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Update- 31
उदयराज ने अपने किये जाने वाले कर्म को जानने के लिए दिए गए कागज को पढ़ने के लिए खोला, सफेद कागज पर सुनहरे रंग से लिखे अक्षर प्रकट हो गए, उदयराज यह चमत्कार देखकर ही दंग रह गया और पढ़ने से पहले एक बार वो कागज उसने माथे चढ़ा लिया, फिर उसने पढ़ना शुरू किया, उसमे लिखा था-
"उदयराज तुम्हारे पुर्वज द्वारा नियति के नियमों में छेड़छाड़ करने से कुपित नियति द्वारा किये गए अव्यवस्थित संतुलन को दुबारा संतुलित कर सही रास्ते पर लाने के लिये तुम्हे जो कर्म करना होगा वो है "महापाप कर्म"
व्यभिचार के रास्ते पर चलकर तुम्हे एक महापाप करना होगा, और ऐसा कर तुम्हे अपने कुल में पापकर्म को स्थान देकर उसकी स्थापना करनी होगी, इस कर्म की शुरुवात तुमसे होगी जो आनेवाले भविष्य में तुम्हारे कुल के लिए जीवनदायी होगी, तुम्हे यह महापाप अपना कर्म समझकर आनंद लेते हुए करना है।
इसके लिए तुम्हे आने वाली अमावस्या की रात से ठीक सात दिन पहले, अपने घर की किसी ऐसी स्त्री जिससे तुम्हारा खून का रिश्ता हो और जो बच्चे को स्तनपान कराती हो, मेरे द्वारा दिये गए दिव्य तेल से बिना उसका चेहरा देखे और बिना उसका कोई और अंग छुए सिर्फ उसकी योनि (बूर) को रात के 12 बजे छूना है, हाथ में तेल लगा कर उसकी योनि (बूर) का मर्दन 10 मिनट तक करना है और उससे निकलने वाले रस को उंगली से निकलकर पहले स्वयं चाटकर ग्रहण करना है फिर उसे चटाना है, रस को पांच बार चाटना और चटाना है, ध्यान रहे इस दौरान उसके शरीर के किसी भी और अंग पर तुम्हारी नज़र नही पड़नी चाहिए। वह स्त्री उस रात ठीक 12 बजे घर के किसी एकांत कमरे में तुम्हारा इंतज़ार करेगी, उसका शरीर पूर्ण रूप से चादर से ढका होगा, कमरे में कपूर की खुश्बू फैली होगी और कमरे के दरवाजे पर एक हल्की रोशनी का दिया जलता होगा।
ऐसा तुम्हे तीन रात करना है, फिर चौथी रात तुम्हे उस स्त्री को कमर से नीचे निवस्त्र कर उसकी योनि को खोलकर देखना और सूंघना है तथा कमर से नीचे की नग्नता के दर्शन करना है, फिर पांचवी रात पुनः तुम्हे उस स्त्री को कमर से नीचे निवस्त्र कर उसकी योनि को देखना, सूंघना और चुम्बन करना है और निकलने वाले रस को मुँह लगा के उसका रसपान करना है। ध्यान रहे इस दौरान भूल कर भी उसका चेहरा नही देखना और न ही शरीर का कोई और अंग छूना और देखना है, इतना ही नही इन सात दिनों के अंदर दिन में भी तुम्हे उस स्त्री के सामने नही पड़ना है, सिर्फ रात को ये कर्म करना है।
अगली छठी रात अब तुम्हे उसी कमरे में अपना पूरा शरीर चादर से ढककर लेटना है वह स्त्री तुम्हे कमर से नीचे निवस्त्र कर तुम्हारे लिंग का दर्शन करेगी, उसे छुएगी, सूंघेगी, उसका मर्दन करेगी और उसका चुम्बन लेगी, बाकी सब वैसे ही होगा, कमरे में कपूर की महक होगी और दरवाजे पर एक छोटा सा दिया जलता रहेगा।
छठी रात के बाद सातवें दिन, सुर्यास्त के बाद तुम उस स्त्री को देख सकते हो।
दिन में वह स्त्री घर में किसी जगह, कागज पर अपने मन की इच्छा लिखकर, छुपाकर रखेगी तुम्हे वह ढूंढकर पढ़ना है और उस कागज में लिखे अनुसार उस स्त्री की मन की इच्छा की पूर्ति अमावस्या की रात को करना होगा। ठीक उसी रात को तुम्हे कुलवृक्ष की जड़ में चौथी कील भी ठोकनी होगी और स्त्री से दूध भी अर्पित कराना होगा।
