Adultery गुजारिश(HalfbludPrince)

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#50

मेरी आँखों के सामने सतनाम का छोटा लड़का खड़ा था .

“मुझे तो आना ही था . तूने क्या सोचा था की तू मेरी बहन के मजे लेगा और मैं चुप रहूँगा. तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बहन की तरफ देखने की , ” उसने मुझे गुस्से से घूरते हुए कहा .

“मोना का नाम भी तू मत ले अपनी जुबान से, और किस रिश्ते की बाट करता है तू , कभी याद भी किया तूने उसको . उसके नाम की आड़ मत ले , वैसे भी मेरी हिम्मत का जिक्र करने लायक नहीं तू , शेर के शिकार के लिए कुत्तो के झुण्ड की जरुरत नहीं पड़ती . मैं वैसे ही मोना को लेकर बहुत परेशान हूँ , जा किसी और दिन मुह लगना ” मैंने उस से कहा और आगे बढ़ने लगा.



पर उसकी मंशा कुछ और थी . उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोला- ऐसे कैसे चला जायेगा. मेरे बाप को हमारे घर आकर धमकी दी तूने.

मैं- तो अब तू क्या चाहता है मैं तेरी गांड तोड़ दू.

मेरी बात सुनकर सतनाम का लड़का हसने लगा.

“पहली बार ऐसा इन्सान देखा जिसे मौत का खौफ नहीं है ” उसने कहा

मैं- मेरी मौत तेरे हाथो नहीं लिखी , जा लौट जा मैं बात को आई गयी कर दूंगा.

“पर तू आज अभी मरेगा. ” उसने कहा और मेरे पेट में लात मारी. मैं थोडा पीछे को हुआ. और मैंने उसके कान पर थप्पड़ दिया. उसके साथ के और लोग भी जुट गए. मार पिट शुरू हो गयी . मेरे हाथ एक लकड़ी लग गयी जिससे मैंने उनको पेलना शुरू किया पर वो लोग काफी ज्यादा थे तो एक समय के बाद वो भारी पड़ने लगे.

“मैंने कहा था न , अब दिखा तेरा जोश बड़ा शेर बन रहा था , अच्छे अच्छे हमारे सामने घुटने टेक गए. तेरी तो औकात ही क्या . इसे गाड़ी के पीछे बांधो . घसीट कर ले चलेंगे इसे , दुनिया को मालूम होना चाहिए की मुद्कियो से पंगा लेने का क्या अंजाम होता है . इसे मरना तो है ही पर इसकी मौत शानदार होनी चाहिए . ”

वो लोग मुझे मार ही रहे थे की अचानक से वातावरण के गर्मी बढ़ गयी. एक तेज फुफकार ने मुझे जैसे ज़माने भर की राहत दी हो. मैंने अँधेरे में उन दो पीली आँखों को चमकते देखा. अगले ही पल दो लड़के हवा में उछले और गाड़ी के बोनट पर आ गिरे.

“कौन है ” छोटा मुडकी चिल्लाया पर उसकी चीख जैसे गले में दब गयी . जैसे को बड़ा पत्थर टकराया हो एक गाडी चकनाचूर हो गयी. मैंने मौके का फायदा उठाया और बाजी अपने हाथ में ले ली. पर मुझे कुछ करने की ज्यादा जरुरत नहीं पड़ी . जल्दी ही सब कुछ ऐसे शांत हो गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं.

रह गया मैं अकेला और ये ख़ामोशी जो किसी बम से कम नहीं थी. वे लोग जिन्दा थे या मर गए थे मुझे घंटा फ़िक्र नहीं थी . मुझे फ़िक्र थी उस नागिन की जिस से मैं मिलना चाहता था . पर तभी उस चूतिये मुडकी ने बन्दूक चला दी.

“नहीं मैं चीखा ” और नागिन की तरफ भागा . मुझे लगा की उसे गोली न लग जाए. मैंने बस एक झलक उसकी दूर जाते देखी. और मैं सुध बुध भूल कर उसकी तरफ भागा.

“रुको, रुक जाओ मुझे बात करनी है तुमसे ” मैं चीख रहा था पर भला मेरी कौन सुनता . वो बड़ी तेजी से रेंग रही थी , कभी कभी मुझे उसकी झलक दिखती तो कभी लगता की वो गायब हो गयी है . पर मैंने भी ठान ली थी की आज मुझे इस मौके को नहीं छोड़ना है . भागते भागते मैं उसी पीपल के पेड़ के पास आ गया . पर यहाँ कुछ नहीं था .

“मैं जानता हूँ तुम यही कही हो. तुम चाहे लाख कोशिश कर लो पर आज तुम्हे मुझसे मिलना होगा तुम ऐसे मुझे छोड़ कर नहीं जा सकती . मुझसे बात करनी ही होगी तुम्हे. . ”मैं चिल्ला रहा था पर कोई सुनने वाला नहीं था . पर आज मुझे कुछ भी करके नागिन से मिलना ही था . पीपल पर एक दिया जल रहा था मैंने उसे उठाया और उसकी रौशनी में नागिन के खोज तलाशने लगा. और मुझे कामयाबी भी मिली. पीपल के पास से एक संकरी पगडण्डी जाती थी . मैं उसी पर चल दिया. करीब आधा किलोमीटर जाने के बाद जैसे एक और हैरानी मेरा इंतजार कर रही थी .

मैं रूपा के घर की पिछली तरफ खड़ा था . घर यहाँ से महज कुछ कदम की दुरी पर था . अब मेरा दिमाग हद से ज्यादा बेकाबू हो गया था . मैं घर की तरफ बढ़ा. रौशनी थी मतलब रूपा जागी हुई थी . मैंने देखा दरवाजा खुला था मैं अन्दर पहुंचा और मैंने देखा रूपा की पीठ मेरी तरफ थी वो कुछ कर रही थी .

“रूपा ” मैंने उसे पुकारा .वो झटके से मेरी तरफ पलटी

“तुम, डरा ही दिया था मुझे , ये कोई वक्त है आने का ” उसने कहा .

मैंने उस पर नजर डाली. उसके कपडे से कुछ टपक रहा था मैंने देखा वो खून था , सुर्ख खून .

“ये खून कैसा रूपा. ” मैंने कहा

रूपा- अरे कुछ नहीं . मामूली सा जख्म है इसकी ही सिलाई कर रह थी की तुम आ गए. बैठो बस दो मिनट. फिर बाते करते है .

रूपा अपने जख्म को साफ़ करके उसे सिलने लगी.

“कैसे लगा ये जख्म ” मैंने पूछा

रूपा- कहा न कुछ नहीं . बस ऐसे ही

मैं- मैंने पूछा कैसे लगा ये जख्म तुझे .

रूपा ने गौर से देखा मुझे और बोली- क्या बात है , क्यों संजीदा हो रहा है इस छोटे से जख्म के पीछे. वो खेतो पर तार बंदी हुई है मुझे मालूम नहीं था तो बस उसी धोखे में लग गया. यकीं न हो तो तार दिखा आऊं

और तू अपनी बता ये क्या हालत बनाई हुई है . किसी से झगडा हुआ क्या तेरा.

मैंने उसे मुडकी के लड़के वाली बात बताई.

रूपा- दूर रहा कर इन सब पचड़ो से नहा ले . मैं पानी गर्म कर देती हूँ.

मैंने हाँ में सर हिलाया .पर वो खून मुझे पागल कर रहा था क्योंकि वो खून अजीब सा था , मैंने उसे हाथ में लिया और मैं जान गया की वो खून इतना अजीब क्यों था .
 
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#51

ये ही खून हवेली में बिखरा हुआ था . और ये ही रूपा के घर में . रूपा मुझसे झूठ बोल रही थी , मुझसे झूठ . इस बात से मेरे दिल को बहुत ठेस पहुंची थी . मेरी जान , मेरी होने वाली पत्नी . मेरी सरकार मुझसे झूठ बोल रही थी . बेशक जिंदगी से कोई खास ख़ुशी मिली नहीं थी पर फिर भी रूपा एक ऐसी लहर बनकर आई थी जो मुझे सकून देती थी . पर उसका ये झूठ , ये बाते छिपाने की कला अब मुझसे सही नहीं जाती थी .

मैं घर से बाहर आया और उसकी दहलीज पर दिवार का सहारा लेकर बैठ गया . कुछ लम्हों के लिए मैंने अपनी आँखे मूँद ली .

“अरे, यहाँ क्यों बैठा है तुझे ठण्ड लग जानी है , पानी बस गर्म हुआ ही .ले तब तक चाय पी ले. ” रूपा मेरे पास चाय का कप लिए खड़ी थी .

“इच्छा नहीं है मेरी ” मैंने कहा

रूपा- ये तो पहली बार हुआ मेरे सरकार चाय के लिए मना कर रहे है , क्या बात है .

मैं- तू मुझसे कितना प्यार करती है , कितना चाहती है मुझे.

रूपा- ये कैसा सवाल है देव

मैं- बता मुझे कितना चाहती है तू

रूपा मेरे पास बैठी और बोली- तू बता तुझे कैसे लगेगा की मैं तुझे कितना चाहती हूँ . तू पैमाना ला जो तुझे तसल्ली दे की मैं तुझे कितना चाहती हूँ .

रूपा ने मेरा हाथ कसकर पकड लिया.

रूपा- मेरी मोहब्बत के बारे में मुझसे ना पूछ सनम, तेरे दिल से पूछ . वो बता देगा .

मैं- मैं परेशां हूँ रूपा

रूपा- समझती हूँ ,

मैं- क्या वो नागिन तेरे पास आई थी .

रूपा- मेरे पास क्यों आएगी, तुझे तो मालूम है उस दिन मजार में हमारा झगड़ा हुआ था .

मैं- जानता हु पर तू चिकित्सक भी है यदि वो यहाँ इलाज करवाने आई हो .

रूपा- ऐसा मुमकिन नहीं .

मैं- क्यों

रूपा- वो श्रेष्ट है , उसे मेरी जरुरत नहीं

मैं- तो फिर ये खून किसका है इन्सान का तो नहीं है . इस रक्त को मैंने पहले भी देखा है .

