Incest Paap ne Bachayaa written By S_Kumar

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Update- 28

रजनी और पूर्वा ने मिलकर फटाफट खाना बनाया और सबने जल्द ही खाना खा लिया, अंधेरा हो गया था, मशालें जल चुकी थी।

दिन में काफी थके होने की वजह से सब सोने की तैयारी करने लगे, काकी ने बच्ची को ले रखा था, रजनी और पुर्वा मिलकर सबका बिस्तर लगा रही थी, आज काफी गर्मी थी तो कुटिया के अंदर किसी का सोने का मन नही था, सबका यही विचार था कि बाहर ही बिस्तर डाल कर यहीं सब सोते हैं।

रजनी और पुर्वा खाट बिछा बिछा के सबका बिस्तर लगा रही थी कुटिया के दरवाजे पर एक मशाल जल रही थी जिससे माध्यम रोशनी फैली हुई थी।

रजनी बिस्तर लगाते लगाते बार बार उदयराज को देखे जा रही थी और उदयराज की नजरें भी रजनी पर टिकी हुई थी तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना रजनी ने नही की थी

उदयराज ने नज़र बचा कर अपनी तर्जनी उंगली अपने होठ पर रखते हुए रजनी से होंठों पर एक kiss मांगी।

रजनी को बिल्कुल भी अंदाजा नही था कि उसके बाबू आज जिंदगी में पहली बार इस तरह kiss मांगेंगे, उनका इस तरह नज़रें बचा कर अपनी शादीशुदा बेटी से kiss मांगना रजनी को रोमांचित कर गया, वो सर झुका के मुस्कुरा उठी।

उदयराज अपने गाल पर हाथ रखकर बैठा था और काकी से बातें कर रहा था, हाथ कुछ इस तरह रखा था कि चुपके चुपके नज़र बचा के kiss मांग सके, जब जब रजनी उसकी तरफ देखती उदयराज बड़ी ही मिन्नत करते हुए इशारे से अपनी उंगली को होंठों पे रखते हुए kiss मांगता।

रजनी ने पुर्वा से नज़र बचा के अपने बाबू को हाथ से पिट्टी लगेगी (पिटाई) का इशारा करते हुए शर्मा गयी। कुछ देर बाद फिर सिर उठा के देखा तो उदयराज ने फिर बड़े ही रोमांटिक अंदाज में kiss मांगा। रजनी के होंठ अपने बाबू के होंठ से मिलने के लिए तरसने लगे, उसने आखों से इशारा किया कि यहां तो सब हैं कैसा होगा?

उदयराज भी इस बात से उदास हो गया कि चांस नही मिलेगा, आज सो भी तो बाहर रहे हैं सब, उस दिन की तरह कुटिया में सोए होते तो मजा आ जाता, पर आज गर्मी थी काफी, अंदर सोना काफी मुश्किल भरा हो सकता था।

तभी बच्ची रोने लगी, शायद गर्मी से थोड़ा परेशान हो गयी थी काकी उठकर उसको घुमाने लगी और घुमाते घुमाते वो थोड़ा दूर बैलगाडी की तरफ चली गयी।

उदयराज को तभी पेशाब लगी और वो कुटिया के पीछे जाने लगा, उसने सोचा कि चांस तो मिलेगा नही आज, छोड़ो।

कुटिया के पीछे temporary बाथरूम बनाया हुआ था जिसमे सुलोचना और पुर्वा नहाते थे उसमे पानी से भरी हुई तांबे की गगरी और एक लोटा रखा हुआ रहता था।

रजनी ने उदयराज को कुटिया के पीछे जाते हुए देख लिया कुटिया के पीछे ओझल होने से पहले उदयराज ने रजनी को एक बार पलट के देखा तो रजनी मुस्कुरा दी। उदयराज कुटिया के पीछे अंधेरे में चला गया।

रजनी और पुर्वा ने बिस्तर लगाने का काम पूरा किया और पुर्वा बोली- रजनी तुम बिस्तर पर लेटो मैं अम्मा को पैर में मालिश करके आती हूँ और जैसे ही पुर्वा कुटिया में गयी। रजनी तुरंत कुटिया के पीछे आ गयी

उदयराज थोड़ी दूर पर पेशाब करके लौटकर बाथरूम में हाथ धो रहा था उसे पता नही था कि रजनी चुपचाप आके उसके पीछे खड़ी हो गयी है जैसे ही वो उठा और मुड़ा, रजनी को देखकर उसका मन मयूर झूम उठा, वहां अंधेरा तो था पर पास की चीजें समझने लायक दिख रही थी

रजनी चुप खड़ी अपने बाबू को देख रही थी और उदयराज भी उसकी आँखों में देखने लगा

धीरे से बोला- मुझे लगा था तुम जरूर आओगी, और लपककर अपनी बेटी को बाहों में कसकर भर लेता है। रजनी भी अपने बाबू की बाहों में समा जाती है, दोनों एक दूसरे के पूरे बदन को इस तरह सहलाने और भींचने दबाने लगते हैं जैसे बरसों से मिले नही हैं,

