Incest Paap ne Bachayaa written By S_Kumar

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Update-21

उदयराज और रजनी सो गए कुछ देर बाद पुर्वा भी सो गई, सुबह हुई, पुर्वा और रजनी एक साथ जगे, रजनी ने काकी को जगाया और तीनों ने सुबह की नित्य क्रिया करके नहा धो लिया, पुर्वा और काकी नाश्ता बनाने लगी, आज रजनी ने नीली रंग की साड़ी काले ब्लॉउज के साथ पहनी थी जिसमे वो गज़ब ढा रही थी, उसका गोरा बदन दमक रहा था, ब्लॉउज में भारी भारी चूचीयाँ बाहर आ जाने को कसमसा रही थी, नितंबों ने अलग ही हाहाकार मचाया हुआ था। ऐसा लग रहा था स्वर्ग से उतरकर कोई अप्सरा जंगल में आ गयी हो।

रजनी कुटिया में उदयराज को जगाने के लिए गयी।

रजनी- बाबू उठो, (कहते हुए उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा और फिर अपने बाबू के गाल पर झुककर एक भीगा सा चुम्बन जड़ दिया)

तपाक से उदयराज की आंखें खुल गयी, अपनी शादीशुदा बेटी का ये रूप देखकर और इस तरह चुम्बन देकर उठाना उसे इतना मधुर लगा कि वो उसे देखता रह गया, कामुक भीगे हुए रसीले होठों के गीले गीले चुम्बन का अपने गालों पर अहसास उदयराज को मदमस्त कर गया

नीली साड़ी में अपनी ही शादीशुदा बेटी को देखकर उसका मन मचल उठा, तभी उसकी नज़र रजनी के ब्लॉउज पर गयी, पल्लू सीने से गिर चुका था, गोरी गोरी चूचीयों के बीच बनी गहरी घाटी में जैसे वो थोड़ी देर के लिए डूब गया, रजनी समझ गयी कि उसके बाबू कहाँ खोए हैं। उसने अपने बाबू की ठोढ़ी को तर्जनी उंगली से उठाते हुए कहा- उठो न बाबू, रात में देखके जी नही भरा।

उदयराज- गज़ब की बिटिया पाई है मैंने, इससे भला अब मेरा जी भरेगा, आज तूने मेरा दिन बना दिया।

रजनी- अच्छा जी! मैंने भी तो दुनियां का सबसे अच्छा पिता पाया है, चलो अब उठो न बाबू कोई आ जायेगा।

उदयराज- ऐसे नही उठूंगा

रजनी- फिर कैसे उठोगे, उठो न

उदयराज- नही, पहले जरा सा दिखा दे न, चखने का मन कर रहा है

रजनी- क्या?

उदयराज ने अपनी हथेली रजनी के बायीं मोटी चूची पर रख दिया और हल्का सा दबा दिया।

रजनी हल्का सा - uuuiiiimmmaaa

रजनी- अभी रात को तो सब किया था मेरे बाबू, जी नही भरा (सिसकते हुए)

उदयराज- क्या कोई रात को खाना खा ले तो सुबह नाश्ता नही करता क्या? सुबह तो फिर उसे भूख लगेगी न,