रूपा- अच्छा तो इसलिए परेशां है तू, तू भी न देव, ये तो नीलगाय का रक्त है , इसमें कुछ दुर्लभ गुण होते है . कुछ कामो में इसका रक्त उपयोग किया जाता है . ये जो मेरी पीठ पर जख्म है उसमे इस रक्त और कुछ जड़ी बूटियों को मिलाकर एक लेप बनाते है जो मुझे आराम देता है और जल्दी ही त्वचा पहले सी हो जाएगी.

रूपा ने मेरे गाल पर हल्का सा किस किया और बोली- मैं जानती हूँ तेरे लिए ये सब अजीब है , पर तुझे आदत हो जाएगी. ये दुनिया अपने आप में रंगीली है , इसमें सब कुछ है .फ़िलहाल तो बीच में है तो परेशां है . मैं- क्या तू भी तेरी माँ जैसी जादूगरनी है .

रूपा मेरी बात सुनकर जोर जोर से हंसने लगी .

“तू भी न , अगर मैं जादूगरनी होती तो क्या मेरा ये हाल होता ” उसने मुझसे पूछा.

मैं- ठीक है मैं चलता हूँ रात बहुत हुई.

रूपा- चाहे तो रुक जा मेरे संग

मैं- फिर कभी .

मैं उठा और वहां से चल दिया. कुछ कदम ही चला था की रूपा ने मुझे आवाज दी.

“देव रुक जरा. ”

मैं रुक गया . वो मेरे पास आई .

“तू चाहे मुझ पर लाख शक करना पर मेरी मोहब्बत पर कभी शक न करना. सारी दुनिया के ताने सुन सकती हु, पर तेरी टेढ़ी नजर नहीं सह पाऊँगी. ये नूर मुझ पर तूने चढ़ाया है इसे उतरने न देना . ” बस इतना कह कर वो वापिस हो गयी. मेरे जवाब का इंतज़ार नहीं किया उसने.



और मैं उसे जवाब भी देता तो क्या मैं खुद एक चुतियापे में जी रहा था . रूपा के यहाँ से तो चल पड़ा था पर मैं घर नहीं गया मैं मजार पर गया . मैं बस उस पेड़ से लिपट कर रोता रहा . ऐसा लगा जैसे मेरी माँ ने मुझे अपने आंचल तले छुपा लिया हो.

“कभी कभी ऐसे रो भी लेना चाहिए, मन हल्का हो जाता है ” बाबा ने मुझे आवाज देते हुए कहा.

मैं बाबा के पास गया.

मैं- बाबा, मेरे पिता ने जो मंदिर तोडा था मैं उसे दुबारा बनवाना चाहता हूँ .

बाबा ने मुझे बैठने का इशारा किआ.

बाबा- बेशक तुम बनवा दोगे . पर उसका मान कहाँ से लाओगे . वहां जो पाप हुआ था उसके बदले का पुन्य कहाँ से लाओगे . बड़ी मुश्किल से उस मासूम ने खुद को संभाला है तुम मंदिर तो बनवा दोगे पर वो जब जब उसे देखेगी उसका मन रोयेगा. विचार करो .

मैं- तो क्या करू मैं.

बाबा- उसे उसके हाल पर छोड़ दो . फिलहाल मेरी प्राथमिकता तुम्हारी सुरक्षा है . एक तो तुम कहना नहीं मानते हो . दिन रात बस भटकते रहते हो . ये राते ठीक नहीं है , एक बार तुम बड़ी मुश्किल से बचे हो हर बार किस्मत साथ नहीं देगी. कुछ दिनों के लिए तुम तुम्हारी माँ की हवेली में क्यों नहीं चले जाते, तुम्हारी हर जरुरत की व्यवस्था मैं कर दूंगा.



“पर ऐसा क्या हुआ बाबा, जो आप इतने चिंतित है ” मैंने कहा

बाबा- समय बदल रहा है मुसाफिर. ये राते अब खामोश नहीं है . चरवाहों के तिबारे पर हमला हुआ है , उसे तहस नहस कर दिया गया है .

मैं- किसने किया और क्यों .

बाबा- पड़ताल जारी है .

मैं- मेरा क्या लेना देना बाबा तिबारे से

बाबा- सब तुझसे ही है मेरे बच्चे, सब तुझसे ही है .

मैं- क्या बाबा

बाबा- मुझे लगता था की तू जादूगर बनेगा. पर अभी तक लक्षण दिखे नहीं . इसी बात ने मुझे हैरान किया हुआ है.

मैं- क्या ये जरुरी है बाबा

बाबा- नहीं जरुरी नहीं , पर बस मुझे लगा था . खैर, कल तू हवेली चलेगा मेरे साथ

मैं- एक शर्त पर

बाबा- क्या

मैं- आप दूसरी मंजिल को खोल देंगे.

बाबा ने एक गहरी सांस ली और बोले- वहां कुछ नहीं है

मैं- कुछ नहीं है तो फिर कैसा ताला,

बाबा - कल शाम हम वहां चलेंगे .

मैंने हाँ में सर हिला दिया.

मैं वापिस मुड लिया था . अपने आप में खोया हुआ मैं खेत में बनी झोपडी की तरफ जा रहा था की रौशनी ने मेरा ध्यान खींच लिया. झोपडी में हुई रौशनी दूर से ही मुझे दिख रही थी . यहाँ कौन हो सकता है , शायद करतार होगा. मैंने सोचा .और झोपडी की तरफ बढ़ लिया. मैंने हलके से परदे को खोला और जो देखा............... देखता ही रह गया.
 
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#52

मेरे बिस्तर पर चुदाई चल रही थी शकुन्तला पर विक्रम चाचा चढ़े हुए थे . सारे जहाँ को भूल कर दोनों एक दुसरे में खोये हुए थे . एक औरत जिसका पति बस कुछ दिन पहले ही मरा था , वो दुसरे मर्द की बाँहों में थी . पर मुझे परवाह नहीं थी . मुझे हैरानी थी की मेरी झोपडी में ये दोनों कर क्या रहे है क्योंकि चाचा चाहता तो उसे बाग़ पर भी ले जा सकता था . खैर, मुझे चुदाई में कोई इंटरेस्ट नहीं था. मैं बस उनकी बाते सुनना चाहता था . इसलिए घूम कर मैं झोपडी की पिछली तरफ चला गया. जल्दी ही दोनों की बाते शुरू हो गयी तो मैं समझ गया की चुदाई खत्म हुई.

विक्रम- तुमने देव से झगडा करके मामला बिगाड़ दिया है ,

सेठानी- अब जो हुआ वो हुआ, वैसे भी वो बहुत ही बदतमीज है , कुछ ही मुलाकातों में उसने बता दिया था की मेरी लेना चाहता है वो.

विक्रम- इस बारे में अपनी बात हो तो गई थी , और एक दो बार चढ़ लेता तो क्या घिस जाता तुम्हारा.

सेठानी- मैं गयी थी उसके पास. मैं तैयार थी बदले में मैं लाला की जान की हिफाजत ही तो चाहती थी .

विक्रम- हम्म

सेठानी- पर जो हुआ वो हुआ.

विक्रम- पर मामला बिगड़ गया है .

सेठानी- उडती उडती खबर है की वो किसी लड़की के साथ घूमता है

विक्रम- सतनाम की लड़की है वो. न जाने कहा से ये टकरा गया उस से . मुझे लगता है की देव प्यार में है उस से, सतनाम को उसके घर जाके धमकी दे आया.

सेठानी- सच में, खैर, डरने वालो में से तो नहीं है वो . बिलकुल अपने बाप पर गया है.

विक्रम- पर युद्ध नहीं है वो.

सेठानी- तो क्या सोचा तुमने , कैसे करना है ये सब

विक्रम- सतनाम देख लेगा.

सेठानी- वो सांप पागल हुए घूम रहा है , हमारे आदमियों को मार रहा है .कुछ करते क्यों नहीं उसका.

विक्रम- मैंने सोचा है उसके बारे में इस पूनम को एक तांत्रिक सपेरा बुलाया है मैंने उमीद तो है काम कर देगा वो .

सेठानी- पर उसे मारूंगी मैं .

विक्रम- क्यों हाथ गंदे करती हो .

सेठानी- तुम तो चुप ही रहो . खुद जैसे दूध के धुले हो. इस कहानी के तीसरे सूत्रधार तुम ही तो हो.

विक्रम- श्ह्ह्हह्ह, ऐसी बाते नहीं करते , आजकल हवाओ में उडती है बाते

शकुन्तला- पर मुझे आजतक ये समझ नहीं आया की तुमने देव को क्यों रखा अपने घर जब की उसके अपनों ने ठुकरा दिया उसे.

विक्रम- ऐसा करना जरुरी था , उस घटना के बाद गाँव में छवि बिगड़ गयी थी तो उसे सुधारने का इस से अच्छा क्या मौका था . दूसरा नागेश का हुक्म था . तीसरा, बेशक ठाकुर साहब ने देव को कभी मन से अपना पोता नहीं माना था पर युद्ध की मौत के बाद उन्होंने मुझे बहुत सी जमीन दी. पैसे दिए इसे पालने को . और आज देखो मैं कहा हूँ .

सेठानी- और वो सोना-चांदी कहाँ गया .

विक्रम- मुझे नहीं मालूम

सेठानी- झूठ मत बोलो, कम से कम मुझे तो बता दो.

विक्रम- सतनाम ने छुपाये है कहीं पर वो . पर मुझे लगता है की उसने बेच खाए होंगे.

सेठानी- कभी पूछा नहीं तुमने

विक्रम- पूछा था , पर हर बार वही जवाब .

सेठानी- तो देव का क्या होगा. खबर है की नागेश लौट आया है.

विक्रम- अभी पक्की नहीं हुई है खबर. पर सुलतान जिस हिसाब से भागदौड़ कर रहा है कुछ तो बात लगती है .

सेठानी- देव की मौत का दुःख होगा तुम्हे .

विक्रम- दुःख तो मुझ को युद्ध की मौत का भी नहीं हुआ था .

