Incest Paap ne Bachayaa written By S_Kumar

Well-known member
1,798
2,249
143
Update- 13


जिंदगी में आज पहली बार उदयराज के मन में लड्डू फूटा था, उसके रूखे, नीरस, उत्साहहीन, सूखे जीवन में उसी की सगी बेटी ने एक कामुक और रसीला सा संभावित संकेत देके उसकी मन की गहराइयों में छिपे यौनतरंग के तारों को आज छेड़ दिया था जिससे ऐसा प्रतीत होता था कि अब वो बादलों में उड़ रहा है, आने वाली जिंदगी अब कितनी लज़्ज़त से भरी होगी और उसमें कितना मिठास होगा, बस यही बार बार सोच कर वो गुदगुदा जा रहा था

आज उदयराज ने नहाने में जरा भी वक्त नही लगाया, सोच कर ही शरीर में आज उसके इतनी गर्मी बढ़ गयी थी कि कुएं का ठंडा पानी भी आज उसको शांत नही कर पा रहा था।

परंतु फिर भी उसके मन की स्थिति असमंजस में थी, की क्या पता वैसा न हो जैसा वो सोच रहा है तो? क्या पता ये रजनी का केवल बेटी वाला प्रेम हो तो?

एक तरफ उसके संस्कार, उसकी मर्यादा, उसे बार बार अपने कुल की मर्यादा, बाप बेटी के पवित्र रिश्ते की दुहाई देती, उसके इतने नेक पुरुष होने पर सन्देह करती, उसे ये अहसास दिलाती की तू गांव का मुखिया है, जब तू ही ये अनर्थ करेगा तो गांव के लोगों में तेरी जो एक आदर्श छवि है उसका क्या होगा?

दूसरी तरफ नारी सुख की बरसों की दबी प्यास, नारी को भोगने पर मिलने वाले मजे की लज़्ज़त का अहसास कराती, वो कहती कि किसी को पता ही क्या चलेगा, और जब तेरी बेटी ही यह चाहती है तो पुरुष होने के नाते तेरा एक फ़र्ज़ ये भी है कि एक तड़पती, प्यासी नारी को तू संतुष्ट कर, चाहे वो तेरी बेटी ही क्यों न हो, सोच कितना मजा आएगा, और ये गलत तो तब होता जब तू जबरदस्ती कर रहा होता। सोच जरा पगले स्वर्ग की अप्सरा सी तेरी बेटी तेरे पौरुष द्वार पर आके यौनसुख की विनती कर रही है और तुझे लोक लाज की पड़ी है, क्या ये पुरुष का फर्ज नही की वो अपने घर की औरत को संतुष्ट करे, आखिर रजनी अपना पूरा जीवन तेरी सेवा करने तेरे पास चली आयी, तो क्या तेरा उसके प्रति कोई फ़र्ज़ नही।

फिर उसका दूसरा मन कहता तू इतना गिर गया है उदयराज, तू ये कैसे कह सकता है कि रजनी भी यही चाहती है? वो तेरी बेटी है वो भला ऐसा पाप करेगी।

फिर उसका पहला मन कहता है- अगर ऐसा न होता तो रजनी उसकी बाहों में भला क्यों आती, चलो माना कि वह बेटी के नजरिये से उसकी बाहों में आई, पर उसके मुंह से जो आह और सिसकी निकली वो क्या था, और अगर ऐसा न होता तो वो इतने मादक रूप में भला उसके कान में ऐसा क्यों बोलती।

उदयराज तू अपनी बेटी की मंशा को समझ, सबको ऐसा बेटी सुख नही मिलता, सोच तू कितना भाग्यशाली है, वो तुझे घर की चार दिवारी में चुपके चुपके यौनसुख देना चाहती है, इस मौके को मत खो, देख गलत तो तू फिर भी हो ही जायेगा, एक फ़र्ज़ की तरफ देखेगा तो दूसरा छूट जाएगा, और दूसरा फ़र्ज़ ये है कि एक पुरुष को एक प्यासी औरत को संतुष्ट करना ही चाहिए, और जब गलत होना ही है तो मजे ले के होने में क्या बुराई है

