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परमानंद मां की ब्लाउज भी खोल के मां की चूचियां चूसने लगा और मसलने लगा । मां अब जरा भी विरोध नही कर रही थी उल्टा परमानंद के सफेद बालों पर हाथ फिरा रही थी। उनकी सासें धीर धीरे तेज हो कर उखड़ने लगी थी ।
परमानंद मां की कांख सूंघ कर कहता है " बहु तुम्हारी गंध बड़ी अच्छी हे पागल कर देता हे मन करता है तुम्हे ना दोबस के निचोड़ लूं"
मां शर्म से अपनी बाह चिपका लेती हे और शर्म से मुंह फेर लेती हे । परमानंद मां की इस अदाह पर और जैसे उत्तेजित हो उठे और बोला " थोड़ी देर में सूरज निकल आएगा विधि पूरा करते हे "
परमानंद मां को खड़ा कर देता हे मां तो जैसे पुतले की तरह बनी हुई थी । परमानंद घास पर अपनी धोती बीचा कर मां की भी पेटिकोट निकाल देता है ऊपर से और उस पेटिकोट को लपेट के तकिया बना के रखता है । मां शर्म से अपनी नंगी जिस्म को ढकने की कशिश कर रही थी ।
में भी मां की नंगी जिस्म को देख कर लालच में पानी फेकने लगा मेरा भी खून गर्म हो गया था और पेंट में तम्बू बन गया था ।
परमानंद मां को नीचे लिटा कर मां की दोनों टांगे फैला कर मां की काले घने झटो से भरी बुर पर चूम कर घुटने टेक के एक हाथ से अपना लन्ड पकड़ के मां की बुर में सुपाड़ा धीरे धीरे से घुसा दिया ।
लेकिन तभी मां अपनी दोनो हाथ उठा का शिर पटकट्टी हुई करहाने लगी और बोलने लगी "" उफ उफ। चाचा जी नही। पहले दिन की तरह बोहोत दर्द हो रहा है "
परमानंद मां की ऊपर चढ़ के बिना सुपाड़ा मां की बुर ना निकाल के मां को बाहों में भर लिया और मां की होठ चूम कर प्यार से मां को बोला " कमाल ही बहु तुम भी । जवान बच्चे की मां हो फिर भी एक बुड्ढे का ले नही पा रही हो । सुहागरात में तो बोहोत चिंखी होगी तु"
परमानंद मां को प्यार से मानने लगा था और मां को प्यार जटा कर अपनी बहुपेश में भींच लिया । मां की मुंह से दबी हुई आवाज निकली " उन्ह्ह्ह चाचा जी । पीच जाऊंगी में । सच में चाचाजी बोहोत दुखा हे पहली सुहागरात जैसी ही लग रही है। आपने उस दिन बोहोत दर्द दिया हे मुझे । में कितना रोई पर आपको कोई परवा नही था बोहोत निर्दय है आप । कमसेकम थोड़ा प्यार तो दीजिए "
परमानंद मां की चेहरे को चूम चूम के पुचकारने लगा " अरे मेरी बच्ची वो तो मर्द का पहला निशान देना होता है। उसके बाद तो प्यार से किया ना तुम्हारी चूस के पहले अच्छे से गीली कर के किया ना । तुम्हे भी तो खूब मजा आया । अब थोड़ा बर्दास्त कर लो थोड़ा अंदर डाल रहा हूं "
मां परमानंद की आंखो में रहम की नजर से देखती हे " नही चाचाजी बोहोत दुख रहा हे । आज नही हो पायेगा "
परमानंद मां की कांख सूंघ कर कहता है " बहु तुम्हारी गंध बड़ी अच्छी हे पागल कर देता हे मन करता है तुम्हे ना दोबस के निचोड़ लूं"
मां शर्म से अपनी बाह चिपका लेती हे और शर्म से मुंह फेर लेती हे । परमानंद मां की इस अदाह पर और जैसे उत्तेजित हो उठे और बोला " थोड़ी देर में सूरज निकल आएगा विधि पूरा करते हे "
परमानंद मां को खड़ा कर देता हे मां तो जैसे पुतले की तरह बनी हुई थी । परमानंद घास पर अपनी धोती बीचा कर मां की भी पेटिकोट निकाल देता है ऊपर से और उस पेटिकोट को लपेट के तकिया बना के रखता है । मां शर्म से अपनी नंगी जिस्म को ढकने की कशिश कर रही थी ।
में भी मां की नंगी जिस्म को देख कर लालच में पानी फेकने लगा मेरा भी खून गर्म हो गया था और पेंट में तम्बू बन गया था ।
परमानंद मां को नीचे लिटा कर मां की दोनों टांगे फैला कर मां की काले घने झटो से भरी बुर पर चूम कर घुटने टेक के एक हाथ से अपना लन्ड पकड़ के मां की बुर में सुपाड़ा धीरे धीरे से घुसा दिया ।
लेकिन तभी मां अपनी दोनो हाथ उठा का शिर पटकट्टी हुई करहाने लगी और बोलने लगी "" उफ उफ। चाचा जी नही। पहले दिन की तरह बोहोत दर्द हो रहा है "
परमानंद मां की ऊपर चढ़ के बिना सुपाड़ा मां की बुर ना निकाल के मां को बाहों में भर लिया और मां की होठ चूम कर प्यार से मां को बोला " कमाल ही बहु तुम भी । जवान बच्चे की मां हो फिर भी एक बुड्ढे का ले नही पा रही हो । सुहागरात में तो बोहोत चिंखी होगी तु"
परमानंद मां को प्यार से मानने लगा था और मां को प्यार जटा कर अपनी बहुपेश में भींच लिया । मां की मुंह से दबी हुई आवाज निकली " उन्ह्ह्ह चाचा जी । पीच जाऊंगी में । सच में चाचाजी बोहोत दुखा हे पहली सुहागरात जैसी ही लग रही है। आपने उस दिन बोहोत दर्द दिया हे मुझे । में कितना रोई पर आपको कोई परवा नही था बोहोत निर्दय है आप । कमसेकम थोड़ा प्यार तो दीजिए "
परमानंद मां की चेहरे को चूम चूम के पुचकारने लगा " अरे मेरी बच्ची वो तो मर्द का पहला निशान देना होता है। उसके बाद तो प्यार से किया ना तुम्हारी चूस के पहले अच्छे से गीली कर के किया ना । तुम्हे भी तो खूब मजा आया । अब थोड़ा बर्दास्त कर लो थोड़ा अंदर डाल रहा हूं "
मां परमानंद की आंखो में रहम की नजर से देखती हे " नही चाचाजी बोहोत दुख रहा हे । आज नही हो पायेगा "