हां शालू मैं अपनी नजरें हटा सकता था वहां से जा सकता था लेकिन एक मर्द के लिए यह नजारा बेहद मादक होता है भला वह औरतों के इस नग्नता के मादकता से कैसे बच सकता है मैं अपने आपको बहुत संभालने की कोशिश किया लेकिन मैं अपने आप को संभाल नहीं पाया,,,
फिर झूठ तुम थोड़ा सा भी अपने आप को संभालने की कोशिश नहीं किए बल्कि तुम तो, मेरी मां की गांड देखकर अपना वह निकाल लिए थे,,,
( सूरज शालू के मुंह से इतना सुनते ही उत्तेजना से भर गया क्योंकि वह जानता था कि शालू क्या निकालने के लिए बात कर रही थी उसे उम्मीद नहीं थी कि शालू इतनी जल्दी यहां तक पहुंच जाएगी,,, उसे शालू की यह बात बेहद सुकून भरी लग रही थी शालू भी हैरान थी कि उसके मुंह से ऐसा क्यों निकल जा रहा है,,, शालू की बात को समझने के बावजूद भी अनजान बनते हुए सूरज बोला,,)
क्या निकाल लिए थे,,,?
अपना वो,,,,( शालू नजरें नीचे झुकाते हुए बोली,,।)
अपना वो मैं कुछ समझा नहीं तुम क्या कह रही हो,,,
देखो सूरज जान कर भी अनजान बनने की कोशिश मत करो,,,
मैं कहां इंसान बनने की कोशिश कर रहा हूं तुम्ह़ी मुझे बात को गोल-गोल घुमाते हुए बोल रही हो,,,, सीधे-सीधे क्यों नहीं बता देती कि मैंने क्या गलती किया हुं,,,,
( सूरज की बात सुनकर शालू खामोश हो गई वह सब कुछ बोल देना चाह रही थी लेकिन उसे बोलते हुए शर्म सी आ रही थी,,, मुख्य सड़क पर साइकल अपने गति से चली जा रही थी। बाजार आने वाला था सूरज को यह नहीं मालूम था कि बाजार कब आएगा इसलिए वह बात को आगे बढ़ातै हुए बोला,,,)
खैर छोड़ो खामखा तुम मुझ पर इल्जाम लगा रही हो अच्छा यह बताओ बाजार कितनी दूर है अभी,,,,
बस आने ही वाला है और मैं खामखा तुम पर इल्जाम नहीं लगा रहे हैं मैं जो देखी वही बता रही हूं,,,
देखो शालू तुमने कुछ नहीं देखी जो देखी सब अधूरा देखी हो और अपने मन से ही मनगढ़ंत कहानी बना रही हो,,,,
मैं मनगढ़ंत कहानी नहीं बना रही हूं मैं जो कह रही हूं सब सच कह रही हूं तुमने मेरी मां की गांड को देखकर अपना लंड बाहर निकाल कर उसे हिलाने लगे थे,,,
( शालू आवेश में आकर बोल गई लेकिन लंड शब्द बोलते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी,,, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके मुंह से ऐसे शब्द निकल गए,,, और सूरज शालू के मुंह से यह सुनकर मंद मंद मुस्कुराने लगा और उसकी मुस्कुराहट इस बात का सबूत था कि जैसा वह चाह रहा था वैसा ही हो रहा है,,, सूरज जानबूझकर इस बात का एहसास शालू को बिल्कुल भी नहीं दिला रहा था कि उसके मुंह से क्या निकल गया इसलिए वह खुद ही जल्दी से बोला।)
शालू इसमें क्या मेरी गलती है मेरे जैसा जवान लड़का अगर किसी खूबसूरत औरत को इस हाल में देखेगा तो क्या करेगा,,( अब सूरज शालू को बहकाने के लिए उसकी मां के बारे में बढ़ा चढ़ाकर बोलने लगा।) और शालू तुम्हारी मां कितनी ज्यादा खूबसूरत हैं लंबी तंबी है,, चौड़ा सीना, और छातियों की शोभा बढ़ाते हुए उनकी बड़ी बड़ी चूचियां,,,
यह क्या कह रहे हो सूरज,,( शालू सूरज को टोकते हुए बोली लेकिन सूरज बिना रुके ही बोला,,,)
अरे पहले सुनो तो,,, मैं सच कह रहा हूं तुम्हारी मां बहुत खूबसूरत है तुम्हें पता है तुम्हारी मां की चुचिया इतनी बड़ी-बड़ी है कि ठीक तरह से ब्लाउज में भी नहीं समा पाती,,,, और उनकी गांड कितनी गोल-गोल और बड़ी है कि साड़ी के ऊपर से भी सब कुछ साफ साफ नजर आता है,,
( सूरज जानबूझकर खुले शब्दों में शालू की मां की तारीफ करते हुए उनकी नग्नता को अपने शब्दों में ढालते हुए शालू को बता रहा था,,, शालू की चढ़ती जवानी भी,, ऊबाल मार रही थी,,, इसलिए तो अब वह सूरज को रोक नहीं रही थी बल्कि उसकी बातों का मजा ले रही थी उसे भी अपनी मां की ही सही और इस तरह की बातें अच्छी लग रही थी,,, सूरज तो अब एकदम बेशर्मी पर उतर आया था इसलिए अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,।)
और जरा सोचो जब तुम्हारी मां की मदमस्त गांड साड़ी के ऊपर कितनी खूबसूरत लगती है तो जब वह साड़ी उठा देती तो कितनी खूबसूरत लगती और यही उस दिन भी मेरे साथ हुआ जिसकी गांड को मैं साड़ी के ऊपर से देख देख कर ना जाने कैसी खुमारी में मदहोश होने लगा था,,, और वही गांड जब मैं पूरी तरह से नंगी देखा तो मुझसे रहा नहीं गया और मैं अपना लंड निकाल कर हिलाने लगा,,,,, ( सूरज पूरी तरह से बेशर्म बनकर शालू के सामने खुले शब्दों में उस दिन के वाक्ये को बंया कर रहा था,, जिसे सुनकर शालू के तन-बदन में भी खुमारी छाने लगी,,,,)
शालू यही मेरी गलती है जो कि इसमें भी मेरी कोई गलती नहीं है यह सब उम्र का दोष है,,,,
बात अगर इतने से रुक जाती सूरज तो शायद में तुम्हें माफ कर देती लेकिन तुमने तो बात को और ज्यादा बढ़ा दिया,,,,
मैंने कहा बात को आगे बढ़ा दिया,,,,
चलो बनो मत,, तुम उसी तरह से अपने उसको,,,, हिलाते हुए मेरी मां के पीछे चले गए जब वह बैठकर पेशाब कर रही थी,,, और फिर,,, (इतना कहकर शालू खामोश हो गई क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि इसके आगे वह अपनी बात कहने के लिए उन शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकती थी क्योंकि यह उसके संस्कार के खिलाफ थे लेकिन उम्र का पड़ाव उसे वह शब्द बोलने के लिए मजबूर कर रहे थे लेकिन शालू की खामोशी को देखकर सूरज बोला ।)
और फिर,,,, और फिर क्या,,,,?
( सूरज जानता था कि शालू इसके आगे क्या कहने वाली है और वह उसके मुंह से सुनना चाहता था,,, शालू मन ही मन में सोच रही थी ईतना कुछ तो बोल गई है यह भी बोल दे,,, वैसे भी उसकी चढ़ती जवानी यह सब गंदी बातों के चलते मदहोश होने लगी थी और उसे भी बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी इसलिए वह भी अश्लील शब्दों को बोलकर उन शब्दों के एहसास का मजा लेना चाहती थी इसलिए वह बोली,,,)
फिर क्या,,,,,,, तुम ,,,, अपने उसको हिलाते हुए मेरी मां के उस में डाल दिए,,,,,( शालू शरमाते हुए और घबराते हुए बोल गई,,,,, लेकिन इतना बोलते ही उसके जांघों के बीच हलचल सी होने लगी,,,, उसकी कुंवारी बुर में नमकीन पानी का सैलाब उठने लगा,,, सूरज तो शालू के मुंह से सुनने के लिए बेकरार सा बैठा था और जैसे ही उसके मुंह से इतना सुना वह झट से बोला,,,
किसमे,,, बुर मे,,,, ( सूरज बुर शब्द एकदम बेशर्मों की तरह बोला था,,,)
जब जानते हो तो फिर क्यों बोलते हो,,,,
( शालू सूरज की बातों पर एतराज जताते हुए बोली लेकिन उसके मुंह से बुर शब्द सुनकर उसके तन-बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी थी,,,)
हां ऐसा ही हुआ शालू लेकिन इसमें क्या मेरा दोष था। तुम सब कुछ देख रही थी तो यह भी देखी होगी कि किस तरह से तुम्हारी मां अपनी बड़ी बड़ी गांड और अपनी रसीली बुर दिखाते हुए मूत रही थी,,,,( सूरज अपनी बेशर्मी का पारा और ज्यादा नीचे गिराते जा रहा था,,,) और तुम ही सोचो जब एक जवान लड़का और एक औरत की बहुत मस्त गांड और उसकी रसीली बुर देखेगा तो उससे भला कैसे रहा पाएगा,,, यह तो एक तरह से औरत की तरफ से मर्दों के लिए निमंत्रण हो गया और मैं भी तुम्हारी मां के दिए गए इस निमंत्रण को स्वीकार करते हुए वही किया जो एक मर्द को करना चाहिए था मैंने भी अपने लंड को तुम्हारी मां की बुर में डालकर उन्हें चोदने लगा,,,,
( सूरज उत्तेजनात्मक स्वर में साइकल को चलाते हुए बोल रहा था,,, उसे मालूम था कि वह जिन शब्दों का प्रयोग कर रहा है वह शब्द शालू के शालू मन पर बहुत भारी पड़ने वाले हैं और उसकी सोच बिल्कुल सही थे शालू एकदम उत्तेजना ग्रस्त हो़ चुकी थी,,, चोदना शब्द सुनकर तो उसके तन-बदन में आग लग सी गई थी,,, सूरज के द्वारा कामुक शब्दों में वर्णन सुनकर शालू की आंखों के सामने रात वाली घटना संपूर्ण रूप से किसी फिल्म के चलचित्र की तरह घूमने लगी,,, वह पल भर में ही सोचने लगी कि कैसे उसकी मां अपनी साड़ी उठाकर मुतने के लिए तैयार थी और सूरज उसकी मां की बड़ी बड़ी गांड को देख कर एकदम से चुदवासा हो गया था पीछे से जाकर उसकी मां की बुर में लंड डालकर चोदने लगा था,,,, यह सब सोचकर शालू का गोरा चेहरा उत्तेजना के मारे लाल टमाटर की तरह हो गया,, जोकी साइकल में लगे शीशे में सूरज को साफ साफ नजर आ रहा था,,,, तभी वह शरमाते हुए धीमे स्वर में सूरज से बोली,,,)
लेकिन तुम्हें यह नहीं करना चाहिए था तुम अपने आपको रोक सकते थे,,,
रोक तो मुझे तुम्हारी मां मतलब की मामी भी सकती थी।,,,, लेकिन उन्होंने भी मुझे नहीं रोका यह भी तुम अच्छी तरह से देख रही होगी,,,,
( सूरज की यह बात सुनकर शालू सोचने लगी कि सूरज सच ही कह रहा है क्योंकि वह भी अच्छी तरह से देखी थी की,,, सूरज द्वारा इतनी है गंदी हरकत के बावजूद भी उसकी मां उसे बिल्कुल भी रोकने की कोशिश नहीं की थी वह सब सोच ही रही थी कि तभी सूरज बोला,,,)
तुम बेकार में बात का बतंगड़ बना रही हो अगर मेरी हरकत ऊन्हे गंदी लगती तो वह खुद ही मुझे रोक दी होती,,,, लेकिन उन्होंने मुझे बिल्कुल भी नहीं रोकी बाकी तुम अच्छी तरह से देख रही होगी कि वह खुद ही मुझे झोपड़ी में चलने के लिए कह रही थी,,,,
( सूरज की यह बातों ने शालू को एकदम खामोश कर दिया,, क्योंकि जो कुछ भी सूरज कह रहा था वह बिल्कुल सच कह रहा था शालू मन में सोचने लगे कि अगर उसकी मां को एतराज होता तो उसे थप्पड़ मारकर उसे रोक देती लेकिन वह तो खुद ही उसे पास की झोपड़ी में जाने के लिए कह रही थी,,,, तभी शालू बोली,,,)
यही बात तो मुझे भी समझ में नहीं आ रही है अगर तुम इतना आगे बढ़ गए फिर तो मां तुम्हें रोक सकती थी तुम्हें मार सकती थी लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया तभी तो मैं मां से भी नाराज हो लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आता कि मां ने आखिर ऐसा किया क्यों नहीं तुम्हें आगे क्यों बढ़ने दिया,,,, मां के हाव भाव से ऐसा लग रहा था कि तुम दोनों के बीच पहले से ही,,,,,
( इतना कहकर शालू खामोश हो गई और शालू की बात को सूरज आगे बढ़ाते हुए बोला।)
तुम सही सोच रही हो शालू मैं तुमसे कुछ भी नहीं छुपाऊंगा,,,,
सूरज सोच रहा था कि अब सही मौका आ गया है सब कुछ बताने का और वह जानता था कि उसकी नमक मिर्ची लगी गंदी बातों को सुनकर शालू का शालू मन मदहोश होने लगेगा और वह मदहोश हो रही शालू के साथ वह सब आसानी से कर लेगा जो वह उसकी मां के साथ कर दे एकदम मस्त हो गया था,,,, इसलिए वह बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,,
तुम सही सोच रही हो कि मेरी हरकत के बावजूद भी तुम्हारी मां कुछ बोली थी वही मुझे रोकी क्यों नहीं क्योंकि हम दोनों के बीच पहले भी शारीरिक संबंध बन चुका था,,,,
क्या मुझे यकीन नहीं हो रहा है,,,, ।( शालू आश्चर्य से बोली।)
यही सच है शालू,,,,
तुम तो इतने गंदे हो वह हमें समझ सकती हूं लेकिन मेरी मां ऐसी नहीं हो सकती क्योंकि आज तक मैंने उनके बारे में कहीं भी किसी के भी मुंह से ऐसी बातें नहीं सुनी हुं की उन पर इस तरह का सक कर सकूं,,,,,
देखो शालू मैं जानता हूं कि तुम्हारी मां बहुत अच्छी हैं लेकिन यह सब अनजाने में ही हो गया,,,,
अनजाने में नहीं यह सब तुम दोनों का किया कराया है अब तो मुझे अपनी मां पर भी नफरत होने लगी है मुझे यकीन नहीं होता है कि मैं उनकी बेटी हूं तुम दोनों अपने रिश्तो का लिहाज बोलकर एक दूसरे के साथ इस तरह के संबंध बनाते आ रहे हो और तुम दोनों को जरा भी शर्म भी नहीं आई,,,,, ( शालू गुस्से में बोली जा रही थी, उसे अब अपनी मां पर भी बेहद क्रोध आ रहा था उसे अब तक सिर्फ शक हो रहा था कि उस रात के पहले भी उसकी मां का संबंध सूरज के साथ था लेकिन सूरज के मुंह से सुन लेने के बाद उसका शक यकीन में और सच्चाई से वाकिफ हो चुका था उसे अपनी मां से यह बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी इसलिए उसे अपनी मां से नफरत सी होने लगी थी और वह सूरज को भी भला बुरा कहे जा रही थी,,,,
सूरज उसे समझाने की बहुत कोशिश कर रहा था लेकिन शालू अब कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी जिस रिश्ते को याद करके उसके बदन में काम उत्तेजना का अनुभव हो रहा था अब उसकी जगह आवेश और क्रोध में ले लिया था अब शालू उस दृश्य को याद करके जब उसकी मां साड़ी उठाकर पेशाब करने की तैयारी कर रही थी और सूरज अपना लंड धोती से बाहर निकालकर मसल रहा था,,, यह सब दृश्य उसे दोनों की साजिश के तहत लगने लगी,,,, पीछे से जाकर उसकी मां की बुर में सूरज का युं लंड डालना,, शालू के क्रोध को और भी ज्यादा बढ़ा रहा था,,, बार-बार उसे वह दृश्य याद आ रहा था जब,,,, सूरज उसकी मां की बुर में लंड डाला था तब उसकी मां हैरान परेशान और क्रोधित होने की वजह यह जानकर कि उसकी बुर में लंड डालने वाला दूसरा कोई नहीं सूरज है तो वह मुस्कुराने लगी थी,,,,
