Incest Paap ne Bachayaa written By S_Kumar

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Update- 31

उदयराज ने अपने किये जाने वाले कर्म को जानने के लिए दिए गए कागज को पढ़ने के लिए खोला, सफेद कागज पर सुनहरे रंग से लिखे अक्षर प्रकट हो गए, उदयराज यह चमत्कार देखकर ही दंग रह गया और पढ़ने से पहले एक बार वो कागज उसने माथे चढ़ा लिया, फिर उसने पढ़ना शुरू किया, उसमे लिखा था-

"उदयराज तुम्हारे पुर्वज द्वारा नियति के नियमों में छेड़छाड़ करने से कुपित नियति द्वारा किये गए अव्यवस्थित संतुलन को दुबारा संतुलित कर सही रास्ते पर लाने के लिये तुम्हे जो कर्म करना होगा वो है "महापाप कर्म"

व्यभिचार के रास्ते पर चलकर तुम्हे एक महापाप करना होगा, और ऐसा कर तुम्हे अपने कुल में पापकर्म को स्थान देकर उसकी स्थापना करनी होगी, इस कर्म की शुरुवात तुमसे होगी जो आनेवाले भविष्य में तुम्हारे कुल के लिए जीवनदायी होगी, तुम्हे यह महापाप अपना कर्म समझकर आनंद लेते हुए करना है।

इसके लिए तुम्हे आने वाली अमावस्या की रात से ठीक सात दिन पहले, अपने घर की किसी ऐसी स्त्री जिससे तुम्हारा खून का रिश्ता हो और जो बच्चे को स्तनपान कराती हो, मेरे द्वारा दिये गए दिव्य तेल से बिना उसका चेहरा देखे और बिना उसका कोई और अंग छुए सिर्फ उसकी योनि (बूर) को रात के 12 बजे छूना है, हाथ में तेल लगा कर उसकी योनि (बूर) का मर्दन 10 मिनट तक करना है और उससे निकलने वाले रस को उंगली से निकलकर पहले स्वयं चाटकर ग्रहण करना है फिर उसे चटाना है, रस को पांच बार चाटना और चटाना है, ध्यान रहे इस दौरान उसके शरीर के किसी भी और अंग पर तुम्हारी नज़र नही पड़नी चाहिए। वह स्त्री उस रात ठीक 12 बजे घर के किसी एकांत कमरे में तुम्हारा इंतज़ार करेगी, उसका शरीर पूर्ण रूप से चादर से ढका होगा, कमरे में कपूर की खुश्बू फैली होगी और कमरे के दरवाजे पर एक हल्की रोशनी का दिया जलता होगा।

ऐसा तुम्हे तीन रात करना है, फिर चौथी रात तुम्हे उस स्त्री को कमर से नीचे निवस्त्र कर उसकी योनि को खोलकर देखना और सूंघना है तथा कमर से नीचे की नग्नता के दर्शन करना है, फिर पांचवी रात पुनः तुम्हे उस स्त्री को कमर से नीचे निवस्त्र कर उसकी योनि को देखना, सूंघना और चुम्बन करना है और निकलने वाले रस को मुँह लगा के उसका रसपान करना है। ध्यान रहे इस दौरान भूल कर भी उसका चेहरा नही देखना और न ही शरीर का कोई और अंग छूना और देखना है, इतना ही नही इन सात दिनों के अंदर दिन में भी तुम्हे उस स्त्री के सामने नही पड़ना है, सिर्फ रात को ये कर्म करना है।

अगली छठी रात अब तुम्हे उसी कमरे में अपना पूरा शरीर चादर से ढककर लेटना है वह स्त्री तुम्हे कमर से नीचे निवस्त्र कर तुम्हारे लिंग का दर्शन करेगी, उसे छुएगी, सूंघेगी, उसका मर्दन करेगी और उसका चुम्बन लेगी, बाकी सब वैसे ही होगा, कमरे में कपूर की महक होगी और दरवाजे पर एक छोटा सा दिया जलता रहेगा।

छठी रात के बाद सातवें दिन, सुर्यास्त के बाद तुम उस स्त्री को देख सकते हो।
दिन में वह स्त्री घर में किसी जगह, कागज पर अपने मन की इच्छा लिखकर, छुपाकर रखेगी तुम्हे वह ढूंढकर पढ़ना है और उस कागज में लिखे अनुसार उस स्त्री की मन की इच्छा की पूर्ति अमावस्या की रात को करना होगा। ठीक उसी रात को तुम्हे कुलवृक्ष की जड़ में चौथी कील भी ठोकनी होगी और स्त्री से दूध भी अर्पित कराना होगा।

वह स्त्री कोई और नही तुम्हारी पुत्री ही होगी, क्योंकि वही एक स्त्री तुम्हारे परिवार में बची है जिससे तुम्हारा खून का रिश्ता है इसलिए यही सब कर्म विधि मैंने तुम्हारी पुत्री के कागज पर भी लिखा है, जिस दिन से ये कर्म शुरू होगा ठीक उसी दिन से तुम्हे न अपनी पुत्री को देखना है न उसके सामने पड़ना है।

मेरा आशिर्वाद सदा तुम्हारे साथ है, धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा, सदा खुश रहो।"

कर्म पत्र पढ़कर तो उदयराज को ऐसा लग जैसे पृथ्वी और आकाश एक साथ विपरीत दिशा में घूम रहे हैं उसने एक बार नही दो तीन बार अच्छे से पूरा-पूरा कर्म को पढ़ा। विश्वास नही हुआ उसे की नियति ये चाहती है जो उसके मन में थोड़ा थोड़ा पहले से ही है, उसका तो मन मयूर ही झूम उठा। तभी वह भागकर रजनी वाले कमरे में गया तो देखा रजनी भी बेसुध सी खड़ी यही सोच रही थी, उसे भी विश्वास नही हो रहा था, दोनों की नजरें मिली तो उदयराज मुस्कुराया और रजनी ने शर्मा के सर नीचे कर लिया।

