Adultery गुजारिश(HalfbludPrince)

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#32



“हाँ, ये एक शमशान है ” मोना ने कहा

कुछ देर बस मैं उसे देखता रहा .

“शमशान में शम्भू की मूर्ति ” मैंने सवाल किया .

मोना- शिव तो सब कही है ,

मैं- सो तो है पर शमशान में शम्भू साधना करते है , यहाँ मूर्ति का पूजन कैसे हो सकता है .

मोना- ये बड़ी गूढ़ बाते है देव, तुम्हे और मुझे समझने नहीं आने वाली, ये शमशान कच्येचे कलवो था काहिर शिवाला अब बीता दौर है

मैं- क्यों

मोना मुझे जवाब देती उस से पहले ही मेरी नजर एक काले साए पर पड़ी .

“ये तो मीरा है , ये यहाँ क्या कर रही है ” मैंने मोना को मीरा की तरफ इशारा करते हुए कहा

मोना- उस से ही पूछते है .

हम दोनों मीरा के पास गए. और वहां जाकर हमें एक और ही अजीब बात दिखी , मीरा एक जगह बैठी थी दीपक जला कर .

मैं- तुम यहाँ कैसे माई

मीरा- यही मैं तुमसे पूछना चाहती हूँ .

मैं- चला जाता अगर कल मुझ पर हमला नहीं होता ,

मैंने अपनी शर्ट उतारी और जख्म मीरा को दिखाया . खून से सनी पट्टिया देख कर मीरा की आँखे जैसे बाहर को आ गयी . बड़ी फुर्ती से उठी वो

एक झटके से पट्टी खींच ली उसने दर्द के मारे चीख पड़ा मैं .

“माई, क्या कर रही हो तुम ” मोना को गुस्स्सा आ गया .

मीरा- तू दूर खड़ी रह छोरी , मुझे देखने दे.

हंसली से लेकर पसलियों तक बड़ा गहरा चीरा था वो .

मीरा- कहाँ हुआ ये तूने देखा किसी को

मैं- हुआ तो यही था इन शिलाओ के पास . मैं वहां खड़ा था . मैंने इशारा किया . मैं वहां खड़ा था . बेशक चांदनी रात थी ,, पर फिर भी इधर अँधेरा था . यहाँ पर बहुत बड़ी रस्सी पड़ी थी मैंने बस उसे छुआ था और फिर अचानक से मुझे दर्द हुआ और मैं बेहोश हो गया .

“मैंने लाख कहा था सुलतान को तुझे कभी न भेजे यहाँ पर वो न जाने किस मिटटी का बना है इतना सब देखने के बाद भी उसका कलेजा नहीं भरा जा ये दिखा उसे ” मीरा की आँखों में आंसू भर आये.

मोना- आप बाबा को कैसे जानती है माई

मीरा- ठाकर की छोरी तू तो चुप ही रह, साथ लायी थी न इसे, फिर क्यों छोड़ा , कहीं तेरी साजिश तो नहीं थी ये

मोना- क्या बोल रही हो माई, मुझे मालूम ही नहीं कब ये शादी से गायब हो गया , मुझे अगर मालूम होता तो एक पल क्या मैं देव को लाती ही नहीं यहाँ .

मीरा- मुझे बिसबास नहीं तुझ पर छोरी , पर तू अगर हिमायती है इसकी तो इसे अभी सुलतान के पास लेजा . जख्म गहरा है ये पट्टिया कामयाब नहीं हफ्ते भर का टेम है बस ,ये छोरा अमानत है प्राण संकट में डाल दिए इसके , इसे लेजा अभी के अभी .

मोना- पर

मीरा- पर वर मत कर छोरी. सुलतान के पास जा और कहना की मीरा को शक्ल न दिखाए अपनी वो , जा चली जा .

मोना और मैं वापिस गाँव के लिए चल पड़े. रह गयी मीरा जो अब शम्भू की मूर्ति के पास खड़ी थी .

“तेरी लीला तू जाने, मैं तब चुप रही सोची तेरी मर्जी है तू जो करे ठीक करे सब्र कर लिया था मैंने. पर इस अभागे का के दोष है , ये न समझ तो भटकते हुए आ पहुंचा इधर, और कौन सा गुनाह किया इसने तेरे दर पर तो सब आवे है इन्सान, भुत पिसाच, नाग . तू तो सबका है तू जानता है वो सुहासिनी का अंश है और तेरे दरबार में सुहासिनी के अंश पर ये विपदा आन पड़ी शम्भू, कर कोई चमत्कार , मेरी खाली झोली में बस यो लड़का ही है , इसकी रक्षा कर मेरे मालिक ” मीरा ने अपने आंसू हथेली पर इकठ्ठा किये और शम्भू के चरणों में रख दिए.



हमें मेरे गाँव आने में करीब दो घंटे लग गए. हम सीधा मजार पर गए . मैंने देखा बाबा चिलम लगाये अपने ठिकाने पर बैठा है . हम गाड़ी से उतरे. मोना ने बाबा को आवाज दी . हमें देखते ही बाबा के होंठो पर मुस्कान आ गयी .

“आ मुसाफिर, तेरे बिना तो मन लगता ही नहीं आजा चा पीते है .” बाबा ने आवाज दी .

मैंने मोना को चेयर पर बिठाया और बाबा के पास गया .

मोना- बाबा मुसीबत आन पड़ी है , मीरा नाराज है तुमसे .

बाबा- आज की नाराज है क्या एक मुद्दत हुई अब तो

मोना- बाबा बात कुछ और है

मोना कुछ कहती उस से पहले ही मैंने शर्ट उतार दी . बाबा के हाथ से चिलम निचे गिर गयी . अफीम खाई आँखे और चौड़ी हो गयी . बाबा ने मेरे सीने के जख्म को देखा , कुछ सूंघा

“असंभव , ये मुमकिन नहीं ” बाबा ने कहा .

मैं- क्या मुमकिन नहीं .

“मुसाफिर, मुझे पूरी घटना बता कुछ छिपाना नहीं तुझे कसम है मेरी ” बाबा ने उत्तेजित स्वर में कहा .

मैंने बाबा को सारी घटना बताई. बाबा की पेशानी पर बल पड़ गया .

“कुछ तो बोल बाबा ” मैंने कहा

बाबा- रे छोरे यो के मुसीबत कमा लाया तू . सोची तो कुछ और थी बन कुछ और गयी . मैं के करू इब्ब.

मोना- राह दिखाओ बाबा. मीरा माई कह रही थी एक हफ्ते का समय है देव के पास.

बाबा- आज रात तुम यही रुको. आने वाले कुछ दिन बड़े भारी होने वाले है . पर एक बात खटक रही है चरवाहों का तिबारा तु खुद न देख सके . बेशक तू खास है पर मेरे जंचती नहीं ये बात

मोना- क्या है बाबा ये चरवाहों का तिबारा

बाबा- बताता हूँ ठाकर की छोरी , एक लम्बी कहानी है और छोटी जिंदगानी . हमारे कबीले के लोग पहले बहुत घूमते थे इधर उधर, कुछ खास सामान होता था , तो लूटपाट से बचने के लिए हम ने एक तिबारा बनाया था , अक्सर कुछ खास लोग वहां रात को रुक जाते थे . तुम लोगो को यकीं करने में थोड़ी मुश्किल होगी पर फिर हम उसे छुपा देते थे .

मैं- मतलब

बाबा- ये हमारी कुछ कलाए थी . पर एक मुद्दत से वो छुपा हुआ है यहाँ तक की हम भी उसे प्रकट नहीं कर सकते . इसलिए मुझे अचम्भा है , मुसाफिर उस रात तेरे साथ कोई और भी था , बता कौन था .
 
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#33

“कोई नहीं था बाबा ” मैंने कहा

बाबा ने फिर कोई सवाल नहीं किया ,बस अपना इकतारा लिया और बजाने लगा. शायद वो भी जानते थे की मैं झूठ बोल रहा हूँ . और मैं नहीं चाहता था की मैं रूपा का जिक्र करू मोना के सामने . जैसे जैसे रात बढ़ रही थी दर्द बढ़ रहा था . मोना को मैंने कार में जाने को कहा उसे भी आराम की जरुरत थी .



