श्रृष्टि की गजब रित

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अगले दिन जब श्रृष्टि दफ्तर पहुंची तो उसका चेहरा खिला हुआ था। भीतर ही भीतर श्रृष्टि प्रफुल्लित महसूस कर रहीं थीं।

जिसे देखकर साक्षी समझ गई कि इसका कारण क्या हों सकता हैं फिर भी वो बार बार श्रृष्टि से पूछ रहीं थीं और श्रृष्टि बाद में बताऊंगी कहकर टाल दे रहीं थीं।

धीरे धीरे वक्त बीता लेकिन श्रृष्टि को राघव अभी तक नहीं दिखा। तब राघव से मिलने चली गईं। वहा राघव के जगह किसी ओर को बैठा देखकर चौक गई और बिना कुछ बोले वापिस आ गईं। वापस आकर साक्षी से पुछा तो साक्षी ने बता दिया की राघव कुछ दिनों के लिए बहार गया हैं।

राघव की न होने की बात जानकर श्रृष्टि को अफसोस हों रहा था। इसलिए उसने अपना मोबाइल निकला और एक msg राघव को भेज दिया फिर अपना काम करने लग गईं।

अभी कुछ ही वक्त बीता था कि "सूना है कोई नई नई आई हैं जिसकी खूब चर्चे हों रहीं हैं" की आवाज वहा गुंजा।

बोलने वाले शख्श को देखकर श्रृष्टि फ़िर से चौक गईं और साक्षी सहित बाकि सभी लोग उसे देखकर औपचारिक बाते करने लग गए मगर बातों के दौरान वह शख्स श्रृष्टि को देखकर कमीनगी मुस्कान से मुस्कुरा रहा था और अपने होठों पर जीभ फिराकर सूखे होंठो को गीला कर रहा था।

यह देखकर श्रृष्टि का हावभाव बदल गया जहां वो खुशी से चहक रहीं थी पल भर में उसकी खुशी गुस्से में बदल गई और मुट्ठी को सकती से भींचे खड़ी थीं।

वह शख्स कुछ कदमों का फैंसला तय करके श्रृष्टि के पास गया और उसके सिर से पाव तक नज़रे फेरकर बोला...बड़ा ही खिला खिला फूल लग रही हों वैसे बता सकती हो किस भंवरे ने रस चूस कर कली से फूल बना दिया।

इन शब्दों का मतलब वह मौजद एक एक शख्स समझ गया था और श्रृष्टि का गुस्सा आसमान को छू गया। दोनों मुठ्ठी को शक्ति से भीचे दांत किटकिटाते हुए बोलीं... अरमान सर तमीज से बात करना सीख लिजिए आपके बहुत काम आएगा। खासकर किसी लड़की से, किसी लङकी के बारे में कुछ भी बोलने से पहले जानकारी ले लेना चहिए। एक वो राघव सर हैं जो सभी से कितने सलीके से पेश आते है एक आप हों जिसे तमीज से सख्त परहेज हैं।

अरमान... राघव मेरा भाई तो है पर सगा नहीं सौतेला इसलिए मेरा उससे कोई सरोकार नहीं हैं और तमीज की बात तू न ही करें तो बेहतर हैं। भूल गई मॉल वाली बात।

श्रृष्टि... भूली नहीं वहा भी बदतमीजी आप ही ने किया था इसलिए तो...।

"अरमान राघव सर नहीं हैं इसका मतलब ये नहीं की तू किसी के साथ बदतमीजी करेगा।" श्रृष्टि की बातों को बीच में कटकर साक्षी बोलीं

"तू मेरी दोस्त है या राघव की चमची भूल गई मेरे ही कारण तूझे यहां नौकरी मिली थी।" अरमान साक्षी की और बढ़ते हुए बोला

साक्षी... हां ये सच हैं की नौकरी तेरे कारण मिली थी। लेकिन यहां टिकी हुई हूं तो सिर्फ मेरे टैलेंट के कारण अब तू यहां से जाता हैं कि राघव या फिर तिवारी सर को फ़ोन करू।

तिवारी का नाम आते ही अरमान वहा से खिसक लिया मगर जाते जाते श्रृष्टि को बोला... मॉल में जो किया था उसका बदला तो मैं तेरे से लेकर रहूंगा। भारी भीड़ में मुझे बेइज्जत किया था न देख अब मैं तेरा क्या हस्र करता हूं।

जारी रहेगा...
 
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भाग - 35


अरमान बोलकर चला गया और साक्षी सहित सभी श्रृष्टि को अचंभित होकर देखने लग गए। जहां श्रृष्टि गुस्से में फुफकार रहीं थीं। ये देख साक्षी एक गिलास पानी श्रृष्टि को दिया। जिसे पीकर श्रृष्टि का गुस्सा कुछ कम हुआ तब साक्षी बोली... श्रृष्टि तूने ऐसा किया क्या था? जिसका बदला अरमान तुझसे लेना चाहता हैं।

श्रृष्टि... जिस दिन मैं यह साक्षत्कार देने आई थी उससे एक दिन पहले की बात हैं। मैं और समीक्षा शॉपिंग पर गए थे। जब हम बिल काउंटर पर बिल पे कर रहे थे। तभी ये हरामी मेरे पीछे हाथ रख दिया सिर्फ रखा ही नहीं दा…(आस पास देखकर वो पूरा नहीं बोली रूक गई कुछ देर रूकने के बाद आगे बोली) तब मैंने इसे खीच कर दो तीन करारे थप्पड़ जड़ दिऐ...थे।