उदयराज ने रजनी के चेहरे को ठोड़ी पर हाथ लगा के उठाया तो उसकी आंखें बंद थी, उसने धीरे से बोला- आज अमावस्या की रात से ठीक पहले का आठवाँ दिन है, कल सातवां दिन होगा, कल सुबह से मै तुम्हें नही देखूंगा, न तुम्हारे सामने पडूंगा।

रजनी की आंख बंद थी वो सुन रही थी उसके होंठ कंपन से थरथरा जा रहे थे।

उदयराज- मुझे तो लगा था कि आज रात मुझे मेरी अनमोल चीज़ मिल जाएगी पर नियति ने उसे 7 दिन पीछे धकेल दिया है, पर कोई बात नही मैं बर्दाश्त कर लूंगा।

रजनी ने धीरे से आंखें खोल के उदयराज की आंखों में देखा और बोली- बाबू, कल रात से रोज 5 रात तक मैं घर के पीछे वाली कोठरी में आपका रात के 12 बजे इंतज़ार करूँगी, और छठी रात आप मेरा इंतज़ार करना, इस दिनों हम एक दूसरे को न देखेंगे, न एक दूसरे के सामने पड़ेंगे, जैसा कि उसमे लिखा है। फिर सातवें दिन, मैं एक पर्ची में अपने मन की इच्छा उसमे लिख के घर में कहीं छुपा दूंगी आपको वो ढूंढकर उस पर्ची में लिखे अनुसार आगे का कर्म करना है और उस दिन सूर्यास्त के बाद हम एक दूसरे को देख सकेंगे, वह अमावस्या की रात होगी, उसी रात कुलवृक्ष में कील भी गाड़नी है, अब आपके और मेरे सब्र का इम्तहान है बाबू, हमे इसे बखूबी निभाना है।

उदयराज ने रजनी के चहरे को अपने हाथों में लेकर बोला- हाँ मेरी बच्ची, मेरी बेटी, बस आज की रात ही हम एक दूसरे को देख सकते हैं फिर तो 6 दिन बाद ही देख पाएंगे, और उदयराज गौर से रजनी को देखने लगा, उसके चेहरे को निहारने लगा, रजनी भी एक टक अपने बाबू को निहारने लगी फिर एकएक शर्माकर उनसे लिपट गयी, उदयराज ने उसे बाहों में कस लिया।

उदयराज- बेटी लेकिन हमारे बीच कोई तो ऐसा होना चाहिए जो जरूरत पड़ने पर सब संभालता रहे, मान लो मैं दिनभर बाहर रहूंगा और तुम घर में, परन्तु कभी कोई काम ही पड़ गया या तुम्हे मुझे खाना ही परोसना हो, या रात को बच्ची को ही संभालने वाला कोई तो होना चाहिए, ताकि हमे कर्म करने में कोई अड़चन आ आये।

रजनी- बाबू आप उसकी चिंता छोड़िए, वो मैं काकी को समझा दूंगी अपने तरीके से, उनको कुछ बताऊंगी नही पर फिर भी समझा दूंगी, वो सब संभाल लेंगी।

उदयराज- मेरी बेटी कितनी समझदार है, और कहते हुए वो उसके गालों को चूमने लगा।

रजनी ने आंखें बंद कर ली और अपने बाबू से लिपट गयी।

तभी नीलम की अम्मा आवाज लगाती हुई उनके घर की तरफ आ रही थी, ये सुनते ही उदयराज और रजनी झट से अलग हो गए और रजनी ने वो कागज छुपा दिया, भागकर बाहर आई- हाँ अम्मा क्या हुआ? बच्ची रो रही है क्या?

नीलम की अम्मा- हाँ बिटिया ये रो रही है, ले इसको दूध पिला दे और सब लोग चलो अब, खाना भी बन गया है, सब लोग खाना खा लो, काकी भी वहीं बैठी हैं, बस सब तुम लोगों का ही इतंज़ार कर रहे हैं।


रजनी- हाँ अम्मा चलती हूँ।

उदयराज ने भी अपना कागज छुपा के रख दिया और फिर रजनी और उदयराज दोनों लोग नीलम की अम्मा के साथ उसके घर आ गए।

आज पूरा गांव दिए कि रोशनी से जगमगा रहा था, बिरजू के घर सबने एक साथ खाना खाया, काफी बातें और हंसी मजाक भी हुआ फिर रजनी, काकी और उदयराज उन लोगों का धन्यवाद करके अपने घर आ गए।

उदयराज ने पहले की तरह अपनी खाट कुएं के पास लगाई और सोने के लिए लेट गया।

रजनी और काकी ने भी पहले की तरह अपनी खाट नीम के पेड़ के नीचे लगाई और लेटकर बातें करने लगी।

रजनी ने काकी को अपनी तरह से समझा दिया, उसने असल बात नही बताई, बस अपनी तरह से समझा दिया।

काकी ने भी उसको निश्चिन्त होकर कर्म करने के लिए बोला, काकी को भी लगा कि कोई ऐसा कर्म है जो गुप्त रूप से करना है।

फिर काकी सो गई पर रजनी की आंखों में नींद नही थी, वो बेचैन थी, वही हाल उदयराज का भी था वो भी अपनी खाट पर करवटें बदल रहा था। काफी देर सोचते सोचते फिर न जाने कब दोनों की आंख लग गयी।
 
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Update- 31

उदयराज ने अपने किये जाने वाले कर्म को जानने के लिए दिए गए कागज को पढ़ने के लिए खोला, सफेद कागज पर सुनहरे रंग से लिखे अक्षर प्रकट हो गए, उदयराज यह चमत्कार देखकर ही दंग रह गया और पढ़ने से पहले एक बार वो कागज उसने माथे चढ़ा लिया, फिर उसने पढ़ना शुरू किया, उसमे लिखा था-

