Incest गांव का मौसम ( बड़ा प्यारा )

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मंगलदेवी का घर गांव से थोड़ा बाहर खेतो में था। सभी घरों में बल्ब आ गए थे। पर बिजली का अता पता नहीं था, बिजली कभी भी आ जाती रहती इस वजह से गांव वाले बहोत परेशान रहते थे क्योंकि खेती में सिंचाई को कभी भी आधी रात को जाना पड़ता था
(मंगल को शादी के १५ साल गुजर जाने के बाद भी उसे कोई संतान नहीं थी, सूरज जो उसका भांजा था बचपन में अनाथ हो गया था, उसे उसने अपने बेटे की तरह पाला था )
अब कहानी पे आते हे

मंगलदेवी रात को अपने कमरे में अपने पति ( बिलासकुमार ) के साथ गहरी नींद में सोई हुई थी कि अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ कि कोई उसे उसकी बांह पकड़ कर सीधे पीठ के बल कर दीया, और तभी ऊसे ऊसकी गाउन ऊपर की तरफ सरकती हुई महसूस होने लगी। एक पल तो ऊसे ऐसा लगा कि वह सपना देख रही है, क्योंकि वह बहुत ही गहरी नींद में सोई हुई थी वह चाहकर भी अपनी आंखों को खोल नहीं पा रही थी। गाउन पूरी तरह से उसके कमर तक चढ़ चुकी थी कमर से नीचे वह पूरी तरह से नंगी थी, केवल पेंटी ही ऊसके नंगेपन को छीपाए हुए थी की तभी एक झटके से उसकी पेंटी भी उसकी टांगों से होकर के बाहर निकल गई,, कमर से नीचे वह पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी लेकिन कुछ भी उसके समझ में नहीं आ रहा था उसकी आंखें बंद थी। वह इतनी गहरी नींद में थी की आंखें खोलने भर की ताकत उसमें नहीं थी बस एक सपना सा ऊसे लग रहा था। तभी उसकी मोटी मोटी जांघो पर दो हथेलियां महसूस हुई जो कि उसकी जांघों को फैला रही थी,
उसे अपने ऊपर झुकती हुई आकृति महसूस हुई और वह कुछ समझ पाती इससे पहले ही उसे अपनी बुर पर कड़ेपन का अहसास हुआ, जैसे ही उसने आंख खोली उसके मुंह से दर्द भरी कराहने की आवाज निकल गई,,,,,

आहह,,,,,,,,
( उसके कराहने की आवाज के साथ ही उसकी बुर में पूरा लंड जड़ तक घुस गया,,,, )

आहहहहह,,,,,,, रुक जाइए ऐसा मत करिए मुझे बहुत दर्द होता है,,,,,,, रहने दीजिए मुझे बहुत दर्द हो रहा है,,,,,,,,,,,

आहहहहहहह,,,,,,,,, अाहहहहह,,,,,,, औहहहहह,,,, मा्ंआ,,,,,,,, ( मंगल के दर्द कि उसकी पीड़ा की परवाह किए बिना ही बिलास उसकी बुर में बेरहमी से लंड पेलता हुआ बोला।)


बिलास - तू चुदवाते समय ऐसे चिल्लाती है जैसे की पहली बार करवा रही हो। ( इतना कहते हुए वह फिर से जोर जोर से दो-चार धक्के और लगा दिया।)
आहहहहहहह,,,,,, आहहह,,,,,, आहहहहहहह,,,,,,
ओहहहहह,,,, म्मांआआ,,,,,,,
मंगल - तो यह भी कोई तरीका है कितना दर्द होता है मालूम है आपको,,,,,,

मेरा तो यही तरीका है तेरे कहने पर तुझे नहीं चोदुंगा जब मेरा मूड करेगा तभी तुझे चोद़ूंगा।

मैंने कब आपसे कभी कही कि मुझे यह सब करना है,,,,,, ( मंगल आंखों में दर्द के आंसू छलकाते हुए रुंवासी होकर बोली।)

तो कुछ नहीं कहती यही तो तेरी गलती है,, तुझसे शादी करके मेरी जिंदगी खराब हो गई,, मुझे पैसे वाली चूदकड और खुले विचारों वाली बीबी चाहिए थी, शादी के बाद में ऐश कर सकू और उसकी जैसे चाहे वैसी चुदाई कर सकू लेकिन मेरीे नसीब खराब थी कि मुझे तुम मिल गई,

( इतना कहते हुए जोर जोर से दो चार धक्के और लगाया ही था कि वह झड़ने लगा, वह अपना पानी मंगल की बुर में उड़ेलने लगा और हाँफते हुए मंगल के ऊपर ही ढह गया। कुछ देर तक वह मंगल के ऊपर ही लेटा रहा और फिर उठकर सीधे कमरे के बाहर चला गया,,, मंगल अपनी किस्मत को कोसते हुए आंसू बहाते हुए लेटी रही,,,,, मंगल अधूरी जिंदगी जी रही थी उसे वह दिन याद आ गया जब वह मंगल से शादी करके पहली बार इस घर में आई थी। लड़कियों के मन में शादी को लेकर जिस तरह के अरमान होते हैं, वही सब अरमान मंगल के मन में भी था। वह भी अपने मन में सपना संजोए हुई थी कि उसका पति समझदार हो जो उस से बेहद प्यार करे, उस को सम्मान दे उसकी इज्जत करें उसकी जरूरतों का ख्याल रखें। जोकी मंगल दिखाने में बहुत खूबसूरत थी। समझदार चतुर और बेहद संस्कारी लड़की थी। संस्कार तो उसे विरासत में मिली थी क्योंकि उसके माता पिता बहोत दानी थे जरूरत मंदो को हमेशा मदर करते थे।
इस वजह से उनकी काफ़ी जमीन बिक गई, जो बची थी दोनो भाई यो ने ले ली। इसी वजह से मंगल की शादी में वह कुछ ज्यादा कर नही पाए, उन्होंने मंगल को भी अपनी तरह संस्कारी लड़की बनाए हुए थे। मंगल भी अपने माता पिता के राहे कदम पर चलते हुए कभी भी समाज में ऐसा कोई काम नहीं कि जिसे उसके माता पिता की नजरें शर्म से नीचे झुक जाए। वह भी ससुराल मे भी घर का सारा काम संभालकर खेतों का काम संभालकर आस पास के लोगो की मदद करतीं थीं।

बिलाद से शादी करने के बाद उसे लगने लगा था कि उसके सारे सपने पूरे हो गए हैं। और शादी के बाद ठीक वैसा ही था बिलास भी उससे बेहद प्यार करता था उसकी जरूरतों का ख्याल रखता था उसको इज्जत देता था। मंगल भी बेहद खुश थी वह अपने पति को बेहद प्यार करती थी। लेकिन शादी के ५ साल बीतते बाद भी मंगल गर्भवती नही हुईं,, तो उसके और बिलास में अन बन होने लगी । वह अपनी पत्नी मंगल पर कम ध्यान देने लगा अधिकतर समय वह घर से बाहर गांव में या खेतो में कही पड़ा रहने लगा लेकिन इसे भी मंगल को कोई एतराज नहीं था वह अपने पति बिलास से बेहद खुश थी लेकिन धीरे-धीरे बिलास के रवैया में बदलाव आने लगा,,,,,, शादी के तीन साल बाद ही बिलास का व्यवहार मंगल की तरफ बेहद रूखा हो गया। धीरे-धीरे वहां उसकी इज्जत करना बंद कर दिया और उसे बार-बार बेइज्जत कर देता था। मंगल बार-बार बिलास को समझाने की कोशिश करती रहती कि आखिरकार वह ऐसा क्यों कर रहा है उसका स्वभाव इतना ज्यादा चिड़चिड़ा होने लगा। लेकिन बिलास को समझाना मंगल के लिए बेकार सीधा धीरे धीरे मंगल को भी समझ में आ गया कि आखिरकार बिलास का व्यवहार उसके साथ इस तरह से क्यों बदल गया।
बिलास जिस तरह से बिस्तर में एक औरत के साथ प्यार करना चाहता था उस तरह से खुलकर मंगल कभी भी रमेश के साथ बिस्तर पर पेश ना हो सकी। और ना ही उसे कोई बच्चा दे पाई।

बच्चे की खुशी के लिए अपनी ननंद के देहांत के बाद उसके बच्चे को अपने साथ ले आइ और उसे अपने बेटे की तरह पाला। फिर भी बिलास उससे खुश नही था।
एक जिम्मेदार पत्नी होने के नाते वह अपनी कमी को अनदेखा कर के अपने पति की सेवा करके की पूरी कोशिश करते हुए वह बिस्तर पर बिलास के साथ प्यार करने की पूरी कोशिश की लेकिन वह नाकाम रही,,,, लाख चाहने के बाद भी वह बिस्तर में दूसरी औरतों की तरह खुलकर अपने पति से प्यार न कर सकी क्योंकि ऐसा करने में उसके संस्कार उसकीे शर्म बाधा बन जाती थी। धीरे धीरे करके आज शादी के १५ साल गुजर जाने के बाद भी हालात वही के वही थे जबकि वह दोनों की दूरियां और ज्यादा बढ़ने लगी थी मंगल तो हमेशा इसी प्रयास में लगी रहती थी कि वह अपने पति को पूरी तरह से संतुष्ट करके उसे खुश कर सके, लेकिन हर बार उसे नाकामी ही प्राप्त होती थी। अब हाल यह हो गया था कि दोनों का रिश्ता बस बिस्तर पर १० मिनट के लिए ही होता था वह भी जब कभी बिलास का मन होता था तभी वह अपनी प्यास बुझाने के लिए इसी तरह से मंगल के ऊपर चढ़कर उसको दर्द देता हुआ, बेदर्दी बनकर हवस मिटा लेता था। मंगल इसी तरह से रोती बिलखती अपनी किस्मत को कोसते हुए बिलास का हर दर्द सह रही थी।
सभी दुख दर्द सहन कर भी अपने रीति-रिवाज अपनी मर्यादा अपनी शर्मो-हया को कभी भी त्याग नहीं कर पाई थी। मंगल तो चाह थी प्यार की जिसके लिए वह १५ साल से तरस रही थी।
 
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रात में मंगल को बिस्तर पर लेटे लेटे ही सुबह के ७ बज गए पता ही नही चला । उसे ईस बात का एहसास तब हुआ जब मुर्गे की बांग की आवाज वह झट से बिस्तर पर से उठते हुए अपने गांऊन को नीचे की तरफ सरकाई, तभी उसकी नजर नीचे फर्श पड़ी ऊसकी पैंटी पर पड़ी जिसे वह उठाकर अपनी गोरी गोरी टांगों में डालकर धीरे धीरे ऊपर की तरफ उठा कर कमर में अटका ली, वह धीरे धीरे चलते हुए दरवाजे के पास आई और दरवाजा खोलकर कमरे से बाहर निकल गई। ऊसे पता था कि बिलास कही गांव में या कही ओर गया होगा, वह ये सोचते हुए नहाने के लिए घर में बने ईटो के बने बाथरूम में चली गई । बाथरुम में घुसकर वह जल्दी जल्दी दातून करने लगी करने के बाद वहां आइने के सामने खड़ी होकर अपने कपड़े उतारते को हुई वह अपने चेहरे को आईने में देखने लगी,, चेहरा क्या था ऐसा लगता था मानो कोई गुलाब का फूल खिल गया हो,,,, एकदम गोल चेहरा, बड़ी- बड़ी कजरारी आंखें, गहरी आंखों में इतना नशा कि ऊनमें डूबने को जी करें। ठीक है मैंने नाक और होंठ ईतने लाल लाल के लिपस्टिक लगाएं बिना ही ऐसा लगता है कि मानो लिपिस्टिक लगाई हो। रेशमी बालों की बिखरी हुई लटे हमेशा उसके गोरे गालों से अठखेलियां करती थी। बला की खूबसूरत लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर संतुष्टि का आभाव था, प्यार की कमी थी जो कि उसके पति से बिल्कुल भी नहीं मिल पा रही थी। जिसके लिए वह बरसों से तरस रही थी। उसके मन में एक अजीब सी उदासी छाई थी । वह भी अब अपनी जिंदगी से खुशी की उम्मीद को छोड़ चुकी थी। वह के नीचे आई और अपने गाऊन को दोनों हाथों से ऊपर की तरफ ऊठाते हुए अपनी बाहों से होते हुए बाहर निकाल दी, गाऊन निकालते ही उसका गोरा बदन और भी ज्यादा दमकने लगा जिस की चमक से पूरा बाथरूम रोशन हो गया। लंबे कद काठी की मंगल बिना कपड़ों के और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी।
उसके बदन पर केवल गुलाबी रंग की पैंटी और गुलाबी रंग की ब्रा थी। बदन के पोर पोर से ऐसा लग रहा था कि मानो मदन रस टपक रहा हो। गुलाबी रंग की कसी हुई ब्रा मे दूध से भरी हुई बड़ी बड़ी चूचियां बड़ी ही मादक लग रही थी, चुचियों का आकार एकदम गोल गोल ऐसा लग रहा था कि जैसे रस से भरा हुआ खरबूजा हो। कसी हुई ब्रा के अंदर कैद चूचियां आधे से भी ज्यादा बाहर नजर आ रही थी। और चुचियों के बीच की गहरी लंबी लकीर किसी भी मर्द को गर्म आहें भरने के लिए मजबूर कर दे। गुदाज बदन का हर एक अंग अलग आभा और कटाव लिए हुए था। बलखाती कमर पूरे बदन को एक अजीब ओर मादक तरीके से ठहराव दिए हुए था। पूरे बदन पर अत्यधिक चर्बी का कहीं भी नामोनिशान नहीं था पूरा शरीर सुगठित तरीके से ऐसा लग रहा था मानो कि भगवान ने अपने हाथों से बनाया हो। गुदाज बांहैं, जिनमें समाने के लिए हर एक मर्द तरसता रहता था। गुदाज बदन जिसे पाने का सपना हर एक मर्द अपने दिल के कोने में बसाए रखता था। मांसल जांघें ईतनी चिकनी की ऊंगली रखते ही उंगली फिसल जाए।