और तब तक सूरज भी दो तीन बार उसकी बुर में लंड को अंदर बाहर कर चुका था और यह हरकत कोई और ना देख ले इसलिए खुद ही उसे झोपड़ी में चलने का इशारा की थी ताकि वहां खुलकर चुदाई का मजा ले सकें,,, यह सब याद करके उसके बदन में क्रोध की ज्वाला फूट रही थी वह दोनों के प्रति एकदम आवेश में आ चुकी थी,,,,
सूरज और उसकी मां के बीच चुदाई का पल पल का दृश्य उसकी आंखों के सामने नाच रहा था लेकिन इस समय उस दृश्य को याद करके उसके बदन में किसी भी प्रकार की उत्तेजना का अनुभव नहीं बल्कि क्रोध का एहसास हो रहा था। सूरज लाख समझाने की कोशिश कर रहा था लेकिन वह सुनने को तैयार ही नहीं थी सूरज को लगने लगा कि उसका खेल उल्टा पड़ने लगा है। अब शालू को समझाना नामुमकिन सा होता जा रहा था और उसके हाथ में आई बाजी उसे उसके हाथ से निकलती हुई लगने लगी थी इस सुनहरे मौके पर उसे पूरा विश्वास था कि वह आज शालू के खूबसूरत जिस्म को हासिल करके रहेगा और उसके बदन के मदन रस को अपने होठों से पिएगा लेकिन शालू के गुस्से को देखते हुए उसे यह सब नामुमकिन सा लगने लगा वह कैसे शालू को मनाए कैसे उसके बदन अपनी बाहों में भर पाए यह सब सोच ही रहा था कि तब तक बाजार आ गया।
बाजार आ चुका था,, गांव का बाजार होने की वजह से बाजार कुछ खास बड़ा नहीं होता लेकिन जरूरत का सामान मिल ही जाता था। सूरज के चेहरे पर हाथ में आया मौका खो जाने का डर साफ नजर आ रहा था। उसने यहां आने से पहले ना जाने कितने ख्वाब देख चुका था शालू को लेकर,,, वाह सोच रहा था कि उसकी कामुक बातों की वजह से शालू कामोत्तेजित हो जाएगी और वो उसके साथ संभोग सुख भोग सकेगा और उसे ऐसा होता नजर भी आने लगा था लेकिन ऐन मौके पर शालू का रवैया बदलने लगा,,,, और उसका बदला हुआ मूड देखकर सूरज को अपने किए कराए पर पानी फिरता नजर आने लगा,,,,,, सूरज साइकल बाजू में खड़ी किया ही था कि शालू खुद ही कपड़े की दुकान में चली गई और वहां जाकर कपड़े पसंद करने लगी,,, सूरज भी तिनकों को सहारा समझकर मन में आग जगाए हुए शालू के पीछे पीछे वह भी दुकान में प्रवेश कर गया,,, शालू काउंटर पर अपने लिए कपड़े निकलवा रही थी,,, काउंटर पर खड़ी लड़की भी मुस्कुरा मुस्कुरा कर शालू को कपड़े दिखा रहीे थी। शालू के पास आज पर्याप्त मात्रा में पैसे थे जिसकी वजह से वह अपने मनपसंद किसी भी तरह के कपड़े को खरीद सकती थी इसलिए उसे और भी अच्छे कपड़े चाहिए थे और अपने मनपसंद के कपड़े लेकर के,,वह बहुत खुश नजर आ रही थी,,, लेकिन कपड़ों को पसंद करने में सूरज भी उसकी मदद कर रहा था जिसका वह बिल्कुल भी विरोध नहीं कर रही थी क्योंकि उसे यकीन था कि जो कपड़े लड़कों को अच्छे लगते हैं वह लड़कियों को जरूर पहनने में अच्छे लगेंगे इसलिए शालू की पसंद में सूरज की भी पसंद शामिल थी,,, हालांकि शालू सूरज से ज्यादा बातें नहीं कर रही थी बस हां, ना में ही जवाब दे रही थी।,,,, सूरज शालू से ज्यादा से ज्यादा नजदीकी बनाने की कोशिश कर रहा था इसलिए साए की तरह उसके पीछे पीछे लगा हुआ था क्योंकि आज वह अपना इरादा पूरा करना चाहता था लेकिन जिस तरह से शालू का मूड उखड़ गया था उसे देखते हुए सूरज के लिए यह काफी मुश्किल होता जा रहा था लेकिन फिर भी सूरज हार ना मानकर अपनी कोशिश जारी रखा था,,,,,
आगे आगे चल रही शालू की खूबसूरती को वह पीछे से नजर भर कर देख रहा था उसके हिलते डुलते गोल गोल नितंबों पर उसकी निगाहें टिकी हुई थी,,, शालू की मदमस्त कसी हुई गांड को देखकर सूरज का लंड हिलेारे ले रहा था बार-बार सूरज का मन उस पर हाथ फेरने को कर रहा था लेकिन अभी शालू का मिजाज कुछ ज्यादा ही गर्म था इसलिए वहां यह गुस्ताखी करना ठीक नहीं समझ रहा था,,,, कुछ ही देर में शालू ने अपने जरूरत की सारी खरीदी कर चुकी थी अब लगभग उसके पास पैसे भी नहीं बचे थे,,,, इसलिए वह सूरज को चलने के लिए बोली लेकिन सूरज उसके मन में कामोत्तेजना के बीज बोना चाहता था,, इसलिए उसके मन को बहलाने के लिए वह बोला,,,,
शालू इतनी दूर आए हैं तो कुछ खा पी लेते हैं वैसे भी मुझे भूख भी लगी है चलो किसी अच्छे से मिठाई के दुकान में चलते हैं,,
यह तुम्हारे बड़े गांव का बाजार नहीं है यह गांव का बाजार है यहां कोई बड़ा बड़ी मिठाई की दुकान नहीं है लेकिन हां,,, चलो मैं अच्छी जगह ले चलती हुं,,,,
( इतना कहकर वह आगे आगे चलने लगी सूरज ऊसे आगे जाते हुए देखने लगा,,, उसे किस समय शालू के बदले हुए रवैये को देखकर आश्चर्य होने लगा,,, क्योंकि ईस समय उसके चेहरे पर नाराजगी के भाव बिल्कुल भी नजर नहीं आ रहे थे,,, यह देखकर सूरज का चेहरा खिल उठा,,,, वह आगे आगे चले जा रही थी और सूरज भी उसके पीछे हो लिया,,, क्योंकि वह जानता था कि गांव के बाजार के बारे में उससे बेहतर शालू ही जान सकती है,, दो-चार दुकान छोड़ने के बाद ही एक छोटी सी हलवाई की दुकान थी और शालू दुकान के आगे खड़ी हो गई,,, ऊसके खड़ी होते ही सूरज समझ गया कि इसी दुकान की शायद शालू बात कर रही है,,,, इसलिए वह शालू के करीब जाकर बोला,,
यही दुकान है?
हां यही है।,,
( शालू का जवाब सुनते ही सूरज दुकान में प्रवेश कर गया और उसके पीछे पीछे शालू भी,,, सूरज लकड़ी की कुर्सी पर बैठ चुका था और उसके बगल में शालू भी जाकर बैठ गई,,,, )
देखो शालू यहां के बारे में मुझे कुछ ज्यादा मालूम नहीं है इसलिए क्या खाना है यह तुम्ही बताओ,,,
( शालू यह सुनकर खुश हो गई वह जब भी बाजार आती थी तो गरमा गरम समोसे और उसके साथ ठंडा पीती थी,,,। इसलिए वह झट से गरमा गरम समोसे और गन्ने का ठंडे रस के बारे में सूरज से बोल दी,,, सूरज को भी शालू की बात से तसल्ली हुई क्योंकि वह बेझिझक बोल रही थी,,, सूरज को लगने लगा कि शायद उसका गुस्सा कम आने लगा है और इस बात पर सूरज को राहत मिल रही थी। सूरज ने भी दुकान वाले को जो कि गरमा गरम समोसे छान रहा था,,, उसे दो दो समोसे और २ गन्ने के रस के ग्लास लाने के लिए बोल दिया,,,,, शालू से बात करना चाह रहा था लेकिन इस समय दुकान में और भी लोग मौजूद थे इसलिए कुछ बोल नहीं पा रहा था,,,, कुछ ही देर में दुकान वाला उनके टेबल पर समोसे और गन्ने का रस लेकर आ गया बातों का दौर शुरू करने के लिए सूरज बोला,,,)
लगता है तुम्हें गन्ने का रस बहुत ज्यादा पसंद है,,
हां लेकिन समोसे के साथ ही मैं जब भी बाजार आती हूं समोसे और गन्ने का रस जरूर लेती हूं,,, क्यों तुम्हें पसंद नहीं है क्या,,,
मुझे भी पसंद है तभी तो मैं यह कह रहा हूं मेरी और तुम्हारी पसंद मिलती जुलती है,,,
( इतना सुनकर शालू मुस्कुरा दी,,,, और समोसे खाने लगी सूरज भी समोसे खाने लगा शालू के मन में अभी भी सूरज ने जो किया उसको लेकर घृणा और क्रोध आ रहा था,,, लेकिन वह एक बात समझ नहीं पा रही थी की इतना गुस्सा करने के बावजूद भी उसका मन ना जाने क्यों सूरज के प्रति खींचा चला जा रहा था,,, वह समोसे खाते हुए कनखियों से सूरज की तरफ देख रही थी लेकिन जब जब उसे वह दृश्य याद आता है जब सूरज,,,, उसकी मां की टांगों के बीच जगह बनाकर अपने लंड को ऊसकी बुर के अंदर बाहर करते हुए उसे चोद रहा था तब वह उसके चेहरे से अपनी नजरें हटा लेती थी,,, लेकिन पल भर में फिर से उसका मन सूरज के प्रति आकर्षित होने लगता यह बात उसे बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रही थी कि जिस लड़के से उसे नफरत करनी चाहिए थी उसके लिए प्रति उसका मन क्यों आकर्षित हुए जा रहा था,,,
यह बात शालू की समझकर बिल्कुल परे थी लेकिन यही जवानी का दस्तूर भी था जवानी में कब किसके प्रति मन आकर्षित हो जाए यह कोई भी नहीं कह सकता भले ही वाह कितना भी नफरत के लायक क्यों ना हो,,, और यही शालू के साथ भी हो रहा था सूरज इस बात को नोटिस कर रहा था कि शालू समोसे खाते हुए उसे कनखियों में देख रही है,,,, उसे यह सब अच्छा भी लग रहा था,,,,
शालू को सूरज अच्छा लगने लगा था यह है उसकी सोच के बिल्कुल विपरीत था क्योंकि उसके मन में उसके प्रति नफ़रत भी हो रही थी उत्तर को भी आ रहा था लेकिन अपने मन पर उसका बस बिल्कुल भी नहीं चल पा रहा था इसमें शालू का दोष बिल्कुल भी नहीं था सूरज था ह़ी इतना खूबसूरत कि किसी का भी मन उस पर मोहित हो जाए,,,,, इसका ताजा उदाहरण खुद उसकी सगी मंगल मामी उसकी मंजू मौसी थी,,, अपने आप को संभाल पाने में बिल्कुल समर्थ थी लेकिन इसके बावजूद भी सूरज के प्रति इन औरतों का मन बहक चुका था,,,तो भला शालू की क्या विषाद थी वह तो इस उम्र से गुजर रही थी कि कहीं भी किसी भी वक्त पांव फिसल जाए,,
दोनों समोसे और गन्ने के रस की ठंडक लेकर दुकान से बाहर निकल चुके थे,,,, अब ऊन्हे गांव की तरफ जाना था,,, सूरज के हाथों से समय धीरे-धीरे रेती की तरह फिसलता जा रहा था,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि शालू को वह कैसे पटाए,,, सूरज शालू के हाथों से कपड़ों की थैली लेकर साइकल के हैंडल के बाजू में अटका दिया,,, सूरज साइकल पर बैठ चुका था और,,, शालू जैसे ही साइकल पर बेठनें चली वैसे ही सूरज उसे रोकते हुए बोला,,,
ऐसे मत बैठो शालू दोनों तरफ अपने पांव करके बैठो एक तरफ पांव करके बैठती हो तो एक तरफ वजन लगने लगता है और साइकल चलाने में मुझे दिक्कत होती है,,,,
( सूरज की बात सुनकर शालू उसकी बात मान गई और दोनों तरफ पांव करके बैठ गई,,, सूरज अपने चाल पर मन ही मन प्रसन्न होने लगा,,, वह जानबूझकर शालू को इस तरह से देखने के लिए बोला था ताकि वह जब भी साइकल ब्रेक जोर से मारे तो उसकी नरम नरम चुचिया उसकी पीठ से चिपक जाएं,,,, और सूरज उसे इस तरह से गर्म करना चाहता था साइकल पर दोनो बैठ कर घर की तरफ लौटने लगे उसे समझ नहीं आ रहा था कि बात की शुरुआत कैसे करें उसके पास समय बहुत कम था अगर वह इस सफर के दौरान उसके साथ कुछ नहीं कर पाया तो हो सकता है कि शालू यह बात सबको बता दें और उसकी बदनामी हो जाए,,,, ऐसा ना हो इसके लिए शालू के साथ शारीरिक संबंध बनाना बेहद जरूरी हो रहा था सूरज के लिए इसलिए वह इसी जुगाड़ में लगा हुआ था वह जानबूझकर अपनी बातों से शालू की बुर को गिली करना चाहता था इसलिए वह बात की शुरुआत करते हुए बोला,,,
शालू तुम मुझ से अब भी नाराज हो,,
तुमने कोई महान काम नहीं किया हो कि मैं तुमसे नाराज ना होऊ,,,
देखो शालू तुम अपने नजरिए से देख रही हो इसलिए तुम्हें यह खराब लग रहा है लेकिन एक औरत के नजरिए से देखोगी तो तुम्हें भी यह सब अच्छा लगेगा,,,
क्या अच्छा लगेगा सूरज,,, मुझे ये अच्छा लगेगा,,,की तुम मेरी मां को चोदते हो,,
( शालू गुस्से में खुले शब्दों में बोल रही थी, और शालू के मुंह से शब्द सुनकर सूरज को आशा की किरण नजर आने लगी उसे लगने लगा कि यह चिंगारी को अगर सही हवा मिले तो यह ज्वाला का रूप धारण कर लेंगे और यह से ज्वाला का रूप देने के लिए सूरज अपनी बातो मैं कामुकता की आग भरने लगा,, )
शालू मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि बेटी होने के नाते तुमसे तुम्हारी मां और मेरे बीच का रिश्ता यह बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है लेकिन शालू इसमें तुम्हारी मां की कोई गलती नहीं है और ना ही मेरी कोई गलती है,,,
हां इसमें तुम दोनों की गलती नहीं है तुम दोनों तो बिल्कुल नादान थे बच्चे थे इसके लिए ऐसा हो गया अपनी हवस को नादानी का नाम देकर निकलने की कोशिश मत करो
मैं इस में से निकलने की कोशिश नहीं कर रहा हूं करके तुम्हें सच्चाई बता रहा हूं,, शालू,,, जैसे इंसान को भुख प्यास लगती है वैसे ही उनके जिस्म में इस तरह की भी जिस्मानी भूख पैदा होती है,,, और क्या उनकी याद भूख घर मै नहीं मिटती तो वह लोग अपनी भूख मिटाने के लिए बाहर का रास्ता इख्तियार करते हैं,,,
तुम्हारी बात मेरे को बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रही है,,
( शालू आश्चर्य से बोली,,, सूरज बड़ी चालाकी से साइकल को कम तेज़ी से लिए जा रहा था क्योंकि वह सफर के दरमियां हीं अपनी मन की इच्छा को पूरी करना चाहता था इसलिए वह शालू को ठीक से समझाते हुए बोला)
देखो शालू जो काम तुम्हारी मां के साथ तुमने मुझे करते हुए देखी यही काम तुम्हारे पिता को करना चाहिए था लेकिन मुझे बताते हुए दुख हो रहा है कि तुम्हारे पापा तुम्हारी मां पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते,,,