"उदयराज तुम्हारे पुर्वज द्वारा नियति के नियमों में छेड़छाड़ करने से कुपित नियति द्वारा किये गए अव्यवस्थित संतुलन को दुबारा संतुलित कर सही रास्ते पर लाने के लिये तुम्हे जो कर्म करना होगा वो है "महापाप कर्म"

व्यभिचार के रास्ते पर चलकर तुम्हे एक महापाप करना होगा, और ऐसा कर तुम्हे अपने कुल में पापकर्म को स्थान देकर उसकी स्थापना करनी होगी, इस कर्म की शुरुवात तुमसे होगी जो आनेवाले भविष्य में तुम्हारे कुल के लिए जीवनदायी होगी, तुम्हे यह महापाप अपना कर्म समझकर आनंद लेते हुए करना है।

इसके लिए तुम्हे आने वाली अमावस्या की रात से ठीक सात दिन पहले, अपने घर की किसी ऐसी स्त्री जिससे तुम्हारा खून का रिश्ता हो और जो बच्चे को स्तनपान कराती हो, मेरे द्वारा दिये गए दिव्य तेल से बिना उसका चेहरा देखे और बिना उसका कोई और अंग छुए सिर्फ उसकी योनि (बूर) को रात के 12 बजे छूना है, हाथ में तेल लगा कर उसकी योनि (बूर) का मर्दन 10 मिनट तक करना है और उससे निकलने वाले रस को उंगली से निकलकर पहले स्वयं चाटकर ग्रहण करना है फिर उसे चटाना है, रस को पांच बार चाटना और चटाना है, ध्यान रहे इस दौरान उसके शरीर के किसी भी और अंग पर तुम्हारी नज़र नही पड़नी चाहिए। वह स्त्री उस रात ठीक 12 बजे घर के किसी एकांत कमरे में तुम्हारा इंतज़ार करेगी, उसका शरीर पूर्ण रूप से चादर से ढका होगा, कमरे में कपूर की खुश्बू फैली होगी और कमरे के दरवाजे पर एक हल्की रोशनी का दिया जलता होगा।

ऐसा तुम्हे तीन रात करना है, फिर चौथी रात तुम्हे उस स्त्री को कमर से नीचे निवस्त्र कर उसकी योनि को खोलकर देखना और सूंघना है तथा कमर से नीचे की नग्नता के दर्शन करना है, फिर पांचवी रात पुनः तुम्हे उस स्त्री को कमर से नीचे निवस्त्र कर उसकी योनि को देखना, सूंघना और चुम्बन करना है और निकलने वाले रस को मुँह लगा के उसका रसपान करना है। ध्यान रहे इस दौरान भूल कर भी उसका चेहरा नही देखना और न ही शरीर का कोई और अंग छूना और देखना है, इतना ही नही इन सात दिनों के अंदर दिन में भी तुम्हे उस स्त्री के सामने नही पड़ना है, सिर्फ रात को ये कर्म करना है।

अगली छठी रात अब तुम्हे उसी कमरे में अपना पूरा शरीर चादर से ढककर लेटना है वह स्त्री तुम्हे कमर से नीचे निवस्त्र कर तुम्हारे लिंग का दर्शन करेगी, उसे छुएगी, सूंघेगी, उसका मर्दन करेगी और उसका चुम्बन लेगी, बाकी सब वैसे ही होगा, कमरे में कपूर की महक होगी और दरवाजे पर एक छोटा सा दिया जलता रहेगा।

छठी रात के बाद सातवें दिन, सुर्यास्त के बाद तुम उस स्त्री को देख सकते हो।
दिन में वह स्त्री घर में किसी जगह, कागज पर अपने मन की इच्छा लिखकर, छुपाकर रखेगी तुम्हे वह ढूंढकर पढ़ना है और उस कागज में लिखे अनुसार उस स्त्री की मन की इच्छा की पूर्ति अमावस्या की रात को करना होगा। ठीक उसी रात को तुम्हे कुलवृक्ष की जड़ में चौथी कील भी ठोकनी होगी और स्त्री से दूध भी अर्पित कराना होगा।

वह स्त्री कोई और नही तुम्हारी पुत्री ही होगी, क्योंकि वही एक स्त्री तुम्हारे परिवार में बची है जिससे तुम्हारा खून का रिश्ता है इसलिए यही सब कर्म विधि मैंने तुम्हारी पुत्री के कागज पर भी लिखा है, जिस दिन से ये कर्म शुरू होगा ठीक उसी दिन से तुम्हे न अपनी पुत्री को देखना है न उसके सामने पड़ना है।

मेरा आशिर्वाद सदा तुम्हारे साथ है, धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा, सदा खुश रहो।"

कर्म पत्र पढ़कर तो उदयराज को ऐसा लग जैसे पृथ्वी और आकाश एक साथ विपरीत दिशा में घूम रहे हैं उसने एक बार नही दो तीन बार अच्छे से पूरा-पूरा कर्म को पढ़ा। विश्वास नही हुआ उसे की नियति ये चाहती है जो उसके मन में थोड़ा थोड़ा पहले से ही है, उसका तो मन मयूर ही झूम उठा। तभी वह भागकर रजनी वाले कमरे में गया तो देखा रजनी भी बेसुध सी खड़ी यही सोच रही थी, उसे भी विश्वास नही हो रहा था, दोनों की नजरें मिली तो उदयराज मुस्कुराया और रजनी ने शर्मा के सर नीचे कर लिया।

उदयराज ने रजनी के चेहरे को ठोड़ी पर हाथ लगा के उठाया तो उसकी आंखें बंद थी, उसने धीरे से बोला- आज अमावस्या की रात से ठीक पहले का आठवाँ दिन है, कल सातवां दिन होगा, कल सुबह से मै तुम्हें नही देखूंगा, न तुम्हारे सामने पडूंगा।