मोना के जाने के बाद बाबा ने अपना ध्यान तोडा

“मुसफिरा, ये जो जख्म लाया हैं न तू ये तेरे जीवन और मरण का सम्बन्ध है , ये वार ने मुझे अचम्भे में डाल दिया , समझ नहीं आ रहा की तुझसे कहू तो क्या कहूँ उनीस साल बीत गए, सब राजी था . पर ये नहीं मालूम था की मौत घात लगाये है , मीरा का दिया डोरा क्यों न पहना तूने. ” बाबा ने कहा

मैं- साफ साफ बताओ बाबा , मैं सब जानना चाहता हूँ

बाबा- तो सुन , ये कोई मामूली जख्म नहीं है , ये वार अपने आप में अद्भुद है, जिस तलवार से ये वार किया गया है वो अपने आप में एक अजूबा है , किसी धातु की नहीं बल्कि पेड़ की टहनी की बनी तलवार ,

मैं- लकड़ी की तलवार

बाबा- हाँ लकड़ी की तलवार पर किसी साधारण पेड़ की लकड़ी नहीं कल्प व्रक्ष की लकड़ी , जिसकी मूठ रुद्राक्ष से बनी, वो रुद्राक्ष जो स्वयं शम्भू की बाहँ से टूट कर गिरा था . वो तलवार धरती पर मोजूद हर प्रजाति के रक्त से अभिषेक हुई . वो तलवार नागेश की है , नागेश नागशक्ति

ये नागेश का वार है ,

मैं- कौन नागेश और मेरा क्या लेना देना बाबा उस से

बाबा- ये दुनिया बस वैसी ही नहीं है जो तुझे तेरी आँखे दिखाती है ये दुनिया उसके आलावा भी बहुत कुछ है .

“और इस छिपी हुई दुनिया की क्या सच्चाई है बाबा ” मैंने थोडा उतावला होते हुए कहा .

बाबा- फिलहाल तो सच यही है की तुम्हारे सामने मौत खड़ी है . और इलाज नहीं है

मैं- जख्म है तो दवा भी होगी बाबा. कहीं तो होगी मैं ले आऊंगा

बाबा- ये नागेश का वार है मेरे बच्चे इस से बचना लगभग असंभव है . आज तक इसके वार से बस एक ही बच सका है कोई

मैं- कौन बाबा, और कौन है ये नागेश जिसका आप जिक्र कर रहे है पर बताते नहीं .

बाबा ने चिलम का कश लिया और बोले- नागेश वो है जिसके बारे में जितना कहा जाये कम है , नागेश वो है जिसने प्रकर्ति के अहम् नियम को मोड़ दिया था . नागेश वो है नागशक्ति है, नागेश वो छाया है जो सूरज को ढक ले. नागेश समूह में सबसे ऊँचा है , तंत्र और टोने के प्रथम चार संस्थापको में से एक . नागेश वो जिसने जादू का प्रयोग अलग दिशा में किया . नागेश जिसने खुद को इस काबिल बनाया की वो किसी भी योनी को आत्मसात कर सके .



“बाबा, इतने महान आदमी ने मुझ पर बिना किसी प्रयोजन के क्यों हमला किया ” मैंने पूछा

बाबा- यही पर तो मैं उलझा हूँ मुसाफिर , क्योंकि नागेश उन्नीस साल पहले जा चूका है , और जिस चीज़ ने मुझे उलझन में डाला अहि वो ये वार, क्योंकि इस तलवार को अगर कोई उठा सकता है तो है सुहासिनी ,और वो भी जा चुकी है .

मेरे लिए बाबा की बाते किसी गिरती बिजली से कम नहीं थी .



“मेरी माँ का क्या लेना देना था नागेश की तलवार से बाबा ” मैंने कहा

बाबा- तेरी माँ ने जीता था तलवार को .

मैं- मतलब

बाबा- मतलब ये की तेरी माँ ने नागेश को हरा दिया था . दुनिया आज भी विश्वास नहीं करती पर सच यही है की उस रात कुछ ऐसा हुआ था की सुहासिनी ने नागेश की तलवार जीत ली थी . बहुत से लोग मानते भी नहीं परन्तु उस रात के बाद से नागेश को कभी नहीं देखा गया . कभी नहीं सुना गया उसके बारे में . पर मेरा मानना है की उस रात दो नहीं बल्कि तीन लाशे थी. पर चूँकि तीसरी लाश की हालात बड़ी अजीब थी तो शंका है की वो नागेश था या नहीं .

मैं- तो क्या वो लौट आया बाबा. और उसने मेरे माता-पिता को क्यों मारा

बाबा- मुसाफिर, जैसा मैंने कहा ये दुनिया वैसी नहीं है जो हम देखते है , कुछ कहानिया हमारे सामने है और कुछ हमारे सामने होकर भी सामने नहीं है , तेरी कहानी भी ऐसी ही है .उस रात क्या हुआ ये असल में कोई नहीं जानता बस ये कुछ बाते है पर सवाल ये नहीं है की नागेश लौट आया या नहीं क्योंकि वो लौट आये तो भी तलवार को इस्तेमाल नहीं कर सकता क्योंकि हारी हुई तलवार मालिक का साथ छोड़ देती है .

मैं- तो क्या कोई और नहीं इस्तेमाल कर सकता तलवार को

बाबा- कर सकता है तलवार उसकी वफादार हो जाती है जो उसे जीतता है .

मैं- मेरी माँ.

बाबा- यही पर पेंच फंसता है क्योंकि वो जा चुकी है तलवार पर किसी का हक़ नहीं , बरसो से खोयी तलवार , छिपा हुआ तिबारा एकाएक सामने आते है और दोनों ही जगह पर तुम होते हो . मुझे समझ नहीं आ रहा की ये हो क्या रहा है .

“बाबा ऐसा भी हो सकता है की ये जख्म वैसा न हो जैसा आप समझ रहे है , मतलब उसके जैसा हो पर नागेश का न हो ” मैंने कहा

बाबा- मैं तेरी बात मान भी लू तो कौन हिमाकत करेगा शिवाले में ये दुस्साहस करने की . खैर, रात बहुत हुई थोड़ी देर आँख मींच ले तू भी .

मैं गाड़ी के पास आया , बैग से नयी पट्टिया निकाल कर लगाई मोना की आँख भी खुल गयी .

“सब ठीक है ” पूछा उसने .

मैं गाड़ी में अन्दर आते हुए- हाँ

मैंने गाड़ी स्टार्ट की .

“कहाँ जा रहे है ” कहा उसने

मैं- जहाँ सकूं है .

जल्दी ही हम उस कच्चे रस्ते पर थे जो मेरे खेतो की तरफ जाता था . पास में ही वो पीपल था जहाँ पर मैं पहली बार रूपा से मिला था , जहाँ पर पहली बार मैंने उस सर्प को देखा था . मैं मोना को अपनी झोपडी में ले आया .

मोना- क्या है ये .

मैं- मेरे हिस्से का सकून
 
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#34

“बस एक यही जगह है जहाँ मुझे लगता है की शांति है , कहने को ये बस एक झोपडी है पर बस यही है जिसे मैं अपना समझता हूँ बाकि ये जमीने, गाँव का घर कुछ नहीं मेरे लिए ” मैंने कहा

मोना- समझती हूँ .

“कोई और मौका होता तो तुम्हे चाय पिलाता यहाँ बैठ कर चाय पीने का अपना ही सुख है ” मैंने अलाव जलाते हुए कहा .

अलाब से थोड़ी गर्मी हुई तो ठण्ड में राहत मिली .

“सब मेरी वजह से हुआ है मैं तुम्हे न्योता न देती तो ये घटना न ही होती , तुम्हे कुछ हो गया तो मैं कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगी खुद को ” मोना ने हताश स्वर में कहा

मैं- तुम्हारा भला क्या दोष इसमें, नियति के लेख है ये तो अभी दुःख है सुख भी आएगा.

मोना- बाबा की बाते सुनकर दिल घबरा रहा है .

मैं- दिल को थाम लो .मुसाफिर की धड़कने अभी इतनी भी मंद नहीं हुई की तुम सुन न सको. और फिर तुम्हे छोड़कर इतनी जल्दी कैसे जाऊंगा मैं अभी अभी तो मिली हो , अभी तो कहानी शुरू होनी है .

मैंने मोना के हाथ पर हल्का सा चुम्बन लिया . उसके बदन में दौड़ती तरंग को महसूस किया मैंने .

मोना- कोई तो बात है जो हम दोनों को जोड़ रही है .

मैं- सो तो है , नसीब में तुमसे सुख लिखा तो सही है.

मोना- पर शिवाले में जो हुआ वो नहीं होना चाहिए था .

मैं- नसीब का हाल नसीब जाने मैं तो तुम्हारी जानू

मोना- इस मुश्किल घडी में भी कैसे हो बेफिक्रे तुम

मैं- तुम जो साथ हो ,फिर फ़िक्र कैसी

मोना थोडा और मेरे पास सरक आई. मैंने हम दोनों पर कम्बल डाल लिया.

