सुबह के चार बजे शक्तिसिंह की आँख खुली। उसने देखा की राजमाता बगल में खर्राटे ले रही थी... उनके एक हाथ की उंगली अपनी चुत में थी और दूसरे हाथ से शक्तिसिंह का मुरझाया लंड पकड़ा हुआ था... राजमाता के हाथ से अपना लंड छुड़ाकर वह धीरे से उठ खड़ा हुआ। अपने वस्त्र पहने और बिना आवाज किए दरवाजा खोलकर कक्ष के बाहर निकला और पहरा देने लगा।
इस तरफ अपने बिस्तर पर करवटें लेटे हुए पूरी रात महारानी पद्मिनी शक्तिसिंह का इंतज़ार करती रही... उसे यह आश्चर्य हुआ की उनके बुलाने के बावजूद वह आया क्यों नहीं...!! उन्हे कई बार इच्छा हुई की सैनिकों से शक्तिसिंह के बारे में पूछे... पर ऐसा करने पर उन्हे शंका होने का डर था। वह रात भर अपनी जांघों को भींचकर चुत को समझाती रही... पर अब उनकी चुत ने विद्रोह कर दिया था... शाम को दासी की उंगली से झड़ने का खुमार कब का उतर चुका था... और प्यासी चुत अब लंड का भोग मांग रही थी। सुबह होते ही शक्तिसिंह को ढूंढ निकालने का मन बनाकर वह आँखें बंद कर सोने का प्रयास करने लगी।
सूरजगढ़ में सुबह की रोशनी फैलते ही सारे नगर में चहलपहल होने लगी। पूरे दिन के परिश्रम के पश्चात अपनी पत्नियों की घमासान चुदाई कर तरोताजा होकर उठे नगरजन खेतों की ओर प्रस्थान कर रहे थे। बच्चे किलकारियाँ मारते हुए गलियों में खेल रहे थे। औरतें अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई थी।
राजमहल भी दासियों और सेवकों की आवाजाही से गतिमान हो गया था। महारानी पद्मिनी तैयार होकर अपने कक्ष से बाहर शक्तिसिंह को ढूँढने के आशय से ढूंढ रही थी। चलते चलते वह दूसरी रानी के कक्ष के पास आई। वहाँ बाहर महाराज कमलसिंह के सैनिकों को पहरा देते देख वह समझ गई की महाराज उस रानी के साथ थे। उसने इशारे से दरवाजा खोने का निर्देश दिया और सैनिक ने सिर झुकाकर उसका पालन किया। महरानी ने कक्ष में प्रवेश किया और पीछे दरवाजा बंद हो गया।
महाराज कमलसिंह अपनी रानी को घोड़ी बनाकर सुबह सुबह पेल रहा था... पेल क्या रहा था बस कोशिश कर रहा था उसे अपने मध्यम कद के लंड से कुरेदने की... महारानी बेझिझक बिस्तर तक पहुँच गई... महारानी को किसी भी निम्न रानी के कक्ष में प्रवेश का अधिकार था...
"अरे पद्मिनी... तुम..!!" कमलसिंह की नजर महारानी पर पड़ते ही उन्होंने चुदाई बीच में रोक दी और वह रानी के चूतड़ों के बीच से लंड बाहर निकालकर तकिये पर गिरकर हांफने लगे... चुदाई में हुए इस विक्षेप के कारण वह रानी ने मुंह बिगाड़ा और अपने वस्त्र उठाकर पास बने शाही गुसलखाने की ओर चल दी...
महारानी पद्मिनी ने पास पड़े आसन को ग्रहण किया। सांसें पूर्ववत होते ही महाराज कमलसिंह ने पूछा
"कहिए कैसे आना हुआ.... "
"यात्रा से लौटने के बाद आप तो जैसे हमें भूल ही गए... क्या इन दुमछली रानियों की नादान योनियों में आपको इतना आनंद प्राप्त होता है की आप हमे याद ही नहीं करते??" महारानी ने थोड़े क्रोधित होकर कहा
"नहीं नहीं पद्मिनी... तुम्हारी गुलाबी गुफा में जो आनंद है वह बाकियों में कहाँ? पर तुम्हें तो मालूम है की फिलहाल तुम्हारी गर्भधारण की अवस्था चल रही है... ऐसी स्थिति में तुम्हारे करीब न जाने की राजमाता और वैद्यजी ने हमे सलाह दी है... अब ऐसी स्थिति में तुम्हें परेशान कैसे करूँ? इसी कारण दिल बहलाने के लिए इनके पास चला आता हूँ" महाराज ने सफाई देते हुए कहा
"फिर मेरे शरीर की इच्छाओं का क्या महाराज? आप तो मेरी भूख से अवगत है... बिना संभोग मुझसे एक दिन नहीं कटता..." मुंह फुलाते हुए महारानी ने कहा
"में आपकी स्थिति को भलीभाँति जानता हूँ... पर राजगद्दी के वारिस के लिए आपको यह बलिदान तो देना ही होगा..."
"ज्यादा कुछ नहीं तो बस मेरी चुत को चाटकर ही ठंडा कर दीजिए महाराज" महारानी ने विनती के सुर में कहा
"नहीं महारानी, में यह जोखिम कदापि नहीं उठा सकता... आपको खुद पर संयम रखना ही होगा.."
यह सुनकर गुस्से से महारानी उठ खड़ी हुई और पैर पटकते वहाँ से चली गई।
महारानी की चुत में खलबली मची हुई थी... दासी की अंगुली-चोदन से उसकी भूख शांत होने की बजाय और भड़क गई थी। महराज ने भी अपने हाथ खड़े कर लिए थे। और शक्तिसिंह कहीं नजर नहीं आ रहा था।
वह चलते चलते आगे के कक्ष की ओर आई और वहाँ उसने शक्तिसिंह को कोने में बैठकर सोते हुए देखा...
"शक्तिसिंह... !!!" महारानी थोड़ी सी ऊंची आवाज में कहा
अपनी आँखों को ऐंठते हुए शक्तिसिंह उठ खड़ा हुआ। महारानी को देखकर वह झेंप गया और सिर झुकाकर उसने सलाम की।
"राजपरिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी छोड़कर तुम यहाँ सो रहे हो? क्या इसलिए तुम्हें यहाँ नियुक्त किया गया है?"
"क्षमा कीजिए महारानी... कल से यहाँ अकेला पहरा देते हुए थोड़ा सा थक गया था इसलिए विश्राम करने बैठा था...!!" राजमाता के बिस्तर पर हुए परिश्रम के कारण हुई थकान के बारे में तो वह महारानी को नहीं बता सकता था...
"और उस दौरान कोई चोर या हमलावर आ जाता तो...!! जानते हो, इस बेपरवाह असावधानी के बारे में अगर में महाराज को सूचित करूंगी तो तुम्हारा क्या हाल होगा?" महारानी क्रोध से शक्तिसिंह पर नियंत्रण पाना चाहती थी। राजपरिवार की सुरक्षा की उसे रत्तीभर चिंता न थी... वह तो इस बात से क्रोधित थी की आखिर पिछली रात शक्तिसिंह उसके पास गया क्यों नहीं
"माफ कीजिए महारानी साहिब... ऐसा दोबारा नहीं होगा.. आप कृपया महाराज को इस बारे में मत बताना" शक्तिसिंह ने हाथ जोड़कर कहा
"हम्म... इस बारे में मुझे सोचना होगा। थोड़ी देर बाद मुझे अपने कक्ष में मिलो.. फिर विस्तार में बात करेंगे.. " शक्तिसिंह को शरण में पाकर महारानी मन ही मन खुश हो गई
"जी महारानी... " शक्तिसिंह के पास यह बात मानने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था
महारानी ने चारों ओर देखा की कोई देख तो नहीं रहा!! फिर वह धीरे से शक्तिसिंह के करीब आई और उसके कानों में फुसफुसाई
"मुख्य द्वार बंद होगा... तुम बागीचे की घनी झाड़ियों में पड़ती खिड़की से कूद कर अंदर चले आना... ध्यान रहे... किसी को खबर नहीं होनी चाहिए इस बारे में.." महारानी दबे पाँव वहाँ से निकल गई।
सब की नजर बचाते हुए शक्तिसिंह बागीचे में गया... वहाँ घने पेड़ और झाड़ियों के पीछे महारानी के कक्ष की खिड़की पड़ती थी। वह चुपके से उन झाड़ियों में ओजल हो गया और खिड़की फांदकर अंदर आ गया और फिर खिड़की बंद कर ली।
महारानी बिस्तर पर लेटे हुए शक्तिसिंह का इंतज़ार कर रही थी। उसे देखती ही उनकी आँखें चमक उठी। उन्होंने हाथ से खींचकर शक्तिसिंह को अपने करीब लिटा दिया और उसकी छाती पर हाथ फेरने लगी।
"कहाँ थे तुम कल रात... ?"
"जी.. वो मुझे राजमाता ने अपने कक्ष के बाहर सुरक्षा के लिए नियुक्त किया था इसलिए में आ न पाया"
"सुरक्षा के लिए या फिर किसी और कारणवश?" आँखें छोटी कर उन्होंने शक्तिसिंह को पूछा
"जी, और क्या कारण हो सकता है!!" शक्तिसिंह की आँखें बोलते वक्त झुक गई।
"भोले मत बनो... मुझे सब पता है... वहाँ आश्रम में उस कुटिया में हमारे जाने के बाद तुम और राजमाता क्या गुल खिला रहे थे!!" महारानी ने अपना तीर छोड़ दिया
सुनकर शक्तिसिंह एक पल के लिए स्तब्ध रह गया
"अब बोलों... बोलते क्यों नहीं... में सब जानती हूँ... "
"महारानी जी, में तो सेवक हूँ... मुझे जो हुकूम मिलता है उसका पालन करना मेरा धर्म है..."
"तो फिर कल मेरे हुक्म की अवहेलना क्यों की तुमने? उस बुढ़िया को न जाने इस उम्र में कौन सी जवानी चढ़ रही है।"
शक्तिसिंह निरुत्तर रहा
बात करते करते महरानी का हाथ शक्तिसिंह के लंड पर पहुँच गई। एक और संभोग की संभावना देखते हुए शक्तिसिंह थोड़ा सा डर गया। कल रात के संभोग की थकान से वह अभी तक उभरा नहीं था...
"महारानी जी, अगर आपको एतराज ना हो तो इस कार्य के लिए हम रात को मिले?"
"क्यों, रात को उस बुढ़िया ने पूरा निचोड़ लिया क्या? में तो मानती थी की तुम काफी बलवान और मजबूत हो.. पर तुम तो निठल्ले निकले... अब कैसे करूँ भरोसा तुम्हारी मर्दानगी का!!" महारानी ने शक्तिसिंह को उकसाने के हेतु से कहा
अपनी मर्दानगी पर प्रश्न उठाते ही शक्तिसिंह ताव में आ गया... उसने अपने आप को महारानी की गिरफ्त से छुड़ाया और उठकर उनके ऊपर चढ़ गया। दोनों हाथों से महारानी की टांगों को चौड़ा किया और एक पल में उनका घाघरा उठाकर चुत खोल दी। शक्तिसिंह के इस अचानक हमले से महारानी भी सकते में आ गई... पर फिर अपनी योजना सफल होती देख उनके चेहरे पर मुस्कान छा गई।
शक्तिसिंह ने अपना नाक उनकी चुत की लकीर के करीब ले जाकर उसकी मादक गंध को अपने नथुनों में भरा। गुर्राए सांड की तरह छींकते हुए उसने अपनी जीभ लपलपाई और चुत के होंठ फैलाकर अंदर गहराई तक घोंप दी... जीभ का स्पर्श होते ही महारानी की सिसकी निकल गई। वह अपने दोनों स्तनों को दबाते हुए आँखें बंद कर चहकने लगी। कई दिनों से प्यासी उसकी चुत को आज मर्दाना स्पर्श मिला था।
थोड़ी देर तक अपनी खुरदरी जीभ को चुत के अंदर बाहर रगड़ने के बाद शक्तिसिंह उठ गया और अपने शरीर को महारानी के शरीर पर डाल दिया। एक पल के लिए महारानी की सांसें अटक गई। शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से खींचकर उनकी चोली फाड़कर स्तनों को मुक्त कर दिया... खुले स्तनों को वह दोनों हाथों से दबोचते हुए भींचने लगा... अपनी उंगलियों से उसने महारानी की निप्पल को जोर से खींच कर छोड़ दिया... महारानी के कंठ से हल्की चीख निकल गई। शक्तिसिंह के इस हिंसक हमले के लिए वह तैयार न थी। उन्हे लगा की शक्तिसिंह की मर्दानगी को ललकार कर शायद गलती कर दी थी... पर अब तीर कमान से छूट चुका था...