रजनी की आंख बंद थी वो सुन रही थी उसके होंठ कंपन से थरथरा जा रहे थे।

उदयराज- मुझे तो लगा था कि आज रात मुझे मेरी अनमोल चीज़ मिल जाएगी पर नियति ने उसे 7 दिन पीछे धकेल दिया है, पर कोई बात नही मैं बर्दाश्त कर लूंगा।

रजनी ने धीरे से आंखें खोल के उदयराज की आंखों में देखा और बोली- बाबू, कल रात से रोज 5 रात तक मैं घर के पीछे वाली कोठरी में आपका रात के 12 बजे इंतज़ार करूँगी, और छठी रात आप मेरा इंतज़ार करना, इस दिनों हम एक दूसरे को न देखेंगे, न एक दूसरे के सामने पड़ेंगे, जैसा कि उसमे लिखा है। फिर सातवें दिन, मैं एक पर्ची में अपने मन की इच्छा उसमे लिख के घर में कहीं छुपा दूंगी आपको वो ढूंढकर उस पर्ची में लिखे अनुसार आगे का कर्म करना है और उस दिन सूर्यास्त के बाद हम एक दूसरे को देख सकेंगे, वह अमावस्या की रात होगी, उसी रात कुलवृक्ष में कील भी गाड़नी है, अब आपके और मेरे सब्र का इम्तहान है बाबू, हमे इसे बखूबी निभाना है।

उदयराज ने रजनी के चहरे को अपने हाथों में लेकर बोला- हाँ मेरी बच्ची, मेरी बेटी, बस आज की रात ही हम एक दूसरे को देख सकते हैं फिर तो 6 दिन बाद ही देख पाएंगे, और उदयराज गौर से रजनी को देखने लगा, उसके चेहरे को निहारने लगा, रजनी भी एक टक अपने बाबू को निहारने लगी फिर एकएक शर्माकर उनसे लिपट गयी, उदयराज ने उसे बाहों में कस लिया।

उदयराज- बेटी लेकिन हमारे बीच कोई तो ऐसा होना चाहिए जो जरूरत पड़ने पर सब संभालता रहे, मान लो मैं दिनभर बाहर रहूंगा और तुम घर में, परन्तु कभी कोई काम ही पड़ गया या तुम्हे मुझे खाना ही परोसना हो, या रात को बच्ची को ही संभालने वाला कोई तो होना चाहिए, ताकि हमे कर्म करने में कोई अड़चन आ आये।

रजनी- बाबू आप उसकी चिंता छोड़िए, वो मैं काकी को समझा दूंगी अपने तरीके से, उनको कुछ बताऊंगी नही पर फिर भी समझा दूंगी, वो सब संभाल लेंगी।

उदयराज- मेरी बेटी कितनी समझदार है, और कहते हुए वो उसके गालों को चूमने लगा।

रजनी ने आंखें बंद कर ली और अपने बाबू से लिपट गयी।

तभी नीलम की अम्मा आवाज लगाती हुई उनके घर की तरफ आ रही थी, ये सुनते ही उदयराज और रजनी झट से अलग हो गए और रजनी ने वो कागज छुपा दिया, भागकर बाहर आई- हाँ अम्मा क्या हुआ? बच्ची रो रही है क्या?

नीलम की अम्मा- हाँ बिटिया ये रो रही है, ले इसको दूध पिला दे और सब लोग चलो अब, खाना भी बन गया है, सब लोग खाना खा लो, काकी भी वहीं बैठी हैं, बस सब तुम लोगों का ही इतंज़ार कर रहे हैं।


रजनी- हाँ अम्मा चलती हूँ।

उदयराज ने भी अपना कागज छुपा के रख दिया और फिर रजनी और उदयराज दोनों लोग नीलम की अम्मा के साथ उसके घर आ गए।

आज पूरा गांव दिए कि रोशनी से जगमगा रहा था, बिरजू के घर सबने एक साथ खाना खाया, काफी बातें और हंसी मजाक भी हुआ फिर रजनी, काकी और उदयराज उन लोगों का धन्यवाद करके अपने घर आ गए।

उदयराज ने पहले की तरह अपनी खाट कुएं के पास लगाई और सोने के लिए लेट गया।

रजनी और काकी ने भी पहले की तरह अपनी खाट नीम के पेड़ के नीचे लगाई और लेटकर बातें करने लगी।

रजनी ने काकी को अपनी तरह से समझा दिया, उसने असल बात नही बताई, बस अपनी तरह से समझा दिया।

काकी ने भी उसको निश्चिन्त होकर कर्म करने के लिए बोला, काकी को भी लगा कि कोई ऐसा कर्म है जो गुप्त रूप से करना है।


फिर काकी सो गई पर रजनी की आंखों में नींद नही थी, वो बेचैन थी, वही हाल उदयराज का भी था वो भी अपनी खाट पर करवटें बदल रहा था। काफी देर सोचते सोचते फिर न जाने कब दोनों की आंख लग गयी।
nice update dost
 
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Update- 32

अगले दिन सुबह उदयराज जल्दी ही उठ गया, उसे लगा वह काफी जल्दी उठ गया है कहीं रजनी पर उसकी नज़र न पड़ जाए, पर रजनी तो उससे भी पहले उठकर घर में जा चुकी थी।

काकी उठकर अपनी खाट पर बैठी थी, उदयराज ने सुबह का नित्यकर्म किया और काकी ने उसको नाश्ता लाकर दिया, उसने नाश्ता किया और आज अमावस्या की रात से ठीक सातवें दिन का पहला दिन था, रात का उसे बहुत बेसब्री से इंतज़ार था, अपनी किस्मत पर वो फूला नही समा रहा था, सोच सोच कर अपने में ही मुस्कुराये जा रहा था फिर अपने दिल पर काबू करते हुए वो उठा, बैलों को तैयार किया और खेतों की तरफ जाने लगा, बिरजू के घर के नजदीक आकर उसने सोचा एक बार बिरजू से मिल ले।