“मैं सोच रहा हूँ की एक छोटा सा घर बना लू. एक ऐसी जगह जहाँ हम बेफिक्र होकर मिल सके, गाँव में मुझे कभी वो मकान घर नहीं लगा. ” मैंने कहा

मोना- मेरी हवेली तुम्हारी ही है . या फिर तुम चाहो तो सेसन हाउस आ जाओ .

मैं- तुम मेरी समझी नहीं , मैंने कहा एक घर चाहिए.

मोना- मैं मदद करुँगी तुम्हारी घर बनाने में

मैं- मदद करनी है तो बस इतना की जब घर बन जाये तुम रहने आना

मोना की आँखे झुक गयी मेरी बात सुनकर. उसने हलके से मेरे गालो पर किस किया. और मैंने जवाब देते हुए अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए. जैसे ढेर सारी ओस की बूंदे मेरे होंठो पर गिर गयी हो. मैं बस उसके होंठ चूसता रहा . जब तक की उसने मुझे खुद से अलग नहीं किया.



“आराम से , पैर पर इतना जोर मत तो ” उसने कहा तो मुझे ध्यान आया की मोना के पैर पर प्लास्टर लगा है . आँखों आँखों में बातो बातो में रात कट गयी , सुबह मैंने मोना को वापिस शहर भेजने की व्यवस्था की वो रुकना चाहती थी पर मैंने उसे जाने दिया . क्योंकि घर जाते ही सरोज को मेरी चोट के बारे में मालूम होता और वो उलझ जाती मोना से .

खैर, मैं घर आया. और सबसे पहले मुझे सरोज ही मिली. दौड़ कर अपने सीने से लगा लिया मुझे उसने, इतनी जोर से भींचा की मेरी आह निकल गयी .

“तुम्हारे बिना तो सब सुना हो गया था , जानते हो ये दो तीन दिन जैसे कई साल हो गए थे . ” सरोज ने जैसे उलाहना देते हुए कहा

मैं- इतना प्यार न करो मुझसे काकी.

सरोज- क्यों न करू, मेरे लिए करतार से भी पहले हो तुम ,जल्दी से हाथ- मुह धो लो मैं खाना लाती हु तुम्हारे लिए.

मैं- जी.

मैंने ठंडा सा जवाब दिया और आगे बढ़ गया .

मैं कमरे में आया तो देखा की करतार सो रहा था .जी तो किया की भाई से गले लग जाऊ पर फिर सोचा की सोने किया जाए. मैं जल्दी से नहाया और पट्टिया बदली. उसके बाद मैं निचे चला गया . सरोज ने खाना परोसा. मैंने एक दो निवाले ही लिए थे की काकी बोली- मुझे एक शिकायत है .



मैं- जी

काकी- मैंने कभी नहीं सोचा था की तुम मुझसे झूठ कहोगे, जूनागढ़ जाना था तो बता देते, मैं नहीं रोकती,पर जब दुसरो से मालूम होता है तो बुरा लगा.

मैं- सेठानी ने कहा

सरोज- क्या फर्क पड़ता है .

मैं- इसलिए नहीं बताया की फिर जाने नहीं देती.

सरोज- मैं कब तक रोक पाती कभी न कभी तो जाते ही वहां पर तुम . खैर मैं ज्यादा नहीं कहूँगी, थोड़ी देर बाद तुम ताऊ के घर चले जाना , शादी के बस कुछ दिन ही है . तुम्हारी ताई कई बार आ चुकी है तुमसे बात करने . उनको लगता है की मैंने मना किया है तुम्हे.

मैं-पर ऐसी तो कोई बात नहीं और तुम तो जानती हो मैं नहीं जाना चाहता .

सरोज- पर जाना होगा, मेरे लिए ही सही पर जाओ तुम.

अब सरोज को कैसे मना करता मैं ताऊ के घर की तरफ चल पड़ा. शादी की तैयारिया जोरो पर थी , घर में पुताई हो चुकी थी . मुझे देख कर सब खुश हो गयी .

“घर में शादी है और तुम बेटे, न जाने कहा घूम रहे हो ” ताऊ ने कहा

मैं- जी वो एक जरुरी काम था .

ताऊ- अब सब काम बाद में ,

मैंने हाँ में सर हिलाया. कुछ रिश्तेदार आये थे ताऊ ने मुझे मिलवाया सबसे. घूमते हुए मैंने देखा की घर में सब जगह रंग रोगन है बस एक कमरे पर ताला है . जो जंग खाया था लगता था की उसे बहुत समय से खोला नहीं गया .

मैं- वो कमरा कैसे रह गया ताउजी .

ताऊ- बस ऐसे ही बेटे, दरअसल वो तुम्हारे पिता का कमरा है , उसके जाने से ही बंद है . युद्ध जब घर छोड़ कर गया तो फिर वापिस कभी नहीं लौटा, पिताजी ने ताला लगवा दिया, कहते थे की युद्ध का सामान है जब गुस्सा शांत होगा तो अपने आप संभाल लेगा.

मैं- आपको ऐतराज न हो तो मैं इसे खोलना चाहूँगा. मैं देखना चाहता हूँ इसे

ताऊ- भला इसमें ऐतराज की क्या बात है ,सब तुम्हारा ही तो है .

ताऊ कुछ ही देर में चाबी ले आया. कांपते हाथो से मैंने ताला खोला . कमरे में धुल भरी थी . जाले लगे थे. उन्हें हटा कर मैं अन्दर पंहुचा सामने दिवार पर एक बड़ी सी तस्वीर लगी थी जिस पर धूल थी मैंने उसे साफ किया . .............वो मेरे पिता की तस्वीर थी, मेरी आँखों में न जाने क्यों पानी आ गया .
 
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#35

मेरे सामने वो उस इंसान की तस्वीर थी जिसे मैं कभी जिंदा नहीं देख पाया था मेरे सामने युद्ध वीर सिंह की तस्वीर थी, जो बहुत कुछ मेरे जैसे ही दिखते थे. ऊंचा लंबा कद कांधे तक आते बाल, घोड़े पर बैठे हुए. मैंने तस्वीर को उतारा और सीने से लगा लिया. दिल भारी सा हो आया था. सामने एक अलमारी थी जो किताबों से भरी थी. पास ही एक संदूक था जिसमें कपड़े रखे थे. मैंने कुछ और तस्वीरे देखी जो किसी जंगल की थी.
आँखों मे एक दरिया था पर इस शादी वाले घर मे मैं तमाशा तो कर नहीं सकता था इसलिए कमरे से बाहर आया. शाम तक मैं वहां रहा. अचानक से सीने मे दर्द बढ़ने लगा तो मैं बाबा से मिलने चल प़डा पर बाबा मजार पर नहीं थे. जब और कुछ नहीं सूझा तो मैं खेतों की तरफ हो लिया.

गांव से बाहर निकलते ही ढलते दिन की छाया मे जोर पकड़ती ठंड को महसूस किया, हवा मे खामोशी थी, मैं उस पीपल के पास से गुजरा जहां पहली बार रूपा मिली थी मुझे, जहां पहली बार उस सर्प से सामना हुआ था मेरा. जैकेट के अंदर हाथ डाल कर मैंने देखा पट्टियों से रक्त रिसने लगा था
.
साँझ ढ़ल रही थी हल्का अंधेरा होने लगा था, झोपड़ी पर जाकर मैंने अलाव जलाया, घाव ने सारी पट्टी खराब कर दी थी, जी घबराने लगा था. बाबा ने सही कहा था ये घाव बड़ा दर्द देगा, मैंने रज़ाई अपने बदन पर डाली और आंखे बंद कर ली. पर चैन किसे था, करार किसे था. आंख बंद करते ही उस रात वाला किस्सा सामने आ जाता था.

चाहकर भी मैं उस हादसे को भुला नहीं पा रहा था, वो श्मशान साधारण नहीं था कोई तो राज छुपा था वहां, मुझे फिर जाना होगा वहाँ मैंने सोचा. एक के बाद एक मैं सभी बातों को जोड़ने की कोशिश कर ही रहा था कि मुझे बाहर रोशनी सी दिखी, इससे पहले कि मैं बिस्तर से उठ पाता, झोपड़ी का पल्ला खुला और मेरे सामने रूपा थी.

"वापिस लौटते ही सबसे पहले तुझसे मिलने चली आयी मेरे मुसाफिर " रूपा ने कंबल उतारते हुए कहा
उसे देखते ही दिल अपना दर्द भूल गया.

