पर था। वो उसकी जाँघों और गाँड को अपने हाथों से आटे की तरह गूँथ रहा था। थाँग पैंटी की वजह से गाँड तो बिल्कुल नंगी ही थी। फिर प्रताप ने शबाना की दोनों जाँघों के बीच हाथ डाला और उंगलियों से दबाया। शबाना समझ गयी और उसने अपनी टाँगें फैला दीं। अब प्रताप ने बड़े आराम से अपनी उंगलियाँ शबाना की चूत पर रखी और उसे पैंटी के ऊपर से सहलाने लगा।

शबाना मस्त हो चुकी थी और उसकी साँसें तेज़ चलने लगी थीं। उसने नज़रें उठायीं और इत्मीनान किया कि उनपर किसी की नज़र तो नहीं। यकीन होने के बाद उसने अपनी आँखें बंद की और मज़े लेने लगी। अब प्रताप की उंगलियाँ चूत के ऊपर से थाँग पैंटी की पट्टी को एक तरफ खिसका कर चूत पर चली गयी थीं। शबाना कि भीगी हुई चूत पर प्रताप की उंगलियाँ जैसे कहर बरपा रही थीं। ऊपर नीचे, अंदर-बाहर - शबाना की चूत जैसे तार-तार हो रही थी और प्रताप की उंगलियाँ खेत में चल रहे हल की तरह उसकी लम्बाई, चौड़ाई और गहरायी नाप रही थी। प्रताप का पूरा हाथ शबाना की चूत के पानी से भीग चुका था। फिर उसने अपनी दो उंगलियाँ एक साथ चूत में घुसायी और दो-तीन ज़ोर के झटके दिये। शबाना ऊपर से नीचे तक हिल गयी और उसके पैर उखड़ गये। एक दम से निढाल होकर वो प्रताप पर गिर पड़ी। वो झड़ चुकी थी। आज तक इतना शानदार स्खलन नहीं हुआ था उसका। उसने अपना हाथ पीछे किया और प्रताप के लण्ड को पकड़ लिया। इतने में झटके के साथ बस रुकी और बहुत से लोग उतार गये। बस तकरीबन खाली हो गयी। शबाना ने अपना बुरक़ा झट से नीचे किया और सीधी नीचे उतार गयी। आज उसे भरपूर मज़ा मिला था। आज तक तो रोज़ ही लोग सिर्फ़ पीछे से लण्ड रगड़ कर छोड़ देते थे। आज जो हुआ वो पहले कभी नहीं हुआ था। आप ठीक समझे - शबाना यही करके आज तक मज़े लूट रही थी क्योंकि पठान उसे कभी खुश नहीं कर पाया था।

उसने नीचे उतरकर सड़क क्रॉस की और रिक्शा पकड़ ली। ऐसा मज़ा ज़िंदगी में पहली बार आया था। वो बार-बार अपना हाथ देख रही थी और उसकी मुठ्ठी बनाकर प्रताप के लण्ड के बारे में सोच रही थी। उसने घर से थोड़ी दूर ही रिक्शा छोड़ दिया ताकि किसी को पता ना चले कि वो रिक्शा से आयी है। वो ऊँची पेन्सिल हील की सैंडल में मटकते हुए पैदल चलकर अपने घर पहुँची और ताला खोलकर अंदर चली गयी।

अभी उसने दरवाज़ा बंद किया ही था कि घंटी की आवाज़ सुनकर उसने फिर दरवाज़ा खोला। सामने प्रताप खड़ा था। वो समझ गयी कि प्रताप उसका पीछा कर रहा था। इस डर से कि कोई और ना देख ले उसने प्रताप का हाथ पकड़ कर उसे अंदर खींच लिया। दरवाज़ा बंद करके उसने प्रताप की तरफ़ देखा। वो हैरान थी प्रताप की इस हरकत से।

"क्यों आये हो यहाँ?"

"ये तो तुम अच्छी तरह जानती हो!"

"देखो कोई आ जायेगा!"

"कोई आने वाला होता तो तुम इस तरह बस में मज़े लेने के लिये नहीं घूम रही होती!"

"मैं तुम्हें जानती भी नहीं हूँ…!"

"मेरा नाम प्रताप है! अपना नाम तो बताओ!"

