Adultery गुजारिश(HalfbludPrince)

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#25

“किसने भेजा है तुझे मेरे पास ” मीरा ने सवाल किया

मैं- कौन भेजेगा मुझे मैं तो मुसाफिर हूँ बस इस ओर आ निकला , किसी ने बताया तो आपके यहाँ आ पहुंचा

मीरा- वापिस ले जा मोना इसे ,

मैं-बेशक लौट जाऊंगा , मेरे बाबा कहते है की पुरे जूनागढ़ में आप से बढ़कर कोई नहीं

मैंने उसे मजार वाले बाबा के बारे में बताया , यक़ीनन मीरा उसे जानती थी .

“सुन लड़के, उसकी बातो का कम ही विश्वास करना वो न जाने क्या क्या बडबडाता रहता है ” मीरा ने कहा

मैं- सुहासिनी का तो विश्वास कर सकता हूँ न मैं

मीरा- वो चली गयी , छोड़ गयी हमें , तू भी लौट जा

मोना ने मुझे इशारा किया तो हम वापिस हो लिए.

“सुहासिनी को कैसे जानते हो तुम ” मोना ने पूछा

मैं- हमारे गाँव में ब्याही थी वो तो जिक्र सुना उनका

मोना- आओ तुम्हे कुछ ऐसा दिखाती हूँ जो तुमने पहले कभी नहीं देखा होगा. पर उस से पहले कुछ खा लेते है बाजार में

हमने हल्का सा नाशता किया गाँव के बाजार में फिर मोना मुझे जंगल की तरफ ले आई, जैसे जैसे वो बताती रही मैं गाड़ी घुमाता रहा , हम जंगल में काफी अन्दर तक आ गए थे, फिर एक जगह उसने मुझे रुकने का इशारा किया .हम गाड़ी से उतरे



चूँकि सर्दियों का समय था शाम ढलने लगी थी कुछ हम पेड़ो में थे तो अँधेरा लगने लगा था .

“ये जगह बड़ी खास है देव, ”

मैंने देखा वहां पर कुछ भी खास नहीं था पहली नजर में तो बिलकुल नहीं , पर जल्दी ही मैं मोना का मतलब समझ गया . किसी ज़माने में ये कोई बगीचा रहा होगा पर अभी बस ये सूख गया था , पुरे जंगल में हरियाली थी बस यही नहीं थी , हमसे कुछ दूर एक छोटी सी पानी की खेली थी जो खाली पड़ी थी .

“कहते है किसी ज़माने में इस से खूबसूरत बगीचा कही नहीं था , ”

मैं- पर ये ऐसा कैसे हुआ

मोना- इसके बारे में एक कहानी है , कहते है की करीब १८-१९ साल पहले यहाँ पर कुछ ऐसा हुआ था की फिर ये जमीन बंजर हो गयी , ये खेली सूख गयी , मैंने बहुत कोशिश की पर फिर कभी इसमें पानी नहीं आया.

मैं- क्या हुआ था

मोना- ठीक से तो कोई नहीं जानता बस सुनी सुनाई बाते है की एक बाढ़ आई थी खून की बाढ़

मेरे लिए ये बड़ी हैरान करने वाली बात थी .

“ये दुनिया बस ऐसी ही नहीं है देव जो हम जी रहे है इसके परे भी कुछ ऐसा है जो हैं भी और नहीं भी, सबकुछ सामने होते हुए भी ओझल है ” मोना ने कहा

मैं- समझा नहीं

मोना- मैं भी कहा समझी .

मैंने मोना का हाथ पकड़ा , ठण्ड में उसका गर्म स्पर्श बड़ा सकून भरा लगा.

मैं- हम दोनों कोशिश करे तो समझ सकते है

मोना- क्या तुम समाज की बनाई लकीर को मानते हो

मैं- नहीं, मुझे क्या लेना देना समाज से , खासकर उस समाज से जिसने मुझे कभी अपनाया नहीं ,तुम नहीं जानती , मैं कैसे जिया हूँ , अकेलेपन के साथ नजाने कितनी राते मैंने बस बेख्याली में, तो कभी रोते हुए गुज़ार दी .

मोना- हम दोनों की कहानी भी एक सी ही है , मुझे देखो परिवार होते हुए भी अकेली हूँ , दरअसल हम दोनों ही मुसाफिर है .

मैं- सो तो है पर तुमने घर क्यों छोड़ा

मोना- बस सतनाम मुडकी की बेटी होने की सजा है , मेरे बाप के बारे में तो तुम्हे मालूम होगा ही .

मैं - बस इतना ही की वो बड़े नेता है

मोना- खैर जाने दो , हम अपनी बात करते है , ठण्ड बढ़ने लगी है घर चले

मैं- थोड़ी देर और बैठना चाहता हूँ

मोना- जब तुम्हे देखती हूँ तो लगता है की कोई तो है अपना इस जहाँ में

मैं- मुसाफिर को पनाह देना ठीक नहीं

मोना- पर उसके सफ़र का हिस्सा होना तो ठीक है न .

“रहे अलग है , मंजिले अलग है तुम आसमान हो मैं धरती , तुम्हारा एक मकाम है मैं आवारा ”

मोना- फिर भी हम दोस्त है , हैं न

मैं- हमेशा

मोना- वापिस चले, कल शादी में भी चलना है

मैं- हाँ

मैंने मोना को गाड़ी में बिठाया और हम वापिस उसकी हवेली की तरफ चल पड़े. अँधेरा खूब हो चूका था , मैंने गाड़ी की लाइट चालू कर दी . मोना ने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख दिया . मैं मुस्कुराया

मोना- ये ठण्ड का मौसम भी न अपने आप में अजीब है इसमें मिलन है जुदाई है

मैं- क्या फर्क पड़ता है हर मौसम की तरह ये भी बीत जाता है .

बाते करते करते हम लोग मोना वापिस आये, थोड़ी देर में ही खाना लग गया . मैं थोडा थका हुआ था तो सीधा बिस्तर में घुस गया . फिर जब पानी पीने को मेरी आँख खुली तो मैंने पाया की मेरी खिड़की खुली है , मैं उसे बंद कर ही रहा था की मैंने देखा सामने सड़क पर एक काला साया था लालटेन लिए जो मेरी तरफ देख रहा था .

मुझे बड़ा अजीब सा लगा. मैं छज्जे पर आया . वो साया अभी भी उस तरफ ही था . उसने मुझे देख लिया था , लालटेन हिला कर उसने मुझे निचे आने का इशारा किया .एक अजनबी साया पराये गाँव में मुझे बुला रहा था वो भी रात को .

क्या मेरा जाना ठीक रहेगा , ये गाँव मुझे उलझा हुआ तो लग रहा था पर अब यकीं सा हो रहा था , तीसरी बार जब इशारा हुआ तो मैं अन्दर आया, अपनी जैकेट पहनी और निचे चल दिया.