गोरा रंग तो इतना जैसे कि भगवान ने सुंदरता के सारे बीज को एक साथ पत्थर पर पीसकर उसका सारा रस मंजू के बदन में डाल दिया हो । और कहीं भी हल्के से हाथ रख देने पर भी वहां का रंग एकदम लाल लाल हो जाता था। एक तरह से मंजू को खूबसूरती की मिसाल भी कह सकते थे।
मंगल बाथरूम में बने नल को चालू किए बिना खड़ी होकर के अपने बदन को ऊपर से नीचे तक निहारने लगी। उसे खुद ही कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इस तरह की अपनी किस्मत पर उसे बहुत ही ज्यादा क्रोध आता था। वह मन ही मन सोचती थी कि इतनी खूबसूरत होने के बावजूद उसका हर एक अंग इतना खूबसूरत होने के बावजूद भी वह अपने पति को अपनी तरफ कभी भी आकर्षित नहीं कर पाई। भगवान ने उसे खूबसूरती देने में कहीं कोई भी कसर बाकी नहीं रखा था । लेकिन शायद भगवान को भी इसकी खूबसूरती से जलन होने लगी और उसने उसकी किस्मत में पति से विमुख होना और प्यार के लिए तरसना लिख दिया।
मंगल अपनी किस्मत और अपने जीवन से जरा सी भी खुश नहीं थी। वह मन में उदासी लिए अपने दोनों हाथ को पीछे ले जाकर के नरम नरम अंगुलियों के सहारे ब्रा के हुक को खोलने लगी । और अगले ही पल उसने ब्रा का हुक खोल कर अपनी ब्रा को एक एक करके अपनी बाहों से बाहर निकाल दि। जैसे ही मंगल के बदन से ब्रा अलग हुई वैसे ही उसकी नंगी नंगी चूचियां एक बड़े ही मादक तरीके की गोलाई लिए हुए तनकर खड़ी हो गई। इस उम्र में भी मंगल की बड़ी बड़ी चूचियां लटकने की वजाय तन कर खड़ी थी, जिसका कसाव ओर गोलाई देख कर लड़कियां भी आश्चर्य से दांतों तले उंगलियां दबा ले। मंगल खुद ही दोनों चुचीयों को अपनी हथेली में भर कर हल्के से दबाई जोकी ऊसकी बड़ी बड़ी चूचियां उसकी हथेली में सिर्फ आधी ही आ रही थी। कुछ सेकंड तक वह अपनी हथेलियों को चूचियों पर रखी रही उसके बाद हटा ली। उसके बदन पर अब सिर्फ पेंटी ही रह गई थी जिसके दोनों की नारियों पर मंजू की अंगुलियां ऊलझी हुई थी, और वह धीरे धीरे अपनी पैंटी को नीचे की तरफ सरकाने लगी,,,,, मंगल तो औपचारिक रुप से ही अपनी पेंटिं को नीचे सरका रही थी लेकिन बाथरूम का नजारा बड़ा हि मादक और कामुक था। अगले ही पल मंगल ने घुटनों के नीचे तक अपनी पेंटी को सरका दी, उसके बाद पैरों का सहारा लेकर के पेंटी को अपनी चिकनी लंबी टांगों से बाहर निकालकर संपूर्ण रुप से एकदम नंगी हो गई। इस समय बाथरुम की चारदीवारी के अंदर वह पूरी तरह से नंगी थी उसके बदन पर कपड़े का एक रेशा तक नहीं था। बाथरूम के अंदर नग्नावस्था मैं वह स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लग रही थी। जांघों के बीच पेंटी के अंदर छीपाए हुए बेशकीमती खजाने को वह आजाद कर दी थी, मंगल ने अपनी बेशकीमती रसीली बुर को एकदम जतन से रखी हुई थी तभी तो इसे उम्र में भी उसकी बुर की गुलाबी पंखुड़ियां बाहर को नहीं निकली थी, बुर पर मात्र एक हल्की सी लकीर ही नजर आती थी जो कि ईस उम्र में नजर आना नामुमकिन था, मंगल की बुर पर बस एक पतली सी गहरी लकीर ही नजर आती थी और उसके इर्द-गिर्द गुंगराले बाल के हल्के रेशे थे। क्योंकि बुर पर बाल जो कभी बिलास को पसंद हूवा करते थे, मंगल के नितंबों की तारीफ जितनी की जाए उतनी कम थी। नितंबों का उभार कुछ ज्यादा ही था । देखने वाले की नजर जब भी मंगल की मदमस्त उभरी हुई गांड पर पड़ती थी तो वह देखता ही रह जाता था और मन में ना जाने उस के नितंबों को लेकर के कितने रंगीन सपने देख डालता था।
नितंबों पर अभी भी जवानी के दिनों वाला ही कसाव बरकरार था। गांड के दोनों फांखों के बीच की गहरी लकीर,,,,, ऊफ्फ्फ्फ,,,,,,,, किसी के भी लंड का पानी निकालने में पूरी तरह से सक्षम थी। इतना समझ लो कि मंगल पूरी तरह से खूबसूरती से भरी हुई कयामत थी ।

उसने नल चालू कर ऊपर बने टंकी से पानी नीचे आ कर शावर की तरह गिराने लगा । सावर के नीचे खड़ी होकर नहाना शुरू कर दी । वह आहिस्ते आहिस्ते साबुन को अपने पूरे बदन पर रगड़ रगड़ कर लगाई,,,,, वह साबुन लगाए जा रही थी और उसके बदन पर पानी का फव्वारा गिरता जा रहा था। थोड़ी देर में वह नहा चुकी थी और अपने नंगे बदन पर से पानी की बूंदों को साफ करके अपने बदन पर टॉवल लपेट ली।
अपने नंगे बदन पर टावल लपेटने के बाद वह बाथरुम से निकल कर सीधे अपने कमरे में चली गई। कमरे में जाते ही उसने अलमारी खोली जिसमें उसकी मैं ही रंग-बिरंगी साड़ियां भरी हुई थी। उसमें से उसने अपने मनपसंद की साड़ी निकाल कर ब्लाउज पेटीकोट और उसी लाल रंग की ब्रा पेंटी भी निकाल ली।
उसके बाद वह आइने के सामने खड़ी होकर के अपने बदन पर लपेटे हुए टॉवल को भी निकालकर बिस्तर पर फेंक दी और एक बार फिर से उसकी नंगे पन की खूबसूरती से पूरा कमरा जगमगा उठा। सबसे पहले वहं ब्रा उठा करके उसे पहनने लगी और अपनी बड़ी बड़ी चूचीयो को फिर से अपनी ब्रा में छुपा ली, फिर ऊसने पेंटी पहनकर अपने बेश कीमती खजाने को भी छीपा ली। धीरे धीरे करके उसने अपने बदन पर सारे वस्त्र धारण कर ली। इस वक्त अगर कोई मंगल को देख ले तो उसके मुंह से वाह वाह निकल जाए। जितनी खूबसूरत और निरवस्र होने के बाद नजर आती है उससे भी कहीं ज्यादा खूबसूरत कपड़े पहनने के बाद दीखती थी।
अपने पसंदीदा गुलाबी रंग की साड़ी में वह बला की खूबसूरत लगती थी। लंबे काले घने रेशमी बाल भीगे होने की वजह से उसका ब्लाउज भीग गया था जिसकी वजह से उसके अंदर की लाल रंग की ब्रा नजर आ रही थी। जो कि बड़ा ही मनमोहक लग रहा था। मंगल कमर के नीचे साड़ी को कुछ हद तक टाइट ही लपेटती थी जिससे कि उसके कमर के नीचे का गांड का घेराव कुछ ज्यादा ही उभरा हुआ नजर आता था । ईस तरह से साड़ी पहनने की वजह से उसके अंगों का उभार और कटाव साड़ी के ऊपर भी उभर कर सामने आता था। जिसे देख कर हर मर्द ललचा जाता था । मंगल आपने के लिए बालों को सुखाकर उसे सवारने लगी।
थोड़ी ही देर में मंगल पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी वह तैयार होने के बाद बेहद खूबसूरत लग रही थी मगर ऐसे में दूसरा कोई भी इंसान देख ले तो उसके मन में मंगल को पाने की लालसा जाग जाए। मंगल खुद भी यही सोचती थी, लेकिन उसे यह नहीं समझ में आ रहा था कि उसके पति बिलास को आखिर क्या चाहिए था।
मंगल तैयार होने के बाद जैसे ही कमरे का दरवाजा खोलने को हुई बाहर आ गई।
 
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उसे घर के बने मंदिर में से आवाज आने लगी।
घर के मंदिर से आ रही आवाज सुनकर वह समझ गई की सूरज सुबह जल्दी उठकर तैयार हो चुका है। सूरज उसके भांजे का नाम था, लेकिन सूरज को वह अपना सगा बेटा मानती थी। सूरज जोकि बड़ा ही संस्कारी लड़का था।
घर में सब से पहले वही उठता था और नित्य कर्म करके नहा धोकर के सबसे पहले वह भगवान की पूजा किया करता था। सूरज का व्यवहार दूसरे लड़कों की तरह बिल्कुल भी नहीं था वह बहुत ही सादगी में रहता था घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी। बिलास ने मौज शौख के सारे सामान घर में बसा रखे थे लेकिन इन सब से सूरज का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था वह बस अपने काम से काम रखता था। खेतो के कामों में और व्यायाम और कसरत बस इसी में हमेशा रचा पचा रहता था। सुबह ४:०० बजे ही उठ कर उसकी दिनचर्या शुरू हो जाती थी। कसरत और व्यायाम करना वह कभी नहीं भूलता था।
सूरज कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर की तरफ जाने लगी जैसे ही सीढ़ियों से उतर कर नीचे पहुंच ही रही थी कि सामने से पूजा के कमरे से सूरज बाहर आ रहा था और वहां अपनी मामी को देखकर सबसे पहले ऊन्हे नमस्ते किया।

प्रणाम मामी (अपनी मामी के पैरों को छू कर के)

जीते रहो बेटे,,,,, तैयार हो गए,,,

हां मामी मैं तैयार हो गया।

जाओ किचन में गरमा गरम दूध पी लो।

जी मामी ( इतना कहकर वह रसोईघर में दूध पीने चला गया,, तभी रमेश आवारा गुमकर घर में वापस आ गया । घर में घुसते ही वह मंगल पर नजर डाले बिना ही नहाने बाथरूम की तरफ चला गया। इसी तरह से बिलास का मंगल को नजर अंदाज करना कांटे की तरह चुभता था। मंगल की इस तरह की हरकत को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाती थी लेकिन कर भी कुछ नहीं सकती थी इसलिए वह मन में दर्द की वेदना लिए अंदर ही अंदर घुटती रहती थी।

थोड़ी देर बाद वह खाना तैयार करके, खाना लगाकर बिलास का इंतजार कर रही थी, मंगल शुरू से ही बिलास के खाने के बाद ही या उसके साथ ही भोजन करती थी लेकिन इस बात की बिलास को बिल्कुल भी परवाह नहीं होती थी। रोज की ही तरह वह तैयार होकर के आया और नीचे जमीन पर बैठकर मंगल से बिना कुछ बोले ही खाना खाने लगा। रोटी सब्जी खाते समय तिरछी नजर से मंगल पर जरूर नजरें फेर ले रहा था लेकिन बोल कुछ भी नहीं रहा था। मंगल बिलास के मुंह से अपनी खूबसूरती की तारीफ में दो शब्द सुनने को तरस गई थी।
मंगल से तो झूठ मूठ का भी तारीफ में दो शब्द नहीं निकलते थे। लेकिन राह चलते कभी भी गांव के लफंगो के मुंह से उसे अश्लील तारीफ सुनने को मिल ही जाती थी।
हाय क्या माल है,,,, हाय चिकनी कहां जा रही हो,,,,, कभी कभी तो ईससे भी ज्यादा गंदी बाते सुनने को मिल जाते थे।

हाय मेरी रानी,,,, चुदवाओगी,,,,,,,, तुम्हारी गांड कीतनी बडी़ है,,,,,,, कभी हमे भी दुध पिला दीया करो,,,,,,,