वह स्त्री कोई और नही तुम्हारी पुत्री ही होगी, क्योंकि वही एक स्त्री तुम्हारे परिवार में बची है जिससे तुम्हारा खून का रिश्ता है इसलिए यही सब कर्म विधि मैंने तुम्हारी पुत्री के कागज पर भी लिखा है, जिस दिन से ये कर्म शुरू होगा ठीक उसी दिन से तुम्हे न अपनी पुत्री को देखना है न उसके सामने पड़ना है।
मेरा आशिर्वाद सदा तुम्हारे साथ है, धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा, सदा खुश रहो।"
कर्म पत्र पढ़कर तो उदयराज को ऐसा लग जैसे पृथ्वी और आकाश एक साथ विपरीत दिशा में घूम रहे हैं उसने एक बार नही दो तीन बार अच्छे से पूरा-पूरा कर्म को पढ़ा। विश्वास नही हुआ उसे की नियति ये चाहती है जो उसके मन में थोड़ा थोड़ा पहले से ही है, उसका तो मन मयूर ही झूम उठा। तभी वह भागकर रजनी वाले कमरे में गया तो देखा रजनी भी बेसुध सी खड़ी यही सोच रही थी, उसे भी विश्वास नही हो रहा था, दोनों की नजरें मिली तो उदयराज मुस्कुराया और रजनी ने शर्मा के सर नीचे कर लिया।
उदयराज ने रजनी के चेहरे को ठोड़ी पर हाथ लगा के उठाया तो उसकी आंखें बंद थी, उसने धीरे से बोला- आज अमावस्या की रात से ठीक पहले का आठवाँ दिन है, कल सातवां दिन होगा, कल सुबह से मै तुम्हें नही देखूंगा, न तुम्हारे सामने पडूंगा।
रजनी की आंख बंद थी वो सुन रही थी उसके होंठ कंपन से थरथरा जा रहे थे।
उदयराज- मुझे तो लगा था कि आज रात मुझे मेरी अनमोल चीज़ मिल जाएगी पर नियति ने उसे 7 दिन पीछे धकेल दिया है, पर कोई बात नही मैं बर्दाश्त कर लूंगा।
रजनी ने धीरे से आंखें खोल के उदयराज की आंखों में देखा और बोली- बाबू, कल रात से रोज 5 रात तक मैं घर के पीछे वाली कोठरी में आपका रात के 12 बजे इंतज़ार करूँगी, और छठी रात आप मेरा इंतज़ार करना, इस दिनों हम एक दूसरे को न देखेंगे, न एक दूसरे के सामने पड़ेंगे, जैसा कि उसमे लिखा है। फिर सातवें दिन, मैं एक पर्ची में अपने मन की इच्छा उसमे लिख के घर में कहीं छुपा दूंगी आपको वो ढूंढकर उस पर्ची में लिखे अनुसार आगे का कर्म करना है और उस दिन सूर्यास्त के बाद हम एक दूसरे को देख सकेंगे, वह अमावस्या की रात होगी, उसी रात कुलवृक्ष में कील भी गाड़नी है, अब आपके और मेरे सब्र का इम्तहान है बाबू, हमे इसे बखूबी निभाना है।
उदयराज ने रजनी के चहरे को अपने हाथों में लेकर बोला- हाँ मेरी बच्ची, मेरी बेटी, बस आज की रात ही हम एक दूसरे को देख सकते हैं फिर तो 6 दिन बाद ही देख पाएंगे, और उदयराज गौर से रजनी को देखने लगा, उसके चेहरे को निहारने लगा, रजनी भी एक टक अपने बाबू को निहारने लगी फिर एकएक शर्माकर उनसे लिपट गयी, उदयराज ने उसे बाहों में कस लिया।
उदयराज- बेटी लेकिन हमारे बीच कोई तो ऐसा होना चाहिए जो जरूरत पड़ने पर सब संभालता रहे, मान लो मैं दिनभर बाहर रहूंगा और तुम घर में, परन्तु कभी कोई काम ही पड़ गया या तुम्हे मुझे खाना ही परोसना हो, या रात को बच्ची को ही संभालने वाला कोई तो होना चाहिए, ताकि हमे कर्म करने में कोई अड़चन आ आये।
रजनी- बाबू आप उसकी चिंता छोड़िए, वो मैं काकी को समझा दूंगी अपने तरीके से, उनको कुछ बताऊंगी नही पर फिर भी समझा दूंगी, वो सब संभाल लेंगी।
उदयराज- मेरी बेटी कितनी समझदार है, और कहते हुए वो उसके गालों को चूमने लगा।
रजनी ने आंखें बंद कर ली और अपने बाबू से लिपट गयी।
तभी नीलम की अम्मा आवाज लगाती हुई उनके घर की तरफ आ रही थी, ये सुनते ही उदयराज और रजनी झट से अलग हो गए और रजनी ने वो कागज छुपा दिया, भागकर बाहर आई- हाँ अम्मा क्या हुआ? बच्ची रो रही है क्या?