शेर जैसे अपने शिकार को नोचता है वैसे ही शक्तिसिंह ने दोनों स्तनों को अपना शिकार बनाया था। स्तनों पर जगह जगह उसने दांतों से काटकर निशान बना दिए थे और निप्पलों को खींच कर लाल कर दिया था। अपने नाखूनों से उसने दोनों मम्मों को जबरदस्त खरोंच दिया... महारानी को अब दर्द भी हो रहा था... वह उसे रोकने जा रही थी तभी शक्तिसिंह ने स्तनों को छोड़ दिया और वापिस उनके जिस्म की नीचे की और जाकर उनकी चुत के सामने आकार बैठ गया।
उसने महारानी के चुत को फिर से चाटना शुरू कर दिया था। केवल अपनी जीभ का उपयोग करते हुए, धीरे-धीरे और लयबद्ध तरीके से, वह उन्हे उबाल की हद पर ला रहा था। शक्तिसिंह ने चुत चाटते हुए अपने बाएँ हाथ से महारानी का बायाँ स्तन पकड़ लिया। महारानी ने भी अपना दायाँ स्तन हाथ से दबोच लिया। वह जोर से कराह उठी और अपने दोनों हाथों से उसके सिर को पकड़कर, उसके चेहरे को अपने कूल्हों को उछालकर दबाने लगी।
बीच-बीच में वह चकित होकर महारानी के इस मदमस्त हुस्न का सर्वेक्षण करने के लिए विवश हो जाता था। गठीली सुडौल जांघें और उनके बीच घने झांटों की झाड़ी, जो बड़ी मुश्किल से चुत के नरम, गुलाबी होंठों को छुपा रही थी। चुत की फांक उत्तेजना के कारण तरल पदार्थ से चमक रही थी।
सपाट पेट और सुडौल कमर और उनके ऊपर थे वह दिव्य स्तन, जिनके गुलाबी निपल्स उत्तेजना से खड़े थे, और फिर वह दमकता चेहरा जिसने बलवान पुरुषों के घुटने कमजोर बना दिए थे और कमजोर पुरुषों को लार टपकाने पर मजबूर कर दिया था।
राजमाता का मुँह खुला था, उनकी साँसें गहरी और असमान थीं, और आँखें बंद थीं क्योंकि उनका मस्तिष्क अविश्वसनीय संवेदनाओं का स्वाद ले रहा था। अचानक उन्हे उत्तेजना की कमी और झुंझलाहट महसूस हुई और उन्हों ने अपनी आँखें खोलीं और पाया कि शक्तिसिंह उन्हे आश्चर्य से देख रहा था। दोनों की नजरें मिलते ही उसने तुरंत चुत के होंठ, अंदरूनी हिस्से और भगनासा पर वापिस मौखिक हमला तेज कर दिया और उनके स्तनों को दबाना शुरू कर दिया और तब तक जारी रखा जब तक कि वह एक बार फिर अद्भुत अनुभूति में नहीं पड़ गई और इसे पूरी तरह से स्वाद लेने के लिए अपनी आँखें बंद नहीं कर लीं।
शक्तिसिंह अपना जादू चलाता रहा और इस बार वह तब तक नहीं रुका जब तक कि वह चरमसीमा तक नहीं पहुंच गई। धीमी-धीमी कराहों की एक तेज आवाज ने महारानी के स्खलन सुख की घोषणा कर दी। हांफते हुए महारानी ने सरसराकर अपनी चुत से फव्वारा दे मारा और शक्तिसिंह के पूरे चेहरे को रसरंजित कर दिया। यह स्खलन महारानी को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वह अनंत काल तक वह इंद्रधनुष की सवारी करती रही और फिर धीरे-धीरे जमीन पर उतर आई हो!! यह स्खलन महारानी केयौन जीवन के सबसे गहरे और सबसे संतुष्टिदायक चरमोत्कर्षों में से एक था। उन्हे अपनी सांसें और अपनी इंद्रियों को नियंत्रण में लाने में थोड़ा समय लगा। चरमसीमा की तीव्रता के कारण उनके घुटने अभी भी कमज़ोर थे इसलिए वह काफी देर तक क्षुब्ध अवस्था में लेटी रही।
जब महारानी ने अपनी आँखें खोलीं, तो पाया की शक्तिसिंह अभी भी उसी स्थिति में था, उनकी जांघों के बीच में, लसलसित चुत को ऐसे देख रहा था जैसे वफादार कुत्ता अपनी जीभ लपलपाता मालिक को देख रहा हो।
"आपको आनंद आया महारानी जी?" पता नहीं ये पुरुष हमेशा ऐसे मूर्खतापूर्ण प्रश्न क्यों पूछते हैं? स्त्री के चेहरे के भावों को देखकर ही उन्हे यह पता चल जाना चाहिए...!! संभोगसुख की परम सुखद संवेदना को सँजोये हुए वह मुस्कुराने लगी।
"बेहद शानदार.... मेरे पास इस आनंद को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं है.." महारानी की खुशी का ठिकाना न था
अब शक्तिसिंह ने अपनी धोती उतार दी और अपनी पीठ के पीछे हाथ रखकर, अपना तना हुआ लंड निकालकर खड़ा हो गया।
महारानी ने उसकी ओर देखा और मन ही मन मुस्कुरायी। खड़े लंड को देखकर वह हमेशा उत्तेजित हो जाती थी। वह उलटी हो गई और उसके मूसल की नोक को गीले होंठों में भर लिया और अपनी जीभ उसके लिंग के निचले हिस्से पर फिराने लगी। अब बेचैन होकर हाँफने की बारी शक्तिसिंह की थी। उसने नीचे देखा और महारानी को अपने लंड को चूसते हुए देखकर अपने होश में न रहा। अपने पूरे आत्मविश्वास के बावजूद उसने वास्तव में कभी नहीं सोचा था कि वह इस मुकाम तक पहुँच पाएगा की जहां वह राज घराने की दो औरतों को भोग पाएगा।
धीरे से, उसने महारानी का सिर अपने लंड से हटाया और उसे उनको पीठ पर लिटा दिया। अब वह उनकी जांघों के बीच बैठ गया और अपना पूरा लंड हाथ में लेकर महारानी की चुत को खिला दिया। हौले से वह योनि-शहद लगे होंठ अलग हुए और बड़ी आसानी से उसकी गीली और चिपचिपी हुई नाली में लंड समा गया। जब वह उस स्वर्गीय योनि मार्ग के अंदर और बाहर जोर लगा रहा था तब उसने दोनों हाथों से महारानी के स्तनों को मींजना शुरू कर दिया। शक्तिसिंह के हर झटके के साथ महारानी सिहर उठती।
महारानी ने शक्तिसिंह को कंधे से पकड़कर अपनी ओर खींचा और उसके होंठ से होंठ मिला लिए। दोनों की जीभ, संभोग करते हुए सर्पों की तरह एक दूसरे से उलझ गई। शक्तिसिंह से ओर बर्दाश्त न हुआ... लगातार ८-१० मजबूत झटके लगाकर उसने अपना सारा माल महारानी की चुत में उंडेल दिया...!!!
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आज बड़ी देर तक राजमाता सोती रही... आँख खुलने के बाद भी, कल रात की चुदाई की थकान उन्हे उठने नहीं दे रही थी... पूरे जिस्म में ऐसा मीठा दर्द हो रहा था की हल्की सी हलचल करने पर भी उनकी आह निकल जाती। वह और कुछ देर तक इस एहसास को महसूस करते हुए अपनी जांघें रगड़ती रही... उनकी निप्पल इतनी संवेदनशील हो गई थी की हल्का सा छूने पर भी सहम जाती। दशकों बाद ऐसी दमदार चुदाई प्राप्त कर राजमाता धन्य हो गई। वह सोच रही थी की आज रात भी ऐसी शानदार चुदाई होगी और इस विचार से उनकी चुत पानी पानी हो रही थी।
वह उठकर अपने कक्ष के बाहर निकली... और बाहर किसी को भी ना देखकर चोंक गई!! उन्होंने अपने वक्ष को चूनर से ढंका और बाहर निकल आई... काफी चलने के बाद उन्हे तीन सिपाही मिले जिसने यह जानने को मिला की उन्होंने आज शक्तिसिंह को कहीं नहीं देखा!! वह क्रोध से आग बबूला हो उठी...!! उन्होंने तुरंत एक सिपाही को शक्तिसिंह को बुलाने के लिए उसके घर भेजा... जो थोड़ी ही देर में यह समाचार के साथ लौटा की कल रात से शक्तिसिंह अपने घर गया ही नहीं था... !!
राजमाता के आश्चर्य का ठिकाना न रहा... कहाँ गायब हो गया शक्तिसिंह? दिखने पर तुरंत उनके पास भेजने का आदेश देकर वह अपने कक्ष लौट गई।
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दरवाजे पर दस्तक पड़ते ही, महारानी की बाहों में खर्राटे मारकर सो रहे शक्तिसिंह की सहसा आँख खुल गई!! वह डरकर खड़ा हो गया... महारानी अधनंगी अवस्था में, अपने दोनों स्तनों को खुले रख... घोड़े बेचकर सो रही थी। उनकी चुत और जांघों पर सूखे हुए वीर्य के धब्बे थे.. स्तनों पर शक्तिसिंह के काटने के लाल निशान भी थे... बाहर से अभी भी कोई लगातार दरवाजा खटखटाए जा रहा था। शक्तिसिंह ने घबराकर महारानी को जगाया... और बाहर किसीके आगमन के समाचार दिए। महारानी ने तुरंत उठकर अपनी चोली और घाघरा पहनना शुरू किया और शक्तिसिंह को इशारे से खिड़की से चले जाने को कहा। एक ही पल में शक्तिसिंह खिड़की फांदकर झाड़ियों से गुजरते हुए बागीचे के रास्ते बाहर चला गया।
बागीचे के पास बने बरामदे से वह गुजर ही रहा था तब शक्तिसिंह के साथी सैनिक ने उसे राजमाता के बुलावे के बारे में बताया। शक्तिसिंह हड़बड़ाते हुए राजमाता के कक्ष की तरफ गया। वह तो सोच रहा था की रात की घनघोर चुदाई के बाद राजमाता उसे दूसरी रात तक याद नहीं करेगी... उसकी अनुपस्थिति के बारे में पूछेगी तब क्या जवाब देना है यही असमंजस में उसने दस्तक देकर राजमाता के कक्ष में प्रवेश किया।
राजमाता एक बड़ी सी सुशोभित राजसी कुर्सी पर फैल कर बैठी हुई थी.. सरोते से सुपारी काटकर खाते हुए उसने शक्तिसिंह की ओर देखा
"कहाँ थे तुम? मैंने हर जगह तुम्हारी तलाश करवाई.. यहाँ तक की तुम्हारे घर पर भी सैनिक को भेजा.. तुम वहाँ भी नहीं थे... "थोड़े क्रोध के साथ राजमाता ने कहा
"जी वो... रात की थकान दूर करने में तालाब पर स्नान करने गया था... स्नान के पश्चात इतनी अच्छी हवा चल रही थी की में वहीं पेड़ के नीचे सो गया" शक्तिसिंह ने सफाई देते हुए कहा
"सच बोल रहा है ना तू? कहीं वापिस उस पद्मिनी के घाघरे में तो नहीं घुसा था न??" राजमाता ने अपनी शंका व्यक्त करते हुए बड़े तीखे सुर में कहा
"जी... न.. नहीं नहीं.. " शक्तिसिंह की धड़कने एकदम तेज हो गई..
"तब ठीक है... पर यह जान ले... अगर वापिस कभी महारानी की टांगों के बीच गया तो तेरा लिंग काटकर चौराहे पर लटका दूँगी में... समझा!!" धमकी देते हुए राजमाता ने कहा
शक्तिसिंह कांप उठा... वह मन ही मन सोच रहा था की इस दोहरे खेल को जल्द ही बंद करना होगा वरना वह अपनी जान से हाथ धो बैठेगा...