वह वहीं बैलों को एक पेड़ के पास बांधकर बिरजू के घर गया, बिरजू अभी नाश्ता कर रहा था उदयराज को देखते ही उठ खड़ा हुआ।

बिरजू- अरे भैया आप इतनी सुबह सुबह, आओ बैठो, नीलम, ओ नीलम, अपने बड़े बाबू के लिए नाश्ता ले आ (नीलम उदयराज को बड़े बाबू कहकर बुलाती थी)

उदयराज- अरे नही बिरजू मैं नाश्ता करके आया हूँ, मैं जरा खेतों में जा रहा था बैल लेके सोचा तेरे से मिलता चलूं। (इतना कहते हुए उदयराज खाट पे बैठ गया)

तभी नीलम उदयराज के लिए चाय और महुवे का नमकीन पोहा लेके आयी और आते ही उसने उदयराज को प्रणाम किया।

उदयराज ने नाश्ता किया हुआ था लेकिन फिर भी नीलम की जिद पर उसे ठूस ठूस के खाना पड़ा।

उदयराज- नीलम तू मेरी बिटिया रजनी से कम नही है, वो भी मुझे ऐसे ही जिद करके खिलाती है।

नीलम- बड़े बाबू आपका पद तो पिता से भी ऊंचा है आप तो मेरे बड़े बाबू हैं तो भला मैं आपकी सेवा में क्यों पीछे रहूँगी।

बिरजू- ये बात तो सही है भैया, भले ही बेटा एक बार को पिता की सेवा में पीछे हट जाए पर ये बेटियां कभी पीछे नही हटती, इसलिए ये बेटियां पिता के दिल के इतने करीब होती हैं (बिरजू ने नीलम को देखते हुए कहा)

उदयराज- दिल के करीब नही रहती बिरजू, बल्कि दिल में बसी होती हैं।

नीलम यह सुनकर गदगद हो गयी और अपने बाबू बिरजू को तिरछी नजरों से देखकर शर्मा कर घर में चली जाती है।

उदयराज बिरजू से कुछ गांव के काम की बात करता रहा फिर उठकर अपने खेतों में चला गया।

उदयराज बार बार अपने ध्यान को दूसरे कामों में लगाने की कोशिश करता रहा पर बार बार उसका मन रात में मिलने वाली खुशी को महसूस कर वासना से भर जाता। वो बार बार सोचता कि आज रात को जिंदगी में पहली बार वो अपनी ही सगी बेटी के साथ ऐसा करेगा, कितना मजा आएगा, कैसी होगी रजनी की? कैसा लगेगा जब मैं उसको छुउंगा, बरसों से मैं स्त्री की योनि के लिए तरस गया हूँ और आज मैं अपनी ही बेटी की बूर छुउंगा, उसको छेड़ूँगा, मसलूंगा, यही सब सोच सोच के वो कामोन्माद में पागल हुआ जा रहा था।

यही हाल घर में रजनी का भी था, उसके लिए भी दिन काटना किसी पहाड़ से कम नही था, आज उसने अपनी बेटी को दिन में सुलाया ही नही ताकि वो रात भर सोती रहे और उसे रात में कोई परेशानी न हो, वो निश्चिन्त होकर अपने बाबू के साथ महापाप कर उसका आनंद ले सके।

उदयराज दोपहर को भोजन करने के लिए घर आया, काकी ने उसको खाना दिया, खाना खाकर वो फिर से खेतों में चला गया।

खैर किसी तरह दिन बीता शाम हुई और उदयराज घर आया, बैलों को हौदे में बांधकर चारा डाल दिया।

नाहा धोकर तरो ताज़ा हो गया, फिर खाट उठायी और कुएं के पास जाकर लेट गया, अंधेरा हो चुका था, दिल की धड़कने बढ़ गयी थी।

खाना अभी बना नही था, रजनी घर में जल्दी जल्दी बना रही थी, बेटी तो उसकी आज जल्दी ही सो गई थी, दिन में रजनी ने सुलाया जो नही था।

आखिर खाना बन गया और काकी ने उदयराज को खाना बाहर ही लाकर दिया, उदयराज के खाना खा लेने के बाद घर में रजनी और काकी ने भी खाना खाया, फिर काकी बाहर आके रजनी की बिटिया को अपनी खाट पे लेके लेट गयी।

उदयराज भी अपनी खाट पे लेट के बड़ी बेसब्री से इतंज़ार करने लगा, अभी तो रात के 10 बजे थे, सीधा सीधा 2 घंटा बचा था, बिस्तर पर करवटें बदल बदल के उसका बुरा हाल हो गया, कभी लेटता, कभी उठकर धीरे धीरे टहलने लगता, फिर लेट जाता।

उधर रजनी ने आज घर की पीछे वाली कोठरी में जा के उसके अंदर पड़ी खाट बाहर निकाल कर उसमे एक चटाई बिछा दी, दिन में फूलों से बनाई हुई मालाओं से उसने पूरी कोठरी सजा दी और उसमे मिट्ठी की कटोरी में कुछ कपूर रखकर जला दिए, कपूर और फूलों की महक ने पूरी कोठरी को सुगंधित कर डाला, यहां तक कि उसकी सुगंध आंगन तक आ रही थी।

फिर रजनी आंगन में आके पड़ी हुई खाट पर लेट गयी अभी काफी वक्त बचा था, इंतज़ार तो उससे भी नही हो रहा था।

आखिरकार जैसे तैसे 11:30 हो गए, रजनी की सांसे तेज चलने लगी, वह खाट से उठी और एक हल्का पीला चादर लिया, घर के सारे दिये और लालटेन बुझा दिए बस एक छोटा सा घी का दिया जलाकर कोठरी के दरवाजे पर रख दिया।

