Adultery गुजारिश(HalfbludPrince)

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#41

हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए. सामने सरोज काकी खड़ी थी. मुझे समझ नहीं आया कि क्या करू.

काकी - तो ये वज़ह है जिसकी वज़ह से तुम घर नहीं आते

रूपा ने सर पर चुनरी कर ली.

मैं - काकी मेरी बात सुनो, मैं समझाता हूं

काकी - तू चुप रह मुझे इस से बात करने दे, मैं भी देखूँ की इसने ऐसा क्या कर दिया जो लड़का सब भूल बैठे है, इधर आ लड़की, क्या नाम है तेरा

"जी रूपा " रूपा ने जवाब दिया.

काकी - नाम तो बड़ा प्यारा है और जब तूने इसका हाथ थामा है तो खास है तू हमारे लिए, मुझे नाम पता दे, हम ब्याह की बात करते है तेरे घरवालों से, वैसे भी मैं अकेले थक जाती हू घर सम्हालते, बहु आएगी तो मुझे भी सुख मिलेगा

काकी ने हल्के से रूपा के माथे को चूमा और सर पर हाथ फेरा

रूपा शर्म से लाल हो गई. मैं मुस्कराने लगा

काकी - मैं तो तुझे ढूंढने आयी थी, विक्रम को कुछ बात करनी थी तुमसे, तुम रूपा को घर छोड़ आओ फिर हम चलेंगे.

मैंने सर हिलाया और रूपा के साथ झोपड़ी से बाहर आया. साँझ ढलने लगी थी. हल्का अंधेरा हो रहा था.
रूपा - मैं चली जाऊँगी

मैं - मोड़ तक चलता हूं

रूपा - घर ले चलूँगी तुझे जल्दी ही. सोचा नहीं था ऐसे काकी अचानक से आ जाएंगी

मैं - कभी ना कभी तो मिलना ही था आज ही सही

रूपा - हम्म

मैं - फिर कब मिलेगी

रूपा - जब तू कहे

मैं - मेरी इतनी ही सुनती है तो मेरे साथ ही रह, जा ही मत

रूपा - जाऊँगी तभी तो वापिस आऊंगी

मैंने उसे मोड़ तक छोड़ा और वापिस खेत पर आया काकी मेरा ही इंतजार कर रही थी
.
"छुपे रुस्तम हो " काकी ने मुझे छेड़ते हुए कहा

मैं - ऐसा नहीं है

काकी -, तो कैसा है तू बता

सरोज मेरे काफी करीब आ गई. इतना करीब की हमारी सांसे आपस मे उलझने लगी. काकी ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और मुझ से लिपट गई. जैसे ही वो सीने से टकराई मैं हिल गया. और यही बात मैं काकी से छुपाना चाहता था.

"बड़ी प्यासी हूं मैं जल्दी से कर ले. कितने दिन बाद मौका लगा है " सरोज ने आतुरता से कहा

मैं - ये ठीक समय नहीं है, कोई भी आ सकता है

काकी - कोई नहीं आएगा

मैं - घर पर भी कर सकते है, मैं मना तो नहीं कर रहा ना

मैंने काकी का हाथ पकडा और उसे अपने पास बिठाया.

"जानता हूं कि तुमसे मिल नहीं पा रहा, समझता हूं नाराजगी और ऐसा बिल्कुल नहीं है कि कोई और आ गई है जिंदगी मे तो तुम्हारी अहमियत नहीं है बस थोड़े समय की बात है "मैंने कहा

सरोज - मैंने कुछ कहा क्या

मैं - कहने की जरूरत नहीं मैं समझता हूं

मैंने सरोज के होंठो पर एक चुंबन लिया और हम घर की तरफ चल पड़े. विक्रम चाचा बड़ी बेसब्री से मेरी राह देख रहा था

विक्रम - कहाँ लापता हो आजकल कितने दिन हुए तुम्हें देखे

मैं - बस ऐसे ही

विक्रम - सब ठीक है

मैं - हाँ

विक्रम - कल तुम्हारे ताऊ के यहां से लग्न गया तुम्हारी बड़ी राह देखी तुम पहुंचे नहीं,

मैं - मुझे ध्यान नहीं रहा

विक्रम - देखो बेटा, मैं जानता हूं जैसा व्यावहार उनका तुम्हारे प्रति रहा तुम्हारे मन मे उनके लिए क्या है पर व्यक्ती के लिए परिवार, चाहे वो कैसा भी हो उसका मह्त्व होता है. और इस शादी से यदि कुछ ठीक होता है तो क्या बुराई है.

मैं - आपकी बात ठीक है चाचा पर मुझे सच मे ही ध्यान नहीं रहा था उस बात का. मुझे शर्मिन्दगी है

विक्रम - कोई नहीं शादी मे तो रहोगे ना

मैंने हाँ मे सर हिला दिया.

विक्रम - एक बात और रात को थोड़ा समय से घर आया करो, आजकल माहौल ठीक नहीं है.

मैंने फिर हाँ मे सर हिला दिया.

बातों बातों में समय का पता नहीं चला. खाने के बाद सब अपने अपने बिस्तर पर थे मैं चुपके से बाहर निकल गया. आज तो ठंड ने जैसे कहर बरपा दिया था. मेरे सीने मे खून जमने लगा था. कंबल ओढ़े मैं मजार पर पहुंचा तो बाबा नहीं था. पर आग जल रही थी मैं उसके पास ही बैठ गया. तप्त जो लगी करार सा आया.

"यूँ अकेले बैठना ठीक नहीं मुसाफिर "

मैंने पीछे मुड़ के देखा, रूपा खड़ी थी.

"तुम इस वक़्त " मैंने कहा

रूपा - जी घबरा सा रहा आज सोचा दुआ मांग आऊँ

मैं - लगता है दुआ कबूल हो गई

"लगता तो है " उसने मेरे पास बैठते हुए कहा

मैं - अच्छा हुआ हो तू आयी अब रात चैन से कट जाएगी.

रूपा - अच्छा जी.

मैं - आगोश मे बैठी रहो, मैं तुम्हें देखते रहूं

रूपा - उफ्फ्फ ये दिल्लगी, तुम्हारी काकी क्या कह रही थी मेरे जाने के बाद

मैं - कुछ खास नहीं उन्हें पसंद आयी तुम. कह रही थी कि ठीक है उन्हें मेहनत नहीं करनी पडी लड़की ढूंढने के लिए

रूपा शर्मा गई.

मैं - हाय रे तेरी ये अदा.

रूपा - तू ऐसे ना देखा कर मुझे, तेरी निगाह घायल कर जाती है मेरे मन को

मैं - और तुम जो दिल चुरा ले गई उसका क्या

रूपा ने मेरा हाथ अपने हाथ मे लिया और बोली - कहाँ चुराया, वो तो मेरा ही था.

मैं अब उसे क्या कहता बस मुस्करा कर रह गया.

"आ साथ मेरे " उसने उठते हुए कहा

मैं - कहाँ


रूपा - घर
 
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#42

रूपा - आ चल मेरे साथ

मैं - कहाँ

रूपा - घर

मैं - सच मे

रूपा - सच मे

रूपा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया मैं उसका सहारा लेकर उठा, सीने मैं के दर्द की वज़ह से पैर लडखडाए.
रूपा - क्या हुआ

मैं - कुछ नहीं चल चले

सर्द रात के अंधेरे मे अपनी जाना का हाथ थामे कच्चे रास्ते पर चलना अपने आप मे एक सुख होता है. हमने जल्दी ही वो मोड़ पार किया जहां अक्सर मैं उसे छोड़ कर जाता था. जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे रूपा की पकड़ मेरी कलाई पर मजबूत होते जा रही थी. करीब आधा कोस चलने के बाद मुझे रोशनी दिखने लगी. जल्दी ही हम एक छप्पर के सामने खड़े थे.

"बस यही है मेरा आशियाँ " रूपा ने टूटते लहजे मे कहा.

मैं - महल से कम भी नहीं है जहां मेरी रानी रहती है
वो मुझे अंदर ले आयी. एक चूल्हा था. एक कोने मे बिस्तर प़डा था. पास मे एक कमरा और था. रूपा ने मुझे पानी दिया. मैं बैठ गया.

रूपा - चाय पियेगा

मैं - हाँ

उसने चूल्हा जलाया, बहती ठंड मे धधकता चूल्हा, ऊपर से बर्तन मे उबलती चाय, जिसकी खुशबु ने माहौल बना दिया था. जल्दी ही कप मेरे हाथो मे था

मैं - तू भी ले

वो - तुझे तो मालूम है मुझे दुध पसंद है.