नीलम की अम्मा- हाँ बिटिया ये रो रही है, ले इसको दूध पिला दे और सब लोग चलो अब, खाना भी बन गया है, सब लोग खाना खा लो, काकी भी वहीं बैठी हैं, बस सब तुम लोगों का ही इतंज़ार कर रहे हैं।
रजनी- हाँ अम्मा चलती हूँ।
उदयराज ने भी अपना कागज छुपा के रख दिया और फिर रजनी और उदयराज दोनों लोग नीलम की अम्मा के साथ उसके घर आ गए।
आज पूरा गांव दिए कि रोशनी से जगमगा रहा था, बिरजू के घर सबने एक साथ खाना खाया, काफी बातें और हंसी मजाक भी हुआ फिर रजनी, काकी और उदयराज उन लोगों का धन्यवाद करके अपने घर आ गए।
उदयराज ने पहले की तरह अपनी खाट कुएं के पास लगाई और सोने के लिए लेट गया।
रजनी और काकी ने भी पहले की तरह अपनी खाट नीम के पेड़ के नीचे लगाई और लेटकर बातें करने लगी।
रजनी ने काकी को अपनी तरह से समझा दिया, उसने असल बात नही बताई, बस अपनी तरह से समझा दिया।
काकी ने भी उसको निश्चिन्त होकर कर्म करने के लिए बोला, काकी को भी लगा कि कोई ऐसा कर्म है जो गुप्त रूप से करना है।
फिर काकी सो गई पर रजनी की आंखों में नींद नही थी, वो बेचैन थी, वही हाल उदयराज का भी था वो भी अपनी खाट पर करवटें बदल रहा था। काफी देर सोचते सोचते फिर न जाने कब दोनों की आंख लग गयी।
उदयराज ने अपने किये जाने वाले कर्म को जानने के लिए दिए गए कागज को पढ़ने के लिए खोला, सफेद कागज पर सुनहरे रंग से लिखे अक्षर प्रकट हो गए, उदयराज यह चमत्कार देखकर ही दंग रह गया और पढ़ने से पहले एक बार वो कागज उसने माथे चढ़ा लिया, फिर उसने पढ़ना शुरू किया, उसमे लिखा था-
"उदयराज तुम्हारे पुर्वज द्वारा नियति के नियमों में छेड़छाड़ करने से कुपित नियति द्वारा किये गए अव्यवस्थित संतुलन को दुबारा संतुलित कर सही रास्ते पर लाने के लिये तुम्हे जो कर्म करना होगा वो है "महापाप कर्म"
व्यभिचार के रास्ते पर चलकर तुम्हे एक महापाप करना होगा, और ऐसा कर तुम्हे अपने कुल में पापकर्म को स्थान देकर उसकी स्थापना करनी होगी, इस कर्म की शुरुवात तुमसे होगी जो आनेवाले भविष्य में तुम्हारे कुल के लिए जीवनदायी होगी, तुम्हे यह महापाप अपना कर्म समझकर आनंद लेते हुए करना है।
इसके लिए तुम्हे आने वाली अमावस्या की रात से ठीक सात दिन पहले, अपने घर की किसी ऐसी स्त्री जिससे तुम्हारा खून का रिश्ता हो और जो बच्चे को स्तनपान कराती हो, मेरे द्वारा दिये गए दिव्य तेल से बिना उसका चेहरा देखे और बिना उसका कोई और अंग छुए सिर्फ उसकी योनि (बूर) को रात के 12 बजे छूना है, हाथ में तेल लगा कर उसकी योनि (बूर) का मर्दन 10 मिनट तक करना है और उससे निकलने वाले रस को उंगली से निकलकर पहले स्वयं चाटकर ग्रहण करना है फिर उसे चटाना है, रस को पांच बार चाटना और चटाना है, ध्यान रहे इस दौरान उसके शरीर के किसी भी और अंग पर तुम्हारी नज़र नही पड़नी चाहिए। वह स्त्री उस रात ठीक 12 बजे घर के किसी एकांत कमरे में तुम्हारा इंतज़ार करेगी, उसका शरीर पूर्ण रूप से चादर से ढका होगा, कमरे में कपूर की खुश्बू फैली होगी और कमरे के दरवाजे पर एक हल्की रोशनी का दिया जलता होगा।
