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एक विचित्र-सा शांतिमय सन्नाटा राज के पूरे शरीर में फैला हुआ था....एक गहरे उन्माद के समान....कभी ऐसे ज्ञात होता जैसे वह हुआ था....वह गहरे उन्माद के समान....कभी ऐसे ज्ञात होता जैसे वह गहरी और मीठी नींद सो रहा हो कभी यों लगता कि वह जाग रहा है और जो कुछ दिखाई दे रहा था स्वप्न नहीं था वास्तविकता थी....उसके शरीर के नीचे सख्त और खुरदरी जमीन नहीं बल्कि नर्म और कोमल बिस्तर था। अर्धनिद्रा की सी दशा में उसने आंखें बन्द कर लीं। उसे यों अनुभव हो रहा था मानों वह अपने घर में नर्म और गुदगुदे बिस्तर पर सो रहा है.....उसके होंठों पर एक सांत्वना भरी मुस्कराहट फैल गई।
अचानक उसे अपने शरीर पर एक नर्म रेशमी सरसराहट-सी अनुभव हुई और उसने आंखें खोल दीं। एक साड़ी का आंचल उसके पास ही लटका हुआ था और नीचे गिरी हुई रजाई सरककर उसके शरीर पर आ गई थी। उसने आंखें खोलने का प्रयत्न किया किन्तु, फिर आनन्ददायक गर्मी उसके शरीर में फैल गई और उसने आंखें बन्द कर लीं....उसके मस्तिष्क पट पर कल्पना में एक चेहरा उभरा....कभी ऐसा लगता कि वह चेहरा संध्या का था और कभी उस लड़की का जिसने कुछ देर पहले उसे दवाई पिलाई थी....फिर इन्हीं चेहरों के साथ एक और चेहरा उभरा....यह चेहरा उस टैक्सी ड्राइवर का था जिससे उसकी झड़प हुई थी....किन्तु; वह टैक्सी ड्राइवर कहां था; यह तो जय का चेहरा था....नहीं टैक्सी-ड्राइवर....इसी विश्वास और सन्देह की खींचातानी में धीरे-धीरे वह गहरी नींद में खो गया।
कुछ ही क्षण बाद राज के कंधों से दो नर्म-नर्म हाथ टकराए और इन हाथों ने उसे करवट बदलने में सहायता दी....अजनबी ने आंखें खोल दीं....वही रात वाला चेहरा उसके सामने था।
“अब जाग जाइए और दवा पी लीजिए...” कांपते हुए होंठों से आवाज निकली।
राज जाग उठा। थोड़ी देर बाद वही लड़की एक प्याली में दूध लाई और दवाई वाली पुड़िया खोलकर राज के मुंह में डालना ही चाहती थी कि राज ने कराह कर कहा, “ठहरो....मैं बैठ जाऊं।”
लड़की ने दूध की प्याली और दवाई की पुड़ियो को मेज पर रखा और उठकर बैठने में राज की सहायता की....उसकी पीठ से तकिया लगा दिया फिर अपने हाथ से उसने दवाई राज के मुंह में डाली और दूध का प्याला उसके होंठों से लगा दिया। राज जब दूध पी चुका तो लड़की ने तौलिए से उसका मुंह साफ किया और बोली, “अब लेट जाइए....”
“नहीं...” राज ने कमजोर आवाज में कहा, “लेटे-लेटे उकता गया हूं....”
“अब आपका ताप भी हल्का है....लड़की ने राज का माथा छू कर कहा, “शाम तक तीनों पुड़ियां खा लेंगे तो बिल्कुल उतर जाएगा....”
“मुझे यहां कौन लाया?” राज ने लड़की को ध्यान से देखते हुए पूछा।
“भैया उठाकर लाए थे....आप गली में बेहोश होकर गिर गए थे....”
“वह टैक्सी ड्राइवर तुम्हारा भाई है?”
“हां...चन्दर मेरा भाई ही है....मेरा नाम सुषमा है। मैं ट्यूशन करके लौट रही थी...रास्ते में एक गुण्डे ने मुझसे अशिष्टता करना चाही....आपने मुझे बचा लिया था....फिर आप बेहोश हो गए थे।”
“मैंने बचा लिया था?” राज ने आश्चर्य से पूछा।
“हां....आप उस समय अर्ध-चेतना की दशा में थे...रात वैद्य जी आपको देखने आए थे....कह रहे थे आपने दो तीन दिन से कुछ नहीं खाया।”
“बहुत कुछ खाया-पिया था इन दो तीन दिनों में...” राज फीकी-सी मुस्कराहट के साथ बोला, “अपने खून के धक्के.... अपने प्यार के धक्के....दूसरों की स्वार्थता...हवा और मिट्टी....कितना कुछ तो खाया है.....जो चीजें जीवन के चौबीस वर्षों में नहीं खाई वे अड़तालीस घण्टों में खाने को मिल गईं....”
“ओह....” सुषमा ने राज को ध्यान से देखते हुए सहानुभूति प्रकट की, “आप बहुत दुखी जान पड़ते हैं....”