उदयराज के दोनों हाथ रजनी के पीठ, कमर और भारी नितंबों पर मचल मचल कर चलने लगे, सहलाते सहलाते वह कस कस के पीठ कमर और गांड को दबा देता तो रजनी की aaaaaahhhhhh निकल जाती, सिसकियां गूंजने लगी अब रजनी की।

वो धीरे से उदयराज के कान में बोली- बाबू अब मुझसे बर्दास्त नही होता, आपको क्या लगता है मैं निर्दयी हूँ आपको तड़पाती हूँ, नही मेरे बाबू, मैं आपके बिना खुद नही रह सकती और कस के उदयराज से अमरबेल की तरह लिपट गयी।

उदयराज- oooohhhhh मेरी प्यारी बिटिया, मैंने ऐसा कब सोचा, तू तो मेरी जान है, मैं भी तो तेरे बिना नही रह सकता अब, बहुत प्यास लगी है।

रजनी- घर चलके सारी प्यास खूब बुझा लेना अभी थोड़ा सब्र मेरे बाबू।

उदयराज रजनी की आंखों में देखने लगा, रजनी की मोटी उन्नत चूचीयाँ उदयराज के चौड़े सीने में पिस गयी थी, जो कि उदयराज को जन्नत का अहसास करा रही थी, उसके निप्पल कड़क होकर उदयराज के सीने में चुभ रहे थे।
रजनी की आंखों में देखते हुए उदयराज ने अपने होंठ उसके बाएं गाल पर रखकर एक चुम्बन जड़ दिया, रजनी की सिसकी निकल गयी उसने वासना में आंखें बंद कर ली।

उदयराज गाल पर कुछ देर अपने गीले होंठ रखे रहा फिर धीरे से अपने होंठ रगड़ता हुआ रजनी के होंठ के किनारे पर लाया (जहां पर होंठ खत्म होते हैं) वहां बने हल्के से गढ्ढे में अपनी जीभ निकाल कर डाल दी और फिर जीभ की नोक को लिपिस्टिक की तरह रजनी के होंठ के बाएं किनारे से लेकर दाएं किनारे तक धीरे धीरे रगड़ता हुआ लाया, ऐसा उसने 3 4 बार इधर से उधर किया, रजनी असीम आनंद में पहुँच गयी, जीवन में पहली बार उसके बाबू उसके नरम मुलायम लालिमा से भरे होंठ छू रहे थे वो भी इस तरह, वो सिरह उठी और बुरी तरह अपने बाबू से लिपटने के बाद अपने होंठ खोल दिये, उदयराज ने लप्प से अपनी सगी शादीशुदा बेटी की जीभ अपने मुँह में भर ली और बेताहाशा चूसने लगा, रजनी की सांसें धौकनी की तरह चलने लगी, उसकी उखड़ती सांसे उदयराज को और वासना से भर दे रही थी, आज पहली बार सगे बाप बेटी के होंठ एक दूसरे से इस कदर मिल रहे थे।

तभी अचानक एक जुगनू उदयराज के सर पे आके बैठ गया और उसकी हल्की सी टिमटिमाती रोशनी रजनी की अधखुली वासनामय आंखों में पड़ी और उसे होश आया कि कोई आ सकता है इस तरफ, जगमग जगमग टिमटिमाता हुआ जूगनु उदयराज के सर से उतरकर कंधे की तरफ जा ही रहा था कि लड़खड़ा कर रजनी की चूचीयों पर गिर पड़ा और उदयराज के चौड़े मर्दाना सीने व रजनी की मदमस्त मोटी-मोटी गोरी चूचीयों के बीच आ गया, उसकी मदमस्त टिमटिमाती रोशनी दोनों के बीच गजब का उजाला कर रही थी कि तभी उदयराज की भी नज़र उसपर पड़ी और जैसे ही उसने रजनी के होंठ छोड़े जूगनु मोटी मोटी चूची की घाटी में गिर पड़ा और अंदर चला गया, रजनी ने अपने अंगूठे से ब्लॉउज के सबसे ऊपरी बटन को पकड़ कर ब्लॉउज को आगे की तरफ ताना, तो उदयराज की नज़र मोटी मोटी चूचीयों पर पड़ी, नीचे से पड़ रही जूगनु कि रोशनी ने रजनी की पूरी भारी भारी मोटी चुचियों की गोलाई के दर्शन उदयराज को करा दिए, यहां तक कि उदयराज को रजनी के फूले हुए दोनों कड़क गुलाबी निप्पल भी बखूबी दिख गए, इतना सुंदर और वासनात्मक दृश्य देखकर उदयराज पागल हो गया और झुककर बदहवासी से चूचीयों को ताबड़तोड़ चूमने लगा, कभी बीच की घाटी को चूमता तो कभी ब्लॉउज के ऊपर से ही पूरी चूची को, रजनी aaaaaaaahhhhh, hhhhhhhaaaaaiii bbbaaabbbuuuu करने लगी, जूगनु अंदर फड़फड़ा रहा था, एकाएक उदयराज ने रजनी को पलट दिया और उसकी दोनों वासना से सख्त हो चुकी मोटी मोटी चूची को अपनी हथेली में भरकर बहुत सख्ती से भर भरके दबाने लगा, रजनी एक बार फिर बदहवास हो गयी, aaaaaaaaahhhhhhh mmmeeerrreee bbaabbbuu bbaasssss kkaaro कहते हुए उसने भी अपनी बाहें पीछे कर अपने बाबू के गले में लपेट दी और अपने बाबू के ऊपर ही झूल सी गयी, वासना पूरे बदन में इस कदर रेंग रही थी कि दोनों से ही अब खड़ा होना मुश्किल हो गया था, जहां रजनी की मखमली बूर अब रिसने लगी थी वहीं उदयराज का विशाल लन्ड भी लोहे की तरह शख्त हो गया था। उदयराज ने रजनी के दोनों निप्पल पकड़े और मसलने लगा, रजनी ने वासनामय स्वर में धीरे से बोला- बाबू बस करो नही तो वो जूगनु मर जायेगा अंदर ही, और बहुत देर हो गयी अब जाने दो न कोई आ जायेगा इधर।