"चल जा अभी... और रात को जब में बुलाऊँ तब अंदर आ जाना" राजमाता वापिस सरोते से सुपारी को कुतरने में व्यस्त हो गई।
राहत की सांस भरते हुए शक्तिसिंह कक्ष के बाहर निकल गया...
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महारानी के दरवाजा खोलते ही उनकी दासी नजर आई.।
"महारानी साहिब... में काफी देर से दरवाजा खटखटा रही थी... लगता है आप बड़ी गहरी नींद सो रही थी"
"हाँ... आजकल तबीयत जरा नरम रहती है तो आँख लग गई थी... " आँखने मलने का नाटक करते हुए महारानी ने कहा
"बता, क्या बात थी?" उभासी लेटे हुए महारानी बोली
"जी, वो आपकी शारीरिक जाँच के लिए राजमाता के आदेश से राजवैद्य पधारे है... आप कहों तो उन्हे अंदर भेज दूँ... " दासी ने पूछा
"थोड़ी देर बाद भेज दे अंदर... " कहते हुए राजमाता ने दरवाजा अटका दिया..
वह वापिस बिस्तर पर लेट गई... शक्तिसिंह के मजबूत मूसल का स्पर्श उसकी चुत अबतक भूल नहीं पाई थी... उस मजेदार चुदाई की याद आते ही वह नए सिरे सी गरम होने लगी... उनकी चुत का दाना अवधान की अपेक्षा करने लगा... जिस तरह से आज शक्तिसिंह ने धक्के लगा लगाकर चोदा था, उनका मन प्रफुल्लित हो गया था.. वह अपनी चोली खोलकर अपने स्तनों को मसलने लगी... घाघरे का नाड़ा खोलकर वह नग्न हो गई और बिस्तर पर लैटकर एक हाथ से अपना स्तन मसलने लगी और दूसरे से अपनी चुत के दाने को रगड़ने लगी।
थोड़ी ही देर में उनकी चुत पनियाने लगी... स्तनों की निप्पल भी कड़ी और सख्त हो गई... अब तो उनके गांड के छेद में भी चुनचुनी होने लगी थी। वह सोच रही थी की शाम को दासी को बुलाकर फिरसे अपने छेद की तेल मालिश करवाएगी। महारानी बिस्तर पर पैर फैलाकर पागलों की तरह अपने जिस्म से खेल रही थी तभी दरवाजे पर दस्तक पड़ी और वह खुलता हुआ नजर आया...!!
घबराकर हड़बड़ाहट में राजमाता ने पास पड़ी चद्दर से अपने जिस्म को गले तक ढँक लिया और बिस्तर पर लेट गई।
दरवाजे से बूढ़े राजवैद्य ने प्रवेश किया। वह धीमी चाल से चलते चलते महारानी के बिस्तर के पास पहुंचे। बिस्तर पर चद्दर ओढ़े लेटी महारानी के बगल में पड़ी चोली और नीचे पड़े घाघरे को देखकर राजवैद्य चोंक गए पर चुपचाप पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गए।
"जी राजवैद्य जी, कहिए कैसे आना हुआ..." महारानी ने पूछा
"प्रणाम महारानी साहिबा... मुझे सेवक ने सूचित किया था की राजमाता ने आपकी शारीरिक जांच करने का आदेश दिया है तो में चला आया... बताइए महारानी जी, आपको क्या कष्ट है?"
महारानी एक पल के लिए सोच में पड़ गई की किस कारण से राजमाता ने इस राजवैद्य को जांच के लिए भेजा होगा... फिर उसके दिमाग में विचार आया की शायद यह जानने के लिए भेजा होगा की वह गर्भवती हुई भी या नहीं!! महारानी के शरारती मन में एक खयाल आया
"जी राजवैद्य जी, कुछ दिनों से बड़ी बेचैनी सी हो रही है... अंग अंग में दर्द हो रहा है... न कुछ खाने को मन करता है न ही सोने को... पूरा दिन परेशान सी रहती हूँ... बिना कारण गबरहट सी होती रहती है... " महारानी ने नाटक शुरू कर दिया
"पिछले कुछ दिनों में आपकी दिनचर्या में कोई खास बदलाव तो नहीं आया ना?"
"जी वैसे तो कुछ नहीं है... पर हाँ यात्रा से लौटने के बाद से यह सब शुरू हो गया है.. "
"हो सकता है सफर की थकान के कारण ऐसा हुआ हो... में आपकी दासी के हाथों कुछ चूर्ण और काढ़ा भिजवाता हूँ... आप उनका सेवन कीजिए और हो सके उतना आराम कीजिए... कुछ ही दिनों में आप स्वस्थ हो जाएगी... "
"वो सब तो ठीक है राजवैद्य जी... पर मुझे कुछ कुछ जगह बहुत तकलीफ हो रही है... कृपया वहाँ जरा जांच कीजिए ना... " नटखट महारानी वैसे भी काफी गरम हो चुकी थी... अब वह इस बूढ़े के पूरे मजे लेने वाली थी
"जी बताइए... "
"जी मुझे यहाँ दोनों छातियों के बीच में काफी घबराहट हो रही है... जरा देखिए ना" नखरीले अंदाज में महारानी ने कहा
राजवैद्य के पसीने छूट गए... महारानी की चद्दर से दिख रही उकसी हुई निप्पलों को देखकर उन्हे पता चल गया की उस कपड़े के नीचे उनके स्तन खुले थे... वह घबराकर महारानी की तरफ देखते ही रहे...
"वैद्यजी, जरा जांच कर देखिए ना... मेरी धड़कने भी बहुत तेज चल रही है... " बचकाना मुंह बनाकर महारानी ने कहा... जब राजवैद्य की कुछ भी करने की हिम्मत ना हुई... तब महारानी ने उनका हाथ पकड़ा और चद्दर के नीचे सरकाते हुए अपने दोनों स्तन के बीच रख दिया...
राजवैद्य जहां थे वहीं पुतला बनकर बैठे रहे... उनका सारा शरीर सुन्न पड़ गया था... वैसे तो वह शारीरिक रूप से काफी सक्रिय थे... आए दिन इलाज करवाने आती दासियों को पकड़कर चोदते भी थे... पर यहाँ हालात काफी अलग थे... महारानी के संग किसी भी तरह की गुस्ताखी करने की उन में हिम्मत नहीं थी.... राजमाता के क्रोध से वह भलीभाँति परिचित थे... महारानी के एक शब्द कहने पर उनका लंड काटकर राजमहल के पालतू कुत्तों को खिला देने का आदेश निकलने में देर न लगती... वह समझ नहीं पा रहे थे की महारानी आखिर क्या चाहती थी... फिर उन्हों ने सोचा की हो सकता है की वाकई उन्हे तकलीफ हो...
"यहाँ इर्दगिर्द हाथ घुमाकर देखिए... मुझे बेचैनी और घबराहट होती है... धड़कने भी बहुत तेज चलनी लगती है... जी मचलता है मेरा" हल्की हल्की कराह मारते महारानी ने बड़ी ही नशीली आवाज में राजवैद्य से कहा
हिम्मत जुटाकर राजवैद्य ने थोड़ा सा हाथ हिलाया... महारानी के दोनों माँसपिंडों का स्पर्श होते ही वह कांप उठे... मक्खन जैसे जिस्म वाली गोरी चीट्टी महारानी के स्तनों का स्पर्श करने के विचार मात्र से ही वह बेहद उत्तेजित हो गए।
महारानी आँखें बंद कर उन बूढ़े खुरदरे हाथों की रगड़ अपनी छाती पर मजे से महसूस कर रही थी। उत्तेजना से ज्यादा महारानी को इस शरारत में मज़ा आ रहा था। राजवैद्य के हाथों के कंपन से ही उन्हे पता चल रहा था की वह कितने घबराए हुए थे।
"बताइए ना राजवैद्य जी, मुझे क्या तकलीफ है?"
"ज.. ज.. जी... धड़कनें तो थोड़ी तेज चल रही है" राजवैद्य ने डरते डरते कहा
"और यहाँ भी जांच कीजिए... " कहते हुए महारानी ने चद्दर के नीचे से ही राजवैद्य की हथेली को अपने स्तन पर रख दिया!!
सख्त कड़ी निप्पल का नुकीला स्पर्श होते ही राजवैद्य की सिट्टी पीट्टी गुम हो गई!! उन्हें पता नहीं चल रहा था की महारानी आखिर ऐसा व्यवहार क्यों कर रही थी... और वह इसकी कैसे प्रतिक्रिया दे... !! धोती के अंदर से उनका बूढ़ा लंड झटके से ताव में आ गया... उन्होंने अपने हथियार को दो जांघों के बीच ऐसे दबा रखा था की कहीं वो धोती में तंबू बनाकर उन्हे शर्मसार ना कर दे..!!
महारानी ने राजवैद्य की हथेली को अपने स्तन पर दबाए रखा और उनके हाथों अपना स्तन मसलवाती रही... राजवैद्य की आँखें ऊपर चढ़ गई... डर और उत्तेजना के मिश्रण ने उनकी धड़कने इतनी तेज कर दी की उन्हे लगा उनका दिल बैठ जाएगा। उनका पूरा जिस्म पसीने से तरबतर हो गया।
"और कभी कभी यहाँ भी दर्द होता है.. " महारानी ने उनकी हथेली को दूसरे स्तन पर रख दिया
राजवैद्य का हाल देखकर महारानी को इतना मज़ा आने लगा की वह अब इस खेल को दूसरे पड़ाव पर ले जाना चाहती थी...
"आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे? बताइए ना... क्या तकलीफ़ है मुझे?"
"में... वो... जी... महारानी जी... में आपको तुरंत दवाई भ..भ..भेजता हूँ... वह लेते ही आपको राहत मिलेगी" कांपते कांपते राजवैद्य ने कहा...
"वो तो ठीक है पर... मुझे सब से ज्यादा तकलीफ तो यहाँ हो रही है... !!" कहते ही महारानी ने राजवैद्य का हाथ खींचकर अपनी चुत की लकीर पर लगा दिया... गीली पनियाई चुत का स्पर्श होते ही राजवैद्य बेहोशी की कगार पर पहुँच गए...
"अंदर उंगली डालकर देखिए... बहुत गरम गरम सा लगता है पूरा दिन वहाँ... ठीक से जाँचिए आप" महारानी ने चद्दर के नीचे राजवैद्य की उंगली को अपनी चुत में घुसेड़ दिया...
राजवैद्य अपना आपा खो रहे थे... उन्होंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था की शाही जिस्म के निजी अंगों को छूने का कभी उन्हे मौका मिलेगा!! उनका लंड अब बगावत पर उतर आया था.. और कभी भी धोती फाड़कर बाहर आने की धमकी दे रहा था
"जरा उसे अंदर बाहर कीजिए तो मुझे थोड़ा आराम मिलेगा" महारानी ने राजवैद्य की पूरी फिरकी ले ली
जब कहने पर भी राजवैद्य ने उंगली को अंदर बाहर नहीं किया तब महारानी खुद ही अपने चूतड़ों को ऊपर नीचे करते हुए उंगली के मजे लेना शुरू कर दिया...
राजवैद्य की आँखें ऊपर चढ़ गई... वह हांफने लगे... ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे महारानी ने केवल उंगली से ही उनके पूरे शरीर का चेतन खींच लिया था... उस मखमली गरम चुत की लकीर के अंदर चिपचिपे एहसास से राजवैद्य के शरीर में बिजली सी कौंध गई। महारानी अब तेजी से ऊपर नीचे करती हुई उनकी उंगली से बखूबी चुदवा रही थी...
अचानक राजवैद्य का शरीर झटके खाने लगा और उन्होंने महारानी की चुत से अपनी उंगली जबरदस्ती खींच ली... महारानी को पता नहीं चला की उन्हे क्या हो गया!! पर जब उन्होंने धोती के ऊपर से अपने लंड को दोनों हाथों से पकड़ लिया तब पता चला की राजवैद्य के लंड ने अंदर ही पिचकारी दे मारी थी... !! उनकी धोती वीर्य से सन गई थी... शरमाकर वह उठ खड़े हुए और तेजी से दरवाजे की ओर भागे... पीछे से उन्हे महारानी की खिलखिलाकर हंसने की आवाज सुनाई दी...
