Incest गांव का मौसम ( बड़ा प्यारा )

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मंगल घर के सारे काम कर चुकी थी और उसने सूरज और मंगल भी खाना खा चुके थे, खाना खाने के बाद मंगल को सब्जियां लेनी थी इसलिए सूरज के जाने के बाद वह भी खेती के लिए निकल गई।

सूरज आज गांव में घूमने की सोच कर गांव की तरफ निकल पड़ा, दोपहर हो चुकी थी गांव के लड़के खेल के मैदान में पहुंच चुके था लेकिन उसके सारे दोस्त एक ही स्थान पर बैठकर गप्पे लड़ा रहे थे। सूरज कभी भी किसी से दोस्ती नहीं करता था, कभी कभार गांव के लड़को के साथ खाली समय में क्रिकेट खेलने की वजह से दोस्ती हो गई थी,

थोड़ी बहुत मजाक मस्ती यह लड़के भी कर लेते थे। लेकिन आज वह जो बातें मजाक मजाक में इन लड़कों के मुंह से सुन रहा था ऐसी बातें वह आज तक कभी भी अपने कानों में नहीं पड़ने दिया था । सूरज पहुंचते ही उन लड़कों से बोला।

क्या यार आज तुम लोग इस तरह से क्यों बैठे हुए हो मैं तो किरकेट खेलने आया था लेकिन तुम लोग किरकेत ना खेल कर बस ऐसे ही बैठे हुए हो।
( सूरज की बातें सुनकर उनमें से एक लड़का बोला)

हां यार कर भी क्या सकते हैं किरकेत खेलने तो हम भी आए थे लेकिन गेंद ही खो गई,,,,,,,,


यार सारा मजा किरकिरा हो गया आज खेतो में काम नहीं था तो सोचा चलो किरकेट खेल कर टाइम पास कर लेंगे लेकिन यहां तो सब गड़बड़ हो गया है।( सूरज उदास होता हुआ बोला लेकिन तभी उसकी बात करते हुए एक लड़का जो कि अच्छे घर से होने के बावजूद भी लफंगों की तरह रहता था वह बोला,,,,,,)

कोई बात ( दूसरे लड़के की तरफ उंगली से इशारा करते हुए) अपनी अमित की मां है ना इसके दोनों बड़े बड़े गेंद कब काम आएंगे,,,,, उनसे ही एक दिन के लिए उधार मांग लेते हैं दबा दबा कर खेलेंगे हम सब,,,,( तभी उसकी बात सुनकर जिसको वह बोल रहा था वही अमित हंसते हुए बोला।)

तेरी मां के पास भी तोे दो गेंदे है मस्त-मस्त चलो ऊनसे ही मांग लेते हैं। ( अमित की बात सुनकर लफंगे जैसा दिखने वाला कल्लू बोला।)

यार मांग तो लु लेकीन मेरी मां कि दोनों गेंदे छोटी छोटी है उनसे क्रिकेट खेलने में मजा नहीं आएगा मजा तो तेरी मां की दोनों गेंदों में आएगा जब मैं उनको अपने हाथों में भरकर अपने कपड़े पर रगड़ते हुए बॉलिंग करुंगा।
( उसकी बात सुनते ही सभी लड़की हंसने लगे और वह लड़का भी हंसने लगा जिसको वह उसकी मां के बारे में कह रहा था। सूरज तो कल्लू की बात सुनते ही आश्चर्यचकित हो जा रहा था और साथ ही उसके मन में अजीब सी भावना जन्म लेने लग रही थी ना चाहते हुए भी उसके मन में अमित की मां की कल्पना में जन्म लेने लगी थी,, सूरज उन लोगों की गेंद वाली बात का मतलब अच्छी तरह से समझ रहा था इसलिए उसकी कल्पना में अमित की मां की बड़ी बड़ी चूचियां आने लगे जिनका ख्याल होकर ही उसके बदन में न जाने कैसी अजीब सी अनुभूति होने लगी। सूरज की भी हंसी छूट गई उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह लोग इस तरह की बातें कर सकते हैं। तभी दूसरे लड़के ने उनमें से ही एक लड़के के बारे में संबोधित करते हुए बोला।

यार अमित की मां को छोड़ अपने पप्पू की मां को देख
कितनी बुड़ी बुड़ी चुचीयां है और साड़ी तो ऐसे पहनती है जैसे कि दूसरों को ललचा रही हो। कसम से जब भी देखता हूं तो मेरा तो लंड खड़ा हो जाता है। ( ऊस लड़के की बात सुनकर सूरज की तो हालत खराब होने लगी उसने इस तरह की खुली और गंदी बातें कभी भी नहीं सुना था। क्योंकि वह कभी भी गंदी लड़को के साथ घूमता ही नहीं था लेकिन आज गांव के ऐसे लड़कों के मुंह से ऐसी बातें सुनकर वह दंग हो गया था।
लंड खड़े होने की बात से तो ऊसके पेंट मे भी सुरसुराहट सी महसूस होने लगी थी। तभी वह लड़का बोल पड़ा किसकी मां के बारे में दूसरे लड़के ने इतनी गंदी बात कही थी।)

तेरी मां को भी तो देखकर मेरा भी हाल यही होता है, तेरी मां भी जब गांड मटकाते हुए चलती है तो मेरा लंड खड़ा हो जाता है देखना एक दिन खेतो के काम के बहाने तेरे घर आऊंगा तो तेरी मम्मी को चोद कर जाऊंगा।
( उसकी बात सुनकर एक बार फिर से सभी टांके मार के हंसने लगे और बड़े आश्चर्य की बात यह थी कि जिसके बारे में यह सब बातें हो रही थी वह भी ईन लोगों की हंसी में शामिल हो जाता था। सभी लोग एक दूसरे की मां के बारे में गंदी बातें कर के मजे ले रहे थे सूरज तो आश्चर्य से खड़ा होकर ऊन लोगों की बातें सुन रहा था और अजीब-अजीब से ख्याल उसके मन में आ रहे थे। मुझे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि लड़के एक दूसरे की मां के बारे में ऐसी गंदी बातें भी करके मजा लेते होंगे। तभी उनमें से एक लड़के ने सूरज को खामोश खड़ा हुआ देखकर बोला।


यार सूरज तु क्यों खामोश खड़ा है तू भी तो कुछ बोल।
( तभी बीच में दूसरा लड़का बोल पड़ा)

यारों क्या बोलेगा दूसरों की मां की बात सुनकर उसे अपनी मामी याद आ गई होगी। ( उस लड़की की बात सुनकर सूरज को गुस्सा आ गया वह उसे अपनी हद में रहने के लिए बोला लेकिन वह नहीं माना।)


अच्छा दूसरों की मां की गंदी बात सुनकर तो तू खूब मजा ले रहा था और अपनी मामी की बारी आई तो गुस्सा करता है। ( उस लड़के के सुर में सुर मिलाता हुआ दूसरा लड़का बोला।)
हां यार सूरज यह बात तो सच है पूरी गांव में तेरी मामी जैसी गडराई दूसरी कोई औरत नहीं है। मुझे पता है जब तेरी मामी गांव से गुजरती है तो सभी की नजरें तेरी मामी पर टिकी होती है। तेरी मामी की बड़ी बड़ी चूचियां बड़ी-बड़ी गोल गोल गांड देखकर तो सब का लंट खड़ा हो जाता है। ( इतना सुनते ही सूरज गुस्सा करने लगा और उस लड़की को चुप रहने को बोला लेकिन वह लड़का कहां मानने वाला था।)
यार गुस्सा क्यों करता है सही बात तो है तेरी मामी को चोदने के लिए तो ना जाने कितने लोग तड़पते रहते हैं।
और सच कहूं तो तेरी मामी की गंदी बातें सोच सोच कर मैंने ना जाने कितनी बार लंड हिला कर मुठ मारा हुं।
( उस लड़के की बात सुनकर सभी लोग ठहाका मार कर हंसने लगे अपनी मामी के बारे में ऐसी गंदी बातें सुनकर सूरज उस लड़के से हाथापाई कर लिया बड़ी मुश्किल से सभी ने उन दोनों को छुड़ाया और सूरज गुस्से में अपने घर की तरफ जाने लगा।
 
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मंगल मंडी में खरीदी करने गई थी। शाम होने वाली थी वहां से सब्जियां खरीद रही थी कि तभी उसकी नजर पास के ही ठेले पर से सब्जी खरीद रही मंजू पर गई, तो निर्मला के पास गई,,, मंजू भी मंगल को देखकर खुश हो गई और उससे बोली।

अरे वाह स्वर्ग की अप्सरा इधर मंडी में क्या कर रही हो।
( मंजू के इस सवाल का जवाब निर्मला मुस्कुराकर देते हुए बोली।)

जो तुम यहां कर रही हो वही मैं भी करने आई हूं,

मैं तो यहां बेगन ले रही हूं।( एक मोटे ताजे और लंबे बेगन को अपनी मुट्ठी में लेकर) देखो कितना ताजा है। आज तो मजा ही आ जाएगा।
( मंजू धीमी आवाज में बातें कर रही थी जोकी सिर्फ मंगल ही सुन पा रही थी। बैगन की तरफ देखते हुए मंगल बोली।)

मैं क्या करूंगी बेगन लेकर के मुझे बेगन पसंद ही नहीं है और वैसे भी मेरे पति और मेरा सूरज खाता ही नहीं है।


अरे मेरी प्यारी मंगल (बेगन को थेली में रखते हुए)
मुझे भी कहां बेगन पसंद है, लेकिन जरा इसके आकार पर गौर तो कर ।
( मंगल के हाव भाव से ऐसा लग रहा था कि उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मंजू क्या कहना चाह रही है इसलिए वह आश्चर्य से बोली।)

क्या मतलब!

अरे यार तुम ना एकदम बुद्धू हो। अच्छा थोड़ा आगे चलो मैं तुम्हें समझाती हूं।( इतना कहते हुए वह मंगल को ठेले से थोड़ी दूरी पर ले गई। और थेली में से उसी दमदार बैंगन को निकालते हुए और मंगल को दिखाते हुए बोली।)
देखो इस के आकार को( मंगल थी उस दमदार बेगन को देखने लगी लेकिन उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।) इसे देखकर कुछ समझ मे आ रहा है तुम्हें।


यार मंजू तुम इस तरह से पहेलियां क्यों बुझा रही हो मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। ( मंगल आश्चर्य से बोली।)

यार तुम सच में एकदम बुध्धु हो पता नहीं बिस्तर पर अपने पति को कैसे खुश करती होगी। ( मंजू के मुंह से यह बात सुनकर वो थोड़ा उदास हुई लेकिन जल्द ही अपने आप को संभाल ली ।)
देखो मंगल इसकी लंबाई को इसकी मोटाई को देखो है ना एकदम मर्दों के हथियार जेसा।
( मंजू की बात सुनकर मंगल एकदम दंग रह गई और वह थोड़ा गुस्सा और थोड़ी मुस्कुराहट के साथ बोली।)

यार मंजू सच में तुम्हारे दिमाग में एकदम गंदगी भरी हुई है इन सब्जियों में भी तुम अपने ही मतलब की चीज ढुंढ़ती रहती हो। जब तुम्हें भी बैगन पसंद नहीं है तो आखिर ली क्यों?

मंगल जरूरी तो नहीं कि इसे सिर्फ खाया ही जाए इससे दूसरे भी तो काम लिए जा सकते हैं।
( मंगल फिर से उसे आश्चर्य से देखने लगी उसे अभी भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इसलिए वह फिर बोली।)

दूसरे काम मतलब! एक तो तुम पहेलियां बुझाना बंद करो और साफ-साफ मुझे बताओ क्योंकि मुझे भी सब्जियां खरीदने में देर हो रही है।
( मंगल की बात सुनकर कामुक मंजू मुस्कुराने लगी और वह उससे बोली।)

यार तुम्हें अभी भी समझ में नहीं आया इतनी तो बात आजकल की ओरते भी समझ जाती है और तुम इतनी खेली खाई हो करके भी इतना मतलब नहीं समझ पा रही हो।

नहीं सच में,,,,, सच में मुझे बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रहा है कि तुम कहना क्या चाहती हो।

मुझे लगता है कि तुम्हें खुलकर ही समझाना पड़ेगा।
देखो बेगन की लंबाई और चौड़ाई एकदम लंड के ही जैसी होती है। ( मंगल मंजू की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी) तो सोचो यह औरतों की कितने काम की चीज है। अगर कभी चुदवाने की इच्छा हो तो घर पर पति ना हो तो क्या करोगे उंगली से तो मजा आएगा नहीं।,,,,( मंजू के मुझे ऐसी बातें सुनकर मंगल गंनगना गई,,,, वह शर्म के मारे इधर उधर देखने लगी कि कहीं कोई सुन तो नहीं रहा है। मंजू बात को आगे बढ़ाते हुए बोली।) अंगुली से अपने जैसी औरतों की बुर की प्यास बुझाने वाली नहीं है और किसी गैर मर्द के लंड से चुदने से बदनामी का डर लगा रहता है और ऐसे में सबसे बेहतर और अच्छा इलाज यही है,,, यह बेगन,,,
ईसी को अपनी बुर में डाल कर अंदर बाहर करते हुए अपनी बुर खुद ही चोदो देखो कितना मजा आता है।,,,

( मंजू की बात सुनकर मंगल की तो हालत खराब होने लगी उसके मन में अजीब सी गुदगुदी होने लगी,,,, मंगल कभी सपने में भी नहीं सोच रही थी कि बेगन का इस तरह का भी उपयोग किया जाता है। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें उसे शर्म भी महसूस होने लगी थी। ना चाहते हुए भी मंगल के मुंह से निकल ही गया,,,,,)

तो क्या,,,,,,, मंजू,,,,,, ततततत,,,,,तुम भी,,,,,,,,,


तो यह किस लिए ले रही हूं खाने के लिए थोड़ी ले रही हूं। ( मंजू बेझिझक जवाब देते हुए बोली। मंजू का जवाब सुनकर तो मंगल दंग रह गई उसे यकीन नहीं हो रहा था कि मंजू ईस तरह की हरकत भी करती होगी। वह मंजू को एतराज जताते हुए बोली।)

छी,,,, छी,,,,, मंजू तुम इतनी गंदी हरकत कैसे कर सकती हो आखिरकार तुम एक शादी शुदा औरत हो,,,,,,


सबसे पहले मैं एक औरत हूं और औरतों की भी ख्वाहिश होती है (मंजू मुस्कुराते हुए जवाब दी)
और वैसे भी मेरे पति शहर में काम पर रहते हैं, साल में कभी कभार आते है,ऐसे मैं अगर ईच्छा हो जाए तो क्या करें।
( मंगल को भी मंजू की यह बातें अच्छी लग रही थी लेकिन वह ऊपर से ही ऐतराज जता रही थी। मंजू की ऐसी बातें सुनकर उसे ना जाने अजीब सी सुख की अनुभूति हो रही थी उस की उत्सुकता और ज्यादा बढ़ती जा रही थी बेगन के बारे में जानने की। इसलिए वह बोली।)

मंजू किसी दिन तुम्हारे पति को यह सब पता चल गया ना तो तुम्हारी हालत खराब हो जाएगी।

अरे किसी को नहीं पता चलेगा आखिर सब्जी ही तो है मैं सब्जी घर ले जा रही हूं,,,, ना की किसी मर्द को,,,,
औरतों को खुद ही संतुष्टि प्राप्त करने का यह सबसे सुरक्षित तरीका है और तो और मंगल इसकी जाड़ी, ईसकी मोटाई मर्दों के लंड से भी ज्यादा दमदार है। सच में जब भी नहीं इसका उपयोग करती हूं तो मुझे तो बेहद आनंद की प्राप्ति होती है ऐसा मजा मिलता है कि वैसा मजा तो मुझे अपने पति से भी नहीं आता।
( मंजू की बातों से मंगल की जांघो के बीच रसीली बुर में सुरसुराहट बढ़ने लगी। ओर मंगल को बुर मे से रिसाव सा महसूस होने लगा। वह तो बस मंत्रमुग्ध सी मंजू की बातें सुने जा रही थी। इससे पहले भी इसी तरह मंगल के सामने खुलकर बहुत सी बातें बताई है लेकिन आज की बात मंगल के अंदर एक अजीब सी कामना का एहसास करा रही थी। बेगन को लेकर मंगल की उत्सुकता कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही थी।

( मंजू की बातों से मंगल की जांघो के बीच रसीली बुर में सुरसुराहट बढ़ने लगी। ओर मंगल को बुर मे से रिसाव सा महसूस होने लगा। वह तो बस मंत्रमुग्ध सी मंजू की बातें सुने जा रही थी। इससे पहले भी इसी तरह मंगल के सामने खुलकर बहुत सी बातें शेयर की है लेकिन आज की बात मंगल के अंदर एक अजीब सी कामना का एहसास करा रही थी। बेगन को लेकर मंगल की उत्सुकता कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही थी।
लेकिन शाम ढलने लगी थी और अभी भी मंगल को सब्जी खरीदनी थी वह मंजू से कुछ और पूछ पाती इससे पहले ही मंजू बोली।)

अच्छा मंगल मुझे देर हो रही है मुझे घर जाना है और भी बहुत काम है मैं चलती हूं कल खेतो में मिलूंगी,,,,,,
( मंगल उससे कुछ और पूछ पाती इससे पहले ही वह चली गई । उसके जाने के बाद मंगल ठेले पर से जरूरी की सब्जियां खरीदने लगी। तभी उसकी नजर एक दम ताज़े मोटे और लंबे बेगन पर पड़ी,,,,,और ऊसपर नज़र पड़ते ही मंगल को जांगो के बीच सुरसुराहट और तेज होती महसूस होने लगी। उसे मंजू की बात याद आने लगी कि बैगन को सिर्फ खाना ही नहीं जाता बल्कि उसे अपने लिए सही उपयोग में भी लाया जाता है।
बैगन मंगल को भी कतई पसंद नहीं था ना ही उसके परिवार में कोई खाता था लेकिन ना चाहते हुए भी मंजू के बताए हुए तरीका की वजह से और उसकी बातों का असर उस पर ऐसा छाया की,,,,, ना चाहते हुए भी मंगल ठेले पर से लंबे लंबे बेगन को उठाकर सब्जीवाले के तराजू में डालने लगी,,,,,,, बेगन को हाथ में लेते ही उसके बदन में झनझनाहट सी महसूस होने लगी,,,, तराजू में डालते समय वह शर्म के मारे ठेलेवाले से नजर नहीं मिला पा रही थी । ना जाने आज उसे बैगन को हाथ में लेने भर से ही उसे शर्म महसूस हो रही थी उसे ऐसा लग रहा था कि वह बैगन को नहीं बल्कि किसी के लंड को हाथ से पकड़ी हुई है। इस वजह से शर्मीली और संस्कारी मंगल का चेहरा शर्म के मारे लाल लाल हो गया जो कि उसकी खूबसूरती को और ज्यादा निखार रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि वह बेगन नहीं बल्कि किसी गंदी चीज को चुपके से खरीद रही हो। खैर जैसे तैसे करके वह सब्जियां खरीद कर अपने घर की तरफ जाने लगी।