मतलब मैं कुछ समझी नहीं,,,।m
देखो शालू तुम्हारी मां अभी बहुत जवान है तो उनके अंदर चुदवाने की भी भुख पेदा होती है,,,,
( सूरज के मुंह से अपनी मां के प्रति इतनी गंदी बात को सुनकर जहां पर उसे गुस्सा भी आ रहा था लेकिन मन ही मन उसे अच्छा भी लग रहा था इस तरह से खुली भाषा में अपनी मां की चुदाई की बात सुनकर शालू पूरी तरह से उत्तेजना की राह पकड़ ली थी,,, उसे सूरज की यह बात अच्छी लग रही थी और मैं नहीं मानता यह इच्छा भी रख रही थी कि सूरज इससे भी ज्यादा गंदी भाषा का प्रयोग करें,,)
और शालू यह चुदाई की भूख एक मजबूत और तगड़े लंड से ही मिटती है। और इस उम्र में तुम्हारी मां को मोटा तगड़ा और लंबा लंड की जरूरत पड़ रही थी,,, जो कि चुदाई की यह भूख तुम्हारे पिता मिटा नहीं पा रहे थे,,, जो काम में तुम्हारी मां के साथ कर रहा था वही काम तुम्हारे पिताजी को करना चाहिए था उन्हें चाहिए था कि तुम्हारी मां को जी भर कर चोदे ताकि उन्हें किसी दूसरे मर्द की ज़रूरत ही ना पड़ सके,,,( सूरजnखुले शब्दो मे उसकी मां के बारे में बेहद गंदी बातें कर रहा था जो कि शालू के तन-बदन में उत्तेजना के अंकुर को पानी देकर सींचने का काम कर रहा था,, उत्तेजना के मारे शालू का गला सुर्ख होने लगा था,,, उसके चेहरे पर शर्म ओ हया की लाली खीेलने लगी थी,,,, ना चाहते हुए भी शालू को यह सब बातें अच्छी लगने लगी थी,, शालू पूरी तरह से खामोश हो चुकी थी और उसकी खामोशी देखकर सूरज को लगने लगा था कि उसकी गंदी बातें शालू के बदन में कामोत्तेजना की लहर पैदा कर रही है,,,, सूरजnके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आने लगे वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला।)
और जब शालू तुम्हारी मां को तुम्हारे पिताजी की बेहद आवश्यकता होने लगी ऐसे में तुम्हारे पिताजी तुम्हारी मां पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे पाए और तुम्हारी मां मेरे साथ बहक गई,,,,
बहक गई ऐसे कैसे बहक गई आज तक तो ऐसा कभी भी नहीं हुआ पूरा गांव मेरी मां की इज्जत करता है और उनके संस्कार के बारे में आए दिन मुझे अच्छी-अच्छी बातें सुनने को मिलती है तो अब ऐसा कैसे हो गया कि मेरी मां बहक गई यह बात मुझे कुछ समझ में नहीं आ रही,,,,( शालू एतराज जताते हुए बोली)
शालू मैं समझ सकता हूं तुम्हारी भावनाओं को किसी भी लड़की के लिए उसकी मां का इस तरह से किसी गैर से चुदवाने अच्छा नहीं लगेगा और इसीलिए तुम्हें भी मुझ पर और तुम्हारी मां पर क्रोध आ रहा होगा लेकिन मैं जो कह रहा हूं सच कह रहा हूं ईसमें भी तुम्हारी मां का कोई भी कसूर नहीं है,,,,
नहीं इसमें तुम दोनों का ही कसूर है,,,,
देखो शालू अगर तुम्हारे पिताजी तुम्हारी मां की जरूरतों को पूरा करते तो उनके कदम कभी भी नहीं बहकते,,,,
तुम कहना क्या चाहते हो सूरज,,?
देखो बुरा मत मानना मैं यही कहना चाहता हूं कि,, तुम्हारे पिताजी याने मेरे बड़े मामा इस लायक है ही नहीं कि तुम्हारी मां यानी मेरी सुधियां मामी के जिस्म की प्यास बुझा सके,,,
( अपने पिताजी की सूरज के मुंह से इस तरह से बेइज्जती भरे शब्द सुनकर शालू से रहा नहीं गया और वह गुस्से में बोली,,,,)
तब तो तुम्हारे बिलास मामा भी इस लायक नहीं होंगे कि तुम्हारी मंगल मामी के जिस्म की प्यास बुझा सके,,,,
क्या मतलब? ( सूरज आश्चर्य के साथ बोला)
मेरा मतलब यही है कि तब तो तुम्हारे बिलास मामा भी तुम्हारी मंगल मामी की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते होंगे तभी तो तुम अपनी मंगल मामी को भी चोदते हो,,,,
( शालू की यह बात सुनकर सूरज एकदम से सन्न रह गया,,, उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि वह क्या सुन रहा है,,, उसने एकाएक साइकल को ब्रेक लगा कर वहीं रोक दिया और शालू की तरफ देखने लगा,,)
कुछ देर के लिए तो सूरज को अपने कानों पर भरोसा ही नहीं हुआ कि शालू क्या कह रही है,,, वह एकाएक साइकल को ब्रेक लगाकर शालू को ही घूरने लगा,,, उसे यू घूरता हुआ देखकर शालू बोली,,,
क्यों क्या हुआ झटका लगा ना,,,,।( शालू व्यंग्यात्मक स्वर में बोली। सूरज को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले बस एक टक शालू को ही देखे जा रहा था,,, तभी कुछ पल तक शालू की तरफ देखने के बाद वह बोला,,,,)
शालू तुम यह क्या कह रही हो मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है,,,।( इतना कहते हुए,,, वह नजरें चुराकर साइकल पर पैडल मारने लगा क्योंकि साइकल रुक गई थी,,, सूरज के मन में अजीब सा डर पैदा हो गया क्योंकि जिस तरह से वह बोल रही थी उसे शंका सी होने लगी कि कहीं उसे उसके और उसकी मंगल मामी के बीच के संबंध के बारे में पता तो नहीं चल गया,,,, सूरज को यूं नजरें चुराता हुआ देखकर शालू बोली,,,,
क्यों अभी क्या हुआ अभी तुम्हारा दिमाग काम करना क्यों बंद कर दिया क्यों तुम्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा है अभी कुछ देर पहले तो तुम औरतों के सुख उनकी खुशी और मर्दों की नाकामयाबी के बारे में बहुत ज्यादा लेक्चर झाड़ रहे थे अब क्या हो गया,,,,,
( शालू के यह शब्द सुनकर सूरज बुरी तरह से सकपका गया था,,,,, साइकल के पैडल चलाते हुए साइकल आगे बढ़ा दिया और बोला,,)
तुम बेवजह मुझ पर इल्जाम लगा रहे हो ऐसा कुछ भी नहीं है मैं जानता हूं कि मेरा संबंध है तुम्हारी मां के साथ होने की वजह से तुम मनगढ़ंत कहानी बना रही हो,,,,
मैं कोई कहानी नहीं बना रही हूं बस तुम्हारा पाप तुम्हें याद दिला रही हूं,,,
बस करो शालू बेवजह की बातें बनाने की जरूरत नहीं है मैं जानता हूं कि तुम्हारी मां के साथ जो कुछ भी हुआ वह अनजाने में हुआ लेकिन यूं बेवजह मुझ पर कोई इल्जाम मत लगाओ,,,
मैं अपनी आंखों से देखी हूं सूरज,,,
आंखों से क्या मतलब है कि तुम अपनी आंखों से देखी हो तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम कुछ भी बोलोगेी और मैं विश्वास कर लूंगा जरा थोड़ा तो शर्म करो तुम किस पर इल्जाम लगा रही हो खुद मेरी मंगल मामी पर,,, वह मेरी मां जैसी है मैं भला ऐसा कैसे कर सकता हूं तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो,,
इल्जाम नहीं हकीकत है,, और वह देखने के बाद ही तो मैं समझ गई कि तुम्हारे लिए रिश्ते कुछ भी मायने नहीं रखते, जो इंसान खुद अपने ही मां समान औरत को चोद सकता है तो उसके लिए भला मामी चाची कौन सी बड़ी बात है,,,,
( सूरज शालू की बातें सुनकर मन ही मन घबराने लगा उसे यकीन हो चला था कि शालू उसे कहीं ना कहीं देख चुकी है मैं समझ नहीं पा रहा था कि आज तक उसकी और उसके मंगल मामी की रिश्ते के बारे में किसी को भी नहीं पता चला तो शालू कैसे जान गई यह तो गजब हो गया है अगर यह बात किसी और को पता चल गया तब तो वह किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह जाएगा उसके मन में यही सब गढ़ मतलब चल रहा था।)
देखो शालू मैं रिश्तो की बहुत कदर करता हूं हां तुम्हारी मां के साथ मतलब कि मेरी सुधियां मामी के साथ मैंने जो कुछ भी किया वह अनजाने में और बहकने की वजह से हो गया,,, यह बात तुम भी अच्छी तरह से जानती हो लेकिन यह झूठा इल्जाम तो मत लगाओ कि मेरे और मेरी मां समान है बचपन से उन्होंने मुझे मां जैसा प्यार किया है में उन्हें मां मानता हू बस उन्हें मामी कहकर पुकारता हू और उनके साथ मेरे संबंध है,,,
याद नहीं आ रहा है ना सूरज, चलो मैं ही याद दिला देती हूं,,,,( हवा से उड़ रही अपने बालों की लट को कान के पीछे ले जाते हुए बोली यह नजारा सूरज साइकल के शीशे में देख रहा था लेकिन इस समय अब उसकी खूबसूरती से ज्यादा उसका ध्यान उसकी बातों पर था)
याद है सुबह मैं दोपहर में बुआ को बुलाने आए थे मैं बार-बार दरवाजा खटखटाती रही लेकिन दरवाजा जल्दी नहीं खुला और जब खुला भी तो बुआ को जिस हाल में मैं देखी थी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी,, ( सूरज साइकल चलाते हुए बड़े ध्यान से शालू की बातों को सुन रहा था।) बुआ जब दरवाजा खोली तो,,, मेरी नजर सीधे उनकी बड़ी बड़ी चूचियां पर पड़ गई जो कि एक दम नंगी थी और जिसे छुपाने के लिए ऊपर से साड़ी डाल रखी थी,,,,( सूरज यह सुनते ही एक दम से चौंक गया वह समझ गया कि शालू सही कह रही है।)
मुझे यह देखकर बड़ा अजीब लगा,,, ना जाने क्यों मेरे मन में ऐसा लगने लगा कि कुछ गड़बड़ जरूर है क्योंकि तुम भी चादर ओढ़ के दूसरी तरफ मुंह फेर कर लेटे हुए थे,,,, मैं बातें तो बुआ से कर रही थी लेकिन कमरे के अंदर का जायजा भी ले रही थी तभी मेरी नजर बिस्तर के नीचे फेंकी हुई ब्लाउज पर पड़ी और मेरा शंका थोड़ा बहुत यकीन की तरफ जाने लगा,,,, बुआ भी थके होने का बहाना बना रही थी और मेरे साथ नहीं आई,,, और मैं वहां से चली गई,,,,
( सूरज शालू की हर एक बात को सुनकर पूरी तरह से घबरा चुका था पर समझ गया कि जो नहीं होना था वही हुआ है,, लेकिन फिर भी अपना बचाव करते हुए बोला।)
तुम पागल हो शालू,, सिर्फ इतना देखकर तुम कैसे अंदाजा लगा ली की मेरे और मेरी मंगल मामी के बीच गलत संबंध है,,, तुम तो अच्छी तरह से जानते हो कि कि गर्मी के मौसम में औरतें हमेशा गर्मी की वजह से अपनीे ब्लाउज निकाल कर ही सोती हैं,,,, और रही बात ब्लाउज फेकने की तो वह फेकी नहीं होगी बल्कि बिस्तर से नीचे गिर गई होगी,,,,, बस इतने से तुम कैसे अंदाजा लगा ले कि हम दोनों के बीच गलत संबंध है तुम्हें शर्म तक नहीं आई ऐसा इल्जाम लगाते हुए,,,
( सूरज साइकल चलाते हुए बोला,,,,)
मुझे भी यही लगा था सूरज,,, मैं बार-बार अपने मन को समझाने की कोशिश कर रही थी कि जो मैं देख रही हूं और समझ रही हूं भगवान करे ऐसा ना हो,,, मेरे मन में यही ख्याल आ रहे थे कि हो सकता है कि जो मैं देखी हूं सब गलत होता है गर्मी की वजह से ही बुआ अपनी ब्लाउज निकालकर फेकी हो,,, लेकिन यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि तुम इतनी गर्मी में भी और खुद ही कह रहे हो कि घर में में वह अपने ब्लाउज निकाल कर बिस्तर पर रख दी होंगी,,, और तुम ऐसे ही गर्मी में चादर ओढ़ कर पड़े थे,,,,
( इतना सुनकर सूरज सकते में आ गया क्योंकि जो वह कह रहा था गर्मी के कारण तो उसके विरोधाभास वह भी चादर ओढ़ कर ही लेटा था,, फिर भी वह अपना बचाव करने के लिए पूरा कसर करने पर आतुर था इसलिए वह बोला,,)
चलो मान लिया कि तुम जो देखी उसे गलत समझ ली लेकिन फिर भी तो तुम ने हम दोनों के बीच ऐसा कुछ नहीं देखी जो कि गलत हो फिर भी तुम ऐसे तुम यह नहीं कह सकती शालू कि हम दोनों गलत है,,,
तुम ठीक कह रहे हो सूरज,,, बुआ के इनकार करने के बाद भी वहां से चली गई लेकिन मेरा मन नहीं माना क्योंकि मेरे मन में शंका पैदा हो चुकी थी कि तुम दोनों के बीच जरूर कुछ गलत हो रहा है और मैं यही अपनी शंका को मिटाने के लिए वापस कमरे की तरफ आई,,,,
अंदर से तुम दोनों की खुशर फुसर की आवाज बाहर आ रही थी,,,, मुझसे रहा नहीं गया और मैं दरवाजे में बने छेद से अंदर कमरे में झांकने लगी,,,( शालू के मुंह से इतना सुनकर सूरज का दिल जोर से धड़कने लगा,, और शालू अपने शब्दों का बार किसी हथौड़े की मानिंद उसके कानों पर करते हुए बोली) और अंदर का नजारा देखकर तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन सरकने लगी मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि मैं इस तरह का नजारा देखूंगी,,,,( सूरज का दिल भय से जमने लगा था,, क्योंकि अब वह भी जानता था कि शालू क्या कहने वाली है।) मैं तो वह नजारा देखकर एकदम शर्म से पानी-पानी हो गई मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि सूरज और मंगल बूआ के आपस में इस तरह से गलत संबंध बनाएंगे,,,यह भी मे देख पा रही थी कि तुम्हारी मंगल मामी को, तुमसे चुदवाने में जरा भी शर्म महसूस नहीं हो रही थी बल्कि वह तो खूब मजे ले रही थी और तुम भी कितने मजे के साथ,, अपनी मां समान मामी की दोनों टांगो को फैला कर उनके ऊपर चढ़ कर उन्हें चोद रहे थे,,,,
यह सब मैं अगर अपनी आंखों से नहीं देखती तो जिंदगी में कभी भी यकीन नहीं कर पाती,,,
( सूरज शालू की बातें सुनकर एकदम से सन्न रह गया,,,) तुम इतने गंदे हो तुम्हारा भोला चेहरा देखकर कोई भी यकीन नहीं कर पाएगा,,,, अब क्या कहते हो सूरज तुम्हारे बिलास मामा भी तुम्हारी मंगल मामी की प्यास बुझाने में सक्षम नहीं है यह सच है?