उदयराज ने एक बार फिर रजनी को होंठों को अपने होंठो में भर लिया और चूसने लगा रजनी की आंखें फिर बंद हो गयी पर कुछ पल बाद वो बड़ी मुश्किल से बोली- बाबू बस करो नही तो यहीं सब हो जाएगा और सब जान जाएंगे, अब सब्र करो, जल्दी से जल्दी घर चलो फिर जी भरके सब कर लेना।

उदयराज ने बड़ी मुश्किल से रजनी को छोड़ा और वो अपनी उखड़ी सांसों को संभालती और भागती हुई कुटिया के दायीं तरफ से आगे की तरह आ गयी।

काकी बच्ची को लेके खाट पे लेटी थी, रजनी को आता देख बोली- अरे रजनी बिटिया कहाँ गयी थी।

रजनी- काकी वो स्नानघर में जो गगरी रखी है न वो खाली हो गयी थी तो मैंने सोचा उसमे पानी भर दूँ, रात में किसी को जरूरत पड़ जाएगी तो?

काकी- हाँ ठीक है, अच्छा किया, ले गुड़िया को दूध पिला दे कब से रो रही है, कितनी देर घुमाती रही मैं इसको, नही तो रो रही थी, भूखी है शायद।

रजनी- हाँ काकी दो।

और रजनी उसको लेकर खाट पे लेट गयी, दूध पिलाने के लिए जैसे ही उसने अपनी साड़ी का पल्लू हटाया, ब्लॉउज के अंदर जूगनु टिमटिमाते हुए रोशनी करने लगा। काकी देखते ही बोली- अरे रजनी ये अंदर कैसे घुस गया?

रजनी हंसते हुए- पता नही काकी, मुझे पता ही नही चला ये कब अंदर चला गया। सब बदमाश हो गए हैं आजकल

और जैसे ही रजनी ने ब्लॉउज के नीचे के तीन बटन खोलकर चूची को बाहर निकाला, मौका पाते ही जुगनू आजाद होकर जगमगाता हुआ ऊपर उड़ गया और उसे देखकर रजनी मुस्कुराती रही।

उदयराज पहले थोड़ी देर वहां खड़ा रहा फिर वो भी कुटिया की बायीं तरफ से धीरे धीरे आ गया और आकर अपनी खाट पर लेट गया, सबकी खाट थोड़ी थोड़ी दूर पर आसपास ही थी, उदयराज सबसे किनारे लेटा था, उसके बाद काकी की खाट थी फिर रजनी और पुर्वा की और दुसरी तरफ सबसे किनारे सुलोचना की।

पूर्वा और सुलोचना भी आ गए और फिर कुछ देर सब बातें करते रहे फिर सो गए।
 
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Update-29

सुबह उदयराज की आंख सबसे बाद में खुली, उसने देखा कि सब उठ चुके हैं और तैयारियों में जुटे हैं, वह भी उठ गया फटाफट चलने की तैयारियां करने लगा, नहा धो कर रजनी ने आज गुलाबी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज पहना था वहीं पुर्वा ने नीला सूट सलवार पहना हुआ था, रजनी तो कयामत लग ही रही थी पर पुर्वा भी किसी से कम नही थी हालांकि वो रजनी से थोड़ा कम गोरी थी पर उसके तीखे नैन नक्श और भरा पूरा यौवन अनायास ही किसी का भी मन अपनी तरफ खींच लेते थे।

उदयराज कभी साइड से तो कभी सामने से दिख रहे रजनी के उन्नत भारी दुधारू उरोज जिसको वो रात को चूस नही पाया था घूरे जा रहा था, रजनी भी अपने बाबू की नजरें भांप कर शर्मा जा रही थी