"मेरा नाम शबाना है, अब तुम जाओ यहाँ से…"

बातें करते-करते प्रताप बुरक़े के ऊपर से शबाना के जिस्म पर हाथ फिरा रहा था। प्रताप के हाथ उसके मम्मों से लेकर उसकी कमर और पेट और जाँघों को सहला रहे थे। शबाना बार-बार उसका हाथ झटक रही थी और प्रताप बार-बार उन्हें फिर शबाना के जिस्म पर रख रहा था। लेकिन प्रताप समझ गया था कि शबाना की 'ना' में 'हाँ' है।

अब प्रताप ने शबाना को अपनी बाँहों भर लिया और बुरक़े से झाँकती आँखों पर चुंबन जड़ दिया। शबाना की आँखें बंद हो गयी और उसके हाथ अपने आप प्रताप के कंधों पर पहुँच गये। प्रताप ने उसके नकाब को ऐसे हटाया जैसे कोई घूँघट उठा रहा हो। शबाना का चेहरा देखकर प्रताप को अपनी किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा था। ग़ज़ब की खूबसूरत थी शबाना - गुलाबी रंग के पतले होंठ, बड़ी आँखें, गोरा चिट्टा रंग और होंठों के ठीक नीचे दांयी तरफ़ एक छोटा सा तिल। प्रताप ने अब धीरे-धीरे उसके गालों को चूमना और चाटना शुरू कर दिया। शबाना ने आँखें बंद कर लीं और प्रताप उसे चूमे जा रहा था। उसके गालों को चाट रहा था, उसके होंठों को चूस रहा था। अब शबाना भी बाकायदा साथ दे रही थी और उसकी जीभ प्रताप की जीभ से कुश्ती लड़ रही थी। प्रताप ने हाथ नीचे किया और उसके बुरक़े को उठा दिया। शबाना ने अपनी दोनों बाँहें ऊफर कर दीं और प्रताप ने बुरक़ा उतार कर फेंक दिया। प्रताप शबाना को देखता रह गया। इतना शानदार जिस्म जैसे किसी ने बहुत ही फुर्सत में तराश कर बनाया हो। काले रंग की छोटी सी जालीदार ब्रा और थाँग पैंटी और काले ही रंग के ऊँची पेन्सिल हील के सैंडलों में शबाना जन्नत की हूर से कम नहीं लग रही थी।

"दरवाज़े पर ही करना है सब कुछ?" शबाना ने कहा तो प्रताप मुस्कुरा दिया और उसने शबाना को अपनी बाँहों में उठा लिया और गोद में लेकर बेडरूम की तरफ़ चल पड़ा। उसने शबाना को बेड के पास ले जाकर गोद से उतार दिया और बाँहों में भर लिया। शबाना की ब्रा खोलते ही जैसे दो परिंदे पिंजरे से छूट कर उड़े हों। बड़े-बड़े मम्मे और उनपर छोटे-छोटे गुलाबी चुचक और तने हुए निप्पल। प्रताप तो देखता ही रह गया... जैसे कि हर कपड़ा उतारने के बाद कोई खज़ाना सामने आ रहा था। प्रताप ने अपना मुँह नीचे लिया और शबाना की चूचियों को चूसता चला गया और चूसते हुए ही उसने शबाना को बिस्तर पर लिटा दिया। शबाना के मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी और वो प्रताप के बालों में हाथ फिरा रही थी और अपनी चूचियाँ उसके मुँह में ढकेल रही थी। शबाना मस्त हो चुकी थी। अब प्रताप उसके पेट को चूस रहा था और प्रताप का हाथ शबाना की पैंटी पर से उसकी चूत की मालिश कर रहा था। शबाना बेहद मस्त हो चुकी थी और लण्ड के लिये उसकी चूत की प्यास उसे मदहोश कर रही थी। उसकी सिसकारियाँ बंद होने का नाम नहीं ले रही थी और टाँगें अपने आप फैलकर लण्ड को चूत में घुसने का निमंत्रण दे रही थी। प्रताप उसके पेट को चूमते हुए उसकी जाँघों के बीच पहुँच चुका था। शबाना बिस्तर पर लेटी हुई थी और उसकी टाँगें बेड से नीचे लटक रही थी। प्रताप उसकी टाँगों के बीच बेड के नीचे बैठ गया और शबाना की टाँगें फैला दीं। वो शबाना की गोरी-गोरी, गदरायी हुई भरी भरी सुडौल जाँघों को बेतहाशा चूम रहा था और उसकी उंगलियाँ पैंटी पर से उसकी चूत सहला रही थी। प्रताप की नाक में शबाना की चूत से रिसते हुए पानी की खुशबू आ रही थी और वो भी मदहोश हो रहा था। शबाना पर तो जैसे नशा चढ़ गया था और वो अपनी गाँड उठा-उठा कर अपनी चूत को प्रताप की उंगलियों पर रगड़ रही थी।