मैं - तेरी मर्जी, पर दिलबर के संग चुस्की लेने का मजा ही अलग है सरकार

रूपा - जानती हूं सनम. मेरे संग तू है और क्या चाहिए. रात दिन बस एक ही ख्याल है मुझे, कभी सोचा नहीं था कि ऐसे कोई. मुसाफिर आएगा जो मुझे यूँ बदल देगा. मेरी जिन्दगी को एक नया रास्ता देगा
.
रूपा ने एक डिब्बे से कुछ मिठाई दी मुझे खाने को.

"बोल कुछ " उसने मुझसे कहा

मैं - क्या बोलू, बस तेरे पहलू मे बैठा रहूं, मुझे अपने आगोश मे छिपा ले, इतनी तमन्ना है जब आंख खुले तो तेरा दीदार हो, नींद आए तो तेरी बाहें हो.

रूपा - कहाँ से सोचता है तू ये बाते,

मैं - तुझे देखते ही अपने आप सीख जाता हूँ

मैं रूपा से बात कर रहा था पर मुझे कुछ होने लगा था. कुछ बेचैनी सी होने लगी थी, जी घबराने लगा जैसे उल्टी गिरेगी.

रूपा - क्या हुआ ठीक तो है ना

मैं - हाँ ठीक हुँ,

ठंडी मे भी मेरे माथे पर पसीना बहने लगा था.

"मुझे जाना होगा सरकार, जल्दी ही मिलूंगा " मैंने कहा

रूपा - क्या हुआ

मैं - एक काम याद आया

मैंने अपना दर्द छुपाते हुए रूपा से कहा.

रूपा - तेरी तबीयत ठीक नहीं लगी मुझे, मैं चलती हूं तेरे साथ

मैं - क्यों परेशान होती है, ऐसी कोई बात नहीं, बस एक काम याद आ गया.

मैं रूपा को परेशान नहीं करना चाहता था.

" फिर भी मोड़ तक आती हूं तेरे साथ. "उसने कहा
हम दोनों वहां से चल पड़े. एक एक कदम भारी हो रहा था मैंने सीने से रिसते खून को अपने कपडे भिगोता महसूस किया. बाबा ने सही कहा था आने वाले दिन बड़े मुश्किल होंगे. मोड़ तक आते आते मैं गिर प़डा. आंखे बंद सी होने लगी

"देव, क्या हो रहा है तुम्हें " रूपा चीख पडी.

"उठो देव उठो " रूपा रोने लगी मेरी हालत देख कर.
"बाबा के पास ले चलो मुझे " टूटती आवाज मे मैने कहा

रूपा ने मुझे सहारा दिया और बोली - अभी ले चलती हूं, तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी मैं, कुछ नहीं होगा तुम्हें
अपना सहारा दिए, मुझे घसीटते हुए रूपा मजार तक ले चली थी. जैसे किसी नल से पानी बहता है ठीक वैसे ही बदन से रक्त बह रहा था, मेरे लिए सब अंधेरा हो चुका था, सांसे जैसे टूट गई थी.

"हम आ गए देव हम आ गए " मुझे बस रूपा की आवाज सुनाई दे रही थी. मैं आंखे खोलना चाहता था पर सब अजीब हो रहा था

"बाबा, बाबा कहाँ हो तुम, देव को जरूरत है तुम्हारी " रूपा पागलों की तरह चीख रही थी. पर उसकी सुनने वाला वहां कोई नहीं था.

खुले सीने पर कुछ बांध कर वो खून बहना रोकने की कोशिश कर रही थी. बार बार मेरे चेहरे पर मार रही थी.

"आंखे खोल देव आंखे खोल, मैं हूँ तेरे साथ कुछ नहीं होगा तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी अपने सरताज को " रूपा बुरी तरह चीख रही थी.

"रूपा, रूपा " मैंने उसके हाथ को कसके पकड़ लिया. बड़ी मुश्किल से मैं उसे देख पाया. आंसुओ मे डूबा उसका चेहरा मेरे दिल को छलनी कर गया. मैं बहुत कुछ कहना चाहता था पर ये अजीब सा वक़्त था.

" क्या करू, कहाँ जाऊँ कोई सुनता क्यों नहीं मेरी
"रूपा बोली

मैंने देखा रूपा के चेहरे के भाव बदलने लगे थे. उसने अपनी आस्तीन ऊपर की और अपने हाथ पर एक चीरा लगाया. ताजा खून की खुशबु हवा मे फैल गई.
"कुछ नहीं होगा तुम्हें ". रूपा ने अपनी आस्तीन मेरे सीने के ऊपर की ही थी कि वो चीखती हुई पीछे की तरफ जा गिरी. एक दिल दहला देने वाली चिंघाड़ हुई. मैं समझ गया कि रूपा को किसने झटका दिया. ये वो ही सर्प था जिसे दुनिया मेरा साथी मानती थी.

सर्प ने मेरे चारो तरफ कुंडली जमा ली और अपनी पीली आँखों से मेरे दिल मे झाँक कर देखा. अगले ही उसकी फुंकार से जैसे आसपास जहर फैल गया.

"ये मर रहा है इसकी जान बचाने दे मुझे " रूपा ने कहा

सर्प ने ना मे गर्दन हिला दी.

रूपा - मैं विनती करती हूं. इसके अलावा कोई चारा नहीं है.

सर्प अपनी जगह से नहीं हिला. रूपा ने मेरे पास आने की कोशिश की पर उसने झपटा मारा रूपा पर.

"तू समझती क्यों नहीं अभी कुछ नहीं किया गया तो प्राण हर लिए जाएंगे इसके " रूपा ने कहा

"इलाज मिल जाएगा तेरी सहायता की जरूरत नहीं " पहली बार वो सर्प मानव भाषा बोला
.
रूपा -ठीक है, तो कर इसका इलाज पर याद रखना इसकी एक एक साँस की कीमत है इसे कुछ हुआ तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा, चाहे तू हो या कोई. महादेव की कसम किसी का मान नहीं रखूंगी मैं. चाहे मुझे मेरे प्राण देने पड़े पर मुसाफिर को जिंदा रहना होगा

"मैंने कहा ना, तेरी जरूरत नहीं, जहां तू खड़ी है वहाँ तुझे आने की इजाजत है किस्मत है तेरी " सर्प ने अभिमान से कहा

रूपा - तू रोक नहीं सकती, तेरी बदनसीबी है

"गुस्ताख, तेरी ये हिम्मत " सर्प ने अपनी पुंछ रूपा के जिस्म पर मारी, रूपा का सर दीवार से टकराया
 
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रूपा का सर दीवार से टकराया. पर वो सम्भल गई.

"तेरी यही इच्छा है तो ये ही ठीक " रूपा ने गुस्से से कहा और सर्प की पुंछ को पकड़ कर उसे हवा मे उछाल दिया.

मैं ये विध्वंस नहीं चाहता था पर उनको रोकने की हालत मे भी नहीं था. पहली बार मैंने शांत, सरल रूपा की आँखों मे कुछ ऐसा देखा था जिसकी मुझे कभी उम्मीद नहीं थी. वो सर्प जिसके सामने खड़े होने की किसी की हिम्मत नहीं, जिसके खामोश खौफ को मैंने खुद महसूस किया था.

रूपा ने सर्प पर झपटा सा मारा और वो सर्प चिंघाड़ता हुआ दूर जा गिरा.

"मुझे देखने दे इसे. " रूपा मेरी तरफ बढ़ी पर सर्प ने अपनी कुंडली मे जकड़ लिया रूपा को.

"मैंने कहा ना नहीं " सर्प अपनी अजीब सी शांत आवाज मे बोला

रूपा - देव के लिए मुझे तुझे चीरना भी पड़े तो परवाह नहीं

सर्प ने अपना फन जमीन पर मारा और फर्श के टुकड़े टुकड़े हो गए. उसका ये इशारा था रूपा को की आ देखू तुझे. उन दोनों के झगड़े की वज़ह से गर्मी बढ़ गई थी. दोनों एक दूसरे से जुझ रही थी. बड़ी मुश्किल से मैं उठ खड़ा हुआ.

"तुम दोनों मुझे मार दो, फिर जो चाहे करना है कर लेना " मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा.

दोनो रुक गयी और मुझे देखने लगी.

"मैं नहीं जानता कि क्या कहूँ, और ना मुझे कुछ कहना है, तुम दोनों से विनती है मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. " मैंने कहा

रूपा ने बेबस नजरो से मेरी तरफ देखा.

"तुम दोनों मे से जो भी मुझे इस दर्द से आजाद कर सकती है वो करे "मैंने कहा

"ईन दोनों के बस की बात नहीं है ये मुसाफिर " इस आवाज ने हम सबका ध्यान खींच लिया. ये बाबा थे जो अभी अभी कहीं से लौटे थे.