"क्या थाप्पड जड़ दिया।" श्रृष्टि की बातों को बीच में कटकर चौकते हुए साक्षी बोलीं तू ऐसा भी कर सकती है मुझे ऐसा अंदाजा नहीं था|

"साक्षी मैम इसमें चौकने की कोई बात नही है अरमान सर ने हरकते ही ऐसा किया था।" एक सहयोगी बोला

"राघव सर के होते हुए भी दफ्तर में सभी से बदतमीजी से पेश आता है। तो बाहर तो पता नहीं किया किया करता होगा।" एक और साथी बोला

शिवम... श्रृष्टि मैम आपने सही नाम दिया हरामी साला कमीना कहीं का जहां राघव सर सभी से कितने तमीज से पेश आते है। चाहें वो सफाई वाला ही क्यों न हों और ये हरामी सभी से ऐसे पेश आता है जैसे कीड़ा मकौड़ा हों। महीनों से नहीं था तो सभी शान्ति से रह रहे थे अब आ गया है पता नहीं क्या क्या करेगा और श्रृष्टि मैम आप जरा बचकर रहना।

श्रृष्टि... बचकर किया रहना ज्यादा बदतमीजी करेगा तो अच्छे से उसके गालों को छैंक दूंगी।

साक्षी…मैं वो नौबत ही नहीं आने दूंगी। अभी राघव सर को फ़ोन करके बताती हूं।

"नहीं साक्षी अभी रहने दे वो काम से गए हैं। ऐसी बातें जानकर बहुत परेशान हों जायेंगे।" साक्षी को रोकते हुए श्रृष्टि बोलीं

साक्षी... ओ हो बड़ी फिक्र है उनकी हां होनी भी चहिए उनकी मा…(आस पास देखकर माशूका पूरा नहीं बोलीं फिर कुछ देर रूक कर आगे बोलीं) चल आज रहने देती हूं आगे इसने परेशान किया तो मैं किसी की नहीं सुनुगी।

इसके बाद सभी काम में लग गए। लंच के वक्त सभी खाना खा रहे थे तभी श्रृष्टि का फ़ोन बजा स्क्रीन पर नाम देखकर मुस्कुरा दिया फ़िर वॉल्यूम बटन दबाकर फोन को साइलेंट कर दिया। उसके बाद कई बार फ़ोन बजा हर बार श्रृष्टि ने ऐसा किया।

कुछ देर बाद साक्षी का फ़ोन बजा तो साक्षी फोन लेकर साईड में चली गई फिर फ़ोन रिसीव करके बोलीं... हां सर बोलिए।

"ये श्रृष्टि फ़ोन क्यों नहीं रिसीव कर रही हैं। पहले तो खुद msg करती है सॉरी सर आप कब आ रहे हो जल्दी से आना मेरे पास आपके लिए एक सरप्राइस है। अब कॉल कर रहा हूं तो रिसीव नहीं कर रहीं हैं।"

साक्षी... आपकी माशूका है आप ही जानो कॉल क्यों रिसीव नहीं कर रहीं हैं। वैसे ये सॉरी क्यों बोला और सरप्राइस क्या देने वाली हैं।

"सॉरी क्यों बोला ये आकर बता दूंगा। लेकिन सरप्राइस क्या है ये श्रृष्टि ही जानें वैसे मुझे कुछ कुछ अंदाजा है।"

साक्षी...नॉटी बॉय कल ही प्रपोज किया और इतनी जल्दी बड़ी...।

"हट पगली कुछ भी सोचती है। मैं रखता हूं।" इतना बोलकर कॉल काट दिया।

इसके बाद साक्षी श्रृष्टि के पास गई और उससे पूछने लगी की वो राघव का कॉल क्यों रिसीव नहीं कर रहीं हैं। सॉरी क्यों बोला और सरप्राइस क्या देने वाली हैं। उसकी एक ऊँगली श्रुष्टि के पेट की तरफ बढाते हुई तो श्रुष्टि ने उसकी ऊँगली को वाही टोक दिया और इशारे से समझाया की जगह सानुकूल नहीं है तो उसने भी टाल दिया ये कह कर की बाद में बताएगी।
 
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राघव को गए लगभग एक हफ्ता हों चुका था। इन एक हफ्ते में अरमान दफ्तर आने के बाद कुछ देर काम करता कभी नहीं करता फिर जा पहुंचता श्रृष्टि लोगों के पास वहां पहुंचते ही शुरू हो जाता।

उसके निशाने पर सिर्फ और सिर्फ श्रृष्टि ही थी। उसके साथ वाहियात हरकते करता बदजुबानी करता कभी कभी तो श्रृष्टि को यह वहा छूने की कोशिश करता और हर बार श्रृष्टि उसके वाहियात हरकतों के लिए जी भरके सूना देती लेकिन अरमान पे कोई असर ही नहीं होता।

आज भी अरमान वहां पहोचा और चुपके से द्वार खोलकर भीतर गया जहां सभी अपने अपने काम में मग्न थे और श्रृष्टि खड़ी थी। उसका ध्यान प्रोजेक्टर पर था।

अरमान धीरे से श्रृष्टि के पास पहोचा और एक हाथ से उसके नितंब की गोलाई नाप ने की नकार कोशिश की कुछ ही देर में एक झन्नाटेदार थाप्पड़ अरमान को हिला दिया उसके बाद तो एक के बाद एक कई थाप्पड़ अरमान के गालों का मस्त छिकाईं कर दिया फ़िर श्रृष्टि चीखते हुए बोलीं...तुझ जैसा गिरा हुआ इंसान मैंने आज तक नहीं देखा तूझे पैदा करने वाले भी तेरे जैसा कमीना होगा तभी तुझ जैसा जलील पैदा हुआ। जिसे कितनी भी गालियां दे लो फर्क ही नहीं पड़ता।