अब प्रताप पैंटी के ऊपर से ही शबाना की चूत को चूमने लगा। वो हल्के-हल्के दाँत गड़ा रहा था शबाना की चूत पर और शबाना प्रताप के सिर को पकड़ कर अपनी चूत पर दबा रही थी और गाँड उठा-उठा कर चूत को प्रताप के मुँह में घुसा रही थी। फिर प्रताप ने शबाना की पैंटी उतार दी। शबाना अब ऊँची पेंसिल हील के सैंडलों के अलावा बिल्कुल नंगी थी। प्रताप के सामने अब सबसे हसीन चूत थी... एक दम गुलाबी एक दम प्यारी। एक दम सफायी से रखी हुई कोई सीप जैसी। प्रताप उसकी खुशबू से मदहोश हो रहा था और उसने अपनी जीभ शबाना की चूत पर रख दी। शबाना उछल पड़ी और उसके जिस्म में जैसे करंट दौड़ गया। उसने प्रताप के सिर को पकड़ा और अपनी गाँड उचका कर चूत प्रताप के मुँह पर रगड़ दी। प्रताप की जीभ शबाना की चूत में धंस गयी और प्रताप ने अपने होंठों से शबाना की चूत को ढक लिया और एक उंगली भी शबाना की चूत में घुसा दी - अब शबाना की चूत में प्रताप की जीभ और उंगली घमासान मचा रही थी।

शबाना रह-रह कर अपनी गाँड उठा-उठा कर प्रताप के मुँह में चूत दबा रही थी। उसकी चूत से निकल रहा पानी उसकी गाँड तक पहुँच गया था। प्रताप ने अब उंगली चूत से निकाली और शबाना की गाँड पर उंगली फिराने लगा। चूत के पानी की वजह से गाँड में उंगली फिसल कर जा रही थी। शबाना को कुछ होश नहीं था - वो तो चुदाई के नशे से मदहोश हो चुकी थी। आज तक उसे इतना मज़ा नहीं आया था। उसकी सिसकारियाँ बंद नहीं हो रही थी। उसकी गाँड में उंगली और चूत में जीभ घुसी हुई थी और वो नशे में धुत्त शराबी कि तरह बिस्तर पर इधर उधर हो रही थी। उसकी आँखें बंद थी और वो जन्नत की सैर कर रही थी। किसी तेज़ खुशबू की वजह से उसने आँखें खोली तो सामने प्रताप का लण्ड था। उसे पता ही नहीं चला कब प्रताप ने अपने कपड़े उतार दिये और 69 की पोज़िशन में आ गया। शबाना ने प्रताप के लण्ड को पकड़ा और उस पर अपना हाथ ऊपर-नीचे करने लगी। प्रताप के लण्ड से पानी गिर रहा था और वो चिपचिपा हो रहा था। शबाना ने लण्ड को अच्छी तरह सूँघा और उसे अपने चेहरे पर लगाया और फिर उसका अच्छी तरह जायज़ा लेने के बाद उसे चूम लिया। फिर उसने अपना मुँह खोला और लण्ड को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। वो लण्ड के सुपाड़े को अपने मुँह में लेकर अंदर ही उसे जीभ से लपेटकर अच्छी तरह एक लॉलीपॉप की तरह चूस रही थी और प्रताप अब भी उसकी चूत चूस रहा था।