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अपने कक्ष में आराम फरमाते महाराज कमलसिंह ने मेज पर पड़ी शराब की प्याली को उठाया और एक घूंट में पी गए। महाराज ज्यादातर भोग विलास में मस्त रहते... राज्य का कार्यभार राजमाता ही संभालती। कमलसिंह हर वक्त मदिरा, मैथुन और शिकार में ही व्यस्त रहते... मध्यम कद के लिंग वाले इस महाराज की यौन इच्छा काफी प्रबल थी... और राजा होने के नाते उन्हे चोदने के लिए लड़कियों और औरतों की कभी भी कमी महसूस नहीं हुई थी... उनके सेवक इस कमजोरी का पूरा लाभ उठाते... जब राजा का मन रानियों को चोद चोद कर भर जाता तब उनके चमचे वेश्या और गणिकाओं को राजा के समक्ष हाजिर कर तगड़ी भेंट सौगाद जुगाड़ लेते। महाराज की एक सशक्त महिला संरक्षक भी थी जिसका नाम चन्दा था।
शराब के नशे में चूर होकर उन्होंने अपने खास सेवक सुखिया को बुलावा भेजा... वह तुरंत हाजिर हुआ...
"जी महाराज... फरमाइए.. " सलाम करते हुए सुखिया ने कहा
"सुखिया... तेरे रहते हुए महाराज का बिस्तर खाली क्यों पड़ा है?? कोई हसीन चीज पेश कर वरना मेरे क्रोध को तो तू जानता ही है" नशे में डोलते हुए कमलसिंह ने कहा
"क्षमा करें महाराज, में आज रात को ही आपके बिस्तर को गरम करने का प्रबंध करता हूँ"
"हम्म.. और कोई अच्छी चीज लाना... जो मेरे लंड पर मस्ती से कूद सके... पिछली बार की तरह सुखी ककड़ी जैसी बदसूरत लड़की लाया तो तेरी गांड में गरम सरिया घुसेड़ दूंगा"
"साले, तेरी अंगूठे भर की नून्नी पर कौन सी लड़की कूदेगी... " गुस्से से मन में सोच रहा था सुखिया पर चेहरे पर मुस्कान के साथ उसने कहा "आप चिंता न करे महाराज, ऐसी कटिली चीज लाऊँगा की आपका मन प्रसन्न हो जाएगा"
"हम्म ठीक है... रात होने से पहले उसे पेश करना... और यहाँ लाने से पहले उसे शाही गुसलखाने में दासियों से स्नान और मालिश करवाकर हाजिर करना, समझा !!"
"जी महाराज, आप से एक अरज करनी थी" सुखिया ने अपना पासा फेंका
"बोल... "
"परिवार बड़ा होता जा रहा है... आपकी कृपा से दोनों बेटों का विवाह हो गया है और खाने वाले मुंह बढ़ गए है.. खेत अब छोटा पड़ रहा है... थोड़ी सी महरबानी हो जाती तो... " कुटिल सी मुस्कान के साथ सुखिया ने कहा
"ठीक है... दीवानजी से कहना मेरा आदेश है की दो खेत तेरे नाम कर दिए जाए... " शराब को प्याली में डालते हुए महाराज ने कहा
"महाराज की जय हो... आप बड़े कृपालु है" सलाम करते हुए सुखिया खुशी खुशी चला गया।
रात्री का समय होते ही भोजन के पश्चात महाराज अपने कक्ष में व्याकुल होकर अपने चुदाई के प्रबंध की प्रतीक्षा कर रहे थे। कुछ देर तक कमरे में यहाँ वहाँ चक्कर काटने के बाद उन्होंने सैनिक से पूछने पर पता चला की एक खास गणिका को गुसलखाने में तैयार किया जा रहा था।
महाराज ने अपने उपरार्ध के वस्त्र निकाल दिए और केवल धोती में अपनी कुर्सी पर बैठ गए।
थोड़े अंतराल में ही उनके कक्ष का दरवाजा खुला और २५ की उम्र की एक आलीशान कद-काठी वाली लड़की ज़रीदार साड़ी पहने अपनी आँखें नचाती हुई कक्ष में दाखिल हुई। उसे देखते ही महाराज की आँखों में चमक आ गई।
चमकीली चोली में उसके शानदार सुगठित स्तन और उसकी चाल में ताल से ताल मिलाते हुए उसके सुंदर फूले हुए कूल्हे। वह कद में लंबी थी और उसके गहरे काले लंबे बाल थे, दांत मोती जैसे सफेद और सुगठित थे, होंठ छोटे लाल थे, उसके शरीर से मीठी गंध आ रही थी। गुसलखाने में दासियों ने विपुल मात्रा में इत्र का छिड़काव जो किया था। गोलाकार मुलायम अड़तीस इंच या इससे ऊपर के स्तन थे और गर्दन शानदार नाजुक चिकनी त्वचा से बनी थी जो देखने में बेहद कामुक लग रही थी।
वह गांड मटकाती हुई महाराज के पास आई और उन्हे गुलाब के फूलों की माला पहनाई।
महाराज ने माला स्वीकार करने के लिए अपना सिर झुकाया और उसकी चिकनी मुलायम भुजाओं को बुरी तरह से रगड़ा और उसकी चोली की गहरी खाई और उसमें छिपे नरम-नरम स्तनों को घूरने से खुद को रोक नहीं पाएं। उसमें एक मादक सुगंध थी जो महाराज को बेहद उत्तेजित करती थी।
महाराज ने उसे बाहुपाश में जकड़ लिया और पीछे से ही उसके घाघरे में अपने हाथ डाल दिए। उसकी कमर छोटी थी लेकिन छूने में काफी मुलायम थी और उसके नितंब साफ़ त्वचा वाले और कोमल मांसपेशियों से भरे हुए थे.... रेशम की तरह चिकने और मस्त।
महारज की उंगलियाँ उसके दोनों कूल्हों पर घूम रही थीं, उनके नुकीले नाखून उसकी जाँघों के मूल पर नरम, संवेदनशील त्वचा को बेरहमी से खरोंच रहे थे, जिससे वह कामुक आनंद में छटपटा रही थी और बड़बड़ा रही थी, साथ ही साथ वह अपने मजबूत पैरों को पटक रही थी और चुपचाप सहन कर रही थी।
वह जानबूझ कर रेशमी साड़ी के नीचे बिना किसी अन्तःवस्त्रों के आई थी और महाराज के हाथ उसके नितंबों की कोमलता से प्रसन्न होकर उन्हे सहलाये जा रहे थे। उस लड़की के चूतड़ों को घाघरे के अंदर ही हाथों से फैलाकर अपनी एक उंगली को उसके गांड के छिद्र को छेड़ने लगे। आँखें बंद कर वह लड़की, इन हसीन स्पर्शों का पूर्ण आनंद ले रही थी।
"क्या नाम है तुम्हारा" महाराज ने पूछा
"जी, मुझे मेनका कहकर पुकारते है" ज्यादातर गणिकाए इस पेशे के लिए अपना नाम बदलकर कोई उत्तेजक सा नाम रख लेती है
"बड़ी सुंदर हो तुम मेनका... यह तुम्हारी खुशकिस्मती है की तुम्हें इस राज्य के महाराजा को खुश करने का मौका प्राप्त हुआ है... "
"जी, इस अवसर के लिए में कृतज्ञ हूँ.. में वचन देती हूँ की आपको स्वर्गीय सुख प्रदान करूंगी... में इस कार्य में बेहद निपुण हूँ " आँखें झुकाकर उसने कहा
सुनते ही राजा प्रसन्न हो गए... मेनका को खींचकर बिस्तर पर बैठाते हुए उन्होंने एक झटके में अपनी धोती की गांठ खोल दी और पूर्ण नग्न हो गए। उनकी तीन इंच की लौड़ी तनी हुई थी। देखकर एक पल के लिए मेनका की हंसी छूट जाने वाली थी पर व्यावसायिक कौशल ने उसे ऐसा करने से रोक लिया। वह ऐसे नाटकीय भाव से भाव-विभोर होकर महाराज के लंड को देखने लगी जैसे कभी उसने ऐसा बड़ा लंड देखा ही न हो...!!
"अपने वस्त्र उतारो, मेनका.. " महाराज ने आदेश दिया
यह सुनते ही वह बिस्तर से खड़ी हो गई... बेशर्मी से उसने महाराज के सामने अपने कपड़े उतारने लगी, अपनी सुनहरी ब्रोकेड वाली रेशम की साड़ी को आसानी से उतार कर सिर्फ एक छोटी सी चोली में खड़ी थी, जो उसके शानदार स्तनों को अप्रभावी रूप से नियंत्रित करने के लिए दबाव डाल रही थी।
महाराज ने दोनों हाथों से उस छोटी सी चोली को अलग कर लिया और वह रेशमी चोली के फटने की आवाज आई। चोली के फटते ही मेनका कराह उठी और महाराज ने दर्द भरे जुनून के साथ उसके चमकते देवदूत जैसे गोरे शरीर को गले लगा लिया।
उसके लाल रसीले होंठों को महाराज पागलों की तरह चूमने लगे और उसके गर्म हाथ ने उनके लंड को अपने हाथ में ले लिया। महाराज का लोडा मेनका की हथेली में उछल-कूद करने लगा। बड़ी ही कुशलता से उसने महाराज के टट्टों को भी सहलाया।
महाराज ने उसके मुलायम नितंबों को अपने हाथों से दबोचा और उसकी गर्म कमर को अपने करीब लाने के लिए उसकी कमर को खींचा ताकि दोनों के जननेन्द्रियों का तुरंत मिलन हो पाए। महाराज के हाथ उसके शरीर के रसीले किनारों को ऊपर घूमने लगे और अंत में उसके दूधिया स्तनों को और अर्ध-खड़े भूरे रंग के निपल्स को दोनों हथेलियों में भर लिया। उसके एरोला के रोंगटे इस स्पर्श से खड़े हो गए थे। महाराज काफी देर तक उसके स्तनों और निप्पलों के साथ खेलते रहे।
महाराज ने उसके कोमल होठों को अपने होंठों से खींच लिया और फिर उनका सिर उसकी भरी भरी छाती की ओर झुक गया और उसके स्वस्थ स्तनों को अपने मुँह की गर्माहट में ले लिया। स्तनों की बाहरी त्वचा को धीरे से चूसकर और उन स्वादिष्ट स्तनों के निचले हिस्से को दांतों से काटने के बाद उन्होंने मुंह में भरकर निप्पल को भी छेड़ा।
वह कराह उठी, "अहहहह... म्म्मम्म्म" और उसके हाथ ने महाराज के लंड को जोर से पकड़ लिया और उसके अंगूठा ने लंड के संवेदनशील सिरे सहलाकर, नोक पर लगी कुछ वीर्य की बूंदों को उसके उभरे हुए सुपाड़े पर फैला दिया। मेनका अब त्वरित चुदाई के लिए उत्सुक हो चली थी पर वह सारा नियंत्रण महाराज के पास ही रखना चाहती थी ताकि कोई गुस्ताखी ना हो।
मेनका की कोमल मोटी जांघों से टपकते स्त्री-स्राव के साथ, उसके भूरे रंग के निपल्स गर्म खून से सख्त हो गए थे और महाराज का लंड ऊपर-नीचे लहरा रहा था...
महाराज ने मेनका को बिस्तर के किनारे पर बैठा दिया और उसकी जाँघें फैला दी। जांघें खुलते ही उसके स्वर्गीय द्वार के दर्शन हुए। उसकी चुत एक सुगठित कमल के फूल की तरह थी, भीतरी होंठ गुलाबी, शहद की तरह टपकने वाले मीठे तीखे रस से हमेशा गीले, बाहरी होंठ जैसे कोमल पंखुड़ी और पकी हुई लाल चेरी के आकार की भगोष्ठ (क्लिटोरिस)!!!