"एक पवित्र स्थान पर जो घृणित कार्य किया है तुम दोनों ने, विचार करके देखो, क्रोध और घ्रणा कब दिमाग पर काबु कर लेते है तो कुछ भान नहीं होता, कल जब लोग यहां आयेंगे तो इस हालत को देख कर क्या सोचेंगे "बाबा ने गुस्से से कहा

मैं दीवार का सहारा लेकर बैठ गया. मुझे लगने लगा था कि किसी भी पल बस कुछ भी हो सकता है.

"तुम दोनों जाओ यहां से "बाबा ने उनसे कहा

रूपा - नहीं जाऊँगी, जब तक ये ठीक नहीं हो जाता नहीं जाऊँगी

सर्प ने भी ऐसा ही कहा.

बाबा ने अपने झोले से कुछ निकाला और मेरे हाथ मे रखा.

"ये रक्तवर्धक बूटी है खा इसे " बाबा ने कहा

मैंने तुरन्त उसे घटक लिया.

बाबा - इस से नया खून बनने लगेगा.

बाबा ने सही कहा था जैसे ही बूटी का असर हुआ मुझे मेरी नसों मे एक लहर महसूस हुई. कमजोरी बंद हो गई.

मैं - क्या ये इलाज है बाबा

बाबा - जिंदगी भर का दर्द. ये घाव भर जाएगा पर दर्द नहीं जाएगा क्योंकि

"क्योंकि प्रहार रक्षा के लिए था, अनजाने मे तुमने कुछ ऐसी वस्तु छु ली जिसे प्राणघातक वार से संरक्षित किया गया था. " सर्प ने कहा

बाबा ने सर हिलाया.

रूपा - बाबा आप घाव भरो, दर्द को मैं अपने ऊपर ले लुंगी

बाबा - जानती है क्या कह रही है

रूपा - हाँ, जानती हूं

बाबा - ऐसा नहीं होगा. कदापि नहीं.

बाबा ने मुझे लेटने को कहा और झोले से कुछ निकाल कर मेरे सीने पर मलने लगे. तेज दर्द होने लगा.

"मुझे तुम्हारी जरूरत पड़ेगी " बाबा ने सर्प से कहा

सर्प की पीली आंखे टिमटिमाने लगी. वो अपने अर्ध नारी अर्ध नागिन रूप मे आयी. हमेशा के जैसे मैं उसका चेहरा नहीं देख पा रहा था. उसने अपने गले से कुछ निकाला और बाबा की तरफ फेंका.

बाबा ने उस चीज को रगड़ कर मेरे जख्म मे भरना शुरू किया और तुरन्त ही मुझे बड़ी राहत मिली.

बाबा - रुद्रभस्म असर कर रही है.

सर्प को जैसे राहत सी मिली.

बाबा - मुझे तुम्हारी सहायता भी चाहिए रूपा

"नहीं बाबा, ऐसा नहीं होगा " सर्प ने प्रतिकार किया

बाबा - तो तुम बताओ मैं क्या करू. दर्द के आवेश को रोकने का कोई और तरीका है.

सर्प - पर इसके दुष्परिणाम

बाबा - फ़िलहाल मेरी प्राथमिकता ज़ख्म भरने की है
रूपा आगे आयी. उसने हमेशा की तरह मुस्करा कर मुझे देखा.

"आंखे बंद कर लो मुसाफिर, और चाहे कितना भी दर्द हो पी लेना उसे, धीरे धीरे आदत हो जाएगी तुम्हें "बाबा ने कहा

मैंने आंखे मूंद ली. ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे सीने को सिलाई किया जा रहा हो. मैंने अपनी नसों मे कुछ अजीब सा बहता हुआ महसूस किया. धीरे धीरे मैं बेहोशी के सागर मे डूबता चला गया. जैसे हर रात के बाद सुबह होती है उस बेहोशी के बाद भी आंखे खुली. मैंने खुद बाबा के बिस्तर पर पाया. दिन निकल आया था.

मजार ऐसी थी कि जैसे कल कुछ हुआ ही नहीं हो. मैंने अपने सीने पर हाथ फेरा. ज़ख्म गायब था ना सिलाई के कोई निशान थे. मैंने कंबल ओढ़ा और बाहर आया.

"आ मुसाफिर आ चाय पीते है " बाबा ने मुझे देखते हुए कहा

मैं - वो दोनों कहा है

बाबा - कौन दोनों

मैं - आप इतने भोले भी नहीं है

बाबा - शातिर भी तो नहीं हूं

मैं - मुझे उस सर्प के बारे मे जानना है, कौन है वो, क्या रिश्ता है मेरा उससे, क्यों मेरे साथ है वो. कहाँ रहती है वो.

बाबा ने चिलम होंठो से लगाई और एक कश लिया.

बाबा - मुझे क्या मालूम

मैं - बाबा छुपाने का कोई फायदा नहीं, आपको अभी बताना होगा मुझे

बाबा - जानना चाहता है उसके बारे मे तो सुन, तू कर्जदार है उसका, तेरी आधी जिंदगी उसकी अमानत है. ये सांसे जो तेरी चल रही है, उसकी बदोलत है, तेरा सुख इसलिए है क्योंकि दुख उस के भाग मे जुड़ गया है. तू जानना चाहता है वो कौन है, वो वो अभागन है जिसके साथ नियति ने ऐसा छल किया है जो ना बताया जाए, ना छिपाया जाए. जब जब तुझे वो मिले, कृतज्ञ रहना उसका.

बाबा ने इतना कहा और आंखे मूंद ली. हमेशा की तरह उनका ये इशारा था. मैं वहां से उठा और बाहर की तरफ आया ही था कि मेरे सामने एक गाड़ी आकर रुकी.
 
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बाबा ने इतना कहा और आंखे मूंद ली. हमेशा की तरह उनका ये इशारा था. मैं वहां से उठा और बाहर की तरफ आया ही था कि मेरे सामने एक गाड़ी आकर रुकी. गाड़ी मे शकुंतला थी. उसने शीशा नीचे किया

मैं - देख कर चलाया करो, अभी चढ़ा देती मुझ पर

"मुझे मालूम था तुम यही पर मिलोगे, " उसने कहा

मैं - मुझसे क्या काम आन प़डा

शकुंतला- गाड़ी मे बैठो, बताती हूं

मैं गाड़ी मे बैठ गया शकुंतला ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. कुछ ही देर मे हम गांव से बाहर उस जगह पर थे जहां वो विक्रम से मिलती थी

"बताओ क्या हुआ " मैंने पूछा

शकुंतला - मैंने बहुत सोचा, मुझे तुम्हारा प्रस्ताव मंजूर है, मैं तुम्हारे साथ सोने को तैयार हूं.

शकुंतला की बात का मुझे यकीन सा नहीं हुआ,
उसका अहंकार अचानक से कैसे कम हो गया. ऐसे कैसे वो मुझ पर फिदा हो गई. दिमाग मे बहुत से विचार छा गए

मैं - ठीक है, बदले मे क्या चाहती हो

शकुंतला - यही बात मुझे बड़ी पसंद है तुम्हारी, सीधा मुद्दे पर आते हो. मैं तुम्हारे साथ सोने को तैयार हूं, जब जहां जब जब तुम बुलावोगे, मैं आ जाऊँगी. बदले मे तुम उस सर्प से कहकर मेरे पति का जहर उतरवाने को कहोगे

ये बड़ी अजीब बात थी और मेरी औकात से बाहर भी

"भला मैं कैसे कर सकता हूं ये, वो सर्प कभी मुझे मिलता ही नहीं और अगर मिला भी तो मैं कैसे समझा पाउंगा उसे. " मैंने शकुंतला से झूठ कहा

शकुंतला - मेरा पति तिल तिल मर रहा है छोटे चौधरी. मैं बड़ी आस लेकर आयी हूं. मुझे ना मत कहो.

मैं - तुम्हारी परेशानी समझता हूं सेठानी, और मेरे से ज्यादा तो तुम जानती हो सांप के बारे मे, यहां तक कि मुझे भी तुमने ही बताया था.

शकुंतला - मैं जानती हूं कि लालाजी और तुम्हारे सम्बंध कभी ठीक नहीं रहे पर मैं तुमसे उनकी जान की भीख मांगती हूं, उन्हें बचा लो

शकुंतला की आँखों मे आंसू भर आए. और मैं चाह कर भी उसे दिलासा नहीं पा रहा था. एक पत्नी जब पति को बचाने के लिए अपनी इज़्ज़त किसी दूसरे को सौंपने का निर्णय करती है तो ये बताता है कि वो उसे कितना चाहती है. दूसरी बात ये थी कि बेशक मैं उसकी लेना चाहता था पर पिछले कुछ दिनों से मेरी खुद की जिंदगी अजीब तरीके से झूल रही थी.

