Incest Paap ne Bachayaa written By S_Kumar

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Mast story hai bhi mein bar bar is story ko mast bolne pr majbur ho jata hun
Bhai ek request h update thoda bada hota to aur maza ata
Shukrya bhai mai sirf cnp kar raha hoon to update jisa pahle se likha hai vaisa hi post kar raha hai
 
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Update- 15

बैठक समाप्त हुई, सब लोग अपने अपने घर आ गए, उदयराज और काकी भी घर आ गए, लगभग शाम हो गयी थी। रजनी अपने बाबू और काकी को देखके खुश हो गयी और पीने के लिए पानी लायी, उदयराज भी रजनी को देखकर एक पल के लिए सब भूल गया, वो उसे कुछ देर के लिए देखता रहा, रजनी अपने बाबू की आंखों में बेसब्री और इंतज़ार देखकर थोड़ा मुस्कुरा दी और इशारे से थोड़ा सब्र और धीरज रखने को बोली फिर उदयराज हाथ मुँह धोकर फ्रेश हुआ और द्वार पर खाट पे बैठ गया।

रजनी- बाबू लो, पानी पियों, बताओ क्या हुआ बैठक में कोई हल निकला?

उदयराज और काकी ने पानी पीते हुए रजनी को सब बताया।

रजनी- अपने अकेले वहां जाने का निर्णय ले लिया और गांव वालों ने आपको आसानी से अकेले जाने के लिए सहमति जता दी।

उदयराज- अरे नही बेटी, ऐसा नही है, बिरजू तो सबसे पहले बोला कि मैं जाऊंगा, मैंने ही उसे मना किया फिर वहां बैठे हर लोग साथ जाने के लिए तैयार थे परंतु वहां बहुत सारे लोग जा नही सकते, इसलिए मुखिया होने के नाते मैं ही वहां जाऊंगा।

रजनी- अपने मना किया और गांव वाले आसानी से मान गए, कोई भी ऐसा नही निकला जो जिद पकड़ के बैठ जाता कि कुछ भी हो हम अपने मुखिया को अकेले नही जाने देंगे, माना कि आप मुखिया हो और ये आपका फ़र्ज़ है पर गांव वालों का भी तो फ़र्ज़ है कि वो अपने मुखिया को अकेले न छोड़ें। आखिर आप जा तो वहां हमारे कुल, हमारे गांव की समस्या के लिए ही रहे हो न बाबू।

उदयराज- नही बेटी गांव वालों पे संदेह न कर मेरी बिटिया, एक भी इंसान वहां मेरे साथ जाने के लिए पीछे नही हटा, मैंने ही रोका उन्हें।

रजनी- पर आपने ये कैसे सोच लिया कि आपकी अपनी ये बेटी आपको अकेला जाने देगी, मैं आपको वहां अकेला हरगिज नही जाने दूंगी, आपके सिवा कौन है मेरा, न जाने कैसा रास्ता होगा, कितना वक्त लगेगा, कभी उस तरफ कोई गया नही, कितना दुर्गम रास्ता होगा, न जाने वो लोग कैसे होंगे, जब आप खुद बता रहे हो कि वो महात्मा आदिवासियों के बीच रहता है तो ऐसे आदिवासियों के बीच मैं आपको हरगिज़ अकेले नही जाने दूंगी, न जाने रास्ते में कहां कहां रुकना पड़े, कब तक आप अकेले बैलगाड़ी चलाओगे, कहाँ ठहरोगे, क्या खाओगे, क्या पियोगे, किसी भी कीमत पर मैं आपको अकेला नही छोड़ सकती, इतना कहते हुए रजनी रुआँसी हो गयी।

उदयराज ने उठकर रजनी को काकी के ही सामने बाहों में भर लिया- ओह्ह मेरी बेटी, मैं अब क्या बोलूं, लेकिन एक छोटी बच्ची को लेके तेरा मेरे साथ जाना क्या ठीक होगा?