( सूरज क्या बोलता है उसके पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था वह तो एकदम आवाक सा रह गया था, उसके सामने अब कोई भी रास्ता नहीं था शालू जो कुछ भी बोल रही थी वह सरासर सत्य था,, जिसे झूठ लाने के लिए उसके पास कोई भी बहाना नहीं था।,, वह खामोश ही रहा,, पल भर में ही उसके चेहरे की रंगत उड़ गई थी,,, उसे यूं खामोश देखकर शालू बोली,,)
क्यों क्या हुआ सूरज बोलती बंद हो गई अब नहीं बोलोगे कुछ,,,,, तुम और तुम्हारी मंगल मामी दोनों गंदे हैं दोनों के बीच के पवित्र रिश्ते को तार तार करते हुए एक मर्द और औरत के बीच का वासना का रिश्ता जोड़ लिए हो,,, तुम अपनी मां समान मंगल बूआ के साथ,,,चुदाई का खेल खेलकर यह साबित कर दिया कि तुम दुनिया के सबसे गंदे लड़के हो और मेरी बुआ सबसे गंदी औरत है जो कि समझदार होने के बावजूद भी इस पवित्र रिश्ते को रोकने की वजाए बढ़ाते जा रही है,,,,
सच कहूं तो तुम दोनों के बीच के यह अपवित्र रिश्ते को मैं अपनी मां से बताना चाहती थी,,, और इसीलिए उस दिन मौका देखकर उनके पीछे-पीछे जाने वाली थी लेकिन मुझसे पहले तुम उसके पीछे चलने लगे और मैं वहीं खड़ी हो गई यह देखने के लिए कि तुम क्या करती हो और जब तुम ऐसी वैसी हरकत करोगे तो मैं तुरंत आ जाऊंगी और गुस्से में सब कुछ बता दूंगी लेकिन वहां का नजारा देखकर मे दंग रह गई,,, मुझे लगा था कि तुम्हारी हरकत की वजह से मां तुझे डांटेगी और मैं सब कुछ बता दूंगी,,, लेकिन तुम्हारी गंदी हरकत के बावजूद भी मां तुमसे हंस कर बातें करने लगी और खुद ही झोपड़ी में जाने के लिए बोली तो मैं हैरान रह गई,,,,। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है तुम नहीं जानते सूरज कि मुझे अभी भी कितना ज्यादा क्रोध आ रहा है।,,,
( शालू की बातें सुनकर वैसे तो सूरज के पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था।)
अपनी सच्चाई के बारे में क्योंकि आज तक किसी को भी कानों-कान भनक तक नहीं हुई थी उस हक़ीकत को शालू जान चुकी थी यह जानकर सूरज को बहुत बड़ा झटका सा लगा था उसे लगने लगा था कि अगर शालू कभी भी आवेश में आकर किसी को भी उसके और उसकी मंगल मामी के बीच के गंदे रिश्ते को बता देगी तब क्या होगा अब तो वह दोनों पूरे परिवार की नजरों से नीचे गिर जाएगे। यह सोचकर सूरज काफी परेशान हुए जा रहा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह शालू को कैसे समझाएं कैसे मनाए कि इस राज को वह अपने अंदर ही राज बनाकर रखें,,, लेकिन वह जानता था कि शालू कभी भी नहीं समझेगी क्योंकि वह गुस्से में थी,,, वह काफी सोचने के बाद उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था लेकिन तभी उसके दिमाग में घंटी बजने लगी उसे उम्मीद की किरण नजर आने लगी उसके पास एक ही रास्ता था जिसको अपने मन में सोच कर उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई,,,,
लेकिन यह उम्मीद भी काफी ना उम्मीद कहीं बराबर थी लेकिन नामुमकिन बिल्कुल भी नहीं थी वह मन में यह सोच रहा था कि अगर शालू का मुंह बंद रखना है तो जिस तरह से उसने उसकी मां कि चुदाई किया है उसी तरह से शालू को भी अगर वह चोद दे,,, तब शालू उसकी और उसके मां के बीच के संबंध को राज ही रखेगी क्योंकि तब वह किसी से भी बताने लायक नहीं रह जाएगी,,,,,,
लेकिन कैसे मनाए यह उसे समझ में नहीं आ रहा था,, दोनों के बीच काफी लंबी खामोशी छाई हुई थी वह कम धीरे से अपनी साइकल को आगे बढ़ा रहा है ताकि उसके पास पर्याप्त मात्रा में समय बचे और वैसे अभी भी उसके पास काफी समय था आसमान में बादलों का झुंड तिरकट कर रहा था जो कि कभी भी बरस सकता था,,,, और वास्तव में सूरज यहीं चाहता था कि बारिश हो जाए,,,,,, शालू खामोश थी क्योंकि क्रोध में आकर उसने सूरज को लंबा चौड़ा भाषण सुना दी थी और तो और सूरज के गहरे राज को भी जान चुकी थी,,,, सूरज शालू को मनाना चाहता था लेकिन शालू का गुस्सा देखते हुए उसे यह नामुमकिन सा लग रहा था,,, लेकिन इस सफर के दौरान उसे मनाना भी बेहद जरूरी था लेकिन कैसे सूरज को कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था तभी उसके मन में ख्याल आया कि शालू जिस तरह से चुदाई की बातों को खुलकर कर रही थी,,,, जरूर उन बातों को करते हुए उसके तन-बदन में चुदास की लहर फैल गई होगी,,, और उसे मनाने का यही रास्ता भीं था सूरज जानता था कि औरतें और लड़कियां गंदी बातें को सुनकर धीरे-धीरे मस्त होने लगती है,,,
( इसी का उदाहरण था की वह कल रात अपनी बातों से रत्ना जैसी उम्रदराज और समझदार औरत को चोद सका,, तो ये शालू तो एक लड़की है,,)
अगर औरते गंदी बातें अच्छी लगने लगती है तो इसका मतलब है कि वह अपने आप ही अपना सब कुछ समर्पण करने के लिए तैयार हो जाती हैं। सूरज भी यही करना चाहता था,,, वह अपनी रसीली बातों से शालू को पूरी तरह से प्रभावित और उत्तेजित करके अपना काम निकालना चाहता था और यह सब उसे बहुत जल्दी करना था इसलिए वह शालू से बातों की शुरुआत करते हुए बोला,,,
मैं जानता हूं शालू कि मेरे पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं है लेकिन जैसा कि मैं तुम्हें बोला कि तुम्हारे पिताजी तुम्हारी मां के जिस्म की प्यास को नहीं बुझा सकते और तुम्हारी मां कि ठीक ढंग से चुदाई भी नहीं कर सकते ठीक उसी तरह जो तुम कह रही हो वह बिल्कुल ठीक है कि मेरे बिलास मामा भी मेरी मंगल मामी को ढंग से चुदाई का सुख नहीं दे सकते,,,, ( सूरज अपनी कामुकता भरी बातों का ध्यान शालू के ईर्द गिर्द फेलाने लगा,,, शालू उसकी बात को सुनने लगी,,, क्योंकि भले वह गुस्से में थी लेकिन सूरज की गंदी बातें उसे अच्छी लगती थी,,, सूरज अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)
देखो शालू जैसा कि मैं तुम्हें पहले भी बता चुका हूं कि औरतों को जिस तरह से पेट के लिए भूख लगती है उसी तरह से उन्हें,,, चुदवाने की भी भूख लगती है और ऊनकी रसीली बुर भी मोटे लंबे लंड के लिए तड़पती है,,,( सूरज जानबूझकर एकदम खुले शब्दों में बोल रहा था और साइकल में लगे शीसे में शालू के चेहरे की तरफ देख ले रहा था वह उसके हाव-भाव को देखना चाह रहा था कि उसके गंदे शब्दों को सुनकर उसके चेहरे के हाव-भाव कैसे बदलते हैं,,, और सूरज की खुल़ी गंदी बातों को सुनकर शालू के चेहरे का हाव भाव बदल रहा था जो कि सूरज को शीशे में साफ साफ नजर आ रहा था और उसके बदलते हुए चेहरे को देखकर उसके भी चेहरे पर मुस्कुराहट आने लगी थी,,,, वह अपनी बातों को और भी ज्यादा गंदा करते हुए बोला,,,,)
मेरी मंगल मामी भी मोटे तगड़े और लंबे लंड के लिए तड़प रही थी वह भी अपनी बुर में मोटा लंड डलवाकर जबरदस्त धक्कों के साथ चुदवाना चाहती थी,,, वह चाहती थी कि कोई जवान मर्द उसे अपनी बाहों में भर कर उसकी बड़ी-बड़ी गांड को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर अपने मोटा लंड को उसकी रसीली बुर में डालकर तेज धक्को के साथ उसे चोदे,,, ताकि उसकी बुर भलभलाकर पानी फेंकने लगे,,,,
( सूरज जानबूझकर इस समय सुधियां मामी के बारे में ना बोल कर खुद अपनी मंगल मामी के बारे में गंदी बातें कर रहा था ताकि मंगल मामी की गंदी बातें सुनकर शालू की बुर में भी पानी का सैलाब उठने लगे और शायद ऐसा हो भी रहा था,, वह साइकल के पीछे बैठे-बैठे कसमसा रही थी,, जो कि दोनों तरफ एक एक पैर करके बैठने की वजह से उसकी बुर हलके से खुल गई थी जो की खुला तो बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता था क्योंकि वह अभी तक पूरी तरह से कुंवारी थी,,, लेकिन जिस तरह से उसने अपनी जांघों के बीच हाथ ले जाकर शायद अपनी पेंटी को एडजस्ट करने की कोशिश की थी और यह हरकत सूरज शीशे में देख लिया था और वह समझ गया था कि उसकी गरम बातों का असर शालू पर होने लगा था। यह पक्के तौर पर अब यकीन हो गया जब शालू ने सूरज से उसकी गरम बातों को सुनकर बोली,,)
तुम्हें कैसे मालूम कि मंगल बूआ को जो तुम कह रहे हो उसकी जरूरत है,,,,।( शालू कसमसाहट भरी आवाज में बोली और उसकी यह बात सुनकर उसे बम के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव खेीलने लगे,, क्योंकि वह समझ गया कि शालू को भी उसकी बात अच्छी लगने लगी है और यही उसके पास मौका था वह बेहद खुश नजर आने लगा पलभर में ही उसे लगने लगा के पास उसके पीछे बैठी शालू इस समय कमर के नीचे बिल्कुल नंगी होती तो उसे पकड़ कर बैठी होती और तब उसे कितना मज़ा आता जब ऊसकी नंगी बुर उसके नितंबों से सटी होती और उसकी नरम नरम चिकनी जांगे उसकी जांघों से रगड़ खा रही होती,,,, पल भर में वह कल्पना के सागर में खोने लगा,, तो शालू फिर से उसे दोबारा अपना सवाल दोहराते हुए बोली,,,,
बोलो ना सूरज तुम्हें कैसे पता चला कि मंगल बूआ जो तुम कह रहे हो उसके लिए तड़प रही है,,,?