अचानक जैसे ज्वालामुखी फटा और लावा बहने लगा। शबाना का जिस्म बुरी तरह अकड़ गया और उसकी टाँगें सिकुड़ गयी। प्रताप का मुँह तो जैसे शबाना की जाँघों में पिस रहा था। शबाना बुरी तरह झड़ गयी और उसकी चूत ने एक दम से पानी छोड़ दिया और वो एक दम निढाल गयी। आज एक घंटे में वो दो बार झड़ चुकी थी जबकि अब तक उसकी चूत में लण्ड गया भी नहीं था।

अब प्रताप ने अपना लण्ड शबाना के मुँह से निकाला और शबाना की चूत छोड़ कर उसके होंठों को चूमने लगा। शबाना झड़ चुकी थी लेकिन लण्ड की प्यास उसे बाकायदा पागल किये हुए थी। अब वो बिल्कुल नंगी प्रताप के नीचे लेटी हुई थी और प्रताप भी एक दम नंगा उसके ऊपर लेटा हुआ था। प्रताप का लण्ड उसकी चूत पर ठोकर मार रहा था और शबाना अपनी गाँड उठा-उठा कर प्रताप के लण्ड को खाने की फ़िराक में थी। प्रताप अब उसकी टाँगों के बीच बैठ गया और उसकी टाँगों को उठा कर अपना लण्ड उसकी चूत पर रगड़ने लगा। शबाना आहें भर रही थी और अपने सर के नीचे रखे तकिये को अपने हाथों में पकड़ कर मसल रही थी। प्रताप के लण्ड को खा जाने के लिये उसकी गाँड रह-रह कर उठ जाती थी। मगर प्रताप तो जैसे उसे तड़पा-तड़पा कर चोदना चाहता था। वो उसकी चूत पर ऊपर से नीचे अपने लण्ड को रगड़े जा रहा था। अब शबाना से रहा नहीं जा रहा था - बेहद मस्ती और मज़े की वजह से उसकी आँखें बंद हो चुकी थी और मुँह से सिसकारियाँ छूट रही थी। प्रताप का लण्ड धीरे-धीरे फिसल रहा था और फिसलता हुआ वो शबाना की चूत में घुस जाता और बाहर निकल जाता।
अब प्रताप उसे चोदना शुरू कर चुका था। हल्के-हल्के धक्के लग रहे थे और शबाना भी अपनी गाँड उठा-उठा कर लण्ड खा रही थी। धीरे-धीरे धक्कों की रफ्तार बढ़ रही थी और शबाना की सिसकारियों से सारा कमरा गूँज रहा था। प्रताप का लण्ड कोयाले के इंजन के पहियों पर लगी पट्टी की तरह शबाना की चूत की गहरायी नाप रहा था। प्रताप की चुदाई में एक लय थी और अब धक्कों ने रफ्तार पकड़ ली थी। प्रताप का लण्ड तेज़ी से अंदर-बाहर हो रहा था और शबाना भी पागल हो चुकी थी। वो अपनी गाँड उठा-उठा कर प्रताप के लण्ड को अपनी चूत में दबाकर पीस रही थी। अचानक शबाना ने प्रताप को कसकर पकड़ लिया और अपने दोनों पैर प्रताप की कमर पर बाँध कर झूल गयी। उसके पैरों में अभी भी ऊँची ऐड़ी वाले सैंडल बंधे हुए थे। प्रताप समझ गया कि ये फिर झड़ने वाली है। प्रताप ने अपने धक्के और तेज़ कर दिये - उसका लण्ड शबाना की चूत में एक दम धंसता चला जाता, और, बाहर आकर और तेज़ी से घुस जाता। शबाना की चूत से फुव्वारा छूट गया और प्रताप के लण्ड ने भी शबाना की चूत में पूरा पानी उड़ेल दिया।

प्रताप और शबाना को अब जब भी मौका मिलता तो एक दूसरे के जिस्म की भूख मिटा देते थे। हफ्ते में कम से कम दो-तीन बार तो शबाना प्रताप को बुला ही लेती थी और उसका शौहर परवेज़ अगर शहर के बाहर गया होता तो प्रताप रात को भी रुक जाता और दोनों जी भर कर खूब चुदाई करते। चुदाई से पहले प्रताप अक्सर शराब के एक-दो पैग पीता था और शबाना भी इसमें उसका साथ देने लगी।
 