महाराज उसकी बगल में लैट गए और उसकी शानदार छाती पर, उसकी कमर के मांस और जाँघों के किनारों के मुलायम स्तरों पर अपना हाथ सहलाने लगे। वह पीछे की ओर झुक गई, उसके शरीर के रोंगटे खड़े हो गए क्योंकि एक अजनबी आदमी के हाथों ने, इच्छा और शक्ति दोनों के साथ उसके नाजुक अंगों को छेड़ रखा था।
उसकी कोमल भूरी निप्पलों को देखकर महाराज का लंड हिलोरने लगा था। महाराज ने अपना सिर झुकाकर उसकी एक निप्पल को मुंह में भरकर कुछ देर तक चूसा और फिर हल्के से दांतों से काटा।
"उम्म्म्म्म्माह्ह्ह", उसने महाराज के सिर को अपनी छाती से पकड़ कर कराहते हुए कहा और उसकी दूसरी कड़ी निप्पल ने महाराज के गालों में लगभग छेद कर दिया। महाराज ने अपने हाथ उसकी संगमरमर जैसी चिकनी गीली जाँघ की मांसपेशियों पर घूम रहे थे और उसकी फैली हुई जाँघों के बीच उस पंखुड़ीनुमा चुत की जाँच कर रहे थे। रेशमी घुंघराले झांटों का गुच्छा उसके प्रमुख योनी होंठों को छिपा रहा था और जहातों के झुरमुट के बीच उंगली डालकर महाराज उसकी चुत की दरार को टटोल रहे थे।
महाराज ने उसकी जाँघों को पूरी तरह से चौड़ा कर दिया और अब अपने होंठों को उसकी गर्म गीली चूत पर लगा दिया। उनकी लपलपाती जीभ ने चुत की दरार को ऊपर से नीचे तक चाट लिया।
मेनका अब बेहद बेचैन होकर बड़बड़ा रही थी, "हे महाराज... आप तो मेरे लिए ईश्वर का उपहार हैं। इतने वर्षों में किसी भी मर्द ने कभी भी मेरे साथ इस तरह से संभोग का आनंद नहीं लिया। कृपया मुझे बिना देर किए चोदिए और मेरी चुत को अपनी गर्मी से भर दीजिए।" अपने ग्राहक को रिझाने की यह युक्ति हमेशा सफल रहती थी मेनका की
यह सुनते ही महाराज अपना आपा खो बैठे। उन्होंने उसकी फूली हुई गीली चूत को चबाना बंद कर दिया और ऊपर की तरफ उठ गए। पहले उन्होंने मेनका को होंठों को चूसते हुए एक दीर्घ चुंबन दिया... फिर उसके स्तनों को बड़ी ही बेरहमी से मसला... और तत्पश्चात उसकी जांघों को फैलाकर उसके बीच में बैठ गए। उन्होंने दो तीन बार अपने लंड को मुठ्ठी में पकड़कर हिलाते हुए लंड का सख्तपना सुनिश्चित किया और फिर मेनका के चुत के होंठों को उंगलियों से फैलाकर योनि के मुख पर अपना छोटा लंड टीका दिया।
महाराज ने हल्का सा धक्का लगाया की तुरंत ही उनका लंड मेनका की अनुभवी चुत में घुस गया। महाराज के के झांट मेनका के झांटों से उलझ गए और उनका लंड अब उसकी रिसती हुई चूत के छेद का अछे से पता लगाने में व्यस्त हो गए। मेनका की आखिरी हिचकिचाहट अब उड़ गई और वह अब लंड को अपनी आरामदायक मुलायम गीली जगह में खींचकर चुदवाने लगी।
उसके स्तन अब महाराज की कामुक आँखों के सामने ऊपर-नीचे उछल रहे थे। महाराज ने उस समय का उपयोग उन तीखी गर्म निप्पलों को अपने होठों से छेड़ने के लिए किया और उन्हें अपने दांतों के बीच पकड़ लिया, जिससे मेनका बेलगाम होकर कराहने लगी।
महाराज ने अब उसके कोमल शरीर को उसकी कमर के चारों ओर से ऊपर उठाया, कमर को जोर से पीछे की ओर धकेला ताकि उनका लंड उसके अंदरूनी हिस्सों की गर्माहट का पूरा आनंद ले सके।
महाराज का लंड मेनका की योनी को लुगदी में अंदर बाहर होते हुए भिन्न भिन्न चुदाई की आवाजें, "चक्कक, थचक्क, पस्चचक्क," इत्यादि जैसी आवाजें निकाल रही थीं। व्यस्त मिलन में लंड और चुत की इन मादक आवाजों से पूरा कक्ष गूंजने लगा।
कमलसिंह ने उसकी जाँघों पर ज़ोर से थप्पड़ मारा, उनकी थप्पड़ से मेनका की कण्ठस्थ कराह निकल गई। संभोग की मीठी गंध हवा में भर गई और मेनका के नथुने उस मादक गंध की सराहना में भड़क उठे..
महाराज ने मेनका के नरम ग्रहणशील शरीर को बिना रुके, कमर के लगातार झटके लगाते हुए, अपने लंड को उसकी जांघों के बीच ऐसे धकेलते रहे जैसे उसकी चुत को फाड़ देने की मंशा हो। उनके जोशीले परिश्रम के कारण दोनों के जिस्म पसीने से तर हो गए। महाराज ने अपने भूखे लंड से उसकी गीली उत्सुक चूत पर अपना कामुक हमला जारी रखा। दोनों की इंद्रियाँ अपरिमेय स्वर्गीय आनंद की ओर दौड़ रही थीं।
महाराज के अंडकोष मेनका की गाँड़ से जा मिले और इस मीठे घर्षण के कारण गुदगुदी की अनुभूति होने से वह लगभग स्खलित होने के कगार पर आ गए। जैसे ही बिस्तर पर दोनों की गर्म चुदाई, सांसें रोक देने वाली प्रतियोगिता में बदल गई, कमलसिंह ने अंततः महसूस किया कि उनके अंडकोष कस गए और उनके शाही टट्टों में से उनके लंड में वीर्य, सिरिंज में इंजेक्शन के तरल पदार्थ की तरह भर गया।
जैसे ही अंतिम चरमोत्कर्ष आया, मेनका की कराहें, फुसफुसाहट और आहों में बदल गईं, उसका शरीर पूरी तरह से फैल गया, उसके पेट की मांसपेशियाँ ऐंठन में ढह गईं क्योंकि उसके गर्भ ने उसकी चुत से ढेर सारे शहद को बाहर निकाल दिया। बिल्कुल उसी समय महाराज भी असहनीय स्थिति में आ गए, वह उस अद्भुत रूप से तृप्त मुलायम गद्दीदार शरीर पर ढेर होकर गिर पड़े, उनकी आँखों के सामने तारे दिखाई देने लगे। उनका छोटा लंड उछल उछल कर अपना वीर्य मेनका की चुत में छोड़कर निढाल हो गया।
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सप्ताह पर सप्ताह यूँ ही बीतते गए... राजमाता और महारानी के संग लुकाछुपी का खेल खेलते हुए शक्तिसिंह दोनों को बराबर चोदता रहा। इसी बीच एक समाचार ने पूरे राज्य को आनंदित कर दिया। महारानी पेट से थी यह राजवैद्य ने घोषित करते ही पूरे राज्य में उत्सव का माहोल फैल गया। महाराज कमलसिंह की खुशी का ठिकाना ना रहा... उन्हों ने राज्य के सारे लोगों को दावत दी, गरीबों में धन लुटाया और मामूली जुर्म के कैदियों को रिहा किया। राजमाता भी इस समाचार से काफी आनंदित थी... अपना महत्व कम होने का डर भी लगा... पर अपनी क्षमता पर उन्हे पूर्ण भरोसा था...
महारानी की सेवा में दासियों का एक पूरा दल लग गया था। उनके खानपान और दवाइयों का खास ध्यान रखा जाता था। सैनिकों का एक दस्ता २४ घंटे उनके कक्ष को चारों ओर से घेरकर चौकी करता था। महारानी के मायके से विदेश केसर और जड़ीबूटी का घोल प्रतिदिन भेजा जा रहा था। उनका गर्भकाल बिना किसी विघ्न के सम्पन्न हो इसलिए राजमहल में खास प्रार्थना भी की गई थी।
दिन और रात दासियों और सैनिकों से घिरी रहकर महारानी परेशान हो गई। अब शक्तिसिंह से मिलने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी... ना ही अब वह दासी से अपनी गांड के छेद की मालिश करवा पाती... वह ऐसे तड़प रही थी जैसे जल बिन मछली तड़पती है। वह सोच सोच कर थक गई पर उन्हे अपनी चुत की आग बुझाने कोई रास्ता न दिखा। वह दिन भर उदास सी पड़ी रहने लगी... दासियों के पूछने पर कुछ बताती नहीं थी...
आखिर बात राजमाता के कानों तक पहुँच गई... उन्हे चिंता हुई क्योंकी गर्भावस्था में औरत का खुश रहना, शिशु की तंदूरस्ती के लिए काफी जरूरी था। वह तुरंत महारानी पद्मिनी के कक्ष में उनसे मिलने पहुंची। उनके आगमन के साथ ही सारी दासियाँ कक्ष के बाहर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया।
"कैसी तबीयत है तुम्हारी महारानी?"
"ठीक ही है... " मुंह लटकाए महारानी ने जवाब दिया
"पर दासियाँ तो कह रही थी की तुम पूरा दिन बिस्तर में ही पड़ी रहती हो?"
"मेरा मन नहीं लगता... पूरा दिन उदासी सी छाई रहती है"
"फिर क्यों पूरा दिन मृत शरीर की तरह पड़ी रहती हो? बाहर निकलो, बागीचे में घूमो, संगीतकारों से संगीत सुनों, दरबार में आकर बैठो... तभी तो तुम्हारा मन बहलेगा...यूं पड़े रहने से तो मन की उदासी दूर नहीं होने वाली" राजमाता ने समझाया
"आप नहीं समझेगी राजमाता... मेरे मन में अजीब सी कशमकश लगी रहती है... कुछ भी करने को मन नहीं करता... "
"में भी इस काल से गुजर चुकी हूँ... मुझे इस स्थिति का पूरा ज्ञान है... तुम्हें किसी न किसी चीज में तो तुम्हारा मन लगाना ही होगा" राजमाता ने थोड़े से कड़े स्वर में कहा
"राजमाता, क्यों न हम फिर से यात्रा करने निकले, पिछली बार की तरह?"
महारानी के इस बचकाने प्रश्न से राजमाता सोच में पड़ गई। वह यह तय नहीं कर पा रही थी की महारानी का इशारा यात्रा की ओर था या यात्रा दौरान जिस तरह उसने टाँगे फैलाकर चुदवाया था उसका जिक्र कर रही थी!!
"इस परिस्थिति में तुम्हारा यात्रा करना उचित नहीं होगा... यह तुम भी जानती हो.. !!"
"में कुछ नहीं जानती... फिर में और कर के अपना दिल बहलाऊँ??"
"यह तो तुम्हें ही ढूँढना होगा... इतनी सारी मनोरंजन की व्यवस्था है... थोड़ा बाहर निकलो तो अच्छा महसूस होगा" कहते हुए राजमाता उठ खड़ी हुई
राजमाता के जाने के बाद महारानी फिर से बिस्तर पर ढेर हो गई... उनकी चुत में ऐसी सरसराहट हो रही थी जो उन्हे बेचैन बना देती थी... उन्होंने उंगली कर चुत को शांत करने की भरसक कोशिश की पर उससे तो चुदाई की भूख और भी बढ़ गई। पूरा जिस्म किसी मजबूत पुरुष की चाह में तड़प रहा था। अपनी मांगे संतुष्ट ना होने पर उनकी चुत आंदोलन पर उतर आई थी। उनके शरीर के ग्रंथिओ का अंत:स्राव उन्हे पागल बना रहा था।
करवटें बदलते हुए सारी रात उन्हों ने बिना नींद के ही बीता दी।
रोज की तरह महाराज उनकी तबीयत का हाल जानने के लिए पधारे। महारानी का उतरा हुआ मुंह, लाल आँखें और सूजा हुआ चेहरा देखकर वह बेहद चिंतित हो उठे।
"आप की तबीयत ठीक नहीं लग रही पद्मिनी... " परेशान महाराज ने पूछा
महारानी ने उत्तर न दिया
"कुछ तो बोलो... तुम्हें कोई समस्या है... किसी प्रकार की कोई चिंता... हमे बताइए... हम तुरंत उसका हल निकालेंगे.."
"आप हमे चाहकर भी खुश नहीं कर पाएंगे..."
"आप मांगकर तो देखिए... आप को खुश रखने के लिए में कुछ भी कर गुज़रूँगा... यह वचन है आप से मेरा"
"राजमहल में मेरा दम घुटता है... इन चार दीवारों में मेरा मन व्यग्र हो जाता है। में बाहर निकालना चाहती हूँ... क्या आप इसका प्रबंध कर सकते है?"
सुनकर महाराज थोड़े से हैरान हुए... गर्भावस्था में सफर करना अनुचित था... पर महारानी को खुश करना भी जरूरी था... आखिर वह इस राज्य के वारिस को जनम देने वाली थी... और वह उन्हे वचन भी दे चुके थे...