फिर झूठ तुम थोड़ा सा भी अपने आप को संभालने की कोशिश नहीं किए बल्कि तुम तो, मेरी मां की गांड देखकर अपना वह निकाल लिए थे,,,
( सूरज शालू के मुंह से इतना सुनते ही उत्तेजना से भर गया क्योंकि वह जानता था कि शालू क्या निकालने के लिए बात कर रही थी उसे उम्मीद नहीं थी कि शालू इतनी जल्दी यहां तक पहुंच जाएगी,,, उसे शालू की यह बात बेहद सुकून भरी लग रही थी शालू भी हैरान थी कि उसके मुंह से ऐसा क्यों निकल जा रहा है,,, शालू की बात को समझने के बावजूद भी अनजान बनते हुए सूरज बोला,,)
क्या निकाल लिए थे,,,?
अपना वो,,,,( शालू नजरें नीचे झुकाते हुए बोली,,।)
अपना वो मैं कुछ समझा नहीं तुम क्या कह रही हो,,,
देखो सूरज जान कर भी अनजान बनने की कोशिश मत करो,,,
मैं कहां इंसान बनने की कोशिश कर रहा हूं तुम्ह़ी मुझे बात को गोल-गोल घुमाते हुए बोल रही हो,,,, सीधे-सीधे क्यों नहीं बता देती कि मैंने क्या गलती किया हुं,,,,
( सूरज की बात सुनकर शालू खामोश हो गई वह सब कुछ बोल देना चाह रही थी लेकिन उसे बोलते हुए शर्म सी आ रही थी,,, मुख्य सड़क पर साइकल अपने गति से चली जा रही थी। बाजार आने वाला था सूरज को यह नहीं मालूम था कि बाजार कब आएगा इसलिए वह बात को आगे बढ़ातै हुए बोला,,,)
खैर छोड़ो खामखा तुम मुझ पर इल्जाम लगा रही हो अच्छा यह बताओ बाजार कितनी दूर है अभी,,,,
बस आने ही वाला है और मैं खामखा तुम पर इल्जाम नहीं लगा रहे हैं मैं जो देखी वही बता रही हूं,,,
देखो शालू तुमने कुछ नहीं देखी जो देखी सब अधूरा देखी हो और अपने मन से ही मनगढ़ंत कहानी बना रही हो,,,,
मैं मनगढ़ंत कहानी नहीं बना रही हूं मैं जो कह रही हूं सब सच कह रही हूं तुमने मेरी मां की गांड को देखकर अपना लंड बाहर निकाल कर उसे हिलाने लगे थे,,,
( शालू आवेश में आकर बोल गई लेकिन लंड शब्द बोलते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी,,, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके मुंह से ऐसे शब्द निकल गए,,, और सूरज शालू के मुंह से यह सुनकर मंद मंद मुस्कुराने लगा और उसकी मुस्कुराहट इस बात का सबूत था कि जैसा वह चाह रहा था वैसा ही हो रहा है,,, सूरज जानबूझकर इस बात का एहसास शालू को बिल्कुल भी नहीं दिला रहा था कि उसके मुंह से क्या निकल गया इसलिए वह खुद ही जल्दी से बोला।)
शालू इसमें क्या मेरी गलती है मेरे जैसा जवान लड़का अगर किसी खूबसूरत औरत को इस हाल में देखेगा तो क्या करेगा,,( अब सूरज शालू को बहकाने के लिए उसकी मां के बारे में बढ़ा चढ़ाकर बोलने लगा।) और शालू तुम्हारी मां कितनी ज्यादा खूबसूरत हैं लंबी तंबी है,, चौड़ा सीना, और छातियों की शोभा बढ़ाते हुए उनकी बड़ी बड़ी चूचियां,,,
यह क्या कह रहे हो सूरज,,( शालू सूरज को टोकते हुए बोली लेकिन सूरज बिना रुके ही बोला,,,)
अरे पहले सुनो तो,,, मैं सच कह रहा हूं तुम्हारी मां बहुत खूबसूरत है तुम्हें पता है तुम्हारी मां की चुचिया इतनी बड़ी-बड़ी है कि ठीक तरह से ब्लाउज में भी नहीं समा पाती,,,, और उनकी गांड कितनी गोल-गोल और बड़ी है कि साड़ी के ऊपर से भी सब कुछ साफ साफ नजर आता है,,
( सूरज जानबूझकर खुले शब्दों में शालू की मां की तारीफ करते हुए उनकी नग्नता को अपने शब्दों में ढालते हुए शालू को बता रहा था,,, शालू की चढ़ती जवानी भी,, ऊबाल मार रही थी,,, इसलिए तो अब वह सूरज को रोक नहीं रही थी बल्कि उसकी बातों का मजा ले रही थी उसे भी अपनी मां की ही सही और इस तरह की बातें अच्छी लग रही थी,,, सूरज तो अब एकदम बेशर्मी पर उतर आया था इसलिए अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,।)
और जरा सोचो जब तुम्हारी मां की मदमस्त गांड साड़ी के ऊपर कितनी खूबसूरत लगती है तो जब वह साड़ी उठा देती तो कितनी खूबसूरत लगती और यही उस दिन भी मेरे साथ हुआ जिसकी गांड को मैं साड़ी के ऊपर से देख देख कर ना जाने कैसी खुमारी में मदहोश होने लगा था,,, और वही गांड जब मैं पूरी तरह से नंगी देखा तो मुझसे रहा नहीं गया और मैं अपना लंड निकाल कर हिलाने लगा,,,,, ( सूरज पूरी तरह से बेशर्म बनकर शालू के सामने खुले शब्दों में उस दिन के वाक्ये को बंया कर रहा था,, जिसे सुनकर शालू के तन-बदन में भी खुमारी छाने लगी,,,,)
शालू यही मेरी गलती है जो कि इसमें भी मेरी कोई गलती नहीं है यह सब उम्र का दोष है,,,,
बात अगर इतने से रुक जाती सूरज तो शायद में तुम्हें माफ कर देती लेकिन तुमने तो बात को और ज्यादा बढ़ा दिया,,,,
मैंने कहा बात को आगे बढ़ा दिया,,,,
चलो बनो मत,, तुम उसी तरह से अपने उसको,,,, हिलाते हुए मेरी मां के पीछे चले गए जब वह बैठकर पेशाब कर रही थी,,, और फिर,,, (इतना कहकर शालू खामोश हो गई क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि इसके आगे वह अपनी बात कहने के लिए उन शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकती थी क्योंकि यह उसके संस्कार के खिलाफ थे लेकिन उम्र का पड़ाव उसे वह शब्द बोलने के लिए मजबूर कर रहे थे लेकिन शालू की खामोशी को देखकर सूरज बोला ।)
और फिर,,,, और फिर क्या,,,,?
( सूरज जानता था कि शालू इसके आगे क्या कहने वाली है और वह उसके मुंह से सुनना चाहता था,,, शालू मन ही मन में सोच रही थी ईतना कुछ तो बोल गई है यह भी बोल दे,,, वैसे भी उसकी चढ़ती जवानी यह सब गंदी बातों के चलते मदहोश होने लगी थी और उसे भी बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी इसलिए वह भी अश्लील शब्दों को बोलकर उन शब्दों के एहसास का मजा लेना चाहती थी इसलिए वह बोली,,,)
फिर क्या,,,,,,, तुम ,,,, अपने उसको हिलाते हुए मेरी मां के उस में डाल दिए,,,,,( शालू शरमाते हुए और घबराते हुए बोल गई,,,,, लेकिन इतना बोलते ही उसके जांघों के बीच हलचल सी होने लगी,,,, उसकी कुंवारी बुर में नमकीन पानी का सैलाब उठने लगा,,, सूरज तो शालू के मुंह से सुनने के लिए बेकरार सा बैठा था और जैसे ही उसके मुंह से इतना सुना वह झट से बोला,,,
किसमे,,, बुर मे,,,, ( सूरज बुर शब्द एकदम बेशर्मों की तरह बोला था,,,)
जब जानते हो तो फिर क्यों बोलते हो,,,,
( शालू सूरज की बातों पर एतराज जताते हुए बोली लेकिन उसके मुंह से बुर शब्द सुनकर उसके तन-बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी थी,,,)
हां ऐसा ही हुआ शालू लेकिन इसमें क्या मेरा दोष था। तुम सब कुछ देख रही थी तो यह भी देखी होगी कि किस तरह से तुम्हारी मां अपनी बड़ी बड़ी गांड और अपनी रसीली बुर दिखाते हुए मूत रही थी,,,,( सूरज अपनी बेशर्मी का पारा और ज्यादा नीचे गिराते जा रहा था,,,) और तुम ही सोचो जब एक जवान लड़का और एक औरत की बहुत मस्त गांड और उसकी रसीली बुर देखेगा तो उससे भला कैसे रहा पाएगा,,, यह तो एक तरह से औरत की तरफ से मर्दों के लिए निमंत्रण हो गया और मैं भी तुम्हारी मां के दिए गए इस निमंत्रण को स्वीकार करते हुए वही किया जो एक मर्द को करना चाहिए था मैंने भी अपने लंड को तुम्हारी मां की बुर में डालकर उन्हें चोदने लगा,,,,
( सूरज उत्तेजनात्मक स्वर में साइकल को चलाते हुए बोल रहा था,,, उसे मालूम था कि वह जिन शब्दों का प्रयोग कर रहा है वह शब्द शालू के शालू मन पर बहुत भारी पड़ने वाले हैं और उसकी सोच बिल्कुल सही थे शालू एकदम उत्तेजना ग्रस्त हो़ चुकी थी,,, चोदना शब्द सुनकर तो उसके तन-बदन में आग लग सी गई थी,,, सूरज के द्वारा कामुक शब्दों में वर्णन सुनकर शालू की आंखों के सामने रात वाली घटना संपूर्ण रूप से किसी फिल्म के चलचित्र की तरह घूमने लगी,,, वह पल भर में ही सोचने लगी कि कैसे उसकी मां अपनी साड़ी उठाकर मुतने के लिए तैयार थी और सूरज उसकी मां की बड़ी बड़ी गांड को देख कर एकदम से चुदवासा हो गया था पीछे से जाकर उसकी मां की बुर में लंड डालकर चोदने लगा था,,,, यह सब सोचकर शालू का गोरा चेहरा उत्तेजना के मारे लाल टमाटर की तरह हो गया,, जोकी साइकल में लगे शीशे में सूरज को साफ साफ नजर आ रहा था,,,, तभी वह शरमाते हुए धीमे स्वर में सूरज से बोली,,,)
लेकिन तुम्हें यह नहीं करना चाहिए था तुम अपने आपको रोक सकते थे,,,
रोक तो मुझे तुम्हारी मां मतलब की मामी भी सकती थी।,,,, लेकिन उन्होंने भी मुझे नहीं रोका यह भी तुम अच्छी तरह से देख रही होगी,,,,
( सूरज की यह बात सुनकर शालू सोचने लगी कि सूरज सच ही कह रहा है क्योंकि वह भी अच्छी तरह से देखी थी की,,, सूरज द्वारा इतनी है गंदी हरकत के बावजूद भी उसकी मां उसे बिल्कुल भी रोकने की कोशिश नहीं की थी वह सब सोच ही रही थी कि तभी सूरज बोला,,,)
तुम बेकार में बात का बतंगड़ बना रही हो अगर मेरी हरकत ऊन्हे गंदी लगती तो वह खुद ही मुझे रोक दी होती,,,, लेकिन उन्होंने मुझे बिल्कुल भी नहीं रोकी बाकी तुम अच्छी तरह से देख रही होगी कि वह खुद ही मुझे झोपड़ी में चलने के लिए कह रही थी,,,,
( सूरज की यह बातों ने शालू को एकदम खामोश कर दिया,, क्योंकि जो कुछ भी सूरज कह रहा था वह बिल्कुल सच कह रहा था शालू मन में सोचने लगे कि अगर उसकी मां को एतराज होता तो उसे थप्पड़ मारकर उसे रोक देती लेकिन वह तो खुद ही उसे पास की झोपड़ी में जाने के लिए कह रही थी,,,, तभी शालू बोली,,,)
यही बात तो मुझे भी समझ में नहीं आ रही है अगर तुम इतना आगे बढ़ गए फिर तो मां तुम्हें रोक सकती थी तुम्हें मार सकती थी लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया तभी तो मैं मां से भी नाराज हो लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आता कि मां ने आखिर ऐसा किया क्यों नहीं तुम्हें आगे क्यों बढ़ने दिया,,,, मां के हाव भाव से ऐसा लग रहा था कि तुम दोनों के बीच पहले से ही,,,,,
( इतना कहकर शालू खामोश हो गई और शालू की बात को सूरज आगे बढ़ाते हुए बोला।)
तुम सही सोच रही हो शालू मैं तुमसे कुछ भी नहीं छुपाऊंगा,,,,
सूरज सोच रहा था कि अब सही मौका आ गया है सब कुछ बताने का और वह जानता था कि उसकी नमक मिर्ची लगी गंदी बातों को सुनकर शालू का शालू मन मदहोश होने लगेगा और वह मदहोश हो रही शालू के साथ वह सब आसानी से कर लेगा जो वह उसकी मां के साथ कर दे एकदम मस्त हो गया था,,,, इसलिए वह बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,,
तुम सही सोच रही हो कि मेरी हरकत के बावजूद भी तुम्हारी मां कुछ बोली थी वही मुझे रोकी क्यों नहीं क्योंकि हम दोनों के बीच पहले भी शारीरिक संबंध बन चुका था,,,,
क्या मुझे यकीन नहीं हो रहा है,,,, ।( शालू आश्चर्य से बोली।)
यही सच है शालू,,,,
तुम तो इतने गंदे हो वह हमें समझ सकती हूं लेकिन मेरी मां ऐसी नहीं हो सकती क्योंकि आज तक मैंने उनके बारे में कहीं भी किसी के भी मुंह से ऐसी बातें नहीं सुनी हुं की उन पर इस तरह का सक कर सकूं,,,,,
देखो शालू मैं जानता हूं कि तुम्हारी मां बहुत अच्छी हैं लेकिन यह सब अनजाने में ही हो गया,,,,
अनजाने में नहीं यह सब तुम दोनों का किया कराया है अब तो मुझे अपनी मां पर भी नफरत होने लगी है मुझे यकीन नहीं होता है कि मैं उनकी बेटी हूं तुम दोनों अपने रिश्तो का लिहाज बोलकर एक दूसरे के साथ इस तरह के संबंध बनाते आ रहे हो और तुम दोनों को जरा भी शर्म भी नहीं आई,,,,, ( शालू गुस्से में बोली जा रही थी, उसे अब अपनी मां पर भी बेहद क्रोध आ रहा था उसे अब तक सिर्फ शक हो रहा था कि उस रात के पहले भी उसकी मां का संबंध सूरज के साथ था लेकिन सूरज के मुंह से सुन लेने के बाद उसका शक यकीन में और सच्चाई से वाकिफ हो चुका था उसे अपनी मां से यह बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी इसलिए उसे अपनी मां से नफरत सी होने लगी थी और वह सूरज को भी भला बुरा कहे जा रही थी,,,,
सूरज उसे समझाने की बहुत कोशिश कर रहा था लेकिन शालू अब कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी जिस रिश्ते को याद करके उसके बदन में काम उत्तेजना का अनुभव हो रहा था अब उसकी जगह आवेश और क्रोध में ले लिया था अब शालू उस दृश्य को याद करके जब उसकी मां साड़ी उठाकर पेशाब करने की तैयारी कर रही थी और सूरज अपना लंड धोती से बाहर निकालकर मसल रहा था,,, यह सब दृश्य उसे दोनों की साजिश के तहत लगने लगी,,,, पीछे से जाकर उसकी मां की बुर में सूरज का युं लंड डालना,, शालू के क्रोध को और भी ज्यादा बढ़ा रहा था,,, बार-बार उसे वह दृश्य याद आ रहा था जब,,,, सूरज उसकी मां की बुर में लंड डाला था तब उसकी मां हैरान परेशान और क्रोधित होने की वजह यह जानकर कि उसकी बुर में लंड डालने वाला दूसरा कोई नहीं सूरज है तो वह मुस्कुराने लगी थी,,,,
