Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

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इस अनोखे हसीन अनुभव का पूरा स्वाद अभी दोनों ले ही रहे थे की तभी कुटिया में राजमाता कौशल्यादेवी ने प्रवेश किया!!!

राजमाता ने देखा तो रानी की चुत से वीर्य बहता जा रहा था। निश्चित रूप से इन दोनों को यह स्थिति में देखकर वह प्रसन्न नहीं हुई थी। उन्होंने जो भी किया था उससे एक बार के लिए ध्यान हटा भी लेती... पर चुत से जिस तरह से कीमती वीर्य बाहर निकल रहा था वह उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ। अंतिम मकसद से हर कोई भलीभाँति ज्ञात था फिर वीर्य को ऐसे जाया करने की गुस्ताखी क्यों???

राजमाता ने बड़े ही क्रोध के साथ महारानी को वहाँ से बाहर चले जाने का इशारा किया। मन में ही मन वह खुश थी की शक्तिसिंह आज वापिस जा रहा था। नहीं तो इन दोनों खून चख चुके जानवारों को चोदने से रोक पाना असंभव सा था। पिछले ४८ घंटों में काफी बार चुदाई हो चुकी थी और पर्याप्त मात्रा में वीर्य महारानी के गर्भाशय को पुष्ट कर चुका था। राजमाता को यह ज्ञात था की शक्तिसिंह हर बार कितनी मात्रा में वीर्य स्खलित करता था। महारानी का गर्भवती होना अब तय था।

अब इस खेल का प्रेक्षक बनने की या इसे जारी रहने देने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

काफी कोशिशों के बावजूद, राजमाता की नजर शक्तिसिंह के लंड से हट ही नहीं रही थी। अपने कपड़े उठाकर जैसे ही महारानी पद्मिनी कुटिया से बाहर निकली, राजमाता का समग्र ध्यान पत्थर पर लैटे शक्तिसिंह के चिपचिपे दैत्य पर केंद्रित हो गई।

पिछले दो दिनों के दौरान हुई भरसक चुदाई के बावजूद उन्होंने एक पल के लिए भी शक्तिसिंह के लंड को सुषुप्तवस्था में नहीं देखा था। जब भी देखा यह जानवर तनकर हमला करने के लिए तैयार ही रहता!! महारानी पद्मिनी के चुत के रस और वीर्य से सना हुआ लंड, खिड़की से आते हुए प्रकाश में चमक रहा था। लंड का कड़ापन देखते ही बनता था।

"यह मेरे लिए आखिरी मौका है कुछ करने का" राजमाता ने मन में सोचा... एक बार राजमहल में वापिस लौट गए तो इस तरह के किसी भी खेल को अंजाम देना नामुमकिन था।

वह इतने प्यार से आँखें भरकर शक्तिसिंह के लंड को देखे ही जा रही थी... पूरे जिस्म में झुरझुरी सी हो रही थी.. उनक्का अनुभवी भोंसड़ा भी कपकपा रहा था... चूचियाँ सख्त हो रही थी... इस नौजवान के नंगे जिस्म और उसके तंग हथियार को देखकर... वह अपने तजुर्बेदार जिस्म को शक्तिसिंह के ऊर्जावान शरीर के लिए ज्यादा योग्य समझती थी... देखते ही देखते उनके चूतड़ ऐसे आगे पीछे होने लगे जैसे शक्तिसिंह के समग्र लंड को अपने भीतर समाने के लिए तरस रहे हो!!

वह शक्तिसिंह के करीब आई... और उसका तेल, वीर्य और योनिरस से लिप्त लंड को अपने हाथों से सहलाने लगी। उस मिश्रित गिलेपन का स्पर्श होते ही राजमाता सिहर उठी।

"आज में इस जवान घोड़े को सिखाऊँगी की असली चुदाई कैसे होती है!!" अपने भूखे भोंसड़े को तृप्त करने के लिए तैयार करते हुए वह सोच रही थी

अपनी चोली की गांठ खोलकर, एक ही पल में उन्होंने अपने दोनों स्तन आजाद कर दिए!!!

पत्थर पर लैटे हुए शक्तिसिंह की छाती को सहलाते हुए राजमाता योग्य काम आसन के बारे में सोचने लगी। वह इस चुदाई को यादगार बनाना चाहती थी।

शक्तिसिंह की छाती पर दोनों हथेलियों को टीकाकर, उन्होंने अपनी जांघें फैलाई। उस सैनिक के शरीर के दोनों तरफ अपने पैर जमाकर वह धीरे धीरे नीचे की ओर आई। शक्तिसिंह के लंड के मुख का स्पर्श अपनी चुत के होंठों पर होते ही वह कपकपा उठी। अपनी उंगलियों से चुत के होंठों को फैलाकर, गरम भांप छोड़ते उस छेद मे उन्होंने सुपाड़े को अनुकूलित किया, और एक ही झटके में जिस्म का सारा वज़न डालकर वह शक्तिसिंह के ऊपर बैठ गई... इस क्रिया से शक्तिसिंह को तो तकलीफ नहीं हुई.. किन्तु सालों बाद उनके भोंसड़े को अचानक मिले इस विकराल मूसल को अपने में समाने में उनकी चीख निकल गई... दो पल के लिए राजमाता की आँखों के सामने अंधेरा छा गया...!!

अपने पति के देहांत के बाद कई सालों के पश्चात, उन्होंने अपनी योनी में एक पूर्ण तंदूरस्त और तगड़ा, धड़कता हुआ लंड, अपनी चुत में महसूस किया था।

राजमाता का सिर पीछे की और झुका हुआ था और वह एकदम स्थिर रहकर अपनी चुत में शक्तिसिंह के बड़े लंड के साथ अनुकूलन प्राप्त करने का प्रयत्न कर रही थी। उनके खुले स्तन शक्तिसिंह को न्योता दे रहे थे.. उनकी चोली अभी भी कंधे पर लटक रही थी।

राजमाता ने अपनी तर्जनी और अंगूठे से निप्पलों को कुरेदना शुरू कर दिया। उनकी चुत अब स्निग्धता का रिसाव करने लगी थी और उस गिलेपन के कारण अब शक्तिसिंह का लंड अब आसानी से उनकी चुत के अंदर हलचल कर सकता था।

राजमाता के चेहरे की त्वचा एक नई ऊर्जा के साथ बहते रक्त के प्रवाह से दीप्तिमान थी।।

कुटिया में चारों ओर शांति फैली थी... पर वह तूफान से पहले की शांति जैसी प्रतीत हो रही थी। राजमाता की चुत आकुंचन और संकुचन कर शक्तिसिंह के लंड के घेरे का जायजा लेने में व्यस्त थी। खिड़की से आती हुई ठंडी हवा, राजमाता की निप्पलों को अनोखा सुकून प्रदान कर रही थी। बड़े अंगूर जैसी उनकी निप्पल, दिखने में ऐसी रसीली थी की चूसते हुए मन ना भरे।

राजमाता के पेट का निचला हिस्सा, भीतर से निकलने वाले स्पंदनों से धीरे-धीरे फड़फड़ा रहा था।

जाँघें तनाव से तनी हुई थीं और वहाँ की मांसपेशियाँ हिलने-डुलने में दर्द के कारण खिंच गई थीं। वह उस पत्ते के सिरे पर जमी ओस की बूंद की तरह थी, जो गिरने के लिए बिल्कुल ही तैयार थी।

राजमाता अब शक्तिसिंह के लंड पर आरामदायक आसन में विराजमान हो गई थी और अपने संभोग प्रवास पर निकलने के लिए उत्सुक और तैयार थी। उन्होंने उसी स्थिति में रहकर, अपने घुटनों को पत्थर पर रख दिया और चूतड़ों को थोड़ा सा ऊपर नीचे कर यह सुनिश्चित किया की वह चुदाई के झटके आसानी से लगा सके।

शक्तिसिंह का सुपाड़ा अंदर फूलकर और गहराई तक जा घुसा। लंड की इस प्रतिक्रिया से राजमाता की आह निकल गई। उन्होंने सहसा अपने कूल्हों को उठाया और पटक दिया... आनंद की एक लहर उनके पूरे जिस्म में व्याप्त हो गई। योनिमार्ग भी अब स्निग्ध और विस्तारित होकर, लंड के आवागमन के लिए तैयार हो गया।

एक के बाद एक झटके लगाते हुए राजमाता की किलकारियाँ निकलने लगी।

"हाँ.. हाँ.. ऐसे ही...आहह... अंदर कैसा चुभ रहा है.. आह.." उनके चेहरे की मुस्कान को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था की उन्हे कितना मज़ा आ रहा था। अपनी आँखें बंद कर वह बेतहाशा लंड पर कूदे जा रही थी।

राजमाता अब पूर्ण नियंत्रण से शक्तिसिंह के लंड पर धक्के लगाते हुए अपनी भूखी चुत में उसे समाते हुए, भीतर के झलझले को शांत करने का भरसक प्रयत्न कर रही थी। चुत के अंदर ऐसी ऐसी जगह पर लंड जाकर टकराया की राजमाता के आनंद की कोई सीमा ना रही।

अंदर घुसा हुआ वह खंभे जैसे लंड, सालों से अतृप्त उनकी चुत को अनोखा सुख प्रदान कर रहा था। पिछले एक दसक से उन्हों ने लंड के आकार की भिन्न भिन्न वस्तुए अपने अंदर डालकर हस्तमैथुन का प्रयत्न कर लिया था पर इस असली जननेन्द्रिय जैसा आनंद किसी में नहीं मिला था।

शक्तिसिंह के लंड में जीवंतता, गर्माहट और एक कंपन युक्त स्पंदन था जिसे वह उस पर सवार होकर बहुत स्पष्ट रूप से महसूस कर सकती थी। उन्हों ने अपनी चूत मे लंड के पूर्ण आकार का अधिक बारीकी से अनुभव करने के लिए अपने कूल्हों को आक्रामक तरीके से हिलाया।

चुत के अंदर बह रहा योनिरस का झरना इसलिए बाहर नहीं आ रहा था क्योंकी शक्तिसिंह का लंड, राजमाता की चुत पर डट्टे की तरह फंसा हुआ था। जब राजमाता ने अपने कूल्हों को झटकों के दौरान इधर उधर घुमाया तब वह रस तेजी से नीचे बह कर शक्तिसिंह के टट्टों को गीला करने लगा।

ऊपर नीचे झटके लगाने के साथ वह अब आगे पीछे भी होने लगी। उनके चेहरे पर संतृप्ति और आनंद दोनों की रेखाएं थी। अपनी योनि की मांसपेशियों को संकुचित करते हुए उन्हों ने लंड को ऐसा दबोचा की शक्तिसिंह की आह निकल गई।

स्वबचाव में शक्तिसिंह ने राजमाता की जांघों को अपने हाथों से जकड़ लिया। तुरंत ही उसका ध्यान स्तनों पर गया। महारानी पद्मिनी के मुकाबले राजमाता के स्तन थोड़े से भारी, झुके हुए और बड़े थे। निप्पलों की लंबाई भी ज्यादा थी।

राजमाता अब हिंसक रूप से ऐसे धक्के लगा रही थी की शक्तिसिंह के सुपाड़े की चमड़ी एकदम से खींच गई। शक्तिसिंह को बेहद दर्द का अनुभव हुआ।

"राजमाता जी, मत कीजिए... !!" उसके चेहरे पर दर्द की शिकन स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी

राजमाता ने अपने झटके जारी रखे। दर्द के कारण शक्तिसिंह के सख्त लंड में थोड़ी सी नरमी जरूर आ गई थी पर वह इतनी आगे बढ़ चुकी थी की रुकने का कोई प्रश्न नहीं था। लेकिन वह चाहती थी की लंड की सख्ती बरकरार रहे।

अपने जिस्म पर चढ़कर कूदती हुई, कराहती हुई राजमाता को देखकर शक्तिसिंह स्तब्ध सा रह गया। उनके हर झटके के साथ उनके विराट स्तन ऊपर नीचे उछलते नजर आते थे। उनकी रेशमी गोरी त्वचा का स्पर्श उसे काफी आह्लादक महसूस हो रहा था। बादामी रंग की उनकी बड़ी बड़ी निप्पल काफी आकर्षक लग रही थी।

"आह" और "ऊँहह" कर उछल रही उस स्त्री को शक्तिसिंह देखता ही रहा!! अपना समग्र ध्यान चुदाई पर केंद्रित कर रही राजमाता को उसका फल मिल रहा था। सालों बाद उनकी चुत को ढंग का स्खलन प्राप्त हो रहा था।

राजमाता का मन यह भी सोच रहा था की राजमहल में लौटकर किसी भी तरह इस नौजवान का आनंद लिया जा सके। पद्मिनी को गर्भवती बनाने की व्यवस्था जिस तरह उन्होंने सुगठित की थी, बस उसी व्यवस्था को थोड़ा सा अधिक विस्तारित ही तो करना था!!

"ईशशश... आहह.... अममम... "वह झटके लगाते हुए अस्पष्ट आवाज़े निकाल रही थी। उन्होंने सोच रखा था की शक्तिसिंह को वह सिर्फ अपने तक ही आरक्षित रखेगी। महारानी को इस पर कोई अधिकार नहीं मिलेगा। बहुत सह ली तनहाई... अब इस नए खिलौने से केवल वही खेलेगी!!

राजमाता ने अपनी आँखें खोली। शक्तिसिंह के उनके उरोजों को देखते हुए पाकर वह मुस्कुरा उठी। उन्होंने अपना जिस्म थोड़ा सा नीचे की तरफ झुकाकर स्तनों को उसके चेहरे के सामने पेश कर दिया। शक्तिसिंह आश्चर्यसह उन्हे देखता ही रहा।

"लो, यह तुम्हारे लिए ही है.." शक्तिसिंह को आमंत्रित करते हुए वह बोली। भारी और थोड़े से झुके हुए वह स्तनों को गुरुत्वाकर्षण ने शक्तिसिंह के चेहरे के बिल्कुल करीब ला दिया।

"में ये नहीं कर सकता राजमाता जी" शक्तिसिंह ने कहा

"करना ही होगा... वरना में महाराज से शिकायत कर दूँगी की तुमने उनकी महारानी को टाँगे चौड़ी कर हद से ज्यादा चोदा है" अभी भी झटके लगाते हुए वह यह कहते हुए हांफ रही थी ।

शक्तिसिंह के चेहरे पर एक कुटिल सी मुस्कुराहट छा गई। उसका लंड अब दोबारा पूर्ण रूप से सख्त होकर राजमाता के भोंसड़े में नई मंज़िलें हासिल कर रहा था। महारानी को चोदने में मज़ा आया था पर राजमाता के अनुभव का मुकाबला करने में वह सक्षम नहीं थी।

राजमाता ने अपनी चुत के स्नायु को भींच कर अपनी पकड़ को लंड पर और मजबूत कर लिया।

"यह उचित नहीं होगा राजमाता" सहम कर शक्तिसिंह ने कहा। अपने ऊपर सवार वह स्त्री, उसकी राजमाता होने के साथ साथ, उसके बचपन के दोस्त की माँ भी थी। हालांकि उसकी इस हिचकिचाहट को राजमाता के स्तन, ठुमक ठुमक कर तोड़ रहे थे।

"उचित तो यह भी नहीं है की ऐसी गरमाई औरत को तुम आनंद से वंचित रखो" अपने स्तनों को मसलते हुए और निप्पल को खींचते हुए कराहते हुए राजमाता ने कहा

"आप अतिसुंदर और कामुक है, इस बात में कोई दो राय नहीं है" राजमाता के हाथों का स्पर्श करते हुए शक्तिसिंह ने कहा "लेकिन...."!!!

"लेकिन वेकीन कुछ नहीं... उस पद्मिनी के साथ तो तुम्हें कोई संकोच नहीं हो रहा था... तो अब किस बात की झिझक है तुम्हें... अगर तुम मेरा स्वीकार नहीं करोगे तो में इसे अपना अपमान मानूँगी" मध्यम आक्रोश के साथ राजमाता ने कहा। वह उसे एक साथ धमका भी रही थी, मना भी रही थी, विनती भी कर रही थी और उत्तेजित भी कर रही थी।

शक्तिसिंह ने अपने हथियार डाल दिए... उसने अपने दोनों हाथों से उनके स्तनों को पकड़ा और निप्पलों से खेलने लगा।

"यही चाहती है न आप?" उसने नीचे से एक धक्का देते हुए कहा। हालांकि राजमाता के शरीर के वज़न के कारण वह ठीक से धक्का लगा न पाया।

उसने राजमाता के मांस के दोनों विशाल ढेरों को अपने हाथों में मजबूती से पकड़कर ऊपर की ओर धकेला। अपनी बाहें फैलाकर उन्हे अपने ऊपर उठाते हुए धक्का दिया। ऐसा करते वक्त उनके स्तनों को दबाने में उसे अत्यधिक आनंद आया।

राजमाता मुस्कुरा दी और कुछ क्षणों के लिए धक्के लगाने बंद किए ताकि शक्तिसिंह ठीक से उनके स्तनों का मुआयना कर सके।

राजमाता को रुका हुआ देख, शक्तिसिंह ने मौका ताड़कर नीचे से जोरदार धक्का लगा दिया। महारानी की सिसकी निकल गई... "आह... " करते हुए उन्होंने वापिस धक्के लगाना शुरू किया और नियंत्रण प्राप्त किया।

लकड़े में चल रही आरी की तरह शक्तिसिंह का लंड राजमाता की चुत के अंदर बाहर हो रहा था। उनका चिपचिपा स्निग्ध योनिमार्ग, लंड के इस आवागमन का योग्य जवाब दे रहा था। शक्तिसिंह के मजबूत हाथों ने अभी भी उनके स्तनों को जकड़ रखा था।

शक्तिसिंह ने बड़ी ही मजबूती से राजमाता के जिस्म को पकड़े रखा था... उनका पूरा जिस्म ऊपर उठ गया था और शरीर का निचला हिस्सा पत्थर पर टीके घुटनों के कारण संतुलित था। राजमाता ऐसे पिघल रही थी जैसे गर्मियों में बर्फ।

उनकी चुत अब काफी मात्रा में रस का रिसाव करने लगी थी। अंदर से कई धाराएँ बहती हुई दोनों की जांघों को आद्र कर रही थी। आँखें बंद कर अपना सारा ध्यान झटके लगाने पर केंद्रित कर वह अपनी निश्चित मंजिल की ओर यात्रा कर रही थी।

वह चाह रही थी की लंड को बाहर निकालकर वह अपना मन भरने तक उसे चूसे... पर कुछ ही समय पहले यह लंड महारानी की चुत के रस से सना हुआ था और वह अपनी पुत्रवधू के चुत के रस को अपने मुंह में भरना नहीं चाहती थी उस वजह से उन्होंने उस प्रलोभन को ज्यादा महत्व न दिया।

पर अब वह जिस पड़ाव पर पहुँच चुकी थी, उस तरह के विचार ज्यादा मायने नहीं रखते थे। चुदाई के नशे ने उन्हे बदहवास बना दिया था। वह कई बार स्खलन के करीब पहुंची पर स्खलित हो नहीं पा रही थी।

उनकी गर्दन अब पीछे की तरफ झुक गई... आँखें ऊपर चढ़ गई... वह अब कैसे भी कर चरमसीमा के उस महासुख को प्राप्त करने के लिए बेचैन हो उठी थी।

अपने गर्भाशय की मांसपेशियों को सिकुड़कर छोड़ते हुए उन्हे कई तरह के रस चुत में बहते हुए महसूस किए। स्खलन अभी भी करीब नजर नहीं आ रहा था। उनका चेहरा हिंसक और विकृत हो चला था और उसे देखकर शक्तिसिंह एक पल के लिए डर गया। उसे लगा शायद स्तनों पर ज्यादा जोर देने की वजह से ऐसा हुआ है। यह सोचकर उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी।

राजमाता ने अपना सिर आगे की ओर झुकाकर अपने बालों को शक्तिसिंह के चेहरे पर गिरा दिया। बालों में डाले सुगंधित तेल की खुशबू से उसके नथुने भर गए।

राजमाता अभी भी गुर्रा रही थी... वह स्खलित होना चाहती थी... अपना सारा आवेश पिघला कर चुत से बाहर निकालना चाहती थी...

वह अब अपनी हथेलियों को पत्थर पर रखकर और नीचे झुक गई...

"शक्ति बेटा... जल्दी से चोदो मुझे... " उन्होंने शक्तिसिंह के कानों में कहा

अपने लंड की भावनाओ को नजर अंदाज किए शक्तिसिंह, राजमाता की इस विकराल, भूखी अवस्था को देखने में व्यस्त था। जिस कदर वह चरमसीमा को पहुँचने के लिए तड़प रही थी, वह देखकर शक्तिसिंह अभिभूत हो गया।

उसने कमर उठाकर नीचे से झटके लगाना शुरू किया। हर झटके के साथ उसकी कमर नीचे पत्थर से टकराकर आवाज करती... उसी पत्थर पर राजमाता और महारानी के भोग का काफी रस जमा हो गया था।

राजमाता के दोनों स्तन उसकी छातियों से दब गए थे। कंधे पर अभी भी लटक रही चोली का कपड़ा, बार बार उनके बीच में आकार विक्षेप कर रहा था। शक्तिसिंह ने राजमाता की पीठ के पीछे से चोली को निकालना चाहा पर कर ना पाया। वह बिना किसी चीज की दखलंदाज़ी के, राजमाता के भरे हुए उरोजों का आनंद लेना चाहता था।

राजमाता की बस अब एक ही चाह थी... की शक्तिसिंह तीव्र गति से उन्हे चोदे और जल्द से जल्द स्खलित कर दे।

"हाँ बेटा... ऐसे ही.. अपनी राजमाता को चोदो... सुख दो उन्हे... उनके बिस्तर का सूनापन खतम कर दो.. " राजमाता भारी आवाज में बोली

शक्तिसिंह को मज़ा बहुत आ रहा था पर राजमाता ने "बेटा" शब्द का उल्लेख कर उसे थोड़ा चोंका दिया।

"यह जो कुछ भी कर रहे है हम, उसे आज तक ही सीमित रहने दीजिएगा" शक्तिसिंह ने राजमाता की आंखो में देखकर कहा

"नहीं.. में अब बिना चुदे नहीं रह सकती... " राजमाता ने शक्तिसिंह की गर्दन पर चुंबनों की वर्षा कर दी।

"आज से तुम रोज चोदोगे मुझे.. "

"लेकिन आप तो मुझे वापिस भेज रही है आज" शक्तिसिंह ने असमंजस में पूछा। उसके हाथ राजमाता के स्तनों को मसल रहे थे।

"वह इसलिए की बहु का साथ तुम्हारा काम अब समाप्त हो गया है। अब में तुम्हें अपने लिए रखना चाहती हूँ" राजमाता ने धक्के लगाते लगाते हांफते हुए कहा

इस बातचीत के कारण विचलित होने की वजह से राजमाता का स्खलन तक पहुंचना और कठिन होता जा रहा था।

"सास को बहु से जलन हो रही है... है ना!!" शक्तिसिंह ने राजमाता की चुटकी लेते हुए कहा

राजमाता ने क्रोधित होकर शक्तिसिंह के सामने देखा... उनका चेहरा गुस्से से तमतमा गया था। पर हवस उनपर इस कदर सवार हो चुकी थी की वह अब कुछ भी अतिरिक्त बोल कर अपने सफर को रोकना नहीं चाहती थी।

शक्तिसिंह ने अपना सिर ऊपर कर राजमाता की निप्पल को मुंह में ले लिया और चटकारे मारकर चूसने लगा। राजमाता उसे अपनी निप्पल से दूर करना चाहती थी पर शक्तिसिंह ने उनके चूतड़ों को इतनी मजबूती से पकड़े रखा था की वह अपनी निप्पल छुड़वा नहीं पा रही थी। उसकी चुसाई के बदौलत उनकी चुत में बाढ़ सी आ गई थी।

"आह्ह... शक्तिसिंह... "

शक्तिसिंह ने देखा तो उनका चेहरा अब छत की ओर था और वह आँखें बंद कर धमाधम उछल रही थी। उसने निप्पलों को बारी बारी चूसना जारी रखा।

शक्तिसिंह का लंड राजमाता की चुत में तूफान मचा रहा था। साथ में उनकी दोनों निप्पलों को मुंह में भरकर चूसे जा रहा था। उसके मजबूत हाथ राजमाता के भारी चूतड़ों को दबोचे हुए थे। राजमाता को अपनी मंजिल नजदीक आती नजर आई। इस पुरुष से चुदने पर, की जिसने उसकी बहु को भी उनके सामने चोदा था, राजमाता को अजीब तरह से उत्तेजित कर रहा था। और अब वह उसे अपने महल में खिलौने की तरह खेल पाएगी, इस संभावना का ज्ञान होने पर उन्हे बेहद खुशी मिल रही थी। वह अब जब चाहे अपने जिस्म को, शक्तिसिंह का उपयोग कर गुदगुदा सकती थी और संतुष्ट भी कर सकती थी।

"आहह बेटा.. हाँ... ऊई... अममम... हाय... आह्ह" राजमाता की चुत का बांध टूट गया... उनके अंदर भड़क रहे वासना के ज्वालामुखी का लावारस उनकी चुत से फव्वारे की तरह छूटा। शक्तिसिंह को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसके टट्टों पर किसी ने गरम पानी डाल दिया हो... थरथराती हुई राजमाता झटके मारते हुए स्खलित हो गई।

राजमाता थकान के मारे चूर होकर शक्तिसिंह के बगल में लाश की तरह गिरी.. उनका सम्पूर्ण शरीर क्षुब्ध हो गया था..

लेकिन शक्तिसिंह अभी स्खलित नहीं हुआ था...

वह अब राजमाता के ऊपर आ गया.. उनकी आँखें बंद थी इसलिए वह ये देख ना पाई। शक्तिसिंह ने तुरंत उनकी दोनों जंघाओं को विपरीत दिशा में खींचकर चौड़ा किया और अपना लंड एक झटके में राजमाता की शाही गुफा में अंदर तक घुसेड़ दिया।

अचानक से थकी चुत में हमला होते महसूस कर, राजमाता ने अचंभित होकर आँखें खोली। अपने ऊपर सवार इस सैनिक को देखकर वह उसकी ऊर्जा और शक्ति से अभिभूत हो गई।

शक्तिसिंह ने अब न आव देखा न ताव... जंगली घोड़े की तरह उसने राजमाता के चिपचिपे भोंसड़े में लगातार धक्के लगाने शुरू कर दिए। साथ ही वह उनके स्तनों पर भी टूट पड़ा... ताज़ा स्खलन से उभरी राजमाता की निप्पल काफी संवेदनशील हो गई थी पर इस बात से शक्तिसिंह को कोई फरक न यही पड़ता था। उसने दोनों स्तनों को जगह जगह पर चूमते और चाटते हुए निप्पलों को काटना शुरू कर दिया। राजमाता कराहने लगी... वासना का बहुत सिर से उतार जाने के बाद, इस तरह का वैशिपन बर्दाश्त करने में उन्हे कठिनाई हो रही थी... पर वह कुछ भी कर सक्ने की स्थिति में ना थी। नियंत्रण की डोर शक्तिसिंह के हाथ में थी। उसने बार बार शक्तिसिंह को अपने हाथों से रोकना चाह तब शक्तिसिंह ने मजबूती से उनके दोनों हाथों को नीचे दबा दिया और चोदने लगा।

लगातार पंद्रह मिनट तक जोरदार चुदाई के बाद शक्तिसिंह के लंड ने झाग छोड़ दिया... राजमाता का पूरा भोंसड़ा शक्तिसिंह के वीर्य से भर गया!! हालांकि रजोनिवृत्ति पार कर गई राजमाता को गर्भवती होने का कोई डर नहीं था वह गनीमत थी।

पसीने से लथबथ और हांफता हुआ शक्तिसिंह, राजमाता के बगल में सो गया... उसकी साँसे अभी भी काफी तेज चल रही थी। राजमाता ने शक्तिसिंह के लंड को प्यार से पकड़ा और उसे आहिस्ता आहिस्ता हिलाते हुए उसका बच कुछ वीर्य बाहर निकालने में मदद करने लगी। अपने वीर्य से सने हाथ उसने स्तनों पर पोंछ लिए। और फिर अपनी निप्पल शक्तिसिंह के मुंह में दे दी। काफी समय तक दोनों उसी अवस्था में पत्थर पर पड़े रहे।

राजमाता ने जैसे अपना खोया हुआ आत्मविश्वास प्राप्त कर लिया था।

"आत्मविश्वास बहाल करने के लिए संभोग और स्खलन से बेहतर और कुछ नहीं" चन्दाी मुस्कुराहट के साथ राजमाता सोच रही थी...

वह अब नए सिरे से पुनर्जीवित और शक्तिशाली महसूस करते हुए राज्य की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए पुनः तैयार हो गई थी...

-- समाप्त --

सुबह का आगाज होते ही, शक्तिसिंह अपने खेमे के साथ सूरजगढ़ की तरफ चल पड़ा। अपने तंबू में बड़े ही आराम से, संभोग की थकान उतारते हुए राजमाता, अपने पलंग पर लैटी हुई थी। एक अद्वितीय सी संतृप्ति उनके सोये हुए चेहरे से झलक रही थी। संभोग के पश्चात आती निंद्रा सब से उत्कृष्ट होती है। उन्होंने ओढ़ी हुई मखमली चद्दर के नीचे वह नग्नावस्था में सोई हुई थी। जबरदस्त चुदाई के कारण उनका शरीर इतना संवेदनशील हो चला था की वह अपने शाही जिस्म पर वस्त्र भी बर्दाश्त नही कर पा रही थी। उनके गुप्तांग में अभी भी मीठे दर्द की झुरझुरी सी चल रही थी।

तंबू के करीब से गुजरते हुए घोड़ों के कदमों की आवाज से उनकी नींद खुल गई। अपनी दोनों जांघों को आपस में घिसकर वह अपनी योनि में लिप्त आद्रता को महसूस करते ही मुस्कुरा उठी। उन्होंने करवट ली और तकिये पर अपनी कोहनी रखकर जिस्म को उसके ऊपर टीकाकर वह गहरी सोच में डूब गई। उन्हे यकीन था की शक्तिसिंह के साथ उन्होंने जो कारनामा किया था उसका समाचार महारानी पद्मिनी के कानों तक जरूर पहुँच चुकी होगी। स्त्री-सहज ईर्षा और मालिकी-भाव से पीड़ित होकर महारानी जरूर कुछ ना कुछ करना चाहेगी, पर कर नही पाएगी। ज्यादा से ज्यादा वह इसके बारे में राजा कमलसिंह को बता देगी... फिर भी राजमाता आश्वस्त थी की कोई उनका कुछ भी बिगाड़ न पाएगा। उनका पुत्र, राज्य के सारे कारभार के लिए उन पर निर्भर था और वह उनके विरुद्ध जाने की हिम्मत नही कर पाएगा।

शक्तिसिंह रूपी खिलौना प्राप्त कर राजमाता इतनी आनंदित थी की वह किसी भी सूरत में उसे अपने पास से किसी को छीनने नही देने वाली थी। उनका शातिर दिमाग, उत्पन्न होने वाली सारी समस्याओं की कल्पना कर चुका था और उसके हल भी ढूंढ चुका था। फिलहाल वह कुछ दिनों के लिए इस जगह पर आराम कर, वापिस लौटना चाहती थी। जिस काम के लिए यहाँ तक आए थे, वह काम तो बीच रास्ते ही मुकम्मल हो चुका था। इसलिए यहाँ ज्यादा समय व्यतीत करने का कोई कारण नही था। वह बस इतना ही वक्त बिताना चाहती थी जो महाराज को यकीन दिलाने के लिए काफी हो। वैसे महारानी के गर्भवती होने की संभावना का पता चलते ही, महाराज ज्यादा कुछ पृच्छा करे ऐसी गुंजाइश कम ही थी।

वहाँ अपने तंबू में लैटे हुए, दासी से पैर दबवा रही थी और उनके मुंह से चुगलियाँ सुन रही थी। दासी ने बड़े ही चाव से, चटकारे लेते हुए, सारा किस्सा सुनाया। हालांकि जिस वक्त शक्तिसिंह और राजमाता उस कुटिया में चुदाई कर रहे थे, तब वहाँ कोई मौजूद नही था, पर उनकी कराहने की आवाज, राजमाता की बाहर तक सुनाई देती सीसीकियाँ, और जब वह दोनों बाहर निकले तब जिस तरह उन दोनों के वस्त्र अस्त-व्यस्त थे, वह देखकर कोई अबुद्ध व्यक्ति भी समझ सकता था की अंदर क्या गुल खिलाए जा रहे थे। राजमाता का खौफ इतना था की कोई खुले मुंह ऐसी बातों को जिक्र करने से बचता।

"हाय... जरा घुटनों के ऊपर तक दबा.. बहुत दर्द हो रहा है!!" महरानी ने आह भरते हुए कहा

"जी रानी साहिबा... आप कहो तो गुनगुने तेल से थोड़ी मालिश भी कर दूँ?"

"थोड़ी देर बाद... तू यह बता की जब राजमाता और शक्तिसिंह बाहर निकले तब उनका हाल कैसा था?"

"क्या बताऊ? शर्म आती है मुझे" खिलखिलाकर हँसते हुए दासी बोली

"ज्यादा होशियार मत बन... मुझे सब पता है तू रात को जंगल में उस घुड़सवार के साथ जाकर क्या क्या करती है.. चुदवा चुदवा कर तेरे कूल्हे कितने बड़े हो गए है.. और अब बात करने में शर्म आ रही है तुझे!!"

"क्या महारानी जी, आप भी!! अरे वो दोनों जब बाहर निकले तब में उस घने पेड़ के पीछे से देख रही थी... शक्तिसिंह तो ठीकठाक दिख रहा था पर राजमाता का घाघरा सिलवटों से भरा हुआ था.. चोली भी ठीक से नही बांधी थी.. और बाल बिखरे हुए थे। चलते चलते वह लड़खड़ा रही थी। ही..ही.. ही.. लग रहा था की बड़ी ही दमदार चुदाई हुई होगी राजमाता की" हँसते हँसते दासी ने विवरण दिया

"और उसके बाद क्या हुआ?"

"उसके बाद तो शक्तिसिंह अपने तंबू में चला गया और राजमाता अपने तंबू में... कब से खर्राटे मारकर सो रही है.. सभी दासियों को आदेश दिया गया है की जब तक वह सामने से न बुलाए, कोई उनके तंबू में नही जाएगा..."

"हम्ममम... " रानी ने अपनी टांगों को मुड़कर अपने घाघरे को थोड़ा सा ऊपर तक उठा दिया..

"तू ठीक से मालिश कर.. तेरे हाथों में अब पहले वाला जोश नही रहा"

"क्या बात कर रही हो रानी जी... मेरा जोर तो पहले जैसा ही है... शायद आज भारी परिश्रम के कारण दर्द कुछ ज्यादा ही हो रहा है आपको.. ही..ही..ही.."

"बड़ी हंसी आ रही है तुझे... लगता है राजमहल पहुँच कर तेरा तबादला रसोईघर में करना पड़ेगा..."

"क्षमा कीजिए महारानी जी, अगर कोई गुस्ताखी हो गई हो तो... पर कृपया मुझे रसोईघर में ना भेजे... वह खानसामा पूरा दिन इतना काम करवाता है और रात को भी चैन नही लेने देता..."

"क्या बात कर रही है!! वो बूढ़ा बावर्ची भी चढ़ता है क्या तुझ पर?"