खैर उदयराज कोई सिद्ध और योगी पुरुष तो था नही जो अपने आपको इस ग्लानि, विषाक्त, घृणा, वासना, यौनसुख की लालसा के मिले जुले मन स्थिति से निकाल ले जाता, वो असहाय हो गया और सबकुछ नियति पे छोड़ दिया।

फटाफट नहा के आया वो और रजनी ने खाना लगा रखा था, रजनी को देखते ही उसे फिर खुमारी चढ़ने लगी, रजनी अपने बाबू की मन स्थिति को देखकर मंद मंद मुस्कुराये जा रही थी, वो छुप छुप के तिरछी नजर से अपने बाबू को देखकर कामुक मुस्कान देती और उदयराज का आदर्श, मानमर्यादा, कुल की लाज, सब एक ही पल में धराशाही हो जाता, वो वासना के दरिया में ख्याली गोते लगते हुए खाना खाए जा रहा था, कभी कभी जब एक टक लगा के रजनी को निहारता तो रजनी आंखों के इशारे से शिकायत करती की अभी ऐसे न देखो कहीं काकी न देख ले, (जैसे वो कोई प्रेमिका हो), उदयराज अपनी बेटी की इस अदा पर कायल हो जाता।

सबने खाना खाया और उदयराज आज अपनी खाट कुएं के और नजदीक ले गया, बिस्तर लगा के उसपर करवटें बदलने लगा।

रजनी ने बर्तन धोया, बिस्तर लगाया फिर काकी और रजनी अपने अपने बिस्तर पर रोज़ की तरह लेट गए, रजनी की बेटी उसी के पास थी, रजनी का बिस्तर रोज की तरह घर के मुख्य द्वार के ठीक सामने नीम के पेड़ के नीचे था और उदयराज का बिस्तर 200 मीटर कुएं के पास था, रजनी आज अपने बाबू को छेड़ना चाहती थी, पहले तो वो काकी से इधर उधर की बातें करती रही, फिर बोली- काकी मैं बाबू के सर पर तेल मालिश करके आती हूँ आप सोइए।

काकी- हां जा न, ला गुड़िया को मेरी खाट पे लिटा दे, तू जा उदय के सर की तेल मालिश कर आ और हां बदन की भी मालिश कर देना, थक जाता है बेचारा

रजनी- हां काकी जरूर

रजनी इतना कहकर घर में जा के कटोरी में तेल और एक हाँथ में बैठने का स्टूल लेके अपने बाबू की खाट की तरफ जाने लगती है

अभी कृष्ण पक्ष की ही रातें चल रही थी, चाँद थोड़ी ही देर के लिए निकलता था वो भी रात के दूसरी पहर में, अंधेरी रात होने की वजह से गुप्प अंधेरा पसरा हुआ था, बहुत हल्का हल्का सा पास आने पर दिखता था

रजनी ने उदयराज की खाट के पास आके कहा- बाबू, ओ मेरे बाबू, सो गए क्या? मैं आ गयी।

उदयराज ने झट से सर उठा के अपनी बेटी की तरफ देखा तो उसकी बांछे खिल गयी, धीरे से बोला- नही बेटी, तेरे आदेश का पालन कर रहा हूँ।

रजनी (हंसते हुए)- वो मेरा आदेश नही आग्रह था बाबू, एक बेटी भला अपने बाबू को आदेश करेगी।

उदयराज- क्यों नही कर सकती, कर सकती है, मैं तो तेरा गुलाम हूँ।

रजनी- अच्छा जी

उदयराज- हम्म

रजनी- और क्या क्या हैं आप मेरे?

उदयराज- बाबू हूँ, गुलाम हूँ, और....और...बताऊंगा वक्त आने पर।

रजनी- हंस देती है, अरे वाह! मेरे बाबू मुझे इतना चाहते हैं कि मेरे गुलाम बन गए, जबकि मैं तो खुद आपकी दासी हूँ।

उदयराज- तू मेरी दासी नही मेरी बेटी।

रजनी- फिर, फिर मैं क्या हूँ आपकी।, बेटी तो मैं हूँ ही, इसके अलावा और क्या हूँ।

उदयराज- तू मेरी रानी है। (ऐसा कहते हुए उदयराज की आवाज जोश में थोड़ी भारी हो जाती है)

रजनी- सच, और आप मेरे राजा....ऐसा कहते हुए रजनी अपने हांथ की उंगलियाँ अपने बाबू के हाँथ की उंगलियों में cross फंसा लेती है और उनके ऊपर झुकते हुए अपना चेहरा उनके कानों के पास लाकर धीरे से बोलती है- आपको थकान नही लगी, क्या अब?