दूसरी तरफ सूरज घर में आ कर अपने कमरे में कसरत कर रहा था।
ऊसके बदन पर मात्र एक लंगोट था, बाकि के कपड़े उसने उतार फेंके थे । वह हमेशा लंगोट में ही कसरत किया करता था। कसरत तो वह कर रहा था लेकिन आज कसरत करने में उसका मन बिल्कुल भी नहीं लग रहा था,,, बार-बार उसे खेल के मैदान में दोस्तों की गंदी बात याद आ रही थी ना चाहते हुए भी उसका दिमाग उन बातों को याद कर रहा था। बार-बार उसका ध्यान कसरत पर से हट जा रहा था।
उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि वह लड़के उसकी मामी के बारे में इतने गंदे ख्यालात रखते हैं। सूरज को लड़कों की बात से गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन ना जाने उसके बदन में एक अजीब सी हलचल मच जा रही थी जब वह उन लड़कों की गंदी बाते याद कर रहा था। ना चाहते हुए भी उसका ध्यान उसकी मामी के बड़े बड़े चुचियों और उसकी भरावदार गांड पर चले जा रहा था। सूरज ने कभी अपनी मामी को गलत निगाह से नहीं देखा था हां लेकिन इतना जरुर जानता था कि उसकी मामी बहुत खूबसूरत है। उसकी दोस्तों की बातें उसके जेहन में बार-बार उसकी मामी का ख्याल और उसके भरावदार नितंब और बड़ी-बड़ी चूचियों दृश्य को चलित कर रहे थे। जिसकी कल्पना मन में होते ही उसकी जांघों के बीच अजीब सी हलचल होने लग रही थी। उस लड़के की बात जिस ने यह कहा था कि तेरी मामी के खूबसूरत बदन और उसकी बड़ी बड़ी चूचियां और बड़ी बड़ी गांड के बारे में सोच कर बहुत बार मुठ मारा हूं,,,, उस बात को याद करके आज पहली बार उसे अपने लंड में तनाव महसूस हो रहा था। वैसे तो सुबह सुबह जब उसकी नींद खुलती थी तो उसका लंड हमेशा खड़ा ही रहता था लेकिन उस और उसका ध्यान कभी भी नहीं जाता था।
 
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सूरज को यह सब बातें बहुत ही अजीब लग रही थी और खराब भी लेकिन ना जाने उसका मन के कोने में यह सब बातें ऊसे आनंद भी दे रही थी। सूरज कभी भी नहीं सोचा था कि वह लड़के उसकी मामी के बारे में भी ऐसी ही ख्याल रखते हैं और गंदी बातें सोचते हैं। और ना ही कभी सूरज अपनी मामी के बारे में गंदी बातें सुनना पसंद करता था इसलिए तो वह उस लड़के के मुंह से अपनी मामी के बारे में गंदी बात सुनते ही वह उससे भिड़ गया और हाथापाई पर उतर आया।
बार-बार सूरज का मन विचलित हुआ जा रहा था बार-बार उसका ध्यान उसकी मामी के भरावदार अंगो पर चले जा रहे थे ।बार बार उसकी कल्पना मैं उसे उसकी मामी के बदन का ही ख्याल आ रहा था। जिससे उसके बदन में का जीवन प्रकार की सुख की अनुभूति हो रही थी रह-रहकर उसकी सांसे भारी हो जा रही थी। कसरत करने में उसका मन जरा भी नहीं लग रहा था। सूरज का कसरती बदन बहुत ही गठीला था अगर इस अवस्था में कोई लड़की या औरत उसे देख ले तो सच में उसकी दीवानी हो जाये। लेकिन बिना कपड़ों के सूरज को आज तक किसी लड़की या किसी औरत में नहीं देख पाई थी। यहां तक कि उसकी मामी भी नहीं देख पाई थी।
क्योंकि जब से वह अपने हाथों से ही अपना सारा काम करने लगा था तब से बिना कपड़ों के उसे मंगल भी नहीं देखी थी हां कभी-कभार उसे इस का मौका जरूर मिल गया था जब वह दरवाजा खोल कर कसरत करता था और उसे बुलाने मंगल अचानक पहुंच जाती थी लेकिन कभी भी मंगल आपके मन में भी सूरज के बदन को लेकर के कोई हलचल नहीं हुई थी।
लेकिन आज सूरज को मंगल के बदन को लेकर के एक अजीब प्रकार की हलचल मची हुई थी। इस हलचल का सार सूरज को ठीक तरह से समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसके बदन में इस तरह की गुदगुदी क्यों हो रही है। वह बार-बार अपनी मामी पर से अपना ध्यान हटाने की कोशिश करता और कसरत करने में मरना चाहता लेकिन बार-बार उसका मन भटक जा रहा था। और भटकता भी क्यों नहीं आखिर अच्छे-अच्छो का मन मंगल को देखकर भटक जा रहा था और यह सूरज तो अभी जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था।
इस तरह के कामुक ख्याल उसके बदन में अजीब सी हलचल पैदा करते हुए उसके लंड के तनाव को पूरी तरह से बढ़ा चुका था। उसके लंगोट में तंबू सा बन चुका था। उसकी नजर अपने ही लंगोट में इस तरह के बने तंबू को देख कर चौधिया गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार यह सब हो क्या रहा है। इससे पहले उसने कभी भी अपने लंगोट में इस तरह के तूफान को आता नहीं देखा था। सूरज भी इतना ज्यादा शर्मिला था कि उसने आज तक खुद के खड़े लंड को नहीं देखा था। उसे इस बात का ज्ञान बिल्कुल भी नहीं था कि अगर एक लंड पूरी तरह से खड़ा होता है तो कैसा दिखता है और बदन में कैसी हलचल होती है। अपने लंगोट में बने तंबू को देखकर उसका बदन अजीब सी कपकपी महसूस कर रहा था। उसकी दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी उसकी सांसे भारी हो चली थी। उसे इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वह अपनी लंगोट को नीचे सरका कर अपने टनटनाए हुए लंड का दीदार कर सके उसे जी भर कर देख सके और उसे अपने हाथ में अपनी मुट्ठी में लेकर के सहला सके।
क्योंकि मंगल के संस्कार सूरज में उतर आए थे इसलिए सूरज के संस्कार इस बात की गवाही नहीं दे रहे थे कि वह अपनी लंगोट को नीचे सरका कर अपने खड़े लंड का दीदार कर सकें। कमरे में वह कसरत करने के लिए रूका था लेकिन उसके सामने अजीबोगरीब समस्या आन पड़ी थी। उसे ऐसी हालत में, इस तरह की व्यवस्था में क्या करना है कैसे करना है इसका बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था। उन लड़कों की उम्र का हो करके भी सूरज उन लड़कों के चुदाई ज्ञान के मुकाबले बिल्कुल ही अज्ञान था। सूरज अपने कमरे में खड़े होकर के एकटक अपने लंगोट में बने तंबू को देखे जा रहा था। उसका मन हड़बड़ा भी रहा था कि कैसे वह अपने लंगोट की स्थिति को पहले की तरह सामान्य कर दे। लेकिन उस तूफान को थामने का शांत करने का सूरज के पास कोई भी हुनर नहीं था इसलिए वह उत्सुकता वश बस अपने लंगोट में बने तंबू को ही देखे जा रहा था।
और दूसरी तरफ मंगल सब्जी लेकर अपने घर पर पहुंच चुकी थी वह मुख्य दरवाजे को खोलकर कमरे में प्रवेश कर चुकी थी वह जानती थी कि इस समय से तुम अपने कमरे में कसरत कर रहा होगा वह दरवाजे की कड़ी बजा कर वह उसे परेशान नहीं करना चाहती थी।
 
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मंगल घर में प्रवेश कर चुकी थी। उसके हाथ में सब्जियों से भरा थैला था वह जिसमें था बैंगन जो कि वह किसी का भी पसंदीदा ना होने के बावजूद और मंगल के ना चाहते हुए भी मंजू की वजह से उसके मन में एक अजीब सी कामना जाग गई थी, और इसी कामना के चलते ना चाहते हुए भी मंगल को भी बड़े-बड़े और लंबे बेगन को खरीदना पड़ा। बैगन को लेकर के मंगल के मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी। उसने आज तक बेगन कि इस तरह की उपयोगिता के बारे में कभी न सुनी थी और ना देखी थी। मंजू के मुंह से बेगन की औरतों के लिए ऐसी फायदेमंद उपयोगिता को सुनकर मंगल पूरी तरह से दंग हो गई थी, और ना चाहते हुए भी उसने बेगन को खरीद ली थी वह सब्जी के ठेले को लेकर के सीधे रसोई घर में गई और उसे कपाट खोल कर जल्दी-जल्दी अंदर रखने लगी और बेगन को उसने सब्जियों से सबसे नीचे ढंककर रखी ताकि कोई देख ना ले। क्योंकि सबको पता था कि घर में बैगन कोई भी पसंद नहीं करता था। मंगल जल्दी-जल्दी हड़बड़ाहट में एक बैगन नीचे ही छोड़ दी जोकि कपाट के नीचे की तरफ पड़ा हुआ था, ओर वह जल्दी से रसोई घर से बाहर आ गई। बाहर आते ही देखा तो समय कुछ ज्यादा हो चुका था क्योंकि इतने समय से पहले सूरज कसरत कर कर अपने कमरे से बाहर आ जाया करता था और थोड़ी बहुत काम में मंगल का हाथ बटाया करता था। इसलिए उसे नीचे ना पा करके मंगल सूरज के कमरे की तरफ आगे बढ़ने लगी वह अपने कदम सूरज के कमरे की तरफ बढ़ा तो जरूर रही थी लेकिन बेगन को लेकर के उसके मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी,,, जिसकी वजह से उसकी बुर से बार बार रीसाव हो रहा था और उसके चलते उसकी पैंटी गीली हो चुकी थी जो कि उसे साफ-साफ महसूस हो रही थी। मंगल काफी अरसे से बहुत प्यासी थी इसलिए जरा सा भी ऊन्मादक माहौल होते ही या ख्यालों में उन्माद जगते ही उसकी पेंटी गीली होने लगती थी।
पैंटी में फैल रही गीलेपन की वजह से मंगल का हाथ बार-बार जांगो के बीच पैंटी को एडजस्ट करने के लिए पहुंच जा रहा था। जो कि मंगल की यह अदा बड़े ही कामोत्तेजक लग रही थी। अगर कोई इस नजारे को देख कर ले तो उसकी हालत अपने आप खराब हो जाए वह तो सोच-सोच कर ही अपने लंड से पानी छोड़ दे की मंगल अपनी नाजुक उंगलियों से अपने कौन से नाजुक अंग को बार बार साड़ी के उपर से छु रही है। वैसे भी मंगल की हर एक अदा बड़ी ही कामोत्तेजक नजर आती थी यहां तक कि उसका सांस लेना भी लोगों के सांस ऊपर नीचे कर देता था। धीरे-धीरे मंगल सूरज के कमरे की तरफ बढ़ रही थी और सूरज कमरे के अंदर अपने टनटनाए हुए लंड को लेकर के बड़ा ही उत्सुक और चिंतित भी लग रहा था। उसका लंड उसकी लंगोट के अंदर अभी भी पूरी तरह से टनटना कर खड़ा था जो की लंगोट के आगे वाले भाग को किसी तंबू की तरह नुकीला करके अपनी मजबूत ताकत का प्रदर्शन कर रहा था। सूरज के हाथों में वजनदार गोला था जिसे वह बड़े आराम से ऊपर नीचे करते हुए कसरत कर रहा था लेकिन कसरत करते हुए भी बार बार उसकी नजर लंगोट में तो नहीं तंबू पर ही टिकी हुई थी जिससे उसका मन बार बार भटक जा रहा था। उसका बदन पूरी तरह से पसीने से तरबतर हो चुका था। लंगोट में बने तंबू को देखते हुए बार-बार उसे उसकी मामी के भरावदार बदन का ख्याल आ रहा था,,,, बार-बार उसकी आंखों के सामने मंगल की बड़ी बड़ी चूचियां और उसकी बड़ी बड़ी गांड और उसका गोरा बदन तैर जा रहा था। जिसकी वजह से उसके पूरे बदन में उत्तेजना का प्रसार बड़ी तेजी से हो रहा था उसकी सांसे गहरी गहरी और लंबी चल रही थी। आज पहली बार उसे इस तरह की अजीब हालात का सामना करना पड़ रहा था ।कमरे में अकेला होने के बावजूद भी सूरज की इतनी भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह खुद की चलती को लंगोट खोल कर अपने खड़े लंड को देख सके या युं कह लो इस हालात में उसे लंगोट खोल के खुद के खड़े लंड को देखने मे उसकी तहजीब और संस्कार रोक रहे थे।
सूरज काम उत्तेजना के मारे बुरा हाल था लेकिन वह इस उत्तेजना के सार को समझ नहीं पा रहा था। आकर्षण और उत्तेजना की प्रति वह बिल्कुल ही अज्ञान था। आकर्षण और आकर्षण के चलते बदन में फेल रहे कामोत्तेजना का अनुभव वह अपने बदन में पहली बार महसूस कर रहा था।
ऐसी ही कामोतेजना का अनुभव अगर कोई दूसरा लड़का करता है तो वह कब का ही मुठ मारकर अपने आप को और अपने खड़े लंड को शांत कर चुका होता। लेकिन सूरज दूसरे लड़को से बिल्कुल अलग था उसे ना तो उत्तेजना का मतलब पता था ना ही आकर्षण से अभी तक पाला ही पड़ा था इसलिए उत्तेजना के उन्माद में बहकर मुठ मारने की कला से अभी वह कोसों दूर था। इसलिए तो वह आज इस अवस्था में बुरी तरह से तड़प रहा था उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें कि उसकी लंगोट में आया तुफान शांत हो जाए। वह उसी तरह से बेईमान गोला को हाथों में लिए ऊपर नीचे करते हुए कसरत करने की कोशिश कर रहा था। और दूसरी तरफ अपने बदन में भी कामोतेजना कि हम चल दिए हुए मंगल बैगन के बारे में सोचते हुए सूरज के कमरे के बिल्कुल करीब पहुंच चुकी थी । वह दरवाजे की तरफ कदम बढ़ा ही रही थी कि तभी हल्की सी खुली खिड़की में से कमरे के अंदर खड़ा सूरज नजर आ गया। मंगल उत्सुकतावश खिड़की के पास खड़ी होकर की हल्कि सी खुली खिड़की में से अंदर की तरफ झांकने लगी,, मंगल की नजर उसके गठीले बदन पर फीर रही थी। एकदम गठीला और कसरती बदन सूरज की खूबसूरती को और ज्यादा निखारता था। मंगल की नजर सूरज के गठीले बदन के दर्शन करके चौंधिया सी गई थी। मंगल को तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसका भांजा इतने आकर्षक और गठीले बदन का मालिक है। मंगल अपने भांजे के बदन को देखकर आकर्षीत हुए जा रही थी। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आज वह अपनी भांजे के ही तरफ इतना ज्यादा क्यों आकर्षित हुए जा रही है। मंगल खिड़की के बाहर खड़ी अंदर के दृश्य को निहार रही थी। सूरज के हाथों में वजनदार गोले को देखकर और जिस तरह से वह बड़े ही आराम से गोले को ऊपर नीचे करते हुए कसरत कर रहा था। ऊसे देखकर मंगल का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया। मंगल की नजरें सूरज के बदन पर फिसलते हुए धीरे धीरे नीचे की तरफ जा रही थी। जैसे ही मंगल की नजर कमर के नीचे पहुंची तो वहां का नजारा देखकर मंगल सन्न रह गई
 
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अब तक मंगल की नजर सूरज के गठीले बदन के ऊपरी हिस्से पर ही फिर रही थी। अपने भांजे के मजबूत और कसरती बदन को देखकर मंगल रोमांचित हुए जा रही थीे । आज पहली बार उसे अपने भांजे का बदन देखकर एक अजीब सा रोमांच महसूस हो रहा था जिसके बारे में सोच कर वह खुद हैरान थी। ऐसा उसके साथ पहले कभी नहीं हुआ था।
खिड़की के बाहर खड़ी होकर के मंगल अंदर के दृश्य को बड़े ही रोमांच के साथ निहार रही थी अंदर का एक एक दृश्य उसे कामुकता का एहसास करा रहा था। लेकिन जैसे ही उसकी नजर सूरज के कमर के नीचे वाले हिस्से पर गई तो वहां का नजारा देखकर वह दंग रह गई उसके बदन में एकाएक उत्तेजना का संचार बड़ी तेजी से होने लगा। उसके मुंह से दबी आवाज में सिसकारी के साथ बस इतना ही निकल पाया।