"अरे बात ही जाने दीजिए.. कमीना सिर्फ चेहरे से ही बूढ़ा है... पर उसका हथियार एकदम सख्त और हिंसक है... एक बार चढ़ाई करता है तो दो दिन तक में ठीक से चल नही पाती... "

"ठीक है, ठीक है... अब बातें कम कर और हाथ तेजी से चला... ऊपर जांघों तक मालिश कर.. और फिर कमर पर जरा तेल लगा दे... पूरा जिस्म दर्द कर रहा है आज तो.. "

महारानी पद्मिनी अब करवट लेकर उल्टा लेट गई। दासी उनके ऊपर सवार होकर दोनों हाथों से कमर पर तेल मलने लगी।

"जरा घाघरा नीचे सरका दीजिए ताकि में आपके पिछवाड़े पर ठीक से मालिश कर सकूँ"

महारानी ने अपना नाड़ा खोला और घाघरे को नीचे की तरफ सरका दिया

"हाय... कैसे गोरे गोरे चूतड़ है आपके महारानी जी... ऐसा लग रहा है जैसे मक्खन के दो पिंड हो.. "

"तू ज़बान कम चला अपनी... "महारानी थोड़ी शर्मा गई

दोनों कूल्हों पर गुनगुना तेल घिसते हुए दासी ने दोनों चूतड़ों को हल्का सा फैलाया... महारानी का बादामी रंग का छेद नजर आते ही वह मुस्कुरा दी... तेल की कुछ धाराएँ उस छेद तक जाने दी... और उंगली से उसके इर्दगिर्द मलने लगी...

"हाय... क्या कर रही है रे तू?" गांड के छेद पर स्पर्श होते ही महारानी सिहर उठी...

"अरे मालिश कर रही हूँ... कोई भी कोना छूटना नही चाहिए.. नही तो फिर आप ही वापिस रसोईघर में भेजने की बात कहेगी"

"पर देख तो सही तू कहाँ उंगली कर रही है!!"

"आप कहे तो ना करू"

"अमम करती जा.. पर जरा संभाल कर"

"जी महारानी"

दासी ने कुछ देर तक गांड के छिद्र पर गोल गोल उंगली घुमाई... महारानी को इतना मज़ा आने लगा... कभी सोचा नही थी उन्होंने की इस जगह से भी मज़ा लिया जा सकता था... हालांकि उन्होंने काम-शास्त्र के पठन के वक्त, गुदा-मैथुन के बारे में सुना जरूर था... पर दासियों के मुंह से भी यह बातें भी सुनी थी की यह कितना दर्दनाक होता है॥

दासी ने छिद्र को तेल से लसलसित कर अपनी उंगली को धीरे से अंदर घुसा दिया।

"ऊईई माँ... क्या कर रही है तू... " रानी थरथरा गई

"थोड़ा सा तेल अंदर डाल रही हूँ... इससे आपको अच्छा भी लगेगा और सुबह मलत्याग में भी सरलता रहेगी"

महारानी कुछ भी बोले बगैर उस अनोखे एहसास को महसूस करते हुए लैटी रही... इतना आनंद आ रहा था की वह चाहती थी यह मालिश चलती ही रहे। कुछ देर अंदर बाहर करने के बाद दासी ने उंगली बाहर निकाल ली और चूतड़ों पर मालिश करने लगी।

"तूने उंगली डालना बंद क्यों कर दिया?"

"मुझे लगा की आपको तकलीफ हो रही होगी... इसलिए... " दासी ने सकपकाकर कहा

"थोड़ी देर और कर... ठीक से तेल जाने दे अंदर"

"ठीक है महारानी साहिबा" दासी ने आश्चर्यसह वापिस अपनी उंगली अंदर डाल दी।

दासी ने देखा की जब भी वह उंगली गांड के अंदर डालती तब महारानी के चुत के होंठ भी सिकुड़ जाते... उंगली बाहर निकालते ही वह पूर्ववत हो जाते। कुछ देर ऐसा करने पर उनकी चुत के होंठ और झांटों पर गीलापन नजर आने लगा। दासी समझ गई की क्यों महारानी ने वापिस उंगली करने को कहा। वह मन ही मन मुस्कुराने लगी।

"जरा तेजी से आगे पीछे कर" भारी आवाज में महारानी ने कहा।

दासी ने आदेश का पालन किया। उसने देखा की महारानी ने अपने एक हाथ से स्तन को धर दबोचा था और वह चोली के ऊपर से ही अपनी निप्पल को मरोड़ रही थी। पता चल गया की क्यों दोबारा उन्होंने गांड में उंगली करने को कहा!! महरानी को इसमे बेहद मज़ा आ रहा था। दासी भी इस नई खोज पर खुश हो गई... महारानी को खुश रखने पर... आए दिन वह तोहफे दिया करती थी। किस्मत अच्छी रहे तो कभी कभार एकाद सुवर्ण मुद्रा भी मिल जाती थी।

दासी ने अपनी उंगली तेजी से अंदर बाहर करना शुरू कर दिया... साथ ही साथ वह थोड़ा थोड़ा तेल भी डालती रहती ताकि महारानी के गांड के छेद को जरा सी भी तकलीफ ना हो। महारानी पद्मिनी अब आँखें बंद कर आहें भर रही थी। उनकी चुत भी अच्छी खासी मात्रा में द्रवित हो चुकी थी। साथ साथ वह अपने घुटनों के सहारे चूतड़ों को ऊपर नीचे करते हुए, दासी की उंगली के साथ ताल मिला रही थी। महारानी के पूरे जिस्म में खून तेजी से दौड़ रहा था... पूरा जिस्म पसीने और तेल से तरबतर हो चुका था। महारानी को इस स्थिति में देखकर दासी की जांघों के बीच भी चुनचुनी होने लगी। वह अपने घाघरे के ऊपर से ही अपनी चुत को बारी बारी दबा कर उसे चुप बैठने के लिए कह रही थी...

महारानी की चुत का सब्र का बांध अब टूटने ही वाला था। इस नए अनुभव को उनका शरीर बड़े ही चाव से महसूस कर रहा था... उनकी निप्पल कड़ी होकर चोली के भीतर बगावत कर रही थी। उनकी चुत सिकुड़ सिकुड़ कर किसी भी वक्त अपना इस्तीफा देने की धमकी दे रही थी। शरीर तेजी से कांप रहा था... उलटे मुंह लेटी महारानी हर सांस के साथ कराह रही थी। स्खलन बेहद नजदीक दिखाई पड़ रहा था...

तभी अचानक पीछे से आवाज आई...

"क्या हो रहा हैं यहाँ?" राजमाता की सत्तावाही आवाज ने दोनों को चोंका दिया

दासी ने तुरंत पास पड़ी चादर से महारानी के खुले चूतड़ ढँक दिए, पलंग से उठ खड़ी हुई और गर्दन झुकाकर खड़ी हो गई... राजमाता चलते चलते पलंग के करीब आई... उनके इस खलल से महारानी थोड़ी सी क्रोधित जरूर हुई पर गुस्से को व्यक्त करने की हिम्मत नही थी। उन्होंने अपने ऊपर पड़ी चद्दर को पकड़े रखा और करवट लेकर सीधी हो गई।

"वो जरा मालिश करवा रही थी में... !!" बड़ी सहजता से महारानी ने कहा

"तुम अब जा सकती हो" राजमाता ने दासी से कहा। दासी सलाम कर वहाँ से चली गई।

राजमाता का मन यह सोच रहा था की अगर मालिश ही हो रही थी तो महारानी इतनी बुरी तरह कराह क्यों रही थी!!

"महारानी, में तुम्हें यह पूछने आई हूँ की क्या तुम शक्तिसिंह द्वारा किए हुए कार्य से संसतुष्ट हो?"

रानी का मन द्विधा में यह सोच रहा था की राजमाता किस तरह की संतुष्टि की बात कर रही थी

कोई उत्तर ना मिलने पर राजमाता ने खुद ही स्पष्टीकरण किया

"क्या तुम्हें विश्वास है की तुम गर्भवती हो जाओगी?"

थोड़ी सी हिचक के साथ महारानी ने कहा "जी, लगता तो है... पर ओर तसल्ली के लिए एक-दो बार ओर अगर... " वह आगे बोल न पाई

राजमाता ने क्रोधित नजर से महारानी की ओर देखा। वह समज गई की इस चुदैल को अब शक्तिसिंह का लंड भा गया था। और उसे किसी भी सूरत में राजमहल लौटकर शक्तिसिंह से दूर ही रखना था।

"मुझे लगता है की जितना भी हुआ है वह पर्याप्त है.. आखिर बीज को फलित होने के लिए और कितनी मात्रा में द्रव्य चाहिए?"

"जी, जैसा आप ठीक समझे" महारानी ने नजर झुका ली

शक्तिसिंह से संभोग किए हुए बस एक ही दिन गुजरा था पर महारानी के जिस्म का हर कतरा शक्तिसिंह के स्पर्श को याद कर रहा था।

"हम्म... तो फिर हम २ दिन और आराम कर, सूरजगढ़ वापिस लौटने की यात्रा करेंगे। में सिपाहियों को तैयारी करने के आदेश दे रही हूँ, तुम भी तैयार रहना.. "

"जी राजमाता.." महारानी ने उत्तर दिया।

राजमाता सख्त मुंह बनाए वहाँ से चली गई... महारानी को यह पता न चला की वह किस बात पर क्रोधित थी...!! कहीं उन्हे उसके और दासी के गांड-उंगली के खेल के बारे में पता तो नही चल गया? वैसे ऐसी गुंजाइश तो नहीं थी चूंकि तंबू के दरवाजे से इतनी बारीकी से नजर आना असंभव था... फिर भी...!!

Nice story👌👌👌✔️✔️✔️ 💯💯💯
 
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राजमाता सख्त मुंह बनाए वहाँ से चली गई... महारानी को यह पता न चला की वह किस बात पर क्रोधित थी...!! कहीं उन्हे उसके और दासी के गांड-उंगली के खेल के बारे में पता तो नही चल गया? वैसे ऐसी गुंजाइश तो नहीं थी चूंकि तंबू के दरवाजे से इतनी बारीकी से नजर आना असंभव था... फिर भी...!!


दो दिनों के बाद, राजमाता और महारानी अपने दस्ते के साथ सूरजगढ़ लौटे। राजमहल में उनका भव्य स्वागत किया गया। सब को यही मालूम था की वह दोनों धार्मिक यात्रा कर वापिस लौटे थे। उनके अलावा महाराज कमलसिंह को यह बात ज्ञात थी और वह बड़ी बेसब्री से उनके लौटने का इंतज़ार कर रहे थे। वह इस यात्रा के परिणाम को जानने के लिए बेहद उत्सुक थे।

राजमाता अपने कक्ष में पहुंचकर बिस्तर पर लेट गई। वह आँखें बंद कर पिछले एक हफ्ते के घटनाक्रम का मन में ही विश्लेषण कर रही थी। उन्होंने जिस तरह से सोचा था उसी हिसाब से सब हुआ। हालांकि एक डर उन्हे सताये जा रहा था और वह था महारानी पद्मिनी और शक्तिसिंह के बीच उत्पन्न हो चुकी नजदीकी का। उनका आदेश बड़ा स्पष्ट था की महारानी और शक्तिसिंह को किसी भी तरह की भावनाओ में बहने की अनुमति नही थी। पर जिस तरह से दो बार रानी और सैनिक, उनकी बगैर जानकारी के, संभोग करते हुए पकड़े गए थे, उन्हे यह डर था की कहीं वह दोनों छिप-छिपाके वापिस चोदने ना लग जाए। उन दोनों को रोकने के लिए राजमाता का शातिर दिमाग योजना बनाने लगा। कुछ देर पश्चात उन्होंने महाराज कमलसिंह को बुलावा भेजा।

महाराज के आते ही राजमाता सक्रिय हो गई और बिस्तर पर बैठ गई। पास पड़े आसन पर महाराज बिराजमान होकर यात्रा की जानकारी प्राप्त करने बेसब्र हो उठे।

"कैसी रही आपकी यात्रा, माँ"

"हम्म ठीक ही रही... में आश्वस्त हूँ की हमारा लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा"

महाराज के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। वह जानते थे की उनके वारिस का होना राज्य के लिए कितना महत्वपूर्ण था।

"हमे बड़ी ही प्रसन्नता हुई यह जानकर... वह योगी से इस कार्य के लिए पूर्ण सहयोग मिला होगा... उस जगह से हमारे परिवार का दशकों से संबंध रहा है... मुझे यकीन था की वह इस कार्य में हमारी सहायता जरूर करेंगे"

राजमाता ने कोई उत्तर ना दिया... मंजिल को कैसे हासिल किया गया था वह केवल राजमाता, महारानी और शक्तिसिंह ही जानते थे।

"क्या हुआ माँ? आप कुछ बोल नही रही..!!"

"कुछ नही.. बस थोड़ी सी थकान है... मैंने तुम्हें एक महत्वपूर्ण बात करने बुलाया है"

"जी बताइए माँ"

"पहली बात तो, में यह चाहती हूँ की महारानी के गर्भवती होने की बात को गोपनीय रखा जाए। रानी महल में सुरक्षा भी सख्त करनी है। हमारे दुश्मन तक अगर यह बात पहुंची तो महारानी की जान को खतरा हो सकता है।" राजमाता ने गंभीरता से कहा

"जी जरूर... में तुरंत आदेश देकर सुरक्षा के कड़े इंतेजाम करवाता हूँ... जनाना महल में सिर्फ विश्वसनीय दासियों को ही नियुक्त किया जाएगा...किसी भी अनजान व्यक्ति के प्रवेश को प्रतिबंधित किया जाएगा"

"हम्म... पर इतना पर्याप्त ना होगा.. में चाहती हूँ की तुम जनाना महल में शक्तिसिंह को नियुक्त करो। वह वफादार और बहादुर है और उसके नेतृत्व में कुछ सैनिक रानी महल का ध्यान रखेंगे।"

महाराज को यह सुन आश्चर्य हुआ

"माँ, शक्तिसिंह तो सैन्य का हिस्सा है... यहाँ महल में और काफी सैनिक है जो इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा सकते है"

"नहीं, में चाहती हूँ की महारानी और रानी महल के लिए शक्तिसिंह को ही नियुक्त किया जाए। मुझे उसकी बहादुरी और वफादारी पर पूर्ण विश्वास है... सैन्य के कार्यों के लिए किसी और सैनिक को नियुक्त कर सकते है।" राजमाता ने आदेशात्मक स्वर में कहा

महाराज के पास राजमाता की बात को स्वीकार करने के अलावा और कोई विकल्प न था। उन्होंने जरूरी निर्देश दिए और दूसरे ही दिन शक्तिसिंह को रानीमहल की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई।

शक्तिसिंह को इस बात का अंदेशा था ही..!! जिस तरह से रानी और राजमाता उसके लंड के कायल हो गए थे वह जानता था की उसे करीब लाने के लिए ऐसी प्रयुक्ति, राजमाता जरूर आजमाएगी। फिलहाल उसे राजमाता से ज्यादा, महारानी पद्मिनी के करीब जाने में ज्यादा दिलचस्पी थी। महारानी के गोल गुंबज जैसे स्तन और गोरे गोरे भारी चूतड़, शक्तिसिंह के दिमाग से निकलने का नाम ही नही ले रहे थे। उनकी याद आते ही शक्तिसिंह का लंड इतना सख्त हो जाता था की धोती में छुपाना मुश्किल हो जाता।

महारानी को जैसे ही शक्तिसिंह के महल में नियुक्त होने के समाचार मिले... वह चहकने लगी। उनकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा... शक्तिसिंह के दमदार लौड़े से ठुकने के बाद उनकी चुत की प्यास और बढ़ चुकी थी। यात्रा से लौटते वक्त वह अमूमन यह सोच रही थी की वापिस फिर महाराज के ढीले लंड से चुदवाना पड़ेगा... शक्तिसिंह के मूसल के मुकाबले महाराज का लंड को तो नून्नी ही कहा जा सकता था। अब शक्तिसिंह के महल में आ जाने से फिर से वह उसके शक्तिशाली लिंग से खेल सकती थी... और चुदाई का पूर्ण आनंद ले सकती थी।

अपने खंड से बाहर निकलकर वह बरामदे के और चलती हुई उस स्थान पर जा पहुंची जहां शक्तिसिंह अपने दो सैनिकों के साथ पहरा दे रहा था। महारानी को देखकर उसकी आँखें चमक उठी। महारानी का इशारा पाते ही शक्तिसिंह ने दोनों सैनिकों को महल का चारों और से मुआयना करने जाने का निर्देश दिया। दोनों सैनिक अलग अलग दिशा में चल दिए। उनके नजर से ओजल होते ही महारानी ने शक्तिसिंह को अपनी बाहों में भर लिया!! शक्तिसिंह भयभीत हो उठा... अगर इस स्थिति में कोई उसे देख ले तो तुरंत ही उसका सर कलम दिया जाता। उसने महारानी को रोकना चाहा पर महारानी ने उसे कसकर जकड़ रखा था। वह बेतहाशा शक्तिसिंह को चूमे जा रही थी। उनके हाथ अब धोती के ऊपर से लंड को सहलाने लगे थे। वास्तविकता से अनजान उसका लंड हरकत में आकार महारानी की हथेलियों संग खेलने लगा।

महारानी ने अपना हाथ धोती में सरका दिया और शक्तिसिंह के मूसल को पकड़कर उसकी चमड़ी ऊपर नीचे करने लगी। शक्तिसिंह के आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया। वह चाहते हुए भी महारानी को सहयोग नही दे पा रहा था। वह इतना डरा हुआ था फिर भी उसका लंड पूर्णतः सख्त हो गया था। महारानी ने एक ही पल में उसका लंड धोती से बाहर निकाल दिया।

"यह क्या कर रही है महारानी जी!!! कोई आ गया तो आफत आ जाएगी..." सकपकाते हुए शक्तिसिंह ने कहा

महारानी ने उसकी बातों को अनसुना करते हुए घुटनों को मोड़ा और नीचे की और गई। अब शक्तिसिंह का लंड महारानी के मुख के बिल्कुल सामने तोप की तरह तना हुआ था। महारानी के हाथ लंड पर तेजी से आगे पीछे हो रहे थे। अपनी मुठ्ठी में लंड को भरकर जब वह अंदर की तरफ दबाती तब शक्तिसिंह का लाल सुर्ख सुपाड़ा अपने दर्शन देकर महारानी को प्रफुल्लित कर देता...

बिना वक्त जाया किए महारानी ने शक्तिसिंह के सुपाड़े को अपनी मुंह में ले लिया। शक्तिसिंह की आँखें बंद हो गई। अति-आनंद और घबराहट के बीच शक्तिसिंह झूल रहा था। वह हर दूसरे क्षण दोनों दिशाओं में देखता रहता था... महारानी पागलों की तरह उसका लंड चूसे जा रही थी। उसके लंड का जादू इस कदर सर पर सवार था की उनका दिमाग और कुछ सोच ही नही पा रहा था। शक्तिसिंह का फनफनाता लंड इस उत्तेजना को झेल पाने के लिए असमर्थ था और किसी भी वक्त अपना इस्तीफा दे सकता था। बड़ी ही मुश्किल से शक्तिसिंह ने उसे रोके रखा था।

लंड चूसते हुए महारानी अब शक्तिसिंह के टट्टों को भी सहला रही थी.... शक्तिसिंह की बर्दाश्त की सारी सीमा पार हो गई थी... महारानी के मुंह की गरम गलियों में गश्त लगाते हुए लंड पूरे उफान पर था। तीन चार बार और जोर से चूसने पर लंड ने हथियार रख दिए... फुले हुए सुपाड़े ने महारानी के मुख में वीर्य की बौछार कर दी। तीन चार जबरदस्त पिचकारियाँ लगते ही महारानी का दम घुटने लगा... पर वह फिर भी चूसे जा रही थी... लंड के अनूठे शक्ति-रस का पान कर वह धन्य हो गई थी!! शक्तिसिंह का लंड अब अपनी सख्ती छोड़ रहा था... यह महसूस होते ही महारानी ने लंड मुंह से निकाला और खड़ी हो गई। उसने शक्तिसिंह के चेहरे को पकड़ा और उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए। शक्तिसिंह अपने वीर्य की गंध को महसूस कर रहा था... एक गहरा चुंबन देकर महारानी ने फुसफुसाते हुए शक्तिसिंह के कानों में कहा

"रात को चुपके से मेरे कक्ष में आ जाना... ध्यान रहे किसी को इस बात का अंदेशा नही लगना चाहिए"

उन्होंने अपने वस्त्र को ठीक किया और एक शरारती मुस्कान देते हुए वहाँ से चल दी... शक्तिसिंह ने भी अपने लंड को तुरंत धोती के अंदर डाल दिया और पूर्ववत हो कर पहरा देने लगा। अभी जो कुछ भी हुआ था उसका विश्वास उसे अभी भी नही हो रहा था। महारानी की इस हिम्मत को देख वह दंग रह गया था!!

कुछ ही देर में दोनों सैनिक गश्त लगाकर लौट आए। उन में से एक ने शक्तिसिंह को बताया की राजमाता ने उसे हाजिर होने का हुकूम दिया है। आश्चर्य सह शक्तिसिंह राजमाता के कक्ष की और चल दिया। रानी महल के दूसरे हिस्से में उनका निवास था। उनके कक्ष में प्रवेश करते ही उसने देखा की वह बिस्तर पर टाँगे फैलाए बैठी थी और दो दासियाँ उनके पैर दबा रही थी।

शक्तिसिंह को देखते ही राजमाता ने आँखों से इशारा किया और दोनों दासियाँ उठकर कक्ष से बाहर चली गई।

शक्तिसिंह नतमस्तक होकर खड़ा रहा।

"हम्म तो कैसे हो तुम शक्तिसिंह?"

"आपकी कृपा है राजमाता" शक्तिसिंह ने हाथ जोड़कर कहा

"तुम्हें रानी महल की सुरक्षा की जिम्मेदारी मिलने पर हैरानी तो जरूर हुई होगी... है ना!!"

"में तो इस राज्य का सेवक हूँ राजमाता... मेरा परिवार पीढ़ियों से राजमहल की सुरक्षा करता आया है... यह तो मेरा सौभाग्य है की मुझे इस जिम्मेदारी के लिए काबिल समझा गया... में किसी भी प्रकार की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहूँगा" सिर झुकाकर शक्तिसिंह ने कहा। उसके मुरझाए लंड से वीर्य की बचीकूची बूंदें उसकी जांघों को गीला कर रही थी।

राजमाता के चेहरे पर एक कुटिल सी मुस्कान दौड़ गई। सारी स्थिति पर अपना पूर्ण नियंत्रण का एहसास होने पर वह मन ही मन बहुत खुश थी। शक्तिसिंह की सेवा के लिए उनका शाही भोंसड़ा पिछले कई दिनों से तड़प रहा था। शक्तिसिंह को अपने करीब लाने के लिए जो व्यवस्था उन्होंने आयोजित की थी वह सफल होती नजर आई..

"तुम आज से मेरे कक्ष की रखवाली करोगे... " राजमाता ने आदेश दिया

"क्षमा कीजिए राजमाता... पर मुझे तो महारानी पद्मिनी के कक्ष की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है!!" शक्तिसिंह राजमाता के इस खेल को अभी समझ नही पा रहा था

"अब तुम मुझे बताओगे की कैसे और क्या करना है?" राजमाता ने क्रोधित स्वर में कहा

"माफ कीजिए राजमाता जी, में तो केवल वही बता रहा था जिसका मुझे आदेश दिया गया था"

"अब से जो में कहूँगी, वही तुम्हारे लिए आदेश होगा, समझे!!" राजमाता ने बड़ी ही कड़ी आवाज में कहा। शक्तिसिंह का लाभ उठाने के लिए उसे वश में करना अत्यंत आवश्यक था।

"जी राजमाता, जैसी आपकी आज्ञा" गर्दन झुककर शक्तिसिंह ने स्वीकार किया

"दूसरी बात... रात के वक्त मेरे कक्ष के बाहर केवल तुम ही पहरा दोगे... बाकी सारे सैनिकों को महारानी की सुरक्षा के लिए भेज दिया जाए"

शक्तिसिंह को अब बात धीरे धीरे समझ में आने लगी थी। पहले तो राजमाता ने अधिक सुरक्षा का प्रश्न उठाकर शक्तिसिंह को महल में तैनात करवा दिया और अब महारानी की सुरक्षा का बहाना बनाकर सारे सैनिकों को वहाँ भेजने की बात कही। उनका उद्देश्य स्पष्ट था।

"मेरे हुकूम की आज से... बल्कि अभी से ही पालन हो... अब तुम जा सकते हो... में रात्री के प्रहार पूरी सुरक्षा का मुआयना करने आऊँगी। अगर जरा सी भी कोताही बरती गई तो में किसी को भी जिंदा नही छोड़ूँगी" आदेशात्मक स्वर में बोलकर राजमाता बिस्तर पर लेट गई और अपने दोनों घुटनों को मोड लिया। उनका घाघरा घुटनों तक ऊपर चढ़ गया और शक्तिसिंह को उनकी मांसल गोरी जांघें नजर आने लगी। हालांकि अभी कुछ देर पहले ही स्खलन हुआ था पर फिर भी शक्तिसिंह के लंड ने हरकत करना शुरू कर दिया। वह आँखें फाड़कर उनकी मलाई जैसी गोरी पिंडियों को देख रहा था।

"क्या देख रहे हो ?" राजमाता ने उसकी तरफ देखकर कहा

शक्तिसिंह ने अपनी आँखें झुका ली। अपनी चोरी पकड़ी जाने पर वह शर्मा गया।

"अब तुम जा सकते हो" राजमाता ने आँखें बंद करते हुए कहा

शक्तिसिंह उलटे पैर वापिस लौट गया। उसने अपने दल को महारानी के कमरे के बाहर पहरा देने का निर्देश दिया। कुछ देर बाद वह महारानी के कमरे में जा पहुंचा... महारानी उस वक्त अपने खंड में अकेली थी। शक्तिसिंह को देखते ही उनकी आँखें चमक उठी।


"अरे, तुम तो बड़ी जल्दी आ गए... भूल गए क्या, मैंने तुम्हें रात को आने के लिए कहा था" बड़े ही धीमे स्वर में महारानी ने कहा

शक्तिसिंह तय नही कर पा रहा था की बात की शुरुआत कैसे करें

"जी में... वो आपको... " शक्तिसिंह के गले में शब्द अटक गए थे

"साफ साफ बोलो, क्या कहना चाहते हो... "

"जी में यह सूचित करने आया था की आपसे मिलने आज रात में नही आ पाऊँगा"

"वह क्यों भला... एक ही बार में तुम्हारा हथियार थक गया क्या? यात्रा के दौरान तो जब देखो तब वह खड़ा ही दिखता था!! पर चिंता मत करो, रात होने में अभी वक्त है... तब तक तुम जरूर तैयार हो जाओगे इसका मुझे पूर्ण विश्वास है.. " महारानी पद्मिनी ने मुसकुराते हुए कहा

"जी बात वो नही है... " शक्तिसिंह ठीक से समझा नही पा रहा था

"दरअसल मुझे राजमाता के कक्ष की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है इसलिए.... " सकपकाते हुए शक्तिसिंह ने कहा

"क्या? किसने कहा तुमसे? महाराज का आदेश स्पष्ट था... इन अतिरिक्त सैनिकों को मेरी सुरक्षा के लिए ही भेजा गया है... और मेरा उद्देश्य तो यह है की जब तक गर्भधारण का समाचार ना मिले तब तक ज्यादा से ज्यादा संभोग कर में उसे सुनिश्चित कर सकूँ। इस बात को तुम हम दोनों के बीच तक ही सीमित रखना। तुम चिंता मत करो, में महाराज से बात करती हूँ"

"जी मुझे इस बात का आदेश राजमाता ने दिया है" डरते डरते शक्तिसिंह ने कहा

यह सुनते ही महारानी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। पर वह कुछ बोल नही पाई। उसे मालूम था की कमलसिंह नाम मात्र के राजा थे, असली राज तो राजमाता ही चलाती थी। पूरे राजमहल में किसी की हिम्मत नही थी की वह राजमाता के आदेश को अनसुना करे।

"शक्तिसिंह तुम अभी आ ही गए तो कक्ष का दरवाजा बंद कर लो... रात होने में अभी वक्त है.. तब तक हम थोड़ी देर... " शैतानी मुस्कान के साथ आँखें नचाते हुए महरानी ने कहा

"पर महारानी जी, बाहर खड़े सैनिकों ने मुझे अंदर आते देखा है... यहाँ ज्यादा समय व्यतीत करना अयोग्य होगा और उनको शंका हो जाएगी"

"तुम उनके सरदार हो... उन्हे कैसे संभालना वह तुम जानो... अभी फिलहाल में जैसा कह रही हूँ वैसा करो " महारानी के सर पर हवस का भूत सवार था। वह कैसे भी कर अपनी मखमली चुत में शक्तिसिंह का साबुत डंडा लेना चाहती थी।

"राजमाता ने कहा है की वह सुरक्षा व्यवस्था का मुआयना करने कभी भी आ सकती है... ऐसी सूरत में इतना बड़ा जोखिम उठाना उचित नही होगा महारानी जी" शक्तिसिंह ने डरते हुए कहा

राजमाता का नाम सुनते ही महारानी का दिमाग कलुषित हो गया... उनकी इस दखलंदाज़ी के कारण वह शक्तिसिंह को प्राप्त नही कर पा रही थी। उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर शक्तिसिंह की बात भी सही थी। ऐसा जोखिम उठाना ठीक नही था। उन्होंने आँखों से इशारा कर शक्तिसिंह को जाने के लिए कहा। शक्तिसिंह के जाते ही उन्होंने अपनी खास दासी को बुलाया

"जी महारानी जी... आपने याद किया?"

"उस दिन जैसे फिर से मालिश कर दे मेरी कमर की" महारानी ने चोली खोलकर उलटे लेटते हुए कहा। उनको दोनों उरोज सफेद कबूतरों की तरह बाहर झूलने लगे। दासी की आँखें उनपर चिपक सी गई। तभी उन्होंने अपने घाघरे को थोड़ा सा नीचे सरकाते हुए लगभग घुटनों तक ला दिया। उनके दोनों चूतड़ उजागर हो गए। दासी समझ गई की महारानी क्या चाहती थी। उसने तेल की शीशी लेकर मालिश करना शुरू कर दिया।

इस तरफ राजमाता अपने कक्ष से बाहर चलते हुए महल के उस हिस्से की तरफ चलते हुए आ रही थी जहां महारानी का खंड था। बीच रास्ते में उन्हे शक्तिसिंह अपनी ओर आता दिखा... पास से गुजरने पर भी शक्तिसिंह ने आँखें उठाकर राजमाता की तरफ नही देखा और चलता गया। राजमाता ने चन्दाी मुस्कान के साथ उसकी तरफ एक नजर देखा और आगे चल दी।

महारानी के कक्ष के बाहर तीन सैनिक खुली तलवार लिए पहरा दे रहे थे। शक्तिसिंह की इस व्यवस्था से संतुष्ट होकर राजमाता ने महारानी के कक्ष में प्रवेश किया। महारानी का कक्ष दो हिस्सों में बंटा हुआ था। कमरे के आगे के हिस्से में शाही साज सजावट थी और आगे चलते ही परदे के पीछे दूसरे हिस्से में महारानी का बिस्तर था। शाम होने को थी और कक्ष में काफी अंधेरा हो रहा था। महारानी के बिस्तर के इर्दगिर्द जल रहे दीयों से चारों ओर प्रकाश फैला था। हालांकि कमरे का आगे का हिस्सा अंधेरे में डूबा हुआ था। दबे पाँव चली आ रही राजमाता की भनक दासी या महारानी किसी को ना हुई। राजमाता एक स्तम्भ के पीछे खुद को छुपाकर, परदे के पीछे बिस्तर पर चल रही गतिविधियों को देखने लगी। यात्रा के दौरान जब वह महारानी के तंबू में आई थी तब उन्हे यकीन था की उन्होंने महरानी की सिसकियाँ साफ सुनी थी। उन्हे संदेह था की दासी के साथ वह कुछ तो गुल खिला रही थी।

"आह... वैसे ही करती जा... थोड़ा सा और तेल लेकर उंगली डाल" महारानी कराहते हुए बोली

राजमाता को अपनी आँखों पर विश्वास नही हो रहा था...!! महारानी अपने बड़े बड़े कूल्हे फैलाए लेटी थी और उनकी दासी अपनी उंगली महारानी की गांड के छेद में डालकर आगे पीछे कर रही थी...!! यह देख राजमाता का जबड़ा लटक गया... हालांकि गुदा मैथुन के बारे में वह विस्तार से जानती थी पर ना तो कभी उन्होंने वास्तविकता में उसे देखा था और ना ही कभी महसूस किया था। वास्तव में वह मानती थी की गाँड़ के सिकुड़े छेद में लंड डलवाना काफी दर्दनाक होता होगा। पर महारानी को उंगली डलवाते हुए देख वह अचंभित थी क्योंकी रानी के चेहरे पर दर्द का कोई निशान दिख नही रहा था। वह तो बड़े चाव से इस उंगली-चोदन का आनंद ले रही थी।

महारानी अपनी चूचियाँ खुद ही मसल रही थी। राजमाता क्रोधित होकर हस्तक्षेप करने ही वाली थी पर कुछ सोचकर वह रुक गई और यह पूरा तमाशा देखने लगी।

दासी महारानी की गाँड़ में उंगली डालते हुए अपने अंगूठे से उनकी चुत के होंठों को भी ऊपर से रगड़ रही थी। महारानी सातवे आसमान पर पहुँच चुकी थी... वह हर दूसरे पल अपने चूतड़ को उछाल रही थी... अस्पष्ट शब्दों की बकवास किए जा रही थी... और साथ ही साथ अपनी निपलों को मरोड़े जा रही थी।

"और तेजी से अंदर बाहर कर... आह आह... ऊई...!!!" चूतड़ उछाल उछालकर वह दासी की उंगली का पूर्ण आनंद ले रही थी। महारानी की चुत बेतहाशा पानी छोड़ रही थी। उनका पूरा जिस्म पसीने से तर हो चुका था। साँसे भी तेज चल रही थी।

महारानी की इस अवस्था को देख राजमाता के पूरे जिस्म में झुरझुरी सी होने लगी। उनकी साँसे फूलने लगी। उन्हे पता ही नही चला की कब उनका एक हाथ घाघरे के ऊपर से उनके भोंसड़े को मलने लगा था। वस्त्र के ऊपर से ही अपनी चुत को पकड़कर वह दबाने लगी और दूसरे हाथ से अपने स्तनों को सहलाने लगी। अगर वह स्तम्भ का सहारा लेकर ना खड़ी होती तो उत्तेजना के मारे वही गिर जाती।

"अब तू दो उंगली एक साथ डाल दे... " हांफते हुए महरानी ने कहा

"जी महारानी, ऐसा करूंगी तो आपको दर्द होगा" दासी इस आदेश से थोड़ा हिचकिचाई

"जैसा कह रही हूँ वैसा कर... डाल दे दो उंगली"

दासी ने दूसरी उंगली को तेल से लिप्त किया और एक साथ दोनों उंगली अंदर डाल दी...

"ऊईई माँ... मर गई... " महारानी के कंठ से हल्की चीख निकल गई...

घबराकर दासी ने दोनों उंगली बाहर निकाल ली

"क्या कर रही है तू? बाहर क्यों निकाल ली तूने... " महारानी ने बेचैन होते हुए पूछा

"जी वो आपको दर्द हुआ इसलिए " दासी ने डरते डरते उत्तर दिया

"डाल दे वापिस... पर जरा धीरे धीरे... तूने झटके से अंदर डाल दी इसलिए दर्द हुआ"

दासी ने तुरंत अमल किया... थोड़ा सा और तेल लेकर उसने पहले तो महारानी के गांड के छेद में डाल और फिर उंगलियों को तेल से द्रवित कर धीरे धीरे दोनों उंगलियों को उनके बादामी रंग के छेद में डाल दिया।

"कुछ देर ऐसे ही डाले रख... जब में कहूँ तब आगे पीछे करना" महारानी दो उंगलियों की चौड़ाई से गांड के छेद को अभ्यस्त करवाना चाहती थी। कुछ समय तक यूँही पड़े रहने के बाद उनका छेद अब उंगलियों के आसपास सहज हो गया।

"अब धीरे धीरे आगे पीछे कर... और हाँ... तेरे अंगूठे से नीचे घिसती रहना" वह अपनी प्यासी चुत को भी अनदेखा करना नही चाहती थी

दासी की उँगलियाँ अब किसी यंत्र की तरह महारानी की गांड के छेद में अंदर बाहर हो रहा था और साथ थी साथ उसका अंगूठा चुत के होंठों को सहला रहा था। दोनों होंठ चुत के द्रवित होते रस से चिपचिपे बन गए थे। दासी की उँगलियाँ ऐसे चल रही थी जैसे मक्खन के अंदर गरम छुरी।

इस अंगुली-चोदन को देखते हुए राजमाता काफी उत्तेजित हो रही थी... उनका अनुभवी भोंसड़ा अब भांप छोड़ रहा था... एक हाथ से अपना घाघरा ऊपर कर उन्होंने दूसरे हाथ की उंगली से अपने अंगूर जैसे दाने को रगड़ा... उंगली की रगड़ खाते ही उनकी क्लिटोरिस सिहर उठी... पूरा शरीर झुंजहाने लगा.. दाने को रगड़कर उन्होंने उंगली को चुत के होंठों के बीच घुसा दिया...