उदयराज- वो तो मुझे बरसों से लगी है।

रजनी फिर अपने बाबू को छेड़ने की मंशा से - तो लाओ न बाबू आपके सिर पर तेल मालिश कर दूं, थकान उतर जाएगी। (और रजनी मन ही मन हंसने लगती है, अपने बाबू को तडपाने में उसको मजा आ रहा था)

उदयराज आश्चर्य में पड़ जाता है, की उसकी बेटी ने उसकी बाहों में आकर थकान मिटाने की बात बोली थी, ये तेल मालिश की बात बीच में कहां से आ गयी, परंतु वो तुरंत ही समझ जाता है की रजनी उसे तड़पा रही है, फिर वो भी चुप रहकर थोड़ा इंतज़ार करता है।

रजनी स्टूल लेके अपने बाबू के सिरहाने बैठ जाती है, और हाथ में तेल लेकर उनके सिर की हल्के हल्के मालिश करने लगती है, रजनी की नर्म नर्म उंगलियों की छुअन से उदयराज को अद्भुत सुख की अनुभूति होती है, दोनों चुप रहकर एक दूसरे को महसूस करते हैं कुछ पल, फिर रजनी एकाएक बोली- अब थकान मिटी बाबू।

उदयराज- मेरी थकान सिर्फ तुम्हारी उंगलियों से कहाँ मिटने वाली बेटी, मेरे पूरे बदन को तुम्हारा पूरा बदन चाहिए।

रजनी- ओह्ह! मेरे बाबू

ऐसा कहते हुए रजनी स्टूल से उठकर उदयराज की खाट पर उसके बगल में लेट जाती है, दोनों एक दूसरे को कस के बाहों में भर लेते हैं, रजनी के मुँह से oooohhhhhhh मेरे बाबू, और उदयराज के मुंह से oooohhhhhh मेरी बेटी, मेरी रानी, की धीमी धीमी कामुक आवाज, और सिसकियां आस पास के वातावरण में गूंज जाती हैं।

रजनी दायीं तरफ होती है और उदयराज बाई तरफ, दोनों का बदन एक दूसरे में मिश्री की तरह घुल रहा होता है, दोनों ही कुछ देर के लिए सुन्न से हो जाते है, विश्वास ही नही हो रहा था दोनों को, की आज वो हो गया, जो अभी तक सिर्फ ख्यालों में ही था, तभी उदयराज के हाँथ रजनी की पीठ को हौले हौले सहलाने लगते हैं तो रजनी अपनी जांघों को भीच के सिसक उठती है।

उदयराज अब अपना हाथ थोड़ा नीचे की ओर रजनी की गांड की तरफ जैसे ही सरकाता है रजनी ये महसूस करती है कि side side में लेटे होने की वजह से उसके बाबू उसकी गांड को अच्छे से नही सहला पाएंगे, तो इसकी सहूलियत के लिए वो धीरे धीरे aaaaahhhhh करती हुई उदयराज के ऊपर आ जाती है, और उदयराज को अपनी सगी बेटी की ये मौन स्वीकृति इतना जोश से भर देती है कि वो अपने दोनों हाथों से उसकी अत्यंत मांसल उभरी हुई गांड को भीच देता है, कभी वो मैक्सी के ऊपर से ही अपनी बेटी के मोटे चूतड़ की दोनों फांकों को अलग कर उसमें हाँथ फेरने लगता कभी अपने दोनों हथेलियों में मांसल गांड को भर भर के सहलाने लगता।

रजनी- aaaaaaaahhhhhh, ooooooohhhhhhh bbbbbbbaaaabbbbbuuuuu,, ssssshhh

एकाएक उदयराज ने रजनी को नीचे किया और उसके ऊपर चढ़ गया, रजनी की तो बस सिसकियां ही निकली जा रही थी, शर्म के मारे वो कुछ न बोली, बस oooohhh baabu