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करीब सात आठ महीने बाद की बात है। शबाना दो हफ्ते से प्रताप का लण्ड नहीं ले पायी थी क्योंकि परवेज़ की बड़ी बहन ताज़ीन घर आयी हुई थी। वो पूरे दिन घर पर ही रहती थी, जिस वजह से ना तो शबाना कहीं जा पाती थी और ना ही प्रताप को बुला सकती थी। ताज़ीन चौंतीस साल की थी और शबाना से चार साल ही बड़ी थी। वो भी शादीशुदा थी।

"शबाना! मैं दो दिनों के लिये बाहर जा रहा हूँ, कुछ ज़रूरी काम है... ताज़ीन आपा घर पर नहीं होती तो तुम्हें भी ले चलता!" परवेज़ ने कहा।

"कोई बात नहीं! आप अपना काम निपटा कर आयें!" शबाना को परवेज़ के जाने की कोई परवाह नहीं थी और उसके साथ जाने की तमन्ना भी नहीं थी। वो तो ताज़ीन को भी भगा देना चाहती थी, जिसकी वजह से उसे प्रताप का साथ नहीं मिल पा रहा था - पूरे पंद्रह दिन से। और ताज़ीन अभी और पंद्रह दिन रुकने वाली थी।

रात को ताज़ीन और शबाना बेडरूम में बिस्तर पर लेटे हुए फिल्म देख रही थीं। शबाना को नींद आने लगी थी और वो नाइटी पहन कर सो गयी। सोने से पहले शबाना ने लाइट बंद करके मद्दिम लाइट चालू कर दी थी। ताज़ीन किसी दूसरे चैनल पर ईंगलिश फिल्म देखने लगी। फिल्म में काफी खुलापन और चुदाई के सीन थे।

नींद में शबाना ने एक घुटना ऊपर उठाया तो अनायास ही उसकी रेश्मी नाइटी फ़िसल कर घुटने के ऊपर तक सरक गयी। टीवी और मद्दिम लाइट की रोशनी में उसकी दूधिया रंग की जाँघ चमक रही थी। अब ताज़ीन का ध्यान फिल्म में ना होकर शबाना के जिस्म पर था और रह-रह कर उसकी नज़र शबाना के गोरे जिस्म पर टिक जाती थी। शबाना की खूबसूरत जाँघें उसे मादक लग रही थी। कुछ तो फिल्म के चुदाई सीन का असर था और कुछ शबाना की खूबसूरती का। ताज़ीन बेहद चुदासी औरत थी और मर्दों के साथ-साथ औरतों में भी उसकी दिलचस्पी थी।

ताज़ीन ने टीवी बंद किया और वहीं शबाना के पास सो गयी। थोड़ी देर तक बिना कोई हरकत किये वो लेटी रही। फिर उसने अपना हाथ शबाना के उठे हुए घुटने वाली जाँघ पर रख दिया। हाथ रख कर वो ऐसे ही लेटी रही, एक दम स्थिर। जब शबाना ने कोई हरकत नहीं की, तो ताज़ीन ने अपने हाथ को शबाना की जाँघ पर फिराना शुरू कर दिया। हाथ भी इतना हल्का कि सिर्फ़ उंगलियाँ ही शबाना को छू रही थी, हथेली बिल्कुल भी नहीं। फिर उसने हल्के हाथों से शबाना की नाइटी को पूरा ऊपर कर दिया। अब शबाना की पैंटी भी साफ़ नज़र आ रही थी। ताज़ीन की उंगलियाँ अब शबाना के घुटनों से होती हुई उसकी पैंटी तक जाती और फिर वापस ऊपर घुटनों पर आ जाती। यही सब तकरीबन दो-तीन मिनट तक चलता रहा। जब शबाना ने कोई हरकत नहीं की, तो ताज़ीन ने शबाना की पैंटी को छूना शुरू कर दिया लेकिन तरीका वही था। घुटनों से पैंटी तक उंगलियाँ परेड कर रही थी। अब ताज़ीन धीरे से उठी और उसने अपनी नाइटी और ब्रा उतार दी, और सिर्फ़ पैंटी में शबाना के पास बैठ गयी। शबाना की नाइटी में आगे कि तरफ़ बटन लगे हुए थे। ताज़ीन ने बिल्कुल हल्के हाथों से बटन खोल दिये। फिर नाइटी को हटाया तो शबाना के गोरे चिट्टे मम्मे नज़र आने लगे। अब ताज़ीन के दोनों हाथ मसरूफ हो गये थे। उसके एक हाथ की उंगलियाँ शबाना की जाँघ और दूसरे हाथ की उंगलियाँ शबाना के मम्मों को सहला रही थी। उसकी उंगलियाँ अब शबाना को किसी मोर-पंख की तरह लग रही थीं। जी हाँ! शबाना उठ चुकी थी लेकिन उसे अच्छा लग रहा था, इसलिये बिना हरकत लेटी रही। वो इस खेल को रोकना नहीं चाहती थी।