"तेरी तो..मा की चु.....।" बस इतना ही अरमान ने बोला था की एक और झन्नाटेदार थाप्पड़ उसके गालों को हिला दिया। इस बार थप्पड़ मरने वाली साक्षी थीं।

साक्षी... तू तो जानवर कहलाने के लायक भी नहीं उन्हें एक बार डांटो फटकारों तो कहना मान लेते है मगर तू.. तू तो उनसे भी गया गुजरा हैं जिस पर किसी भी बात का फर्क हैं नहीं पड़ता।

अरमान आगे कुछ बोलता उसे पहले दूसरे सहयोगी में से एक बोला...अरमान आज तूने हद पर कर दिया। अब तू चुप चाप निकल जा वरना हम भूल जायेंगे की तू यहां का मालिक हैं। और एक कुत्ते से बदतर बन कार बाहर जाएगा

शिवम...अरे कहां भेज रहा है पकड़ इसे आज इसे चप्पल की माला पहनाकर दफ्तर में मौजूद सभी लड़कियों के पैर चटवाएंगे।

माहौल बिगड़ता देख अरमान खिसक लेना ही बेहतर समझा और श्रृष्टि धम से वहा बैठ गई और सुबकने लग गई।

साक्षी ने मोर्चा संभाला और श्रृष्टि को दिलासा देने लग गईं। कुछ देर बाद श्रृष्टि खड़ी हुई और बोलीं... मैं आज ही इस्तीफा देखकर यहां का जॉब छोड़ दूंगी मुझे ऐसे जगह काम नहीं करना जहां अरमान जैसे जलील लोग हो उसे उसकी इज्जत की फिक्र नहीं पर मुझे मेरी इज्ज़त सब से प्यारी हैं।

साक्षी... श्रृष्टि मेरी बात सुन इस बारे में राघव सर को कुछ भी पता नहीं पहले उन्हें बताते हैं। अगर उन्होंने अरमान पर कोई एक्शन नहीं लिया तो सिर्फ तू ही नहीं हम सभी इस्तीफा दे देगें।

इसके बाद तो एक एक करके सभी साक्षी की कही बात दोहराया फ़िर श्रृष्टि मान गई तब साक्षी ने राघव को फोन करके वहां क्या क्या पिछले कुछ दिनों में हुआ सभी बता दिया साथ ही इसकी शुरुआत कब से हुआ यह भी बता दिया।

राघव सभी बाते सुनते ही गुस्से में तिलमिला उठा और बोला... साक्षी फोन श्रृष्टि को दो।

साक्षी ने फोन श्रृष्टि के कान में लगा दिया और राघव बोला... श्रृष्टि मैं अभी यहां से निकल रहा हूं। घर पहुंचते ही पहले अरमान का बो हांल करुंगा की जिदंगी भर किसी भी लङकी के साथ बदसलूकी नहीं करेगा। बस तुम मुझे छोड़कर मत जाना।

इतना बोलकर राघव ने फोन काट दिया फिर साक्षी बोलीं... श्रृष्टि सर क्या बोले

श्रृष्टि... सर बोल रहे थे वो अभी वहा से निकल रहें हैं और कह रहें थे मुझे….।

आगे पूरा नहीं बोलीं बस इतने में ही चुप हों गई और साक्षी उसके कहने का मतलब समझकर मुस्कुरा दिया फ़िर कुछ देर में सब सामान्य हो गया।

जारी रहेगा….

 
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मित्रो शायद अगला भाग अंतिम रहेगा

कुछ घटनाओं को कम करके कहानी को ख़तम करते है

पढ़िएगा जरुर
 
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भाग - 36


शाम को करीब चार बजे राघव घर पहुंचा। घर पर तिवारी उस वक्त बैठक में बैठें दिन भर के घटनाओं का विवरण न्यूज चैनल से ले रहे थे। राघव को इतनी जल्दी आया देखकर तिवारी बोला... राघव तेरा काम हों गया।? इतनी जल्दी ?? तुमने तो काफी दिन मांगे थे !!!!!!!!!!

राघव...नहीं पापा बीच में छोड़कर आया हूं।

तिवारी... क्या.. पर क्यों।?

राघव...बता दुंगा पहले आप मेरे सौतेले भाई और सौतेली मां को बाहर बुलाइए।

दांत पीसकर राघव बोला था। जिसे देख तिवारी भी हैरान रह गए क्योंकि राघव कभी इस तरह से बरखा और अरमान के लिए सौतेला नहीं बोला था। तिवारी आगे कुछ बोलता उसे पहले ही अरमान बरखा के कमरे से निकलकर बाहर आया। उसे देखते ही राघव दोनों मुठ्ठी बीचे अरमान की और बढ़ गया और एक खीच के जड़ दिया। बस चटक और अहहा की आवाज निकला और उसके बाद एक और पड़ा। अरमान कुछ बोलने के लिए मुंह खोलता तब एक और पड़ता जितनी बार मुंह खोला उतनी बार झन्नाटेदार थाप्पड पड़ा।

यह देख तिवारी हैरान रह गए कि आज राघव को हो क्या गया। तिवारी उठाकर राघव को रोकने के लिए आगे बढे उधर से बरखा भी कमरे से बाहर निकलकर आई और अरमान को थप्पड पडते देख बोलीं... क्यों मेरे बेटे को मार रहा हैं घर आते ही पगला गया हैं जो इसे मारे जा रहा हैं।