ये ऐसी बाते थी जो मर दिल तोड़ गयी थी . साला इस दुनिया में हर कोई मतलब परस्त ही था . सब एक दुसरे को इस्तेमाल कर रहे थे ,कितने काले मन के थे ये लोग . दिल किया की अभी इस वक्त इनकी गांड तोड़ दू, पर फिर खुद को रोक लिया . अभी और सुननी थी इनकी बाते. देखना था कितना जहर था दुनिया में.

विक्रम- वैसे हालात अभी और बिगड़ेंगे, देव सतनाम को धमका आया , मोना कुछ दिनों से गायब है नौकरी भी छोड़ दी उसने, देव को लगता है की मोना के गायब होने में सतनाम का हाथ है .

सेठानी- तुमने सतनाम से बात की .

विक्रम- वो चाहता तो मोना को कभी का मरवा देता ,वो कभी ऐसा नहीं करेगा. छोड़ इन बातो को , मैं तुझे बताना तो भूल ही गया . सतनाम अपने छोटे बेटे की शादी कर रहा है इसी महीने .

सेठानी- बताया नहीं उसने मुझे .

विक्रम- अचानक से ही हुआ सब .

सेठानी- मोना तो जाएगी नहीं, आरती कौन करेगा

विक्रम- सोचने वाली बात है . मुझे लगता है पाली आएगी

सेठानी- मुश्किल है , मुझे नहीं लगता वो आएगी.

विक्रम- छोड़ न तू भी क्या लेके बैठ गयी , ये रात बड़ी मुश्किल से मिली है जब तुम मेरी बाँहों में हो सोचा था दो तीन बार लूँगा पर तुम टाइम पास कर रही हो .

शकुन्तला- अच्छा जी , ये बात है तो आओ मैदान में .

वो दोनों फिर से शुरू हो गए. मेरा दिल किया की अभी फूंक दू इस झोपडी को . पर मैं अपने गुस्से को पीते हुए वहां से चल दिया. ये रात साली बड़ी लम्बी हो गयी थी ख़त्म ही नहीं हो रही थी . पर मैंने अपना फैसला ले लिया था की सुबह मैं अपना रास्ता चुन लूँगा, वो रास्ता जिस पर मुझे अब अकेले चलना था .

फिलहाल मेरी प्राथमिकता थी तांत्रिक से नागिन को बचाना. पूनम की रात ठीक दो दिन बाद थी इस रात के, मुझे जो करना था इसी समय में करना था . मैं समझ गया था की मंदिर के तीन चोर कौन कौन थे, सतनाम, लाला और विक्रम . विक्रम जिसे मैं अपने बाप सा समझता था वो मुझे सिर्फ मेरी दौलत के लिए पाल रहा था . वो दौलत जिसके बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं था .

दिल साला बुझ सा गया था . जी चाहता था की मैं खूब रोऊ पर नहीं . इन आंसुओ को पीना था मुझे. मोना, नागिन, नागेश, रूपा . और ये तीन दुश्मन इनके बारे में सोचते सोचते मेरा जी घबराने लगा था . मुझे चक्कर आने लगा था .पर इस से पहले की मैं बिखर कर गिर जाता किसी की बाँहों ने थाम लिया मुझे.............................


 
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#53

“खामोश रातो में यु अकेले नहीं भटका करते मुसाफिर ”

मैंने देखा ये रूपा थी.

“तुम यहाँ ,इस समय ” मैंने कहा

रूपा- तुम भी तो हो यहाँ, इस समय .

मैं- मेरा क्या है , मैं तो मुसाफिर हूँ भला मेरा क्या ठिकाना और वैसे भी इस जहाँ से बेगाना हु ,

रूपा- पर ऐसे कैसे फिरता है तू, क्या हाल है तेरा, मैं अगर थाम न लेती तो गिर जाता .

मैं- अच्छा होता जो गिर जाता

रूपा- क्या हुआ

मैं- जाने दे, ये गम भी मेरा ये तन्हाई भी मेरी

रूपा- मैं भी तो तेरी ही हूँ .

मैंने रूपा को सारी बात बताई की कैसे विक्रम मुझे अपने लालच के लिए पाल रहा था .

“तुझे किसी बात से घबराने की जरुरत नहीं है तेरे साथ मैं खड़ी हूँ , मेरे होते तुझे कुछ नहीं होगा. सावित्री जैसे सत्यवान के लिए यमराज के सामने खड़ी थी , तेरे और तेरे दुश्मनों के बीच एक दिवार है , उस दिवार का नाम रूपा है . ” रूपा ने कहा था .

“सावित्री पत्नी थी सत्यवान की ” मैंने कहा .

रूपा ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- चल मेरे साथ .

मैं- कहाँ

रूपा- चल तो सही .

मुझे लेकर रूपा मजार पर आ गयी.

“अब यहाँ क्यों ले आई . ”मैंने कहा

रूपा ने जलते दिए को अपनी हथेली पर रखा और बोली- पीर साहब को साक्षी मानकर मैं तुझे वचन देती हूँ की मेरी मांग में तेरा सिंदूर होगा. मैं तुझे वचन देती हूँ की तू दिल है तो मैं धड़कन बनूँगी, मैं हर कदम तेरे साथ चलूंगी . आज मेरे हाथ में ये दिया है , कुछ दिन बाद इसी अग्नि के सामने मैं तेरे संग फेरे लुंगी. आज से पंद्रह दिन बाद तू मेरे घर आना , मेरे पिता से मेरा हाथ मांगना. मैं इंतज़ार करुँगी. मुसाफिर तेरे सफ़र की मंजिल तेरे सामने खड़ी है “

रूपा ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया.

“तैयारिया कर ले मुसाफिर, ” उसने मेरे कान में कहा.

इस से पहले मैं उसे जवाब दे पाता बाबा की आवाज आई- इबादत की जगह है ये ,

मैं- इश्क से बड़ी क्या इबादत भला .

बाबा- सो तो है , इतनी सुबह सुबह कैसे.

रूपा- हम जैसो की क्या रात और क्या सुबह बाबा . मैं तो इसी समय आती हु,

बाबा- मैंने इस से पूछा था

बाबा ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा.

मैं- बाबा , मैं मकान बनाना चाहता हूँ

बाबा- अच्छी बात है पर समय ठीक नहीं है . और तुम्हारे पास घर तो है ही .

बाबा का इशारा हवेली की तरफ था.

“रूपा, चा बना ला जरा ” बाबा ने रूपा को वहां से भेजा

बाबा- फिजा में एक गर्मी सी है , वक्त करवट ले रहा है मुसाफिर, जल्दी न कर .

मैंने देखा बाबा के झोले में कुछ फडफडा रहा था,

मैं- क्या है झोले में

बाबा- कुछ नहीं , तू तैयार रहना आज शाम हम चलेंगे हवेली .

मैंने हां में सर हिला दिया. तब तक रूपा चाय ले आई, सर्दी में गर्म चाय ने थोडा आराम दिया पर दिमाग में अभी भी विक्रम चाचा और शकुन्तला की बाते घूम रही थी . मैंने देखा रूपा भी बड़े गौर से बाबा के झोले को घुर रही थी .

एक मन किया की तांत्रिक वाली बात बता दू इन दोनों को पर फिर खुद को रोक लिया. क्योंकि मेरे दिमाग में एक बात और थी .

मैं- बाबा, अब जबकि मैं जानता हूँ की मंदिर के असली चोर कौन कौन थे तो क्यों न पंचायत बुलाई जाये और भूल सुधारी जाए.

बाबा- गड़े मुर्दे उखाड़ने का कोई फायदा नहीं और वैसे भी तुम्हारे पास क्या सबूत है वो लोग साफ़ मना कर देंगे फिर क्या करोगे तुम. बताओ

बाबा की बात सही थी.

मैं- तो क्या करू मैं .

बाबा- फ़िलहाल तो शांत रहो . अभी जाओ तुम दोनों

रूपा- मैं रुकुंगी, सफाई करके जाउंगी.

मैं-मैं जाता हूँ , रूपा दो मिनट आना जरा .

मैं रूपा को बाहर लाया.

रूपा- क्या हुआ.

मैं- क्या तू मालूम कर सकती है बाबा के झोले में क्या है .

रूपा- नहीं .

मैं- ठीक है चलता हूँ फिर.

मैं घर की तरफ चल पड़ा. सरोज शायद थोड़ी देर पहले उठी ही थी .

“कहाँ थे तुम रात भर ” पूछा उसने.

मैं- क्या मालूम कहाँ था , बस अपना कुछ सामान लेने आया हूँ . मैं इस घर को छोड़ कर जा रहा हूँ .

मेरी बात ने जैसे सरोज को सुन्न सा कर दिया था . कुछ पलो के लिए उसे समझ ही नहीं आया की मैंने क्या कह दिया उसने.

“क्या कहा तूने , घर छोड़ कर जा रहा है ” उसका गला जैसे रुंध सा गया .

मैं-मुझे कही जाना है और मैं वापिस शयद नहीं लौट पाउँगा.

सरोज-पर ऐसा क्या हुआ, ये तुम्हारा अपना घर है .

मैं-फिर कभी बताऊंगा.

मैं अपने कमरे में आया जितना सामान मुझे चाहिए था मैंने दो बैग में भर लिया . और वहां से वापिस हो गया. सरोज रोकती रह गयी पर मैं रुका नहीं . उसने रो रोकर पूछा पर मैं चाह कर भी उसे उसके पति की करतूतों के बारे में बता न सका.

बैग मैंने गाडी में डाले और जूनागढ़ पहुँच गया , मोना अभी तक नहीं वापिस आई थी. मेरे लिए बड़ी चिंता की बात थी ये.

“कुछ तो मालूम होगा, ” मैंने नौकर से कहा .

नौकर- हुकुम, बड़ी रानी सा भी दो तीन बार मेमसाहब के बारे में पूछ गयी

मैं- सतनाम के घर में क्या हाल है .