ऐसा तुम्हे तीन रात करना है, फिर चौथी रात तुम्हे उस स्त्री को कमर से नीचे निवस्त्र कर उसकी योनि को खोलकर देखना और सूंघना है तथा कमर से नीचे की नग्नता के दर्शन करना है, फिर पांचवी रात पुनः तुम्हे उस स्त्री को कमर से नीचे निवस्त्र कर उसकी योनि को देखना, सूंघना और चुम्बन करना है और निकलने वाले रस को मुँह लगा के उसका रसपान करना है। ध्यान रहे इस दौरान भूल कर भी उसका चेहरा नही देखना और न ही शरीर का कोई और अंग छूना और देखना है, इतना ही नही इन सात दिनों के अंदर दिन में भी तुम्हे उस स्त्री के सामने नही पड़ना है, सिर्फ रात को ये कर्म करना है।
अगली छठी रात अब तुम्हे उसी कमरे में अपना पूरा शरीर चादर से ढककर लेटना है वह स्त्री तुम्हे कमर से नीचे निवस्त्र कर तुम्हारे लिंग का दर्शन करेगी, उसे छुएगी, सूंघेगी, उसका मर्दन करेगी और उसका चुम्बन लेगी, बाकी सब वैसे ही होगा, कमरे में कपूर की महक होगी और दरवाजे पर एक छोटा सा दिया जलता रहेगा।
छठी रात के बाद सातवें दिन, सुर्यास्त के बाद तुम उस स्त्री को देख सकते हो।
दिन में वह स्त्री घर में किसी जगह, कागज पर अपने मन की इच्छा लिखकर, छुपाकर रखेगी तुम्हे वह ढूंढकर पढ़ना है और उस कागज में लिखे अनुसार उस स्त्री की मन की इच्छा की पूर्ति अमावस्या की रात को करना होगा। ठीक उसी रात को तुम्हे कुलवृक्ष की जड़ में चौथी कील भी ठोकनी होगी और स्त्री से दूध भी अर्पित कराना होगा।
वह स्त्री कोई और नही तुम्हारी पुत्री ही होगी, क्योंकि वही एक स्त्री तुम्हारे परिवार में बची है जिससे तुम्हारा खून का रिश्ता है इसलिए यही सब कर्म विधि मैंने तुम्हारी पुत्री के कागज पर भी लिखा है, जिस दिन से ये कर्म शुरू होगा ठीक उसी दिन से तुम्हे न अपनी पुत्री को देखना है न उसके सामने पड़ना है।
मेरा आशिर्वाद सदा तुम्हारे साथ है, धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा, सदा खुश रहो।"
कर्म पत्र पढ़कर तो उदयराज को ऐसा लग जैसे पृथ्वी और आकाश एक साथ विपरीत दिशा में घूम रहे हैं उसने एक बार नही दो तीन बार अच्छे से पूरा-पूरा कर्म को पढ़ा। विश्वास नही हुआ उसे की नियति ये चाहती है जो उसके मन में थोड़ा थोड़ा पहले से ही है, उसका तो मन मयूर ही झूम उठा। तभी वह भागकर रजनी वाले कमरे में गया तो देखा रजनी भी बेसुध सी खड़ी यही सोच रही थी, उसे भी विश्वास नही हो रहा था, दोनों की नजरें मिली तो उदयराज मुस्कुराया और रजनी ने शर्मा के सर नीचे कर लिया।
उदयराज ने रजनी के चेहरे को ठोड़ी पर हाथ लगा के उठाया तो उसकी आंखें बंद थी, उसने धीरे से बोला- आज अमावस्या की रात से ठीक पहले का आठवाँ दिन है, कल सातवां दिन होगा, कल सुबह से मै तुम्हें नही देखूंगा, न तुम्हारे सामने पडूंगा।
रजनी की आंख बंद थी वो सुन रही थी उसके होंठ कंपन से थरथरा जा रहे थे।
उदयराज- मुझे तो लगा था कि आज रात मुझे मेरी अनमोल चीज़ मिल जाएगी पर नियति ने उसे 7 दिन पीछे धकेल दिया है, पर कोई बात नही मैं बर्दाश्त कर लूंगा।