रजनी- बदमाश! ये दिन है बाबू रात की बात अलग थी, यहां सब हैं कभी भी कोई आ सकता है।

उदयराज- बस जल्दी से, एक बार बस, बहुत देखने का मन कर रहा है, फिर उठ जाऊंगा पक्का।

रजनी- बदमाश बाबू! अच्छा लो देख लो जल्दी से

रजनी मुस्कुराते हुए पीछे पलट के देखती है, भाग्यवश उस वक्त कोई इधर नही आ रहा था।फिर उसने अपने ब्लॉउज के नीचे के दो बटन खोले और ब्रा और ब्लॉउज को ऊपर खींचकर एकदम से दोनों ही बड़ी बडी चूचीयों को एक साथ अपने बाबू के सामने उजागर कर दिया, दोनों बड़ी बड़ी चूचीयाँ उछलकर उदयराज की आंखों के सामने आ गयी, आज उदयराज दोनों चुचियों को एकसाथ देखकर वासना से सराबोर हो गया, लंड उसका धोती में खड़ा हो गया, इतनी गोरी गोरी चूची उसकी खुद की शादीशुदा बेटी की ही होगी उसने कभी सोचा नही था और उसपर ये मोठे मोठे गुलाबी रसीले निप्पल, अभी रात में ही उदयराज ने एक चूची को खोला था पर अंधेरा होने की वजह से अच्छे से देख नही पाया था पर इस वक्त सुबह की रोशनी में दोनों ही चूचीयाँ उसके सामने नग्न थी। उदयराज उन्हें निहारने लगा, रजनी शर्मा गयी

उदयराज ने दोनों हाँथ बढ़ा के दोनों चूची को हथेली में भर लिया और एक बार कस के दबा कर निप्पल को मसल दिया रजनी की aaahhhhhhh निकल गयी मचलते हुए वो बोली- बाबू बस करो कोई आ जायेगा

उदयराज- अच्छा मेरी बेटी एक बार पिला दे दोनों

रजनी ने ब्लॉउज को और ऊपर चढ़ा कर छोड़ दिया और अपने दोनों हाँथ उदयराज के दोनों कंधों के ऊपर रखकर उसके ऊपर झुक गयी और अपनी बायीं चूची का निप्पल मुँह में डालते हुए बोली- लो जल्दी पी लो

उदयराज ने लपककर जितना हो सके चूची को मुँह में भर लिया और पीने लगा रजनी की जोश में आंखें बंद हो गयी, पीते वक्त उदयराज बीच बीच में हल्का काट लेता और जब उसकी जीभ निप्पल से टकराती तो रजनी दबी आवाज में सिसक उठती iiiiiiiiiissssssshhhhhh. aaaaaaaahhhhhhhhhh, रजनी वासना से भर उठी वह डर भी रही थी कि कहीं कोई आ न जाये।
तभी रजनी बोली- बाबू अब बस करो जल्दी से दूसरी पियो देखो कोई आ जायेगा और उसने बायीं चूची उदयराज के मुंह से निकाल कर दायीं चूची उसके मुँह के सामने कर दी निप्पल मुँह से निकलने पर दूध की एक दो बूंदे उदयराज की मूंछों के आसपास गिर गयी जो कि देखने मे बहुत खूबसूरत लग रही थी।
उदयराज ने जीभ निकाल कर रजनी को दिखाते हुए उसे चाट लिया और रजनी हंस पड़ी
और फिर रजनी ने अपनी दायीं चूची के निप्पल को अपने बाबू के होंठों से छुआया उदयराज ने अपनी जीभ निकल के निप्पल के चारों ओर घुमाने लगा तो रजनी वासनामय होते हुए बोली- बाबू चुसो न जल्दी, जरूर कोई आ जायेगा, खेल बाद में करना इसके साथ बदमाश।

उदयराज लप्प से चूची मुँह में भरकर पीने लगा, उसके तो दिन ही बदल गए थे इतनी मदमस्त चूचीयाँ पीने को मिलेंगी वो भी अपनी ही सगी शादीशुदा बेटी की उसने सोचा नही था। आज तो वो झूम उठा था, रजनी की आंखें मस्ती में बंद थी, एक बार फिर उसने मुड़कर दरवाजे की तरफ देखा अभी तक भी रास्ता साफ था रजनी एकाएक बोली- बाबू थोड़ा रुको

उदयराज रुक गया, रजनी ने चूची पकड़कर उसके मुह से बाहर निकाली और बोली- मुँह खोलो, आ करो