और तब तक सूरज भी दो तीन बार उसकी बुर में लंड को अंदर बाहर कर चुका था और यह हरकत कोई और ना देख ले इसलिए खुद ही उसे झोपड़ी में चलने का इशारा की थी ताकि वहां खुलकर चुदाई का मजा ले सकें,,, यह सब याद करके उसके बदन में क्रोध की ज्वाला फूट रही थी वह दोनों के प्रति एकदम आवेश में आ चुकी थी,,,,
सूरज और उसकी मां के बीच चुदाई का पल पल का दृश्य उसकी आंखों के सामने नाच रहा था लेकिन इस समय उस दृश्य को याद करके उसके बदन में किसी भी प्रकार की उत्तेजना का अनुभव नहीं बल्कि क्रोध का एहसास हो रहा था। सूरज लाख समझाने की कोशिश कर रहा था लेकिन वह सुनने को तैयार ही नहीं थी सूरज को लगने लगा कि उसका खेल उल्टा पड़ने लगा है। अब शालू को समझाना नामुमकिन सा होता जा रहा था और उसके हाथ में आई बाजी उसे उसके हाथ से निकलती हुई लगने लगी थी इस सुनहरे मौके पर उसे पूरा विश्वास था कि वह आज शालू के खूबसूरत जिस्म को हासिल करके रहेगा और उसके बदन के मदन रस को अपने होठों से पिएगा लेकिन शालू के गुस्से को देखते हुए उसे यह सब नामुमकिन सा लगने लगा वह कैसे शालू को मनाए कैसे उसके बदन अपनी बाहों में भर पाए यह सब सोच ही रहा था कि तब तक बाजार आ गया।
बाजार आ चुका था,, गांव का बाजार होने की वजह से बाजार कुछ खास बड़ा नहीं होता लेकिन जरूरत का सामान मिल ही जाता था। सूरज के चेहरे पर हाथ में आया मौका खो जाने का डर साफ नजर आ रहा था। उसने यहां आने से पहले ना जाने कितने ख्वाब देख चुका था शालू को लेकर,,, वाह सोच रहा था कि उसकी कामुक बातों की वजह से शालू कामोत्तेजित हो जाएगी और वो उसके साथ संभोग सुख भोग सकेगा और उसे ऐसा होता नजर भी आने लगा था लेकिन ऐन मौके पर शालू का रवैया बदलने लगा,,,, और उसका बदला हुआ मूड देखकर सूरज को अपने किए कराए पर पानी फिरता नजर आने लगा,,,,,, सूरज साइकल बाजू में खड़ी किया ही था कि शालू खुद ही कपड़े की दुकान में चली गई और वहां जाकर कपड़े पसंद करने लगी,,, सूरज भी तिनकों को सहारा समझकर मन में आग जगाए हुए शालू के पीछे पीछे वह भी दुकान में प्रवेश कर गया,,, शालू काउंटर पर अपने लिए कपड़े निकलवा रही थी,,, काउंटर पर खड़ी लड़की भी मुस्कुरा मुस्कुरा कर शालू को कपड़े दिखा रहीे थी। शालू के पास आज पर्याप्त मात्रा में पैसे थे जिसकी वजह से वह अपने मनपसंद किसी भी तरह के कपड़े को खरीद सकती थी इसलिए उसे और भी अच्छे कपड़े चाहिए थे और अपने मनपसंद के कपड़े लेकर के,,वह बहुत खुश नजर आ रही थी,,, लेकिन कपड़ों को पसंद करने में सूरज भी उसकी मदद कर रहा था जिसका वह बिल्कुल भी विरोध नहीं कर रही थी क्योंकि उसे यकीन था कि जो कपड़े लड़कों को अच्छे लगते हैं वह लड़कियों को जरूर पहनने में अच्छे लगेंगे इसलिए शालू की पसंद में सूरज की भी पसंद शामिल थी,,, हालांकि शालू सूरज से ज्यादा बातें नहीं कर रही थी बस हां, ना में ही जवाब दे रही थी।,,,, सूरज शालू से ज्यादा से ज्यादा नजदीकी बनाने की कोशिश कर रहा था इसलिए साए की तरह उसके पीछे पीछे लगा हुआ था क्योंकि आज वह अपना इरादा पूरा करना चाहता था लेकिन जिस तरह से शालू का मूड उखड़ गया था उसे देखते हुए सूरज के लिए यह काफी मुश्किल होता जा रहा था लेकिन फिर भी सूरज हार ना मानकर अपनी कोशिश जारी रखा था,,,,,
आगे आगे चल रही शालू की खूबसूरती को वह पीछे से नजर भर कर देख रहा था उसके हिलते डुलते गोल गोल नितंबों पर उसकी निगाहें टिकी हुई थी,,, शालू की मदमस्त कसी हुई गांड को देखकर सूरज का लंड हिलेारे ले रहा था बार-बार सूरज का मन उस पर हाथ फेरने को कर रहा था लेकिन अभी शालू का मिजाज कुछ ज्यादा ही गर्म था इसलिए वहां यह गुस्ताखी करना ठीक नहीं समझ रहा था,,,, कुछ ही देर में शालू ने अपने जरूरत की सारी खरीदी कर चुकी थी अब लगभग उसके पास पैसे भी नहीं बचे थे,,,, इसलिए वह सूरज को चलने के लिए बोली लेकिन सूरज उसके मन में कामोत्तेजना के बीज बोना चाहता था,, इसलिए उसके मन को बहलाने के लिए वह बोला,,,,
शालू इतनी दूर आए हैं तो कुछ खा पी लेते हैं वैसे भी मुझे भूख भी लगी है चलो किसी अच्छे से मिठाई के दुकान में चलते हैं,,
यह तुम्हारे बड़े गांव का बाजार नहीं है यह गांव का बाजार है यहां कोई बड़ा बड़ी मिठाई की दुकान नहीं है लेकिन हां,,, चलो मैं अच्छी जगह ले चलती हुं,,,,
( इतना कहकर वह आगे आगे चलने लगी सूरज ऊसे आगे जाते हुए देखने लगा,,, उसे किस समय शालू के बदले हुए रवैये को देखकर आश्चर्य होने लगा,,, क्योंकि ईस समय उसके चेहरे पर नाराजगी के भाव बिल्कुल भी नजर नहीं आ रहे थे,,, यह देखकर सूरज का चेहरा खिल उठा,,,, वह आगे आगे चले जा रही थी और सूरज भी उसके पीछे हो लिया,,, क्योंकि वह जानता था कि गांव के बाजार के बारे में उससे बेहतर शालू ही जान सकती है,, दो-चार दुकान छोड़ने के बाद ही एक छोटी सी हलवाई की दुकान थी और शालू दुकान के आगे खड़ी हो गई,,, ऊसके खड़ी होते ही सूरज समझ गया कि इसी दुकान की शायद शालू बात कर रही है,,,, इसलिए वह शालू के करीब जाकर बोला,,
यही दुकान है?
हां यही है।,,
( शालू का जवाब सुनते ही सूरज दुकान में प्रवेश कर गया और उसके पीछे पीछे शालू भी,,, सूरज लकड़ी की कुर्सी पर बैठ चुका था और उसके बगल में शालू भी जाकर बैठ गई,,,, )
देखो शालू यहां के बारे में मुझे कुछ ज्यादा मालूम नहीं है इसलिए क्या खाना है यह तुम्ही बताओ,,,
( शालू यह सुनकर खुश हो गई वह जब भी बाजार आती थी तो गरमा गरम समोसे और उसके साथ ठंडा पीती थी,,,। इसलिए वह झट से गरमा गरम समोसे और गन्ने का ठंडे रस के बारे में सूरज से बोल दी,,, सूरज को भी शालू की बात से तसल्ली हुई क्योंकि वह बेझिझक बोल रही थी,,, सूरज को लगने लगा कि शायद उसका गुस्सा कम आने लगा है और इस बात पर सूरज को राहत मिल रही थी। सूरज ने भी दुकान वाले को जो कि गरमा गरम समोसे छान रहा था,,, उसे दो दो समोसे और २ गन्ने के रस के ग्लास लाने के लिए बोल दिया,,,,, शालू से बात करना चाह रहा था लेकिन इस समय दुकान में और भी लोग मौजूद थे इसलिए कुछ बोल नहीं पा रहा था,,,, कुछ ही देर में दुकान वाला उनके टेबल पर समोसे और गन्ने का रस लेकर आ गया बातों का दौर शुरू करने के लिए सूरज बोला,,,)
लगता है तुम्हें गन्ने का रस बहुत ज्यादा पसंद है,,
हां लेकिन समोसे के साथ ही मैं जब भी बाजार आती हूं समोसे और गन्ने का रस जरूर लेती हूं,,, क्यों तुम्हें पसंद नहीं है क्या,,,
मुझे भी पसंद है तभी तो मैं यह कह रहा हूं मेरी और तुम्हारी पसंद मिलती जुलती है,,,
( इतना सुनकर शालू मुस्कुरा दी,,,, और समोसे खाने लगी सूरज भी समोसे खाने लगा शालू के मन में अभी भी सूरज ने जो किया उसको लेकर घृणा और क्रोध आ रहा था,,, लेकिन वह एक बात समझ नहीं पा रही थी की इतना गुस्सा करने के बावजूद भी उसका मन ना जाने क्यों सूरज के प्रति खींचा चला जा रहा था,,, वह समोसे खाते हुए कनखियों से सूरज की तरफ देख रही थी लेकिन जब जब उसे वह दृश्य याद आता है जब सूरज,,,, उसकी मां की टांगों के बीच जगह बनाकर अपने लंड को ऊसकी बुर के अंदर बाहर करते हुए उसे चोद रहा था तब वह उसके चेहरे से अपनी नजरें हटा लेती थी,,, लेकिन पल भर में फिर से उसका मन सूरज के प्रति आकर्षित होने लगता यह बात उसे बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रही थी कि जिस लड़के से उसे नफरत करनी चाहिए थी उसके लिए प्रति उसका मन क्यों आकर्षित हुए जा रहा था,,,
यह बात शालू की समझकर बिल्कुल परे थी लेकिन यही जवानी का दस्तूर भी था जवानी में कब किसके प्रति मन आकर्षित हो जाए यह कोई भी नहीं कह सकता भले ही वाह कितना भी नफरत के लायक क्यों ना हो,,, और यही शालू के साथ भी हो रहा था सूरज इस बात को नोटिस कर रहा था कि शालू समोसे खाते हुए उसे कनखियों में देख रही है,,,, उसे यह सब अच्छा भी लग रहा था,,,,
शालू को सूरज अच्छा लगने लगा था यह है उसकी सोच के बिल्कुल विपरीत था क्योंकि उसके मन में उसके प्रति नफ़रत भी हो रही थी उत्तर को भी आ रहा था लेकिन अपने मन पर उसका बस बिल्कुल भी नहीं चल पा रहा था इसमें शालू का दोष बिल्कुल भी नहीं था सूरज था ह़ी इतना खूबसूरत कि किसी का भी मन उस पर मोहित हो जाए,,,,, इसका ताजा उदाहरण खुद उसकी सगी मंगल मामी उसकी मंजू मौसी थी,,, अपने आप को संभाल पाने में बिल्कुल समर्थ थी लेकिन इसके बावजूद भी सूरज के प्रति इन औरतों का मन बहक चुका था,,,तो भला शालू की क्या विषाद थी वह तो इस उम्र से गुजर रही थी कि कहीं भी किसी भी वक्त पांव फिसल जाए,,
दोनों समोसे और गन्ने के रस की ठंडक लेकर दुकान से बाहर निकल चुके थे,,,, अब ऊन्हे गांव की तरफ जाना था,,, सूरज के हाथों से समय धीरे-धीरे रेती की तरह फिसलता जा रहा था,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि शालू को वह कैसे पटाए,,, सूरज शालू के हाथों से कपड़ों की थैली लेकर साइकल के हैंडल के बाजू में अटका दिया,,, सूरज साइकल पर बैठ चुका था और,,, शालू जैसे ही साइकल पर बेठनें चली वैसे ही सूरज उसे रोकते हुए बोला,,,
ऐसे मत बैठो शालू दोनों तरफ अपने पांव करके बैठो एक तरफ पांव करके बैठती हो तो एक तरफ वजन लगने लगता है और साइकल चलाने में मुझे दिक्कत होती है,,,,
( सूरज की बात सुनकर शालू उसकी बात मान गई और दोनों तरफ पांव करके बैठ गई,,, सूरज अपने चाल पर मन ही मन प्रसन्न होने लगा,,, वह जानबूझकर शालू को इस तरह से देखने के लिए बोला था ताकि वह जब भी साइकल ब्रेक जोर से मारे तो उसकी नरम नरम चुचिया उसकी पीठ से चिपक जाएं,,,, और सूरज उसे इस तरह से गर्म करना चाहता था साइकल पर दोनो बैठ कर घर की तरफ लौटने लगे उसे समझ नहीं आ रहा था कि बात की शुरुआत कैसे करें उसके पास समय बहुत कम था अगर वह इस सफर के दौरान उसके साथ कुछ नहीं कर पाया तो हो सकता है कि शालू यह बात सबको बता दें और उसकी बदनामी हो जाए,,,, ऐसा ना हो इसके लिए शालू के साथ शारीरिक संबंध बनाना बेहद जरूरी हो रहा था सूरज के लिए इसलिए वह इसी जुगाड़ में लगा हुआ था वह जानबूझकर अपनी बातों से शालू की बुर को गिली करना चाहता था इसलिए वह बात की शुरुआत करते हुए बोला,,,
शालू तुम मुझ से अब भी नाराज हो,,
तुमने कोई महान काम नहीं किया हो कि मैं तुमसे नाराज ना होऊ,,,
देखो शालू तुम अपने नजरिए से देख रही हो इसलिए तुम्हें यह खराब लग रहा है लेकिन एक औरत के नजरिए से देखोगी तो तुम्हें भी यह सब अच्छा लगेगा,,,
क्या अच्छा लगेगा सूरज,,, मुझे ये अच्छा लगेगा,,,की तुम मेरी मां को चोदते हो,,
( शालू गुस्से में खुले शब्दों में बोल रही थी, और शालू के मुंह से शब्द सुनकर सूरज को आशा की किरण नजर आने लगी उसे लगने लगा कि यह चिंगारी को अगर सही हवा मिले तो यह ज्वाला का रूप धारण कर लेंगे और यह से ज्वाला का रूप देने के लिए सूरज अपनी बातो मैं कामुकता की आग भरने लगा,, )
शालू मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि बेटी होने के नाते तुमसे तुम्हारी मां और मेरे बीच का रिश्ता यह बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है लेकिन शालू इसमें तुम्हारी मां की कोई गलती नहीं है और ना ही मेरी कोई गलती है,,,
हां इसमें तुम दोनों की गलती नहीं है तुम दोनों तो बिल्कुल नादान थे बच्चे थे इसके लिए ऐसा हो गया अपनी हवस को नादानी का नाम देकर निकलने की कोशिश मत करो
मैं इस में से निकलने की कोशिश नहीं कर रहा हूं करके तुम्हें सच्चाई बता रहा हूं,, शालू,,, जैसे इंसान को भुख प्यास लगती है वैसे ही उनके जिस्म में इस तरह की भी जिस्मानी भूख पैदा होती है,,, और क्या उनकी याद भूख घर मै नहीं मिटती तो वह लोग अपनी भूख मिटाने के लिए बाहर का रास्ता इख्तियार करते हैं,,,
तुम्हारी बात मेरे को बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रही है,,
( शालू आश्चर्य से बोली,,, सूरज बड़ी चालाकी से साइकल को कम तेज़ी से लिए जा रहा था क्योंकि वह सफर के दरमियां हीं अपनी मन की इच्छा को पूरी करना चाहता था इसलिए वह शालू को ठीक से समझाते हुए बोला)
देखो शालू जो काम तुम्हारी मां के साथ तुमने मुझे करते हुए देखी यही काम तुम्हारे पिता को करना चाहिए था लेकिन मुझे बताते हुए दुख हो रहा है कि तुम्हारे पापा तुम्हारी मां पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते,,,