“जी हुकुम, किसी चीज की जरुरत थी , ” दरवाजे पर बैठे गार्ड ने पूछा मुझसे

मैं- नहीं , दरवाजा खोलो मुझे बाहर जाना है

गार्ड - इतनी रात को , मेरा मतलब है की रात को सुरक्षित नहीं है बाहर जाना

मैं- मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही , थोडा घूम लूँगा तो बेहतर महसूस करूँगा.

गार्ड- मैं साथ चलू हुकुम

मैं- अरे नहीं, बस मैं सामने सड़क पर ही दो चार चक्कर लगा कर आता हूँ

मैं हवेली से बाहर आया, और जहाँ वो साया खड़ा था उधर गया . अब सड़क पर पूरी तरह अँधेरा था , लालटेन शायद बुझा दी गयी थी,

“कहाँ हो तुम ” मैंने आवाज दी .


“बायीं तरफ चलो , चलते रहो ” जवाब आया .
 
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#26

मैं सड़क से बायीं तरफ उतर गया , घुप्प अँधेरे में बस मैं चलता रहा , सर्द हवा मेरी जैकेट को चीर कर मेरे सीने पर दस्तक देना चाहती थी , ऐसा लग रहा था की चलते चलते बहुत देर हो गयी .

“बस यही ” आवाज आई

मैंने मुड कर देखा साए ने लालटेन जला ली थी मद्धम लौ में मैंने देखा वो और कोई नहीं मीरा थी

“माई तुम ” मैंने कहा

मीरा- हाँ मेरे बच्चे मैं ही हूँ

मैं- पर यहाँ इस तरह क्यों बुलाया

“बताती हूँ पर पहले जरा जी भर कर देख लेने दे , मेरी सुहासिनी का वारिस कितना बड़ा हो गया है , मुझे मालूम था तू जरुर आएगा सुलतान ने मुझे बता दिया था पर वो मुडकी की छोरी के सामने मैं तुझसे खुलकर बात नहीं कर सकती थी , इसलिए तुझे यहाँ बुलाया . ” मीरा ने कहा

मैं- मोना मेरे विश्वास की है

मीरा- तू नहीं जानता बेटा इन जालिमो को , मुझे तो हैरत बड़ी थी खैर जाने दे, ख़ुशी इस बात की है तू आ गया .

मीरा ने एक पोटली मेरी तरफ करी.

मैं- क्या है इसमें

मीरा- तोहफा मेरी तरफ से .

मैंने पोटली खोली , बर्फिया ही बर्फिया थी .

मीरा- तेरी माँ को बड़ी पसंद थी , अक्सर आती थी मेरे पास. बड़ा मानती थी वो मुझे

मैं- मुझे बताओ उनके बारे में .

मीरा- मैं क्या बताऊ बेटा गाँव के चप्पे चप्पे पर उसके निशान है वो नहीं है पर फिर भी वो है हमारी यादो में , उसके जैसी सरल, दयावान कोई नहीं हुई, उसके दर से कभी कोई खाली नहीं लौटा.

“उनकी मौत कैसे हुई ” मैंने पूछा

मीरा- ये राज़ भी उसके साथ ही चला गया , न जाने उस रात क्या हुआ था कोई नहीं जानता बस इतना मालूम है की दो लाशे मिली थी और खून की बाढ़ ,

मैं- किसकी दुश्मनी थी मेरी माँ के साथ

मीरा- किसी की नहीं, कोई सोच भी नहीं सकता था उस फूल से नफ्रत करने के बारे में .

मीरा ने अपनी कमीज की जेब से कुछ निकाला और मेरे हाथ में रख दिया .

“तुम्हारी अमानत , ये कंगन डोरा तेरी माँ छोड़ गयी थी मेरे पास, कह गयी थी की एक दिन तुम आओगे तब दू ”

मैंने उस धागे को देखा , बस एक पतला सा काला धागा था . मैंने से रख लिया.

“मेरे बच्चे ये गाँव तुम्हारे लिए ठीक नहीं है , तुम सुबह होते ही चले जाना यहाँ से और वापिस मत आना , उस मुडकी की छोरी का साथ न करना ” मीरा ने कहा और वापिस मुड गयी .

मैं- माई , मेरे सवाल अभी खत्म नहीं हुए

मीरा- जवाब तुझे तेरी तक़दीर देगी , तलाश ले उसे

लालटेन के बुझते ही घुप्प अँधेरा हो गया . काला आसमान जैसे मुझे लील जाना चाहता था . मैंने पोटली को संभाला और वापिस हवेली की तरफ चल पड़ा मैंने देखा गार्ड सड़क पर ही खड़ा था मुझे देख कर उसकी साँस में साँस आई .

“सब ठीक ” मैंने पूछा

गार्ड - मेमसाब इंतज़ार कर रही है

मैं-तुमने बता दिया उनको , मैंने कहा था न बस थोड़ी देर में आ जाऊंगा

गार्ड- बात वो नहीं है आप अन्दर चलिए

मैं सीधा अन्दर आया तो देखा की मोना सर पर हाथ रखे बैठी थी .

मैं- क्या हुआ

मोना- देव कहाँ थे मुझे फ़िक्र हो गयी थी तुम्हारी

मैं- बस यही बाहर था क्या बात हुई .

मोना- किसी ने मुझ पर हमला करने की कोशिश की

मोना की बात ने मुझ पर जैसे बम गिरा दिया . “”

“”क्या , किसने , सुरक्षा के बाद भी “

मोना- आओ मेरे साथ

मैं मोना के साथ उसके कमरे में आया , देखा की दीवारों पर लाल लगा था कुछ , बिस्तर पर चाकू पड़ा था .

मैं- कौन था वो ,

मोना- नहीं जानती कौन दुश्मन हुआ पड़ा है पहले तुम्हारे गाँव में और अब यहाँ

मैं- कोई घाव तो नहीं तुम्हे, मेरा मतलब ठीक हो न

मोना- हाँ , बस कलाई में दर्द है थोडा .

मैं- हवेली की दीवारे ऊँची है बिना दरवाजा खुले कोई अन्दर नहीं आ सकता, एक मिनट शयद जब मैं बाहर गया अँधेरे का फायदा उठा कर तभी कोई अन्दर घुसा होगा. मेरी ही गलती है तुम्हे कुछ हो जाता तो .

मोना- तुम गए कहा थे .

मैंने उसे बात बताई

“अजीब है मीरा का ऐसे आना, मिलना था तो हवेली में आ सकती थी उसे कौन रोकता ” मोना ने कहा

मैं- मुझे भी संदेह सा लगा उसके व्यवहार पर , पर मेरी पहली प्राथमिकता तुम्हारी सुरक्षा है , तुम बेफिक्र रहो , आराम करो मैं अब जागा रहूँगा .