“दुखी.....हूं....” राज गर्दन झटक कर बोला, “दुखी उसे कहते हैं जो सिर पर चोट खाए घाव दबाए बैठा हो....आज तक मैंने अपना जीवन व्यर्थ गंवाया है....किन्तु; आज से मेरे जीवन का उद्देश्य आरम्भ होता है....जो दुख मेरे पास एकत्र हुए हैं, उन्हें सुरक्षा से रखूंगा और एक दिन उन्हीं लोगों को बांटूंगा जिन्होंने ये दुख मुझे दिए हैं....” यह कहते-कहते राज की आंखों में अंगारे से सुलगने लगे.....उसके चेहरे पर एक भयानक निश्चय की रोशनी छा गई।
अचानक उसे अपने शरीर पर एक नर्म रेशमी सरसराहट-सी अनुभव हुई और उसने आंखें खोल दीं। एक साड़ी का आंचल उसके पास ही लटका हुआ था और नीचे गिरी हुई रजाई सरककर उसके शरीर पर आ गई थी। उसने आंखें खोलने का प्रयत्न किया किन्तु, फिर आनन्ददायक गर्मी उसके शरीर में फैल गई और उसने आंखें बन्द कर लीं....उसके मस्तिष्क पट पर कल्पना में एक चेहरा उभरा....कभी ऐसा लगता कि वह चेहरा संध्या का था और कभी उस लड़की का जिसने कुछ देर पहले उसे दवाई पिलाई थी....फिर इन्हीं चेहरों के साथ एक और चेहरा उभरा....यह चेहरा उस टैक्सी ड्राइवर का था जिससे उसकी झड़प हुई थी....किन्तु; वह टैक्सी ड्राइवर कहां था; यह तो जय का चेहरा था....नहीं टैक्सी-ड्राइवर....इसी विश्वास और सन्देह की खींचातानी में धीरे-धीरे वह गहरी नींद में खो गया।
कुछ ही क्षण बाद राज के कंधों से दो नर्म-नर्म हाथ टकराए और इन हाथों ने उसे करवट बदलने में सहायता दी....अजनबी ने आंखें खोल दीं....वही रात वाला चेहरा उसके सामने था।
“अब जाग जाइए और दवा पी लीजिए...” कांपते हुए होंठों से आवाज निकली।
राज जाग उठा। थोड़ी देर बाद वही लड़की एक प्याली में दूध लाई और दवाई वाली पुड़िया खोलकर राज के मुंह में डालना ही चाहती थी कि राज ने कराह कर कहा, “ठहरो....मैं बैठ जाऊं।”
लड़की ने दूध की प्याली और दवाई की पुड़ियो को मेज पर रखा और उठकर बैठने में राज की सहायता की....उसकी पीठ से तकिया लगा दिया फिर अपने हाथ से उसने दवाई राज के मुंह में डाली और दूध का प्याला उसके होंठों से लगा दिया। राज जब दूध पी चुका तो लड़की ने तौलिए से उसका मुंह साफ किया और बोली, “अब लेट जाइए....”
“नहीं...” राज ने कमजोर आवाज में कहा, “लेटे-लेटे उकता गया हूं....”
“अब आपका ताप भी हल्का है....लड़की ने राज का माथा छू कर कहा, “शाम तक तीनों पुड़ियां खा लेंगे तो बिल्कुल उतर जाएगा....”
“मुझे यहां कौन लाया?” राज ने लड़की को ध्यान से देखते हुए पूछा।
“भैया उठाकर लाए थे....आप गली में बेहोश होकर गिर गए थे....”
“वह टैक्सी ड्राइवर तुम्हारा भाई है?”
“हां...चन्दर मेरा भाई ही है....मेरा नाम सुषमा है। मैं ट्यूशन करके लौट रही थी...रास्ते में एक गुण्डे ने मुझसे अशिष्टता करना चाही....आपने मुझे बचा लिया था....फिर आप बेहोश हो गए थे।”
“मैंने बचा लिया था?” राज ने आश्चर्य से पूछा।
“हां....आप उस समय अर्ध-चेतना की दशा में थे...रात वैद्य जी आपको देखने आए थे....कह रहे थे आपने दो तीन दिन से कुछ नहीं खाया।”
“बहुत कुछ खाया-पिया था इन दो तीन दिनों में...” राज फीकी-सी मुस्कराहट के साथ बोला, “अपने खून के धक्के.... अपने प्यार के धक्के....दूसरों की स्वार्थता...हवा और मिट्टी....कितना कुछ तो खाया है.....जो चीजें जीवन के चौबीस वर्षों में नहीं खाई वे अड़तालीस घण्टों में खाने को मिल गईं....”
“ओह....” सुषमा ने राज को ध्यान से देखते हुए सहानुभूति प्रकट की, “आप बहुत दुखी जान पड़ते हैं....”
“दुखी.....हूं....” राज गर्दन झटक कर बोला, “दुखी उसे कहते हैं जो सिर पर चोट खाए घाव दबाए बैठा हो....आज तक मैंने अपना जीवन व्यर्थ गंवाया है....किन्तु; आज से मेरे जीवन का उद्देश्य आरम्भ होता है....जो दुख मेरे पास एकत्र हुए हैं, उन्हें सुरक्षा से रखूंगा और एक दिन उन्हीं लोगों को बांटूंगा जिन्होंने ये दुख मुझे दिए हैं....” यह कहते-कहते राज की आंखों में अंगारे से सुलगने लगे.....उसके चेहरे पर एक भयानक निश्चय की रोशनी छा गई।