तैयार होने के बाद सबने नाश्ता किया और फिर चलने की बारी आई तो सुलोचना ने कहा- पुत्र ये ताबीज़ जो मैंने बना कर दिए हैं, तुम लोग हमेशा अपने पास रखना, और हर दीपावली पे अमावस्या की रात इसको पुनः मन्त्र से सुसज्जित कर इसकी शक्ति बरकरार रखनी है।

उदयराज- पर माता हर दीपावली की रात इसको करेगा कौन? हमे तो ये सब आता नहीं।

सुलोचना- अरे तुम्हे किसने कहा करने को पुत्र, तुम्हारी बहन पुर्वा ये सब किसलिए सीख रही है, मैं उसे हर तंत्र मंत्र विद्या में माहिर बना दूंगी, और वो सदैव अपने परिवार और विक्रमपुर की रक्षा में ढाल बनकर खड़ी रहेगी।

पूर्वा ने बगल में खड़ी रजनी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा- क्यों नही, अभी तो मैं सीख रही हूं, सीखने के बाद देखना, मजाल क्या की मैं अपनी भतीजी और भैया तथा पूरे परिवार पर किसी भी तरह की कोई आंच आने दूंगी।

रजनी - मेरी प्यारी बुआ (और उसका हाथ चूम लिया)

उदयराज ने प्यार से पुर्वा के सर पे हाथ फेरा और माथे को चूमते हुए बोला- मेरी प्यारी बहन, अब तो मेरे पास मेरी बेटी और बहन दोनों हो गयी, कितना भाग्यशाली हूँ मैं, मेरी कलाई पर अभी तक राखी के दिन रजनी ही राखी बांध देती थी ताकि कलाई सूनी न रहे पर अब तो साक्षात बहन ही मिल गयी, कितनी खुशियां दे रहा है ईश्वर मुझे, (ऐसा कहते हुए उदयराज ने रजनी की तरफ देखा तो रजनी नज़रें झुकाकर शर्मा गयी)।


पुर्वा- मैं भी आज बहुत खुश हूं अपने भैया को पाकर, कम से कम मेरा एक भाई तो है जिसको मैं राखी बाँधूँगी।

सुलोचना- हाँ बिल्कुल, क्यों नही। अच्छा! राखी के दिन रजनी बिटिया अपने बाबू की बहन बन जाती थी? (सुलोचना ने आश्चर्य से पूछा)

रजनी- हाँ अम्मा, मैं ही बहन बनकर राखी के दिन बाबू को राखी बांध देती थी, काम चलाऊं बहन हूँ मैं अपने बाबू की (और रजनी खिलखिलाकर हँस देती है), पर लगता है अब ये पद मुझसे छिन जाएगा (रजनी ने मजाक में कहा)

उदयराज भी हसने लगता है- हाँ ये तो मेरी सब कुछ है, बिटिया तो मेरी ये है ही, राखी के दिन बहन भी बन जाती है, बस अब माँ बनना बाकी है

और सब जोर से हंसने लगते हैं।

रजनी- जरूरत पड़ी तो वो भी बन जाउंगी।

सुलोचना - जरूर बन जाना, जो स्त्री पूरा घर संभालती हो वो एक तरह से सब होती है।

पुर्वा- रजनी, मेरी सखी, मेरी भतीजी क्या तुम इस बात से उदास हो गयी कि मैंने तुमसे राखी बांधने का हक़ छीन लिया, मेरे साथ साथ तुम भी पहले की तरह राखी बांधते रहना।

रजनी- अरे नही बुआ मैं तो मजाक कर रही थी, राखी तो मैं अपने बाबू को बाँधूँगी ही, प्यारा प्यारा उपहार जो लेना है (रजनी ने फिर मजाक में कहा और हंसने लगी उसके साथ साथ सब हसने लगे)

उदयराज- क्यों नही, मेरी बिटिया रानी जो तेरा मन करे वो कर।

फिर सुलोचना और पुर्वा ने रजनी की बेटी को गोदी में लेकर काफी प्यार किया और अब सबने निकलने की तैयारी की, उदयराज ने बैलगाडी तैयार की, सबने सुलोचना और पुर्वा से विदाई ली, पुर्वा और रजनी थोड़ा भावुक हो गयी।

रजनी, काकी ने सारा सामान बैलगाडी में रख लिया और बैलगाडी में बैठ गयी फिर उदयराज बैलगाडी लेकर अपने गांव की तरफ चल दिया।

सुबह के आठ बजे रहे थे और 4 बजे से पहले वो गांव पहुचना चाहता था इसलिए अब बिना कहीं रुके उसे बैलगाडी चलाना था, समय बीतता गया, काकी और रजनी एक दूसरे से बातें कर रही थी, एकाएक उदयराज को याद आया कि उसने वो बात तो काकी और रजनी को समझायी ही नही की गांव पहुचने पर क्या करना है। उसने तुरंत बैलगाडी पेड़ की छांव में रोकी तो काकी बोली- क्या हुआ उदय?