तिवारी... हां क्यों मार रहा हैं।

"क्यों मार रहा हूं ये इससे पूछो... पूछो इससे आज दफ्तर में क्या करके आया।" दांत पीसते हुए राघव बोला

दफ्तर की बात सुनते ही बरखा से छूटकर अरमान भागने को हुआ की राघव ने उसे पकड़कर एक ओर झन्नाटेदार थाप्पड जड़ दिया फिर बोला... तूझे भागना है जरूर भागना और साथ में अपनी मां को लेकर हमेशा के लिए इस घर से भाग जाना लेकिन जाने से पहले अपनी कारस्तनी बता दे ताकि तेरी मां बरखा को पता तो चले उन्हें घर से क्यों निकाला जा रहा हैं।

बरखा... मैं क्यों जाऊंगी न मेरा बेटा कहीं जायेगा जाना हैं तो तू जा।

राघव... कैसे नहीं जाओगे तुम्हारे बाप ने दहेज में दिया था जो डेरा जमाए बैठे हों।?

राघव की बाते सुनते ही बरखा दांत पीसकर रह गई और तिवारी बोख्लाते हुए बोले...राघव पहले बता तो दे क्या हुआ फिर मैं फैंसला करुंगा की इन्हें घर से निकलना है कि किया करना हैं।

राघव... पापा ये कमीना बरखा का बेटा मेरा सौतेला भाई पिछले कुछ दिनों से श्रृष्टि के साथ बदसलूकी कर रहा था आज इसने इतनी नीच हरकत किया कि श्रृष्टि ने इसे थाप्पड मार दिया सिर्फ आज ही नहीं इससे पहले भी एक बार इसे मॉल में भीड़ के बीच थप्पड मारा था और जब श्रृष्टि को दफ्तर में देखा तब से ये नीच उससे बदला लेने की बात कहा कर रोज उसके साथ बदसलूकी करने लगा। आज सभी कर्मचारियों ने उसे मार ने की ठान ली थी अब बताओ मै और आप किस मुह से ऑफिस जा पायेंगे ???

अरमान के कर्म सुनते ही तिवारी बौखला गया और कुछ कदम आगे बढ़कर अरमान को कई थाप्पड मारा फिर चीखते हुए बोला... नीच आज तूने साबित कर दिया तू सच में मेरा सौतेला बेटा हैं। तूझे मेरी इज्जत की जरा भी परवाह नहीं जिन हरकतों की वजह से राघव ने DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप से पार्टनरशिप तोडकर करोड़ों का नुकसान उठाया किस लिए सिर्फ इसलिए कि मेरी और कम्पनी की साख पर कोई दाग न लगे और आज तूने वही हरकत हमारे ही दफ्तर में काम करने वाली एक लङकी के साथ करके मेरी बनी बनाई साख को धूमिल कर दिया।

कुछ देर की चुप्पी छाया रहा फ़िर चुप्पी को तोड़ते हुए तिवारी बोला...बरखा आज इसने जो किया ये सब तुम्हारी परवरिश का नतीजा है अच्छा हुआ जो तुम राघव से नफरत करती थी वरना तुम्हारी परवरिश पाकर राघव भी इसके जैसा हों जाता।

बरखा... आप मेरे परवरिश पे दाग न लगाएं मैंने इसे कोई गलत परवरिश नहीं दिया।

तिवारी...चलो माना तुमने इसे गलत परवरिश नहीं दिया फिर इसके अंदर ये गुण आया कहा से जरूर ये इसकी पैदासी गुण होगा और इसके बाप से इसे विरासत में मिला होगा। बरखा अब मैं तुम दोनों मां बेटे को ओर नहीं झेल सकता तुम दोनों ने मेरे और राघव के जीवन में बहुत जहर घोल लिया अब और नहीं तुम दोनों अपना बोरिया बिस्तर समेटो और फौरन निकल जाओ।

बरखा... पर..।

तिवारी... पर वर कुछ नहीं जीतना बोला हैं उतना करो। और हां अब मुज से कुछ भी उम्मीद मत रखना जो दिया है वो भी छीन लूँगा

अरमान... मां चलो इनको तो बाद में देख लेंगे कोर्ट में घसीटकर इनकी नाक न रगड़वाया फ़िर बताना।

इतना बोलते ही राघव ने एक झन्नाटेदार थप्पड जड़ दिया फ़िर बोला... चल जा तूझे जो करना हैं कर लेना। रही बात नाक रगड़वाने की वो तो मैं तेरा रगड़वाऊंगा वो भी बीच सड़क पर अब निकल इस घर से यहां का दाना पानी तेरे लिए बंद हों चुका हैं।

तिवारी... बरखा इससे बोलों चुप रहे और कोर्ट में घसीटने की बात न करें नहीं तो इसे बहुत बुरे दिन देखना पड़ेगा।

बरखा... आप हमारे साथ जो कर रहें हो सही नहीं कर रहे हों इसका भुगतान आपको करना पड़ेगा। चल अरमान अब इन दोनों बाप बेटे को सबक सीखाकर ही रहेंगे।

इतना बोलकर अरमान को साथ लिए बरखा बहार की और चल दिया और तिवारी बोला... बरखा मैं भी देखना चाहुंगा की तुम मुझे क्या सबक सिखाती हो।
 
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कुछ देर की खामोशी छाई रहीं फिर तिवारी ने पानी लाने को कहा तभी राघव को कुछ याद आया और वो बोल…पापा श्रृष्टि के साथ DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप में ऐसा कुछ हुआ था जिसके कारण उसने वहा का जॉब छोड़ दिया था आज फ़िर उसके साथ वैसा ही सलूक हुआ कहीं वो यहां का जॉब भी न छोड़ दे अगर जॉब छोड़ दिया। तो मेरा क्या होगा?