रजनी- कुछ भी हो, मैं उसे भी ले चलूंगी, पर मैं आपको अकेले नही जाने दूंगी।

काकी को भी रजनी की बात ठीक लगी, उदयराज का एक ऐसी जगह अकेले जाना ठीक नही था, और उदयराज ने ये फैसला किया था कि ये काम केवल मुखिया के हांथों ही होगा तो कम से कम मुखिया के घर वाले तो जा ही सकते है उसके साथ, किसी भी इंसान का बिल्कुल अकेले जाना ठीक नही, बात यह नही थी कि उन आदिवासियों से कोई डर था क्योंकि वो तो एक महात्मा के रक्षक थे वो भला किसी को नुकसान क्यों पहुचायेंगे बल्कि बात ये थी कि रास्ता लंबा है, अकेले बैलगाड़ी चलाते चलाते वो थक जाएगा तो एक प्यारी सी गोद चाहिए जिसपर सर रखके वो आराम कर ले, भूख लगेगी तो कोई प्यारे प्यारे हांथों से खाना खिला दे, धूप में चलते चलते थक जाए तो अपनी जुल्फों तले छाया दे दे, और ये सब काम कोई पुरुष नही बल्कि स्त्री ही कर सकती थी और रजनी से अच्छा तो कोई कर ही नही सकता था।

उदयराज भी रजनी का साथ छोड़ना नही चाहता था, वो चाहता था कि वो जहां भी रहे उसकी बेटी उसके साथ हो।

काकी- तो मैं यहां अकेले क्या करूँगी, मेरा भी तो फ़र्ज़ है कि मैं अपनी बेटी को अकेले न छोडूं, आखिर उसके साथ छोटी सी बच्ची है मैं रहूंगी तो उसको संभाले रहूँगी, कोई दिक्कत नही होगी, आखिर मुझे भी मेरा फ़र्ज़ पूरा करने दो, मुझे भी साथ ले चलो।

उदयराज- परंतु काकी, यहां घर का और जानवरों के ख्याल रखने के लिए कोई तो चाहिए।

काकी- उसके लिए मैं बिरजू और उसकी बेटी नीलम को बोल देती हूं, जानवरों का ध्यान रख लेंगे वो।

उदयराज - ठीक है फिर, मैं खुद बिरजू को बोल देता हूँ, पर एक बात मेरे मन में है कि मुझे अपने मित्र, रजनी के ससुर बलराज को भी ये घटना और हमारा ये निर्णय लेना सूचित करना चाहिए, आखिर वो मेरे मित्र हैं, उन्हें कुछ पता नही है अभी तक, बाद में पता चलेगा कि हमने इतना बड़ा निर्णय लिया है तो शायद उन्हें बुरा लगेगा, आखिर उन्होंने रजनी को मेरी सेवा के लिए उम्र भर यहां छोड़ दिया, उनका कितना बड़ा त्याग है, मुझे उन्हें बताना चाहिए।

रजनी- हां बाबू जरूर, ससुर जी को बता दीजिए, ये आपने सही कहा।

उदयराज ने तुरंत एक संदेशवाहक को भेज के बलराज को अपने घर आने के लिए आग्रह किया, बलराज ने संदेश वापिस भिजवाया की वो एक घंटे में उनके घर आ रहा है। इधर काकी बिरजू के घर जाके उसको और उसकी बेटी नीलम को जानवरों की देखभाल की जिम्मेदारी दे आयी, बिरजू तो काकी को देखके हाथ जोड़के खड़ा हो गया और बोला- काकी ये क्या बोल रही हो, आपको तो बोलने की भी जरूरत नही, आखिर उदय भैया हम सब लोगों के लिए ये कर रहे है, क्या हमारा इतना भी फ़र्ज़ नही, आप बेफिक्र रहिए।

नीलम को मन ही मन रजनी के इस निर्णय पर की वो अपने बाबू के साथ जरूर जाएगी, नाज़ होता है, वो सोचती है कि रजनी कितनी भाग्यशाली है जो हर वक्त अपने बाबू के साथ रहती है जैसे उनकी ही जीवनसंगिनी हो, ये सोचते हुए वो भी अपने बाबू बिरजू की तरफ देखने लगती है, और मुस्कुरा देती है। एक तो उस दिन शेरु और बीना की चुदाई देख जो खुमारी और नशा चढ़ा था वो उतरा नही था, ऊपर से रजनी का अपने बाबू के प्रति प्रेम नीलम पर भी असर कर रहा था वो भी अपने बाबू को न जाने क्यों बार बार देखती रहती थी छुप छुप कर। चुदाई की लालसा मन में बैठ गयी थी, उसका अब मायके में मन नही लग रहा था क्योंकि ससुराल में होती तो पति से चुदती पर यहां कौन उसे कस कस के चोदेगा? बूर ने उसकी बगावत कर रखी थी, बस वो उसे समझाए ही जा रही थी और अब उसका मन बदल रहा था, उसे अपने बाबू पर प्यार आ रहा था धीरे धीरे। रिझाना तो वो चाहती थी अपने बाबू को पर डरती बहुत थी, क्योंकि अभी ये सब एकतरफा ही था, बिरजू को इसकी आहट भी नही थी।