यहाँ दासी ने महारानी की गांड में उंगली करते करते अपना अंगूठा उनकी चुत में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। दोनों छिद्रों में एक साथ हुए हमले से महारानी उछलने लग गई। उनकी चुत का शहद अब बहकर बिस्तर को गीला कर रहा था। महारानी को इस अवस्था में देखकर दासी की चुत में भी चुनचुनी होने लगी थी। उसने अपना दूसरा हाथ चोली में डालकर अपने स्तनों को मसलना शुरू कर दिया।

"हाय दैया... मार देगी तू मुझे... कैसा रगड़ रही है री तू... आह...!!" महारानी निरंतर बकवास किए जा रही थी। उनकी निप्पल मरोड़ने के कारण लाल लाल हो गई थी... अब तो उन्हे छूने पर भी दर्द हो रहा था।

इस तरफ राजमाता की उंगली भी जोर-शोर से उनके भोंसड़े के अंदर बाहर हो रही थी... उनके घुटने इतने अशक्त महसूस होने लगे की लगता था की वह किसी भी वक्त संतुलन खो कर गिर जाएगा। जैसे तैसे कर उन्होंने अपना आपा बनाए रखा था। उंगली से जैसे उनका मन नही भर रहा था... अब उन्होंने स्तंभ के कोण पर अपना दाना घिसना शुरू कर दिया... पूरे कक्ष में, तीन उत्तेजित चूतों की गंध फैल गई थी।

"ऊईईई... जोर से घिस जरा... हाय कमीनी... जरा हाथ चला जल्दी जल्दी... में निढाल होने ही वाली हूँ... आईईई माँ... " महारानी कराहती हुई अपनी मंजिल की तरफ कूच कर रही थी... कुछ ही पलों में महारानी ऐसे तड़पने लगी जैसे जल बिन मछली..!! एक जोरदार चीख मारकर महारानी लाश की तरह ढेर हो गई... दासी ने उनकी गांड और चुत से उंगली निकालकर उन्हे सूंघा... शाही गुप्तांगों की अनोखी खुशबू ने उसे सराबोर कर दिया। होश खोकर लुढ़की हुई महारानी के बिस्तर के दूसरे छोर पर दासी अपनी टाँगे फैलाकर लेट गई और अपना घाघरा उठाकर चुत में उंगली करने लगी।

कुछ ही पलों में उसकी चुत ने भी जवाब दे दिया। वह धीरे से उठी, अपने वस्त्र ठीक किए और महारानी के ऊपर मखमली चद्दर ओढाकर वहाँ से चलने लगी। दासी को बाहर आता देख राजमाता ने भी अपनी उंगली बाहर निकाली, घाघरा गिराया और अंधेरे का सहारा लेकर कक्ष से बाहर निकल गई।

अपने खंड तक लौटते हुए राजमाता ने शक्तिसिंह को द्वार पर अकेले चौकीदारी करते हुए देखा और मुस्कुरा दी... बिना कुछ कहें वह शक्तिसिंह के करीब से गुजरकर अंदर चली गई।

मध्य रात्री का समय था। पूरा नगर नींद की गिरफ्त में सो रहा था। रानी महल में सन्नाटा छाया हुआ था... केवल सिपाहियों और चौकीदारों की प्रासंगिक चहल पहल सुनाई दे रही थी। रानी महल के अंतिम छोर पर कोने में राजमाता के कक्ष के बाहर शक्तिसिंह पहरा दे रहा था। तभी कक्ष का बंद दरवाजा खुला और पीछे से राजमाता प्रकट हुए। उन्होंने आँखों से ही इशारा कर शक्तिसिंह को अंदर बुलाया। बिना कुछ कहे या पूछे शक्तिसिंह नीची मुंडी कर अंदर चला गया। उसके अंदर आते ही राजमाता ने द्वार बंद कर दिया और कुंडी लगा दी।

राजमाता का कक्ष काफी विशाल था... छत पर रंगबिरंगी कांच के झूमर लटक रहे थे... दीवारों पर कीमती रत्न जड़े हुए थे... बड़े बड़े तैल-चित्रों से दीवारें सुशोभित थी... बीच में पड़े मेज और कुर्सी पर सुवर्ण का आवरण था। थोड़ा सा और अंदर जाते ही बड़ा सा बिस्तर था... पलंग के चार स्तंभ पर शेर की छवि मुद्रित थी... चारों और दिए और सुगंधित बत्तियाँ जल रही थी.. छत से लेकर बिस्तर तक एक पारदर्शक कपड़ा, पलंग को चारों ओर से ढँक रहा था।

राजमाता के पीछे पीछे चलते हुए शक्तिसिंह भी बिस्तर तक आ गया। बिस्तर पर पहुंचकर राजमाता शक्तिसिंह की ओर मुड़ी और उसे अपनी बाहों में भर लिया। शक्तिसिंह ने भी सहयोग देते हुए अपने खुरदरे हाथों से राजमाता की मांसल पीठ और कमर की गोरी कोमल त्वचा को सहलाना शुरू कर दिया। शक्तिसिंह को चूमते हुए राजमाता आहें भर रही थी। कुछ देर तक उसकी बलिष्ठ भुजाओं का आनंद लेकर राजमाता ने उसे अपने बाहुपाश से मुक्त किया और बिस्तर पर फैल कर बैठ गई।

"बड़ा तड़पाया है तूने मुझे... यात्रा से लेकर अब तक... मेरा शरीर तेरी मजबूत पकड़ को तरस गया है... पर तुझे तो मेरी याद ही नही आती"

"ऐसा नही है राजमाता, में तो आपके आदेश का पालन कर राज्य को लौट गया था और फिर तालिम में व्यस्त था.. मुझे तो आज ही पता चला की आप यात्रा से लौट आए है"

"हम्म... तुझे वहाँ से वापिस लौटने का आदेश देना जरूरी था... वरना वह चुदैल महारानी अपने मोहपाश से तुझे मुक्त ही नही करती"

शक्तिसिंह मौन ही रहा.. यात्रा के वक्त उत्तेजनावश उसने राजमाता के निर्देश की अवहेलना कर महारानी को अतिरिक्त दो बार चोद दिया था और राजमाता को इसका ज्ञान भी हो गया था। वासना का रंग उड़ते ही उसे एहसास हुआ की इस उपेक्षा का बड़ा भयानक नतीजा हो सकता था। गनीमत थी की राजमाता भी उसके लंड की दीवानी हो चली थी वरना उसका वहाँ से जिंदा लौट पाना नामुमकिन था।

"चुप क्यों खड़ा है? आजा यहाँ मेरे पास बैठ..." राजमाता ने उसे आमंत्रित किया

थोड़े से संकोच के साथ शक्तिसिंह राजमाता के बगल में जा बैठा।

राजमाता ने उसकी मजबूत बाहों को सहलाना शुरू कर दिया... उसकी बलिष्ठ मांसपेशियाँ सैनिक-वस्त्रों के बाहर झलक रही थी और शक्तिसिंह की ताकत का प्रमाण भी दे रही थी। हालांकि राजमाता ने शक्तिसिंह की शक्ति को भलीभाँति परख लिया था।

राजमाता ने अपने घने गुलाबी होंठों से शक्तिसिंह के कंधों को चूमा... और उसकी छाती पर अपना हाथ घुमाने लगी। उनकी रगों में रक्त तेजी से दौड़ने लगा था। कुछ देर पहले महारानी के खंड में संदीप्त हुई चुत फिर से हरकत करने लगी। उनके गाल उत्तेजनावश लाल लाल हो गए। उन्होंने एक धक्का देकर शक्तिसिंह को बिस्तर पर लिटा दिया और उसके जिस्म के दोनों तरफ पैर रखकर शक्तिसिंह के शरीर पर सवार हो गई।

शक्तिसिंह के खड़े लँड के बिल्कुल ऊपर राजमाता के चूतड़ बिराजमान थे। हालांकि बीच में दोनों के वस्त्रों का आवरण जरूर था।

राजमाता अब शक्तिसिंह पर ऐसे झपटी जैसे भूखी शेरनी मेमने पर झपटती है। उन्होंने बेतहाशा होकर शक्तिसिंह के गर्दन, होंठ, कपाल और छाती पर चूमना शुरू कर दिया। शक्तिसिंह भी निढाल होकर पड़े पड़े राजमाता के इस खेल का आनंद ले रहा था। उसका लंड राजमाता के शरीर के वज़न तले दबा हुआ था पर फिर भी अपना पूरा जोर लगाकर खड़ा होने की भरसक कोशिश कर रहा था।

शक्तिसिंह की छाती को चूमते हुए राजमाता नीचे की ओर गई... और अपने पसंदीदा हथियार को धोती के आवरण के ऊपर से ही महसूस करने लगी। राजमाता का वज़न हटते ही शक्तिसिंह का औज़ार धोती को उठाते हुए खड़ा हो गया। धोती के उस उभार को राजमाता सम्मोहित होकर देखती ही रह गई। उन्होंने उस उभार को अपनी मुठ्ठी में पकड़ा... उस मजबूत लिंग की परिधि का एहसास होते ही उनकी चुत ने तुरंत पानी का अभिषेक कर दिया। उस योनिजल का गीलापन शक्तिसिंह को अपने घुटनों पर महसूस हुआ।

धोती को टटोलते हुए राजमाता ने आखिर शक्तिसिंह के लंड को मुक्त कर ही दिया..!! कुछ प्रहरों पहले महारानी के मुख-मैथुन से रिसाव कर चुके इस लंड ने अब नया चेहरा देखा!! तन्ना के ऐसे सख्त खड़ा था जैसे राजमाता को सलामी दे रहा हो!! उस प्यारे टमाटर जैसे सुपाड़े को राजमाता बड़े ही वात्सल्य से देखती रही... उन्हे इतना प्यार उमड़ आया की बिना एक क्षण का व्यय किए, उन्होंने उस गुलाबी सुपाड़े को मुंह में भर लिया और बड़े ही चाव से चूसने लगी। लंड के ऊपर से लेकर नीचे तक वह अपनी जीभ फेरते हुए उसे अपनी लार से सराबोर करती जा रही थी। शक्तिसिंह आँखें बंद कर इस स्वर्गीय सुख का आनंद ले रहा था।

अपनी मुठ्ठी में कैद कर राजमाता ने लंड को ऊपर से नीचे तक हिलाया। उसके लंड की त्वचा को ऊपर नीचे करते हुए वह सुपाड़े को चूसने लगी। वीर्य की कुछ बूंदें सुपाड़े के छेद पर प्रकट हुई जिसे राजमाता ने अपनी जीभ के छोर से समेटकर चाट लिया। उस मजबूत सैनिक के पुष्ट वीर्य में अनोखा स्वाद था।

उधर राजमाता की चुत आंदोलित हो रही थी... अवहेलना उससे बर्दाश्त न हुई और वह टपक टपक कर राजमाता को उसे मुक्त करने का आहवाहन दे रही थी। चुत की इस स्थिति से वाकिफ होने के बावजूद, राजमाता फिलहाल शक्तिसिंह के लंड को छोड़ना नही चाहती थी। वह पागलों की तरह शक्तिसिंह के लंड को चूसे जा रही थी। उसका पूरा लंड राजमाता की लार से द्रवित हो चुका था।

राजमाता द्वारा की जा रही लंड चुसाई का आनंद लेते हुए शक्तिसिंह ने अपना कवच और उपरार्ध का वस्त्र, लेटे लेटे ही उतार दिया। उसकी मांसल मजबूत विशाल छाती पर राजमाता अपना हाथ पसारने लगी। शक्तिसिंह के लंड को मुक्त कर राजमाता खड़ी हुई और अपनी चोली की गांठ खोलने लगी। गांठ खुलते ही उनके दोनों लचीले भारी गोरे गोरे स्तन बाहर निकल आए। दोनों विशाल स्तन और उसपर लगी लाल चेरी जैसी उनकी निप्पल देखकर ही शक्तिसिंह के मुंह में पानी आ गया।

राजमाता अपने स्तन खोलकर खड़ी हो गई और उन्होंने अपना घाघरा उठाया। दोनों मांसल जांघों के बीच बालों के झुरमुट में छिपी हुई उनकी लाल चुत की लकीर द्रश्यमान हो गई। उनका दाना उत्तेजना से सख्त हो गया था और चुत के होंठों से रस टपक रहा था। उसी अवस्था में राजमाता एक कदम आगे आई और बिल्कुल शक्तिसिंह के चेहरे के दोनों तरफ टाँगे जमाकर खड़ी हो गई। शक्तिसिंह को अपने ऊपर फैली जांघों के बीच राजमाता का शाही भोंसड़ा नजर आ रहा था और योनिरस उसके मुंह पर टपक रहा था। वह असमंजस में था की राजमाता आखिर क्या करना चाहती थी। राजमाता ने हौले से अपने घुटनों को मोड़ा और अपनी चुत को बिल्कुल शक्तिसिंह के मुंह के करीब ले गई।

"देख ले बेटा... यह वही शाही चुत है जिसमे से तुम्हारे महाराज प्रकट हुए थे... आज इसमे ऐसा घमासान हुआ पड़ा है जिसे बस तू ही शांत कर सकता है... ले... इसका रस पीकर तृप्त हो जा... " कहते ही राजमाता ने अपनी चुत को शक्तिसिंह के मुंह पर रख दिया।

शुरुआत में उसने अपनी जीभ चुत पर फेर दी... स्पर्श होते ही दोनों होंठ खुल गए और चुत के अंदर का लाल गुलाबी हिस्सा दिखने लगा। राजमाता की चुत को इतने करीब से देखकर वह अभिभूत हो गया। राजमाता ने उंगलियों से अपनी चुत के दोनों होंठों को चौड़ा किया और अपना पूरा वज़न शक्तिसिंह के मुंह पर डाल दिया। शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से राजमाता के भारी चूतड़ों को पकड़े रखा ताकि संतुलन बना रहे और चाटने की क्रिया को ठीक से नियंत्रित भी किया जा सके।

राजमाता की चुत के गाढ़े चिपचिपे शहद को वह ऐसे चाटने लगा जैसे बिल्ली दूध चाटती है... उस दौरान राजमाता अपना दाना घिसे जा रही थी... चुत की अनोखी गंध शक्तिसिंह के नथुनों मे जाते ही वह मस्त हो गया। राजमाता अपने चूतड़ों को आगे पीछे हिलाते हुए चुत को शक्तिसिंह की जीभ पर रगड़ रही थी। उनका पूरा योनिमार्ग रस से लसलसित हो चुका था और शक्तिसिंह के मजबूत औज़ार को अपने में समाने के लिए आतुर हो उठा था।

अपनी चुत शक्तिसिंह के मुंह पर रगड़ते हुए राजमाता थोड़ी सी पीछे की और झुकी और एक हाथ से उसके लंड को पकड़ लिया... अपने आप को झड़ने से रोकने के लिए शक्तिसिंह को काफी यत्न करना पड़ा। राजमाता की चुत उसके मुख पर योनिरस का अभिषेक कर रही थी... और वह उसे चूसे जा रहा था। उनकी चुत का दाना उत्तेजना से सूजकर जामुन के आकार सा हो गया था।

शक्तिसिंह के मुंह की सवारी करते हुए वह उसका लंड हिलाते जा रही थी... राजमाता का घाघरा दोनों जांघों पर ऊपर तक चढ़ गया था। उनकी हलचल से राजमाता के दोनों भारी लचीले स्तन यहाँ वहाँ झूल रहे थे। शक्तिसिंह की दाढ़ी वाली ठुड्डी का स्पर्श अपनी गांड के छेद पर होते ही राजमाता सिहर उठती। वह अब पगलाई घोड़ी की तरह शक्तिसिंह के मुंह पर आगे पीछे होते हुए अपनी चुत घिसे जा रही थी।

शक्तिसिंह की हालत खराब थी... उसका लंड अब केवल हिलाने भर से खुश नहीं था... उसे चाहिए थी गुनगुनी चुत की गर्माहट... पर फिलहाल इस खेल का सारा नियंत्रण राजमाता के पास था... और वह तो झड़ने के यत्न में इतनी मशरूफ़ थी की शक्तिसिंह की अवस्था का उसे कोई अंदाजा न था... वह बस झड़ना चाहती थी...

शक्तिसिंह ने अपनी जीभ को राजमाता के फैले हुए भोंसड़े में अंदर तक डाल दी... पसीज चुके योनिमार्ग से अनोखी गंध वाला गरम गरम रस उसके मुंह में गिरता जा रहा था। भोंसड़े के अचानक सिकुड़ने का अनुभव होते ही शक्तिसिंह ने अनुमान लगा लिया की वह झड़ने के करीब थी। चुत से कामरस की बौछार की अपेक्षा से शक्तिसिंह ने अपना मुंह थोड़ा और खोल दिया।

"हाय... माँ... मर जाऊँगी में... क्या चाटता है तू बेटा... आईईईई... " राजमाता ने किलकारियाँ मारते हुए अपना जिस्म एकदम सख्त कर दिया और फिर झटके मारते हुए झड़ने लगी... उनका पूरा शरीर कांप रहा था... दोनों जांघें फैलाकर वह शक्तिसिंह के मुंह पर ही निढाल हो गिरी...

राजमाता के शरीर के भारी वज़न के तले शक्तिसिंह का दम घुटने लगा... उसने पूरा जोर लगाते हुए राजमाता के शरीर को उठाया और अपने बगल में लिटा दिया... कमर तक उठे घाघरे, और खुली चुत और स्तनों के साथ, राजमाता ऐसे टांगें फैलाकर लेटी थी जैसे उनके प्राण निकल गए हो!!

अब बारी शक्तिसिंह की थी... वह राजमाता की दोनों जांघों के बीच सटकर बैठ गया... उनके दोनों पैरों को अपने मजबूत कंधों पर ले लिए... लंड का सुपाड़ा राजमाता के गरम आद्र भोंसड़े के मुख पर रखा... और एक जोर का धक्का दिया... एक पल में ही राजमाता के भोंसड़े ने पूरा लंड निगल लिया और शक्तिसिंह के टट्टे उनकी गांड के दरवाजे पर दस्तक देने लगे।

गरमाए हुए घोड़े की तरह शक्तिसिंह ने आव देखा न ताव... वह जबरदस्त धक्के लगाते हुए राजमाता के खुले हुए खरबूजे जैसे स्तनों पर टूट पड़ा। दोनों मम्मों को चारों ओर चूमने के बाद उनके दो अंगूर जैसे निप्पल को बारी बारी से मुंह में भरकर चूसने लगा...

राजमाता अभी एक स्खलन से उभरी भी नहीं थी पर शक्तिसिंह के इन जानदार धक्कों के कारण वह पुनर्जीवित हो उठी... उन्होंने अपने दोनों हाथों से शक्तिसिंह के सर को अपने स्तनों के बीच दबा दिया और अपनी टाँगे और फैला दी... शक्तिसिंह का सुपाड़ा अब गेंद की आकार का होकर राजमाता के भोंसड़े को और फैलाते हुए उनकी बच्चेदानी पर नगाड़े बजा रहा था। शक्तिसिंह के घुँघराले झांट का खुरदरापन, राजमाता के भगोष्ठ को रगड़ते जा रहा था...

अथाग परिश्रम के कारण दोनों के शरीर पसीने से तरबतर हो गए थे। राजमाता की चुत का झरना बहते ही जा रहा था... उनके दोनों स्तनों पर जगह जगह पर शक्तिसिंह के काटने से लाल निशान बन गए थे। उनकी निप्पलों को चटकारे लेकर चूसते हुए जब शक्तिसिंह दांतों से काटता तब राजमाता जोर से कराह उठती...

शक्तिसिंह ने अपनी गति और बढ़ाई... राजमाता भी नीचे से धक्के लगाए जा रही थी... शक्तिसिंह ने अपना एक हाथ दोनों के जिस्मों के बीच सरकाया और राजमाता के दाने को रगड़ने लगा... वह अब अपनी उत्तेजना की चरमसीमा पर था... आखिरी चंद धक्के लगाकर दहाड़ते हुए उसने अपने वीर्य की पिचकारी राजमाता के आनंदित भोंसड़े में दे मारी... गरम गरम घी जैसी बौछारों ने पूरा शाही भोंसड़ा सींच दिया... कुछ क्षणों तक पिचकारियों का वह दौर चलता रहा... अपने गर्भाशय के मुख तक इस गुनगुने द्रव्य को महसूस करते हुए राजमाता ने भी हार मान ली और थरथराते हुए झड़ गई।

पुचुक की आवाज के साथ शक्तिसिंह ने अपना गीला हथियार राजमाता की म्यान से बाहर निकाला। युद्ध से चन्दाी होकर लौटे सैनिक जैसी उसकी शान थी... शक्तिसिंह राजमाता के बगल में ढेर हो गया... राजमाता वात्सल्य से शक्तिसिंह के सर पर हाथ पसारने लगी।
 
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राजमाता सख्त मुंह बनाए वहाँ से चली गई... महारानी को यह पता न चला की वह किस बात पर क्रोधित थी...!! कहीं उन्हे उसके और दासी के गांड-उंगली के खेल के बारे में पता तो नही चल गया? वैसे ऐसी गुंजाइश तो नहीं थी चूंकि तंबू के दरवाजे से इतनी बारीकी से नजर आना असंभव था... फिर भी...!!


दो दिनों के बाद, राजमाता और महारानी अपने दस्ते के साथ सूरजगढ़ लौटे। राजमहल में उनका भव्य स्वागत किया गया। सब को यही मालूम था की वह दोनों धार्मिक यात्रा कर वापिस लौटे थे। उनके अलावा महाराज कमलसिंह को यह बात ज्ञात थी और वह बड़ी बेसब्री से उनके लौटने का इंतज़ार कर रहे थे। वह इस यात्रा के परिणाम को जानने के लिए बेहद उत्सुक थे।

राजमाता अपने कक्ष में पहुंचकर बिस्तर पर लेट गई। वह आँखें बंद कर पिछले एक हफ्ते के घटनाक्रम का मन में ही विश्लेषण कर रही थी। उन्होंने जिस तरह से सोचा था उसी हिसाब से सब हुआ। हालांकि एक डर उन्हे सताये जा रहा था और वह था महारानी पद्मिनी और शक्तिसिंह के बीच उत्पन्न हो चुकी नजदीकी का। उनका आदेश बड़ा स्पष्ट था की महारानी और शक्तिसिंह को किसी भी तरह की भावनाओ में बहने की अनुमति नही थी। पर जिस तरह से दो बार रानी और सैनिक, उनकी बगैर जानकारी के, संभोग करते हुए पकड़े गए थे, उन्हे यह डर था की कहीं वह दोनों छिप-छिपाके वापिस चोदने ना लग जाए। उन दोनों को रोकने के लिए राजमाता का शातिर दिमाग योजना बनाने लगा। कुछ देर पश्चात उन्होंने महाराज कमलसिंह को बुलावा भेजा।

महाराज के आते ही राजमाता सक्रिय हो गई और बिस्तर पर बैठ गई। पास पड़े आसन पर महाराज बिराजमान होकर यात्रा की जानकारी प्राप्त करने बेसब्र हो उठे।

"कैसी रही आपकी यात्रा, माँ"

"हम्म ठीक ही रही... में आश्वस्त हूँ की हमारा लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा"

महाराज के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। वह जानते थे की उनके वारिस का होना राज्य के लिए कितना महत्वपूर्ण था।

"हमे बड़ी ही प्रसन्नता हुई यह जानकर... वह योगी से इस कार्य के लिए पूर्ण सहयोग मिला होगा... उस जगह से हमारे परिवार का दशकों से संबंध रहा है... मुझे यकीन था की वह इस कार्य में हमारी सहायता जरूर करेंगे"

राजमाता ने कोई उत्तर ना दिया... मंजिल को कैसे हासिल किया गया था वह केवल राजमाता, महारानी और शक्तिसिंह ही जानते थे।

"क्या हुआ माँ? आप कुछ बोल नही रही..!!"

"कुछ नही.. बस थोड़ी सी थकान है... मैंने तुम्हें एक महत्वपूर्ण बात करने बुलाया है"

"जी बताइए माँ"

"पहली बात तो, में यह चाहती हूँ की महारानी के गर्भवती होने की बात को गोपनीय रखा जाए। रानी महल में सुरक्षा भी सख्त करनी है। हमारे दुश्मन तक अगर यह बात पहुंची तो महारानी की जान को खतरा हो सकता है।" राजमाता ने गंभीरता से कहा

"जी जरूर... में तुरंत आदेश देकर सुरक्षा के कड़े इंतेजाम करवाता हूँ... जनाना महल में सिर्फ विश्वसनीय दासियों को ही नियुक्त किया जाएगा...किसी भी अनजान व्यक्ति के प्रवेश को प्रतिबंधित किया जाएगा"

"हम्म... पर इतना पर्याप्त ना होगा.. में चाहती हूँ की तुम जनाना महल में शक्तिसिंह को नियुक्त करो। वह वफादार और बहादुर है और उसके नेतृत्व में कुछ सैनिक रानी महल का ध्यान रखेंगे।"

महाराज को यह सुन आश्चर्य हुआ

"माँ, शक्तिसिंह तो सैन्य का हिस्सा है... यहाँ महल में और काफी सैनिक है जो इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा सकते है"

"नहीं, में चाहती हूँ की महारानी और रानी महल के लिए शक्तिसिंह को ही नियुक्त किया जाए। मुझे उसकी बहादुरी और वफादारी पर पूर्ण विश्वास है... सैन्य के कार्यों के लिए किसी और सैनिक को नियुक्त कर सकते है।" राजमाता ने आदेशात्मक स्वर में कहा

महाराज के पास राजमाता की बात को स्वीकार करने के अलावा और कोई विकल्प न था। उन्होंने जरूरी निर्देश दिए और दूसरे ही दिन शक्तिसिंह को रानीमहल की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई।

शक्तिसिंह को इस बात का अंदेशा था ही..!! जिस तरह से रानी और राजमाता उसके लंड के कायल हो गए थे वह जानता था की उसे करीब लाने के लिए ऐसी प्रयुक्ति, राजमाता जरूर आजमाएगी। फिलहाल उसे राजमाता से ज्यादा, महारानी पद्मिनी के करीब जाने में ज्यादा दिलचस्पी थी। महारानी के गोल गुंबज जैसे स्तन और गोरे गोरे भारी चूतड़, शक्तिसिंह के दिमाग से निकलने का नाम ही नही ले रहे थे। उनकी याद आते ही शक्तिसिंह का लंड इतना सख्त हो जाता था की धोती में छुपाना मुश्किल हो जाता।

महारानी को जैसे ही शक्तिसिंह के महल में नियुक्त होने के समाचार मिले... वह चहकने लगी। उनकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा... शक्तिसिंह के दमदार लौड़े से ठुकने के बाद उनकी चुत की प्यास और बढ़ चुकी थी। यात्रा से लौटते वक्त वह अमूमन यह सोच रही थी की वापिस फिर महाराज के ढीले लंड से चुदवाना पड़ेगा... शक्तिसिंह के मूसल के मुकाबले महाराज का लंड को तो नून्नी ही कहा जा सकता था। अब शक्तिसिंह के महल में आ जाने से फिर से वह उसके शक्तिशाली लिंग से खेल सकती थी... और चुदाई का पूर्ण आनंद ले सकती थी।

अपने खंड से बाहर निकलकर वह बरामदे के और चलती हुई उस स्थान पर जा पहुंची जहां शक्तिसिंह अपने दो सैनिकों के साथ पहरा दे रहा था। महारानी को देखकर उसकी आँखें चमक उठी। महारानी का इशारा पाते ही शक्तिसिंह ने दोनों सैनिकों को महल का चारों और से मुआयना करने जाने का निर्देश दिया। दोनों सैनिक अलग अलग दिशा में चल दिए। उनके नजर से ओजल होते ही महारानी ने शक्तिसिंह को अपनी बाहों में भर लिया!! शक्तिसिंह भयभीत हो उठा... अगर इस स्थिति में कोई उसे देख ले तो तुरंत ही उसका सर कलम दिया जाता। उसने महारानी को रोकना चाहा पर महारानी ने उसे कसकर जकड़ रखा था। वह बेतहाशा शक्तिसिंह को चूमे जा रही थी। उनके हाथ अब धोती के ऊपर से लंड को सहलाने लगे थे। वास्तविकता से अनजान उसका लंड हरकत में आकार महारानी की हथेलियों संग खेलने लगा।

महारानी ने अपना हाथ धोती में सरका दिया और शक्तिसिंह के मूसल को पकड़कर उसकी चमड़ी ऊपर नीचे करने लगी। शक्तिसिंह के आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया। वह चाहते हुए भी महारानी को सहयोग नही दे पा रहा था। वह इतना डरा हुआ था फिर भी उसका लंड पूर्णतः सख्त हो गया था। महारानी ने एक ही पल में उसका लंड धोती से बाहर निकाल दिया।

"यह क्या कर रही है महारानी जी!!! कोई आ गया तो आफत आ जाएगी..." सकपकाते हुए शक्तिसिंह ने कहा

महारानी ने उसकी बातों को अनसुना करते हुए घुटनों को मोड़ा और नीचे की और गई। अब शक्तिसिंह का लंड महारानी के मुख के बिल्कुल सामने तोप की तरह तना हुआ था। महारानी के हाथ लंड पर तेजी से आगे पीछे हो रहे थे। अपनी मुठ्ठी में लंड को भरकर जब वह अंदर की तरफ दबाती तब शक्तिसिंह का लाल सुर्ख सुपाड़ा अपने दर्शन देकर महारानी को प्रफुल्लित कर देता...

बिना वक्त जाया किए महारानी ने शक्तिसिंह के सुपाड़े को अपनी मुंह में ले लिया। शक्तिसिंह की आँखें बंद हो गई। अति-आनंद और घबराहट के बीच शक्तिसिंह झूल रहा था। वह हर दूसरे क्षण दोनों दिशाओं में देखता रहता था... महारानी पागलों की तरह उसका लंड चूसे जा रही थी। उसके लंड का जादू इस कदर सर पर सवार था की उनका दिमाग और कुछ सोच ही नही पा रहा था। शक्तिसिंह का फनफनाता लंड इस उत्तेजना को झेल पाने के लिए असमर्थ था और किसी भी वक्त अपना इस्तीफा दे सकता था। बड़ी ही मुश्किल से शक्तिसिंह ने उसे रोके रखा था।

लंड चूसते हुए महारानी अब शक्तिसिंह के टट्टों को भी सहला रही थी.... शक्तिसिंह की बर्दाश्त की सारी सीमा पार हो गई थी... महारानी के मुंह की गरम गलियों में गश्त लगाते हुए लंड पूरे उफान पर था। तीन चार बार और जोर से चूसने पर लंड ने हथियार रख दिए... फुले हुए सुपाड़े ने महारानी के मुख में वीर्य की बौछार कर दी। तीन चार जबरदस्त पिचकारियाँ लगते ही महारानी का दम घुटने लगा... पर वह फिर भी चूसे जा रही थी... लंड के अनूठे शक्ति-रस का पान कर वह धन्य हो गई थी!! शक्तिसिंह का लंड अब अपनी सख्ती छोड़ रहा था... यह महसूस होते ही महारानी ने लंड मुंह से निकाला और खड़ी हो गई। उसने शक्तिसिंह के चेहरे को पकड़ा और उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए। शक्तिसिंह अपने वीर्य की गंध को महसूस कर रहा था... एक गहरा चुंबन देकर महारानी ने फुसफुसाते हुए शक्तिसिंह के कानों में कहा

"रात को चुपके से मेरे कक्ष में आ जाना... ध्यान रहे किसी को इस बात का अंदेशा नही लगना चाहिए"

उन्होंने अपने वस्त्र को ठीक किया और एक शरारती मुस्कान देते हुए वहाँ से चल दी... शक्तिसिंह ने भी अपने लंड को तुरंत धोती के अंदर डाल दिया और पूर्ववत हो कर पहरा देने लगा। अभी जो कुछ भी हुआ था उसका विश्वास उसे अभी भी नही हो रहा था। महारानी की इस हिम्मत को देख वह दंग रह गया था!!

कुछ ही देर में दोनों सैनिक गश्त लगाकर लौट आए। उन में से एक ने शक्तिसिंह को बताया की राजमाता ने उसे हाजिर होने का हुकूम दिया है। आश्चर्य सह शक्तिसिंह राजमाता के कक्ष की और चल दिया। रानी महल के दूसरे हिस्से में उनका निवास था। उनके कक्ष में प्रवेश करते ही उसने देखा की वह बिस्तर पर टाँगे फैलाए बैठी थी और दो दासियाँ उनके पैर दबा रही थी।

शक्तिसिंह को देखते ही राजमाता ने आँखों से इशारा किया और दोनों दासियाँ उठकर कक्ष से बाहर चली गई।

शक्तिसिंह नतमस्तक होकर खड़ा रहा।

"हम्म तो कैसे हो तुम शक्तिसिंह?"

"आपकी कृपा है राजमाता" शक्तिसिंह ने हाथ जोड़कर कहा

"तुम्हें रानी महल की सुरक्षा की जिम्मेदारी मिलने पर हैरानी तो जरूर हुई होगी... है ना!!"

"में तो इस राज्य का सेवक हूँ राजमाता... मेरा परिवार पीढ़ियों से राजमहल की सुरक्षा करता आया है... यह तो मेरा सौभाग्य है की मुझे इस जिम्मेदारी के लिए काबिल समझा गया... में किसी भी प्रकार की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहूँगा" सिर झुकाकर शक्तिसिंह ने कहा। उसके मुरझाए लंड से वीर्य की बचीकूची बूंदें उसकी जांघों को गीला कर रही थी।

राजमाता के चेहरे पर एक कुटिल सी मुस्कान दौड़ गई। सारी स्थिति पर अपना पूर्ण नियंत्रण का एहसास होने पर वह मन ही मन बहुत खुश थी। शक्तिसिंह की सेवा के लिए उनका शाही भोंसड़ा पिछले कई दिनों से तड़प रहा था। शक्तिसिंह को अपने करीब लाने के लिए जो व्यवस्था उन्होंने आयोजित की थी वह सफल होती नजर आई..