तिवारी..तेरा क्या होगा ... कहीं ये वोही लड़की तो नही जिससे...।

राघव... हां पापा श्रृष्टि वोही लड़की है जिससे मैं प्यार करता हूं।

तिवारी... मेरे तो ध्यान से उतर गया था तूझे पहले बोलना चहिए था। चल अभी उसके घर चलते हैं। आज दफ्तर में जो हुआ उसके लिए उससे माफी मांग लूंगा और आज ही उसके घर वालों से रिश्ते की बात कर लूंगा।

राघव... पर पापा...l

बस इतना ही बोला फिर साक्षी को कॉल लगा दिया उससे बात करने के बाद राघव बोला... चलो पापा

(नोट:- कुछ पाठकों को लग रहा होगा कि लड़के वाले कैसे लड़की वालों से बात करने जा रहा हैं जबकि लड़की वाले खुद बात करने आते हैं तो मैं इस पर सिर्फ इतना ही कहुंगी कि दूसरे संप्रदाय में क्या होता हैं मै नहीं जानती लेकिन बंगाली संप्रदाय में ऐसा ही होता हैं मै उसी आधार पर लिख रही हूं

और हां अब ज़माना बदल गया है अब तो लड़का और लड़की खुद ही अपना साथी ढूँढ लेते है | मा बाप को तो सिर्फ आशीर्वाद देना होता है . ये भी जान ले अब बहोत कुछ बदल रहा है यु कहो की पूरा समाज बदल रहा है या बदल गया है)

दोनों बाप बेटे घर से चल पड़े। कुछ ही देर में राघव के मोबाइल में एक msg आया। जिसमे एक एड्रेस था। राघव उस एड्रेस को गूगल मैप में फीड किया और उसी रास्ते पर कार को दौड़ा दिया।

कुछ देर में राघव वहा पहुंचा गया। जहां से श्रृष्टि के घर की गली में घुसना था। उस गली में घुस तो गया पर ठीक लोकेशन वाला घर ढूंढ नहीं पा रहा था। कुछ देर इधर उधर भटकने के बाद किसी से पूछकर सही ठिकाना श्रृष्टि के घर के पास पहुंच गया।

राघव ने द्वार घंटी बजाया और कुछ देर बाद द्वार खुला द्वार खोलने वाले को देखकर राघव मुस्कुरा दिया क्योंकि सामने श्रृष्टि ही खड़ी थीं। राघव के साथ एक बुजुर्ग को देखकर श्रृष्टि ने उन्हें प्रणाम किया फिर दोनों को अंदर आने का रास्ता दिया।

"श्रृष्टि बेटा कौन आया हैं।" माताश्री जानकारी लेते हुए बोलीं

अब श्रृष्टि के लिए दुविधा ये थीं राघव को तो जानती थी पर उसके साथ आए शख्स को नहीं पहचानती थी तब राघव धीरे से बोला "मेरे पापा हैं।" ये सुनकर श्रृष्टि मुस्कुराते हुए बोलीं... मां सर और उनके पापा आए है। श्रुष्टि ने तिवारी जी के पैर छुए और एसा कर की एक इशारा राघव को दे ही दिया| अब अपने आप को रोक पाना भी तो मुश्किल था |



इसके बाद सभी अंदर आए। औपचारिक बातों के दौरान तिवारी माताश्री को गौर से देख रहे थे। जैसे उन्हें पहचानने की कोशिश कर रहें हों। जब पहचान नहीं पाए तो तिवारी बोला…आप को कहीं तो देखा हैं। जाना पहचाना लग रही हों पर याद नहीं आ रहा है आपको कहा देखा हैं।

तिवारी की बाते सुनकर माताश्री ऐसे मुस्कुराई जैसे वो जानती है तिवारी ने उन्हें कहा देखा हैं पर बताना नहीं चाहती हों। बहरहाल तिवारी की बातों का जवाब देते हुए माताश्री बोलीं... मैं इसी शहर के मशहूर *** कॉलेज में आध्यपिका हूं शायद अपने वहीं देखा होगा। (फ़िर श्रृष्टि से बोलीं) श्रृष्टि बेटा इनके लिए चाय नाश्ते का प्रबंध करो।

तिवारी मना करने लगें। लेकिन माताश्री ने अपना तर्क देकर श्रृष्टि को चाय नाश्ते का प्रबंध करने भेज दिया। एक नज़र राघव को देखकर मुस्कुरा दिया फ़िर श्रृष्टि रसोई की और चली गई फ़िर तिवारी मुद्दे पर आते हुए बोले...देखिए मेडम जी मैं ज्यादा घुमा फिरा कर बात नही करूंगा राघव कह रहा था वो आपके बेटी से प्यार करता है और शायद श्रृष्टि बिटिया भी उससे प्यार करती हैं।

"जी मैं भी ये बात जानती हूं श्रृष्टि भी मूझसे यहीं कह रहीं थीं कि वो भी आपके बेटे से प्यार करती हैं।" और हां मेरा नाम मनोरमा है आप मुझे मेडम ना कहे

तिवारी... जब दोनों एक दूसरे से प्यार करते है तो हमें बीच में दीवार बनके कोई फायदा नहीं है दोनों को एक कर देने में ही भलाई हैं।

"केह तो आप सही रहें हो फ़िर भी कुछ बाते हैं जो आपको जान लेना चहिए उसके बाद ही कुछ फैसला आप ले तो ही बेहतर होगा।"