रजनी ने धीरे से आंखें खोल के उदयराज की आंखों में देखा और बोली- बाबू, कल रात से रोज 5 रात तक मैं घर के पीछे वाली कोठरी में आपका रात के 12 बजे इंतज़ार करूँगी, और छठी रात आप मेरा इंतज़ार करना, इस दिनों हम एक दूसरे को न देखेंगे, न एक दूसरे के सामने पड़ेंगे, जैसा कि उसमे लिखा है। फिर सातवें दिन, मैं एक पर्ची में अपने मन की इच्छा उसमे लिख के घर में कहीं छुपा दूंगी आपको वो ढूंढकर उस पर्ची में लिखे अनुसार आगे का कर्म करना है और उस दिन सूर्यास्त के बाद हम एक दूसरे को देख सकेंगे, वह अमावस्या की रात होगी, उसी रात कुलवृक्ष में कील भी गाड़नी है, अब आपके और मेरे सब्र का इम्तहान है बाबू, हमे इसे बखूबी निभाना है।
उदयराज ने रजनी के चहरे को अपने हाथों में लेकर बोला- हाँ मेरी बच्ची, मेरी बेटी, बस आज की रात ही हम एक दूसरे को देख सकते हैं फिर तो 6 दिन बाद ही देख पाएंगे, और उदयराज गौर से रजनी को देखने लगा, उसके चेहरे को निहारने लगा, रजनी भी एक टक अपने बाबू को निहारने लगी फिर एकएक शर्माकर उनसे लिपट गयी, उदयराज ने उसे बाहों में कस लिया।
उदयराज- बेटी लेकिन हमारे बीच कोई तो ऐसा होना चाहिए जो जरूरत पड़ने पर सब संभालता रहे, मान लो मैं दिनभर बाहर रहूंगा और तुम घर में, परन्तु कभी कोई काम ही पड़ गया या तुम्हे मुझे खाना ही परोसना हो, या रात को बच्ची को ही संभालने वाला कोई तो होना चाहिए, ताकि हमे कर्म करने में कोई अड़चन आ आये।
रजनी- बाबू आप उसकी चिंता छोड़िए, वो मैं काकी को समझा दूंगी अपने तरीके से, उनको कुछ बताऊंगी नही पर फिर भी समझा दूंगी, वो सब संभाल लेंगी।
उदयराज- मेरी बेटी कितनी समझदार है, और कहते हुए वो उसके गालों को चूमने लगा।
रजनी ने आंखें बंद कर ली और अपने बाबू से लिपट गयी।
तभी नीलम की अम्मा आवाज लगाती हुई उनके घर की तरफ आ रही थी, ये सुनते ही उदयराज और रजनी झट से अलग हो गए और रजनी ने वो कागज छुपा दिया, भागकर बाहर आई- हाँ अम्मा क्या हुआ? बच्ची रो रही है क्या?
नीलम की अम्मा- हाँ बिटिया ये रो रही है, ले इसको दूध पिला दे और सब लोग चलो अब, खाना भी बन गया है, सब लोग खाना खा लो, काकी भी वहीं बैठी हैं, बस सब तुम लोगों का ही इतंज़ार कर रहे हैं।
रजनी- हाँ अम्मा चलती हूँ।
उदयराज ने भी अपना कागज छुपा के रख दिया और फिर रजनी और उदयराज दोनों लोग नीलम की अम्मा के साथ उसके घर आ गए।
आज पूरा गांव दिए कि रोशनी से जगमगा रहा था, बिरजू के घर सबने एक साथ खाना खाया, काफी बातें और हंसी मजाक भी हुआ फिर रजनी, काकी और उदयराज उन लोगों का धन्यवाद करके अपने घर आ गए।
उदयराज ने पहले की तरह अपनी खाट कुएं के पास लगाई और सोने के लिए लेट गया।
रजनी और काकी ने भी पहले की तरह अपनी खाट नीम के पेड़ के नीचे लगाई और लेटकर बातें करने लगी।
रजनी ने काकी को अपनी तरह से समझा दिया, उसने असल बात नही बताई, बस अपनी तरह से समझा दिया।
काकी ने भी उसको निश्चिन्त होकर कर्म करने के लिए बोला, काकी को भी लगा कि कोई ऐसा कर्म है जो गुप्त रूप से करना है।
फिर काकी सो गई पर रजनी की आंखों में नींद नही थी, वो बेचैन थी, वही हाल उदयराज का भी था वो भी अपनी खाट पर करवटें बदल रहा था। काफी देर सोचते सोचते फिर न जाने कब दोनों की आंख लग गयी।