नौकर- शादी की तैयारिया चल रही है ,

मैं- ऐसी कोई तो जगह होगी जहाँ मोना अक्सर जाया करती थी . उसके कोई तो दोस्त होंगे,

नौकर- सबसे पड़ताल कर ली है सबका एक ही जवाब हमारे यहाँ नहीं आई.

मैं- नानी क्यों आई थी यहाँ पर .

नौकर- छोटे साहब की शादी है तो रस्मो में आरती का हक़ मेमसाहब है , बड़ी रानी चाहती है की शादी के बहाने परिवार के शिकवे दूर हो जाये.

मैं- सुन एक काम कर, नानी को संदेसा दे की मैं मिलना चाहता हूँ उनसे, वो हाँ कहे तो यहाँ ले आ उनको .

नौकर चला गया . मैं सोचने बैठ गया की दूसरी तरफ से क्या जवाब आएगा. करीब बीस मिनट बाद नौकर वापिस आया , उसके साथ नानी तो नहीं थी पर कोई और था , जिसके आने की मैंने कभी नहीं सोची थी .
 
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#54

दरवाजे पर जब्बर था . उसे देखते ही मेरे माथे पर बल पड़ गए . जब्बर का यहाँ होना भला कैसा संकेत था .

“तेरी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की ” मैंने कहा

जब्बर- ठण्ड रख ओये, मैं बस तुझसे मिलने आया हु दो बात करूँगा फिर चला जाऊंगा. माना की अपने बीच मामला थोडा टेढ़ा है फिर भी ....

मैं- ठीक है , बता क्या बात है .

जब्बर- तुझे मालूम तो है ही की लाला महिपाल की मौत हो गयी है , शकुन्तला से मेरे कुछ निजी तालुकात है , और जैसा की तुझे सब मालूम हो ही गया है की विक्रम भी तेरा इस्तेमाल कर रहा था

मैं- तो

जब्बर- मुझे तेरी मौत की सुपारी मिली है

मैं- हाँ तो ठीक है , मार दे मुझे खत्म कर बात को

जब्बर- बात ये नहीं है , दरअसल मुझे मोना की फ़िक्र है ,

मैं- उसकी फ़िक्र और तुझे,

जब्बर- चाहे मैं कैसा भी हूँ पर मैं चाहता हु उसे

मैं- चाहता तो उसे तलाश करता , उसके बारे में पता लगाता , सतनाम ने ही उसे गायब किया है .

जब्बर- नहीं , ऐसा नहीं है बाउजी का मोना के गायब होने से कुछ लेना देना नहीं है बल्कि वो तो खुद दिन रात एक किये हुए है , छोटे मुडकी की शादी में कुछ ही दिन बाकि है , बाउजी चाहते थे की मोना आरती करे , शादी के बहाने परिवार पुराने गिले शिकवे भूल कर एक हो जाये.

मैं- अगर तेरी नियत नेक है तो मेरी मदद कर मोना को ढूंढने में , पर मैं कैसे विश्वास करू तेरा.

जब्बर- मैं जानता हु, ये मुश्किल है अगर मैं अपना दिल निकाल के रख दू तो भी तुझे यकीन दिलाना मुश्किल है . तू चाहे मेरा विश्वास कर या न कर पर सच यही है की मुझे फ़िक्र है मोना की .

मैं- तो यकीन दिला मुझे , कर मदद उसे तलाशने में

जब्बर- मैंने अपने स्तर पर भी कोशिश की पर उसे किसी ने भी कही से भी आते जाते नहीं देखा, उसकी कार भी सरकारी यही है , जबकि उसके पैर में पलस्तर था . तो अकेले कैसे वो आ जा सकती है .

मैं- यही बात तो मुझे खटक रही है.

जब्बर-एक बात और कहना चाहता हूँ , तू बेफिक्र रह तुझे कोई हाथ भी नहीं लगा पायेगा, जब तक मैं हूँ

“और इस मेहरबानी की वजह ” मैंने पूछा

जब्बर- मेहरबानी तो सुहासिनी बुआ की थी , मैं तो जिन्दा ही उनकी बजह से हूँ , वो न होती तो मैं बचपन में ही मर जाता, मुझे जबसे मालूम हुआ की तू उनका बेटा है मैं मिलना चाहता था तुझसे पर समझ नहीं आ रहा था की कैसे मिलु.

मैं- अब तो मिल लिया न, छोड़ पुरानी बातो को , वैसे किसने सुपारी दी थी मुझे मारने को .

जब्बर- छोड़ न क्या फर्क पड़ता है वैसे भी तेरे चारो तरफ तो दुश्मन ही दुश्मन है

मैं- फिर भी बता दे

जब्बर- सुनना चाहता है तो सुन , तेरी काकी सरोज ने

एक पल को लगा की जैसे मैंने कुछ गलत सुन लिया हो .

मैं- क्या कहा तूने

जब्बर- मैं जानता हु तेरे लिए विश्वास करना बड़ा मुश्किल है , पर मेरा यकीन कर मैंने जो कहा वो सही है , तेरे घर छोड़ने के बाद सरोज मेरे पास आई थी , उसने मुझे १ लाख रूपये दिए ताकि मैं तुझे मार दू, तेरा विश्वास करना मुश्किल है पर मैं ये बाट साबित कर सकता हूँ ,

मैं- कैसे

जब्बर- मैं उसे बुला लूँगा तू आस पास छिपे रहना , हमारे बीच जो भी बाते होंगी तू सुन लेना फिर तुझे यकीन होगा.

जब्बर जिस तरीके से कह रहा था ऐसा लगता था की वो सच कहता है , पर मैं किसकी बात को सच मानु इस जब्बर की जो कुछ देर पहले मेरा दुश्मन था या फिर उस काकी की जिसने मुझे बचपन से पाला था .

“कुछ देर मैं अकेला रहना चाहता हूँ ” मैंने जब्बर से कहा तो वो चला गया .

मैं अपना माथा पकड़ कर बैठ गया , जिन्दगी मुझे क्या क्या दिखा रही थी . सरोज मुझे मरवाना चाहती थी , मेरे आसपास जो भी लोग थे रहस्य से भरे थे , सबके मन में कुछ न कुछ राज दफ़न था . और जिस जिस पर मैं बिश्वास कर रहा था वो ही छल रहे थे मुझे. सोचते सोचते न जाने कितना समय हो गया मुझे, न जाने कितनी शराब पी गया मैं . दो चार दिन बड़ी मुश्किल से निकले मेरे, हाल ऐसा था की मैं कहूँ तो क्या करू तो क्या . मोना की हवेली में जैसे कैद कर लिया मैंने खुद को .

दुनिया से जैसे नफरत सी हो गयी थी . पर मैं कहाँ जानता था की अभी तो मुझे बहुत कुछ देखा बाकी था . शयद वो पांचवा दिन था , आज ही वो तांत्रिक आने वाला था जो शकुन्तला ने बुलवाया था . खामोश रात में जब बस हवा का शोर था , मैं छुपा हुआ बस इंतजार कर रहा था की कब वो तांत्रिक आये , मैं बिलकुल नहीं चाहता था की वो कुछ भी उल्टा सीधा करे नागिन के साथ .

उस रात पीपल के निचे शकुन्तला, विक्रम दोनों मोजूद थे, मेरा दिल कर रहा था की अभी के अभी इन दोनों को मार दू. पर अभी इंतज़ार करना था , रात के करीब ११ बजे वहां एक गाड़ी और आई और उसमे से जो उतरा वो , वो शक्श था जिसे आज यहाँ नहीं होना था . विक्रम उस से कुछ बाते करने लगा. और फिर वो शकुन्तला को लेकर चला गया .

तांत्रिक के साथ दो और आदमी थे, उन्होंने अपना सामान लगाया और अपनी तयारी करने लगे.

मैं थोडा और आगे को चला ताकि बाते सुन सकू.

तांत्रिक- चेलो, आज तुम्हे ऐसी चीज दिखाऊंगा जो जिन्दगी में कभी कभी ही देखने को मिलता है ,

चेला- जी बाबा,

तांत्रिक ने अग्नि जलाई और उसमे कुछ सामान डाल कर अपनी पूजा करने लगा. हवा में अग्नि की लपटे जोर जोर से फडफडा रही थी , फिर उसने अपने झोले से एक बीन निकाली जो बहुत बड़ी थी , उस पर सितारे जड़े थे जो अग्नि की रौशनी में चमक रहे थे . तांत्रिक ने बीन अपने होंठो से लगाई और वातावरण में अजीब सी धुन गूंजने लगी , सब कुछ जैसे शिथिल होने लगा. करीब आधा घंटा बीता, पर उसका साँस नहीं टुटा वो बस बीन बजाता रहा और फिर माहौल जैसे बदल गया , दूर से ही फुफकार की आवाज आने लगी , वो आ गयी थी .
 
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#55

“आजा , सामने आ मुझे तेरा ही इंतज़ार था ,आज तुझे पाकर ही रहूँगा ” तांत्रिक ने अट्टहास करते हुए कहा.

सामने से एक गहरी फुफकार आई , हवा में जहर फ़ैल गया , पर तांत्रिक ने फौरन ही कोई मन्त्र पढ़ा .

“नागिन, तेरा मुझ से पाला पड़ा है , तूने बहुत मासूम लोगो को अपना शिकार बना लिया है पर अब तेरा समय बीता. तेरे पास दो रस्ते है या तो मेरी शरण में आजा या मौत के ” तांत्रिक ने कहा.

मामला गंभीर हो चला था . तांत्रिक मुझे बहुत पहुंचा हुआ लगता था . उसने अपने आस पास एक राख का घेरा बनाया हुआ था ,

“सामने आ ” उसने चीखते हुए कहा और बीन दुबारा से बजाने लगा. इस बार त्रीवता और जोर की थी उसके चेले भी उसका साथ दे रहे थे . और फिर मैंने वो होते देखा जो नहीं होना था . आग की लपटों में मैंने नागिन को लहरा कर आते हुए देखा, पर वो वैसी बिलकुल नहीं थी जैसा मैंने उसको देखा था , वो कमजोर थी बहुत कमजोर . शायद कुछ हुआ था उसे . मैंने पहली बार अपने माथे पर पसीना बहते हुए महसूस किया.