"मेरे पास एक सुझाव है... कुछ ही दिनों में, मैं पास के जंगल में शिकार करने जाने वाला हूँ... आप मेरे साथ चलिए... जगह नजदीक है और जाने के लिए पक्की सड़क भी है... आप को कोई कष्ट नहीं होगा। दो तीन दिनों में हम वहाँ सारा इंतेजाम करवा देंगे... प्राकृतिक वातावरण में तुम्हारा मन भी बहल जाएगा और आपके साथ वक्त बिताने का मौका भी मिल जाएगा"
सुनते ही महारानी की आँखें चमक उठी।
"पर महाराज, वहाँ जंगल में सुरक्षा की भी जरूरत पड़ेगी... दुश्मनों से और जंगली जानवरों से भी.. " महारानी ने अपना जाल बिछाया
"उसकी चिंता आप मत कीजिए... हमारे चुनिंदा सैनिक आपकी सुरक्षा के लिए वहाँ मौजूद रहेंगे। "
"फिर ठीक है... हो सके उतना जल्दी शिकार पर जाने का प्रबंध कीजिए... हम से अब रहा नहीं जाता" महारानी की खुशी पूरे चेहरे पर झलक रही थी।
"चलते है... कुछ ही दिनों में शिकार यात्रा के बारे में आपको सूचित कर दिया जाएगा... " महाराज ने विदाय ली
महारानी का मन रोमांचित हो उठा... वह शक्तिसिंह से मिलन की आस से बेहद प्रफुल्लित होकर चैन की नींद सो गई।
दूसरी सुबह जब राजमाता को यह समाचार मिल तब वह तुरंत ही महाराज कमलसिंह से मिलने पहुँच गई।
"पधारिए राजमाता... कहिए कैसे आना हुआ?"
"कमल, यह में क्या सुन रही हूँ? तुम पद्मिनी को लेकर शिकार पर जाने वाले हो?" अचंभित होकर राजमाता ने पूछा
"आप ने सही सुना है... महारानी का मन राजमहल में नहीं लग रहा है... वह कुछ दिन बाहर बिताना चाहती है... संयोग से में इसी दौरान शिकार पर भी जाने वाला हूँ... सोचा पद्मिनी को अपने साथ लेता चलूँ... महारानी की सैर भी हो जाएगी और मेरा भी दिल लगा रहेगा"
"इस अवस्था में तुम पद्मिनी को बीहड़ जंगल में ले जाने की सोच भी कैसे सकते हो? कहीं कोई उंचनीच हो गई तो?" चिंतित आवाज में राजमाता ने कहा
"कुछ नहीं होगा... जंगल तक पक्की सड़क का निर्माण तो हमने तीन साल पहले करवा ही दिया है.. वहाँ तंबू और खेमे में हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराने का में आदेश दे चुका हूँ... दासियों का समूह महारानी की अच्छी देखभाल करेगा... और सुरक्षा के लिए शक्तिसिंह के नेतृत्व में सैनिकों का दल वहाँ मौजूद रहेगा... फिर किस बात की चिंता!!"
शक्तिसिंह का नाम सुनते ही राजमाता के कान खड़े हो गए... धीरे धीरे उन्हे महारानी की सारी योजना समझ में आ गई।
"में भी तुम लोगों के साथ शिकार यात्रा पर चलूँगी" राजमाता ने पासा फेंका
"राजमाता, आप वहाँ आकर क्या करेगी? आपको खामखा तकलीफ होगी वहाँ "
"तुम ही ने तो कहा की वहाँ सारी सुविधाएं उपलब्ध करवा दी जाएगी... फिर मुझे भला क्या दिक्कत होगी!! और वैसे भी ऐसी स्थिति में परिवार की एक स्त्री का महारानी के साथ रहना बेहद जरूरी है"
"ठीक है... जैसा आप ठीक समझे... " महाराज कमलसिंह ने राजमाता के सामने हथियार डाल दिए।
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रात को बिस्तर पर नंगी पड़ी राजमाता शक्तिसिंह के जिस्म से लिपट कर अभी अभी खतम हुए संभोग की थकान उतार रही थी। राजमाता की बाहों मे लिपटा शक्तिसिंह उनकी भारी भरकम चूचियों की निप्पल को बच्चे की तरह चूस रहा था। उसका आधा मुरझाया लंड राजमाता के हाथों में था।
"क्यों रे.. जंगल में गुलछर्रे उड़ाने जा रहा है और मुझे बताया भी नहीं तूने?" शरारती आवाज में राजमाता ने कहा
सुनकर शक्तिसिंह चोंक गया... उसके मुंह से राजमाता की निप्पल छूट गई।
"जी में तो वहाँ महाराज के सुरक्षा दस्ते का नेतृत्व करने जा रहा हूँ..."
"किसकी सुरक्षा? महाराज की या महारानी की?" चुतकी लेते हुए राजमाता ने कहा
"महारानी शिकार पर? आपको कुछ गलतफहमी हुई है" निर्दोष शक्तिसिंह ने कहा
"हाँ... तेरी चाहिती महारानी भी आने वाली है... पर कोई खयाली पुलाव मत पकाना... तुम दोनों पर नजर रखने के लिए में भी वहाँ मौजूद रहूँगी"
"राजमाता जी, आप भी मेरा मज़ाक बना रही है। अब तो वह मेरे बीज से गर्भवती भी बन चुकी हूँ... में कहाँ उनके करीब जाने वाला था!!"
"हम्म... तू दूर ही रहना उससे... चाहे वह कितना भी फुदक ले... और तेरा जब भी मन करे तब में तो तेरे साथ ही रहूँगी" मुसकुराते हुए राजमाता ने कहा
"राजमाता जी, पिछली यात्रा की बात और थी, इस बार तो महाराज भी साथ होंगे... ऐसी सूरत में हमे ऐसा जोखिम नहीं उठाना चाहिए"
"उसकी चिंता तू मत कर... वैसे भी रात में महाराज शराब के नशे में धुत होकर किसी दासी की चुत में मुह डाले पड़े होंगे... हमे कोई दिक्कत नहीं होगी"
"जैसा आप ठीक समझे... " शक्तिसिंह ने हार मान ली
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कुछ दिनों बाद सूरजगढ़ से महाराजा का शाही दस्ता शिकार के लिए निकला... पूरा अश्व-दल और हस्ति(हाथी) दल उनके साथ था। सैनिकों को पूरी पलटन शक्तिसिंह के नेतृत्व में सवारी के आगे चल रही थी। पीछे एक सुशोभीत हाथी पर महाराज बैठे थे। उनकी स्त्री सैनिक चन्दा हाथ में भाला लिए हाथी की बगल में चल रही थी। बीच की बग्गीयों में राजमाता कौशल्यादेवी और महारानी पद्मिनी बिराजमान थे। सेवक, दासियों और बावर्चियों का दल, घोड़े पर सुख सुविधा के सारे साधन लादकर पीछे चल रहा था। इस शाही जुलूस को देखने के लिए प्रजागण इकठ्ठा हो गए थे। इस शानदार सवारी ने सूरजगढ़ से निकालकर जंगल की तरफ जाती सड़क का रुख किया।
प्रातः सात बजे निकली सवारी, अपने गंतव्य स्थान पर १२ बजे के करीब पहुँच गए। घनघोर जंगल के बीच बह रही नदी के किनारे पेड़ों की छाँव में छावनी की स्थापना की गई। थोड़े थोड़े अंतर पर सेवकों ने तंबू लगा दिए। बावर्चियों ने भोजन का प्रबंध करना शुरू किया और राज परिवार अपने तंबू में विश्राम करने चले गए। शक्तिसिंह भी सारी व्यवस्था सुनिश्चित करने के बाद एक पेड़ के नीचे, अपने हाथ का तकिया बनाकर सो गया।
वह कितनी देर सोया उसे पता ही न चला पर अचानक किसी के हिलाने से उसकी नींद खुल गई। प्रकाश से आँखें थोड़ी अनुकूलित होने पर देखा तो उसके बगल में महारानी पद्मिनी खड़ी थी!! उन्हे देखते ही उसके तोते उड़ गए...
वह अपने वस्त्रों से धूल झटकाते तुरंत खड़ा हो गया और महारानी को सलाम कर अपना सर झुकाकर खड़ा हो गया।
"महारानी जी, हुक्म कीजिए"
"में तो तुम्हें देखने ही आई थी शक्तिसिंह... काफी दिनों से तुम नजर ही नहीं आए? ना मिलने आते हो और ना ही कहीं दिखते हो...!!"
"जी में तो राजमहल में ही रहता हूँ, राजमाता की सेवा में... "
"वो तो मुझे भलीभाँति पता है की वह तुम्हारी सेवा का लाभ पूरी रात उठाती है... पर तुमने मुझे मिलने आना क्यों बंद कर दिया? पता है अकेले अकेले मेरा क्या हाल होता है?"
"जी वो... राजमाता का सख्त आदेश है की में आपसे दूरी बनाए रखूँ... और वैसे भी अभी आप गर्भवती है.. ऐसी सूरत में और कुछ हो भी नहीं सकता... ऊपर से राजमाता की भी हिदायत है... " विनम्रता से शक्तिसिंह ने कहा
"वो राजमाता क्या जाने की मेरे ऊपर क्या बीत रही है!! उन्हे तो बस हुकूम देना आता है... यहाँ मुझे अपना खाली बिस्तर काटने को दौड़ता है... पूरी रात में बिना सोएं तड़पती रहती हूँ... कुछ भी करो... तुरंत हम से मिलने का प्रयोजन करो तुम.. " महारानी ने बेचैनी भरी आवाज में कहा
"यह मुमकिन नहीं है महारानी साहिब... मिलना तो दूर.. इस वक्त अगर राजमाता ने मुझे आपसे बात करते भी देख लिया तो मेरी शामत आ जाएगी... आप समझने का प्रयत्न कीजिए... " शक्तिसिंह ने विनती के सुर में कहा
महारानी ने शक्तिसिंह का हाथ पकड़कर अपने पेट पर रख दिया..
"मुझे मिलने ना सही... इस पेट में पल रही तुम्हारी निशानी से तो मिलने आ सकते हो ना!! यह तुम्हारा बीज ही तो मेरे गर्भ में पनप रहा है"
शक्तिसिंह हक्का-बक्का रह गया... किसी के देख लेने के डर से उसकी हालत पतली हो चली थी... उसने तुरंत अपना हाथ महारानी के पेट के ऊपर से खींच लिया और हाथ जोड़कर उनके सामने गिड़गिड़ाया...
"महारानी जी, आप से हाथ जोड़कर विनती है की कृपया आप यहाँ से चले जाएँ... वरना मुझ पर बड़ा गहरा संकट आ जाएगा... में वादा करता हूँ की इस यात्रा के दौरान, कैसे भी करके में आपसे मिलूँगा जरूर" अपनी जान छुड़ाने के लिए शक्तिसिंह ने कहा
"वादा करते हो?"
"पक्का वचन है मेरा... अब आप महरबानी कर यहाँ से जाइए इस से पहले की कोई देख ले... "
विजयी मुस्कान के साथ महारानी वहाँ से चली गई। शक्तिसिंह की जान में जान आई...
शाम ढलने को थी और छावनी की चारों ओर मशालें जलाई जा रही थी। इस से प्रकाश भी बना रहता था और जंगली जानवर भी दूर रहते थे। रात का भोजन निपटाकर शक्तिसिंह अपने साथियों संग गप्पें लड़ा रहा था। तभी एक सैनिक ने आकार उसे यह सूचित किया की राजमाता ने उसे याद किया था।
खड़ा होकर शक्तिसिंह राजमाता के तंबू की ओर चल पड़ा...
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भारी भोजन के पश्चात अपनी कुर्सी पर चौड़े होकर महाराज कमलसिंह बैठे हुए थे... अपनी मस्ती में कोई धुन गुनगुनाते हुए वह मदिरा के प्याले समाप्त किए जा रहे थे। नशा सिर पर सवार होते ही उन्हे अपने लंड की प्यास का एहसास हुआ... पर यहाँ ना तो सुखिया हाजिर था और ना ही कोई रानी... महारानी साथ थी पर वह पेट से थी... निराश होकर उन्होंने एक और प्याला भरने के लिए सुराही झुकाई और पाया की शराब खतम हो गई थी।
"कोई है?" नशे में चूर होकर महाराज ने आवाज लगाई
तंबू के बाहर नियुक्त उनकी महिला रक्षक चन्दा, पर्दा खोलकर अंदर आई...