मैंने नौकर से बिस्तर सही करने को कहा और खुद के लिए एक चाय मंगवाई.

मोना- चलो कोई तो है जिसे फ़िक्र है मेरी

मैं- तुम्हारे सिवा कौन है मेरा, मेरी दोस्त नहीं हो परिवार का एक हिस्सा हो तुम

मोना- तभी तो फ़िक्र नहीं मुझे तुम जो साथ हो .

मैंने मोना को बिस्तर पर लिटाया और पास वाली कुर्सी पर बैठ गया . चाय के साथ मैंने बर्फी भी ले ली

“बात तो है इनमे ” मैंने कहा

मोना- खुशनसीब हो , एक जमाना था जब दूकान पर कतार लगा करती थी . पर अब सब बदल गया .

मैं- किस कारण से .

मोना- मेरे काम की वजह से और दुश्मन तो अब है ही .

मैं- जब तक मैं हूँ कोई छू भी नहीं पायेगा तुम्हे

मैंने चाय का एक घूँट और लिया , मोना सोने की कोशिश करने लगी. चुसकिया लेते हुए मैं सोच रहा था की जिन्दगी ने जो शतरंज की बिसात बिछाई है उस पर मोहरे कैसे चल रहे है , पर कोई न कोई तो डोर थी जो मुझे मोना से जोड़ रही थी ..

सुबह मोना मुझे एक ऐसी जगह लेकर आई जो होगी मैंने कभी सोचा नहीं था , पहाड़ो की तली में उस से खूबसूरत नजारा हो ही नही सकता था . ठण्ड की धुप ने उसकी खूबसूरती और बढ़ा दी थी .

“खूबसूरत , इस से खूबसूरत अगर कुछ है तो बस तुम ” मैंने कहा

मोना- सो तो है . जरा हाथ देना

मैंने हाथ दिया मोना ने चेयर छोड़ दी मैंने उसे थाम लिया अपनी बाँहों में .

“एक तरफ ये समां एक तरफ बाँहों में हुस्न ” मैंने कहा

मोना हौले से मेरे सीने लग गयी , वो मेरे करीब थी उसने बोला कुछ नहीं बस अपने होंठ मेरे होंठो से जोड़ दिए.

ठण्ड के मौसम में जैसे आग लग गयी थी , मैंने अपनी पकड़ उसकी कमर पर और मजबूत कर दी, ओस मोना के होंठो पर गिरने लगी. हम दोनों जैसे उस चुम्बन में डूब गए थे की ....................
 
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#27

“शर्म तो बेच ही दी थी तूने अब यार भी बदलने लगी है , बेशर्म रांड कमसेकम इस पवित्र जगह पर तो अपना गंद मत फैला. और इतनी ही आग लगी है तो गाँव में गबरू बहुत है उनके निचे ही लेट जा , और इसे देख अबकी बार तो नया लौंडा पाला है तूने, ये तो तेरे झांटो तक भी नहीं पहुंच पायेगा. ”

उस उपहास भरी आवाज सुनकर हम दोनों अलग हो गए , मैंने देखा वो दो आदमी थे, जिसने मोना को ये असभ्य बाते कही थी वो शरीर में ठीक था , ऊँचा कद, सर पर केसरी पग बांधे .

“जुबान को लगाम दे, वर्ना खींच ली जाएगी ” मैंने उस से कहा

“नहीं देव, ” मोना ने मेरा हाथ पकड़ लिया .

“सही कह रही है ये रांड , लौंडे तेरी औकात नहीं जा भाग यहाँ से कहीं और जा, मेरा मूड आज अच्छा है वर्ना अब तक तो धरती पर गिरा होता तू, ”

मैं- जाना तो तुझे है , मोना से माफ़ी मांग ले , वर्ना तेरे अच्छे दिन को मैं ऐसा बुरा बना दूंगा की तू सोच कर कांप जायेगा

“देव, बात को आगे मत बढाओ , हम चलते है यहाँ से ” मोना ने कहा

मैं- बेशक हम चलेंगे पर पहले मैं इसे जरा तमीज सिखा दूँ

“मानना पड़ेगा तेरी हिम्मत को लौंडे, जब्बर के सामने बड़े बड़े मूत देते है और तू टकराने की सोच रहा है , ये तो शुक्र है की ये सतनाम बाउजी की लौंडिया है वर्ना कभी का इसे चोद देता मैं . ”

सटक , इसके आगे जब्बर कुछ नहीं बोल पाया , मैंने आगे बढ़ कर उसके चेहरे पर थप्पड़ जड़ दिया था . मैंने उसका कालर पकड़ लिया

“मैंने कहा था न , तेरी जुबान खींच लूँगा. तू होगा कुछ भी पर मोना के साथ मैं हूँ तेरी तो औकात ही क्या तेरा पूरा गाँव भी आ जाये तो इसका कुछ नहीं कर पायेगा. ” मैंने एक लात जब्बर के घुटने पर मारी और वो तिलमिला गया .

उसके साथ वाला आदमी भी भिड़ने लगा मुझे, पर मुझे भी गुस्सा चढ़ आया था .मामला गरम हो गया था , मेरी और जब्बर की हाथापाई बढ़ ही गयी थी की तभी वहां पर एक जीप आकर रुकी उसमे से कुछ आदमी उतरे और हम दोनों को अलग अलग किया .

“छोड़ मुझे इसका मैं क़त्ल कर दूंगा ” जब्बर ने गुस्से से कहा

मैं- आ साले , आ तो सही यही इसी जगह गाड दूंगा तुझे .

“शांत, दोनों शांत ” एक गहरी आवाज गूंजी . मैंने देखा गाड़ी से एक बुजुर्ग उतर कर हमारी तरफ आ रहा था .

उस आदमी ने एक नजर मुझ पर और मोना पर डाली और फिर जब्बर की तरफ चल दिया .

“कितनी बार कहा है , हर जगह मत उलझा कर अभी अभी जेल से आया है ऐश कर , सारी उम्र पड़ी है न ये सब करने की चल घर जा ” उसने कहा

जब्बर उसके कहते ही चल पड़ा , कुछ दूर जाकर रुका और मुझे देख कर बोला- तेरे दिन पुरे हो गए , तू कहीं भी जाकर छुप जा , तू मुझे देख ले तेरी मौत हु मैं

“दिनों की किसने गिनती की है , तू मर्द है तो आ अभी , इसी जगह , भागता क्यों है साले, देख लेते है कौन किसका क्या करता है , ” मैंने जवाब दिया .

वो बुजुर्ग मेरे पास आया मेरी आँखों में देखते हुए बोला- खून बहुत गर्म है तेरा, खून बड़ा कीमती होता है संभाल कर रख लौंडे, कही ऐसा न हो ऐसी कीमती चीज नालियों में बह कर बर्बाद हो जाये.