बाप रे बाप,,,,,,,,,

( मंगल के मुंह से यह अचानक निकला था उसे खुद समझ में नहीं आया कि उसके मुंह से आखिर ऐसा क्यों निकल गया यह सब असर उस बैगन का था जिसके बारे में पूरी तरह से विस्तार में मंजू में मांग को समझाई थी और उसे लंबे बेगन के ही चलते उसके बदन में एक नई कामुकता का एहसास जगा था।
अपने भांजे के लंगोट में बने लंबे तंबू को देखकर उसकी जांघों के बीच अजीब सी सुरसुराहट होने लगी। सूरज का लंगोट अच्छा खासा तनकर तंबू बन चुका था।
जिस तरह से सूरज का लंगोट खड़े लंड की वजह से तन कर सामने की ओर तंबू बनाए हुए था उस लंबे तंबू को देखकर मंगल के लिए यह अंदाजा लगा पाना बड़ा मुश्किल हो रहा था कि आखिरकार सूरज का लंड कितना बड़ा है। मंगल की नजर पूरी तरह से उसके भांजे की लंगोट के ऊपर मानो जम सी गई थी। सूरज था कि बस आश्चर्य के साथ अपने लंगोट में बने तंबू को देखते हुए बेमन से उसे गोले को ऊठाए जा रहा था।
अपने भांजे की वर्तमान स्थिति को देखकर मंगल इतना तो समझ ही गई थी कि उसका भांजा अपने बदन में उत्तेजना का अनुभव कर रहा है तभी तो उसका लंड भी इस कदर टंनटनाकर खड़ा था।
सूरज की स्थिति से वह अपने पति की स्थिति का अनुमान लगाते हुए एक अजीब सी उलझन महसूस कर रही थी क्योंकि उसे इतना जरूर मालूम था कि,,, शुरू के दिनों में जब भी कभी उत्तेजित अवस्था में बिलास उससे प्यार करता था तब,,,,, मंगल को अच्छी तरह से याद है कि उस समय उत्तेजना की वजह से जब भी बिलास के लंड में तनाव आता था तो उसका चड्डी इस हद तक तंबू नहीं बना पाता था। बल्कि लंड वाले स्थान पर बस हल्का सा उभरा हुआ नजर आता था लेकिन मंगल इस समय अपने भांजे की लंगोट के अंदर जिस नजारे को देख रही है वह काफी हैरान करने वाला था। सूरज के लंगोट में लंड वाले स्थान पर हल्का सा ऊभरा हुआ नहीं बल्की ऐसा मालूम पड़ रहा था कि उसने लंगोट में किसी मोटे लकड़े को ठुंश रखा है, तभी तो मंगल की भी हालत सिर्फ देखकर खराब हुए जा रही थी कि अगर हल्के से उभरे हुए लंगोट के अंदर तगड़ा हथियार हो सकता है तो यहां तो पूरी की पूरी लंगोट तनकर तंबू हो चुकी है तो इसके अंदर कितना तगड़ा और मजबूत हथियार होगा। यह सोचकर ही मंगल की बुर में गुदगुदी सी लगने लगी और उसकी पैंटी कुछ ज्यादा ही गीली होने लगी।
मंगल आकर्षण के चलते यह भी भूल गई कि वह सूरज को रसोई में मदद करने के लिए बुलाने आई थी लेकिन यहां आकर के सूरज की हालत को देखकर वह सब कुछ भूल गई। सूरज की गठीले बदन और लंगोट में बने तंबू का आकर्षण का खुमार पूरी तरह से मंगल की आंखों में उतर आया था। मंगल ललचाई आंखों से अपने भांजे को ही निहार रही थी। मंगल जीस तरह से ऊन्माद और कामोतेजना का अनुभव करते हुए अपने भांजे को ललचाई आंखों से देख रही थी यह उसकी प्रकृति के बिल्कुल विरुद्ध था। लेकिन इस समय वह सब कुछ भूल चुकी थी खिड़की के बाहर खड़ी होकर के वह अपने बदन में चुदास पन का बेहद तीव्र गति से अनुभव कर रही थी।
 
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मंगल आकर्षण के चलते यह भी भूल गई कि वह को रसोई में मदद करने के लिए बुलाने आई थी लेकिन यहां आकर के सूरज की हालत को देखकर वह सब कुछ भूल गई। सूरज की गठीले बदन और लंगोट में बने तंबू का आकर्षण का खुमार पूरी तरह से मंगल की आंखों में उतर आया था। मंगल ललचाई आंखों से अपने भांजे को ही निहार रही थी। मंगल जीस तरह से ऊन्माद और कामोतेजना का अनुभव करते हुए अपने भांजे को ललचाई आंखों से देख रही थी यह उसकी प्रकृति के बिल्कुल विरुद्ध था। लेकिन इस समय वह सब कुछ भूल चुकी थी खिड़की के बाहर खड़ी होकर के वह अपने बदन में चुदास पन का बेहद तीव्र गति से अनुभव कर रही थी।
उसकी नस-नस में लहू की जगह उन्माद और कामोत्तेजना का संचार हो रहा था। मंगल आज बिल्कुल अलग और अजीब किस्म के सुखद अहसास का अनुभव कर रही थी। जिसके बारे में उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
सूरज बार-बार अपने लंगोट में तने हुए तंबू को देख रहा था और गोले को ऊपर नीचे करते हुए कसरत भी किए जा रहा था उसका पूरा बदन पसीने से तरबतर हो चुका था सांसो की गति तेज चल रही थी। जिसकी वजह से उसका चौड़ा सीना बड़े ही उन मादक तरीके से सांसो के साथ साथ ऊपर नीचे हो रहा था जिसे देखकर मंगल की बुर गिली हुई जा रही थी।
सूरज कसरत करते हुए एकदम गोले को नीचे रख दिया,,,, और बड़ी ही प्यारी नजर से अपने लंगोट की तरफ देखने लगा यह देख कर मंगल की भी उत्सुकता बढ़ने लगी उसके मन में एक अजीब सी चाहत ने जन्म लेना शुरु कर दिया था। मंगल अपने भांजे के तने हुए लंड को देखना चाहती थी। वह देखना चाहती थी कि उसके भांजे का खड़ा लंड कैसा दिखता है कितना लंबा है कितना मोटा है उसका सुपाड़ा किस आकार का है यह सब बातें जानने और देखने की उत्सुकता ने मंगल को एकदम से चुदवासी बना दिया था। उसकी बुर से काम रस की बूंदे धीरे-धीरे टपक रही थी जिसकी वजह से उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी वह बार-बार उसी स्थान पर हाथ लगाकर अपनी बुर की स्थिति का जायजा लें ले रही थी। काम रस की बूंदों ने जिस तरह से मंगल की पैंटी को गीली कर दी थी अगर किसी और की नजर उसकी पैंटी वाले हिस्से पर पड़े तो वह यही समझेगा कि मंगल पेशाब कर दि है।

मंगल की कामोत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी और कमरे के अंदर एक हाथ में गोले लिए सूरज कसरत करते हुए अजीबो किस्म की कशमकश में लगा हुआ था। बार-बार उसका हाथ तंबू के करीब आ कर के फिर पीछे हट जा रहा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। और सूरज की यही कश्मकश को देखकर मंगल की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी उसे लगने लगा था कि सूरज जरूर कुछ करेगा। मंगल की दिली ख्वाहिश यही थी कि सूरज अपने हाथों से अपने लंगोट को खोल का सरका कर अपने खड़े लंड को नंगा कर दे ताकि वह अपने भांजे के लंड को जी भर कर देख सके। मंगल के साथ-साथ सूरज की भी उत्सुकता अपने लंड को लेकर के बढ़ती जा रही थी क्योंकि उसने भी आज तक अपने खड़े लंड का दीदार नहीं किया था।
सिर्फ पेशाब करते समय उसे अपने हाथों में ले करके उसकी गर्मी को महसूस किया था लेकिन बस औपचारिकतावश इससे आगे सूरज को कुछ भी महसूस हुआ और ना ही कुछ अनुभव ही मिला। जिस तरह की कशमकश कमरे के अंदर थी उससे भी ज्यादा खत्म कर कमरे के बाहर खिड़की पर थी क्योंकि सूरज तो नादान था नासमझ था। कामावेश के अध्याय से बिल्कुल भी अनजान वह अपने अंदर मच रही खलबली को कैसे शांत करें इसमें लगा हुआ था लेकिन बाहर खड़ी मंगल तो अनुभवी थी। वह अच्छी तरह से जानती थी कि कमरे के अंदर जिस तरह की प्रकृति से उसका भांजा गुजर रहा है वह कामातुर हो चुका है उत्तेजना की पराकाष्ठा उसके बदन में गुदगुदी मचा रही है। वह पुरी तरह से चुदवासा हो चुका है ।
सूरज बार बार अपना हाथ लंगोट पर लाकर हटा दे रहा था उसकी स्थिति को मंगल अच्छी तरह से भांप चुकी थी। वह अच्छी तरह से समझ चुकी थी कि काम के ज्ञान में जिस तरह से वहां इस उम्र में आकर भी अज्ञानी है उसी तरह सूरज भी जवानी की दहलीज पर कदम रखते हुए इस अध्याय में अभी बिल्कुल अनजान है। दोनों की स्थिति को देखकर साफ-साफ लग रहा था कि दोनों एक ही नाव में सवार है। काम नाव की पतवार दोनों में से किसी के भी हाथ में नहीं थी । यह नाव अपने आप ही उत्तेजना के समंदर में गोते लगाते हुए किस छोर पर ले जाएगी दोनों इस बात से बिल्कुल भी अनजान थे।
बाहर प्यासी मंगल उत्सुक थी अपने भांजे के खड़े लंड का दीदार करने के लिए और कमरे के अंदर सूरज को आगे क्या करना है इस बात से बिल्कुल भी बेखबर था लेकिन फिर भी उसकी भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी बार-बार उसका हाथ अंडरवियर तक आ करके वापिस चला जा रहा था। लंड के सुपाड़े वाला स्थान पूरी तरह से भीग चुका था। वह भी अपने लंगोट पर चिपचिपा सा महसूस कर रहा था। मंगल की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसका भी हाथ बार-बार जांघो के बीच पहुंचा रहा था। वह अपनी हथेली से बुर वाले स्थान को दबा दे रही थी जिससे उसकी कामाग्नि और ज्यादा बढ़ जा रही थी। मंगल आज खुद अपने स्थिति को ले करके बहुत ज्यादा परेशान हो चुकी थी क्योंकि उसे आज तक ऐसी स्थिति का सामना कभी नहीं करना पड़ा था। इस समय जिस प्रकार की उत्तेजना और चुदासपन का अनुभव अपने बदन में कर रही थी ऐसा अनुभव ऊसे पहले कभी नहीं हुआ था ।वह पूरी तरह से चुदवासी हो चुकी थी उसकी गीली और प्यासी बुर में खलबली सी मची हुई थी।
सूरज के मन में ना जाने क्या हुआ कि उसने दूसरे गोले को भी नीचे रख दिया। उसका बदन पूरी तरह से पसीने से तरबतर हो चुका था सांसो की गति बड़ी तेज चल रही थी। उसकी मामी को लेकर उसके मन में द्वंद युद्ध चल रहा था। उसके लंड के खड़े होने का एक ही कारण था कि बार-बार उसकी आंखों के सामने उसकी मामी के गोरे बदन और उसकी बड़ी बड़ी चूचियां और भरावदार गांड नजर आ जा रही थी जिसकी वजह से ना चाहते हुए भी उसका लंट टनटना कर खड़ा हो चुका था । ऐसे हालात की वजह से उसकी हालत खराब होते जा रहे थे उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह अपनी मामी के बारे में इस तरह की गंदे ख्याल अपने दिमाग में जाएगा लेकिन उसके दोस्तों की बातों ने उसका मन पूरी तरह से बदल दिया था वह ना चाहते हुए भी अपनी मामी के अंगों के बारे में सोचने लगा था। यह मंगल के खूबसूरत बदन और उसके उभार दार और कामुकता से भरे हुए कटावदार अंगों का ही कमाल था कि सूरज का लंड ढीला पड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था ।
बाहर मंगल जो रह रहकर अपनी जांघो के बीच हाथ लगा ले रही थी अब वह कामोत्तेजना के असर में पूरी तरह से बहकर हल्के हल्के से अपने बुर को साड़ी के ऊपर से ही लना शुरु कर दी थी,, जिसकी वजह से उसकी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी,

मंगल का दिल जोरो से धड़क रहा था उसकी सांसे भारी हो चली थी। सांसों के बहाव में उसकी बड़ी बड़ी चूचियां भी बड़े ही उत्तेजक तरीके से ऊपर नीचे हो रही थी। मंगल को इंतजार था सूरज के लंड के देखने के लिए जो कि उसकी तरसीे निगाहें सूरज पर ही टिकी हुई थी वह चाहती थी कि सूरज जल्द से जल्द अपने लंड का दीदार कराएं लेकिन सुबह में था कि अपने अंदर लंगोट को नीचे उतारने में भी घबरा रहा था उसके अंदर अजीब सी घबराहट हो रही थी। वह बार-बार अपनी मामी का ख्याल करके उत्तेजित हुए जा रहा था। यही उत्तेजना के चलते उससे रहा नहीं गया और वह अपने दोनों हाथ को अपने लंगोट के अगल-बगल रखकर,
लंगोट को सरका कर अंदर का नजारा देखने के लिए तैयार हो चुका था। सूरज की इस हरकत ने मंगल के अंदर गुदगुदी सी फैलाने लगा। उसके बदन में उत्तेजना से कम चार बड़ी तेजी से हो रहा था वह सबसे ज्यादा जांघों के बीच बुर के अंदर चुनचुनाहट मची हुई थी जिसे वह अपनी हथेली से मसल रही थी।
सूरज का गला उत्तेजना के मारे सुख रहा था। और वह धीरे-धीरे अपने लंगोट को खोलकर नीचे करने लगा,,,, यह देखकर मंगल के मुंह से गरम आहे निकलने लगी।
तभी सूरज ने अपने लंगोट को खोलकर एक झटके से जांगो तक सरका दिया। लंगोट खुलते ही जो नजारा सामने आया उसे देखकर सूरज आश्चर्यचकित हो गया उसके मन में घबराहट सी होने लगी,,,,,, उसे कुछ समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा है लेकिन खिड़की के बाहर खड़ी मंगल सब कुछ समझ गई थी कि क्या हो रहा है। उसका मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह हकीकत देख रही है या सपना। इतना मोटा तगड़ा और लंबा लंड भी हो सकता है वह कभी कल्पना भी नहीं कर पाई थी क्योंकि उसने आज तक बिलास के ही लंड को देखी थी और उसी से काम चला रही थी जोकि की, सूरज के लंड से आधा ही था और पूरी तरह से टनटना कर खड़ा था। उसके लंड में जरा सा भी लचक नहीं था जरा सा भी ढीला पन नजर नहीं आ रहा था। उसका सुपाड़ा ऊपर छत की तरफ मुंह उठाए खड़ा था।
यह नजारा देखकर उत्तेजना के मारे मंगल भी पसीने से तरबतर हो चुकी थी। उसकी हथेली जोर-जोर से बुर पर चल रही थी,,,, उसकी पैंटी लगातार काम रस के रिसाव की वजह से गीली होती जा रही थी।
सूरज को कुछ समझ में नहीं आ रहा था वह कांपती उंगलियों को खड़े लंड की तरफ बढ़ाया और उस पर हल्कैसे रखा ही था कि उसका कड़कपन और गर्माहट महसूस करके वह एक दम से चौंक गया और झट से अपना हाथ हटाकर के लंगोट को फिर से पहन लिया,,,,, और दो कदम पीछे जाकर के बिस्तर पर बैठकर हांफनें लगा,,,,,
बाहर मंगल जी भरकर इस नजारे को देखने से पहले ही परदा पड़ चुका था उसके लिए अब खिड़की पर ज्यादा देर तक खड़े रहना उचित नहीं था इसलिए वह अपनी प्यास और ज्यादा बढ़ा कर वापस लौट गई।
 
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मंगल के लिए अब खिड़की पर ज्यादा देर तक खड़े रहना उचित नहीं था। क्योंकि ऐसे में सूरज की नजर उस पर पड़ सकती थी और वह नहीं चाहती थी कि सूरज उसे उसको इस हालत में उसे देखते हुए देखे इसलिए धीरे से रसोई घर में आ गई । रसोईघर में आते ही वह राहत की सांस ली,,,,, लेकिन अभी भी उसकी सांसे भारी चल रही थी। वह किचन के खंबे को पकड़कर जोर-जोर से सांसे लेते हुए अभी अभी जो उसने अपने भांजे के कमरे में देखकर आई उस बारे में सोचने लगी।
उसने जो देखी थी उसे देखते हुए भी,,, उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था। भरोसा होता भी तो कैसे उसने आज तक ऐसा नजारा ना देखी थी ना देखने की उसे उम्मीद थी वह तो अनजाने में ही वह अपने भांजे को उसके कमरे के बाहर से वह अंदर का गरम नजारा देख कर गर्म हो गई। कमरे के नजारे में उसके बदन में हलचल सी मचा रखी थी बार-बार उसकी आंखों के सामने उसके भांजे का गठीला कसरती बदन और उस के लंगोट में बना हुआ तंबू तैर जा रहा था।
मंगल की हालत उस बारे में सोच-सोच कर ही खराब हुए जा रही थी उसे अपनी जांघों के बीच रिसाव सा बड़ा साफ साफ महसुस हो रहा था । मंगल को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसे ऐसा क्यों हो रहा है ।आज से पहले उसने कभी भी ऐसी स्थिति का सामना नहीं की थी। उत्तेजना के मारे उसके खुद का चेहरा सुर्ख लाल हो गया था।
बार बार मंगल को उसके बेटे का बड़ा तंबू ही याद आ रहा था। वह लंगोट में बने तंबू की तुलना बाजार से लाए हुए बेगन से मन ही मन कर रही थी। उसे यह भी अच्छी तरह से मालूम था की बेगन का आकार और उसका साईज ज्यादा बड़ा था लगभग वह अपने पति के लंड से डबल साइज़ का और डबल मोटाई का ली थी। लेकिन जब उसने अपने भांजे के लंगोट में तना हुआ वह हथियार देखी तो मन ही मन उसके आकार के बारे में कल्पना करके ही वह पूरी तरह से कांप गई,,,,, उसकी कल्पना उस क्षण हकीकत में बदल गई जब सूरज ने अपने लंगोट को नीचे तक सरकाया,,,,, और जैसे ही उसने अपने लंगोट को नीचे तक लाया उसका तो बड़ा मोटा और लंबा एकदम टनटना कर खड़ा लंड नजर आने लगा जो की मंगल के वजूद को अंदर तक हिला दिया था। मंगल तो बस देखती ही रह गई उसे तो कुछ समझ में नहीं आया कि आखिरकार यह हो क्या रहा है। वह मंत्रमुग्ध सी बस एक टक अपने भांजे के खड़े लंड को देखते ही रह गई। सूरज भीे आश्चर्यचकित हो करके अपने खड़े लंड को देख रहा था,,,,, जिस तरह से सूरज आश्चर्यचकित और उत्सुक हो करके अपने खड़े लंड को देख रहा था,,,, ऊसै देखकर मंगल को भी आश्चर्य हुआ था। लेकिन जिस हालात से वह उस समय गुजर रही थी उस बारे में उसे सोचने का बिल्कुल भी मौका ही नहीं मिला था। कुछ ही सेकंड तक उसे अपने भांजे का लंट देखने का मौका मिला था। वह तो अभी जी भर के अपने भांजे के लंड का दीदार भी नहीं कर पाई थी कि सूरज ने तुरंत अपने लंगोट को वापस पहन लिया।