इस तरह के बाते सुनकर के तो मंगल अंदर ही अंदर डर के मारे थरथरा जाती थी। वह अपने बारे में इस तरह के बाते सुनने की बिल्कुल भी आदी नहीं थी वह तो अपने पति के मुंह से अपनी खूबसूरती में चंद शब्द सुनने को तरस रही थी। लेकिन उसकी यह तरस दिन-ब-दिन तड़प मे बदलती जा रही थी। बिलास चुपचाप खाना करके मंगल से बिना कुछ बोले खेतो में निकल गया । मंगल भी आखिरकार अपनी किस्मत से समझौता करते हुए चुपचाप खाना खा लिया।
सूरज भी खाना खाकर करके खेतो में जाने के लिए बिल्कुल तैयार बैठा था सूरज एक दम गोरा चिट्टा गठीला बदन वाला लड़का था कसरत और व्यायाम करने की रोज की आदत की वजह से वह एकदम सुगठित बदन का मालिक बन चुका था उम्र कम होने के बावजूद भी वह अपनी उम्र से १ या २ साल बड़ा ही लगता था। गांव लड़कियां सूरज के सुगठित बदन को देखकर मन ही मन सिसकारी भरा करती थी। गांव लड़कियां हमेशा कोई ना कोई बहाना ढूंढती रहती थी सूरज के नजदीक जाने की लेकिन सूरज थाकी उन लोगों को जरा भी घास नहीं डालता था। वह बिना वजह के कुछ बोलता ही नहीं था।
मंगल को सूरज का यह शांत स्वभाव बहुत अच्छा लग रहा था वह सुबह से हमेशा प्यार से ही बातें करती थी।
मंगल ने आज तक सूरज को किसी भी बात के लिए ना डांटी ना फटकारी,,,, और सूरज भी कभी कोई ऐसी गलती करता ही नहीं था कि मंगल को इस तरह के कदम उठाने पड़े।
सूरज शुरू शुरू में ७ साल तक में अपने नाना और छोटे मामा के पास ही रहता था जहां पर उन्होंने उसे सिश्त में रहना सिखाया,,,,, संस्कार का बीज बचपन से ही सूरज के अंदर बोना शुरु कर दिए थे। जिसका असर आज सूरज के व्यवहार में नजर आता था। सूरज के नाना के निधन के बाद मंगल ने उसे अपने पास लाकर संबलने लगी,,,,,
मंगल अभी खाना खा के तैयार हो चुकी थी वह अपने कमरे में जाकर कि अपना खेतो में काम करने का सामान ले आई, सूरज घर के बाहर आकर के बैलगाड़ी निकल कर के बाहर खड़ा हो कर के अपनी मामी का ही इंतजार कर रहा था।
मंगल आ के बैलगाड़ी में बैठ गई।
मामी के बैठते ही सूरज ने बैलों को हाकते हुए बैलगाड़ी खेतो की तरफ चल पड़े।

लगभग ,,,,,, २० मिनट के बाद वह अपने खेती में पहुंच गए। बैलों को खोलकर उने चारा डालकर बैलगाड़ी सही जगह खड़ी कर कर सूरज खेत में फसल देखने और सिंचाई के लिए मोटर चालू करने जा रहा था ।
सूरज अपनी मामी के आगे आगे चल रहा था और मंगल उसके पीछे पीछे,,,,

तभी पीछे से किसी ने मंगल को आवाज़ लगाई।

मंगल,,,,, मंगल,,,,,,, ( तभी जानी-पहचानी आवाज सुनकर मंगल खड़ी होकर के पीछे की तरफ देखने लगी और मंजू को आती देख कर मुस्कुराने लगी,,,, मंजू जल्दी-जल्दी मंगल की तरफ बढ़े चली आ रही थी।)

(मंजू का खेत मंगज के बाजू में ही था। वहा मंजू सब्जी उगाया करती थी। और गांव में जा के बेचती थी। इसमें मंगल भी उसकी मदद करती थी )

अरे इतनी जल्दी जल्दी,,,,, कहा चली जा रही हो खेत भाग नहीं जाएगी,,,,,,, अभी बिजली आने में १० मिनट का समय है,,,,,, ( मंजू की आवाज सुनकर सूरज भी रुक गया था जिसे देखकर मंजू बोली।)
तुम जाओ बेटा हम दोनों थोड़ी बाते करनी हैं।
( सूरज मंजू को मौसी कहता था, दूर के रिश्ते से वह उसकी मौसी लगती थी )
मंजू मौसी जी बोलिए,,,,,, ( इतना कहकर सूरज अपने खेतों की तरफ चला गया उसे जाते हुए मंजू कुछ देर तक उसे देखती ही रही,,, जब भी वह सूरज से मिलती थी तो उसकी नजरें उसके गठीले बदन पर ऊपर से नीचे की तरफ घूमती रहती थी,,,, और सूरज इतना नादान था कि मंजू की कामुक नजरों को वह पहचान नहीं पाता था। मंजू भी लंबे कद काठी की गोरी औरत थी,,, उसके भी बदन का हर एक उभार और कटाव बड़ा ही कामुक लगता था। गोल गोल बड़ी चूचियां लेकिन मंगल से थोड़ी छोटी,,,, उभार लिए हुए नितंब भी बड़े ही उन्मादक और कामुक थे लेकिन मंगल से कम ही।
मंजू की ब्लाउज में थोड़ा कटाव रहता था, जिससे कि उसके चुचियों के बीच की लकीर कुछ ज्यादा ही नजर आती थी। सुंदरता के मामले में मंजू भी कुछ कम नहीं थी लेकिन मंगल उसे एक कदम आगे ही थी क्योंकि मंजू भी उसकी खूबसूरती के आगे पानी भर्ती थी जो कि यह बात वह खुद उसके सामने मान चुकी थी।
मंजू बड़े ही तेज कदमों से चलती हुई मंगल के पास आई थी इसलिए थोड़ा सा हांफ रही थी और हांफते हुए बोली।

क्या यार इतनी जल्दी जल्दी कहां चली जा रही हो गांड मटकाते हुए।

मंजू,,,,, यह क्या कह रही हो तुम कोई सुन लेगा तो क्या सोचेगा तुम्हारे बारे में,,,,, आखिर तुम एक ओरत हो को ऐसी गंदी भाषा का प्रयोग करना बिल्कुल भी शोभा नहीं देता।,,,,

हां जानती हूं लेकिन अपनी भी तो कोई जिंदगी है अपना भी मन करता है कुछ ऐसी बातें करने का जिससे अपने अंदर भी गनगनाहट आ जाए। ( इतना कहकर वह
हंसने लगी और उसको हंसता हुआ देखकर मंगल बोली।)
 
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तुम नहीं सुधरोगीे,,,,,, (इतना कहकर वह खेतो की तरफ कदम बढ़ाने लगी और उसके पीछे पीछे चहकते हुए मंजू भी जाने लगी,, मंजू उससे बस एक कदम की दूरी पर चल रही थी कि उसका हाथ पकड़कर उसे रोकते हुए बोली। )

रुको तो सही मंगल,,, तुम्हें तो ना जाने कौनसी जल्दी पड़ी रहती है,,,, खेतो में जाने के लिए,,,,,,

अरे मंजू समय हो गया है कुछ ही मिनटों में बिजली आ जाएगी फसल को पानी भी देना हे।

यार तुम्हे तो बस गांड मटकाने का बहाना चाहीए ।

क्या मंजू तुम भी ना शुरू हो जाती हो तो चुप रहने का नाम ही नहीं लेती।,,,,,

यार जो सच है वही कह रही हूं झूठ नहीं कह रही,,,, तुमको शायद इस बात का अंदाजा भी नहीं है कि जब चलती हो तो न जाने कितनों पर अपनी यह मदमस्त गांड का ( हाथ से मंजू की गांड की तरफ इशारा करते हुए) कहर ढाते हुए चलती हो।

मन,,,,,, जू,,,,,,,, चुप भी करो किसी ने अगर सुन लिया तो तुम्हारे साथ साथ मैं भी बदनाम हो जाऊंगी।

अरे छोड़ो भी यार कुछ नहीं होगा,,,,,,,,, सच में यार तुम्हारी मटकती हुई बड़ी-बड़ी गांड देखकर तो मेरे मुंह से सिसकारी निकल जाती है।,,,,, ( मंजू की बातें सुनकर मंगल आंखें तरेर कर उसकी तरह बनावटी गुस्सा दिखाते हुए देखने लगी।)

सच यार मंगल मुझे तो बिल्कुल भी यकीन नहीं होता कि इस उम्र में भी तुम्हारी गांड का कसाव जवानी के दिनों वाला है। तुम्हें जब भी चलते हुए देखती हूं तो सबसे पहले मेरी नजर तुम्हारी मटकती हुई गांड पर ही जाती है। तुम इतना टाइट साड़ी कमर के नीचे से बांधती हो कि तुम्हारी नितंबों का एक-एक उभार साफ-साफ नजर आता है।

अरे मंजू,,,,,,,,,,,


सुनो तो सही यार मंगल तुम भी हो की,,,,,,,,, मैं सच कह रही हूं कोई मजाक नहीं कर रही,,,,, तुम्हारी बात ही कुछ अलग है। मेरी भी मस्त है लेकिन तुमसे थोड़ी कम ही है इसलिए तो तुम्हारे नितंबों को देख कर मुझे तुमसे जलन होती है।
( मंजू की बात सुनकर मंगल हंसने लगी और हंसते हुए बोली।)

जलन,,,,,,,,,, किस बात की जलन!

अरे यार पूरी खूबसूरती का खजाना हो और कहती हो किस बात की जलन,,,,,, तुम्हारे रूप लावण्य ओर अंगों का उभार कटाव देखकर तो हर औरत तुमसे जलती होगी।( मंगल उसकी बातें सुनकर मंद मंद मन में ही मुस्कुरा रही थी।)
यार मंगल कसम से अगर मेरे पास तुम्हारी जैसी बड़ी बड़ी चूचियां और यह बडी़े-बडी़े गोल-गोल गांड होती तो मैं तो जिस पर जाहती उस पर कहार बरसाती।,,,,,

बस करो मंजू अब समय हो गया है हमें चलना चाहिए।( इतना कहकर मंगल चलने लगी और उसके पीछे-पीछे मंजू भी चलने लगी लेकिन वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही थी।)

मंगल सच कह रही हो भाई साहब तुम्हारे रूप तुम्हारे खुबसुरत बदन को देख कर दो दीवाने ही हो जाते होंगे और तो और रोज तुम्हारी जमकर लेते होंगे।


बस यार मंजू कितना बकबक करती हो बस अब कुछ नहीं मुझे खेतो में बहोत काम हे।

ठीक है कुछ नहीं बोलूंगी लेकिन बाद में मिलते हैं ठीक है ना,,,,,,( इतना कहकर मंगल अपने खेतो की तरफ जाने लगी और मंजू अपने खेतो की तरफ,,,, चलते-चलते मंगल को मंजू के द्वारा कही गई सारी बातें याद आने लगी और मन ही मन वह खुश होकर मुस्कुराने लगी भले ही मंगल उपर से एसी बातो को नापसंद करने का ढोंग करती हो लेकिन अंदर ही अंदर मंजू की कही गई एक एक बात से वह बेहद प्रसन्न होती थी। यही सब बातें वह अपने पति के मुंह से सुनने के लिए तरस जाती थी। जो बातें बिलास को कहनी चाहिए थी वह सारी बातें मंजू कहती थी। लेकिन मंगल को भी यह बात बड़ी अजीब लगती थी कि यही सारे बाते अगर कोई मर्द करता था तो उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था और वह अंदर ही अंदर घबराहट महसूस करती थी, लेकिन यही सब बातें मंजू के मुंह से बड़ी अच्छी लगती थी। उसके बदन के एक-एक अंग का तारीफ जिस तरह से रत्ना करती थी उसे सुनकर मंजू के बदन में झनझनाहट सी होने लगती थी। मंजू के लिए भी एक तरह से यह बड़ी फक्र वाली बात थी, क्योंकि अगर किसी औरत की तारीफ एक मर्द करता है तो वह अलग बात होती है,,,,, क्योंकि मर्द अपने फायदे के लिए ही औरत की तारीफ करता है,,,, उसी औरत से जब अपने मतलब की कोई चीज चाहिए रहती है तभी वह औरत की तारीफ करता है। लेकिन एक औरत जब किसी औरत की तारीफ करें तो जरुर उस औरत ने कोई न कोई बात जरुर होती है जो दूसरी औरतों को भी आकर्षित करती है। इसलिए वह रत्ना की बातें सुनकर हमेशा प्रसन्नता से गदगद हो जाया करती थी। लेकिन इस बात को कभी भी वह रत्ना पर जाहिर होने नहीं दी। रत्ना के सामने वह हमेशा ऐसा ही बर्ताव करती थी की उसे उसकी बातें बिल्कुल भी पसंद नहीं होती हैं। तभी चलते चलते उसे गांड मटकाने वाली बात याद आ गई और वह ना चाहते हुए भी अपनी नजरें पीछे घुमाके अपनी गांड की तरफ देखने लगे कि क्या वाकई में चलते समय उसकी गांड ज्यादा मटकती है। नजरें घुमा कर भी वहां अपनी मटकती हुई गांड के उतार-चढ़ाव को देखकर फैसला नहीं कर पाई।