“बड़ी तमन्ना थी की मौका मिलेकिसी विलक्ष्ण नागिन का शिकार करने का पर तू तो कमजोर निकली . ”तांत्रिक ने कहा

“तेरा अंत कर सकू अभी इतनी जान बाकी है ” नागिन ने शांत आवाज में कहा

तांत्रिक- उफ़ ये अहंकार, ये गुरुर , अच्छा लगा मजा आयेगा तुझसे खेलने में .

तांत्रिक ने बीन पर कोई मन्त्र पढ़ा और अपनी कार्यवाही करने लगा. नागिन बेकाबू होने लगी , शिथिल होने लगी . वो लगातार उस पर कुछ फेक रहा था जिस से नागिन तिलमिला रही थी उसकी त्वचा से रक्त बहने लगा था , दर्द से बिलबिलाने लगी थी वो . अब मेरे बर्दाश्त से बाहर था ये सब . मैं नागिन की तरफ दौड़ पड़ा .

“तांत्रिक , रोक दे अपने जतन को वर्ना तेरे टुकड़े कर दूंगा मैं ” मैंने उसके और नागिन के बीच में आते हुए कहा .

तांत्रिक ने मुझे देखा और कहा- कौन है तू मुर्ख और यहाँ आने की गुस्ताखी कैसे की तूने,

मैं- मेरे बारे में उस से जाके पूछना जिसने तुझे यहाँ भेजा है . ये नागिन मेरी है , और मेरे रहते तू तो का साक्षात् यमराज भी अगर आ जाये तो इस से पहले मैं खड़ा हूँ , तेरे और नागिन के बीच में मैं वो दिवार हूँ जिसे तुझे बेधना होगा.

तांत्रिक- जो तेरी इच्छा, पहले तेरा रक्त पान करता हूँ .

तांत्रिक ने अपनी मुट्ठी में कुछ लिया और मेरी तरफ फेका. बदन में जैसे आग लग गयी हो पर अगले ही पल मैं ठीक हो गया. तांत्रिक की आँखे फटी रह गयी .

“असंभव , ये मुमकिन नहीं, कौन है तू ” उसने कहा .

मैं- तेरी मौत.

मैंने पास पड़ी लकड़ी का टुकड़ा उठाया और तांत्रिक की तरफ बढ़ चला , उसके चेले मेरे सामने आ गए , तांत्रिक अग्नि के पास गया और बैठकर मन्त्र पढने लगा. नागिन तड़पने लगी. मुझे और गुस्सा आने लगा था . दोनों चेलो को धर लिया मैंने और पीटने लगा उन्हें. छीना झपटी में मैंने एक का सर फोड़ दिया.

जैसे ही वो गिरा . मैंने दुसरे को धक्का दिया और तांत्रिक की तरफ बढ़ा. पास में ही त्रिशूल खड़ा था मैंने उसे लिया और तांत्रिक के कंधे में घोंप दिया. वो चीख पड़ा . मैंने अग्नि में रेत फेंकी और तांत्रिक को धर लिया. वो लगातार अब भी मन्त्र बुदबुदा रहा था , नागिन मीमिया रही थी .

मैंने उसके अन्डकोशो पर वार किया तो वो तिलमिला गया .

“हरामजादे, मैंने तुझसे कहा था न की मैं तेरी मौत हूँ अब देख मैं तेरा क्या हाल करता हूँ , ” मैंने तांत्रिक का हाथ तोड़ दिया .

“आह्ह्ह्हह्ह ” चीखा वो . पर अब उसे चीखते ही रहना था , क्योंकि उसे सामना करना था मेरे गुस्से का. मैंने पास में पड़ी कटार उठाई और उसे काटने लगा. जैसे कोई कसाई बकरे को काटता है . तांत्रिक की चीखे दूर दूर तक गूँज रही थी पर मेरे मन में कोई रहम नहीं था . जब तक मेरा मन शांत नहीं हुआ मैं उसके टुकड़े करते रहा . उसके चेले भाग गए.

फिर मैं नागिन की तरफ गया . वो बेहाल पड़ी थी . मैंने उसे अपनी बाँहों में लिया .

“कुछ नहीं होगा तुझे , मैं हूँ न कुछ नहीं होगा तुझे. ” मैंने कहा

उसकी पीली आँखों से मैंने आंसू गिरते देखे.

ऐसा असहनीय दर्द मैंने तो महसूस किया था , समझ नहीं आ रहा था की क्या करू . कहाँ ले जाऊ इसे. पर तभी जैसे चमत्कार सा हुआ. मेरे सर पर जो लगी थी , खून की बूंदे नागिन के बदन पर पड़ी तो उसे राहत मिली. जहाँ मेरा खून गिरा था वहां उसके जख्म भरने लगे.



मैंने कटार उठाई और अपनी हथेली को काटा. रक्त धारा बहने लगी. मैं रक्त उसके शरीर पर मलने लगा. उसके जख्मो में सुधार होने लगा. पर तभी उसने मुझे दूर धकेल दिया.

“मत कर ” धीमी आवाज में बोली वो .

मैं- मेरे खून से अगर तुझे राहत मिलती है तो मेरी बूँद बूँद तेरी है .

नागिन- मैंने कहा न मत कर .तू जा यहाँ से , चला जा .

मैं- नहीं जाऊंगा , और तुझे भी नहीं जाने दूंगा. आजतक तू हमेशा मेरी ढाल बनके रही है , मुझ पर आने वाली हर मुशीबत को परे ही रोका है तूने आज जब मेरी बारी है तो मैं कैसे पीछे हट सकता हूँ.

नागिन- मानता क्यों नहीं मेरी बात चला जा , दूर रह मुझसे, मुझे कमजोर मत कर . मुश्किल से संभाला है खुद को , इस से पहले की बिखर जाऊ चला जा यहाँ से , चला जा , मेरी जरा भी परवाह है तुझे तो चला जा यहाँ से

मैं- ठीक है चला जाऊंगा, तेरी नजरो से दूर हो जाऊंगा पर जाने से पहले इतना बता जब दूर ही करना था तो आई क्यों . ठुकराना ही था तो अपनाया क्यो मुझे. जा रहा हूँ पर जाने से पहले मैं तेरा कर्ज चुकाना चाहता हूँ .और तू मना नहीं करेगी मुझे

मैंने अपना हाथ आगे कर दिया , वो मेरे पास आई और अपने दांत मेरी कलाई में गडा दिए.
 
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मैंने तेज जहर को अपनी नसों में बहते महसूस किया, नशा सा चढ़ने लगा पर बस कुछ पलो के लिए . फिर मेरा खून नागिन के बदन में जाने लगा. थोड़ी ही देर में उसकी हालात बहुत बेहतर हो गयी . कुछ तो था उसके और मेरे बिच में . ऐसा नाता जिसे अब वो चाह कर भी नहीं छुपा सकती थी .

“जब तू जाये तो मुझे नजरे छिपा कर जाना ” मैंने कहा .

वो सुनती रही . कुछ न बोली.

मुझे इस ख़ामोशी से कोफ़्त सी होने लगी थी .

“जाती क्यों नहीं अब किसने रोका है तुझे, जा चली जा वैसे भी तू मेरी कौन लगती है ” मैंने थोड़े गुस्से से कहा .

“तुझसे पूछ कर जाउंगी क्या , जा नहीं जाती ” उसने भी जवाब दिया.

मैं- ऐसा लगता है की मेरा दिल टुटा है , दिमाग मेरे काबू में नहीं है मैं कही तुझे कुछ उल्टा सीधा न बोल पडू

नागिन- चलो इसी बहाने तेरा मन तो हल्का हो जायेगा.

मैं- ये दोहरी बात न कर , जब तुझे रोकना चाह तो जाने की जिद थी अब जाती नहीं .

नागिन- तो क्या करू मैं . मेरी बेबसी मेरी मज़बूरी मैं करू तो क्या करू.

मैं- मैं तुझसे ये नहीं कहूँगा की मैं दुनिया में अकेला हूँ , मेरा कोई नहीं है तेरे सिवा , तू ही है बस मेरी , तू नहीं रहेगी तो मैं कैसे जियूँगा . मेरे दुश्मन मुझे मार देंगे. फलाना फलाना. अरे तू नहीं थी , मेरा मतलब जब मुझे मालूम नहीं था तेरे बारे में तब भी तो मैं जीता था , माना तेरे अहसान है मुझ पर और मेरी खाल की जुती बनाके तुझे पहना दू तो भी मैं तेरे अहसान नहीं चूका सकता . पर तुझे जाना है तो जा , चली जा जी लेंगे तेरे बिन भी . जो मिला सबने धोखा दिया तेरा भी सह लेंगे, अरे हम तो मुसाफिर है , और मुसाफिरों को मंजिले नहीं मिला करती, गलती मेरी ही थी जो भूल गया. और सुलतान बाबा से भी कहना अब उसे दूसरी मंजिल को छुपाने की कभी जरुरत नहीं पड़ेगी , मुसाफिर अब कभी हवेली में कदम नहीं रखेगा . जा चली जा मुझसे दूर हो जा. और मैं अगर मर भी जाऊ तो तुझे कसम है मेरी तू न आना.



मैंने अपना मुह उस से मोड़ा और अपने कदम उस रस्ते पर बढ़ा दिए जहाँ थी तो बस जुदाई .

उसने भी रोका नहीं और मैं भी नहीं रुका. मैं तो ये जानता भी नहीं था किस बंधन में मैं बंध गया हूँ उस से, जिन्दगी में अचानक से कुछ ऐसे लोग आ गए थे जिन्होंने मेरे और मेरे अक्स के बीच फर्क कर दिया था .

पर मेरी असली समस्या अब शुरू होनी थी , मेरे पास कोई ठिकाना नहीं था जहाँ मैं जा सकू, कभी कभी इन्सान अहंकार में इतना डूब जाता है की बाद में उसे पछताना ही पड़ता है , सरोज का घर मैं छोड़ चूका था , हवेली मैं , तो अब कहाँ जाऊ. मैंने खुद अ घर बनाने का निर्णय लिया वैसे भी रूपा से ब्याह के बाद मुझे घर तो चाहिए ही था .