"तुम आज से मेरे कक्ष की रखवाली करोगे... " राजमाता ने आदेश दिया

"क्षमा कीजिए राजमाता... पर मुझे तो महारानी पद्मिनी के कक्ष की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है!!" शक्तिसिंह राजमाता के इस खेल को अभी समझ नही पा रहा था

"अब तुम मुझे बताओगे की कैसे और क्या करना है?" राजमाता ने क्रोधित स्वर में कहा

"माफ कीजिए राजमाता जी, में तो केवल वही बता रहा था जिसका मुझे आदेश दिया गया था"

"अब से जो में कहूँगी, वही तुम्हारे लिए आदेश होगा, समझे!!" राजमाता ने बड़ी ही कड़ी आवाज में कहा। शक्तिसिंह का लाभ उठाने के लिए उसे वश में करना अत्यंत आवश्यक था।

"जी राजमाता, जैसी आपकी आज्ञा" गर्दन झुककर शक्तिसिंह ने स्वीकार किया

"दूसरी बात... रात के वक्त मेरे कक्ष के बाहर केवल तुम ही पहरा दोगे... बाकी सारे सैनिकों को महारानी की सुरक्षा के लिए भेज दिया जाए"

शक्तिसिंह को अब बात धीरे धीरे समझ में आने लगी थी। पहले तो राजमाता ने अधिक सुरक्षा का प्रश्न उठाकर शक्तिसिंह को महल में तैनात करवा दिया और अब महारानी की सुरक्षा का बहाना बनाकर सारे सैनिकों को वहाँ भेजने की बात कही। उनका उद्देश्य स्पष्ट था।

"मेरे हुकूम की आज से... बल्कि अभी से ही पालन हो... अब तुम जा सकते हो... में रात्री के प्रहार पूरी सुरक्षा का मुआयना करने आऊँगी। अगर जरा सी भी कोताही बरती गई तो में किसी को भी जिंदा नही छोड़ूँगी" आदेशात्मक स्वर में बोलकर राजमाता बिस्तर पर लेट गई और अपने दोनों घुटनों को मोड लिया। उनका घाघरा घुटनों तक ऊपर चढ़ गया और शक्तिसिंह को उनकी मांसल गोरी जांघें नजर आने लगी। हालांकि अभी कुछ देर पहले ही स्खलन हुआ था पर फिर भी शक्तिसिंह के लंड ने हरकत करना शुरू कर दिया। वह आँखें फाड़कर उनकी मलाई जैसी गोरी पिंडियों को देख रहा था।

"क्या देख रहे हो ?" राजमाता ने उसकी तरफ देखकर कहा

शक्तिसिंह ने अपनी आँखें झुका ली। अपनी चोरी पकड़ी जाने पर वह शर्मा गया।

"अब तुम जा सकते हो" राजमाता ने आँखें बंद करते हुए कहा

शक्तिसिंह उलटे पैर वापिस लौट गया। उसने अपने दल को महारानी के कमरे के बाहर पहरा देने का निर्देश दिया। कुछ देर बाद वह महारानी के कमरे में जा पहुंचा... महारानी उस वक्त अपने खंड में अकेली थी। शक्तिसिंह को देखते ही उनकी आँखें चमक उठी।


"अरे, तुम तो बड़ी जल्दी आ गए... भूल गए क्या, मैंने तुम्हें रात को आने के लिए कहा था" बड़े ही धीमे स्वर में महारानी ने कहा

शक्तिसिंह तय नही कर पा रहा था की बात की शुरुआत कैसे करें

"जी में... वो आपको... " शक्तिसिंह के गले में शब्द अटक गए थे

"साफ साफ बोलो, क्या कहना चाहते हो... "

"जी में यह सूचित करने आया था की आपसे मिलने आज रात में नही आ पाऊँगा"

"वह क्यों भला... एक ही बार में तुम्हारा हथियार थक गया क्या? यात्रा के दौरान तो जब देखो तब वह खड़ा ही दिखता था!! पर चिंता मत करो, रात होने में अभी वक्त है... तब तक तुम जरूर तैयार हो जाओगे इसका मुझे पूर्ण विश्वास है.. " महारानी पद्मिनी ने मुसकुराते हुए कहा

"जी बात वो नही है... " शक्तिसिंह ठीक से समझा नही पा रहा था

"दरअसल मुझे राजमाता के कक्ष की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है इसलिए.... " सकपकाते हुए शक्तिसिंह ने कहा

"क्या? किसने कहा तुमसे? महाराज का आदेश स्पष्ट था... इन अतिरिक्त सैनिकों को मेरी सुरक्षा के लिए ही भेजा गया है... और मेरा उद्देश्य तो यह है की जब तक गर्भधारण का समाचार ना मिले तब तक ज्यादा से ज्यादा संभोग कर में उसे सुनिश्चित कर सकूँ। इस बात को तुम हम दोनों के बीच तक ही सीमित रखना। तुम चिंता मत करो, में महाराज से बात करती हूँ"

"जी मुझे इस बात का आदेश राजमाता ने दिया है" डरते डरते शक्तिसिंह ने कहा

यह सुनते ही महारानी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। पर वह कुछ बोल नही पाई। उसे मालूम था की कमलसिंह नाम मात्र के राजा थे, असली राज तो राजमाता ही चलाती थी। पूरे राजमहल में किसी की हिम्मत नही थी की वह राजमाता के आदेश को अनसुना करे।

"शक्तिसिंह तुम अभी आ ही गए तो कक्ष का दरवाजा बंद कर लो... रात होने में अभी वक्त है.. तब तक हम थोड़ी देर... " शैतानी मुस्कान के साथ आँखें नचाते हुए महरानी ने कहा

"पर महारानी जी, बाहर खड़े सैनिकों ने मुझे अंदर आते देखा है... यहाँ ज्यादा समय व्यतीत करना अयोग्य होगा और उनको शंका हो जाएगी"

"तुम उनके सरदार हो... उन्हे कैसे संभालना वह तुम जानो... अभी फिलहाल में जैसा कह रही हूँ वैसा करो " महारानी के सर पर हवस का भूत सवार था। वह कैसे भी कर अपनी मखमली चुत में शक्तिसिंह का साबुत डंडा लेना चाहती थी।

"राजमाता ने कहा है की वह सुरक्षा व्यवस्था का मुआयना करने कभी भी आ सकती है... ऐसी सूरत में इतना बड़ा जोखिम उठाना उचित नही होगा महारानी जी" शक्तिसिंह ने डरते हुए कहा

राजमाता का नाम सुनते ही महारानी का दिमाग कलुषित हो गया... उनकी इस दखलंदाज़ी के कारण वह शक्तिसिंह को प्राप्त नही कर पा रही थी। उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर शक्तिसिंह की बात भी सही थी। ऐसा जोखिम उठाना ठीक नही था। उन्होंने आँखों से इशारा कर शक्तिसिंह को जाने के लिए कहा। शक्तिसिंह के जाते ही उन्होंने अपनी खास दासी को बुलाया

"जी महारानी जी... आपने याद किया?"

"उस दिन जैसे फिर से मालिश कर दे मेरी कमर की" महारानी ने चोली खोलकर उलटे लेटते हुए कहा। उनको दोनों उरोज सफेद कबूतरों की तरह बाहर झूलने लगे। दासी की आँखें उनपर चिपक सी गई। तभी उन्होंने अपने घाघरे को थोड़ा सा नीचे सरकाते हुए लगभग घुटनों तक ला दिया। उनके दोनों चूतड़ उजागर हो गए। दासी समझ गई की महारानी क्या चाहती थी। उसने तेल की शीशी लेकर मालिश करना शुरू कर दिया।

इस तरफ राजमाता अपने कक्ष से बाहर चलते हुए महल के उस हिस्से की तरफ चलते हुए आ रही थी जहां महारानी का खंड था। बीच रास्ते में उन्हे शक्तिसिंह अपनी ओर आता दिखा... पास से गुजरने पर भी शक्तिसिंह ने आँखें उठाकर राजमाता की तरफ नही देखा और चलता गया। राजमाता ने चन्दाी मुस्कान के साथ उसकी तरफ एक नजर देखा और आगे चल दी।

महारानी के कक्ष के बाहर तीन सैनिक खुली तलवार लिए पहरा दे रहे थे। शक्तिसिंह की इस व्यवस्था से संतुष्ट होकर राजमाता ने महारानी के कक्ष में प्रवेश किया। महारानी का कक्ष दो हिस्सों में बंटा हुआ था। कमरे के आगे के हिस्से में शाही साज सजावट थी और आगे चलते ही परदे के पीछे दूसरे हिस्से में महारानी का बिस्तर था। शाम होने को थी और कक्ष में काफी अंधेरा हो रहा था। महारानी के बिस्तर के इर्दगिर्द जल रहे दीयों से चारों ओर प्रकाश फैला था। हालांकि कमरे का आगे का हिस्सा अंधेरे में डूबा हुआ था। दबे पाँव चली आ रही राजमाता की भनक दासी या महारानी किसी को ना हुई। राजमाता एक स्तम्भ के पीछे खुद को छुपाकर, परदे के पीछे बिस्तर पर चल रही गतिविधियों को देखने लगी। यात्रा के दौरान जब वह महारानी के तंबू में आई थी तब उन्हे यकीन था की उन्होंने महरानी की सिसकियाँ साफ सुनी थी। उन्हे संदेह था की दासी के साथ वह कुछ तो गुल खिला रही थी।

"आह... वैसे ही करती जा... थोड़ा सा और तेल लेकर उंगली डाल" महारानी कराहते हुए बोली

राजमाता को अपनी आँखों पर विश्वास नही हो रहा था...!! महारानी अपने बड़े बड़े कूल्हे फैलाए लेटी थी और उनकी दासी अपनी उंगली महारानी की गांड के छेद में डालकर आगे पीछे कर रही थी...!! यह देख राजमाता का जबड़ा लटक गया... हालांकि गुदा मैथुन के बारे में वह विस्तार से जानती थी पर ना तो कभी उन्होंने वास्तविकता में उसे देखा था और ना ही कभी महसूस किया था। वास्तव में वह मानती थी की गाँड़ के सिकुड़े छेद में लंड डलवाना काफी दर्दनाक होता होगा। पर महारानी को उंगली डलवाते हुए देख वह अचंभित थी क्योंकी रानी के चेहरे पर दर्द का कोई निशान दिख नही रहा था। वह तो बड़े चाव से इस उंगली-चोदन का आनंद ले रही थी।

महारानी अपनी चूचियाँ खुद ही मसल रही थी। राजमाता क्रोधित होकर हस्तक्षेप करने ही वाली थी पर कुछ सोचकर वह रुक गई और यह पूरा तमाशा देखने लगी।

दासी महारानी की गाँड़ में उंगली डालते हुए अपने अंगूठे से उनकी चुत के होंठों को भी ऊपर से रगड़ रही थी। महारानी सातवे आसमान पर पहुँच चुकी थी... वह हर दूसरे पल अपने चूतड़ को उछाल रही थी... अस्पष्ट शब्दों की बकवास किए जा रही थी... और साथ ही साथ अपनी निपलों को मरोड़े जा रही थी।

"और तेजी से अंदर बाहर कर... आह आह... ऊई...!!!" चूतड़ उछाल उछालकर वह दासी की उंगली का पूर्ण आनंद ले रही थी। महारानी की चुत बेतहाशा पानी छोड़ रही थी। उनका पूरा जिस्म पसीने से तर हो चुका था। साँसे भी तेज चल रही थी।

महारानी की इस अवस्था को देख राजमाता के पूरे जिस्म में झुरझुरी सी होने लगी। उनकी साँसे फूलने लगी। उन्हे पता ही नही चला की कब उनका एक हाथ घाघरे के ऊपर से उनके भोंसड़े को मलने लगा था। वस्त्र के ऊपर से ही अपनी चुत को पकड़कर वह दबाने लगी और दूसरे हाथ से अपने स्तनों को सहलाने लगी। अगर वह स्तम्भ का सहारा लेकर ना खड़ी होती तो उत्तेजना के मारे वही गिर जाती।

"अब तू दो उंगली एक साथ डाल दे... " हांफते हुए महरानी ने कहा

"जी महारानी, ऐसा करूंगी तो आपको दर्द होगा" दासी इस आदेश से थोड़ा हिचकिचाई

"जैसा कह रही हूँ वैसा कर... डाल दे दो उंगली"

दासी ने दूसरी उंगली को तेल से लिप्त किया और एक साथ दोनों उंगली अंदर डाल दी...

"ऊईई माँ... मर गई... " महारानी के कंठ से हल्की चीख निकल गई...

घबराकर दासी ने दोनों उंगली बाहर निकाल ली

"क्या कर रही है तू? बाहर क्यों निकाल ली तूने... " महारानी ने बेचैन होते हुए पूछा

"जी वो आपको दर्द हुआ इसलिए " दासी ने डरते डरते उत्तर दिया

"डाल दे वापिस... पर जरा धीरे धीरे... तूने झटके से अंदर डाल दी इसलिए दर्द हुआ"

दासी ने तुरंत अमल किया... थोड़ा सा और तेल लेकर उसने पहले तो महारानी के गांड के छेद में डाल और फिर उंगलियों को तेल से द्रवित कर धीरे धीरे दोनों उंगलियों को उनके बादामी रंग के छेद में डाल दिया।

"कुछ देर ऐसे ही डाले रख... जब में कहूँ तब आगे पीछे करना" महारानी दो उंगलियों की चौड़ाई से गांड के छेद को अभ्यस्त करवाना चाहती थी। कुछ समय तक यूँही पड़े रहने के बाद उनका छेद अब उंगलियों के आसपास सहज हो गया।

"अब धीरे धीरे आगे पीछे कर... और हाँ... तेरे अंगूठे से नीचे घिसती रहना" वह अपनी प्यासी चुत को भी अनदेखा करना नही चाहती थी

दासी की उँगलियाँ अब किसी यंत्र की तरह महारानी की गांड के छेद में अंदर बाहर हो रहा था और साथ थी साथ उसका अंगूठा चुत के होंठों को सहला रहा था। दोनों होंठ चुत के द्रवित होते रस से चिपचिपे बन गए थे। दासी की उँगलियाँ ऐसे चल रही थी जैसे मक्खन के अंदर गरम छुरी।

इस अंगुली-चोदन को देखते हुए राजमाता काफी उत्तेजित हो रही थी... उनका अनुभवी भोंसड़ा अब भांप छोड़ रहा था... एक हाथ से अपना घाघरा ऊपर कर उन्होंने दूसरे हाथ की उंगली से अपने अंगूर जैसे दाने को रगड़ा... उंगली की रगड़ खाते ही उनकी क्लिटोरिस सिहर उठी... पूरा शरीर झुंजहाने लगा.. दाने को रगड़कर उन्होंने उंगली को चुत के होंठों के बीच घुसा दिया...

यहाँ दासी ने महारानी की गांड में उंगली करते करते अपना अंगूठा उनकी चुत में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। दोनों छिद्रों में एक साथ हुए हमले से महारानी उछलने लग गई। उनकी चुत का शहद अब बहकर बिस्तर को गीला कर रहा था। महारानी को इस अवस्था में देखकर दासी की चुत में भी चुनचुनी होने लगी थी। उसने अपना दूसरा हाथ चोली में डालकर अपने स्तनों को मसलना शुरू कर दिया।

"हाय दैया... मार देगी तू मुझे... कैसा रगड़ रही है री तू... आह...!!" महारानी निरंतर बकवास किए जा रही थी। उनकी निप्पल मरोड़ने के कारण लाल लाल हो गई थी... अब तो उन्हे छूने पर भी दर्द हो रहा था।

इस तरफ राजमाता की उंगली भी जोर-शोर से उनके भोंसड़े के अंदर बाहर हो रही थी... उनके घुटने इतने अशक्त महसूस होने लगे की लगता था की वह किसी भी वक्त संतुलन खो कर गिर जाएगा। जैसे तैसे कर उन्होंने अपना आपा बनाए रखा था। उंगली से जैसे उनका मन नही भर रहा था... अब उन्होंने स्तंभ के कोण पर अपना दाना घिसना शुरू कर दिया... पूरे कक्ष में, तीन उत्तेजित चूतों की गंध फैल गई थी।

"ऊईईई... जोर से घिस जरा... हाय कमीनी... जरा हाथ चला जल्दी जल्दी... में निढाल होने ही वाली हूँ... आईईई माँ... " महारानी कराहती हुई अपनी मंजिल की तरफ कूच कर रही थी... कुछ ही पलों में महारानी ऐसे तड़पने लगी जैसे जल बिन मछली..!! एक जोरदार चीख मारकर महारानी लाश की तरह ढेर हो गई... दासी ने उनकी गांड और चुत से उंगली निकालकर उन्हे सूंघा... शाही गुप्तांगों की अनोखी खुशबू ने उसे सराबोर कर दिया। होश खोकर लुढ़की हुई महारानी के बिस्तर के दूसरे छोर पर दासी अपनी टाँगे फैलाकर लेट गई और अपना घाघरा उठाकर चुत में उंगली करने लगी।

कुछ ही पलों में उसकी चुत ने भी जवाब दे दिया। वह धीरे से उठी, अपने वस्त्र ठीक किए और महारानी के ऊपर मखमली चद्दर ओढाकर वहाँ से चलने लगी। दासी को बाहर आता देख राजमाता ने भी अपनी उंगली बाहर निकाली, घाघरा गिराया और अंधेरे का सहारा लेकर कक्ष से बाहर निकल गई।

अपने खंड तक लौटते हुए राजमाता ने शक्तिसिंह को द्वार पर अकेले चौकीदारी करते हुए देखा और मुस्कुरा दी... बिना कुछ कहें वह शक्तिसिंह के करीब से गुजरकर अंदर चली गई।

मध्य रात्री का समय था। पूरा नगर नींद की गिरफ्त में सो रहा था। रानी महल में सन्नाटा छाया हुआ था... केवल सिपाहियों और चौकीदारों की प्रासंगिक चहल पहल सुनाई दे रही थी। रानी महल के अंतिम छोर पर कोने में राजमाता के कक्ष के बाहर शक्तिसिंह पहरा दे रहा था। तभी कक्ष का बंद दरवाजा खुला और पीछे से राजमाता प्रकट हुए। उन्होंने आँखों से ही इशारा कर शक्तिसिंह को अंदर बुलाया। बिना कुछ कहे या पूछे शक्तिसिंह नीची मुंडी कर अंदर चला गया। उसके अंदर आते ही राजमाता ने द्वार बंद कर दिया और कुंडी लगा दी।

राजमाता का कक्ष काफी विशाल था... छत पर रंगबिरंगी कांच के झूमर लटक रहे थे... दीवारों पर कीमती रत्न जड़े हुए थे... बड़े बड़े तैल-चित्रों से दीवारें सुशोभित थी... बीच में पड़े मेज और कुर्सी पर सुवर्ण का आवरण था। थोड़ा सा और अंदर जाते ही बड़ा सा बिस्तर था... पलंग के चार स्तंभ पर शेर की छवि मुद्रित थी... चारों और दिए और सुगंधित बत्तियाँ जल रही थी.. छत से लेकर बिस्तर तक एक पारदर्शक कपड़ा, पलंग को चारों ओर से ढँक रहा था।

राजमाता के पीछे पीछे चलते हुए शक्तिसिंह भी बिस्तर तक आ गया। बिस्तर पर पहुंचकर राजमाता शक्तिसिंह की ओर मुड़ी और उसे अपनी बाहों में भर लिया। शक्तिसिंह ने भी सहयोग देते हुए अपने खुरदरे हाथों से राजमाता की मांसल पीठ और कमर की गोरी कोमल त्वचा को सहलाना शुरू कर दिया। शक्तिसिंह को चूमते हुए राजमाता आहें भर रही थी। कुछ देर तक उसकी बलिष्ठ भुजाओं का आनंद लेकर राजमाता ने उसे अपने बाहुपाश से मुक्त किया और बिस्तर पर फैल कर बैठ गई।

"बड़ा तड़पाया है तूने मुझे... यात्रा से लेकर अब तक... मेरा शरीर तेरी मजबूत पकड़ को तरस गया है... पर तुझे तो मेरी याद ही नही आती"

"ऐसा नही है राजमाता, में तो आपके आदेश का पालन कर राज्य को लौट गया था और फिर तालिम में व्यस्त था.. मुझे तो आज ही पता चला की आप यात्रा से लौट आए है"

"हम्म... तुझे वहाँ से वापिस लौटने का आदेश देना जरूरी था... वरना वह चुदैल महारानी अपने मोहपाश से तुझे मुक्त ही नही करती"

शक्तिसिंह मौन ही रहा.. यात्रा के वक्त उत्तेजनावश उसने राजमाता के निर्देश की अवहेलना कर महारानी को अतिरिक्त दो बार चोद दिया था और राजमाता को इसका ज्ञान भी हो गया था। वासना का रंग उड़ते ही उसे एहसास हुआ की इस उपेक्षा का बड़ा भयानक नतीजा हो सकता था। गनीमत थी की राजमाता भी उसके लंड की दीवानी हो चली थी वरना उसका वहाँ से जिंदा लौट पाना नामुमकिन था।

"चुप क्यों खड़ा है? आजा यहाँ मेरे पास बैठ..." राजमाता ने उसे आमंत्रित किया

थोड़े से संकोच के साथ शक्तिसिंह राजमाता के बगल में जा बैठा।

राजमाता ने उसकी मजबूत बाहों को सहलाना शुरू कर दिया... उसकी बलिष्ठ मांसपेशियाँ सैनिक-वस्त्रों के बाहर झलक रही थी और शक्तिसिंह की ताकत का प्रमाण भी दे रही थी। हालांकि राजमाता ने शक्तिसिंह की शक्ति को भलीभाँति परख लिया था।

राजमाता ने अपने घने गुलाबी होंठों से शक्तिसिंह के कंधों को चूमा... और उसकी छाती पर अपना हाथ घुमाने लगी। उनकी रगों में रक्त तेजी से दौड़ने लगा था। कुछ देर पहले महारानी के खंड में संदीप्त हुई चुत फिर से हरकत करने लगी। उनके गाल उत्तेजनावश लाल लाल हो गए। उन्होंने एक धक्का देकर शक्तिसिंह को बिस्तर पर लिटा दिया और उसके जिस्म के दोनों तरफ पैर रखकर शक्तिसिंह के शरीर पर सवार हो गई।

शक्तिसिंह के खड़े लँड के बिल्कुल ऊपर राजमाता के चूतड़ बिराजमान थे। हालांकि बीच में दोनों के वस्त्रों का आवरण जरूर था।

राजमाता अब शक्तिसिंह पर ऐसे झपटी जैसे भूखी शेरनी मेमने पर झपटती है। उन्होंने बेतहाशा होकर शक्तिसिंह के गर्दन, होंठ, कपाल और छाती पर चूमना शुरू कर दिया। शक्तिसिंह भी निढाल होकर पड़े पड़े राजमाता के इस खेल का आनंद ले रहा था। उसका लंड राजमाता के शरीर के वज़न तले दबा हुआ था पर फिर भी अपना पूरा जोर लगाकर खड़ा होने की भरसक कोशिश कर रहा था।

शक्तिसिंह की छाती को चूमते हुए राजमाता नीचे की ओर गई... और अपने पसंदीदा हथियार को धोती के आवरण के ऊपर से ही महसूस करने लगी। राजमाता का वज़न हटते ही शक्तिसिंह का औज़ार धोती को उठाते हुए खड़ा हो गया। धोती के उस उभार को राजमाता सम्मोहित होकर देखती ही रह गई। उन्होंने उस उभार को अपनी मुठ्ठी में पकड़ा... उस मजबूत लिंग की परिधि का एहसास होते ही उनकी चुत ने तुरंत पानी का अभिषेक कर दिया। उस योनिजल का गीलापन शक्तिसिंह को अपने घुटनों पर महसूस हुआ।

धोती को टटोलते हुए राजमाता ने आखिर शक्तिसिंह के लंड को मुक्त कर ही दिया..!! कुछ प्रहरों पहले महारानी के मुख-मैथुन से रिसाव कर चुके इस लंड ने अब नया चेहरा देखा!! तन्ना के ऐसे सख्त खड़ा था जैसे राजमाता को सलामी दे रहा हो!! उस प्यारे टमाटर जैसे सुपाड़े को राजमाता बड़े ही वात्सल्य से देखती रही... उन्हे इतना प्यार उमड़ आया की बिना एक क्षण का व्यय किए, उन्होंने उस गुलाबी सुपाड़े को मुंह में भर लिया और बड़े ही चाव से चूसने लगी। लंड के ऊपर से लेकर नीचे तक वह अपनी जीभ फेरते हुए उसे अपनी लार से सराबोर करती जा रही थी। शक्तिसिंह आँखें बंद कर इस स्वर्गीय सुख का आनंद ले रहा था।

अपनी मुठ्ठी में कैद कर राजमाता ने लंड को ऊपर से नीचे तक हिलाया। उसके लंड की त्वचा को ऊपर नीचे करते हुए वह सुपाड़े को चूसने लगी। वीर्य की कुछ बूंदें सुपाड़े के छेद पर प्रकट हुई जिसे राजमाता ने अपनी जीभ के छोर से समेटकर चाट लिया। उस मजबूत सैनिक के पुष्ट वीर्य में अनोखा स्वाद था।

उधर राजमाता की चुत आंदोलित हो रही थी... अवहेलना उससे बर्दाश्त न हुई और वह टपक टपक कर राजमाता को उसे मुक्त करने का आहवाहन दे रही थी। चुत की इस स्थिति से वाकिफ होने के बावजूद, राजमाता फिलहाल शक्तिसिंह के लंड को छोड़ना नही चाहती थी। वह पागलों की तरह शक्तिसिंह के लंड को चूसे जा रही थी। उसका पूरा लंड राजमाता की लार से द्रवित हो चुका था।

राजमाता द्वारा की जा रही लंड चुसाई का आनंद लेते हुए शक्तिसिंह ने अपना कवच और उपरार्ध का वस्त्र, लेटे लेटे ही उतार दिया। उसकी मांसल मजबूत विशाल छाती पर राजमाता अपना हाथ पसारने लगी। शक्तिसिंह के लंड को मुक्त कर राजमाता खड़ी हुई और अपनी चोली की गांठ खोलने लगी। गांठ खुलते ही उनके दोनों लचीले भारी गोरे गोरे स्तन बाहर निकल आए। दोनों विशाल स्तन और उसपर लगी लाल चेरी जैसी उनकी निप्पल देखकर ही शक्तिसिंह के मुंह में पानी आ गया।

राजमाता अपने स्तन खोलकर खड़ी हो गई और उन्होंने अपना घाघरा उठाया। दोनों मांसल जांघों के बीच बालों के झुरमुट में छिपी हुई उनकी लाल चुत की लकीर द्रश्यमान हो गई। उनका दाना उत्तेजना से सख्त हो गया था और चुत के होंठों से रस टपक रहा था। उसी अवस्था में राजमाता एक कदम आगे आई और बिल्कुल शक्तिसिंह के चेहरे के दोनों तरफ टाँगे जमाकर खड़ी हो गई। शक्तिसिंह को अपने ऊपर फैली जांघों के बीच राजमाता का शाही भोंसड़ा नजर आ रहा था और योनिरस उसके मुंह पर टपक रहा था। वह असमंजस में था की राजमाता आखिर क्या करना चाहती थी। राजमाता ने हौले से अपने घुटनों को मोड़ा और अपनी चुत को बिल्कुल शक्तिसिंह के मुंह के करीब ले गई।

"देख ले बेटा... यह वही शाही चुत है जिसमे से तुम्हारे महाराज प्रकट हुए थे... आज इसमे ऐसा घमासान हुआ पड़ा है जिसे बस तू ही शांत कर सकता है... ले... इसका रस पीकर तृप्त हो जा... " कहते ही राजमाता ने अपनी चुत को शक्तिसिंह के मुंह पर रख दिया।

शुरुआत में उसने अपनी जीभ चुत पर फेर दी... स्पर्श होते ही दोनों होंठ खुल गए और चुत के अंदर का लाल गुलाबी हिस्सा दिखने लगा। राजमाता की चुत को इतने करीब से देखकर वह अभिभूत हो गया। राजमाता ने उंगलियों से अपनी चुत के दोनों होंठों को चौड़ा किया और अपना पूरा वज़न शक्तिसिंह के मुंह पर डाल दिया। शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से राजमाता के भारी चूतड़ों को पकड़े रखा ताकि संतुलन बना रहे और चाटने की क्रिया को ठीक से नियंत्रित भी किया जा सके।

राजमाता की चुत के गाढ़े चिपचिपे शहद को वह ऐसे चाटने लगा जैसे बिल्ली दूध चाटती है... उस दौरान राजमाता अपना दाना घिसे जा रही थी... चुत की अनोखी गंध शक्तिसिंह के नथुनों मे जाते ही वह मस्त हो गया। राजमाता अपने चूतड़ों को आगे पीछे हिलाते हुए चुत को शक्तिसिंह की जीभ पर रगड़ रही थी। उनका पूरा योनिमार्ग रस से लसलसित हो चुका था और शक्तिसिंह के मजबूत औज़ार को अपने में समाने के लिए आतुर हो उठा था।

अपनी चुत शक्तिसिंह के मुंह पर रगड़ते हुए राजमाता थोड़ी सी पीछे की और झुकी और एक हाथ से उसके लंड को पकड़ लिया... अपने आप को झड़ने से रोकने के लिए शक्तिसिंह को काफी यत्न करना पड़ा। राजमाता की चुत उसके मुख पर योनिरस का अभिषेक कर रही थी... और वह उसे चूसे जा रहा था। उनकी चुत का दाना उत्तेजना से सूजकर जामुन के आकार सा हो गया था।

शक्तिसिंह के मुंह की सवारी करते हुए वह उसका लंड हिलाते जा रही थी... राजमाता का घाघरा दोनों जांघों पर ऊपर तक चढ़ गया था। उनकी हलचल से राजमाता के दोनों भारी लचीले स्तन यहाँ वहाँ झूल रहे थे। शक्तिसिंह की दाढ़ी वाली ठुड्डी का स्पर्श अपनी गांड के छेद पर होते ही राजमाता सिहर उठती। वह अब पगलाई घोड़ी की तरह शक्तिसिंह के मुंह पर आगे पीछे होते हुए अपनी चुत घिसे जा रही थी।

शक्तिसिंह की हालत खराब थी... उसका लंड अब केवल हिलाने भर से खुश नहीं था... उसे चाहिए थी गुनगुनी चुत की गर्माहट... पर फिलहाल इस खेल का सारा नियंत्रण राजमाता के पास था... और वह तो झड़ने के यत्न में इतनी मशरूफ़ थी की शक्तिसिंह की अवस्था का उसे कोई अंदाजा न था... वह बस झड़ना चाहती थी...

शक्तिसिंह ने अपनी जीभ को राजमाता के फैले हुए भोंसड़े में अंदर तक डाल दी... पसीज चुके योनिमार्ग से अनोखी गंध वाला गरम गरम रस उसके मुंह में गिरता जा रहा था। भोंसड़े के अचानक सिकुड़ने का अनुभव होते ही शक्तिसिंह ने अनुमान लगा लिया की वह झड़ने के करीब थी। चुत से कामरस की बौछार की अपेक्षा से शक्तिसिंह ने अपना मुंह थोड़ा और खोल दिया।

"हाय... माँ... मर जाऊँगी में... क्या चाटता है तू बेटा... आईईईई... " राजमाता ने किलकारियाँ मारते हुए अपना जिस्म एकदम सख्त कर दिया और फिर झटके मारते हुए झड़ने लगी... उनका पूरा शरीर कांप रहा था... दोनों जांघें फैलाकर वह शक्तिसिंह के मुंह पर ही निढाल हो गिरी...

राजमाता के शरीर के भारी वज़न के तले शक्तिसिंह का दम घुटने लगा... उसने पूरा जोर लगाते हुए राजमाता के शरीर को उठाया और अपने बगल में लिटा दिया... कमर तक उठे घाघरे, और खुली चुत और स्तनों के साथ, राजमाता ऐसे टांगें फैलाकर लेटी थी जैसे उनके प्राण निकल गए हो!!

अब बारी शक्तिसिंह की थी... वह राजमाता की दोनों जांघों के बीच सटकर बैठ गया... उनके दोनों पैरों को अपने मजबूत कंधों पर ले लिए... लंड का सुपाड़ा राजमाता के गरम आद्र भोंसड़े के मुख पर रखा... और एक जोर का धक्का दिया... एक पल में ही राजमाता के भोंसड़े ने पूरा लंड निगल लिया और शक्तिसिंह के टट्टे उनकी गांड के दरवाजे पर दस्तक देने लगे।

गरमाए हुए घोड़े की तरह शक्तिसिंह ने आव देखा न ताव... वह जबरदस्त धक्के लगाते हुए राजमाता के खुले हुए खरबूजे जैसे स्तनों पर टूट पड़ा। दोनों मम्मों को चारों ओर चूमने के बाद उनके दो अंगूर जैसे निप्पल को बारी बारी से मुंह में भरकर चूसने लगा...

राजमाता अभी एक स्खलन से उभरी भी नहीं थी पर शक्तिसिंह के इन जानदार धक्कों के कारण वह पुनर्जीवित हो उठी... उन्होंने अपने दोनों हाथों से शक्तिसिंह के सर को अपने स्तनों के बीच दबा दिया और अपनी टाँगे और फैला दी... शक्तिसिंह का सुपाड़ा अब गेंद की आकार का होकर राजमाता के भोंसड़े को और फैलाते हुए उनकी बच्चेदानी पर नगाड़े बजा रहा था। शक्तिसिंह के घुँघराले झांट का खुरदरापन, राजमाता के भगोष्ठ को रगड़ते जा रहा था...

अथाग परिश्रम के कारण दोनों के शरीर पसीने से तरबतर हो गए थे। राजमाता की चुत का झरना बहते ही जा रहा था... उनके दोनों स्तनों पर जगह जगह पर शक्तिसिंह के काटने से लाल निशान बन गए थे। उनकी निप्पलों को चटकारे लेकर चूसते हुए जब शक्तिसिंह दांतों से काटता तब राजमाता जोर से कराह उठती...

शक्तिसिंह ने अपनी गति और बढ़ाई... राजमाता भी नीचे से धक्के लगाए जा रही थी... शक्तिसिंह ने अपना एक हाथ दोनों के जिस्मों के बीच सरकाया और राजमाता के दाने को रगड़ने लगा... वह अब अपनी उत्तेजना की चरमसीमा पर था... आखिरी चंद धक्के लगाकर दहाड़ते हुए उसने अपने वीर्य की पिचकारी राजमाता के आनंदित भोंसड़े में दे मारी... गरम गरम घी जैसी बौछारों ने पूरा शाही भोंसड़ा सींच दिया... कुछ क्षणों तक पिचकारियों का वह दौर चलता रहा... अपने गर्भाशय के मुख तक इस गुनगुने द्रव्य को महसूस करते हुए राजमाता ने भी हार मान ली और थरथराते हुए झड़ गई।


पुचुक की आवाज के साथ शक्तिसिंह ने अपना गीला हथियार राजमाता की म्यान से बाहर निकाला। युद्ध से चन्दाी होकर लौटे सैनिक जैसी उसकी शान थी... शक्तिसिंह राजमाता के बगल में ढेर हो गया... राजमाता वात्सल्य से शक्तिसिंह के सर पर हाथ पसारने लगी।
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राजमाता सख्त मुंह बनाए वहाँ से चली गई... महारानी को यह पता न चला की वह किस बात पर क्रोधित थी...!! कहीं उन्हे उसके और दासी के गांड-उंगली के खेल के बारे में पता तो नही चल गया? वैसे ऐसी गुंजाइश तो नहीं थी चूंकि तंबू के दरवाजे से इतनी बारीकी से नजर आना असंभव था... फिर भी...!!


दो दिनों के बाद, राजमाता और महारानी अपने दस्ते के साथ सूरजगढ़ लौटे। राजमहल में उनका भव्य स्वागत किया गया। सब को यही मालूम था की वह दोनों धार्मिक यात्रा कर वापिस लौटे थे। उनके अलावा महाराज कमलसिंह को यह बात ज्ञात थी और वह बड़ी बेसब्री से उनके लौटने का इंतज़ार कर रहे थे। वह इस यात्रा के परिणाम को जानने के लिए बेहद उत्सुक थे।

राजमाता अपने कक्ष में पहुंचकर बिस्तर पर लेट गई। वह आँखें बंद कर पिछले एक हफ्ते के घटनाक्रम का मन में ही विश्लेषण कर रही थी। उन्होंने जिस तरह से सोचा था उसी हिसाब से सब हुआ। हालांकि एक डर उन्हे सताये जा रहा था और वह था महारानी पद्मिनी और शक्तिसिंह के बीच उत्पन्न हो चुकी नजदीकी का। उनका आदेश बड़ा स्पष्ट था की महारानी और शक्तिसिंह को किसी भी तरह की भावनाओ में बहने की अनुमति नही थी। पर जिस तरह से दो बार रानी और सैनिक, उनकी बगैर जानकारी के, संभोग करते हुए पकड़े गए थे, उन्हे यह डर था की कहीं वह दोनों छिप-छिपाके वापिस चोदने ना लग जाए। उन दोनों को रोकने के लिए राजमाता का शातिर दिमाग योजना बनाने लगा। कुछ देर पश्चात उन्होंने महाराज कमलसिंह को बुलावा भेजा।

महाराज के आते ही राजमाता सक्रिय हो गई और बिस्तर पर बैठ गई। पास पड़े आसन पर महाराज बिराजमान होकर यात्रा की जानकारी प्राप्त करने बेसब्र हो उठे।

"कैसी रही आपकी यात्रा, माँ"

"हम्म ठीक ही रही... में आश्वस्त हूँ की हमारा लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा"

महाराज के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। वह जानते थे की उनके वारिस का होना राज्य के लिए कितना महत्वपूर्ण था।

"हमे बड़ी ही प्रसन्नता हुई यह जानकर... वह योगी से इस कार्य के लिए पूर्ण सहयोग मिला होगा... उस जगह से हमारे परिवार का दशकों से संबंध रहा है... मुझे यकीन था की वह इस कार्य में हमारी सहायता जरूर करेंगे"

राजमाता ने कोई उत्तर ना दिया... मंजिल को कैसे हासिल किया गया था वह केवल राजमाता, महारानी और शक्तिसिंह ही जानते थे।

"क्या हुआ माँ? आप कुछ बोल नही रही..!!"