"मैं तुझे ही याद कर रहा था " मैंने कहा

रूपा - तभी मैं कहूँ ये हिचकियाँ पीछा क्यों नहीं

छोड़ती मेरा. बाकी बाते बाद मे खाना लायी हू चल उठ परोसती हूं

मैं - अभी नहीं

रूपा - मुझे भी भूख लगी है, तेरे साथ ही खाने का सोचा था, पर कोई ना थोड़ी देर और सही, चल परे को सरक, ठंड बहुत है

रुपा बिस्तर पर चढ़ आयी उसका बोझ मेरे सीने पर आया तो मेरी आह निकल गई

रूपा - क्या हुआ देव

मैं - कुछ नहीं सरकार,

रूपा - तो फिर आह क्यों भरी, क्या छिपा रहा है

रूपा ने मेरे ऊपर से रज़ाई हटा दी और उसकी आँखों के सामने मेरा छलनी सीना था,

"किसने किया ये " पूछा उसने

मैने कुछ नहीं कहा

"किसने किया ये, किसकी इतनी हिम्मत जो मेरे यार को चोट पहुंचाने की सोचे मुझे नाम बता उसका " रूपा बड़े गुस्से से बोली

मैं - शांत हो जा मेरी जान, छोटा सा ज़ख्म है कुछ दिनों मे भर जाएगा. और फिर मुझे भला क्या फिक्र मेरी जान मेरे पास है

रूपा - मामूली है ये ज़ख्म पूरा सीना चीर दिया है, अब तू मुझसे बाते भी छुपाने लगा है मेरे दिलदार

रूपा की आँखों मे आंसू भर् आए, सुबक कर रोने लगी वो. मैंने उसका हाथ थामा.

"कैसे हुआ ये " पूछा उसने

मैने उसे बताया कि कैसे उस रात मैं रास्ता भटक गया और शिवाले जा पहुंचा और ये हमला हुआ

"सब मेरी गलती है, मुझे डर था कि कोई तुझसे मिलते ना देख ले इसलिए मैंने तुझे वहां बुलाया, तुझे कुछ हो गया तो मैं किसके सहारे रहूंगी, मेरे यार मेरी गलती से ये क्या हो गया " रूपा रोने लगी

मैं - रोती क्यों है पगली, भाग मे दुख है तो दुख सही, चल अब आंसू पोंछ

मैंने रूपा के माथे को चूमा.

"मैंने सोचा है कि इधर ही कहीं नया मकान बना लू " मैंने कहा

रूपा - अच्छी बात है

मैं - बस तू कहे तो तेरे बापू से बात करू ब्याह की, अब दूर नहीं रहा जाता, तेरे आने से लगता है कि जिंदा हूं तू दुल्हन बनके आए तो घर, घर जैसा लगे

रूपा - इस बार फसल बढ़िया है, बापू कह रहा था सब ठीक रहा तो कर्जा चुक जाएगा, सावन तक नसीब ने चाहा तो हम एक होंगे.

मैं--जो तेरी मर्जी, मुझ तन्हा को तूने अपनाया मेरा नसीब है,

रूपा - अहसान तो तेरा है मेरे सरकार

मैंने उसे अपनी बाहों मे भर् लिया

"अब तो दो निवाले खा ले बड़े प्यार से बनाकर लाई हूं तेरे लिए " उसने कहा

रूपा ने डिब्बा खोला और खाना परोसा. एक दूसरे को देखते हुए हमने खाना खाया. बात करने की जरूरत ही नहीं थी निगाहें ही काफी थी.

"चल मैं चलती हूं, कल आऊंगी " उसने कहा

मैं - रुक जा ना यही


रूपा - आज नहीं फिर कभी

उसने मेरे माथे को चूमा और चली गई. मैं सोने की कोशिश करने लगा.

रात का अंतिम पहर था. सर्द हवा जैसे चीख रही थी, वेग इतना था कि जैसे आँधी आ गई हो, चांद भी बादलों की ओट मे छिपा हुआ था. पर एक साया था जो बेखौफ चले जा रहा था. क्रोध के मारे उसके कदम कांप रहे थे, आंखे जल रही थी. कोई तो बात थी जो उसकी आहट से शिवाले के कच्चे कलवे भी जा छुपे थे.

वो साया अब ठीक शंभू के सामने था, एक पल को तो वो मूर्ति भी जैसे उन क्रोधित आँखों का सामना नहीं कर पायी थी. उसने पास स्थापित दंड को उठाया और पल भर् मे उसके दो टुकड़े कर दिए. इस पर भी उसका क्रोध शांत नहीं हुआ तो उसने पास पडी शिला को उठाकर फेंक दिया.

"किस बात की सजा दे रहे हो मुझे किस बात की क्या दोष है मेरा जो हर खुशी छीन लेना चाहते हो मेरी. महत्व तो तुम्हारा बरसो पहले ही समाप्त हो गया था, पर अब मैं चुप नहीं हूं, तीन दिन मे मुझे तोड़ चाहिए, सुन रहे हो ना तुम बस तीन दिन, उसे यदि कुछ भी हुआ तो कसम तुम्हारी इस संसार को राख होते देर नहीं लगेगी, शुरू किसने किया मुझे परवाह नहीं समाप्त मेरे हाथो होगा. तीन दिन बस तीन दिन. "
 
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#36
जिंदगी कुछ ऐसी उलझी थी कि सुबह और रातों मे कोई खास फर्क़ नहीं रह गया था. सुबह अंधेरे ही मैं उठ गया था पर बदन मे बड़ी कमजोरी थी, लालटेन की रोशनी मे मैने देखा बिस्तर पूरा सना था खून से. मैंने उसे साफ़ करने की कोशिश नहीं की ब्लकि बिस्तर को झोपड़ी से बाहर फेंक दिया.

इस बेहद मुश्किल रात के बाद मुझे अह्सास होने लगा था कि मैं किसी बड़ी मुसीबत मे हूं, फिलहाल मैं बस सोच सकता था, मैंने नागेश के बारे मे सोचा, मेरी माँ के बारे मे मुझे ऐसी बाते मालूम हुई जो आसानी से गले नहीं उतरने वाली थी.

"हो ना हो इस कहानी की जड़ जूनागढ मे ही है, मुझे फिर वहां जाना होगा " मैंने निर्णय किया और बाबा से मिलने चल प़डा. रास्ते मे मुझे सरोज काकी मिल गई,
"मैं खेतों पर ही आ रही थी, घर आने की फुर्सत ही नहीं तुझे तो, पहले कम से कम खाना तो समय से खा लेता था अब तो ना जाने क्या हुआ है " काकी ने एक साँस मे ढेर सारी बात कह दी

मैं - थोड़ी जल्दी मे हूं काकी, जल्दी ही आता हूं घर
काकी - क्या जल्दी क्या देर, तुझे मुझे बताना होगा किस उधेड बुन मे लगा है तू, रात रात भर गायब रहते हो, जबसे उस मजार वाले से संगति की है अपनेआप मे नही हो, देखना तुम कभी ना कभी लड़ बैठीं ना मैं उससे तो मत कहना

मैं - बाबा का कुछ लेनादेना नहीं काकी, मैं बस उस पेड़ के पास जाता हूँ

काकी - मुझे डर लगता है देव, हम पहले ही बहुत कुछ खो चुके है, तुम्हें नहीं खोना चाहते, तुम बस घर रहो तुम्हें जो चाहिए मैं दूंगी.

मैं - घर ही तो चाहिए मुझे.

काकी कुछ पलों के लिए चुप हो गई.

"वहाँ क्या हुआ था " पूछा काकी ने

मैं - कहाँ क्या हुआ

काकी - जहां तुम गए थे, कौन लड़की है वो मुझे बताओ, जैसा तुम चाहते हो वैसा ही होगा, हम ब्याह करवा देंगे उसी से, उसी बहाने कम-से-कम भटकना तो नहीं होगा तुम्हारा

मैं - ऐसी कोई बात नहीं है, ऐसा कुछ होता तो मैं तुम्हें बताता

काकी - रख मेरे सर पर हाथ

मैं - क्या काकी तुम भी छोटी मोटी बात को इतना तूल दे रही हो

काकी - मैं तूल दे रही हूँ मैं, जानते हो रात रात भर सो नहीं पाती हूँ, विक्रम को जबसे मालूम हुआ है तुम वहाँ गए थे कितना घबराए हुए है वो और तुम कहते हो कि मैं तूल दे रही हूँ

मैं समझ गया कि काकी का पारा चढ़ गया मैंने मैंने उसे मनाया और घर आ गया. बेशक मेरा बाबा से मिलना जरूरी था पर कुछ अनचाही मजबूरियाँ भी थी. मैं सरोज के साथ घर आया और सबसे पहले पट्टी बदली ताकि कुछ आराम मिले. मैं सरोज से हर हाल में इस ज़ख्म को छुपाना चाहता था. खैर पूरा दिन मैं काकी की नजरो मे ही रहा. पर रात को मैं मजार पर पहुंच गया.