मंगल को यह देखकर बहुत हैरानी हो रही थी कि उसके भांजे के लंड के साइज के बराबर ही उसने बड़े बड़े बेगन लेकर आई थी। इसलिए तो वह क्षण उसके दिमाग से निकल नहीं पा रहा था । बार-बार मंगल का हाथ उसकी जांघों के बीच उसकी बुर को टटोलने के लिए चले जा रहा था,,,,, जो की पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। मंगल की हालत पूरी तरह से खराब थी उसकी उत्तेजना का कोई ठिकाना ना था और उसने आज तक इस तरह की उत्तेजना अपने बदन में कभी महसूस नहीं की थी हां एसी उत्तेजना उसे तभी महसूस होती थी जब वह अपने पति के साथ बिस्तर पर होती थी लेकिन जिस तरह से,,,, वह अपने बिस्तर पर पति के होने के बावजूद भी प्यासी रह जाती थी इस समय भी उसका हाल ऐसा ही था उसकी उत्तेजना का कोई भी तोड़ नहीं था। सूरज का टनटनाया हुआ लंड मंगल को बुरी तरह से परेशान किए हुए था। अपने हाथों से ही अपनी प्यास बुझाने का अद्भुत
हुनर मंगल के हाथों में नहीं था या यूं कह सकते थे कि उसके संस्कार उसे हुनर को सीखने में अवरोध पैदा करते थे।
रसोई घर में होने के बावजूद भी खिड़की के पास से पैदा हुई उसकी उत्तेजना अभी तक शात नहीं हुई थी जिसकी वजह से उसका पूरा बदन पसीना पसीना हो गया था ।उसका गला सूख रहा था उससे जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो वह हाथ से बने पंंखे की ठंडी हवा जब उसके बदन को स्पर्श करने लगी तो उसे थोड़ी राहत महसूस हुई,,,,,, और वह मटकी में से ठंडे पानी निकाल कर पीने लगी।
थोड़ी देर बाद मंगल की स्थिति कुछ हद तक सामान्य होने लगी।,,,,,,

वह सब कुछ भूलकर रसोई में व्यस्त होने की पूरी कोशिश करने लगी लेकिन कुछ देर के लिए वह भूल भी जाती थी लेकिन फिर से उसका मन उसी घटना को याद करके फिर से बह़कने लगता था। वह सब कुछ भूल जाना चाहती थी इसलिए मन को थोड़ा कठोर करके वह रसोई का काम करने लगी।

दूसरी तरफ सूरज काफी परेशान था उसे भी मालूम था कि अब समय हो गया है रसोई घर में जाने का क्योंकि वह इस समय रसोई घर में जाकर अपनी मामी की मदद किया करता था। लेकिन उसकी अवस्था इस समय घर से बाहर निकलने की बिल्कुल भी नहीं थी क्योंकि ऐसे जाने पर उसे इस बात का डर था कि उसकी मामी की नजर उसके पजामे में बने तंबू पर जरूर जाएगी और अगर ऐसा हुआ तो वह क्या सोचेगी,,,,
यही सब सोचकर उसका मन और ज्यादा घबरा रहा था वह रसोईघर में जाना चाहता था अपनी मामी की मदद करना चाहता था लेकिन ऐसे हाल में वह घर से बाहर भी नहीं निकल सकता था। वह और घबराने लगा क्योंकि समय काफी हो चुका था और फिर डर था कि ऐसे में कहीं उसकी मामी कमरे में ही ना आ जाए।
रसोई घर में जाने की जल्दी और घबराहट की वजह से उसके लंड में आया हुआ तनाव धीरे-धीरे शांत होने लगा।
वह मन ही मन भगवान को धन्यवाद देने लगा और जल्दी से अपने कपड़े पहन कर के रसोई घर में आ गया। आते ही वह अपनी मामी से बोला जोंकि सब्जियां काट रही थी।

शमा मांगता हू मामी मुझे आज कसरत करने में देर हो गई,,,,,,
( सूरज की बातें सुनकर मंगल कुछ बोली नहीं लेकिन उसे यह जरूर पता था कि कसरत करने में नहीं शायद कुछ और करने में ऊसे देरी हो गई थी। कसरत की बात से एक बार फिर से मंगल को कमरे के अंदर का दृश्य याद आने लगा उसकी आंखों के सामने फिर से उसके लंगोट में बना तंबू नजर आने लगा। उस अलौकिक और उन्मादक छण को याद करके एक बार फिर से उसकी बुर उसकी पैंटी को गीली करने लगी । उससे कुछ भी बोला नहीं जा रहा था।
( अपनी मामी को शांत देखकर सूरज रसोई घर में प्रवेश करते हुए सीधे मटके के करीब गया और वह भी उसमें से पानी का गिलास भरकर पानी पीने लगा लेकिन तभी उसके हाथ से मटकी की ऊपर का बर्तन नीचे गिर गया,,,,, वह बर्तन को उठाने के लिए नीचे झुका तो उसकी नजर नीचे गिरे बेगन पर पड़ी और वह उसे उठा लिया जो कि एकदम ताजा मोटा और तगड़ा था बिल्कुल उसके लंड की तरह,,,,,,, बेगन को देख कर उसे आश्चर्य हुआ क्योंकि वह जानता था कि घर में बैगन कोई भी नहीं खाता था। वह पानी का ग्लास को वापस मटकी में रखकर ,,,,वह अपने हाथ में अभी भी उस मोटे तगड़े बेगन को लिया हुआ था इस बारे में मंगल को कुछ भी मालूम नहीं था वह तो उत्तेजित अवस्था में सब्जी काटने में ही व्यस्त थी। वह उस कामुक क्षणों को याद करते हुए सब्जियां काटे जा रही थी कि तभी उसकी आंखों के सामने सूरज ने उस मोटे तगड़े लंबे बैंगन को लाकर दिखाने लगा,,,,,,,, मंगल तो एक बैगन को देख कर एक दम से चौंक गई बैगन को सूरज ने अपने हाथों में पकड़ा हुआ था। मंगल की आंखों के सामने बार बार वही दृश्य नजर आ रहा था इस वजह से एक पल को तो उसे ऐसा लगने लगा कि सूरज खुद अपने मोटे लंड को अपने हाथ से पकड़ कर हिलाते हुए उसे दिखा रहा है।यह पल उसे इतना ज्यादा उत्तेजित कर देने वाला लगा कि कुछ सेकंड के लिए उसकी बुर उत्तेजित अवस्था में फुलने पिचकने लगी और उसमें से दो चार बूंद मदन रस की नीचे टपक पड़ी ।
सूरज तो उस बैगन को अपनी मामी को सिर्फ औपचारिक रुप से ही दिखा रहा था क्योंकि वह जानता था कि मैं कल घर में कोई खाता नहीं है तो बैगन किसने खरीद कर लाया। इसलिए वह अपनी मामी को बैगन दिखाते हुए बोल रहा था कि,,,,,

मामी यह बेगन घर में कैसे आया अपने घर में तो बेगन किसी को पसंद ही नहीं है।,,,,,,
( मंगल को अपने भांजे का यह सवाल का जवाब देना बड़ा ही मुश्किल लग रहा था ऐसा लग रहा है कि जैसे वह घर में बेगन लाकर कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दि हो,,,, उसे कोई भी जवाब सूझ नहीं रहा था आखिर वह अपने भांजे को क्या जवाब दें ईसी उधेड़बुन में लगी हुई थी। तभी वह हकलाते हुए बोली।)

कककककक,,,, कुछ,,,,, नही,,,,,,, बेटा मंडी में सब्जियां खरीद रही तो,,,,,,तो,,,, बेगन मुझे बहुत,,,,,, बहोत,,,,,, अच्छे और ताजे लगे,,,,, तो मैंने उसे भी खरीद ली,,,,,,,,,,


लेकिन मामी बैगन तो कोई खाता ही नहीं,,,,,,( सूरज कहते हुए बेगन को ऊपर नीचे करते हुए हीला रहा था। यह देख मंगल का गला सूखने लगा था क्योंकि जिस तरह से वह हिला रहा था,,,, ना जाने क्यों ऊसे ऐसा लग रहा था कि सूरज बेगन नहीं बल्कि अपना लंड उसे दिखाते हुए हिला रहा है ।
मंगल की बुर में अजीब सी हलचल मचने लगी थी । वह अपने बेटे से आंख मिलाने से कतरा रही थी। अपने भांजे के सवाल का जवाब वह फिर से हकलाकर देते हुए बोली।

अरे,,,, तू तो सवाल पर सवाल किए जा रहा है मेरी सहेली थी जो मंडी में मिल गई उसने मुझे बैगन बनाने का नया तरीका बताइ और यह भी बताई कि बड़ा ही स्वादिष्ट बनता है,,,,,, इसलिए बस ऐसे ही सब्जी करने के लिए ले ली,,,, अगर तुझे ऐतराज है तो रहने देती हूं,,,,,,,,


नहीं मामी मुझे कोई एतराज नहीं है मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था,,,,,,, ( इतना कहने के साथ वह फिर से कपाट के करीब गया और कपाट में उस बैगन को रख दिया,,,,,मामी आज मुझे देर हो गया ना इसलिए आपको सब्जी काटनीं पड़ रही है आप मुझे कोई और काम बताइए मैं कर दूंगा,,

सूरज अपनी मामी के करीब आकर बोला मंगल सब्जी काट रही थी लगभग वह सारी सब्जियां काट चुकी थी। वह कटी हुई सब्जी को एक तरफ रखते हुए बोली,,,,,



कोई बात नहीं सूरज मैं काम कर लूंगी,,,,, तुम जाओ जाकर आराम करो,,,,,,,

नहीं मामी मुझे कुछ तो काम बोलो करने के लिए मैं आपका हाथ बटाना चाहता हूं।।। मुझे भी अच्छा लगता है जब मैं आपका हाथ बटाता हूं तो,,,,,, वैसे भी आप अकेले काम कर कर के थक जाती हैं,,,,,

( सूरज की बात सुनकर मंगल मुस्कुराने लगीे और बोली,,,)

अच्छा ठीक है तू मेरा हाथ बट़ाना चाहता है तो,,,, एक काम कर जाकर उस डीब्बे में से आटा निकाल कर ले आ,,,,,,
( मंगल उंगली से निर्देश करते हुए सूरज से बोली लेकिन बोलते समय उसकी नजर से सूरज की जांघों के बीच चली गई जहां पर उसने उत्तेजित कर देने वाला लंबा सा तंबू देखी थी।
जिसे देखते ही उसके बदन में कामोतेजना की लहर फैल गई थी जिसका असर उसे अब भी अपने बदन में देखने को मिल रहा था। हालांकि इस समय तो सूरज की जांघों के बीच का वह उभार शांत था।लेकिन फिर भी ऊस जगह पर मंगल की नजर जैसे गई उसके बदन में एक बार फिर से उन्माद से भरी हुई हलचल होने लगी,,,,,,,, मंगल झट से अपनी नजरें घुमा ली,, सूरज अपनी मामी की बात सुनकर डीब्बे मै से आटा लेने के लिए गया। वह रसोई के नीचे बड़े अलमारी में रखे हुए डिब्बे को बाहर निकाल कर ऊसमे से आटा निकालने लगा,,,,, और मंगल आटा गूथने के लिए बर्तन किचन पर रखने लगी,,,,

बर्तन को किचन पर रखने की वजह से बार-बार मंगल की हाथों की चूड़ियां खनक रही थी जिस पर सूरज का ध्यान जाते ही वह आटा निकालते हुए हैं नजरें घुमा कर अपनी मामी को देखने लगा,,,,,, जैसे ही वह अपनी मामी की तरफ देखा उसकी नजर सीधे मंगल की बड़ी-बड़ी और भरावदार गांड पर गई,,,,, जो कि काम करने की वजह से बदन की हलन चलन उसके नितंबों में एक बड़े ही कामुक तरीके की थिरकन पैदा कर रही थी। जिससे उसकी बड़ी-बड़ी और नरम नरम लचीली गांड कद्दू की तरह हल्के हल्के ऊपर-नीचे हो करके एक अद्भुत उभार और थिरकन पैदा करते हुए माहौल को गर्म कर रही थी।
सूरज को तुरंत उसके दोस्तों की कही गई बात याद आने लगी जो कि उसकी मामी की बड़ी बड़ी गांड के बारे में ही कह रहे थे। मंगल अपनी साड़ी के किनारे को एक बाजू करके कमर में डाली हुई थी जिसकी वजह से वहां और भी ज्यादा खूबसूरत और कामुक लग रही थी। सूरज जो देखा तो देखता ही रह गया। वह ऐसा बिल्कुल भी नहीं करता लेकिन उसके दोस्तों की कही गई बात याद आते ही उसकी नजर उसकी मामी की खूबसूरत नितंबों से हट ही नहीं रही थी।
वह मंत्रमुग्ध सा अपनी मामी की खूबसूरत बदन और उसकी बड़ी बड़ी गांड को ही निहारने लगा,,,,,,, डिब्बे से आटा निकालना तो वह भूल ही चुका था। सूरज की जांघों के बीच उसके हथियार में जो की कुछ देर पहले ही शांत हुआ था एक बार फिर से सुरसुराहट होने लगी।
दूसरी तरफ मंगल अपने भांजे के लंबे तगड़े लंड को याद करके फिर से उत्तेजित होने लगी थी,,,, वह जानती थी कि उसका भांजा उसके ही पीछे बने बड़े अलमारी में से आटे का डिब्बा निकालकर उसमें से आटा निकाल रहा है ।लेकिन वह फिर भी उससे नजरें मिलाने में शर्मा रही थी अजीब सी उत्तेजना का अनुभव करते हुए मंगल का बदन कसमसा रहा था। फिर से उसकी बुर से नमकीन पानी का रिसाव होना शुरू हो गया था।
सूरज को आटा निकालने मे कुछ ज्यादा ही समय लग रहा था। इसलिए वह नजरें घुमा कर पीछे की तरफ देखीे तो वह सूरज को अपनी ही तरफ देखता हुआ पाई,,,,,,

लेकिन जैसे ही मंगल ने सूरज की नजरों के गौर की तो उसके बदन में हलचल सी मच गई क्योंकि उसके नजरों का धान सीधे ही उसकी बड़ी बड़ी गांड पर ही जा रहा था। मंगल के बदन में हलचल सी मच गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार सूरज वाकई में उसके नितंबों को ही देख रहा है या कुछ और,,,,,,, फिर से गौर करने पर वह अच्छी तरह से समझ गई कि सूरज उसके बड़े बड़े नितंबो को ही घूम रहा था। एक पल के लिए तो इस तरह से अपने भांजे को अपनी नितंबों को घूरता पाकर उसके बदन में प्रचंड उत्तेजना का वेग दौड़ने लगा,,,,, उत्तेजना के मारे उसकी बुर फूलने पिचकने लगी उसकी आंखों के सामने एक बार फिर से उसके भांजे का टनटनाया हुआ लंड तैरने लगा। उत्तेजना पल पल उसके बदन को अपने कब्जे में ले रही थी और यही हाल,
सूरज का भी था ।वह भी अपनी मामी के नितंबों को देखकर एकदम से कामुक हो गया था ।बार-बार उसके दोस्तों की कही गई गंदी बातें जो कि उसकी मामी के बारे में ही थी,,, वह याद आ रही थी और ऊन बातों का असर उसके बदन पर पूरी तरह से छाने लगा था। वह अपनी मामी के आकर्षक नितंबों को देखने में ऐसा मत भूल हुआ कि उसे इस बात का जरा भी एहसास ही नहीं हुआ कि उसकी मामी उसे देख रही है।
इसमें कोई शक नहीं था कि मामी बेहद खूबसूरत और बेहद ही गठीले और आकर्षक बदन की मालकिन थी। जिसे कोई भी देख ले तो बस देखता ही रह जाए। सूरज के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था,,, लेकिन आज मैदान में दोस्तों की बातों ने उसके मन को भी पूरी तरह से बहका दिया था।
यह पल बड़ा ही नाजुक पल था । दोनों ही एक-दूसरे के बदन के प्रति आकर्षित हो रहे थे। दोनो पूरी तरह से गर्म हो चुके थे एक हल्की सी भी चिंगारी उनके पवित्र रिश्ते को तार तार कर देने में सक्षम हो सकती थी। सूरज तो जैसे किसी ख्यालों में खो सा गया था वह आटे के डिब्बे में खाली अपना हाथ डाले अपनी मामी के भरावदार बदन और उसके नितंबों को घुरे जा रहा था।
मंगल के लिए भी यह पल बर्दाश्त के बाहर था उसके बदन में भी कामोत्तेजना पूरी तरह से अपना कब्जा जमा चुकीे थी।
लेकिन तभी वह अपने आप को संभाल ली और बोली,,,,

सूरज कितनी देर लगा रहे हो जल्दी लाओ रोटियां बनानी है।
( मंगल सूरज की तरफ से अपनी नजरें हटाकर वापस बर्तनों को इधर उधर करने में लग गई क्योंकि मुझे शर्म सी महसूस हो रही थी ।शर्म और उत्तेजना के मारे उसका चेहरा सुर्ख लाल हो चुका था,,,, वाह अपने भांजे को उसकी हरकत के लिए डांट भी नहीं सकती थी क्योंकि सूरज जो हरकत किया था,,,,,, इस हरकत के बारे में उसे एहसास दिलाने में भी मंगल को शर्म सी महसूस हो रही थी वह अपने भांजे को डांटे भी तो किस बात के लिए जाते या उसके मुंह से निकल पाना बड़ा असंभव सा लग रहा था। इसलिए तो वह अपनी नजरें दूसरी तरफ फेरकर सूरज को आटा जल्दी लाने के लिए बोली थी और सूरज भी जैसे मेरे से ज्यादा हो अपनी मामी की बात सुनकर,,,,,, डीब्बे मै से जल्दी-जल्दी आटा निकालने लगा,,,,,, और जल्दी से वह घबराते हुए आटा ला करके अपनी मामी को थमा दिया,,,,,, आटा थामते समय जैसे ही मंगल की नजर सूरज की टांगों के बीच गई तो एक बार फिर से उसका बदन गनंगना गया। सूरज के धोती मे फिर से लंबा सा तंबू बना हुआ था। जिसका एहसास होते ही सूरज शरमा के रसोई घर से बाहर चला गया।