"कुछ नही.. बस थोड़ी सी थकान है... मैंने तुम्हें एक महत्वपूर्ण बात करने बुलाया है"

"जी बताइए माँ"

"पहली बात तो, में यह चाहती हूँ की महारानी के गर्भवती होने की बात को गोपनीय रखा जाए। रानी महल में सुरक्षा भी सख्त करनी है। हमारे दुश्मन तक अगर यह बात पहुंची तो महारानी की जान को खतरा हो सकता है।" राजमाता ने गंभीरता से कहा

"जी जरूर... में तुरंत आदेश देकर सुरक्षा के कड़े इंतेजाम करवाता हूँ... जनाना महल में सिर्फ विश्वसनीय दासियों को ही नियुक्त किया जाएगा...किसी भी अनजान व्यक्ति के प्रवेश को प्रतिबंधित किया जाएगा"

"हम्म... पर इतना पर्याप्त ना होगा.. में चाहती हूँ की तुम जनाना महल में शक्तिसिंह को नियुक्त करो। वह वफादार और बहादुर है और उसके नेतृत्व में कुछ सैनिक रानी महल का ध्यान रखेंगे।"

महाराज को यह सुन आश्चर्य हुआ

"माँ, शक्तिसिंह तो सैन्य का हिस्सा है... यहाँ महल में और काफी सैनिक है जो इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा सकते है"

"नहीं, में चाहती हूँ की महारानी और रानी महल के लिए शक्तिसिंह को ही नियुक्त किया जाए। मुझे उसकी बहादुरी और वफादारी पर पूर्ण विश्वास है... सैन्य के कार्यों के लिए किसी और सैनिक को नियुक्त कर सकते है।" राजमाता ने आदेशात्मक स्वर में कहा

महाराज के पास राजमाता की बात को स्वीकार करने के अलावा और कोई विकल्प न था। उन्होंने जरूरी निर्देश दिए और दूसरे ही दिन शक्तिसिंह को रानीमहल की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई।

शक्तिसिंह को इस बात का अंदेशा था ही..!! जिस तरह से रानी और राजमाता उसके लंड के कायल हो गए थे वह जानता था की उसे करीब लाने के लिए ऐसी प्रयुक्ति, राजमाता जरूर आजमाएगी। फिलहाल उसे राजमाता से ज्यादा, महारानी पद्मिनी के करीब जाने में ज्यादा दिलचस्पी थी। महारानी के गोल गुंबज जैसे स्तन और गोरे गोरे भारी चूतड़, शक्तिसिंह के दिमाग से निकलने का नाम ही नही ले रहे थे। उनकी याद आते ही शक्तिसिंह का लंड इतना सख्त हो जाता था की धोती में छुपाना मुश्किल हो जाता।

महारानी को जैसे ही शक्तिसिंह के महल में नियुक्त होने के समाचार मिले... वह चहकने लगी। उनकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा... शक्तिसिंह के दमदार लौड़े से ठुकने के बाद उनकी चुत की प्यास और बढ़ चुकी थी। यात्रा से लौटते वक्त वह अमूमन यह सोच रही थी की वापिस फिर महाराज के ढीले लंड से चुदवाना पड़ेगा... शक्तिसिंह के मूसल के मुकाबले महाराज का लंड को तो नून्नी ही कहा जा सकता था। अब शक्तिसिंह के महल में आ जाने से फिर से वह उसके शक्तिशाली लिंग से खेल सकती थी... और चुदाई का पूर्ण आनंद ले सकती थी।

अपने खंड से बाहर निकलकर वह बरामदे के और चलती हुई उस स्थान पर जा पहुंची जहां शक्तिसिंह अपने दो सैनिकों के साथ पहरा दे रहा था। महारानी को देखकर उसकी आँखें चमक उठी। महारानी का इशारा पाते ही शक्तिसिंह ने दोनों सैनिकों को महल का चारों और से मुआयना करने जाने का निर्देश दिया। दोनों सैनिक अलग अलग दिशा में चल दिए। उनके नजर से ओजल होते ही महारानी ने शक्तिसिंह को अपनी बाहों में भर लिया!! शक्तिसिंह भयभीत हो उठा... अगर इस स्थिति में कोई उसे देख ले तो तुरंत ही उसका सर कलम दिया जाता। उसने महारानी को रोकना चाहा पर महारानी ने उसे कसकर जकड़ रखा था। वह बेतहाशा शक्तिसिंह को चूमे जा रही थी। उनके हाथ अब धोती के ऊपर से लंड को सहलाने लगे थे। वास्तविकता से अनजान उसका लंड हरकत में आकार महारानी की हथेलियों संग खेलने लगा।

महारानी ने अपना हाथ धोती में सरका दिया और शक्तिसिंह के मूसल को पकड़कर उसकी चमड़ी ऊपर नीचे करने लगी। शक्तिसिंह के आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया। वह चाहते हुए भी महारानी को सहयोग नही दे पा रहा था। वह इतना डरा हुआ था फिर भी उसका लंड पूर्णतः सख्त हो गया था। महारानी ने एक ही पल में उसका लंड धोती से बाहर निकाल दिया।

"यह क्या कर रही है महारानी जी!!! कोई आ गया तो आफत आ जाएगी..." सकपकाते हुए शक्तिसिंह ने कहा

महारानी ने उसकी बातों को अनसुना करते हुए घुटनों को मोड़ा और नीचे की और गई। अब शक्तिसिंह का लंड महारानी के मुख के बिल्कुल सामने तोप की तरह तना हुआ था। महारानी के हाथ लंड पर तेजी से आगे पीछे हो रहे थे। अपनी मुठ्ठी में लंड को भरकर जब वह अंदर की तरफ दबाती तब शक्तिसिंह का लाल सुर्ख सुपाड़ा अपने दर्शन देकर महारानी को प्रफुल्लित कर देता...

बिना वक्त जाया किए महारानी ने शक्तिसिंह के सुपाड़े को अपनी मुंह में ले लिया। शक्तिसिंह की आँखें बंद हो गई। अति-आनंद और घबराहट के बीच शक्तिसिंह झूल रहा था। वह हर दूसरे क्षण दोनों दिशाओं में देखता रहता था... महारानी पागलों की तरह उसका लंड चूसे जा रही थी। उसके लंड का जादू इस कदर सर पर सवार था की उनका दिमाग और कुछ सोच ही नही पा रहा था। शक्तिसिंह का फनफनाता लंड इस उत्तेजना को झेल पाने के लिए असमर्थ था और किसी भी वक्त अपना इस्तीफा दे सकता था। बड़ी ही मुश्किल से शक्तिसिंह ने उसे रोके रखा था।

लंड चूसते हुए महारानी अब शक्तिसिंह के टट्टों को भी सहला रही थी.... शक्तिसिंह की बर्दाश्त की सारी सीमा पार हो गई थी... महारानी के मुंह की गरम गलियों में गश्त लगाते हुए लंड पूरे उफान पर था। तीन चार बार और जोर से चूसने पर लंड ने हथियार रख दिए... फुले हुए सुपाड़े ने महारानी के मुख में वीर्य की बौछार कर दी। तीन चार जबरदस्त पिचकारियाँ लगते ही महारानी का दम घुटने लगा... पर वह फिर भी चूसे जा रही थी... लंड के अनूठे शक्ति-रस का पान कर वह धन्य हो गई थी!! शक्तिसिंह का लंड अब अपनी सख्ती छोड़ रहा था... यह महसूस होते ही महारानी ने लंड मुंह से निकाला और खड़ी हो गई। उसने शक्तिसिंह के चेहरे को पकड़ा और उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए। शक्तिसिंह अपने वीर्य की गंध को महसूस कर रहा था... एक गहरा चुंबन देकर महारानी ने फुसफुसाते हुए शक्तिसिंह के कानों में कहा

"रात को चुपके से मेरे कक्ष में आ जाना... ध्यान रहे किसी को इस बात का अंदेशा नही लगना चाहिए"

उन्होंने अपने वस्त्र को ठीक किया और एक शरारती मुस्कान देते हुए वहाँ से चल दी... शक्तिसिंह ने भी अपने लंड को तुरंत धोती के अंदर डाल दिया और पूर्ववत हो कर पहरा देने लगा। अभी जो कुछ भी हुआ था उसका विश्वास उसे अभी भी नही हो रहा था। महारानी की इस हिम्मत को देख वह दंग रह गया था!!

कुछ ही देर में दोनों सैनिक गश्त लगाकर लौट आए। उन में से एक ने शक्तिसिंह को बताया की राजमाता ने उसे हाजिर होने का हुकूम दिया है। आश्चर्य सह शक्तिसिंह राजमाता के कक्ष की और चल दिया। रानी महल के दूसरे हिस्से में उनका निवास था। उनके कक्ष में प्रवेश करते ही उसने देखा की वह बिस्तर पर टाँगे फैलाए बैठी थी और दो दासियाँ उनके पैर दबा रही थी।

शक्तिसिंह को देखते ही राजमाता ने आँखों से इशारा किया और दोनों दासियाँ उठकर कक्ष से बाहर चली गई।

शक्तिसिंह नतमस्तक होकर खड़ा रहा।

"हम्म तो कैसे हो तुम शक्तिसिंह?"

"आपकी कृपा है राजमाता" शक्तिसिंह ने हाथ जोड़कर कहा

"तुम्हें रानी महल की सुरक्षा की जिम्मेदारी मिलने पर हैरानी तो जरूर हुई होगी... है ना!!"

"में तो इस राज्य का सेवक हूँ राजमाता... मेरा परिवार पीढ़ियों से राजमहल की सुरक्षा करता आया है... यह तो मेरा सौभाग्य है की मुझे इस जिम्मेदारी के लिए काबिल समझा गया... में किसी भी प्रकार की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहूँगा" सिर झुकाकर शक्तिसिंह ने कहा। उसके मुरझाए लंड से वीर्य की बचीकूची बूंदें उसकी जांघों को गीला कर रही थी।

राजमाता के चेहरे पर एक कुटिल सी मुस्कान दौड़ गई। सारी स्थिति पर अपना पूर्ण नियंत्रण का एहसास होने पर वह मन ही मन बहुत खुश थी। शक्तिसिंह की सेवा के लिए उनका शाही भोंसड़ा पिछले कई दिनों से तड़प रहा था। शक्तिसिंह को अपने करीब लाने के लिए जो व्यवस्था उन्होंने आयोजित की थी वह सफल होती नजर आई..

"तुम आज से मेरे कक्ष की रखवाली करोगे... " राजमाता ने आदेश दिया

"क्षमा कीजिए राजमाता... पर मुझे तो महारानी पद्मिनी के कक्ष की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है!!" शक्तिसिंह राजमाता के इस खेल को अभी समझ नही पा रहा था

"अब तुम मुझे बताओगे की कैसे और क्या करना है?" राजमाता ने क्रोधित स्वर में कहा

"माफ कीजिए राजमाता जी, में तो केवल वही बता रहा था जिसका मुझे आदेश दिया गया था"

"अब से जो में कहूँगी, वही तुम्हारे लिए आदेश होगा, समझे!!" राजमाता ने बड़ी ही कड़ी आवाज में कहा। शक्तिसिंह का लाभ उठाने के लिए उसे वश में करना अत्यंत आवश्यक था।

"जी राजमाता, जैसी आपकी आज्ञा" गर्दन झुककर शक्तिसिंह ने स्वीकार किया

"दूसरी बात... रात के वक्त मेरे कक्ष के बाहर केवल तुम ही पहरा दोगे... बाकी सारे सैनिकों को महारानी की सुरक्षा के लिए भेज दिया जाए"

शक्तिसिंह को अब बात धीरे धीरे समझ में आने लगी थी। पहले तो राजमाता ने अधिक सुरक्षा का प्रश्न उठाकर शक्तिसिंह को महल में तैनात करवा दिया और अब महारानी की सुरक्षा का बहाना बनाकर सारे सैनिकों को वहाँ भेजने की बात कही। उनका उद्देश्य स्पष्ट था।

"मेरे हुकूम की आज से... बल्कि अभी से ही पालन हो... अब तुम जा सकते हो... में रात्री के प्रहार पूरी सुरक्षा का मुआयना करने आऊँगी। अगर जरा सी भी कोताही बरती गई तो में किसी को भी जिंदा नही छोड़ूँगी" आदेशात्मक स्वर में बोलकर राजमाता बिस्तर पर लेट गई और अपने दोनों घुटनों को मोड लिया। उनका घाघरा घुटनों तक ऊपर चढ़ गया और शक्तिसिंह को उनकी मांसल गोरी जांघें नजर आने लगी। हालांकि अभी कुछ देर पहले ही स्खलन हुआ था पर फिर भी शक्तिसिंह के लंड ने हरकत करना शुरू कर दिया। वह आँखें फाड़कर उनकी मलाई जैसी गोरी पिंडियों को देख रहा था।

"क्या देख रहे हो ?" राजमाता ने उसकी तरफ देखकर कहा

शक्तिसिंह ने अपनी आँखें झुका ली। अपनी चोरी पकड़ी जाने पर वह शर्मा गया।

"अब तुम जा सकते हो" राजमाता ने आँखें बंद करते हुए कहा

शक्तिसिंह उलटे पैर वापिस लौट गया। उसने अपने दल को महारानी के कमरे के बाहर पहरा देने का निर्देश दिया। कुछ देर बाद वह महारानी के कमरे में जा पहुंचा... महारानी उस वक्त अपने खंड में अकेली थी। शक्तिसिंह को देखते ही उनकी आँखें चमक उठी।


"अरे, तुम तो बड़ी जल्दी आ गए... भूल गए क्या, मैंने तुम्हें रात को आने के लिए कहा था" बड़े ही धीमे स्वर में महारानी ने कहा

शक्तिसिंह तय नही कर पा रहा था की बात की शुरुआत कैसे करें

"जी में... वो आपको... " शक्तिसिंह के गले में शब्द अटक गए थे

"साफ साफ बोलो, क्या कहना चाहते हो... "

"जी में यह सूचित करने आया था की आपसे मिलने आज रात में नही आ पाऊँगा"

"वह क्यों भला... एक ही बार में तुम्हारा हथियार थक गया क्या? यात्रा के दौरान तो जब देखो तब वह खड़ा ही दिखता था!! पर चिंता मत करो, रात होने में अभी वक्त है... तब तक तुम जरूर तैयार हो जाओगे इसका मुझे पूर्ण विश्वास है.. " महारानी पद्मिनी ने मुसकुराते हुए कहा

"जी बात वो नही है... " शक्तिसिंह ठीक से समझा नही पा रहा था

"दरअसल मुझे राजमाता के कक्ष की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है इसलिए.... " सकपकाते हुए शक्तिसिंह ने कहा

"क्या? किसने कहा तुमसे? महाराज का आदेश स्पष्ट था... इन अतिरिक्त सैनिकों को मेरी सुरक्षा के लिए ही भेजा गया है... और मेरा उद्देश्य तो यह है की जब तक गर्भधारण का समाचार ना मिले तब तक ज्यादा से ज्यादा संभोग कर में उसे सुनिश्चित कर सकूँ। इस बात को तुम हम दोनों के बीच तक ही सीमित रखना। तुम चिंता मत करो, में महाराज से बात करती हूँ"

"जी मुझे इस बात का आदेश राजमाता ने दिया है" डरते डरते शक्तिसिंह ने कहा

यह सुनते ही महारानी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। पर वह कुछ बोल नही पाई। उसे मालूम था की कमलसिंह नाम मात्र के राजा थे, असली राज तो राजमाता ही चलाती थी। पूरे राजमहल में किसी की हिम्मत नही थी की वह राजमाता के आदेश को अनसुना करे।

"शक्तिसिंह तुम अभी आ ही गए तो कक्ष का दरवाजा बंद कर लो... रात होने में अभी वक्त है.. तब तक हम थोड़ी देर... " शैतानी मुस्कान के साथ आँखें नचाते हुए महरानी ने कहा

"पर महारानी जी, बाहर खड़े सैनिकों ने मुझे अंदर आते देखा है... यहाँ ज्यादा समय व्यतीत करना अयोग्य होगा और उनको शंका हो जाएगी"

"तुम उनके सरदार हो... उन्हे कैसे संभालना वह तुम जानो... अभी फिलहाल में जैसा कह रही हूँ वैसा करो " महारानी के सर पर हवस का भूत सवार था। वह कैसे भी कर अपनी मखमली चुत में शक्तिसिंह का साबुत डंडा लेना चाहती थी।

"राजमाता ने कहा है की वह सुरक्षा व्यवस्था का मुआयना करने कभी भी आ सकती है... ऐसी सूरत में इतना बड़ा जोखिम उठाना उचित नही होगा महारानी जी" शक्तिसिंह ने डरते हुए कहा

राजमाता का नाम सुनते ही महारानी का दिमाग कलुषित हो गया... उनकी इस दखलंदाज़ी के कारण वह शक्तिसिंह को प्राप्त नही कर पा रही थी। उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर शक्तिसिंह की बात भी सही थी। ऐसा जोखिम उठाना ठीक नही था। उन्होंने आँखों से इशारा कर शक्तिसिंह को जाने के लिए कहा। शक्तिसिंह के जाते ही उन्होंने अपनी खास दासी को बुलाया

"जी महारानी जी... आपने याद किया?"

"उस दिन जैसे फिर से मालिश कर दे मेरी कमर की" महारानी ने चोली खोलकर उलटे लेटते हुए कहा। उनको दोनों उरोज सफेद कबूतरों की तरह बाहर झूलने लगे। दासी की आँखें उनपर चिपक सी गई। तभी उन्होंने अपने घाघरे को थोड़ा सा नीचे सरकाते हुए लगभग घुटनों तक ला दिया। उनके दोनों चूतड़ उजागर हो गए। दासी समझ गई की महारानी क्या चाहती थी। उसने तेल की शीशी लेकर मालिश करना शुरू कर दिया।

इस तरफ राजमाता अपने कक्ष से बाहर चलते हुए महल के उस हिस्से की तरफ चलते हुए आ रही थी जहां महारानी का खंड था। बीच रास्ते में उन्हे शक्तिसिंह अपनी ओर आता दिखा... पास से गुजरने पर भी शक्तिसिंह ने आँखें उठाकर राजमाता की तरफ नही देखा और चलता गया। राजमाता ने चन्दाी मुस्कान के साथ उसकी तरफ एक नजर देखा और आगे चल दी।

महारानी के कक्ष के बाहर तीन सैनिक खुली तलवार लिए पहरा दे रहे थे। शक्तिसिंह की इस व्यवस्था से संतुष्ट होकर राजमाता ने महारानी के कक्ष में प्रवेश किया। महारानी का कक्ष दो हिस्सों में बंटा हुआ था। कमरे के आगे के हिस्से में शाही साज सजावट थी और आगे चलते ही परदे के पीछे दूसरे हिस्से में महारानी का बिस्तर था। शाम होने को थी और कक्ष में काफी अंधेरा हो रहा था। महारानी के बिस्तर के इर्दगिर्द जल रहे दीयों से चारों ओर प्रकाश फैला था। हालांकि कमरे का आगे का हिस्सा अंधेरे में डूबा हुआ था। दबे पाँव चली आ रही राजमाता की भनक दासी या महारानी किसी को ना हुई। राजमाता एक स्तम्भ के पीछे खुद को छुपाकर, परदे के पीछे बिस्तर पर चल रही गतिविधियों को देखने लगी। यात्रा के दौरान जब वह महारानी के तंबू में आई थी तब उन्हे यकीन था की उन्होंने महरानी की सिसकियाँ साफ सुनी थी। उन्हे संदेह था की दासी के साथ वह कुछ तो गुल खिला रही थी।

"आह... वैसे ही करती जा... थोड़ा सा और तेल लेकर उंगली डाल" महारानी कराहते हुए बोली

राजमाता को अपनी आँखों पर विश्वास नही हो रहा था...!! महारानी अपने बड़े बड़े कूल्हे फैलाए लेटी थी और उनकी दासी अपनी उंगली महारानी की गांड के छेद में डालकर आगे पीछे कर रही थी...!! यह देख राजमाता का जबड़ा लटक गया... हालांकि गुदा मैथुन के बारे में वह विस्तार से जानती थी पर ना तो कभी उन्होंने वास्तविकता में उसे देखा था और ना ही कभी महसूस किया था। वास्तव में वह मानती थी की गाँड़ के सिकुड़े छेद में लंड डलवाना काफी दर्दनाक होता होगा। पर महारानी को उंगली डलवाते हुए देख वह अचंभित थी क्योंकी रानी के चेहरे पर दर्द का कोई निशान दिख नही रहा था। वह तो बड़े चाव से इस उंगली-चोदन का आनंद ले रही थी।

महारानी अपनी चूचियाँ खुद ही मसल रही थी। राजमाता क्रोधित होकर हस्तक्षेप करने ही वाली थी पर कुछ सोचकर वह रुक गई और यह पूरा तमाशा देखने लगी।

दासी महारानी की गाँड़ में उंगली डालते हुए अपने अंगूठे से उनकी चुत के होंठों को भी ऊपर से रगड़ रही थी। महारानी सातवे आसमान पर पहुँच चुकी थी... वह हर दूसरे पल अपने चूतड़ को उछाल रही थी... अस्पष्ट शब्दों की बकवास किए जा रही थी... और साथ ही साथ अपनी निपलों को मरोड़े जा रही थी।

"और तेजी से अंदर बाहर कर... आह आह... ऊई...!!!" चूतड़ उछाल उछालकर वह दासी की उंगली का पूर्ण आनंद ले रही थी। महारानी की चुत बेतहाशा पानी छोड़ रही थी। उनका पूरा जिस्म पसीने से तर हो चुका था। साँसे भी तेज चल रही थी।

महारानी की इस अवस्था को देख राजमाता के पूरे जिस्म में झुरझुरी सी होने लगी। उनकी साँसे फूलने लगी। उन्हे पता ही नही चला की कब उनका एक हाथ घाघरे के ऊपर से उनके भोंसड़े को मलने लगा था। वस्त्र के ऊपर से ही अपनी चुत को पकड़कर वह दबाने लगी और दूसरे हाथ से अपने स्तनों को सहलाने लगी। अगर वह स्तम्भ का सहारा लेकर ना खड़ी होती तो उत्तेजना के मारे वही गिर जाती।

"अब तू दो उंगली एक साथ डाल दे... " हांफते हुए महरानी ने कहा

"जी महारानी, ऐसा करूंगी तो आपको दर्द होगा" दासी इस आदेश से थोड़ा हिचकिचाई

"जैसा कह रही हूँ वैसा कर... डाल दे दो उंगली"

दासी ने दूसरी उंगली को तेल से लिप्त किया और एक साथ दोनों उंगली अंदर डाल दी...

"ऊईई माँ... मर गई... " महारानी के कंठ से हल्की चीख निकल गई...

घबराकर दासी ने दोनों उंगली बाहर निकाल ली

"क्या कर रही है तू? बाहर क्यों निकाल ली तूने... " महारानी ने बेचैन होते हुए पूछा

"जी वो आपको दर्द हुआ इसलिए " दासी ने डरते डरते उत्तर दिया

"डाल दे वापिस... पर जरा धीरे धीरे... तूने झटके से अंदर डाल दी इसलिए दर्द हुआ"

दासी ने तुरंत अमल किया... थोड़ा सा और तेल लेकर उसने पहले तो महारानी के गांड के छेद में डाल और फिर उंगलियों को तेल से द्रवित कर धीरे धीरे दोनों उंगलियों को उनके बादामी रंग के छेद में डाल दिया।

"कुछ देर ऐसे ही डाले रख... जब में कहूँ तब आगे पीछे करना" महारानी दो उंगलियों की चौड़ाई से गांड के छेद को अभ्यस्त करवाना चाहती थी। कुछ समय तक यूँही पड़े रहने के बाद उनका छेद अब उंगलियों के आसपास सहज हो गया।

"अब धीरे धीरे आगे पीछे कर... और हाँ... तेरे अंगूठे से नीचे घिसती रहना" वह अपनी प्यासी चुत को भी अनदेखा करना नही चाहती थी

दासी की उँगलियाँ अब किसी यंत्र की तरह महारानी की गांड के छेद में अंदर बाहर हो रहा था और साथ थी साथ उसका अंगूठा चुत के होंठों को सहला रहा था। दोनों होंठ चुत के द्रवित होते रस से चिपचिपे बन गए थे। दासी की उँगलियाँ ऐसे चल रही थी जैसे मक्खन के अंदर गरम छुरी।

इस अंगुली-चोदन को देखते हुए राजमाता काफी उत्तेजित हो रही थी... उनका अनुभवी भोंसड़ा अब भांप छोड़ रहा था... एक हाथ से अपना घाघरा ऊपर कर उन्होंने दूसरे हाथ की उंगली से अपने अंगूर जैसे दाने को रगड़ा... उंगली की रगड़ खाते ही उनकी क्लिटोरिस सिहर उठी... पूरा शरीर झुंजहाने लगा.. दाने को रगड़कर उन्होंने उंगली को चुत के होंठों के बीच घुसा दिया...

यहाँ दासी ने महारानी की गांड में उंगली करते करते अपना अंगूठा उनकी चुत में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। दोनों छिद्रों में एक साथ हुए हमले से महारानी उछलने लग गई। उनकी चुत का शहद अब बहकर बिस्तर को गीला कर रहा था। महारानी को इस अवस्था में देखकर दासी की चुत में भी चुनचुनी होने लगी थी। उसने अपना दूसरा हाथ चोली में डालकर अपने स्तनों को मसलना शुरू कर दिया।

"हाय दैया... मार देगी तू मुझे... कैसा रगड़ रही है री तू... आह...!!" महारानी निरंतर बकवास किए जा रही थी। उनकी निप्पल मरोड़ने के कारण लाल लाल हो गई थी... अब तो उन्हे छूने पर भी दर्द हो रहा था।

इस तरफ राजमाता की उंगली भी जोर-शोर से उनके भोंसड़े के अंदर बाहर हो रही थी... उनके घुटने इतने अशक्त महसूस होने लगे की लगता था की वह किसी भी वक्त संतुलन खो कर गिर जाएगा। जैसे तैसे कर उन्होंने अपना आपा बनाए रखा था। उंगली से जैसे उनका मन नही भर रहा था... अब उन्होंने स्तंभ के कोण पर अपना दाना घिसना शुरू कर दिया... पूरे कक्ष में, तीन उत्तेजित चूतों की गंध फैल गई थी।

"ऊईईई... जोर से घिस जरा... हाय कमीनी... जरा हाथ चला जल्दी जल्दी... में निढाल होने ही वाली हूँ... आईईई माँ... " महारानी कराहती हुई अपनी मंजिल की तरफ कूच कर रही थी... कुछ ही पलों में महारानी ऐसे तड़पने लगी जैसे जल बिन मछली..!! एक जोरदार चीख मारकर महारानी लाश की तरह ढेर हो गई... दासी ने उनकी गांड और चुत से उंगली निकालकर उन्हे सूंघा... शाही गुप्तांगों की अनोखी खुशबू ने उसे सराबोर कर दिया। होश खोकर लुढ़की हुई महारानी के बिस्तर के दूसरे छोर पर दासी अपनी टाँगे फैलाकर लेट गई और अपना घाघरा उठाकर चुत में उंगली करने लगी।

कुछ ही पलों में उसकी चुत ने भी जवाब दे दिया। वह धीरे से उठी, अपने वस्त्र ठीक किए और महारानी के ऊपर मखमली चद्दर ओढाकर वहाँ से चलने लगी। दासी को बाहर आता देख राजमाता ने भी अपनी उंगली बाहर निकाली, घाघरा गिराया और अंधेरे का सहारा लेकर कक्ष से बाहर निकल गई।

अपने खंड तक लौटते हुए राजमाता ने शक्तिसिंह को द्वार पर अकेले चौकीदारी करते हुए देखा और मुस्कुरा दी... बिना कुछ कहें वह शक्तिसिंह के करीब से गुजरकर अंदर चली गई।

मध्य रात्री का समय था। पूरा नगर नींद की गिरफ्त में सो रहा था। रानी महल में सन्नाटा छाया हुआ था... केवल सिपाहियों और चौकीदारों की प्रासंगिक चहल पहल सुनाई दे रही थी। रानी महल के अंतिम छोर पर कोने में राजमाता के कक्ष के बाहर शक्तिसिंह पहरा दे रहा था। तभी कक्ष का बंद दरवाजा खुला और पीछे से राजमाता प्रकट हुए। उन्होंने आँखों से ही इशारा कर शक्तिसिंह को अंदर बुलाया। बिना कुछ कहे या पूछे शक्तिसिंह नीची मुंडी कर अंदर चला गया। उसके अंदर आते ही राजमाता ने द्वार बंद कर दिया और कुंडी लगा दी।

राजमाता का कक्ष काफी विशाल था... छत पर रंगबिरंगी कांच के झूमर लटक रहे थे... दीवारों पर कीमती रत्न जड़े हुए थे... बड़े बड़े तैल-चित्रों से दीवारें सुशोभित थी... बीच में पड़े मेज और कुर्सी पर सुवर्ण का आवरण था। थोड़ा सा और अंदर जाते ही बड़ा सा बिस्तर था... पलंग के चार स्तंभ पर शेर की छवि मुद्रित थी... चारों और दिए और सुगंधित बत्तियाँ जल रही थी.. छत से लेकर बिस्तर तक एक पारदर्शक कपड़ा, पलंग को चारों ओर से ढँक रहा था।

राजमाता के पीछे पीछे चलते हुए शक्तिसिंह भी बिस्तर तक आ गया। बिस्तर पर पहुंचकर राजमाता शक्तिसिंह की ओर मुड़ी और उसे अपनी बाहों में भर लिया। शक्तिसिंह ने भी सहयोग देते हुए अपने खुरदरे हाथों से राजमाता की मांसल पीठ और कमर की गोरी कोमल त्वचा को सहलाना शुरू कर दिया। शक्तिसिंह को चूमते हुए राजमाता आहें भर रही थी। कुछ देर तक उसकी बलिष्ठ भुजाओं का आनंद लेकर राजमाता ने उसे अपने बाहुपाश से मुक्त किया और बिस्तर पर फैल कर बैठ गई।

"बड़ा तड़पाया है तूने मुझे... यात्रा से लेकर अब तक... मेरा शरीर तेरी मजबूत पकड़ को तरस गया है... पर तुझे तो मेरी याद ही नही आती"

"ऐसा नही है राजमाता, में तो आपके आदेश का पालन कर राज्य को लौट गया था और फिर तालिम में व्यस्त था.. मुझे तो आज ही पता चला की आप यात्रा से लौट आए है"

"हम्म... तुझे वहाँ से वापिस लौटने का आदेश देना जरूरी था... वरना वह चुदैल महारानी अपने मोहपाश से तुझे मुक्त ही नही करती"

शक्तिसिंह मौन ही रहा.. यात्रा के वक्त उत्तेजनावश उसने राजमाता के निर्देश की अवहेलना कर महारानी को अतिरिक्त दो बार चोद दिया था और राजमाता को इसका ज्ञान भी हो गया था। वासना का रंग उड़ते ही उसे एहसास हुआ की इस उपेक्षा का बड़ा भयानक नतीजा हो सकता था। गनीमत थी की राजमाता भी उसके लंड की दीवानी हो चली थी वरना उसका वहाँ से जिंदा लौट पाना नामुमकिन था।

"चुप क्यों खड़ा है? आजा यहाँ मेरे पास बैठ..." राजमाता ने उसे आमंत्रित किया

थोड़े से संकोच के साथ शक्तिसिंह राजमाता के बगल में जा बैठा।

राजमाता ने उसकी मजबूत बाहों को सहलाना शुरू कर दिया... उसकी बलिष्ठ मांसपेशियाँ सैनिक-वस्त्रों के बाहर झलक रही थी और शक्तिसिंह की ताकत का प्रमाण भी दे रही थी। हालांकि राजमाता ने शक्तिसिंह की शक्ति को भलीभाँति परख लिया था।

राजमाता ने अपने घने गुलाबी होंठों से शक्तिसिंह के कंधों को चूमा... और उसकी छाती पर अपना हाथ घुमाने लगी। उनकी रगों में रक्त तेजी से दौड़ने लगा था। कुछ देर पहले महारानी के खंड में संदीप्त हुई चुत फिर से हरकत करने लगी। उनके गाल उत्तेजनावश लाल लाल हो गए। उन्होंने एक धक्का देकर शक्तिसिंह को बिस्तर पर लिटा दिया और उसके जिस्म के दोनों तरफ पैर रखकर शक्तिसिंह के शरीर पर सवार हो गई।

शक्तिसिंह के खड़े लँड के बिल्कुल ऊपर राजमाता के चूतड़ बिराजमान थे। हालांकि बीच में दोनों के वस्त्रों का आवरण जरूर था।

राजमाता अब शक्तिसिंह पर ऐसे झपटी जैसे भूखी शेरनी मेमने पर झपटती है। उन्होंने बेतहाशा होकर शक्तिसिंह के गर्दन, होंठ, कपाल और छाती पर चूमना शुरू कर दिया। शक्तिसिंह भी निढाल होकर पड़े पड़े राजमाता के इस खेल का आनंद ले रहा था। उसका लंड राजमाता के शरीर के वज़न तले दबा हुआ था पर फिर भी अपना पूरा जोर लगाकर खड़ा होने की भरसक कोशिश कर रहा था।

शक्तिसिंह की छाती को चूमते हुए राजमाता नीचे की ओर गई... और अपने पसंदीदा हथियार को धोती के आवरण के ऊपर से ही महसूस करने लगी। राजमाता का वज़न हटते ही शक्तिसिंह का औज़ार धोती को उठाते हुए खड़ा हो गया। धोती के उस उभार को राजमाता सम्मोहित होकर देखती ही रह गई। उन्होंने उस उभार को अपनी मुठ्ठी में पकड़ा... उस मजबूत लिंग की परिधि का एहसास होते ही उनकी चुत ने तुरंत पानी का अभिषेक कर दिया। उस योनिजल का गीलापन शक्तिसिंह को अपने घुटनों पर महसूस हुआ।

धोती को टटोलते हुए राजमाता ने आखिर शक्तिसिंह के लंड को मुक्त कर ही दिया..!! कुछ प्रहरों पहले महारानी के मुख-मैथुन से रिसाव कर चुके इस लंड ने अब नया चेहरा देखा!! तन्ना के ऐसे सख्त खड़ा था जैसे राजमाता को सलामी दे रहा हो!! उस प्यारे टमाटर जैसे सुपाड़े को राजमाता बड़े ही वात्सल्य से देखती रही... उन्हे इतना प्यार उमड़ आया की बिना एक क्षण का व्यय किए, उन्होंने उस गुलाबी सुपाड़े को मुंह में भर लिया और बड़े ही चाव से चूसने लगी। लंड के ऊपर से लेकर नीचे तक वह अपनी जीभ फेरते हुए उसे अपनी लार से सराबोर करती जा रही थी। शक्तिसिंह आँखें बंद कर इस स्वर्गीय सुख का आनंद ले रहा था।