“ऐसे खून को बर्बाद हो जाना चाहिए जो एक नारी के सम्मान की रक्षा न कर सके, तेरा ये जब्बर मोना को कुछ कुछ कह रहा था , और मेरे सामने कोई मोना से ऐसा व्यवहार करे ये मैं बर्दाश्त नहीं करूँगा . ये जब्बर होगा कोई भी पर जो बात इसने कही है , माफ़ी लायक नहीं है ये ” मैंने कहा

जब्बर- बाउजी, ये इस लौंडे के साथ गंद फैला रही थी यहाँ , मैं बस इन्हें रोक रहा था ये नंगापन करने से

“ले जा छोरी इस लड़के को यहाँ से ” उस बुजुर्ग ने जैसे आदेश दिया .

मोना ने मेरा हाथ पकड़ लिया बोली- चलो यहाँ से , मेरे लिए

फिर आगे मैंने कुछ नहीं कहा , हम दोनों वापिस उसकी हवेली आ गए. मुझे गुस्सा बहुत था

“सब मेरी गलती है देव, ”मोना बोली

मैं- नहीं , गलती तो उस नीच की है

मोना- तुम्हे इन सब में नहीं पड़ना चाहिए

मैं-और मेरे सामने कोई तुमसे ऐसे बोल जाये .

मोना- जब्बर को मैंने ही सजा सुनाई थी ,

मैं- तो क्या .

मोना -जब्बर मेरे बाप का आदमी है वो बुजुर्ग जो वहां था कोई और नहीं मेरा बाप था , सतनाम मुडकी .

मोना की बात सुनकर मुझे कोई खास फर्क नहीं पड़ा.

मैं- फिर भी तेरे बाप ने उसका ही पक्ष लिया .

मोना- बेटियों का पक्ष कौन लेता है , और मेरा बाप इन्सान कहाँ है वो तो एक जीता जागता राक्षस है . उसने मुझे ऐसा घाव दिया है जो मेरे जीते जी तो भर नहीं सकता .

मैं- तुम जज हो , पेल दो इन सबको

मोना- इस शहर में जज होना , न होना बराबर ही है , मेरी औकात बस कोर्ट तक ही सिमित है उसके बाहर राज चलता है मेरे बाप का.

मैं- पर उसने तुम्हे रांड बोला ,

मोना- जब्बर की गन्दी नजर हमेशा ही थी मुझ पर , उसने मेरी सहेली का बलात्कार किया था , मैंने उसे सजा सुनाई थी पर जिस के लिए उसे सजा देना चाहती थी वो केस कभी किसी ठाणे में दर्ज ही नहीं हुआ

मोना की आंखो में आंसू भर आये, न चाहते हुए भी रोने लगी वो .

मैं- क्या हुआ था .

मोना- उसने मेरी जिन्दगी उजाड़ दी,
 
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#28

मेरा दिल जोरो से धडकने लगा था , हम दोनों के बीच की जगह ख़ामोशी खड़ी हो गयी थी .

“मेरे पति का हत्यारा है जब्बर ,” मोना के कहे लफ्ज़ इतने तीखे थे की जैसे टूट कर बिखरा कांच .

“मैं कुछ नहीं कर पाई , कुछ भी नहीं कर पायी, ” मोना फूट फूट कर रोने लगी . मैंने उस अपने आगोश में भर लिया . अब कहता भी तो क्या उसे .

“तेज एक्साइज डिपार्टमेंट में था, मेरे बाप के सब काले धंधो का मालूम हो गया था उसे , बस उसी की कीमत चुकी उसने ”

मैं- पर तुम जज हो

मोना- मैंने कहा न मेरी औकात बस कोर्ट तक है , तेज ऐसे गायब हुआ जैसे कभी था ही नहीं , उसके साथ मेरी खुशिया भी ऐसी हो गयी जैसे कभी थी ही नहीं .

मैं- इसलिए ही तुमने घर छोड़ा न

मोना- हाँ ,

मैं- तुम्हे किसी से डरने की जरुरत नहीं मैं तुम्हारे साथ हूँ

मोना- नहीं देव, ये बहुत खतरनाक लोग है जो अपनी बेटी की जिन्दगी तबाह कर सकते है वो तुम्हारे साथ न जाने क्या करेंगे . ये मेरी परेशानी है

मैं- और तुम मेरी हो , मेरा मतलब मेरी दोस्त हो और जब दोस्ती की है तो दोस्त के साथ खड़ा हूँ चाहे जो भी हो .

मैंने मोना के गालो पर एक चुम्बन किया और उस से अलग हो गया . उसकी कहानी भी मेरे सी ही थी सब कुछ होकर भी कुछ भी नहीं था . मैं उठ कर बाहर आ गया , कुछ लम्हों के लिए बस खुद से बात करना चाहता था . मोना के इतर भी मेरी एक दुनिया थी और उस दुनिया में एक नाम था सुहासिनी, जो इसी गाँव की बेटी थी .

कुछ सोच कर मैं हवेली से बाहर निकल गया , दरबान को मैंने सख्त हिदायत दी की मोना से कुछ न कहे, एक बार मैं फिर मीरा के दरवाजे पर था , छप्पर के पास बैठी मीरा चूल्हे पर रोटिया सेक रही थी .

“भूख लगी है माई, दो रोटी मुझे भी मिलेंगी क्या ” मैंने अन्दर आते हुए कहा

मीरा ने मुझे देखा और बोली- गए नहीं तुम वापिस

मैं- बस एक दो रोज में .

मीरा- आ बैठ .

मीरा ने मुझे खाना परोसा, बाजरे की रोटिया, घी में सनी, लाल मिर्च का आचार और लस्सी का मग्गा भुना जीरा डालके. इस से बढ़िया और भला क्या होगा. , बड़े चाव से खाया मैंने .

“मेरी माँ होती तो वो भी ऐसी ही रोटी बनाती ” मैंने कहा

“बेशक, एक रोटी और ले ” मीरा ने मेरी थाली में रोटी रखी

मैं- माई, मेरी माँ का घर देखना चाहता हु मैं, माँ को तो कभी देख नहीं पाया. पर जिस घर में वो थी , जहाँ वो पली थी मैं उस घर की मिटटी को माथे से लगाना चाहता हूँ .

मीरा- ये मुमकिन नहीं

मैं- क्यों .

मीरा- अब कुछ नहीं बचा. सिवाय यादो के , यादे, जो बस दर्द दे सकती है , तू जितना अतीत तलाशेगा उतना दर्द मिलेगा तुझे .

मैं- मेरी माँ को जानती थी आप , न जाने कितनी बाते करती होंगी वो आपसे, मेरे लिए इतना कर दीजिये

मैंने हाथ जोड़ दिए .