अब ताज़ीन की हिम्मत बढ़ गयी थी। उसने झुककर शबाना की चुची को किस किया। फिर उठी और शबाना की टाँगों के बीच जाकर बैठ गयी। शबाना को अपनी जाँघ पर गर्म हवा महसूस हो रही थी। वो समझ गयी कि ताज़ीन की साँसें हैं। ताज़ीन शबाना की जाँघ को अपने होंठों से छू रही थी, बिल्कुल उसी तरह जैसे वो अपनी उंगलियाँ फिरा रही थी। अब वही साँसें शबाना को अपनी पैंटी पर महसूस होने लगीं, लेकिन उसे नीचे दिखायी नहीं दे रहा था। वैसे भी उसने अभी तक आँखें नहीं खोली थी। अब ताज़ीन ने अपनी ज़ुबान बाहर निकाली और उसे शबाना की पतली सी पैंटी में से झाँक रही गरमागरम चूत की दरार पर टिका दी। कुछ देर ऐसे ही उसने अपनी जीभ को पैंटी पर ऊपर-नीचे फिराया। शबाना की पैंटी ताज़ीन के थूक से और चूत से निकाल रहे पानी से भीगने लगी थी। अचानक ताज़ीन ने शबाना की थाँग पैंटी को साइड में किया और शबाना की नंगी चूत पर अपने होंठ रख दिये। शबाना से और बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपनी गाँड उठा दी, और दोनों हाथों से ताज़ीन के सिर को पकड़ कर उसका मुँह अपनी चूत से चिपका लिया। ताज़ीन की तो दिल की मुराद पूरी हो गयी थी! अब कोई डर नहीं था! वो जानती थी कि अब शबाना सब कुछ करने को तैयार है - और आज की रात रंगीन होने वाली थी।

ताज़ीन ने अपना मुँह उठाया और शबाना की पैंटी को दोनों हाथों में पकड़ कर खींचने लगी। शबाना ने भी अपनी गाँड उठा कर उसकी मदद की। फिर शबाना ने अपनी नाइटी भी उतार फेंकी और ताज़ीन से लिपट गयी। ताज़ीन ने भी अपनी पैंटी उतारी और अब दोनों बिल्कुल नंगी एक दूसरे के होंठ चूस रही थीं। दोनों के मम्मे एक दूसरे से उलझ रहे थे। दोनों ने एक दूसरे की टाँगों में अपनी टाँगें कैंची की तरह फंसा रखी थीं और ताज़ीन अपनी कमर को झटका देकर शबाना की चूत पर अपनी चूत लगा रही थी, जैसे कि उसे चोद रही हो। शबाना भी चुदाई के नशे में चूर हो चुकी थी और उसने ताज़ीन की चूत में एक उंगली घुसा दी। अब ताज़ीन ने शबाना को नीचे गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गयी। ताज़ीन ने शबाना के मम्मों को चूसना शुरू किया। उसके हाथ शबाना के जिस्म से खेल रहे थे।