उदयराज ने बच्चे की तरह आ कर लिया, रजनी ने एकाएक अपनी चूची को जोर से दबाकर दूध की धार उदयराज के मुंह में डाल दी, चिर्रर्रर्रर की आवाज के साथ दूध की धार से उदयराज का मुँह कुछ ही पल में आधा भर गया, रजनी ने हस्ते हुए बोला मेरे बाबू जी अभी इतना पी लो बाकी का बाद में दूंगी तो खाली कर लेना, इतना कहकर रजनी अपनी चुचियों को ढकते हुए उठ खड़ी हुई, उदयराज उसे देखते हुए गट गट करके दूध पी गया और जैसे ही रजनी मुस्कुराते हुए जाने को पलटी उसने रजनी का नरम मुलायम हाँथ पकड़ लिया।

रजनी- अब क्या बाबू, जाने दो न, जरूर कोई आ ही जायेगा।

उदयराज- फिर कब दोगी।

रजनी- जब मौका मिलेगा, सब्र करो सब दूंगी अपने बाबू को

उदयराज- सब दोगी

रजनी- हां...दूंगी

उदयराज- सब.....वो भी (उदयराज का मतलब बूर से था)

रजनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया और धीरे से बोली- dhaaaatttt बाबू, कोई अपनी शादीशुदा सगी बेटी की "वो" मांगता है। मेरे बेशर्म बाबू।

उदयराज- किसी का तो पता नही पर मुझे तो चाहिए वो, जरूर चाहिए, दोगी न

उदयराज ने हाँथ छोड़ दिया और रजनी मुस्कुराके जाने लगी फिर दरवाजे तक जाके रुकी, पलट के देखा और बोली- हां वो भी दूंगी, खूब दूंगी, जी भरके दूंगी, पर घर पहुँच के, थोड़ा सब्र बाबू, अब उस पर आपका ही हक़ है वो हमेशा से ही आपकी थी और हमेशा रहेगी और मुस्कुराते हुए भाग गई, उदयराज ने अपने लंड को धोती के ऊपर से ही मसल दिया और किसी तरह adjust करके उठा और बाहर आ गया।

काकी और पुर्वा नाश्ता बना चुकी थी, पुर्वा ने रजनी को देखते हो बोला- अरे बहन तुम्हारे बाबू जी उठ गए।

रजनी (अपने को संभालते हुए)- हां उठ गए नहा कर आ रहे हैं।

पुर्वा- ठीक है मैं नाश्ता लगती हूँ

रजनी- नही बहन तुम रहने दो मैं लगा देती हूं तुम अपनी माता जी के पास जाओ शायद वो बुला रही थी तुम्हे।

रजनी और काकी नाश्ता लगाने लगती हैं

सुलोचना ने रात भर मंत्र जागृत करके सात ताबीज़ तैयार कर दिए थे जिसको पीपल के पत्ते से लपेटा हुआ था और उसको काले कपड़े में बांधकर एक डोरी से जोड़ना था ताकि हाँथ पर बांधा जा सके, पुर्वा ने उसे तुरंत तैयार कर दिया, सुलोचना भी फिर नहा कर तैयार हो गयी, सबने नाश्ता किया।

सुलोचना- मैंने ताबीज़ तैयार कर दी है, पुर्वा को छोड़कर सबलोग इसको अपने हाँथ पर बांध लो, छोटी बच्ची और बैलों को भी बांध देना पुत्र।

उदयराज- हां माता जी

और उदयराज सबको वो ताबीज़ बांध देता है जाके बैलों के गले में भी बांध आता है।

सुलोचना- मेरे ख्याल से हमे सुबह जल्दी ही निकल जाना चाहिए, ताकि शाम तक वहां पहुंच जाएं, पुर्वा यही रहेगी

काकी- बहन अगर हम शाम तक वहां पहुचेंगे तो हम वापिस तो कल ही आ पाएंगे तो ऐसे में क्या पुर्वा रात भर इस जंगल में अकेली रहेगी, आखिर वो भी एक लड़की है, बच्ची ही है, मेरे ख्याल से हमे उसे अकेला नही छोड़ना चाहिए। आप हम लोगों की इतनी चिंता कर रही है तो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि हम भी आपलोगों का ख्याल रखें।

उदयराज- हां बिल्कुल

सुलोचला- तुम्हारी चिंता जायज है बहन, पर तुम इसकी चिंता मत करो, हमारी आदत है और वैसे भी उसके पास मन्त्रो की शक्ति है उसे कुछ नही होगा, हम कल दोपहर तक आ जाएंगे।