मीरा- सुहासिनी की परवाह थी इसलिए कहती हूँ लौट जा यहाँ कुछ नहीं . अतीत को छोड़, आगे का देख, तेरा जो चला गया वो लौट कर तो आ नहीं सकता , सुलतान अक्सर कहता था की देव एक न एक दिन जूनागढ़ जरुर आएगा और मैं हमेशा दुआ करती थी की वो दिन कभी न आये, पर वो हरामजादी तुझे यहाँ ले आई . क्या वो जानती है सुहासिनी तेरी माँ है

मैं- अभी तो नहीं .

मीरा- मेरे बच्चे, मैं तेरे लिए कुछ नहीं कर सकती , शम्भू ही जाने , उसके पास जा , शम्भू सब देख रहा है तेरा भाग भी वो ही लिखेगा. मावस के सोम को जब बिजली राह दिखाए तो रक्त को रक्त पहचाने का , अँधेरे मेह में दो दिए जले तब चौखट खुले ,शम्भू तब पहचाने , तब आशिस दे.

मैं - क्या है ये .

मीरा- तेरी माँ के अंतिम शब्द वो धागा पहने रहना , तेरी हिफाजत करेगा

इसके बाद वो और कुछ न बोली, मैंने अपना खाना ख़त्म किया और वापिस हवेली की तरफ चल दिया. कहने को तो भरा पूरा गाँव था पर कुछ तो था ऐसा जो इन दीवारों, इन गलियारों में छुपा था . वापस मैं कुछ देर से आया तब तक हलकी हलकी शाम ढलने लगी थी .

मैंने पाया मोना मेरा ही इंतज़ार कर रही थी .

“कहाँ गायब थे, मुझे फ़िक्र होने लगी थी ,” मोना ने कहा

मैं- बस ऐसे ही ,

मोना- तैयार हो जाओ शादी में चलना है

मैं- हाँ

थोड़ी देर बाद मैं तैयार होकर आया , मोना भी कुछ देर बाद आ गयी . गहरी नीली साडी में बड़ी जंच रही थी वो . उसके कपडे पहनने की अंदाज से ही मालूम होता था की ऊँचे खानदान की है वो .

“जब तुम ऐसे देखते हो तो सीधा दिल में उतरती है ये नजर ” उसने कहा

मैं- जी करता है की देखता ही रहू, तुम्हे



मोना- मुझे देखने के लिए मुद्दत पड़ी है . पर फिलहाल शादी में चलते है .

मैंने हाँ में सर हिलाया. जल्दी ही गाडी शादी वाले फार्महाउस पर जा रही थी , ये जगह जूनागढ़ को पार करते हुए पहाड़ो से होते हुए थोडा आगे थी. मैंने गाड़ी में नोटिस किया की मोना बार बार कनखियों से मेरी तरफ ही देख रही थी . आपस में चुहल बाज़ी करते हुए करीब आधे घंटे में हम फार्महाउस पर पहुच गए.

अन्दर बड़ा शानदार नजारा था , ऐसी शादी मैंने कभी नहीं देखि थी , न जाने कितने लोग थे , कुछ रस्मे थी , मोना को शायद उसकी कुछ सहेलिया मिल गयी थी , मैंने उसे जाने दिया उसके पास. मैंने एक जूस लिया और अपने लिए एक कुर्सी तलाश ही रहा था की किसी ने पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा . मैंने मुड कर देखा................
 
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#29

मैंने मुड कर देखा . सामने शकुन्तला थी . दरअसल मैं हैरान हुआ उसे यहाँ देख कर

“तुम यहाँ सेठानी ”

सेठानी- क्यों, मैं यहाँ नहीं होसकती

मैं- बिलकुल , वो मैंने सोचा नहीं था की यहाँ तुमसे मुलाकात होगी

सेठानी- ये मुलाकाते भी बड़ी अजीब होती है, न जाने कब कहाँ किस से हो जाये. मैंने भी कहाँ सोचा था की तुमसे यहाँ मिलूंगी, खैर तुम कैसे यहाँ

मैं- दोस्त के साथ आया हूँ,

“आओ बैठते है मैं भी बोर हो रही हूँ, , कुछ लोगे तुम ” शकुन्तला ने पूछा

मैं- नहीं ठीक है . वैसे मैं तुमसे कुछ पुछू

सेठानी- जरुर

मैं- देखो मेरे पास एक सुझाव है , तुम मेरे कुछ सवालो के जवाब दो बदले में मैं तुम्हे वो जमीन दूंगा जिसकी तुम्हे चाहत है , जब तुम कहोगी

शकुन्तला ने बड़ी गहरी नजरो से देखा और बोली- मैं जानती हु, तुम अपने अतीत को शिद्दत से खोजना चाहते हो पर जितना मुझे मालूम है मैं बता चुकी हूँ . बेशक मुझे वो जमीन चाहिए पर अब मैं भी पक्की व्यापारी हूँ सौदा बराबरी का तो करू, और तुम्हारे अतीत की कीमत उस जमीन के टुकड़े से कही ज्यादा है ,

मैं- कोई तो होगा जो मेरी मदद कर सकता है ,

सेठानी- जानते हो गाँव वाले, तुम्हारे अपने घर वाले सब कतराते क्यों है तुमसे.

मैं- तुम बताओ

सेठानी- ये दुनिया तुम्हे एक श्राप समझती है गाँव में रक्त की नदी या तो उस दिन बही थी जब वो सर्प तुम्हे लेकर आया था या फिर अब , पुरे अठरह साल बाद. गाँव वाले एक बार फिर खौफ में है .

मैं- कैसा श्राप , खुल कर बताओ मुझे

शकुन्तला कुछ कहने ही वाली थी की जब्बर हमारी तरफ ही आ रहा था तो वो चुप हो गयी .

“सेठानी, तू यहाँ है बाउजी तुझे बुला रहे है , वो जो लोग आने थे आ गए है ” जब्बर ने कहा

शकुन्तला- छोटे चौधरी, मुझे जाना होगा.

शकुन्तला आगे बढ़ गयी जब्बर ने उसकी गांड को देख कर मेरी तरफ गन्दा सा इशारा किया , जी तो किया इसकी गांड तोड़ दू पर दुसरो के घर तमाशा करना मेरी आदत नहीं थी . कुछ देर बाद मोना मेरे पास आई

“थोड़ी देर लग रही तुम्हे तो पता है की शादियों में कई लोगो से मिलना होता है , खाना मंगा लू ” उसने कहा

मैं- थोड़ी देर में ,

मोना- जानती हूँ मन नहीं लग रहा होगा तुम्हारा यहाँ , किसी को जानते जो नहीं

मैं- किसी को जानना चाहता हूँ , अगर वो चाहे तो

मैंने मोना की आँखों में देखते हुए कहा

“मुझे जानने के लिए पहले तुम्हे खुद को जानना होगा, तुम और मैं एक से ही है एक को जान लिया तो दूजे को भी पहचान लिया. ” उसने कहा

“वैसे इस शानदार माहौल में एक पेग लिया जाये , क्या कहते हो ” मोना ने मुझसे पूछा

मैंने हाँ में सर हिला दिया .