मंगल खेतो में जा रही तब उसे किसी के फुसफुसाहट की आवाज सुनकर कोतूहल वश वह रुक कर पर आवाज को सुनने लगी।वहा खेती में पेड़ के पीछे औरते की बातचीत की आवाज को सुनकर मंगल हैरान हो गई उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि गांव की औरते इस तरह की बातें कर सकती हैं। ओरते मंगल के बारे में ही अपनी अपनी राय दे रही थी।

मंगल कितनी खूबसूरत है मैंने आज तक ऊन जैसी खूबसूरत औरत कभी भी नहीं देखी,,,,,


हां तू बिल्कुल सच कह रही है। भगवान ने उन्हें बड़ी फुर्सत से बनाया है । लगता है कि पानी से नहीं दूध से नहाती है तभी तो इतनी ज्यादा गोरी है,,,
( तभी तीसरी औरत की आवाज आई,,,,)

तूने उनकी चूचियां देखी है,,,,,,,, चुचीयां,,,,,,,,, कितनी बड़ी-बड़ी है,,,,,
( तभी बीच में दूसरी औरत बोली)

मुझे तो लगता है कि मंगल अपनी चुचियों के साइज से कम साइज की ब्रा और ब्लाउज पहनती है,,,,,, तभी तो देख उनकी चुचियों के बीच की लकीर कितनी लंबी नजर आती है,,,,,,
( तभी उनमें से एक औरत बात को बीच में काटते हुए बोली,,,,,)

नहीं ऐसा नहीं है उनकी चूचियां है ही इतनी बड़ी-बड़ी के ब्लाउज में ही नहीं समा पाती,,, इसलिए तो उनकी छातीयां ऐसी लगती है जैसे कि कोई विशाल पर्वत हो,,,,,, उनकी चूचियां देख कर तो ऐसा ही लगता है कि उसके पति रोज दबा दबा कर और घंटों मुंह में भर कर पीते होंगे तभी तो इतनी मस्त गोल-गोल और बड़ी है,,, और सबसे खास बात तो यह कि इस उम्र में भी उनकी चुचियो का कसाव बरकरार है,,, वर्ना ईस उम्र में तो ढीली पड़ जाती है और लटकने लगती है
( तभी उनमें से एक औरत बोली,,,,)

काश भगवान ने मेरी भी चुचीयां इतनी बड़ी-बड़ी बनाई होती तो कितना मजा आ जाता है,,,,,,
( एक औरत दूसरी औरत की बीच में चुटकी लेते हुए बोली,,,,,)
चिंता मत कर तेरी चूचियां भी बड़ी बड़ी हो जाएंगी जब तेरा पति ईसे दबा दबा कर पिएगा,,,,,,

मेरा पति इसे दबाता भी नही २ मिनट में झड़ जाता ही। अब इन छोटे-छोटे चीकू से बिल्कुल भी मजा नहीं आ रहा है,,,,
( अब दूसरी औरत उसके इस बात पर चुटकी लेते हुए बोली।)

मेरी जान तब तक मेरे पति को ही बोल दे वह खूब दबा दबा कर पीएगा कुछ दिनो में ही तेरे चीकू खरबूजे हो जाएंगे,,,,,
( उसकी बात पर सारी औरते खिलखिलाकर हंस दी,, और पेड़ के पीछे खड़ी मंगल उन औरतों की बात सुनकर पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी उसे तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें,,, ओरतो भी इतनी गरम और गंदी बातें कर सकती है आज पहली बार वह अपने कानों से सुन कर ही उस बात पर भरोसा कर पाई थी,,,,, मंगल उन ओरातो की बात सुनकर गनंगना गई थी,,,, मंगल को उड़ती की बातें सुन कर रहा नहीं गया और उसने एक नजर अपनी छातियों पर फिरा दी,,,,, लेकिन इस पर भी मंगल को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वह उन औरतों की बात सुनकर हैरान हो या उन औरतों के द्वारा की गई तारीफ सुनकर प्रसन्न हो,,,,,, वह कुछ समझ पाती उससे पहले ही कुछ देर से खामोश बैठी औरत बोली,,, जिसकी बातें सुनकर मंगल पूरी तरह से दंग और स्तब्ध रह गई


यार तुम लोग तो मंगल की चुचियों के पीछे पड़े हो असली खूबसूरती की तरफ तो तुम लोगों का ध्यान ही नहीं जाता,,,,,

(सभी औरते एक साथ बोली,,,)

कौन सी असली खूबसूरती,,,,,,,


मंगल जी की गांड,,,,,,, ( गर्म आहें भरते हुए बड़े ही कामुक अंदाज में वह लड़की बोली,,,,,)

गांड,,,,,,, ( एक साथ सभी औरतों के मुंह से निकला)

हां गांड,,,,,, कसम से यार उनकी बड़ी-बड़ी भरावदार गांड पर जब भी मेरी नजर जाती है तो ना जाने मुझे क्या होने लगता है,,,,, एक अजब सी ख़ुमारी मेरे अंदर अपना असर दिखाने लगती है और मैं मंत्रमुग्ध सी बस मैडम की भरावदार नितंबों को ही घुरती रहती हूं

( तभी दूसरी औरत उसके सुर में सुर मिलाते हुए बोली,,,)

हां तू बिल्कुल सच कह रही है मैं भी जब भी मंगल की गांड देखती हूं तो मुझे भी अजीब सा नशा छाने लगता है जी करता है कि बस उनकी गांड को देखते ही जाऊं,,,,,,
( बारी-बारी से सभी औरते ने मंगल की गांड की तारीफ में अपना मत व्यक्त करने लगे)
हां यार सच है, मंगल की गांड देख करके हम ओरतो की हालत खराब हो जाती तो सोचो मर्दों का तो लंड ही खड़ा हो जाता होगा,,,,,,,
 
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( बारी-बारी से सभी ओरते ने मंगल की गांड की तारीफ में अपना मत व्यक्त करने लगे)
हां यार सच है, मंगल की गांड देख करके हम ओरातो की हालत खराब हो जाती तो सोचो गांव के मर्दों का तो लंड ही खड़ा हो जाता होगा,,,,,,,

( इतना सुनते ही तो मंगल की हालत खराब होने लगी उसने कभी सपने में भी नहीं सोची थी की गांव की औरतें इस हद तक इतनी गंदी बातें कर सकती हो इतने गंदे शब्दों का प्रयोग कर सकती है,,,,,, ओरतो की गंदी बातों का असर मंगल बूर पर पूरी तरह से छा चुका था,,,,,, उसे अपनी जांघो के बीच बुर में से पानी जैसा रिसाव महसूस हो रहा था,,,, उनकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी,,,, शर्म के मारे मंगल का चेहरा सुर्ख लाल हो वह वहां से चली जाना चाहती थी लेकिन ना चाहते हुए भी उन औरतों की बातें सुनकर उनके कदम वही के वही ठीठक से गए थे।,,, ओरातो की बातें खत्म ही नहीं हो रही थी,,,,

यार कसम से जब वह चलती है ना तो ऊनकी मटकती हुई गांड देखकर मुझे उनसे जलन होने लगती है,,,,,
( तभी फिर से एक औरत बीच में चुटकी लेते हुए बोली)

तुझे किस बात की जलन होने लगी तेरी भी तो गांड बड़ी-बड़ी है।

हां वह तो है लेकिन मंगल की बात कुछ और ही है ऊनकि गांड का घेराव कितना गोल है,,, जब चलती है तो उनकी बड़ी-बड़ी गोल गांड कितनी थिरकती है,,, उस तरह की थिरकन अपनी गांड में कहां देखने को मिलती है,,,

हां यार यह भी सच है कुछ भी हो मंगल की खूबसूरती और उनके बदन की बनावट खास करके उनकी चूचियां और बड़ी-बड़ी गांड उनकी उम्र की तो ठीक हम लड़कियों को भी पानी भरने पर मजबूर कर दे,,,,
( मंगल तो औरतो के मुंह से अपनी तारीफ इस उम्र में भी इस हद तक सुन करके गर्वित हुए जा रही थी उसकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना ना था,,,,, लेकिन अपनी तारीफ सुनकर भी उसे अंदर ही अंदर शर्म सी महसूस हो रही थी,,,,, अब बहोत समय हो चुका था वह शर्म के मारे खेतो में जाने से हिचकीचा रही थी, क्योंकि रास्ता वही पेड़ के बाजू में से खेतो की तरफ जाता था।कुछ देर के लिए मंगल आगे बढ़ गई,,,,,,, जब मंगल खेतो में जाने के लिए पेड़ के पास से जाने लगी, तब सारी ओरते चुप हो गई। वहासे कुछ कहे बिना मंगल अपने खेतो की तरफ निकल पड़ी । उसके चेहरे पर शर्म की लालिमा छाई हुई थी,,,,,,,, मंगल की खूबसूरती की तारीफ का सिलसिला थोड़ी देर के लिए रुक गया,,,

तभी ओराते आपस में बोली कही हमारी बाते सुनी तो नही।
तभी एक औरत बोली सुनी भी तो क्या मंगल ही ही इतनी खूबसूरत और सभी औरते हस कर अपने अपने खेतो में जाने लगे।
दिन भर खेतो के कामों में व्यस्त होने के कारण मंगल ये सब बाते भूल गई।
फिर जैसे तैसे शाम होने लगी, सूरज मंगल को लेकर बैलगाड़ी से घर के लिए निकल जाती थी। यही उसकी रोज की दिनचर्या थी,,,, एक यही खेत ही तो था जहां पर रत्ना और गांव की बाकी ओरतो वह हंस बोल लेती थीं, गांव की ओराते कभी उससे मजाक कर लेती थी। उसके उदास चेहरे पर थोड़ी बहुत हंसी के फुहारे फुटने लगते थे और वह कुछ समय के लिए अपना दर्द भूल जाती थी। लेकिन घर पर पहुंचने के बाद फिर से एक अजीब सी बेचैनी उसके अंदर घर कर जाती थी। और वह फिर उदास हो जाती थी,,,,
घर पर लौटते-लौटते शाम हो जाती थी,,।

कोई सोच भी नहीं सकता कि मंगल जैसी खूबसूरत और हसीन औरत भी प्यार के लिए तरस सकती है।
उसकी खूबसूरती देखकर हर इंसान यही सोचता होगा कि यह औरत इस दुनिया में सबसे ज्यादा खुश नसीब व होगी जो भगवान ने इसे इतनी ज्यादा सुंदरता तोहफे में दी है,,, बातें खुशनसीब है यही और वह लोग भी खुशनसीब होंगे जो इसके इर्द गिर्द और इससे रिश्ते में जुड़े होंगे,,,,, और सबसे ज्यादा नसीब वाला होगा ईसका पति,,,, जो इसके खूबसूरत बदन का दिन रात रसपान करता होगा इसको भोगता होगा,,,, उसके मखमली नाजुक रस से भरे अंगों को, अपने हाथों से छुता होगा,मसलता और रगड़ता होगा,, और अपने प्यासे होठों से उसके अंगों को चूमता होगा। मंगल और उसके परिवार को बाहर से देखने वाले सभी यही सोचते होंगे लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी आभास नहीं होगा कि बाहर से खुश दिखने वाली निर्मला अंदर ही अंदर ना जाने कितनी वेदनाए लेकर कितनी पीड़ा सहन करके जिंदगी गुजार रही है।
इस पीड़ा इस दर्द को निर्मला अकेले ही बरसों से सहन करती आ रही थी,,, बिलास तो अपनी दुनिया में ही मस्त था। अपनी पत्नी की तड़प उसके दर्द की बिल्कुल भी उसी परवाह नहीं थी,,,,, लोग तरसते थे पत्नी के रूप में मंगल जैसी जीवनसाथी पाने के लिए उसके लिए पूजा पाठ व्रत करते थे,,, लेकिन यहां तो बिलास की झोली में बिन मांगे ही इतना अनमोल हीरा भगवान ने दे दिया था।
लेकिन उसकी रत्ती भर भी उसे क़दर नहीं थी।

रात के ९:३० बज रहे थे मंगल रसोई में नीचे जमीन पर खाना लगा कर पत्नी धर्म निभाते हुए बिलास का इंतजार कर रही थी,,, सूरज खाना खाकर अपने कमरे में जा चुका था। यह मंगल की रोज की आदत थी वहां बिलास के घर आने से पहले कभी भी खाना नहीं खाती थी और बिलास के बाद ही खाना खाती थी लेकिन,,, ज्यादातर मंगल को अकेले ही खाना खाना पड़ता था क्योंकि बिलास कही बाहर से कुछ खाकर आता था उसे इस बात की भी परवाह नहीं होती थी कि उसकी पत्नी देर रात तक उसका खाना खाने का इसलिए इंतजार करती रहती थी की अभी वह खाना नहीं खाया होगा,,,,,
लेकिन बिलास मंगल की भूख प्यास की बिल्कुल भी परवाह किए बिना ही अपना पेट भर लेता था।
मंगल को बिलास का इंतजार करते करते १०:३० बज गए उसे नींद की झपकी भी आ रही थी कि तभी दरवाजे की कड़ी बजी,,,,,, मंगल उठकर दरवाजा खोली तो बिलास ही था,,,,, बिलास के घर में प्रवेश किया और मंगल दरवाजे को बंद करते हुए बोली,,,,,,,