बाबा वहाँ नहीं था पर मोना थी.

मैं - तुम कब आयी

मोना - कुछ देर पहले, मालूम था तुम यही मिलोगे तो आ गई.

मैं - नहीं आना था तुम्हारा पैर ठीक नहीं है

मोना - कैसे नहीं आती, तुम इस हालत मे हो मुझे चैन कैसे आएगा

मैं - हमे तुम्हारे गाँव जाना होगा अभी.

मोना - अभी पर क्यों

मैं - दर्द वहीं मिला तो इलाज भी उधर ही मिलेगा

मोना ने देर ना कि और हम जल्दी ही शिवाले पर खड़े थे, पर यहां जैसे तूफान आया था. सब अस्त व्यस्त था. आँधी आकर चली गई थी.

"किसने किया ये, अपशकुन है ये तो " मोना ने कहा
मैं - इस श्मशान की कहानी बताओ मुझे.

मोना - मैं कुछ खास नहीं जानती, पर गांव के पुजारी बाबा जरूर बता सकते है, कहो तो मिले उनसे

मैं - जरूर

मोना - कल सुबह सुबह मिलते है उनसे

फिर हम मोना की हवेली आ गए. एक बार फिर वो मेरे साथ थी, हालात चाहे जैसे भी थे पर उसका साथ होना एक एहसास था. हम दोनों एक बिस्तर पर लेटे हुए थे. कोई और लम्हा होता तो हम गुस्ताखी कर ही बैठते. पर सम्हालना अभी भी मुश्किल था

मोना के होंठो को पीते हुए मेरे हाथ उसके नर्म उभार मसल रहे थे, पर फिर उसने मुझे रोक दिया.

"ये ठीक समय नहीं है " उसने कहा तो हम अलग हो गए. सुबह मोना मुझे वहाँ ले गई जहां पुजारी था. एक छोटा सा मंदिर था बस पर पुराना था.

मोना - बाबा हमे थोड़ा समय चाहिए आपका

पुजारी - बिटिया अवश्य परंतु थोड़ा इंतजार करना होगा, आज अमावस है और हर अमावस को रानी साहिबा तर्पण देने आती है, उसके बाद मैं मिलता हूँ
"बाबा, हम एक बहुत जरूरी मामले मे आपके पास आए है " मैंने हाथ जोड़े

पुजारी - मेरे बच्चे, यहां से कोई खाली नहीं जाता तुम्हारी भी मुराद पूरी होगी.

बाबा ने मेरे कांधे पर हाथ रखा और अंदर चले गए. मैं मोना के साथ वहीं बैठ गया.

"कौन है ये रानी साहिबा " मैंने पूछा

मोना - मेरी दादी

मोना की दादी यानी मेरी नानी.

मैं - मिलना चाहता हूं मैं उनसे

मोना - कोशिश कर लो, थोड़ी देर मे जनता को खाना देंगी वो.

मैं - तुम मिलवा दो

मोना - मुमकिन नहीं. बरसों से कोई बात नहीं हुई हमारी.

मैं - मैं कोशिश करूंगा

मैंने कंबल ओढ़ा और जनता मे जाके बैठ गया. कुछ देर बाद वो मंदिर से बाहर आयी, उम्र के थपेड़ों ने बेशक शरीर को बुढ़ा कर दिया था पर फिर भी शॉन शौकत दिखती थी. उनके नौकरों ने सबको पत्तल दी. वो खुद खाना परोस रही थी.

"लो बेटा, प्रसाद, आज हमारी बेटी की बरसी है, उसकी आत्मा के लिए दुआ करना " नानी ने प्रसाद मेरी पत्तल मे रखते हुए कहा

"नानी, उसी बेटी की निशानी आपसे मिलने आयी है " मैंने कहा

रानी साहिबा के हाथ से खीर की कटोरी नीचे गिर गई, उन्होंने मुझे देखा, मैंने उनकी आँखों मे आंसू देखे.

"चौखट पर इंतजार करेंगे "उन्होंने कहा और आगे बढ़ गई.
 
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#37

रानी साहिबा अपनी बात कह कर इस तरह आगे बढ़ गई जैसे कोई सरोकार ही नहीं हो, मैंने उन्हें इतनी बड़ी बात बताई थी, उनकी बेटी की एक मात्र निशानी उनके सामने थी पर फिर भी उनका व्यावहार समान्य था. खैर मैं वापिस मोना के पास आया.

मोना - क्या हुआ
मैं - कुछ नहीं

मोना - बात हुई

मैंने ना मे सर हिला दिया.

"कोई बात नहीं अभी हम पुजारी से मिलते है " मोना बोली

हम अंदर गए

पुजारी - अब बताओ मैं तुम लोगों की किस प्रकार सहायता कर सकता हूं

मैंने पुजारी को तमाम बात बताई और इलाज पूछा.

मेरी बात सुनकर उसके ललाट पर जैसे शोक छा गया.
"कभी सोचा नहीं था कि इस प्रकार दुविधा मेरे सामने आ खड़ी होगी " पुजारी ने कहा

मैं - बाबा समस्या होती है तो उसका समाधान भी होता है, आप राह दिखाओ

पुजारी - कुछ चीजें बड़ी दुष्कर होती है, ये दुनिया ये जीवन वैसा नहीं है जैसा हमे दिखता है यदि सच है तो झूठ है, यदि अच्छाई है तो बुराई है, इस संसार मे ना जाने कितने संसार है, मनुष्य तो बस एक कण है इस रेगिस्तान का. तुम जो अपने साथ लाए हो ये मौत का वार है, जहां तुम इस से मिले वहाँ अवश्य ही कोई संरक्षित वस्तु थी, जिसकी सुरक्षा जागृत हो गई, चूंकि तुम अधिकृत नहीं थे सो तुम्हें झेलना प़डा, नागेश के बांधे मंत्र का वार है ये, और नागेश आज भी सर्वश्रेष्ठ है, परंतु हैरानी की बात ये है कि मृत्यु ने उसी क्षण तुम्हारा वर्ण नहीं किया, तो तुम भी कुछ खास हो, इसका इलाज तो मेरे पास नहीं है पर मैं तुम्हें एक आस दिखा सकता हूं यदि तुम मुझे अपना असली परिचय दो, क्योंकि मैंने देख लिया है, बस सुनने की इच्छा है.

पुजारी ने मंद मंद मुस्काते हुए अपनी बात कही और साथ ही मुझे दुविधा मे डाल दिया. क्योंकि मेरे साथ मोना थी और मोना के सामने अपनी पहचान बताने का मतलब था कि उसे मेरे और उसके छिपे रिश्ते के बारे मे भी मालूम हो जाता.

पुजारी - कोई संकोच

मैं - बाबा मैं सुहासिनी का बेटा हूं

मेरी बात सुनकर उन दोनों के चेहरे पर अलग अलग भाव थे, मोना के चेहरे का रंग उड़ गया था, पर बाबा ने अपनी आंखे मूंद ली.

"कोई ऐसा जो शापित भी हो जो पवित्र भी हो, जो आमंत्रित भी हो जो बहिष्कृत भी हो, जो अमावस मे चंद्र हो और पूनम मे रति, उसका रक्त तब सहारा दे जब मृत्य की टोक लगे. प्रीत ने पहले भी रोका था प्रीत अब भी रोकें तेरी डोर किधर उलझी तू जाने या वो शंभू जाने " बाबा ने कहा

मंदिर से निकल कर हम बाहर आए, अचानक से ही मेरे और मोना के बीच एक गहरी खामोशी छा गई थी. क्योंकि हमारा जो नाता था उसे पीछे छोड़ कर मैंने एक नया रिश्ता कायम किया था मोना से. चबूतरे पर बैठे वो बस शून्य मे ताक रही थी.