उदयराज ने एक जोरदार चुम्बन रजनी के गाल पे जड़ दिया, फिर रजनी ने जानबूझ के अपना दूसरा गाल आगे कर दिया उदयराज ने इस गाल पे भी एक दूसरा जोरदार चुम्बन किया और अब वो ताबड़तोड़ रजनी के गालों पे, कान के नीचे, गर्दन पे, माथे पे, आंखों पे चूमने लगा, इतना मजा तो उसको अपनी पत्नी के साथ भी नही आया था जितना बेटी के साथ आ रहा था, रजनी को तो मानो होश ही नही रहा अब, वो तो बस hhhaaaaai hhhhhhaaaai कर के सिसके जा रही थी।

जैसे ही उदयराज ने अपना सीधा हाँथ रजनी के बायीं चूची पे रखा, उसे गांव वालों की कुछ आवाज़ें उत्तर की तरफ से आती हुई सुनाई दी, जैसे गांव के कुछ लोग मुखिया के घर की तरफ ही आ रहे थे कुछ फरियाद लेके, रजनी ने भी जब ये आवाज सुनी जो उनके घर की तरफ आती हुआ महसूस हुई तो दोनों ही बड़े मायूस होके खाट से उठे और रजनी बोली- बाबू लगता है कुछ गांव के लोग इतनी रात को आपसे मिलने आ रहे हैं, अभी मुझे जाना होगा।

उदयराज मायूस होते हुए- हाँ बेटी, देखता हूँ क्या मामला है।

रजनी खुद उदास हो गयी थी, थोड़ी दूर जाके वो वापिस पलटी और फिर एक बार भाग के अपने उदास बाबू की बाहों में समा गई, उदयराज रजनी को एक बार फिर बड़ी शिद्दत से चूमने लगा, रजनी ने सिसकते हुए उसे रोका- बाबू वो लोग अब ज्यादा ही नजदीक आ गए हैं, थोड़ा सब्र करो अब, फिर आऊंगी कल।

इतना कहकर रजनी उखड़ती सांसों से अपने बिस्तर की तरफ भाग गई और उदयराज उसे देखता रहा।
 
Well-known member
1,798
2,249
143
Update- 14

उदयराज रजनी को जाते हुए देखता रहा, फिर आकर अपनी खाट पर बैठ गया, तभी गांव के कुछ लोग जिसमे परशुराम भी था, हाथ में लालटेन लिए कुएं के सामने वाले रास्ते से उदयराज की तरफ आ गए, उसमे से कुछ लोग रो भी रहे थे। उदयराज उन्हें देखकर खाट से उठकर उनके पास आया।

उदयराज- क्या हुआ परशुराम? इतनी रात को कैसे आना हुआ? क्या हुआ आखिर, सब ठीक तो है।

परशुराम- मुखिया जी हमे माफ करना जो इतनी रात को आपके पास आना पड़ा, बिरजू है नही वो किसी काम से 1 दिन के लिए बाहर गया है, हमे मजबूरन अब आपके पास आना पड़ा, क्योंकि अब आप ही सहारा हो, परशुराम हाथ जोड़े खड़ा था।

उदयराज- अरे! कोई बात नही, मेरे पास नही आओगे तो किसके पास जाओगे, ऐसा मत बोलो, आखिर बात क्या है ये बताओ।

तभी शम्भू और एक दो आदमी उदयराज के पैरों में गिर पड़े और रोने लगे, हमे बचाओ मुखिया जी, हमारी रक्षा करो, आखिर क्यों ऐसा हो रहा है हम लोगों के साथ, कहाँ जाएं हम कैसे बचें इस समस्या से।

उदयराज- उठो! उठो शम्भू रोओ मत, आखिर क्या बात है खुल के साफ साफ बताओ।

परशुराम- मुखिया जी आप तो जानते ही थे कि शम्भू के घर में उसके तीन बेटों में से दो की तबियत पिछले हफ्ते बिगड़ी थी और आज देखो अभी कुछ देर पहले उनकी मौत हो गयी, इसी तरह लखन के घर में भी दो मौत हुई है, और वो सब रोने लगते हैं।

उदयराज ये सुनकर सन्न रह जाता है, ये क्या हो रहा था उसके गांव में, लोग वैसे स्वस्थ दिखते थे, बस कुछ होता, बीमार पड़ते और कुछ हफ्तों में मर जाते।

शम्भू- मुखिया जी हम तो इलाज़, और झाड़ फूक करा करा के थक गए थे पर कुछ नही पता चला, कब तक हम अपनों को ऐसे खोते रहेंगे, कब तक?