मैं गाड़ी से उतरा और पैदल ही खेत की तरफ चल प़डा. कल रात की घटना ऐसी थी कि मैं किसी को बताऊ तो कोई पागल ही समझे. मेरी सबसे बड़ी उत्सुकता थी कि रूपा उस सर्प को कैसे जानती थी और दोनों मे इतनी गहरी नफरत किसलिए थी.

सुल्तान बाबा उन दोनों को जानते थे. सोचते सोचते मेरे सर मे दर्द होने लगा. बेशक मुझे भूख लगी थी, फिर भी घर जाने की बजाय मैंने रज़ाई ओढ़ ली और सोने की कोशिश करने लगा.

पर ज्यादा देर सो नहीं पाया. कोई आ गया था. झोपड़ी मे. ये ताऊ की लड़की रितु थी.

"तुम यहाँ कैसे " मैंने पूछा

रितु - भाई आज मेरी शादी है मैं तुमको बुलाने आयी हूं.

मैं - तुम्हें आने की जरूरत नहीं थी, मैं बस आ ही रहा था

रितु - मुझे आना ही था भाई, क्योंकि तुम नहीं आते, और नहीं आने की वज़ह भी है तुम्हारे पास. पर आज का दिन मेरे लिए खास है, मैं अपने जीवन की नयी शुरुआत कर रही हूं और मैं चाहती हूं कि मेरा भाई मुझे अपने हाथों से विदा करे. घर वालो ने कभी वो हक नहीं दिया जिसके तुम हकदार थे. पर मैं हाथ जोड़कर विनती करती हूं कि मेरे लिए घर चलो. ये बहन अपने भाई से कुछ घंटे मांगती है.

रितु की आँखों से आंसू फूटने लगे., जो मेरे दिल को चीर गए. मैंने बस उसे अपने सीने से लगा लिया.

"बहने कभी विनती नहीं करती, बहनो का हक होता है " मैंने कहा.

मैं रितु के साथ घर आया. जल्दी से नहा धोकर. मैं शादी के कामों मे लग गया. दिल को इस बात की खुशी थी कि किसी ने तो अपना समझा. शाम होते होते अलग ही महफिल सज गई थी. मेरी नजर बार बार सरोज पर जा रही थी जो खुद किसी दुल्हन से कम नहीं लग रही थी. सुर्ख लाल साड़ी मे क्या गजब लग रही थी वो. हाथों मे दर्जन भर चूडिय़ां. कुछ ज्यादा ही कसा हुआ ब्लाउज जो उसके उभारो को ठीक से साँस लेने की इजाजत भी नहीं दे रहा था


मैं सरोज के पास से गुजरा और उसके नितंबों को सहलाता गया. उसने बड़ी प्यासी अदा से देखा मुझे. फिर वो मेरे पास आयी

सरोज - क्या इरादा है

मैं - तुम्हें पाने का

सरोज - मौके होते है तब तो भागते फिरते हो. आज जब चारो तरफ लोग है जब मस्ती सूझ रही है

मैं - पटाखा लग रही हो

सरोज - सुलगा दो फिर

मैं - करो कुछ फिर

सरोज - अभी तो मुश्किल है, फेरों के बाद देखती हूँ

मैं भी जानता था कि अभी थोड़ा मुश्किल है. सो दिल को तसल्ली दी और शादी एंजॉय करने लगा. रात बड़ी तेजी से भाग रही थी. बारात के खाने से लेकर, रितु के फेरे, ताऊ ने मुझे गठबंधन करने को कहा. ये एक ऐसी घड़ी थी ना चाहते हुए भी मेरा दिल भर आया तारो की छांव मे रितु को विदाई होने तक. मैं बुरी तरह से थक गया था.

मैंने सोचा कि थोड़ा आराम कर लू. दरअसल मेरी इच्छा तो थी कि सरोज को पेल दु. मैंने उसे कहा तो उसने कहा तुम चलो मैं थोड़ी देर मे आती हूं. मैं ताऊ के घर से निकल कर अपने घर की तरफ चल दिया.

हवा मे खामोशी थी, जनरेटर की आवाज दूर तक सुनाई दे रही थी. मैं गली के मोड़ तक पहुंचा ही था कि मेरे कदम जैसे धरती से चिपक गए. मेरे सामने... मेरे सामने....
 
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#45

सर साला फटने को हो गया है था. गली के नुक्कड़ पर लाला महिपाल की लाश पडी थी. एकदम सफेद लाश जैसे सारा खून निचोड़ लिया गया हो. ठीक इसी जगह पर मुनीम की लाश मिली थी और अब लाला की लाश. मैं बिना देर किए वहां से भाग लिया. दिल इतनी जोर से पहले कभी नहीं धड़का था. मैंने रज़ाई ली और कांपते हुए बैठ गया
.
थोड़ी देर मे ही चीख पुकार मच गई. मैं बाहर नहीं गया. ऐसा नहीं था कि लाला की मौत से मुझे दुख था, मुझे कोई फर्क़ नहीं पड़ता. पर मेरा विचार ये था कि मैं ही क्यों ऐसी जगह पर पहुंच जाता हूँ जहां ये सब चुतियापा चल रहा होता है. मेरे उलझनें पहले ही कम नहीं थी. गांव मे हो क्या रहा था मुझे मालूम करना ही था, जैसा शकुंतला ने कहा कि साँप मार रहा है लोगों को पर क्यों. अब ये मुझे मालूम करना था

दोपहर को मैं सेशन हाउस गया तो वहां जाकर कुछ और ही मालूम हुआ, मोना ने तीन दिन पहले नौकरी से इस्तीफा दे दिया था. इतनी बड़ी नौकरी को अचानक छोड़ देना क्या उचित था. मैंने गाड़ी जूनागढ की तरफ मोड़ दी. चौखट पर मैंने जब्बर को देखा और आगे बढ़ गया मेरा फ़िलहाल मोना से मिलना जरूरी था.

"मोना कहाँ है" मैंने गाड़ी से उतरते ही दरबान से पूछा

दरबान - यहां तो नहीं आयी मेमसाहब

मैं - नौकरी छोड़ दी है उसने

दरबान - हमे तो कोई जानकारी नहीं है हुकुम

मैं - सेशन हाउस नहीं है, यहां नहीं है तो कहाँ है वो, और कौन सी जगह है जहां वो जाती है

दरबान - और तो कहीं नहीं जाती वो, पर हाँ उस दिन आपके जाने के बाद बड़े साहब आए थे यहाँ, दोनों मे झगड़ा हुआ था.

मैं - बड़े साहब यानी मोना के पिता.

दरबान ने हा मे सर हिलाया.

मैं - किस बात को लेकर झगड़ा हुआ था

दरबान - हुकुम हम सब बाहर थे बाप बेटी अंदर थे पर आवाज़ें जोर जोर से आ रही थी तो हमको भान हो गया.

ये बाते और परेशान करने वाली थी मुझे. मोना का अचानक से नौकरी छोडऩा और फिर घर नहीं आना. क्या वो किसी मुसीबत मे थी. मेरा दिल घबराने लगा था. क्या सतनाम ने उसके साथ कुछ किया होगा. मैंने गाड़ी को सतनाम की हवेली की तरफ़ मोड़ दिया. कुछ ही देर बाद मैं वहां था जहां मैं ऐसे जाऊँगा कभी सोचा नहीं था.

"दरवाज़ा खोल, सतनाम से मिलना है मुझे " मैंने दरवाज़े पर खड़े लड़के से कहा

"तमीज से नाम ले बाऊ जी का, वर्ना अंदर तो क्या कहीं जाने लायक नहीं रहेगा " उसने रौब दिखाते हुए कहा

मैं गाड़ी से नीचे उतरा, उसके पास गया और बोला - गौर से देख मुझे और इस चेहरे को याद कर ले. जा जाकर बोल तेरे बाप को की सुहासिनी का बेटा आया है. आकर मिले मुझसे.

वो घबराते हुए अंदर गया और कुछ ही देर मे दरवाजा खुल गया. मैं हवेली के अंदर गया. मैंने पाया नानी को जो मेरी तरफ ही आ रही थी.