सुबह होते ही मैं गाँव में मजदूरो के घर गया और उनसे बात की की मेरी किस जमीन पर मैं घर बनाना चाहता हूँ, शहर जाकर मैंने बैंक से कुछ रकम निकाली और मजदूरो को दी. और जल्दी से जल्दी काम शुरू करने को कहा. शाम को मैं पीपल के पास बैठा पेग लगा रहा था की मैंने रूपा को आते देखा .

“कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा तुझे और तू यहाँ बैठा है ” उसने कहा

मैं- बस यूँ ही दिल थोडा परेशां था .

रूपा- तो शराब से परेशानी दूर होगी तेरी. मुझसे कह तेरी परेशानी तेरे दर्दे दिल के दवा मैं करुँगी .

मैं- मैं जिस पर भी भरोसा करता हु वो छलता है मुझे ,

रूपा- दस्तूर है दुनिया का नया क्या है

मैं- ऐसा लगता है की मैं टूट कर बिखर जाऊंगा ,

रूपा- थाम लेगी तुझे तेरी रूपा. वैसे भी किसी ने कहा ही है की दो बर्बाद मिलकर आबाद हो ही जाते है .

मैं- घर बनाने का सोचा है , एक दो दिन में काम शुरू हो जायेगा.

रूपा- बढ़िया है . एक घर ही तो होता है जाना इन्सान को सकून मिलता है .

मैं- एक पेग लेगी .

रूपा- नहीं रे, मेरे बस की नहीं

मैं- तो क्या है तेरे बस का

रूपा- तुमसे इश्क करना.

रूपा ने मेरे गाल को चूम लिया.

“ये छेड़खानी न किया कर मेरा काबू नहीं रहता खुद पर . ” मैंने कहा

रूपा- तो बेकाबू हो जा किसने रोका है मेरे सरकार.

मैं- क्या इरादा है तेरा.

रूपा- तुझे पाने का.

मैं- तो बन क्यों नहीं जाती मेरी . क्यों देर करती है .

रूपा- मैं देर करती नहीं देर हो जाती है .

मैं- उफ्फ्फ तेरी बाते ,

रूपा- बाते तो होती रहेंगी, ताजा सरसों तोड़ के लायी हु आजा चल आज साग बनाती हूँ तेरे लिए.

मैं- बाजरे की रोटी बनाएगी तो आऊंगा.

“जो हुकुम सरकार, अब चलो भी ” रूपा ने हँसते हुए कहा और हाथो में हाथ डाले हम उसके घर की तरफ चल पड़े. रूपा के साथ होने से बड़ा सकून मिलता था मुझे. एक दुसरे को छेड़ते हुए हम उसके घर से थोडा दूर ही थे की वो बोली- देव, गुड ले आ. थोडा चूरमा भी बना लुंगी .

मैं- ठीक है तू चल मैं लाता हूँ .

मैं वहां से दूकान की तरफ चल पड़ा . मैंने गुड लिया और वापस चला ही था की एक गाडी मेरे सामने आकर रुकी, मैंने देखा वो नानी थी . वो गाड़ी से उतर कर मेरे पास आई .

मैं-आप इस समय यहाँ

नानी- तुमसे मिलने ही आई थी .

मैं- मुझसे, यकीन नहीं होता.

नानी- तो यकीन कर लो .

नानी ने एक बक्सा मुझे दिया.

मैं- क्या है इसमें

नानी- खोल कर देखो .

मैंने बक्सा खोला . उसमे एक हार और चार चूडिया थी .

मैं- मेरा क्या काम इनका.

नानी- ये तेरी माँ की है .मैंने सोचा तुझे लौटा दू .

मैंने उनको माथे से लगाया .

नानी- मोना का कुछ पता चला

मैं- अभी तक तो नहीं

नानी- मेरे पोते की शादी है कुछ दिनों में . उसे ले आ बेटे .

मैं- आपसे ज्यादा मोना की मुझे फ़िक्र है और वो आ भी गयी तो आएगी नहीं शादी में .

नानी- तुम मना लाओ उसे, बड़े सालो बाद घर में कोई ख़ुशी आई है , मैं तो कुछ दिन की हूँ अंतिम इच्छा बस यही है की एक बार परिवार को इकट्ठा देख लू. मोना के सबसे करीब तुम ही हो, तुम ही तलाश सकते हो उसे.

मैं- अपने बेटे से क्यों नहीं पूछती , मुझे तो यकीन है उसने ही कुछ किया है मोना के साथ .

नानी- ऐसा नहीं है , मुझे मालूम है सतनाम लाख गलत है पर मोना का अहित कभी नहीं करेगा वो .

मैं- तो आप ही बताओ कहाँ तलाश करू उसे .

नानी-तुम तलाश कर लोगे उसकी .

मैं- एक बात पुछू

नानी- हाँ

मैं- क्या मैं जब्बर पर भरोसा कर सकता हूँ

नानी- ये तुम जानो

नानी के जाने के बाद मैंरूपा के घर की तरफ चल पड़ा आधे रस्ते पहुंचा ही था की ऐसा लगा कोई आस पास है . जैसे कोई मेरा पीछा कर रहा हो. एक दो बार मैंने रुक कर देखा भी पर कोई नहीं था . मैं थोडा तेज तेज चलने लगा. फिर मुझे चूड़ी की हलकी सी आवाज आई.



चूड़ी की आवाज , मैं चलता रहा फिर से आवाज आई जैसे हवा में वो आवाज लहरा रही थी . फिर किसी ने मुझे पुकारा . “देव ”
 
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#57

किसी ने मुझे पुकारा, “देव ”

खेतो से एक साया निकल कर मेरे पास आया , मैंने देखा ये सरोज थी .

“तुम यहाँ कैसे ” मैंने कहा

सरोज- तुम्हे ढूंढते ढूंढते आ गयी , मुझे तुमसे बेहद जरुरी बात करनी थी .

मैं- जब्बर को मेरी मौत की सुपारी देने से ज्यादा जरुरी क्या बात है अब .

सरोज- मैं जानती थी ऐसा ही होगा. ये सब एक साजिश है हम दोनों के बीच दरार डालने की देव, मुझे मालूम हो गया है तुमने घर क्यों छोड़ा विक्रम उस शकुन्तला के साथ मिल कर जो भी कर रहा है उसमे मेरा उसका कोई साथ नहीं है देव, और जब्बर तो उनका ही मोहरा है .

मैं- जो भी हो मैं इस हालात में नहीं हूँ की किसी पर भी भरोसा कर सकू. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.

सरोज- तुम्हे मेरी बात सुननी ही होगी,

मैं- मैंने कहा न जाओ तुम यहाँ से.

सरोज- इतना कठोर मत बनो देव, मुझ पर भरोसा नहीं कर सकते और मेरे पास ऐसा कोई सबूत नहीं है जो तुम्हे भरोसा दिला सके. बस मेरी जान है जो तुम ले लो शायद तब तुम्हे यकीन आये.

मैं- मैंने कहा न मेरे हालात ऐसे नहीं है , और तुम्हे अगर मेरी फ़िक्र है तो फिर मत आना मेरे पास.

मैंने कहा और आगे बढ़ गया . सरोज मुझे आवाज देती रह गयी .समझ नहीं आ रहा था की क्या करू क्या न करू. रिश्तो की ऐसी भूलभुलैया में उलझा था मैं की अपने पराये सच्चे झूठे का भेद समाप्त हो गया था .



रूपा के घर जब तक मैं पंहुचा , वो मेरी ही राह देख रही थी .

रूपा- बड़ी देर लगाई कब से राह देख रही हूँ मैं .



मैं- बस देर हो गयी .

रूपा- ये कैसा बक्सा है हाथ में .

मैं- रख ले तेरे पास , मुझे भूख लगी है बाद में देखेंगे इसे , हिफाजत से रख दे.

रूपा- जो हुकुम सरकार.

रूपा खाना बनाने लगी मैं वही दिवार का सहारा लेकर बैठ गया .

मैं- तू जादू करना जानती है

रूपा- कितनी बार तुझे बताऊ ,

मैं- कोई ऐसी तरकीब है की मैं अतीत देख पाउँगा

रूपा- बाबा सुलतान से पूछ , वैसे जादू में ऐसा होता है कुछ जादूगर अपनी यादो को कही छुपा देते है . वैसे तुझे किसका अतीत देखना है .

मैं- नागेश का

रूपा- जानता है तू क्या कह रहा है .

मैं- तू शायद जानती नहीं पर मुझे लगता है उसका मुझसे कोई नाता है .

रूपा- नागेश किवंदिती के सिवा कुछ भी नहीं . उसे मरे जमाना हुआ .

मैं- बाबा को लगता है की वो लौट आया है . चरवाहों का तिबारा शायद उसने ही तोडा है .

रूपा- नहीं ऐसा नहीं है .

मैं- क्यों

रूपा- वो तिबारा मैंने तोडा है .

मुझे जैसे रूपा ने झटका सा दिया.

मैं- पर क्यों

रूपा- जब तुझे चोट लगी तो मेरा दिमाग भन्ना सा गया था . मैं इलाज के लिए उपचार तलाश कर रही थी , तुझे मालूम नहीं उसे चरवाहों का तिबारा क्यों कहा जाता था क्योंकि वहां पर ये जादूगर लोग अपने सफ़र के दौरान अक्सर रुकते थे , एक तरह का गुप्त ठिकाना था ये लोगो को मालूम न हो की जादूगर है तो वो चरवाहों का भेस ले लेते थे .

मैं- पर तूने तोडा क्यों

रूपा- बता तो रही हूँ , उस रात जब मैं वहां पर पहुंची . तो मुझे कटोरे की तलाश थी जो मन्नते पूरी करता था .

मैं- कैसा कटोरा .

रूपा- तिबारे में हमेशा से एक कटोरा रखा होता था जिसमे से जो मांगो मिल जाता था , मतलब कुछ जरुरत की चीजे .

मैं- तो तुझे क्या जरुरत थी

रूपा- कितने सवाल करता है तू

मैं- बस उत्सुकता .