उदयराज उन सबको सांत्वना देता है और तुरंत रजनी और काकी को सारी बात बता कर उन लोगों के घर जाने लगता है।

रजनी को भी सुनकर काफी चिंता हो जाती है, काकी भी हैरान हो जाती है ये सुनकर।

उदयराज उन लोगों के घर जाता है तो देखता है कि चार लोगों की लाशें एक जगह रखी हुई होती है, घर के लोग रो बिलख रहे थे, वो भी बेचैन हो जाता है और उसकी भी आंखें नम हो जाती है, ये समस्या उसके control में नही थी, वो भी बस अन्य लोगों की तरह सांत्वना दे सकता था, करे भी क्या? वो काफी सोच में डूब जाता है।

पूरे गांव में शोक की लहर फैल जाती है।

आखिर मरे हुए लोगों को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है और अगले दिन गांव के कुल वृक्ष के नीचे एक बैठक रखने का फैसला होता है, गांव का कुल वृक्ष नदी के पास था वह एक पवित्र बहुत बड़ा बरगद का वृक्ष था उसके नीचे काफी बड़ी चौकी बनी हुई थी।

उदयराज रात भर वहीं रहता है उन लोगों के साथ, आखिर वो मुखिया था उसे अपना कर्तव्य भी निभाना था।

सुबह उदयराज अपने घर आया तो उसने काकी और रजनी को आज की होने वाली बैठक के बारे में जानकारी दी, काकी ने बोला की वो भी बैठक में शामिल होगी।

उदयराज ने देखा कि रजनी की आंखें लाल थी तो वो उससे पूछ बैठा- रजनी बिटिया, तुम्हारी आंखें लाल है, मेरी बिटिया की इतनी सुंदर आंखें लाल हों ये मुझे मंजूर नही, तुम रात भर सोई नही न, क्यों?

रजनी- जिस बेटी के बाबू रात भर अपना फर्ज निभाने के लिए जाग रहे हों वो इतनी खुदगर्ज़ तो नही है न बाबू की सो जाए, मैं आपकी बेटी हूँ, और अब मुझे आपके बिना नींद नही आएगी (ये अंतिम लाइन उसने धीमे से कहा)

उदयराज- मुझे अपनी बेटी पर नाज़ है, पर तुम अभी दिन में आराम कर लेना, मैं और काकी बैठक में जा रहे हैं कुछ देर में आएंगे।

रजनी और उदयराज कुछ देर तक एक दूसरे को तरसते हुए देखते रहे फिर अपने आपको जैसे तैसे संभाल लिया, क्योंकि अभी का वक्त गमहीन था

रजनी ने दोनों के लिए नाश्ता बनाया, उदयराज और काकी ने नाश्ता किया और चले गए।

बैठक में सभी बड़े बुजुर्ग शामिल हुए, बहुत ही गमहीन माहौल था, बिरजू भी आ चुका था, वो उदयराज के बगल में बैठा था।

कुछ देर तक सब चुप ही थे फिर लखन बोला- मुखिया जी इस समस्या का हल कुछ तो होगा, आखिर ऐसा क्या है हमारे गांव में, क्यों हम अपनों को खो रहे हैं धीरे धीरे? हमारी संख्या कितनी कम हो गयी है, अपनो को खोने का दुख तो आपने भी झेला है।

बिरजू- लखन तुम्हारा दर्द केवल तुम्हारा नही है, ये पूरे गांव, पूरे कुल का है, हम सभी ने अपनों को खोया है, और खो रहे हैं, जबकि हमारे गांव में हमारे कुल के लोगों में लेश मात्र भी न तो कोई गलत भावना है, न गलत नीयत है, न वो गलत करते हैं, इतने ईमानदार, सही, सच्चे, प्रकृति के अनुरूप चलने वाले लोग हैं हम, फिर भी न जाने नियति हमसे क्या चाहती है। लेकिन हम सब मिलकर इसका हल निकालेंगे, की आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