आप हाथ मुंह धो लीजिए मैं खाना लगा चुकी हूं जल्दी से खाना खा लीजीए,,,,,,
( लेकिन बिलास मंगल का कहा अनसुना कर के बिना कुछ बोले जाने लगा तो एक बार फिर से मंगल उसे रोकते हुए बोली,,,,,)

खाना लग गया है मैं आपका कब से इंतजार कर रही हूं और आप हैं कीे बिना कुछ बोले चले जा रहे हैं।।

देखो मैं थक चुका हूं और वैसे भी मैं बाहर से गांव से खाना खाकर ही आया हूं मुझे भूख नहीं है तुम खा लो,,,,,, ( इतना कहकर वह बिना मंगल की तरफ नजर घुमाएं वह अपने कमरे की तरफ जाने लगा,,,, मंगल की आंख भर आई अपने पति के द्वारा इस तरह के व्यवहार और लापरवाही की उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी,,, लेकिन शायद उसकी किस्मत में यही लिखा था अपने पति का बर्ताव देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह अपने पति को कमरे की तरफ जाते हुए देखती रह गई,,,,,, बिलास केे व्यवहार से उसकी भूख मर चुकी थी,,,, वह भी बिना कुछ खाए थोड़ी देर वैसे ही जमीन पर बैठी रहीं और बैठे-बैठे अपनी किस्मत को कोसते रहि। वह भगवान से मन ही मन यही प्रार्थना करती रहती थी की हे भगवान कौन से जन्म का बदला मुझसे ले रहा है,,,,, मुझसे याद यह बिल्कुल भी सहा नहीं जाता मैं तंग आ गई हूं अपनी जिंदगी से जल्द से जल्द इसका कोई उपाय दिखाओ भगवान् या तो मुझे अपने पास बुला लो,,,,,, इतना कहकर वह मन ही मन रोने लगी,,,,
थोड़ी देर बाद अपने आप को शांत करके वह अपने कमरे की तरफ जाने लगी,,,, इतना कुछ होने के बावजूद भी मन में ढ़ेर सारी आशाएं लेकर के वह अपने कमरे में दाखिल हुई,,, बिलास लकड़ी के बक्से में कुछ डूंड रहा था। दरवाजा बंद करते हुए मंगल एक नजर बिलास पर रखी हुई थी कि वह भी उसे देखे लेकिन यह आशा भी उसकी निराशा में बदल गई, वह बक्से में से अपनी नजरें हटा ही नहीं रहा था।
पेट की भूख तो ठंडा पानी पीने से कुछ हद तक मिट ही जाती है लेकिन बदन की भूख कैसे मिटे,,, बदन की आग बुझाने के लिए तो प्रेम रूपी बारिश की जरूरत होती है,,,,,, लेकिन मंगल की जिंदगी का सावन तो हमेशा सुखा ही रहता था। मंगल का पति आनंद वर्षों से बादल बनकर बरसा ही नहीं, मंगल की समतल जमीन पानी बिना सुख रही थी। बरसों से सुख रही जमीन को एक जबरदस्त सावन भादों का इंतजार था जो जी भर के उस पर बरसे,,,,,, और यही उम्मीद मंगल के मन में हमेशा जागरुक रहती थी,,, आखिरकार वह भी एक औरत थी । दूसरी औरतों की तरह उसे भी बदन की भूख महसूस होती थी बिना खाए तो पेट की भूख शांत हो जाती है लेकिन बदन की भूख तो हमेशा बढ़ती ही रहती है । इसी भूख से वह भी तड़प रही थी । बिलास को आकर्षित करने का वह पूरा प्रयास करती थी लेकिन बिलास ना जाने किस मिट्टी का बना हुआ था कि मंगल के कामुक हरकतों का वह बिल्कुल भी जवाब नहीं देता था । मंगल भी कभी अपनी हद से ज्यादा आगे नहीं बढ़ी थी लेकिन फिर भी एक पतिव्रता पत्नी अपने पति को रिझाने के लिए जो कुछ कर सकती थी वह सब कुछ मंगल करती थी। लेकिन बिलास के आगे सारे प्रयास में निष्फल ही जाते थे। मंगल बदन की आग में जिस तरह से झुलूस रही थी उसे एक जबरदस्त संभोग की जरूरत थी। अपनी सीमित मर्यादा को लांघना होता तो वह कब से लांघ चुकी होती,,,,, लेकिन ऐसा करने से उसके मां-बाप के दिए हुए संस्कार ईजाजत नही देते थे। और वहां कोई ऐसा काम करना भी नहीं चाहती थी कि उसकी बेइज्जती हो, उसके खानदान की बेइज्जती हो । बरसों से बनाई हुई इज्जत मान सम्मान सब मिट्टी में मिल जाए।
मंगल खुद अपनी किस्मत से हैरान देती थी की आज तक उसे ऐसा कोई भी इंसान नहीं मिला था जो उसकी सुंदरता उसकी खूबसूरती की तारीफ करते हुए दो शब्द ना बोले हो। यहां तक कि औरतें उसकी सहेली रत्ना और और गांव के आवारा लड़के तक उसकी सुंदरता उसकी खूबसूरती की तारीफ करते थकती नहीं थी,,,,, लेकिन बिलास को ना जाने कौन से जन्म की दुश्मनी थी कि वह उसकी तारीफ में दो शब्द तो ठीक प्यार से उसकी तरफ देखना भी गंवारा नहीं समझता था।
 
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मंगल कमरे का दरवाजा बंद करके धीरे धीरे चलते हुए आकर आईने के सामने जाकर खड़ी हो गई,,,, सोने से पहले वह कपड़े बदल कर सकती थी इसलिए वह आकर आईने के सामने खड़ी होकर के कुछ पल के लिए अपने रुप को निहारने लगी,,,,, और फिर वह अपने साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा दी,,,,,, साड़ी के पल्लू के नीचे गिरते ही विशालकाय चुचियों की रंगत ब्लाउज में से बाहर साफ साफ नजर आ रही थी। आईना ऐसी जगह पे लगा हुआ था कि जहां से बिस्तर पर बैठा हुआ इंसान आईने में नजर आता था और बिस्तर पर बैठ कर भी आईने में सब कुछ देख सकता था और मंगल भी अच्छी तरह से जानती थी की कपड़े बदलते वक़्त वहां आईने में से बिलास को नजर आ रही होगी,,,,, वह जानबूझकर बिलास को रिझाने की कोशिश कर रही थी लेकिन बिलास कि नजर अभी आईने पर नहीं घूमीें थी। लेकिन मंगल की कोशिश जारी थी,,, वह धीरे-धीरे अपने ब्लाउज के बटन को खोलने के लगी,, जैसे जैसे वह ब्लाउज के बटन को खोले जा रही थी,,, वैसे वैसे उसकी बड़ी बड़ी चूचियां ब्लाउज के बाहर आने को छटपटा रही थी। धीरे धीरे करके उसने ब्लाउज के सारे बटन खोल दी और उसकी नजर लगातार आईने में नजर आ रही है उसके ऊपर टिकी हुई थी। जो कि अभी भी उस बक्से कुछ डूंडने में ही व्यस्त था। ब्लाउज के बटन खोलने के बाद वह आहिस्ते आहिस्ते अपने ब्लाउज को अपनी बाहों से निकालकर वहीं पास में पड़ी टेबल पर रख दी।
चूचियां काफी बड़ी होने के कारण और ब्रा का साइज कुछ छोटा होने की वजह से चुचियों के बीच की लकीर कुछ ज्यादा ही गहरी नजर आती थी। यह नजारा देखकर तो खुद मंगल कि जाँघों के बीच भी सुरसुराहट होने लगती थी तो सोचो मर्दों का क्या हालत होता होगा। मंगल जानबूझकर अपनी कलाइयों में पहनी हुई रंग बिरंगी चूड़ियां खनका रही थी कि शायद चूड़ियों की खनखनाहट से बिलास का ध्यान इधर हो,,, और सच में ऐसा हुआ अभी बिलास का ध्यान उस बक्से से हटकर एक पल के लिए आईने पर चला गया,,,, बिलास की नजर आईने पर देखते ही मंगल एक पल भी गंवाएं बिना अपने दोनों हाथों को पीछे ले जाकर अपनी ब्रा की हुक को खोलने लगी,,,, अगले ही पल उसने ब्रा के हुक को खोलकर धीरे धीरे अपनी ब्रा को बाहों में से निकालने लगी,,,, और अगले ही पल उसकी ब्रा भी उसकी दोनों चुचियों को आजाद करते हुए टेबल पर पड़ी थी। मंगल की दोनों चुचीया एकदम आजाद हो चुकी थी। एकदम कसी हुई और तनी हुई जिसे के आकर्षण में बिलास अभी तक अपनी नजरें आईने में गड़ाए हुए था। मंगल बिलास को उसकी तरफ से देखते हुए मन ही मन मुस्कुराने लगी और यह जाहिर नहीं होने दी कि वह बिलास को उस को निहारते हुए देख रही है। बिलास को रिझाने के लिए वह अपने दोनों हाथों से एक बार अपनी बड़ी बड़ी छातियों को हथेली में भरकर हल्के से दबाई और फिर छोड़ दी। सीधी सादी संस्कारी मंगल की यह हरकत बड़ी ही कामुक थी और इसका असर बिलास पर भी हुआ वह एकटक अपनी नजरें आईने पर गड़ाए हुए था। यह देख कर मंगल की भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी उसके बदन में उत्तेजना का संचार हो रहा था। अपनी हरकत की वजह से मंगल को अपनी बुर से हल्का हल्का रिसाव सा महसूस हो रहा था, जोकि मंगल के उन्माद को बढ़ा रहा था। बिलास की आंखे आईने पर टीकी हुई देखकर मंगल एक पल भी करवाना उचित नहीं समझती थी इसलिए उसने तुरंत अपनी कमर में बनी हुई साड़ी को खोलने लगी और अगले पल उसके बदन से साड़ी भी उतर कर टेबल पर पड़ी हुई थी। मंगल के बदन पर केवल पेटीकोट ही रह गई थी।