रूपा- मैं प्रतिकृति पत्थर को तलाश रही थी .

मैं- क्या होता है ये .

रूपा- एक तरह का छलावा .

मैं- समझा नहीं

रूपा- तेरा घाव तेरे कलेजे को खा रहा था , यदि जल्दी से उपचार न होता तो जहर तेरे कलेजे को भेद देता. चूँकि मुझे उपचारों का ज्ञान है तो मैंने एक रिस्क लेने का सोचा, मैं तेरे कलेजे की नकल बनाती और उस तंत्र वार के असर को उस पर उतार लेती बाद में कलेजा वापिस कर देती.

पर ये पत्थर मिलना दुर्लभ है तो बस मैं अपनी हताशा को रोक नहीं पाई.

मैं- मैं कैसे ठीक हुआ तुमने उस रात क्या किया था .

रूपा- कुछ भी नहीं किया मैंने .

मैं- रूपा, मुझे सच बता तुझे मेरी कसम है सच बता.

रूपा- मैंने कुछ नहीं किया सिवाय तेरे जख्म को सिलने के. जो किया उस नागिन ने किया उसने ....

रूपा ने एक आह भरी

मैं- क्या किया था उसने बताती क्यों नहीं .

रूपा- उसने तेरी जान के बदले खुद की जान रख दी. वो कोई मामूली नागिन नहीं है वो अलग है , हम सब जानते थे की नागेश के वार का कोई भी तोड़ नहीं है . तो उसने एक ऐसा फैसला किया जो बस काम कर गया . उसने तेरी जान के बदले अपनी जान रख दी. नागो की अपनी शक्तिया होती है , उसने रक्तभ्स्म तुझे दी .

मैं- क्या होती है ये .

रूपा- जैसे इंसानों के लिए शरीर में रक्त जरुरी होता है , नागो के लिए रक्त्भास्म होती है . वार उतारने के कुछ नियम होते है हर चीज का मूल्य होता है उसने तेरे कलेजे के बदले अपना कलेजा रख दिया. उसने सोचा था की उसका जहर नागेश के वार को झेल लेगा पर ऐसा हुआ नहीं .

मैं- मतलब

रूपा- मतलब ये की नागिन पल पल मर रही है , उसके पास समय बहुत कम है इस श्राप ने हम तीनो को आपस में जोड़ दिया है . उसका कलेजा गल रहा है , हर रात तेरी भारी होगी दर्द से, और मेरी पीठ का ये जख्म सदा ताजा रहेगा कभी भरेगा नहीं .

मैं- तू सब जानती थी तो तूने क्यों किया ऐसा.

रूपा- आशिकी इम्तेहान लेती है मेरे सरकार. और जब तुझसे नाता जोड़ा है तो फिर मैं कैसे कदम पीछे हटाती, जब सुख में तेरी साथी हूँ तो तेरा दर्द भी मेरा हुआ न .

मैं- पर नागिन ने मेरे लिए अपनी जान की बाजी क्यों लगाई,

रूपा- मुझे भी इंतजार है इस सवाल के जवाब का .

हम दोनों के दरमियान कुछ देर के लिए एक ख़ामोशी छा गयी. जिसे मैं इतना भला बुरा कह आया था वो मौत के करीब थी सिर्फ मेरी वजह से सिर्फ मेरी वजह से. अब मुझे समझ आया की मेरे खून से उसकी हालात क्यों ठीक हो रही थी क्योंकि मेरे खून में रक्त भस्म भी थी .

“रक्त भस्म कहा मिलेगी रूपा ” मैंने पूछा

रूपा- परचून की दुकान पर तो नहीं मिलेगी.

मैं- बता न .

रूपा- मैं नागो के बारे में गहराई से नहीं जानती मुसाफिर, बाबा से पूछ .

मैं- ठीक है उनके पास ही जाता हूँ ,

रूपा- खाना तो खा ले पहले

मैं- मुझे जाना होगा.

रूपा- बेशक पर पहले खाना खा, बड़ा सकून होता है जब मैं तेरे साथ रोटी खाती हूँ , इस थोड़े से सुख पर तो मेरा अधिकार रहने दे सरकार.

रूपा ने साग, चूरमा परोसा मुझे . और कुछ पालो के लिए मैं सब कुछ भूल गया . खाने के बाद मैं वहां से निकल कर चल दिया मुझे मालूम था की कहाँ जाना है , आधे रस्ते में मुझे सुलतान बाबा मिल गए.

बाबा- कहाँ था तू, तुझे ही तलाश रहा था मैं .

मैं- मैं भी तुम्हारे पास ही रहा था बाबा , मुझे मालूम हो गया इस झोले में क्या है

बाबा के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी.
 
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#58

बाबा के चेहरे पर हवाइया उड़ रही थी .

“झोला दिखाओ मुझे बाबा ” मैंने कहा

बाबा- तेरे मतलब का सामान नहीं है इसमें

मैं- कब तक छुपाओगे बाबा ,

बाबा कुछ नहीं बोला. मैंने हाथ आगे बढाकर झोला ले लिया और खोला पर उसमे वो नहीं था जो मैंने सोचा था बल्कि कुछ ऐसा था जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी .झोले में एक जिंदा दिल फडफडा रहा था . किसी कटे कबूतर जैसा .

“ये तो दिल है बाबा , मैंने सोचा था आपने झोले में नागिन छुपाई है ” मैंने कहा

बाबा- उसे छुपाने की जरुरत नहीं ,

मैं- तो इस दिल का क्या करेंगे, किसका है ये .

बाबा- ये प्रतिकृति है , मुझे लगता है ये कारगर होगा.

मैं- असली उपाय क्या है , नागिन को कैसे रक्तभ्स्म दी जाये.

बाबा- गूढ़ है रक्त्भास्म प्राप्त करना . नागो के नियम जादू के नियम से अलग होते है

मैं- मुझे बस ये जानना है कैसे मिलेगी वो भस्म क्योंकि वही नागिन को प्राणदान दे सकती है .

बाबा- उत्सुकता ठीक है परन्तु अधुरा ज्ञान सदैव हानिकारक होता है मुसाफिर .

मैं- मतलब

बाबा- मतलब ये की मैं आजतक समझ नहीं पाया हूँ की तुम कौन हो अस्तित्व क्या है तुम्हारा, तुम साधारण होकर भी असाधारन हो , तुम्हारे अन्दर जादू नहीं है पर कुछ तो ऐसा है जो असामान्य है , तुम्हारे रक्त को पीकर नागिन के जख्म भरे, वो बेहतर हुई ये बड़ी हैरानी की बात है .

मैं- क्योंकि रक्तभ्स्म मेरे शरीर में है .

बाबा- और क्या ये तुम्हे साधारण लगता है . आखिर क्यों बड़ी आसानी से उस दिव्य भस्म को आत्मसात कर लिया तुमने , कभी सोचा .

मैं- मुझे लगा ऐसा ही होता होगा.

बाबा- रक्त भस्म इसलिए दिव्य है की स्वयं शम्भू के तन पर मली जाती है , शमशान की राख जब महादेव का अभिषेक करती है , तो वो उसका अंग हो जाती है , जिसे स्वयं शम्भू अपने बदन पर स्थान दे तो उसके गुण दिव्य होते है , एक खास वंश के नाग ही उसका तेज झेल पाते है .

मैं- तो क्या मैं नाग हूँ

बाबा- निसंदेह नहीं और यही बात मुझे खटक रही है .

मैं- पर मेरी प्राथमिकता नागिन को बचाना है

बाबा- सीधे शब्दों में मैं कहूँ तो हर दस दिन में यदि वो तुम्हारा खून पीती रहे तो उसे कुछ नहीं होगा.

मैं- पर ये हमेशा का उपाय नहीं है .

बाबा- तो फिर रक्त भस्म ले आओ ,

मैं- कहाँ मिलेगी ये तो बताओ

बाबा- मुझे क्या मालूम , मैं अपनी कोशिश करूँगा तुम अपनी करो . मैं प्रतिकृति को असली की जगह स्थापित करके छलावा कामयाब करने की कोशिश करूँगा.

मैंने झोला वापिस बाबा को दिया. बाबा चला गया और कुछ नए सवाल में उलझा गया मुझे, उसने तो मेरे अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिए थे . मुझे आज मेरी माँ की बड़ी कमी महसूस हो रही थी काश वो होती तो मेरी समस्या यु सुलझा देती . पर वो नहीं थी, दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति होती है माँ, और माँ से मुझे घर की याद आई, नागिन का घर था वो मंदिर जो तोड़ दिया गया था .

“उसे वापिस खोदना होगा. ” मैंने अपने आप से कहा . घर किसी के लिए भी सबसे सुरक्षित होता है , अक्सर घर में ही सबसे चाहती वस्तुए रखी जाती है पर क्या वो हवेली मेरा घर नहीं थी . मेरी माँ सुहासिनी एक बड़ी जादूगरनी थी तो क्या ये मुमकिन नहीं था की मुझे हवेली में कुछ न कुछ मिले जो मेरे काम आ सके. बेशक मैंने वहां न जाने की कसम खाई थी पर नागिन के प्राणों के आगे मेरा अहंकार बहुत तुच्छ था . मैं तुरंत हवेली की तरफ चल दिया.

ये हवेली बाहर से जितना खामोश थी अपने अन्दर उतने ही तूफ़ान छुपाये हुई थी , जितनी बार भी मैं आता था यहाँ पर इसका स्वरूप हर बार बदला हुआ होता था . इस बार यहाँ पर सिर्फ एक ही मंजिल थी . तमाम मोमबतिया बुझी थी , बस एक जल रही थी उस बड़ी सी मेज के ऊपर . मैंने अपनी जैकेट उतारी और वहां गया . हमेशा की तरह गर्म चाय मेरा इंतजार कर रही थी .

“ये मेरा घर है और यहाँ जो भी जादुई अहसास है उसे मेरी बात जरुर माननी होगी ” मैंने सोचा .

मैं- मैं चाहता हूँ की थोड़ी और रौशनी हो जाये.

