Incest Paap ne Bachayaa written By S_Kumar

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Update-24

उदयराज ने अपनी समस्या बताते हुए आगे कहा- हे महात्मा हमारी रक्षा कीजिये, नही तो हमारा नाश हो जाएगा, बाहरी दुनियां में पाप, दुराचार, अधर्म सब कुछ हो रहा है, परंतु फिर भी पूरी दुनियां आगे बढ़ रही है, जनसंख्या बढ़ रही है एक संतुलन बना हुआ है, मृत्य हो रही है तो जन्म भी हो रहे हैं, लोग गलत करके भी खुश है, परंतु हम लोग डर और दुख के साये में जी रहे है, आगे हमारे कुल, हमारी सभ्यता का क्या होगा, हमारा तो अस्तित्व ही खतरे में आ गया है, महात्मा हमारी जान बचाइए, कोई रास्ता बताइए जिससे ये पता लगे कि ऐसा क्यों है, क्यों हमारी संख्या अनायास ही घट रही है, क्यों हमारा संतुलन बिगड़ गया है, और इसका हल क्या है? यह कैसे सुधरेगा? इसके लिए क्या करना होगा? इतना सबकुछ विस्तार से बताते-बताते उदयराज की आंखें नम हो गयी थी, महात्मा को इसका अहसास था, अन्य लोग भी काफी उदास हो गए।

महात्मा ने उन्हें सांत्वना दी और बोले- चिंता मत करो हर समस्या का हल होता है, क्या तुम अपने घर से कुछ चावल के दाने लाये हो।

सुलोचना- हाँ महात्मा लाये हैं और सुलोचना ने वह छोटी चावल की पोटली महात्मा को दे दी।

महात्मा ने अपने सामने बने हवन कुंड में कुछ लकड़ियां रखकर जला दी, उसमे कुछ जड़ी बूटियां डाला फिर एक सुगंधित द्रव्य डाला और उदयराज के घर के चावल के कुछ दाने उसमे डाल दिए और बाकी बचे हुए दाने उन्होंने उदयराज, काकी और रजनी को देते हुए कहा इसको मुट्ठी में बंद कर लो और सुलोचना को छोड़कर आप लोग अपने कुल देवता या कुल वृक्ष को आंखें बंद कर ध्यान करो।

उदयराज, काकी और रजनी ने आंखें बंद कर अपने कुलवृक्ष को ध्यान किया।

महात्मा ने मंत्र पढ़ना शुरू किया और ध्यान लगाया, कुछ देर बाद आंख खोला और बोले- ह्म्म्म तो ये बात है।

सबने आँखे खोल दी

महात्मा- मैं जो बताने जा रहा हूँ अब ध्यान से सुनो

ये जो तुम्हारे गांव में बरगद जैसा कुलवृक्ष है वो 500 साल पुराना है।

उदयराज- हां महात्मा लगभग, बहुत पुराना हमारा कुलवृक्ष है वो।

महात्मा- उसी वृक्ष के नीचे बैठकर तुम्हारे एक समकालीन पूर्वज महात्मा ने जो उस वक्त मुखिया भी थे, एक यज्ञ किया था और अपने सम्पूर्ण कुल को मोक्ष दिलाने के लिए बाहरी दुनियाँ से अलग कर बांध दिया था, उन्होंने पहले अपने मंत्र की शक्ति से तुम्हारे कुल के सभी लोगों के अंदर से अधर्म, पाप, गलत सोच, गलत काम का नाश कर उनको पूर्ण स्वच्छ किया और सबकी नीयत को साफ कर पूर्ण कुल को बांध दिया और ये बंधन आज भी लगा हुआ है, उन्होंने ऐसा सोचा कि जब हम लोगों के मन में गलत नीयत होगी ही नही तो हम गलत करेंगे ही नही, बस ईश्वर के बनाये हुए नियम पर चलेंगे, प्रकृति के हिसाब से चलेंगे और बाहरी दुनिया से हमे कोई मतलब ही नही होगा तो हम सब के सब मोक्ष को प्राप्त होंगे, उन्होंने ये सब सम्पूर्ण कुल की भलाई के लिए किया पर ये धीरे धीरे उल्टा पड़ता चला गया और ऐसी स्थिति आ गयी कि संतुलन बिगड़ गया, अब क्योंकि वो महात्मा सिद्ध पुरुष थे तो उनके मंत्र की काट किसी के पास तुम्हारे कुल में नही है और उनके बाद न ही कभी कोई ऐसा सिद्ध पुरुष आया जो इसको समझ पाता और इसको तोड़ पाता। धीरे धीरे जीवन मरण का संतुलन बिगड़ता गया और आज ये स्थिति है कि तुम्हारे कुल के एक तिहाई परिवार खत्म हो चुके हैं।