जिसमें से उसकी भरावदार बड़ी-बड़ी गांड और भी ज्यादा उभरी हुई नजर आ रही थी जिस पर अब बिलास की नजर बराबर टिकी हुई थी।,,, बिलास की नजरें उसकी गांड पर टिकी हुई है यह जानकर मंगल की उत्तेजना बढ़ने लगी उसकी धड़कन तेज चलने लगी। और उसके हाथ धीरे से पेटीकोट की डोरी पर चली गई और हल्के से अपनी उंगलियों को हरकत देते हुए पेटीकोट की डोरी को एक झटके से खींच दी,,
एक झटके से डोरी को खींचते ही पेटीकोट का कसाव कमर के ऊपर से ढीला पड़ गया,,, और पेटीकोट ढीली पड़ते ही,,,, मंगल ने हाथ में पकड़ी हुई डोरी पेटीकोट सहित छोड़ दी,,, मंगल ने यह हरकत जिंदगी में पहली बार करी थी न जाने कहां से उसमें यह करने की हिम्मत आ गई थी। मंगल तो बिलास को रिझाने की कोशिश तो हमेशा से करती ही आ रही थी लेकिन आज इस कोशिश में यह हरकत पहली बार शामिल हुई थी,,, पेटीकोट के छोड़ते ही पेटीकोट सीधी कमर से फीसलती हुई,,, भरावदार नितंबों को उजागर करते हुए नीचे कदमों में आ गिरी,,,, जिससे मंज पूरी की पूरी आईने के सामने नंगी हो गई उसके बदन पर मात्र एक पेंटी ही बची थी,,, लेकिन पेंटी भी ऊसकी बड़ी बड़ी भरावदार गांड को ढंक पाने मे असमर्थ साबित हो रही थी। बिलास को आज अपनी बीवी को रिझाने का यह रवैया बहुत ही कामुक लगा वह इसलिए तो एकटक आंख फाड़े अपनी बीवी की खूबसूरती को देखे जा रहा था। और यह बात मंगल को भी अच्छी लग रही थी।
और अगले ही पल मंगल ने अपने हाथों की दोनों अंगुलियों को पैंटी के इर्द-गिर्द ऊलझाकर धीरे धीरे पेंटिं को नीचे सरकानै लगी। मंगल की यह कामुक अदा और हरकत बिलास को इस समय बेहद अचंभे में डाल रही थी,,,, क्योंकि जिस तरह की हरकत मंगल आज कर रही थी इस तरह की हरकत ऊसनें पहले कभी नहीं
की थी । वह पेंटिं उतारते समय जिस तरह से अपनी भरावदार बड़ी-बड़ी उभरी हुई गांड को दांए बांए कर के मटका रही थी,,,, कसम से अगर कोई इस नजारे को देख ले तो उसका तो खड़े खड़े ही पानी निकल जाए।
मंगल जिस तरह से अपनी गांड मटकाते हुए पेंटी को उतार रही थी उससे एक अजीब प्रकार की थिरकन
हो रही थी,, और ऊस थिरकन को देखकर बिलास का मन एक पल के लिए ललच सा गया। इसमें बिलास का दोश बिल्कुल भी नहीं था मंगल के बदन की बनावट ही भगवान ने कुछ इस तरह की बनाई थी की उसे अगर
दुनिया का कोई भी इंसान किस अवस्था में देख ले तो उसका मन उसे पाने को ललच जाएं। स्वर्ग की अप्सरा भी मंगल की खूबसूरती देखकर शर्मा जाए इस तरह से भगवान ने उसे बनाया था। मंगल अपनी खूबसूरती और अपनी कामुक अदाओं के जलवे बिखेरते हुए धीरे-धीरे अपनी पैंटी को नीचे सरकाते हुए अपने भारी भारी गोल नितंबों के नीचे तक ला दी,,, नितंबों के ठीक नीचे
पैंटी की इलास्टिक रबर कसी हुई थी, और इस तरह से इलास्टिक की डोरी कसी होने की वजह से मंगल की गोल गांड और भी ज्यादा कामुक और उभरी हुई लग रही थी। जिसे देख कर बिलास की सांसे थम गई मंगल भी लगातार आईने में बिलास को निहारते हुए मन ही मन प्रसन्न हो रही थी। आज जो उसने हिम्मत दिखाई थी उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था अपनी कामुक हरकतों की वजह से आज मन ही मन उसकी उत्तेजना और भी ज्यादा बढ़ रहीे थी,,, जिसकी वजह से उसकी बुर से नमकीन पानी का रिसाव बड़ी तेजी से हो रहा था। मंगल का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था।
उत्तेजना और उन्माद के मारे उसका गला सूख रहा था।
अगले ही पल मंगल ने धीरे-धीरे पैंटी को घुटनों से नीचे सरका दी,,,, पेंटी को घुटनो से नीचे पहुंचते ही मंगल सीधी खड़ी हो गई और केवल पैरों के सहारे से ही वहां अपनी पैंटी को नीचे कर के पेऱ से बाहर निकाल दी। अब मंगल के बदन पर कपड़े का एक रेशा भी नहीं था वह पूरी तरह से निर्वस्त्र हो चुकी थी। पूरी तरह से नंगी,, ट्यूबलाइट की दुधीया प्रकाश में उसका गोरा बदन और भी ज्यादा निखरकर सामने आ रहा था जिसकी चकाचौंध में बिलास की आंखें चौंधिया जा रही थी।
मंगल मन ही मन प्रसन्न हो रही थी उसे लगने लगा था कि आज बिलास जी भर के ऊसे प्यार करेगा। क्योंकि आज उसने बिलास को रिझाने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी। इस समय मंगल बहुत ही पसंद नजर आ रही थी उसने कभी अपने मुंह से इस बात को जाहिर नहीं होने दी थी लेकिन मन ही मन यह जरूर चाहती थी कि उसका पति,,,,, संभोग करते समय से बेहद प्यार करे अपने लंड को उसकी बुर की गहराई तक जोर-जोर से डालते हुए उसे चोदे,,,,, लेकिन आज बिलास ज्यादा देर तक टिक भी नहीं पाता था,,,, इसका एक कारण यह भी था कि बिलास उसे पहले की तरह प्यार नहीं करता था बल्कि उसकी खूबसूरती को उसके बदन को खुद मंगल को नजरअंदाज करता था और दूसरा सबसे बड़ा कारण यह था कि मंगल अंदर ही अंदर बहुत ही प्यासी थी,,,,, हां यह बात अलग है कि उस के संस्कार नहीं इस बात को कभी जाहिर होने नहीं दिया लेकिन अंदर ही अंदर वहां जबरजस्त चुदाई को तड़प रही थी और इस कदर संभोग की प्यासी होने की वजह से उसकी बुर की अंदरूनी दीवारें इतनी ज्यादा गर्म होती थी कि,,,, बिलास अपना लंड डालते ही बुर की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाता था और कुछ ही मिनटों में,,,,, बिस्तर के मैदान पर हथियार नीचे रखते हुए हार मान लेता था। इस वजह से मंगल हमेशा प्यासी ही रहती थी लेकिन आज उसे लगने लगा था कि परसों की दबी हुई प्यार आज भी जरूर बुझेगी,,,,, इसलिए वह मदमस्त अंगड़ाई लेते हुए बालों के जुड़े को खोल दी जिससे उसके रेशमी काले घने बाल खुलकर हवा में लहराने लगे। खुले बालों की वजह से उसकी खूबसूरती में चार चांद लग रहे थे जो कि उसके लंबे घने बाल उसकी कमर तक आते थे।
आईने में अपने रूप और नंगे बदन की खूबसूरती को देखकर खुद मंगल शर्मा करो और ज्यादा देर तक इस अवस्था में खड़ी ना रह सकी,,,, और तुरंत अलमारी में से अपना गांऊन निकाल कर पहन ली। गाऊन के पहनते ही एक बड़े ही उत्तेजक उन्माद से भरे हुए कामुक दृश्य पर पर्दा पड़ चुका था। उत्साहजनक और बेहद कामुकता से भरे हुए वातावरण को मंगल की इस हरकत में निराशाजनक बना दिया। बिलास भी जोंकी उत्तेजित हुए जा रहा था मंगल की इस हरकत से उस पर भी ठंडा पानी पड़ गया था। मंगल की हरकत देखते हुए बिलास को आज मंगल से कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी उसे लगने लगा था कि मंगल शायद आज और भी ज्यादा अपने बदन के जलवे बिखेरेगी,,,,लेकीन एेसा बिल्कुल भी नहीं हुआ इसलिए निराश होकर के वह वापस अपने काम में व्यस्त हो गया,,,,,,, और मंगल मन में ढेर सारे उम्मीदे लिए अपने ऊपर खुशबूदार स्प्रे का छिड़काव कर रही थी ताकी कमरे का वातावरण और ज्यादा कामुक हो जाए। मंगल अपने आप को बिस्तर पर जाने से पहले पूरी तरह से तैयार कर ली थी और वह बिस्तर पर जाने के लिए कल भी तो बिलास अपने काम में व्यस्त पाकर थोड़ा सा उदास हुई लेकिन शायद बिलास अपने पिछले व्यवहार के कारण इस तरह से कर रहा है यह सोचकर वह बिस्तर पर जाकर करवट लेकर के लेट गई। मंगल की पीठ बिलास की तरफ थी। और वह इंतजार कर रही थी कि बिलास कब ऊसके बदन को स्पर्श करता है। और इसी उम्मीद की वजह से उसके बदन में अजीब प्रकार की गुदगुदी हो रही थी,,,,। बिलास के ऊपर उसके तन-बदन में मंगल काम भावना जगाने में पूरी तरह से कामयाब हो चुकी थी लेकिन अंतिम क्षण में उसने गाउन पहन कर जो गलती कर दी थी उससे बिलास का मन बदल गया था।
इसलिए वह अब मंगल पर ध्यान दिए बिना ही उस बक्से में जो चीज खोज रहा था वह उसे मिल चुका थी,और दूसरी तरफ मंगल बिलास का इंतजार करते-करते पेड़ से प्यार करते हुए थक हारकर नींद की आगोश में चली गई एक बार फिर से मंगल को निराशा ही हाथ लगी थी।
मंगल सो चुकी थी, मंगल के सोने के एकाध घंटे बाद ही बिलास की नजर फिर से मंगल की भरावदार गांड पर गई जो कि गांऊन के अंदर थी लेकिन सोने की वजह से मंगल का गांव अस्त व्यस्त हो चुका था और चढ़कर जांघो तक आ चुका था। मंगलकी आधी नंगी जांघ को देख कर बिलास से रहा नहीं गया और वह पहले कि ही तरह एक बार फिर से मंगल के ऊपर चढ़कर झुकने लगा और उसकी जांघों को फैला कर बिना प्यार कीए ही अपने खड़े लंड को सीधे मंगल की बुर पर रखकर अंदर ही डाल दिया। मंगल के अरमान की स्याही जो की बुर से बह रही थी वह सुख चुकी थी,,, इसलिए बिलास की इस हरकत की वजह से उसे दर्द होने लगा और उसकी आंख खुल गई लेकिन इस बार बिना कुछ बोले आंखों से आंसू बहाते हुए और अपने किस्मत को कोसते हुए बिलास के हर धक्के के साथ दर्द को झेलती रही,,, और बिलास जी मंगल की प्यासी और दहकती हुई गरम बुर की दीवारों की रगड़ को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पाया और एक बार फिर से अपना हथियार नीचे रख दिया।
 
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आज खेतो में जादा काम नही वजह से आज मंगल की नींद थोड़ा देर में ही खुली थी। नींद खुली तो देखी थी बिस्तर पर बिलास नहीं था ।वह उठकर जा चुका था, वैसे भी अगर बिस्तर पर होता तो क्या हो जाता। उसके रहने ना रहने का कोई मतलब नहीं निकलता था। रात वाली बात से मंगल का मन उदास ही था। मंगल को रात की बात याद आ गई और खुद की गई हरकत के बारे में सोच कर ही मंगल शर्मा गई,,, सबसे पहले तो उसे इस बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह ऐसी हरकत कर गई थी। जिस तरह से वह अपने कामुक बदन को उत्तेजनात्मक तरीके से बिलास के सामने पेश करते हुए रचनात्मक तरीके से अपने वस्त्रों को एक-एक करके अपने संगमरमरी बदन से उतारने का कार्यक्रम पेस की थी। यह उत्तेजक और उमदा कार्य मंगल के बस के बिल्कुल भी नहीं था लेकिन जिस तरह से वह हिम्मत दिखाते हुए बड़े ही कलात्मक तरीके से वस्त्र त्याग का अभूतपूर्व कार्यक्रम पेश की थी वह बहुत ही काबिल ए तारीफ थी। अगर बिलास की जगह दुनिया का दूसरा कोई भी मर्द होता तो इतने में ही वह ना जाने कितनी बार पानी छोड़ देता,,,,,
यहां पर घर की मुर्गी दाल बराबर की कहावत को बिल्कुल सार्थक करते हुए बिलास ने अपनी पत्नी के इस कामुक प्रदर्शन को लगभग नजरअंदाज कर दिया था। हाय पल के लिए जरूर बिलास मचलता गया था तड़पता गया था मंगल के बदन को पाने के लिए लेकिन संपूर्ण नग्नावस्था का नजारा दिखाने के बाद जैसे ही मंगल ने अपनी नग्न बदन पर गाउन डालकर,, अपनी संग-ए-मरमरी बदन को ढंकी वैसे ही तुरंत मंगल के बदन का नशा मंगल के ऊपर से उतर गया। और नतीजा यह निकला की मंगल एक बार फिर प्यासी रह गई लेकिन मंगल की भराव दार नितंबों ने अपना असर बिलास पर जरूर कर दिया,,, जिससे सोने से पहले बिलास मंगल पर चढ़कर अपना अहम पूरा किया। लेकिन बिलास जिस तरह श्री मंगल के संभोग करता था ऐसे संभव से ना तो संपूर्ण संतुष्टि बिलास को ही मिल पाती थी और ना ही मंगल की प्यास बुझ पाती थी। लेकिन इस बात को बिलास नजर अंदाज कर देता था उसे तो मंगल कि अब बिल्कुल भी फिक्र नहीं होती थी।
रात वाली बात को याद करके मंगल की सूखी पड़ी बुर एक बार फिर से गीली होने लगी,,,,, मंगल की प्यास एक बार फिर भड़के इससे पहले ही मंगल जल्दी से बिस्तर पर से उठ कर सीधे बाथरूम में चली गई वहां जाकर के ठंडे पानी से स्नान करके अपने मन को कुछ हद तक हल्का कर ली ।
नहाने के तुरंत बाद वह रसोई घर जाने लगे जाती है, मंगल रसोई में आए तो देखी की थाली में रोटी के कुछ टुकड़े पड़े हुए हैं जिससे वह समझ गई थी बिलास रात का खाना अब खा चुका है।
मंगल वही खड़ी थी कि बिलास रसोई घर से बाहर जाने लगा तो मंगल उससे बोली।

आप मुझे बुला ली होते तो मैं आपके लिए गरम खाना तैयार कर देती,,,,, इस तरह से आप अपने हाथ से रात का खाना लेकर के खाते हैं अच्छा नहीं लगता,,,,,,, आखिर मेरे होते हुए आप रात का खाना खाए ये अच्छा नहीं लगता ना।

हा,,,,,, हां,,,,,,, ठीक है मुझे जल्दी जाना था तो,,,,,, इसलिए अपने हाथ से ले लिया। ( बिलास की बात सुनते ही मंगल बोली।)

लेकिन आज तो घर रुकिए ना आप घर में कभी नहीं रहते। आज आप कही बाहर नही जाएंगे।


अब तू मुझे मत सीखा बिलास शर्ट की बटन को बंद करते हुए बोला,,, बिलास की बात सुनकर मंगल उदास हो गई वह जितनी भी ज्यादा मीठी बातें करके बिलास का मन बहलाने की कोशिश करती लेकिन बिलास हमेशा कड़वी जुबान से ही बोलता था। मंगल उदास होकर के रसोईघर में चली गई और बिलास घर से बाहर निकल गया। रसोईघर में मंगल सूरज के लिए खाना तैयार करने लगी और बाहर सायकल की गंटी की आवाज सुनकर उसे यह पता चल गया कि बिलास जा रहा है। बिलास की लगातार बढ़ती नजरअंदाजी की वजह से मंगल का मन खिन्न होने लगा था वह बिलास के ऊपर से ध्यान ना हटाकर खाना तैयार करने में जुट गई। समय ज्यादा हो चुका था इसलिए वह समझ गई थी कि सूरज पूजा-पाठ कर चुका होगा और खाना का इंतज़ार कर रहा होगा।