उदयराज- काकी मैं एक बात बताना भूल गया।

काकी और रजनी- क्या भूल गए।

उदयराज- अच्छा ये बताओ गांव पहुचकर क्या हमें सारी की सारी बातें जस की तस सबको बतानी चाहिए, कि महात्मा ने ये उपाय बताए हैं और ये कर्म बताया है, जबकि कर्म तो हमे अभी खुद भी नही पता, क्यों काकी? क्या हमें बताने चाहिए?

काकी- हां बात तो सही है, ये सब हमे ही करना है तो हम ही चुपचाप करेंगे, सबको क्यों बताना?

रजनी- पर सब पूछेंगे तो, और आखिर पूछेंगे ही, सबको पता है कि हम किस यात्रा पर निकले हैं?

उदयराज- मैंने सोचा है कि हम गांव वालों को ये बोल देंगे कि एक यज्ञ करना है बस, और दिखावे के लिए सबके सामने एक यज्ञ कर देंगे और वो भी दो महीने बाद जब पुर्वा आ जायेगी तब।

काकी- हां ये ठीक है, गांव वालों को बोल देंगे कि महात्मा ने बोला है उनके यहां से कोई शिष्या आके यहां यज्ञ कराएगी और फिर सब ठीक हो जाएगा वैसे उन्होंने अपनी मंत्र की शक्ति से काफी कुछ ठीक कर दिया है। बस एक यज्ञ करना बाकी है वो दो महीने बाद ही हो पायेगा।

रजनी- पर जब गांव वाले पूछेंगे की इसका कारण क्या था तो क्या बतायेंगे?

उदयराज- वो तो हम सच सच जो भी था बता देंगे।

काकी- हां ये ठीक है

उदयराज- तो फिर तुम लोग भी गांव की स्त्रियों को पूछने पर यही बताना।

रजनी और काकी- हाँ, ठीक है।

फिर उदयराज बैलगाडी चलाने लगा।

करीब 2 बजे के आस पास वो लोग अपने गांव की सरहद पर पहुँचे, सरहद के बाहर ही उदयराज ने बैलगाडी रोक दी।

रजनी ने अपने बाबू को लोटे में पानी पीने को दिया, उदयराज ने पानी पीने के बाद लोटा रजनी को देते हुए कहा- आखिर मेरी बेटी को मेरी प्यास का ध्यान रहता है।

रजनी- रहेगा क्यों नही भला, ये भी कोई कहने की बात है। बेटी हूँ आपकी।

उदयराज- चलो अब यहां पर भी एक कील गाड़ ही देते हैं, उदयराज ने एक कील निकली और सरहद पर बने कुछ दूर एक छोटे से मंदिर के पीछे जाकर गाड़ दी, फिर रजनी बैलगाड़ी से उतरी और उदयराज की तरफ देखकर मुस्कुराती हुए मंदिर तक गयी, उदयराज बैलगाडी के पास आकर खड़ा हो गया, वो उनके गांव की सरहद थी तो वहां किसी भी तरह का कोई डर नही था।

रजनी मंदिर के पीछे गयी जहां कील गाड़ी हुई थी, कील के पास बैठकर उसने अपना ब्लॉउज खोलना शुरू कर दिया, नीचे के तीन बटन खोले, इस बार रजनी ने अपनी दोनों ही दुधारू मोटी मोटी चुचियाँ बाहर निकाल ली और दोनों हथेली में ले ली, धूप सीधी चूचीयों पर पड़ रही थी, रजनी ने एक साथ दोनों चूचीयों को पकड़ा और दोनों ही निप्पल को एक साथ कील पर निशाना लगा के दबा दिया, दूध की दो धार चिरर्रर्रर्रर्रर की आवाज करती हुई कील पर पड़ी, रजनी अपनी ही चूचीयों कि चमक देखके मदमस्त हो गयी, फिर जल्दी से चूचीयों को ब्लॉउज के अंदर डाल दिया और बटन बंद करते हुए बैलगाडी तक आ गयी।

काकी बैलगाडी में छपरी में बैठी थी और उदयराज बाहर खड़ा अपनी बेटी को देख रहा था, रजनी ने अपने बाबू को अपनी तरफ देखते हुए देखकर मुस्कुरा पड़ी और छपरी में काकी के पास जा के बैठ गयी।

उदयराज बैलगाडी चलाने लगा, बैलगाडी अब गांव की सरहद के अंदर प्रवेश कर चुकी थी, कुछ किलोमीटर चलने के बाद उन्हें कुछ लोग आते जाते दिखने लगे। उदयराज को देखकर ही वो जोर जोर से चिल्लाने लगे- उदयराज भैया की जय हो, हमारे मुखिया की जय हो, वो गांव के छोर पर रहने वाले किसान थे, पर जब तक उदयराज गांव के काफी अंदर अपने घर पहुचता पूरे गांव में हल्ला हो गया कि मुखिया जी आ गए।