शबाना अपने मम्मे चुसवाने के बाद ताज़ीन के ऊपर आ गयी और नीचे उतरती चली गयी। ताज़ीन के मम्मों को चूसकर उसकी नाभि से होते हुए उसकी ज़ुबान ताज़ीन की चूत में घुस गयी। ताज़ीन भी अपनी गाँड उठा-उठा कर शबाना का साथ दे रही थी। काफी देर तक ताज़ीन की चूत चूसने के बाद शबाना ताज़ीन के पास आ कर लेट गयी और उसके होंठ चूसने लगी। अब ताज़ीन ने शबाना के मम्मों को दबाया और उन्हें अपने मुँह में ले लिया - ताज़ीन का एक हाथ शबाना के मम्मों पर और दूसरा उसकी चूत पर था। उसकी उंगलियाँ शबाना की चूत के अंदर खलबली मचा रही थी। शबाना एक दम निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी और उसके मुँह से अजीब-अजीब आवाज़ें आने लगी। तभी ताज़ीन नीचे की तरफ़ गयी और शबाना की चूत को चूसना शुरू कर दिया। अपने दोनों हाथों से उसने चूत को फैलाया और उसमें दिख रहे दाने को मुँह में ले लिया और उस पर जीभ रगड़-रगड़ कर चूसने लगी।

शबाना तो जैसे पागल हो रही थी। उसकी गाँड ज़ोर-ज़ोर से ऊपर उठती और एक आवाज़ के सथ बेड पर गिर जाती, जैसे कि वो अपनी गाँड को बिस्तर पर पटक रही हो। फिर उसने अचानक ताज़ीन के सिर को पकड़ा और अपनी चूत में और अंदर ढकेल दिया। उसकी गाँड तो जैसे हवा में तैर रही थी और ताज़ीन लगभग बैठी हुई उसकी चूत खा रही थी। वो समझ गयी कि अब शबाना झड़ने वाली है और उसने तेज़ी से अपना मुँह हटाया और दो उंगलियाँ शबाना की चूत के एक दम अंदर तक घुसेड़ दी। उंगलियों के दो तीन ज़बरदस्त झटकों के बाद शबाना की चूत से जैसे परनाला बह निकला। पूरा बिस्तर उसके पानी से गीला हो गया। फिर ताज़ीन ने एक बार फिर अपनी टाँगें शबाना की टाँगों में कैंची की तरह डाल कर अपनी चूत को शबाना की चूत पर रख दिया और ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगी, जैसे कि वो शबाना को चोद रही हो। दोनों कि चूत एक दूसरे से रगड़ रही थी और ताज़ीन शबाना के ऊपर चढ़ कर उसकी चुदाई कर रही थी। शबाना का भी बुरा हाल था और वो अपनी गाँड उठा-उठा कर ताज़ीन का साथ दे रही थी। तभी ताज़ीन ने ज़ोर से आवाज़ निकाली और शबाना की चूत पर दबाव बढ़ा दिया। फिर तीन चार ज़ोरदार भारी भरकम धक्के मार कर वो शाँत हो गयी। उसकी चूत का सारा पानी अब शबाना की चूत को नहला रहा था। फिर दोनों उसी हालत में नंगी सो गयीं।

अगले दिन शबाना और ताज़ीन नाश्ते के बाद बातें करने लगीं।

"शबाना सच कहूँ तो बहुत मज़ा आया कल रात!"

"मुझे भी...!"

"लेकिन अगर असली चीज़ मिलती तो शायद और भी मज़ा आता!"

"क्यों आपा, जिजाजी को बुलायें?" आँख मारते हुए शबाना ने कहा।

"उनको छोड़ो, उन्हें तो महीने में एक बार जोश आता है और वो भी मेरी तस्कीन होने से पहले बह जाता है.... और जहाँ तक मैं परवेज़ को जानती हूँ, वो किसी औरत को खुश नहीं कर सकता... तुमने भी तो इंतज़ाम किया होगा अपने लिये...!"

ये सुनकर शबाना चौंक गयी, लेकिन कुछ कहा नहीं।

ताज़ीन ने चुप्पी तोड़ी। "इसमें चौंकने वाली क्या बात है... मैं भी अक्सर गैर मर्दों और औरतों से भी चुदवाती रहती हूँ... अगर तुम्हारी पहचान का कोई है तो उसे बुला ना!" ताज़ीन काफी खुली हुई और ज़िंदगी का मज़ा लेने वालों में थी। उसने काफी लण्ड खाये थे।

ये सुनकर शबाना दिल ही दिल में खुश हो गयी। "ठीक है आपा! मैं बुलाती हूँ... लेकिन आप छुप कर देखना और फिर मौका देख कर आ जाना!"
 

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