मतलब मैं कुछ समझी नहीं,,,।m
देखो शालू तुम्हारी मां अभी बहुत जवान है तो उनके अंदर चुदवाने की भी भुख पेदा होती है,,,,
( सूरज के मुंह से अपनी मां के प्रति इतनी गंदी बात को सुनकर जहां पर उसे गुस्सा भी आ रहा था लेकिन मन ही मन उसे अच्छा भी लग रहा था इस तरह से खुली भाषा में अपनी मां की चुदाई की बात सुनकर शालू पूरी तरह से उत्तेजना की राह पकड़ ली थी,,, उसे सूरज की यह बात अच्छी लग रही थी और मैं नहीं मानता यह इच्छा भी रख रही थी कि सूरज इससे भी ज्यादा गंदी भाषा का प्रयोग करें,,)
और शालू यह चुदाई की भूख एक मजबूत और तगड़े लंड से ही मिटती है। और इस उम्र में तुम्हारी मां को मोटा तगड़ा और लंबा लंड की जरूरत पड़ रही थी,,, जो कि चुदाई की यह भूख तुम्हारे पिता मिटा नहीं पा रहे थे,,, जो काम में तुम्हारी मां के साथ कर रहा था वही काम तुम्हारे पिताजी को करना चाहिए था उन्हें चाहिए था कि तुम्हारी मां को जी भर कर चोदे ताकि उन्हें किसी दूसरे मर्द की ज़रूरत ही ना पड़ सके,,,( सूरजnखुले शब्दो मे उसकी मां के बारे में बेहद गंदी बातें कर रहा था जो कि शालू के तन-बदन में उत्तेजना के अंकुर को पानी देकर सींचने का काम कर रहा था,, उत्तेजना के मारे शालू का गला सुर्ख होने लगा था,,, उसके चेहरे पर शर्म ओ हया की लाली खीेलने लगी थी,,,, ना चाहते हुए भी शालू को यह सब बातें अच्छी लगने लगी थी,, शालू पूरी तरह से खामोश हो चुकी थी और उसकी खामोशी देखकर सूरज को लगने लगा था कि उसकी गंदी बातें शालू के बदन में कामोत्तेजना की लहर पैदा कर रही है,,,, सूरजnके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आने लगे वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला।)
और जब शालू तुम्हारी मां को तुम्हारे पिताजी की बेहद आवश्यकता होने लगी ऐसे में तुम्हारे पिताजी तुम्हारी मां पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे पाए और तुम्हारी मां मेरे साथ बहक गई,,,,
बहक गई ऐसे कैसे बहक गई आज तक तो ऐसा कभी भी नहीं हुआ पूरा गांव मेरी मां की इज्जत करता है और उनके संस्कार के बारे में आए दिन मुझे अच्छी-अच्छी बातें सुनने को मिलती है तो अब ऐसा कैसे हो गया कि मेरी मां बहक गई यह बात मुझे कुछ समझ में नहीं आ रही,,,,( शालू एतराज जताते हुए बोली)
शालू मैं समझ सकता हूं तुम्हारी भावनाओं को किसी भी लड़की के लिए उसकी मां का इस तरह से किसी गैर से चुदवाने अच्छा नहीं लगेगा और इसीलिए तुम्हें भी मुझ पर और तुम्हारी मां पर क्रोध आ रहा होगा लेकिन मैं जो कह रहा हूं सच कह रहा हूं ईसमें भी तुम्हारी मां का कोई भी कसूर नहीं है,,,,
नहीं इसमें तुम दोनों का ही कसूर है,,,,
देखो शालू अगर तुम्हारे पिताजी तुम्हारी मां की जरूरतों को पूरा करते तो उनके कदम कभी भी नहीं बहकते,,,,
तुम कहना क्या चाहते हो सूरज,,?
देखो बुरा मत मानना मैं यही कहना चाहता हूं कि,, तुम्हारे पिताजी याने मेरे बड़े मामा इस लायक है ही नहीं कि तुम्हारी मां यानी मेरी सुधियां मामी के जिस्म की प्यास बुझा सके,,,
( अपने पिताजी की सूरज के मुंह से इस तरह से बेइज्जती भरे शब्द सुनकर शालू से रहा नहीं गया और वह गुस्से में बोली,,,,)
तब तो तुम्हारे बिलास मामा भी इस लायक नहीं होंगे कि तुम्हारी मंगल मामी के जिस्म की प्यास बुझा सके,,,,
क्या मतलब? ( सूरज आश्चर्य के साथ बोला)
मेरा मतलब यही है कि तब तो तुम्हारे बिलास मामा भी तुम्हारी मंगल मामी की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते होंगे तभी तो तुम अपनी मंगल मामी को भी चोदते हो,,,,
( शालू की यह बात सुनकर सूरज एकदम से सन्न रह गया,,, उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि वह क्या सुन रहा है,,, उसने एकाएक साइकल को ब्रेक लगा कर वहीं रोक दिया और शालू की तरफ देखने लगा,,)
कुछ देर के लिए तो सूरज को अपने कानों पर भरोसा ही नहीं हुआ कि शालू क्या कह रही है,,, वह एकाएक साइकल को ब्रेक लगाकर शालू को ही घूरने लगा,,, उसे यू घूरता हुआ देखकर शालू बोली,,,
क्यों क्या हुआ झटका लगा ना,,,,।( शालू व्यंग्यात्मक स्वर में बोली। सूरज को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले बस एक टक शालू को ही देखे जा रहा था,,, तभी कुछ पल तक शालू की तरफ देखने के बाद वह बोला,,,,)
शालू तुम यह क्या कह रही हो मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है,,,।( इतना कहते हुए,,, वह नजरें चुराकर साइकल पर पैडल मारने लगा क्योंकि साइकल रुक गई थी,,, सूरज के मन में अजीब सा डर पैदा हो गया क्योंकि जिस तरह से वह बोल रही थी उसे शंका सी होने लगी कि कहीं उसे उसके और उसकी मंगल मामी के बीच के संबंध के बारे में पता तो नहीं चल गया,,,, सूरज को यूं नजरें चुराता हुआ देखकर शालू बोली,,,,
क्यों अभी क्या हुआ अभी तुम्हारा दिमाग काम करना क्यों बंद कर दिया क्यों तुम्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा है अभी कुछ देर पहले तो तुम औरतों के सुख उनकी खुशी और मर्दों की नाकामयाबी के बारे में बहुत ज्यादा लेक्चर झाड़ रहे थे अब क्या हो गया,,,,,
( शालू के यह शब्द सुनकर सूरज बुरी तरह से सकपका गया था,,,,, साइकल के पैडल चलाते हुए साइकल आगे बढ़ा दिया और बोला,,)
तुम बेवजह मुझ पर इल्जाम लगा रहे हो ऐसा कुछ भी नहीं है मैं जानता हूं कि मेरा संबंध है तुम्हारी मां के साथ होने की वजह से तुम मनगढ़ंत कहानी बना रही हो,,,,
मैं कोई कहानी नहीं बना रही हूं बस तुम्हारा पाप तुम्हें याद दिला रही हूं,,,
बस करो शालू बेवजह की बातें बनाने की जरूरत नहीं है मैं जानता हूं कि तुम्हारी मां के साथ जो कुछ भी हुआ वह अनजाने में हुआ लेकिन यूं बेवजह मुझ पर कोई इल्जाम मत लगाओ,,,
मैं अपनी आंखों से देखी हूं सूरज,,,
आंखों से क्या मतलब है कि तुम अपनी आंखों से देखी हो तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम कुछ भी बोलोगेी और मैं विश्वास कर लूंगा जरा थोड़ा तो शर्म करो तुम किस पर इल्जाम लगा रही हो खुद मेरी मंगल मामी पर,,, वह मेरी मां जैसी है मैं भला ऐसा कैसे कर सकता हूं तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो,,
इल्जाम नहीं हकीकत है,, और वह देखने के बाद ही तो मैं समझ गई कि तुम्हारे लिए रिश्ते कुछ भी मायने नहीं रखते, जो इंसान खुद अपने ही मां समान औरत को चोद सकता है तो उसके लिए भला मामी चाची कौन सी बड़ी बात है,,,,
( सूरज शालू की बातें सुनकर मन ही मन घबराने लगा उसे यकीन हो चला था कि शालू उसे कहीं ना कहीं देख चुकी है मैं समझ नहीं पा रहा था कि आज तक उसकी और उसके मंगल मामी की रिश्ते के बारे में किसी को भी नहीं पता चला तो शालू कैसे जान गई यह तो गजब हो गया है अगर यह बात किसी और को पता चल गया तब तो वह किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह जाएगा उसके मन में यही सब गढ़ मतलब चल रहा था।)
देखो शालू मैं रिश्तो की बहुत कदर करता हूं हां तुम्हारी मां के साथ मतलब कि मेरी सुधियां मामी के साथ मैंने जो कुछ भी किया वह अनजाने में और बहकने की वजह से हो गया,,, यह बात तुम भी अच्छी तरह से जानती हो लेकिन यह झूठा इल्जाम तो मत लगाओ कि मेरे और मेरी मां समान है बचपन से उन्होंने मुझे मां जैसा प्यार किया है में उन्हें मां मानता हू बस उन्हें मामी कहकर पुकारता हू और उनके साथ मेरे संबंध है,,,
याद नहीं आ रहा है ना सूरज, चलो मैं ही याद दिला देती हूं,,,,( हवा से उड़ रही अपने बालों की लट को कान के पीछे ले जाते हुए बोली यह नजारा सूरज साइकल के शीशे में देख रहा था लेकिन इस समय अब उसकी खूबसूरती से ज्यादा उसका ध्यान उसकी बातों पर था)
याद है सुबह मैं दोपहर में बुआ को बुलाने आए थे मैं बार-बार दरवाजा खटखटाती रही लेकिन दरवाजा जल्दी नहीं खुला और जब खुला भी तो बुआ को जिस हाल में मैं देखी थी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी,, ( सूरज साइकल चलाते हुए बड़े ध्यान से शालू की बातों को सुन रहा था।) बुआ जब दरवाजा खोली तो,,, मेरी नजर सीधे उनकी बड़ी बड़ी चूचियां पर पड़ गई जो कि एक दम नंगी थी और जिसे छुपाने के लिए ऊपर से साड़ी डाल रखी थी,,,,( सूरज यह सुनते ही एक दम से चौंक गया वह समझ गया कि शालू सही कह रही है।)
मुझे यह देखकर बड़ा अजीब लगा,,, ना जाने क्यों मेरे मन में ऐसा लगने लगा कि कुछ गड़बड़ जरूर है क्योंकि तुम भी चादर ओढ़ के दूसरी तरफ मुंह फेर कर लेटे हुए थे,,,, मैं बातें तो बुआ से कर रही थी लेकिन कमरे के अंदर का जायजा भी ले रही थी तभी मेरी नजर बिस्तर के नीचे फेंकी हुई ब्लाउज पर पड़ी और मेरा शंका थोड़ा बहुत यकीन की तरफ जाने लगा,,,, बुआ भी थके होने का बहाना बना रही थी और मेरे साथ नहीं आई,,, और मैं वहां से चली गई,,,,
( सूरज शालू की हर एक बात को सुनकर पूरी तरह से घबरा चुका था पर समझ गया कि जो नहीं होना था वही हुआ है,, लेकिन फिर भी अपना बचाव करते हुए बोला।)
तुम पागल हो शालू,, सिर्फ इतना देखकर तुम कैसे अंदाजा लगा ली की मेरे और मेरी मंगल मामी के बीच गलत संबंध है,,, तुम तो अच्छी तरह से जानते हो कि कि गर्मी के मौसम में औरतें हमेशा गर्मी की वजह से अपनीे ब्लाउज निकाल कर ही सोती हैं,,,, और रही बात ब्लाउज फेकने की तो वह फेकी नहीं होगी बल्कि बिस्तर से नीचे गिर गई होगी,,,,, बस इतने से तुम कैसे अंदाजा लगा ले कि हम दोनों के बीच गलत संबंध है तुम्हें शर्म तक नहीं आई ऐसा इल्जाम लगाते हुए,,,
( सूरज साइकल चलाते हुए बोला,,,,)
मुझे भी यही लगा था सूरज,,, मैं बार-बार अपने मन को समझाने की कोशिश कर रही थी कि जो मैं देख रही हूं और समझ रही हूं भगवान करे ऐसा ना हो,,, मेरे मन में यही ख्याल आ रहे थे कि हो सकता है कि जो मैं देखी हूं सब गलत होता है गर्मी की वजह से ही बुआ अपनी ब्लाउज निकालकर फेकी हो,,, लेकिन यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि तुम इतनी गर्मी में भी और खुद ही कह रहे हो कि घर में में वह अपने ब्लाउज निकाल कर बिस्तर पर रख दी होंगी,,, और तुम ऐसे ही गर्मी में चादर ओढ़ कर पड़े थे,,,,
( इतना सुनकर सूरज सकते में आ गया क्योंकि जो वह कह रहा था गर्मी के कारण तो उसके विरोधाभास वह भी चादर ओढ़ कर ही लेटा था,, फिर भी वह अपना बचाव करने के लिए पूरा कसर करने पर आतुर था इसलिए वह बोला,,)
चलो मान लिया कि तुम जो देखी उसे गलत समझ ली लेकिन फिर भी तो तुम ने हम दोनों के बीच ऐसा कुछ नहीं देखी जो कि गलत हो फिर भी तुम ऐसे तुम यह नहीं कह सकती शालू कि हम दोनों गलत है,,,
तुम ठीक कह रहे हो सूरज,,, बुआ के इनकार करने के बाद भी वहां से चली गई लेकिन मेरा मन नहीं माना क्योंकि मेरे मन में शंका पैदा हो चुकी थी कि तुम दोनों के बीच जरूर कुछ गलत हो रहा है और मैं यही अपनी शंका को मिटाने के लिए वापस कमरे की तरफ आई,,,,
अंदर से तुम दोनों की खुशर फुसर की आवाज बाहर आ रही थी,,,, मुझसे रहा नहीं गया और मैं दरवाजे में बने छेद से अंदर कमरे में झांकने लगी,,,( शालू के मुंह से इतना सुनकर सूरज का दिल जोर से धड़कने लगा,, और शालू अपने शब्दों का बार किसी हथौड़े की मानिंद उसके कानों पर करते हुए बोली) और अंदर का नजारा देखकर तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन सरकने लगी मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि मैं इस तरह का नजारा देखूंगी,,,,( सूरज का दिल भय से जमने लगा था,, क्योंकि अब वह भी जानता था कि शालू क्या कहने वाली है।) मैं तो वह नजारा देखकर एकदम शर्म से पानी-पानी हो गई मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि सूरज और मंगल बूआ के आपस में इस तरह से गलत संबंध बनाएंगे,,,यह भी मे देख पा रही थी कि तुम्हारी मंगल मामी को, तुमसे चुदवाने में जरा भी शर्म महसूस नहीं हो रही थी बल्कि वह तो खूब मजे ले रही थी और तुम भी कितने मजे के साथ,, अपनी मां समान मामी की दोनों टांगो को फैला कर उनके ऊपर चढ़ कर उन्हें चोद रहे थे,,,,
यह सब मैं अगर अपनी आंखों से नहीं देखती तो जिंदगी में कभी भी यकीन नहीं कर पाती,,,
( सूरज शालू की बातें सुनकर एकदम से सन्न रह गया,,,) तुम इतने गंदे हो तुम्हारा भोला चेहरा देखकर कोई भी यकीन नहीं कर पाएगा,,,, अब क्या कहते हो सूरज तुम्हारे बिलास मामा भी तुम्हारी मंगल मामी की प्यास बुझाने में सक्षम नहीं है यह सच है?