नानी - तुम्हें नहीं आना चाहिए था यहां

मैं - शौक नहीं है, मोना तीन दिन से गायब है सतनाम का झगडा हुआ था उससे. बस मालूम करने आया हूं

नानी - सतनाम का कुछ लेना देना नहीं है मोना से

मैं - तो झगडा क्यों किया

नानी - कोई झगड़ा नहीं हुआ था वो बस उसे समझाने गया था

मैं - क्या समझाने

नानी - यही की मोना अपने पद का दुरुपयोग ना करे, सतनाम के आदमियों के छोटे मोटे मुकदमों को भी मोना ने रफा-दफा करने की बजाय उलझा दिए थे. चुनाव आने वाले है बाप बेटी की नफरत को विपक्ष द्वारा खूब उछाला जा रहा था. बस इसलिए वो बात करने गया था

मैं - वो तीन दिन से लापता है, अगर उसे कुछ भी हुआ, एक खरोंच भी आयी तो ठीक नहीं होगा. कह देना अपने बेटे से मोना से दूर रहे. मोना की तरफ आंख उठाकर देखने से पहले ये याद रखे कि मोना के साथ देव चौधरी खड़ा है.

"मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ कि उसके साथ तू है, इसलिए मुझे फिक्र नहीं उसकी. उस दिन तेरी आँखों मे मैने देखा था, कैसे मेरे बीस आदमियों के आगे खड़ा था तू " दरवाज़े की तरफ से आवाज आयी.

मैंने देखा सतनाम हमारी तरफ चलते हुए आ रहा था

"मेहमान आया है घर पर, कुछ चाय नाश्ता लाओ " सतनाम की एक आवाज से घर गूँज गया. उसने मुजे बैठने को कहा.

सतनाम - हाँ मैं गया था उसके पास पर किसी और कारण से. और तुम्हारा ये सोचना कि मैं उसका नुकसान करूंगा गलत है, बेशक हमारी राहें अलग है पर बाप हूं उसका, औलाद ना लायक हो तो भी माँ बाप को प्यारी लगती है. मैं ये भी जानता हूं कि तुम्हें मेरी बाते समझ नहीं आयेंगी क्योंकि एक बाप के लिए बड़ा मुश्किल होता है आपने दिल को खोलना.

चाय आ गई मैंने कप उठाया और एक चुस्की ली.
सतनाम - तुम्हें मालूम तो होगा ही की महिपाल की हत्या हो गई है, महिपाल मेरा पुराना दोस्त था.

मैं - गांव का बहुत खून पिया था उसने

सतनाम - मैं जोर लगाऊंगा उसके कातिल को तलाशने के लिए

मैं - मुझे क्या लेना-देना

सतनाम - मेरा भी क्या लेना-देना मोना से

मैंने कप टेबल पर रखा और बाहर आ गया. सतनाम ने जिस अंदाज से बात कही थी मैं समझ नहीं पाया. मैं वापिस अपने गांव के लिए मुड़ गया, आते आते रात हो गई थी. दिल मे था कि अब रूपा से मिल लू, उसके साथ दो घड़ी रहने पर ही सकून मिलना था मुझे. मैंने कच्चा रास्ता ले लिया, अचानक से मुझे कुछ याद आया और मैंने गाड़ी दूसरी दिशा मे मोड़ थी.

कुछ देर बाद मैं खाली जमीन के सामने खड़ा था सामने खड़ा था. मेरे दिमाग में बस वो शब्द गूँज रहे थे.
 
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#46

मेरी नजरे उस खाली जमीन को घूर रही थी, मैं जानता था वो हवेली वहीं पर थी बस उसे देखने वाली नजर चाहिए थी. बहुत देर तक मैं खड़ा सोचता रहा कि कैसे अदृश्य हवेली को प्रकट किया जाए. और वो कहते है ना कि किसी चीज़ को शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने मे लग जाती है, अपनी कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. अंदाज़े से मैं उस जगह पर पहुंचा, जहां सीढियां थी.



"आ भी जाओ सामने " मैंने कहा. पर कुछ नहीं हुआ. कैसे हवेली को देखूँ मैं सोच मे प़डा मैं पागलों की तरह शून्य मे ताक रहा था. पर कहते है ना कि जहां चाह होती है वहां राह होती है. मैंने अपना पैर जैसे ही सीढि वाली जगह पर रखा. सीढिया सामने आ गई. हवेली ने शायद पहचान लिया था, एक के बाद एक करके पूरी हवेली मेरे सामने थी.

सामने दरवाजा ठीक वैसे ही खुला था जैसा मैंने छोड़ा था. मैं तुरंत अंदर घुस गया. कुछ मोमबत्तियां जल रही थी जिनसे रोशनी हो रही थी. अंदर गर्मी थी.. मैंने जैकेट उतार कर मेज पर रखी. मेज पर ही एक केतली रखी थी जिससे गर्म चाय की खुशबु आ रही थी. मैंने एक कप मे चाय डाली. पास ही कुछ और खाने की चीजे थी. जैसे किसी को अंदाजा हो कि मैं आने वाला हूं.

इक बात और थी जिसने मेरा ध्यान खींचा था हवेली मे जैसे हाल ही मे सफाई की गई हो, किसी ने जैसे कुछ छुपाने की कोशिश की थी क्योंकि कई जगह ताजा खून के धब्बे थे. खैर, अब तो मुझे ईन सब की आदत होने लगी थी, जिन्दगी ऐसी उलझी थी कि कब कहां क्या दिख जाए कोई ताज्जुब नहीं होता था. मैंने चाय खत्म की और एक बार फिर वापिस से मैं उस बड़ी सी तस्वीर के सामने था जिसमें मैं अपने माँ बाप के साथ था.

मोमबत्ती की रोशनी मे तस्वीरें ऐसी थी जैसे कि अभी मेरी माँ बाहर निकल कर मुझे अपने आगोश मे भर लेगी. पर एक बात थी कि ये मेरा घर था. सीढिया चढ़ कर मैं ऊपर आया. खून बिखरा था जैसे किसी को घसीट कर लाया गया हो. मैंने खून को हथेली में लिया और सूंघ कर देखा. महक कुछ पुरानी सी थी पर खून में गर्मी थी . और साथ ही बहुत गाढ़ा भी था ये.

“अवश्य ही वो नागिन किसी जानवर को लायी होगी ” मैंने अपने आप से कहा.

इस हवेली को बड़ी कारीगरी से बनाया गया था , पहली मंजिल के सभी कमरे एक जैसे ही लगते थे . मैं एक कमरे के दरवाजे को खोलने ही वाला था की मेरे कानो में आवाज पड़ी, पानी गिरने की आवाज जो ऊपर की मंजिल से आ रही थी . मैं दूसरी मंजिल पर चढ़ गया . ये मंजिल जैसे अपने आप में अजूबा थी . यहाँ पर बस एक ही कमरा था जिसका दरवाजा आधा खुला था . एक रसोई थी . जिसमे से बढ़िया खाने की महक आ रही थी .



मेरे कान बहते पानी को सुन रहे थे . मैं सोच ही रहा था की तभी पास वाला दरवाजा खुला और मेरे सामने बाबा आ गए, सुल्तान बाबा. वो मुझे देख कर चौंक गए और मैं उनको देख कर. बाबा के कपडे खून से सने थे .

“तू यहाँ कैसे मुसाफिर ” बाबा ने सवाल किया .

मैं- मेरा ही तो घर है बाबा.

बाबा - हाँ , मैं तो भूल ही गया था तेरा ही घर है. उम्र हो चली है बेटा.

मैं- पर आप यहाँ क्या कर रहे थे और ये खून कैसा आपके कपड़ो पर

बाबा- अरे कुछ नहीं , एक जानवर घायल मिला था तो उसकी मरहम पट्टी कर रहा था .

मैं- कैसा जानवर बाबा .

बाबा- तू भी न मुसाफिर , कितनी सवाल पूछता है . आ मेरे साथ .

बाबा ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे वापिस से निचे ले आये. सीढिया उतरते हुए मैंने देखा की हॉल, और सीढिया चमक रहे थे जैसे अभी अभी किसी ने साफ़ किया हो. खून के दाग जो मैंने देखे थे अब गायब थे.मेरा सर अब दर्द करने लगा था . बाबा की सकशियत भी अब मुझे कुछ अजीब लग रही थी . कुछ तो था जो वो छुपा रहे थे .

“बाबा मैं उस सापिन से मिलना चाहता हूँ ” मैंने कहा

बाबा- मिल ले फिर .

मैं- कहाँ रहती है वो . क्या नाम है उसका.

बाबा- आजकल का तो पता नहीं पर एक ज़माने वो अपने गाँव के मंदिर में रहती थी .

मैं- बाबा, बातो को न घुमाओ अपने गाँव में कोई मंदिर नहीं है .

बाबा- मैंने कहा एक ज़माने में मुसाफिर. एक ज़माने में . एक समय था इस गाँव में भोले का मंदिर था . पर फिर तेरे दादा ने उसे तुडवा दिया . मिटटी में दबवा दिया.

मैं- क्यों

दादा- बड़ी उलझी हुई कहानी है वो मुसाफिर, तू समझ नहीं पायेगा मैं बता नहीं पाउँगा रहने दे उस बात को

मैं- ठीक है पर मुझे सापिन से मिलवा दो.