सूरज रसोई घर से बाहर जा चुका था,,,, लेकिन एक बार फिर से अपनी मामी के बदन में कामुकता का एहसास करा गया था।
मंगल ज्योति बड़ी मुश्किल से अपनी भावनाओं पर काबू कर पा रही थी सूरज की हरकतों ने उसकी भावनाओं को एक बार फिर से कामोद्दीप्त कर दिया था मंगल सूरज को रसोई घर से बाहर जाते हुए आश्चर्य से देखते ही रह गई। उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि यह सूरज उसके अंगों को इस तरह से प्यासी नजरों से देख रहा था । मंगल पूरी तरह से दंग रह गई थी आटा थमाते वक्त उसकी नजरों ने सूरज के धोती में उसके लंड के उभार को अच्छी तरह से देख ली थी। तो ऊभाार को देखकर फिर से उसकी बुर कुलबुलाने लगी थी। और यह भी अच्छी तरह से देख ली थी कि सुभम आटा निकालते समय उसके भरावदार नितंबो को ही घुर रहा था। उसे अपनी बड़ी-बड़ी नितंबों को घूरता हुआ पाकर मंगल की उत्तेजना बढ़ने लगी थी उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी और चेहरा शर्म के मारे सुर्ख लाल हो गया था।
मंगल को यकीन नहीं हो पा रहा था क्या वाकई में उसका भांजा उसके बदन को घूरता है। या यह उसका बहम ही था बार-बार अपने मन को बहाने से बहला रही थी लेकिन इस बात को वह भी इनकार नहीं कर पा रही थी कि जिस तरह से सूरज उसकी बड़ी बड़ी गांड को देख कर एकदम से खो गया था वह कोई अनजाने में नहीं हो रहा था। अगर अनजाने में ही होता तो पजामे में उसका लंड पूरी तरह से खड़ा नहीं होता लेकिन वह उसके नितंबों को ही देखकर उत्तेजित हो गया था तभी तो उसके धोती में उसका लंड टनटना कर खड़ा हो गया था।
लेकिन कुछ भी हो मंगल की हालत वह पूरी तरह से खराब कर गया था मंगल का मन बिल्कुल भी नहीं लग रहा था बार-बार उसकी आंखों के सामने सूरज का खडा लंड तैर जा रहा था। मंगल बार-बार मन में ही अपने भांजे के ल** के साइड को लेकर की ढेर सारी कल्पनाएं करने लग गई थी वह जानती थी कि जिस तरह से सूरज का लंड टनटना के खड़ा होता है तो उसकी साइज मंडी से लाए बैगन जैसी ही हो जाती है। और तो और वह अपने भांजे के लंड को देखने के बाद अपने पति बिलास के लंड से उसकी तुलना करने लगी थी और वह अच्छी तरह से समझ गई थी कि ऊसके पति बिलास के लंड का साईज सूरज के लंड से आधा भी नहीं था। जिससे चुदाने के लिए वह दिन रात सपने देखा करती थी एक आस बांधे रखती थी की रात को उसका पति उसे चोदेगा और उसे शारीरिक सुख देगा,,,,,, लेकिन अब यह आस टूट कर बिखरने लगा था। सूरज ने उसके ख्यालात को बिल्कुल बदल के रख दिया था लेकिन यह सूरज ने इस तरह का बदलाव कब आया यह सोचकर वह हैरान हुए जा रही थी क्योंकि आज से पहले वह सूरज को ऐसी हरकत करते कभी नहीं देखी थी और ना ही कभी उसे इस बात पर विश्वास ही हो सकता है कि सूरज ऐसी हरकत भी कर सकता है।
उसके मन में बार बार ढेर सारे सवाल उठ रहे थे जिसका जवाब शायद उसके पास नहीं था । बार-बार वह सूरज के कमरे के दृश्य के बारे में सोच रही थी की क्या बात है मैं उसका भांजा उसे देखकर उत्तेजित होता है लेकिन उसके कमरे में जब वह उत्तेजित अवस्था में था तब तो वह घर पर नहीं थी तो क्या कहीं ऐसा तो नहीं कि सूरज उसके अंगों के बारे में कल्पना करके उत्तेजित हो रहा था। अगर ऐसा है तो उसके दिमाग में ऐसी सोच कहां से उत्पन्न हुई।

मंगल यही सब सोचते हुए गरम तवे पर रोटियां सेंक रही थी तवे से भी ज्यादा गरम तो उसकी बुर हो चुकी थी जिस पर बार-बार ना चाहते हुए भी उसका हाथ पहुंच जा रहा था । उसे इस बात का भी पूरी तरह से एहसास हो चुका था कि उसकी पैंटी पूरी तरह से उसके मदन रस मे भीगकर गीली हो चुकी थी। मंगल पूरी तरह से कामाग्नि में सुलग रही थी आज पहली बार उसे चुदवासी होने का एहसास हो रहा था। ऐसे तो वह पहले भी न जाने कितनी बार इस आग में तड़प चुकी है लेकिन जिस तरह की कामाग्नि आज उसके बदन में भड़क रही थी अगर वह अपनी भावनाओं पर काबू ना कर पाए तो आज वह सारे रिश्ते अपने हाथों से तार तार कर ले ।
लेकिन एक औरत होने के नाते उसे अपनी मर्यादा का ध्यान था वह उस मर्यादा को तोड़ना नहीं चाहती थी। वह एक जिम्मेदार मां होने के साथ-साथ समाज में उसे लोग जानते थे, जो इस तरह की बर्बादी के रास्ते पर ना खुद जाति और ना किसी को जाने देती बहुत ही जल्दी से मैं अपनी भावनाओं पर काबू प्राप्त कर ली। वह मन में यह भी ठान ली थी मौका देखकर वह अपने भांजे को जरुर समझाएगी। लेकिन शायद वह ऐसा भी ना कर पाए क्योंकि उसने आज तक कभी भी गांव की सहेलियों के साथ इस तरह की बातें नहीं कर पाए थे तो वह इस तरह की बातें अपने ही भांजे के साथ कैसे कर पाएगी यह सोचकर वह परेशान हो जा रही थी लेकिन समझाना भी जरुरी था। क्योंकि उसे इस बात का भी डर था कि कहीं इस बात से उसकी नजर अंदाजी उसके भांजे के पतन का कारण न बन जाए,,, और उसके साथ-साथ इस सैलाब में वह भी बह ना जाए।

खेर जैसे-तैसे करके वह खाना बना ली,,, अभी तक बिलास घर पर नहीं आया था। सूरज को वह खाना खिला चुकी थी लेकिन दोनों एक दूसरे से आंख मिलाने से भी कतरा रहे थे।

सूरज जानता था कि वह अपनी मामी को जिस नजर से घूर रहा था उसकी मामी ने उसे अपने बदन को घूरते हुए देख ली थी,,, और यह भी देख ली थी कि उसके बदन को देखने के बाद उसका लंड पूरी तरह से टनटनाकर धोती में खड़ा हो चुका था और ईसी बात को लेकर कहीं उसकी मामी उसे डांटे नहीं इस बात का डर उसके मन में बराबर लगा हुआ था ।
लेकिन खाना खिलाते समय मंगल ने उस बारे में एक बार भी सूरज से कोई बात नहीं की और ना ही सूरज ही कुछ बोल सका वह चुपचाप खाना खा रहा था सूरज के मन में बार-बार यह ख्याल आया कि वह अपने भांजे से इस बारे में बात करें और उसे समझाए लेकिन मन की बात जुबान तक नहीं आ पा रही थी और कैसे आती वह तो खुद शर्म से गड़ी जा रही थी तो अपने भांजे से ऊस हरकत को लेकर के किस मुंह से बात करें,,,,,, वह तों खाना परोसते समय सूरज की तरफ शर्म के मारे देख तक नहीं रही थी।
सूरज खाना खाकर जा चुका था लेकिन वह अभी तक नहीं खाई थी क्योंकि बिलास गांव से नहीं आया था वह उसके इंतजार में वही पर ही रहे उसे क्या मालूम था कि बिलास काम का बहाना बनाकर खेती में औरत के साथ गुलछर्रे उड़ा रहा था। जिस प्यार के लिए वह अपनी पत्नी को तड़पा रहा था वह इस प्यार को किसी और पर लुटा रहा था और साथ ही धन भी।

तकरीबन ११:०० बजे बिलास घर लौटा,,,,,, मंगल की नींद तो पहले से ही खराब हो चुकी थी ना चाहते हुए भी अपने आपको लाख समझाने के बावजूद भी बार बार उसकी आंखों के सामने आज दिन भर का नजारा तैर जा रहा था।
उस उन्मादक पल को याद कर करके उसकी बुर ने आज इतनी बार पानी छोड़ी थी कि अभी तक उसकी पैंटी गीली की गिली ही थी। दरवाजे पर दस्तक होते ही वह जल्दी से दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ी वह दरवाजा खोलकर मुस्कुराते हुए बिलास का अभिवादन की लेकिन बिलास था कि,,, उसकी तरफ एक नजर देखे बिना ही अंदर आ गया और आते ही बोला।

तुम खाना खा लो आज में गांव के दोस्त के घर खाना खा के आया हू मुझे नींद आ रही है।

( इतना कहकर वह अपने कमरे की तरफ चला गया मंगल उसे जाते हुए देखती रह गई उसे बिलास से ऐसी ही उम्मीद थी लेकिन उसके मन मे अभी भी आस वैसी की वैसी ही थी की शायद बिलास का मन बदल जाए। लेकीन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ मंगल को बदन की भूख के साथ साथ पेट की भूख भी थी इसलिए वह रसोई से वहीं बैठ कर खाना खाए और खाना खाकर अपने कमरे में आ गई। कमरे में आते ही वह देखी थी बिलास खर्राटे भरते हुए चैन की नींद सो रहा था उसके सोने के साथ ही मंगल की रही-सही उम्मीद भी सो गई। उसे लगा था कि शायद बिलास सोया नहीं होगा तो वह उससे प्यार की बातें करेगी क्योंकि आज तक ना कर पाई और शायद बिलास मंगल से ही-सही अपनी ही प्यास बुझाने के लिए ही सही उसके साथ संभोग तो करेगा,,,, शायद इससे ही उसके बदन में उठी कामाग्नि कुछ हद तक शांत हो जाए लेकिन बिलास की तरफ से उसे ऐसी कोई भी उम्मीद नजर नहीं आई तो वह भी मन मार कर सो गई।
 
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दूसरे दिन वह काफी परेशान नजर आ रही थी,, कल की घटना उसे झकझोर कर रख दी थी। खेतों में काम करने का उसका मन बिल्कुल नहीं लग रहा था। खेतो में बैठे-बैठे ही वह कल की घटना को याद करके उत्तेजित हो जा रही थी। जब वह खेतों में मिट्टी हटाने के लिए फावड़े के डंडे को पकडा उसे एसा लगा उसने अपने भांजे के लंड को पकड़ा हो, जिसकी वजह से उसकी बुर फिर से रिसने लगी थी। उन अति उत्तेजक पलों को याद करके वह परेशान भी हो रही थी,,, और उसके मन के कीसी कोने में उन पलों को लेकर उसके बदन में एक उमंग सी भी जाग जा रही थी। इस परिस्थिति से निकलने का उसे कोई भी रास्ता सूझ नहीं रहा था ऐसा लग रहा था कि वह अपनी मंजिल से कहीं,,दुर ,, इस भूलभुलैया भरे रास्ते में कहीं खो गई है। जब भी वहं उन बातों से अपना पीछा छुड़ाती तो उसे मंजू के द्वारा कही गई बेगन की उपयोगिता के बारे में बात याद आ जाती तो उसकी आंखों के सामने मंडी से खरीदी हुई लंबी चोड़ी और मोटी बैगन नजर आने लगती।
मंगल अजीबो किस्म की कशमकश में डूबी हुई थी। इसी कशमकश में कब दोपहर हो गई शाम पता ही नहीं चला,

अपनी घर की तरफ जाते समय उसे रास्ते में मंजू मिल गई जो उसे देखते ही दौड़ती हुई उसके पास आए और बोली।


क्या यार मंगल आज कहां रह गई थी सुबह मिलने नहीं आई। कुछ परेशान सीे लग रही हो क्या हुआ? ( मंगल के चेहरे की तरफ देखते हुए बोली।)

कुछ नहीं मंजू बस सिर में थोड़ा सा दर्द है इसलिए किसी काम में मन नहीं लग रहा।
( मंगल की बात का गलत मतलब निकालते हुए मंजू अपनी आंखों को गोल-गोल ना नचाते हुए मजाकिया अंदाज में बोली।)

ओहहह,,,, हो,,,,,,,, लगता है कि हमारे भाई साहब ने रात भर आपको सोने नहीं दिया है । खूब जमकर सेवा हुई है तुम्हारी।
( मंजू की बात सुनते ही मंगल को ऐसा लगने लगा कि जैसे किसी ने उसके घाव पर नमक छिड़क दिया हो,,,, और अपने घाव को वह किसी से दिखा भी नहीं सकती थी। हाल ऐसा हो गया था मंगलका कि जैसे सांप किसी छछूंदर को निगल जाता है और ना उसे अंदर ही निगल पाता है और ना ही बाहर ऊगल पाता है। फिर भी बड़े मायूस लफ्जों से मंजू को जवाब देते हुए बोली।),,,,,,,,,

नहीं यार मंजू तुम हर बात का गलत मतलब,,,,,,,, निकालती हो,,,,,, ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा तुम सोच रही हो।
( मंगल का जवाब सुनकर मंजू मुस्कुराते हुए बोली।)

बोल लो जितना झूठ बोलना है,,,,,, आखिर सच तो तुम कभी बताओगीे नहीं,,,,,,

नहीं मंजू कल से मेरे सर में दर्द हो रहा है इसलिए मेरा मन किसी काम नहीं लग रहा,,,,,, हां तुम्हें देखकर ऐसा जरूर लग रहा है कि शायद तुम रात भर सोई नहीं हो,,,,,,
( मंगल ऐसा कहने के साथ ही उसे बैगन वाली बात याद आ गई। उसका मन कह रहा था कि वह उससे बैगन के बारे में पूछे लेकिन बोलने से हीचकींचा रही थी वह भी जानना चाहती थी कि मंजू में उस बैगन का उपयोग कि या नहीं लेकिन बोले कैसे औरतों की बात औरत से ही कहने में उसे शर्म सीे महसूस हो रही थी। शर्म के मारे उसने बैगन वाली बात को ना पूछने में ही भलाई समझी,,,, लेकिन तभी मुस्कुराते हुए मंजू बोली।)

हां यार सारी रात जागकर ही गुजारी हूं,,,,,,( थोड़ा शांत होकर) लेकिन अकेले ही,,,,,,


अकेले ही,,,,,,,,,,,, क्यों,,,,,, भाई साहब कहां चले गए?


यार वह किसी काम से बाहर गए हुए हैं,,,,,


जब वह बाहर गए थे तो फिर क्यों जग रही थी,,,, सो जाना चाहिए था ना।

यार सोतो जाती लेकिन क्या करूं मंडी से जो बड़े-बड़े बेगन लेकर गई थी उसका क्या करती,,,,,,


मतलब,,, (मंगल आश्चर्य के साथ बोली)

यार अभी कल ही तो मंडी में मैंने तुम्हें बताई थी की बेगन सिर्फ खाने के लिए ही नहीं,,,,,, औरते अपनी प्यास बुझाने के लिए भी इसका उपयोग करती हैं।
( मंजू की बात सुनकर मंगल एकदम दंग रह गई वह इतना तो जानती ही थी कि मंजू बेगन ले जा करके क्या करेगी क्योंकि उसी ने कल अपने मुंह से ही मंगल को बताई थी। मंगल और ज्यादा जानना चाहती थी लेकिन उसे पूछने में शर्म आ रही थी। जानने के बावजूद भी अनजान बनते हुए वह बोली,,,,,,


तुमने कैसे बैगन का उपयोग किया? ( मंगल मंजू से और भी बातें जानने के लिए बड़ी उत्सुकता से पूछ रही थी। लेकिन यह सब पूछते हुए उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी,, जो कि सीधे जाकर के उसकी जांघों के बीच असर कर रही थी। मंगल के सवाल पर मंजू बोली।)



अच्छा अभी तो तुम्हें सर दर्द हो रहा था और सर दर्द की वजह से कुछ बोल नहीं रही थी और अब बेगन के बारे में जानने की लिए ईतनी ज्यादा उत्सुक हुए जा रही हो। ( मंजू हाथ नचाते हुए बोली।)

नहीं मंजू ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि बेगन जैसी सब्जी को खाने के साथ-साथ कोई इस तरह के उपयोग में भी ले सकता है,, इस बात से मैं काफी हैरान हूं।

इसमें हैरानी किस बात की है। अच्छा कोई बात नहीं मैं तुम्हें सब कुछ बताऊंगी क्योंकि तुम मेरी सबसे अच्छी सहेली हो,,,,( मंजू का इतना कहना था की मंगल की नजर सामने से आ रहे सूरज पर पड़ी तो एक बार फीर से ऊसे देखते ही उसकी बूर कुल बुला गई। और जब वह कदम बढ़ाते हुए मंगल की तरफ बढ़ रहा था तो मंगलकी नजर बार बार उसकी जगह पर भी पता करें उसके हथियार पर चली जा रही थी लेकिन इस समय उसका हथियार बिल्कुल शांत था फिर भी वह कल्पना मैं उसे लटकते हुए देख रही थी ।,,,, मंगल की तो हालत खराब हो जा रही थी जैसे ही सूरज बिल्कुल करीब आया मंजू भी उसे गौर से देखने लगी। सूरज कुछ कहता इससे पहले ही मंगल उसे जाकर बैलगाड़ी लेके आने के लिए बोली वह बिना कुछ बोले बैलगाड़ी की तरफ चला गया मंजू उसे तब तक देखती रही जब तक की वह बैलगाड़ी के पास नहीं गया।,,,,, बैलगाड़ी को बैल बांधते वक्त मंजू बोली,,,,)

वाह मंगल तुम्हारा भांजा तो एक दम जवान हो गया,,,,,,,
( मंजू तुम हमको बड़े ही कामुक नजरों से देख रही थी लेकिन इस बात पर मंगल बिल्कुल भी ध्यान नहीं दी,,, उसे तो बस बैगन के बारे में ही जानने की उत्सुकता थी इसलिए वह मंजू की बात को काटते हुए बोली। )

अरे तुम क्या कह रही थी बेगन के बारे में,,,,,,,,,

( निर्मल आपकी बात से जैसे मंजू का ध्यान टूटा हो इस तरह से वह बोली,,,,)

हां तो मैं कह रही थी,,,, अच्छा मंगल एक बात बताओ,,,,

हां पूछो,,,,,,,

देखो सब ठीक से बताना बिल्कुल भी शर्माना मत तभी मैं तुम्हें बैगन के उपयोग के बारे में बताऊंगी।


बोलो,,,, ( मंगल कुछ देर सोचने के बाद बोली)

अच्छा मंगल यह बताओ कि उसका आकार कैसा होता है?