( सूरज क्या बोलता है उसके पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था वह तो एकदम आवाक सा रह गया था, उसके सामने अब कोई भी रास्ता नहीं था शालू जो कुछ भी बोल रही थी वह सरासर सत्य था,, जिसे झूठ लाने के लिए उसके पास कोई भी बहाना नहीं था।,, वह खामोश ही रहा,, पल भर में ही उसके चेहरे की रंगत उड़ गई थी,,, उसे यूं खामोश देखकर शालू बोली,,)
क्यों क्या हुआ सूरज बोलती बंद हो गई अब नहीं बोलोगे कुछ,,,,, तुम और तुम्हारी मंगल मामी दोनों गंदे हैं दोनों के बीच के पवित्र रिश्ते को तार तार करते हुए एक मर्द और औरत के बीच का वासना का रिश्ता जोड़ लिए हो,,, तुम अपनी मां समान मंगल बूआ के साथ,,,चुदाई का खेल खेलकर यह साबित कर दिया कि तुम दुनिया के सबसे गंदे लड़के हो और मेरी बुआ सबसे गंदी औरत है जो कि समझदार होने के बावजूद भी इस पवित्र रिश्ते को रोकने की वजाए बढ़ाते जा रही है,,,,
सच कहूं तो तुम दोनों के बीच के यह अपवित्र रिश्ते को मैं अपनी मां से बताना चाहती थी,,, और इसीलिए उस दिन मौका देखकर उनके पीछे-पीछे जाने वाली थी लेकिन मुझसे पहले तुम उसके पीछे चलने लगे और मैं वहीं खड़ी हो गई यह देखने के लिए कि तुम क्या करती हो और जब तुम ऐसी वैसी हरकत करोगे तो मैं तुरंत आ जाऊंगी और गुस्से में सब कुछ बता दूंगी लेकिन वहां का नजारा देखकर मे दंग रह गई,,, मुझे लगा था कि तुम्हारी हरकत की वजह से मां तुझे डांटेगी और मैं सब कुछ बता दूंगी,,, लेकिन तुम्हारी गंदी हरकत के बावजूद भी मां तुमसे हंस कर बातें करने लगी और खुद ही झोपड़ी में जाने के लिए बोली तो मैं हैरान रह गई,,,,। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है तुम नहीं जानते सूरज कि मुझे अभी भी कितना ज्यादा क्रोध आ रहा है।,,,
( शालू की बातें सुनकर वैसे तो सूरज के पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था।)
अपनी सच्चाई के बारे में क्योंकि आज तक किसी को भी कानों-कान भनक तक नहीं हुई थी उस हक़ीकत को शालू जान चुकी थी यह जानकर सूरज को बहुत बड़ा झटका सा लगा था उसे लगने लगा था कि अगर शालू कभी भी आवेश में आकर किसी को भी उसके और उसकी मंगल मामी के बीच के गंदे रिश्ते को बता देगी तब क्या होगा अब तो वह दोनों पूरे परिवार की नजरों से नीचे गिर जाएगे। यह सोचकर सूरज काफी परेशान हुए जा रहा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह शालू को कैसे समझाएं कैसे मनाए कि इस राज को वह अपने अंदर ही राज बनाकर रखें,,, लेकिन वह जानता था कि शालू कभी भी नहीं समझेगी क्योंकि वह गुस्से में थी,,, वह काफी सोचने के बाद उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था लेकिन तभी उसके दिमाग में घंटी बजने लगी उसे उम्मीद की किरण नजर आने लगी उसके पास एक ही रास्ता था जिसको अपने मन में सोच कर उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई,,,,
लेकिन यह उम्मीद भी काफी ना उम्मीद कहीं बराबर थी लेकिन नामुमकिन बिल्कुल भी नहीं थी वह मन में यह सोच रहा था कि अगर शालू का मुंह बंद रखना है तो जिस तरह से उसने उसकी मां कि चुदाई किया है उसी तरह से शालू को भी अगर वह चोद दे,,, तब शालू उसकी और उसके मां के बीच के संबंध को राज ही रखेगी क्योंकि तब वह किसी से भी बताने लायक नहीं रह जाएगी,,,,,,
लेकिन कैसे मनाए यह उसे समझ में नहीं आ रहा था,, दोनों के बीच काफी लंबी खामोशी छाई हुई थी वह कम धीरे से अपनी साइकल को आगे बढ़ा रहा है ताकि उसके पास पर्याप्त मात्रा में समय बचे और वैसे अभी भी उसके पास काफी समय था आसमान में बादलों का झुंड तिरकट कर रहा था जो कि कभी भी बरस सकता था,,,, और वास्तव में सूरज यहीं चाहता था कि बारिश हो जाए,,,,,, शालू खामोश थी क्योंकि क्रोध में आकर उसने सूरज को लंबा चौड़ा भाषण सुना दी थी और तो और सूरज के गहरे राज को भी जान चुकी थी,,,, सूरज शालू को मनाना चाहता था लेकिन शालू का गुस्सा देखते हुए उसे यह नामुमकिन सा लग रहा था,,, लेकिन इस सफर के दौरान उसे मनाना भी बेहद जरूरी था लेकिन कैसे सूरज को कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था तभी उसके मन में ख्याल आया कि शालू जिस तरह से चुदाई की बातों को खुलकर कर रही थी,,,, जरूर उन बातों को करते हुए उसके तन-बदन में चुदास की लहर फैल गई होगी,,, और उसे मनाने का यही रास्ता भीं था सूरज जानता था कि औरतें और लड़कियां गंदी बातें को सुनकर धीरे-धीरे मस्त होने लगती है,,,
( इसी का उदाहरण था की वह कल रात अपनी बातों से रत्ना जैसी उम्रदराज और समझदार औरत को चोद सका,, तो ये शालू तो एक लड़की है,,)
अगर औरते गंदी बातें अच्छी लगने लगती है तो इसका मतलब है कि वह अपने आप ही अपना सब कुछ समर्पण करने के लिए तैयार हो जाती हैं। सूरज भी यही करना चाहता था,,, वह अपनी रसीली बातों से शालू को पूरी तरह से प्रभावित और उत्तेजित करके अपना काम निकालना चाहता था और यह सब उसे बहुत जल्दी करना था इसलिए वह शालू से बातों की शुरुआत करते हुए बोला,,,
मैं जानता हूं शालू कि मेरे पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं है लेकिन जैसा कि मैं तुम्हें बोला कि तुम्हारे पिताजी तुम्हारी मां के जिस्म की प्यास को नहीं बुझा सकते और तुम्हारी मां कि ठीक ढंग से चुदाई भी नहीं कर सकते ठीक उसी तरह जो तुम कह रही हो वह बिल्कुल ठीक है कि मेरे बिलास मामा भी मेरी मंगल मामी को ढंग से चुदाई का सुख नहीं दे सकते,,,, ( सूरज अपनी कामुकता भरी बातों का ध्यान शालू के ईर्द गिर्द फेलाने लगा,,, शालू उसकी बात को सुनने लगी,,, क्योंकि भले वह गुस्से में थी लेकिन सूरज की गंदी बातें उसे अच्छी लगती थी,,, सूरज अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)
देखो शालू जैसा कि मैं तुम्हें पहले भी बता चुका हूं कि औरतों को जिस तरह से पेट के लिए भूख लगती है उसी तरह से उन्हें,,, चुदवाने की भी भूख लगती है और ऊनकी रसीली बुर भी मोटे लंबे लंड के लिए तड़पती है,,,( सूरज जानबूझकर एकदम खुले शब्दों में बोल रहा था और साइकल में लगे शीसे में शालू के चेहरे की तरफ देख ले रहा था वह उसके हाव-भाव को देखना चाह रहा था कि उसके गंदे शब्दों को सुनकर उसके चेहरे के हाव-भाव कैसे बदलते हैं,,, और सूरज की खुल़ी गंदी बातों को सुनकर शालू के चेहरे का हाव भाव बदल रहा था जो कि सूरज को शीशे में साफ साफ नजर आ रहा था और उसके बदलते हुए चेहरे को देखकर उसके भी चेहरे पर मुस्कुराहट आने लगी थी,,,, वह अपनी बातों को और भी ज्यादा गंदा करते हुए बोला,,,,)
मेरी मंगल मामी भी मोटे तगड़े और लंबे लंड के लिए तड़प रही थी वह भी अपनी बुर में मोटा लंड डलवाकर जबरदस्त धक्कों के साथ चुदवाना चाहती थी,,, वह चाहती थी कि कोई जवान मर्द उसे अपनी बाहों में भर कर उसकी बड़ी-बड़ी गांड को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर अपने मोटा लंड को उसकी रसीली बुर में डालकर तेज धक्को के साथ उसे चोदे,,, ताकि उसकी बुर भलभलाकर पानी फेंकने लगे,,,,
( सूरज जानबूझकर इस समय सुधियां मामी के बारे में ना बोल कर खुद अपनी मंगल मामी के बारे में गंदी बातें कर रहा था ताकि मंगल मामी की गंदी बातें सुनकर शालू की बुर में भी पानी का सैलाब उठने लगे और शायद ऐसा हो भी रहा था,, वह साइकल के पीछे बैठे-बैठे कसमसा रही थी,, जो कि दोनों तरफ एक एक पैर करके बैठने की वजह से उसकी बुर हलके से खुल गई थी जो की खुला तो बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता था क्योंकि वह अभी तक पूरी तरह से कुंवारी थी,,, लेकिन जिस तरह से उसने अपनी जांघों के बीच हाथ ले जाकर शायद अपनी पेंटी को एडजस्ट करने की कोशिश की थी और यह हरकत सूरज शीशे में देख लिया था और वह समझ गया था कि उसकी गरम बातों का असर शालू पर होने लगा था। यह पक्के तौर पर अब यकीन हो गया जब शालू ने सूरज से उसकी गरम बातों को सुनकर बोली,,)
तुम्हें कैसे मालूम कि मंगल बूआ को जो तुम कह रहे हो उसकी जरूरत है,,,,।( शालू कसमसाहट भरी आवाज में बोली और उसकी यह बात सुनकर उसे बम के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव खेीलने लगे,, क्योंकि वह समझ गया कि शालू को भी उसकी बात अच्छी लगने लगी है और यही उसके पास मौका था वह बेहद खुश नजर आने लगा पलभर में ही उसे लगने लगा के पास उसके पीछे बैठी शालू इस समय कमर के नीचे बिल्कुल नंगी होती तो उसे पकड़ कर बैठी होती और तब उसे कितना मज़ा आता जब ऊसकी नंगी बुर उसके नितंबों से सटी होती और उसकी नरम नरम चिकनी जांगे उसकी जांघों से रगड़ खा रही होती,,,, पल भर में वह कल्पना के सागर में खोने लगा,, तो शालू फिर से उसे दोबारा अपना सवाल दोहराते हुए बोली,,,,
बोलो ना सूरज तुम्हें कैसे पता चला कि मंगल बूआ जो तुम कह रहे हो उसके लिए तड़प रही है,,,?