सर्दी की इस कम्प्कम्प्ती रात में जो ये कडवी दावा जिस्म में जा रही थी , अन्दर दारू की गर्मी की बात ही अलग थी .

“तुम्हारे साथ होती हूँ तो बड़ा अच्छा लगता है , जब तुम हाथ थामते हो तो लगता है की इस जहाँ में मेरा कोई अपना है ” मोना ने कहा

मैं- तुम भी तो मेरी अपनी ही हो .

मैं बेशक बाते मोना से कर रहा था पर न जाने मेरी निगाहों को किसकी तलाश थी . बार बार आँखे इधर उधर देख रही थी .

“ऐसा लगता है जैसे तुम्हारी दिलचस्पी मेरे अलावा भी किसी और में है किसे तलाश रही है ये गुस्ताख आँखे ” मोना ने पूछा

“आँखे है कब गुस्ताखी कर जाये, इनकी मर्जी है , मैं तो मुसाफिर हूँ , ये आँखे बस सफ़र देखती है ” मैंने कहा

मोना- मंजिल पास ही है , सोचो जरा, मैं थोड़ी देर में आती हूँ फिर खाना खायेंगे

मोना वापिस से मंडप की तरफ चली गयी . बीच में मुझे एक दो बार शकुन्तला और सतनाम दिखे , वो लोग किसी अलग ही उदेधबुन में थे , जैसे शादी से उन्हें कोई सरोकार ही नहीं था . मुझे भी बैठे बैठे कोफ़्त होने लगी थी ऊपर से दारू का सुरूर , इस सर्द रात में मेरी तन्हाई मुझ पर हावी होने लगी , मुझे किसी अपने की तलाश थी , हसरत थी जिसकी बाँहों में मैं खुद को पा सकू,



मेरा दिल बड़ी तेजी से धडक रहा था , मैं इधर उधर घूम रहा था की मेरे कानो में पायल की आवाज आई, शादी के इस शोर में भी मैंने उस आवाज को बड़ा साफ़ सुना, जैसे ही दूसरी बार वो झंकार मेरे कानो में आई, दिल झूम उठा . होंठो पर एक ही नाम आया . रूपा.



मैंने इधर उधर देखा पर वो न दिखी, भीड़ से बचते हुए मैं मंडप की तरफ जा ही रहा था की मुझे वो दिखी जिसका दीदार करना मेरे लिए किसी इबादत से कम नहीं था . कोई चार पांच लडकियों से घिरी रूपा खिल खिला आर हंस रही थी .



और मैं बस उसे ही देखे जा रहा था बस उसे ही , आसपास अब क्या हो रहा था किसे खबर थी ,मैं कुछ कदम और आगे बढ़ा . दिल तो किया की उसे अपनी बाँहों में भर लू पर ऐसा खुले आम भी तो नहीं कर सकता था , इंतज़ार था बस कब उसकी नजर मुझ पर पड़े. और जल्दी ही वो लम्हा भी आया .

जब चेहरे पर घिरी जुल्फों को बड़े इतराते हुए हटा कर उसने मुझे देखा. हमारी नजरे आपस में मिली. मैंने उसके दिल को अपने सीने में धडकते महसूस किया. उसकी नजरे मुझ पर जम गयी थी , मैं जानता था उसे यकीन नहीं हो रहा था की मैं भी यहाँ पर हूँ . मैं उसकी तरफ बढ़ा पर उसने इशारे से मुझे रोका .

मैं वही रुक गया , उसने पास में रखी ट्रे उठाई और मेरे पास आई .

“पानी ”

मैंने गिलास उठाया .

“रूपा, ” मैंने इतना कहा की उसने टोक दिया .

“अभी कुछ मत कहो , मैं जल्दी ही मिलती हूँ बाट देखना , ”

मैंने वापिस गिलास रखा वो चली गयी . पर मेरा दिल साथ ले गयी . अब किसका दिल लगना था यहाँ किसे परवाह थी .करीब घंटे भर बाद एक लड़का मेरे पास आया और एक पर्ची मेरे हाथ में दे गया . मैंने खोल कर देखा ,, “टेंट के दाई तरफ मिलो ”

मैं जान गया ये रूपा ने भेजा था . मैं उधर से निकल गया . बाहर घुप्प अँधेरा था और तेज हवा चल रही थी . अब मुझे किस तरफ जाना था क्योंकि मेरे पास लालटेन नहीं थी और रूपा भी नहीं दिख रही थी पर मेरे दिलबर की भी अदाए बड़ी थी. मुझे पायल से इशारा कर रही थी वो . झंकार सुनते सुनते मैं शादी की जगह से काफी दूर चला आया था . और फिर मैं एक ऐसी जगह पहुंचा जहा रौशनी थी ,ये एक अजीब सी ईमारत थी जहाँ फर्श और चार खम्बे थे ऊपर कोई छत नहीं थी बीच में अलाव जल रहा था . और अलाव के पार वो खड़ी थी ...........
 
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#30





अलाव के पार वो खड़ी थी , खामोश आंच की लौ में उसका चमकता चेहरा . वो आग अलाव में नहीं बल्कि हम दोनों के सीने में जल रही थी , उस सांवले चेहरे में जो कशिश थी मैं बस पिघल जाता था . इस से पहले की वो कुछ भी कहती मैं आगे बढ़ा और अपनी दिलरुबा को आगोश में भर लिया. जैसे बरसो बाद मिली थी वो . मैंने अपने लबो को उन सुर्ख होंठो से जोड़ दिया.



प्यासे को जैसे बंजर में पानी का सोता मिल गया हो. रूपा ने अपने हाथ मेरी पीठ में डाले और जैसे मुझ में समां गयी हो. जब हमारा चुम्बन टुटा तो सांसो में साँस आई .

“एक पल तो मुझे यकीं ही नहीं हुआ तुम यहाँ हो ” हाँफते हुए उसने कहा



मैं- मेरी जान जहाँ है मैं तो वही रहूँगा न .

“मैंने तुमसे कहा था मेरे पीछे न आना , मेरी सुनते ही नहीं हो तुम मुसाफिर ” रूपा ने शिकायती लहजे में कहा

मैं- मुसाफिर का सफ़र उसकी मंजिल तक , अब मैं चाहे किधर भी चलू कदम बस तेरे दर पर ही ले आते है मेरी जान .

“यही मीठी बाते तो मुझे फंसा लेती है सरकार ” वो बोली

मैं- नजरे न जाने कबसे तुम्हे तलाश कर रही थी

रूपा- बच भी तो नहीं पायी मैं

मैं-सो तो है .