किसका ? ( मंगल आश्चार्य के साथ बोली)


अरे उसी का जिसके बदले में बैगन का उपयोग किया जाता है।
( अब इतना सुनते ही मंगल सकपका गई वह समझ गई थी। मंजू किसके बारे में बोल रही है और ऊससे क्या बुलवाना चाहती है। मंगल अब बुरी तरह फंस चुकी थी वह चाहती तो बिना कुछ बोले वहां से जा सकती थी,,,, लेकिन उसकी तो उत्सुकता इतनी ज्यादा बढ़ गई थी बेगन की उपयोगिता के बारे में जानने की,,,, कि वह इधर उधर नजर दौड़ाते हुए वहीं खड़ी रही,,,,,, और मंजू उसे इधर उधर नजरें घुमाते हुए देखकर बोली।)

क्या यार निर्मला,,,,,, एक औरत हो करके औरत से औरत वाली बात करने पर तुम्हें शर्म महसूस हो रही है जाओ तो मैं भी तुम्हें कुछ नहीं बताती,,,,,,

यार मंजू ऐसी बात नहीं है,,, लेकिन मैंने कभी भी ऐसी बातें नहीं की और ना ही किसी के सामने ऐसे शब्दों का प्रयोग की हूं। इसलिए मुझे शर्म सी आ रही है।

यार सच में कमाल हो,,,, यह जरूरी तो नहीं कि तुम हमेशा ऐसी बातें करने से कतराती रहो,,,, एक न एक दिन तो सबको पहली बार ही करना होता है। अब मैं भी तुम्हारी तरह शर्माती तो क्या तुम्हें यह सब बातें बताती,,,, तुम मेरी सबसे अच्छी सहेली हो इसलिए मैं तुमसे ऐसी बातें करती हूं वरना मैंने आज तक किसी से भी अपने बारे में या ऐसी बातें कभी नहीं की।,,,,,,,,,, ( मंजू बातें जरूर मंगल से कर रही थी लेकिन उसकी नजर बार बार बैलगाड़ी ला रहे में सूरजपर चली जा रही थी। मंजू बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,,,)





अच्छा चलो बताओ किसके बदले मे बैगन का उपयोग करने के लिए मैं बता रही हूं।
( मंजू की बात सुनकर फिर से मंगल शर्मा कर इधर-उधर नजरें दौड़ाने लगी और फिर से ऊसे नजरें चुराते हुए देखकर मंजू जोर से बोली,,,,,)

बोलो जल्दी,,,,,,,,

( मंजू की आवाज सुनकर एकाएक मंगल के मुंह से निकल गया।)

ललल,,,, लंड,,,,,
( मंगल के मुंह से इतना निकलना था कि मंजू मुस्कुराने लगी लेकिन मंगल का हाल बुरा हो रहा था वह एकदम से शर्मा गई बल्कि शर्म के मारे वह मंजू के सामने शरमा जा रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसके मुंह से आखिर यह शब्द कैसे निकल गया लेकिन उसके बदन में डर के साथ साथ उन्माद की तरंगे भी लहराने लगी। "लंड" शब्द बोलकर उसे अजीब के सुख की अनुभूति हो रही थी जिसको वह शब्दों में बयान नहीं कर सकती थी। वहीं दूसरी तरफ से चल बड़ी खुश नजर आ रही थी और खुश होते हुए वह बोली।)

हां अब आए ना लाइन पे,,,,,,,, शर्माओगी तो जिंदगी का मजा नहीं ले पाओगी,,,,,,,, चलो यह तो बता दीे की किस के बदले बैगन का उपयोग किया जाता है। ऊसके आकार और ऊसकी लंबाई चौड़ाई और उसकी मोटाई से तो तुम अच्छी तरह से वाकिफ हो,,,,, बैगन देखने में एकदम किस की तरह लगता है यह भी बता दो,,,,,, देखो शर्माना मत।

लंड की तरह,,,,,( इस बार भी वह झट से बोल दी,,, मंजू मुस्कुरा रही थी। क्योंकि वह भी पहली बार ही मंगलके मुंह से इतने अश्लील शब्द सुन रही थी। मंगलकी बात सुनकर मंजू बोली।)

लंड की तरह तो होता ही है लेकिन उससे भी ज्यादा भयंकर होता है।,,, अगर एक अच्छा खासा बैगन मिल जाए तो उसके आगे आदमी का लंड उसकी अपेक्षा आधा और पतला ही होता है ।
मंगलतुम तो अच्छी तरह से जानती हो और तुम सच-सच बताना बैगन के आगे तुम्हारे पति का लंड छोटा ओर पतला नहीं लगता,,,,,,,
( मंजू इतना कहकर मंगल की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगी और मंजू की बात सुनकर मंगल सोच में पड़ गई उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस सवाल का जवाब दे या ना दे लेकिन जो बात मंजू कह रही थी वह बिल्कुल सच ही थी। वास्तव में जिस बैगन को वह अपने घर पर लेकर गई थी उस बैगन की अपेक्षा उसके पति का लंड छोटा ही था। यह सब उसके दिमाग में चल ही रहा था कि तभी उसे याद आया कि वह अपने भांजे के लंड को भी देख चुकी है जिसकी लंबाई चौड़ाई मोटाई बिल्कुल बैगन जैसी ही थी। अपने भांजे के हथियार के बारे में सोच कर उसकी आंखों में चमक आ गई,,,,, वहां मंजू से बताने के लिए अपना मुंह खोल ही थी कि उसके शब्द गले में ही अटक कर रहे गए। उसे जैसे कुछ याद आ गया हो,,, वह कुछ बोल ना सकी और उसे इस तरह से खामोश देखकर मंजू ने अपने सवाल दुबारा दोहराई तो वह बोली कुछ नहीं बल्कि हां में सिर हिला दी। )


मैं जानती थी तुम्हारा जवाब यही होगा मंगल क्योंकि बेगन के आगे तो मेरे पति का भी लंड छोटा ही है। और यह बात सभी औरतों को अच्छी तरह से मालूम है।

अच्छा यह बताओ निर्मला,,, कि अपने पति के लंड,,, जो की बेगन से आधा और पतला ही होता है उस से चुदने में तुम्हें मजा आता है ना,,,,,, बोलो,,,,,

(मंजू के ईस बात पर मंगल फिर से सक पका गई,,,, उसके लिए फिर से इस सवाल का जवाब देना मुश्किल हो रहा था लेकिन फिर भी बताना तो था ही,,,, इसलिए वह बोली।)

हां मजा तो आता ही है,,,,,,,


तो सोचो मंगल जब बैगन से भी आधे और पतले लंड से चुदने मे ईतना मजा मिलता है,,,, तो जब एक मोटा ताजा लंबा बैगन बुर मे घुसेगा तो औरत को कीतना मजा मिलेगा,,,,,

( मंजू की यह कामुक बात सुनते ही ऊत्तेजना के मारे मंगल की सांस ऊपर नीचे हो गई ऊसकी बुर से तुरंत मदन रस की बुंद टपक गई।

मंजू की बात सुनकर मंगल की हालत खराब हुए जा रही थी। जब मंजू के मुंह से उसने यह बात सुनी कि जब एक मोटा ताजा लंबा बैगन बुर में घुसेगा तो कितना मजा देगा इस बात को सुनते ही,,,, मंगल की रसीली बुर कुलबुलाने लगी और तुरंत उत्तेजना के मारे उसमें से मदन रस की बूंदे टपकने लगी जिससे मंगल को बेहद ही अजीबो किस्म की सुख की अनुभूति हो रही थी। मंगल मंजू की यह बात सुनकर क्या जवाब दे यह तो उसके समझ के भी बाहर था। मंजू उसे बहुत ही कामुक तरीके से बता रही थी। जिसे सुनकर मंगलपल-पल उत्तेजना की खाई में उतरती ही जा रही थी।,,,, बात को आगे बढ़ाते हुए मंजू बोली।

सच मंगल जब मैं पहली बार इस तरह की हरकत की थी तो मैं तो खुशी से झूम ही उठी थी। अब मैं तुझसे कुछ नहीं छुपाऊंगी,,,, वह क्या है कि एक ही लंड से बार बार चुदने पर इतना मजा नहीं आता और तो और जैसे-जैसे हमारी उमर हो जाती हैं,,, अपने हम उम्र की औरतों की प्यास और भी ज्यादा बढ़ने लगती है और उस प्यास को बुझाने के लिए,,,, मोटा ताजा और जवान लंड की जरूरत होती है। लेकिन इस उम्र में तो पति का लंड ऊतना मजा नहीं दे पाता है जितना कि जवानी के दिनों में देता था। और तो और उसकी लंबाई चौड़ाई भी अपनी प्यास के मुताबिक और कम लगने लगती है। सच कहूं तो मुझे अपने पति से चुदने ऊतना में मजा नहीं आता जितना मजा मुझे बैंगन मूली और केले से मिल जाता है। ( मंजू की खुली बातें सुनकर तो मंगल की हालत और खराब होने लगी उसकी सांसे तेज चलने लगी उसका चेहरा शर्म के मारे सुर्ख लाल होने लगा। वह यकीन नहीं कर पा रही थी कि कोई सब्जी और फलों के सहारे से भी अपनी प्यास बुझा सकता है। मंजू भी ये सब करती होगी इस बात पर ऊसे विश्वास नहीं हो रहा था। लेकिन जिस आत्मविश्वास के साथ वह बता रही थी इससे बिल्कुल साफ था कि मंजू भी एसा जरुर करती होगी तभी तो उसे इसके उपयोग के बारे में इतनी बारीकी से मालूम है। मंजू को भी बताते बताते उत्तेजना का अनुभव होने लगा था उसका भी चेहरा सुर्ख लाल हो रहा था। मंगल को तो कल के बारे में जानना था कि वह बैगन का उपयोग सच में करी थी कि नहीं,,,,, वह सीधे सीधे खुलकर तो पूछ नहीं सकती थी क्योंकि उसे ऐसा करने में अभी भी शर्म महसूस हो रही थी। इसलिए एक बहाने से बात को घुमाते घुमाते बोली,,,,,,

मंजू कल रात भर जागकर क्या करी? ( मंगल हिचकीचाते हुए बोली,,,, मंगल की बात सुनकर मंजू मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली।।)

अरे वही तो बता रही हूं कल वैसे भी मुझे मस्ती चढ़ी हुई थी।
अब अपनी प्यास बुझाने के लिए जवान लंड कहां से लाऊ,,,,,, मिल तो जाए लेकिन बदनामी का डर बना रहता है। और जवान लंड घर में ही पर उपलब्ध होता तो उस का भरपूर उपयोग करती,,,,,,,( इतना कहने के साथ ही वह कुछ देर खामोश रहकर सूरज की तरफ इशारा करते हुए) मंगल तुम्हारे पास तो जवान लंड उपलब्ध है,,,,, तुम तो उसका पूरा फायदा उठा सकती हो,,,,,, तड़पना तो हम जैसी औरतों के ही किस्मत में है। ( मंजू बात बात में बहुत बड़ी बात कह गई थी लेकिन इस समय उत्तेजना के असर की वजह से मंगल ने इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं दी और मंजू बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,,)

हां तो में यह कह रही थी कि मेरे बदन में चुदाई की आग भड़की हुई थी और ऐसे में मेरे पति घर पर नहीं थे और घर पर होते भी तो शायद ऊनकी चुदाई से मेरी प्यास बुझने वाली नहीं थी,,,, इसलिए मैं रात को सोने से पहले एक अच्छा मोटा और तगड़ा जिसकी लंबाई लंड से दो गुनी थी,,,, उसे पानी से साफ करके अपने साथ कमरे में ले गई। सच कहूं तो मंगल उस बैगन को हाथ में लेते ही मेरी बुर कुलबुलाने लगी थी। कमरे में जाते ही मैंने अपने सारे कपड़े उतार कर एक दम नंगी हो गई और उस बैगन पर जो की कुछ ज्यादा ही मोटा था उस पर नारियल का तेल लगा कर उसे चिकना कर दी,,,,,( मंजू की बातें सुनकर तो मंगल कि सांसे ऊपर नीचे हुए जा रही थी । उसकी पैंटी बुर के मदन रस की वजह से पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। जिसके गीलेपन का एहसास उसे अच्छी तरह हो रहा था लेकिन वह जानबूझकर अपना हाथ जांघों के बीच नहीं ले जा रही थी। मंजू अपनी बात बताते हुए मंगल को और भी ज्यादा उत्तेजित किए जा रही थी।)
अब क्या था मैं तो पूरी नंगी हो कर के अपने बिस्तर पर लेट गई। मेरे बदन में कितनी ज्यादा उत्तेजना फैली हुई थी कि मेरी सांसे ऊपर नीचे चल रही थी। मेरी सांसो के साथ साथ मेरी ये ( अपनी छातियों की तरफ देखते हुए) बड़ी बड़ी चूचियां भी ऊपर नीचे हो रही थी,,,, जिसे देख कर मेरी उत्तेजना और ज्यादा बढ़ने लगी और मैं तुरंत अपनें एक हाथ से अपनी चूची को पकड़कर दबाने लगीे और एक हाथ में बैगन को ले करके उसे अपनी बुर पर रगड़ने लगी। ( मंजू कि यह गरम और उत्तेजक बातें सुनकर मंगल का गला सूखने लगा था उसे पेट ठीक से थुक भी नहीं निगला जा रहा था। ) सच कहूं तो मंगल मुझे सिर्फ बैगन को रगड़ने मात्र से ही ईतना आनंद मिल रहा था तो सोचो जब मैं उसे अपनी बुर में डाल ती तो कितना मजा मिलता। ( मंजू की बात करते तो मंगलके होश उड़ चुके थे वहां आश्चर्यचकित होते हुए बोली।)

सच मंजू,,,,,


हां यार मैं बिलकुल सच कह रही हूं जब मैं उसे धीरे धीरे अपनी बुर में डालने लगी तो मेरा बदन उत्तेजना के मारे ऐसा लग रहा था कि हवा में उड़ रहा हो,,,,, मैं बैगन को जितना हो सकता था उतना अपनी बुर में डाल दी,, मेरी बुर में बैगन पूरी तरह से समाने के बाद भी 5 इंच बाहर ही था। ( यह सुनकर केतु मंगल के होश ही उड़ गए उसे यकीन नहीं आ रहा था कि मंजू ने सचमुच ऐसा कारनामा कर दी है। लेकिन उसकी बात कर पर मंगल को यकीन करना ही पड़ा क्योंकि उसे मालूम था कि वह इस मामले में बिल्कुल भी झूठ नहीं बोल रही थी। )
मंगल एक बार बैगन पूरी तरह से मेरी बुर में घुसा तो मैं उसे अंदर बाहर करते हुएे अपने मन में कल्पना करने लगी कि कोई मुझे चोद रहा है जिसका लंड मोटा और लंबा है। सच कहूं तो मंगल मुझे बहुत मजा आया,,,, और मैं रात भर लगभग पांच छ: बार झड़ी,,,,, बस एक बात का मलाल हमेशा रह जाता है।

कौन सी बात,, ? ( मंगल गले मे थुक निगलते हुए बोली।)

अरे यार यही कि काश ऐसा कोई मर्द होता है,,, जिसका बैगन जितना ही लंबा तगड़ा लंड होता,,,, जो मेरी बुर में अपना लंड डालकर मुझे चोदकर मेरी प्यास बुझाता।
( मंगल तो मंजू की ऐसी गंदी और खुद ही बातें सुनकर एकदम से बेहाल हुए जा रहीे थी,,,, मंजू की यह बात सुनकर मंगल को तुरंत उसके भांजे की याद आ गई क्योंकि जिस तरह के लंड के साइज की वह बात कर रही थी वैसा ही बेगन जैसा लंड सूरज का था। सूरज की याद आते ही मंगल की आंखों में चमक आ गई एक पल को तो उसे ऐसा लगा की वह मंजू को अपने भांजे के हथियार के बारे में बता दें लेकिन ऐसा कहना उसे उचित नहीं लगा तो वह खामोश ही रह गई। हां लेकिन मंजू के मुंह से अपनी दिली ख्वाहिश को जानकर यह ख्वाहिश मंगल के मन में भी जगने लगी,,,, जिन शब्दों में मंजू ने बैगन की उपयोगिता को बताई थी वह सुनकर मंगल का भी मन डोलने लगा,,,, उसे भी याद आ गया कि वह भी मार्केट से लंबे मोटे बेगन को खरीदकर कपाट में रखी हुई है। दोनों का चेहरा सुर्ख लाल हो चुका था फिर दोनों को वहां खड़े खड़े बातें करते काफी समय भी हो गया था। मंजू भी आसमान की तरफ देखते हुए बोली।

काफी समय हो गया मंगल अब हमें चलना चाहिए,,,,,
( मंजू की बात सुनकर मंगल ने भी आसमान की तरफ देखी और फिर बैलगाड़ी की तरफ जाने लगी जिसमें सूरज बैठा हुआ था और बोली।)