पूर्वा- हां अम्मा आप मेरी फिक्र मत करो मैं कई बार अकेले रह चुकी हूं।

काकी- ठीक है

फिर सभी लोग तैयार हो जाते है उदयराज अपने बैल तैयार करता है सबलोग बैलगाड़ी में बैठ जाते हैं और उदयराज बैलगाड़ी चलाने लगता है।

उदयराज का मन अब बिल्कुल नही लग रहा था उसका लंड बार बार रजनी को देखके खड़ा हो जा रहा था, रजनी भी उसे देख देख के मुस्कुरा रही थी, रजनी का आमंत्रण उसका यौवन उदयराज पर इतना हावी होता जा रहा यह कि एक पल को वो ये भी भूल गया कि आखिर वो किस काम के लिए निकला है, यही हाल रजनी का भी हो रहा था। उनके जीवन में रसभरी बाहर आ चुकी थी, उदयराज ने कभी सोचा भी नही था कि उसे अपनी ही शादीशुदा बेटी से यौनसुख मिलेगा। वो बैलगाड़ी चलता हुआ यही सब सोचे जा रहा था कि तभी उसकी तन्द्रा भंग होती है जब बैलगाड़ी सिंघारो जंगल में प्रवेश कर जाती है, वाकई में ये जंगल मायावी सा था, काफी गहरी घनी छाया थी, बहुत बड़े बड़े वृक्ष थे।
 
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Shukriya s k sir ji kya mast kahani hai jitna padho km hi lagta hai kahani hi aisi hai ki kabhi kabhi mein ek hi update ko do bar padhta hun
S_kumar ji ke likhne ki Kala hi aisi hai. Unki story jisne bhi padha vo murid ho gaye hai.
 
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Update-22

बैलगाड़ी घने जंगल में दनदनाती हुई आगे बढ़ती जा रही थी, सुबह की शीतल ठंडी हवा चेहरे पर लगकर ताजगी का अहसास करा रही थी, उदयराज बैलों को हाँके जा रहा था, रजनी, काकी और सुलोचला पीछे बैठी हुई थी, काकी और रजनी बार बार सर घुमा घुमा कर जंगल में विचित्र लंबे लंबे पेड़ों को देख रही थी, कुछ पेड़ ऐसे थे जिनकी प्रजाति अभी तक उन्होंने कहीं देखी नही थी।

तभी सुलोचना उठकर उदयराज के बिल्कुल पीछे बैठ गयी ताकि वो उसको आगे का short रास्ता बता सके।

कभी अचानक तेज हवा चलने लगती तो कभी वातावरण बिल्कुल शांत हो जाता, कभी किसी पेड़ की डालियां एकदम हिलने लगती जैसे उन्हें कोई झकझोर रहा हो, कभी जानवरों की आवाज़ें आने लगती कभी सब शांत हो जाता।
रजनी और काकी यही सब देखकर चकित थी पर डर उन्हें लेश मात्र भी नही छू पाया था, अभी सुबह का ही वक्त था, उदयराज भी ये सब देखता हुआ बैलगाड़ी चलता जा रहा था, तभी रजनी को एकाएक एक बहुत बड़ा बरगद के जैसा बिल्कुल पीला वृक्ष दिखाई दिया।

रजनी- काकी वो पेड़ देखो बरगद जैसा एकदम पीला है और कितना बड़ा है।

काकी- हां बेटी ये तो बिल्कुल पीला है।

सुलोचना- उस पेड़ की तरफ ज्यादा मत देखो, ऐसे ही कई मायावी पेड़ हैं इस जंगल में जो बार बार रंग बदलकर आकर्षित और सम्मोहित करते हैं।

काकी- हां बहन ठीक है, तम ठीक कह रही हो हमे अपने रास्ते और मंजिल पर सीधा ध्यान रखना चाहिए न कि इधर उधर।