उदयराज ने सबका प्रणाम स्वीकार किया और बैलगाडी घर की तरफ आगे बढ़ा दी। रजनी और काकी तो बहुत ही प्रसन्न थे। वहां की औरतों ने काकी के पैर छूने शुरू कर दिए, काकी ने सबको बड़ी मुश्किल से समझाया, और सबको आर्शीवाद दिया।

करीब 1 घंटे और चलने के बाद वह अपने घर पहुचा तो देखा कि उसके घर के बाहर गांव वालों की काफी भीड़ पहले से मौजूद थी, और बैलगाडी के पीछे पीछे भी कई लोग आ चुके थे। सबको यही जानना था कि आखिर क्या हुआ? सब दुआ और प्रार्थना करे जा रहे थे कि शुक्र है सब सही सलामत वापिस आ गए।
 
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Update- 30

उदयराज ने बैलगाडी अपने घर के बाहर कुएं के पास रोकी, काकी और रजनी बैलगाडी से उतरी, उदयराज, काकी और रजनी कुएँ के पास खड़े हो गए , गांव की सबसे उम्र दराज महिला ने लोटे में जल लेकर एक साथ तीनो के सर के किनारे किनारे सात बार गोल गोल घुमाते हुए आरती उतारी और फिर उस जल को नीम के पेड़ पर अर्पित कर दिया।

बिरजू और परशुराम ने बैठने के लिए पहले से ही खाट बिछा रखी थी, उदयराज सबसे मिला और खाट पर बैठ गया, रजनी और काकी भी बगल वाली खाट पर बैठ गए।

गांव वालों का वहाँ जमावड़ा लग गया था, तभी नीलम भीड़ में से निकलकर आयी और खुशी से रजनी और काकी के गले लग के मिली। उसने उदयराज को भी प्रणाम किया।

नीलम- कैसी है मेरी बहन? काकी आप कैसी हो?

काकी- मैं ठीक हूँ मेरी बच्ची।

रजनी- मैं भी ठीक हूँ, मेरी सखी, तू बता कैसी है।

नीलम- मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ।

बिरजू- नीलम बिटिया हाल चाल बाद में पूछते रहना पहले जा अपनी सहेली, काकी और मेरे परम मित्र मुखिया जी के लिए पानी ले के आ।

नीलम दौड़ी दौड़ी घर में गयी और सबके लिए अपने हाथ से बनाई मिठाई और पानी लेके आयी।

नीलम ने सबको पानी दिया- सबने नीलम के हाथ की बनी मिठाई खाई और उदयराज ने तो खूब तारीफ कर डाली, रजनी और काकी ने भी नीलम की तारीफ करते हुए मिठाई खाई और पानी पिया।

गांव की सभी स्त्रियां और पुरुष आस पास जमावड़ा लगाए खड़े थे, सामने बिरजू और परशुराम बैठे थे।

उदयराज और रजनी को तो जल्दी से जल्दी महात्मा द्वारा दिये गए कागज खोलकर देखने की पड़ी थी, और गांव वाले घेरकर बैठे थे।

तभी बिरजू उदयराज से बोला- भैया अब बताओ, क्या हुआ? कैसा रहा? क्या वो दिव्य पुरुष मिले? हमारी समस्या का हल मिला?

उदयराज और काकी ने उपाय और कर्म वाली बात छोड़कर बाकी की सारी बातें गांव वालों को बता डाली। इसके हल के लिए उन्होंने यही बोला कि एक यज्ञ कराना पड़ेगा और वो भी एक शिष्या दो महीने बाद आ के कराएगी। ये सब सुनकर गांव वाले हैरान रह गए और कुछ लोगों ने तो अपने उस पूर्वज को ही भला बुरा कहना शुरू कर दिया।

काकी ने उनको समझाया कि जो हुआ सो हुआ पर अब उन्हें भला बुरा कहने से क्या फायदा।

बिरजू उदयराज से- भैया आपको यह कुल भगवान की तरह पूजेगा आपने जो यह अत्यंत कठिन यात्रा परिवार सहित करके अपने कुल की जीवन की रक्षा की है, ऐसा तो आजतक कोई मुखिया न कर पाया, आप ही हमारे मुखिया है और सदा रहेंगे, आज पूरा गांव आपको नतमस्तक कर रहा है, सब युगों युगों तक आपके आभारी रहेंगे।

उदयराज ने बिरजू को गले से लगा लिया और बोला - अरे पगले, तुम सब मेरा परिवार हो, मैं अपने परिवार के लिए नही करूँगा तो और कौन करेगा, ये तो मेरा फ़र्ज़ है, और तुम सबने तो मुझे पहले ही गांव का मुखिया बना कर इतना प्यार और सम्मान दिया है, बल्कि देख मेरा तो सारा काम भी तू ही संभालता है तो क्या मेरा ये फ़र्ज़ नही था कि मैं मुखिया होने के नाते ये सब करूँ, सबकी आंखें नम हो गयी।