बाहर का मेन दरवाजा खुला हुआ था बस वैसे ही उसके किवाड़ सटाये हुए थे।

रजनी कोठरी में जाके चादर ओढ़कर चटाई पर लेट गयी, और बेसब्री से अपने बाबू का इंतज़ार करने लगी, सांसे उसकी भारी हो चली थी। मंद मंद वो मुस्कुराये जा रही थी, आज क्या होने वाला है।

रात का सन्नाटा छा चुका था, सब सो गए थे।
उदयराज धीरे से अपनी खाट से उठा, धीरे धीरे चलता हुआ वो घर की तरफ बढ़ने लगा, जब काकी की खाट के पास से गुजरा तो देखा कि काकी सो रही थी।

आखिरकार वो घर के मेन दरवाजे पर पहुँचा, दरवाजा हल्का सा आपस में सटाया हुआ था उसने हल्का हाथ लगा के दरवाजा खोला, बस इतने से ही रजनी जान गई कि उसके बाबू घर में आ गए हैं वो सिरह उठी, चादर को उसने अच्छी तरह तान के अपना पूरा बदन उससे ढक लिया।

जैसे ही उदयराज ने दरवाजा खोला पूरे घर में फैल चुकी कपूर और फूल की महक उसके नथुनों में पड़ी, इस महक ने काम वासना को और भड़काने में आग में घी का काम किया।

घर के अंदर दाखिल होकर उदयराज दरवाजे को अंदर से धीरे से बंद कर आगे बढ़ा, गुप्प अंधेरा था बरामदे में, अंदाजे से वो अलमारी के पास गया और दिव्य तेल की शीशी उठा ली, जैसे ही आंगन में आया तो देखा सबसे पीछे बनी कोठरी के दरवाजे पर दिया रखा हुआ है जिसकी मध्यम हल्की रोशनी आस पास तक ही फैली हुई थी।

दरवाजा खुला हुआ था, वातावरण बिल्कुल शांत था, जैसे ही उदयराज दरवाजे तक आया रजनी को इसका अहसास हो गया वो कसमसा उठी, उदयराज ने उसे देखा, जमीन पर चटाई बिछा कर सर से लेकर पाँव तक पीले रंग का चादर ओढ़े उसकी सगी शादीशुदा बेटी लेटकर पाप का आनंद लेने के लिए अपने पिता का इंतज़ार कर रही है, इस बात को सोचकर वो झूम उठा, आखिर वो पल आ ही गया। चादर से पूर्ण रूप से ढके होने के बाद भी अपनी बेटी के पूर्ण शरीर की लंबाई चौड़ाई देखकर उसे जोश चढ़ गया। रजनी पीठ के बल बिल्कुल सीधी लेटी थी हाथों को उसने सर के ऊपर ले जाकर मुठ्ठी से चादर तान कर चादर को पकड़ा हुआ था जिससे उसकी मोटी मोटी दोनों चूची तन कर ऊपर को उठ गई थी और उसके उभार चादर के ऊपर से ही दिख रहे थे, काम वासना से वशीभूत होकर तेज चलती हुई सांसों की वजह से उसके उन्नत मोठे उरोज सांसों के साथ साथ ऊपर नीचे होते हुए बहुत मादक लग रहे थे। कुछ देर उदयराज पास खड़े होकर उसके पूर्ण शरीर को बहुत बेशर्मी और कामुक नज़र से निहारता रहा फिर एक नज़र उसने पूरी कोठरी में डाली, पूरी कोठर फूलों से सजी थी, मानो वो उसका सुहागरात कक्ष हो, खुद रजनी ने उसे सजाने में इतनी मेहनत कर डाली थी तो इसका मतलब ये था कि खुद उसकी सगी बेटी उसके साथ पाप का सुख भोगने के लिए कितनी बेताब है। इतना मजा तो उसे बहुत वर्ष पहले सुहागरात में अपनी पत्नी के साथ भी नही आया था जितना आज सगी बेटी के साथ आ रहा था जबकि अभी तो उसने कुछ शुरू भी नही किया था, आखिर छुप छुप कर सगे रिश्ते में किये गए व्यभिचार और पाप में कितना मजा छिपा होता है।

फिर वह एकाएक चादर के ऊपर से ही सांसों के साथ ऊपर नीचे होते हुए रजनी के भारी चूचीयों को निहारते हुए उसके दायीं तरफ कमर के पास बैठ गया।

रजनी ने कसमसा कर अपनी जांघे भीच ली, उदयराज ने तेल की शीशी बगल में रखी, अपना सीधा हाथ उसने चादर के अंदर डाला और धीरे धीरे रजनी की नाभि पर रखा, रजनी स्पर्श महसूस कर गनगना गयी उसके मुँह से हल्की ही aaahhhh निकल गयी, फिर उदयराज अपना हाँथ नाभि के नीचे की ओर बढ़ाने लगा रजनी कंपन से थरथरा उठी, उदयराज की उंगलियां नाभि के नीचे बंधी साड़ी के छोर से टकराई, रजनी बार बार वासना में अपनी जाँघे भीच ले रही थी, उदयराज ने अपनी उंगलियां साड़ी के अंदर प्रवेश करा दी पर तुरंत उसे साड़ी के नीचे बंधे साये के नाड़े ने रोक दिया, उदयराज ने तुरंत चादर में ढके रजनी के मुंह की तरफ मदहोश आंखों से देखा, रजनी को महसूस हुआ कि उसके बाबू उसकी तरफ देख रहे हैं वह चादर के अंदर ही वासना से वशीभूत हो मुस्कुरा उठी।

फिर एकाएक उदयराज ने नाड़े की डोरी को सर्रर्रर्रर्रर से खींचकर खोल दिया, डोरी खुल गयी, रजनी ने लाज के मारे अपनी जाँघे और भीच ली, माना कि वो खुद बेताब थी अपने बाबू की उंगलिया अपनी बूर पर महसूस करने के लिए पर एक सगी बेटी होने के नाते और आज जीवन में ये पहली बार हो रहा था कि उसके बाबू उसके साथ ये कर रहे थे तो वह लज़्ज़ा से गड़ी भी जा रही थी। उसकी सांसे भारी हो चली थी, माथे और चेहरे पर वासना की गर्मी से पसीना आना शुरू हो गया था।