रजनी- हां बिल्कुल। हमे तो बैलों पर और बैलगाड़ी चलाने वाले पर ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि वही तो हमे मंजिल तक ले जाएंगे। क्यों बाबू? (रजनी हंसते हुए उदयराज को छेड़ते हुए बोली)

उदयराज ने पलट कर रजनी को देखा तो रजनी मुस्कुरा दी, उदयराज बोला- हां क्यों नही, घर भी तो जल्दी पहुचना है अब। उदयराज ने ये बोलते हुए एक बार फिर रजनी को देखा।

रजनी को बात का मतलब समझ आते ही शर्म आ गयी और उसने काकी और सुलोचना की नजरें बचा कर थोड़ा सा जीभ निकाल कर उदयराज को फिर चिढ़ाया, मानो कह रही हो कि तब तक तो बस सब्र करो।

उदयराज ने भी मौका देखके इशारा किया मानो कह रहा हो कि बस मौका मिलने दे बताता हूँ फिर।

रजनी हंस दी, उदयराज भी मुस्कुरा दिया।

सुलोचना उदयराज के पीछे बैठे बैठे रात के लिए मशाल बनाने लगी और बोली- एक बार अपने अपने ताबीज़ को ठीक से जांच लो और अच्छे से बांध लेना, यह मायावी जंगल इसी के सहारे पार किया जा सकता है।

उदयराज अब तेजी से बैलों को हांकने लगा उसे बस अब एक ही धुन सवार थी कि कैसे भी जल्दी काम खत्म करके बस घर पहुचना है।

जैसे जैसे सुलोचला रास्ता बताये जा रही थी वो बैलगाडी उसी रास्ते पर दौड़ाता जा रहा था।

ऐसे ही रास्ता कटता जा रहा था दोपहर हो गयी तभी रजनी ने काकी के कान में कहा- काकी मुझे पेशाब करना है, तेज से लगी है, कब से रोककर बैठी हूँ।

काकी- अरे पगली ये भी कोई रोकने की चीज़ है, बोल देती न। उदय ओ उदय जरा बैलगाडी कहीं रोकेगा की बस ऐसे ही दौड़ाता जाएगा। रुक जरा


उदयराज- क्यों क्या हुआ काकी? उदयराज ने बैलगाडी रोक दी।

सुलोचना- क्या हुआ बहन?

काकी- अरे वो रजनी को जोर से पेशाब लगी है, कब से दबाए बैठी है।

उदयराज ने रजनी की तरफ देखा तो रजनी ने आंखों के इशारों से मिन्नत सी की, कि जरा रोको बाबू।

उदयराज ने बैलगाडी रोक दी

सुलोचला- लेकिन पुत्री रुको

रजनी- क्या हुआ अम्मा।

सुलोचला- ऐसे मायावी जंगल में यूं ही पेशाब करना खतरनाक हो जाएगा, क्योंकि प्रेत, मानव स्त्री के मूत्र की गंध से और प्रेतनी मानव पुरुष के मूत्र की गंध से तुरंत आकर्षित हो जाते है और वो फिर उसका पीछा करने लगते है अभी तो तुमने ताबीज़ पहना हुआ है तो कोई परेशानी नही है पर वो तुम्हारे मूत्र की गंध को अपने अंदर समाहित करके हमेशा तुम्हारे पीछे लगे रहेंगे जैसे ही ये ताबीज़ हटी फिर वो तुम पर हावी हो जाएंगे। तो उन्हें मूत्र को सूंघने से ही रोकना पड़ेगा।

रजनी को जोर पेशाब लगी थी वो तो कसमसा रही थी

काकी- तो फिर कैसे होगा, अब पेशाब तो किसी को भी लग सकती है, हमने तो इसके बारे में चलने से पहले सोचा ही नही था, कितना खतरनाक है ये जंगल, तो कैसे होगा बहन, अब रजनी को तो लगी है न जोर से।