उदयराज- वो तो हमारी किस्मत अच्छी थी जो भयानक जंगल में हमे एक माता जी मिली जिनके बारे में मैं बता चुका हूं, वो न होती तो ये असंभव था, हम उस जंगल को पार ही नही कर पाते। पूजा करनी है तो उस देवी की करो और अब वो हमारी माता हैं। मैं उन्हें यहां एक बार सबसे मिलाने जरूर लाऊंगा।

उदयराज ने ये बात नही बताई की उस कागज को वापिस देने जाना है, उसकी जगह पर उसने ये बोला कि मैं सुलोचना को यहां एक बार जरूर लाऊंगा और उनको लेने के लिए जाना पड़ेगा।

बिरजू और परशुराम- हां भैया जरूर, हम भी उस महान देवी से मिलना चाहते हैं, पूरा गांव उनको देखना चाहता है।

उदयराज- हां जरूर दो महीने बाद मैं जाऊंगा उनको और शिष्या को लेने फिर वही लोग यज्ञ कराएंगे।

अब जाके गांव वालों को तसल्ली हुई।

तभी बिरजू और परशुराम गांव वालों से बोले- अच्छा तो हमारे भाइयों अब आप लोग कृपया अपने अपने घर को जाएं बाकी की बातचीत हम बाद में करेंगे, आप लोग समझ सकते हैं हमारे मुखिया और उनका परिवार यात्रा करके काफी थक चुका है तो अब उन्हें आराम करने दें।

सभी उदयराज को प्रणाम कर अपने अपने घर को जाने लगे और घर जाके सबने खुशी के दिये जलाए मानो दीपावली हो आज, पूरा गांव शाम को ही जगमगा उठा। अंधेरा होना शुरू हो गया था।

नीलम और उसकी माँ- आप सब लोगों का खाना आज हमारे घर ही बनेगा, तो आप लोग खाना बनाने के लिए परेशान मत होना, हमारे घर ही खाना है आज।

उदयराज, काकी और रजनी ने मना किया पर नीलम नही मानी और सबका खाना बनाने चली गयी। काकी भी कुछ देर अपने घर का हाल चाल लेने चली गयी।

नीलम की माँ ने रजनी की बिटिया को गोदी में ले कर अपने घर की तरफ घुमाने ले गयी और अब घर में यहां पर बच गए रजनी और उदयराज।

रजनी उठकर घर का ताला खोलने जाने लगी जैसे ही रजनी घर के दरवाजे तक पहुँची उदयराज बोला- रजनी बिटिया रुको पहले मैं दरवाजे की डेहरी पर तीसरी कील गाड़ दूँ।

रजनी- हां बाबू ठीक है।

उदयराज ने तीसरी कील निकाली और एक पत्थर से ठोक कर मुख्य दरवाजे की डेहरी के बीचों बीच कील गाड़ दी।

रजनी ने दरवाजा खोला और अंदर चली गयी घर में अभी कोई दिया या लालटेन नही जल रहा था तो काफी अंधेरा था क्योंकि बाहर भी हल्का अंधेरा हो चुका था तो घर में और अंधेरा था। अभी रजनी घर के अंदर दाखिल हुई ही थी कि उदयराज ने जल्दी से कदम बढ़ा के उसको पीछे से बाहों में कस लिया।

रजनी की aaaaaaaaaahhhhh निकल गयी। उदयराज रजनी की गर्दन, गाल कान के आस पास ताबड़तोड़ चूमने लगा और अपनी बिटिया के गुदाज बदन को मसलने लगा, रजनी ने भी एकांत का फायदा उठाते हुए अपनी बाहें पीछे ले जाकर अपने बाबू के गले में लपेट दी, और अपने गाल आगे बढ़ा बढ़ा के अपने बाबू को चुम्मा देने लगी, उदयराज ने कुछ ही पलों में रजनी का पूरा मुँह चूम चूम के गीला कर दिया, रजनी सिसक उठी और बड़ी मादकता से बोली- बाबू थोड़ा सब्र।

उदयराज पीछे से उसकी चूचीयाँ हथेली में भरकर दबाने लगा और धीरे से बोला- और कितना सब्र मेरी बेटी, अब तो घर आ गए न, कब से तड़प रहा हूँ तेरे लिए। उदयराज कुछ देर तक पीछे से रजनी की चूचीयों को ब्लॉउज के ऊपर से मर्दन करता रहा, कभी पूरा हथेली में भर भर के दबाता तो कभी निप्पल को मसलता, पूरी चूची तनकर सख्त हो गयी थी
रजनी तो हाय... हाय करती हुई बेहाल होने लगी, एकएक उदयराज ने अपने बेटी को अपनी तरफ गुमाया और उसके नर्म बेताब होंठों पर अपने होंठ रख दिये, रजनी की आंखें बंद हो गयी, दोनों एक दूसरे के होंठों को खा जाने की स्थिति तक चूसने लगे, कभी उदयराज रजनी के निचले होंठों को अपने मुँह में भरकर चूसता तो कभी रजनी अपने पिता के होंठों को मुँह में भरकर चूसती, उदयराज के हाँथ रजनी की पीठ, कमर और गांड पर रेंगने लगे, तभी उदयराज ने रजनी की गुदाज उभरी हुई गांड को हथेली में भरकर मीजने लगा, रजनी चिहुँक उठी, और सिसकारियां लेने लगी। साथ ही साथ दोनों एक दूसरे के होंठों का रसपान किये जा रहे थे, कुछ ही देर बाद रजनी ने अपने को बड़ी मुश्किल से अपने बाबू से थोड़ा आजाद करते हुए कहा- बाबू, रुको जरा, थोड़ा सा और सब्र करलो बाबू, बस थोड़ा सा ही।