बाबा- मेरे बस की नहीं वो अपनी मर्जी से आती है जाती है .

मैं- आप हर बात को हवा में उड़ाते हो बाबा, मुझे सच बताते क्यों नहीं.

बाबा- मुसाफिर, समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता जब समय होगा तुझे तेरे सवालो के जवाब मिल जायेंगे. . जैसे समय आया तो तुझे तेरे परिवार की जानकारी हुई. इस घर तक तू आ पहुंचा.

मैं- घर की बात आई तो कहना चाहूँगा की बेशक घर मेरा है पर वारिस कोई और है इसका .

बाबा- क्या फर्क पड़ता है, मोना भी तेरी माँ के इतने ही करीब है जितना तू,

मैं- सो तो है .

बाबा- तू जब चाहे यहाँ आ सकता है दिन के उजाले में रात के अँधेरे में .हवेली की सीढिया तेरे कदमो को पहचान लेंगी . दुनिया के लिए ये होकर भी नहीं है पर अपने लिए ये हमेशा है .

मैं- बाबा इसे छुपाया क्यों गया .

बाबा- तुम्हारे लिए. तुम्हारे जीवन के लिए .

मैं- पर बाबा मैं तो हमेशा यहाँ से दूर ही रहा .

बाबा- यही तो पहेली है हम सबके लिए. .खैर, अभी मुझे जाना होगा, तुझे रुकना है तो रुक, आना है तो आ. तेरी मर्जी

बाबा ने अपना झोला उठाया, और मुझे पूरा यकीन था की झोले में कुछ फडफडा रहा था .

“एक मिनट बाबा, बस एक मिनट, मोना पिछले कुछ दिनों से लापता है , आपको कोई खबर है क्या ” मैंने कहा

बाबा- नहीं कई दिन से मिली नही मुझे, कोई खबर मिली तो बताऊंगा.



बाबा ने झोला उठाया और चले गए. मैं वापिस हवेली में आया. मुझे बड़ी उत्सुकता थी की दूसरी मंजिल पर क्या था . क्योंकि मैं जानता था की बाबा ने मुझसे झूठ बोला है. मैंने हवेली का बड़ा दरवाजा बंद किया और दूसरी मंजिल की तरफ चल दिया. पर जैसे ही पहली मंजिल से दाई तरफ मुड़ा. एक बार फिर मेरी किस्मत ने जैसे ठग लिया मुझे. मेरे सामने ..............
 
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#47

मेरे सामने दूसरी मंजिल थी ही नहीं. सीढिया जैसे खत्म हो गयी थी . अब ये नया चुतियापा था क्योंकि मैं अच्छे से जानता था की हवेली तीन मंजिला थी और थोड़ी देर पहले ही तो मैं यहाँ दूसरी मंजिल पर आया था . बाबा सुलतान कुछ तो ऐसा कर गया था जिसे वो मुझसे हर हाल में छुपाना चाहता था . इन दुसरे लोगो की दुनिया में मैं खुद को बड़ा असहाय महसूस करता था इन हरकतों को देखते हुए.



मैं निचे आकर कुर्सी पर बैठ गया और सोचने लगा. मोना का अचानक से इस्तीफा देना , और गायब हो जाना , कुछ तो हुआ था उसके साथ . उसके बारे में सोच सोच कर मेरा हाल बुरा हो गया था . उसकी बड़ी फ़िक्र हो रही थी मुझे और होती भी क्यों नहीं मेरी दोस्त थी वो . सोचते सोचते मुझे ख्याल आया और मैंने खुद को कोसा की ये ख्याल मुझे पहले क्यों नहीं आया.

मुझे अब रूपा से मिलना था . बल्कि मुझे सबसे पहले रूपा से ही मिलना चाहिए था . मैं हवेली से निकल कर सीधा रूपा के घर की तरफ चल पड़ा . रूपा ही अब मेरे सवालो का जवाब दे सकती थी . रूपा मुझे घर पर ही मिली.

रूपा- मुसाफिर

मैं- कैसी हो .

रूपा- पहले तो न जाने कैसी थी पर अब बहुत ठीक हूँ .बैठो तुम्हारे लिए चाय बनाती हूँ .

मैं- नहीं चाय नहीं . मुझे बस तुमसे बात करनी है .

रूपा- जी, सरकार.

मैं- वो नागिन और तुम्हारा क्या रिश्ता है . बाबा ने मेरा जख्म भरने के लिए तुमसे क्या माँगा था . मुझे तुम्हारे और उस नागिन के बारे में सब जानना है .

रूपा- बताती हूँ , मेरा और उस नागिन का रिश्ता अहंकार का रिश्ता है , नफरत का रिश्ता है ,उसे अभिमान है की वो श्रेस्ठ है मुझे भान है की मैं निम्न हूँ .उसे लगता है की शम्भू के कंठ पर वास मिलने से वो महत्वपूर्ण है , उसकी अपने विचार है मेरे अलग विचार है .

मैं- और तुम कौन हो .

रूपा- मैं , मैं कौन हूँ . मैं वो माटी हूँ जिसे तुम्हे तराश कर गुलिस्तान बना दिया. मैं वो धुल हूँ जिसे तुमने माथे से लगा कर मोल बढ़ा दिया. मैं वो मजबूर हूँ जो आसमान में उड़ना चाहती है पर पाँव में बाप के कर्ज की बेडिया है. मैं वो आइना हूँ जो रोज तुम्हे देखती है .

मैं- तुमने उस रात क्या किया था जो जख्म ऐसे गायब हुआ जैसे था ही नहीं .

रूपा- जानते हो मुसाफिर , इस दुनिया में सबसे बड़ी कोई शक्ति है तो वो प्रेम है , ये प्रेम ही था जो वो जख्म मैं भर पायी. मुझे कुछ खास तरह की चिकित्सा करने का हुनर मिला है . मैंने बस सी दिया उस जख्म को

मैं- सच बताओ रूपा , मुझसे तो न छुपाओ .

रूपा- सच अपने आप में अजीब होता है मुसाफिर. दरअसल ये सामने वाले पर निर्भर करता है क्या सच है क्या झूठ, सब परिस्तिथिया होती है . पर चूँकि आज तुम जानना ही चाहते हो तो मुझे बताना हो गा, इसलिए नहीं की तुम्हे जानना है बल्कि इसलिए ताकि तुम्हारे और मेरे रिश्ते में जो विश्वास है वो बना रहे. मैंने तुम्हे अपनी खाल दी. तुम्हारे सीने का जख्म उतारना बड़ा जरुरी था . बेशक तुम्हे उस दर्द को झेलना होगा पर कम से कम मैं इतना ही कर सकती थी.

रूपा ने लालटेन की लौ को तेज कर दिया और मेरी तरफ पीठ करके अपना ब्लाउज उतार दिया. उसकी नंगी पीठ पर बड़ा घाव था . अन्दर का मांस तक झलक रहा था . मेरे लिए कितना कुछ कर गयी थी वो . आँखों से आंसू गिरने लगे. मैंने उसे बाँहों में भर लिया .

“तुझे ये करने की जरुरत नहीं थी मेरी जान ” रुंधे गले से मैंने कहा .

रूपा-मेरी खुशनसीबी है जो तेरे काम आ सकी.

रूपा ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए. और मुझसे लिपट गयी. उसके होंठो का दबाव मेरे होंठो पर जो पड़ा मैंने हलके से मुह खोला और वो दीवानों जैसे मुझे चूमने लगी.

हम दोनों की ही आँखों से आंसू गिर रहे थे पर ये ख़ुशी के आंसू थे उस ख़ुशी के जो हमारे रिश्ते की नींव रख रही थी . बड़ी देर बाद वो मुझसे अलग हुई.

रूपा- अब जा तू. रात बहुत हुई.

मैं- जाता हूँ , कब मिलेगी ये करार कर.

रूपा- जब तू चाहेगा

मैं- एक बात और

रूपा- मेरी माँ जादूगरनी थी , इसलिए मुझे ये चिकित्सा आती है .

मेरे बिना कहे ही रूपा ने कह दिया था . वैसे तो ये अनोखी बाट थी पर अब मुझे आदत सी हो चली थी .

मैं- फर्क नहीं पड़ता. मुझे उस नागिन का नाम जानना है .

रूपा- कुछ लोगो के नाम नहीं होते , बस दुनिया उन्हें अपने हिसाब से पुकार लेती है .

मैं- ठीक है चलता हूँ .