दोनों के बिच की बाते चल ही रही थी कि श्रृष्टि चाय लेकर आ गई। एक एक करके सभी को चाय दिया जब राघव को चाय दे रहीं थीं तो कुछ पल के लिए दोनों की निगाह एक दूसरे में अटक गई फिर श्रृष्टि खुद ही शर्माकर अपना निगाह हटा लिया और अपने निर्धारित जगह बैठ गई। तब तिवारी बोला... श्रृष्टि बेटा आज दफ्तर में जो हुआ उसके लिए हमे खेद हैं। मैं नहीं जानता था अपने ही घर में एक सपोला पाल रखा हैं जो सरेआम मेरी इज्जत उछलता फिरता हैं। अब जो हों गया उसे तो बदल नहीं सकता पर तुमसे माफ़ी तो जरूर मांग...।

"सर आप माफी न मांगे आप मेरे पिता के उम्र के है। इसलिए आप माफी मांगकर मुझे शर्मिंदा न करें।" बीच में रोकते हुए श्रृष्टि बोलीं

श्रृष्टि की बाते सुनके वह मौजूद सभी मुस्कुरा दिए और श्रृष्टि नज़रे झुका लिया। इसके बाद सभी चाय पीने लगे चाय पीने के दौरान राघव बोला... माजी मुझे श्रृष्टि से कुछ बात करना हैं। क्या मैं कर सकता हूं?

"हां क्यों नही श्रृष्टि बेटा चाय खत्म करके अपने सर से बात कर लो सुनो वो क्या कहना चाहते हैं।"

चाय पीने के बाद श्रृष्टि राघव को लेकर छत पर चली गई। दोनों के जाते ही तिवारी... हां तो मनोरमाजी आप कुछ कह रहे थे।
 
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देखिए बात आगे बढ़ाने से पहले कुछ बाते हैं जो आपको जान लेना चहिए क्या है कि मैं एक तलाक सुदा हूं और श्रृष्टि जब लभभग चार साल की थी तब से मैं मेरे पति से अलग रहा रहीं हूं।"

तभी डोरबेल बजी और मनोरमा ने दरवाजा खोला तो सामने साक्षी मुस्कुराए हुए अन्दर चली आई अब उसे अन्दर आने के लिए कोई परमिशन की जरुरत तो थी ही नहीं|

अन्दर अपनी जगह पर बैठते ही बोली “ सोरी आप लोगो की बिच में मै आ गई लेकिन मेरे बगैर कुछ होने नहीं दूंगी” कह के हस दी

तिवारीजी ने भी साक्षी को आवकारते हुए बोले हा बेटा तुम्हारे बगैर कुछ नहीं हो सकता लेकिन कुछ जल्दी ही आ गई

मनोरमाजी “ खेर अब आ ही गई है तो मुझे कोइ आपत्ति नहीं वैसे भी ये सब जानती है और कुछ तो उसके ये पोलिटिकल व्यवहार से ही ये सब और यहाँ तक है “ कह के हस्ते हुए बोली चले अब हम आगे बात करते है
तो ये जान लेना आवश्यक था जो मैंने बता दिया


जारी रहेगा...
 
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ये कहानी मैंने नहीं लिखी है पर किसी और ने लिखी है जो मुझे पसंद आई और मै मानती हु की आप लोगो को भि शायद पसंद आये

ये कहानी नि पूरी क्रेडिट ओरिजिनल लेखक को जाती है पर उनका नाम मै कहानी के अंत में बताउंगी ..............
ये कहानी में sex नहीं है !!!!!

आप का पूरा साथ रहेगा ये उम्मीद रखती हु

और लिखने की कोशिश करती हु ...............

प्लीज़ बने रहिये ....................
:congrats: on posting the story...

कहते हैं कि लेखन को बढ़ावा देने के लिए या तो उससे प्रेरणा लेकर उस पर लिखकर उसे आगे बढ़ाना जरूरी है या फिर मूल लेखक को श्रेय देकर पोस्ट करना। आपने न केवल मूल लेखक को सम्मान दिया है बल्कि ऐसा करके आपने अच्छी परंपराओं को बढ़ावा देने का उदाहरण भी पेश किया है।

:yourock:
 
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:congrats: on posting the story...

कहते हैं कि लेखन को बढ़ावा देने के लिए या तो उससे प्रेरणा लेकर उस पर लिखकर उसे आगे बढ़ाना जरूरी है या फिर मूल लेखक को श्रेय देकर पोस्ट करना। आपने न केवल मूल लेखक को सम्मान दिया है बल्कि ऐसा करके आपने अच्छी परंपराओं को बढ़ावा देने का उदाहरण भी पेश किया है।

:yourock:
Shukriya
 
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श्रृष्टि की गजब रित


भाग -1


श्रृष्टि कितना खूबसूरत नाम हैं। जितनी खूबसूरत नाम हैं उतना ही खूबसूरत इसकी आभा हैं। जिसमें पूरा जग समाहित हैं। न जानें कितने अजीबों गरीब प्राणिया इसमें अपना डेरा जमाए हुए हैं। उन्हीं अजीबो गरीब प्राणियों में इंसान ही एक मात्र ऐसा प्राणी हैं। जिसकी प्रवृति को समझ पाना बड़ा ही दुष्कर हैं। कब किसके साथ कैसा व्यवहार कर दे यह भी कह पाना दुष्कर हैं। कोई तरक्की की सीढ़ी चढ़ने के लिए रिश्तों को ताक पर रख देता है। तो कोई विपरीत परिस्थिति में भी रिश्तों की नाजुक डोर टूटने नहीं देता हैं। वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं कोई रिश्ता न होते हुए भी ऐसा कुछ कर जाता हैं जिसके लिए लोग उन्हे उम्र भार याद रखते हैं। हैं न बड़ा अजीब श्रृष्टि हमारी।

बहुत हुई बाते अब मुद्दे पर आती हूं और कहानी की सफर शुरू करती हूं….