उदयराज- सब्र तो कर ही रह हूँ मेरी बिटिया रानी, पर अब नही होता (उदयराज की आँखों में वासना साफ झलक रही थी, उसकी आवाज भारी हो गयी थी)

रजनी- सब्र तो मुझसे भी नही हो रहा बाबू, पर रात भर के लिए रुक जाओ, फिर सब दूंगी (रजनी में काम भावना में सिसकते हुए कहा)

उदयराज- सब क्या?

रजनी- वो

उदयराज रजनी को कस के अपनी बाहों में भीचते हुए- वो क्या मेरी बिटिया।

रजनी- वही बाबू, जिसके लिए मेरे पिताजी तड़प रहे हैं। (रजनी धीरे से फुसफुसाके बोली)

उदयराज- किसके लिए तड़प रहा हूँ मेरी बिटिया। बोल न, बोल भी दे, तेरे मुँह से सुनना चाहता हूं उसको क्या बोलते हैं?

रजनी- मुझे शर्म आती है। आप समझ जाइए न बाबू।

उदयराज- मुझे नही समझ आ रहा बता न मेरी बेटी।

रजनी- वही जो दोनों जांघों के बीच में होती है, अब समझें।

उदयराज- नही, क्या बोलते हैं उसको?

रजनी समझ गयी कि उसके बाबू बहुत मस्ती में हैं और उसको भी बहुत मजा आ रहा था ऐसी बातों से

रजनी थोड़ी देर शांत रही फिर धीरे से अपने बाबू के कान के पास अपने होंठ ले जा के बोली- बूबूबूबूरररर, बूर बोलते हैं उसको बाबू, बूर (और ये शब्द बोलते ही और भी कस के अपने बाबू से लिपट गयी उसकी आह निकल गयी), फिर बोली मैं अपने बाबू को रात को अपनी बूर दूंगी खाने को, ठीक, अब खुश।

उदयराज अपनी बेटी के मुंह से ये शब्द सुनकर अवाक रह गया और मदहोश होकर बोला- मुझे अपनी बेटी की बूर खाने को मिलेगी।

रजनी भी ये शब्द बोलने के बाद अंदर ही अंदर गनगना गयी कि आज जीवन में पहली बार वो किस तरह उस खास अंग का नाम अपने बाबू के सामने ही ले रही है और उसे इसमें कितना आनंद आया फिर वो थोड़ा और खुलकर बोली

रजनी (सिसकते हुए) - हाँ और वो भी अपनी शादीशुदा बेटी की, पूरी रात, जी भरके,अब खुश।

उदयराज अत्यंत खुश हुआ और एक बार फिर से उसने रजनी के गालों, होंठों पर ताबड़तोड़ चुम्बन जड़ना शुरू कर दिया। रजनी फिर से सिसकने लगी।

उदयराज- सिर्फ खाने को मिलेगी, पीने को नही।

रजनी- खाना हो खा लेना, पीना हो पी लेना, जो मर्जी कर लेना।

उदयराज- उसमे से जो मूत निकलता है उसको मैं पियूँगा, पिलाओगी न

रजनी- dhaatt,

फिर बोली- जरूर, मेरे बाबू, जरूर, जी भरके पी लेना

उदयराज ने खुश होकर रजनी को अपनी गिरफ्त में से आजाद किया, घर में काफी अंधेरा था, रजनी ने अपने बाबू से एक बात कही- बाबू हमे अभी अपने अपने कागज पढ़ लेना चाहिए, न जाने उसमे क्या लिखा होगा, मैं मंदिर में दिया जला देती हूं और लालटेन भी, इससे पहले की कोई आ जाए हमे वो पढ़ लेना चाहिए कि उसमे क्या कर्म लिखा है दोनों के लिए।

उदयराज- हां मेरी बेटी तू ठीक कहती है।

और रजनी ने मंदिर में दिया जलाया फिर पूरे घर में लालटेन जलाई, उदयराज उसे ये सब करते हुए देखता रहा, जब दोनों को नज़रें मिलती तो दोनों मुस्कुरा देते। फिर रजनी बोली मैं पीछे वाली कोठरी में जा रही हूं पढ़ने और आप बरामदे में बैठ के पढ़ लो।

उदयराज- हां ठीक है

और दोनों ने अलग अलग कमरे में जाके अपना अपना कागज खोला।
 

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