मंगल का मन किसी काम में नहीं लगता था बड़ी मुश्किल से वह सूरज के लिए खाना तैयार कर रही थी और मन में ढेर सारी वेदनाएं,,, दर्द,,,,, तड़प उसे पल-पल तड़पा रही थी। उसे इस बात का एहसास अच्छी तरह से हो गया था धीरे-धीरे करके समय रेत की तरह उसकी हथेली से निकल चुका था। वह तो भगवान की बड़ी कृपा थी कि अब भी उसकी खूबसूरती बरकरार थी। पराठा तैयार हो चुका था मंगल ने अपने लिए कुछ भी नहीं बनाया क्योंकि उसे भूख ही नहीं थी और जिस चीज की भूख थी,,,, वह उस के नसीब में ही नहीं था या उसे पाने का उसने पूरी तरह से प्रयास ही नहीं की थी ।
कभी-कभी तो वह मां बाप से पाई हुई तहजीब और संस्कार को लेकर के भगवान से मन ही मन बोला करती थी कि भगवान तूने इतनी संस्कारी क्यों बनाया क्यों दूसरी औरतों के तरह थोड़ी सी बेशर्मी नहीं भर दी।
तहजीब और संस्कार किसी के लिए दुख का कारण बन सकते हैं,,, यह बात निर्मला से ज्यादा अच्छी तरह भला कौन जान सकता है ।
खाना बन चुका था सूरज खेत के कुछ ओजार की मरम्मत कर रहा था,सूरज थोड़ा समय लगेगा और खाना बाद में ही खाएगा इसलिए वह घर के काम में लग गई।

दूसरी तरफ बिलास अपनी सायकल से खेतो की तरफ जा कर एक पेड़ के पास में बैठा हुआ था घर से तो निकला था और यहां आराम से बीडी का कश लगाते हुए पद्मा का इंतजार कर रहा था। पद्मा गांव के चुड़ाकड औरत थी। बिलास तीन चार साल से ज्यादा पद्मा की चुदाई कर रहा था । बिलास बड़ी बेसब्री से पद्मा का इंतजार कर रहा था अब तक उसने चार पांच बीडी पी चुका था। उसकी नजर एक बार बार इदर उधर रास्ते पर चली जा रही थी,

तभी किसी के पेड़ के पीछे से आने की आहट हुइ और बिलास बिना एक पल की भी विलंब किए बिना पेड़ पीछे चला गया जैसे ही पीछे गया,,,,,उसे सामने ३० से ३५ साल के लगभग खूबसूरत औरत खड़ी थी। यह पद्मा ही थी जिसका इंतजार बिलास बड़ी बेसब्री से कर रहा था दोनों एक दूसरे को देखते ही मुस्कुराने लगे बिलास तो उसका हाथ पकड़ कर झाड़ियों के अंदर खींचते हुए ले कर उसे अपनी बाहों में भर लिया। छरहरे गोरे बदन की मंगल अपने आप को ऊसकी बाहों कें सुपर्द करके एकदम से सिमट गई और अपने होंठ को बिलास के होंठ पर रखकर चूसने लगी। बिलास का हांथ मंगल की पीठ पर से होता हुआ उसके कमर के नीचे उसके नितंबों पर चला गया,,,, और जैसे ही बिलास की दोनों हथेलियां पद्मा के ऊभारदार नितंबो पर गए बिलास ने तुरंत उसे अपनी दोनों हथेलियों में दबोच लिया,,,,

आऊच्च,,,,,,, क्या कर रहे हो मुझे दर्द हो रहा है।

ओहहहहह मेरी जान मेरी तो मुझे कितना दर्द हो रहा है इसका तो तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कितनी देर से मैं यहां तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं और तुम हो कि ना जाने किस दुनिया में खोई हुई हो,,,,,,,
( बिलास की बात सुनकर पद्मा हंसने लगी और हंसते हुए बोली।)

क्या बिलास रोज तो तुम्हारे साथ ही रहती हूं फिर भी मेरे इंतजार में तुम इतने पागल हो जाते हैं कि एक पल भी मेरे बगैर गुजार पाना तुम्हारे लिए मुश्किल हुआ जाता है।

क्या करूं रानी तुम माल ही कुछ ऐसी हो की तुम्हारे बिना एक पल भी गुजार पाना मेरे लिए मुश्किल हो जाता है। ( बिलास पद्मा को फिर से अपनी बाहों में भऱते हुए बोला। )


क्या करूं बिलास मेरा शराबी पति दिन रात मुझसे झगड़ते रहता है आज भी यहां आने से पहले मेरे साथ झगड़ा हो गया और उसी झगड़े के चक्कर में देर हो गई।
( बिलास कुछ सोचते हुए बोला)

मेरी जान तुम जैसी बीवी पाकर के तो तुम्हारे पति को खुश होना चाहिए और उल्टा वह तुमसे झगड़ा करते रहता है साला नासमझ है जो एक कोहिनूर हीरे की कदर नहीं कर पा रहा है।।
( पद्मा बिलास की यह बात सुनकर खुश हो गई हो अपनी खुशी का जिक्र उसने अपने होठों को बिलास के होठ पर रखकर उसे किस करते हुए बोली।)

खुशनसीब तो तुम अभी हो सर जो तुम्हें इतनी खूबसूरत बीवी मिली है।(पद्मा की बात सुनकर बिलास पद्मा की आंखों में देखने लगा) मे देखी हूं तुम्हारी बीबी को ऐसा लगता है कि मानो स्वर्ग से कोई अप्सरा उतर के नीचे आ गई हो,,,,, बहुत खूबसूरत है।


अरे यार एैसे कामुक मौसम में तुमने किसका नाम ले ली ।

क्यों क्या हुआ बिलास (पद्मा आश्चर्य के साथ बोली)
 
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वह दिखने में ही खुबसुरत लगती है। अपने पति को कैसे खुश कीया जाता है यह कला उसमे बिल्कुल भी नहीं है एकदम ठंडी है ठंडी,,,,,,,,,, मेरी तो नसीब खराब थी जो मेरी शादी उसके साथ हो गई मुझे तो तुम्हारी जैसी बीवी चाहिए थी,एकदम गरम जो बिस्तर पर अपने पति को कैसे खुश कीया जाता है अच्छी तरह से जानती हे।
( इतना कहते हुए बिलास ब्लाउज के ऊपर से ही पद्मा की चुचियों को दबाने लगा,,,, पद्म चूचियों पर बिलास की हथेली का दबाव पाकर मस्त होने लगी वह बिलास की बातें सुनकर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी। पद्मा यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि बिलास ,,,,, जो बड़े खेत मालिक उसकी खूबसूरती का दीवाना है और इस बात का वह पूरी तरह से फायदा उठातीे थी। एक मर्द की उन्नति और बर्बादी के पीछे औरत का ही हाथ होता है। बिलास भी पद्मा के पीछे खेतो से मिली आमदनी लुटा चुका था और लुटाता आ रहा था। पद्मा की माली हालत अच्छी नहीं थी वह बड़ी गरीबी में जी रही थी और ऐसे में उसकी शादी उसके मां बाप ने ऐसे आदमी से कर दी जो कि कुछ भी कमाता नहीं था। शादी के बाद उसकी जिंदगी और बदतर होने लगी क्योंकि उसका पति तो कुछ कमाता नहीं था।
जो कुछ पैसा मिलता था पद्मा दिनभर कही मजदूरी कर के कमा लेती थी,
एक दिन बिलास के खेती में पद्मा ने काम मिलने की आस से बिलास के खेतों पहुंच गई। काम देते वक्त बिलास ने बातों ही बातों में उसने पद्मा की माली हालत का पूरी तरह से जायजा ले लिया,,,, बिलास ऐसी ही एक औरत की तलाश में था, कि उसकी हालत खराब हो जो कि पैसों के लिए बिलास की सारी इच्छाएं पूरी कर सके। पद्मा की मजबूरी को पूरी तरह से फायदा उठाते हुए उसने उसे खेती में काम पर रख लिया और काम से पहले उसे १०० रुपए उसके हाथ में थमाते हुए,, खेती में ही उसे अपनी बाहों में भर कर उसके होठों को चूमने लगा। बिना काम किए मे हीं १०० मिलने की मेहरबानी को पद्मा बिलास कीे ईस हरकत से अच्छी तरह से जान गई लेकिन उसके सामने भी कोई दूसरा रास्ता नहीं था तो वह बिलास को ईन्कार ना कर सकी और काम के दिन ही १०० रूपए मिलने की खुशी में वह खेतो में ही बिलास से चुदवा ली । उस दिन से लेकर आज तक पद्मा अपने बदन का जलवा बिलास को दिखाते हुए धीरे-धीरे उसने बिलास के पैसे से अपने लिए और घर के अंदर सुख सुविधाओं का सारा सामान ले लीया ।
बिलास धीरे-धीरे पद्मा के ब्लाउज के बटन को खोलने लगा,,, और पद्मा भी अपने हाथों से बिलास के धोती को खोलकर नीचे सरकाने लगी,, यही अदा पद्मा को बिलास की नजर में मंगल से अलग करती थी। क्योंकि पद्मा अच्छी तरह से जानती थी कि एक मर्द को खुश करने के लिए औरत को क्या करना चाहिए। बिलास पद्मा के ब्लाउज के सारे बटन खोल चुका था और ब्लाउज के ऊपर से ही उसके संतरों को दबा रहा था। पद्मा तो बिलास की ईस हरकत की वजह से गरम हुए जा रही थी और उसके मुंह से लगातार सिसकारी की आवाज आ रही थी।

सससससहहहहहहह,,,,,,,,, आााहहहहहहहहह,,,,,,,, बिलास मेरे राजा ऐसे नहीं पहले मेरी ब्रा और ब्लाउज दोनों को निकाल दो और फिर मेरी चुचियों को मुंह में भर भर कर दबा-दबा कर पीअो,,,,,, रुको मै हीं निकाल देती हूं मेरे राजा,,,,,,( इतना कहने के साथ ही वह ब्लाउज को अपनी बाहों से निकाल सके और अपने दोनों हाथों की से ले जाकर ब्रा के हुक को खोल दी,,,,, और पद्मा ने ब्रा को भी निकाल फेंकी। ब्रा कोे बदन से दूर होते ही रीता की गोल-गोल नारंगीया बिलास की आंखों में चमकने लगी,,, वह नंगी चूचियों को देख कर पागल सा हो गया और सीधे अपने मुंह को चुचियों के बीच डालते हुए बोला।।


ओह मेरी जान मेरी तो तुम्हारी यही अदा तो मुझे तुम्हारा दीवाना बना दि है। यही सब अदा तो मेरी बीवी मंगल में नहीं है तभी तो मुझे वह बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती।। क्योंकि खूबसूरती ही सब कुछ नहीं होती औरतों को अपने पति को कैसे खुश करना है यह भी आना चाहिए जो कि मंगल को बिल्कुल भी नहीं आता। ( इतना कहने के साथ ही बिलास पद्मा की चूची को मुंह में भर कर चूसने लगा,,,,,, और पद्मा बिलास की इस हरकत से सिसकारी लेते हुए बोली।)
सससससहहहहहहह,,,,,,, आहहहहहहह,,,,,, बिलास ,,,,,, मैं हूं ना मेरी जान मैं तुम्हें सारा सुख दूंगी,,,, (इतना कहने के साथ ही चड्डी में तने हुए लंड को ऊपर से ही मसलने लगी,,,, और पद्मा के ईस हरकत पर बिलास गरम आहें भरने लगा।,,,)

आहहहह,,,,,, पद्मा,,,,,, ( बिलास के मुंह से बस इतना ही निकला था कि वह पद्मा की दूसरी चूची को मुंह में भर कर पीने लगा।
बिलास इसी तरह से खेती में पद्मा के साथ रंगरेलियां मनाता था। लेकिन आज तक इस बात की क्योंकि आज दिनभर बिजली नही अति हे इस वजह से गांव के आदमी आज जादातर खेतो में नही आते ही, बिलास ने पद्मा के साथ ही क्या इससे पहले भी जितने भी औरतों के साथ बिलास के संबंध रहे हैं आज तक इस बात की भनक किसी को भी नहीं लग पाई क्योंकि खेती में बिलास हमेशा सख्ती से पेश आता था और जिन औरतों के साथ उसके शारीरिक संबंध होते थे उनके साथ भी दूसरो के सामने वह बड़े ही शख्ती से पेश आता था। इसलिए कभी भी किसी को इस बात की बिल्कुल भी मन नहीं लग पाती इसलिए बिलास के उसके खेतो में काम करने वाली औरतों के साथ शारीरिक संबंध है।

बिलास पद्मा की दोनो चुचियों को बारी-बारी से मुंह में भरकर पीने का आनंद ले रहा था। पद्मा मस्त हुए जा रही थी,वो अपनी चूचियों को चुसवाते हुए धीरे से ही बिलास के चड्डी को नीचे सरकाई और उसके हथियार को बाहर निकाल कर मुठीयाने लगी,,,, बिलास भी एकदम से चुदवासा हुए जा रहा था, पद्मा की हर एक हरकत पर बिलास पागलों की तरह ऊससे लिपट चिपट रहा था। पद्मा बड़े ही उत्तेजक तरीके से बिलास के खड़े लंड को मुट्ठी में भरकर आगे पीछे कर रही थी। बिलास दीवानों की तरह पद्मा की चुचीयो पर टूट ही पड़ा था।