अपनी मुठ्ठी में कैद कर राजमाता ने लंड को ऊपर से नीचे तक हिलाया। उसके लंड की त्वचा को ऊपर नीचे करते हुए वह सुपाड़े को चूसने लगी। वीर्य की कुछ बूंदें सुपाड़े के छेद पर प्रकट हुई जिसे राजमाता ने अपनी जीभ के छोर से समेटकर चाट लिया। उस मजबूत सैनिक के पुष्ट वीर्य में अनोखा स्वाद था।

उधर राजमाता की चुत आंदोलित हो रही थी... अवहेलना उससे बर्दाश्त न हुई और वह टपक टपक कर राजमाता को उसे मुक्त करने का आहवाहन दे रही थी। चुत की इस स्थिति से वाकिफ होने के बावजूद, राजमाता फिलहाल शक्तिसिंह के लंड को छोड़ना नही चाहती थी। वह पागलों की तरह शक्तिसिंह के लंड को चूसे जा रही थी। उसका पूरा लंड राजमाता की लार से द्रवित हो चुका था।

राजमाता द्वारा की जा रही लंड चुसाई का आनंद लेते हुए शक्तिसिंह ने अपना कवच और उपरार्ध का वस्त्र, लेटे लेटे ही उतार दिया। उसकी मांसल मजबूत विशाल छाती पर राजमाता अपना हाथ पसारने लगी। शक्तिसिंह के लंड को मुक्त कर राजमाता खड़ी हुई और अपनी चोली की गांठ खोलने लगी। गांठ खुलते ही उनके दोनों लचीले भारी गोरे गोरे स्तन बाहर निकल आए। दोनों विशाल स्तन और उसपर लगी लाल चेरी जैसी उनकी निप्पल देखकर ही शक्तिसिंह के मुंह में पानी आ गया।

राजमाता अपने स्तन खोलकर खड़ी हो गई और उन्होंने अपना घाघरा उठाया। दोनों मांसल जांघों के बीच बालों के झुरमुट में छिपी हुई उनकी लाल चुत की लकीर द्रश्यमान हो गई। उनका दाना उत्तेजना से सख्त हो गया था और चुत के होंठों से रस टपक रहा था। उसी अवस्था में राजमाता एक कदम आगे आई और बिल्कुल शक्तिसिंह के चेहरे के दोनों तरफ टाँगे जमाकर खड़ी हो गई। शक्तिसिंह को अपने ऊपर फैली जांघों के बीच राजमाता का शाही भोंसड़ा नजर आ रहा था और योनिरस उसके मुंह पर टपक रहा था। वह असमंजस में था की राजमाता आखिर क्या करना चाहती थी। राजमाता ने हौले से अपने घुटनों को मोड़ा और अपनी चुत को बिल्कुल शक्तिसिंह के मुंह के करीब ले गई।

"देख ले बेटा... यह वही शाही चुत है जिसमे से तुम्हारे महाराज प्रकट हुए थे... आज इसमे ऐसा घमासान हुआ पड़ा है जिसे बस तू ही शांत कर सकता है... ले... इसका रस पीकर तृप्त हो जा... " कहते ही राजमाता ने अपनी चुत को शक्तिसिंह के मुंह पर रख दिया।

शुरुआत में उसने अपनी जीभ चुत पर फेर दी... स्पर्श होते ही दोनों होंठ खुल गए और चुत के अंदर का लाल गुलाबी हिस्सा दिखने लगा। राजमाता की चुत को इतने करीब से देखकर वह अभिभूत हो गया। राजमाता ने उंगलियों से अपनी चुत के दोनों होंठों को चौड़ा किया और अपना पूरा वज़न शक्तिसिंह के मुंह पर डाल दिया। शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से राजमाता के भारी चूतड़ों को पकड़े रखा ताकि संतुलन बना रहे और चाटने की क्रिया को ठीक से नियंत्रित भी किया जा सके।

राजमाता की चुत के गाढ़े चिपचिपे शहद को वह ऐसे चाटने लगा जैसे बिल्ली दूध चाटती है... उस दौरान राजमाता अपना दाना घिसे जा रही थी... चुत की अनोखी गंध शक्तिसिंह के नथुनों मे जाते ही वह मस्त हो गया। राजमाता अपने चूतड़ों को आगे पीछे हिलाते हुए चुत को शक्तिसिंह की जीभ पर रगड़ रही थी। उनका पूरा योनिमार्ग रस से लसलसित हो चुका था और शक्तिसिंह के मजबूत औज़ार को अपने में समाने के लिए आतुर हो उठा था।

अपनी चुत शक्तिसिंह के मुंह पर रगड़ते हुए राजमाता थोड़ी सी पीछे की और झुकी और एक हाथ से उसके लंड को पकड़ लिया... अपने आप को झड़ने से रोकने के लिए शक्तिसिंह को काफी यत्न करना पड़ा। राजमाता की चुत उसके मुख पर योनिरस का अभिषेक कर रही थी... और वह उसे चूसे जा रहा था। उनकी चुत का दाना उत्तेजना से सूजकर जामुन के आकार सा हो गया था।

शक्तिसिंह के मुंह की सवारी करते हुए वह उसका लंड हिलाते जा रही थी... राजमाता का घाघरा दोनों जांघों पर ऊपर तक चढ़ गया था। उनकी हलचल से राजमाता के दोनों भारी लचीले स्तन यहाँ वहाँ झूल रहे थे। शक्तिसिंह की दाढ़ी वाली ठुड्डी का स्पर्श अपनी गांड के छेद पर होते ही राजमाता सिहर उठती। वह अब पगलाई घोड़ी की तरह शक्तिसिंह के मुंह पर आगे पीछे होते हुए अपनी चुत घिसे जा रही थी।

शक्तिसिंह की हालत खराब थी... उसका लंड अब केवल हिलाने भर से खुश नहीं था... उसे चाहिए थी गुनगुनी चुत की गर्माहट... पर फिलहाल इस खेल का सारा नियंत्रण राजमाता के पास था... और वह तो झड़ने के यत्न में इतनी मशरूफ़ थी की शक्तिसिंह की अवस्था का उसे कोई अंदाजा न था... वह बस झड़ना चाहती थी...

शक्तिसिंह ने अपनी जीभ को राजमाता के फैले हुए भोंसड़े में अंदर तक डाल दी... पसीज चुके योनिमार्ग से अनोखी गंध वाला गरम गरम रस उसके मुंह में गिरता जा रहा था। भोंसड़े के अचानक सिकुड़ने का अनुभव होते ही शक्तिसिंह ने अनुमान लगा लिया की वह झड़ने के करीब थी। चुत से कामरस की बौछार की अपेक्षा से शक्तिसिंह ने अपना मुंह थोड़ा और खोल दिया।

"हाय... माँ... मर जाऊँगी में... क्या चाटता है तू बेटा... आईईईई... " राजमाता ने किलकारियाँ मारते हुए अपना जिस्म एकदम सख्त कर दिया और फिर झटके मारते हुए झड़ने लगी... उनका पूरा शरीर कांप रहा था... दोनों जांघें फैलाकर वह शक्तिसिंह के मुंह पर ही निढाल हो गिरी...

राजमाता के शरीर के भारी वज़न के तले शक्तिसिंह का दम घुटने लगा... उसने पूरा जोर लगाते हुए राजमाता के शरीर को उठाया और अपने बगल में लिटा दिया... कमर तक उठे घाघरे, और खुली चुत और स्तनों के साथ, राजमाता ऐसे टांगें फैलाकर लेटी थी जैसे उनके प्राण निकल गए हो!!

अब बारी शक्तिसिंह की थी... वह राजमाता की दोनों जांघों के बीच सटकर बैठ गया... उनके दोनों पैरों को अपने मजबूत कंधों पर ले लिए... लंड का सुपाड़ा राजमाता के गरम आद्र भोंसड़े के मुख पर रखा... और एक जोर का धक्का दिया... एक पल में ही राजमाता के भोंसड़े ने पूरा लंड निगल लिया और शक्तिसिंह के टट्टे उनकी गांड के दरवाजे पर दस्तक देने लगे।

गरमाए हुए घोड़े की तरह शक्तिसिंह ने आव देखा न ताव... वह जबरदस्त धक्के लगाते हुए राजमाता के खुले हुए खरबूजे जैसे स्तनों पर टूट पड़ा। दोनों मम्मों को चारों ओर चूमने के बाद उनके दो अंगूर जैसे निप्पल को बारी बारी से मुंह में भरकर चूसने लगा...

राजमाता अभी एक स्खलन से उभरी भी नहीं थी पर शक्तिसिंह के इन जानदार धक्कों के कारण वह पुनर्जीवित हो उठी... उन्होंने अपने दोनों हाथों से शक्तिसिंह के सर को अपने स्तनों के बीच दबा दिया और अपनी टाँगे और फैला दी... शक्तिसिंह का सुपाड़ा अब गेंद की आकार का होकर राजमाता के भोंसड़े को और फैलाते हुए उनकी बच्चेदानी पर नगाड़े बजा रहा था। शक्तिसिंह के घुँघराले झांट का खुरदरापन, राजमाता के भगोष्ठ को रगड़ते जा रहा था...

अथाग परिश्रम के कारण दोनों के शरीर पसीने से तरबतर हो गए थे। राजमाता की चुत का झरना बहते ही जा रहा था... उनके दोनों स्तनों पर जगह जगह पर शक्तिसिंह के काटने से लाल निशान बन गए थे। उनकी निप्पलों को चटकारे लेकर चूसते हुए जब शक्तिसिंह दांतों से काटता तब राजमाता जोर से कराह उठती...

शक्तिसिंह ने अपनी गति और बढ़ाई... राजमाता भी नीचे से धक्के लगाए जा रही थी... शक्तिसिंह ने अपना एक हाथ दोनों के जिस्मों के बीच सरकाया और राजमाता के दाने को रगड़ने लगा... वह अब अपनी उत्तेजना की चरमसीमा पर था... आखिरी चंद धक्के लगाकर दहाड़ते हुए उसने अपने वीर्य की पिचकारी राजमाता के आनंदित भोंसड़े में दे मारी... गरम गरम घी जैसी बौछारों ने पूरा शाही भोंसड़ा सींच दिया... कुछ क्षणों तक पिचकारियों का वह दौर चलता रहा... अपने गर्भाशय के मुख तक इस गुनगुने द्रव्य को महसूस करते हुए राजमाता ने भी हार मान ली और थरथराते हुए झड़ गई।


पुचुक की आवाज के साथ शक्तिसिंह ने अपना गीला हथियार राजमाता की म्यान से बाहर निकाला। युद्ध से चन्दाी होकर लौटे सैनिक जैसी उसकी शान थी... शक्तिसिंह राजमाता के बगल में ढेर हो गया... राजमाता वात्सल्य से शक्तिसिंह के सर पर हाथ पसारने लगी।
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राजमाता सख्त मुंह बनाए वहाँ से चली गई... महारानी को यह पता न चला की वह किस बात पर क्रोधित थी...!! कहीं उन्हे उसके और दासी के गांड-उंगली के खेल के बारे में पता तो नही चल गया? वैसे ऐसी गुंजाइश तो नहीं थी चूंकि तंबू के दरवाजे से इतनी बारीकी से नजर आना असंभव था... फिर भी...!!


दो दिनों के बाद, राजमाता और महारानी अपने दस्ते के साथ सूरजगढ़ लौटे। राजमहल में उनका भव्य स्वागत किया गया। सब को यही मालूम था की वह दोनों धार्मिक यात्रा कर वापिस लौटे थे। उनके अलावा महाराज कमलसिंह को यह बात ज्ञात थी और वह बड़ी बेसब्री से उनके लौटने का इंतज़ार कर रहे थे। वह इस यात्रा के परिणाम को जानने के लिए बेहद उत्सुक थे।

राजमाता अपने कक्ष में पहुंचकर बिस्तर पर लेट गई। वह आँखें बंद कर पिछले एक हफ्ते के घटनाक्रम का मन में ही विश्लेषण कर रही थी। उन्होंने जिस तरह से सोचा था उसी हिसाब से सब हुआ। हालांकि एक डर उन्हे सताये जा रहा था और वह था महारानी पद्मिनी और शक्तिसिंह के बीच उत्पन्न हो चुकी नजदीकी का। उनका आदेश बड़ा स्पष्ट था की महारानी और शक्तिसिंह को किसी भी तरह की भावनाओ में बहने की अनुमति नही थी। पर जिस तरह से दो बार रानी और सैनिक, उनकी बगैर जानकारी के, संभोग करते हुए पकड़े गए थे, उन्हे यह डर था की कहीं वह दोनों छिप-छिपाके वापिस चोदने ना लग जाए। उन दोनों को रोकने के लिए राजमाता का शातिर दिमाग योजना बनाने लगा। कुछ देर पश्चात उन्होंने महाराज कमलसिंह को बुलावा भेजा।

महाराज के आते ही राजमाता सक्रिय हो गई और बिस्तर पर बैठ गई। पास पड़े आसन पर महाराज बिराजमान होकर यात्रा की जानकारी प्राप्त करने बेसब्र हो उठे।

"कैसी रही आपकी यात्रा, माँ"

"हम्म ठीक ही रही... में आश्वस्त हूँ की हमारा लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा"

महाराज के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। वह जानते थे की उनके वारिस का होना राज्य के लिए कितना महत्वपूर्ण था।

"हमे बड़ी ही प्रसन्नता हुई यह जानकर... वह योगी से इस कार्य के लिए पूर्ण सहयोग मिला होगा... उस जगह से हमारे परिवार का दशकों से संबंध रहा है... मुझे यकीन था की वह इस कार्य में हमारी सहायता जरूर करेंगे"

राजमाता ने कोई उत्तर ना दिया... मंजिल को कैसे हासिल किया गया था वह केवल राजमाता, महारानी और शक्तिसिंह ही जानते थे।

"क्या हुआ माँ? आप कुछ बोल नही रही..!!"

"कुछ नही.. बस थोड़ी सी थकान है... मैंने तुम्हें एक महत्वपूर्ण बात करने बुलाया है"

"जी बताइए माँ"

"पहली बात तो, में यह चाहती हूँ की महारानी के गर्भवती होने की बात को गोपनीय रखा जाए। रानी महल में सुरक्षा भी सख्त करनी है। हमारे दुश्मन तक अगर यह बात पहुंची तो महारानी की जान को खतरा हो सकता है।" राजमाता ने गंभीरता से कहा

"जी जरूर... में तुरंत आदेश देकर सुरक्षा के कड़े इंतेजाम करवाता हूँ... जनाना महल में सिर्फ विश्वसनीय दासियों को ही नियुक्त किया जाएगा...किसी भी अनजान व्यक्ति के प्रवेश को प्रतिबंधित किया जाएगा"

"हम्म... पर इतना पर्याप्त ना होगा.. में चाहती हूँ की तुम जनाना महल में शक्तिसिंह को नियुक्त करो। वह वफादार और बहादुर है और उसके नेतृत्व में कुछ सैनिक रानी महल का ध्यान रखेंगे।"

महाराज को यह सुन आश्चर्य हुआ

"माँ, शक्तिसिंह तो सैन्य का हिस्सा है... यहाँ महल में और काफी सैनिक है जो इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा सकते है"

"नहीं, में चाहती हूँ की महारानी और रानी महल के लिए शक्तिसिंह को ही नियुक्त किया जाए। मुझे उसकी बहादुरी और वफादारी पर पूर्ण विश्वास है... सैन्य के कार्यों के लिए किसी और सैनिक को नियुक्त कर सकते है।" राजमाता ने आदेशात्मक स्वर में कहा

महाराज के पास राजमाता की बात को स्वीकार करने के अलावा और कोई विकल्प न था। उन्होंने जरूरी निर्देश दिए और दूसरे ही दिन शक्तिसिंह को रानीमहल की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई।

शक्तिसिंह को इस बात का अंदेशा था ही..!! जिस तरह से रानी और राजमाता उसके लंड के कायल हो गए थे वह जानता था की उसे करीब लाने के लिए ऐसी प्रयुक्ति, राजमाता जरूर आजमाएगी। फिलहाल उसे राजमाता से ज्यादा, महारानी पद्मिनी के करीब जाने में ज्यादा दिलचस्पी थी। महारानी के गोल गुंबज जैसे स्तन और गोरे गोरे भारी चूतड़, शक्तिसिंह के दिमाग से निकलने का नाम ही नही ले रहे थे। उनकी याद आते ही शक्तिसिंह का लंड इतना सख्त हो जाता था की धोती में छुपाना मुश्किल हो जाता।

महारानी को जैसे ही शक्तिसिंह के महल में नियुक्त होने के समाचार मिले... वह चहकने लगी। उनकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा... शक्तिसिंह के दमदार लौड़े से ठुकने के बाद उनकी चुत की प्यास और बढ़ चुकी थी। यात्रा से लौटते वक्त वह अमूमन यह सोच रही थी की वापिस फिर महाराज के ढीले लंड से चुदवाना पड़ेगा... शक्तिसिंह के मूसल के मुकाबले महाराज का लंड को तो नून्नी ही कहा जा सकता था। अब शक्तिसिंह के महल में आ जाने से फिर से वह उसके शक्तिशाली लिंग से खेल सकती थी... और चुदाई का पूर्ण आनंद ले सकती थी।

अपने खंड से बाहर निकलकर वह बरामदे के और चलती हुई उस स्थान पर जा पहुंची जहां शक्तिसिंह अपने दो सैनिकों के साथ पहरा दे रहा था। महारानी को देखकर उसकी आँखें चमक उठी। महारानी का इशारा पाते ही शक्तिसिंह ने दोनों सैनिकों को महल का चारों और से मुआयना करने जाने का निर्देश दिया। दोनों सैनिक अलग अलग दिशा में चल दिए। उनके नजर से ओजल होते ही महारानी ने शक्तिसिंह को अपनी बाहों में भर लिया!! शक्तिसिंह भयभीत हो उठा... अगर इस स्थिति में कोई उसे देख ले तो तुरंत ही उसका सर कलम दिया जाता। उसने महारानी को रोकना चाहा पर महारानी ने उसे कसकर जकड़ रखा था। वह बेतहाशा शक्तिसिंह को चूमे जा रही थी। उनके हाथ अब धोती के ऊपर से लंड को सहलाने लगे थे। वास्तविकता से अनजान उसका लंड हरकत में आकार महारानी की हथेलियों संग खेलने लगा।

महारानी ने अपना हाथ धोती में सरका दिया और शक्तिसिंह के मूसल को पकड़कर उसकी चमड़ी ऊपर नीचे करने लगी। शक्तिसिंह के आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया। वह चाहते हुए भी महारानी को सहयोग नही दे पा रहा था। वह इतना डरा हुआ था फिर भी उसका लंड पूर्णतः सख्त हो गया था। महारानी ने एक ही पल में उसका लंड धोती से बाहर निकाल दिया।

"यह क्या कर रही है महारानी जी!!! कोई आ गया तो आफत आ जाएगी..." सकपकाते हुए शक्तिसिंह ने कहा

महारानी ने उसकी बातों को अनसुना करते हुए घुटनों को मोड़ा और नीचे की और गई। अब शक्तिसिंह का लंड महारानी के मुख के बिल्कुल सामने तोप की तरह तना हुआ था। महारानी के हाथ लंड पर तेजी से आगे पीछे हो रहे थे। अपनी मुठ्ठी में लंड को भरकर जब वह अंदर की तरफ दबाती तब शक्तिसिंह का लाल सुर्ख सुपाड़ा अपने दर्शन देकर महारानी को प्रफुल्लित कर देता...

बिना वक्त जाया किए महारानी ने शक्तिसिंह के सुपाड़े को अपनी मुंह में ले लिया। शक्तिसिंह की आँखें बंद हो गई। अति-आनंद और घबराहट के बीच शक्तिसिंह झूल रहा था। वह हर दूसरे क्षण दोनों दिशाओं में देखता रहता था... महारानी पागलों की तरह उसका लंड चूसे जा रही थी। उसके लंड का जादू इस कदर सर पर सवार था की उनका दिमाग और कुछ सोच ही नही पा रहा था। शक्तिसिंह का फनफनाता लंड इस उत्तेजना को झेल पाने के लिए असमर्थ था और किसी भी वक्त अपना इस्तीफा दे सकता था। बड़ी ही मुश्किल से शक्तिसिंह ने उसे रोके रखा था।

लंड चूसते हुए महारानी अब शक्तिसिंह के टट्टों को भी सहला रही थी.... शक्तिसिंह की बर्दाश्त की सारी सीमा पार हो गई थी... महारानी के मुंह की गरम गलियों में गश्त लगाते हुए लंड पूरे उफान पर था। तीन चार बार और जोर से चूसने पर लंड ने हथियार रख दिए... फुले हुए सुपाड़े ने महारानी के मुख में वीर्य की बौछार कर दी। तीन चार जबरदस्त पिचकारियाँ लगते ही महारानी का दम घुटने लगा... पर वह फिर भी चूसे जा रही थी... लंड के अनूठे शक्ति-रस का पान कर वह धन्य हो गई थी!! शक्तिसिंह का लंड अब अपनी सख्ती छोड़ रहा था... यह महसूस होते ही महारानी ने लंड मुंह से निकाला और खड़ी हो गई। उसने शक्तिसिंह के चेहरे को पकड़ा और उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए। शक्तिसिंह अपने वीर्य की गंध को महसूस कर रहा था... एक गहरा चुंबन देकर महारानी ने फुसफुसाते हुए शक्तिसिंह के कानों में कहा

"रात को चुपके से मेरे कक्ष में आ जाना... ध्यान रहे किसी को इस बात का अंदेशा नही लगना चाहिए"

उन्होंने अपने वस्त्र को ठीक किया और एक शरारती मुस्कान देते हुए वहाँ से चल दी... शक्तिसिंह ने भी अपने लंड को तुरंत धोती के अंदर डाल दिया और पूर्ववत हो कर पहरा देने लगा। अभी जो कुछ भी हुआ था उसका विश्वास उसे अभी भी नही हो रहा था। महारानी की इस हिम्मत को देख वह दंग रह गया था!!

कुछ ही देर में दोनों सैनिक गश्त लगाकर लौट आए। उन में से एक ने शक्तिसिंह को बताया की राजमाता ने उसे हाजिर होने का हुकूम दिया है। आश्चर्य सह शक्तिसिंह राजमाता के कक्ष की और चल दिया। रानी महल के दूसरे हिस्से में उनका निवास था। उनके कक्ष में प्रवेश करते ही उसने देखा की वह बिस्तर पर टाँगे फैलाए बैठी थी और दो दासियाँ उनके पैर दबा रही थी।

शक्तिसिंह को देखते ही राजमाता ने आँखों से इशारा किया और दोनों दासियाँ उठकर कक्ष से बाहर चली गई।

शक्तिसिंह नतमस्तक होकर खड़ा रहा।

"हम्म तो कैसे हो तुम शक्तिसिंह?"

"आपकी कृपा है राजमाता" शक्तिसिंह ने हाथ जोड़कर कहा

"तुम्हें रानी महल की सुरक्षा की जिम्मेदारी मिलने पर हैरानी तो जरूर हुई होगी... है ना!!"

"में तो इस राज्य का सेवक हूँ राजमाता... मेरा परिवार पीढ़ियों से राजमहल की सुरक्षा करता आया है... यह तो मेरा सौभाग्य है की मुझे इस जिम्मेदारी के लिए काबिल समझा गया... में किसी भी प्रकार की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहूँगा" सिर झुकाकर शक्तिसिंह ने कहा। उसके मुरझाए लंड से वीर्य की बचीकूची बूंदें उसकी जांघों को गीला कर रही थी।

राजमाता के चेहरे पर एक कुटिल सी मुस्कान दौड़ गई। सारी स्थिति पर अपना पूर्ण नियंत्रण का एहसास होने पर वह मन ही मन बहुत खुश थी। शक्तिसिंह की सेवा के लिए उनका शाही भोंसड़ा पिछले कई दिनों से तड़प रहा था। शक्तिसिंह को अपने करीब लाने के लिए जो व्यवस्था उन्होंने आयोजित की थी वह सफल होती नजर आई..

"तुम आज से मेरे कक्ष की रखवाली करोगे... " राजमाता ने आदेश दिया

"क्षमा कीजिए राजमाता... पर मुझे तो महारानी पद्मिनी के कक्ष की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है!!" शक्तिसिंह राजमाता के इस खेल को अभी समझ नही पा रहा था

"अब तुम मुझे बताओगे की कैसे और क्या करना है?" राजमाता ने क्रोधित स्वर में कहा

"माफ कीजिए राजमाता जी, में तो केवल वही बता रहा था जिसका मुझे आदेश दिया गया था"

"अब से जो में कहूँगी, वही तुम्हारे लिए आदेश होगा, समझे!!" राजमाता ने बड़ी ही कड़ी आवाज में कहा। शक्तिसिंह का लाभ उठाने के लिए उसे वश में करना अत्यंत आवश्यक था।

"जी राजमाता, जैसी आपकी आज्ञा" गर्दन झुककर शक्तिसिंह ने स्वीकार किया

"दूसरी बात... रात के वक्त मेरे कक्ष के बाहर केवल तुम ही पहरा दोगे... बाकी सारे सैनिकों को महारानी की सुरक्षा के लिए भेज दिया जाए"

शक्तिसिंह को अब बात धीरे धीरे समझ में आने लगी थी। पहले तो राजमाता ने अधिक सुरक्षा का प्रश्न उठाकर शक्तिसिंह को महल में तैनात करवा दिया और अब महारानी की सुरक्षा का बहाना बनाकर सारे सैनिकों को वहाँ भेजने की बात कही। उनका उद्देश्य स्पष्ट था।

"मेरे हुकूम की आज से... बल्कि अभी से ही पालन हो... अब तुम जा सकते हो... में रात्री के प्रहार पूरी सुरक्षा का मुआयना करने आऊँगी। अगर जरा सी भी कोताही बरती गई तो में किसी को भी जिंदा नही छोड़ूँगी" आदेशात्मक स्वर में बोलकर राजमाता बिस्तर पर लेट गई और अपने दोनों घुटनों को मोड लिया। उनका घाघरा घुटनों तक ऊपर चढ़ गया और शक्तिसिंह को उनकी मांसल गोरी जांघें नजर आने लगी। हालांकि अभी कुछ देर पहले ही स्खलन हुआ था पर फिर भी शक्तिसिंह के लंड ने हरकत करना शुरू कर दिया। वह आँखें फाड़कर उनकी मलाई जैसी गोरी पिंडियों को देख रहा था।

"क्या देख रहे हो ?" राजमाता ने उसकी तरफ देखकर कहा

शक्तिसिंह ने अपनी आँखें झुका ली। अपनी चोरी पकड़ी जाने पर वह शर्मा गया।

"अब तुम जा सकते हो" राजमाता ने आँखें बंद करते हुए कहा

शक्तिसिंह उलटे पैर वापिस लौट गया। उसने अपने दल को महारानी के कमरे के बाहर पहरा देने का निर्देश दिया। कुछ देर बाद वह महारानी के कमरे में जा पहुंचा... महारानी उस वक्त अपने खंड में अकेली थी। शक्तिसिंह को देखते ही उनकी आँखें चमक उठी।


"अरे, तुम तो बड़ी जल्दी आ गए... भूल गए क्या, मैंने तुम्हें रात को आने के लिए कहा था" बड़े ही धीमे स्वर में महारानी ने कहा

शक्तिसिंह तय नही कर पा रहा था की बात की शुरुआत कैसे करें

"जी में... वो आपको... " शक्तिसिंह के गले में शब्द अटक गए थे

"साफ साफ बोलो, क्या कहना चाहते हो... "

"जी में यह सूचित करने आया था की आपसे मिलने आज रात में नही आ पाऊँगा"

"वह क्यों भला... एक ही बार में तुम्हारा हथियार थक गया क्या? यात्रा के दौरान तो जब देखो तब वह खड़ा ही दिखता था!! पर चिंता मत करो, रात होने में अभी वक्त है... तब तक तुम जरूर तैयार हो जाओगे इसका मुझे पूर्ण विश्वास है.. " महारानी पद्मिनी ने मुसकुराते हुए कहा

"जी बात वो नही है... " शक्तिसिंह ठीक से समझा नही पा रहा था

"दरअसल मुझे राजमाता के कक्ष की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है इसलिए.... " सकपकाते हुए शक्तिसिंह ने कहा

"क्या? किसने कहा तुमसे? महाराज का आदेश स्पष्ट था... इन अतिरिक्त सैनिकों को मेरी सुरक्षा के लिए ही भेजा गया है... और मेरा उद्देश्य तो यह है की जब तक गर्भधारण का समाचार ना मिले तब तक ज्यादा से ज्यादा संभोग कर में उसे सुनिश्चित कर सकूँ। इस बात को तुम हम दोनों के बीच तक ही सीमित रखना। तुम चिंता मत करो, में महाराज से बात करती हूँ"

"जी मुझे इस बात का आदेश राजमाता ने दिया है" डरते डरते शक्तिसिंह ने कहा

यह सुनते ही महारानी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। पर वह कुछ बोल नही पाई। उसे मालूम था की कमलसिंह नाम मात्र के राजा थे, असली राज तो राजमाता ही चलाती थी। पूरे राजमहल में किसी की हिम्मत नही थी की वह राजमाता के आदेश को अनसुना करे।

"शक्तिसिंह तुम अभी आ ही गए तो कक्ष का दरवाजा बंद कर लो... रात होने में अभी वक्त है.. तब तक हम थोड़ी देर... " शैतानी मुस्कान के साथ आँखें नचाते हुए महरानी ने कहा

"पर महारानी जी, बाहर खड़े सैनिकों ने मुझे अंदर आते देखा है... यहाँ ज्यादा समय व्यतीत करना अयोग्य होगा और उनको शंका हो जाएगी"

"तुम उनके सरदार हो... उन्हे कैसे संभालना वह तुम जानो... अभी फिलहाल में जैसा कह रही हूँ वैसा करो " महारानी के सर पर हवस का भूत सवार था। वह कैसे भी कर अपनी मखमली चुत में शक्तिसिंह का साबुत डंडा लेना चाहती थी।

"राजमाता ने कहा है की वह सुरक्षा व्यवस्था का मुआयना करने कभी भी आ सकती है... ऐसी सूरत में इतना बड़ा जोखिम उठाना उचित नही होगा महारानी जी" शक्तिसिंह ने डरते हुए कहा

राजमाता का नाम सुनते ही महारानी का दिमाग कलुषित हो गया... उनकी इस दखलंदाज़ी के कारण वह शक्तिसिंह को प्राप्त नही कर पा रही थी। उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर शक्तिसिंह की बात भी सही थी। ऐसा जोखिम उठाना ठीक नही था। उन्होंने आँखों से इशारा कर शक्तिसिंह को जाने के लिए कहा। शक्तिसिंह के जाते ही उन्होंने अपनी खास दासी को बुलाया

"जी महारानी जी... आपने याद किया?"

"उस दिन जैसे फिर से मालिश कर दे मेरी कमर की" महारानी ने चोली खोलकर उलटे लेटते हुए कहा। उनको दोनों उरोज सफेद कबूतरों की तरह बाहर झूलने लगे। दासी की आँखें उनपर चिपक सी गई। तभी उन्होंने अपने घाघरे को थोड़ा सा नीचे सरकाते हुए लगभग घुटनों तक ला दिया। उनके दोनों चूतड़ उजागर हो गए। दासी समझ गई की महारानी क्या चाहती थी। उसने तेल की शीशी लेकर मालिश करना शुरू कर दिया।

इस तरफ राजमाता अपने कक्ष से बाहर चलते हुए महल के उस हिस्से की तरफ चलते हुए आ रही थी जहां महारानी का खंड था। बीच रास्ते में उन्हे शक्तिसिंह अपनी ओर आता दिखा... पास से गुजरने पर भी शक्तिसिंह ने आँखें उठाकर राजमाता की तरफ नही देखा और चलता गया। राजमाता ने चन्दाी मुस्कान के साथ उसकी तरफ एक नजर देखा और आगे चल दी।

महारानी के कक्ष के बाहर तीन सैनिक खुली तलवार लिए पहरा दे रहे थे। शक्तिसिंह की इस व्यवस्था से संतुष्ट होकर राजमाता ने महारानी के कक्ष में प्रवेश किया। महारानी का कक्ष दो हिस्सों में बंटा हुआ था। कमरे के आगे के हिस्से में शाही साज सजावट थी और आगे चलते ही परदे के पीछे दूसरे हिस्से में महारानी का बिस्तर था। शाम होने को थी और कक्ष में काफी अंधेरा हो रहा था। महारानी के बिस्तर के इर्दगिर्द जल रहे दीयों से चारों ओर प्रकाश फैला था। हालांकि कमरे का आगे का हिस्सा अंधेरे में डूबा हुआ था। दबे पाँव चली आ रही राजमाता की भनक दासी या महारानी किसी को ना हुई। राजमाता एक स्तम्भ के पीछे खुद को छुपाकर, परदे के पीछे बिस्तर पर चल रही गतिविधियों को देखने लगी। यात्रा के दौरान जब वह महारानी के तंबू में आई थी तब उन्हे यकीन था की उन्होंने महरानी की सिसकियाँ साफ सुनी थी। उन्हे संदेह था की दासी के साथ वह कुछ तो गुल खिला रही थी।

"आह... वैसे ही करती जा... थोड़ा सा और तेल लेकर उंगली डाल" महारानी कराहते हुए बोली

राजमाता को अपनी आँखों पर विश्वास नही हो रहा था...!! महारानी अपने बड़े बड़े कूल्हे फैलाए लेटी थी और उनकी दासी अपनी उंगली महारानी की गांड के छेद में डालकर आगे पीछे कर रही थी...!! यह देख राजमाता का जबड़ा लटक गया... हालांकि गुदा मैथुन के बारे में वह विस्तार से जानती थी पर ना तो कभी उन्होंने वास्तविकता में उसे देखा था और ना ही कभी महसूस किया था। वास्तव में वह मानती थी की गाँड़ के सिकुड़े छेद में लंड डलवाना काफी दर्दनाक होता होगा। पर महारानी को उंगली डलवाते हुए देख वह अचंभित थी क्योंकी रानी के चेहरे पर दर्द का कोई निशान दिख नही रहा था। वह तो बड़े चाव से इस उंगली-चोदन का आनंद ले रही थी।

महारानी अपनी चूचियाँ खुद ही मसल रही थी। राजमाता क्रोधित होकर हस्तक्षेप करने ही वाली थी पर कुछ सोचकर वह रुक गई और यह पूरा तमाशा देखने लगी।

दासी महारानी की गाँड़ में उंगली डालते हुए अपने अंगूठे से उनकी चुत के होंठों को भी ऊपर से रगड़ रही थी। महारानी सातवे आसमान पर पहुँच चुकी थी... वह हर दूसरे पल अपने चूतड़ को उछाल रही थी... अस्पष्ट शब्दों की बकवास किए जा रही थी... और साथ ही साथ अपनी निपलों को मरोड़े जा रही थी।

"और तेजी से अंदर बाहर कर... आह आह... ऊई...!!!" चूतड़ उछाल उछालकर वह दासी की उंगली का पूर्ण आनंद ले रही थी। महारानी की चुत बेतहाशा पानी छोड़ रही थी। उनका पूरा जिस्म पसीने से तर हो चुका था। साँसे भी तेज चल रही थी।

महारानी की इस अवस्था को देख राजमाता के पूरे जिस्म में झुरझुरी सी होने लगी। उनकी साँसे फूलने लगी। उन्हे पता ही नही चला की कब उनका एक हाथ घाघरे के ऊपर से उनके भोंसड़े को मलने लगा था। वस्त्र के ऊपर से ही अपनी चुत को पकड़कर वह दबाने लगी और दूसरे हाथ से अपने स्तनों को सहलाने लगी। अगर वह स्तम्भ का सहारा लेकर ना खड़ी होती तो उत्तेजना के मारे वही गिर जाती।

"अब तू दो उंगली एक साथ डाल दे... " हांफते हुए महरानी ने कहा

"जी महारानी, ऐसा करूंगी तो आपको दर्द होगा" दासी इस आदेश से थोड़ा हिचकिचाई

"जैसा कह रही हूँ वैसा कर... डाल दे दो उंगली"

दासी ने दूसरी उंगली को तेल से लिप्त किया और एक साथ दोनों उंगली अंदर डाल दी...