.

श्रृष्टि, ओ श्रृष्टि! सुन रहीं हैं कि नहीं, बेटा जल्दी से बाहर आ।

एक व्यस्क महिला रसोई की द्वार पर खड़ी होकर श्रृष्टि नाम की एक शख़्स को आवाज दे रहीं हैं। बुलाने के अंदाज और संबोधन के तरीके से जान पड़ता हैं। व्यस्क महिला का श्रृष्टि से कोई खास रिश्ता हैं।

आवाजे अत्यधिक उच्च स्वर में दिया गया था किन्तु इसका नतीजा ये रहा कि श्रृष्टि ने न कोई आहट किया और न ही बाहर निकलकर आई, इसलिए महिला खुद से बोलीं... इस लडकी का मै क्या करू, एक बार बुलाने से सुनती ही नहीं!

इतना बोलकर कुछ कदम आगे बढ गई और कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए बोलीं... श्रृष्टि, ओ श्रृष्टि सो रहीं है क्या?

"नहीं मां" की एक आवाज़ अंदर से आई, तब महिला फ़िर से बोलीं...बहार आ बेटा कुछ काम हैं।

एक या दो मिनट का वक्त बीता ही होगा कि कमरे का दरवाजा खुला, दुनिया भर की मसूमिया और भोलापन चहरे पर लिए, मंद मंद मुस्कान लवों पर सजाएं श्रृष्टि बोली... बोलों मां, क्या काम हैं?

"पहले तू ये बता, कर क्या रहीं थीं? कितनी आवाजे दिया मगर तू है कि सुन ही नहीं रहीं थी" इतना बोलकर महिला ने एक हल्का सा चपत श्रृष्टि के सिर पर मार दिया।

"ओ मेरी भोली मां (प्यार का भाव शब्दों में मिश्रित कर श्रृष्टि आगे बोलीं) कल मुझे साक्षात्कार (इन्टरव्यू) के लिए जाना है उसकी तैयारी कर रही थीं। आप ये अच्छे से जानती हों जब मैं काम में ध्यान लगाती हूं फ़िर मुझे कुछ सुनाई नहीं देता हैं।"

"अब उन कामों को अल्प विराम दे और बाजार से रसोई की कुछ जरूरी सामान लेकर आ।"

"ठीक है मैं तैयार होकर आती हूं।"

इतना बोलकर श्रृष्टि पलटकर अंदर को चल दिया और महिला किचन की और चल पड़ी। श्रृष्टि बाजार जानें की तैयारी कर ही रहीं थी कि उसके मोबाइल ने बजकर श्रृष्टि का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, "कौन है" बस इतना ही बोलकर श्रृष्टि ने मोबाइल उठा लिया और स्क्रीन पर दिख रहीं नाम को देखकर हल्का सा मुस्कुराई फिर कॉल रिसीव करते हुए बोलीं... बोल समीक्षा कैसे याद किया।

समीक्षा...यार मुझे न कुछ शॉपिंग करने जाना था। तू खाली हैं तो मेरे साथ चल देती , तो अच्छा होता।"

श्रृष्टि...मैं भी कुछ काम से बजार ही जा रहीं थीं तो लगें हाथ तेरा भी काम करवा दूंगी, मेरा मतलब है तेरा शॉपिंग भी करवा दूंगी। तू घर आ जा तब तक मैं तैयार हों लेती हूं।"

श्रृष्टि से सहमति पाते ही "अभी आई" बोलकर समीक्षा ने कॉल कट कर दिया और श्रृष्टि तैयार होकर मां के पास पहुंचकर बजार से आने वाली सामानों की लिस्ट लिया फ़िर बोलीं…मां, वो समीक्षा भी आ रही है उसे शॉपिंग करनी हैं। तो हो सकता हैं कुछ वक्त लग जाय, इससे आपको दिक्कत तो नहीं होगी।"

"नहीं" बस इतना ही बोल पाई कि बहार से हॉर्न की आवाज़ आई। जिसे सुनकर श्रृष्टि बोलीं... लगता हैं समीक्षा आ गई है। मैं चलती हूं। बाय मां।

कुछ ही वक्त में दोनों सहेली दुपहिया पर सवार हों, हवा से बातें करते हुए बजार में पहुंच गईं। दोनों इस वक्त शहर के सबसे मशहूर शॉपिंग माल के गेट से भीतर पार्किंग में जा ही रहीं थीं कि एक चमचती कार दोनों के स्कूटी से बिल्कुल सटती हुई आगे को बढ़ गईं। जिसका नतीजा ये हुआ की समीक्षा का बैलेंस बिगड़ गया, किसी तरह गिरने से खुद को बचाकर समीक्षा बोलीं... अरे ओ आंख के अंधे, अमीर बाप के बिगड़े हुए औलाद दिन में ही चढ़ा लिया जो दिखना बंद हों गया।

श्रृष्टि...अरे छोड़ न यार जानें दे।

समीक्षा...क्या जानें दे, उसके पास चमचमाती कार हैं। इसका मतलब हमारी दुपिया का कोई वैल्यू ही नहीं मन कर रहा हैं पत्थर मारकर उसके चमचमाती कार का नक्शा ही बिगड़ दूं।

श्रृष्टि...अरे होते हैं कुछ लोग जिन्हें पैसे कि कुछ ज्यादा ही घमंड होता हैं। तू खुद ही देख उसके पास लाखों की कार हैं उसके आगे हमारी इस दूपिया की क्या वैल्यू?