हां समय तो काफी हो गया है,,,,,,,,,,,, ठीक है अच्छा मैं चलते है। ( इतना कहकर वह बैलगाड़ी की तरफ कदम बढ़ाना ही वाली थी कि मंजू बोली,,,,,,)

मंगल मेरी बात मानो तो तुम भी एक बार बैगन जरूर इस्तमाल करना फिर देखना तुम्हें कितना मज़ा आता है। ( इतना कहने के साथ ही वह बैलगाड़ी की तरफ देखते हुए ) हां लेकिन तुम्हें बैंगन की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि तुम्हारे घर में ही जवान लंड है। ( इतना कहने के साथ ही वह हंसने लगी और उसे हंसता हुआ देखकर और उसकी बात का मतलब समझ कर मंगल बोली।)

धत्त,,,,,, कितनी गंदी हो तुम,,,,,,,

गंदी नहीं बल्कि सच कह रही हूं एक बार जरूर इस्तमाल करना।
( इतना कहने के साथ ही वह चली गई और उसे जाते हुए मंगल देखती रह गई क्योंकि मंजू जाते-जाते उसके दिमाग को और उसकी ख्वाहिशों को झकझोर कर रख,,,, दी थी। मंजू के जवान लंड का मतलब वह अच्छी तरह से समझती थी,,,, वह अभी भी वहीं खड़ी थी यह देखकर सूरज बैलगाड़ी में से ही अपनी मामी को आवाज लगाते हुए बोला।)

मामी अब वहां क्यों खड़ी हो मंजू मौसी चली गई।

( सूरज की आवाज सुनकर जैसे उसका ध्यान तो उठा हो और वह बैलगाड़ी की तरफ जाने लगी,,,,, रास्ते भर उसने सूरज से बिल्कुल भी बात नहीं की के दिमाग में बस मंजू की बातें ही चल रही थी उसने अपनी पैंटी को पूरी तरह से गीली कर ली थी। सूरज अपनी मामी से यह जरुर पूछा की वह मंजू मौसी से इतनी देर तक क्या बातें कर रही थी,
लेकिन सूरज एक बात पर जरूर ध्यान दे रहा था कि उसकी मामी का हाथ बार बार उसकी जांघो के चला जा रहा था, और कुछ देर तक वहां के बीच वाले अंग को खुजला ले रही थी । और उस जगह पर अपनी मामी को खुजलाते हुए देखकर उसके मन में उत्तेजना के साथ साथ उत्सुकता भी बढ़ती जा रही थी। सूरज के मन में जांगो के बीच वाली जगह को लेकर उत्सुकता ज्यादा थी,,,,
क्योंकि आज तक उसने किसी भी लड़की या औरत को नंगी नहीं देखा था तो उनके नाजुक अंगों के बारे में उनके आकार के बारे में सूरज को कुछ भी नहीं मालूम था और ना ही वह कल्पना में उन अंगों के आकारों के बारे में सोच सकता था। इसलिए अब उसके मन में बूर को को देखने और जानने की जिज्ञासा पनपने लगी थी।
इसलिए वह बड़े गौर से अपनी मामी को बैलगाड़ी चलाते हुए देख रहा था और बार-बार उसके हाथ जो की गीली पैंटी को एडजस्ट करने और बुर को खुजलाने के लिए जांगो के बीच जा रहा था उसे वह बड़े ध्यान से देख रहा था और ऊस नजारे को देखकर उत्तेजित भी हुआ जा रहा था। मंगल भी बैलगाड़ी में मंजू की बातों को याद करके उत्तेजित हुए जा रही थी,,, और बार-बार बैंगन की तुलना अपने भांजे के मोटे और तगडे लंड से किए जा रही थी। मंजू जोकि लंबे और मोटे बिल्कुल बैगन जैसे लंड से चुदाना चाहती थी,,, ठीक है वैसा ही लंड तो उसके भांजे सूरज का है बार-बार यही बात मंगल के मन में आ रही थी। मंगल को मंजू की यह बात भी बार-बार याद आ रही थी कि जब औरतों को छोटे लंड से चुदने में इतना मजा आता है तो सोचो लंड से भी लंबा और उससे भी डबल मोटाई वाले बेगन से कितना मजा आता होगा। यह बात बार-बार याद करके मंगल की बुर गिली हुई जा रही थी। क्योंकि उसने तो आज तक बस अपने पति के ही लंड से चुदते आई थी जो की बेगन से भी आधे और एकदम पतला था। फिर भी वह तड़पती थी अपने पति से चुदने के लिए उसके लंड को अपनी बुर में लेने के लिए।
तो वह भी यही सोच रही थी कि अगर छोटे और पतले लंड से उसे इतना मजा आता है तो अगर वह लंड की जगह मोटे तगड़े बैगन को अपनी बुर में डालें तो उसे कितना मजा आएगा,,,,, मंगल बैलगाड़ी में बैठे बैठे हुए मंजू की कही हुई बातों को याद करके अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी तभी उसे मंजू कि वह बात याद आ गई जवान लंड वाली जो की उसका इशारा सूरज की तरफ ही था,,,, मंजू का मतलब बिल्कुल साफ था वह ईशारों ही ईशारों में उसे अपने ही भांजे के लंड से चुदने के लिए बोल रही थी,,,,,। मंजू तो जवान लंड के लिए सूरज की तरफ इशारा की थी लेकिन यह बाद उसे बिल्कुल नहीं मालूम था कि सूरज के पास जवान लंड तो था ही साथ ही साथ उसकी लंबाई और मोटाई बिल्कुल बैगन की ही तरह थी,,,, जिस तरह से वह अपनी दिली ख्वाहिश मंगल को बता रही थी कि वह मोटे तगड़े बैगन जैसे लंड से चुदना चाहती है तो अगर उसे इस बात की थोड़ी सी भी भनक लग जाए की सूरज का लंड वैसा ही है जैसा कि वह कल्पना करती है तो शायद वह सूरज से भी चुदवा ले। मंजू को सूरज से चुदवाने की कल्पना ही मंगल को उत्तेजित किए जा रही थी। और जिस तरह से वह बता रही थी कि लंबे लंड से और ज्यादा मजा मिलता है तो मंगल भी कल्पना में ही अपने बेटे से चुदवाने और उसके मोटे लंड को अपनी बुर में लेने का ख्वाब बैलगाड़ी मन में ही सोचने लगी।,,,, लेकिन जल्द ही उसे इस बात का आभास हो गया कि जिस बारे में वह कल्पना कर रही है वह ठीक नहीं है। दूसरी तरफ सूरज लगातार अपनी मामी को ही,,,,,, देखे जा रहा था,,,, अपनी मामी के बूर के बारे में सोच-सोच कर ही उसके अंदर प्रचंड कामोत्तेजना की अनुभूति हो रही थी। वह तो सिर्फ अभी अपनी मामी को साड़ी में ही देखा था तो उसका यह हाल था अगर वह अपनी मामी को संपूर्ण नग्नावस्था में देख लो तो ना जाने उसका क्या हाल होगा।
दोनों के मन में एक दूसरे के बदन को लेकर के ढेर सारी भावनाएं उत्पन्न हो रही थी कि तभी घर आ गया।
 
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दोनों मामी भांजा एक दूसरे के बदन और अंगों के प्रति आकर्षित हुए जा रहे थे।
घर पर पहुंचकर सूरज तो अपने कमरे में चला गया लेकिन मंगल के लिए तो कहीं भी चैन नहीं था। मंजू की बातों ने उसके बदन में कामाग्नि को पूरी तरह से भड़का चुकी थी।
अपने ही काम रस में वह अपनी पैंटी को गीली कर ली थी।
बार बार उसे मंजू की कही हुई वह बहुत याद आ रहे थेी जब वह उसके भांजे की तरफ देख कर उसे जवान लंड की तरफ इशारा कर रही थी। मंगल अच्छी तरह से समझ रही थी कि वह इशारे इशारे में क्या कहना चाह रहीे थीे उसका सारा बिल्कुल साफ था। एक तरह से वह मंगल को अपने ही भांजे के साथ संबंध बनाने के लिए उकसा रहीे थी। जोकि मंगल के लिए बिल्कुल भी संभव नहीं था। मंगल के मन में ढेर सारे सवाल उठ रहे थे यह सवाल भी बार-बार उसके मन में आ रहा था कि मंजू अच्छी तरह से जानती थी कि सूरज उसके बेटे जैसा है, तो वह कैसे कह दी की मंगल को बैगन की जरूरत नहीं है उसके तो घर में ही जवान लंड है। तो क्या मंजू को इस बात से कभी एतराज नहीं होता कि एक मां और बेटे के बीच शारीरिक संबंध के साथ नाजायज संबंध है।

उसे इस तरह के पारिवारिक रिश्ते पर कोई भी एतराज नहीं है। यही सब सोच-सोच कर वहां मंजू के ख्यालात के प्रति हैरान हुए जा रही थी। इन सभी ख्यालों ने उसके बदन में चुदासपन की गजब की लहर चला दी थी। मंगल की बुर में आग लगी हुई थी। उसे अपनी बुर में लंड लेने की प्यास बड़ी तेजी से लगी हुई थी। वह मन ही मन अपनी किस्मत को इस बात से कोसने लगी,,,,, की औरतें भी अपनी प्यास बुझा लेती है जो की खूबसूरत नहीं होती,,,, लेकिन फिर भी वह अपनी बुर की प्यास किसी भी लंड से बुझा लेती हैं और लोग तैयार भी रहते हैं उन्हें चोदने के लिए,,,,,, लेकिन इतनी खूबसूरत होने के बावजूद भी वह प्यासी रह जा रही थी। उस की रसीली बुर एक लंड के लिए तरस जा रहीे थी। लेकिन वह यह भी जानती थी कि अपने बदन की प्यास वह खुद भी बुझा सकती है। पति न सही कोई और ही सही,,,, लेकिन इसके लिए उसे थोड़ी हिम्मत दिखानी पड़ती। उसके एक इशारे की देरी थी इशारा मिलते ही ना जाने कीतने लोग थे जो कि उसकी प्यास बुझाने के लिए तैयार खड़े थे। लेकिन ऐसे कामों के लिए उस के संस्कार और उसकी परवरिश गवाही नहीं दे रही थी। और इसी बात के लिए अपने संस्कार की वजह से वह अपने आप को कोसे जा रही थी।
मंगल से अपने बदन की आग बिल्कुल भी सही नहीं जा रही थी। उसे तुरंत कपाट में रखे हुए बैगन याद आ गए।
वह जाकर तुरंत कपाट को खोला और उसमें रखे हुए बेगन को
अपने हाथ से टटोलने लगी,,, बैगन को टटोलते समय उसके बदन में अजीब सा उन्माद जग रहा था। उसने मंडी से बड़े बड़े लंबे और मोटे बैगन ही पसंद करके लाई थी,,, जिसे वह अपनी हथेली में पकड़ते समय ऐसा महसूस कर रही थी कि वह बेगन नहीं बल्कि किसी का लंड अपने हाथ में पकड़े हुए हैं। वह कपाट में से एक बैंगन बाहर निकाल ली,, और ऊस बैगन को अपनी हथेली में कस के पकड़ ली जैसे कि किसी लंड को पकड़ा जाता है। मंगल के बदन में तुरंत उत्तेजना का संचार बड़ी तेजी से होने लगा,,,,, रसोई घर में थी लेकिन बार-बार दरवाजे पर देख ले रहीे थीे कि कहीं सूरज ना आ जाए। मंगल दरवाजे पर नजर गड़ाए हुए ही,, उस बैगन पर अपनी हथेली को इस तरह से आगे पीछे करने लगी कि जैसे किसी लंड को मुठीया रही हो,,,, मंगल की उत्तेजना परम शिखर पर पहुंच चुकी थी बार-बार उसका एक हाथ गीली बुर पर चली जा रही थी,, जो ती ऊसके कामरस से उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी।
उसके हाथ में पकड़ा हुआ बेगन उसे लंड की तरह लग रहा था। जिसे देख कर और महसूस करके उसकी बुर में और भी ज्यादा खुजली होने लगी थी। काम ने उसके दिमाग और उसके बदन पर पूरी तरह से अपना कब्जा जमा लिया था।
मौका और जरूरत दोनों मंगल के पक्ष में थे । बार बार उसे मंजू की वह बात याद आ रही थी जो कि उसे एक बार बैगन को इस्तमाल करने के लिए कहीे थी।
 
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कामांध हो करके वह एक हाथ से साड़ी के ऊपर से ही अपनी बुर को सहला रही थी जिससे उसके बदन में वासना की लहर दौड़ने लगी,,,,, क्योंकि ऐसा करने पर उसे उसके भांजे का टनटनाया हुआ लंड याद आ रहा था। और ऊसके हांथ मे पकड़ा हुआ बैगन ऊसे ऊसके भांजे का तगड़ा लंड ही लग रहा था। मंजू ने उसे बताई थी कि मोटे लंड से चुदवाने में बहुत मजा आता है लेकिन उसका अनुभव मंगल को बिल्कुल भी नहीं था। क्योंकि वह तो आज तक सिर्फ अपने पति से ही चुदते आई थी। इसलिए उसके मन में लंबे लंड के प्रति उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। उसके लिए यह अगन अब ज्यादा देर तक सहन कर पाना मुश्किल हुए जा रहा था वैसे तो वह काम की पीड़ा में ना जाने कितने वर्षों से तड़पती आ रही थी । लेकिन जिस प्रकार की प्यास आज उसके बदन में उठी थी ऐसी प्यास ईससे पहले कभी भी नहीं ऊठी। रसोई घर का दरवाजा खुला हुआ था,
जिस पर उसकी नजर बार बार चली जा रही थी और उसका एक हांथ बुर को साड़ी के ऊपर से सहलाने मे लगा हुआ था और दूसरे हाथ में बैगन था जिस पर उसकी नाजुक उंगलियां इस प्रकार से चल रही थी जैसे कि उसके हाथ में बैगन ना हो एक तगड़ा मोटा लंड हो। काम की प्यास अक्सर इंसान की सोचने समझने की शक्ति को क्षीण कर देती है वैसा ही कुछ मंगल के साथ भी हो रहा था। मंगल बेहद संस्कारी थी लेकिन काम की प्यासी थी जो कि एक संस्कारी औरत होने के बावजूद भी उसे काम की प्यास इस तरह की हरकत करने पर मजबूर कर दे रही थी। हाथ में बैगन लिए हुए उसके मन में मंजू की कही बातें घूम रही थी जिससे उसने भी उसकी बात रखते हुए मन में ही सोची की एक बार बेगन को इस्तमाल कर लेने में क्या हर्ज है ऐसा सोच कर वह तुरंत रसोई घर का दरवाजा बंद कर दी,,, वहं उस बैगन को थोड़ा चिकना करना चाहती थी इसलिए रसोईघर मैं ही उसे सरसों का तेल मिल गया जिसकी दो चार बूंदे लेकर के वह बैगन पर लगाने लगी ताकि वह एकदम चिकना हो जाए,,,, क्योंकि वह इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि बैगन के आगे वाला भाग की मोटाई लंड के सुपारे से दुगुना था,,, जोकि आसानी से ऊसकी बुर में घुसने वाला नहीं था।
वह सरसों का तेल लगाकर बैगन को एकदम चिकना कर ली थी। उत्सुकता और उत्तेजना की वजह से उसकी हालत खराब हुए जा रही थी। वह सोच-सोच कर कामोत्तेजित हुए जा रही थी कि बैगन से उसे किस तरह का आनंद प्राप्त. होगा,,,, घर में केवल सुभम ही , था जो कि अपने कमरे में बैठा हुआ था,,,, कमरे में ज्यादा देर बैठने की वजह से उसे प्यास लग रही थी ।

रसोईघर में मंगल मंजू की इस्तमाल करने वाली बात को साक्षात्कार करने के लिए अपने प्यार के वशीभूत होकर के बेगन को इस्तमाल करने जा रही थी। मंगल के दिल की धड़कन तेज चल रही थी खिड़की खुली होने के बावजूद भी उसके माथे से पसीना टपक रहा था। वह दीवार का सहारा ले कर के खड़े खड़े ही अपनी साड़ी को धीरे धीरे कर के ऊपर की तरफ उठाने लगी,,, उसकी दूधिया गोरी टांगे लालटेन के उजाले में और भी ज्यादा चमक रही थी। धीरे धीरे करके उसने अपनी साड़ी को कमर तक उठा दी,,, कमर तक साड़ी के उठते ही उसकी गीली पैंटी नजर आने लगी जिसे वह थोड़ा सा झुक कर देख रही थी इस तरह से देखने पर ही उसे पता चला कि उसकी पैंटी किस कदर गीली हो चुकी है। अपनी पैंटी का गीलापन देख कर उसे अपनी हालत का अंदाजा लग गया और वह अपनी हालत पर हल्के से मुस्कुरा दी। आने वाले पल के बारे में सोच सोच कर उसके दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी उसने धीरे से अपनी पैंटी को एक ही हाथ से नीचे की तरफ सरकाने लगी,,,,,, अगले ही पल उसकी पैंटी उसकी जांघों के नीचे घुटनो में जा फसी थी।

ऊफ्फ्फ्फ,,,,,, पेंटी को नीचे आते ही एक गजब का नजारा आंखों के सामने नजर आने लगा,,,, मंगल की रेशमी बुर जिस पर थोड़े गुंगराके बालो का रेशा जिसमे हल्की एक पतली सी लकीर के आकार में नजर आ रही थी। सोचने वाली और दंग कर देने वाली बात यह थी कि मंगल की बुर जिस तरह से एक पतली लकीर के रूप में ही नजर आती थी,, ऐसी बुर स्वाभाविक और प्राकृतिक रूप से इस उम्र में जबकि वह एक शादी शुदा औरत
थी।
इसलिए तो मंगल की बुर ओर ज्यादा रसीली हो जाती थी। इस बात से मंगल बिल्कुल भी अनजान थे कि इस उम्र में जिस तरह कि उसकी बूर बस एक पतली लकीर के रूप में थी उसकी उम्र में किसी दूसरी औरतों कि इस तरह की चिकनी और रसीली बुर शायद ही होती हो बल्कि नहीं होती,,,,, वह तो बस झुककर और एक हाथ में बैगन को पकड़े हुए अपनीे बुर को देखे जा रही थी। अपनी बूर की हालत देखकर उसका हाथ कांप रहा था क्योंकि उसमें से अभी भी मदन रस का रीसाव बराबर हो रहा था,,,,,