और तुरंत ही मोमबतिया जल गयी .

मैंने बस हवा में तीर मारा था पर वो तुक्का सही लगा था .

“मैं पहली मंजिल पर जाना चाहता हूँ ” मैंने कहा और सीढिया खुल गयी .

“दूसरी मंजिल ” मैंने कहा . पर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ. ये बड़ी हैरानी की बात थी . मैंने फिर दोहराया पर कुछ नहीं हुआ.

“मैं सुहासिनी के कमरे में जाना चाहता हूँ ” इस बार भी कुछ नहीं हुआ.

मैं- मैं मोना के कमरे में जाना चाहता हूँ,

कुछ देर ख़ामोशी छाई रही फिर चर्र्रर्र्र की एक जोर से आवाज आयी मेरी दाई तरफ वाला एक दरवाजा थोडा सा खुल गया था. मुझे बड़ी उत्सुकता हुई दौड़ता हुआ मैं उस कमरे में गया . छोटा सा कमरा था , कुछ खास नहीं था वहां पर दिवार पर कुछ कपडे टंगे थे, दो बैग पड़े थे और मैं जानता था की ये सामान मोना का था . मतलब मोना गायब होने से पहले यहाँ आई थी जरुर. कुछ और खास नहीं मिला तो मैं वापिस आकर कुर्सी पर बैठ गया . मेरे दिमाग में बहुत सवाल थे.

“नागिन क्या तुम यहाँ पर हो , अगर हो तो सामने आओ, हम बात कर सकते है ” मैंने कहा . पर कोई जवाब नहीं आया. शायद वो यहाँ नहीं थी. अचानक से मेरे सीने में दर्द होने लगा. अब तो मुझे आदत सी हो चली थी इसकी पर दर्द तो बस दर्द होता है. न चाहते हुए भी मैं अपनी चीखो पर काबू नहीं रख पाया. मैं कुर्सी से गिर गया और फर्श पर तड़पने लगा. अभी इस दर्द से फारिग हुआ भी नहीं था की दरवाजे पर ऐसी तेज आवाज हुई जैसे की किसी ने कोई बड़ा पत्थर दे मारा हो .

खुद को सँभालते हुए मैं दरवाजे के पास गया उसे खोला और मेरे सामने एक लाश आ गिरी. वो लाश ............. .

 
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#59

वो लाश जब्बर की थी . दरअसल मुझे इस बात ने नहीं चौंकाया था की लाश जब्बर की थी , मेरा ध्यान इस बात पर था की लाश की हालत ठीक वैसी ही थी जैसी की लाला महिपाल की लाश थी , बिलकुल सफ़ेद, जैसे किसी ने सारा खून चूस लिया हो . पर कातिल ने इसे यहाँ पर क्यों फेंका. क्या कातिल को भी हवेली के बारे में पता था .



मेरे आस पास ये जो भी लोग थे एक एक करके मौत के मुह में जा रहे थे , कौन मार रहा था क्यों मार रहा था किसी को कुछ नहीं मालूम था . मैंने दरवाजा बंद किया और वापिस हवेली के अन्दर आ गया. जब्बर की मौत से कुछ समीकरण बदल जाने थे . पर फिलहाल मुझे इंतजार था सुबह होने का . मैं एक कमरे में गया और सोने की कोशिश करने लगा. बिस्तर आरामदेह था . मालूम नहीं मैं नींद में था या सपने में था . पर ऐसा लगा की कोई तो है मेरे साथ .

मैंने हलके से आँखे खोली कमरे में घुप्प अँधेरा था . जबकि मैं सोया तब रौशनी थी , मुझे लगा की कमरे में दो लोगो की सांसे चल रही थी . कौन हो सकता है इस समय. आँखे जब अँधेरे की आदी हुई तो मैंने देखा , कुर्सी पर एक साया था जो शायद आराम कर रहा था , क्योंकि वो हलचल नहीं कर रहा था . मेरे सिवा इस हवेली में कौन हो सकता था .

“मोना क्या ये तुम हो ” मैंने आवाज दी.

साये की आँखे एक झटके से खुल गयी .और वो तेजी से बाहर की तरफ भागा मैं भी उसके पीछे भागा. पर मेरा पैर चादर में उलझ गया जब तक मैं बाहर आया वहां कोई नहीं था .

“सामने क्यों नहीं आते, क्यों सता रहे हो तुम अपनी पहचान उजागर क्यों नहीं करते तुम.” मैं चीख पड़ा.

कलाई में बंधी घडी पर नजर पड़ी तो देखा तीन पच्चीस हो रहे थे . मैं निचे आया थोडा पानी पिया और हवेली से बाहर जाने के लिए सीढियों से उतरा .न जाने क्यों मेरे दिल को ऐसा लग रहा था की वो मेरे आसपास ही है, यही कही है , दूर होकर भी मेरे पास है . इतनी शिद्दत पहले कभी नहीं हुई थी . पर वो जब पास थी तो ये दुरी क्यों थी. क्यों छिप रही थी मुझसे.

सुबह होते ही मैंने कुछ मशीन और मजदुर बुलवाए और मंदिर की खुदाई शुरू करवा दी. शकुन्तला ने भरपूर विरोध किया पर गाँव की पंचायत ने मेरा साथ दिया. गाँव वालो को भी लगता था की मंदिर का दुबारा से निर्माण होना चाहिए. दिन भर धुल मिटटी में बीत गया. शाम को मैं चाय पि रहा था की मैंने बाबा सुलतान को आते देखा.

बाबा- एक बार जो सोच लिया फिर रुकता नहीं तू.

मैं- बरसो से उपेक्षित मंदिर की शान दुबारा लौट आये तो बुरा क्या है .

बाबा- पर तेरे मनसूबे तो कुछ और है .

मैं- क्या फर्क पड़ता है .

बाबा- बेकार है तुझसे कुछ भी कहना अब , खैर तेरी बात सही है इसी बहाने हम भी शम्भू के दर्शन कर लेंगे.

बाबा मुस्कुराने लगे.

मैं- एक बात और कहनी थी .

बाबा- हाँ

मैं- मैं ब्याह करना चाहता हूँ

बाबा- बेशक, सब करते है तू भी कर ले

मैं- मैं चाहता हूँ आप लड़की के बाप से बात करे. ब्याह की तारीख आप पक्की करे.

बाबा- पर मैं कैसे.

मैं- मेरा कौन है आपके सिवा.

बाबा- मुझे लगता है तू तेरे ताऊ के पास जा

मैं- मैंने कहा न आप ही करेंगे ये काम.

बाबा- ठीक है मुसाफिर , अब तेरी मर्जी के आगे मेरी क्या , तू मुझे पता दे उसका मैं चला जाऊंगा.

मैंने बाबा को एक पर्ची लिख कर दी. बस रूपा का नाम नहीं लिखा मैं बाबा को देखना चाहता था जब वो वहां रूपा को पाएंगे. बाबा ने पर्ची झोले में रख ली . हम खुदाई देखते रहे. शाम को मजदूरो के जाने के बाद बाबा मुझे खंडित ईमारत में ले गए.

“जैसे बस कल ही की बात हो ” बाबा ने गहरी साँस ली .

मैंने पहली बार बाबा की आँखों में पानी देखा. उन आँखों में पानी था , उन होंठो पर मुस्कान थी , रमता जोगी अपने आप में जैसे खो गया था , बाबा को मेरा होना न होना जैसे एक ही था उस समय. कभी इस टूटी दिवार के पास जाते वो कभी उस दिवार से लिपट जाते. इतना तो मैं समझ गया था की बाबा का बड़ा गहरा नाता रहा हो गा इस जगह से.



वो बस अपने अतीत में खो गए थे, क्या कहा मैंने अपने अतीत में, पर बाबा का क्या लेना देना था यहाँ से ,कही बाबा नागिन के पिता तो नहीं जो शायद किसी तरह से बच गए थे . मैंने सोचा. शायद हो भी सकता है क्योंकि नागिन को उनसे बेहतर कोई नहीं जानता था . अब सीधा सीधा तो मेरी हिम्मत नहीं थी उनसे पूछने की पर इस बात को पुख्ता करने का मैंने निर्णय ले लिया था.

“इधर आ बेटे, ” बाबा ने मुझे पुकारा .

मैं दौड़ कर उनके पास गया .

बाबा- ये मिटटी हटाने में मदद कर मेरी .

मैं- सुबह मजदुर हटा देंगे न

बाबा- तुझसे कहा न मैंने

मैं- ठीक है , आप रौशनी करो मैं मशीन चालू करता हूँ

बाबा के कहे अनुसार मैंने मिटटी हटाना शुरू किया करीब पंद्रह मिनट बाद मुझे वो दिखने लगा जो बाबा देखना चाहते थे . वो एक टूटा कमरा था शायद मंदिर का मुख्य कमरा रहा होगा. क्योंकि पास में एक टूटा जलपात्र पड़ा था. एक नंदी की छोटी मूर्ति थी . बाबा ने उसे अपने सीने से लगा लिया और जोर जोर से रोने लगे.

पर जिस चीज ने मेरा ध्यान खींचा था वो ये था की शिव की मूर्ति नहीं थी वहां पर.

“मूर्ति कहाँ है बाबा ” मैंने सवाल किया .

पर बाबा को जैसे कोई सरोकार नहीं था. बाबा मूझे न जाने क्या बता रहे थे , अपने अतीत की बाते, यहाँ ये होता था यहाँ वो होता था आदी, ऐसे ही काफी समय बीत गया अचानक से बाबा की तबियत कुछ ख़राब सी होने लगी . बाबा असहज होने लगे.

मैं- क्या हुआ बाबा,

बाबा ने कोई जवाब नहीं दिया , अपना झोला लिया और लगभग वहां से दौड़ पड़े मैं आवाज देता रह गया . और मेरे साथ रह गयी ये ख़ामोशी. ये तन्हाई. मैंने नंदी की मूर्ति को उठाया और साफ़ करके एक तरफ रख दिया. तभी मेरे पैरो के निचे कुछ आ गया . मैंने मिटटी हटाई तो देखा की......................
 

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