उदयराज, रजनी और काकी चकित रह गए ये जानकर और अचंभित थे कि कैसे कुछ ही पलों में महात्मा ने उनके कुल की सारी जन्म पत्री खोल कर रख दी थी

उदयराज- तो महात्मा जी क्या जो लोग मर चुके हैं उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ होगा।

महात्मा- नही

उदयराज का अब माथा ठनका।

उदयराज- पर क्यों महात्मा, हम तो सदैव ईश्वर और प्रकृति के बनाये हुए नियम के हिसाब से चल रहे हैं।

महात्मा- जिसकी अकाल मृत्यु हो उसे कभी मोक्ष प्राप्त नही होता, पहले वो प्रेत योनि में भटकता है और जैसा की तुमने बताया कि तुम्हारे गांव में लोग बीमार पड़ते हैं और मर जाते हैं तो ये एक अकाल मृत्यु हुई, और अकाल मृत्यु पाने वाले को मोक्ष प्राप्त नही होता, अकाल मृत्यु का अर्थ है जब कोई जीव अपनी पूर्ण आयु जिये बिना बीच में ही किसी भी कारणवश मर जाये। ऐसे में वो प्रेत योनि में चला जाता है और जब तक उसकी तय आयु पूरी न हो जाये वो वहीं भटकता रहता है, तुम्हारे पूर्वज ने अपनी तरफ से तो अच्छा ही करने की कोशिश की पर वह ये भूल गए कि कोई कितना भी बड़ा महात्मा या सिद्ध पुरुष हो, कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, ईश्वर के बनाये हुए नियम से छेड़छाड़ नही कर सकता और अगर जानबूझ कर करता है तो वह विनाशकारी ही होता है, तुम्हारे पूर्वज ने सोचा कि हम गलत करेंगे ही नही तो सब के सब मोक्ष को प्राप्त होंगे पर नियति ने फिर अकाल मृत्यु देना शुरू कर दिया, और नियमानुसार मोक्ष प्राप्ति विफल हो गयी, क्योंकि मोक्ष प्राप्ति के लिए ईश्वर के बनाये नियमों का सही से पालन करते हुए पूर्ण आयु को प्राप्त होना होता है तभी वह मिलता है पर कुछ विशेष वजह से यह फिर भी नही मिलता, मोक्ष प्राप्ति इतना आसान नही जितना तुम्हारे पूर्वज द्वारा समझा गया और उनकी इस भूल की वजह से कितनो की जान चली गयी।

उदयराज महात्मा का मुंह ताकता रह गया।

महात्मा- नियति कभी भी अपने बनाये हुए नियम में होने वाले छेड़छाड़ के मकसद से बनाये गए नियम को पूर्ण नही होने देती, सोचो अगर यह इतना ही आसान होता तो दुनियां के सब लोग इसका ऐसे ही पालन करके मोक्ष प्राप्त कर लेते और जीवन मरण के झंझट से मुक्त हो जाते, सब लोगों को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती और फिर तो नरक भी खाली हो जाता और मृत्यलोक भी, ये संसार ही खत्म हो जाता, जरा सोचो उदयराज सोचो, क्या होगा अगर सब लोग इतनी आसानी से मोक्ष की प्राप्ति कर स्वर्ग को चले जाएं तो?