"ऊईई माँ... मर गई... " महारानी के कंठ से हल्की चीख निकल गई...

घबराकर दासी ने दोनों उंगली बाहर निकाल ली

"क्या कर रही है तू? बाहर क्यों निकाल ली तूने... " महारानी ने बेचैन होते हुए पूछा

"जी वो आपको दर्द हुआ इसलिए " दासी ने डरते डरते उत्तर दिया

"डाल दे वापिस... पर जरा धीरे धीरे... तूने झटके से अंदर डाल दी इसलिए दर्द हुआ"

दासी ने तुरंत अमल किया... थोड़ा सा और तेल लेकर उसने पहले तो महारानी के गांड के छेद में डाल और फिर उंगलियों को तेल से द्रवित कर धीरे धीरे दोनों उंगलियों को उनके बादामी रंग के छेद में डाल दिया।

"कुछ देर ऐसे ही डाले रख... जब में कहूँ तब आगे पीछे करना" महारानी दो उंगलियों की चौड़ाई से गांड के छेद को अभ्यस्त करवाना चाहती थी। कुछ समय तक यूँही पड़े रहने के बाद उनका छेद अब उंगलियों के आसपास सहज हो गया।

"अब धीरे धीरे आगे पीछे कर... और हाँ... तेरे अंगूठे से नीचे घिसती रहना" वह अपनी प्यासी चुत को भी अनदेखा करना नही चाहती थी

दासी की उँगलियाँ अब किसी यंत्र की तरह महारानी की गांड के छेद में अंदर बाहर हो रहा था और साथ थी साथ उसका अंगूठा चुत के होंठों को सहला रहा था। दोनों होंठ चुत के द्रवित होते रस से चिपचिपे बन गए थे। दासी की उँगलियाँ ऐसे चल रही थी जैसे मक्खन के अंदर गरम छुरी।

इस अंगुली-चोदन को देखते हुए राजमाता काफी उत्तेजित हो रही थी... उनका अनुभवी भोंसड़ा अब भांप छोड़ रहा था... एक हाथ से अपना घाघरा ऊपर कर उन्होंने दूसरे हाथ की उंगली से अपने अंगूर जैसे दाने को रगड़ा... उंगली की रगड़ खाते ही उनकी क्लिटोरिस सिहर उठी... पूरा शरीर झुंजहाने लगा.. दाने को रगड़कर उन्होंने उंगली को चुत के होंठों के बीच घुसा दिया...

यहाँ दासी ने महारानी की गांड में उंगली करते करते अपना अंगूठा उनकी चुत में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। दोनों छिद्रों में एक साथ हुए हमले से महारानी उछलने लग गई। उनकी चुत का शहद अब बहकर बिस्तर को गीला कर रहा था। महारानी को इस अवस्था में देखकर दासी की चुत में भी चुनचुनी होने लगी थी। उसने अपना दूसरा हाथ चोली में डालकर अपने स्तनों को मसलना शुरू कर दिया।

"हाय दैया... मार देगी तू मुझे... कैसा रगड़ रही है री तू... आह...!!" महारानी निरंतर बकवास किए जा रही थी। उनकी निप्पल मरोड़ने के कारण लाल लाल हो गई थी... अब तो उन्हे छूने पर भी दर्द हो रहा था।

इस तरफ राजमाता की उंगली भी जोर-शोर से उनके भोंसड़े के अंदर बाहर हो रही थी... उनके घुटने इतने अशक्त महसूस होने लगे की लगता था की वह किसी भी वक्त संतुलन खो कर गिर जाएगा। जैसे तैसे कर उन्होंने अपना आपा बनाए रखा था। उंगली से जैसे उनका मन नही भर रहा था... अब उन्होंने स्तंभ के कोण पर अपना दाना घिसना शुरू कर दिया... पूरे कक्ष में, तीन उत्तेजित चूतों की गंध फैल गई थी।

"ऊईईई... जोर से घिस जरा... हाय कमीनी... जरा हाथ चला जल्दी जल्दी... में निढाल होने ही वाली हूँ... आईईई माँ... " महारानी कराहती हुई अपनी मंजिल की तरफ कूच कर रही थी... कुछ ही पलों में महारानी ऐसे तड़पने लगी जैसे जल बिन मछली..!! एक जोरदार चीख मारकर महारानी लाश की तरह ढेर हो गई... दासी ने उनकी गांड और चुत से उंगली निकालकर उन्हे सूंघा... शाही गुप्तांगों की अनोखी खुशबू ने उसे सराबोर कर दिया। होश खोकर लुढ़की हुई महारानी के बिस्तर के दूसरे छोर पर दासी अपनी टाँगे फैलाकर लेट गई और अपना घाघरा उठाकर चुत में उंगली करने लगी।

कुछ ही पलों में उसकी चुत ने भी जवाब दे दिया। वह धीरे से उठी, अपने वस्त्र ठीक किए और महारानी के ऊपर मखमली चद्दर ओढाकर वहाँ से चलने लगी। दासी को बाहर आता देख राजमाता ने भी अपनी उंगली बाहर निकाली, घाघरा गिराया और अंधेरे का सहारा लेकर कक्ष से बाहर निकल गई।

अपने खंड तक लौटते हुए राजमाता ने शक्तिसिंह को द्वार पर अकेले चौकीदारी करते हुए देखा और मुस्कुरा दी... बिना कुछ कहें वह शक्तिसिंह के करीब से गुजरकर अंदर चली गई।

मध्य रात्री का समय था। पूरा नगर नींद की गिरफ्त में सो रहा था। रानी महल में सन्नाटा छाया हुआ था... केवल सिपाहियों और चौकीदारों की प्रासंगिक चहल पहल सुनाई दे रही थी। रानी महल के अंतिम छोर पर कोने में राजमाता के कक्ष के बाहर शक्तिसिंह पहरा दे रहा था। तभी कक्ष का बंद दरवाजा खुला और पीछे से राजमाता प्रकट हुए। उन्होंने आँखों से ही इशारा कर शक्तिसिंह को अंदर बुलाया। बिना कुछ कहे या पूछे शक्तिसिंह नीची मुंडी कर अंदर चला गया। उसके अंदर आते ही राजमाता ने द्वार बंद कर दिया और कुंडी लगा दी।

राजमाता का कक्ष काफी विशाल था... छत पर रंगबिरंगी कांच के झूमर लटक रहे थे... दीवारों पर कीमती रत्न जड़े हुए थे... बड़े बड़े तैल-चित्रों से दीवारें सुशोभित थी... बीच में पड़े मेज और कुर्सी पर सुवर्ण का आवरण था। थोड़ा सा और अंदर जाते ही बड़ा सा बिस्तर था... पलंग के चार स्तंभ पर शेर की छवि मुद्रित थी... चारों और दिए और सुगंधित बत्तियाँ जल रही थी.. छत से लेकर बिस्तर तक एक पारदर्शक कपड़ा, पलंग को चारों ओर से ढँक रहा था।

राजमाता के पीछे पीछे चलते हुए शक्तिसिंह भी बिस्तर तक आ गया। बिस्तर पर पहुंचकर राजमाता शक्तिसिंह की ओर मुड़ी और उसे अपनी बाहों में भर लिया। शक्तिसिंह ने भी सहयोग देते हुए अपने खुरदरे हाथों से राजमाता की मांसल पीठ और कमर की गोरी कोमल त्वचा को सहलाना शुरू कर दिया। शक्तिसिंह को चूमते हुए राजमाता आहें भर रही थी। कुछ देर तक उसकी बलिष्ठ भुजाओं का आनंद लेकर राजमाता ने उसे अपने बाहुपाश से मुक्त किया और बिस्तर पर फैल कर बैठ गई।

"बड़ा तड़पाया है तूने मुझे... यात्रा से लेकर अब तक... मेरा शरीर तेरी मजबूत पकड़ को तरस गया है... पर तुझे तो मेरी याद ही नही आती"

"ऐसा नही है राजमाता, में तो आपके आदेश का पालन कर राज्य को लौट गया था और फिर तालिम में व्यस्त था.. मुझे तो आज ही पता चला की आप यात्रा से लौट आए है"

"हम्म... तुझे वहाँ से वापिस लौटने का आदेश देना जरूरी था... वरना वह चुदैल महारानी अपने मोहपाश से तुझे मुक्त ही नही करती"

शक्तिसिंह मौन ही रहा.. यात्रा के वक्त उत्तेजनावश उसने राजमाता के निर्देश की अवहेलना कर महारानी को अतिरिक्त दो बार चोद दिया था और राजमाता को इसका ज्ञान भी हो गया था। वासना का रंग उड़ते ही उसे एहसास हुआ की इस उपेक्षा का बड़ा भयानक नतीजा हो सकता था। गनीमत थी की राजमाता भी उसके लंड की दीवानी हो चली थी वरना उसका वहाँ से जिंदा लौट पाना नामुमकिन था।

"चुप क्यों खड़ा है? आजा यहाँ मेरे पास बैठ..." राजमाता ने उसे आमंत्रित किया

थोड़े से संकोच के साथ शक्तिसिंह राजमाता के बगल में जा बैठा।

राजमाता ने उसकी मजबूत बाहों को सहलाना शुरू कर दिया... उसकी बलिष्ठ मांसपेशियाँ सैनिक-वस्त्रों के बाहर झलक रही थी और शक्तिसिंह की ताकत का प्रमाण भी दे रही थी। हालांकि राजमाता ने शक्तिसिंह की शक्ति को भलीभाँति परख लिया था।

राजमाता ने अपने घने गुलाबी होंठों से शक्तिसिंह के कंधों को चूमा... और उसकी छाती पर अपना हाथ घुमाने लगी। उनकी रगों में रक्त तेजी से दौड़ने लगा था। कुछ देर पहले महारानी के खंड में संदीप्त हुई चुत फिर से हरकत करने लगी। उनके गाल उत्तेजनावश लाल लाल हो गए। उन्होंने एक धक्का देकर शक्तिसिंह को बिस्तर पर लिटा दिया और उसके जिस्म के दोनों तरफ पैर रखकर शक्तिसिंह के शरीर पर सवार हो गई।

शक्तिसिंह के खड़े लँड के बिल्कुल ऊपर राजमाता के चूतड़ बिराजमान थे। हालांकि बीच में दोनों के वस्त्रों का आवरण जरूर था।

राजमाता अब शक्तिसिंह पर ऐसे झपटी जैसे भूखी शेरनी मेमने पर झपटती है। उन्होंने बेतहाशा होकर शक्तिसिंह के गर्दन, होंठ, कपाल और छाती पर चूमना शुरू कर दिया। शक्तिसिंह भी निढाल होकर पड़े पड़े राजमाता के इस खेल का आनंद ले रहा था। उसका लंड राजमाता के शरीर के वज़न तले दबा हुआ था पर फिर भी अपना पूरा जोर लगाकर खड़ा होने की भरसक कोशिश कर रहा था।

शक्तिसिंह की छाती को चूमते हुए राजमाता नीचे की ओर गई... और अपने पसंदीदा हथियार को धोती के आवरण के ऊपर से ही महसूस करने लगी। राजमाता का वज़न हटते ही शक्तिसिंह का औज़ार धोती को उठाते हुए खड़ा हो गया। धोती के उस उभार को राजमाता सम्मोहित होकर देखती ही रह गई। उन्होंने उस उभार को अपनी मुठ्ठी में पकड़ा... उस मजबूत लिंग की परिधि का एहसास होते ही उनकी चुत ने तुरंत पानी का अभिषेक कर दिया। उस योनिजल का गीलापन शक्तिसिंह को अपने घुटनों पर महसूस हुआ।

धोती को टटोलते हुए राजमाता ने आखिर शक्तिसिंह के लंड को मुक्त कर ही दिया..!! कुछ प्रहरों पहले महारानी के मुख-मैथुन से रिसाव कर चुके इस लंड ने अब नया चेहरा देखा!! तन्ना के ऐसे सख्त खड़ा था जैसे राजमाता को सलामी दे रहा हो!! उस प्यारे टमाटर जैसे सुपाड़े को राजमाता बड़े ही वात्सल्य से देखती रही... उन्हे इतना प्यार उमड़ आया की बिना एक क्षण का व्यय किए, उन्होंने उस गुलाबी सुपाड़े को मुंह में भर लिया और बड़े ही चाव से चूसने लगी। लंड के ऊपर से लेकर नीचे तक वह अपनी जीभ फेरते हुए उसे अपनी लार से सराबोर करती जा रही थी। शक्तिसिंह आँखें बंद कर इस स्वर्गीय सुख का आनंद ले रहा था।

अपनी मुठ्ठी में कैद कर राजमाता ने लंड को ऊपर से नीचे तक हिलाया। उसके लंड की त्वचा को ऊपर नीचे करते हुए वह सुपाड़े को चूसने लगी। वीर्य की कुछ बूंदें सुपाड़े के छेद पर प्रकट हुई जिसे राजमाता ने अपनी जीभ के छोर से समेटकर चाट लिया। उस मजबूत सैनिक के पुष्ट वीर्य में अनोखा स्वाद था।

उधर राजमाता की चुत आंदोलित हो रही थी... अवहेलना उससे बर्दाश्त न हुई और वह टपक टपक कर राजमाता को उसे मुक्त करने का आहवाहन दे रही थी। चुत की इस स्थिति से वाकिफ होने के बावजूद, राजमाता फिलहाल शक्तिसिंह के लंड को छोड़ना नही चाहती थी। वह पागलों की तरह शक्तिसिंह के लंड को चूसे जा रही थी। उसका पूरा लंड राजमाता की लार से द्रवित हो चुका था।

राजमाता द्वारा की जा रही लंड चुसाई का आनंद लेते हुए शक्तिसिंह ने अपना कवच और उपरार्ध का वस्त्र, लेटे लेटे ही उतार दिया। उसकी मांसल मजबूत विशाल छाती पर राजमाता अपना हाथ पसारने लगी। शक्तिसिंह के लंड को मुक्त कर राजमाता खड़ी हुई और अपनी चोली की गांठ खोलने लगी। गांठ खुलते ही उनके दोनों लचीले भारी गोरे गोरे स्तन बाहर निकल आए। दोनों विशाल स्तन और उसपर लगी लाल चेरी जैसी उनकी निप्पल देखकर ही शक्तिसिंह के मुंह में पानी आ गया।

राजमाता अपने स्तन खोलकर खड़ी हो गई और उन्होंने अपना घाघरा उठाया। दोनों मांसल जांघों के बीच बालों के झुरमुट में छिपी हुई उनकी लाल चुत की लकीर द्रश्यमान हो गई। उनका दाना उत्तेजना से सख्त हो गया था और चुत के होंठों से रस टपक रहा था। उसी अवस्था में राजमाता एक कदम आगे आई और बिल्कुल शक्तिसिंह के चेहरे के दोनों तरफ टाँगे जमाकर खड़ी हो गई। शक्तिसिंह को अपने ऊपर फैली जांघों के बीच राजमाता का शाही भोंसड़ा नजर आ रहा था और योनिरस उसके मुंह पर टपक रहा था। वह असमंजस में था की राजमाता आखिर क्या करना चाहती थी। राजमाता ने हौले से अपने घुटनों को मोड़ा और अपनी चुत को बिल्कुल शक्तिसिंह के मुंह के करीब ले गई।

"देख ले बेटा... यह वही शाही चुत है जिसमे से तुम्हारे महाराज प्रकट हुए थे... आज इसमे ऐसा घमासान हुआ पड़ा है जिसे बस तू ही शांत कर सकता है... ले... इसका रस पीकर तृप्त हो जा... " कहते ही राजमाता ने अपनी चुत को शक्तिसिंह के मुंह पर रख दिया।

शुरुआत में उसने अपनी जीभ चुत पर फेर दी... स्पर्श होते ही दोनों होंठ खुल गए और चुत के अंदर का लाल गुलाबी हिस्सा दिखने लगा। राजमाता की चुत को इतने करीब से देखकर वह अभिभूत हो गया। राजमाता ने उंगलियों से अपनी चुत के दोनों होंठों को चौड़ा किया और अपना पूरा वज़न शक्तिसिंह के मुंह पर डाल दिया। शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से राजमाता के भारी चूतड़ों को पकड़े रखा ताकि संतुलन बना रहे और चाटने की क्रिया को ठीक से नियंत्रित भी किया जा सके।

राजमाता की चुत के गाढ़े चिपचिपे शहद को वह ऐसे चाटने लगा जैसे बिल्ली दूध चाटती है... उस दौरान राजमाता अपना दाना घिसे जा रही थी... चुत की अनोखी गंध शक्तिसिंह के नथुनों मे जाते ही वह मस्त हो गया। राजमाता अपने चूतड़ों को आगे पीछे हिलाते हुए चुत को शक्तिसिंह की जीभ पर रगड़ रही थी। उनका पूरा योनिमार्ग रस से लसलसित हो चुका था और शक्तिसिंह के मजबूत औज़ार को अपने में समाने के लिए आतुर हो उठा था।

अपनी चुत शक्तिसिंह के मुंह पर रगड़ते हुए राजमाता थोड़ी सी पीछे की और झुकी और एक हाथ से उसके लंड को पकड़ लिया... अपने आप को झड़ने से रोकने के लिए शक्तिसिंह को काफी यत्न करना पड़ा। राजमाता की चुत उसके मुख पर योनिरस का अभिषेक कर रही थी... और वह उसे चूसे जा रहा था। उनकी चुत का दाना उत्तेजना से सूजकर जामुन के आकार सा हो गया था।

शक्तिसिंह के मुंह की सवारी करते हुए वह उसका लंड हिलाते जा रही थी... राजमाता का घाघरा दोनों जांघों पर ऊपर तक चढ़ गया था। उनकी हलचल से राजमाता के दोनों भारी लचीले स्तन यहाँ वहाँ झूल रहे थे। शक्तिसिंह की दाढ़ी वाली ठुड्डी का स्पर्श अपनी गांड के छेद पर होते ही राजमाता सिहर उठती। वह अब पगलाई घोड़ी की तरह शक्तिसिंह के मुंह पर आगे पीछे होते हुए अपनी चुत घिसे जा रही थी।

शक्तिसिंह की हालत खराब थी... उसका लंड अब केवल हिलाने भर से खुश नहीं था... उसे चाहिए थी गुनगुनी चुत की गर्माहट... पर फिलहाल इस खेल का सारा नियंत्रण राजमाता के पास था... और वह तो झड़ने के यत्न में इतनी मशरूफ़ थी की शक्तिसिंह की अवस्था का उसे कोई अंदाजा न था... वह बस झड़ना चाहती थी...

शक्तिसिंह ने अपनी जीभ को राजमाता के फैले हुए भोंसड़े में अंदर तक डाल दी... पसीज चुके योनिमार्ग से अनोखी गंध वाला गरम गरम रस उसके मुंह में गिरता जा रहा था। भोंसड़े के अचानक सिकुड़ने का अनुभव होते ही शक्तिसिंह ने अनुमान लगा लिया की वह झड़ने के करीब थी। चुत से कामरस की बौछार की अपेक्षा से शक्तिसिंह ने अपना मुंह थोड़ा और खोल दिया।

"हाय... माँ... मर जाऊँगी में... क्या चाटता है तू बेटा... आईईईई... " राजमाता ने किलकारियाँ मारते हुए अपना जिस्म एकदम सख्त कर दिया और फिर झटके मारते हुए झड़ने लगी... उनका पूरा शरीर कांप रहा था... दोनों जांघें फैलाकर वह शक्तिसिंह के मुंह पर ही निढाल हो गिरी...

राजमाता के शरीर के भारी वज़न के तले शक्तिसिंह का दम घुटने लगा... उसने पूरा जोर लगाते हुए राजमाता के शरीर को उठाया और अपने बगल में लिटा दिया... कमर तक उठे घाघरे, और खुली चुत और स्तनों के साथ, राजमाता ऐसे टांगें फैलाकर लेटी थी जैसे उनके प्राण निकल गए हो!!

अब बारी शक्तिसिंह की थी... वह राजमाता की दोनों जांघों के बीच सटकर बैठ गया... उनके दोनों पैरों को अपने मजबूत कंधों पर ले लिए... लंड का सुपाड़ा राजमाता के गरम आद्र भोंसड़े के मुख पर रखा... और एक जोर का धक्का दिया... एक पल में ही राजमाता के भोंसड़े ने पूरा लंड निगल लिया और शक्तिसिंह के टट्टे उनकी गांड के दरवाजे पर दस्तक देने लगे।

गरमाए हुए घोड़े की तरह शक्तिसिंह ने आव देखा न ताव... वह जबरदस्त धक्के लगाते हुए राजमाता के खुले हुए खरबूजे जैसे स्तनों पर टूट पड़ा। दोनों मम्मों को चारों ओर चूमने के बाद उनके दो अंगूर जैसे निप्पल को बारी बारी से मुंह में भरकर चूसने लगा...

राजमाता अभी एक स्खलन से उभरी भी नहीं थी पर शक्तिसिंह के इन जानदार धक्कों के कारण वह पुनर्जीवित हो उठी... उन्होंने अपने दोनों हाथों से शक्तिसिंह के सर को अपने स्तनों के बीच दबा दिया और अपनी टाँगे और फैला दी... शक्तिसिंह का सुपाड़ा अब गेंद की आकार का होकर राजमाता के भोंसड़े को और फैलाते हुए उनकी बच्चेदानी पर नगाड़े बजा रहा था। शक्तिसिंह के घुँघराले झांट का खुरदरापन, राजमाता के भगोष्ठ को रगड़ते जा रहा था...

अथाग परिश्रम के कारण दोनों के शरीर पसीने से तरबतर हो गए थे। राजमाता की चुत का झरना बहते ही जा रहा था... उनके दोनों स्तनों पर जगह जगह पर शक्तिसिंह के काटने से लाल निशान बन गए थे। उनकी निप्पलों को चटकारे लेकर चूसते हुए जब शक्तिसिंह दांतों से काटता तब राजमाता जोर से कराह उठती...

शक्तिसिंह ने अपनी गति और बढ़ाई... राजमाता भी नीचे से धक्के लगाए जा रही थी... शक्तिसिंह ने अपना एक हाथ दोनों के जिस्मों के बीच सरकाया और राजमाता के दाने को रगड़ने लगा... वह अब अपनी उत्तेजना की चरमसीमा पर था... आखिरी चंद धक्के लगाकर दहाड़ते हुए उसने अपने वीर्य की पिचकारी राजमाता के आनंदित भोंसड़े में दे मारी... गरम गरम घी जैसी बौछारों ने पूरा शाही भोंसड़ा सींच दिया... कुछ क्षणों तक पिचकारियों का वह दौर चलता रहा... अपने गर्भाशय के मुख तक इस गुनगुने द्रव्य को महसूस करते हुए राजमाता ने भी हार मान ली और थरथराते हुए झड़ गई।


पुचुक की आवाज के साथ शक्तिसिंह ने अपना गीला हथियार राजमाता की म्यान से बाहर निकाला। युद्ध से चन्दाी होकर लौटे सैनिक जैसी उसकी शान थी... शक्तिसिंह राजमाता के बगल में ढेर हो गया... राजमाता वात्सल्य से शक्तिसिंह के सर पर हाथ पसारने लगी।
Nice update and awesome writing skills
 
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राजमाता सख्त मुंह बनाए वहाँ से चली गई... महारानी को यह पता न चला की वह किस बात पर क्रोधित थी...!! कहीं उन्हे उसके और दासी के गांड-उंगली के खेल के बारे में पता तो नही चल गया? वैसे ऐसी गुंजाइश तो नहीं थी चूंकि तंबू के दरवाजे से इतनी बारीकी से नजर आना असंभव था... फिर भी...!!


दो दिनों के बाद, राजमाता और महारानी अपने दस्ते के साथ सूरजगढ़ लौटे। राजमहल में उनका भव्य स्वागत किया गया। सब को यही मालूम था की वह दोनों धार्मिक यात्रा कर वापिस लौटे थे। उनके अलावा महाराज कमलसिंह को यह बात ज्ञात थी और वह बड़ी बेसब्री से उनके लौटने का इंतज़ार कर रहे थे। वह इस यात्रा के परिणाम को जानने के लिए बेहद उत्सुक थे।

राजमाता अपने कक्ष में पहुंचकर बिस्तर पर लेट गई। वह आँखें बंद कर पिछले एक हफ्ते के घटनाक्रम का मन में ही विश्लेषण कर रही थी। उन्होंने जिस तरह से सोचा था उसी हिसाब से सब हुआ। हालांकि एक डर उन्हे सताये जा रहा था और वह था महारानी पद्मिनी और शक्तिसिंह के बीच उत्पन्न हो चुकी नजदीकी का। उनका आदेश बड़ा स्पष्ट था की महारानी और शक्तिसिंह को किसी भी तरह की भावनाओ में बहने की अनुमति नही थी। पर जिस तरह से दो बार रानी और सैनिक, उनकी बगैर जानकारी के, संभोग करते हुए पकड़े गए थे, उन्हे यह डर था की कहीं वह दोनों छिप-छिपाके वापिस चोदने ना लग जाए। उन दोनों को रोकने के लिए राजमाता का शातिर दिमाग योजना बनाने लगा। कुछ देर पश्चात उन्होंने महाराज कमलसिंह को बुलावा भेजा।

महाराज के आते ही राजमाता सक्रिय हो गई और बिस्तर पर बैठ गई। पास पड़े आसन पर महाराज बिराजमान होकर यात्रा की जानकारी प्राप्त करने बेसब्र हो उठे।

"कैसी रही आपकी यात्रा, माँ"

"हम्म ठीक ही रही... में आश्वस्त हूँ की हमारा लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा"

महाराज के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। वह जानते थे की उनके वारिस का होना राज्य के लिए कितना महत्वपूर्ण था।

"हमे बड़ी ही प्रसन्नता हुई यह जानकर... वह योगी से इस कार्य के लिए पूर्ण सहयोग मिला होगा... उस जगह से हमारे परिवार का दशकों से संबंध रहा है... मुझे यकीन था की वह इस कार्य में हमारी सहायता जरूर करेंगे"

राजमाता ने कोई उत्तर ना दिया... मंजिल को कैसे हासिल किया गया था वह केवल राजमाता, महारानी और शक्तिसिंह ही जानते थे।

"क्या हुआ माँ? आप कुछ बोल नही रही..!!"

"कुछ नही.. बस थोड़ी सी थकान है... मैंने तुम्हें एक महत्वपूर्ण बात करने बुलाया है"

"जी बताइए माँ"

"पहली बात तो, में यह चाहती हूँ की महारानी के गर्भवती होने की बात को गोपनीय रखा जाए। रानी महल में सुरक्षा भी सख्त करनी है। हमारे दुश्मन तक अगर यह बात पहुंची तो महारानी की जान को खतरा हो सकता है।" राजमाता ने गंभीरता से कहा

"जी जरूर... में तुरंत आदेश देकर सुरक्षा के कड़े इंतेजाम करवाता हूँ... जनाना महल में सिर्फ विश्वसनीय दासियों को ही नियुक्त किया जाएगा...किसी भी अनजान व्यक्ति के प्रवेश को प्रतिबंधित किया जाएगा"

"हम्म... पर इतना पर्याप्त ना होगा.. में चाहती हूँ की तुम जनाना महल में शक्तिसिंह को नियुक्त करो। वह वफादार और बहादुर है और उसके नेतृत्व में कुछ सैनिक रानी महल का ध्यान रखेंगे।"

महाराज को यह सुन आश्चर्य हुआ

"माँ, शक्तिसिंह तो सैन्य का हिस्सा है... यहाँ महल में और काफी सैनिक है जो इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा सकते है"

"नहीं, में चाहती हूँ की महारानी और रानी महल के लिए शक्तिसिंह को ही नियुक्त किया जाए। मुझे उसकी बहादुरी और वफादारी पर पूर्ण विश्वास है... सैन्य के कार्यों के लिए किसी और सैनिक को नियुक्त कर सकते है।" राजमाता ने आदेशात्मक स्वर में कहा

महाराज के पास राजमाता की बात को स्वीकार करने के अलावा और कोई विकल्प न था। उन्होंने जरूरी निर्देश दिए और दूसरे ही दिन शक्तिसिंह को रानीमहल की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई।

शक्तिसिंह को इस बात का अंदेशा था ही..!! जिस तरह से रानी और राजमाता उसके लंड के कायल हो गए थे वह जानता था की उसे करीब लाने के लिए ऐसी प्रयुक्ति, राजमाता जरूर आजमाएगी। फिलहाल उसे राजमाता से ज्यादा, महारानी पद्मिनी के करीब जाने में ज्यादा दिलचस्पी थी। महारानी के गोल गुंबज जैसे स्तन और गोरे गोरे भारी चूतड़, शक्तिसिंह के दिमाग से निकलने का नाम ही नही ले रहे थे। उनकी याद आते ही शक्तिसिंह का लंड इतना सख्त हो जाता था की धोती में छुपाना मुश्किल हो जाता।

महारानी को जैसे ही शक्तिसिंह के महल में नियुक्त होने के समाचार मिले... वह चहकने लगी। उनकी खुशी का कोई ठिकाना न रहा... शक्तिसिंह के दमदार लौड़े से ठुकने के बाद उनकी चुत की प्यास और बढ़ चुकी थी। यात्रा से लौटते वक्त वह अमूमन यह सोच रही थी की वापिस फिर महाराज के ढीले लंड से चुदवाना पड़ेगा... शक्तिसिंह के मूसल के मुकाबले महाराज का लंड को तो नून्नी ही कहा जा सकता था। अब शक्तिसिंह के महल में आ जाने से फिर से वह उसके शक्तिशाली लिंग से खेल सकती थी... और चुदाई का पूर्ण आनंद ले सकती थी।

अपने खंड से बाहर निकलकर वह बरामदे के और चलती हुई उस स्थान पर जा पहुंची जहां शक्तिसिंह अपने दो सैनिकों के साथ पहरा दे रहा था। महारानी को देखकर उसकी आँखें चमक उठी। महारानी का इशारा पाते ही शक्तिसिंह ने दोनों सैनिकों को महल का चारों और से मुआयना करने जाने का निर्देश दिया। दोनों सैनिक अलग अलग दिशा में चल दिए। उनके नजर से ओजल होते ही महारानी ने शक्तिसिंह को अपनी बाहों में भर लिया!! शक्तिसिंह भयभीत हो उठा... अगर इस स्थिति में कोई उसे देख ले तो तुरंत ही उसका सर कलम दिया जाता। उसने महारानी को रोकना चाहा पर महारानी ने उसे कसकर जकड़ रखा था। वह बेतहाशा शक्तिसिंह को चूमे जा रही थी। उनके हाथ अब धोती के ऊपर से लंड को सहलाने लगे थे। वास्तविकता से अनजान उसका लंड हरकत में आकार महारानी की हथेलियों संग खेलने लगा।

महारानी ने अपना हाथ धोती में सरका दिया और शक्तिसिंह के मूसल को पकड़कर उसकी चमड़ी ऊपर नीचे करने लगी। शक्तिसिंह के आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया। वह चाहते हुए भी महारानी को सहयोग नही दे पा रहा था। वह इतना डरा हुआ था फिर भी उसका लंड पूर्णतः सख्त हो गया था। महारानी ने एक ही पल में उसका लंड धोती से बाहर निकाल दिया।

"यह क्या कर रही है महारानी जी!!! कोई आ गया तो आफत आ जाएगी..." सकपकाते हुए शक्तिसिंह ने कहा

महारानी ने उसकी बातों को अनसुना करते हुए घुटनों को मोड़ा और नीचे की और गई। अब शक्तिसिंह का लंड महारानी के मुख के बिल्कुल सामने तोप की तरह तना हुआ था। महारानी के हाथ लंड पर तेजी से आगे पीछे हो रहे थे। अपनी मुठ्ठी में लंड को भरकर जब वह अंदर की तरफ दबाती तब शक्तिसिंह का लाल सुर्ख सुपाड़ा अपने दर्शन देकर महारानी को प्रफुल्लित कर देता...

बिना वक्त जाया किए महारानी ने शक्तिसिंह के सुपाड़े को अपनी मुंह में ले लिया। शक्तिसिंह की आँखें बंद हो गई। अति-आनंद और घबराहट के बीच शक्तिसिंह झूल रहा था। वह हर दूसरे क्षण दोनों दिशाओं में देखता रहता था... महारानी पागलों की तरह उसका लंड चूसे जा रही थी। उसके लंड का जादू इस कदर सर पर सवार था की उनका दिमाग और कुछ सोच ही नही पा रहा था। शक्तिसिंह का फनफनाता लंड इस उत्तेजना को झेल पाने के लिए असमर्थ था और किसी भी वक्त अपना इस्तीफा दे सकता था। बड़ी ही मुश्किल से शक्तिसिंह ने उसे रोके रखा था।

लंड चूसते हुए महारानी अब शक्तिसिंह के टट्टों को भी सहला रही थी.... शक्तिसिंह की बर्दाश्त की सारी सीमा पार हो गई थी... महारानी के मुंह की गरम गलियों में गश्त लगाते हुए लंड पूरे उफान पर था। तीन चार बार और जोर से चूसने पर लंड ने हथियार रख दिए... फुले हुए सुपाड़े ने महारानी के मुख में वीर्य की बौछार कर दी। तीन चार जबरदस्त पिचकारियाँ लगते ही महारानी का दम घुटने लगा... पर वह फिर भी चूसे जा रही थी... लंड के अनूठे शक्ति-रस का पान कर वह धन्य हो गई थी!! शक्तिसिंह का लंड अब अपनी सख्ती छोड़ रहा था... यह महसूस होते ही महारानी ने लंड मुंह से निकाला और खड़ी हो गई। उसने शक्तिसिंह के चेहरे को पकड़ा और उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए। शक्तिसिंह अपने वीर्य की गंध को महसूस कर रहा था... एक गहरा चुंबन देकर महारानी ने फुसफुसाते हुए शक्तिसिंह के कानों में कहा

"रात को चुपके से मेरे कक्ष में आ जाना... ध्यान रहे किसी को इस बात का अंदेशा नही लगना चाहिए"

उन्होंने अपने वस्त्र को ठीक किया और एक शरारती मुस्कान देते हुए वहाँ से चल दी... शक्तिसिंह ने भी अपने लंड को तुरंत धोती के अंदर डाल दिया और पूर्ववत हो कर पहरा देने लगा। अभी जो कुछ भी हुआ था उसका विश्वास उसे अभी भी नही हो रहा था। महारानी की इस हिम्मत को देख वह दंग रह गया था!!

कुछ ही देर में दोनों सैनिक गश्त लगाकर लौट आए। उन में से एक ने शक्तिसिंह को बताया की राजमाता ने उसे हाजिर होने का हुकूम दिया है। आश्चर्य सह शक्तिसिंह राजमाता के कक्ष की और चल दिया। रानी महल के दूसरे हिस्से में उनका निवास था। उनके कक्ष में प्रवेश करते ही उसने देखा की वह बिस्तर पर टाँगे फैलाए बैठी थी और दो दासियाँ उनके पैर दबा रही थी।

शक्तिसिंह को देखते ही राजमाता ने आँखों से इशारा किया और दोनों दासियाँ उठकर कक्ष से बाहर चली गई।

शक्तिसिंह नतमस्तक होकर खड़ा रहा।

"हम्म तो कैसे हो तुम शक्तिसिंह?"

"आपकी कृपा है राजमाता" शक्तिसिंह ने हाथ जोड़कर कहा

"तुम्हें रानी महल की सुरक्षा की जिम्मेदारी मिलने पर हैरानी तो जरूर हुई होगी... है ना!!"