थोड़ी देर में उदयराज के घर से सामने कुएं के पास सड़क पर एक तांगा आके रुका, बलराज उसमे से उतरा, उदयराज ने देखते ही आगे बढ़के अपने समधी का स्वागत किया, रजनी घर में चली गयी जल्दी से और एक लाल रंग की साड़ी पहन कर घूंघट डाल कर दोनों के लिए पानी लेकर आई और अपने ससुर के पैर छुए,

बलराज- जुग जुग जियो बहू।

रजनी- पिताजी आप कैसे हैं।

बलराज- मैं ठीक हूँ बहू, तुम कैसी हो।

रजनी- मैं भी ठीक हूँ और आपकी पोती भी ठीक है, रजनी अपनी बेटी को ला के ससुर की गोद में दे देती है और वो उसे खिलाने लगता है। फिर रजनी को दे देता है। रजनी अंदर चली जाती है।

उदयराज और बलराज बातें करने लगते है उदयराज बलराज को सारी बातें बताता है, बलराज उसके निर्णय से बहुत खुश होता है कि आखिर वो उदयराज जैसे इंसान का मित्र और समधी है जिसे अपने गांव और कुल की जीवन रक्षा की इतनी चिंता है और उसे अपनी बहू पर भी नाज़ हुआ।

बलराज- तो कब निकलोगे वहां के लिए।

उदयराज- सोच रहा हूँ कल सुबह जल्दी ही निकल जाऊं।

बलराज- मैं भी चलना चाहता हूं तुम्हारे साथ मित्र।

उदयराज- नही मित्र, अभी तो मुझे ही जाने दो, आगे फिर कभी जरूरत पड़ी या दुबारा जाना हुआ तो बताऊंगा, वैसे भी वहां ज्यादा लोगों का जाना ठीक नही।

बलराज- ठीक है मित्र, जैसा तुम्हे ठीक लगे। तो फिर मुझे आज्ञा दो जाने की।

उदयराज- अरे! ऐसे कैसे, आज रात रुको कल सुबह जाना, कितने दिनों बाद तो आना हुआ है, ऐसे तुरंत नही जाने दे सकता मैं तुम्हे। रुको अभी सुबह चले जाना। लेटो आराम करो।

बलराज जाने की कोशिश करता है पर उदयराज उसे आज रात रुकने के लिए बोल देता है।

बलराज- ठीक है मित्र, फिर बिस्तर पर लेटकर दोनों बातें करने लगते है।

अंधेरा हो चुका था रजनी खाना बनाने लगती है, खाना बनने के बाद सबने खाना खाया फिर सब सो जाते हैं, सुबह उदयराज रजनी और काकी जल्दी उठकर सारी व्यवस्था करते है जाने की, रजनी नाश्ता तैयार करती है, काकी रास्ते के लिए कुछ राशन पानी रखने लगती है और उदयराज बैलगाड़ी तैयार करने लगता है, सारी व्यवस्था होने के बाद गांव वालों को सूचित किया जाता है कि वो अब निकल रहे हैं, नाश्ता करके बलराज भी अब घर जाने के लिए तैयार हो जाता है फिर गांव वाले इकठ्ठे हो जाते है सबलोग मिलकर उदयराज, रजनी और काकी को विदा करते है, बलराज भी अपने घर चला जाता है, उदयराज बैलगाड़ी चला रहा होता है और रजनी और काकी पीछे बैठे होते है, बैलगाड़ी के ऊपर छत भी होती है जिससे धूप न लगे, अभी तो खौर सूर्य भी नही निकला था जब वो लोग निकले।

सब गांव वाले चले जाते है परंतु नीलम और बिरजू वहीं खड़े जब तक बैलगाड़ी ओझल नही हो जाती देखते रहते हैं

नीलम- बाबू, रजनी कितनी खुशनसीब है न।

बिरजू- क्यों बिटिया, क्या हुआ?