उदयराज ने अपना हाथ साये के अंदर डाल दिया और उसकी उंगलियां बूर के ऊपरी हिस्से पर जा पहुँची, बूर के उस हल्के फूले हुए ऊपरी हिस्से (जो हल्के बालों से भरा था) पर उदयराज अपनी उंगलियां चलाने और सहलाने लगा, एकाएक उसने अपनी बीच की उंगली जहां से बूर की फांक की शुरुवात होती है उसपर रखा और बूर की दरार में हल्का सा उंगली डुबोते हुए पूरी बूर को हथेली में भर लिया।

रजनी ने aaaaahhhhhh bbaaabbbuuu की हल्की सी मादक आवाज निकालते हुए अपनी जाँघे हल्का सा खोलकर अपनी मक्खन जैसी बूर अपने बाबू को छूने के लिए परोस दी।

उदयराज होश खो बैठा, आज वो अपनी सगी शादीशुदा बेटी की बूर छू चुका था, क्या मक्खन जैसी बड़ी बड़ी फांकों वाली बूर थी उसकी अपनी ही सगी बेटी की, बूर की फांकों पर भी हल्के बाल थे, फांकों की साइड में भी हल्के बाल थे, उदयराज ने चार पांच बार बूर को पूरा पूरा हथेली में भरकर भींचा, रजनी होशो हवास खो चुकी थी।

दोनों के शरीर का कोई भी अंग नही छू रहा था बस उदयराज रजनी की साड़ी में हाथ डाले उसकी बूर को सहला और मसल रहा था।

उदयराज अपनी चारों उंगलिया बूर पर फिराने लगा, कभी वो बूर के ऊपरी हिस्से को सहलाता कभी फांकों और दरार को सहलाता हुआ बूर के नीचे तक हाथ ले जाता, इतना मजा तो उसे अपनी पत्नी की बूर चोदकर भी नही आया था जितना बेटी की खाली छूकर ही आ रहा था।

कामवासना में रजनी की बूर फूलकर खुल चुकी थी, पर उसका कसाव बरकरार था, रजनी को चुदे हुए कई साल हो गए थे, बूर उसकी जल्द ही रिसना चालू हो गयी, और रस उदयराज की उंगलियों को गीला करने लगा, चादर के अंदर रजनी बेसुध पसीने पसीने हो गयी थी, वासना में उसकी आंखें बंद थी, अपने होंठों को वो बड़ी कामुकता से दांतों से काट ले रही थी, मन तो उसका बेसब्र हो चुका था कि कस के बाबू से लिपट जाए पर....क्या करे, सब्र तो करना ही था।

रजनी ने अब अपनी जाँघे और खोल दी, उदयराज ने फांकों को उंगलियों से फैलाकर बूर की भगनासा (cliteries) पर उंगली गोल गोल घूमने लगा रजनी का बदन थरथरा गया, नस नस गनगना गयी, मुँह से न चाहते हुए भी hhhhaaaaiiiiiiii bbbbaaaabbuuuu, aaaaaahhhhhhhh, oooooooohhhhhhh, mmmmaaaaaaa सिसकते हुए बोल ही पड़ी।

तभी उदयराज को तेल का ध्यान आया उसने झट हाथ बाहर निकाल कर वो दिव्य तेल अपनी अंजुली में शीशी से निकालकर उड़ेला वह लाल रंग का दिव्य तेल था दिए कि हल्की रोशनी में वह चमक रहा था और उसकी मन मोहक खुशबू पूरी कोठरी में फ़ैल गयी, अब कोठरी में फूल, कपूर और तेल की मिश्रित खुशबू फैल कर सम्मोहित सा कर दे रही थी उदयराज एक हाँथ पर तेल को अंजुली में लिए रहा और दूसरे हाथ से साड़ी को उठा कर तेल वाला हाथ साड़ी में डालकर बूर पर तेल उड़ेल दिया, बूर पर तेल गिरते ही रजनी फिर गनगना गयी।
तेल को उसने पूरी बूर पर अच्छे से मला, फिर हाथ बाहर निकाल कर और तेल लिया और एक बार फिर साड़ी में हाथ डाल कर बूर पर अच्छे से तेल लगाया और बूर सहलाने लगा, तेल की मनमोहक गंध ने समा बांध दिया, हाथ से उसने बूर को थपथपाया, फांकों को सहलाया, रजनी हाय हाय करने लगी।

पूरी बूर तेल से सन गयी थी, फूल कर उसका आकार बड़ा हो गया था, भगनासा खिलकर बाहर हो उठ आया था। बूर की फांकें मुँह खोल चुकी थी। बूर ने थरथरा कर कामरस छोड़ना शुरू कर दिया था, उदयराज भगनासा को सहलाता जा रहा था, कभी वो अपने हाथ को बूर की दरार में चलाता हुआ नीचे ले जाता और फिर वापिस ऊपर लाता कभी चार उंगलियों को एक साथ भगनासा पे रखकर गोल गोल रगड़ने लगता।

रजनी haaaai bbaabu, uuuuufffc bbbbaaau, uuuhhhiii mmaaaannn, hhhhhhaaaaiiiiiii ddddaaaiyyyyyaaa, न चाहते हुए भी बोले जा रही थी।