दूसरी तरफ कमरे में बैठे बैठे सुरज का गला जब सूखने लगे तो उससे प्यास बर्दाश्त नहीं हुई और वह अपने कमरे से बाहर आ गया पानी पीने के लिए,,,, जो कि उसे पानी पीने के लिए रसोई घर में ही आना था।
दूसरी तरफ मंगल के बदन की प्यास बढ़ती जा रही थी और इसलिए वह बेगन को हाथ में पकड़े हुए उसके चिकने वाली भाग को अपनी बुर की दरार में हल्के से स्पर्श कराई ही थी की उसके मुंह से गर्म कुछ कारी निकल पड़ी है क्योंकि उसकी कल्पना में वह बैगन उसके भांजे का तगड़ा लंड ही लग रहा था। उत्तेजना का अनुभव करते हुए उसकी आंखें मस्ती में मुद गई,,,, वह बैंगन के आगे वाले भाग को अपनी बूर पर रगड़ रही थी जिससे उसे बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी। वह अपनी बुर की दरार में बैगन को रगड़ते हुए सिसकारी ले रही थी।


सससससहहहहहह,,,,, आहहहहहह,,,,,, ऊईईईईई,,,,,, मांअ्अ्अ,,,,,,,,

मंगल के बदन मे चुदास की लहर पूरी तरह से फैलने लगी थी। अपनी इस हरकत की वजह से उसके बदन की प्यास और ज्यादा बढ़ रही थी। अब सिर्फ बुर की गुलाबी पत्तियों पर बैगन रगड़ने से ऊसकी प्यास बुझने वाली नहीं थी वह भी चाहती थी कि वह बेगन को अपनी बुर में प्रवेश कराएं,,,,
बैगन की मोटाई कुछ ज्यादा थी लेकिन जिस तरह से उसकी बुर मे चिकनाहट भर चुकी थी उसे देखते हुए थोडी सी मेहनत की जरूरत थी।

मंगल अपनी प्यास बुझाने के लिए अगला कदम उठाते हुए
बैगन को धीरे धीरे करके वह अपनी गुलाबी बुर के छेद पर रख दी,,, गुलाबी छेद पर बैगन का स्पर्श होते ही मंगल का पूरा बदन उत्तेजना में झनझना गया।

दूसरी तरफ सुरज पानी पीने के लिए रसोई घर की तरफ बढ़ता चला आ रहा था,,,, और मंगल भी अपनी प्यास बुझाने के लिए पहली बार ऐसा कदम उठा रही थी। अगले ही पल मंगल ने बैगन को गुलाबी छेद पर रखते हुए,,, ऊस छेद पर बैगन का दबाव बढ़ाने लगी,,,, बुर मे से रिसाव हो रहे मदन रस की चिकनाहट और बैगन पर लगाए हुए सरसों के तेल की चिकनाहट की वजह से बैगन की आगे वाला भाग हल्का सा बुर में प्रवेश करने लगा,,,, बैगन हल्का सा उसकी बुर में प्रवेश कर गया है ऐसा महसूस होते ही उसके चेहरे पर उत्तेजना और खुशी के भाव साफ साफ नजर आने लगे,,,,
उसे अजीब से लेकिन बेहद अत्यंत कामुकता का एहसास और आनंद आ रहा था जिसको वह शब्दों में बयान नहीं कर सकती थी। उसका बदन अजीब से सुख की अनुभूति करते हुए कसमसा रहा था। हल्के से बैगन के प्रवेश कराने मात्र से ही उसे मंजू की कही गई बात शत प्रतिशत सच लगने लगी,,, इतने से ही उसे यकीन हो चला था कि मोटे और लंबे लंड से औरतों को बेहद मजा आता है।

रसोईघर का नजारा पूरी तरह से कामुकता से भरा हुआ था अगर यह नजारा कोई देख ले तो सच में देखने मात्र से ही उसका लंड पानी छोड़ दें। सच में यह नजारा बेहद चुदास से भरा हुआ था। रसोईघर में मंगल अपने ही हाथों से अपने बदन की प्यास बुझाने में लगी हुई थी।
और दूसरी तरफ सुरज इन बातों से बिल्कुल अंजान अपनी प्यास बुझाने के लिए रसोई घर की तरफ बढ़ रहा था। इस समय दोनों प्यासे थे फर्क सिर्फ इतना था कि सुरज की प्यास पानी से बचने वाली थी और उसकी मामी की प्यास एक मोटे तगड़े लंड से बुझने वाली थी।

मंगल बैगन पर और ज्यादा दबाव बढ़ा रही थी ताकि बैगन उसकी बुर में ज्यादा प्रवेश कर जाए। वह बैगन को बुर में और ज्यादा प्रवेश कराने के लिए जेसे ही बैगन पर दबाव बढ़ाई वैसे ही रसोई घर के बाहर रखा हुआ बर्तन सुरज के पैर की ठोकर की वजह से थोड़ी दूर जा कर से नीचे गिर गया,,,, बर्तन गिरने की आवाज सुनते ही मंगल की तो हालत खराब हो गई,,,, और उसके हाथ से हड़बड़ाहट में बैगन छूट कर नीचे गिर गया,,,, वह समझ गई थी कि सुरज रसोई घर की तरफ आ रहा है और उसने जल्दी-जल्दी अपने साड़ी को दुरुस्त की। साड़ी को दुरुस्त करते ही उसने सबसे पहले उस लंबे तगड़े बैगन को छुपा दी,,,
और जाकर तुरंत दरवाजे की कड़ी खोल कर खुद इधर उधर का काम करने लगी तब तक सुरज नीचे गिरे बर्तन को उठाकर वापस वही पर रख चुका था और रसोई घर की तरफ आगे बढ़ रहा था वह रसोई घर में प्रवेश करके मटकी में से पानी निकाल कर पानी पिया और वापस चला गया। रसोई घर के बाहर जाते ही मंगल की जान में जान आई,,,, वह एकदम से घबरा चुकी थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। लेकिन सुरज के जाते ही उस ने राहत की सांस ली थी सुरज को बिल्कुल भी शक ही नहीं हुआ कि कुछ ही मिनट पहले रसोई घर में उसकी मामी अपने बदन की प्यास बुझाने में लगी हुई थी।





मंगल के बदन में चुदास से भरी मस्ती चढ़ी हुई थी,,,, कि इस तरह से सूरज के आ जाने की वजह से वह एकदम से डर गई थी। हड़बड़ाहट ही हड़बड़ाहट में तो वह सूरज के सामने अपनी स्थिति को संभाल ले गई,,,,,, लेकिन उसके मन में इस बात को लेकर एक डर सा बैठ गया। उसे यह लगने लगा कि अगर कहीं उसकी यह हरकत उसका भांजा देख लिया होता तो क्या होता,,,,, क्या होता अगर उस की नजर उस समय उसके ऊपर पड़ती जब वह बैगन को अपनी बुर में डालने की कोशिश कर रही थी,,,, उसका मन यही सोच सोच कर हैरान था,,,, उसके अंदर जो अपनी काम प्यास को तृप्त करने की आस थी वह पानी में मिल चुकी थी। आज बड़ी मुश्किल से अपने अंदर मंगल ने इतनी हिम्मत जुटा ली थी कि आज पहली बार वह अपने संस्कारों के विरुद्ध कोई काम करने जा रही थी,,,,, लंड से ना सही बेगन से ही वह उन मादक चरम सुख की अनुभूति करना चाह रही थी लेकिन बनता काम बिगड़ गया था,,,
उसके मन में इस बात का मलाल जरूर रह गया कि काश सूरज १०:२० मिनट बाद में आता ताकि वह अपनी प्यास को कुछ हद तक बुझा कर एक नया अनुभव प्राप्त कर सकती लेकिन इस बात से राहत भी थी की अच्छा ही हुआ कि सूरज के रसोई घर में आने से पहले ही उसे आने की आहट सुनाई दे दी,,,, वरना वह उसे साड़ी उठाकर अपनी बुर में बैगन डालते हुए जरुर देख लेता और अगर इस हाल में वह उसे देख लेता तो उसके मन मस्तिष्क पर कैसा प्रभाव पड़ता वह उसे एक गिरी हुई औरत के रूप में देखने लगता,,, और वह खुद भी अपने भांजे से नजरें नहीं मिला पाती,,,,,

रसोई घर वाले घटना की बात से मंगल अपना ध्यान इन सभी बातों से हटाने लगी वह नहीं चाहती थी कि ऐसी कोई हरकत वह करते हुए सूरज के हाथों पकड़ी जाए और जिंदगी भर वह अपने ही भांजे की नजरों से गिर जाए।
मंगल तो अपने आप को संभाल ले गई थी लेकिन सूरज के मन मस्तिष्क में उसके दोस्तों के ही द्वारा उसकी मामी की जो ऊन्मादक छवि बनाई गई थी उस छवि को सूरज अपने दिमाग से निकाल नहीं पाया और हर वक्त जब भी उसे मौका मिलता था तो वह अपनी मामी के अंग उपांगो को नजर भर कर देखता जरूर था और उन अंगों की नग्न कल्पना करके अपने आप को उत्तेजना के सागर में सराबोर कर लेता था।
सूरज तो अपनी मामी के नंगे बदन की कल्पना करके ही मस्त हो जाया करता था क्योंकि उसने आज तक अपनी मामी को नंगी नहीं देखा था, और ना ही उसके कामुक रूप को नग्नावस्था में देख कर उस के नंगे बदन का नजरों से ही रसपान किया था। उसे यह सब करने में बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी धीरे-धीरे उसे अब इस बात का पता चलने लगा था कि जब भी वह अपनी मामी के बारे में गंदे विचार अपने मन में लाता था तभी उसका लंड उत्तेजित होकर खड़ा हो जाता था,,,, इस ताक-झांक के खेल में उसे मजा आने लगा था लेकिन उसे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि वह जवानी के जिस चिंगारी से खेल रहा था वह चिंगारी कभी भी शोला का रूप धारण कर सकती थी।
सूरज के मन में औरतों के बदन का आकर्षण बढ़ता ही जा रहा था वह दूसरी औरतों के अंग को भी गौर से देखने लगा था। रही-सही कसर उसके दोस्त पूरा कर दिया करते थे। अपने दोस्त से झगड़ने के बाद वह फिर भी बार बार समय मिलने पर खेल के मैदान में पहुंच जाया करता था लेकिन उसका खेल में मन नहीं लगता था बल्कि उन लोगों की बातें सुनने में मजा आता था। ऐसे ही एक दिन खेल के मैदान में उसके मन में एक नया अरमान जन्म लेने लगा जब उसने उस दिन मैदान पर विकेट कीपिंग करते हुए अपने साथी खिलाड़ी की बात सुनी,,,, जिसमें से एक अपने ही दोस्त को कह रहा था कि,,, यार मैंने कल अपनी चाची को एकदम नंगी बाथरूम में नहाते हुए देख लिया,,,,,,

सच,,,,,, अच्छा यह तो बता क्या क्या देखा तूने?

अरे यार अब क्या बताऊं कि मैंने क्या-क्या देखा यह पूछ कि क्या नहीं देखा चाची बाथरुम में एकदम नंगी होकर के नहा रही थी। मैंने उसका सब कुछ देख लिया उसकी बड़ी बड़ी चूचियां की बड़ी बड़ी गांड और तो और उसकी बालों वाली बुर भी देखा,,,,,,,


यार तब तो मजा आया होगा तुझे,,,,,



यार इतना मजा आया कि पूछ मत मुझे अपने आप को शांत करने के लिए दो बार लंड को हिला कर मुठ मारना पड़ा।


यार इससे अच्छा तो तू जा कर के अपनी चाची को चोद दिया होता। ( वह अपना लंड धोती के ऊपर से सहलाते हुए बोला।)

नहीं यार ऐसा नहीं कर सकता था ऐसा करने पर कहीं चाची मेरी मां को बता देती तो,,,,,,


अरे यार ऐसा कुछ नहीं होता एक बार कोशिश करके के तो देखा होता ऐसे भी तेरी चाची को लगता है कि मोटे लंड की जरूरत है,,,, तभी तो नंगी होकर के नहा रही थी।
( सूरज तो उन लोगों की बातें सुनकर हैरान हुए जा रहा था लेकिन उसे मजा भी बहुत आ रहा था। तभी वह उसकी बात सुनकर बोला। )

यार तू सच कह रहा है मुझे एक बार जरूर कोशिश करना चाहिए था वैसे भी मेरी चाची का खूबसूरत बदन देख कर मेरी तो हालत खराब हो गई थी। जी मैं तो यही आ रहा था कि मैं अभी बाथरुम में हो जाऊं और चाची को अपनी बाहों में भरकर ऊनकी बुर में पूरा लंड पेल दुं।,,,,, ( उन लोगों की बातें सूरज के बदन में हलचल मचा रही थी,,,,, वह भले ही क्रिकेट खेल रहा था लेकिन उसका पूरा ध्यान उन दोनों की बातें सुनने में ही था,,,,,, तभी वह अपनी चाची को चोदने की बात करते-करते बोला,,,,,,

यार तूने कभी कोशिस किया है क्या,,,, ?

नहीं यार अपनी किस्मत में कहा चाची और कहां भाभी है।


वह तेरी दूर की मामी तो है ना,,,,,,
( उसकी बात सुनकर वह मुस्कुराने लगा लेकिन मामी वाली बात कान में पड़ते ही सूरज के लंड में सुरसुराहट होने लगी।)

तूने अपनी मामी या मौसी को तो कभी ना कभी नंगी देखा ही होगा,,,,,,
( सूरज अपने दोस्त के द्वारा ऐसा सवाल पूछता देखकर एकदम दंग रह गया उसका दिमाग तब और ज्यादा झटका खा गया जब ऐसे सवाल पर,,,,,भी,,, उसका दूसरा दोस्त गुस्सा होने की जगह मुस्कुरा रहा था ,,,,,, और मुस्कुराते हुए बोला;।)

हां यार देखा तो हूं,,,,, बहुत बार देखा हूं ज्यादातर मैंने अपनी मामी को नदी किनारे झाड़ियों के पीछे कपड़े धोते हुए एकदम नंगी या तो नहाते हुए एकदम नंगी देखा हुँ।

( इसका जवाब सुनकर सूरज तो एक दम सन्न रह गया। और उसका दूसरा दोस्त अपने धोती पर से ही अपने लंड को सहलाते हुए बोला। )

यार मेरा तो सोचकर ही बुरा हाल हुए जा रहा है कि तेरी मामी कैसे नदी में नंगी नहाती होगी किस तरह से कपड़े धोती होगी ऊसकी बड़ी-बड़ी गांड,,,,ऊफ्फ्फ्फ,,,,, जी में तो आ रहा है कि अभी जाकर के तेरी मामी को चोद दुं,,,

मेरी भी कुछ ऐसे ही इच्छा कर रही है मुझे भी लगता है तेरे घर आना पड़ेगा,,,,,,


हा हा हा आ जाना मेरी मां भी अपने कमरे में नंगी ही रहती है मैं भी बहुत बार देख चुका हूं,,,,,

( उन लोगों की बातें सुनकर सूरज एकदम हैरान हुए जा रहा था इतना तो उसे पता चल ही गया था कि लगभग सभी लोग अपनी मम्मी ओर सारी ओरातो को किसी न किसी रूप में नंगी दे चुके हैं बस वही रह गया था कि जिस ने अभी तक अपनी मामी को नंगी नहीं देख पाया था उन लोगों की बातें सुनकर अब उसके मन में भी यह अरमान जगने लगे कि वह भी अपनी मामी को नंगी देखें। अभी उसके मन में यह सब ख्याल चल रहे थे कि तभी सूरज के दोस्त ने उसी से ही पूछ लिया,,,,,,, )


यार सूरज तेरी मामी तो बहुत ज्यादा चिकनी और मस्त है तूने भी तो कभी ना कभी अपनी मामी को नंगी देखा ही होगा,,,,,

( अपने दोस्त के द्वारा यह सवाल पूछे जाने पर इस बार उसे आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वह अब तो समझ ही गया था कि आपस में यह लोग इसी तरह से बात करते हैं लेकिन इस बार पहले की तरह सुबह में अपने दोस्त की इस बात पर नाराजगी ना दर्शाते हुए बस मुस्कुरा कर ना में सिर हिला दिया।
अब सूरज के मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी अब तो उसके कल्पनाओ के परिंदे मन चाहे वहां पर अपने पर फैलाकर उड़ रहे थे। अब से सूरज ज्यादातर समय इस ताक झांक में लगाकर व्यतीत करता था कि कब ऊसे उसकी मामी का नंगा बदन देखने को मिल जाए। क्योंकि मन ही मन हुआ है इस बात पर भी जरूर गौर करता था कि जब उसकी मामी साड़ी के अंदर इतनी ज्यादा मस्त और कामुक लगती है तो बिना साड़ी के तो वह तन बदन में आग लगा देगी। इसलिए वह अब अपनी मामी के कमरे में बिना दरवाजे पर दस्तक दिए ही कमरे में घुस जाता था । और बाथरूम के दरवाजे को भी हल्के से धक्के देकर के यह जानने की कोशिश करता था कि दरवाजा अंदर से बंद है या नहीं लेकिन उसकी किस्मत खराब रहती थी इसलिए दरवाजा उसे हमेशा बंद ही मिलता था। सूरज बहुत कोशिश कर लिया लेकिन उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
जिस तरह से सूरज अपनी मामी के प्रति आकर्षित होकर के उसके बदन को एकदम नंगा देखना चाहता था उसी तरह से मंगल भी अपने भांजे के प्रति आकर्षित होकर के अपने भांजे के मोटे ताजे लंड को लेकर ढेर सारी कल्पनाएं कर कर के अपने आप को शांत करने की कोशिश करती रहती थी। उसके द्वारा खरीद के लाए गए बैगन तो ना जाने कब से खराब हो चुके थे जिसे वह कूड़ेदान में फेंक चुकी थी। मौका मिलने पर बस वह अपनी हथेली से अपनी बुर की गुलाबी फांकों को रगड़ लेती थी। क्योंकि पति से तो प्यार मिलने से रहा,,,,,।
 

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