"जी महाराज, आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ?"
उस तगड़े सशक्त जिस्म की साम्राज्ञी को आज पहली बार महाराज ने अलग नजर से देखा। उस जिस्म में उन्हे कई संभावनाएं नजर आने लगी।
"आप को कुछ चाहिए महाराज?" कमलसिंह का कोई उत्तर ना मिलने पर चन्दा ने पूछा
"हं.. हाँ... सेवक को सूचित करो की मेरी सुराही में मदिरा समाप्त हो गई है... उसे तुरंत भर दिया जाए" महाराज की आँखें चन्दा के जिस्म का पृथक्करण कर रही थी
"जी महाराज" कमलसिंह की नज़रों को देखकर मुसकुराते हुए चन्दा तंबू से बाहर चली गई। कुछ ही देर में सेवक आकार सुराही में मदिरा भर चला गया और महाराज ने ओर एक जाम बनाया और चन्दा के बारे में सोचने लगे।
चन्दा कम से कम छह फुट तीन इंच लंबी, साँवले रंग की और शक्तिशाली कद-काठी वाली थी। उसमें कुंवारी लड़की के सौम्यता थी और चीते जैसी छुपी हुई शक्ति भी। वह आश्चर्यजनक रूप से आकर्षक थी, सुंदरता और साहस का एक अनोखा संयोजन था चन्दा में।
उसने सैनिकों जैसा तंग वस्त्र पहना हुआ था, जो पीठ और पेट के भाग से खुला हुआ था। उसका चेहरा आत्मविश्वास से भरपूर होते हुए भी अत्यंत शांत था और उसकी चौकस आँखें स्वाभाविक रूप से काली थीं। उसकी गर्दन चमकदार काली त्वचा से चमक रही थी और उसके स्तन, जो मुश्किल से उसके तंग वस्त्र में छिपे थे, कम से कम प्रत्येक पके पपीते के कद और आकार के थे। उसके खुले मध्य भाग में गहरी लेकिन छोटी नाभि के साथ सख्त चिकनी पेट की मांसपेशियाँ थीं। उसके नितंब विशाल गोलाकार और सुडौल थे और उसकी जांघें मजबूत मांसपेशियों से सुसज्जित थीं और पैर लंबे व उपयुक्त थे। कमर के नीचे उसने छोटे से स्कर्ट जैसी घाघरी पहन रखी थी जो उसके घुटनों के ऊपर तक रहती थी।
"चन्दा.... !!" उसकी खूबसूरती का एहसास होते ही महाराज को चन्दा की उपस्थिति की इच्छा हुई
तंबू का पर्दा हटाकर चन्दा महाराज के पास आई, उसकी चाल शिकारी तेंदुए जैसी, अजीब मंत्रमुग्ध कर देने वाली थी। महाराज की नजर और नशे की अवस्था से वह भांप चुकी थी की उसे किस उद्देश्य से बुलाया गया था। वह अपनी कमर को तेजी से मोड़कर झुकी और महाराज के हाथों को अपनी शहद जैसी भूरी हथेलियों में मजबूती से ले लिया और धीरे से चूम लिया। महाराज रोमांचित हो गए। चन्दा के पास एक ऐसा शरीर था जिसकी रखवाली की ज़रूरत थी, महाराज को नहीं!
"चन्दा, आओ यहाँ बैठो मेरे सामने... " महाराज कुर्सी पर बैठे थे और उनके सामने उनका बिस्तर था। जाहीर सी बात थी की उन्होंने चन्दा को बिस्तर पर बैठने का निर्देश दिया था।
चन्दा महाराज के बिल्कुल सामने बिस्तर पर बड़े आत्मविश्वास के साथ बैठ गई।
"मदिरा पीओगी??"
"जी नहीं महाराज... में काम करते वक्त नहीं पीती.. "
"अरे अभी तो रात हो गई है.. अब कैसा काम!! लो पीओ... इसे हमारे आदेश समझो" महाराज ने दूसरे प्याले में सुराही झुकाई और उसे पूरा भर दिया...
चन्दा ने बेझिझक प्याले को उठाया और एक ही घूंट में पी गई... महाराजा उसे अचरज से देखते रहे और उसके खाली प्याले को फिर से भरने लगे।
"कमाल की ताकत है पीने में तेरी... "
"महाराज, शराब पीना भी मेरी तालिम का हिस्सा था... मेरे गुरुजी मुझे नशे में धुत करके तीरंदाजी का अभ्यास करवाते... यह सुनिश्चित करने के लिए की मैं हर स्थिति में एकाग्र होकर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम रहूँ.."
"बड़ी गजब की अभ्यस्त हो तुम... " अचंभित महाराज ने कहा... अचरज के साथ ठरक भी महाराज के चेहरे से झलक रही थी
"आओ हम तुम्हारी चुस्तता का मुआयना करते है... " महाराज ने अपनी चाल चल दी
"जी में समझी नहीं... "
"उठो और मेरे सामने खड़ी हो जाओ... में भी तो देखूँ की मेरी सुरक्षा में नियुक्त सैनिक पूर्णतः उपयुक्त है भी या नहीं"
चन्दा तुरंत उठी और महाराज के सामने मजबूती से खड़ी हो गई।
वह महाराज के सामने खड़ी थी और उसका चमचमाता सपाट पेट महाराज की आँखों के बिल्कुल सामने था। उसकी छोटी पर गहरी काली नाभि महाराज को जैसे आमंत्रित कर रही थी। आज तक महाराज ने असंख्य गोरे-गुलाबी जिस्मों को भोगा था... उन सब में चन्दा का जिस्म बिल्कुल अलग और अनोखा था... केवल पारखी नजर ही इस हीरे जैसे शरीर की सुंदरता को पहचान सकते थे।
महाराज के हाथों ने उसके पेट को सहलाया और उन मजबूत मांसपेशियों में ऐसी फड़फड़ाहट हुई जिसने चन्दा को कराहने पर मजबूर कर दिया। महाराज ने अपने बाएँ हाथ से उसकी म्यान में रखी तलवार की बाधा को हटा दिया। तलवार के अलग होते ही वह अब थोड़ी कम हिंसक लग रही थी। अब वह सैनिक कम और स्त्री जैसी ज्यादा नजर आ रही थी। ऐसी स्त्री जैसे महाराज नियंत्रित कर सके।
कमलसिंह के हाथ उसकी काले ग्रेनाइट जैसी मजबूत मांसल जाँघों से रगड़े और ऊपर की ओर चढ़े और उसकी जाँघों के पर बंधी लंगोटी (प्राचीन समय की पेन्टी) को देखा। चन्दा थोड़ी सी छटपटाई लेकिन महाराज ने उनका हाथ नहीं हटाया। अभी मुआयना खतम कहाँ हुआ था !!
महाराज ने उसके गुब्बारे जैसे नितंबों को दोनों हथेलियों में पकड़ लिया, उन चिकनी गोलाइयों की अनुभूति का आनंद लेते हुए, उसकी घाघरी की गाँठ खोली और उस वस्त्र को नीचे गिरा दिया। दूसरे ही पल महाराज की उंगली ने उसकी लंगोटी को खींच कर खोल दिया।
"आह! म्म्म्म" चन्दा कामुकता से कराह उठी जब उसकी घाघरी और लंगोटी नीचे गिर गई और कमरे की ठंडी हवा ने उसकी ताज़ा उगी हुई चूत के बालों को सरसरा दिया। देखकर प्रतीत होता था की वह नियमित अपने चुत के बालों को उस्तरे से साफ करती होगी.. पिछली सफाई के बाद उगे हुए छोटे छोटे नुकीले बाल इसका प्रमाण दे रहे थे।
महाराज ने अपना सिर और चेहरा ऊपर की ओर झुके हुए पेट में दबा लिया और उसकी गहरी नाभि को जोर से चूमा और उसे अपने करीब खींच लिया ताकि उनकी उंगलियां उसकी चूत की परतों में घुस सकें। उसकी चूत काफी गर्म और रसीली लग रही थी और कुछ मिनट तक महाराज की बेशर्म उंगलियों से कुरेदने के बावजूद उसके संयम पर कोई असर नहीं हुआ।
महाराज ने अब चन्दा की नाभि से अपना चुंबन तोड़ा... थोड़ा सा नीचे झुके... उसकी टांगों को फैलाया और अपनी जीभ उसकी चुत की परतों के बीच में घुसेड़ दी... कब से शांत खड़ी चन्दा, महाराज की इस हरकत से अनियंत्रित रूप से थरथराने लगी। उसके मुंह से तेज़ कराहें निकल रही थीं और उसका मूर्तिमान शरीर जुनून से भड़क उठा था।
बड़ा ही अनोखा खारा स्वाद था चन्दा की चुत का... उसकी चुत के रस और प्रस्वेद की मिश्रित गंध ने महाराज के नथुनों को पागल कर दिया... उनका लंड धोती के अंदर उठकर इस सैनिक की सुंदरता का अभिवादन करने लगा।
महाराज ने अपनी बीच की उंगली और अंगूठे से उसकी चूत के मांसल बाहरी होंठों को अलग किया ताकि उसका प्रवेश द्वार अच्छी तरह से खुल जाए और अपनी तर्जनी से उसके उभरते हुए भगांकुर के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी। फिर उन्होंने उसकी योनि के डंठल को नीचे की मुलायम और गीली परतों में दबाया जिससे वह अनियंत्रित रूप से कांपने लगी।
इससे उसके मुँह से एक तेज़ गुनगुनाहट निकली और उसके बाद धीमी कराह निकली, "ओह, महाराज... आपने मुझे इतना बेहद उत्तेजित कर दिया है.. में अभी गर्मी में आई हुई कुत्तिया से भए अधिक उत्तेजित हो गई हूँ। सालों से आपको मेरे सामने उन सभी रानियों और रंडीयों को चोदते हुए देखते हुए भी इतनी उत्तेजित कभी नहीं हुई थी.. आह्ह्ह्ह!!!!"
अब उसने बेशर्मी से अपनी मजबूत श्रोणि को महाराज की ओर धकेल दिया, जिससे उनकी उंगलियाँ पोर तक उसकी नारीत्व की गरम गुफा में धँस गईं। उसकी चूत को एक बड़े ही तूफ़ानी संभोग की सख्त ज़रूरत थी। महाराज भी यह सोचने लगे की उन्हे कभी यह विचार नहीं आया की चन्दा की मौजूदगी में जब वह रानियों और वेश्याओं से संभोग करते थे तब वह कैसा महसूस करती होगी!!!
अब महारज की छटपटाने की बारी थी क्योंकि उनका शाही लंड बेहद कड़ा हो गया था, और उस अंगरक्षक के रूप में नियुक्त इस महिला का ध्यान उसके तरफ खींचने की आवश्यकता थी।
'अब तुम्हें मेरे इस लंड का भी ख्याल करना चाहिए, है ना, वैसे भी तुम्हें मेरे अंग की रक्षा और खयाल रखने के लिए ही तो रखा गया है...' महाराज ने शरारती सुर में कहा और उसकी तरल गर्म चूत को अपनी उंगलियों से सहलाया।
चन्दा महाराज के इशारे को समझ गई... उसने अपनी चुत को महाराज की उंगलियों से मुक्त करवाया और उनके समक्ष घुटनों के बल बैठ गई... महाराज की धोती के उभार को हौले हौले सहलाते हुए वह उनके वस्त्रों की परतों को खोलने लगी। धोती खुलते ही महाराज का नन्हा सिपाही प्रकट हुई... चन्दा की मन में ही हंसी निकल गई... हालांकि वह महाराज के लंड को कई दफा उनके संभोग सत्रों के दौरान देख चुकी थी... पर इतने करीब से इस अंगूठे जैसे लंड को देखने का यह प्रथम अवसर था। उनके लंड के नाप के विपरीत उनके अंडकोश काफी बड़े नजर आ रहे थे। या शायद बड़े टट्टों की वजह से उनका लंड ज्यादा छोटा लग रहा था... तय कर पाना मुश्किल था!!!
महाराज के लंड की त्वचा को बड़ी नाजुकता से नीचे सरकाते हुए चन्दा ने उनके सुपाड़े को बाहर निकाला। उनका सुपाड़ा एक कंचे के आकार और नाप का था... चन्दा ने अपनी जीभ से उसे छेड़ा.... और फिर लंड के मूल से लेकर सुपाड़े तक चाटने लगी... महाराज आँखें बंद कर कुर्सी पर अपना सिर टीकाकर इस अनोखे आनंद का मज़ा लेने लगे... चूसते हुए चन्दा ने महाराज के अंडकोशों को सहलाना भी शुरू कर दिया...