नीलम- देखो न हर वक्त अपने बाबू का ख्याल रखती है।

बिरजू- हां ये तो है, पर खुशनसीब तो मेरी बिटिया भी है, क्या वो अपने बाबू का ख्याल नही रखती, बिल्कुल रखती है।

नीलम खुशी से झूम उठती है, और अपने बाबू के साथ घर की तरफ चलने लगती है।
 
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Update-16

नीलम और बिरजू अपने घर आ जाते हैं, उस वक्त सूर्य भी नही निकला था बिरजू एक बार फिर अपने बिस्तर पे लेट जाता है और उसकी आंख लग जाती है, नीलम घर में जाके कुछ काम करने लगती है और सोचती है कि आज उसको गेहूं धोना है, मां ने बोला था कल ही गेहूं धो देना घर में आटा खत्म हो गया है, गेहूं धो कर छत पे फैला देना धूप में सूखने के लिए।

उसकी माँ थोड़ी बूढ़ी हो गयी थी वो घर का ज्यादा काम नही कर पाती थी, सब जानते थे कि नीलम की माँ की उम्र उसके बाप बिरजू से ज्यादा थी, उनके बाप दादाओ ने उस वक्त आपसी प्यार और जानपहचान होने की वजह से उम्र का अंतर होने पर भी शादी कर दी थी, इसलिए बिरजू अभी काफी जवान हष्टपुष्ट था पर नीलम की माँ ढल गयी थी।

सर्य निकल गया, बिरजू उठा और फ्रेश होकर नीलम से बोला- नीलम बेटी, मैं जरा घास लेने जा रहा हूँ, आज थोड़ी ज्यादा घास लानी होगी, उदय भैया की भैसों के लिए भी लाना होगा, बैल तो वो ले गए हैं, यहां पे जो गाय और भैंस हैं उनके लिए चारा ले कर आता हूँ।

नीलम- हां बाबू ठीक है, पर एक काम करो न, अपने घर के पीछे जो बजरी बोई है न उसमे काफी घास हो गयी है, उसी खेत में से काट लो, दूर न जाओ बाबू, बहुत घास है उसमें।

बिरजू- ठीक है बेटी, जाता हूँ वहीं और घर के पीछे की तरफ खेत में चला जाता है।

नीलम के घर के बिल्कुल पीछे बांस (bambooo) लगाया हुआ था और उसके पीछे खेत था, बांस इतने बड़े और लंबे लंबे थे कि पूरे छत को cross करके ऊपर तक फैले हुए थे।

नीलम ने भी घर में आके गेहूं धोना स्टार्ट कर दिया, धो धो कर बाल्टी में रखकर ऊपर छत पर फैलाने के लिए ले जाने लगी, छत पे पहुंच कर उसने छत पे ही खाट बिछाई और उसपे चादर डाल दिया फिर गेहूं उस खाट पे पलट कर हाँथ से फैलने लगी कि तभी उसको अपने बाबू बिरजू नीचे थोड़ी दूर खेत में घास काटते दिखाई दिए, सूर्य की रोशनी उनपर पड़ रही थी, सांवला बदन चमक रहा था, नीलम गेहूं फैलाना रोक कर बांस की ओट से कुछ देर देखती रही, ऐसा लग रहा था कि वो अपने बाबू की दीवानी हो रही है, प्यार हो रहा है उसे अपने बाबू से ही,
घास काटते हुए बिरजू को जरा भी ये अहसास नही था कि उसी की जवान शादीशुदा बेटी उसे निहार रही है, उस पर आसक्त हो रही है, दिल दे बैठी है वो उसे, कुछ चाहती है वो उससे, किस्मत खुलने वाली है उसकी। बड़े ही लालसा भारी और उम्मीद भारी नजरों से नीलम छुप छुप कर अपने बाबू को ताड़ रही थी, कभी शर्मा कर गेहूं फैलाने लगती कभी रुक कर फिर देखने लगती।