सुलोचला- हल है न, मैं किसलिए हूँ तुम्हारे साथ, देखो मानव मूत्र पर प्रेत या प्रेतनी की छाया पड़ने से पहले अगर मनुष्य योनि के विपरीत लिंग का मूत्र उसपर पड़ जाए तो उस मूत्र पर उसके बाद उसपर पड़ने वाले मूत्र का अधिकार हो जाता है मतलब वह अकेला नही रहता और फिर ऐसी बाधा नही आ पाती।

काकी- मैं समझी नही

रजनी और उदयराज भी असमंजस की स्थिति में सुलोचना को देखने लगे। रजनी तो बार बार अपनी जांघों को भीच ले रही थी, काफी देर से उसने पेशाब दबा रखा था।

सुलोचला- अरे, बहन जैसे कि रजनी के पेशाब करने के बाद अगर कोई पुरुष उसपर पेशाब कर दे तो रजनी सुरक्षित हो जाएगी, उसपर उस पुरुष का अधिकार स्थापित हो गया।

काकी- तो पुरुष तो हमारे साथ केवल इस वक्त उसके बाबू ही हैं।

सुलोचला- हाँ तो क्या हुआ, वो ही करेंगे इसमें क्या हर्ज है अपनी बेटी की रक्षा के लिए करना पड़ेगा।

रजनी के पेशाब करने के बाद उसके बाबू उसपर पेशाब करके उसमें अपना पेशाब मिला देंगे तो रजनी खाली नही रहेगी इसपर उदयराज का अधिकार साबित हो जाएगा और इसके अलावा मैं पानी में मंत्र मारकर और एक फूल दे देती हूँ रजनी और उदयराज थोड़ा दूर जाकर एक साथ खड़े हो जाये फिर रजनी हाथ में पानी लेकर अपने और उदयराज के चारों ओर एक गोला बना लेगी और लोटा उदयराज को देखकर दक्षिण दिशा में विपरीत मुँह करके पेशाब कर लेगी और फिर उसके बाबू भी दक्षिण दिशा में रजनी के पेशाब में अपना पेशाब मिला देंगे फिर दोनों गोले से बाहर आकर जहां पर गोला बंद किया था वहां फूल रख देंगे मैं मंत्र से उसको बंद कर दूंगी। फिर कोई दिक्कत नही है।

उदयराज- लेकिन मुझे तो पेशाब आ ही नही रही अम्मा (उदयराज ने ये कहते हुए रजनी की तरफ देखा तो रजनी कसमसाते हुए झेप गयी)

सुलोचना- अरे बेटा नही आ रहा तो पानी पी ले एक लोटा, लेकिन तू दो बूंद भी अपना पेशाब उसके पेशाब में मिला देगा तो वो सुरक्षित हो जाएगी।

उदयराज- माता मैं तो मज़ाक कर रहा था मैं अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।

सुलोचना- जानती हूं बेटा, जो इंसान पूरे गांव की सुरक्षा के लिए अपने पूरे परिवार को लेके जिसमे एक छोटी सी बच्ची भी है इतने जोखिम भरे रास्ते पर निकल सकता है उसके लिए तो ये कुछ भी नही, पुत्र तुझे इसका फल अवश्य मिलेगा।

और फिर सुलोचना ने एक लोटे में जल लेकर उनमे मंत्र फूंका और रजनी को दे दिया रजनी उसे लेकर बैलगाडी से उतरी उसके पीछे उदयराज भी चलने लगा, कुछ दूर जाकर रजनी ने पलटकर देखा और बोली यहीं ठीक है बाबू थोड़ा ओट भी है।

रजनी ने बताये अनुसार हाथ में जल लेकर अपने और उदयराज के चारों ओर एक घेरा बना दिया फिर लोटा उदयराज को देकर बोली- अब तुम उधर मुह करो पीछे मत देखना बाबू, ठीक है।

उदयराज- किधर?

रजनी- उधर

उदयराज- अरे उधर किधर?