रूपा अलाव के पास बैठ कर हाथ सकने लगी. मैं भी पास बैठ गया .

“ये कौन सी जगह है रूपा ” मैंने पूछा

रूपा- तुम्हे याद नहीं .

मैं- मुझे कैसे याद होगा , मैं तो पहली बार आया हूँ यहाँ

रूपा- सो तो है मैं भूल गयी थी , दरअसल इस से पहले हम गाव में ही मिले है तो बस वो ही याद रहा . ये चरवाहों का तिबारा है . किसी ज़माने में लोग आते जाते यहाँ बैठ जाया करते थे .

“बढ़िया , हमारे यहाँ होने का बस यही कारन है ” मैंने कहा

रूपा--- इस से बेहतर क्या होगा. हमारी मुलाकात के लिए .इस वीराने में हम दोनों एक दूजे के संग और ये शानदार रात. मेरी खुशनसीबी है की मैं अपने यार के साथ हूँ,

मैंने रूपा का हाथ अपने हाथ में लिया.

“तुम किसके साथ आये यहाँ ” पूछा उसने

मैं- न्योता गया था , कोई और आया नहीं तो मैं ही चला आया

मैंने झूठ बोला रूपा से.

“कुछ परेशां लगते हो मुसाफिर , क्या बात है ” बोली वो

मैं- एक पहेली है , जिसे सुलझाने की कोशिश कर रहा हूँ

रूपा- मुझे भी बताओ,

मैं-मावस के सोम को जब बिजली राह दिखाए तो रक्त को रक्त पहचाने का , अँधेरे मेह में दो दिए जले तब चौखट खुले ,शम्भू तब पहचाने , तब आशिस दे. इसका क्या मतलब है .

“ये तो अजीब से शब्द है . किसने बताये तुम्हे. ”

मैं- बस ऐसे ही सुने मैंने तो होंठो पर रह गए तबसे

रूपा ने इस बार मुझे ऐसी नजरो से देखा जैसे वो नाप रही हो की मैं सच बोल रहा हूँ या झूठ .

रूपा- चल छोड़ इसे,और अपनी बता

मैं- तेरे बिना एक एक पल सदी सा लगे मुझे. तू जो नहीं तो लगे की एक हिस्सा नहीं इस जिस्म का

रूपा ने अपना सर मेरी गोद में रखा और लेट सी गयी .

“तू कहे तो विक्रम चाचा को भेजू तेरे बापू से बात करने को , ”

रूपा- जल्दी ही . देव, क्या तुझे मालूम है तेरी माँ इसी गाँव की थी

मैं- जानता हूँ

रूपा- तेरे मामा- नाना से मिला

मैं- नहीं. बरसो से वो कभी आये ही नहीं मुझसे मिलने , उनको शायद याद भी नहीं होगा. तो रहने दिया .वैसे भी गाँव वाले मुझे श्राप मानते है तो क्या मालूम यहाँ के लोग भी ऐसा ही सोचते होंगे तो

रूपा- किसने कहा तुमसे ऐसा.

मैं- सब कहते है

रूपा- दुनिया का क्या है कुछ भी बोलती है तुम ध्यान मत दो

मैं- रूपा, मैं अपने माँ-बाप के बारे में जानना चाहता हूँ और जानकारी कही मिलेगि तो यही जूनागढ़ में , पर मैं किसी को नहीं जानता, कौन यहाँ अपना है कौन पराया.

हम बाते कर ही रहे थे की तभी बादलो से चाँद निकल आया चांदनी धरती पर गिरने लगी .

“काफी देर हुई देव, मुझे जाना चाहिए , बापू ढूंढेगा मुझे , मैं जल्दी ही मिलूंगी ” रूपा ने अपना शाल ओढ़ते हुए कहा

मैं- हम्म

रूपा- पहले मैं जाउंगी तू फिर आना .

छम छम करती रूपा आगे बढ़ गयी कुछ देर बाद उसकी पायल की आवाज आणि बंद हो गयी, जैसे वो थी ही नहीं . मैं भी अंदाजे से वापिस चल पड़ा. पर क्या मेरा अंदाजा सही था, नहीं , बिलकुल नहीं कुछ दूर चलने के बाद ही मैं समझ गया था की रास्ता भटक गया हूँ मैं .

बेशक आसमान में चाँद की रौशनी थी पर फिर भी दूर दूर तक कुछ नहीं दिख रहा था सिवाय जंगल के .मैंने अपने कान केन्द्रित किये ताकि मैं जरनेटर की आवाज सुन सकू, क्योंकि टेंट की रौशनी दिख नहीं रही थी मुझे.

चलते चलते न जाने कितनी दूर आ गया था मैं . साँस थोड़ी फूलने लगी थी मेरी . काफी चलने के बाद मुझे पत्थरों से बनी कोई ईमारत सी दिखी तो मैं उधर ही चला गया . वहां जाकर मैंने देखा ये अजीब सी जगह थी आस पास कुछ पत्थरों की शिलाए थी . ऊपर को कपडा सा था जो हवा से हिल रहा था .

बीच में कुछ ऐसा था जिसे मैं समझने की कोशिश कर रहा था . जैसे किसी कुवे की मुंडेर पर रस्सी को गोल गोल करके रखा गया हो . . पास में एक डंडा सा था . मैंने जैसे ही डंडे को छुआ गजब हो गया . वो जो रस्सी सा था उसमे एकदम से पीली रौशनी हुई और अगले ही पल मेरे कानो को एक तेज चीख बेध गयी . चिंघाड़ती हुई चीख और वो पीली रौशनी इस से पहले मैं सम्झ्पाता मेरे सीने में तेज दर्द हुआ जैसे की अन्दर कुछ घुस गया हो .मैंने खुद को धरती पर गिरते महसूस किया.

 
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#31

आँखे खुली तो मैंने खुद को हवेली में पाया. मेरे पास ही मोना बैठी थी , मैंने देखा बदन पर बहुत सी पट्टी बंधी है .

“मोना, यहाँ कैसे आया मैं ” पूछा मैंने

मोना- तुम टेंट के पीछे घायल मिले थे बर्तन साफ़ करने वालो को . ये छोड़ो पहले बताओ की अब ठीक हो , मेरा मतलब कैसा महसूस कर रहे हो .

मैं- ठीक हूँ बस बदन में दर्द है

मोना- मैं जानती हूँ , ये सब जब्बर ने किया है , मैंने गिरफ्तार करवा दिया है उसे, कड़ी कार्यवाही करवाती हु उसके खिलाफ.

मैं- वो निर्दोष है , उसे मत घसीटो . शिकायत वापिस ले लो

मोना- पर मैं जानती हूँ देव ये उसी ने किया है

मैं- कहा न , उसने नहीं किया . बेशक मेरा झगड़ा हुआ उस से पर ये हमला उसने नहीं किया .