एकएक उदयराज ने बूर की दोनों फांक को तर्जनी और अनामिका उंगली से फैलाकर चीरा और बीच वाली उंगली से बूर की छेद पर गोल गोल सहलाने लगा, रजनी की बूर अब बेताहाशा कामरस छोड़ने लगी। रजनी उदयराज के इस प्रहार से थरथरा गयी और वह अपनी दोनों जांघों को कस के भीचते हुए hhhhhhaaaaiiiiiiii bbbaaaaabbuuuuu बोलते हुए बायीं ओर पलट गई, उदयराज का हाँथ बूर पर था और जांघ भिचने से दब गया था उसने वहां से अपना हाथ निकाला और मुस्कुराते हुए चादर के ऊपर से रजनी के नितम्ब देखने लगा, फिर उसने पीछे से हाथ को साड़ी में डालना शुरू किया, रजनी समझ गयी और मुस्कुरा पड़ी, उदयराज ने भारी नितम्ब को न छूते हुए सीधा अपना हाथ पीछे की तरफ से ले जाकर बूर पर रख दिया, रजनी चिहुँक उठी और उसकी जोर से सिसकी निकल गयी, उदयराज फिर से पीछे से बूर सहलाने लगा, उसने बूर के संकरी छेद पर फिरसे उंगली घुमाना चालू कर दिया

उदयराज अचंभित था कि शादीशुदा होने के बाद भी और एक बच्ची होने के बावजूद उसकी सगी बेटी की बूर का छेद कितना संकरी था, जैसे की वो कुवारी हो।
कितना छोटा सा नरम नरम मुलायम सा मनमोहक छेद था उसकी अपनी ही सगी बेटी की मक्खन जैसी बूर का।
आग की भट्टी की तरह धधकने लगी थी बूर उसकी, कितना गर्म था वो छोटा सा बूर का छेद, वो समझ गया कि उसके दामाद के बस का नही था इस बूर को फाड़ना, इसलिए ये अभी तक कुंवारी जैसी है।

उदयराज ने रजनी के बूर के छेद से निकलते हुए कामरास को बीच वाली उंगली से ऐसे उठाया जैसे मक्ख़न के भरे हुए डिब्बे में से उंगली डाल कर कोई मक्खन उठाता है।

फिर उस कामरस में भीगी हुई उंगली को उसने अपनी नाक के पास ला के सूंघा।

पेशाब और कामरस की भीनी भीनी महक ने उदयराज को पागल ही कर दिया, उसके मुँह से आखिर निकल ही गया- aaaaaahhhhhhh bbeeeettttiiii, hhhhhaaaaaiii

रजनी के मुंह से भी uuuuuuffffff bbbbaaabbbuuuu निकला। वह सिसकारियों पे सिकारियाँ ले रही थी।

उस कामरस में पेशाब की महक ज्यादा थी जिसने उदयराज को बदहवास कर दिया। मन तो उसका कर रहा था कि लप्प से बूर को मुँह में भर के खा जाए, पर.....क्या करे, सब्र तो करना ही था।

कामरस सूंघने के बाद उसने उसे चाट लिया, फिर हाथ साड़ी के अंदर डाला और हाँथ बूर से दुबारा लगते ही रजनी फिर गनगना गयी, उदयराज ने फिर बूर की संकरी छेद से रिसते कामरस को उंगली से उठाया और फिर चाट गया ऐसा उसने पांच बार किया, पूरे मुँह में उसके रजनी का कामरस लगा हुआ था।

रजनी बेचैन होकर सिसकते हुए फिर पीठ के बल लेट गयी और उदयराज ने फिर से साड़ी में हाथ डाल दिया, फिर बूर को सहलाने लगा, बूर ने और कामरस छोड़ा, उदयराज ने इस बार वो कामरस उंगली में लगाया और चादर के अंदर रजनी के मुँह तक ले गया, अपनी ही पेशाब और कामरस की गंध से लिपटी अपने बाबू की उंगली को सूंघकर रजनी भी मचल उठी, पहले उदयराज ने उंगली उसकी नाक के पास ले जाकर उसे सुंघाया फिर एकाएक रजनी ने स्वयं ही वासना से आसक्त होकत अपने होंठ उस कामरास को चाटने के लिए खोल दिये।

उदयराज ने उंगली रजनी के मुँह में डाल दी और वो उसे बहुत की कामुक अंदाज़ में चाटने लगी, उदयराज ने रजनी को भी पांच बार उसी की बूर का कामरस चटाया, रजनी पूरी तरह मदहोश हो चुकी थी।

ये सब करते करते लगभग दस मिनट या उससे भी ज्यादा हो गया था, उदयराज ने बेमन से अपनी बेटी की बूर से हाँथ हटा लिया और तेल की शीशी उठा कर अपनी तड़पती बेटी को कोठरी में छोड़कर जाने लगा, उसने पलटकर एक बार फिर रजनी को देखा और कोठर से बाहर निकल गया, रजनी तड़पती सिसकती रह गयी, उदयराज का लंड तनकर विकराल रूप ले चुका था, उसने बरामदे में आकर लंड को adjust किया और शीशी को अपनी जगह पर रखा फिर धीरे से घर से बाहर निकल गया और जाकर अपनी खाट पर औंधे मुंह लेट गया, आज जो हो चुका था उसपर उसे विश्वास ही नही हो रहा था और लग रहा था कि उसके हाथ अब भी अपनी सगी बेटी की बूर को सहला रहे हैं काफी देर तक मदहोश होकर वो यही सब सोचता रहा की कितनी मस्त मक्खन जैसी बूर है रजनी की, कितना छोटा सा छेद है बूर का, और अब जल्द ही वो मुझे देखने को मिलेगी और फिर भोगने को और फिर न जाने कब आंख लगी कुछ पता नही।

रजनी भी काफी देर तक कोठरी में पड़ी सिसकती रही, उसे अभी भी ऐसा लग रहा था कि उसके बाबू की उंगलियां उसकी बूर को छेड़ रही हैं, सहला रही हैं, फांकों को फैला रही हैं। उसमे इतनी भी हिम्मत नही बची थी कि वो उठकर बाहर आ जाये, कामाग्नि में पूरी तरह जल रही थी वो, बहुत देर तक सिसकते सिसकते कब उसकी आंख लगी कुछ पता नही।
 

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