रजनी- दक्षिण दिशा की तरफ, नही उत्तर दिशा की तरफ।

उदयराज- हे भगवान इतना तेज पेशाब लगा है कि कुछ समझ नही आ रहा मेरी बेटी को।

रजनी- हाँ लगी है न बाबू, अब उधर मुँह करो, काकी और अम्मा दोनों इधर ही देख रही है।

उदयराज- देखने दो मैं क्या डरता हूँ उनसे (उदयराज ने मस्ती करते हुए कहा)

रजनी- बाबू करने दो न, अब, मान भी जाओ मेरे बाबू

उदयराज- इससे भी सुरक्षित तरीका सुझा है मुझे।

रजनी- क्या?

उदयराज- इससे अच्छा तो तुम मेरे मुँह में ही पेशाब कर देती, न जमीन पर गिरता न ऐसी ऐसी आफत आती, मेरे मुँह में वो सुरक्षित रहता।

रजनी (जोर से हंसते हुए) - हे भगवान! बदमाश! गंदे!, बहुत बदमाश होते जा रहे हो बाबू तुम, मेरे पेशाब मुँह में लिए फिरोगे, बोलोगे कैसे? तुम न दीवाने होते जा रहे हो बस, अब बाबू धुमो न उधर मुझे करने दो न।


उदयराज- तुम हो ही इतनी हसीन, क्या करूँ।

रजनी- बदमाश!

उदयराज- अच्छा ठीक है पहले बोलो मुझे पिलाओगी न।

रजनी- क्या? दुद्धू, वो तो तुम्हारा ही है मेरे बाबू, क्यों नही पिलाऊंगी (बहुत प्यार से बोला रजनी ने)

उदयराज- वो नही, वो तो मैं पियूँगा ही, मुझे तो ये भी पीना है।

रजनी- क्या?

उदयराज (धीरे से)- अपनी शादीशुदा बेटी का पेशाब

रजनी का मुँह खुला का खुला रह गया-hhaaaiii dddaaaiiiyaa, dhhaaattt, गंदे! हे भगवान बाबू, ये गंदा होता है न

उदयराज- कुछ भी हो मुझे तो पीना है थोड़ा सा ही सही

रजनी शर्म से लाल हो गयी

उदयराज- बोलो न, तभी उस तरफ घूमूंगा!

रजनी- बहुत बदमाश हो तुम बाबू, अच्छा ठीक है पर घर पे और बस थोड़ा सा और पीना नही है बस मुँह में लेकर फिर थूक देना, ठीक

उदयराज- ठीक


रजनी- चलो अब उधर देखो मुझे बहुत जोर से लगी है बर्दाश्त नही होता अब।


और उदयराज उत्तर दिशा की ओर मुह करके खड़ा हो गया, रजनी का किया हुआ वादा सोचके उसका लन्ड फ़नफना उठा पर जल्द ही उसने adjust कर लिया क्योंकि काकी और सुलोचना ज्यादातर इस तरफ ही देख रही थी

रजनी दक्षिण की तरफ घूमी और जल्दी से अपनी साड़ी को थोड़ा सा उठा के उसके अंदर हाथ डाल के पेंटी को घुटनों तक साड़ी के ही अंदर नीचे सरकाया फिर नीचे बैठ गयी और पेशाब की धार छोड़ दी, पेशाब की धार की शीटी सी आवाज उदयराज के कानों तक पड़ी तो उसका मन मचल उठा, रजनी इतना तो समझ गयी कि बाबू पेशाब की धार की आवाज तो सुन ही रहे हैं, रजनी की मखमली बूर की फांकों के बीच से एक मोटी पेशाब की धार जमीन में इतनी तेज लग रही थी की वहां हल्का सा गढ्ढा हो गया, आखिर उसे पेशाब लगा ही इतना तेज था, काफी देर से दबाए हुए थी, पेशाब की धार छोडते ही उसने राहत की सांस ली।

अभी पेशाब करते हुए उसे कुछ सेकंड ही हुए होंगे कि पास के पेड़ की डाल काफी जोर से हिली जैसे किसी ने झकझोर दिया हो

काकी- ये क्या हुआ बहन।

सुलोचला- आ गए हरामजादे, स्त्री का पेशाब सूंघने, अगर अभी ये गोला न बनाया होता तो टूट पड़ते पेशाब पर, और अगर ताबीज़ न बंधी होती तो हावी वो जाते, उदयराज और रजनी ने भी हिलती हुए डाली को देखा पर डरे नही।