मन में सोच रही थी कि काश उसके बाबू उसकी मंशा जान लेते, कितना मजा आया होगा बीना को उस वक्त जब वो अपने पिता से चुदवा रही थी, क्यों है इतना नशा इस रिश्ते में? और छुप छुप के घर में ही हो तो कितना मजा आ जाये, पर न जाने मेरे बाबू कब ध्यान देंगे की उनकी बेटी अब उनसे क्या चाहती है, मुझे तो अपने ही बाबू से प्यार होता जा रहा है, क्या सोचेगी दुनिया अगर किसी को पता चल गया तो, खैर सोचे जो सोचे मुझे किसी की परवाह नही, भाड़ में जाये मान मर्यादा, बस मेरे बाबू मेरे हो जाएं, ससुराल भी न जाऊं मैं तो फिर, बहाने कर कर के यहीं रहूँगी।
कितना मन कर रहा है मेरा मिलन करने का, कैसे मैं रिझाऊं बाबू को, कैसे बताऊं उन्हें, किससे अपनी मन की व्यथा कहूँ, रजनी भी नही है जाने कब आएगी, लेकिन मैं रजनी से कहूंगी जरूर की वो कोई रास्ता या तरीका बताये, मैं जानती हूं वो इसे गलत नही कहेगी, वो मेरी बचपन की सहेली है, मेरी मन की व्यथा को समझेगी, क्योंकि उस दिन वो भी बीना और शेरु की चुदाई मजे से देख रही थी। अगर वो बाप बेटी के इस मिलन को गलत मानती तो उस दिन बीना और शेरु को चुदाई शुरू करने से पहले ही पत्थर मारकर भगा देती, या खुद उठकर भाग जाती, पर वो देखती रही, इसका मतलब वो इसे गलत नही मानती, हाय! रजनी जल्दी आ जा मेरी सहेली, अब तुझसे कुछ बात करना है मुझे। (मन में ही ये सब सोचे जा रही थी और कभी कभी मुस्कुरा उठती)

न जाने ऐसा क्यों हो रहा है, मेरे बाबू मेरे मन में उस रूप में बसते जा रहे है, पहले मैं उनको बस पिता की नजर से ही देखती थी पर अब मैं उनमे एक मर्दाना पुरुष ढूंढ रही हूं, ये सब उस दिन बीना और शेरु की चुदाई देखकर ही हुआ है, उन दोनों ने मेरा नजरिया बदल दिया है। काश मेरे बाबू मेरी प्यास बुझा देते। काश! कितना मजा आ जाता, हाय!... काश!

यही सब सोचते हुए वो गेहूं फैलाये जा रही थी, फिर वो नीचे गयी और गेहूं की दूसरी बाल्टी ले आयी, उसने दूसरी खाट डाली और उस पर एक और चादर डाला और गेहूं की बाल्टी खाट पे अभी पलटी ही थी कि उसने अपने बाबू की तरफ देखा।

बिरजू घास काटना छोड़ कर बांस की तरफ आ रहा था, नीलम को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि बाबू बांस की तरफ क्या करने आ रहे हैं वो थोड़ा साइड में छिप सी गयी, बांस की ओट थी जिससे बिरजू उसे नही देख सकता था, वहां से बिरजू नीलम को साफ दिखाई दे रहा था, पर बिरजू को नीलम नही दिख सकती थी क्योंकि वो ऊपर छत पर बांस की ओट में थी।

एकाएक बिरजू ने दोनों साइड नजर घुमाई और पीछे देखा की कहीं कोई देख तो नही रहा, पर उसकी नज़र ऊपर नही गयी, फिर एकदम से बैठकर अपनी धोती साइड कर, मोटा, काला और लंबा लंड जो सुस्त अवस्था में भी लगभग 7 इंच लंबा था, बाहर निकाल लिया, नीलम अवाक सी रह गयी अपने ही बाबू का काला विशाल लंड देखकर, नीलम की तो सांसे ही हलक में अटक सी गयी, शर्म से वो लाल हो गयी, हाय दैय्या! बोलकर उसने एक बार इधर उधर देखा कि कहीं कोई मुझे ये देखते हुए न देख ले, फिर उसने छत पे बनी सीढ़ियों की तरफ देखा कि कहीं कोई ऊपर तो नही आ रहा, फिर पीछे होकर बांस की ओट से अपने बाबू का मदहोश कर देने वाला लंड देखने लगी।

बिरजू ने लंड की आगे की चमड़ी को आधा पीछे किया जिससे लंड का आधा सुपाड़ा बाहर दिखने लगा जो कि किसी मध्यम आकार की गुलाबी गेंद जितना बड़ा था।