रूपा हमेशा की तरह मुझे देख कर मुस्कुराई. उसकी बड़ी बड़ी आँखों में जैसे दिल डूब गया मेरा. रात न जाने कितनी बीती कितनी बाकी थी . मैं गाँव की तरफ बढ़ रहा था . दिमाग में बस एक बात थी की कैसे भी करके उस नागिन से मुलाकात करनी है . उस से बाते करनी है . सोचते सोचते मैं घर तक आ पहुंचा. मैं दबे पाँव कमरे में जा ही रहा था की सरोज की आवाज से मेरे कदम रुक गए.

सरोज- तो फुर्सत मिल गयी घर आने की बरखुरदार

मैं-थोड़ी देर हो गयी .

सरोज- देर कहाँ हुई रात के दो ही तो बजे है और वैसे भी तुम्हे क्या कहना कबसे लापता हो याद भी है .

मैं- कुछ काम था .

सरोज- जानती हूँ तुम्हारा काम , जल्दी ही उस लड़की से शादी करवा दूंगी तुम्हारे, उसके बहाने ही सही घर पर तो रहोगे.

मैं- करतार सो गया .

सरोज- हाँ ,

मैं- चाचा.

सरोज- बाग़ में है , उनके कुछ दोस्त आये है तो वही दारू-मीट का प्रोग्राम है .

“और तुम्हारा क्या प्रोग्राम है ” मैंने सरोज की छाती पर नजर गडाते हुए कहा.

सरोज- मेरी कहाँ फ़िक्र है तुम्हे .

मैंने सरोज को उसी समय गोदी में उठा लिया और बोला- तुम्हारी ही फ़िक्र तो है मुझे. उसने अपनी बाहे मेरे गले में डाल दी और मैं उसे उसके कमरे में ले चला.
 
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#48

सरोज के साथ चुदाई करके मैंने अपने तन की प्यास तो मिटा ली थी पर मेरा मन बेचैन था . बेशक अब मुझे नींद की जरुरत थी पर मोना की वजह से मैं बेचैनी महसूस कर रहा था . वो किस हाल में होगी, क्या हुआ उसके साथ .तमाम सवाल मुझे पागल कर रहे थे . दोपहर के खाने के बाद मैं सरोज के साथ बैठा बाते कर रहा था .

सरोज- लाला की मौत ने शकुन्तला को तोड़ कर रख दिया है बुरा हाल है उसका.

मैं- पति मर गया गम तो होगा ही .

सरोज- पर लाला की मौत से कुछ बाते भी उड़ रही है गाँव में

मैं- कैसी बाते

सरोज- लाला की लाश में एक बूँद खून भी नहीं था . जिसने भी उसे देखा यही कहा ऐसा लगता था की जैसे किसी ने सारा खून निचोड़ लिया हो.

मैं- लाला कौन सा भला था , उसने भी तो गाँव वालो का खून पिया था .

सरोज- सो तो है पर ऐसे कोई क्यों करेगा, ऐसी दरिंदगी

मैं- ये दुनिया बड़ी जालिम है , लाला का कोई दुश्मन रहा होगा जिसने पेल दिया उस को . अब इतने लोगो की आत्मा सताई है अंत ऐसा ही होना था .

सरोज- शकुन्तला कहती है की सर्प ने मारा है लाला को .

मैं- सर्प खून नहीं पीते वो डसते है लोगो को ये मामला अलग ही है .

सरोज- गाँव में भय का माहौल है अँधेरा होने के बाद आजकल कोई निकलता नहीं घर से बाहर बस तुम लोग ही हो जो घूमते रहते हो .

मैं- पर हमारा किसी से क्या लेना देना है

सरोज- बेशक, पर फ़िक्र तो होती है न .

मैं- अब इतनी भी फ़िक्र न किया करो. खैर, मैं आता हूँ थोड़ी देर में

सरोज- कहाँ चले

मैं- खेतो पर चक्कर लगा कर आता हूँ .

दरअसल मेरे सीने में दर्द होने लगा था . मैं ये बात घरवालो से छुपाना चाहता था . मैंने साइकिल उठाई और खेतो पर पहुंचा . ऐसा लगता था की छाती फट जाएगी. अन्दर किसी ने आग लगा दी हो . झोपडी में पड़े पड़े मैंने दर्द के उस दौर को झेला . मुझे गुस्सा आ रहा था उस नागेश पर जिसकी वजह से बिना किसी बात मुझे ये समस्या मिल गयी थी .



जीवन में आये इन परिवर्तनों के कारन मैं सब कुछ भूल बैठा था ये खेत खलिहान . मैंने खेतो में कुछ चक्कर लगाये.सरसों काफी बड़ी हो चुकी थी . पीले फूल बड़े अच्छे लग रहे थे . मैं ऐसे ही किसी डोले पर बैठ गया और खुद को इस परिवेश के हवाले कर दिया. दो पल के लिए ही सही मुझे सकून तो मिला.

पर इस सकून की क्या कीमत थी ये कोई नहीं जानता था . शाम होते होते मैं वापिस घर चला गया . मजार पर जाने का मेरा मन ही नहीं हुआ. चाय पर हम सब बैठे हुए थे की सरोज काकी ने अचानक से ऐसा विषय छेड़ दिया जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी.

“हमें अब देव के ब्याह के बारे में सोचना चाहिए, घर में बहु आ जाएगी तो कम से कम रसोई से तो आजादी मिलेगी मुझे , घर और बाहर का इतना काम हो जाता है की मेरे बस का नहीं है अब ” काकी ने चाचा से कहा .

चाचा ने बड़े गौर से सुनी ये बात और बोले- विचार तो ठीक है तुम्हारा पर देव क्या कहता है .

सरोज- देव क्या कहेगा. ब्याह तो सभी करते है बस किसी का थोड़ी जड़ी तो किसी का देर से हो जाता है .

विक्रम- ठीक कहती हो , मैं देखता हूँ . आज ही अपने लोगो में जिक्र करता हूँ कोई ठीक लड़की मिली तो बात आगे बढ़ा लेंगे.

मैं और करतार बस उनकी बाते सुनते रहे . कुछ देर बाद विक्रम चाचा उठे और बोले- भई, मैं शहर जा रहा हूँ. एक सेठ है जो अपनी जूस फक्ट्री के लिए हमारे बागो से फल खरीदना चाहता है तो मीटिंग है .

करतार- पापा. मुझे भी शहर छोड़ देना

विकर्म-तू क्या करेगा

करतार- मेरे दोस्त चंदू का जन्मदिन है तो उसके लिए

विक्रम- हाँ ठीक है .

करतार- भई तुम भी चलो. चंदू बहुत याद करता है तुम्हे.

मैं- तुझे तो मालूम है मुझे ये दिखावे पसंद नहीं . पर चंदू के लिए कुछ अच्छे कपडे खरीदना मेरी तरफ से और अपनी तरफ से जो तुम्हे ठीक लगे.

कुछ देर बाद वो दोनों चले गए और रह गए मैं और सरोज. सरोज मेरी तरफ सेक्सी अदाओ से देखने लगी. वो दरवाजा बंद करके आई तब तक मैंने अपनी पेंट उतार दी थी . सरोज मेरे सामने आई और मुझे अपना लंड सहलाते हुए देख कर आहे भरने लगी. उसने भी तुरंत अपने कपडे उतार फेंके और मटकते हुए मेरे पास आ गयी.

मैं कुर्सी पर बैठा था सरोज घुटनों के बल बैठी और मेरे लंड को अपने हाथो में थाम लिया. उसकी नर्म उंगलियों ने जैसे ही उसे सहलाया मेरी आँखों में मस्ती छाने लगी. सरोज ने मेरे सुपाडे की खाल को निचे सरकाया और अपने होंठ वहां पर रख दिए. कसम से मेरा पूरा बदन झनझनाना गया . कुछ देर तक वो होंठ रगडती रही फिर उसने अपना मुह खोला और आधे से ज्यादा लिंग को मुह में भर लिया.



उसकी खुरदुरी जीभ मेरे सुपाडे पर गोल गोल घूम रही थी ऐसा लग रहा था की मैं हवा में उड़ने लगा हूँ .सरोज मेरे अन्डकोशो को सहला रही थी उसके होंठो से गिरता थूक अन्डकोशो को चिकने कर रहा था .सरोज ने बड़े दिन बाद मेरा लुंड चूसा था और जब हम अकेले थे वो इस मौके को कैसे हाथ से जाने दे सकती थी .

अब पूरा लंड उसके मुह में भरा था जिसे वो बहार नहीं निकाल रही थी . मैं उसके सर को बार बार निचे को दबा रहा था . मैं लंड को उसके गले तक डाल देना चाहता था . कुछ देर बाद वो उठ गयी और लम्बे सांस लेने लगी . मैंने उसे सोफे पर आने को कहा . सरोज अब घोड़ी बन गयी थी .

किसी भी औरत की खूबसूरती उसके चेहरे से नहीं बल्कि जब वो घोड़ी बनती है तो उसकी गांड के उभार से मालूम होती है .