इस मृत्यलोक में जीवन की उत्पत्ति तो खत्म ही हो जाएगी, लोग ईश्वर के बनाये हुए नियम पर बड़ी आसानी से चलते हुए अपनी पूरी आयु जीकर मोक्ष प्राप्त कर स्वर्ग में चले जायेंगे, नया जन्म कैसे होगा, धीरे धीरे संसार खाली, नरक के लोग भी अपनी सजा पूरी कर स्वर्ग को प्राप्त हो जाएंगे और नर्क भी खाली हो जाएगा, जब गलत काम होगा ही नही तो एक वक्त तो ऐसा आएगा न की नर्क नगरी में ताला लग जायेगा और मृत्यु लोक भी खत्म।

तो क्या ये इतना आसान है कि कोई इंसान कुछ सिद्धियां प्राप्त करके नियति को ललकारे की देख मैं कुछ छोटी मोटी शक्तियां प्राप्त करके तेरे बनाये नियम को तोड़कर वो कर लूंगा जो मैं चाहता हूँ, क्या ऐसा हो सकता है? सोचो जरा

उदयराज को बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी उसके पूर्वज द्वारा किये गए इस बेवकूफी भरे कार्य से

महात्मा ने आगे समझाया
Mahatma ji ki baten sunkar ek shanti anubhav ho rahi hai mujhko bahut badhiya update mitra
 
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Update-25

महात्मा- एक बात को समझने की कोशिश करो इस ब्रम्हांड में अगर कोई भी चीज़ है तो उसका अस्तित्व जरूर है, और सबकुछ ईश्वर ने ही बनाया है, इस संसार को चलाने के लिए सब चीज़ की जरूरत है

देखो जैसे अगर सफेद है तो काला भी है बिना काले के सफेद का अस्तित्व ही नही है

अगर पुण्य है तो पाप भी है और अगर पाप ही नही होगा तो पुण्य के अस्तित्व को पहचानेंगे कैसे? हमे कैसे पता चलेगा कि पुण्य इसको बोलते है, पुण्य का अस्तित्व पाप से है और पाप का पुण्य से

इसी तरह सिपाही का अस्तित्व चोर से है, चोर है तो सिपाही है, चोर नही तो सिपाही का क्या अस्तित्व

उदयराज महात्मा के चरणों में पड़ गया- हे महात्मा मुझे अब समझ आ रहा है कि हमारे पुर्वज ने क्या गलती की, हमने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है, हमे नियति से छेड़छाड़ नही करनी चाहिए थी।

महात्मा- पुत्र इसमें तुम्हारा कोई दोष नही, ये तुम्हारे द्वारा नही हुआ है, इसके लिए खुद को दोषी मत समझो, तुम्हारे पुर्वज ने अपने मंत्र की शक्ति से तुम्हारे कुल को बांध दिया है इसलिए तुम्हारा कोई दोष नही।

उदयराज- तो महात्मा जी इसका हल क्या है? कैसे हम इसको तोड़कर बाहर निकल सकते हैं। कैसे हम खुद को और बचे हुए लोगों को बचा सकते हैं।

महात्मा ने फिर अपनी आंखें बंद की ध्यान लगाया और आंखें खोली, उन्होंने उदयराज, रजनी और काकी को मुठ्ठी में लिए हुए चावल के दानों को हवन में विसर्जित करने के लिए बोला, सबने वैसा ही किया, महात्मा ने फिर एक मुट्ठी चावल लिया और आंखें बंद कर ध्यान लगाया, कुछ देर बाद आंखें खोल कर फिर से उदयराज, काकी और रजनी को चावल के दाने देकर मुट्ठी बंद करने को कहा, सबने वैसा ही किया और महात्मा ने आंखें बंद कर मंत्र पढ़ना शुरू किया। कुछ समय बाद उन्होंने आंखें खोली।

महात्मा- इसका हल है, इसके लिए तुम्हे उपाय और कर्म दोनों करने होंगे, उपाय तुम्हे तुम्हारे पुर्वज द्वारा लगाए गए मंत्र को काटने के लिए करना होगा और कर्म तुम्हे नियति के नियम को दुबारा स्थापित करने के लिए करना होगा जो खंडित हो चुका है इस वक्त। फिर सब धीरे-धीरे सही हो जाएगा।

उदयराज- कैसा उपाय और कैसा कर्म महात्मा जी?

महात्मा- उपाय ले लिए मैं तुम्हे मन्त्र से सुसज्जित करके चार कील दूंगा जिसको तुम्हे मेरे बताये गए जगह पर गाड़ना है?