"एक तो उस कमीने ने दिमाग की दही कर दिया। अब तू उसमें चीनी डालकर लस्सी बनाने पे तुली हैं।" तुनककर समीक्षा बोलीं तो श्रृष्टि मुस्कुराते हुए जवाब दिया...उसमें से एक गिलास निकलकर पी ले और गुस्से को ठंडा कर लें ही ही ही...।

"श्रृष्टि" और ज्यादा तुनक कर समीक्षा बोलीं तो श्रृष्टि फिर से मुस्कुराते हुए बोलीं...अरे अरे गुस्सा थूक दे और चलकर वहीं करते है जो हम करने आएं हैं।

समीक्षा को थोड़ा और समझा बुझा कर मॉल के भीतर लेकर जानें लगीं कि मुख्य दरवाजे से भीतर जाते वक्त एक हाथ श्रृष्टि के जिस्म को छू कर गुजर गया। श्रृष्टि को लगा शायद अंजाने में किसी का हाथ छू गया होगा। इसलिए ज्यादा तुल नहीं दिया। इसका मतलब ये नहीं की उसे बुरा नहीं लगा। बूरा लगा मगर वो उस शख्स को देख ही नहीं पाई जिसका हाथ श्रृष्टि के जिस्म को छूकर निकल गया। सिर्फ और सिर्फ़ इसी कारण श्रृष्टि ने मामले को यही दबा देना बेहतर समझा। बरहाल दोनों सहेली आगे को बढ़ गई और अपने काम को अंजाम देने लग गई।

लड़कियों का भी क्या ही कहना? इनको शॉपिंग करने में ढेरों वक्त चाहिए होता है। देखेगी बीस और खरीदेगी एक दो, ऐसे ही करते हुए दोनों आगे बढ़ती गई। कहीं कुछ पसंद आया तो खरीद लिया वरना आगे चल दिया। ऐसे ही एक सेक्शन में कुछ ज्यादा ही भिड़ था और उन्हीं भीड़ में समीक्षा अपने लिए कपडे देख रहीं थीं और श्रृष्टि उसकी हेल्प करने में लगीं हुई थीं।

तभी श्रृष्टि को लगा कोई उसके जिस्म को छूकर निकल गया। पलटकर पिछे देखा तो उसे अपने पिछे कई चहरे दिखा। अब दुस्वारी ये थीं कि उन चेहरों को देखकर कैसे पहचाने, उनमें से किसने उसके जिस्म को छुआ, जब पहचान ही नहीं पाई तो कोई प्रतिक्रिया देना निरर्थक था। इसलिए वापस पलटकर समीक्षा की मदद करने लग गईं।

कुछ ही वक्त बीता था की एक बार फ़िर से किसी का हाथ उसके जिस्म को छु गया। इस बार श्रृष्टि को गुस्सा आ गया। गुस्से में तमतमती चेहरा लिए पीछे पलटी तो देखा उसके पीछे कोई नहीं था। गुस्सा तो बहुत आया मगर किसी को न देखकर अपने गुस्से को दबा गई और पलटकर उखड़ी मुड़ से समीक्षा को जल्दी करने को बोलीं, कुछ ही वक्त में समीक्षा की शॉपिंग पूरा हुआ फिर ग्रोसरी स्टोर से मां के दिए लिस्ट के मुताबिक किचन का सामान लेकर दोनों बिल देने पहुंच गई। समीक्षा अपना बिल बनवा ही रहीं थीं कि अचानक "चटकक्क" के साथ "बेशर्मी की एक हद होती हैं" की तेज आवाज़ वहां मौजुद सभी के कान के पर्दों को हिलाकर रख दिया।

जारी रहेगा... बने रहिये ............. हो सके तो अभिप्राय देते रहिये .........
Sab se pahale Maitri ji... ham sabhee aapake aabhaaree hain ki aapane ek achchhee rachana prastut kee hai... yah mujhe parichit see lagee, jaise mainne ise kaheen padha ho... lekin choonki aapane pahale hee ullekh kiya hai ki aap ise keval post kar rahee hain aur koee aur isaka mool lekhak hai... to bina samay barbaad kie... chalie pahale bhaag kee sameeksha post kar dete hain...

kahaanee kee shuruaat “Shrrshti” shabd par adbhut daarshanik charcha se hotee hai…

Lekhak ne pahalee kuchh panktiyon se hee kalam par pakad dikhaee hai; ek gambheer shabd par sookshm tareeke se charcha karte hue…

Ohhh... Naayika ka naam bhee Shrrshti he... shaayad yeh kahaanee kee mukhy paatr he... khair kahaanee aage badhane ke saath hee hamaara anumaan bhee pusht ho jaega...

Aik Maa aur Beti ke beech aur phir do mahila mitron ke beech rochak baatacheet ka halka svar kahaanee ke maahaul ya prshthabhoomi ko shaayad... " teenage romance or teenage comedy " ke roop mein sthaapit karata hai...

hehehehehe... vaakee adbhut... lekhak ne khareedaaree ke prati yuva ladakiyon kee prakrti ko saavadhaaneepoorvak varnit kiya hai aur ant mein ham pahale bhaag ke kuchh naatakeey ant ko dekhate hain jo ke paathakon ko sochane aur utsaah ke mode par set kar deta he... ke… aage kya hone vaala hai??

doston... kya ham utsaahit nahin hain... haan ham utsaahit hain... dekhate hain ki agale bhaag mein kya hota hai... :clapclap:
 

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