नीलम मंत्रमुग्ध और बदहवास सी हो गयी, उसकी सांसे उखड़ चुकी थी, वो एक टक बिरजू के लंड को निहार रही थी।

तभी बिरजू ने पेशाब की धार छोड़ दी, और लंड की आगे की चमड़ी को मूतते हुए पूरा पीछे खींच दिया, पूरा का पूरा गुलाबी सुपाड़ा बाहर आ गया, इतना मोटा और बड़ा सुपाड़ा देख नीलम पागल सी हो गयी। धूप में चमकते काले मोटे लंड का हल्का गुलाबी सुपाड़ा गज़ब ही ढा रहा था, छत पर से कुछ दूरी होने पर भी नीलम लंड के आगे का छेद साफ देख पा रही थी और उसमें से निकलती पेशाब की धार ने उसे मदहोश कर दिया, कुछ ही पल में वो पसीने पसीने हो गयी।

बिरजू की इस तरह लंड की चमड़ी पीछे खींचकर पेशाब करने की आदत थी, पर उसकी इस आदत ने आज नीलम को मदहोश कर दिया था। एक तो वो वैसे ही चुदासी थी ऊपर से नियति ने उसे वही लंड दिखा भी दिया जिसके बारे में वो मन में अक्सर सोचती थी कि कैसा होगा, आज नियति ने साक्षात् दिखा ही दिया था कि जैसे कह रही हो ले देख ले अपने बाबू का लंड, यही तुझे अब चोदेगा, यही प्यास बुझायेगा, यही तेरी गहराई में उतरेगा।
पर कब? इसने तो अब प्यास और बढ़ा दी थी, बूर पनिया गयी नीलम की, किसी भी तरह से उसके पति का लन्ड उसके बाबू के लन्ड के आगे टिक नही सकता था।

अपने बाबू का लंड देखकर ही नीलम मचल उठी, मानो वह उसे अपनी बूर की गहराइयों में अंदर तक घुसता हुआ महसूस कर रही हो और शर्म से एक पल के लिए वहीं बैठ गयी, थोड़ी सांसे थमी तो उठी तब तक बिरजू मूत चुका था उसने अपने लंड को हल्का सा दो चार बार हिलाया ताकि पेशाब की बची बूंदें गिर जाएं और मदहोश कर देने वाले लंड को धोती के अंदर कैद कर वापिस घास काटने चला गया।

उसे जरा भी आभास नही हुआ कि उसकी सगी बेटी ने उसका लंड देख लिया है।

नीलम कुछ देर वहीं फिर से बैठ गयी, अपनी सांसों को काबू करती रही, बार बार बाबू का लन्ड नज़रों में आ जाता, कि वो कैसा था कितना बड़ा और मोटा था और उसका खुला हुआ आगे का हिस्सा hhhhhaaaaaiiiiiii.

सोचने लगी कि अब कुछ भी हो वो अपने बाबू को पा के रहेगी, वो ये जानती ही थी कि उसकी माँ अब बूढ़ी हो चली हैं तो बाबू तो प्यासे ही होंगे, और वो तो लंड देखके ही समझ गयी थी कि प्यासा तो है उनका लंड। पानी छोड़ छोड़ के उसकी पूरी पैंटी गीली हो गयी थी पर करे क्या? कैसे भी करके अपने मन को धीरज दिया, समझाया, फिर सोचने लगी आखिर हम बेटियां अपने बाबू को सुख क्यों नही दे सकती, बचपन से लेकर जवानी तक वो पुरुष, पिता के रूप में उसे पलता है, पोषता है, उसकी हर तरह से रक्षा करता है, और जब कभी वो पुरुष यौनसुख के लिए तरसने लगे तो क्या बेटी का फर्ज नही की वो अपनी अनमोल चीज़ (बूर) अपने उस पुरुष को परोस दे जिसने हमेशा उसकी रक्षा की हो, क्या उस चीज़ पर उसका कोई हक नही? क्यों करे वो लोक लाज की फिक्र, आखिर वो उन्ही के अंग से बनी है और वही अंग अगर उसमें मिल गया तो क्या गलत हो जाएगा और अगर हो भी जाएगा तो होता रहे।

यही सब सोच ही रही थी कि उसकी माँ की आवाज उसके कानों में पड़ी जो उसे बुला रही थी, उसने बाल्टी उठायी और सीधा नीचे भाग गई।
 

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