इस चुसाई का पूर्ण आनंद लेते हुए महाराज ने मेज से अपने प्याले को उठाया और सारी मदिरा एक घूंट में गटक गए। मस्तानी शराब और मर्दाना शबाब का नशा उन्हे सराबोर किए जा रहा था। अब महाराज की नजर चन्दा के दो पपीतों पर पड़ी... जो अभी भी वस्त्रों में कैद थे... इस स्थिति में वस्त्र उतारने की अनुकूलता न थी इसलिए वह उन वस्त्रों के ऊपर से ही चन्दा के भरकम स्तनों को दबाने लगे.... पर उन्हे स्तनों के मुलायम एहसास के बजाए कवच के कठोर स्पर्श का ही एहसास हुआ...
चन्दा महाराज की विवशता को समझ गई... महाराज के लंड की चुसाई छोड़कर वह उठ खड़ी हुई और अपने कवच को उतारने लगी.... कवच उतरते ही अंदर का काला वस्त्र, जिनमें दोनों स्तनों को कसकर बांधा हुआ था... वह उजागर हुआ.. अपने हाथ पीछे कर उसने उस वस्त्र की गांठ खोल दी... चमकीली काली लकड़ी जैसी त्वचा वाले दो विराट गुंबज नुमा स्तन महाराज के सामने पेश हो गए... उन्हे देख महाराज की आँखें चार हो गई... उन्हे जरा सा भी अंदाजा नहीं था की तंग वस्त्र और कवच के नीचे इतना बड़ा खजाना गड़ा हुआ मिलेगा!!!
उन्होंने अपने दोनों हाथों से उन विराट स्तनों को पकड़ना चाहा पर चन्दा ने उन्हे रोक लिया... उसने महाराज का हाथ पकड़कर उन्हे कुर्सी से उठाया और बिस्तर तक ले गई। अब वह बिस्तर पर लेट गई और अपनी टाँगे खोलकर महाराज को उसके समग्र सौन्दर्य का अन्वेषण करने का न्योता दिया।
कमर पर अब भी लटक रही धोती को एक झटके में निकालकर दूर फेंक दी महाराज ने... बिस्तर पर घुटनों के बल चलते हुए वह चन्दा की दोनों जांघों के बीच ठहर गए। उनकी नजर प्रथम तो चन्दा की काली चुत पर पड़ी... हालांकि उसका स्वाद वह कुछ पलों पहले ले चुके थे इसलिए उनका सारा ध्यान चन्दा की विशाल चूचियों पर ही चिपका था... वह चन्दा के पेट को पसारते हुए उसके स्तनों तक पहुंचे... कुछ पलों के लिए उनकी हथेलियाँ उन अद्वितीय स्तनों को चारों तरफ से नापते रहे... काले पत्थर को तराश कर बनाई गई हो वैसी नुकीली निप्पलों को निहारकर वह इतने अभिभूत हो गए की अपने आप को उन्हे चूसने से रोक नहीं पाए... एक हाथ में एक स्तन को मसलते हुए दूसरे स्तन की निप्पल को वह पगालों की तरह चूसने लग गए।
चन्दा भी नरम तकिये पर अपना सिर टीकाकर आँखें बंद कर महाराज द्वारा की जा रही निप्पल चुसाई से उत्तेजित हो रही थी।।। उसकी जांघों के बीच की लकीर गीली हो रही थी... उसकी चुत कभी संकुचित होती तो कभी मुक्त... वह महाराज के लंड को योनि प्रवेश का आहवाहन दे रही थी।
दोनों स्तन महाराज की हथेलियों से काफी बड़े थे... इसलिए उन्हे हाथों में भरना मुमकिन न था... महाराज उन साँवली चूचियों की त्वचा का हर हिस्सा चूमने और चाटने लगे... उस दौरान उनका लंड चन्दा की गीली चुत पर बार बार दस्तक भी दे रहा था...
चन्दा ने अपनी जांघों को फैलाया और महाराज की कमर को अपनी लंबी टांगों की गिरफ्त में ले लिया... महाराज का लंड अब उसकी गीली चुत के मुख पर दब गया... वह महाराज को योनि प्रवेश का संकेत देना चाह रही थी... इस बात का एहसास होते ही... महाराज ने अपनी कमर को हल्का सा ऊपर किया, अपने हाथ से लंड को पकड़ा और चन्दा की गरम चुत के मुख पर रखकर... जिस्म का सारा वज़न डाल दिया... एक ही पल में चन्दा की चुत ने महाराज को लंड को खुद में समा दिया।
अब शुरू हुआ झटकों का खेल.. महाराज धीरे धीरे धक्के लगाते हुए चन्दा के स्तनों के साथ खिलवाड़ कर रहे थे... उनके लंड के मध्यम कद का होने के कारण चन्दा को अपनी चुत में किसी खास हलचल की अनुभूति नहीं हो रही थी... पर फिर भी वह महाराज का सहयोग दिए जा रही थी...
जब महाराज के धक्कों की तीव्रता पर्याप्त महसूस ना हुई... तब चन्दा ने अपने मजबूत चूतड़ों से नीचे से धक्के लगाना शुरू कर दिया... उस मजबूत कदकाठी की स्त्री के हर धक्के पर महाराज का पूरा शरीर गेंद की तरह उछल पड़ता... कुछ ही पल की इस कसरत के बाद चन्दा को यकीन हो गया की इस तरह तो वह सुबह तक स्खलित नहीं हो पाएगी...
महाराज चन्दा के धक्कों पर उछलते रहे और उस दौरान दोनों निप्पलों को बारी बारी मुंह में भरकर चूसते रहे... महाराज को तो मज़ा आ रहा था पर चन्दा को ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों कोई छोटा बच्चा उसके जिस्म पर खेल रहा हो.. उस मजबूत काठी की महिला के चूल्हे में महाराज ने आग तो लगा दी थी... पर उसे बुझाने का गुदा महाराज के पास न था...
चन्दा के स्तनों को अपनी लार से लिप्त कर महाराजा ने उसके मोटे होंठों को चूसना शुरू किया... अपनी जीभ से चन्दा के दाँत, जीभ और तालु को चाटने लगे... चन्दा भी महाराज के इस चुंबन का योग्य अभिवादन कर रही थी... पर अब उसकी जांघों के बीच घमासान मचा हुआ था... उसने अपनी दोनों टांगों को एक के ऊपर एक रखकर चौकड़ी मार दी... ताकि महाराज के लंड का घर्षण उसकी चुत की दीवारों पर महसूस हो... आगे पीछे की हलचल अब महसूस तो हो रही थी पर धक्कों की गति और तीव्रता इतनी कम थी की चन्दा का चरमसीमा पर पहुंचना नामुमकिन सा था।
अब चन्दा से और बर्दाश्त ना हुआ... महाराज को उसी दशा में चूमते हुए वह उठी... महाराज के शरीर को छोटे बच्चे की तरह काँखों से पकड़कर उन्हे बिस्तर पर पीठ के बल लिटा दिया... अचानक हुई इस हरकत से महाराज भी स्तब्ध रह गए... पर चन्दा के इस विकराल रूप के सामने उन्होंने घुटने टेक दिए... अब साफ प्रतीत हो रहा था की चन्दा ने संभोग का नियंत्रण अपने हाथों मे ले लिया था...
महाराज के लेटे हुए जिस्म पर चन्दा खड़ी हो गई... और उनके शरीर के दोनों तरफ अपने पैर जमा लिए... चन्दा की स्तंभ जैसी दोनों जंघाओं के बीच कटे हुए झांटों में से उसकी चुत महाराज को देख रही थी... उसके ऊपर चन्दा के बड़े बड़े वक्ष... उनकी परिधि इतनी बड़ी थी की महाराज को चन्दा का चेहरा उसके मम्मों की आड़ में नजर भी नहीं आ रहा था।
चन्दा ने अपने घुटनों को मोड़ा... दो उंगलियों से चुत की फांक को चौड़ा किया... और महाराज के चेहरे पर रख दिया... महाराज ने उस काली चुत को चाटना तो शुरू कर दिया... पर उस विशाल शरीर के नीचे दबकर उनका दम घूंट रहा था... फिलहाल चन्दा को इसकी कोई परवाह नहीं थी... उसकी हवस अब उफान पर थी।
चन्दा की चुत द्रवित होकर अपने खारे पानी का अभिषेक महाराज के मुख पर कर रही थी... वह आगे पीछे होकर उनके मुख की सवारी करते हुए अपने बादामी रंग के भगांकुर को उंगलियों से रगड़ रही थी... उसकी हर रगड़ पर मुंह से सिसकी निकल जाती... कराहते हुए वह तेजी से आगे पीछे हुई जा रही थी...
अब कमलसिंह को सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी... पर चन्दा जंगली घोड़ी के सवार की तरह उनके मुंह पर हिले ही जा रही थी.. उसे रोक पाने में वह असमर्थ रहे... आखिर उन्होंने तड़पते हुए चन्दा की गांड में उंगली घुसा दी... सहसा हुए इस आक्रमण से चन्दा चरमसीमा पर पहुँच गई... उसका बदन थरथराने लगा... सिहरन के मारे उसकी चूचियाँ कांप रही थी... साँसे तेज चल रही थी... और उसके योनिरस का लेप महाराज के समग्र चेहरे पर लग गया था... कुछ झटके लगाने के बाद वह शांत हो गई... महाराज की जान में जान आई.. पर खेल अभी बाकी था...!!
अपनी चुत महाराज के चेहरे से हटाते ही वह हांफते हुए सांस लेने लगे... अगर कुछ देर तक और ये सवारी चली होती तो महाराज का जनाज़ा निकल जाता... चन्दा ने अपना जिस्म उठाया... थोड़ी सी पीछे हटी... और झुककर महाराज के लंड पर अपनी चुत फैलाकर बैठ गई...
यह स्थिति महाराज को काफी आरामदायक और आनंददायी लगी... अब वह चन्दा का पूरा नग्न जिस्म, उछलते हुए स्तन और उसकी मदहोश आँखों को देख सकते थे... साथ ही साथ उनके लंड पर भी मर्दन शुरू हो गया... हालांकि चन्दा का वज़न उनके टट्टों पर आते ही वह सिहर जाते।
चन्दा ने अब आव देखा न ताव... स्प्रिंग की तरह महाराज के लंड पर उछलती ही रही... कुछ ही क्षणों में महाराज की पिचकारी छूट गई... पर चन्दा को उसका एहसास तक ना हुआ... राक्षसी ऊर्जा के साथ वह दहाड़ती हुई ऊपर नीचे करती रही... झड़ चुके लंड पर अभी भी हो रही उछलकूद से महाराज को अब दर्द होने लगा था... उन्होंने हाथों से चन्दा को दो बार रोकने की कोशिश की पर तब ये एहसास हुआ की उसे रोकना महाराज के बस की बात नहीं थी.. यह तीर धनुष्य से छूट चुका था... और अब निशाने पर पहुंचकर ही दम लेगा...
उस उछलकूद में महाराज का लंड चन्दा की चुत से मुरझाकर बाहर निकल गया.. चन्दा को इससे कोई फरक न पड़ा... वह अब आगे पीछे होती हुई महाराज के अंडकोशों की खुरदरी त्वचा पर अपनी चुत रगड़ती रही... महाराज अब दर्द से बिलबिलाने लगे...
"अब बस भी करो चन्दा... " महाराज के स्वर में विनती का सुर साफ सुनाई पड़ रहा था... बस उनका हाथ जोड़ना ही बाकी था...
चन्दा महाराज के कहने पर रुकना तो चाहती थी पर वासना की जलती आग को अब रोकना मुश्किल था... काफी घिसाई के बावजूद जब चन्दा झड़ न पाई तब उसे महाराज की आजमाई तरकीब याद आई... उसने खुद अपना हाथ मोडकर अपनी एक उंगली गांड के छेद में डाल दी... पीछे दबाव पड़ते ही चन्दा की चुत ने फव्वारा मार दिया... महाराज की दोनों जांघें, लंड और अंडकोश चन्दा के योनिरस से भीग गए... कुछ देर तक उसी स्थिति में हांफते हुए बैठे रहने के बाद चन्दा बिस्तर पर ढेर हो गई...