" तुमने मुझे सच क्यों नहीं बताया "पूछा उसने

मैं - कुछ था भी तो नहीं मेरे पास तुम्हें बताने को, और मैं कहता भी तो क्या. तुम ऐसे मेरे जीवन मे आयी इससे पहले कोई आया नहीं था. और फिर हमे दुनिया से क्या मतलब हम जानते हैं हमारी हकीकत तो कोई फर्क़ नहीं पड़ना चाहिए

मोना - फर्क़ पड़ता है देव, बहुत फर्क़ पड़ता है, क्योंकि बात अगर अब खुल ही गई है तो पूरा खुले, सुहासिनी मेरी बुआ थी. तो हमारे रिश्ते के मायने बदल जाते है,

मैं - मैंने तुम्हें इस रिश्ते मे नही जाना, तुम मेरे लिए क्या हो तुम भी जानती हो और फिर जिस रिश्ते की अब बात करती हो वो तब कहाँ था जब मुझे अपनों की जरूरत थी, तब मेरा कोई अपना नहीं आया, सोच के देखो मैं कैसे जिया हूं, तुम्हारे आने से पहले हर रोज ही अकेला था मैं, तुम साथी बनकर मेरे जीवन मे आयी. तुम्हारे साथ मैंने मुस्कुराना सीखा अपने मन की बात किसी से करना सीखा. पर फिर भी तुम्हें लगता है कि अब मायने इसलिए बदल जाते है कि मेरी माँ तुम्हारी बुआ थी तो फिर मुझे नहीं चाहिए ये ढकोसला, ये आडंबर.

मेरी आँखों मे आंसू भर आए थे और मैं किसी को अपना दर्द दिखाना नहीं चाहता था तो मैं चबूतरे से उठा और पैदल ही वहां से चल प़डा. एक बार भी मैंने मुड़ कर ना देखा. ना मोना ने कोई आवाज दी. चौपाल की तरफ आते समय मुझे एक लड़का मिला

"सुनो, चौखट पर जाना है मुझे " मैंने कहा

लड़का - गाँव की सीम पर एक बगीचा है उसे ही चौखट कहते है

मैं उस तरफ ही चल प़डा. करीब बीस मिनट बाद मैं वहां पहुंचा तो देखा नानी पहले से ही मौजूद थी

"नानी " मैंने कहा

नानी - हम जानते थे किसी रोज़ तुम जरूर आओगे, पर आज के दिन ऐसे मुलाकात होगी सोचा नहीं था.

आज ही तुम्हारी माँ हमे छोड़ कर गई थी. जी तो करे है कि तुम्हें गले लगा ले पर क्या करे हम बंधे है

मैं - क्या फर्क़ पड़ता है नानी, आदत है मुझे वैसे भी मोना नहीं बताती तो मुझे मालूम भी नहीं होता कि मेरी नानी भी है और जिसके माँ बाप नहीं होते उसका कैसा परिवार.

मेरी बात चुभी नानी को पर उसने बात बदली.

नानी - मोना को कैसे जानते हो तुम.

मैं - दोस्त है मेरी, पर फ़िलहाल आपसे मैं अपनी माँ के बारे मे बात करने आया हूं, वो कैसे मरी कौन है उनका कातिल

"हमारे लिए तो वो उसी दिन मर गई थी जब उसने हमारी दहलीज लांघने की हिमाकत की थी, मैं माँ थी उसकी, मेरी भी नहीं मानी उसने, ना जाने क्या देख लिया था उस आवारा युद्ध मे उसने जो महल छोड़ चली एक बार जाने के बाद ना वो आयी ना हमने देखा उसे, वैसे भी उसकी हरकत अजीब थी, आधे से ज्यादा गांव तो उसे पागल समझता था " नानी ने कहा

मैं - मंदिर मे मैने जब आपको अपना परिचय दिया तब लगा था कि आप से मिलके मुझे ऐसा लगेगा जैसे मुझे अपनी मां की झलक मिली, और जब ये नफरत है तो वो ढोंग क्यों मंदिर मे बरसी का. मैंने तो सोचा था ना जाने परिवार कैसा होता होगा पर यदि ऐसा है तो अनाथ होकर खुश हूं मैं.

दिल बड़ा भारी हो गया था. अब यहां रुकना मुनासिब नहीं था मैं पैदल ही वहां से चल प़डा, रात होते होते मैं अपने गांव की सीम मे आ गया था, एक मन किया कि घर चल पर फिर सोचा कि बाबा के पास चल, मैंने कच्ची पगडण्डी का रास्ता पकड़ लिया, कि अचानक बरसात शुरू हो गई.

"बस तुम्हारी ही कमी थी, तुम भी कर लो अपनी " मैंने उपरवाले को कोसा और आगे बढ़ गया. बारिश की वज़ह से अंधेरा और घना लगने लगा था पगडंडी के चारो ओर खड़ी फसल किसी सायों सी लग रही थी. मैंने एक मोड़ लिया ही था कि बड़े जोर से बिजली गर्जी, जैसे हज़ारों बल्ब एक साथ जला दिए हो और उस पल भर की रोशनी मे मैने कुछ ऐसा देखा कि दिल जैसे सीने से निकल कर गिर गया हो.
 
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#38

मेरे सामने कुछ ऐसा था कि आंखे कहती थी सच है और दिल जहन कहता था कि फ़साना है, मेरे और बारिश के बीच मे वो तस्वीर जिसे मैंने मोना के बैग मे देखा था, वो तस्वीर जीती जागती खड़ी थी. मुझे बहुत अच्छे से याद था कि यहां पर खलिहान था, अपने इलाके को मैं बहुत अच्छे से जानता था पर अब इस नयी हकीकत ने मुझे झुठला दिया था.

मेरी आँखों के सामने एक स्याह हवेली बड़ी खामोशी से खड़ी थी. बेशक पानी आँखों मे घुस रहा था फिर भी मैंने आंखे साफ़ की और देखा. दूर गरजता बदल और लहराती बिजली की कौंधती रोशनी मुझे उस हकीकत से रूबरू करवा रही थी जिस से मैं अनजान था. तीन मंजिल की मीनारों वालीं इमारत जिसका एक गुम्बद टूटा था. मेरे दिल मे बहुत कुछ था पर जैसे मैं सब भूल गया.

ऐसा लगता था कि ये इमारत बड़ी पुरानी है या शायद वक़्त ने इसकी ऐसी हालत कर दी होगी. काले संगमरमर पर बहता पानी बड़ा खूबसूरत लगा.
"मोना का ख्वाब सच है " मैंने अपने आप से कहा.
दिल जैसे ठहर सा गया था उस खूबसूरत इमारत के आगे, वो बड़ा सा दरवाजा जो अपने अंदर ना जाने क्या छुपाये हुआ था. आकर्षण से मैं भी खुद को रोक ना सका. मेरे कदम अपने आप उस दहलीज की तरफ बढ़ने लगे. भीगे जुते गीली मिट्टी पर फिसल रहे थे. आखिरकार मैंने सीढ़ियों पर कदम रखे और दरवाज़े को छुआ. बस छुआ ही था कि मेरे सीने मे आग लगा दी किसीने, सीने मे ऐसा दर्द हुआ कि मैं वहीं गिर पड़ा. मेरी पट्टी खुल गई रक्त बहने लगा.

मैं चीखना चाहता था पर मेरी आवाज़ गले मे ही रुंध गई, कुछ ही दिनों मे ऐसा दूसरी बार हुआ था मेरे साथ. सांसो को सम्भाले मैं उठा और दरवाज़े के बड़े से कुंदे को हिलाया.

"मदद करो, कोई है तो मदद करो " मैंने आवाज दी. पर शायद वहां कोई नहीं था मेरी सुनने वाला. मेरे हाथ नीचे गए तो मैंने पाया कि एक ताला था. ताला, मेरे दिमाग मे उस समय बस एक ही चीज आयी, वो थी ताऊ द्वारा दी गई चाबी, ना जाने ये कैसा इशारा था उपरवाले का या मेरी किस्मत जो उस घड़ी मुझे ये ख्याल आया. मैंने जेब से वो चाबी निकाली और ताले मे डालकर घुमाया

खट्ट की आवाज से ताला खुल गया. मैंने दरवाज़े को पूरी ताकत से धकेला और अंदर आ गया. जैसे ही मैंने कदम रखे अपने आप उजाला हो गया. मोमबत्तियां जल उठी. रोशनी से नहा गई वो पूरी हवेली. और सबसे बड़ी बात मुझे दर्द से राहत मिली, दर्द ऐसे गायब हुआ जैसे कभी हुआ ही नहीं था. मैंने देखा अंदर हालात कोई खास बढ़िया नहीं थे, ढेर सारी धूल पडी थी फर्श पर, छत पर जाले लगे थे. सीढिया चढ़ कर मैं ऊपर आया. यहां एक बहुत बड़ी तस्वीर थी. जिसमें तीन लोग थे. एक को मैं पहचान गया वो मेरे पिता थे. साथ मे एक औरत थी हसते हुए, बड़ी आंखे, भरा हुआ चेहरा. और मुझे यकीन था कि वो ऐसे ही दिखती होंगी, वो हो ना हो मेरी माँ थी. उनकी गोद मे मैं था.