उदयराज- बताइए महात्मा जी, जो जो आप कहेंगे मैं करने के लिए तैयार हूं।

महात्मा- पहली कील तुम्हे यहां से जाते वक्त जंगल में एक पीला वृक्ष मिलेगा उसकी जड़ों में गाड़ देना है ध्यान रहे उस पेड़ को छूना मत किसी पत्थर से उस पेड़ को बिना छुए कील को ठोककर गाड़ देना और फिर उस पर एक काम और करना है जो मैं तुम्हे और सुलोचना को एकांत में बताऊंगा।


उदयराज, काकी और रजनी को अब वो पेड़ याद आ गया जो उन्होंने आते वक्त देखा था पीले रंग का

काकी- हाँ महात्मा जी, आते वक्त हमने एक पीला बड़ा सा वृक्ष देखा था, बहुत मायावी वृक्ष जान पड़ता था वो।

महात्मा- वो एक शैतान प्रेत है जो किसी श्राप से वृक्ष रूप में वहां सजा भुगत रहा है उसकी सजा पूर्ण होते ही वह पेड़ सूख जाएगा और उसको मुक्ति मिल जाएगी। वह बहुत पुराना वृक्ष है, डरो मत वह तुम्हारा कुछ नही बिगाड़ सकता जब तक तुम सब लोगों ने सुलोचना द्वारा दी गयी ताबीज़ बांध रखी है बस उस पेड़ को छूना मत, कील गाड़ने के बाद उस पेड़ को तुम्हे कुछ अर्पित करना पड़ेगा जो मैं एकांत में उदयराज और सुलोचना को बताऊंगा, वह अर्पित करते ही वह शैतान खुश हो जाएगा और तुम्हारे पुर्वज द्वारा लगाए गए बंधन के मंत्र को काटने में मदद करेगा।

दूसरी कील तुम्हे अपने गांव की सरहद पर गाड़नी है जब यहां से जाते वक्त तुम अपने गांव के सरहद पर पहुँचो तो दूसरी कील सरहद पर गाड़कर गांव में दाखिल हो जाना, और यहां भी कील गाड़ने के बाद उस पर वही अर्पित करना होगा जो पेड़ पर किया था।

तीसरी कील घर की चौखट पर रात के ठीक बारह बजे गाड़नी है और यहां पर कुछ अर्पित नही करना है केवल कील ही गाड़नी है।

उदयराज- और महात्मा जी चौथी? (बड़ी उत्सुकता से)

महात्मा- चौथी कील तुम्हे अमावस्या की रात को ठीक 12 बजे अपने कुलवृक्ष के नीचे उसकी जड़ में गाड़ना है परंतु यहां पर फिर तुम्हे वही चीज़ अर्पित करना है जो तुमने जंगल के पेड़ और गांव के सरहद पर कील के ऊपर की थी, ध्यान रहे खाली घर की चौखट पर गड़ी कील पर कुछ अर्पित नही करना, खाली तीन जगह।

उदयराज- परंतु महात्मा जी हमारा जो कुलवृक्ष है उसकी जड़ के ऊपर तो एक बहुत बड़ा चबूतरा बना हुआ है, उसकी जड़ तो बहुत नीचे है।

महात्मा- तुम कुलवृक्ष के तने में थोड़ा छुपाकर गाड़ देना उससे भी काम हो जाएगा।

उदयराज- ठीक है महात्मा जी

महात्मा- अपने मुट्ठी में लिए हुए चावल के दानों को अब हवन कुंड में डाल दो।

सबने वैसा ही किया

महात्मा ने बगल में खड़े आदिवासी से कुछ कहा और वह एक पात्र में चार कीलें ले आया।
महात्मा ने उसे बगल में रखा।

उदयराज- महात्मा जी ये तो उपाय हो गया और इनके अलावा अपने जो कर्म बताया उनमे क्या करना होगा? वो कौन सा कर्म है? जिसको करके मैं नियति की खंडित हुई व्यवस्था को पुनः स्थापित कर सकता हूँ।

महात्मा- वो मैं तुम्हे एकांत में बताऊंगा, वो कुछ अलग है क्योंकि हर चीज़ की एक मर्यादा होती है और तरीका होता है।

महात्मा ने सबको अभी पुनः थोड़ा विश्राम करने के लिए कहा और सुलोचना सबको लेके बगल के कक्ष में गयी, वहां पर एक आदिवासी ने सबको एक पात्र में कंदमूल और फल तथा दिव्य रस खाने पीने के लिए दिए।

महात्मा ने वो कीलें तैयार करना शुरू कर दिया
 

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