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क्यों सवारती हो इन ज़ुल्फ़ों को ,
ख़ामख़ा हम बिखर जाते है।
ख़ामख़ा हम बिखर जाते है।
Wa waक्यों सवारती हो इन ज़ुल्फ़ों को ,
ख़ामख़ा हम बिखर जाते है।
उम्दाइंतज़ार ज़हर
नज़रअंदाज़ी कहर ,
इश्क़ को यूं ही
कातिल नहीं कहते।
बहुत ही बेहतरीन।।कसा हुआ तीर हुस्न का,
ज़रा संभल के रहियेगा,
नजर नजर को मारेगी,
तो क़ातिल हमें ना कहियेगा।
वाह वाह वाह।।तुम्ही ने छूआ होगा
हवा तो बेवजह यूं ही नहीं महकती।
बहुत ही उम्दा पंक्तियां।।वो शरमाई सूरत वो नीची निगाहें,
वो भूले से उनका इधर देख लेना।