"घर " मेरे मुह से ये शब्द निकले.

तो क्या ये इमारत मेरा घर थी. घर मेरा घर, मैंने एक दो कमरे खोले, मेरे माँ बाप की तस्वीरे, मेरे खिलौने. बेशक धूल मिट्टी, दीमक ने अपना कब्ज़ा कर लिया था पर फिर भी दिल मे एक अलग ही फिलिंग थी. पहली बार इस मुसाफिर को ऐसा लगा कि जैसे मंजिल कहीं है तो यहीं. ये एक ऐसा एहसास था जिसे शब्दों मे ब्यान करना मुमकिन नहीं. सब कुछ भूल कर मैं इधर उधर घूमने लगा. पर अचानक से मुझे ऐसा एहसास हुआ कि जैसे कि, जैसे कि मेरे अलावा कोई और भी हो. पर कौन.

जैसे कोई रेंग रहा हो, मैंने फर्श पर फिसलते हुए किसी को महसूस किया. मैं दौड़ कर नीचे आया. कोई नहीं था, या कोई था क्योंकि फर्श पर पडी धूल साफ़ बता रही थी कि कोई तो था और जब वो निशान मुझे समझ में आए तो मैं हिल गया. दरवाज़े पर मुझे वो दो पीली आंखे दिखी. मुझे ही घूर रही थी. हमारी आंखे मिली और अगले ही पल वो सर्प बाहर की तरफ चल पड़ा.
"रुको " मैं जोर से बोला. पर उसने जैसे सुना नहीं

"मैंने कहा रुको " मैं और जोर से चिल्लाया. इस बार उसने मूड कर देखा पर बस एक पल के लिए ही. उसने पुंछ जोर से पटकी और बाहर की तरफ भागा. मैं उसके पीछे भागा क्योंकि मैं जानता था कि इसका मुझसे कोई तो नाता है और क्या है वो ये बस यही बता सकता था. अपनी हालत भूल कर मैं भी हवेली से बाहर आया. बारिश बड़ी तेज हो चली थी.

मैंने बरसातों मे टिमटिमाते उन दो नयनो को देखा. अचानक ही मीरा के कहे शब्द मेरे जेहन मे गूंजने लगे. तो मीरा का दो दियों का मतलब ये आंखे थी, आज अमावस थी. आज मैं अपने घर आया था.

"बताते क्यों नहीं मुझे अपने बारे मे " मैंने सर्प से सवाल किया. हैरानी की बात मुझे उस से कोई डर नहीं लग रहा था मैं उसकी तरफ बढ़ा. वो पीछे हुआ. और अचानक ही पग डण्डी पर भाग लिया. मैं दौड़ने लगा और एक मोड़ पर मेरी आँखों के आगे जैसे सूरज आ गया.

एक तेज आवाज हुई, मैं किसी चीज से टकरा गया था. होश जब आया तो मैं सेशन हाउस था मेरे साथ थी मोना.

"तुम यहाँ कैसे " मैंने सीधा सवाल किया.

"मैं तुम्हें लेकर आयी. मेरी गाड़ी से टकरा गए थे तुम. " उसने कहा

मैं - आह, याद आया

मोना - पर तुम कहां भाग रहे थे. और ऐसे नाराज होकर कोई आता है क्या

मैं - दो मिनट मुझे साँस लेने दो. और चाय मंगा दो.

कुछ देर मे कप मेरे हाथ मे था. मैंने चुस्की ली तो क़रार आया

मोना - मुझे तुमसे बहुत सी बाते करनी है देव

मैं - मुझे भी, फ़िलहाल वक़्त नाराजगी का नहीं है मुझे कुछ कहना है

मोना - सुन रही हो

मैं - वो सच है मोना एकदम सच

मोना - क्या सच है देव

मैं - वो जो तस्वीर तुम्हारे बैग मे थी वो हवेली कोई फ़साना नहीं है मोना मैंने देखा उसे. वो वहां थी मोना वहीं पर मैं अंदर गया था, मैंने वहां पर..

"वहां पर तुम्हारा घर है देव, " मोना ने मेरी बात पूरी की



 
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#39

"वहाँ तुम्हारा घर है देव " मोना ने कहा

मैं हैरानी से उसे देखने लगा.

मोना - हैरान होने की जरूरत नहीं देव, तुम्हारा ये सोचना कि मुझे कैसे मालूम उसके बारे मे सही है, मुझे उस के बारे में मालूम है क्योंकि मैं ना जाने कितनी बार वहां जा चुकी हूं, बचपन से ही मैं बुआ के बहुत करीब थी, लोग कहते थे मैं उनकी ही छाया हूं. बुआ का हाथ थामे ना जाने कितनी बार मैं आई गई.

मैं - वहां पर तो खलिहान है, इतनी बड़ी इमारत लोगों को क्यों नहीं दिखी और ऐसे अचानक

मोना - हर एक घटना के होने का एक निश्चित समय होता है, आज नहीं तो कल तुम्हें इस बारे मे मालूम होना ही था, कुछ खास रात होती है जब हवेली राह देखती है अपने वारिस की. कल भी ऐसी ही रात थी.

"तो मैं वारिस हूं " मैंने पूछा

मोना - क्या मैंने कहा ऐसा, घर तुम्हारा है इसमे कोई शक नहीं पर वारिस होना अलग बात है

मैं - समझा नहीं

मोना - बुआ हवेली मेरे नाम कर गई. अपनी विरासत वो मुझे दे गयी. पर कोई इशू नहीं है ये सब तुम्हारा ही है जब तुम कहोगे मैं तुम्हें दे दूंगी, मुझसे ज्यादा तुम्हारा हक है.

मैं - कैसी बात करती हो तुम. तुम्हें क्या लगता है मुझे ईन सब चीजों से कोई लगाव है. मैं बस अपने माँ बाप के बारे मे जानना चाहता हूं, अचानक से मेरी जिन्दगी इतने गोते खा गयी है कि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा. तुम कहती हो कि हवेली मे तुम जाती रहती हो, तो मुझे उस सर्प के बारे मे बताओ जो हवेली मे था.

मोना - मैंने ये कहा कि बुआ के साथ मैं वहां जाती थी, ये नहीं कहा कि जाती रहती हूँ, बेशक बुआ वो मुझे दे गयी थी पर जब बुआ गई, हवेली गायब हो गई. और शायद कल तुमने उसे देखा. याद है जब तुमने मुझसे इस तस्वीर के बारे में पूछा था तो मैंने क्या कहा था कि ये एक ख्वाब है. वो ख्वाब जिसे वक़्त ने भुला दिया.

मैं - ऐसा कैसे हो सकता है कि इतनी बड़ी इमारत को छिपा दे.

मोना - पिछले दिनों से जो जिंदगी तुम जी रहे हो लगता है क्या की कुछ भी मुमकिन है या ना नामुमकिन है

मैं - और वो सर्प, उसका क्या

मोना - मुझे उस बारे मे कुछ नहीं मालूम, तस्वीर मे भी एक है तो सही पर जानकारी नहीं है.

मैं - तुम क्या कर रही थी उस मोड़ पर

मोना - तुम्हें मनाने आ रही थी और क्या, ऐसे कोई जाता है क्या

मैं - तुमने रोका भी तो नहीं

मोना आगे बढ़ी और मेरे गाल पर एक चुम्मा लिया

"दरअसल इस रिश्ते ने मुझे दो रहे पर लाकर खड़ा कर दिया है एक तरफ तुम्हें देखूँ तो मेरा मुसाफिर है और वहीं मुसाफिर बुआ का बेटा भी है तुम्हीं बताओ किस सच को अपना मानू किस सच से मुह मोड़ लू " मोना ने कहा

मैं - सच बस इतना है कि तुम वो हो जिसे मैं परिवार समझता हूं, सच बस इतना है कि तुम हो एक वज़ह मेरे जीने की.

मैंने एक बार अपने होंठ मोना के होंठो पर रख दिए. मोना ने अपना बदन ढीला छोड़ दिया और मुझे किस करने लगी. कुछ पलों के लिए हम खो से गए.

" कितनी बार कहा है होंठ को काटा ना करो "मोना ने कहा

मैं - कंट्रोल नहीं होता, जी करे है कि इनको बस चूसा ही करू

मोना - तुम्हारा दिल तो ना जाने क्या करेगा

मैं - दिल पर किसका जोर

मैंने मोना के स्तन को भींच दिया.