उदयराज अभी चुप रहकर सुन ही रहा था वह मन ही मन बिरजू की इस बात से झेंप जाता है।

एक बुजुर्ग महिला बोली- लेकिन जिस का हल हमारे बड़े बुजुर्ग लोग, जो एक पीढ़ी इस दुनिया से चली गयी वो नही निकाल पाई तो हम कैसे निकालेंगे, और इसका हल होगा क्या?

अब उदयराज बोला- हां बात तो ये बिल्कुल सही है, की इसका हल हम जैसे आम इंसान के पास नही होगा, होगा तो किसी सिद्ध पुरुष, किसी महामुनि, या किसी दैवीय पुरुष के पास ही होगा।

इतने में थोड़ी दूर बैठी एक अत्यंत बूढ़ी स्त्री बोली- उदय बेटा, एक उम्मीद की किरण तो है।

उदयराज और बिरजू- हां अम्मा बोलो न, क्या उम्मीद की किरण है जो हमारी समस्या को हल कर सकती है।

बूढ़ी स्त्री- हमारे गांव से दक्षिण की तरफ करीब 300 किलोमीटर दूर एक जंगल है जहां एक सिद्ध पुरुष आदिवासियों के साथ रहते हैं करीब यही 8, 10 साल से, उसके बारे में ज्यादा तो नही पता पर इतना ही जानती हूं कि वो कोई विदेशी पुरुष थे जो हमारे देश में तपस्या कर सिद्धियां प्राप्त करने आये थे, उन्होंने कई लोगों की बहुत सी समस्याओं का समाधान किया है, उन्होंने उस जंगल के आदिवासियों को बहुत बड़ी मुसीबत से निकाला था, इसलिए वो आदिवासी अब उन्हें ही अपना राजा मानते हैं और उस सिद्ध महात्मा पुरुष की पूजा करते है, वो महात्मा उन आदिवासियों की सेवा से इतने खुश हुए की वो अब उन्ही के साथ रहते हैं जंगल के बीचों बीच उस महात्मा का आश्रम है और आदिवासी जंगल के बाहर तक पहरा देते हैं, कोई आम इंसान इतनी आसानी से बिना आज्ञा के जंगल के भीतर भी नही जा सकता, मैं बस इतना ही जानती हूं, परंतु ये कहना चाहती हूं कि, और जानकारी पता करके हमे अपनी फरियाद लेके उनके पास जाना चाहिए क्या पता कोई रास्ता निकाल आये।

बिरजू- लेकिन अम्मा आपने तो अभी कहा कि आम आदमी इतनी आसानी से उनसे नही मिल सकते तो इतने सारे लोग एक साथ अगर जाएं तो नामुमकिन ही होगा मिलना।

बूढ़ी स्त्री- हां जाना तो एक दो लोगों को ही पड़ेगा, सबका मुमकिन नही।

बिरजू- हां तो मैं चला जाऊंगा।

उदयराज- (बिरजू के कंधे पर हाँथ रखते हुए) बिरजू मेरे भाई, मुखिया होने के कुछ काम मुझे भी कर लेने दे, मेरे सारे काम तू ही करेगा तो आने वाली पीढ़ी मुझे धिक्कारेगी, क्या मैं सिर्फ नाम का मुखिया हूँ, ये काम मैं ही करूँगा।

बिरजू- तो फिर मैं और आप चलते हैं।

उदयराज- नही बिरजू, तू यहीं रह गांव की देख रेख कर, वहां आने जाने में 2 3 दिन तो लगेंगे ही इस बीच गांव में कोई मुख्य जिम्मेदार इंसान तो होना चाहिए न। तू यहीं रह, मैं चला जाऊंगा।

गांव के और लोगों ने उदयराज के साथ जाने की जिद की परंतु उदयराज ने सबको रोक दिया, बैठक समाप्त हुई, यह निर्णय हुआ कि उदयराज उस दैवीय पुरुष से मिलने जाएगा।
 

Top