मोना- तो तुम बताओ इतनी गहरी चोट किसने मारी तुम्हे

मैं- सवाल ये नहीं है , सवाल ये है की मैं टेंट के पास कैसे आया जबकि मैं वहां से दूर था .

मोना- तुम कहाँ दूर थे,

मैं- समझने की कोशिश करो एक मिनट, तुम मुझे चरवाहों के तिबारे पर एल चलो

मोना- कहाँ ले चलू.

मैं- चरवाहों के तिबारे पर

मैंने मोना के चेहरे पर हवाइया उड़ते देखि .

मैं- क्या हुआ

मोना- मुझे लगता है तुम्हारे दिमाग पर कुछ उल्टा असर हुआ है .

मैं- क्यों

मोना- क्योंकि ऐसी कोई जगह है ही नहीं

अब हैरान होने की मेरी बारी थी .

मैं- मोना झूठ मत बोलो

मोना- मैं भला क्यों झूठ बोलूंगी

मैं- गाड़ी तैयार करवाओ, हम अभी उसी जगह चल रहे है.

मोना को भी अब थोड़ी उत्सुकता होने लगी थी तो हम कुछ देर बाद मेरी बताई जगह की तरफ चल पड़े. ज़ख्म की वजह से जिस्म में दर्द था पर मोना उस जगह को झुठला रही थी जिसे मैंने खुद देखा था . जल्दी ही गाड़ी फार्महाउस के पास थी .

“अब किधर ” मोना ने पूछा

और मेरे पास कोई जवाब नहीं था क्योंकि रात के अँधेरे और दिन के उजाले में बहुत फर्क था और इस जंगल में उस चीज को कैसे ढूंडा जाये, सवाल ये था .

“बताता हूँ ” मैंने कहा

मैं गाड़ी से उतर कर उस तरफ गया जहाँ से मैं जंगल में गया था . मैंने मोना को पीछे आने को कहा . गाड़ी मेरे पीछे चलने लगी .चलते चलते हम काफी दूर आ गए थे . मैं पूरा ध्यान लगा रहा था की मैं चरवाहों के तिबारे को दिखा सकू मोना को .

जंगल के अन्दर एक ऐसी जगह भी आई जहाँ थोड़ी जगह सपाट-समतल थी .

“यही कही होना चाहिए उसे ” मैंने अपने आप से कहा . मोना भी गाड़ी से उतर आई . ड्राईवर ने व्हील चेयर पर बिठाया उसे और मेरे पास ले आया .

“यहाँ क्या है कुछ भी तो नहीं देव. ” उसने कहा

मैं- मेरा यकीन करो मोना , वो यही कहीं था . तिबारे के चार खम्बे थे ऊपर छत नहीं थी . चूँकि ठण्ड बहुत थी तो मैं बिलकुल अलाव के पास ही बैठा था . अलाव एक मिनट, मोना अलाव था तो राख भी रहेगी लकडियो की .

मैं तुरंत इधर उधर देखने लगा. करीब सौ मीटर आगे जाने पर मेरी आँखों में चमक आ गयी और होंठो पर मुस्कुराहट , क्योंकि मुझे राख मिली थी . मैंने राख को हाथ में लिया अभी भी गर्मी बाकी थी . पर एक आश्चर्य और था मेरे लिए. गर्म राख का होना साबित करता था की मैं यही था पर अब मेरी आँखे बता रही थी की यहाँ ऐसा कोई तिबारे नहीं था .

“देखो मोना ये राख अभी भी गर्म है , मैं यही था ” मैंने कहा

मोना- पर हालात तो कुछ और कहते है और फिर ये बस एक संभावना है हो सकता है की किसी और ने भी जलाई हो आग. अब जंगल पर बस तुम्हारा ही तो अधिकार नहीं .

मैं- हो सकता है .

मैं ड्राईवर के पास गया और बोला- बाबा , आप तो यही के है, आप तो न जाने कितनी बार इस जंगल में आये होंगे आप तो जानते होंगे चरवाहों के तिबारे के बारे में

ड्राईवर- हुकुम, मैंने भी ऐसी जगह के बारे में कभी नहीं सुना.

मोना- चलो इस तिबारे का चक्कर छोड़ो, मुद्दा ये है की तुम पर हमला किसने किया . तुम जब्बर को मना कर रहे हो तो फिर कौन, और उसके पास क्या वजह थी की वो तुम पर हमला करे , क्या हमला भी उसी तिबारे पर हुआ था .

मैं- नहीं तिबारे पर नहीं हुआ. वो जगह भी यही कही थी . अजीब सी जगह चार शिलाए, ऊपर कुछ झंडे सा लहरा रहा था , शिलाओ के बीच कुछ रस्सी सा पड़ा था और एक लम्बा सा डंडा था , चांदनी में म्मैने खूब देखा था उस जगह को .

“शम्भू का शिवाला ”अचानक से ड्राईवर बोल पड़ा .

मैं और मोना उसके मुह की तरफ देखने लगे.

“शम्भू का शिवाला मेमसाब , हुकुम शायद कल रात उधर ही चले गए थे ” ड्राईवर ने कहा .

मोना- तुम गाड़ी ले आओ हम वापिस हवेली चल रहे है

मैं- पर क्यों , हमें तो शिवाले पर जाना चाहिए.

मोना- मैंने कहा न नहीं मतलब नहीं

मैंने मोना का हाथ पकड़ा और बोला- कुछ छिपा रही हो मुझसे

मोना- देव, हमें चलना चाहिए

मैं- बेशक हम चलेंगे पर हवेली नहीं बल्कि शिवाले पर , मुझे वहां ले चलो मोना ले चलो

मोना- मेरी बाट समझते क्यों नहीं तुम ,

मैं- आखिर क्यों नहीं ले जाना चाहती तुम मुझे वहां , तुम्हे हमारी दोस्ती की कसम मुझे ले चलो वहां .

मोना-कसम देकर तुमने मुझे रुसवा किया देव. पर तुम्हारी दोस्ती मुझे सबसे प्यारी है मैं लेके चलूंगी तुम्हे. पर पहले ड्राईवर काका को फार्महाउस छोड़ आते है मैं नहीं चाहती की हमारे दरमियान कोई रहे. ड्राईवर को छोड़ने के बाद गाड़ी मैं चलाने लगा. करीब पंद्रह- बीस मिनट के बाद हम लोग एक ऐसी जगह पहुंचे जहा जाने की मैंने कल्पना भी नहीं की थी , मेरा मतलब ये जगह ये होगी ये मैंने नहीं सोचा था .

“ये तो . येतो ” मेरी बात जैसे गले में ही अटक गयी .

मोना- हाँ ये एक .......................
 

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