"में तो इस राज्य का सेवक हूँ राजमाता... मेरा परिवार पीढ़ियों से राजमहल की सुरक्षा करता आया है... यह तो मेरा सौभाग्य है की मुझे इस जिम्मेदारी के लिए काबिल समझा गया... में किसी भी प्रकार की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहूँगा" सिर झुकाकर शक्तिसिंह ने कहा। उसके मुरझाए लंड से वीर्य की बचीकूची बूंदें उसकी जांघों को गीला कर रही थी।

राजमाता के चेहरे पर एक कुटिल सी मुस्कान दौड़ गई। सारी स्थिति पर अपना पूर्ण नियंत्रण का एहसास होने पर वह मन ही मन बहुत खुश थी। शक्तिसिंह की सेवा के लिए उनका शाही भोंसड़ा पिछले कई दिनों से तड़प रहा था। शक्तिसिंह को अपने करीब लाने के लिए जो व्यवस्था उन्होंने आयोजित की थी वह सफल होती नजर आई..

"तुम आज से मेरे कक्ष की रखवाली करोगे... " राजमाता ने आदेश दिया

"क्षमा कीजिए राजमाता... पर मुझे तो महारानी पद्मिनी के कक्ष की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है!!" शक्तिसिंह राजमाता के इस खेल को अभी समझ नही पा रहा था

"अब तुम मुझे बताओगे की कैसे और क्या करना है?" राजमाता ने क्रोधित स्वर में कहा

"माफ कीजिए राजमाता जी, में तो केवल वही बता रहा था जिसका मुझे आदेश दिया गया था"

"अब से जो में कहूँगी, वही तुम्हारे लिए आदेश होगा, समझे!!" राजमाता ने बड़ी ही कड़ी आवाज में कहा। शक्तिसिंह का लाभ उठाने के लिए उसे वश में करना अत्यंत आवश्यक था।

"जी राजमाता, जैसी आपकी आज्ञा" गर्दन झुककर शक्तिसिंह ने स्वीकार किया

"दूसरी बात... रात के वक्त मेरे कक्ष के बाहर केवल तुम ही पहरा दोगे... बाकी सारे सैनिकों को महारानी की सुरक्षा के लिए भेज दिया जाए"

शक्तिसिंह को अब बात धीरे धीरे समझ में आने लगी थी। पहले तो राजमाता ने अधिक सुरक्षा का प्रश्न उठाकर शक्तिसिंह को महल में तैनात करवा दिया और अब महारानी की सुरक्षा का बहाना बनाकर सारे सैनिकों को वहाँ भेजने की बात कही। उनका उद्देश्य स्पष्ट था।

"मेरे हुकूम की आज से... बल्कि अभी से ही पालन हो... अब तुम जा सकते हो... में रात्री के प्रहार पूरी सुरक्षा का मुआयना करने आऊँगी। अगर जरा सी भी कोताही बरती गई तो में किसी को भी जिंदा नही छोड़ूँगी" आदेशात्मक स्वर में बोलकर राजमाता बिस्तर पर लेट गई और अपने दोनों घुटनों को मोड लिया। उनका घाघरा घुटनों तक ऊपर चढ़ गया और शक्तिसिंह को उनकी मांसल गोरी जांघें नजर आने लगी। हालांकि अभी कुछ देर पहले ही स्खलन हुआ था पर फिर भी शक्तिसिंह के लंड ने हरकत करना शुरू कर दिया। वह आँखें फाड़कर उनकी मलाई जैसी गोरी पिंडियों को देख रहा था।

"क्या देख रहे हो ?" राजमाता ने उसकी तरफ देखकर कहा

शक्तिसिंह ने अपनी आँखें झुका ली। अपनी चोरी पकड़ी जाने पर वह शर्मा गया।

"अब तुम जा सकते हो" राजमाता ने आँखें बंद करते हुए कहा

शक्तिसिंह उलटे पैर वापिस लौट गया। उसने अपने दल को महारानी के कमरे के बाहर पहरा देने का निर्देश दिया। कुछ देर बाद वह महारानी के कमरे में जा पहुंचा... महारानी उस वक्त अपने खंड में अकेली थी। शक्तिसिंह को देखते ही उनकी आँखें चमक उठी।


"अरे, तुम तो बड़ी जल्दी आ गए... भूल गए क्या, मैंने तुम्हें रात को आने के लिए कहा था" बड़े ही धीमे स्वर में महारानी ने कहा

शक्तिसिंह तय नही कर पा रहा था की बात की शुरुआत कैसे करें

"जी में... वो आपको... " शक्तिसिंह के गले में शब्द अटक गए थे

"साफ साफ बोलो, क्या कहना चाहते हो... "

"जी में यह सूचित करने आया था की आपसे मिलने आज रात में नही आ पाऊँगा"

"वह क्यों भला... एक ही बार में तुम्हारा हथियार थक गया क्या? यात्रा के दौरान तो जब देखो तब वह खड़ा ही दिखता था!! पर चिंता मत करो, रात होने में अभी वक्त है... तब तक तुम जरूर तैयार हो जाओगे इसका मुझे पूर्ण विश्वास है.. " महारानी पद्मिनी ने मुसकुराते हुए कहा

"जी बात वो नही है... " शक्तिसिंह ठीक से समझा नही पा रहा था

"दरअसल मुझे राजमाता के कक्ष की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है इसलिए.... " सकपकाते हुए शक्तिसिंह ने कहा

"क्या? किसने कहा तुमसे? महाराज का आदेश स्पष्ट था... इन अतिरिक्त सैनिकों को मेरी सुरक्षा के लिए ही भेजा गया है... और मेरा उद्देश्य तो यह है की जब तक गर्भधारण का समाचार ना मिले तब तक ज्यादा से ज्यादा संभोग कर में उसे सुनिश्चित कर सकूँ। इस बात को तुम हम दोनों के बीच तक ही सीमित रखना। तुम चिंता मत करो, में महाराज से बात करती हूँ"

"जी मुझे इस बात का आदेश राजमाता ने दिया है" डरते डरते शक्तिसिंह ने कहा

यह सुनते ही महारानी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। पर वह कुछ बोल नही पाई। उसे मालूम था की कमलसिंह नाम मात्र के राजा थे, असली राज तो राजमाता ही चलाती थी। पूरे राजमहल में किसी की हिम्मत नही थी की वह राजमाता के आदेश को अनसुना करे।

"शक्तिसिंह तुम अभी आ ही गए तो कक्ष का दरवाजा बंद कर लो... रात होने में अभी वक्त है.. तब तक हम थोड़ी देर... " शैतानी मुस्कान के साथ आँखें नचाते हुए महरानी ने कहा

"पर महारानी जी, बाहर खड़े सैनिकों ने मुझे अंदर आते देखा है... यहाँ ज्यादा समय व्यतीत करना अयोग्य होगा और उनको शंका हो जाएगी"

"तुम उनके सरदार हो... उन्हे कैसे संभालना वह तुम जानो... अभी फिलहाल में जैसा कह रही हूँ वैसा करो " महारानी के सर पर हवस का भूत सवार था। वह कैसे भी कर अपनी मखमली चुत में शक्तिसिंह का साबुत डंडा लेना चाहती थी।

"राजमाता ने कहा है की वह सुरक्षा व्यवस्था का मुआयना करने कभी भी आ सकती है... ऐसी सूरत में इतना बड़ा जोखिम उठाना उचित नही होगा महारानी जी" शक्तिसिंह ने डरते हुए कहा

राजमाता का नाम सुनते ही महारानी का दिमाग कलुषित हो गया... उनकी इस दखलंदाज़ी के कारण वह शक्तिसिंह को प्राप्त नही कर पा रही थी। उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर शक्तिसिंह की बात भी सही थी। ऐसा जोखिम उठाना ठीक नही था। उन्होंने आँखों से इशारा कर शक्तिसिंह को जाने के लिए कहा। शक्तिसिंह के जाते ही उन्होंने अपनी खास दासी को बुलाया

"जी महारानी जी... आपने याद किया?"

"उस दिन जैसे फिर से मालिश कर दे मेरी कमर की" महारानी ने चोली खोलकर उलटे लेटते हुए कहा। उनको दोनों उरोज सफेद कबूतरों की तरह बाहर झूलने लगे। दासी की आँखें उनपर चिपक सी गई। तभी उन्होंने अपने घाघरे को थोड़ा सा नीचे सरकाते हुए लगभग घुटनों तक ला दिया। उनके दोनों चूतड़ उजागर हो गए। दासी समझ गई की महारानी क्या चाहती थी। उसने तेल की शीशी लेकर मालिश करना शुरू कर दिया।

इस तरफ राजमाता अपने कक्ष से बाहर चलते हुए महल के उस हिस्से की तरफ चलते हुए आ रही थी जहां महारानी का खंड था। बीच रास्ते में उन्हे शक्तिसिंह अपनी ओर आता दिखा... पास से गुजरने पर भी शक्तिसिंह ने आँखें उठाकर राजमाता की तरफ नही देखा और चलता गया। राजमाता ने चन्दाी मुस्कान के साथ उसकी तरफ एक नजर देखा और आगे चल दी।

महारानी के कक्ष के बाहर तीन सैनिक खुली तलवार लिए पहरा दे रहे थे। शक्तिसिंह की इस व्यवस्था से संतुष्ट होकर राजमाता ने महारानी के कक्ष में प्रवेश किया। महारानी का कक्ष दो हिस्सों में बंटा हुआ था। कमरे के आगे के हिस्से में शाही साज सजावट थी और आगे चलते ही परदे के पीछे दूसरे हिस्से में महारानी का बिस्तर था। शाम होने को थी और कक्ष में काफी अंधेरा हो रहा था। महारानी के बिस्तर के इर्दगिर्द जल रहे दीयों से चारों ओर प्रकाश फैला था। हालांकि कमरे का आगे का हिस्सा अंधेरे में डूबा हुआ था। दबे पाँव चली आ रही राजमाता की भनक दासी या महारानी किसी को ना हुई। राजमाता एक स्तम्भ के पीछे खुद को छुपाकर, परदे के पीछे बिस्तर पर चल रही गतिविधियों को देखने लगी। यात्रा के दौरान जब वह महारानी के तंबू में आई थी तब उन्हे यकीन था की उन्होंने महरानी की सिसकियाँ साफ सुनी थी। उन्हे संदेह था की दासी के साथ वह कुछ तो गुल खिला रही थी।

"आह... वैसे ही करती जा... थोड़ा सा और तेल लेकर उंगली डाल" महारानी कराहते हुए बोली

राजमाता को अपनी आँखों पर विश्वास नही हो रहा था...!! महारानी अपने बड़े बड़े कूल्हे फैलाए लेटी थी और उनकी दासी अपनी उंगली महारानी की गांड के छेद में डालकर आगे पीछे कर रही थी...!! यह देख राजमाता का जबड़ा लटक गया... हालांकि गुदा मैथुन के बारे में वह विस्तार से जानती थी पर ना तो कभी उन्होंने वास्तविकता में उसे देखा था और ना ही कभी महसूस किया था। वास्तव में वह मानती थी की गाँड़ के सिकुड़े छेद में लंड डलवाना काफी दर्दनाक होता होगा। पर महारानी को उंगली डलवाते हुए देख वह अचंभित थी क्योंकी रानी के चेहरे पर दर्द का कोई निशान दिख नही रहा था। वह तो बड़े चाव से इस उंगली-चोदन का आनंद ले रही थी।

महारानी अपनी चूचियाँ खुद ही मसल रही थी। राजमाता क्रोधित होकर हस्तक्षेप करने ही वाली थी पर कुछ सोचकर वह रुक गई और यह पूरा तमाशा देखने लगी।

दासी महारानी की गाँड़ में उंगली डालते हुए अपने अंगूठे से उनकी चुत के होंठों को भी ऊपर से रगड़ रही थी। महारानी सातवे आसमान पर पहुँच चुकी थी... वह हर दूसरे पल अपने चूतड़ को उछाल रही थी... अस्पष्ट शब्दों की बकवास किए जा रही थी... और साथ ही साथ अपनी निपलों को मरोड़े जा रही थी।

"और तेजी से अंदर बाहर कर... आह आह... ऊई...!!!" चूतड़ उछाल उछालकर वह दासी की उंगली का पूर्ण आनंद ले रही थी। महारानी की चुत बेतहाशा पानी छोड़ रही थी। उनका पूरा जिस्म पसीने से तर हो चुका था। साँसे भी तेज चल रही थी।

महारानी की इस अवस्था को देख राजमाता के पूरे जिस्म में झुरझुरी सी होने लगी। उनकी साँसे फूलने लगी। उन्हे पता ही नही चला की कब उनका एक हाथ घाघरे के ऊपर से उनके भोंसड़े को मलने लगा था। वस्त्र के ऊपर से ही अपनी चुत को पकड़कर वह दबाने लगी और दूसरे हाथ से अपने स्तनों को सहलाने लगी। अगर वह स्तम्भ का सहारा लेकर ना खड़ी होती तो उत्तेजना के मारे वही गिर जाती।

"अब तू दो उंगली एक साथ डाल दे... " हांफते हुए महरानी ने कहा

"जी महारानी, ऐसा करूंगी तो आपको दर्द होगा" दासी इस आदेश से थोड़ा हिचकिचाई

"जैसा कह रही हूँ वैसा कर... डाल दे दो उंगली"

दासी ने दूसरी उंगली को तेल से लिप्त किया और एक साथ दोनों उंगली अंदर डाल दी...

"ऊईई माँ... मर गई... " महारानी के कंठ से हल्की चीख निकल गई...

घबराकर दासी ने दोनों उंगली बाहर निकाल ली

"क्या कर रही है तू? बाहर क्यों निकाल ली तूने... " महारानी ने बेचैन होते हुए पूछा

"जी वो आपको दर्द हुआ इसलिए " दासी ने डरते डरते उत्तर दिया

"डाल दे वापिस... पर जरा धीरे धीरे... तूने झटके से अंदर डाल दी इसलिए दर्द हुआ"

दासी ने तुरंत अमल किया... थोड़ा सा और तेल लेकर उसने पहले तो महारानी के गांड के छेद में डाल और फिर उंगलियों को तेल से द्रवित कर धीरे धीरे दोनों उंगलियों को उनके बादामी रंग के छेद में डाल दिया।

"कुछ देर ऐसे ही डाले रख... जब में कहूँ तब आगे पीछे करना" महारानी दो उंगलियों की चौड़ाई से गांड के छेद को अभ्यस्त करवाना चाहती थी। कुछ समय तक यूँही पड़े रहने के बाद उनका छेद अब उंगलियों के आसपास सहज हो गया।

"अब धीरे धीरे आगे पीछे कर... और हाँ... तेरे अंगूठे से नीचे घिसती रहना" वह अपनी प्यासी चुत को भी अनदेखा करना नही चाहती थी

दासी की उँगलियाँ अब किसी यंत्र की तरह महारानी की गांड के छेद में अंदर बाहर हो रहा था और साथ थी साथ उसका अंगूठा चुत के होंठों को सहला रहा था। दोनों होंठ चुत के द्रवित होते रस से चिपचिपे बन गए थे। दासी की उँगलियाँ ऐसे चल रही थी जैसे मक्खन के अंदर गरम छुरी।

इस अंगुली-चोदन को देखते हुए राजमाता काफी उत्तेजित हो रही थी... उनका अनुभवी भोंसड़ा अब भांप छोड़ रहा था... एक हाथ से अपना घाघरा ऊपर कर उन्होंने दूसरे हाथ की उंगली से अपने अंगूर जैसे दाने को रगड़ा... उंगली की रगड़ खाते ही उनकी क्लिटोरिस सिहर उठी... पूरा शरीर झुंजहाने लगा.. दाने को रगड़कर उन्होंने उंगली को चुत के होंठों के बीच घुसा दिया...

यहाँ दासी ने महारानी की गांड में उंगली करते करते अपना अंगूठा उनकी चुत में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। दोनों छिद्रों में एक साथ हुए हमले से महारानी उछलने लग गई। उनकी चुत का शहद अब बहकर बिस्तर को गीला कर रहा था। महारानी को इस अवस्था में देखकर दासी की चुत में भी चुनचुनी होने लगी थी। उसने अपना दूसरा हाथ चोली में डालकर अपने स्तनों को मसलना शुरू कर दिया।

"हाय दैया... मार देगी तू मुझे... कैसा रगड़ रही है री तू... आह...!!" महारानी निरंतर बकवास किए जा रही थी। उनकी निप्पल मरोड़ने के कारण लाल लाल हो गई थी... अब तो उन्हे छूने पर भी दर्द हो रहा था।

इस तरफ राजमाता की उंगली भी जोर-शोर से उनके भोंसड़े के अंदर बाहर हो रही थी... उनके घुटने इतने अशक्त महसूस होने लगे की लगता था की वह किसी भी वक्त संतुलन खो कर गिर जाएगा। जैसे तैसे कर उन्होंने अपना आपा बनाए रखा था। उंगली से जैसे उनका मन नही भर रहा था... अब उन्होंने स्तंभ के कोण पर अपना दाना घिसना शुरू कर दिया... पूरे कक्ष में, तीन उत्तेजित चूतों की गंध फैल गई थी।

"ऊईईई... जोर से घिस जरा... हाय कमीनी... जरा हाथ चला जल्दी जल्दी... में निढाल होने ही वाली हूँ... आईईई माँ... " महारानी कराहती हुई अपनी मंजिल की तरफ कूच कर रही थी... कुछ ही पलों में महारानी ऐसे तड़पने लगी जैसे जल बिन मछली..!! एक जोरदार चीख मारकर महारानी लाश की तरह ढेर हो गई... दासी ने उनकी गांड और चुत से उंगली निकालकर उन्हे सूंघा... शाही गुप्तांगों की अनोखी खुशबू ने उसे सराबोर कर दिया। होश खोकर लुढ़की हुई महारानी के बिस्तर के दूसरे छोर पर दासी अपनी टाँगे फैलाकर लेट गई और अपना घाघरा उठाकर चुत में उंगली करने लगी।

कुछ ही पलों में उसकी चुत ने भी जवाब दे दिया। वह धीरे से उठी, अपने वस्त्र ठीक किए और महारानी के ऊपर मखमली चद्दर ओढाकर वहाँ से चलने लगी। दासी को बाहर आता देख राजमाता ने भी अपनी उंगली बाहर निकाली, घाघरा गिराया और अंधेरे का सहारा लेकर कक्ष से बाहर निकल गई।

अपने खंड तक लौटते हुए राजमाता ने शक्तिसिंह को द्वार पर अकेले चौकीदारी करते हुए देखा और मुस्कुरा दी... बिना कुछ कहें वह शक्तिसिंह के करीब से गुजरकर अंदर चली गई।

मध्य रात्री का समय था। पूरा नगर नींद की गिरफ्त में सो रहा था। रानी महल में सन्नाटा छाया हुआ था... केवल सिपाहियों और चौकीदारों की प्रासंगिक चहल पहल सुनाई दे रही थी। रानी महल के अंतिम छोर पर कोने में राजमाता के कक्ष के बाहर शक्तिसिंह पहरा दे रहा था। तभी कक्ष का बंद दरवाजा खुला और पीछे से राजमाता प्रकट हुए। उन्होंने आँखों से ही इशारा कर शक्तिसिंह को अंदर बुलाया। बिना कुछ कहे या पूछे शक्तिसिंह नीची मुंडी कर अंदर चला गया। उसके अंदर आते ही राजमाता ने द्वार बंद कर दिया और कुंडी लगा दी।

राजमाता का कक्ष काफी विशाल था... छत पर रंगबिरंगी कांच के झूमर लटक रहे थे... दीवारों पर कीमती रत्न जड़े हुए थे... बड़े बड़े तैल-चित्रों से दीवारें सुशोभित थी... बीच में पड़े मेज और कुर्सी पर सुवर्ण का आवरण था। थोड़ा सा और अंदर जाते ही बड़ा सा बिस्तर था... पलंग के चार स्तंभ पर शेर की छवि मुद्रित थी... चारों और दिए और सुगंधित बत्तियाँ जल रही थी.. छत से लेकर बिस्तर तक एक पारदर्शक कपड़ा, पलंग को चारों ओर से ढँक रहा था।

राजमाता के पीछे पीछे चलते हुए शक्तिसिंह भी बिस्तर तक आ गया। बिस्तर पर पहुंचकर राजमाता शक्तिसिंह की ओर मुड़ी और उसे अपनी बाहों में भर लिया। शक्तिसिंह ने भी सहयोग देते हुए अपने खुरदरे हाथों से राजमाता की मांसल पीठ और कमर की गोरी कोमल त्वचा को सहलाना शुरू कर दिया। शक्तिसिंह को चूमते हुए राजमाता आहें भर रही थी। कुछ देर तक उसकी बलिष्ठ भुजाओं का आनंद लेकर राजमाता ने उसे अपने बाहुपाश से मुक्त किया और बिस्तर पर फैल कर बैठ गई।

"बड़ा तड़पाया है तूने मुझे... यात्रा से लेकर अब तक... मेरा शरीर तेरी मजबूत पकड़ को तरस गया है... पर तुझे तो मेरी याद ही नही आती"

"ऐसा नही है राजमाता, में तो आपके आदेश का पालन कर राज्य को लौट गया था और फिर तालिम में व्यस्त था.. मुझे तो आज ही पता चला की आप यात्रा से लौट आए है"

"हम्म... तुझे वहाँ से वापिस लौटने का आदेश देना जरूरी था... वरना वह चुदैल महारानी अपने मोहपाश से तुझे मुक्त ही नही करती"

शक्तिसिंह मौन ही रहा.. यात्रा के वक्त उत्तेजनावश उसने राजमाता के निर्देश की अवहेलना कर महारानी को अतिरिक्त दो बार चोद दिया था और राजमाता को इसका ज्ञान भी हो गया था। वासना का रंग उड़ते ही उसे एहसास हुआ की इस उपेक्षा का बड़ा भयानक नतीजा हो सकता था। गनीमत थी की राजमाता भी उसके लंड की दीवानी हो चली थी वरना उसका वहाँ से जिंदा लौट पाना नामुमकिन था।

"चुप क्यों खड़ा है? आजा यहाँ मेरे पास बैठ..." राजमाता ने उसे आमंत्रित किया

थोड़े से संकोच के साथ शक्तिसिंह राजमाता के बगल में जा बैठा।

राजमाता ने उसकी मजबूत बाहों को सहलाना शुरू कर दिया... उसकी बलिष्ठ मांसपेशियाँ सैनिक-वस्त्रों के बाहर झलक रही थी और शक्तिसिंह की ताकत का प्रमाण भी दे रही थी। हालांकि राजमाता ने शक्तिसिंह की शक्ति को भलीभाँति परख लिया था।

राजमाता ने अपने घने गुलाबी होंठों से शक्तिसिंह के कंधों को चूमा... और उसकी छाती पर अपना हाथ घुमाने लगी। उनकी रगों में रक्त तेजी से दौड़ने लगा था। कुछ देर पहले महारानी के खंड में संदीप्त हुई चुत फिर से हरकत करने लगी। उनके गाल उत्तेजनावश लाल लाल हो गए। उन्होंने एक धक्का देकर शक्तिसिंह को बिस्तर पर लिटा दिया और उसके जिस्म के दोनों तरफ पैर रखकर शक्तिसिंह के शरीर पर सवार हो गई।

शक्तिसिंह के खड़े लँड के बिल्कुल ऊपर राजमाता के चूतड़ बिराजमान थे। हालांकि बीच में दोनों के वस्त्रों का आवरण जरूर था।

राजमाता अब शक्तिसिंह पर ऐसे झपटी जैसे भूखी शेरनी मेमने पर झपटती है। उन्होंने बेतहाशा होकर शक्तिसिंह के गर्दन, होंठ, कपाल और छाती पर चूमना शुरू कर दिया। शक्तिसिंह भी निढाल होकर पड़े पड़े राजमाता के इस खेल का आनंद ले रहा था। उसका लंड राजमाता के शरीर के वज़न तले दबा हुआ था पर फिर भी अपना पूरा जोर लगाकर खड़ा होने की भरसक कोशिश कर रहा था।

शक्तिसिंह की छाती को चूमते हुए राजमाता नीचे की ओर गई... और अपने पसंदीदा हथियार को धोती के आवरण के ऊपर से ही महसूस करने लगी। राजमाता का वज़न हटते ही शक्तिसिंह का औज़ार धोती को उठाते हुए खड़ा हो गया। धोती के उस उभार को राजमाता सम्मोहित होकर देखती ही रह गई। उन्होंने उस उभार को अपनी मुठ्ठी में पकड़ा... उस मजबूत लिंग की परिधि का एहसास होते ही उनकी चुत ने तुरंत पानी का अभिषेक कर दिया। उस योनिजल का गीलापन शक्तिसिंह को अपने घुटनों पर महसूस हुआ।

धोती को टटोलते हुए राजमाता ने आखिर शक्तिसिंह के लंड को मुक्त कर ही दिया..!! कुछ प्रहरों पहले महारानी के मुख-मैथुन से रिसाव कर चुके इस लंड ने अब नया चेहरा देखा!! तन्ना के ऐसे सख्त खड़ा था जैसे राजमाता को सलामी दे रहा हो!! उस प्यारे टमाटर जैसे सुपाड़े को राजमाता बड़े ही वात्सल्य से देखती रही... उन्हे इतना प्यार उमड़ आया की बिना एक क्षण का व्यय किए, उन्होंने उस गुलाबी सुपाड़े को मुंह में भर लिया और बड़े ही चाव से चूसने लगी। लंड के ऊपर से लेकर नीचे तक वह अपनी जीभ फेरते हुए उसे अपनी लार से सराबोर करती जा रही थी। शक्तिसिंह आँखें बंद कर इस स्वर्गीय सुख का आनंद ले रहा था।

अपनी मुठ्ठी में कैद कर राजमाता ने लंड को ऊपर से नीचे तक हिलाया। उसके लंड की त्वचा को ऊपर नीचे करते हुए वह सुपाड़े को चूसने लगी। वीर्य की कुछ बूंदें सुपाड़े के छेद पर प्रकट हुई जिसे राजमाता ने अपनी जीभ के छोर से समेटकर चाट लिया। उस मजबूत सैनिक के पुष्ट वीर्य में अनोखा स्वाद था।

उधर राजमाता की चुत आंदोलित हो रही थी... अवहेलना उससे बर्दाश्त न हुई और वह टपक टपक कर राजमाता को उसे मुक्त करने का आहवाहन दे रही थी। चुत की इस स्थिति से वाकिफ होने के बावजूद, राजमाता फिलहाल शक्तिसिंह के लंड को छोड़ना नही चाहती थी। वह पागलों की तरह शक्तिसिंह के लंड को चूसे जा रही थी। उसका पूरा लंड राजमाता की लार से द्रवित हो चुका था।

राजमाता द्वारा की जा रही लंड चुसाई का आनंद लेते हुए शक्तिसिंह ने अपना कवच और उपरार्ध का वस्त्र, लेटे लेटे ही उतार दिया। उसकी मांसल मजबूत विशाल छाती पर राजमाता अपना हाथ पसारने लगी। शक्तिसिंह के लंड को मुक्त कर राजमाता खड़ी हुई और अपनी चोली की गांठ खोलने लगी। गांठ खुलते ही उनके दोनों लचीले भारी गोरे गोरे स्तन बाहर निकल आए। दोनों विशाल स्तन और उसपर लगी लाल चेरी जैसी उनकी निप्पल देखकर ही शक्तिसिंह के मुंह में पानी आ गया।

राजमाता अपने स्तन खोलकर खड़ी हो गई और उन्होंने अपना घाघरा उठाया। दोनों मांसल जांघों के बीच बालों के झुरमुट में छिपी हुई उनकी लाल चुत की लकीर द्रश्यमान हो गई। उनका दाना उत्तेजना से सख्त हो गया था और चुत के होंठों से रस टपक रहा था। उसी अवस्था में राजमाता एक कदम आगे आई और बिल्कुल शक्तिसिंह के चेहरे के दोनों तरफ टाँगे जमाकर खड़ी हो गई। शक्तिसिंह को अपने ऊपर फैली जांघों के बीच राजमाता का शाही भोंसड़ा नजर आ रहा था और योनिरस उसके मुंह पर टपक रहा था। वह असमंजस में था की राजमाता आखिर क्या करना चाहती थी। राजमाता ने हौले से अपने घुटनों को मोड़ा और अपनी चुत को बिल्कुल शक्तिसिंह के मुंह के करीब ले गई।

"देख ले बेटा... यह वही शाही चुत है जिसमे से तुम्हारे महाराज प्रकट हुए थे... आज इसमे ऐसा घमासान हुआ पड़ा है जिसे बस तू ही शांत कर सकता है... ले... इसका रस पीकर तृप्त हो जा... " कहते ही राजमाता ने अपनी चुत को शक्तिसिंह के मुंह पर रख दिया।

शुरुआत में उसने अपनी जीभ चुत पर फेर दी... स्पर्श होते ही दोनों होंठ खुल गए और चुत के अंदर का लाल गुलाबी हिस्सा दिखने लगा। राजमाता की चुत को इतने करीब से देखकर वह अभिभूत हो गया। राजमाता ने उंगलियों से अपनी चुत के दोनों होंठों को चौड़ा किया और अपना पूरा वज़न शक्तिसिंह के मुंह पर डाल दिया। शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से राजमाता के भारी चूतड़ों को पकड़े रखा ताकि संतुलन बना रहे और चाटने की क्रिया को ठीक से नियंत्रित भी किया जा सके।

राजमाता की चुत के गाढ़े चिपचिपे शहद को वह ऐसे चाटने लगा जैसे बिल्ली दूध चाटती है... उस दौरान राजमाता अपना दाना घिसे जा रही थी... चुत की अनोखी गंध शक्तिसिंह के नथुनों मे जाते ही वह मस्त हो गया। राजमाता अपने चूतड़ों को आगे पीछे हिलाते हुए चुत को शक्तिसिंह की जीभ पर रगड़ रही थी। उनका पूरा योनिमार्ग रस से लसलसित हो चुका था और शक्तिसिंह के मजबूत औज़ार को अपने में समाने के लिए आतुर हो उठा था।

अपनी चुत शक्तिसिंह के मुंह पर रगड़ते हुए राजमाता थोड़ी सी पीछे की और झुकी और एक हाथ से उसके लंड को पकड़ लिया... अपने आप को झड़ने से रोकने के लिए शक्तिसिंह को काफी यत्न करना पड़ा। राजमाता की चुत उसके मुख पर योनिरस का अभिषेक कर रही थी... और वह उसे चूसे जा रहा था। उनकी चुत का दाना उत्तेजना से सूजकर जामुन के आकार सा हो गया था।

शक्तिसिंह के मुंह की सवारी करते हुए वह उसका लंड हिलाते जा रही थी... राजमाता का घाघरा दोनों जांघों पर ऊपर तक चढ़ गया था। उनकी हलचल से राजमाता के दोनों भारी लचीले स्तन यहाँ वहाँ झूल रहे थे। शक्तिसिंह की दाढ़ी वाली ठुड्डी का स्पर्श अपनी गांड के छेद पर होते ही राजमाता सिहर उठती। वह अब पगलाई घोड़ी की तरह शक्तिसिंह के मुंह पर आगे पीछे होते हुए अपनी चुत घिसे जा रही थी।

शक्तिसिंह की हालत खराब थी... उसका लंड अब केवल हिलाने भर से खुश नहीं था... उसे चाहिए थी गुनगुनी चुत की गर्माहट... पर फिलहाल इस खेल का सारा नियंत्रण राजमाता के पास था... और वह तो झड़ने के यत्न में इतनी मशरूफ़ थी की शक्तिसिंह की अवस्था का उसे कोई अंदाजा न था... वह बस झड़ना चाहती थी...

शक्तिसिंह ने अपनी जीभ को राजमाता के फैले हुए भोंसड़े में अंदर तक डाल दी... पसीज चुके योनिमार्ग से अनोखी गंध वाला गरम गरम रस उसके मुंह में गिरता जा रहा था। भोंसड़े के अचानक सिकुड़ने का अनुभव होते ही शक्तिसिंह ने अनुमान लगा लिया की वह झड़ने के करीब थी। चुत से कामरस की बौछार की अपेक्षा से शक्तिसिंह ने अपना मुंह थोड़ा और खोल दिया।

"हाय... माँ... मर जाऊँगी में... क्या चाटता है तू बेटा... आईईईई... " राजमाता ने किलकारियाँ मारते हुए अपना जिस्म एकदम सख्त कर दिया और फिर झटके मारते हुए झड़ने लगी... उनका पूरा शरीर कांप रहा था... दोनों जांघें फैलाकर वह शक्तिसिंह के मुंह पर ही निढाल हो गिरी...

राजमाता के शरीर के भारी वज़न के तले शक्तिसिंह का दम घुटने लगा... उसने पूरा जोर लगाते हुए राजमाता के शरीर को उठाया और अपने बगल में लिटा दिया... कमर तक उठे घाघरे, और खुली चुत और स्तनों के साथ, राजमाता ऐसे टांगें फैलाकर लेटी थी जैसे उनके प्राण निकल गए हो!!

अब बारी शक्तिसिंह की थी... वह राजमाता की दोनों जांघों के बीच सटकर बैठ गया... उनके दोनों पैरों को अपने मजबूत कंधों पर ले लिए... लंड का सुपाड़ा राजमाता के गरम आद्र भोंसड़े के मुख पर रखा... और एक जोर का धक्का दिया... एक पल में ही राजमाता के भोंसड़े ने पूरा लंड निगल लिया और शक्तिसिंह के टट्टे उनकी गांड के दरवाजे पर दस्तक देने लगे।

गरमाए हुए घोड़े की तरह शक्तिसिंह ने आव देखा न ताव... वह जबरदस्त धक्के लगाते हुए राजमाता के खुले हुए खरबूजे जैसे स्तनों पर टूट पड़ा। दोनों मम्मों को चारों ओर चूमने के बाद उनके दो अंगूर जैसे निप्पल को बारी बारी से मुंह में भरकर चूसने लगा...

राजमाता अभी एक स्खलन से उभरी भी नहीं थी पर शक्तिसिंह के इन जानदार धक्कों के कारण वह पुनर्जीवित हो उठी... उन्होंने अपने दोनों हाथों से शक्तिसिंह के सर को अपने स्तनों के बीच दबा दिया और अपनी टाँगे और फैला दी... शक्तिसिंह का सुपाड़ा अब गेंद की आकार का होकर राजमाता के भोंसड़े को और फैलाते हुए उनकी बच्चेदानी पर नगाड़े बजा रहा था। शक्तिसिंह के घुँघराले झांट का खुरदरापन, राजमाता के भगोष्ठ को रगड़ते जा रहा था...

अथाग परिश्रम के कारण दोनों के शरीर पसीने से तरबतर हो गए थे। राजमाता की चुत का झरना बहते ही जा रहा था... उनके दोनों स्तनों पर जगह जगह पर शक्तिसिंह के काटने से लाल निशान बन गए थे। उनकी निप्पलों को चटकारे लेकर चूसते हुए जब शक्तिसिंह दांतों से काटता तब राजमाता जोर से कराह उठती...

शक्तिसिंह ने अपनी गति और बढ़ाई... राजमाता भी नीचे से धक्के लगाए जा रही थी... शक्तिसिंह ने अपना एक हाथ दोनों के जिस्मों के बीच सरकाया और राजमाता के दाने को रगड़ने लगा... वह अब अपनी उत्तेजना की चरमसीमा पर था... आखिरी चंद धक्के लगाकर दहाड़ते हुए उसने अपने वीर्य की पिचकारी राजमाता के आनंदित भोंसड़े में दे मारी... गरम गरम घी जैसी बौछारों ने पूरा शाही भोंसड़ा सींच दिया... कुछ क्षणों तक पिचकारियों का वह दौर चलता रहा... अपने गर्भाशय के मुख तक इस गुनगुने द्रव्य को महसूस करते हुए राजमाता ने भी हार मान ली और थरथराते हुए झड़ गई।


पुचुक की आवाज के साथ शक्तिसिंह ने अपना गीला हथियार राजमाता की म्यान से बाहर निकाला। युद्ध से चन्दाी होकर लौटे सैनिक जैसी उसकी शान थी... शक्तिसिंह राजमाता के बगल में ढेर हो गया... राजमाता वात्सल्य से शक्तिसिंह के सर पर हाथ पसारने लगी।

Nice update and awesome writing skills
 

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