ओहहहहह,,,, बिलास ,,,, मेरे राजा,,,,, आहहहहहहह,,,, और जोर के पियो,,,, खूब जोर जोर से दबाओ,,,,,,,( बिलास भी पद्मा की बात मानते हुए जोर जोर से दबाना शुरु कर दिया) सससससहहहहहहह,,,,, ओहहहहह,,,,, बिलास ,,,,, बस ऐसे ही दबाते रहो बहुत मजा आ रहा है।

कुछ देर तक बिलास पद्मा की चुचियों से ही अपनी प्यास बुझाता रहा। पद्मा की दोनों चुचीयां उत्तेजना के असर में अपने आकार से थोड़ी बड़ी हो चुकी थी और बिलास के द्वारा मसलने की वजह से एकदम लाल लाल टमाटर की तरह हो गई थी। पद्मा तो बिलास के लंड से ही खेल रही थी उसे हल्के हल्के मुठीयाते हुए बिलास को पूरी तरह से गर्म कर चुकी थी।
दोनों पूरी तरह से गर्म हो चुके थे पद्मा अपनी चुचियों पर से बिलास का मुंह हटाते हुए उसकी आंखों में आंखें डाल कर बड़ी ही नशीली अंदाज में अपने दांत से होठों को दबाते हुए एकटक देखने लगी। बिलास तो पद्मा की नशीली आंखें देखकर नशे में डूबने लगा और देखते ही देखते पद्मा उसके होठो को चुंबन करते हुए धीरे धीरे नीचे की तरफ आने लगी और आते-आते उसके शर्ट के बटन खोलते जा रही थी। धीरे-धीरे रीता बिलास की शर्ट के सारे बटन को खोलते हुए घुटनों के बल बैठ गई बिलास कुछ समझ पाता इससे पहले ही पद्मा ने उसके टनटनाए हुए लंड को अपने मुंह में भर कर चुसना शुरु कर दी। पद्मा की इस गरम हरकत की वजह से बिलास की तो हालत खराब हो गई उसके मुंह से गरम आहे निकलने लगी।
 
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आहहहहहह,,,,,, पद्मा,,,, ( बिलास एकदम से उन्माद मैं भर चुका था उसकी आंखें सुख की अनुभूति करते हुए बंद होने लगी। उसका गला सुर्ख होने लगा। पद्मा को तो जैसे कोई बर्फ़ का गोला मिल गई हो इस तरह से ऊसे मुंह में भर कर चुसे जा रहीे थी। पद्मा कि यह अदा बिलास को पागल किए जा रही थी और इसी अदा पर तो बिलास पूरी तरह से फ़िदा था। यही सब बातों की वजह से पद्मा दूसरी औरतों से बिल्कुल अलग थी और जिस प्रकार से पद्मा अपनी अदाओं से बिलास को संपूर्ण रूप से संतुष्टि प्रदान कर रही थी यही अदा वह मंगल में देखना चाहता था। बिस्तर पर मंगल को वाह इसी रूप में देखना चाहता था जिस तरह से पद्मा बिना कुछ बोले अपने आप से ही बिलास को संपूर्ण रुप से संतुष्टि देते हुए खुद ही उसके अंगों से खेल रही थी और उसके लंड को मुंह में लेकर चूस रही थी यही सारी अदाएं वह मंगल से चाहता था लेकिन मंगल अपने आप को इस कला में परिपूर्ण नहीं कर पाई। बिलास के कई बार दबाव देने पर मंगल ने पद्मा की तरह बिलास को खुश करने की कोशिश की लेकिन उससे यह सब नहीं किया गया वह जब भी बिलास के लंड को अपने मुंह में लेती तो उसका जी मचलने लगता उसे उबकाई आने लगती और फिर वह उल्टी कर देती थी जिससे बिलास का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता था और वहां मंगल को खरी-खोटी सुनाकर उसका अपमान करते हुए उसी हालत में छोड़कर चला जाता था।
पद्मा धीरे-धीरे बिलास के पूरे लंड को अपने गले तक उतारकर चुशना शुरू कर दी। बिलास तो उसके मुंह को ही ऊसकी बूर समझ कर धक्के देना शुरु कर दिया था।
पद्मा भी उसके धक्कों का जवाब देते हुए अपने मुंह को ही आगे पीछे करके जोर-जोर से ऊसके लंड को चुसना शुरु कर दी । दोनों कामातूर हो चुके थे कुछ देर तक यूं ही पद्मा बिलास के लंड को चुसती रही और उसके बाद बिलास को लगने लगा कहीं ऊसका पानी ना निकल जाए इसलिए वह र
पद्मा के मुंह में से अपने लंड को बाहर खींच लिया। पद्मा की सांसे ऊपर-नीचे हो रही थी बिलास एक पल भी रुके बिना पद्मा की बाहों को पकड़कर उठाकर और नीचे जमीन पर बिठा दिया,,,, जमीन पर बैठते ही पद्मा को समझ में आ गया कि उसे क्या करना है इसलिए उसने झट से अपनी साड़ी को धीरे-धीरे सरकाते हुए अपने कमर तक चढ़ा ली और अपनी जांघों को फैला दी। बिलास तो यह नजारा देख कर एकदम कामातुर हो गया उससे रहा नहीं गया और वह घुटनों के बल बैठ कर. पद्मा की पैंटी को एक छोर से पकड़ कर दूसरी तरफ कर दिया जिससे कि उसकी फुली हुई बुर उभरकर एकदम सामने आ गई। रस से भरी रसमलाई को देखकर बिलास अपना मुंह सीधे उस रसमालाई में डाल दिया,,, और जीभ से नमकीन रात को चाटना शुरू कर दिया। पद्मा तो पागल हुए जा रही थी उसके बदन में उन्माद का संचार बड़ी तेजी से हो रहा था। जैसे-जैसे बिलास की जीभ पद्मा की रसीली बुर पर इधर उधर घूम रही थी वैसे वैसे पद्मा की सिसकारी और तेज होती जा रही थी और साथ ही वह अपने दोनों हाथ से बिलास का सिर पकड़कर उसका दबाव अपनी जांघों के बीच बढ़ा रही थी। बिलास को इस तरह से काफी अरसा बीत चुका था मंगल की बुर को चाटे। शुरु-शुरु में वह इसी तरह से मंगल से प्यार करता था लेकिन धीरे-धीरे यह प्यार मंगल के लिए कम होता है गया। इसी तरह के प्यार के लिए मंगल तड़प रही थी उसके मन में भी यही होता था कि बिलास उसके साथ ऐसा ही प्यार करें जैसा कि वह पद्मा के साथ कर रहा था।

ओहहहहहह,,,,, रामवाह,,,,,, मेरे राजा,,,,,,, बस ऐसे ही ऐसे ही,,,,,, जोर जोर से चाटो । मेरे राजा मेरी बुर का सारा रस पी जाओ अपनी जीभ से,,,,,,,आहहहहहहह,,,,,,, बहुत मजा आ रहा है बिलास यही मजा पाने के लिए तो मैं तुम्हारे पास आती हुं,,,,,, मेरा पति कभी भी मुझे इस तरह से प्यार नहीं करता,,,,,,, ससससससहहहहहह,,,,, ओोोहहहहहहहहहह,,,,,, म्मांं,,,,,,,, मर गई रे मुझसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा है मेरे राजा,,,,,,,,बस अब बिल्कुल भी देर मत करो,, अपना मोटा लंड डालकर मेरी बुर की खुजली मिटा दो बहुत पानी छोड़ रही है जो चोदोे बिलास चोदो,,,,,

मेरी प्यासी बुर तड़प रही है तुम्हारे लंड के लिए,,,,

ओहहहहहह,,,,, बिलास ,,,,,, मेरे राजा,,,,,,, बस ऐसे ही ऐसे ही,,,,,, जोर जोर से चाटो । मेरे राजा मेरी बुर का सारा रस पी जाओ अपनी जीभ से,,,,,,,आहहहहहहह,,,,,,, बहुत मजा आ रहा है बिलास यही मजा पाने के लिए तो मैं तुम्हारे पास आती हुं,,,,,, मेरा पति कभी भी मुझे इस तरह से प्यार नहीं करता,,,,,,, ससससससहहहहहह,,,,, ओोोहहहहहहहहहह,,,,,, म्मांं,,,,,,,, मर गई रे मुझसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा है मेरे राजा,,,,,,,,बस अब बिल्कुल भी देर मत करो,, अपना मोटा लंड डालकर मेरी बुर की खुजली मिटा दो बहुत पानी छोड़ रही है जो चोदोे बिलास चोदो,,,,,

मेरी प्यासी बुर तड़प रही है तुम्हारे लंड के लिए,,,,

पद्मा एकदम से चुदवासी हो चुकी थी । बिलास जिस तरह से उसकी बुर की चटाई कर रहा था ।उससे उसकी काम ज्वाला और ज्यादा भड़क चुकी थी। एेसे मादक माहौल में पद्मा की गंदी बातें माहौल को और ज्यादा गर्म कर देती थी और यही बात बिलास को बेहद प्यारी लगती थी जो कि एसी ही उम्मीद वह मंगल से करता था लेकिन मंगल नें कभी भी ऐसे उत्तेजक मौके पर गंदी बातें कभी भी नहीं की।
माहौल पूरी तरह से गर्म हो चुका था, नीचे जमीन पर र
पद्मा लगभग नंगी ही अपनी जांघों को फैलाए बैठी हुई थी,,,, उसके बदन पर अभी भी साड़ी थी लेकिन उसके बदन के सारे नाजुक अंग जो कि कपड़ों के भीतर छुपे होने चाहिए वह सब कुछ नजर आ रहे थे।
आज पूरा दिन वह पूरी तरह से बिलास के साथ ही बिताना चाहतेी थी, वह भी घर से यही कह कर आई थी आज खेती में ज्यादा काम है इसलिए देर शाम को लौटेंगी,,,,
पद्मा को तड़पती देखकर अशोक भी उतावला हो चुका था अपने लंड को दहकती हुई बुर में डालने के लिए इसलिए वह अपना मुंह उसकी रसीली बुर पर से हटा लिया और खड़ा हो गया।
पद्मा की बुर से नमकीन रस टपक रहा था जिसे देखकर बिलास से रहा नहीं गया और वह तुरंत एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर सीधे पद्मा के बुर पर टिका दिया,,,,, पद्मा की हालत खराब होने लगी और देखते ही देखते ही पद्मा कि बुर ने बिलास के पूरे समुचे लंड को अपने अंदर उतार ली।।
बिलास का लंड पद्मा की बुर में पूरी तरह से अंदर समा चुका था। बिलास धीरे-धीरे अपने लंड को पद्मा की बुर में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। पद्मा की तो हालत खराब होने लगी उसके मुंह से तो सिसकारीयो की जैसे की फुहार छूटने लगी हो,,,,,
ससससससहहहहहह,,,,, आााहहहहहह,,,,,, आहहहहहहह,,,,, मेरे राजा मेरे बिलास ,,,,, और जोर जोर से चोदो मुझे,,,,, आहहहह जोर से,,,,,, अपने लंड को मेरी बुर में पेलो,,,, मेरी बुर को पानी पानी कर दो,,, बस एेसे ही,,,,, आहहहहहहह,,,,, ़बिलास ,,,,,,,

पद्मा की ऐसी गंदी बातें सुनकर बिलास जोर-जोर से पद्मा की चुदाई कर रहा था।
ओह पद्मा जैसा तुम खुल कर चुदवाती हो वैसा मेरी बीबी कभी भी नही चुदवाती इसलिए तो मुझे मेरी बीवी से ज्यादा मजा तुमसे मिलता है इसलिए तो मैं तुम्हारा दीवाना हो चुका हूं। आाााहहहहहह मेरी रानी,,,, आहहहहहहह,,,,,,

दोनों की सांसे तेज गति से चल रही थी दोनों मस्त हो चुके थे अशोक धक्के पर धक्का लगाए जा रहा था,,,, और पद्मा भी धक्के का जवाब बिलास को अपनी बाहों में भींच कर दे रही थी। करीब १० मिनट ही बीता होगा कि बिलास और पद्मा दोनों की सबसे तेज होने लगी और एक साथ दोनों का बदन अकड़ने लगा। और दोनों एक साथ झड़ गए,,,,,

बिलास इसी तरह से घर के बाहर मस्ती किया करता था वह अपने बदन की प्यास इसी तरह से पद्मा जेसी औरतों से बुझाया करता था और मंगल को नजरअंदाज करते हुए उसे प्यासी ही तड़पने को छोड़ देता था। अभी तो महफील की शुरुआत हुई थी यह महफिल तो रात ७:०० बजे तक चलने वाली थी। बरसों से खेतो के काम के बहाने बिलास बाहरी औरतों के साथ गुलछर्रे उड़ाता आ रहा था। जिसकी भनक तक मंगल को इतने सालों में नहीं लग पाई थी।
 

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