“तेरी गांड बड़ी प्यारी है काकी, ” मैंने उसके गांड के छेद को ऊँगली से कुरेदते हुए कहा . वो कुछ नहीं बोली बस चुतड हिलाने लगी जो संकेत था की वो चुदने को तैयार है . मैंने उसकी चूत को थोडा सा खोला और अपना मुह वहां पर लगा दिया.
 
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#49

पर मेरे नसीब में वो सुख नहीं था जिसकी मुझे तलब थी , इस से पहले की एक बार और मैं और सरोज एक हो जाते दरवाजा जोरो से पीटा जाने लगा. हमने जल्दी से कपडे पहने और निचे आये तो देखा की शकुन्तला दरवाजे पर थी . मुझे देखते ही उसके अन्दर का गुबार फूट पड़ा.

“मैंने तुमसे कहा था की उसे समझा लो पर तुमने मेरी नहीं मानी ” वो जोर जोर से चिलाने लगी.

मैं- ये क्या तमाशा कर रही हो अपने घर जाओ .

“चली जाउंगी, मैं बस तुम्हे ये बताने आई हूँ की दुश्मनी की आग में तुम भी झुल्सोगे, आज मैं रो रही हूँ, कल तुम्हारी बारी है तुम्हारी आँखों के सामने मैं उसे मार दूंगी. आग जो मेरे कलेजे में लगी है उसमे तुम्हे न जला दूंगी तब तक चैन नहीं आएगा मुझे ” शकुन्तला ने कहा

सरोज- सेठानी, औकात से ज्यादा बोल रही हो , ये मत भूलो की देव अकेला नहीं है .

शकुन्तला- तू तो चुप रह सरोज, तुझे नहीं मालूम तेरे इस देव ने क्या किया है . मेरी मांग का सिंदूर इसकी वजह से मिटा है इसके उस सांप ने मारा है मेरे पति को . मैं कसम खाती हूँ उस सांप को इसकी आँखों के सामने मारूंगी

सरोज- मार दे , चाहे जो कर हमें क्या लेना देना बस मेरे बच्चे को इसमें मत घसीट वैसे भी तेरा पति दूध का धुला नहीं था , तू भी जानती है , मेरे बच्चे को अगर खरोंच भी आई तो मैं खाल उतार लुंगी तेरी .

शकुन्तला- अपने पर आई तो कैसे बिलबिला गयी तू, इस से कह की उस सान्प को मेरे सामने ले आये. मैं बात खत्म कर दूंगी.

मैं- सेठानी मैं तेरे दुःख को समझता हूँ पर तेरे इस पागलपन को नहीं, तू जा यहाँ से , कोई फायदा नहीं है दुनिया को तमाशा दिखाने का .

शकुन्तला- जा रही हूँ पर दिन गिनने शुरू कर दे. और तूने जो उसे बचाने की कोशिश की तो पहला वार तुझ पर ही होगा.

मैं- तेरी यही इच्छा है तो ठीक है तू कर अपनी कोशिश , पर इतना याद रखना दुश्मनी की आग में तुझे ही झुलसना है . रही बात उस सांप की तो तू कोशिश करके देख ले . तेरा अंजाम तेरे सामने होगा.

शकुन्तला- तू ये मत समझना मैं अकेली हूँ मेरे साथ और भी लोग है .

मैं- जिसके लंड पर उछालना है उछल ले . पर मेरी बात याद रखना मेरे इस घर के किसी भी सदस्य को जरा भी खरोंच आई तो मैं क्या करूँगा सोच भी नहीं सकती तू.

शकुन्तला- भुगतेगा तू जल्दी ही .

वो तो चली गयी थी पर हमारे घर में कलेश कर गयी थी .सरोज काकी चढ़ गयी थी मुझ पर .

सरोज- ये क्या कांड कर दिया है तुमने ऐसा क्या किया है जो मुझसे छुपाया है , तुम्हे सब बताना होगा मुझे.

“तेरे सर की कसम काकी, लाला की मौत से मेरा कोई लेना देना नहीं है ” मैंने कहा .

सरोज- तू घर पर ही रहेगा कहीं नहीं जाएगा आगे से तू इस रांड का कोई भरोसा नहीं

मैं- तू घबरा न काकी. मैं देख लूँगा सेठानी को .

सरोज कुछ कहना चाहती थी पर उसने खुद को रोक लिया. शाम को सीधा मजार पर पहुंचा. बाबा धूनी सुलगा रहा था मुझे देख कर वो खुश हो गया .

मैं- लाला की घरवाली को लगता है की मैंने नागिन को कहकर लाला को मरवाया है . मुझ पर आरोप लगाया उसने .

बाबा- पर लाला को नागिन ने नहीं मारा .

मैं- मैं जानता हु इस बात को पर दुनिया नहीं मानती .

बाबा- दुनिया की दुनिया जाने.

मैं- शकुन्तला ने कसम खायी है नागिन को मारने की.

बाबा- कसम खायी है तो कर लेगी पूरी , उसकी वो जाने

मैं- नागिन से मिलना है मुझे

बाबा- मिल जाएगी

मैं- कब

बाबा- जब उसका मन होगा .

मैं-समझते क्यों नहीं बाबा.

बाबा- तुम नहीं समझते मुसाफिर , तुम नहीं समझते. ये नयी दुनिया जिसमे तुम आये हो ये कुछ नहीं है महज एक छलावे के . इसके रहस्य इतने गूढ़ है की तुम कभी नहीं समझ पाओगे. नागिन ने लाला के काफिलो पर हमला किया था वो लाला को मार ही देना चाहती थी पर वो बच गया . लाला से अपना बदला लेना चाहती थी वो .

“कैसा बदला बाबा ” मैंने कहा .

बाबा- बरसो पहले शिवाले में एक जोड़ा रहता था . मंदिर की साफ सफाई करते, भजन करते पूजा करते. मंदिर में बड़ी बरकत थी और धन भी था . मंदिर में शिवजी को सोने का छत्र था . लाला और उसके दोस्तों ने मंदिर में चोरी की . और इल्जाम उन भले मानसों पर लगा दिया. उनकी किसी ने नहीं सुनी . ये जो अपना पीपल है न यही पर होता था वो मंदिर . इसी पीपल पर फांसी लगा दी गयी उन दोनों भक्तो को .

मैं- ये तो अनर्थ हुआ बाबा. किसी ने विरोध नहीं किया . क्या सब मर गए थे , पंचायत भी खामोश रही .

बाबा- कुछ ऐसा ही समझ लो. उस समय तुम्हारे पिता कही बाहर थे जब वो लौटे और इस काण्ड का उन्हें मालूम हुआ तो गाँव का माहौल बहुत बिगड़ गया . युद्धवीर ने लाला और उसके दोस्तों के खिलाफ तलवार उठा ली. तब तुम्हारे दादा बीच में आये. चूँकि लाला और उसके दोस्तों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं था तो पंचायत भी कुछ न कर सकी. युधवीर बहुत मानता था भोले को . उसे इस बात का क्रोध था की खुद भोले के दरबार के ये अनर्थ हुआ तो और कहाँ न्याय मिलेगा. युद्ध की नजर जब उस जोड़े की बच्ची पर पड़ी. तो उसका मन बहुत व्याकुल हो गया . हमेशा सबका भला करने वाले, सबसे मिलकर चलने वाले युधवीर ने मंदिर तोड़ दिया. तुम्हारे दादा और युद्ध के बीच वैसे ही किसी बाट को लेकर अनबन थी उन दिनों बस उन्होंने युद्ध को घर से निकल जाने को कहा . और फरमान भी सुना दिया की परिवार का कोई भी सदस्य उस से रिश्ता न रखे.

बाबा की बाते सुनकर मेरे दिल में एक तीस उठ गयी .

मैं- तो वो बच्ची ही ये नागिन है

बाबा- हाँ ,

मैं- मैं उसे कुछ नहीं होने दूंगा. उसकी रक्षा करूँगा. बाबा मुझे मिलवा दो उस से

बाबा- हर पूर्णमासी की रात को वो पीपल के पास आती है .

बाबा ने कहा और चिलम सुलगाने लगे.

मैं अपनी माँ के पेड़ के पास आकार बैठ गया और सोचने लगा. मुझे ध्यान आया की चांदरात को ही तो मैंने उसे पहली बार देखा था . कुछ देर बाद मैं अपनी झोपडी की तरफ चल दिया. आधे रस्ते में पहुंचा ही था की मेरे सामने चार पांच गाड़िया आकर रुक गयी . गाड़ी में से जो सख्स सबसे पहले उतरा उसे देख कर मेरे मुह से निकला “तू यहाँ .”
 

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