काकी- कितना खतरनाक है ये जंगल वाकई में।

रजनी करीब 30 सेकंड तक मूतती रही फिर उठ गई उसकी मखमली मुलायम बूर से निकला हुआ काफी सारा पेशाब जमीन पर था उसने शर्माते हुए उदयराज को देखा और लोटा ले लिया, उदयराज की नज़र जब रजनी के मूत पर पड़ी तो वो उसे मदहोशी से देखने लगा।

रजनी उत्तर की तरफ मुँह करके खड़ी हो गयी फिर उदयराज रजनी के पेशाब के पास बैठ गया और अपना पहले से ही सख्त हो चुके करीब 9 इंच लंबा 3 इंच मोटा काला लंड निकालकर मूतने लगा, उदयराज के लंड से भी पेशाब को धार सुर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर की आवाज के साथ निकलने लगी और रजनी के पेशाब में जा मिली, जैसे ही रजनी ने अपने बाबू के पेशाब की धार की आवाज सुनी और ये सोचा कि मेरे बाबू का पेशाब मेरे पेशाब से मिल गया, उसके तन बदन में मीठी तरंगे दौड़ गयी, आज ये पहली बार हुआ था , बदन गनगना गया उसका। मन ही मन वो सोचने लगी कि बाबू का लंड कैसा होगा? ये सोचते ही शर्म की लालिमा उसके चेहरे पर दौड़ गयी।

उदयराज मूत चुका था वो अब उठ गया, लंड उसने धोती के अंदर करके कुछ इस तरह एडजस्ट किया कि रजनी को भी इसका अहसास न हो कि वो खड़ा है, वो सारे पत्ते एक ही बार में खोलना नही चाहता था।

फिर रजनी और उदयराज उस गोले के बाहर आ गए और रजनी गोले के मुह पर जब फूल रखने लगी तो सुलोचना ने मंत्र पढ़कर उसको बांध दिया

रजनी ने एक नज़र पेशाब पर डाली, अपने पेशाब में अपने बाबू का मिला हुआ पेशाब देखकर उसकी बूर थोड़ी गीली सी हो गयी और अजीब सी गुदगुदी का अहसाह हुआ, फिर उसकी नज़र अपने बाबू पर गयी जो उसे ये देखते हुए देख रहे थे तो वो शर्मा गयी।

उदयराज बोला- लो अब तुम हो गयी मेरी, तुम पर हो गया मेरा अधिकार।

रजनी- वो तो मैं आपकी बचपन से हूँ, मेरे ऊपर आप ही का हक़ है बाबू। अब चलो

उदयराज और रजनी बैलगाडी तक आ गए।

काकी- अब मिली शांति

रजनी- हां काकी, देखो न कितना सुकून है मेरे चेहरे पर।

सब हंस पड़े

काकी- अब जब यहां रुके ही हैं तो खाना पीना खा के थोड़ा आराम करके फिर चलते हैं।

सुलोचना- ठीक है

फिर सबने कुछ दूर एक घने पेड़ के नीचे खाना खाया और कुछ देर आराम करने लगे

कुछ देर आराम करने के बाद उदयराज फिर बैलगाडी सुलोचना के बताए अनुसार चलाने लगा और शाम हो गयी।

सुलोचला - यहां से लगभग तीन किलोमीटर का रास्ता और है फिर पहुंच जाएंगे, यहां पर अब भूत प्रेतों का खतरा नही है क्योंकि अब हम महात्मा पुरुष के स्थान की परिधि में प्रवेश कर गए हैं

उदयराज, काकी और रजनी ने देखा कि वहां से बड़े बड़े पहाड़ शुरू हो गए थे, सुलोचना ने बनाये हुए मशाल जलाकर बैलगाडी के side में लगी मशालदानी में लगा दिए, जंगल में कुछ दूर तक रोशनी फैल गयी।
 

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