"बदमाश हो तुम, इसके लिए वक़्त है, फ़िलहाल तो हमे इस घाव के बारे मे सोचना चाहिए, ये बढ़ता जा रहा है तीन दिन बीते " मोना अचानक से गम्भीर हो गई.

"बाबा तलाश तप रहे है उपाय " मैंने कहा

मोना - बाबा का ही सहारा है

मैं - और मुझे तुम्हारा

मैंने एक बार फिर मोना को अपनी बाहों मे भर् लिया उसकी चिकनी टांगों को सहलाने लगा. मैंने अपना हाथ उसकी स्कर्ट मे डाल दिया और उसकी योनि को अपनी मुट्ठी मे भर् लिया.

"मान भी जाओ, मेरी जान सूखी जा रही है और तुम्हें मस्ती चढ़ रही है " मोना ने कहा

मैं - तुम हो ही ऐसी की जी चाहता है तुम्हें पा लू वैसे भी मेरे पास समय कम है, तो मरने से पहले तुम्हें अपना बना लू

"दुबारा ऐसा कभी ना कहना " मोना ने मेरे होंठो पर उंगली रखते हुए कहा.

मोना - तुम अमानत हो हमारी, तुम खुशी हो, ऐसी बात फिर कभी ना कहना कुछ नहीं होगा तुम्हें, कुछ नहीं होगा

मोना गंभीर हो गई.

"देखो नसीब क्या करे, दुख दिया तो सुख भी देगा खैर मुझे जाना होगा " मैंने कहा

मोना - कहीं नहीं जाना तुम्हें यही रहो मेरे पास

मैं - तुम्हारे पास ही तो हूं. पर घर से ज्यादातर बाहर रहूं तो सरोज काकी नाराज होती है उसका भी देखना पड़ता है. हर किसी को खुश रखना चाहिए ना

मोना - कल आती हूं मैं

मैं - नहीं, मैं ही आ जाऊँगा.

मोना - गाड़ी छोड़ आएगी तुम्हें

मैं - नहीं मेरी जान, मैं चला जाऊँगा वैसे भी शहर मे थोड़ा काम है मुझे

वहां से निकल कर मैं बाजार मे गया. अपने लिए कुछ नई शर्ट खरीदी और पैदल ही बस अड्डे की तरफ चल दिया. मैं अपनी मस्ती मे चले जा रहा था कि तभी मेरी नजर उस पर पडी.....
 
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#40

भरी राह मेरी नजर ठहर गई उस चेहरे पर जिसे देखने की तमन्ना मैं बार बार करता था. वो जिसे मैं खुद से ज्यादा चाहता था. पर जिस हाल मे उसे मैं देख रहा था दिल टूट कर बिखर सा गया. मेरी जान मजदूरी कर रही थी. माथे से पसीना पोछते हुए वो ईंट उठा रही थी. ये वो पल था जब मुझे खुद पर हद से ज्यादा शर्म आई. वो जिससे मैंने रानी बनाने का वादा किया था वो ईंट गारे से सनी थी. मुझसे ये देखा नहीं गया मैं उसके पास गया. मुझे देख कर वो चौंक गई.

"मुसाफिर तुम यहाँ " शालीनता से पूछा उसने

मैं - तू चल अभी मेरे साथ, तुझे इस हाल मे देखने से पहले मर क्यों नहीं गया मैं, मेरी जान मेरे होते हुए मजदूरी कर रही है

रूपा - काम करने मे भला कैसी शर्म सरकार, मजदूरी करती हूं ये मालूम तो है तुम्हें

मैं - मुझे कुछ नहीं सुनना तू अभी चल मेरे साथ

रूपा - तमाशा क्यों करते हो देव, ठेकेदार देखेगा तो नाराज होगा.

मैं - ऐसी तैसी उसकी, मैंने कहा तू अभी चल मेरे साथ.

मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.

रूपा - ठीक है बाबा चलती हूं दो मिनट ठहर.

कुछ देर बाद वो अपना झोला उठाए आयी.

"आज की दिहाड़ी गई मेरी तेरी वज़ह से " उसने कहा

"तेरे ऊपर ये जहां वार दु मेरी जाना " मैंने कहा

रूपा मुस्करा पडी. उसकी मुस्कान कमबख्त ऐसी थी कि सीधा दिल मे उतरती थी.

"भूख लगी है झोले मे रोटी है क्या " मैंने पूछा

रूपा - तेरे साथ हूँ, किसी होटल मे ले चल मुझे,दावत करवा

मैं - ये भी कोई कहने की बात है पगली

मैंने उसका हाथ थामते हुए कहा

थोड़ी देर बाद हम एक होटल मे थे.

"बोल क्या खाएगी " पूछा मैंने

रूपा - तेरी मेहमान हूं जो तू चाहे

"तेरी ये ही बाते मुझे दीवाना कर जाती है "मैंने कहा

"चल अब बाते ना बना, खाना मंगवा" रूपा ने हुक्म दिया और अपनी सरकार का हुक्म मैं टाल दु ये हो नहीं सकता था.

ये लम्हें बड़े सुख के थे खाने से ज्यादा मेरा ध्यान उस मासूम चेहरे पर था जिसकी मुस्कान मेरे लिए बड़ी क़ीमती थी. खाने के बाद मैं उसे कपड़ों की दुकान पर ले गया और ढेर सारे कपड़े पसंद किए उसके लिए

"इतनी आदत मत डाल मुसाफिर मुझे " उसने कहा

मैं - इतना हक तो दे मुझे

फिर कुछ नहीं बोली वो. तमाम ड्रेस मे मुझे सबसे जो पसंद था वो सफेद सलवार और नीला सूट. जिस पर हल्का पीला दुपट्टा बड़ा ग़ज़ब लगता.

"जब तू ये पहन कर आएगी मेरे सामने तो कहीं धड़कने ठहर ना जाये "मैंने कहा

रूपा - ऐसा क्यों कहता है तेरी धड़कनों पर मेरा इख्तियार है. दिल पहले तेरा था अब मेरा है.

मैं - सो तो है.

दुकान से निकल कर हम बस अड्डे पर आए और गांव तक कि बस पकड़ ली. बस मे बैठे हुए उसका हाथ मेरे हाथ मे था, रूपा ने मेरे कांधे पर अपना सर रख दिया.

"ना जाने इस बार फसल कब कटेगी " कहा उसने

मैं -ये भी तेरी जिद है वर्ना मैं तो अभी के अभी तैयार हूं. जानती है ऐसी कोई रात नहीं जो तेरे ख्यालो मे करवट बदलते हुए कटती नहीं

रूपा - मेरा हाल भी ऐसा ही है. तू साथ ना होकर भी साथ होता है, हर पल तेरे ख्याल मुझ पर छाए रहते है. खैर, तेरा ज़ख्म कैसा है डॉक्टर को दिखाया तूने

मैं - ठीक है, बेहतर लगता है पहले से

रूपा - ध्यान रखा कर तू अपना

मैं - तू आजा फिर सम्भाल लेना मुझे

रूपा - बस कुछ दिनों की बात है, रब ने चाहा तो सब ठीक होगा.

बाते करते करते ना जाने कब हमारा ठिकाना आ गया हम बस से उतरे और खेत की तरफ चल पड़े की रास्ते मे एक बुढ़िया मिली.

"बेटा बीवी के लिए झुमके ले ले. बस दो तीन जोड़ी बचे है ले ले

" बुढ़िया ने कहा

मैं - दिखा मायी

उसने झुमके दिखाए एक बड़ा पसंद आया. मैंने वो खरीद लिया

"बड़ा जंच रहा है " उसने कहा

मैंने उसे पैसे दिए और हम झोपड़ी पर आ गए

"क्या जरूरत है इतने पैसे खर्च करने की तुझे " रूपा ने उलाहना दिया

मैं - सब तेरा ही है मेरी जान

रूपा - आदत बिगाड़ कर मानेगा तू मेरी. चल अब पहना मुझे झूमका

रूपा ने बड़े हक से कहीं थी ये बात. मैंने उसके माथे को चूमा

और उसके कानो पर झुमके पहना दिए.

"आईना होता तो देखती कैसे लग रहे है "

मैं - मेरी आँखों से देख समझ जाएगी कैसे लग रहे है.

मेरी बात सुनकर शर्म से गाल लाल हो गए रूपा के. सीने से लग कर आगोश मे समा गई वो. कुछ लम्हों के लिए वक़्त ठहर सा गया मेरे लिए. होंठ खामोश थे पर दिल, दिल से बात कर रहा था.

"उं हु " सामने से आवाज आयी तो एकदम से हम अलग हुए
 

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